1. राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा
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राष्ट्रीय सुरक्षा एक राष्ट्र का सबसे बड़ा हित होता है , जिसकी पूर्ति प्रत्येक राष्ट्र
राज्य क
े द्वारा सशस्त्र सेनाओं का गठन कर एवं अस्त्रों का भंडार विकसित कर एवं
सुरक्षा संबंधी रणनीतियाँ विकसित कर पारंपरिक रूप में किया जाता रहा है।
राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि किसी देश क
े नागरिकों की
समग्र सुरक्षा क्यों और क
ै से की जाए। अंतरराष्ट्रीय राजनीति क
े संदर्भ में इस प्रश्न
का उत्तर यह है कि राज्यों की आक्रमणकारी प्रवृत्ति क
े कारण एक राज्य दूसरे राज्य
क
े आक्रमण से अपनी नागरिकों की सुरक्षा करता है। समसामयिक दौर में युद्ध क
े
अतिरिक्त कई गैर पारंपरिक चुनौतियां अंतर्राष्ट्रीय गैर राज्य अभि कर्ताओं क
े
द्वारा प्रस्तुत की जा रही हैं, जिन्हें दृष्टिगत रखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा की समस्या
और अधिक जटिल बन गई है। आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्करी ,परमाणु
2. ,जैविक और रासायनिक हथियारों की उपस्थिति आदि ने मानव मात्र की सुरक्षा क
े
प्रति गंभीर संकट उत्पन्न किया है और यही कारण है कि आज राष्ट्रीय सुरक्षा की
चिंता मानवीय सुरक्षा की चिंता में परिवर्तित हो गई है जिसक
े विषय में पारंपरिक
तरीकों से हटकर विचार किए जाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में सामूहिक सुरक्षा
का विचार अब पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो गया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा का इतिहास-
राष्ट्रीय सुरक्षा का इतिहास दो भिन्न प्रवृत्तियों क
े रूप में देखा जा सकता है-
● राष्ट्र राज्य की धारणा
● अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और कानूनों क
े माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राप्ति
राष्ट्रीय सुरक्षा का आधुनिक विचार 17वीं शताब्दी में यूरोप में 30 वर्षीय युद्ध और
इंग्लैंड में गृह युद्ध क
े दौरान उदित हुआ। 1648 की वेस्टफालिया संधि क
े माध्यम
से यह विचार सामने आया कि राष्ट्र राज्य को न क
े वल घरेलू मामलों में संप्रभुता
प्राप्त है, बल्कि बाहरी सुरक्षा की दृष्टि से भी वह संप्रभु है। इस संधि क
े माध्यम से
यह विचार भी स्थापित हुआ कि राष्ट्र की सुरक्षा बेहतर ढंग से एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय
व्यवस्था क
े माध्यम से कायम की जा सकती है, जिसमें सभी राष्ट्रों को समान
समझते हुए उनकी राष्ट्रीय संप्रभुता और आत्म सुरक्षा क
े अधिकार का सम्मान
किया जाए और नागरिक धर्म आदि क
े नाम पर एक दूसरे क
े जीवन का हरण न
करें। 18 वीं शताब्दी में दार्शनिक इमानुएल कांत ने पुनर्जागरण आंदोलन से प्रेरित
होकर एक धर्मनिरपेक्ष सुरक्षा का विचार सामने रखा। 1795 में लिखित अपने एक
लेख “ पर्पेटुअल पीस; अ फिलोसॉफिकल स्क
े च’ मे यह विचार व्यक्त किया कि
