2. BASANT SHARMA (Msc. Physics) SCIENCE NOTES CLASS 10 TH
1
(आनुवंशिकता एवं जैव शवकास)
आनुवंशिकता की परिभाषा :-
आनुव ांशिक लक्षण ां क एक पीढ़ी (म त -शपत य जनक से
दू सरी पीढ़ी (सांत न) में स्थ न न्तररत ह न आनुवांशिकत
कहल त है। आनुवांशिकत क
े क रण ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीव ां
में सम नत बनी रहती है। आनुवांशिकत की ख ज ग्रेगर
जॉनमेण्डल ने 1886 में शकय ।
आनुवांशिकी -शवज्ञ न की वह ि ख शजसक
े अन्तगगत जीव ां क
े
आनुवांशिक सम नत ओां य असम नत ओां एवां उनकी वांि गशत
क अध्ययन शकय ज त है उसे आनुवांशिकी कहते हैं।
म नव आनुवांशिकी क
े जनक ग ल्टन थे।
• ग्रेगि जॉन मेण्डल द्वािा मटि क
े पौधे पि प्रयोग-
मेण्डल ने मटर क
े पौधे पर अपने सांकरण क
े प्रय ग शकए।
उन् ांने मटर क
े स त शवपय गसी लक्षण ां की वांि गशत क अध्ययन
शकय ,
वह समयक ल सन् 1857 - 1865 ई0 तक थ शजसक
े अन्तगगत वे
क
ां शिन श्रम शकये शिर उन् ांने अपने शसद्ध न्त ां क नेचुरल शहस्ट्री
OF स स इटी) की सभ में रख ।
मटि क
े सात शवपयाासी लक्षण
मटर क वैज्ञ शनक न म : प इसम सट इवम।
मटर क
े पौधे चयन करने क
े क रण :-
1. मटर क पौध व शषगक पौध है। अतः इसक जीवन चक्र छ ट
ह त है, शजससे क
ु छ ही समय में इसकी अनेक पीढ़ीय ां क
अध्ययन करने में सुशवध शमलती है।
2. मटर क
े पौधे में शिशलांगी पुष्प प ये ज ते है अथ गत् नर व म द
जनन ांग एक ही पुष्प पर प ये ज ते है।
3. मटर क
े पौधे में अनेक तुलन त्मक लक्षण प ये ज ते हैं।
4. इनमें स्व- पर गण की शक्रय प यी ज ती है।
5. इनमें क
ृ शिम पर- पर गण ि र सांकरण कर य ज सकत
है।
6. सांकरण ि र प्र प्त सन्तशत पूणग उवगर ह ती है।
मेण्डल क
े शनयमों में प्रयुक्त िब्दावली :-
(i) जीन य क रक:- मेण्डल क
े अनुस र, सजीव ां क
े प्रत्येक लक्षण
क शनयांिक व शनध गररत करने व ले क
ु छ क रक
ग ह ते है, शजसे
जीन कह ज त है ? जीन िब्द क सवगप्रथम प्रय ग ज हन्सन ने
शकय ।
(ii) युग्मशवकल्पी य एलील िॉमग:- शवपरीत लक्षण ां व ले युग्म ां क
युग्मशवकल्पी कहते हैं। जैसे: युग्म में एक गुणसूि पर R तथ
दू सरे गुणसूि पर r युग्मशवकल्प उपस्स्थत ह त
(iii) समयुग्मजी एवां शवषमयुग्मजी : :- जब एक शवपय गसी लक्षण ां
क शनयांशित करने व ले द न ां जीन एक ही प्रक र क
े ह ते है, त
उन्ें समयुग्मजी कहते है। जब शवपय गसी लक्षण ां क शनयांशित
करने व ले द न ां जीन अलग - अलग प्रक र क
े ह त उसे
शवषमयुग्मजी कहते है।
(iv) प्रभ वी तथ अप्रभ वी:-युग्मां शवकल्पी क रक ां में वह लक्षण,
ज समयुग्मजी तथ शवषमयुग्मजी द न ां अवस्थ ओां में प्रदशिगत
ह त है, प्रभ वी लक्षण कहल त है। जैसे : पुष्प क लम्ब पन,
पील रांग आशद। युग्मशवकल्पी क रक ां में वह लक्षण ज क
े वल
