ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
1. बाह्य इन्द्रियों का संयम
भगवान को प्रसन्न करने के लिए श्रीमद्भागवत में तीस िक्षण बताए गए हैं। इस
श्ररृंखिा में अब तक सत्य, दया, तपस्या, शोच, ततततक्षा तथा आत्मतनरीक्षण पर
चचाा कर चुके हैं। आज का ववषय है बाह्य इन्द्न्ियों
का सृंयम। समाज में व्याप्त नकारात्मकता व
अवगुणों की आिोचना ने अनेक महत्वपूणा
प्रततभाओृं को अपना लशकार बनाया है। इसका अथा
यह हुआ कक वह आिोचना के गुरूत्वाकषाण को
ठीक से समझ नहीृं पाये, क्योंकक जब कभी आप
कु छ काया करने का प्रयास करेंगे तो आपके प्रतत
दुभाावना रखने वािे सभी साथी या ईर्षयाा प्रवरवि के
व्यन्द्क्त आिोचना उपहास के गुरूत्वकषाण से बाहर
तनकिकर आत्मववश्वास व सत्य अपने उद्देश्य में
सफि भी हो जाते हैं, ककृं तु जो आिोचना उपहास के गुरूत्वाकषाण से बाहर
तनकिकर आत्मववश्वास व सत्य को साथ िेता है वह सकारात्मकता का वातावरण
तनलमत करता है। पूणा आत्मववश्वास को बनाये रखते हुए अपने सद्प्रयासों से
जीवन में होने वािे पररवतानों का डटकर सामना करता है। उसे अपने पर हावी
नहीृं होने देता। महवषा वलशर्षठ ने कहा था कक न्द्जस प्रकार रेशम का कीड़ा अपने
लिए रेशम का कोया बनाता है, उसी प्रकार मन भी अपनी आवश्यकता के अनुसार
शरीर का गठन करता है। ज्ञातनयों का कहना है कक मन ही मनुर्षय और मुन्द्क्त का
कारण है। ववष और अमरत-दानों ही ववचार नामक पदाथा से उत्पन्न होते हैं। अनेक
िोग जाने या अनजाने ही ववष पैदा कर िेते हैं। तथाकथथत बुद्थिमान भी इस
मूखाता में फृं स जाते हैं। यदद हम मन के स्वभाव तथा उसकी काया-प्रणािी को
समझ िें, तो हम ववष की जगह अमरत उत्पन्न कर सकते हैं। मन क्या है?
2. पररभावषक जदटिताओृं में न जाकर हम के वि इतना ही कह सकते हैं कक मन
एक ऐसी शन्द्क्त है, न्द्जसमें असृंख्य ववचार, भावनाएृं, कल्पनाएृं और सृंकल्प आदद,
सृंक्षेप में कहें तो इच्छा, किया और ज्ञान, तनदहत रहते हैं। यह एक सूक्ष्म और
जदटि शन्द्क्त है, जो हमारे व्यन्द्क्तत्व को आकार देती है। इस शन्द्क्त की मदद से
हम अपने भाग्य को रूपातयक करते हैं। हमारे सारे कमा तथा उपिन्द्धियाृं मन में
तनदहत भावनाओृं, ववचारों और कल्पनाओृं के ही पररणाम हैं। एक प्रलसद्ि ववचारक
कहते हैं, ‘‘यदद तुम एक माह तक प्रततददन पाृंच बार अपने ववचारों का परीक्षण
करो, तो पता चिेगा कक तुम ककस प्रकार अपने भववर्षय का गठन कर चुके हो।
यदद तुम अपने कु छ ववचारों को पसन्द नहीृं करते, तो श्रेर्षठ होगा कक आज से ही
उन ववचारों तथा भावनाओृं में पररवतान िाना आरम्भ कर दो।" अतः हमें अपने
ववचारों की ददशा में पररवतान िाने का प्रयास करना चादहए। हमें अपने सभी