राष्ट्र राज्य की व्यवस्था क
े स्थान पर एक प्रबुद्ध वैश्विक व्यवस्था कायम की जानी
चाहिए। राष्ट्रीय राज्यों को दुनिया क
े विभिन्न राज्यों क
े सामान्य हितों क
े सम्मुख
अपने राष्ट्रीय हितों को गौण समझना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय कानूनों क
े अनुसार
3. कार्य करना चाहिए। इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय राजनीति में गैर राज्य संस्थाओं का
उद्भव हुआ जो आज उदार अंतरराष्ट्रीयता वाद क
े वैश्विक दृष्टिकोण में परिलक्षित
होता है और जिससे स्पष्ट तौर पर संयुक्त राष्ट्र संघ में देखा जा सकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा का आधुनिक विचार उक्त दोनों प्रवृत्तियों पर ही
आधारित है, जो राष्ट्र राज्य बनाम अंतरराष्ट्रीय कानून और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं
की भूमिका जैसे वाद विवाद क
े विषय में परिवर्तित हो गया है। अमेरिकी उदारवादी
विचारक जहां संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था क
े नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय शासन का
पक्ष लेते हैं जिन्हें नव कांट वादी कहते हैं तो दूसरी ओर यथार्थवादी विचारक थॉमस
हॉब्स और हयुगों ग्रोशीयस क
े विचारों से प्रभावित होकर राज्य की सर्वोच्चता का
पक्ष लेते हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाये
दो विश्वयुद्धों क
े बाद राष्ट्रों की सुरक्षा की आवश्यकता नए सिरे से अनुभव की
गई।
● सैनिक गुट बंदी-
इस व्यवस्था क
े तहत क
ु छ राष्ट्र आपस में मिलकर इस संधि समझौते क
े
माध्यम से एक दूसरे की सुरक्षा हेतु संकल्प बद्ध होते हैं और आवश्यकता
पड़ने पर एक दूसरे को अस्त्र-शस्त्र की आपूर्ति भी करते हैं। जैसे पूर्व में ग्रेट
ब्रिटेन, फ्रांसीसी गणतंत्र और रूसी साम्राज्य क
े मध्य प्रथम विश्व युद्ध से
पूर्व ‘त्रिगुट’ की स्थापना हुई थी और द्वितीय विश्वयुद्ध क
े बाद ‘ उत्तरी
अटलांटिक संधि संगठन’[NATO] , ‘ वारसा पैक्ट’ ,’ दक्षिण पूर्वी एशियाई
संधि संगठन’[SEATO], आदि।
4. ● सामूहिक सुरक्षा-
सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था क
े अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं क
े नेतृत्व में
किसी राष्ट्र पर आक्रमण की स्थिति में सभी राष्ट्र मिलकर सहायता करते
हैं। सामूहिक सुरक्षा का मूल मंत्र है-’’ एक सबक
े लिए और सब एक क
े लिए’’
। मरगेनथो क
े अनुसार ‘’ सामूहिक सुरक्षा की सक्रिय प्रणाली में सुरक्षा की
समस्या अब व्यक्तिगत राष्ट्र का समुत्थान नहीं,जिसका ख्याल शस्त्रों और
राष्ट्रीय बल क
े दूसरे अंशु से किया जाए। सुरक्षा का संबंध सब राष्ट्रों से है। वे
प्रत्येक की सुरक्षा का क्या ख्याल सामूहिक रूप में करेंगे, जैसे उनकी अपनी
ही सुरक्षा खतरे में हो। सामूहिक सुरक्षा का यह विचार संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे
संस्थान क
े नेतृत्व में क्रियाशील है।
● वैश्विक सुरक्षा-[ GLOBAL SECURITY]
वैश्विक सुरक्षा का विचार शीत युद्ध क
