अहिंसा
ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
1. अिहंसा
परम पू महिष महेश योगी जी कहा करते थे िक जो अपनी अंतरिनिहत चेतना
को जागृत और उदा करने हेतु िन ित सहजग भावातीत ान करता है वह गीता
म योिगराज ीकृ णीत वैि क आनंद का अंग बन जाता है।
अिहंसा का शा क अथ है िक िकसी भी ाणी को मन,
वचन व कम से क नहीं प ंचाना। महा ा गांधी ने इस
चिलत अथ को और भी िव ृत कर दया, क णा, स ाव,
सबका क ाण करना। यह सब कु छ भारतीय वैिदक
पर रा म विणत वसुधैव कु टु कम को प रलि त करता
है। श व साम होने के प ात भी िजसके दय म दया
हो वह अिहंसक है। उपरो ल ण भारतीय दशन की
मूलभावना है। िजस कार धम के चार चरण होते ह ।
तप ा, स , दया और दान ठीक इसी के िवपरीत अधम के भी चार चरण होते ह
अस , िहंसा, असंतोष व कलह । सभी ािणयों म तीन गुण होते ह स , रज और तम्
और समय व यं की चेतना के र म उतार-चढ़ाव से समय पर शरीर, ाण और मन म
उनकी वृ व रण होता है। इसे समझने के िलए ऐसा कह सकते ह िजस समय हमारा
मन, बु और इ यां स गुण म थर होकर अपना-अपना काम करने लगती ह वह
समय हमारे िलए सतयुग के समान है। स गुण की धानता के समय मनु ान व
तप ा से अिधक ेम करने लगता है और वहीं जब मनु ों की वृि और िच अधम,
अथ और लौिकक-परलौिकक सुखभोगों की ओर होती है तथा हमारा शरीर, मन व
इ यां रजोगुण म थर होकर काम करने लगती ह तो यह मान िक हम ेता युग म वास
कर रहे ह। िजस समय हम लोभ, असंतोष, अिभमान, द और म र आिद के मद म
जीवन-यापन कर रहे हों तो मान हम ापर युग म जीिवत ह। ोंिक रजोगुण व तमोगुण
की िमि त धानता ापर युग म िमलती है और जीवन म झूठ-कपट, त ािन ा
िहंसािववाद, शोकमोह, भय और दीनता की धानता हो उस समय को तमोगुण धान
किलयुग समझना चािहए जैसा िक ीमद् भागवत सुधा सागर म विणत है। जीवन की
संपूणता म योग का िवषय वृहद एवं िव ृत है, पुरातन काल से ही इस ान के संबंध म
महान िचंतन, लेखन व मनन होते रहे ह और इस कार योग का कोई भी प अछू ता
नहीं छू टा है।
योग के माग अनेक ह, योग म साधन के उन ऊजा े ों पर आधा रत है, िजनके
सहारे हम परमा ा से आ ा के िमलन का माग खोजते ह। परमपू महिष जी कहते थे
Mahatma Gandhi
2. िक जो ढ़ िन यी होकर अपनी चेतना को श व जागृत करने का िनयिमत,
िनर र अ ास करता है वह चेतना म ही वैि क आनंद को पा जाता है। गीता म भगवान
कृ ने अिहंसा को योग का श शाली अवयव बताया है िकसी भी जीव का वध नहीं
करना और िकसी को व यं को भी क नहीं देना ही अिहंसा है। अिहंसा का पालन मन,
वचन एवं कम के र पर होना चािहए। वा व म िन ाथ भाव से कम के स भ म
अिहंसा का सांके ितक अथ वृहद है, ायोिचत प से देव व मानवता की र ा के िलए
िकए गए यु म अथवा समाज म शा व था बनाए रखने के िलए शासन ारा िदए
जाने वाले दंड म, िहंसा नहीं है। अिहंसा कायरता नहीं है। इसके िवपरीत यह साहसयु
वीरता की धारणा है िजससे िजसके ारा जीवों के ाण लेने या क देने के कम से बचे
रहना है। पर ु ाय और िन ाथ भाव ही इसके आधार ह। भगवान कृ ारा गीता म
कही गई इस बात के आधार पर महिष ने िव के अनेक शहरों म सामूिहक भावातीत
ान के मा म से वहां की िहंसा व नकारा कता के भाव को कम कर यह मािणत
िकया है िक भावातीत ान ही जीवन म आनंद का मा म है और इसको िनयिमत प
से अ ास करने पर हम यं तो लाभा त होते ही साथ ही हमारे चारों ओर के
वातावरण को भी हम सकारा क ऊजा दान करते ह और यही तो वसुधैव कु टु कम
का सार है िक यं के साथ-साथ संपूण कृ ित को अपना प रवार मानकर सम े ों म
सुखमय उ ित की कामना करते ए यासरत रहना।
चारी िगरीश
कु लािधपित, महिष महेश योगी वैिदक िव िव ालय
एवं महािनदेशक, महिष िव शांित की वैि क राजधानी
भारत का थान, करौंदी, िजला कटनी (पूव म जबलपुर), म देश