ववचारों और प्रयासों को जीवन के सम्मुख स्थावपत उच्च आदशों के रूपायन में
िगा देना चादहए। आजकि कम्प्यूटर अत्यन्त िोकवप्रय हो रहे हैं। हमारा मन भी
प्रकर तत का एक अद्भुत उपहार है और यह कम्प्यूटर से भी अथिक उपयोगी है।
यदद हम मन में स्वस्थ एवृं उदाि ववचारों तथा भावों को भरते रहें, तो इसके
फिस्वरूप हमें प्रसन्नता, शान्द्न्त और सन्तोष की प्रान्द्प्त हो सकती है। िोग इस
ओर अथिक ध्यान नहीृं देते हैं। हमें ब्रह्मण्ड में एक व्यवस्था ददखाई पड़ती है,
न्द्जसे वेदों में ‘ऋत’ कहा गया है। ब्रह्मण्ड की सारी चीजों को यह ‘ऋत’ ही
तनयृंत्रित करता है। सूया, चन्ि, तारे, ग्रह-सभी आकाश में घूम रहे हैं। ददन और
रात तथा ववलभन्न मौसम आते-जाते रहते हैं। इन सबके पीछे एक सूक्ष्म व्यवस्था
है। यह सुव्यवस्था के वि बाह्य जगत में ही नहीृं है, हम इसे अन्तर्गत में भी
पाते हैं। ददि की िड़कन, श्वसन, रक्त सृंचार, तनिा तथा जागरतत-सभी एक
सुसृंगत प्रकिया का अनुसरण करते हैं। एक उच्चतर तनयम भी है, जो मनुर्षय के
सुख और दुःख को तनयृंत्रित करता है। हर सफिता के पीछे अनुशासन और
व्यवस्था होती है। हमारा जीवन अनुशालसत तथा व्यवन्द्स्थत रूप से सृंचालित होना
3. चादहए। मानव-मन रूपी प्रकर तत-प्रदि इस कम्प्यूटर को अथिक उपयोगी बनाने के
लिए इसमें तनर्षपक्ष-तनरीक्षण, तनःस्वाथा-दृन्द्र्षटकोण, िक्ष्योन्मुख-प्रयास और आनन्द
के भाव भर देने चादहए। इसमें आिस्य, िापरवाही, एकाग्रता का अभाव, िोि और
पूवााग्रहग्रस्त ववचारों को भरने से यह बेकार हो जाता है। अतः मन में भरे जाने
वािे ववचारों तथा भावों के बारे में हमें बहुत साविान रहना चादहए। मन ककसी
रोग को पैदा कर सकता है या उसे ठीक भी कर सकता है। िैया, प्रेम, सहानुभूतत,
उदारता, तनःस्वाथाता आदद सकारात्मक गुण मानव-देह रूपी इस यृंि के सभी अृंगों
को सुचारू, स्वस्थ तथा सुखद रूप से चिाते हैं। पर नकारात्मक ववचारों से भय,
थचन्ता, िोि, ईर्षया, तनराशा और स्वाथापरता का जन्म होता है, जो पूरे शरीर को
प्रभाववत करके उसे रोगी कर देते हैं। प्रसन्नता, शान्द्न्त, साहस, आत्मववश्वास,
सृंकल्प शन्द्क्त आदद सकारात्मक मानलसक अवस्थाएृं शरीर को स्वस्थ रखने में
ककसी भी टॉतनक से अथिक प्रभावकारी हैं और भावातीत ध्यान के प्रततददन
अभ्यास से आपको बाह्य इन्द्न्ियों को सृंयलमत करने की शन्द्क्त का आभास होगा।
ब्रह्मचारी थगरीश
कु िाथिपतत, महवषा महेश योगी वैददक ववश्वववद्यािय
एवृं महातनदेशक, महवषा ववश्व शाृंतत की वैन्द्श्वक राजिानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, न्द्जिा कटनी (पूवा में जबिपुर), मध्य प्रदेश