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संगतकार
मंगलेश डबराल
लेखक पररचय
मंगलेश डबराल
कवि मंगलेश डबराल का जन्म विहरी गढ़िाल
(उत्तरांचल) में काफलपानी नामक गााँि में सन 1948
में हुआ। देहरादू न में इनकी वशक्षा-दीक्षा हुई। जीिन-
वनिााह क
े वलए इन्हंने वहंदी पेविियि, प्रविपक्ष और
आसपास नामक पत्हं में संपादन काया साँभााला।
इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकावशि अमृि प्रभााि में
भाी काया वकया। जनसत्ता अखबार में सावहत्य-संपादक
का पद संभाालने क
े बाद क
ु छ समय सहारा समय में
संपादन काया वकया। आजकल िे नेशनल बुक ििस्ट से
जुडे हैं। सावहत्य अकादमी पुरस्कार, पहल सम्मान से
सम्मावनि इनकी प्रवसद्धि अनुिादक क
े रूप में भाी है।
इनकी कवििाएं अंग्रेजी, रूसी, जमान, स्पानी, पहल्स्स्की
और बल्गारी भााषाओं में भाी प्रकावशि हुई हैं। रचनाएाँ -
‘पहाड पर लालिेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जह देखिे हैं’
और ‘आिाज भाी एक जगह ‘ ।
पाठ पररचय
संगिकार’ कवििा क
े माध्यम से कवि नािक, संगीि,
व़िल्म िथा नृत्य आवद कलाओं में काम करने िाले
सहायक कलाकारहं िथा वकसी भाी क्षेत् में कायारि
सहायक कमाचाररयहं की ओर संक
े ि करिा है। ये अपने
मानििािादी दृविकहण से मुख्य व्यद्धि की भाूवमका कह
विवशि बनाने का महत्त्वपूणा काया करिे हैं।
व्याख्या
मुख्य गायक क
े चट्टान जैसे भाारी स्वर का साथ देिी
िह आिाज सुंदर कमजहर कााँपिी हुई थी
िह मुख्य गायक का छहिा भााई है
या उसका वशष्य
या पैदल चलकर सीखने आने िाला दू र का कहई ररश्तेेदार
मुख्य गायक की गरज में
िह अपनी गूाँज वमलािा आया है प्राचीन काल से
संदर्भ-
जब भाी कहींसंगीि का आयहजन हहिा है, िह
मुख्य गायक क
े साथ संगि करने िाला
संगिकार अक्सर देखा जािा है। ज्यादािर
लहग संगिकार कह महत्व नहींदेिे हैं और
िह पृष्ठभाूवम का वहस्सा मात् बनकर रह
जािा है। िह हमारे वलए एक गुमनाम चेहरा
रहिा है। हम उसक
े बारे में िरह-िरह की
अिकलें लगािे हैं, लेवकन मुख्य गायक की
प्रवसद्धि क
े आलहक में हममें से बहुि कम ही
लहग उस अनजाने संगिकार की महत्वपूणा
भाूवमका पर विचार कर पािे हैं।
शब्दार्भ-
• संगतकार – मुख्य गायक क
े साथ
गायन करने िाला या िाद्य बजाने िाला
कलाकार:
• मुख्य गायक- िह गायक वजसकी
आिाज सबसे अविक सुनाई देिी है ।
• गरज - ऊ
ं ची गंभाीर आिाज।
जब मुख्य गायक अपने चट्टान जैसे भाारी स्वर में गीि गािा है, िब संगिकार उसकी सहारा
देकर संभााले रखिा है। संगिकार की आिाज मुख्य गायक की अपेक्षा कमजहर एिं कााँपिी
हुई, लेवकन सुंदर हहिी है। यह संगिकार गायक का छहिा भााई, उसका वशष्य या संगीि सीखने