समयुग्मजी में प्रदशिगत ह त है, अप्रभ वी लक्षण कहल त है।
(v) सांकरण और सांकर- जब तुलन त्मक लक्षण व ले नर और
म द क
े मध्य शनषेचन कर य ज त है, त उसे सांकरण कहते
हैं तथ उनसे प्र प्त सांतती क सांकर कह ज त है।
जैसे: िुद्ध लम्बे (TT) तथ िुद्ध बौने (tt) क
े मध्य सांकरण कर य
ज त है त सांकर लम्बे (Tt) पौधे प्र प्त ह ते हैं।
(vi)एकसांकर सांकरण- जब जीव में एक ज ड़ी युग्मशवकल्पी
लक्षण ां, क ध्य न में रखकर सांकरण कर य ज त है त वह,
एक सांवर सांकरण कहल त है। उद ० :- िुद्ध लम्बे तथ िुद्ध
बौने पौध ां क
े मध्य सांकरण ।
(vii) शिसांकर सांकरण:- जब जीव य पौधे क
े द ज ड़ी
युग्म शवकल्पी लक्षण ां क ध्य न में रखकर सांकरण कर य
ज त है त वह शिसांकर सांकरण कहल त है। उद ० :- ग ल
पीले बीज तथ हर झुरीद र बीज क
े मध्य सांकरण
(viii) F1 पीढ़ी- पैतृक पीडी (P) क
े बीच सांकरण कर ने से प्र प्त
पीढ़ी पीढ़ी, प्रथम सन्त नीय पीढ़ी (F1) कहल ती है।
(ix) F2 पीढ़ी- F1 पीढ़ी क
े जीव ां क
े बीच स्वपर गण कर ने पर
प्र प्त पीढ़ी F2 पीढ़ी (शितीयक सन्त नीय पीढ़ी) कहल त है।
(x) लक्षणप्र रुप तथ जीनप्र ण में अन्तर :-
लक्षणप्र रूप जीनप्र रूप।
1. लक्षणप्र रूप जीव क
े शवशभन्न
गुण ां जैसे: आक र , आक
ृ शत,
रूप, स्वभ व व रांग आशद क
व्यक्त करत है।
2. लक्षणप्र रूप शदख ई देते हैं।
3. लक्षणप्र रूप व ले जीव ां की
जीनी सरचन सम न ह सकती
है य नहीां भी ह सकती है।
1. जीनप्र रूप जीव क
े जीनी
सांगिन क व्यक्त करत है।
उसमें शवशभन्न लक्षण ां क
शनध गररत करत है।
2. जीन प्र रूप शदख ई नहीां देते
हैं।
3. जीनप्र रूप व ले क
े जीन व
लक्षणप्र रूप द न सम न रहते
हैं।
3. BASANT SHARMA (Msc. Physics) SCIENCE NOTES CLASS 10 TH
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मेण्डल क
े आनुवंशिकता क
े शनयम-
मेण्डल ने अपने प्रय ग ां क
े आध र पर तीन शनयम प्रशतप शदत
शकये ज शनम्नशलस्खत है-
1. प्रभाशवता का शनयम -(एकसंकि संकिण)
प्रभ शवत क
े शनयम नुस र, " जब परस्पर शवपय गसी लक्षण ां व ले
पौध ां क
े बीच सांकरण कर य ज त है, त F1 पीढ़ी क
े सन्त न ां में
ज लक्षण शदख यी देत है, उसे प्रभ वी लक्षण कहते है तथ ज
लक्षण F1 पीढ़ी में प्रदशिगत नहीां ह त है उसे अप्रभ वी लक्षण कहते
है। इसी शचयम क मेण्डल क
े प्रभ शवत क शनयम कहते है।
मेण्डल क
े प्रभ शवत क शनयम मेण्डल ि र प्रशतप शदत एकसांकर
सांकरण पर आध ररत है।
एकसांकर सांकरण :- जब जीव क
े एक ज डी युग्मशवकल्पी लक्षण ां
क लेकर ध्य न क
े स्ित कर उनक
े मध्य सांकरण कर य ज त है,
त उसे एकसांकर सांकरण कहते हैं।
उद हरण:- जब िुद्ध लम्बे (TT) तथ िुद्ध बौने (tt) पौध ां क
े मध्य
सांकरण कर य ज त है, त F1 पीढ़ी में प्र प्त सभी लक्षण प दप
