कर्म के प्रकार, कर्मफल का सिद्धांत कैसे काम करता है, पढ़ने लायक पुस्तक: कर्म संहिता, कर्मफल की महिमा, कर्मबंधन से मुक्ति के उपाय, भगवद्गीता का कर्मफल सिद्धांत, नित्य पांच आवश्यक कर्म, पढ़ने लायक पुस्तक: कर्म और रोग
2. कर्म के प्रकार
• विचध (शास्त्रोकत)
↓
यज्ञ, योग आहि
• ननषेध (र्ना ककए गए )
↓
र्द्यपान, हििंसा आहि
ननत्य कर्म → प्रनतहिन के कर्म
नैमर्नतक कर्म → विशेष पररस्स्त्िनतओिं र्ें ककए जाने िाले कर्म
काम्य कर्म → इच्छा से प्रेररत िो कर ककए जाने िाले कर्म
प्रायस्श्ित्त कर्म → पश्िाताप स्त्िरूप ककए जाने िाले कर्म
सिंचित कर्म → अनेक जन्र्ो के कर्म
3. कर्मफल का मसद्धािंत कै से कार् करता िै?
• यथाधेनुसहस्त्रेषुवत्सो ववन्दति मािरम्| एवं पूववकृ िकमवक िररमधधगच्छति ||
“स्जस प्रकार से िजारों गऊओिं र्ें से बछड़ा अपनी िी र्ाता के पास जा कर लगता िै और
उसी का िूध पीने लगता िै उसी भााँनत पूिम जन्र्-जन्र्ान्तर र्ें ककया िुआ कर्म उसके करने
िाले को प्राप्त िोता िै अिामत उसे िी अिश्य भोगना पड़ता िै |” गरुड़ पुराण (भगिान उिाि)
4. पुस्त्तक: कर्म सिंहिता के कु छ अिंश
लेखक: साध्िी युगल ननचध-कृ पा, र्ैरी िैररटेबल फाउिंडेशन, २००६, िेन्नई,
कमवफल की महहमा:
• कम्र्ओणिं......पररणर्ई| -भगिती सूर
सिंसारी जीिों के कर्म मभन्न-मभन्न िोने के कारण उनकी अिस्त्िा और
स्स्त्िनत र्ें भेि िै|
• र्छु आरे का सपम बनकर कर्मफल भोगने का विधान...
• “पोतो म्िारो, र्ािो म्िारो और जूतों भी म्िारो, तू बीि र्ें बोलण िालो
कु ण? जा रास्त्तो पकड़” ...
5. कर्मफल की र्हिर्ा
• सीता को िरण भयो, लिंका को जरण भयो, रािण र्रण भयो, सती के
सराप ते, ..... बड़े बड़े राजा के ते, सिंकट सिे अनेक, सोिन बखाना
एक, कमव के प्रिाप िे
• प्लेटों ने अपनी एक पुस्त्तक र्ें मलखा िै “ जीवात्माओं कक संख्या
तनश्चिि है| जन्र् के सर्य जीिात्र्ा का सृजन निीिं िोता िरन एक
शरीर से िूसरे शरीर र्ें प्रत्याितमन िोता िै|
• लेस्स्त्सिंग ने अपनी पुस्त्तक “The devine education of Human Race”
र्ें मलखा िै कक ववकास का उच्ििम लक्ष्य एक ही जीवन में पूरा नहीं
हो जािा िरन कई जन्र्ो के क्रर् र्ें पूणम िोता िै”
6. बौद्ध िशमन के अनुसार १० प्रकार के पाप
A. कानयक पाप (१) हििंसा (२) िोरी (३) कार्-िृनत सम्बन्धी िुरािार
B. िाचिक पाप (२) असत्य भाषण (२) कटु ििन (३) वपशुन ििन
C. र्ानमसक पाप (१) लोभ (२) र्ानमसक हििंसा या अहित चििंतन (३)
मर्थ्या दृस्टट
7. बौद्ध दर्वन के अनुसार १५ पुण्य
(१) श्रद्धा
(२) स्त्र्ृनत
(३) पाप कर्म के प्रनत
लज्जा (४) पाप कर्म के
प्रनत भय (५) अलोभ
(त्याग)
(६) अद्िेष (र्ैरी)
(७) सर्भाि
(८) र्न की पविरता
(९) शरीर की प्रसन्नता
