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रचनावाद
[ Constructivism ]
https://i.pinimg.com/originals/2a/32/3c/2a323c6f53a32b53
4824031c249e6330.jpg
द्वारा- डॉ. ममता उपाध्याय
प्रो. , राजनीति विज्ञान
क
े एमजीजी पी. जी. कॉलेज
बादलपुर, गौतम बुध नगर, उत्तर प्रदेश
उद्देश्य-
● शिक्षण क
े रचना वादी दर्शन एवं दृष्टिकोण की जानकारी
● रचनावाद क
े सिद्धांतों की जानकारी
● पारंपरिक शिक्षण पद्धति एवं रचनावादी दृष्टिकोण क
े तुलनात्मक विश्लेषण क
े
आयाम प्रस्तुत करना
● शिक्षकों को इस दृष्टिकोण को शिक्षण तकनीक क
े रूप में अपनाने क
े लिए प्रेरित
करना
● शिक्षार्थियों को इस दृष्टिकोण क
े अनुरूप सीख की गतिविधियों में संलग्न करना
मुख्य शब्द- रचनावाद, सामाजिक रचनावाद, सांस्कृ तिक रचनावाद,
आलोचनात्मक रचनावाद, संज्ञानात्मक रचनावाद, शिक्षक, शिक्षार्थी, सीख ,
शैक्षिक दर्शन, ज्ञान का सृजन, सक्रिय शिक्षार्थी, विशेषज्ञ शिक्षक
रचना वाद एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक दर्शन एवं सिद्धांत है जो ज्ञान की प्राप्ति और उसक
े प्रसार को
सैद्धांतिक अध्ययन एवं खोज का विषय न मानकर उसक
े सक्रिय एवं गतिशील स्वरूप पर जोर देता है।
स्विस मनोवैज्ञानिक जॉन पियाजे , रूसी दार्शनिक वाइगोत्सकी एवं ब्रिटिश दार्शनिक जॉन डेवी द्वारा
1970 क
े दशक मे विकसित यह दर्शन वास्तव में अनुभवजन्य, सक्रिय एवं सहभागी शिक्षण की
प्रक्रिया को प्रोत्साहित कर शिक्षकों क
े सम्मुख शिक्षण की एक नई तकनीक प्रस्तुत करता है जिसका
उद्देश्य छात्रों की शिक्षण प्रक्रिया को सहज, सुगम एवं व्यवहारिक बनाना है। रचनावाद इस विचार पर
आधारित है कि व्यक्ति अपना ज्ञान अपनी सक्रियता एवं अनुभव से खुद निर्मित करते हैं क्योंकि हर
व्यक्ति का जीवन और उसकी परिस्थितियों क
े प्रति अनुभव अनूठा होता है। वास्तव में सीखने वाला
प्रत्येक व्यक्ति अपने पूर्व ज्ञान को आधारभूत मानते हुए अपने अनुभवों क
े साथ उस को जोड़ता है और
इस प्रकार एक नया ज्ञान दुनिया क
े सम्मुख रखता है। जो शिक्षक शिक्षण क
े रचनावादी सिद्धांत को
समझते हैं वह यह भी समझते हैं कि प्रत्येक छात्र प्रत्येक दिन अपने नए और अनोखे अनुभव क
े साथ
कक्षा में प्रवेश करता है। उसकी पृष्ठभूमि एवं पूर्व ज्ञान उसकी सीखने की क्षमता को निर्धारित करते हैं।
रचनावाद ज्ञान क
े उस व्यवहारवादी एवं संज्ञानात्मक सिद्धांत क
े विपरीत है जो ज्ञान को एक स्थिर,
पूर्ण एवं अंतिम मानते हुए यह विश्वास व्यक्त करते हैं कि ज्ञान पहले से ही दुनिया में मौजूद है और
सीखने वाले का कार्य मात्र इतना है कि वह इस ज्ञान को हुबहू अपना ले। शिक्षक का कार्य है कि वह
दुनिया क
े विषय में पहले से विद्यमान ज्ञान को अपने शिष्यों में हस्तांतरित करें एवं उसक
े अनुरूप
उनकी समझ का विकास करें। रचनावादियों को ज्ञान का यह पारंपरिक सिद्धांत स्वीकार्य नहीं है ।
रचनावाद का क
ें द्रीय विचार यह है कि मानवीय ज्ञान एवं सीख सीखने वाले की क्रियाशीलता का
परिणाम है और यह सीखने वाले द्वारा जीवन क
े प्रति किए गए अनुभवों पर आधारित है और इस दृष्टि
से ज्ञान निहायत व्यक्तिगत है।
परिभाषा-
विको क
े अनुसार, ‘’ हमने जिसे बनाया नहीं, हम उसक
े बारे में क
ु छ भी नहीं जान सकते। ‘’ यही
रचनावाद है।
वेन ग्लेजर फ
े ल्ड [ 1989] क
े अनुसार, ‘’ रचनावाद इस विश्वास पर आधारित है कि ज्ञान को
निष्क्रिय रूप से प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि सक्रिय रुप से दुनिया क
े अनुभव क
े आधार पर इसे
विकसित किया जा सकता है। ‘’
मार्टिन डागियमस क
े अनुसार, ‘’ रचनावाद छात्र द्वारा जाने गए ज्ञान क
े निर्माण पर आधारित है।
शिक्षा छात्र क
ें द्रित है एवं छात्रों को स्वयं ज्ञान का निर्माण करना चाहिए। ... रचनावाद शैक्षणिक
व्यवहार क
े परीक्षण का एक सिद्धांत, साधन एवं लेंस है।’’
ब्रूनर क
े अनुसार, ‘’ रचनावाद एक शैक्षणिक सिद्धांत है जिसमें सीखने को एक सक्रिय प्रक्रिया माना
जाता है और सीखने वाला नए विचारों एवं सिद्धांतों को निर्मित करता है जो उसक
े विद्यमान एवं अतीत
क
े ज्ञान पर आधारित होते हैं। ‘’
इतिहास-
रचनावादी सिद्धांत का प्रारंभिक उदाहरण यूनानी दार्शनिकों जैसे हेरकलिट्ज़ एवं प्रोटेगोरस क
े विचारों
में मिलता है। हेरकलिट्ज़ का मत था कि प्रत्येक वस्तु प्रवाह मान है, क
ु छ भी स्थिर नहीं है।प्रोटेगोरस
क
े अनुसार मनुष्य सभी वस्तुओं का मापदंड है। प्लेटो क
े दर्शन में भी ऐसा ही विचार मिलता है।
पुनर्जागरण आंदोलन में भी मनुष्य को समस्त सांसारिक वस्तुओं का निर्माता और सांसारिक जीवन का
क
ें द्र बिंदु माना गया। डिस्कार्टे एवं ज्गियांबटिस्टा जैसे वैज्ञानिकों ने 18 वीं शताब्दी में नए विज्ञान को
प्रतिपादित करते हुए ‘ सत्य निर्मित किया जाता है’ जैसे विचार को सामने रखा। मनुष्य क
े विवेक को
सार्वभौमिक मानते हुए उसे समस्त प्रकार क
े ज्ञान का स्रोत माना गया। वी शताब्दी में जीन पियाजे,
जेएल ऑस्टिन, हर्बर्ट साइमन जॉर्ज क
े ली आदि ने रचनावाद को आगे बढ़ाने में योगदान दिया।
रचनावाद क
े प्रकार-
1. साधारण रचनावाद [ Trivial Constructivism]
वॉन गलजेरफ
े ल्ड ने 1990 में इस शब्द को गढ़ा था और इसे रचनावाद का सबसे सामान्य रूप बताया
था। यह रचनावाद क
े इस सिद्धांत से सहमत है कि ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में सीखने वाला एक
