1. हिन्द ूधर्म र्ें 'पंच नित्य कर्म' का उल्लेख मर्लता िै जिन्िें 'िर हिदं ूके पांच नित्य कतमव्य' किा िाता ि।ै
उक्त पंच कर्म की उपयोगिता वैहदक काल से बिी िुई िै। इस पंच नित्य कर्म का सभी धर्म पालि करते
िैं। कतमव्यों का ववशद वववेचि धर्मसूत्रों तथा स्र्ृनतग्रथंों र्ें मर्लता िै। ये पांच कर्म िै-1.संध्योपासि,
2.उत्सव, 3.तीथ,म 4.संस्कार और 5.धर्म।
(1) संध्योपासि- संध्योपासि अथामत संध्या वंदि। र्ुख्य संगध पांच वक्त की िोती िै जिसर्ें से प्रात:
और संध्या की संगध का र्ित्व ज्यादा िै। संध्या वंदि को छोड़कर िो र्िर्ािी पूिा-आरती आहद करते
िैं उिका कोई धामर्मक र्ित्व िि ं। संध्या वंदि प्रनतहदि करिा िरूर िै। संध्या वंदि के दो तर के-
प्राथिमा और ध्याि।
संध्या वंदि के लाभ : प्रनतहदि संध्या वंदि करिे से ििां िर्ारे भीतर की िकारात्र्कता का निकास
िोता िै वि ं िर्ारे िीवि र्ें सदा शुभ और लाभ िोता रिता िै। इससे िीवि र्ें ककसी प्रकार का भी दुख
और ददम िि ं रिता।
(2) उत्सव- उि त्योिार, पवम या उत्सव को र्िािे का र्ित्व अगधक िै जििकी उत्पवि स्थािीय
परम्परा या संस्कृनत से ि िोकर जििका उल्लेख धर्मग्रथंों र्ें मर्लता िै। र्िर्ािे त्योिारों को र्िािे से
धर्म की िािी िोती िै। संक्ांनतयों को र्िािे का र्ित्व ि ज्यादा िै। एकादशी पर उपवास करिा और
साथ ि त्योिारों के दौराि र्ंहदर िािा भी उत्सव के अंतितम ि िै।
उत्सव का लाभ : उत्सव से संस्कार, एकता और उत्साि का ववकास िोता िै। पाररवाररक और सार्ाजिक
एकता के मलए उत्सव िरूर िै। पववत्र हदि और उत्सवों र्ें बच्चों के शामर्ल िोिे से उिर्ें संस्कार का
निर्ामण िोता िै वि ं उिके िीवि र्ें उत्साि बढ़ता िै। िीवि के र्ित्वपूणम अवसरों, एकादशी व्रतों की
पूनत मतथा सूयम संक्ांनतयों के हदिों र्ें उत्सव र्िाया िािा चाहिए।
(3) तीथ-म तीथ मऔर तीथयमात्रा का बिुत पुण्य िै। कौि-सा िै एक र्ात्र तीथ?म तीथामटि का सर्य क्या िै?
िो र्िर्ािे तीथ मऔर तीथ मपर िािे के सर्य िैं उिकी यात्रा का सिाति धर्म से कोई संबंध िि ं।
अयोधय्ा, काशी, र्थुरा, चार धार् और कैलाश र्ें कैलाश की र्हिर्ा ि अगधक िै।
लाभ : तीथ मसे ि वैराग्य और सौभाग्य की प्राजतत िोती िै। तीथ मसे ववचार और अिुभवों को ववस्तार
2. मर्लता िै। तीथ मयात्रा से िीवि को सर्झिे र्ें लाभ मर्लता िै। बच्चों को पववत्र स्थलों एव ंर्ंहदरों की
तीथ मयात्रा का र्ित्व बतािा चाहिए।
(4) संस्कार- संस्कारों के प्रर्ुख प्रकार सोलि बताए िए िैं जििका पालि करिा िर हिदं ूका कतमव्य िै।
इि संस्कारों के िार् िै-िभामधाि, पुंसवि, सीर्न्तोन्ियि, िातकर्म, िार्करण, निष्क्क्र्ण,
अन्िप्राशि, र्ुंडि, कणमवेधि, ववद्यारंभ, उपियि, वेदारंभ, केशांत, सम्वतमि, वववाि और अंत्येजष्क्ट।
प्रत्येक हिन्द ूको उक्त संस्कार को अच्छे से नियर्पूवमक करिा चाहिए। यि िर्ारे सभ्य और हिन्द ूिोिे
की निशािी िै।
लाभ : संस्कार िर्ें सभ्य बिाते िैं। संस्कारों से ि िर्ार पिचाि िै। संस्कार से िीवि र्ें पववत्रता,
सुख, शांनत और सर्ृद्गध का ववकास िोता िै। संस्कार ववरूद्ध कर्म करिा िंिल र्ािव की निशािी िै।
(5) धर्म- धर्म का अथ मयि कक िर् ऐसा कायम करें जिससे िर्ारे र्ि और र्जस्तष्क्क को शांनत मर्ले और
िर् र्ोक्ष का द्वार खोल पाएं। ऐसा कायम जिससे पररवार, सर्ाि, राष्क्र और स्वयं को लाभ मर्ले। धर्म
को पांच तर के से साधा िा सकता िै- 1.व्रत, 2.सेवा, 3.दाि, 4.यज्ञ और 5.धर्म प्रचार।
यज्ञ के अंतितम वेदाध्ययि आता िै जिसके अंतितम छि मशक्षा (वेदांि, सांख्य, योि, निरुक्त, व्याकरण
और छंद), और छि दशमि (न्याय, वैशेविक, र्ीर्ांसा, सांख्य, वेदांत और योि) को िाििे से िीवि के
प्रत्येक क्षेत्र र्ें सफलता प्रातत की िा सकती िै।
लाभ - व्रत से र्ि और र्जस्तष्क्क ििां सुदृढ़ बिता िै वि ं शर र स्वस्थ और बिवाि बिा रिता िै। दाि
से पुण्य मर्लता िै और व्यथ मकी आसजक्त िटती िै जिससे र्ृत्युकाल र्ें लाभ मर्लता िै। सेवा से र्ि
को ििां शांनत मर्लती िै वि ं धर्म की सेवा भी िोती िै। सेवा का कायम ि धर्म िै। यज्ञ िै िर्ारे कतमव्य
जिससे ऋवि ऋण, देव ऋण, वपतृ ऋण, धर्म ऋण, प्रकृनत ऋण और र्ातृ ऋण सर्ातत िोता िै।