े बाद व्यापक रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ
द्वारा विकसित धारणाओं का पुंज है जिसक
े अंतर्गत यह माना जाता है कि
दुनिया की सुरक्षा प्रत्येक का कर्तव्य है। कोई भी राष्ट्र अक
े ला तब तक
सुरक्षित नहीं रह सकता जब तक सभी सुरक्षित ना हो। राष्ट्रों की सुरक्षा क
े
लिए पारस्परिक संघर्षों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों क
े माध्यम से सुलझाने ,
परस्पर सहायता, राष्ट्रों में आत्मविश्वास का विकास और वैश्विक शासन
आदि पर जोर दिया जाना चाहिए। सैनिक शक्ति का प्रयोग शांति स्थापना
और हिंसा से नागरिकों की सुरक्षा हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा तय मानकों
क
े अनुसार किया जाना चाहिए।
● अंतरराष्ट्रीय कानून-
सभ्य राष्ट्रों क
े द्वारा आपसी सहमति क
े आधार पर अंतरराष्ट्रीय जगत में
व्यवस्था कायम करने क
े लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों का निर्माण किया गया है
और राष्ट्रों से अपेक्षा की गई है कि वे अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की दृष्टि
से इन कानूनों का पालन करें। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय इन कानूनों का
5. उल्लंघन करने वाले राष्ट्रों और व्यक्तियों क
े विरुद्ध विवादों की सुनवाई
करता है, हालांकि उसक
े द्वारा दिए गए निर्णय बाध्यकारी नहीं है, किं तु
ज्यादातर राष्ट्रों क
े द्वाराअपने देश क
े संविधान में उन्हें स्थान देकर या
परंपरागत रूप में उनका पालन किया जाता है। ऐसा न करने पर राष्ट्रों को
अंतरराष्ट्रीय जनमत की नाराजगी झेलनी पड़ती है, जिसका दुष्परिणाम
उनकी आर्थिक नाक
े बंदी या बहिष्कार क
े रूप में देखा जा सकता है जो सब
मिलाकर राष्ट्रीय हित की दृष्टि से सकारात्मक नहीं होता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी असैनिक विचार/राष्ट्रीय सुरक्षा क
े विविध आयाम
6. बीसवीं शताब्दी तक राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न सैन्य सुरक्षा पर क
ें द्रित था, किं तु समय
क
े साथ राष्ट्रीय सुरक्षा का विचार व्यापक हुआ। 1947 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का गठन इस उद्देश्य से किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित
घरेलू ,विदेशी और सैन्य नीतियों का एकीकरण करने हेतु आवश्यक सुझाव
राष्ट्रपति को प्राप्त हो सक
े । आज किसी राष्ट्र क
े नागरिकों की सुरक्षा से तात्पर्य
क
े वल सैन्य दृष्टि से उनकी सुरक्षा करना नहीं है बल्किआर्थिक सुरक्षा, स्वास्थ्य
रक्षा, ऊर्जा संरक्षण, पर्यावरणीय संरक्षण, महिला सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा जैसे
विषय इसक
े व्यापक आयाम है। 2020 में कोविड-19 महामारी क
े संदर्भ में उदित
मानवीय जीवन की सुरक्षा इसका सबसे अद्यतन पक्ष है ।
● राजनीतिक एवं प्रादेशिक सुरक्षा- राजनीतिक सुरक्षा से तात्पर्य किसी राज्य
की संप्रभुता और राजनीतिक व्यवस्था तथा समाज की सुरक्षा से है। यदि
किसी राज्य को किसी भी प्रकार क