सक्रिय कार्यकर्ता है और वह स्वयं अपनी मानसिक संरचना का निर्माण अपने ज्ञान क
े आधार पर करता
हैं। अतः ज्ञान हमेशा वयक्तिक होता है। यह वैश्विक वातावरण की वस्तुनिष्ठ वास्तविकता से इनकार
नहीं करता, किं तु यह विश्वास व्यक्त करता है कि यह वास्तविकता सीखने वाले क
े द्वारा व्यक्तिगत
ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया द्वारा ही समझी जा सकती है। हमारी औपचारिक शिक्षा व्यवस्था भी साधारण
रचनावाद का एक उदाहरण है जिसमें तय पाठ्यक्रम क
े अनुसार ज्ञान का हस्तांतरण किया जाता है और
यह पाठ्यक्रम ज्ञान की दुनिया का एक छोटा सा हिस्सा होता है।
2. उग्र रचनावाद [ Radical Contructivism ]
उग्र रचनावाद का सिद्धांत प्रारंभिक रूप में वन ग्लेसरफ
े ल्ड द्वारा प्रतिपादन किया गया। 1980 क
े
दशक में सिगफ्राएड जे. स्मिथ ने जर्मनी क
े शैक्षणिक जगत में उग्र रचनावाद को स्थापित करने में
अग्रणी भूमिका निभाई। वैज्ञानिक शैक्षणिक शोध में यह सिद्धांत अत्यंत प्रभावी रहा है। उग्र
रचनावाद इस दृष्टिकोण को पूरे बल क
े साथ स्थापित करता है कि ज्ञान का निर्माण पूरी तरह जानने
वाले क
े अनुभव पर आधारित होता है।
3. सामाजिक रचनावाद-[ Social Constructivism ]
सामाजिक रचनावाद ज्ञान का एक समाजशास्त्रीय सिद्धांत है जिसक
े अनुसार मनुष्य का विकास
उसकी सामाजिक संलग्नता पर निर्भर होता है तथा ज्ञान का निर्माण समाज क
े लोगों की आपसी अंतः
क्रिया से होता है। लोग आपस में साथ-साथ इसलिए कार्य करते हैं ताकि मानव कृ तियों का निर्माण किया
जा सक
े ।
4. सांस्कृ तिक रचनावाद-[ Cultural Constructivism ]
सांस्कृ तिक रचनावाद क
े अनुसार ज्ञान एवं तथ्य सांस्कृ तिक परिवेश की उपज होते हैं। दो भिन्न
संस्कृ तियों में अवलोकन क
े अलग-अलग तरीक
े देखने को मिल सकते हैं।
5. आलोचनात्मक रचनावाद- [ Critical Constructivism ]
जॉय किनचेलो क
े कार्य से प्रभावित आलोचनात्मक रचनावाद क
े अनुसार शक्ति एवं ज्ञान का अटूट
संबंध है एवं समाज में क
े वल निश्चित समूह एवं संस्थाओं को ही ज्ञान क
े निर्माता एवं प्रचारक का दर्जा
हासिल हो पाता है क्योंकि उनक
े साथ शक्ति जुड़ी हुई होती है। यह दृष्टिकोण मुख्यधारा क
े शिक्षण एवं
शोध कार्यों को नजरअंदाज करता है क्योंकि उसक
े दृष्टि में यह वर्ग, प्रजाति एवं लैंगिक प्रताड़नाजैसे
सांस्कृ तिक तत्वों की उपज है। इसक
े स्थान पर यह प्रश्न करने, चर्चा एवं वार्तालाप क
े माध्यम से
पारस्परिक समझ को बढ़ाने का उद्देश्य रखता है। आलोचनात्मक रचनावादी विचारों ने अनेक
आलोचनात्मक दृष्टिकोणों जैसे- विउपनिवेशवादी एवं नारीवादी सिद्धांत कारों को प्रभावित किया
जिन्होंने मौजूदा ज्ञान की व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाया एवं तार्कि क विश्लेषण क
े माध्यम से किसी भी
मौजूदा ज्ञान को स्वीकार करने या अस्वीकार करने का आग्रह किया। फरेरेरे का अनुसरण करते हुए
आलोचनात्मक रचनावादी इस बात पर जोर देते हैं कि ज्ञान कोई एक ऐसा तत्व नहीं है जिसे पैसे की
तरह एक बैंक में डिपॉजिट किया जा सक
े और जरूरत पड़ने पर उसे निकाला जा सक
े । ज्ञान लोगों क
े
दिमाग की उपज है और लोगों का दिमाग उस समाज द्वारा बनाया जाता है जिसक
े मध्य में रहते हैं।
आलोचनात्मक रचनावाद सोच क
े नए तरीक
े एवं संवाद पर जो देता है क्योंकि इस संवाद क
े माध्यम से
ही ज्ञान क
े अभिजन वादी दृष्टिकोण पर प्रहार किया जा सकता है एवं समाज क
े हाशिए पर चल रहे ज्ञान
को मुख्यधारा क
े विमर्श का विषय बनाया जा सकता है।
रचनावाद क
े सिद्धांत-
रचनावाद इस मूल मान्यता पर आधारित है कि शिक्षा एवं शिक्षण ज्ञान
निर्माण की प्रक्रिया है जिसमें शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रचनावाद क
े क
ु छ प्रमुख सिद्धांत
इस प्रकार है-
● ज्ञान का निर्माण किया जाता है-
रचनावादी विचारक ज्ञान की पूर्णता एवं उसक
े शाश्वत स्वरूप में विश्वास नहीं रखते , बल्कि
यह मानते हैं कि देश काल और परिस्थिति क
े अनुसार भिन्न-भिन्न रूपों में ज्ञान का निर्माण
होता है और एक प्रकार क
े ज्ञान क
े निर्माण में दूसरे प्रकार का ज्ञान सहायक होता है। छात्र ज्ञान
क
े एक पक्ष को जानकर उसक
े आधार पर दूसरे पक्ष को निर्मित करने का प्रयास करते हैं। छात्र का
अपना ज्ञान, विश्वास और उसक
े अंतर्दृष्टि यह सभी उसक
े निरंतर सीखने की प्रक्रिया में
आधारशिला का कार्य करते हैं।
● ज्ञान का स्वरूप बहुपक्षीय है-
रचनावाद क
े अनुसार ज्ञान की प्रकृ ति एकांगी नहीं है, बल्कि इसक
े विविध पक्ष हैं जो आपस में
इस प्रकार संबंधित है कि एक पक्ष को सीखने पर दूसरे पक्ष का ज्ञान अनायास ही हो जाता है।
जैसे- राजनीति विज्ञान का विद्यार्थी जब राज्य क
े कार्यों पर एक लेख लिखने का प्रयास करता है
तो वह राज्य क
े विषय में जानने क
े साथ-साथ निबंध लेखन की शैली से भी परिचित होता है।
ज्ञान का एक पक्ष दूसरे पक्ष क
े विषय में भी हमारी समझ को विकसित करता है।
● सीखना एक सक्रिय गतिविधि है-
पारंपरिक रूप में शिक्षा और शिक्षण की तकनीक क
ु छ इस प्रकार की थी कि शिक्षक सिद्धांतों को
अपनी कक्षाओं में बता देता था और विद्यार्थियों उन्हे सुन लेता था, किं तु रचनावाद इस बात पर
जोर देता है कि सीखने की प्रक्रिया तभी प्रगाढ़ होगी जब विद्यार्थियों को अपनी सभी
ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग करते हुए अपने आसपास की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिस्थितियों
क
े प्रति संवेदनशील एवं जागरूक बनाया जाएगा तथा सिद्धांतों को व्यावहारिक जीवन क
े साथ
संबंधित कर सीखने की प्रक्रिया को व्यावहारिक बनाया जाएगा। वास्तव में यह सिद्धांत इस
इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक दिन प्रत्येक व्यक्ति एवं परिस्थिति से
क
ु छ न क
ु छ सीखता है और अपनी इसी सीख को परिवर्धित कर ज्ञान क
े निर्माण में योग देता है।
ऐसा करने क
े लिए वह चर्चा- परिचर्चा, पठन-पाठन, अवलोकन एवं अन्य गतिविधियों में अपनी
सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित करता है।
● सीखना एक सामाजिक गतिविधि है-
रचनावाद ज्ञान क
े इस पारंपरिक दर्शन क
े विपरीत है जिसमें एकांतवास को ज्ञान क
े सृजन का
आधार माना जाता है। यह मानता है कि सीखना एक सामाजिक क्रिया है जिसका संबंध समाज
क
े सभी लोगों से है। हमारे शिक्षक, हमारा परिवार, हमारे मित्र एवं परिचित यह सभी मिलकर
हमारे ज्ञान को प्रभावित करते हैं । वही शिक्षक सफल होता है जो विद्यार्थियों क
े जीवन में उनक
े
साथियों क
े साथ सक्रियता को समझता है और उसे प्रोत्साहित करता है । प्रगतिशील शिक्षण क
े
अंतर्गत यह स्वीकार किया जाता है कि सामाजिक अंतः क्रिया सीखने की क
ुं जी है, अतः इसक
े
अंतर्गत परस्पर वाद- विवाद, क्रिया प्रतिक्रिया एवं समूह कार्यों क
े माध्यम से छात्रों क
े ज्ञान को
विकसित एवं संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है।
● सीखने की प्रक्रिया सामाजिक परिस्थितियों क
े प्रति प्रासंगिक होनी चाहिए-
ज्ञान क
े साथ जुड़ा हुआ एक आधारभूत प्रश्न यह है कि ज्ञान किसलिए निर्मित किया जाए
?जिसका स्वाभाविक उत्तर यह है की जीवन को सुगम बनाने क
े लिए। जीवन सुगम तब बन
सकता है जब व्यक्ति को देश और दुनिया की परिस्थितियों, चुनौतियों एवं समस्याओं का ज्ञान
हो। ज्ञान हमेशा सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक जीवन क
े प्रति प्रासंगिक होना चाहिए। दूसरे
शब्दों में समस्याओं क
े समाधान क
े विकल्प स्वरूप ज्ञान का सृजन, संचयन एवं संरक्षण होना
चाहिए। उदाहरण स्वरूप समसामयिक वैश्विक जगत में जो प्रमुख चुनौतियां है जैसे- पर्यावरण
संकट, बढ़ती जनसंख्या, परमाणु युद्ध का भय, आर्थिक असंतुलन, हिंसा, गृहयुद्ध आदि,
इनक
े समाधान क
े निमित्त ही ज्ञान का विकास होना चाहिए। सामाजिक एवं प्राकृ तिक विज्ञान
का समसामयिक अध्ययन इन समस्याओं क
े समाधान का अपने अपने तरीक
े का विकल्प
प्रस्तुत करता है तो यह अध्ययन प्रासंगिक हो जाता है।
● सीखना एक मानसिक क्रिया है-
रचनावाद क
े अनुसार सीखने की क्रिया में शारीरिक गतिविधियां आवश्यक हो सकती है, किं तु
मुख्यतः यह एक मानसिक क्रिया है. अतः शिक्षण गतिविधियों में ऐसी क्रियाएं सम्मिलित की
जानी चाहिए जो सीखने वाले क
े मस्तिष्क को सक्रिय बनाए. डेवी ने इसे प्रतिबिंबित क्रिया [
Reflective Activity ] कहा है।
● सीखने की क्रिया में भाषा की भूमिका महत्वपूर्ण है-
बहुत से शोधकर्ताओं जैसे विगोट्सकि एवं एलंगूरें ने अपने अध्ययन में पाया कि व्यक्ति की
सीख की प्रक्रिया में उसकी मातृभाषा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सीखने वाले की इच्छा
होती है कि उसे अध्ययन सामग्री उसकी अपनी भाषा में प्राप्त हो। उत्तरी अमेरिका क
े निवासियों
क
े अध्ययन क
े आधार पर एलंगूरें ने अपील की कि अमेरिका क
े विकास क
े लिए स्थानीय
भाषाओं का सम्मान किया जाए।
● सीखने क
े लिए विषय का पूर्व ज्ञान आवश्यक है-
रचनावाद का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि नवीन ज्ञान का सृजन अनायास ही नहीं हो
जाता। सीखने वाले को उसक
े विषय में पूर्व ज्ञान होना आवश्यक है। जितना ज्यादा उस विषय
क
े बारे में विद्यार्थी का ज्ञान होगा उतना ही उसे आगे क
े ज्ञान की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मदद
मिलेगी। अतः शिक्षक को विद्यार्थी क
े पूर्व ज्ञान की गहराई को समझते हुए और उसे ज्यादा
ज्ञान को प्रोत्साहित करते हुए शिक्षण क्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए। जैसे- विज्ञान और तकनीक
क
े विकास में संलग्न एक इंजीनियर का ज्ञान उतना ही विकसित होगा, जितनी अधिक उसे
गणित एवं विज्ञान क
े आधारभूत सिद्धांतों की जानकारी होगी।
● सीखना एक समय साध्य प्रक्रिया है-
सीखना एक त्वरित प्रक्रिया न होकर, समय लेने वाली प्रक्रिया है। यदि कोई शिक्षार्थी अच्छी
तरह सीखना चाहता है तो उसे विचारों को जानना होता है, उन पर चिंतन करना होता है, उन्हें
प्रयोग में लाना होता है, खेल क
े साथ में समझना होता है, तब जाकर कोई गंभीर ज्ञान वह हासिल
कर पाता है। तात्पर्य है कि सीखने की प्रक्रिया पांच 10 मिनट में पूरी नहीं होती। जब हम किसी
विषय की खोज में संलग्न होते हैं तो यह अनुभव करते हैं कि किस प्रकार हमारी अंतर्दृष्टि उस
पूर्व ज्ञान पर आधारित है जो लंबे समय मैं अर्जित किया गया है।
● प्रेरणा सीख की प्रक्रिया का मुख्य अंग है-
रचनावाद की मान्यता है कि सीखने की प्रक्रिया उतनी ही आसान हो जाती है जितनी ज्यादा
प्रेरणा उसक
े पीछे होती है। निसंदेह यह प्रेरणा शिक्षक की, शिक्षार्थियों क