का इच्छु क व्यद्धि पैदल चलकर आया हुआ उसका दू र का कहई ररश्तेेदार हह सकिा है।
अथााि् कवि मुख्य गायक क
े साथ गायन करने िाले या िाद्य यंत् बजाने िाले कलाकार की
विशेषिाओं की ओर ध्यान वदलािे हुए कहिे हैं वक मुख्य गायक की चट्टान जैसी भाारी भारकम
आिाज कह आनुपाविक लय प्रदान करने हेिु उसे बहविलिा से बचाने क
े वलए या भाारीपन कह
कम करने क
े उद्देश्य से एक सुंदर, कमजहर िथा कााँपिी परपरािी आिाज साथ में सुनाई देिी
है। कमजहर इसवलए वक मुख्य गायक की महानिा की िुलना में िह संगिकार नया-नया आया
है, डर-डर कर गािा है। यह या िह मुख्य गायक का छहिा भााई है या उसका वशष्य या दू र दराज
क
े गााँि से पैदल चलकर संगीि की वशक्षा में पारंगि हहने अथााि अनुभािी गायकहं से सीखने की
लालसा से आया है। प्राचीन काल से ऐसा की कहई संगिकार मुख्य गायक की ऊ
ं ची गंभाीर
आिाज से अपने सुर वमलािा आ रहा है।
र्ावार्भ
• खडी बहली का सुंदर प्रयहग है।
• भााषा सरल िथा भाािानुक
ू ल है।
• भााषा में ित्सम िद्भि और उदूा शब्हं का वमला-जुला रूप नजर आिा है।
• कवििा गद्यात्मकिा क
े वनकि है, वक
ं िु भाािहं कह लय उसे गीविमयिा का रूप
प्रदान करिी है ।
• कवि कह संगीि का सूक्ष्माविसूक्ष्म ज्ञान है।
काव्य स ंदयभ
1. उपमा – चट्टान जैसे भाारी स्वर ।
2. अनुप्रास –‘भाारी स्वर’, सुंदर कमजहर, का कहई ।
3. संदेह अलंकार– िह मुख्य गायक का छहिा भााई है या उसका वशष्य या पैदल
चलकर सीखने आने िाला दू र का कहई ररश्तेेदार ।
अलंकार यहजना
व्याख्या
गायक जब अंिरे की जविल िानहं क
े जंगल में
खह चुका हहिा है।
या अपने ही सरगम कह लााँघकर
चला जािा है भािकिा हुआ एक अनहद में
िब संगिकार ही स्थायी कह साँभााले रहिा है।
जैसे समेििा हह मुख्य गायक का पीछे छ
ू िा हुआ सामान
जैसे उसे याद वदलािा हह उसका बचपन
जब िह नौवसद्धखया था
शब्दार्भ-
• • अंतरा-स्थायी या िेक कह छहडकर गीि का चरण ।
• • तान-संगीि में स्वर का विस्तारः
• • अनहद -वबना आघाि की गूंज, यहग अथिा सािन की आनन्दायक द्धस्थवि,
• • स्र्ायी-गीि का िह चरण जी बार-बार गाया जािा है, िेक।
र्ावार्भ
यह संगिकार प्राचीनकाल से अपनी भाूवमका कह पूरी ईमानदारी एिं वनष्ठा से वनभाािा
आया है। जब गायक अंिरे की जविल िानहं और आलापहं में खह जािा है िथा सुर से
कहींभािककर अनहद में चला जािा है, िह ऐसे समय में संगिकार ही स्थायी कह संभााले
रहिा है। उसकी भाूवमका इस िरह की हहिी है जैसे िह आगे चलने िाले पवथक (
राहगीर) का छ
ू िा हुआ सामान बिहरकर अपने साथ लािा हह। साथ ही िह मुख्य गायक
कह उसक
े बीिे वदनहं की बाद भाी वदलािा है, जब यह मुख्य गायक नौवसद्धखया हुआ
