3. आत्मा के रंग को लेकर ऋषष-मुनियों िे कई शोध
ककए है जिससे यह अिुमाि लगाया गया है कक
आत्मा का रंग िीला या आसमािी है | आसमािी रंग
को अधधक करीब मािते है |
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िो इस आत्मा को मारिेवाला समझता है तथा िो
इसको मरा मािता है, वे दोिों ही िहीं िािते;
क्योंकक यह आत्मा वास्तव में ि तो ककसी को
मारता है और ि ककसी के द्वारा मारा िाता है
(2.19)
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यह आत्मा ककसी काल में भी ि तो िन्मता है और
ि ही मरता है तथा ि यह उत्पन्ि होकर किर
होिेवाला ही है; क्योंकक यह अिन्मा, नित्य,
सिाति और पुराति है; शरीर के मारे िािे पर भी
यह िहीं मारा िाता || [2.20]
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िैसे मिुष्य पुरािे वस्रों को त्यागकर दूसरे िये
वस्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही िीवात्मा पुरािे
शरीरों को त्यागकर दूसरे िये शरीरों को प्राप्त होता
है| [2.22]
8. इस आत्मा को शस्र िहीं काट सकते, इसको आग
िहीं िला सकती, इसको िल िहीं गला सकता और
वायु िहीं सुखा सकता || [2.23]
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यह आत्मा अव्यक्त है, यह आत्मा अधिन्त्य है और
यह आत्मा षवकाररहहत कहा िाता है | इससे हे अिुुि
! इस आत्माको उपयुुक्त प्रकार से िािकर तू शोक
करिे योग्य िहीं है अथाुत्तुझे शोक करिा उधित
िहीं है || [2.25]
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कोई एक महापुरुष ही इस आत्मा को आश्ियु की
भानत देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही
इसके तत्त्व का आश्ियु की भांनत वणुि करता है
तथा दूसरा कोई अधधकारी पुरुष ही इसे आश्ियु की
भांनत सुिता है और कोई-कोई तो सुिकर भी
इसको िहीं िािता|| [2.29]
11. हे अिुुि ! यह आत्मा सबके शरीरों में सदा ही अवध्य है|
इस कारण सम्पूणु प्राणणयों के ललये तू शोक करिे योग्य
िहीं है | [2.30]
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12. इस देह में जस्थत यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है |
[13.22]
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