े समूह की या समाज
की किसी भी व्यक्ति या संगठन की हो सकती है। इस संबंध में शिक्षकों की भूमिका सर्वाधिक
महत्वपूर्ण प्रेरक की होती है। इस दृष्टिकोण को अपनाने वाले शिक्षक क
े वल ज्ञान की प्रेषक नहीं
होते बल्कि सीखने की प्रक्रिया में शिक्षार्थी क
े सहायक होते हैं जो छात्रों को सक्रिय अवलोकन की
ओर ले जाते हैं, उनकी जिज्ञासा को उत्साहित करते हैं एवं छात्रों की क्रियाशीलता को कौशल
विकास की ओर मोड़ते हैं। छात्र क
ें द्रित दृष्टिकोण को अपनाते हुए ऐसे शिक्षक व्यक्तिगत रूप में
प्रत्येक शिक्षार्थी पर ध्यान क
ें द्रित करते हैं, उसकी आवश्यकता और समस्याओं को पहचानते हैं
तथा उसे वांछित दिशा प्रदान करते हैं।विश्व की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, समस्याओं
एवं चुनौतियों को पाठ्यक्रम में शामिल करते हुए विद्यार्थियों को वास्तविक जीवन की तथ्यों क
े
साथ जोड़कर विषय का अध्ययन कराया जाता है जिससे शिक्षण प्रासंगिक एवं अर्थ पूर्ण बनता है
तथा शिक्षार्थियों को अवसर मिलता है कि वे अपने ज्ञान का जीवन में सही समय पर उपयोग
करक
े उसे सुगम एवं सार्थक बनाएं।
आलोचना-
आलोचकों ने निम्नांकित आधारों पर रचनावाद या निर्माण वाद की आलोचना की है-
1. यह दृष्टिकोण सभी प्रकार क
े सीखने वालों क
े लिए उपयुक्त नहीं है. उदाहरण क
े तौर
पर अपेक्षाकृ त छोटे बच्चे या किशोर इतनी संज्ञानात्मक क्षमता नहीं रख सकते हैं कि
वे स्वयं ज्ञान का सृजन कर सक
े , अतः उनक
े लिए मार्गदर्शक शिक्षक एवं पाठ्यक्रम
संरचना की आवश्यकता होती ही है. रचनावाद इस तथ्य की अनदेखी करता है कि
सीखने क
े लिए आवश्यक दिशा निर्देश की आवश्यकता होती है. ब्राउन एण्ड क
ं पीने ,
हरडीमान ,पोलटसेक,मोरेनो,टॉवइनें ,सवेलेर एवं वेल जैसे शोधकर्ताओं का मत है कि
यदि एक छात्र न्यूनतम निर्देशों क
े साथ सीखता है, तो उसकी उलझन और तनाव बढ़ता
है । रचनावादी इस अनुभवी शोध क
े निष्कर्षों को नजरअंदाज करते हैं जिसमें यह पाया
गया किस सीखने क
े लिए छात्रों को छोड़ देना और उनका दिशा निर्देशन न करना सीख
की प्रक्रिया में प्रभावी नहीं होता है।
2. शिक्षण की एक तकनीक क
े रूप में सिवाय इसक
े कि छात्रों क
े पूर्व ज्ञान का पता शिक्षकों
को लगाना चाहिए, यह शिक्षण क
े लिए क
ु छ और विकल्प नहीं प्रस्तुत करता है.
3. रचनावादी दृष्टिकोण की आलोचक इस आधार पर भी आलोचना करते हैं कि यह
सामूहिक सोच को प्रोत्साहित करता है और छात्र की वयक्तिकता को हतोत्साहित करता
है। मनोवैज्ञानिकों की मान्यता है कि क्लास रूम की गतिविधियों पर क
ु छ छात्रों का
वर्चस्व होता है और वे अपने अनुसार किसी भी अंतरक्रिया को प्रभावित करते हैं, जिसक
े
कारण सामान्य छात्र नजरअंदाज हो जाते हैं क्योंकि प्रभावी छात्र संपूर्ण वार्तालाप को
अपने विचारों क
े अनुसार संचालित करते हैं जिससे औसत छात्रों का कौशल विकसित
नहीं हो पाता।
4. रचनावादी दृष्टिकोण आर्थिक दृष्टि से खर्चीला भी है, क्योंकि शिक्षण की इस पद्धति
अनुसार शिक्षकों को प्रशिक्षित करने में अत्यधिक धन खर्च होता है जिसका दुष्प्रभाव
शिक्षण संस्थान क
े बजट पर पड़ता है।
5. आलोचकों की यह भी मान्यता है कि सीखने वाले को सीखने क
े लिए ज्ञान को किसी
मूर्त वस्तु क
े साथ जोड़कर देखना आवश्यक हो जाता है क्योंकि ऐसा करने पर ही यह
सुनिश्चित हो पाता है कि उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया है। किं तु रचनावादी दृष्टिकोण ऐसे
शिक्षण की आवश्यकता का समर्थन नहीं करता, जिसक
े कारण यह
अव्यावहारिक सा प्रतीत होता है।
6. आलोचकों की दृष्टि में रचनावाद सीख क
े परिवेशगत संदर्भों को भी नकारता है । जैसे -
उपलब्ध शैक्षणिक संसाधन, सीख क
े परिवेश क
े साथ मीडिया को जोड़ने की आवश्यकता, सीखने वाले
की प्राथमिकतायें ,व्यक्तिगत रूप में प्रत्येक छात्र की सोचने की क्षमता आदि तथ्य सीख क
े वातावरण
मे योगकारक होते हैं। रचनावाद इन सब की अनदेखी करता है।
इन आलोचनाओं क
े बावजूद रचनावाद शिक्षा क
े क्षेत्र में एक शक्तिशाली एवं
प्रभावी तकनीक है जिस की यह मान्यता है कि रचनावादी दृष्टिकोण से युक्त शिक्षक छात्रों को ज्ञान
सृजन में सहायता करते हैं एवं सीखने का दायित्व पूरी तरह छात्रों पर नहीं छोड़ते। एकार्मेन क
े अनुसार
रचनावाद छात्रों को एक निष्क्रिय सूचना प्राप्त करता क
े स्थान पर एक सक्रिय शिक्षार्थी बनाते हैं। इससे
छात्रों में ज्ञान क
े प्रति उत्सुकता बढ़ती है एवं समस्या समाधान क
े प्रति आग्रह बढ़ता है, उनका संवाद
कौशल विकसित होता है एवं सीखने वालों क
े मध्य सामाजिक जुड़ाव बढ़ता है। रचनावाद क
े आलोचक
यह समझने की भूल करते हैं कि इस दृष्टिकोण में शिक्षकों क
े निर्देशन का कोई महत्व नहीं होता, बल्कि
इसक
े समर्थक तो यहां तक कहते हैं छात्रों की गतिविधियों का निरीक्षण इस दृष्टिकोण क
े अंतर्गत
शिक्षकों द्वारा अत्यधिक विशेषज्ञता क
े साथ किया जाता है। हेमलों सिल्वर एण्ड बरोस यह मानते हैं कि
यह दृष्टिकोण बच्चों को सूचनाओं की स्पून फीडिंग से कहीं ज्यादा बेहतर है।
प्रश्न- निबंधात्मक
1. शिक्षण की तकनीक क
े रूप में रचनावाद या निर्माण वाद पर एक निबंध लिखें।
2. रचनावाद पारंपरिक शिक्षण पद्धति से किस प्रकार भिन्न है, विवेचना करें।
3. रचनावाद से आप क्या समझते हैं? इसक
े प्रमुख सिद्धांत कौन से हैं?