करिा था। कहने का अवभाप्राय यह है वक जब कभाी गायक अंिरा (अंिरा गीि का चरण
) गािे हुए लंबी-लंबी िानहं क
े जंगल में उलि जािा है या वफर सरगम क
े साि स्वरहं कह
लॉिकर गीि क
े अथााि सरगम क
े पार अनहद (असीम आनंद बहूमानंद) में ड
ू ब जािा
है, िब संगिकार ही गीि क
े चरण से उसे िापस लािा है। संगिकार पीछे छ
ू िे सामान
कह समेिने िाले की भाााँवि गीि क
े स्थायी रूप कह संभााले रहने िाले का दावयत्व वनभाािा
है।
काव्य स ंदयभ
• खडी बहली का सुंदर प्रयहग है।
• कवि ने िान, सरगम, अनहद, संगिकार, स्थायी आवद शब्हं क
े प्रयहग से
यह स्पि कर वदया वक उन्ें संगीि से जुडे सूक्ष्माविसूक्ष्म शब्हं का ज्ञान है।
• अलंकार योजना-
• रुपक- जविल िानहं क
े जंगल में,
• उत्प्रेक्षा- जैसे समेििा हह मुख्य गायक का पीछे छ
ू िा हुआ सामान, जसे
उसे याद वदलािा हह उसका बचपन, जब िह नौवसद्धखया था।
• रचना छं द मुि है।
• कवििा गद्यात्मकिा क
े वनकि है वक
ं िु भाािहं की लय उसे संगीिात्मकिा
का जामा पहनािी है।
व्याख्या
िारसप्तक में जब बैठने लगिा है उसका गला
प्रेरणा साथ छहडिी हुई उत्साह अस्त हहिा हुआ
आिाज से राख जैसा क
ु छ वगरिा हुआ
िभाी मुख्य गायक कह ढाढ़स बंिािा
कहींसे चला आिा है संगिकार का स्वर
कभाी-कभाी िह यहं ही दे देिा है उसका साथ
यह बिाने क
े वलए वक िह अक
े ला नहींहै
और िह वक वफर से गाया जा सकिा है
गाया जा चुका रहग
और उसकी आिाज में जह एक वहचक सा़ि सुनाई देिी है
या अपने स्वर कह ऊ
ाँ चा न उठाने की जह कहवशश है
उसे विफलिा नहीं
उसकी मनुष्यिा समिा जाना चावहए।
शब्दार्भ-
• तारसप्तक- काफी ऊ
ाँ ची आिाज।
• ढॉढस बँधाना- िसल्ली देना ।
र्ावार्भ
जब िारसप्तक पर जाने क
े दौरान गायक का गला बैठने लगिा है और उसकी वहम्मि
जिाब देने लगिी है, िभाी संगिकार अपने स्वर से उसे सहारा देिा है। कभाी-कभाी
संगिकार इसवलए भाी गािा है िावक मुख्य गायक कह ये न लगे वक िह अक
े ला ही गा रहा
है। कभाी-कभाी िह इसवलए भाी गािा है िावक मुख्य गायक वकसी राग कह दहबारा गा
सक
े । इन सारी प्रवियाओं क
े दौरान संगिकार की आिाज हमेशा दबी हुई हहिी है।
ज्यादािर लहग इसे उसकी कमजहरी मान लेिे हैं, लेवकन ऐसा नहीं है। िह िह गायक की
आिाज कह प्रखर बनाने क
े वलए स्वयं त्याग करिा है और जानबूिकर अपनी आिाज कह
दबा लेिा है। इस प्रकार, मुख्य गायक क
े उत्साह कह बढ़ािे समय उसकी आिाज में
वहचक हहिी है, वहचवकचाहि हहिी है। यह वहचक जान-बूिकर संगिकार क
े द्वारा
अपनायी जािी है िावक मुख्य गायक का महत्त्व कम नहीं हह। िास्ति में यह संगिकार
की असफलिा नहीं, बद्धि उसकी मानिीयिा है, मनुष्यिा है। िह अपनी िुलना में मुख्य
गायक कह अविक महत्त्व देिा है।