े अवैध दबाव या धमकी का सामना करना
पड़ता है, तो इसका मतलब है कि उसक
े राजनीतिक सुरक्षा खतरे में है और
इस खतरे को दूर किया जाना उसक
े अस्तित्व क
े लिए आवश्यक हो जाता है।
राष्ट्र की राजनीतिक सुरक्षा को खतरा किसी शक्तिशाली राष्ट्र द्वारा शक्ति
संवर्धन और शक्ति प्रदर्शन क
े प्रयास क
े कारण हो सकता हैं या किसी राज्य
क
े विद्रोही समूह को किसी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कर्ता क
े द्वारा उकसाये जाने
से हो सकता है या फिर सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का विरोध करते
हुए सरकार का तख्तापलट करने क
े रूप में हो सकती है।
● आर्थिक सुरक्षा-
आर्थिक सुरक्षा का संबंध क
े वल एक राष्ट्र की मजबूत अर्थव्यवस्था से ही नहीं
है बल्कि इस बात से भी है कि उस देश की सरकार और लोगों आर्थिक
स्वतंत्रता और आर्थिक निर्णय किस सीमा तक सुरक्षित है, एक राष्ट्र की
सरकार कहां तक अंतरराष्ट्रीय दबावों से अपने आर्थिक संसाधनों की सुरक्षा
कर पाती है अर्थात उसकी आर्थिक नीतियां कितनी स्वतंत्र हैं। आर्थिक सुरक्षा
7. क
े अंतर्गत अर्थव्यवस्था क
े संबंध में सरकार द्वारा बनाई गई नीतियां और
रणनीतियां तो सम्मिलित है ही, यह उन अंतरराष्ट्रीय व्यापार संधियों एवं
नीतियों से भी संबंधित है जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक जैसे
वैश्विक संस्थानों क
े द्वारा तैयार की जाती है। समसामयिक वैश्वीकरण और
उदारीकरण की नीतियों क
े निर्माण क
े पीछे दुनिया से गरीबी दूर कर मानवीय
सुरक्षा मुहैया कराने का तर्क दिया जाता है, हालांकि कई गरीब और पिछड़े हुए
देश इसे आर्थिक उपनिवेशवाद की संज्ञा देते हैं, जिसका उद्देश्य वैश्विक
आर्थिक नीतियों क
े माध्यम से दुनिया क
े शक्तिशाली राष्ट्र को लाभ पहुंचाना
है।
● ऊर्जा एवं प्राकृ तिक संसाधनों संबंधी सुरक्षा-
प्राकृ तिक संसाधनों की सुरक्षा का तात्पर्य है कि एक राष्ट्र क
े निवासियों को
अपने भू क्षेत्र में मौजूद प्राकृ तिक संसाधनों और ऊर्जा क
े स्रोतों जैसे प्राकृ तिक
गैस, तेल, पानी और खनिज पदार्थों क
े प्रयोग की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
इसमें किसी अन्य राष्ट्र का सैनिक या राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना
चाहिए।
● साइबर सुरक्षा-
वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी क
े युग में जब व्यक्तियों और सरकारों क
े
ज्यादातर आंकड़े ऑनलाइन उपलब्ध हैं, इन आंकड़ों की हैकर्स से सुरक्षा
अत्यधिक प्रासंगिक हो गया है।फ
े सबुक और गूगल जैसी ख्याति लब्ध
अंतरराष्ट्रीय ट्रैक क
ं पनियों पर भी आंकड़ा चोरी करने का आरोप लग चुका
है,ऐसी स्थिति में समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा क
े विचार से साइबर सुरक्षा अत्यंत
आवश्यक है और इस संबंध में आधारभूत संरचना का विकास तथा समुचित
कानूनों का क्रियान्वयन दोनों ही अपेक्षित है।
● मानवीय सुरक्षा-
8. शीत युद्ध उत्तर काल में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विकसित इस विचार क
