1. िवकासवाद
क� समस् यएं
डॉ. डॉमेिनक मबर्िनयां
िव�कपीिडया के अनुसार िवकासवाद क� धारणा है �क
समय के साथ जीव� म� �िमक-प�रवतर् होते ह�।
जीव� म� वातावरण और प�रिस्थितय के अनुसार या
अनुकूल कायर करने के िलए �िमक प�रवतर् तथा इसके
2. फलस्व� नई जाित के जीव� क� उत्पि को �म-िवकास
या उि�कास (Evolution) कहते ह�। �म-िवकास एक
मन् एवं गितशील ���या है िजसके फलस्व� आ�द युग
के सरल रचना वाले जीव� से अिधक िवकिसत ज�टल
रचना वाले नये जीव� क� उत्पि होती है। जीव िवज्ञ
म� �म-िवकास �कसी जीव क� आबादी क� एक पीढ़ी से
दूसरी पीढ़ी के दौरान जीन म� आया प�रवतर् है। हालां�क
�कसी एक पीढ़ी म� आये यह प�रवतर् ब�त छोटे होते ह�
ले�कन हर गुजरती पीढ़ी के साथ यह प�रवतर् संिचत हो
सकते ह� और समय के साथ उस जीव क� आबादी म� काफ�
प�रवतर् ला सकते ह�। यह ���या नई �जाितय� के
उ�व म� प�रिणत हो सकती है। दरअसल, िविभ�
�जाितय� के बीच समानता इस बात का �ोतक है �क
सभी ज्ञ �जाितयाँ एक ही आम पूव् (या पुश्तैन जीन
र
पूल) क� वंशज ह� और �िमक िवकास क� ���या ने इन्ह
िविभ� �जाितय� मे िवकिसत �कया है।
अं�ेजी लेखक जी.के . चेसटरटन ने एक बार कहा �क जादू और
िवकासवाद म� फकर के वल समय क� अवधी का है। उदाहरण के
िलए, यदी कोई आकर आपसे कहे क� संगमरमर के �कसी खान म�
जोर का िवस् ट �आ और वहा पर ताजमहल बन गया तो या तो
फ
आप उस व् ि� को झुठा कह�गे या �फर समझ�गे क� यह एक
मजाक है। िवज्ञ क� अलौ�कक-िवरोधी �वृि� को जो स् कार
व
नही करते वे तो इस बात को मान�गे �क यदी कु छ ऐसा सचमुच
3. �आ है तो ये �कसी का जादूई क�रश् या चमतकार ही होगा।
म
िवकासवाद का मानना है �क यह ताजमहल से भी ज�टल संसार
कई वष� म� �हमाण् म� िवस् ट� और िम�न� का संयोग ह�।
फ
मान� सैकड� बंदर कम् प् टर पर अंधाधुंद हाथ चलाते चलाते कई
शतािब् य� के पश् त अचानक कालीदास के शकुं तला को िलख
च
डाला। फकर यही होता �क कालीदास को मालूम था �क वह क् य
िलख रहा है परन् बनदर� को मालूम नही �क उनसे क् य रच
त
गया। िवकासवाद अंधा जगतीय संयोग पर आधा�रत है। इसिलए
सा�र, कै मु, और िनत् चे जैसे लेखक� ने िवकासवाद के संसार म�
मानव अनुभव को अथर्ही और अनथर् कहा है। नैितक
मूल् ,सत् ,न् यय ये सब बेअथर है। जगत का कोई बुि�मान �ोत
नही है तो जगत म� बुि� का ि़जकर एक मजाक ही है।
िवकासवाद क� समस् यएं कई है, उनम� से िनम् कु छ है।
1. िवकासवाद तकर के जमीन को उसके पांव तले से हटा कर
सत् के अिस्तत् को नकारता है। परन् सत् के अिस्तत्
त
को नकार कर वह सत् पर दावे का अिधकार को खो
देता है। यदी संसार अकािस्म िम�न� का संयोग है,तो
सत् िनरपेक नही हो सकता क् �क जगत क� ��याएं
य
तो प�रवतर्नशी है परन् सत् प�रवतर्नशी नही हो
त
4. सकता। सत् रिववार, सोमवार, और हर एक �दन एक
समान ही है। परन् िवकासवाद के अनुसार मानव
त
मिस्तष् अनु� के अकािस्म िम�न� का संयोग है।
इसिलए सत् का अिस्तत् िनराधार हो जाता है। ले�कन
यदी सत् का अिस्तत् नही है तो िवकासवादी कै से कह
सकता है �क िवकासवाद सत् है?
2. ऊष्म-गितक� के दुसरे िनयम के अनुसार जगत म� �ास ही
स् भािवक है। यदी एक झोपडी को ऐसा ही छोड़ �दया जाए तो
व
कु छ वषर पश् त वह अपने आप कोई महल नही बन जाएगा।
च
उसके िवपरीत वह खंडहर बन जाएगा। पुन: क् से उसे वापस
लाने के िलये बुि� और शि� क� आवश् क् है। परन्
त
त
िवकासवाद इस िनयम के िव�� म� कहता है �क जगत म� �ास
नही परन् िवकास स् भािवक है।
त
व
3. खोई किडय� क� समस् य। यदी मछली से म�डक का िवकास
�आ और वानर से मनुष् आए त� इन के मध् के कडी कहा गए?
वानर-मानव कही �दखते क् नही? उनका कही कोई जीवावशेष
य
कही नही िमले। िनयान् रथल, जावा,इत् यदी सब मनुष् जाती के
ही अवशेष सािबत �ए। िपल् डाउन तो धोखा सािबत �आ।