र्ावार्भ
यह कवििा संगिकार क
े बारे में है, लेवकन यह हर उस व्यद्धि की िरफ इशारा
करिी है जह वकसी सहायक की भाूवमका में हहिा है। दुवनया क
े लगभाग हर क्षेत् में
वकसी एक व्यद्धि की सफलिा क
े पीछे कई लहगहं का यहगदान हहिा है। हम और
आप एक द्धखलाडी या अवभानेिा या नेिा क
े बारे में जानिे हैं जह सफलिा क
े वशखर
पर हहिा है। लेवकन हम उन लहगहं क
े बारे में नहीं जानिे, जह उस द्धखलाडी या
अवभानेिा या नेिा की सफलिा क
े वलए परदे क
े पीछे रहकर अथक पररश्रम करिे
हैं। िास्ति में, संगिकार लगािार यह कहवशश करिा है वक उसका स्वर मुख्य
गायक क
े स्वर से कहीं ऊ
ं चा न हह जाए। यह उसकी असफलिा नहीं हैं, न ही
कमजहरी और न ही हीनिा है, अवपिु यह िह उसकी मनुष्यिा है, वजसक
े पीछे
मानिीय भाािना वछपी रहिी है। दू सरे कह हीन या दबाकर अपनी महानिा
प्रदवशाि करना मनुष्यिा नहींहै। उसकी इस द्धस्थवि या उसक
े स्वाथारवहि साथ कह
इसी दृवि से मूल्ांवकि वकया जाना चावहए।
काव्य स ंदयभ
• कवििा में खडी बहली का प्रयहग है।
• शैली-कथात्मक और वचत्ात्मक शैवलयहं का सौंदया देखने यहग्य है।
• भााषा में प्रिाहमयिा और गंभाीरिा है।
अलंकार योजना-
• मानवीकरण अलंकार- प्रेरणा साथ छहडिी हुई, उत्साह अस्त हहिा हुआ ।
• उपमा अलंकार- आिाज से राख जैसा क
ु छ वगरिा हुआ ।
• पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार – कभाी-कभाी ।
QUIZ
TIME!
प्रस्तुि कवििा वकसकी ओर संक
े ि करिी है?
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मुख्य गायक की ओर मुख्य अभर्नेत्री की ओर
भकसी र्ी क्षेत्र में कायभरत सहायक
कमभचाररयोंकी ओर
मोहल्ले से
घर से सरगम क
े पार अनहद से
सर्ागार से
संगिकार मुख्य गायक कह कहााँ से िापस गीि क
े
चरण में लािा है?
संगिकार मुख्य गायक का स्वर कब साँभाालिा है?
जब गायक गुम हो जाता है।
जब गायक घबराने लगता है। जब वह मस्त हो सो जाता है।
जब तारसप्तक गाते समय
गायक का गला बैठने लगता है।
मुख्य गायक क
े समक्ष संगिकार क
े स्वर का कााँपना
उसकी कमजहरी नहींहै, अवपिु यह िह-
उसक
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प्रकट करता है।
उसक
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बोध कराता है
उसक
े अबोध होने का बोध कराता
है ।
उसक
े बुद् धूपन को दशाभता है।
संगिकार मुख्य गायक का सच्चा वमत् और सहायक
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जब वह उसक
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जब वह उसका मनोबल तोड़ता है।
जब वह उसक
े आत्मभवश्वास
को कम करता है।
जीिन हर क्षेत् में सफल व्यद्धि की सफलिा में
वकसका हाय हहिा है?
