existentialism ,philosophy , jyan paul satra,Martin Hedeger, neetze,freedom of choice,absurdness of life , commitment to society, Despair,Buddhist philosophy,essence, logic, science
A verse from Atharvaveda is interpreted to show its relevance to the concept of public health in the Vedic scriptures - conference presentation, Bangalore 2013
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A verse from Atharvaveda is interpreted to show its relevance to the concept of public health in the Vedic scriptures - conference presentation, Bangalore 2013
The Presentation is an outcome of the Research done on Akhand Jyoti's. It covers may truths and current facts related to Yug Parivartan, the declarations made by Gurudev, its timeline and the parallel work being done by other organizations and scientists. With proper references.
चमचों की विभिन्न किस्में
बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवनकाल में उनको केवल कांग्रेस और अनुसूचित जातियों के चमचों से ही निपटना पड़ा था। बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद अनेक नई-नई किस्मों के चमचों के उभर आने से स्थिति और खराब हो गई। उनके जाने के बाद, कांग्रेस के अलावा अन्य दलों को भी, केवल अनुसूचित जातियों से नहीं बल्कि अन्य समुदायों के बीच से भी, अपने चमचे बनाने की जरूरत महसूस हुई। इस तरह, भारी पैमाने पर चमचों की विभिन्न किस्में उभर कर सामने आईं।
(क) विभिन्न जातियों और समुदायों के चमचे
भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 85% पीड़ित और शोषितलोग हैं, और उनका कोई नेता नहीं है। वास्तव में ऊंची जातियों के हिंदू उनमें नेतृत्वहीनता की स्थिति पैदा करने में सफल हुए हैं। यह स्थिति इन जातियों और समुदायों में चमचे बनाने की दृष्टि से अत्यंत सहायक है। विभिन्न जातियों और समुदायों के अनुसार चमचों की निम्नलिखित श्रेणियाँ गिनाई जा सकती हैं।
1.अनुसूचित जातियां-अनिच्छुक चमचे
बीसवीं शताब्दी के दौरान अनुसूचित जातियों का समूचा संघर्ष यह इंगित करता है कि वे उज्जवल युग में प्रवेश का प्रयास कर रहे थे किंतु गांधी जी और कांग्रेस ने उन्हें चमचा युग में धकेल दिया । वे उस दबाव में अभी भी कराह रहे हैं, वे वर्तमान स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाए हैं और उस से निकल ही नहीं पा रहे हैं इसलिए उन्हें अनिच्छुक चमचे कहा जा सकता है।
2.अनुसूचित जनजातियां - नव दीक्षित चमचे
अनुसूचित जनजातियां भारत के संवैधानिक और आधुनिक विकास के दौरान संघर्ष के लिए नहीं जानी जातीं। 1940 के दशक में उन्हे भी अनुसूचित जातियों के साथ मान्यता और अधिकार मिलने लगे। भारत के संविधान के अनुसार 26 जनवरी 1950 के बाद उन्हें अनुसूचित जातियों के समान ही मान्यता और अधिकार मिले। यह सब उन्हें अनुसूचित जातियों के संघर्ष के परिणाम स्वरूप मिला, जिसके चलते राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मत उत्पीड़ित और शोषित भारतीयों के पक्ष में हो गया था।
आज तक उन्हें भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कभी प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। फिर भी उन्हें जो कुछ मिल पाता है, वे उसी से संतुष्ट दिखाई पड़ते हैं, इससे भी खराब बात यह है कि वह अभी भी किसी मुगालते में हैं कि उनका उत्पीड़क और शोषक ही उनका हितैषी है। इस तरह उन्हें नवदीक्षित चमचे कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें सीधे - सीधे चमचा युग में दीक्षित किया गया है।
3.अन्य पिछड़ी जातियां - महत्वाकांक्षी चमचे
लंबे समय तक चले संघर्ष के बाद अनुसूचित जातियों के साथ अनुसूचित जनजातियों को मान्यता और अधिकार मिले। इसके परिणाम स्वरूप उन लोगों ने अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं से भी बहुत आगे निकल कर अपनी संभावनाओं को बेहतर कर लिया है। यह बेहतरी शिक्षा, सरकारी नौकरियों और राजनीति के क्षेत्रों में सबसे अधिक दिखाई देती है।
अनुसूचित जातियों और जनजातियों में इस तरह की बेहतरी ने अन्य पिछड़ी जातियों की महत्वाकांक्षाओं को जगा दिया है। अभी तक तो वे इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सफल नहीं हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने हर दरवाजे पर दस्तक दी उनके लिए कोई दरवाजा नहीं खुला। अभी जून 1982 में हरियाणा में हुए चुनाव में हमें उन्हें निकट से देखने का मौका मिला।
अन्य पिछड़ी जातियों के तथाकथित छोटे नेता टिकट के लिए हर एक दरवाजा रहे थे अंत में हमने देखा कि वे हरियाणा की 90 सीटों में से एक टिकट कांग्रेस(आई) से और एक टिकट लोक दल से ले पाये। आज हरियाणा विधानसभा में अन्य पिछड़ी जाति का केवल एक विधायक है।
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RESEARCH METHODOLOGY, BIBLIOGRAPHY STYLES,ONLINE BIBLIOGRAPHY MANAGER,PURPOSE OF MAKING A BIBLIOGRAPHY, ACADEMIC INTEGRITY,PLAGIARISM,CHICAGO STYLE,APA STYLE , MLA STYLE,AUTHENTICITY OF RESEARCH WORK,HONOUR TO RESEARCHERS AND WRITERS