100% लम्बे प्र प्त ह ते हैं, क् ांशक लम्बेपन क गुण प्रभ वी है तथ
ब नेपन क अप्रभ वी है।
2. मेण्डल क
े पृथक्किण का शनयम या युग्मकों की िुद्धता का
शनयम-
मेण्डल क
े पृथक्करण क शनयम मेण्डल ि र प्रशतप शदत एक
सांकर सांकरण क
े पररण म ां पर आध ररत ह त है।
मेण्डल क
े पृथक्करण क
े शनयम नुस र, "जब अवयव युग्मक
शनम गण क
े समय युग्म जीन एक -दू सरे से प्रथक ह ज ते हैं और
युग्मक में युग्म जीन क क
े वल एक ही जीन पहुँचत है त इसे
युग्मक ां की िुद्धत क शनयम य पृथक्करण क शनयम कह ज त
है।
उद हरण- (i) जब िुद्ध लम्बे (TT) तथ िुद्ध बौने (tt) पौध ां क
े
बीच सांकरण कर य ज त है त F1 पीढ़ी में सभी पौधे लम्बे प्र प्त
ह ते है, जब F1 पीढ़ी क
े इन्ें पौध ां क
े बीच स्व-पर गण कर य
ज त है त F 2 पीढ़ी में िुद्ध लम्बे व ब ने द न ां प्रक र क
े पौधे
प्र प्त ह ते हैं।
ii) शजनक
े जीन ट इप अनुप त 1:2:1 तथ िीन ट इप अनुप त 3:1
प्र प्त ह त है, क् ांशक युग्मक शनम गण क
े समय जीन युग्म ां क
े जीन
T तथ t पृथक ह ज ते हैं और युग्मक में इनमें से क
े वल एक ही
जीन पहुँचत इस प्रक र युग्मक ां क
े शनयम त स्पष्ट शकय ज त
है।
F2 पीढ़ी में 3/4 लांबे पौधे वे 1/4 बौने पौधे थे
जीन ट इप F2 – 3:1 (3 लांबे पौधे : 1 बौन पौध )
िीन ट इप(लक्षण प्र रूशपक अनुप त)
जीन ट इप F3 -1:2:1 (जीन प्र रूशपक अनुप त)
TT, Tt, tt क सांय जन 1: 2: 1 अनुप त में प्र प्त ह त है।
3. स्वतन्त्र अपव्यूहन का ननयम :-
शनयम नुस र, " जब द य द से अशधक शवपय गसी लक्षण ां व ले
पौध क
े मध्य सांकरण कर य ज त है त उनक
े जीन युग्म क
े
क रक ां क पृथक्करण एवां अपव्यूहन स्वतन्त्र रूप से ह त है
अथ गत ये स्वतन्त्र रूप से पृथक ह कर जनक ां क
े अन्य शकसी
लक्षण ां से सांय ग न बन ते हए सन्त नीय पीढ़ीय ां में ज ते है।
मेण्डल क
े इस शनयम क स्वतन्त्र अपव्युहन क शनयम कहते है।
स्वतन्त्र अपव्यूहन क शनयम मेण्डल क
े शिसांकर सांकरण क
े
पररण म ां पर आध ररत है।
जब जीव ां क
े द ज ड़ी युग्मशवकल्पी लक्षण ां क ध्य न में रखकर
क
े सांकरण कर य ज त है, त उसे शिसांकर सांकरण कहते है।
उद हरण:-
(i) मेण्डल ने शिसांकर सांकरण प्रय ग क
े शलए जब ग ल पीले तथ
हर झुरीद र बीज व ल ां पौध ां क
े मध्य सांकरण क
ु र य त F1 पीढ़ी
में सभी पौधे सांकर ग ल व पीले बीज व ले ह ते है। इससे यह
शसद्ध ह त है शक पीले रांग (YY) व ग ल आक र (RR) प्रभ वी गुण
है जबशक हर रांग (yy) व झुरीद र आक र (rr) अप्रभ वी लक्षण है।
(ii) F1 पीढ़ी क
े पौध ां में स्व-पर गण कर ने पर F2 पीढ़ी में च र
प्रक र क
े बीज व ले पौधे प्र प्त ह ते हैं।
लक्षण प्ररूप अनुपात 9:3:3:1 क
े अनुप त में ह ते हैं।
इसमें जीन प्ररूप अनुप त 1 : 2 : 2 : 4 : 1 : 2 : 1 : 2 : 1 ह त है।