उसकी माँ की भिड़भकयाँ होती
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उसक
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का सहयोग होता है
उसक
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े साभर्योंकी डाँट होती है
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र्ारीपन तर्ा गंर्ीरता दशाभने
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रूखापन दशाभने क
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  • 2. लेखक पररचय मंगलेश डबराल कवि मंगलेश डबराल का जन्म विहरी गढ़िाल (उत्तरांचल) में काफलपानी नामक गााँि में सन 1948 में हुआ। देहरादू न में इनकी वशक्षा-दीक्षा हुई। जीिन- वनिााह क े वलए इन्हंने वहंदी पेविियि, प्रविपक्ष और आसपास नामक पत्हं में संपादन काया साँभााला। इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकावशि अमृि प्रभााि में भाी काया वकया। जनसत्ता अखबार में सावहत्य-संपादक का पद संभाालने क े बाद क ु छ समय सहारा समय में संपादन काया वकया। आजकल िे नेशनल बुक ििस्ट से जुडे हैं। सावहत्य अकादमी पुरस्कार, पहल सम्मान से सम्मावनि इनकी प्रवसद्धि अनुिादक क े रूप में भाी है। इनकी कवििाएं अंग्रेजी, रूसी, जमान, स्पानी, पहल्स्स्की और बल्गारी भााषाओं में भाी प्रकावशि हुई हैं। रचनाएाँ - ‘पहाड पर लालिेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जह देखिे हैं’ और ‘आिाज भाी एक जगह ‘ ।
  • 3. पाठ पररचय संगिकार’ कवििा क े माध्यम से कवि नािक, संगीि, व़िल्म िथा नृत्य आवद कलाओं में काम करने िाले सहायक कलाकारहं िथा वकसी भाी क्षेत् में कायारि सहायक कमाचाररयहं की ओर संक े ि करिा है। ये अपने मानििािादी दृविकहण से मुख्य व्यद्धि की भाूवमका कह विवशि बनाने का महत्त्वपूणा काया करिे हैं।
  • 4. व्याख्या मुख्य गायक क े चट्टान जैसे भाारी स्वर का साथ देिी िह आिाज सुंदर कमजहर कााँपिी हुई थी िह मुख्य गायक का छहिा भााई है या उसका वशष्य या पैदल चलकर सीखने आने िाला दू र का कहई ररश्तेेदार मुख्य गायक की गरज में िह अपनी गूाँज वमलािा आया है प्राचीन काल से संदर्भ- जब भाी कहींसंगीि का आयहजन हहिा है, िह मुख्य गायक क े साथ संगि करने िाला संगिकार अक्सर देखा जािा है। ज्यादािर लहग संगिकार कह महत्व नहींदेिे हैं और िह पृष्ठभाूवम का वहस्सा मात् बनकर रह जािा है। िह हमारे वलए एक गुमनाम चेहरा रहिा है। हम उसक े बारे में िरह-िरह की अिकलें लगािे हैं, लेवकन मुख्य गायक की प्रवसद्धि क े आलहक में हममें से बहुि कम ही लहग उस अनजाने संगिकार की महत्वपूणा भाूवमका पर विचार कर पािे हैं। शब्दार्भ- • संगतकार – मुख्य गायक क े साथ गायन करने िाला या िाद्य बजाने िाला कलाकार: • मुख्य गायक- िह गायक वजसकी आिाज सबसे अविक सुनाई देिी है । • गरज - ऊ ं ची गंभाीर आिाज।