लघु उत्तरीय-
1. किन्हीं दो प्रमुख रचनावादी विचारकों क
े नाम लिखिए।
2. आलोचनात्मक रचनावाद को परिभाषित कीजिए।
3. रचनावाद क
े संबंध में की जाने वाली किन्हीं दो आलोचनाओं का उल्लेख
कीजिए।
4. रचनावादी दृष्टिकोण क
े अनुसार सीख की प्रक्रिया में किसकी भूमिका
प्राथमिक है- छात्र की अथवा शिक्षक की।
REFERENCES &SUGGESTED READINGS
1. ConstructivistLearningTheory,beta.edtech
policy.org
2. Keith S. Taber, Constructivism As Educational
Theory, Contingency In Learning And O Pptimally
Guided Instruction, science-
education-research.com
3. Fosnot, C.T.[ 1996] Constructivism:A psychological
Theory of Learning,in MIriam Schcolnik, Sara
Kol,and Joan Abarbanel, Constructivism in Theory
and In Practice,
4. Duffy . T. M. And D. J. Cunningham, 1996,
Constructivism; Implications for the design and
delivery of instruction. In the handbook of research
for education and technology, Indiana University
5. Freire,P.[1970], Pedagogy of the O oppressed,
London;The Continuum Publishing
Company,Kincheloe,J.L.[ 2005, Critical
ConstructivismPrimer, New York,NY;P,Lang

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  • 1. रचनावाद [ Constructivism ] https://i.pinimg.com/originals/2a/32/3c/2a323c6f53a32b53 4824031c249e6330.jpg द्वारा- डॉ. ममता उपाध्याय प्रो. , राजनीति विज्ञान क े एमजीजी पी. जी. कॉलेज बादलपुर, गौतम बुध नगर, उत्तर प्रदेश
  • 2. उद्देश्य- ● शिक्षण क े रचना वादी दर्शन एवं दृष्टिकोण की जानकारी ● रचनावाद क े सिद्धांतों की जानकारी ● पारंपरिक शिक्षण पद्धति एवं रचनावादी दृष्टिकोण क े तुलनात्मक विश्लेषण क े आयाम प्रस्तुत करना ● शिक्षकों को इस दृष्टिकोण को शिक्षण तकनीक क े रूप में अपनाने क े लिए प्रेरित करना ● शिक्षार्थियों को इस दृष्टिकोण क े अनुरूप सीख की गतिविधियों में संलग्न करना मुख्य शब्द- रचनावाद, सामाजिक रचनावाद, सांस्कृ तिक रचनावाद, आलोचनात्मक रचनावाद, संज्ञानात्मक रचनावाद, शिक्षक, शिक्षार्थी, सीख , शैक्षिक दर्शन, ज्ञान का सृजन, सक्रिय शिक्षार्थी, विशेषज्ञ शिक्षक रचना वाद एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक दर्शन एवं सिद्धांत है जो ज्ञान की प्राप्ति और उसक े प्रसार को सैद्धांतिक अध्ययन एवं खोज का विषय न मानकर उसक े सक्रिय एवं गतिशील स्वरूप पर जोर देता है। स्विस मनोवैज्ञानिक जॉन पियाजे , रूसी दार्शनिक वाइगोत्सकी एवं ब्रिटिश दार्शनिक जॉन डेवी द्वारा 1970 क े दशक मे विकसित यह दर्शन वास्तव में अनुभवजन्य, सक्रिय एवं सहभागी शिक्षण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित कर शिक्षकों क े सम्मुख शिक्षण की एक नई तकनीक प्रस्तुत करता है जिसका उद्देश्य छात्रों की शिक्षण प्रक्रिया को सहज, सुगम एवं व्यवहारिक बनाना है। रचनावाद इस विचार पर आधारित है कि व्यक्ति अपना ज्ञान अपनी सक्रियता एवं अनुभव से खुद निर्मित करते हैं क्योंकि हर व्यक्ति का जीवन और उसकी परिस्थितियों क े प्रति अनुभव अनूठा होता है। वास्तव में सीखने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने पूर्व ज्ञान को आधारभूत मानते हुए अपने अनुभवों क े साथ उस को जोड़ता है और इस प्रकार एक नया ज्ञान दुनिया क े सम्मुख रखता है। जो शिक्षक शिक्षण क े रचनावादी सिद्धांत को समझते हैं वह यह भी समझते हैं कि प्रत्येक छात्र प्रत्येक दिन अपने नए और अनोखे अनुभव क े साथ कक्षा में प्रवेश करता है। उसकी पृष्ठभूमि एवं पूर्व ज्ञान उसकी सीखने की क्षमता को निर्धारित करते हैं। रचनावाद ज्ञान क े उस व्यवहारवादी एवं संज्ञानात्मक सिद्धांत क े विपरीत है जो ज्ञान को एक स्थिर, पूर्ण एवं अंतिम मानते हुए यह विश्वास व्यक्त करते हैं कि ज्ञान पहले से ही दुनिया में मौजूद है और सीखने वाले का कार्य मात्र इतना है कि वह इस ज्ञान को हुबहू अपना ले। शिक्षक का कार्य है कि वह दुनिया क े विषय में पहले से विद्यमान ज्ञान को अपने शिष्यों में हस्तांतरित करें एवं उसक े अनुरूप
  • 3. उनकी समझ का विकास करें। रचनावादियों को ज्ञान का यह पारंपरिक सिद्धांत स्वीकार्य नहीं है । रचनावाद का क ें द्रीय विचार यह है कि मानवीय ज्ञान एवं सीख सीखने वाले की क्रियाशीलता का परिणाम है और यह सीखने वाले द्वारा जीवन क े प्रति किए गए अनुभवों पर आधारित है और इस दृष्टि से ज्ञान निहायत व्यक्तिगत है। परिभाषा- विको क े अनुसार, ‘’ हमने जिसे बनाया नहीं, हम उसक े बारे में क ु छ भी नहीं जान सकते। ‘’ यही रचनावाद है। वेन ग्लेजर फ े ल्ड [ 1989] क े अनुसार, ‘’ रचनावाद इस विश्वास पर आधारित है कि ज्ञान को निष्क्रिय रूप से प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि सक्रिय रुप से दुनिया क े अनुभव क े आधार पर इसे विकसित किया जा सकता है। ‘’ मार्टिन डागियमस क े अनुसार, ‘’ रचनावाद छात्र द्वारा जाने गए ज्ञान क े निर्माण पर आधारित है। शिक्षा छात्र क ें द्रित है एवं छात्रों को स्वयं ज्ञान का निर्माण करना चाहिए। ... रचनावाद शैक्षणिक व्यवहार क े परीक्षण का एक सिद्धांत, साधन एवं लेंस है।’’ ब्रूनर क े अनुसार, ‘’ रचनावाद एक शैक्षणिक सिद्धांत है जिसमें सीखने को एक सक्रिय प्रक्रिया माना जाता है और सीखने वाला नए विचारों एवं सिद्धांतों को निर्मित करता है जो उसक े विद्यमान एवं अतीत क े ज्ञान पर आधारित होते हैं। ‘’ इतिहास- रचनावादी सिद्धांत का प्रारंभिक उदाहरण यूनानी दार्शनिकों जैसे हेरकलिट्ज़ एवं प्रोटेगोरस क े विचारों में मिलता है। हेरकलिट्ज़ का मत था कि प्रत्येक वस्तु प्रवाह मान है, क ु छ भी स्थिर नहीं है।प्रोटेगोरस क े अनुसार मनुष्य सभी वस्तुओं का मापदंड है। प्लेटो क े दर्शन में भी ऐसा ही विचार मिलता है। पुनर्जागरण आंदोलन में भी मनुष्य को समस्त सांसारिक वस्तुओं का निर्माता और सांसारिक जीवन का क ें द्र बिंदु माना गया। डिस्कार्टे एवं ज्गियांबटिस्टा जैसे वैज्ञानिकों ने 18 वीं शताब्दी में नए विज्ञान को प्रतिपादित करते हुए ‘ सत्य निर्मित किया जाता है’ जैसे विचार को सामने रखा। मनुष्य क े विवेक को सार्वभौमिक मानते हुए उसे समस्त प्रकार क े ज्ञान का स्रोत माना गया। वी शताब्दी में जीन पियाजे, जेएल ऑस्टिन, हर्बर्ट साइमन जॉर्ज क े ली आदि ने रचनावाद को आगे बढ़ाने में योगदान दिया। रचनावाद क े प्रकार- 1. साधारण रचनावाद [ Trivial Constructivism] वॉन गलजेरफ े ल्ड ने 1990 में इस शब्द को गढ़ा था और इसे रचनावाद का सबसे सामान्य रूप बताया था। यह रचनावाद क े इस सिद्धांत से सहमत है कि ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में सीखने वाला एक