4. BASANT SHARMA (Msc. Physics) SCIENCE NOTES CLASS 10 TH
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मनुष्ों में शलंग शनधाािण :-
शलांग शनध गरण वह प्रशक्रय है, शजसक
े ि र यह सुशनशित ह त है
शक एकशलांगी जन्तुओां में लैंशगक जनन क
े पि त् उत्पन्न ह ने व ल
सांत न नर ह ग य म द ।
मनुष्य में शलांग शनध गरण की प्रशक्रय युग्मकजनन क
े दौर न ह ती
है। युग्मकजनन में अद्धगसूिी शवभ जन ि र अगुशणत युग्मक ां क
शनम गण ह त है।
स्त्री में बने हए सभी युग्मक (अण्ड) 22+ X गुणसूि जबशक पुरुष
में द प्रक र क
े युग्मक (िुक्र णु) 22+X तथ 22+Y गुणसूि ां व ले
ह ते हैं। शनषेचन क
े पि त समय नर से प्र प्त िुक्र णु (X य Y
गुणसूि व ल ) अण्ड से शमलत है। इस प्रक र शलांग क शनध गरण
बनने व ले युग्मनज में क्रमि: 44 +XX य 44+XY गुणसूि से ह
सकत है। इस प्रक र शलांग क शनध गरण शनषेचन क
े समय ही
िुक्र णु क
े गुणसूि ि र ही ह सकत है, क् ांशक सभी म द एक
ही प्रक र क
े गुणसूत रखते है।
न ट:- स्त्री क
े युग्मक जब पुरुष क
े 22+X गुणसूि प्र रूप व ले
िुक्र णु. से शमलते हैं, त सदैव पुिी (म द शििु) क जन्म ह त है
तथ जब 22+Y गुणसूि प्र रूप से शमल त है त सदैव पुि नर
शििु) क जन्म ह त है।
जैव शवकास
शवक स – वह शनरन्तर धीमी गशत से ह ने व ल प्रक्रम ज हज र ां
कर ड़ ां वषग पूवग जीव ां में िुरू हआ शजससे नई स्पीिीज क उद्भव
हआ।
NOTE:-इसका शवस्तृत सािणी अन्तिम पेज पि बनाई हुयी है
उपाशजात एवं वंिानुगत लक्षण -
• वे लक्षण ज जीव क
े जीवनक ल क
े दौर न व त वरणीय प्रभ व ां
क
े क रण उत्पन्न ह त है तथ अगली पीढ़ी में वांि गत नहीां ह ते
हैं, उप शजगत लक्षण कहल ते हैं। उद हरण - ज्ञ न, अनुभव,
ि रीररक शवकल ांगत आशद
यह शसद्ध न्त जीन बैशिस्ट् डी लैम क
ग ने शदय ।.
• वे लक्षण, ज जीव ां क
े क जन्मज त य उनक
े जनक ां ि र प्र प्त
ह अथ गत् एक पीढ़ी से दू सरी पीढ़ी में स्थ न न्तररत ह , वांि गत
लक्षण कहल ते हैं।
समजात एवं समरुप अंगों में अिि
समजात अंग- वे अांग, ज सरांचन और "उत्पशि में सम न ह ,
लेशकन क यग में शभन्न ह , सगज त अांग कहल ते है।
(ii) उद हरण:- पक्षी और चमग दड़ क
े पांख उड़ने क
े शलए, घ ड़े
की अगली ट ांग दौड़ने क
े शलए, मनुष्य क
े ह थ वस्तु क पकड़ने
क
े शलए।
(iii)इनकी मूल सरांचन व उत्पशि में सम नत ह ती है।
समरूप अंग- ऐसे अांग, ज सरांचन तथ उत्पशि में शभन्न ह ,
लेशकन क यग करने में सम न ह , सगरुप य . समवृशि अांग
कहल ते है।
(ii) उद हरण:- कीट, पक्षी , चमग दड़ क
े पांख उड़ने क क यग
करते हैं, परन्तु ये मूल सरांचन व उत्पशि से शभन्न ह ते हैं।
(iii) इनकी मूल सरचन व उत्पशि में शभन्नत ह ती है।
5. BASANT SHARMA (Msc. Physics) SCIENCE NOTES CLASS 10 TH