े
अनुसार किसी देश क
े लोगों की भूख, बीमारी, और किसी तरह क
े दबाव से
मुक्ति मानवीय सुरक्षा की धारणा में शामिल है। समय क
े साथ इस धारणा
में खाद्य सुरक्षा, समूह सुरक्षा ,स्वास्थ्य सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा, महिला
सुरक्षा एवं अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे विषय शामिल होते गए। मानवी
सुरक्षा की देखभाल भी संयुक्त राष्ट्र संघ की जिम्मेदारी मानी गई। इसी
जिम्मेदारी क
े भाव क
े साथ समसामयिक कोविड-19 क
े दौर में संयुक्त राष्ट्र
संघ क
े द्वारा समृद्ध राष्ट्रों से अपील की जा रही है कि वे वैक्सीन क
े
वितरण में गरीब राष्ट्रों क
े साथ भेदभाव ना करें और जरूरतमंद लोगों को
प्राथमिकता क
े आधार पर उपलब्ध कराएं।
● पर्यावरणीय सुरक्षा-
पारंपरिक रूप में पर्यावरणीय सुरक्षा का अर्थ प्राकृ तिक संसाधनों की कमी क
े
कारण उत्पन्न होने वाले संघर्षों क
े समायोजन से है। जैसे- ऊर्जा क
े स्रोतों पर
रोक, पीने योग्य पानी की कमी या जलवायु परिवर्तन। ऐसा माना जाता है
कि इन समस्याओं का संबंध विभिन्न राष्ट्रों से है। पर्यावरण सुरक्षा की
वर्तमान धारणा क
े अंतर्गत यह स्वीकार किया जाता है कि पर्यावरण का
संरक्षण एक लक्ष्य मानकर किया जाना चाहिए और मानवीय गतिविधियों क
े
कारण होने वाली पर्यावरणीय हानि को अंतर्राष्ट्रीय संधियों एवं अंतर्राष्ट्रीय
शासन क
े माध्यम से रोका जाना चाहिए।
● सांस्कृ तिक विविधता की रक्षा -
राष्ट्रीय सुरक्षा क
े सम्मुख खतरे या चुनौतियां
9. शीत यूद्ध क
े बाद क
े विश्व में राष्ट्रीय सुरक्षा की व्यापक होती धारणा क
े साथ राष्ट्र
की सुरक्षा क
े सम्मुख पारंपरिक खतरों क
े अलावा कई अन्य अनेक गैर पारंपरिक
चुनौतियां उपस्थित हुई है। राष्ट्रीय सुरक्षा क
े समक्ष उपस्थित इन खतरों को सुविधा
की दृष्टि से दो भागों में बांटा जा सकता है-
1. सैनिक चुनौतियां
2. असैनिक चुनौतियां
● सैनिक चुनौतियां-
सैनिक चुनौतियों में निम्नांकित चुनौतियां आज दुनिया क
े राष्ट्र को सुरक्षा
की दृष्टि से झेलनी पड़ रही हैं।
1. परंपरागत हथियार- शीत युद्ध की समाप्ति क
े बाद दुनिया की विभिन्न राष्ट्रों
में सरकारों को आंतरिक संघर्षों की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है और इन
संघर्षों को अंजाम देने में संघर्षरत समुदायों क
े द्वारा पारंपरिक ढंग क
े हल्क
े
हथियारों का प्रयोग किया जा रहा है। इन हथियारों की उपस्थिति ने बच्चों और नव
युवकों द्वारा इन्हें इस्तेमाल किया जाना आसान बना दिया है। बहुत से देशों में
व्यक्तिगत सुरक्षा हेतु इन हथियारों को रखना और उनका प्रयोग करना प्रतिबंधित
नहीं है। यह भी एक तथ्य है कि हथियारों क
े व्यापार का 40 से 60% अनुमानित
भाग अवैध है। इन स्थितियों में राष्ट्रीय सुरक्षा क
े प्रयास कठिन होते जा रहे हैं।
निशस्त्रीकरण क
े प्रयासों में बड़े और विनाशकारी हथियारों पर तो पाबंदी की बात
कही जाती है, किं तु इन छोटे हथियारों का जखीरा सरकारों क
े लिए आंतरिक संघर्षों