  • 4. सक्रिय कार्यकर्ता है और वह स्वयं अपनी मानसिक संरचना का निर्माण अपने ज्ञान क े आधार पर करता हैं। अतः ज्ञान हमेशा वयक्तिक होता है। यह वैश्विक वातावरण की वस्तुनिष्ठ वास्तविकता से इनकार नहीं करता, किं तु यह विश्वास व्यक्त करता है कि यह वास्तविकता सीखने वाले क े द्वारा व्यक्तिगत ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया द्वारा ही समझी जा सकती है। हमारी औपचारिक शिक्षा व्यवस्था भी साधारण रचनावाद का एक उदाहरण है जिसमें तय पाठ्यक्रम क े अनुसार ज्ञान का हस्तांतरण किया जाता है और यह पाठ्यक्रम ज्ञान की दुनिया का एक छोटा सा हिस्सा होता है। 2. उग्र रचनावाद [ Radical Contructivism ] उग्र रचनावाद का सिद्धांत प्रारंभिक रूप में वन ग्लेसरफ े ल्ड द्वारा प्रतिपादन किया गया। 1980 क े दशक में सिगफ्राएड जे. स्मिथ ने जर्मनी क े शैक्षणिक जगत में उग्र रचनावाद को स्थापित करने में अग्रणी भूमिका निभाई। वैज्ञानिक शैक्षणिक शोध में यह सिद्धांत अत्यंत प्रभावी रहा है। उग्र रचनावाद इस दृष्टिकोण को पूरे बल क े साथ स्थापित करता है कि ज्ञान का निर्माण पूरी तरह जानने वाले क े अनुभव पर आधारित होता है। 3. सामाजिक रचनावाद-[ Social Constructivism ] सामाजिक रचनावाद ज्ञान का एक समाजशास्त्रीय सिद्धांत है जिसक े अनुसार मनुष्य का विकास उसकी सामाजिक संलग्नता पर निर्भर होता है तथा ज्ञान का निर्माण समाज क े लोगों की आपसी अंतः क्रिया से होता है। लोग आपस में साथ-साथ इसलिए कार्य करते हैं ताकि मानव कृ तियों का निर्माण किया जा सक े । 4. सांस्कृ तिक रचनावाद-[ Cultural Constructivism ] सांस्कृ तिक रचनावाद क े अनुसार ज्ञान एवं तथ्य सांस्कृ तिक परिवेश की उपज होते हैं। दो भिन्न संस्कृ तियों में अवलोकन क े अलग-अलग तरीक े देखने को मिल सकते हैं। 5. आलोचनात्मक रचनावाद- [ Critical Constructivism ] जॉय किनचेलो क े कार्य से प्रभावित आलोचनात्मक रचनावाद क े अनुसार शक्ति एवं ज्ञान का अटूट संबंध है एवं समाज में क े वल निश्चित समूह एवं संस्थाओं को ही ज्ञान क े निर्माता एवं प्रचारक का दर्जा हासिल हो पाता है क्योंकि उनक े साथ शक्ति जुड़ी हुई होती है। यह दृष्टिकोण मुख्यधारा क े शिक्षण एवं शोध कार्यों को नजरअंदाज करता है क्योंकि उसक े दृष्टि में यह वर्ग, प्रजाति एवं लैंगिक प्रताड़नाजैसे सांस्कृ तिक तत्वों की उपज है। इसक े स्थान पर यह प्रश्न करने, चर्चा एवं वार्तालाप क े माध्यम से पारस्परिक समझ को बढ़ाने का उद्देश्य रखता है। आलोचनात्मक रचनावादी विचारों ने अनेक आलोचनात्मक दृष्टिकोणों जैसे- विउपनिवेशवादी एवं नारीवादी सिद्धांत कारों को प्रभावित किया जिन्होंने मौजूदा ज्ञान की व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाया एवं तार्कि क विश्लेषण क े माध्यम से किसी भी
  • 5. मौजूदा ज्ञान को स्वीकार करने या अस्वीकार करने का आग्रह किया। फरेरेरे का अनुसरण करते हुए आलोचनात्मक रचनावादी इस बात पर जोर देते हैं कि ज्ञान कोई एक ऐसा तत्व नहीं है जिसे पैसे की तरह एक बैंक में डिपॉजिट किया जा सक े और जरूरत पड़ने पर उसे निकाला जा सक े । ज्ञान लोगों क े दिमाग की उपज है और लोगों का दिमाग उस समाज द्वारा बनाया जाता है जिसक े मध्य में रहते हैं। आलोचनात्मक रचनावाद सोच क े नए तरीक े एवं संवाद पर जो देता है क्योंकि इस संवाद क े माध्यम से ही ज्ञान क े अभिजन वादी दृष्टिकोण पर प्रहार किया जा सकता है एवं समाज क े हाशिए पर चल रहे ज्ञान को मुख्यधारा क े विमर्श का विषय बनाया जा सकता है। रचनावाद क े सिद्धांत- रचनावाद इस मूल मान्यता पर आधारित है कि शिक्षा एवं शिक्षण ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया है जिसमें शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रचनावाद क े क ु छ प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार है- ● ज्ञान का निर्माण किया जाता है- रचनावादी विचारक ज्ञान की पूर्णता एवं उसक े शाश्वत स्वरूप में विश्वास नहीं रखते , बल्कि यह मानते हैं कि देश काल और परिस्थिति क े अनुसार भिन्न-भिन्न रूपों में ज्ञान का निर्माण होता है और एक प्रकार क े ज्ञान क े निर्माण में दूसरे प्रकार का ज्ञान सहायक होता है। छात्र ज्ञान क े एक पक्ष को जानकर उसक े आधार पर दूसरे पक्ष को निर्मित करने का प्रयास करते हैं। छात्र का अपना ज्ञान, विश्वास और उसक े अंतर्दृष्टि यह सभी उसक े निरंतर सीखने की प्रक्रिया में आधारशिला का कार्य करते हैं। ● ज्ञान का स्वरूप बहुपक्षीय है- रचनावाद क े अनुसार ज्ञान की प्रकृ ति एकांगी नहीं है, बल्कि इसक े विविध पक्ष हैं जो आपस में इस प्रकार संबंधित है कि एक पक्ष को सीखने पर दूसरे पक्ष का ज्ञान अनायास ही हो जाता है। जैसे- राजनीति विज्ञान का विद्यार्थी जब राज्य क े कार्यों पर एक लेख लिखने का प्रयास करता है तो वह राज्य क े विषय में जानने क े साथ-साथ निबंध लेखन की शैली से भी परिचित होता है। ज्ञान का एक पक्ष दूसरे पक्ष क े विषय में भी हमारी समझ को विकसित करता है। ● सीखना एक सक्रिय गतिविधि है- पारंपरिक रूप में शिक्षा और शिक्षण की तकनीक क ु छ इस प्रकार की थी कि शिक्षक सिद्धांतों को अपनी कक्षाओं में बता देता था और विद्यार्थियों उन्हे सुन लेता था, किं तु रचनावाद इस बात पर जोर देता है कि सीखने की प्रक्रिया तभी प्रगाढ़ होगी जब विद्यार्थियों को अपनी सभी ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग करते हुए अपने आसपास की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिस्थितियों क े प्रति संवेदनशील एवं जागरूक बनाया जाएगा तथा सिद्धांतों को व्यावहारिक जीवन क े साथ संबंधित कर सीखने की प्रक्रिया को व्यावहारिक बनाया जाएगा। वास्तव में यह सिद्धांत इस