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जाती उदभव-
शवशिष्ट स्पीिीज़ की सशमशष्ट क
े स म न्य लक्षण ां (स्वरूप) में छ टे
परन्तु महत्वपूणग पररवतगन ां क
े पररण मस्वरूप नई स्पीिीज़ य
ज शत क उदभव ह त है।
ये पररवतगन सशमशष्ट की उपसशमशष्ट क
े क रण आते हैं। उपसशमशष्ट
शकसी सशमशष्ट की शवि ल जनसख्य क
े आस प स स्स्थत ह तीां है।
त जब एक स्थ नीय उपसशमशष्ट क जनन क रणवि शकसी
अप्रव सी सशमशष्ट से ह त है त वह ुँ जीन प्रव ह ह त हैं तथ वह ुँ
स्थ शनय सशमशष्ट में शवशभन्नत आ ज ती है।
एक बहत लांबे समय ांतर ल क
े अांतगगत ज ती क उदभव ह त है।
इस समय ांतर ल में अनुव ांशिक शवचलन, प्र क
ृ शतक चुन व
भौग शलक पृथक्करण जैसे क रक महत्वपूणग भूशमक शनभ ते हैं।
जीन प्रव ह -उन द समशष्टय ां क
े बीच ह त है ज पूरी तरह से
अलग नहीां ह प ती है शक
ां तु आांशिक रूप से अलग-अलग है।
भौग शलक पृथक्करण -जनसांख्य में नदी, पह ड़ आशद क
े
क रण आत है। इससे द उपसमशष्ट क
े मध्य अांतजगनन नहीां
ह प त ।
आनुवांशिक शवचलन- शकसी एक समशष्ट क उिर िर पीशढ़य ां
में जीांस की ब रांब रत से अच नक पररवतगन क उत्पन ह न ।
आनुवांशिक शवचलन क क रण 1. यशद DNA में पररवतगन
पय गप्त है। 2. गुणसूि ां की सांख्य में पररवतगन
प्र क
ृ शतक चुन व- वह प्रक्रम शजसमें प्रक
ृ शत उन जीव ां क
चुन व कर बढ़ व देती है ज बेहतर अनुक
ू लन करते हैं।
जीवाश्म :-
पत्थर ां अथव पह ड़ पर प्र चीन क ल क
े जन्तु एवां पौध ां क
े
अविेष प ए ज ते है, इन अविेष ां क जीव श्म कहते है। य जीव
क
े परररशक्षत अविेष जीव श्म कहल ते हैं।जीव श्म बनने की
प्रशक्रय क जीव श्मीकरण कहते है।
जीव श्म बनने की प्रशक्रय :- जीव श्मीकरण की प्रशक्रय कर ड़
स ल ां में पूरी ह ती है। जब क ई जीव मृत्यु क
े पि त हज र ां
कर ड़ स ल ां तक रेत की परत ां से दब ज त है एवां गहर ई में
दबने क
े क रण उनक सूक्ष्मजीव ां ि र अपघटन नहीां ह प त
तब अशधक द ब क
े क रण वह ुँ चट्ट न क शनम गण ह ज त है।
इसक
े क िी समय ब द जब ये चट्ट न टू टती य िट ज ती है त
चट्ट न ां की परत ां में उस कर ड़ स ल से दबे जीव ां क
े अविेष
प्र प्त ह ते है, शजसे जीव श्म कहते है। इस प्रक र व त वरण में
जीव श्म क शनम गण ह त है।
उद हरण-जैसे क ई मृत कीट गमग शमट्टी में सूख कर कि र ह
ज ए।
आम न इट - जीव श्म- अकिेरूकी
टर इल ब इट - जीव श्म- अकिेरूकी
न इशटय - जीव श्म मछली
र ज सौरस - जीव श्म ड इन सॉर कप ल
खुद ई करने पर पृथ्वी की सतह क
े शनकट व ले जीव श्म
गहरे स्तर पर प ए गए जीव श्म ां की अपेक्ष अशधक नए ह ते
हैं।
फॉशसल डेशटंग -शजसमें जीव श्म में प ए ज ने व ले शकसी
एक तत्व क
े शवशभन्न समस्थ शनक ां क अनुप त क
े आध र पर