  • 5. जब मुख्य गायक अपने चट्टान जैसे भाारी स्वर में गीि गािा है, िब संगिकार उसकी सहारा देकर संभााले रखिा है। संगिकार की आिाज मुख्य गायक की अपेक्षा कमजहर एिं कााँपिी हुई, लेवकन सुंदर हहिी है। यह संगिकार गायक का छहिा भााई, उसका वशष्य या संगीि सीखने का इच्छु क व्यद्धि पैदल चलकर आया हुआ उसका दू र का कहई ररश्तेेदार हह सकिा है। अथााि् कवि मुख्य गायक क े साथ गायन करने िाले या िाद्य यंत् बजाने िाले कलाकार की विशेषिाओं की ओर ध्यान वदलािे हुए कहिे हैं वक मुख्य गायक की चट्टान जैसी भाारी भारकम आिाज कह आनुपाविक लय प्रदान करने हेिु उसे बहविलिा से बचाने क े वलए या भाारीपन कह कम करने क े उद्देश्य से एक सुंदर, कमजहर िथा कााँपिी परपरािी आिाज साथ में सुनाई देिी है। कमजहर इसवलए वक मुख्य गायक की महानिा की िुलना में िह संगिकार नया-नया आया है, डर-डर कर गािा है। यह या िह मुख्य गायक का छहिा भााई है या उसका वशष्य या दू र दराज क े गााँि से पैदल चलकर संगीि की वशक्षा में पारंगि हहने अथााि अनुभािी गायकहं से सीखने की लालसा से आया है। प्राचीन काल से ऐसा की कहई संगिकार मुख्य गायक की ऊ ं ची गंभाीर आिाज से अपने सुर वमलािा आ रहा है। र्ावार्भ
  • 6. • खडी बहली का सुंदर प्रयहग है। • भााषा सरल िथा भाािानुक ू ल है। • भााषा में ित्सम िद्भि और उदूा शब्हं का वमला-जुला रूप नजर आिा है। • कवििा गद्यात्मकिा क े वनकि है, वक ं िु भाािहं कह लय उसे गीविमयिा का रूप प्रदान करिी है । • कवि कह संगीि का सूक्ष्माविसूक्ष्म ज्ञान है। काव्य स ंदयभ 1. उपमा – चट्टान जैसे भाारी स्वर । 2. अनुप्रास –‘भाारी स्वर’, सुंदर कमजहर, का कहई । 3. संदेह अलंकार– िह मुख्य गायक का छहिा भााई है या उसका वशष्य या पैदल चलकर सीखने आने िाला दू र का कहई ररश्तेेदार । अलंकार यहजना
  • 7. व्याख्या गायक जब अंिरे की जविल िानहं क े जंगल में खह चुका हहिा है। या अपने ही सरगम कह लााँघकर चला जािा है भािकिा हुआ एक अनहद में िब संगिकार ही स्थायी कह साँभााले रहिा है। जैसे समेििा हह मुख्य गायक का पीछे छ ू िा हुआ सामान जैसे उसे याद वदलािा हह उसका बचपन जब िह नौवसद्धखया था शब्दार्भ- • • अंतरा-स्थायी या िेक कह छहडकर गीि का चरण । • • तान-संगीि में स्वर का विस्तारः • • अनहद -वबना आघाि की गूंज, यहग अथिा सािन की आनन्दायक द्धस्थवि, • • स्र्ायी-गीि का िह चरण जी बार-बार गाया जािा है, िेक।
  • 8. र्ावार्भ यह संगिकार प्राचीनकाल से अपनी भाूवमका कह पूरी ईमानदारी एिं वनष्ठा से वनभाािा आया है। जब गायक अंिरे की जविल िानहं और आलापहं में खह जािा है िथा सुर से कहींभािककर अनहद में चला जािा है, िह ऐसे समय में संगिकार ही स्थायी कह संभााले रहिा है। उसकी भाूवमका इस िरह की हहिी है जैसे िह आगे चलने िाले पवथक ( राहगीर) का छ ू िा हुआ सामान बिहरकर अपने साथ लािा हह। साथ ही िह मुख्य गायक कह उसक े बीिे वदनहं की बाद भाी वदलािा है, जब यह मुख्य गायक नौवसद्धखया हुआ करिा था। कहने का