को परिसीमित करने की दृष्टि से एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
2. बारूदी सुरंगे-
प्रत्यक्ष सशस्त्र संघर्ष क
े स्थान पर आज दुनिया में छापामार युद्ध का प्रचलन बढ़ा
है, जिन्हें संचालित करने हेतु बारूदी सुरंगों का प्रयोग किया जाता है। इन सुरंगों में
विस्फोट कर प्रत्येक वर्ष हजारों लोग जिनमें अधिकांश था बच्चे स्त्रियां और बूढ़े होते
10. हैं, अपन कर दिए जाते हैं या मार दिए जाते हैं। अफगानिस्तान, कांगो, इथियोपिया
,कोसोवो, दक्षिणी लेबनान सूडान, युगोस्लाविया आदि देश बारूदी सुरंगों क
े कारण
सबसे ज्यादा दुष्प्रभावित रहे हैं।
3. आणविक शस्त्र - द्वितीय विश्वयुद्ध क
े बाद दुनिया की दो महा शक्तियों क
े
मध्य शक्ति प्रदर्शन की होड़ में आणविक शास्त्रों का आविष्कार सर्वप्रथम संयुक्त
राज्य अमेरिका क
े द्वारा किया गया और द्वितीय विश्व युद्ध इसक
े प्रयोग का
साक्षी बना। 1949 में सोवियत संघ क
े द्वारा सफल परमाणु परीक्षण किए जाने क
े
बाद दुनिया क
े अन्य राष्ट्रों में परमाणु हथियारों को प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा शुरू
हो गई और आज अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन भारत-पाकिस्तान और उत्तरी
कोरिया जैसे देशों ने सफल परमाणु परीक्षण कर लिया है और इनमें से बहुतों क
े
पास परमाणु अस्त्र मौजूद भी है। यह शस्त्र आज राष्ट्रीय सुरक्षा क
े समक्ष बहुत
बड़ी चुनौती हैं, क्योंकि परमाणु युद्ध क
े दौरान विजय का दावा किसी भी पक्ष क
े
द्वारा नहीं किया जा सकता और किसी राष्ट्र की सनक समूची दुनिया को चंद पलों
में भी नष्ट कर सकती है। न्यूट्रॉन बम परमाणु बम का एक नया विकास है जिसमें
तीव्र विस्फोट नहीं होता और संपत्ति का नाश भी कम से कम होता है लेकिन इससे
निकलने वाली न्यूट्रॉन गोलियों से मनुष्य और जीव-जंतुओं की तुरंत या देर से मृत्यु
निश्चित है।
इन परमाणु बमों क
े प्रसार को रोकने क
े लिए एक तरफ तो परमाणु
शक्ति संपन्न राष्ट्र परमाणु अप्रसार संधि पर जोर देते रहे हैं और दूसरी तरफ अपने
परमाणु शस्त्रों क
े भंडार में वृद्धि करते रहे हैं ।
4. रासायनिक एवं जैविक शस्त्र-
समसामयिक दुनिया को सबसे बड़ा खतरा रासायनिक और जैविक शस्त्रों से है ।
आज जैव आतंकवाद का खतरा बढ़ता जा रहा है। एंथरेक्स की थोड़ी सी मात्रा
यदि लिफाफ
े में बंद करक
े किसी देश की धरती पर छोड़ दिया जाए तो ऐसी महामारी
11. फ
ै ल सकती हैं जिसका उपचार संभव नहीं है। समसामयिक कोविड-19 संकट को
कई विश्लेषकों क
े द्वारा जैविक हथियार की संभावना क
े रूप में देखा जा रहा है।
5. गृह युद्ध- आज दो या अधिक देशों की सेनाओं क
े मध्य आमने-सामने क
े युद्ध
बहुत कम दिखाई देते हैं किं तु कई देशों क
े भीतर विभिन्न वर्गों क
े मध्य गृह युद्ध
की संख्या बढ़ी है। लगभग 90% हिंसात्मक संघर्ष गृह युद्ध की श्रेणी में आते हैं।
अफगानिस्तान, अंगोला, पूर्व युगोस्लाविया, क
ें द्रीय अफ्रीकी गणराज्य जॉर्जिया,
हैती , साइबेरिया, रुआन्डा , सिएरा लियोन, सोमालिया, ताजिकिस्तान, सूडान आदि
