ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
1. अक्षय ऊर्जा स्रोत
वर्तमान समय का मानवजीवन अनेकानेक कायो को करने की होड़ में अव्यस्थिर् व
र्नावयुक्त हो गया है, इससे हमारी जीवनशैली से शाांतर् व आनांद
बहुर् दू र हो गया है और सभी याांतिक जीवन जीने के अभ्यथि हो
गये है। मानव जीवन की ऊजात उसके जीवन की शाांतर् व आनांद में
समातहर् होर्ी है। और यही ऊजात मानव को प्रत्येक पररस्थितर् में
र्टथि रहने का सांबल प्रदान करर्ी है। आधुतनक जीवनशैली में
व्यायामशाला (तजम) एक आवश्यक गतर्तवतध बन गया है, तकां न्तु प्रतर्तदन लगभग 40-
50 तमतनट व्यायामशाला में व्यायाम करने वाले लोग भी शाांतर् व आनांद के आभास से
अिातर्् जीवन की ऊजात से स्वयां को अनतभज्ञ मानर्े है। वहीां ‘‘भावार्ीर् ध्यान” का साधक
प्रतर्तदन प्रार्ः व सांध्या के समय 15-20 तमतनट ध्यान कर जीवन के इस कभी न समाप्त
होने वाली ऊजात के अक्षय स्रोर् ‘‘भावार्ीर् ध्यान” से शाांतर् व आनांद प्राप्तकर अतभभूर् हो
रहा है। ध्यान का महत्व मुख्य रूप से शरीर के आांर्ररक मानतसक सांर्ुलन को सांर्ुतलर्
करना है और साि ही ध्यान से परमेश्वर की प्रास्प्त भी होर्ी है। ध्यान से आपकी
कमतशीलर्ा में हातन नहीां होर्ी वरन् प्रतर्तदन ‘‘भावार्ीर् ध्यान” करने से आपकी
कायतशैली में गुणोत्तर वृस्ि होर्ी है। तजससे अपनी ऊजात का आप उतिर् उपयोग कर
पार्े है और आप स्वयां को अतधक ऊजातवान व आनांतदर् अनुभव करर्े हैं। क्ोांतक
‘‘भावार्ीर् ध्यान” का अभ्यास करने से आपकी अव्यस्थिर् ऊजात एकतिर् हो जार्ी है, व
मनःस्थितर् एकाग्रतिर् हो जार्ी है और जब तित्त एकाग्र हो जार्ा है जो माि मछली की
आांख तदखाई देर्ी है, मछली नहीां। अिातर्् इस िरािर जगर् में भौतर्कवादी व तवलातसर्ा
की अनेक माया रूपी इच्छाएां आपको अपने मागत से भटकाने का प्रयास करर्ी हैं र्िा
तित्त की अशाांतर् के फलस्वरूप् हम भी उसके मोहपाष में बांधकर अपनी अतनयांतिर्
इच्छाओां की पूतर्त करने में स्वयां को आतितक रूप से असमित पार्े है। हम तनराशवादी होर्े
हुए स्वयां पर तवश्वास नहीां करर्े, स्वयां को एकाकी अनुभव करने लगर्े हैं। वहीां दू सरी ओर
‘‘भावार्ीर् ध्यान” हमें ‘वसुधैव कु टुम्बकम’ का सदस्य बर्ार्ा है तजससे हम अपनी
Brahmachari Girish Ji
2. पररस्थितर्योां को समझने र्िा उनके तनराकरण के तलये उतिर् मागत की खोज कर
समस्याओां को दू रकर स्वयां में अद् भूर् धनात्मकर्ा का अनुभव करर्े हैं। तशव सांतहर्ा के
पांिम पटल के 190-191 श्लोक में परमेश्वर में ध्यानथि साधक के तवषय में कहा गया है
तक -
तिर्वृतत्त लीना कु लाख्ये परमेश्वर।
र्दा समातधसाम्येन योगी तनश्चलर्ाां ब्रजेर््।।
तनरांर्रकृ र्े ध्याने जगतिस्मरणां भवेर््।
र्दा तवतििसामर्थ्त योतगनो भवतर् ध्रुवम्।।
अिातर्् ईश्वर में अपनी मनोवृतत्त का तवलयन कर लेने वाला ध्यानथि साधक अिल समातध
में तनमग्न हो जाया करर्ा है। उसमें जागतर्क तवषयोां की तवस्मृतर् र्िा तवतिि प्रकार की
क्षमर्ा की उत्पतत्त हो जार्ी है। यह किन तबल्कु ल ही सत्य है। तशव सांतहर्ा में उद् धृर् यह
श्लोक इस र्र्थ् को पूणत सत्य बर्ार्ा है तक एक तित्त होने अिातर्् भावार्ीर् ध्यान की
स्थितर् में धीरे-धीरे प्रवेश करर्े हुए साधक साांसाररक तवषयोां को तवस्मृर् करर्े हुए समातध
में प्रवेश करर्ा और उसका एक अक्षय ऊजात स्त्रोर् से र्ादाम्य थिातपर् होर्े जार्ा है।
तशव सांतहर्ा के ही अगले श्लोक में साधक को अमृर् का सर्र् पान करने वाला बर्ाया
है-
‘र्दस्माद्रतलर्पीयूषां तपवेद्योगी तनरांन्तरम्।
मृत्योमुतत्यु तवधायषु कु लां तजत्वा सरोरुहे।।’
अिातर्् सहस्त्र दल कमल से टपकर्े हुए अमृर् का सर्र् पान करने वाला साधक अपने
कु ल सतहर् मृत्यु पर भी तवजय-लाभ पा लेर्ा है। ऐसे असीम आनांद और ऊजात का अक्षय
स्त्रोर् ‘भावार्ीर् ध्यान’ है।
ब्रह्मिारी तगरीश
कु लातधपतर्, महतषत महेश योगी वैतदक तवश्वतवद्यालय
एवां महातनदेशक, महतषत तवश्व शाांतर् की वैतश्वक राजधानी
भारर् का ब्रह्मथिान, करौांदी, तजला कटनी (पूवत में जबलपुर), मध्य प्रदेश