SOCIAL JUSTICE, AFFIRMATIVE ACTION, RESERVATION,OBC,SC,ST, MANDAL COMMISSION, POONA PACT,73 CONSTITUTIONAL AMENDMENT, KAKA KALELKAR COMMISSION,GOVT. JOB,EDUCATIONAL INSTITUTION,PARLIAMENT, STATE LEGISLATURE,LOGIC RELATED TO RESERVATION POLICY, MINISTRY OF SOCIAL JUSTICE, SUPREME COURT ,CASTE SYSTEM, INDIAN CONSTITUTION
1. ह ना आरंट के राजनी तक वचार
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यह साम ी वशेष प से श ण और सीखने को बढ़ाने के शै णक उ दे य के लए है। आ थक / वा णि यक अथवा
कसी अ य उ दे य के लए इसका उपयोग पूणत: तबंध है। साम ी के उपयोगकता इसे कसी और के साथ वत रत,
सा रत या साझा नह ं करगे और इसका उपयोग यि तगत ान क उ न त के लए ह करगे। इस ई - कं टट म जो
जानकार क गई है वह ामा णक है और मेरे ान के अनुसार सव म है।
वारा - डॉ. ममता उपा याय
एसो . ो . , राजनी त व ान
कु . मायावती राजक य म हला नातको र महा व यालय
बदलपुर ,गौतमबु ध नगर , उ र देश
2. उ दे य- तुत ई - कं टट से न नां कत उ दे य क ाि त संभा वत है-
● आधु नक राजनी तक स धांत के दौर म मू य आधा रत परंपरावाद राजनी तक
दशन क जानकार
● परंपरावाद वचारक के प म ह ना आरंट के वचार क जानकार
● सवा धकारवाद यव था के संबंध म एक नई ि ट का ान
● समसाम यक राजनी तक यव था म मौजूद बुराइय एवं सम याओं को यान म
रखते हुए समाधाना मक चंतन क वृ को ो सा हत करना
● समसाम यक सम याओं का समाधान ाचीन दशन म ढूंढने क वृ को
ो सा हत करना
ह ना आरंट बीसवीं शता द क यहूद अमर क राजनी तक वचारक है, िजनके चंतन का क
बंदु मानवीय भावनाएं ह।आरंट का समकाल न राजनी तक वचारको म इस ि ट से व श ट
थान है क उनक कसी एक वचारधारा या मत से संब धता नह ं रह । उनका चंतन एक
मौ लक चंतन है। एक शरणाथ के प म अमे रका म नवास करते हुए सावज नक जीवन और
मानवीय अि त व के वषय म उनके अनुभव उनके राजनी तक वचार का आधार है। राजनी त
व ान के े म यु धोतर काल म हुई यवहारवाद ां त के समय डे वड ई टन और अ े ड
कॉबन जैसे वचारको ने परंपरावाद राजनी तक स धांत के ास क बात कह थी और यह
मत य त कया था क काल मा स के बाद ऐसा कोई राजनी तक दाश नक नह ं हुआ, िजसने
राजनी तक आदश को यान म रखते हुए वचार कया हो। कं तु ह ना आरंट जैसी वचारक
दाश नक प र े य म राजनी तक वचार का व लेषण करती हुई पारंप रक, मू यपरक
राजनी तक दशन के पुन थान क तीक है, जैसा क ईसाह ब लन एवं लयो ॉस जैसे
वचारको ने भी माना है। बीसवीं शता द म अनेक राजनी तक वचारको वारा आधु नक
वै ा नक औ यो गक युग म मनु य क अलगाव यु त, यथा यु त जीवन दशा का च ण
कया गया है। जैसे- अि त ववाद वचारक ए रक ॉम, डे वड र समैन , ए रकसन, सी . राइट
म स , े थस आ द के चंतन म मनु य क मनोदशा का गहन ववेचन कया गया है। एक
सा ह यकार के प म आरंट ने यि त के मान सक या वैयि तक प को मुखता दान क
है। उनक ि ट म दशन का संबंध एकवाचक मनु य के प म है जब क उनक रचनाएं इस त य
पर आधा रत है क मनु य एक यि त के प म नह ं, बि क इस संसार के एक अंग के प म
3. नवास करते ह। [Men , not man ,live on the earth and inhabit the world]समूह के
साथ यि त के अि त व को यान म रखकर ह राजनी तक वचार का नमाण कया जाना
चा हए, ऐसी आरंट क मा यता है। साथ ह एक सवा धकार वाद राजनी तक यव था म
यि त का अि त व एवं वैयि तकता कै से संकट म पड़ जाती है,आरंट ने इसका भी व लेषण
कया है।
जीवन वृ -
आरंट मूलतः एक जमन म हला वचारक है िजनका ज म 14 अ टूबर 1906 को जमनी के
लडेन नगर म हुआ था । जमनी म नाजीवाद के उदय के कारण युवाव था मे उ ह जमनी
छोड़ना पड़ा और ांस होते हुए वे संयु त रा य अमे रका पहुंची । मारबग
व व व यालय म मा टन हाइडेगर के साथ उ ह ने दशनशा का अ ययन कया।
1940 म उ ह ने जमन क व एवं मा सवाद दाश नक हेन रक लूशर के साथ ववाह
कया। 1950 म अमे रका क नाग रकता ा त करने के बाद वहां के व व व यालय म
अपना एके ड मक क योगदान देती हुई 1959 म ंसटन व व व यालय म एक
पूणका लक ोफे सर के प म नयु त होने वाल पहल म हला बनी। 1975 म 69 वष क
उ म अमे रका के यूयॉक शहर म उनका नधन हुआ।
रचनाएं-
● द ओ रिजन ऑफ टोट लटे रए न म[1951]
● द यूमन कं डीशन [1958]
● बटवीन पा ट एंड यूचर [1961]
● ऑन रवॉ यूशन [1963]
4. ● आइकमैन इन जे सलम[1963]
● मेन इन डाक टाइ स [1968]
● ऑन वायलस [1970]
● ाइ सस ऑफ द रपि लक[1972]
● द लाइफ ऑफ द माइंड[ 1978 म का शत]
भाव - सो और न जे
अ ययन प ध त- दाश नक एवं आनुभ वक
ह ना आरंट के राजनी तक वचार
अरट के राजनी तक वचार क ववेचना न नां कत शीषक के अंतगत क जा सकती है-
1. सवा धकारवाद के वषय म वचार -
सवा धकार बाद आधु नक युग क एक अ धनायक तं ीय वचारधारा है,जो जमन
नाजीवाद एवं इटा लयन फासीवाद म प ट प से अ भ य त
हुई।’सवा धकारवाद’ श द का योग सबसे पहले मुसो लनी के वारा कया गया
था जब उसने घो षत कया क “ सब कु छ रा य के भीतर है, रा य के बाहर कु छ
भी नह ं, रा य के व ध कु छ भी नह ं है’’। इस वचारधारा के अंतगत सारे
अ धकार शासक के माने जाते ह और आम जनता के अ धकार क उपे ा क जाती
