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प्राचीन भारत में सम्वाद-
संचार ववचार
CONCEPT OF COMMUNICATION IN ANCIENT INDIA
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम ् ।
वर्षं तदभारतं नाम भारती यत्र सन्तततिः ।।
भारत
ववदेशी ववचारकों ने ननष्कर्ष-पूवषक क्या
कहा इस भारत के ववर्य में ?
आइये देखें
ये िैं- WILL DURANT
प्रख्यात अमरीकी लेखक- इततिासकार व दार्शतनक
क्या किा इन्िोंने ?
"India was the motherland of our race, and
Sanskrit the mother of Europe's languages: she
was the mother of our philosophy; mother,
through theArabs, of much of our
mathematics; mother, through the Buddha, of
the ideals embodied in Christianity; mother,
through the village community, of self-
government and democracy. Mother India is in
many ways the mother of us all".
"India will teach us the tolerance and gentleness of
mature mind, understanding spirit and a unifying,
pacifying love for all human beings."
•"It is true that even across the Himalayan barrier India has sent to the west, such gifts as grammar and logic, philosophy and fables, hypnotism and chess, and above all numerals
"It is true that even across the Himalayan
barrier India has sent to the west, such gifts
as grammar and logic, philosophy and
fables, hypnotism and chess, and above all
numerals and the decimal system."
ये िैं- MARK TWAIN (1835-1910)
ववश्वववख्यात अमरीकी लेखक और उपन्यासकार
इन्िोंने भारत के ववर्षय में किा-
"India is, the cradle of the human race, the
birthplace of human speech, the mother of
history, the grandmother of legend, and the
great grand mother of tradition. our most
valuable and most instructive materials in
the history of man are treasured up in India
only."
"So far as I am able to judge, nothing has been left undone,
either by man or nature, to make India the most extraordinary
country that the sun visits on his rounds. Nothing seems to have
been forgotten, nothing overlooked."
"India has two million gods, and
worships them all. In religion all other
countries are paupers; India is the only
millionaire."
ये िैं- WILLIAM JAMES (1842-1910)
अमरीकी चचककत्सक, मनोवैज्ञातनक और दार्शतनक
"From theVedas we learn
a practical art of surgery,
medicine, music, house
building under which
mechanized art is
included.They are
encyclopedia of every
aspect of life, culture,
religion, science, ethics,
law, cosmology and
meteorology."
प्रख्यात अंग्रेज भार्षाववद
SIR WILLIAM JONES (1746-1794)
"The Sanskrit
language, whatever
be its antiquity is of
wonderful structure,
more perfect than
the Greek, more
copious than the
Latin and more
exquisitely refined
than either."
जमशन ववद्वान MAX MULLER (1823-1900)
“If I were asked under
what sky the human
mind has most fully
developed some of its
choicest gifts, has
most deeply
pondered on the
greatest problems of
life, and has found
solutions, I should
point to India.”
जमशन वैज्ञातनक
ALBERT EINSTEIN (1879-1955)
"We owe a lot to
the Indians, who
taught us how to
count, without
which no
worthwhile
scientific discovery
could have been
made."
जमशन वैज्ञातनक
W. HEISENBERG (1901-1976)
"After the
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about Indian
philosophy, some
of the ideas of
Quantum Physics
that had seemed
so crazy suddenly
made much more
sense."
अमरीकी कवव, कथाकार
T. S. ELIOT (1888-1965)
“Indian
Philosopher’s
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Philosophers
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Schoolboys.”
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Bharatiya Sanskriti
dwells in theVedas. The
entire world admits the
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Tell me, why is the media
here so negative?Why are
we in India so embarrassed
to recognise our own
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a great nation.We have so
many amazing success
stories but we refuse to
acknowledge them.Why?