  • 6. इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक दिन प्रत्येक व्यक्ति एवं परिस्थिति से क ु छ न क ु छ सीखता है और अपनी इसी सीख को परिवर्धित कर ज्ञान क े निर्माण में योग देता है। ऐसा करने क े लिए वह चर्चा- परिचर्चा, पठन-पाठन, अवलोकन एवं अन्य गतिविधियों में अपनी सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित करता है। ● सीखना एक सामाजिक गतिविधि है- रचनावाद ज्ञान क े इस पारंपरिक दर्शन क े विपरीत है जिसमें एकांतवास को ज्ञान क े सृजन का आधार माना जाता है। यह मानता है कि सीखना एक सामाजिक क्रिया है जिसका संबंध समाज क े सभी लोगों से है। हमारे शिक्षक, हमारा परिवार, हमारे मित्र एवं परिचित यह सभी मिलकर हमारे ज्ञान को प्रभावित करते हैं । वही शिक्षक सफल होता है जो विद्यार्थियों क े जीवन में उनक े साथियों क े साथ सक्रियता को समझता है और उसे प्रोत्साहित करता है । प्रगतिशील शिक्षण क े अंतर्गत यह स्वीकार किया जाता है कि सामाजिक अंतः क्रिया सीखने की क ुं जी है, अतः इसक े अंतर्गत परस्पर वाद- विवाद, क्रिया प्रतिक्रिया एवं समूह कार्यों क े माध्यम से छात्रों क े ज्ञान को विकसित एवं संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है। ● सीखने की प्रक्रिया सामाजिक परिस्थितियों क े प्रति प्रासंगिक होनी चाहिए- ज्ञान क े साथ जुड़ा हुआ एक आधारभूत प्रश्न यह है कि ज्ञान किसलिए निर्मित किया जाए ?जिसका स्वाभाविक उत्तर यह है की जीवन को सुगम बनाने क े लिए। जीवन सुगम तब बन सकता है जब व्यक्ति को देश और दुनिया की परिस्थितियों, चुनौतियों एवं समस्याओं का ज्ञान हो। ज्ञान हमेशा सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक जीवन क े प्रति प्रासंगिक होना चाहिए। दूसरे शब्दों में समस्याओं क े समाधान क े विकल्प स्वरूप ज्ञान का सृजन, संचयन एवं संरक्षण होना चाहिए। उदाहरण स्वरूप समसामयिक वैश्विक जगत में जो प्रमुख चुनौतियां है जैसे- पर्यावरण संकट, बढ़ती जनसंख्या, परमाणु युद्ध का भय, आर्थिक असंतुलन, हिंसा, गृहयुद्ध आदि, इनक े समाधान क े निमित्त ही ज्ञान का विकास होना चाहिए। सामाजिक एवं प्राकृ तिक विज्ञान का समसामयिक अध्ययन इन समस्याओं क े समाधान का अपने अपने तरीक े का विकल्प प्रस्तुत करता है तो यह अध्ययन प्रासंगिक हो जाता है। ● सीखना एक मानसिक क्रिया है- रचनावाद क े अनुसार सीखने की क्रिया में शारीरिक गतिविधियां आवश्यक हो सकती है, किं तु मुख्यतः यह एक मानसिक क्रिया है. अतः शिक्षण गतिविधियों में ऐसी क्रियाएं सम्मिलित की जानी चाहिए जो सीखने वाले क े मस्तिष्क को सक्रिय बनाए. डेवी ने इसे प्रतिबिंबित क्रिया [ Reflective Activity ] कहा है।
  • 7. ● सीखने की क्रिया में भाषा की भूमिका महत्वपूर्ण है- बहुत से शोधकर्ताओं जैसे विगोट्सकि एवं एलंगूरें ने अपने अध्ययन में पाया कि व्यक्ति की सीख की प्रक्रिया में उसकी मातृभाषा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सीखने वाले की इच्छा होती है कि उसे अध्ययन सामग्री उसकी अपनी भाषा में प्राप्त हो। उत्तरी अमेरिका क े निवासियों क े अध्ययन क े आधार पर एलंगूरें ने अपील की कि अमेरिका क े विकास क े लिए स्थानीय भाषाओं का सम्मान किया जाए। ● सीखने क े लिए विषय का पूर्व ज्ञान आवश्यक है- रचनावाद का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि नवीन ज्ञान का सृजन अनायास ही नहीं हो जाता। सीखने वाले को उसक े विषय में पूर्व ज्ञान होना आवश्यक है। जितना ज्यादा उस विषय क े बारे में विद्यार्थी का ज्ञान होगा उतना ही उसे आगे क े ज्ञान की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। अतः शिक्षक को विद्यार्थी क े पूर्व ज्ञान की गहराई को समझते हुए और उसे ज्यादा ज्ञान को प्रोत्साहित करते हुए शिक्षण क्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए। जैसे- विज्ञान और तकनीक क े विकास में संलग्न एक इंजीनियर का ज्ञान उतना ही विकसित होगा, जितनी अधिक उसे गणित एवं विज्ञान क े आधारभूत सिद्धांतों की जानकारी होगी। ● सीखना एक समय साध्य प्रक्रिया है- सीखना एक त्वरित प्रक्रिया न होकर, समय लेने वाली प्रक्रिया है। यदि कोई शिक्षार्थी अच्छी तरह सीखना चाहता है तो उसे विचारों को जानना होता है, उन पर चिंतन करना होता है, उन्हें प्रयोग में लाना होता है, खेल क े साथ में समझना होता है, तब जाकर कोई गंभीर ज्ञान वह हासिल कर पाता है। तात्पर्य है कि सीखने की प्रक्रिया पांच 10 मिनट में पूरी नहीं होती। जब हम किसी विषय की खोज में संलग्न होते हैं तो यह अनुभव करते हैं कि किस प्रकार हमारी अंतर्दृष्टि उस पूर्व ज्ञान पर आधारित है जो लंबे समय मैं अर्जित किया गया है। ● प्रेरणा सीख की प्रक्रिया का मुख्य अंग है- रचनावाद की मान्यता है कि सीखने की प्रक्रिया उतनी ही आसान हो जाती है जितनी ज्यादा प्रेरणा उसक े पीछे होती है। निसंदेह यह प्रेरणा शिक्षक की, शिक्षार्थियों क े समूह की या समाज की किसी भी व्यक्ति या संगठन की हो सकती है। इस संबंध में शिक्षकों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रेरक की होती है। इस दृष्टिकोण को अपनाने वाले शिक्षक क े वल ज्ञान की प्रेषक नहीं होते बल्कि सीखने की प्रक्रिया में शिक्षार्थी क े सहायक होते हैं जो छात्रों को सक्रिय अवलोकन की