है। सवा धकार वाद नेताओं जैसे - हटलर मुसो लनी, ले नन और टा लन ने
सवा धकार वाद क अपने तर के से या या क थी । अ े ड कोबन ने
सवा धकार वाद को रा य क सावयवी वचारधारा से जोड़ा । ेजेिजंसक जैसे
वचारक ने सवा धकार वाद क न नां कत वशेषताएं बताई थी-
● वचार वाद या एक नि चत वचारधारा म व वास
● एक नेता वारा नद शत राजनी तक दल
● आतंकवाद पु लस नयं ण
5. ● जनसंचार मा यम पर एका धकार
● सश बल पर एका धकार
● शि तशाल क य स ा
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pid=Api&P=0&w=370&h=193
जमनी जैसे सवा धकारवाद रा य क मूल नाग रक होने के कारण ह ना आरंट ने अपने
य अनुभव के आधार पर सवा धकार वाद क दूरगामी एवं सू म या या तुत क
है। उ ह सवा धकारवाद का असवा धकारवाद या याता माना जाता है। अपने ंथ “
सवा धकारवाद क उ प ’’ मे सवा धकारवाद को उ ह ने आधु नक समाज क
अभूतपूव घटना मानते हुए इसके वैचा रक उ गम पर काश डाला तथा इसके
ऐ तहा सक, दाश नक एवं वैचा रक कारण का व लेषण कया।ह ना का यह मत है क
सवा धकार वाद आम नरंकु श शासन से भ न है । उनके अनुसार आधु नक
सवा धकारबाद म न नां कत ल ण प ट होते ह-
1. समाज के पारंप रक मू य के थान पर नई मू य यव था था पत क जाती है
िजसम नद ष यि त नंदा और घृणा का पा होता है तथा अपराधी खुले घूमते ह या
उनका स मान कया जाता है।
2. अपरा धय म सामू हक अपराध क भावना बढ़ने लगती है और उनम संगठन का भाव
आने लगता है। इस कार के सामू हक अपराध क वृ नाजी जमनी म दखाई देती है
जहां नजी और सावज नक जीवन के सारे प एक सव यापी भु व क या म वल न
हो जाते ह।
6. 3. था पत कानून और यव था के त लोग म व वास कम होने लगता है और उनम
असहायता एवं असुर ा क भावना बढ़ जाती है। यह असुर ा का भाव इतना
अ धक बढ़ जाता है क कभी-कभी सीधे साधे लोग को भी अपनी र ा के लए अपरा धय
पर नभर होना होता है ।
4. सवा धकार बात का क बंदु एक छ म वै ा नक व व ि ट या वचारधारा होती है
जो अपने वचार के अनु प समाज को नरंतर व वंस एवं पुन नमाण के लए ववश
करती है। जैसे - इसम इ तहास को पर पर वरोधी जा तय या वग के बीच संघष के प
म देखा जाता है । इस व वास के प रणाम व प यि तय क सहज बु ध और
यावहा रक ान न ट हो जाते ह।
5.अपनी वचारधारा क पुि ट और राजनी तक वरो धय का दमन करने के लए इसम
आतंक का भरपूर योग कया जाता है। यातना श वर के अनुभव इसके य माण है
जहां लोग को एक समान वेशभूषा पहनने और सर मुंडाने के लए ववश कया जाता
है.।आरंट क मा यता है क नाजी सै नक येक यि त क को मटाने के साथ ह उन
यि तय को ह मटा देना चाहते थे, िज ह उनके इन दु कम क जानकार थी।
6. सवा धकार बाद का ल य संपूण व व का क य नयं ण करके उसे वकृ त करना
होता है। आम जन के साथ- साथ समय-समय पर यह यव था अपने नेताओं को भी
फालतू समझती है और उ ह न ट करके या उनका पांतरण करके यह स ध करती है क
‘सब कु छ संभव है’।
7. सवा धकार बाद पारंप रक नै तक मू य के वषय म तट थ रहने के साथ-साथ एक
नई और वकृ त नै तकता था पत करता है िजसम अ हंसा के थान पर हंसा का समथन
कया जाता है।
8. पुराना नरंकु श तं प रवतन वरोधी था, आधु नक सवा धकार वाद यव थाएं अपने
अि त व क र ा के लए नरंतर प रवतन पर नभर करती है तथा ववेकपूण ल य के
अभाव म शि त का व तार चाहती ह।
7. 9. सवा धकारबाद स ाबाद से इस अथ म भ न है क स ावाद के अंतगत संपूण शि त
और उ रदा य व रा य के हाथ म क त होते ह, जब क सवा धकारबाद एक ऐसा
अ नय मत आंदोलन है िजसम सव च शि त गु त पु लस के हाथ म रहती है,
सरकार के हाथ म नह ं । ऐसी यव था म वैधता और रा य क भुस ा के स धांत
नरथक हो जाते ह।
10. ले नन वाद के अंतगत यह माना गया क स य को या के मा यम से ह समझा
जा सकता है।आरंट क मा यता है क सवा धकारवाद के अंतगत स य क खोज ह
थ गत हो जाती है। येक व तु को संभव मानने क वृ के कारण यह ऐसी नी त का
नमाण करता है िजसका उ दे य बल योग वारा येक ि थ त को उस नी त के
अनुकू ल बनाना होता है।
11. सवा धकार वाद के वकास म सा ा यवाद का बड़ा योगदान है। सा ा यवाद युग
म जब शासक ने अपने देश क सीमाओं को पार कया तो आ थक उ दे य क पू त हेतु
राजनी त म उनका ह त ेप आव यक हो गया। सा ा यवाद शासक ने शा सत क
सहम त के स धांत क अवहेलना क और वैचा रक वतं ता तथा सामुदा यक भावना के
अभाव म मानवता को अपार त पहुंचाई है।
प ट है क आरंट ने सवा धकारवाद के व लेषण म ऐ तहा सक
घटनाओं, स धांत तथा जनता क मनोदशाओं के म य अंतः याओं को अ भ य त
कया है।
8. मानवा धकार क धारणा का वरोध एवं नाग रक अ धकार क
धारणा का समथन-
9. ह ना आरंट सावभौ मक मानवा धकार क धारणा म व वास नह ं रखती, बि क रा य
के अंतगत ा त नाग रक अ धकार को मह वपूण मानती है। मानव अ धकार क
सव यापी घोषणा 10 दसंबर 1948 को संयु त रा संघ के वारा क गई थी िजसके
अंतगत 30 अनु छेद के मा यम से संपूण धरती पर नवास करने वाले यि तय को
रा यता और भूभाग क सीमाओं से परे जीवन के लए कु छ आधारभूत प रि थ तय को
मानवा धकार क मा यता द गई थी, िजनम जीवन का अ धकार, रोजगार का अ धकार,
वतं ता का अ धकार, अवकाश का अ धकार, व ाम का अ धकार, प रवार का अ धकार,
भाषा एवं सं कृ त क सुर ा का अ धकार, शरण ा त करने का अ धकार आ द मुख