नारायण नारायण
देववर्षश नारद –
यत्र तत्र सवशत्र
ववचरण करने
वाले पौराणणक
सन्देर्-वािक
हिन्दू पौराणणक वांग्मय का एक मित्वपूणश पात्र िै नारद- देव-
ऋवर्ष नारद, एक ऐसा व्यक्क्तत्व क्जसके िाथ में वीणा िै,
खडताल िै..जो यत्र-तत्र-सवशत्र उपलब्ध िैं, सूचनाओं के भण्डार
िैं, देवताओं व रािसों दोनों के ववश्वसनीय पात्र िैं, संगीत-प्रेमी
िैं, सभी सांसाररक दृश्यों को सरस बनाते िुए भी स्वयं तन:स्पृि
िैं, कभी दो पिों में र्त्रुता का भाव उत्पन्न करते िैं कभी
ममत्रता का, कभी मेल कराते िैं कभी युद्ध, ककन्तु नारद के
सभी कृ त्यों का एक िी िेतु िै और वि िै लोक-मंगल | इसी
िेतु को मसद्ध करने के मलए नारद आकार्-पाताल एक करते िैं
| देव- दानव- यि- गन्धवश- ककन्नर ककसी को कोई सूचना-
समाचार प्राप्त करना िै तो करना िोगा नारद का आवािन,
नारद की ववश्वसनीयता CREDIBILITY अकल्पनीय िै, वाणी
सरस व ववश्लेर्षण सटीक | नारद कोरी कल्पना और मनघडंत
चचाशओं को कभी ववस्तार निीं देते, स्वयं आश्वस्त िुए बबना
ककसी समाचार का प्रसारण निीं करते और ककसी घटना के
वणशन के समय लोकहित उनके मलए सवोपरर िै |
द्वापर में कृ ष्ण द्वारा नरकासुर वध के पश्चात् जिााँ कृ ष्ण की
प्रर्ंसा जन-जन में व्याप्त थी, विीीँ नरकासुर के कारगार से मुक्त
१६ सिस्त्र राजकन्याओं को कृ ष्ण द्वारा अपनी पटरातनयां बनाने की
(काल्पतनक) बात जब नारद जी ने जनसमुदाय में व्याप्त देखी और
जब इस ववर्षय में जनसमुदाय ने नारद से प्रश्न ककये तो नारद कु छ
उत्तर हदए बबन चल पड़े द्वाररका (स्वयं सत्य का सािात्कार करने)
| मागश में जनश्रुतत के आधार पर कृ ष्ण के प्रतत नारद के मन में जो
रोर्ष व्याप्त था, विााँ पिुाँचने पर सब समाप्त, देखा कृ ष्ण ने नारद
का यथोचचत अमभवादन- पाद्पूजन ककया, रुक्क्मणी ने भी देववर्षश का
आदर सत्कार ककया ककन्तु.....नारद तो उन राजकन्याओं को देखने
को लालातयत थे | सब प्रकार से खोजबीन के उपरान्त पाया कक
कृ ष्ण ने उन राजकन्याओं के पुनवाशस तक उन्िें राज्याश्रय प्रदान
ककया िै, न कक अपनी पटरानी बनाया िै | ततनक कल्पना करें
वतशमान में ऐसी पररक्स्थततयों में MEDIA का BREKING NEWS क्या
रिा िोता ? क्या आश्चयश कक मिाभारत में भीष्म ने युचधक्ष्िर से
किा कक नारद आदर्श व्यक्क्तत्व िैं । श्री कृ ष्ण ने उग्रसेन से किा
कक नारद की ववर्ेर्षताएं अनुकरणीय िैं ।
पुराणों में नारद को भागवत संवाददाता के रूप में प्रस्तुत
ककया गया। यि भी सवशमान्य िै कक नारद की िी प्रेरणा
से वाल्मीकक ने रामायण जैसे मिाकाव्य और व्यास ने
श्रीमद्भगवद्गीता जैसे संपूणश भक्क्त काव्य की रचना की
। ऐसे नारद को कु छ मूढ़ लोग कलि वप्रय के रूप में भी
प्रस्तुत करते िैं, परन्तु नारद जब-जब कलि कराने की
भूममका में आते िैं तो उन पररक्स्थतयों का गिरा अध्ययन
करने से मसद्ध िोता िै कक नारद ने वववाद और संघर्षश को
भी लोकमंगल के मलए प्रयोग ककया िै । नारद कई रूपों
में श्रेष्ि व्यक्क्तत्व प्रदमर्शत करते िैं । संगीत में अपनी
अपूणशता ध्यान में आते िी उन्िोंने किोर तपस्या और
अभ्यास से एक उच्च कोहट के संगीतज्ञ बनने को भी
मसद्ध ककया । उन्िोंने संगीत गन्धवों से सीखा और
‘नारद संहिता’ ग्रंथ की रचना की । घोर तप करके ववष्णु
से संगीत का वरदान प्राप्त ककया ।
नारद के भक्क्त सूत्रों में उनके परमात्मा व भक्त के संबंधों की
व्याख्या से वे एक दार्शतनक के रूप में सामने आते िैं । परन्तु नारद
अन्य ऋवर्षयों, मुतनयों से इस प्रकार से मभन्न िैं कक उनका कोई
अपना आश्रम निीं िै। वे तनरंतर प्रवास पर रिते िैं, परन्तु यि
प्रवास व्यक्क्तगत निीं िै; इस प्रवास में भी वे समकालीन मित्वपूणश
देवताओं, मानवों व असुरों से संपकश करते िैं और उनके प्रश्न, उनके
वक्तव्य व उनके कटाि सभी को हदर्ा देते िैं । उनके िर परामर्श
में और प्रत्येक वक्तव्य में किीं-न-किीं लोकहित झलकता िै ।
