ब्रह्मचारी गिरीश ने कहा कि वे सन्तों, साधुओं, सन्यासियों और धर्म गुरुओं के श्रीचरणों में दण्डवत प्रणाम करते हैं और उनसे निवेदन करते हैं कि वे अपने शिष्यों, भक्तों को सत्यमेव जयते की विद्या प्रदान कर भारतीय और विश्व परिवार के नागरिकों का जीवन धन्य करें और सत्य पर आधारित अजेयता का उपहार आशीर्वाद में दें। भारत और विश्व सदा भारतीय साधकों और धर्म गुरुओं का ऋणी और कृतज्ञ रहेगा।
1. सत्यमेवजयते बहुत महत्वपूर्ण ससद्धाँत
परम पूज्य महर्षण महेश योगी जी के र्िय तपोनिष्ठ सशष्य
ब्रह्मचधरी गगरीश जी िे आज कहध कक ‘‘सत्यमेवजयते"
एक बहुत बड़ध, महत्वपूर्ण और मूल्यवधि ससद्धाँत है। जो
मिुष्य अपिी दििचयधण, जीविचयधण सत्य पर आ्धररत
रखेंगे उन्हें सिध र्वजय की िधप्तत होगी, परधजय कभी िहीीं
िेखिी पड़ेगी। उन्होंिे कहध कक वैदिक वधींगमय सत्य
सम्बन््ी गधथधओीं और उिके शुभफलों से भरध पड़ध है।
‘‘इस कधल में हमिे महर्षण महेश योगी जी को सत्य के पर्यार् रूप में िेखध। 50 वषों तक
शतधग्क िेशों में अिेकधिेक बधर भ्रमर् करके समस्त ्मो, आस्थध, र्वश्वधस, परम्परध,
जीवि शैली के िधगररकों को भधरतीय वेि र्वज्ञधि कध जीविपरक ज्ञधि िेिध, भधवधतीत
ध्यधि, ससदग् कधयणक्रम, योगगक उड़धि, ज्योनतष, गीं्वणवेि, स्वधस््य, वधस्तुर्वज्ञधि,
कृ र्ष, पयधणवरर्, पुिवधणस आदि र्वषयों कध सैद्धाँनतक ज्ञधि और िधयोगगक तकिीक
िेिध ककसी एक व्यप्तत के सलये असम्भव है। जब महर्षण जी र्वश्व को िुुःख से, सींघषण से
मुतत करिे निकले थे, तब आज की तरह ईमेल, मोबधइल, इींटरिेट, र्िींट व इलेतरॉनिक
मीडियध, सींचधर, शोसल िेटवकण इतिध सुलभ िहीीं थध। सधरध कधयण गचट्ठी-पत्री से होतध
थध। गुरुिेव तत्कधलीि ज्योनतष्पीठध्ीश्वर अिन्त श्री र्वभूर्षत स्वधमी ब्रह्मधिन्ि
सरस्वती जी िे दहमधलय बदिकधश्रम की गदिी 165 वषण तक ररतत रहिे के पश्चधत्
1941 में सम्हधली थी और अपिे, गहरे पूर्ण वैदिक ज्ञधि, तप, पररश्रम से पूरे भधरतवषण
र्वशेषरूप से उत्तर भधरत में अध्यधत्म और ्मण की पतधकध घर-घर में फहरध िी। बड़ी
सींख्यध में र्वशधल यज्ञों कध आयोजि ककयध। गुरुिेव के कधयों के आ्धर में उिकध ज्ञधि,
तप और िमुखतुः सत्व थध।
‘‘पूज्य महर्षण जी िे 13 वषण श्रीगुरुिेव के श्रीचरर्ों की सेवध करते हुए सध्िध की और
ज्ञधि व सत्य के मधगण को अपिधकर सधरे र्वश्व में जो भधरतीय ज्ञधि-र्वज्ञधि कध िचधर-
िसधर, अध्ययि-अध्यधपि और कधयण योजिधओीं कध कक्रयधन्वयि ककयध वह अदर्वतीय
है, ि भूतो ि भर्वष्यनत।
Brahmachari Girish Ji
2. ब्रह्मचधरी गगरीश िे कु छ निरधशध जतधते हुए कहध कक ‘‘इस कसलकधल में मधिव जीवि
से सत्व कध ह्रधस होिे के कधरर् तिधव, परेशधनियधाँ, िुुःख, सींघषण, आतींक, गचन्तधयें, रोग-
बीमधरी आदि तेजी से मधिव जीवि को जकड़ रही हैं। हम ककसी की आलोचिध यध निन्िध
िहीीं करिध चधहते ककन्तु सत्य तो यह है कक आज अध्यधत्म यध ्मण की जधग्रनत के िचधर
के स्थधि पर व्यप्तत के प्न्ित िचधर अग्क हो रहध है। यदि समस्त ्मण गुरु अपिे-अपिे
सशष्यों को नित्य सध्िध के क्रम से जोड़ िें तो भधरतवषण की सधमूदहक चेतिध में सतोगुर्
की अभूतपूवण असभवृदग् होगी और सत्यमेवजयते पुिुः स्थधर्पत होिे लगेगध।"
गगरीश जी िे यह भी कहध कक ‘‘आज ्मणगुरुओीं के उत्तरधग्कधर को लेकर मठों, अखधड़ों,
पीठों, सींस्थधओीं में वैचधररक, वै्धनिक मतभेि के सधथ-सधथ मधरपीट और सध्ु सींतों के
बीच खूि-खरधबे तक के समधचर पढ़िे और सुििे को समलते हैं। हमें यह समझ िहीीं
आतध कक सन्यधस ले लेिे वधले ककसी पि यध सम्पर्त्त यध गदिी के यध िनतष्ठध के सलये
तयों लड़ते हैं? यह अपिी वैदिक परम्परध के र्वरुद् है। यह िमधणर्त करतध है कक उिकध
सन्यधस वधस्तर्वक िहीीं है। भगवध वस्त्र ्धरर् कर, सध्ु वेष बिध लेिध के वल दिखधवध
है। सन्यधसी तो मि से होिध चधदहये। आत्मचेतिध से सन्यधसी हों और यह सब व्यप्तत
के स्वयीं की शुद् सधप्त्वक चेतिध पर निभणर होतध है। सध्िध की कमी सतोगुर् में कमी
रखती है, रजोगुर् और तमोगुर् हधवी हो जधते हैं तब सन्यधसी अपिे कतणव्य से र्वमुख
होकर सध्धरर् मिुष्य की तरह आचरर् करिे लगते हैं, ्मण गुरु कध के वल िधम रह
जधतध है और सत्व िूर रह जधतध है। सींत कबीरिधसजी िे ठीक ही कहध है मि ि रींगधये,
रींगधये जोगी कपड़ध।"
ब्रह्मचधरी गगरीश िे कहध कक वे सन्तों, सध्ुओीं, सन्यधससयोंऔर ्मण गुरुओीं के श्रीचरर्ों
में िण्िवत िर्धम करते हैं और उिसे निवेिि करते हैं कक वे अपिे सशष्यों, भततों को
सत्यमेव जयते की र्वदयध ििधि कर भधरतीय और र्वश्व पररवधर के िधगररकों कध
जीवि ्न्य करें और सत्य पर आ्धररत अजेयतध कध उपहधर आशीवधणि में िें। भधरत
और र्वश्व सिध भधरतीय सध्कों और ्मण गुरुओीं कध ऋर्ी और कृ तज्ञ रहेगध।
र्वजय रत्ि खरे
नििेशक - सींचधर एवीं जिसम्पकण
महर्षण सशक्षध सींस्थधि