है। इस संबंध म आरंट क मा यता यह है क मानवा धकार के पीछे बा यकार
कानूनी स ा का बल न होने के कारण इनका भावी ढंग से या वयन नह ं हो पाता।
उ लेखनीय है क संयु त रा संघ क घोषणा के पीछे कोई बा यकार स ा नह ं है। य द
कोई रा इन अ धकार का उ लंघन करता है, तो उसे ऐसा करने के लए बा य नह ं
कया जा सकता। अंतररा य नयम को मानना रा के लए सौज य का वषय है,
बा यता का नह ं य क येक रा एक सं भु रा है और उसक सं भुता क धारणा
यह नि चत करने का सव च अ धकार उसे ह दान करती है क वह कसी अंतररा य
सं ध या अ भसमय को माने या न माने। वयं ह ना ने जमनी से अमे रका जाकर एक
शरणाथ के प म अपना जीवन यतीत करते हुए यह अनुभव कया था क अ धकार को
याि वत करने के लए रा य क स ा आव यक है। वतमान म दु नया भर म
शरणा थय क ि थ त मानवा धकार के अि त व पर एक न च ह है। आज दु नया
के शरणाथ समूह म सी रया, अफगा न तान, सूडान, सोमा लया एवं यामार के
शरणाथ समूह मुख है। दु नया के लगभग 80 म लयन शरणाथ यि तय म आधे से
यादा इन देश के ह। अपने देश म हंसा, गृह- यु ध और ाकृ तक आपदा के कारण यह
समूह अपना देश छोड़कर दूसरे देश म शरण लेने के लए ववश हुए ह। ह ना यह मानती
है क रा य अपनी सं भुता क दुहाई देते हुए शरणा थय के साथ दोयम दज का यवहार
करते ह, उ ह घूमने फरने तक क
10. आजाद नह ं होती। यहां तक क अमे रका जैसे लोकतां क देश म भी यहूद संगठन के
व ध कायवाह क जाती है, अतः मानवा धकार कोरे आदश बन कर रह जाते ह।
यवहार म उनक ाि त म अनेक बाधाएं ह। ह ना के अनुसार मानवा धकार के थान
पर नाग रक अ धकार क धारणा को अपनाया जाना चा हए, य क रा य नाग रक
अ धकार के त यादा संवेदनशील होते ह और इनका उ लंघन होने पर नाग रक
यायालय क शरण ले सकते ह।
वतं ता क धारणा-
वतं ता क पारंप रक उदारवाद धारणा से पृथक आरंट ने दाश नक ि ट से वतं ता
का व लेषण कया है। अपनी पु तक ‘ ऑन यूमन कं डीशन’म वैचा रक वतं ता क
नई या या करते हुए आरंट ने यह तपा दत कया है क मनु य क ग त व धय के
तीन तर होते ह- म, काय और कायवाह । इन ग त व धय म सबसे नचले तर क
ग त व ध म है िजसके वारा मनु य अपने जीवन क भौ तक आव यकताओं को पूरा
करने के लए आव यक सु वधाओं को जुटाने म संल न रहता है। दूसर ग त व ध “काय”
क है िजसके वारा एक श पी या कलाकार थाई मह व क व तुएं बनाकर स यता के
नमाण म योगदान देते ह। सबसे उ च तर क मानवीय ग त व ध कायवाह या या है
जो राजनी त का वषय है िजसम सभी नाग रक अपनी- अपनी तभा का प रचय देते हुए
व व के वषय म अपने भ न- भ न ि टकोण को य त करते ह। यह जीवन का
सावज नक े है िजसे आरंट ने ‘ वचार क वतं ता का े ’ कहा है। उ लेखनीय है
क यूनानी दाश नक के समान ह ना ने भी राजनी त के े को सव च मह व दया है।
ाचीन यूनान म नाग रकता का दजा ह उ ह ा त होता था जो सावज नक जीवन म
स य भागीदार नभाते थे तथा राजनी त बु धजी वय के वेश का े माना जाता
था। मानव जीवन क इन तीन ग त व धय क पृथक- पृथक या या करते हुए आरंट
ने न नां कत वचार य त कए ह-
11. 1. म- आरंट के अनुसार म का ता पय मनु य क ऐसी ग त व ध से है िजसम उसक
चेतना का तर पशु समान होता है। अपनी दै नक और आधारभूत आव यकताओं क
पू त के लए यि त म करते ह । पशुओं के वारा भी अपनी शार रक आव यकताओं
क पू त के लए ह काय कया जाता है, इस लए आरंट ने म आधा रत ग त व ध को
पशु तु य माना है जो उस मा सवाद वचार के वपर त है िजसम शार रक म को
म हमामं डत करते हुए मजी वय को शोषण मु त करने के वचार य त कए गए ह।
2. काय- काय का ता पय ऐसी ग त व ध से है िजसके वारा मनु य अपने यास के
मा यम से जीवन क अ य ज रत को पूरा करता है। इस ग त व ध के दौरान मनु य म
आ म - चेतना आ जाती है और वह अपने आप को व तु से अलग करके देख पाता है।
आरंट मानती है क मनु य िजस व व म रह रहा है वह व तुओं का व व है, न क
मनु य का। अपने इस वचार के मा यम से ह ना उस उपभो तावाद सं कृ त पर हार
करती ह, िजसम मनु य एक के बाद दूसरे उपभोग क व तुओं को ा त करने के लए
य नशील रहता है और इस कारण वह मनु यता क सव च ि थ त म नह ं पहुंच पाता
है। मनु य के आपसी संबंध बाजार के संबंध बन कर रह जाते ह, वे मानवीय संबंध नह ं
बन पाते।
3. कायवाह या या- आरंट उपयु त दोन ग त व धय को नजी े के अंतगत
रखती है और तीसर ग त व ध अथात कायवाह को सावज नक े का वषय मानती है।
यह ग त व ध न तो चेतना वह नता क ि थ त होती है और न ह चेतना यु त बाजार क
होती है। यह पूण चेतन मानवीय ग त व ध होती है और इस ग त व ध के मा यम से
मनु य मनु य व को ा त करता है। उनके अनुसार मानव वभाव क सबसे बड़ी
वशेषता जो उसे अ य ा णय से अलग करती है, यह है क मनु य मे अमर व क
लालसा होती है। यह लालसा के वल कायवाह क ग त व ध वारा ह पूर हो सकती है।
ह ना आधु नक समाज म यि त क वतं ता पर मंडराते संकट क ओर यान
आक षत करती ह और यह मानती है क इन समाज म यि त के नजी हत क र ा के
12. लए इतने शि तशाल रा यापी संगठन बना दए गए ह क सावज नक सम याओं क
ओर से यान हट गया है। आ थक, वै ा नक ग त के कारण चंतन और मनन से जुड़े
हुए दशन को भार हा न उठानी पड़ी है । मनु य क कायवाह क मता कुं ठत हो गई है
