Meri Bhavana describes the "Virtues" which every person must possess.
It describes the great vows which are at the heart of right conducts :
- Nonviolence (Ahinsa) - Not to cause harm to any living beings.
- Truthfulness (Satya) - To speak the harmless truth only .
- Non-stealing (Achourya) - Not to take anything not properly given.
- Chastity (Brahmacharya) - Not to indulge in sensual pleasure .
- Non-possession/ Non-attachment (Aparigraha) - Complete detachment from people, places, and material things.
& many more....
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Meri Bhavana - A Scripture teaching Morals & Ethics
1. जिसने राग-द्वेष कामाजिक, िीते सब िग िान जिया
सब िीवों को मोक्ष मागग का जनस्पृह हो उपिेश जिया,
बुद्ध, वीर जिन, हरर, हर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो
भजि-भाव से प्रेररत हो यह जित्त उसी में िीन रहो। ॥1॥
मेरी भावनापं. जुगलकिशोरजी िृ त
2. जवषयों की आशा नहीं जिनके , साम्य भाव धन रखते हैं
जनि-पर के जहत साधन में िो जनशजिन तत्पर रहते हैं,
3. स्वार्ग त्याग की कजिन तपस्या, जबना खेि िो करते हैं
ऐसे ज्ञानी साधु िगत के िुख-समूह को हरते हैं। ॥2॥
4. रहे सिा सत्संग उन्हीं का ध्यान उन्हीं का जनत्य रहे
उन ही िैसी ियाग में यह जित्त सिा अनुरि रहे,
5. नहीं सताऊँ जकसी िीव को, झूि कभी नहीं कहा करं
पर-धन-वजनता पर न िुभाऊं , संतोषामृत जपया करं । ॥3॥
6. अहंकार का भाव न रखूं, नहीं जकसी पर क्रोध करं
िेख िूसरों की बढ़ती को कभी न ईर्षयाग-भाव धरं ,
7. रहे भावना ऐसी मेरी, सरि-सत्य-व्यवहार करं
बने िहां तक इस िीवन में औरों का उपकार करं । ॥4॥
8. मैत्रीभाव िगत में मेरा सब िीवों से जनत्य रहे
िीन-िुखी िीवों पर मेरे उरसे करुणा स्रोत बहे,
िुिगन-क्रू र-कु मागग रतों पर क्षोभ नहीं मुझको आवे
साम्यभाव रखूं मैं उन पर ऐसी पररणजत हो िावे। ॥5॥
9. गुणीिनों को िेख हृिय में मेरे प्रेम उमड़ आवे
बने िहां तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे,
10. होऊं नहीं कृ तघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे
गुण-ग्रहण का भाव रहे जनत दृजि न िोषों पर िावे। ॥6॥
11. कोई बुरा कहो या अच्छा, िक्ष्मी आवे या िावे
िाखों वषों तक िीऊं या मृत्यु आि ही आ िावे।
अर्वा कोई कै सा ही भय या िािि िेने आवे।
तो भी न्याय मागग से मेरा कभी न पि जिगने पावे। ॥7॥
12. होकर सुख में मग्न न फू िे िुख में कभी न घबरावे
पवगत निी-श्मशान-भयानक-अटवी से नजहं भय खावे,
रहे अिोि-अकं प जनरंतर, यह मन, दृढ़तर बन िावे
इिजवयोग अजनियोग में सहनशीिता जिखिावे। ॥8॥
13. सुखी रहे सब िीव िगत के कोई कभी न घबरावे
बैर-पाप-अजभमान छोड़ िग जनत्य नए मंगि गावे,
घर-घर ििाग रहे धमग की िुर्षकृ त िुर्षकर हो िावे
ज्ञान-िररत उन्नत कर अपना मनुि-िन्म फि सब पावे। ॥9॥
14. ईजत-भीजत व्यापे नहीं िगमें वृजि समय पर हुआ करे
धमगजनष्ठ होकर रािा भी न्याय प्रिा का जकया करे,
रोग-मरी िुजभगक्ष न फै िे प्रिा शांजत से जिया करे
परम अजहंसा धमग िगत में फै ि सवगजहत जकया करे। ॥10॥
15. फै िे प्रेम परस्पर िग में मोह िूर पर रहा करे
अजप्रय-कटुक-किोर शब्ि नजहं कोई मुख से कहा करे,
बनकर सब युगवीर हृिय से िेशोन्नजत-रत रहा करें
वस्तु-स्वरप जविार खुशी से सब िुख संकट सहा करें। ॥11॥