  • 8. ओर ले जाते हैं, उनकी जिज्ञासा को उत्साहित करते हैं एवं छात्रों की क्रियाशीलता को कौशल विकास की ओर मोड़ते हैं। छात्र क ें द्रित दृष्टिकोण को अपनाते हुए ऐसे शिक्षक व्यक्तिगत रूप में प्रत्येक शिक्षार्थी पर ध्यान क ें द्रित करते हैं, उसकी आवश्यकता और समस्याओं को पहचानते हैं तथा उसे वांछित दिशा प्रदान करते हैं।विश्व की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, समस्याओं एवं चुनौतियों को पाठ्यक्रम में शामिल करते हुए विद्यार्थियों को वास्तविक जीवन की तथ्यों क े साथ जोड़कर विषय का अध्ययन कराया जाता है जिससे शिक्षण प्रासंगिक एवं अर्थ पूर्ण बनता है तथा शिक्षार्थियों को अवसर मिलता है कि वे अपने ज्ञान का जीवन में सही समय पर उपयोग करक े उसे सुगम एवं सार्थक बनाएं। आलोचना- आलोचकों ने निम्नांकित आधारों पर रचनावाद या निर्माण वाद की आलोचना की है- 1. यह दृष्टिकोण सभी प्रकार क े सीखने वालों क े लिए उपयुक्त नहीं है. उदाहरण क े तौर पर अपेक्षाकृ त छोटे बच्चे या किशोर इतनी संज्ञानात्मक क्षमता नहीं रख सकते हैं कि वे स्वयं ज्ञान का सृजन कर सक े , अतः उनक े लिए मार्गदर्शक शिक्षक एवं पाठ्यक्रम संरचना की आवश्यकता होती ही है. रचनावाद इस तथ्य की अनदेखी करता है कि सीखने क े लिए आवश्यक दिशा निर्देश की आवश्यकता होती है. ब्राउन एण्ड क ं पीने , हरडीमान ,पोलटसेक,मोरेनो,टॉवइनें ,सवेलेर एवं वेल जैसे शोधकर्ताओं का मत है कि यदि एक छात्र न्यूनतम निर्देशों क े साथ सीखता है, तो उसकी उलझन और तनाव बढ़ता है । रचनावादी इस अनुभवी शोध क े निष्कर्षों को नजरअंदाज करते हैं जिसमें यह पाया गया किस सीखने क े लिए छात्रों को छोड़ देना और उनका दिशा निर्देशन न करना सीख की प्रक्रिया में प्रभावी नहीं होता है। 2. शिक्षण की एक तकनीक क े रूप में सिवाय इसक े कि छात्रों क े पूर्व ज्ञान का पता शिक्षकों को लगाना चाहिए, यह शिक्षण क े लिए क ु छ और विकल्प नहीं प्रस्तुत करता है. 3. रचनावादी दृष्टिकोण की आलोचक इस आधार पर भी आलोचना करते हैं कि यह सामूहिक सोच को प्रोत्साहित करता है और छात्र की वयक्तिकता को हतोत्साहित करता है। मनोवैज्ञानिकों की मान्यता है कि क्लास रूम की गतिविधियों पर क ु छ छात्रों का वर्चस्व होता है और वे अपने अनुसार किसी भी अंतरक्रिया को प्रभावित करते हैं, जिसक े कारण सामान्य छात्र नजरअंदाज हो जाते हैं क्योंकि प्रभावी छात्र संपूर्ण वार्तालाप को अपने विचारों क े अनुसार संचालित करते हैं जिससे औसत छात्रों का कौशल विकसित नहीं हो पाता।
  • 9. 4. रचनावादी दृष्टिकोण आर्थिक दृष्टि से खर्चीला भी है, क्योंकि शिक्षण की इस पद्धति अनुसार शिक्षकों को प्रशिक्षित करने में अत्यधिक धन खर्च होता है जिसका दुष्प्रभाव शिक्षण संस्थान क े बजट पर पड़ता है। 5. आलोचकों की यह भी मान्यता है कि सीखने वाले को सीखने क े लिए ज्ञान को किसी मूर्त वस्तु क े साथ जोड़कर देखना आवश्यक हो जाता है क्योंकि ऐसा करने पर ही यह सुनिश्चित हो पाता है कि उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया है। किं तु रचनावादी दृष्टिकोण ऐसे शिक्षण की आवश्यकता का समर्थन नहीं करता, जिसक े कारण यह अव्यावहारिक सा प्रतीत होता है। 6. आलोचकों की दृष्टि में रचनावाद सीख क े परिवेशगत संदर्भों को भी नकारता है । जैसे - उपलब्ध शैक्षणिक संसाधन, सीख क े परिवेश क े साथ मीडिया को जोड़ने की आवश्यकता, सीखने वाले की प्राथमिकतायें ,व्यक्तिगत रूप में प्रत्येक छात्र की सोचने की क्षमता आदि तथ्य सीख क े वातावरण मे योगकारक होते हैं। रचनावाद इन सब की अनदेखी करता है। इन आलोचनाओं क े बावजूद रचनावाद शिक्षा क े क्षेत्र में एक शक्तिशाली एवं प्रभावी तकनीक है जिस की यह मान्यता है कि रचनावादी दृष्टिकोण से युक्त शिक्षक छात्रों को ज्ञान सृजन में सहायता करते हैं एवं सीखने का दायित्व पूरी तरह छात्रों पर नहीं छोड़ते। एकार्मेन क े अनुसार रचनावाद छात्रों को एक निष्क्रिय सूचना प्राप्त करता क े स्थान पर एक सक्रिय शिक्षार्थी बनाते हैं। इससे छात्रों में ज्ञान क े प्रति उत्सुकता बढ़ती है एवं समस्या समाधान क े प्रति आग्रह बढ़ता है, उनका संवाद कौशल विकसित होता है एवं सीखने वालों क े मध्य सामाजिक जुड़ाव बढ़ता है। रचनावाद क े आलोचक यह समझने की भूल करते हैं कि इस दृष्टिकोण में शिक्षकों क े निर्देशन का कोई महत्व नहीं होता, बल्कि इसक े समर्थक तो यहां तक कहते हैं छात्रों की गतिविधियों का निरीक्षण इस दृष्टिकोण क े अंतर्गत शिक्षकों द्वारा अत्यधिक विशेषज्ञता क े साथ किया जाता है। हेमलों सिल्वर एण्ड बरोस यह मानते हैं कि यह दृष्टिकोण बच्चों को सूचनाओं की स्पून फीडिंग से कहीं ज्यादा बेहतर है। प्रश्न- निबंधात्मक 1. शिक्षण की तकनीक क े रूप में रचनावाद या निर्माण वाद पर एक निबंध लिखें। 2. रचनावाद पारंपरिक शिक्षण पद्धति से किस प्रकार भिन्न है, विवेचना करें। 3. रचनावाद से आप क्या समझते हैं? इसक े प्रमुख सिद्धांत कौन से हैं? लघु उत्तरीय- 1. किन्हीं दो प्रमुख रचनावादी विचारकों क े नाम लिखिए। 2. आलोचनात्मक रचनावाद को परिभाषित कीजिए।
  • 10. 3. रचनावाद क े संबंध में की जाने वाली किन्हीं दो आलोचनाओं का उल्लेख कीजिए। 4. रचनावादी दृष्टिकोण क े अनुसार सीख की प्रक्रिया में किसकी भूमिका प्राथमिक है- छात्र की अथवा शिक्षक की। REFERENCES &SUGGESTED READINGS 1. ConstructivistLearningTheory,beta.edtech policy.org 2. Keith S. Taber, Constructivism As Educational Theory, Contingency In Learning And O Pptimally Guided Instruction, science- education-research.com 3. Fosnot, C.T.[ 1996] Constructivism:A psychological Theory of Learning,in MIriam Schcolnik, Sara Kol,and Joan Abarbanel, Constructivism in Theory and In Practice, 4. Duffy . T. M. And D. J. Cunningham, 1996, Constructivism; Implications for the design and delivery of instruction. In the handbook of research for education and technology, Indiana University 5. Freire,P.[1970], Pedagogy of the O oppressed, London;The Continuum Publishing Company,Kincheloe,J.L.[ 2005, Critical ConstructivismPrimer, New York,NY;P,Lang