और वह अब भी के वल म और कृ य के तर पर जी वत ह। अपने अि त व क र ा के
लए मनु य इतने य त ह क मानवीय संबंध पर आधा रत थाई मानव जगत के
नमाण के ल य को भूल से गए ह। उपभो तावाद समाज म सं कृ त के वल मनोरंजन
और उ योग बन कर रह गई है। वचार क वतं ता लु त हो चुक है। इस वैचा रक
वतं ता को पुनज वत करने के लए सावज नक और नजी े को एक दूसरे से अलग
करना होगा।
● आधु नकता समाज क आलोचना -
सो के चंतन से भा वत होते हुए आरंट ने आधु नक समाज क आलोचना क
है। अपनी पु तक ‘द यूमन कं डीशन’ एवं ‘ बटवीन पा ट एंड यूचर’ म संक लत
लेख के मा यम से आरंट ने आधु नकता क नकारा मक त वीर तुत क है।
उनक चंता इस बात को लेकर है क कै से आधु नकता ने परंपरा, धम और स ा का
रण कया है। उनके अनुसार आधु नकता के कारण जीवन के व भ न े म
मह वपूण संसाधन तो उपल ध हुए ह, कं तु अब भी आधु नकता को जीवन के
अथ, यि त क पहचान और जीवन मू य से संबं धत न का उ र देना शेष है।
आरंट ने न नां कत आधार पर आधु नकता क आलोचना क है-
1. आधु नकता ने सावज नक जीवन म वचार और काय क वतं ता को बा धत
कर दु नया का बहुत बड़ा नुकसान कया है। आधु नक समाज म लोग अपनी
आव यकताओं क पू त के लए, नजी आ थक हत को पूरा करने क या म
13. इतने यादा संल न है क सावज नक जीवन म एक राजनी तक ाणी के प म
अपनी भू मका को भूलते जा रहे ह। उ लेखनीय है क अर तू जैसे वचारक ने
मनु य को वभाव से एक राजनी तक ाणी कहा था, जो सावज नक जीवन के
त अपने दा य व को समझते हुए नी त- नमाण के काय म स य भू मका
नभाने क मता रखता है । आरंट के अनुसार आधु नकता ने मनु य क इस
भू मका को सी मत कया है और सावज नक े क अपे ा नजी े को
ो सा हत कया है। उनके श द म, zoon politikon[ राजनी तक ाणी ] पर
homo faber [साधन के मा यम से सबकु छ नयं त करने वाला ] ने वजय
ा त कर ल है ।
2. आधु नक युग ने नौकरशाह स ा और अ भजन वग को ज म दया है जो
जनमत क जोड़-तोड़ कर समाज म अपना वच व कायम रखते ह। आधु नक युग
म राजनी तक लोकतं अि त व मे आया है, कं तु इस लोकतं म लोक अथात
जनता का कोई मह व नह ं है। जनतं भी अ भजन क धारणा पर चलता है।
3. आधु नक युग म ह सवा धकारवाद सरकार जैसे- नाजीवाद एवं टा लन वाद
था पत हुई है, िजनका उ भव आतंक और हंसा के सं थानीकरण के प रणाम
व प हुआ है।
4.यह आधु नक युग ह है जहां इ तहास अपनी वाभा वक या के प म
वक सत नह ं होता, बि क घटनाओं और काय को एक खास सांचे म ढाला जाता
है। इ तहास उसी प म लखा -पढ़ा जाता है, िजस प म स ा के धारक उसे
तुत करना चाहते ह।
5. आरंट के अनुसार आधु नक युग क एक बुराई यह है क इसम बहुलता और
वतं ता के थान पर सम पता को ो सा हत कया जाता है और इसमे मानवीय
स भाव के थान पर अलगाव एवं एकाक पन देखने को मलता है।
आधु नकता ने भ न- भ न प म अलगाव को ज म दया है िजसे आरंट ‘
वैि वक अलगाव [ world alienation] एवं ‘पृ वी के अलगाव’ [earth
14. alienation] के प म प रभा षत कया । वैि वक अलगाव से ता पय उस ि थ त
से है िजसम मनु य जीवन के अनुभव एवं या मकता पर आधा रत आपसी
संबंध से वरत होकर अलग-थलग पड़ गया है। पृ वी का अलगाव वै ा नक और
तकनीक ग त का प रणाम है वै ा नक- तकनीक आ व कार के प रणाम
व प मनु य पृ वी से परे अ य ह पर जीवन तलाश रहा है, कृ त द जीवन
म व तार कर रहा है, योगशालाओं म जीवन क रचना करने का यास कर रहा
है और इस कार पृ वी और कृ त पर वजय ा त करने का यास कर रहा है।
इससे पृ वी पर रहने वाले जीव - जंतुओं और वन प तय क वाभा वकत
भा वत हुई है एवं तकनीक का वच व था पत हुआ है, िजसका दु प रणाम
पयावरणीय संकट के प म हमारे सामने है। प ट है क आरंट क आधु नकता
के वषय म धारणा गांधीवाद धारणाओं से सा यता रखती है। हालां क गांधी क
ि ट म व ान और तकनीक ज नत मशीनी वकास ने शार रक म और
मजीवी को दु भा वत कया है,जब क आर ट यह मानती ह क आधु नक युग
म मनु य क सार ग त व धयां म क त ह, िजनका उ दे य जीवन के लए
अ धका धक संसाधन एक त करना मा है, न क जीवन के मू य को समझते हुए
अपनी पहचान को ा त करना। यहां आरंट अि त ववा दय के कर ब भी दखाई
देती है,जो मनु य के वा त वक अि त व क तलाश मे ह ।
6. सामािजक पूंजी का व तार आधु नकता का एक अ य प रणाम है, िजसके
अंतगत कृ त का येक यि त एवं व तु उ पादन और उपभोग, ाि त और
व नमय का वषय बन गए ह। आरंट के अनुसार उ पादन और उपभोग आधा रत
समाज ने सावज नक जीवन पर वजय ा त कर ल है और सावज नक जीवन को
भी यि तगत जीवन क आव यकताओं के साथ जोड़कर नजी और सावज नक
जीवन क जो सीमा रेखा थी, उसे समा त कर दया है। उनके श द म,” हमारा
समाज मजी वय और नौकर पेशा लोग का समाज बनकर रह गया है जो कसी
काय या या मे अंत न हत मू य को कोई मह व दान नह ं करते।”
7. आरंट ने आधु नक युग म बढ़ते अलगाव के कई कारण का उ लेख कया है।
जैसे- अमे रका क खोज, पुनजागरण, मनु य क ान य को चुनौती देते हुए
15. टे ल कोप क खोज ,बाजार अथ यव था का व तार,आधु नक व ान का उदय
इसके साथ-साथ ऐसे दशन का उदय िजसके अंतगत मनु य को कृ त और
इ तहास का मुख अंग बताया गया और कृ त पर वा म व को उसके अ धकार
के प म व ले षत कया गया।
8. आरंट ने आधु नकता के 2 चरण क या या क है। थम, 16वीं से 18 वीं