अवभाप्राय यह है वक जब कभाी गायक अंिरा (अंिरा गीि का चरण ) गािे हुए लंबी-लंबी िानहं क े जंगल में उलि जािा है या वफर सरगम क े साि स्वरहं कह लॉिकर गीि क े अथााि सरगम क े पार अनहद (असीम आनंद बहूमानंद) में ड ू ब जािा है, िब संगिकार ही गीि क े चरण से उसे िापस लािा है। संगिकार पीछे छ ू िे सामान कह समेिने िाले की भाााँवि गीि क े स्थायी रूप कह संभााले रहने िाले का दावयत्व वनभाािा है।
  • 9. काव्य स ंदयभ • खडी बहली का सुंदर प्रयहग है। • कवि ने िान, सरगम, अनहद, संगिकार, स्थायी आवद शब्हं क े प्रयहग से यह स्पि कर वदया वक उन्ें संगीि से जुडे सूक्ष्माविसूक्ष्म शब्हं का ज्ञान है। • अलंकार योजना- • रुपक- जविल िानहं क े जंगल में, • उत्प्रेक्षा- जैसे समेििा हह मुख्य गायक का पीछे छ ू िा हुआ सामान, जसे उसे याद वदलािा हह उसका बचपन, जब िह नौवसद्धखया था। • रचना छं द मुि है। • कवििा गद्यात्मकिा क े वनकि है वक ं िु भाािहं की लय उसे संगीिात्मकिा का जामा पहनािी है।
  • 10. व्याख्या िारसप्तक में जब बैठने लगिा है उसका गला प्रेरणा साथ छहडिी हुई उत्साह अस्त हहिा हुआ आिाज से राख जैसा क ु छ वगरिा हुआ िभाी मुख्य गायक कह ढाढ़स बंिािा कहींसे चला आिा है संगिकार का स्वर कभाी-कभाी िह यहं ही दे देिा है उसका साथ यह बिाने क े वलए वक िह अक े ला नहींहै और िह वक वफर से गाया जा सकिा है गाया जा चुका रहग और उसकी आिाज में जह एक वहचक सा़ि सुनाई देिी है या अपने स्वर कह ऊ ाँ चा न उठाने की जह कहवशश है उसे विफलिा नहीं उसकी मनुष्यिा समिा जाना चावहए। शब्दार्भ- • तारसप्तक- काफी ऊ ाँ ची आिाज। • ढॉढस बँधाना- िसल्ली देना ।
  • 11. र्ावार्भ जब िारसप्तक पर जाने क े दौरान गायक का गला बैठने लगिा है और उसकी वहम्मि जिाब देने लगिी है, िभाी संगिकार अपने स्वर से उसे सहारा देिा है। कभाी-कभाी संगिकार इसवलए भाी गािा है िावक मुख्य गायक कह ये न लगे वक िह अक े ला ही गा रहा है। कभाी-कभाी िह इसवलए भाी गािा है िावक मुख्य गायक वकसी राग कह दहबारा गा सक े । इन सारी प्रवियाओं क े दौरान संगिकार की आिाज हमेशा दबी हुई हहिी है। ज्यादािर लहग इसे उसकी कमजहरी मान लेिे हैं, लेवकन ऐसा नहीं है। िह िह गायक की आिाज कह प्रखर बनाने क े वलए स्वयं त्याग करिा है और जानबूिकर अपनी आिाज कह दबा लेिा है। इस प्रकार, मुख्य गायक क े उत्साह कह बढ़ािे समय उसकी आिाज में वहचक हहिी है, वहचवकचाहि हहिी है। यह वहचक जान-बूिकर संगिकार क े द्वारा अपनायी जािी है िावक मुख्य गायक का महत्त्व कम नहीं हह। िास्ति में यह संगिकार की असफलिा नहीं, बद्धि उसकी मानिीयिा है, मनुष्यिा है। िह अपनी िुलना में मुख्य गायक कह अविक महत्त्व देिा है।