ऐसे देश हैं जहां गृह युद्ध होते रहे हैं। इन गृह युद्धों में प्रजातीय शुद्धता की
नीति से लेकर बच्चों को सैनिकों क
े रूप में बलपूर्वक प्रयोग करना, महिलाओं का
सामूहिक बलात्कार करना आदि असभ्य आचरण सामान्य बातें हो गई है। ये गृह
युद्ध दिनों दिन जटिल होते जा रहे हैं। उनकी जड़ें आंतरिक हो सकती हैं, किं तु
सीमावर्ती राज्यों की संलग्नता उन्हें पेचीदा बना देती है। अनुमान है कि गृह युद्ध
में मरने वालों की संख्या लगभग 95% है। भारत सरकार क
े रक्षा मंत्रालय की
वार्षिक रिपोर्ट 2005 क
े अनुसार भारत में सत्ता प्राप्ति की इच्छा रखने वाले जाति
और जनजातीय अति राष्ट्र वादियों द्वारा फ
ै लाए गए विद्रोह, विद्यमान सामाजिक
आर्थिक वंचना क
े शिकार वामपंथी अतिवादी और धार्मिक रूढ़िवाद तथा जातीय
संघर्ष से प्रेरित सांप्रदायिक संघर्ष जैसे आंतरिक खतरों का सामना भारत सरकार को
करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में राष्ट्र- राज्य की सुरक्षा की समस्या मानवी
सुरक्षा की समस्या में परिवर्तित हो गई है।
6. आतंकवाद- 11 सितंबर 2001 की घटना जिसक
े अंतर्गत अमेरिका क
े वर्ल्ड ट्रेड
सेंटर और पेंटागन पर आतंकवादियों द्वारा हवाई हमला किया गया, क
े बाद दुनिया
वैश्विक आतंकवाद का सामना कर रही है आतंकवादियों ने सभी देशों की में डाल
दिया है। दक्षिण पूर्व एशिया यूरोप ब्रिटेन अमेरिका तक इसका विस्तार हो गया है ।
किसी विषय क
े रूप में माननीय शीत युद्ध क
े बाद अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद क
े
12. कारण दुनिया चौथे विश्वयुद्ध की राह पर है। अलकायदा और इस्लामिक उग्रवाद
अब दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका को चुनौती दे रहे हैं।
● असैनिक खतरे -उपर्युक्त सैनिक व चुनौतियों क
े अतिरिक्त आज दुनिया क
े
देश कई असैनिक खतरो का अनुभव कर रहे हैं। ये गैर पारंपरिक चुनौतियां
हैं। इनमें से क
ु छ प्रमुख इस प्रकार हैं-
1. जलवायु परिवर्तन- आर्थिक समृद्धि की लालसा में मानवीय गतिविधियां
प्राकृ तिक संसाधनों क
े दोहन की हद तक पहुंच गई है, जिसका दुष्परिणाम विभिन्न
पर्यावरणीय समस्याओं क
े रूप में देखा जा रहा है। इन समस्याओं में प्रमुख है-
जलवायु परिवर्तन की समस्या। पेड़ पौधों की बेतहाशा कटाई, बांधों का निर्माण और
औद्योगिक कचरे क
े कारण ग्रीनहाउस गैसेस की मात्रा वातावरण में बढ़ रही है,
जिसक
े कारण धरती का तापमान दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। धरती का बढ़ता
तापमान न क
े वल मनुष्य क
े जीवन क
े लिए घातक है, बल्कि धरती पर मौजूद सभी
जीव जंतुओँ क
े जीवन क
े समक्ष संकट उपस्थित करता है। जलवायु परिवर्तन क
े
कारण मरुस्थलो की संख्या बढ़ रही है जिससे खाद्यान्न समस्या उत्पन्न हो सकती
है। अफ्रीका क
े अनेक देश व्यापक सूखे की चपेट में है । इंडोनेशिया क
े वनों में लगने
वाली आग आसपास क
े प्रदेशों क
े लिए खतरे की घंटी है। ग्लेशियर की बर्फ पिघलने
क