शता द तक का काल, िजसम वैि वक अलगाव बढ़ा और दूसरा 18 वीं शता द से
बीसवीं शता द तक िजसम पृ वी के अलगाव को देखा जा सकता है।
प ट है क आरंट ने सो क तुलना म अ य धक व तार के साथ आधु नक नाग रक
समाज क आलोचना क है एवं नव वामपं थय के समान मनु य के अलगाव क चचा
क है, हालां क वे वयं को वामपंथी मानने से इनकार करती ह।
अलगाव को दूर करने हेतु सुझाव-
आरंट के चंतन क वशेषता यह है क वे न के वल आधु नकता क आलोचक है, बि क
आधु नक युग म जो क मयां दखाई देती ह, उ ह दूर करने का सुझाव भी देती ह। इस
संबंध म उ ह ने दो सुझाव दए ह िज ह वे दो रणनी तयां कहती ह िजनका योग
आधु नकता ज नत सम याओं का समाधान करने म कया जा सकता है। थम, ह ना
मानती ह क आधु नक समाज को अतीत के साथ अपने संबंध को फर से जोड़ना होगा
और इस संबंध म वह वखंडन यु त इ तहास लेखन एवं पाठन को उपयोगी मानती ह।
इ तहास म वखंडन और व थापन क घटनाएं अतीत क खोई हुई संभावनाओं को
तलाशने म मददगार ह गी और उनके सहयोग से वतमान क वकृ तय को भी दूर कया
जा सकता है, ऐसी आर ट क मा यता है। अपने इन वचार के लए ह ना वा टर
बजा मन क ऋणी है। दूसर रणनी त के प म वे ाचीन पि चमी दशन के पाठन पर
जोर देती ह िजसम मानव जीवन के वा त वक अथ को ढूंढने एवं मनु य को मु त बनाने
क राह दखाई गई है। नसंदेह ह ना अतीत क सभी खोई हुई परंपराओं को पुनज वत
करने क बात नह ं करती, बि क उ ह ं परंपराओं को मह व दए जाने क बात करती ह,
16. जो वतमान समाज के लए ासं गक एवं उपयोगी हो सकती है तथा भ व य के लए
ेरणा ोत बन सकती ह। ह ना इ ह ‘अतीत का कोष’ कहती ह।
आलोचना- बन ट न, हबीब एवं पा रत जैसे वचारक ने अ ना के आधु नकता संबंधी
वचार क आलोचना क है ।
● ह ना के वचार म सावज नक े मह वपूण है और वे इसे अथ यव था के
वकास के साथ जोड़ती ह जो मनु य क भौ तक आव यकताओं क पू त तक
सी मत है । ऐसा करके वह सावज नक े के दायरे को बहुत सी मत कर देती है।
● आलोचक क ि ट म ह ना आधु नक पूंजीवाद अथ यव था के व प को
समझने म असमथ रह है, िजसम पूंजी का अ यंत असमान वतरण होता है एवं
एक अलग तरह क शि त संरचना न मत होती है।आ थक शि त राजनी तक
स ा का ोत बन जाती है। पूंजीवाद अथ यव था म न हत शोषण के न को वे
नजरअंदाज करती तीत होती है।
● नजी और सावज नक, सामािजक और राजनी तक जीवन म पृथ करण पर जोर
देते हुए वे भूल जाती ह यह सभी े एक दूसरे से संबं ध है। आज बहुत सारे
नजी मु दे सावज नक मह व का वषय बन गए ह तथा याय और समान
अ धकार के लए संघष का व तार व भ न े तक हुआ है, उनका दायरा के वल
सावज नक े तक ह सी मत नह ं है।
● आधु नकता क आलोचना करते समय उ ह ने आधु नक युग क मु य
उपलि धय को भी नजरअंदाज कया है। च क सा व ान, अंत र व ान एवं
सूचना ौ यो गक के े म हुए तकनीक आ व कार का उ दे य कसी न कसी
प म मनु य के अि त व और उसके जीवन क गुणव ा को बढ़ाने का बहुमू य
यास है।
17. ● राजनी तक यव था एवं नाग रकता संबंधी वचार-
रा य और राजनी त का व प कै सा हो, यह सभी राजनी तक चंतक के वशेषकर
परंपरावाद राजनी तक दाश नक के चंतन का क य वषय रहा है। लेटो और
अर तू जैसे यूनानी दाश नक से लेकर डे वड ई टन और लसवेल जैसे
यवहारवाद चंतक ने अपने -अपने ि टकोण से वचार कया है। लेटो और
अर तू ने रा य को नै तक जीवन क उपलि ध का एक मह वपूण साधन बताया,
तो ई टन जैसे वचारको ने मू य के आ धका रक आवंटन के प म राजनी तक
यव था को प रभा षत कया। आधु नक युग म राजनी त को संघष समायोजन
क एक कला के प म भी देखा गया। इस संबंध म ह ना के वचार इन पारंप रक
वचार से भ न है।उनके अनुसार राजनी त न तो शुभ जीवन क ाि त का साधन
मा है और न ह यह संघष समायोजन क कला है, बि क यह तो स य
नाग रकता का े है। सं ेप म राजनी त और नाग रकता के वषय म आरंट के
वचार को न नां कत बंदुओं म प ट कया जा सकता है -
● आरंट शासन के थान पर राजनी त श द के योग को उपयु त मानती है,
य क शासन का अथ उनक ि ट म समुदाय का वभाजन है िजसम लोग शासक
और शा सत के बीच वभािजत हो जाते ह । शासक आदेश देता है जब क शा सत
उसक आ ा का पालन करता है। पारंप रक प म राजनी त को शासन के संदभ
म ह प रभा षत कया जाता है। आर ट इसे राजनी त नह ं, बि क राजनी त से
पलायन मानती ह और यह तपा दत करती ह क राजनी त कायवाह से जुड़ी
ग त व ध है अथात मनु य को मनु य व दान करने वाल याओं से इसका
संबंध है।
● राजनी त सावज नक े से संबं धत है, िजसके उ दे य क ाि त स य
नाग रकता से ह संभव है। यूनानी दाश नक के समान आरंट भी सभी समान
नाग रक क नणय नमाण और उसके या वयन क या म भागीदार
चाहती ह। स य नाग रकता से उनका ता पय सावज नक मु द पर सामू हक
18. वचार- वमश और सामू हक कायवाह से है। इस तरह क राजनी तक यव था म
येक यि त दूसरे से आशा करते ह क वे उसका सहयोग करगे।
● आरंट स य नाग रकता पर आधा रत राजनी त को त न ध शासन म संभव
नह ं मानती ह और इस लए त न ध मूलक लोकतं क आलोचना भी करती ह
य क ऐसी यव था म वचार अ भ यि त क वतं ता तो अव य मल जाती है,
कं तु इस वतं ता का अथपूण वकास नह ं हो पाता। लोकतं म यि त को ा त
वतं ता नकारा मक है, य क यह सफ यि त को सरकार के अ याचार से
बचाने के लए है। त न ध सं थाएं ,राजनी तक दल और दबाव समूह सभी के
