बिन पिये ही मुझे चढ जाती हैl a lifechanging poem to stop drinking habit
1. बिन पिये ही मझु ेचढ जाती है, बिन पिये ही मझु ेचढ जाती है
इंसाननयत कि शराि िा नशा,मानवता और भाईचारेिी नशा
इन्साननयतसे जजसे है प्यार, उसे रहती है हरदम खुमार
झूठा भी िरले प्यार,झूठा भी हस ले यार
झूठा ही प्रेम िर ले, झठुा पवश्वास रखले
झूठा ही प्रेमसे खाले,झूठा ही प्रेमसे िी ले
झूठा ही ददलसे देदे, झूठा प्रेम ्भी ख़ुशी दे
िौन िम्िख्त िहता है? शराि िीनेिी चीज है!
िौन िद्तमीज दसुरेिो पिलािर उसिो शराििा गलुाम िनाये
शराि िनाये अच्छे खासे इन्सान िो नाचीज
मािाि भाईिहनसे आदमी िन जाये िद्तमीज
भगवान ने मफ्ुतमे दी है हसी िी शराि
म ैभी समझता हु कि हसीही है मेरी शराि
और िूरा संसार है मयखाना
और सािी तो खुद भगवान है
मफ्ुतमे पिलाता है हसी िी शराि
पियो मेरे यारो ये हसीिी शराि, किर िभी नाही जायेगा आििा िोई ददन खराि
हा हा ही ही हु हु हे हे है है हो हो हम हम हा हा
हम्मा हुम्मा ही ही हो हो हे है हे हे हे
यारो इजाजत दो मझु ेअि,क्या मालूम किर ममले िि –
-------------------हसी िा सािी डॉ वभैव लंिुड