जीव श्म क समय शनध गरण शकय ज त है।
शवकास एवं वगीकिण
शवक स एवां वगीकरण द न ां आपस में जुड़े हैं।
1. जीव ां क वगीकरण उनक
े शवक स क
े सांबांध ां क प्रशतशबांब है।
2. द स्पीिीज क
े मध्य शजतने अशधक अशभलक्षण सम न ह ांगे
उनक सांबांध भी उतन ही शनकट क ह ग ।
3. शजतनी अशधक सम नत एुँ उनमें ह ांगी उनक उद्भव भी शनकट
अतीत में सम न पूवगज ां से हआ ह ग ।
4. जीव ां क
े मध्य सम नत एुँ हमें उन जीव ां क एक समूह में रखने
और उनक
े अध्ययन क अवसर प्रद न करती हैं।
शवकास क
े चिण
शवक स क्रशमक रूप से अनेक पीशढ़य ां में हआ।
1. य ग्यत क
े ल भ (आुँख क शवक स)- जशटल अांग ां क शवक स
डी.एन.ए. में म ि एक पररवतगन ि र सांभव नहीां है, ये क्रशमक रूप
से अनेक पीशढ़य ां में ह त है।
प्लॅनेररय में अशत सरल आुँख ह ती है।
कीट ां में जशटल आुँख ह ती है।
म नव में शिनेिी आुँख ह ती है।
6. BASANT SHARMA (Msc. Physics) SCIENCE NOTES CLASS 10 TH
5
2. गुणत क
े ल भ -(पांख ां क शवक स)
पांख (पर) िां डे मौसम में ऊष्म र धन क
े शलए शवकशसत हए थे,
क ल ांतर में उड़ने क
े शलए भी उपय गी ह गए।
उद हरण-ड इन सॉर क
े पांख थे, पर पांख ां से उड़ने में समथग नहीां
थे। पशक्षय ां ने पर ां क उड़ने क
े शलए अपन य ।
क
ृ शिम चयन
बहत अशधक शभन्न शदखने व ली सांरचन एां एक सम न पररकल्प में
शवकशसत ह सकती है। द हज र वषग पूवग मनुष्य जांगली ग भी क
एक ख द्य पौधे क
े रूप में उग त थ तथ उसने चयन ि र इससे
शवशभन्न सस्िय ुँ शवकशसत की। इसे क
ृ शिम चयन कहते हैं।
मानव शवकास-- म नव शवक स क
े अध्ययन क
े मुख्य
स धन- उत्खनन
समय शनध गरण
डी.एन.ए. अनुक्रम क शनध गरण
जीव श्म अध्ययन
म नव (प्र चीनतम) सदस्य अफ्रीक मूल में ख ज गय शिर ये
म नव समूह शवशभन्न स्थ न ां शनम्नशलस्खत रूप से आगे बढे
शवशभन्न समूह कभी आगे व पीछे गए
समूह कई ब र परस्पर शवलग ह गए
कभी अलग ह कर शवशभन्न शदि ओां में आगे बढ़े
क
ु छ व शपस आकर परस्पर शमल गए
न्तथथशत--1 न्तथथशत--2 न्तथथशत--2
शनष्कषा - हरे भृांग ां क प्र क
ृ शतक चयन क
ि यद हआ क् ांशक वे हरी झ शड़य ां में दृश्य
नहीां थे। यह प्र क
ृ शतक चयन कौओां ि र शकय
गय । प्र क
ृ शतक चयन भृांग समशष्ट में अनुक
ू ल
दि ग रह है शजससे समशष्ट पय गवरण में और
अच्छी तरह से रह सक
े ।
शनष्कषा -रांग पररवतगन से अस्स्तत्व क
े शलए क ई
ल भ नहीां शमल । यह सांय ग ही थ शक दुघगटन
क
े क रण एक रांग की भृांग समशष्ट बच गई
शजससे समशष्ट क स्वरूप बदल गय । अतः छ टी
समशष्ट में दुघगटन एुँ शकसी जीन की आवृशि क
प्रभ शवत कर सकती हैं जबशक उनक
उिरजीशवत हेतु क ई ल भ न ह ।
शनष्कषा- भृांग ां की जनसांख्य में क ई
आनुवांशिक पररवतगन नहीां आत ।
जनसांख्य में प्रभ व क
ु छ समय क
े शलए
पय गवरण क
े क रण आय थ ।
जैव शवकास