हत क बात करते ह, जब क हत यि तगत े से संबं धत है। इससे स य क
धारणा का नमाण नह ं होता है य क स य का नमाण खुले वचार- वमश से
यु त एक ऐसे समाज म ह संभव है जहां मनु य सावज नक े म नवास करते
ह।
● राजनी तक यव था क ि ट से यूनानी नगर रा य को आरंट आदश मानती ह
य क वहां राजनी तक जीवन क धानता थी, आधु नक युग म यह वशेषता
लु त हो गई है। उनक ि ट म नगर रा य क सफलता का रह य यह था क वहां
स ा सहभा गता यु त लोकतां क सं थाओं म न हत थी और पा रवा रक एवं
आ थक मामल को नजी े का वषय समझते हुए उ ह
सावज नक े से अलग रखा जाता था। आधु नक समाज म राजनी तक और
पा रवा रक -आ थक े के बीच क सीमा- रेखा मट गई है और राजनी तक
कायवाह आ थक शासन मे बदल गई है।
● ह ना ने िजस कार के राजनी तक समाज का सपना देखा उसे वे ‘प रषद रा य’
कहती ह जो संघीय आधार पर ग ठत होता है और िजसका व प गणतं ा मक
होता है। आरंट इसे ‘ पीपु स यूटो पया’ भी कहती है। इस यव था म यि त
प रषद के अंतगत संग ठत होकर वाय ता पूवक कम करते ह। आधु नक रा य
म गैर सरकार संगठन का उदय प रषद य रा य क थापना क तरफ बढ़ाया
गया एक कदम माना जा सकता है।
19. ● प रषद य रा य का नमाण के वल ां तकार तर के से ह हो सकता है, ऐसा आरंट
मानती है। ां त से नवीनता और वतं ता का आगमन होता है। ां त आदश
यव था के लए नीव का काय करती है। उनके वचारानुसार हंसक ां त संसार
को प रव तत कर देती है, कं तु उसे साथक तभी माना जा सकता है जब उसके
प रणाम व प कसी देश के सभी नाग रक वतं राजनी तक ग त व धय म
भाग ले सक तथा राजनी त को नजी सुख का साधन न समझ कर सावज नक
क याण के साधन के प म देखने क वृ वक सत कर सके ।
ां त संबंधी वचार
ह ना आरंट ाचीन यूनानी और रोमन आदश एवं मू य पर आधा रत राजनी तक
समाज क थापना के लए ां त को आव यक मानती ह।अपनी पु तक’’ ‘ ऑन
रवॉ यूशन’ म उ ह ने ां त के वषय म वचार दए ह, कं तु ां त के वषय म भी
उनके वचार पारंप रक वचार से भ न है, िज ह न नां कत बंदुओं म व ले षत कया
जा सकता है-
● ां त क अवधारणा आधु नक व व म उ प न होती है और इससे नवीनता एवं
वतं ता का आगमन होता है। ां त सामािजक यव था म मौ लक प रवतन का
उ दे य रखती है। ां तकार परंपरा से यव था ज म लेती है और यि त “
प रषद रा य” क थापना क ओर अ सर होते ह। प रषद रा य आरंट क
क पना का आदश रा य है िजसम यि त व भ न प रषद म वयं को संग ठत
कर वतं ता एवं वाय ता पूवक काय करते ह ।
● ां त क साथकता इस बात म है क लोग अपने साथ रहने वाले समाज के
सद य के साथ वतं कायवाह म भाग लेते हुए ‘सावज नक स नता’ को
बढ़ावा दे सके । हालां क ऐसा बहुत कम दखाई देता है। आरंट क ां त क
प रभाषा के अनुसार दु नया म हुई व भ न ां तय का व लेषण करने पर यह
20. पता चलता है क बहुत कम ां तय म स नता को बढ़ावा देने क वशेषता
न हत थी ।
● आरंट ने अमे रक और ांसीसी ां तय क तुलना करते हुए अमे रक ां त को
अ धक सफल बताया है य क उसके प रणाम व प वहां एक वतं सं वधान
था पत कया गया और उदारवाद मू य के अनुसार रा का नमाण कया
गया, जब क ांसीसी ां त हंसा और अ याचार म बदल गई िजसका मुख
कारण यह था क ांस म यापक नधनता क सम या के कारण वतं कायवाह
को पृ ठभू म म डाल दया एवं ां तकार नधन वग के त दया क भावना से
े रत होकर आतंक क राह पर चल पड़े । हालां क अमे रक ां त को भी पूण
सफल नह ं कहा जा सकता य क वहां के अ धकांश नाग रक राजनी त के े से
बाहर ह रहे। ां तका रय के मन म जनसेवा क भावना लु त हो गई और उ ह ने
राजनी त को नजी सुख के साधन के प म देखना शु कर दया।
● ां त के साथ सामा यतः हंसा जुड़ी हुई होती है, कं तु हंसा के त ह ना का
ि टकोण प ट नह ं है। कभी तो वह उसे वीकार करती दखाई देती है, क तु
अंततः यह मानती है क य य प हंसा से संसार प रव तत होता है, परंतु वह
दु नया को अ धक हंसक बना कर छोड़ भी देती है।
न कष -
आरंट के उपयु त वचार के आधार पर न नां कत न कष तक पहुंचा जा सकता है-
● आरंट बीसवीं शता द क यहूद अमे रक राजनी तक वचारक है, िज ह कसी
व श ट वचारधारा से संबंध नह ं कया जा सकता।
● उनके इनकार करने के बावजूद उनके वचार पर सो, न जे, मा स आ द
वचारक का भाव प रल त होता है।
● उनके वचार नाजीवाद जमनी के होलोका ट क प रि थ तय अनुभव पर
आधा रत है।
21. ● सवा धकार वाद शासन के वषय म आरंट ने नतांत नए ि टकोण से वचार
कया है। उनके अनुसार आतंक और भय के साए म सवा धकारवाद शासन
एक पता पर आधा रत नई मू य यव था को थोपने का यास करता है।
● मानवा धकार क धारणा के थान पर ह ना नाग रक अ धकार क धारणा म
व वास य त करती है, य क मानवा धकार के पीछे कानूनी बल नह ं होता ।
● राजनी त और वतं ता जैसी धारणाओं पर भं न वचार रखते हुए उ ह ने
राजनी त को स य नाग रकता का े बताया, िजसम येक यि त मानवीय
मू य क दशा म काय करते हुए वा त वक वतं ता को ा त कर सकता है।
इस संदभ म उ ह ने म, काय और कायवाह क धारणा द िजसम कायवाह
सावज नक े म मनु य वारा क जाने वाल ग त व ध है, जब क म एवं काय
का संबंध नजी े से है।
● पूंजीवाद और त न ध मूलक लोकतं पर आधा रत आधु नक समाज क ह ना
आलोचक ह, य क वै ा नक और तकनीक ग त के आधार पर मनु य ने अपने