े कारण कई दीप देशों का अस्तित्व खतरे में है क्योंकि समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा
है। नीरू और किरबाती तथा मालदीव्स जैसे दीप देशों को समुद्र में समा जाने का
खतरा सता रहा है। यह पर्यावरणीय समस्याएं मानवीय सुरक्षा क
े समक्ष एक बड़ी
चुनौती क
े रूप में सामने आ रही हैं , जिनका यदि प्रभावी ढंग से समाधान नहीं किया
गया, तो मानव अस्तित्व खतरे में है।
2. मादक पदार्थों और मनुष्यों की तस्करी-
मादक पदार्थों की तस्करी ने अनेक देशों को असुरक्षित कर दिया है। 90 क
े दशक
क
े अंत तक अफग़ानिस्तान जैसा देश विश्व की 80% अवैध अफीम का उत्पादक
13. और आपूर्ति कर्ता देश रहा है उसकी आबादी का लगभग 7% भाग अफीम की खेती
में संलग्न है। अफीम हीरोइन का स्रोत है, जिसक
े सेवन से दुनिया क
े अनेक युवाओं
का जीवन क
ुं ठित हो गया है। मादक पदार्थों क
े कारण कई अन्य अनेक अपराधों
और संघर्षों को बढ़ावा मिल रहा है। आंतरिक विद्रोहियों क
े द्वारा अपने विद्रोह को
संचालित करने हेतु आवश्यक वित्तीय स्रोतों का सृजन इन मादक पदार्थों की तस्करी
क
े माध्यम से ही किया जाता है। मादक पदार्थों क
े साथ- साथ बच्चों और महिलाओं
की तस्करी एक अलग समस्या है। अच्छे भविष्य का लालच देकर बच्चों और
महिलाओं को दलालों क
े हाथों बेच कर निहित स्वार्थ की पूर्ति की जा रही है, जिसक
े
कारण इनका शोषण हो रहा है और गरिमा पूर्ण मानवीय जीवन संकट में पड़ रहा
है।
3. आर्थिक और वित्तीय स्थिरता से संबंधित चुनौती-
90 क
े दशक में दुनिया भर में वैश्वीकरण और उदारीकरण की नीति अपनाई गई,
जिसक
े अंतर्गत दुनिया भर क
े बाजार को समूची दुनिया क
े लिए समान रूप से खोल
दिया गया। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक द्वारा निर्धारित आर्थिक नीतियों
का लाभ बड़े देशों को तो मिला, किं तु मेक्सिको, दक्षिणी कोरिया, थाईलैंड,
इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देशों की अर्थव्यवस्थाये डगमगाने लगी। अर्जेंटीना में
खाद्य पदार्थों क
े लिए भड़क
े दंगों से सरकार गिर गई। अफ्रीका क
े अल्प विकसित
देशों में ऋण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया। समसामयिक
कोविड-19 संकट क
े दौर में दुनिया भर क
े मजदूरों का जीवन लॉकडाउन क
े कारण
संकट में पड़ गया ,करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए और मानव जीवन दुष्प्रभावित हुआ
है। वैश्विक आर्थिक नीतियों क
े कारण उत्पन्न क्षेत्र गत विभेद मानवी सुरक्षा क
े
सम्मुख एक बड़ा मानवीय संकट है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर निर्धारित आर्थिक
नीतियों क
े साथ विडंबना यह रही है कि इनक
े पीछे घोषित उद्देश्य तो दुनिया की
गरीबी को समाप्त करना है, किं तु व्यवहार में बहुत से राष्ट्र और लोग इन नीतियों
14. का लाभ उठाने से वंचित रह जा रहे हैं। अमर्त्य सेन क
े शब्दों में, समृद्धि क
े क
ु छ
द्वीप तो दिखाई दे रहे हैं, किं तु ज्यादातर जनसंख्या अब भी वंचना का शिकार है।
शांति एवं सुरक्षा की स्थापना हेतु विकसित तंत्र