(१०) र्न का िलकापन
(११) काया का िलकापन
(१२) र्न की र्ृिुता
(१३) शरीर की र्ृिुता
(१४) र्न की सरलता
(१५) शरीर की सरलता
8. कर्म-बिंधन के प्रकार और र्ुस्तत के उपाय
कमव-बंधन के प्रकार उदाहरण मुश्ति के उपाय
• स्त्पृटट कर्मबन्ध िल्िी का िाग क्षर्ा प्रािमना से
• बद्ध कर्मबन्ध तेल लगा िस्त्र पुण्य कर्ों से
• ननधत कर्मबन्ध अलकतरे का गाढ़ा लेप कहिन तपस्त्या-प्रायस्श्ित्त से
• ननकाचित कर्मबन्ध बिुत ज्यािा र्ैल कर्मफल को भुगतने से
9. भगिद् गीता का कर्मफल मसद्धािंत
• र्नुटय अन्ि-कालमें स्जस-स्जस भी भािको स्त्र्रण करता िुआ शरीर का त्याग
करता िै, उस-उसको िी प्राप्त िोता िै; तयोंकक िि सिा (जीिन भर) उसी भािसे
भावित रिा िै| -६.८
• तीनों िेिोंर्ें विधान ककये िुए सकामकमोंको करनेवाले, पापरहित र्नुटय र्ुझको
यज्ञों के द्िारा पूजकर स्त्िगमकी प्रास्प्त िािते िै; िे र्नुटय अपने पुण्यों के फलरूप
स्त्िगमलोकको प्राप्त िोकर स्त्िगमर्ें हिव्य िेिताओिंके भोगोंको भोगते िैं| िे उस
विशाल स्त्िगमलोकको भोगकर पुण्य क्षीण िोनेपर र्ृत्युलोकको प्राप्त िोते िै| इस
प्रकार िि बार-बार आिागर्न को प्राप्त िोते िै| जो बबना ककसी कार्ना के र्ुज
परर्ेश्िर को भजते िै िि र्ुतत िो जाते िै| - अध्याय ९
• यज्ञ, दान और िपरूप कर्म त्याग करनेके योग्य निीिं िै, बस्ल्क िि तो अिश्य
कत्तमव्य िै; तयोंकक यज्ञ, िान, और तप-ये तीनों िी कर्म बुद्चधर्ान पुरुषोंको पविर
करनेिाले िैं| अिंत: यज्ञ, िान, तप और भी सभी किवव्य कमों को आसस्तत और
फलों का त्याग करके अिश्य करना िाहिये, यि र्ेरा ननश्यय ककया िुआ उत्तर् र्त
िै| १८.५-६
10. भगिद् गीता का कर्मफल मसद्धािंत
• आत्र्ोद्धार के मलए अिामत भगिद् प्रास्प्त के मलए कर्म करने िाला कोई
पुरुष िुगमनत को प्राप्त निीिं िोता | योगभ्रटट पुरुष पुण्यिानो के लोकों को
अिामत स्त्िगामिी उत्तर् लोकोंको प्राप्त िोकर, उनर्ें बिुत िषोंतक ननिास
करके कफर शुद्ध आिरण िाले श्रीर्ान पुरुषों के घरर्ें जन्र् लेता िै| अििा
िैराग्यिान पुरुष उन लोकोंर्ें न जाकर ज्ञानिान योचगयोंके िी कु लर्ें जन्र्
लेता िै | परन्तु इस प्रकार का जो यि जन्र् िै, सो सिंसारर्ें ननिःसिंिेि अत्यिंत
िुलमभ िै| ििााँ उस पिले शरीरर्ें सिंग्रि ककये िुए बुद्चध-सिंयोगको अिामत्
सर्बुद्चधरूप योग के सिंस्त्कारों को अनायास िी प्राप्त िो जाता िै और उसके
प्रभािसे िि परर्ात्र्ा कक और आकवषमत ककया जाता िै और कफर
परर्ात्र्ाकी प्रास्प्तरूप मसद्चधके मलए पिलेसे भी बढ़कर प्रयत्न करता िै |
-६.४०-४४
12. कर्म और रोग
स्त्िार्ी मशिानन्ि, हिव्य जीिन सिंघ प्रकाशन,२००४
• कर्म और रोग
• कर्म और जन्र्
• कर्म और नकम
भगवद्गीिा का कमवफल ससद्धांि
• अध्याय १८ श्लोक २३-३९