  • 12. र्ावार्भ यह कवििा संगिकार क े बारे में है, लेवकन यह हर उस व्यद्धि की िरफ इशारा करिी है जह वकसी सहायक की भाूवमका में हहिा है। दुवनया क े लगभाग हर क्षेत् में वकसी एक व्यद्धि की सफलिा क े पीछे कई लहगहं का यहगदान हहिा है। हम और आप एक द्धखलाडी या अवभानेिा या नेिा क े बारे में जानिे हैं जह सफलिा क े वशखर पर हहिा है। लेवकन हम उन लहगहं क े बारे में नहीं जानिे, जह उस द्धखलाडी या अवभानेिा या नेिा की सफलिा क े वलए परदे क े पीछे रहकर अथक पररश्रम करिे हैं। िास्ति में, संगिकार लगािार यह कहवशश करिा है वक उसका स्वर मुख्य गायक क े स्वर से कहीं ऊ ं चा न हह जाए। यह उसकी असफलिा नहीं हैं, न ही कमजहरी और न ही हीनिा है, अवपिु यह िह उसकी मनुष्यिा है, वजसक े पीछे मानिीय भाािना वछपी रहिी है। दू सरे कह हीन या दबाकर अपनी महानिा प्रदवशाि करना मनुष्यिा नहींहै। उसकी इस द्धस्थवि या उसक े स्वाथारवहि साथ कह इसी दृवि से मूल्ांवकि वकया जाना चावहए।
  • 13. काव्य स ंदयभ • कवििा में खडी बहली का प्रयहग है। • शैली-कथात्मक और वचत्ात्मक शैवलयहं का सौंदया देखने यहग्य है। • भााषा में प्रिाहमयिा और गंभाीरिा है। अलंकार योजना- • मानवीकरण अलंकार- प्रेरणा साथ छहडिी हुई, उत्साह अस्त हहिा हुआ । • उपमा अलंकार- आिाज से राख जैसा क ु छ वगरिा हुआ । • पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार – कभाी-कभाी ।
  • 15.
  • 16. प्रस्तुि कवििा वकसकी ओर संक े ि करिी है? मुख्य अभर्नेता की ओर मुख्य गायक की ओर मुख्य अभर्नेत्री की ओर भकसी र्ी क्षेत्र में कायभरत सहायक कमभचाररयोंकी ओर
  • 17. मोहल्ले से घर से सरगम क े पार अनहद से सर्ागार से संगिकार मुख्य गायक कह कहााँ से िापस गीि क े चरण में लािा है?
  • 18. संगिकार मुख्य गायक का स्वर कब साँभाालिा है? जब गायक गुम हो जाता है। जब गायक घबराने लगता है। जब वह मस्त हो सो जाता है। जब तारसप्तक गाते समय गायक का गला बैठने लगता है।
  • 19. मुख्य गायक क े समक्ष संगिकार क े स्वर का कााँपना उसकी कमजहरी नहींहै, अवपिु यह िह- उसक े मानवतावादी भवचारोंको प्रकट करता है। उसक े अज्ञानी होने का बोध कराता है उसक े अबोध होने का बोध कराता है । उसक े बुद् धूपन को दशाभता है।
  • 20. संगिकार मुख्य गायक का सच्चा वमत् और सहायक कब बनिा है? जब वह उसक े मनोबल और आत्मभवश्वास को बढाता है जब वह उसक े रहने, खाने- पीने की व्यवस्र्ा करता है। जब वह उसका मनोबल तोड़ता है। जब वह उसक े आत्मभवश्वास को कम करता है।
  • 21. जीिन हर क्षेत् में सफल व्यद्धि की सफलिा में वकसका हाय हहिा है? उसकी माँ की भिड़भकयाँ होती हैं उसक े सार् काम करने वालों का सहयोग होता है उसक े साभर्योंकी घृणा होती है उसक े साभर्योंकी डाँट होती है
  • 22. कवि ने मुख्य गायक की आिाज क े वलए ‘चट्टान’ उपमान कह क्हं चुना? कठोरता दशाभने क े भलए उसकी मजबूरी बताने क े भलए र्ारीपन तर्ा गंर्ीरता दशाभने क े भलए रूखापन दशाभने क े भलए
  • 23. िह आिाज सुंदर कमजहर कााँपिी हुई थी।‘ कवि वकसकी आिाज क े विषय में बाि कर रहे हैं? मुख्य गायक की संगतकार की स्वयं की भमत्र की