जीवन क सु वधाओं को तो बढ़ा लया है, क तु कृ त क वाभा वकता समा त
हो गई है और मानवीय मू य का रण हुआ है।
● व यमान समाज क बुराइय को वखंडनयु त इ तहास के अ ययन एवं ाचीन
यूनानी दशन अ ययन को ो सा हत कर दूर कया जा सकता है।
● स य नाग रकता पर आधा रत राजनी तक यव था क थापना ां त के
मा यम से संभव है। ां त का प रणाम सावज नक स नता एवं वतं ता म
वृ ध करने वाला होना चा हए, अ यथा वह नरथक है।
मू यांकन-
ह ना अरट बीसवीं शता द क एक भावशाल राजनी तक वचारक ह, कं तु आलोचक
ने उनके चंतन म न नां कत क मय को उजागर कया है। उनके आलोचक म शे डन
वॉल न , भखू पारेख, कर ल एवं ए . के . शरण मुख है।
● आरंट ने आधु नक युग म मानवीय दशा का जो च ण कया है य य प वह त य
के नकट है और कह ं कह ं वह मानवीय सम याओं के समाधान क तरफ अ सर
22. दखाई देती है कं तु कई थान पर वे अपने मौ लक वचार से दूर चल जाती है।
कर ल इसे त यावाद वृ कह कर आलोचना करते ह।
● आधु नक युग क क मय को उजागर करते समय ह ना ने पूंजीवाद समाज के
शोषणकार व प क उपे ा क है, िजसे शे डन वो लन ने अतकसंगत कहा है ।
● आरंट ाचीन यूनान और रोम के राज दशन और उनम न हत सं थाओं क
प धर है। वे जेफरसन क वाड णाल , कु ल न तं क वशेषता से यु त लघु प
समुदाय तथा खुल वचार- वमश क प ध त क समथक है ,जो उ ह पुरातनवाद
बना देता है।
● कु छ बंदुओं पर ह ना के वचार प ट नह ं है। जैसे-कौन सी ग त व धय से
उपयोगी सावज नक वचार- वमश संभव होगा और इस वचार- वमश को सुगम
एवं भावी बनाने के लए कौन सी राजनी तक सं थाएं उपयोगी ह गी, इस वषय
म उनके वचार प ट नह ं है।
● मानवीय ग त व धय को म, काय और कायवाह जैसे तीन भाग म बांटने के
वचार को भखू पारेख ने वे छाचार माना है । बहुलता यु त मानवीय जीवन म
यह बहुत संभव है यह तीन ग त व धयां आपस म संब ध हो जाए। मानवीय
ग त व धय के संबंध म ऐसे कसी सावभौ मक स धांत को लागू नह ं कया जा
सकता।
● आधु नक युग के जन पुंज [mass society] समाज क वकृ तय को दूर करने
के लए उनके वारा सुझाए गए उपाय भी बहुत यावहा रक नह ं है। के वल
वखं डत इ तहास, ाचीन दशन क परंपरा को समझ कर ह सम याओं का
समाधान नह ं कया जा सकता। इसके लए तो यापक व व ि ट क
आव यकता होती है।
इन आलोचनाओं के बावजूद आधु नक राजनी तक चंतन के इ तहास म ह ना का थान
कम नह ं होता। वे 20 वी शता द क एक ऐसी साहसी और नभ क राजनी तक वचारक
ह िज ह ने समसाम यक दु नया का गहनता और सू मता के साथ व लेषण कया। नव
उदारवाद परा आधु नक युग म बेतहाशा समृ ध क लालसा ने िजस कार सामािजक
23. संबंध को दु भा वत कया है एवं पयावरणीय संकट को ज म दया है,उसके ि टगत
ह ना के वचार सवथा ासं गक तीत होते ह।
REFERENCES AND SUGGESTED READINGS
● The world's Biggest Refugee Crises,mercy corps.org
● www.britannica.com
● Stanford Encyclopaedia Of Philosophy,plato.stanford.edu
● www.loc.gov
● www.jewishvirtuallibrary.org
● Hanna Arendt, Eichmann In Jerusalam,www.newyorker.com
● Hanna Arendt,The Origin Of Totalitarionism
न-
नबंधा मक न-
1. ां त एवं वतं ता के वषय म ह ना आरंट के वचार का मू यांकन क िजए।
2. सवा धकारवाद के वषय म ह ना आरंट के वचार क ववेचना क िजए।
नरंकु श शासन से यह कस अथ म भ न है।
3. ह ना आरंट ने आधु नक समाज क आलोचना कन आधार पर क है।
4. ह ना आरंट एक परंपरावाद राजनी तक वचारक ह,इस कथन के संदभ मे
आदश रा य यव था के वषय मे ह ना आरंट के वचार का मू यांकन क िजए।
व तु न ठ न-
1. ह ना आरंट मूलतः कस देश क वचारक ह।
[ अ ] अमे रका [ ब ] जमनी [ स ] इजराइल [ द ] टेन
2. आरंट क वचारधारा पर कस वचारक का भाव दखाई देता है।
24. [ अ ] सो [ ब ] मा स [स ] हेगेल [ द ] हॉ स
3. आरंट ने मानवीय वतं ता क या या कन वचार के संदभ म क है।
[ अ ] वचार,काय और भावना [ ब ] म, काय और या [ स ] काय , या और
वचार [ द ] या , म और भावना
4. ह ना ने कै से रा य क क पना क है ।
[ अ ] प रषद य [ ब ] नगर रा य [ स ] वैि वक रा य [ द ] रा रा य
5. ह ना ने ‘जून पॉ ल टक ’ का योग कसके लए कया है ।
[ अ ] उपभो तावाद मनु य के लए [ ब ] राजनी तक े मे स य सहभा गता
नभाने वाले मनु य के लए [ स ] अलगाव से त मनु य के लए
[ द ] उपरो त सभी के लए
6. ह ना क ि ट मे ां त कब साथक क जा सकती है ।
[ अ ] य द उसके प रणाम सावज नक स नता मे वृ ध करने वाले हो
[ ब ] सावज नक जीवन मे मनु य क स य सहभा गता मे वृ ध करते ह
[ स ] उपरो त दोन
[ द ] उपरो त मे से कोई नह ं
7. सवा धकारवाद संबंधी वचार ह ना क कस पु तक मे मलते ह ।
[ अ ] ओ रिजन ऑफ टोट लटे रया न म [ ब] द यूमन कॉ डीशन [ स ]
बट वनं पा ट एंड यूचर [ द ] मेन इन डाक टाइ स
8. ह ना ने आधु नक समाज मे मनु य के कस तरह के अलगाव क बात क है ।
[ अ ] पृ वी का अलगाव [ ब ] वैि वक अलगाव [ स ] उपरो त दोन तरह के
[ द ]सां कृ तक अलगाव
9. ह ना ने आ थक ग त व धय को कस े मे रखा है ।
[ अ ] सावज नक [ ब ] नजी [स ] दोन मे [ द ] कसी मे नह ं
10. ह ना ने मानवीय ग त व ध के कस भाग को उ कृ ट बताया है ।
[ अ ] म [ ब ] काय [ स ] या [ द ] उपरो त सभी को
उ र -1. ब 2. अ 3. ब 4. अ 5.ब 6. स 7. अ 8. स 9. ब 10. स