उन्िोंने दैत्य अंधक को भगवान मर्व द्वारा ममले वरदान को अपने
ऊपर िी प्रयोग करने की सलाि दी । वि कृ ष्ण के दूत बनकर इन्द्र
के पास गए और उन्िें कृ ष्ण को पाररजात से वंचचत रखने का
अिंकार त्यागने की सलाि दी । यि और इस तरि के अनेक
परामर्श नारद के ववरोधाभासी व्यक्क्तत्व को उजागर करते हदखते िैं
। परन्तु समझने की बात यि िै कक किीं भी नारद का कोई तनजी
स्वाथश निीं हदखता िै । वे सदैव सामूहिक कल्याण की भावना रखते
िैं।
उन्िोंने आसुरी र्क्क्तयों को भी अपने
वववेक का लाभ पिुंचाया । जब हिरण्य
तपस्या करने के मलए मंदाक पवशत पर
चले गए तो देवताओं ने दानवों की
पक्त्नयों व महिलाओं का दमन प्रारंभ कर
हदया, परन्तु दूरदर्ी नारद ने हिरण्य की
पत्नी की सुरिा की क्जससे प्रहृलाद का
जन्म िो सका । परन्तु उसी प्रहृलाद को
अपनी आध्याक्त्मक चेतना से प्रभाववत
करके हिरण्य कमर्पु के अंत का साधन
बनाया ।
इन सभी गुणों के अततररक्त नारद की क्जन ववर्ेर्षताओं की ओर
कम ध्यान गया िै वि िै उनकी ‘संचार’ योग्यता व िमता । नारद
ने ‘वाणी’ का प्रयोग इस प्रकार ककया। क्जससे घटनाओं का सृजन
िुआ । नारद द्वारा प्रेररत िर घटना का पररणाम लोकहित में
तनकला । इसमलए वतशमान संदभश में यहद नारद को आज तक के
ववश्व का सवशश्रेष्ि ‘लोक संचारक’ किा जाये तो कु छ भी अततश्योक्क्त
निीं िोगी । नारद के िर वाक्य, िर वाताश और िर घटनाक्रम का
ववश्लेर्षण करने से यि बार-बार मसद्ध िोता िै कक वे एक अतत
तनपुण व प्रभावी ‘संचारक’ िैं । दूसरा उनका संवाद र्त-प्रततर्त
लोकहित में रिता था। वे अपना हित तो कभी निीं देखते, उन्िोंने
समूिों पर जाततयों आहद का भी अहित निीं साधा । उनके संवाद में
सदैव लोक कल्याण की भावना रिती थी । तीसरे, नारद द्वारा रचचत
भक्क्त सूत्र में ८४ सूत्र िैं। प्रत्यि रूप से ऐसा लगता िै कक इन
सूत्रों में भक्क्त मागश का दर्शन हदया गया िै और भक्त ईश्वर को
कै से प्राप्त करे ? यि साधन बताए गए िैं। परन्तु इन्िीं सूत्रों का यहद
सूक्ष्म अध्ययन करें तो के वल पत्रकाररता िी निीं पूरे मीडडया के
मलए र्ाश्वत मसद्धांतों का प्रततपालन दृक्ष्टगत िोता िै ।
नारद भक्क्त सूत्र का १५वां सूत्र इस प्रकार से िै-
!! तल्लक्षणानन वच्यन्ते नानामतभेदात !!
अथाशत मतों में ववमभन्नता व अनेकता िै, यिी पत्रकाररता का मूल
मसद्धांत िै । इसी सूत्र की व्याख्या नारद ने भक्क्त सूत्र १६ से १९
तक मलखी िै और बताया िै कक व्यास, गगश, र्ांडडल्य आहद
ऋवर्षमुतनयों ने भक्क्त के ववर्षय में ववमभन्न मत प्रकट ककए िैं ।
अंत में नारद ने अपना मत भी प्रकट ककया िै, परन्तु उसी के साथ
यि भी कि हदया कक ककसी भी मत को मानने से पिले स्वयं
उसकी अनुभूतत करना आवश्यक िै और तभी वववेकानुसार तनष्कर्षश
पर पिुंचना चाहिए । वतशमान में भी एक िी ववर्षय पर अनेक
दृक्ष्टयां िोती िैं, परन्तु पत्रकार या मीडडया कमी को सभी दृक्ष्टयों
का अध्ययन करके तनष्पि दृक्ष्ट लोकहित में प्रस्तुत करनी चाहिए
। यि ‘आदर्श पत्रकाररता’ का मूल मसद्धांत िो सकता िै ।
भक्क्त सूत्र २० में नारद ने किा िै –
!! अस्त्येवमेवम् !!
अथाशत यिी िै, परन्तु इसे र्ब्दों में व्यक्त निीं ककया जा सकता िै।
यि पत्रकाररता की सीमा का द्योतक िै।
इसी प्रकार सूत्र २६ में किा गया-
!! फलरूपत्वात् !!
अथाशत पत्रकाररता संचार का प्रारंभ निीं िै यि तो सामाक्जक संवाद
का पररणाम िै । यहद पत्रकाररता को इस दृक्ष्ट से देखा जाए तो
पत्रकार का दातयत्व किीं अचधक िो जाता िै ।
सूत्र ४३ भी पत्रकाररता के मलए मागशदर्शक िो सकता िै-
!! दुुःसंङ्गुः सवषथैव त्याज्युः !!
नकारात्मक पत्रकाररता को अनेक ववद्वानों और
श्रेष्िजनों ने नकारा । जबकक पक्श्चम दर्शन पर
आधाररत आज की पत्रकाररता के वल नकारात्मकता
को िी अपना आधार मानती िै और ‘कु त्ते को
काटने’ को समाचार मानती िै । परन्तु नारद ने
इस श्लोक में किा कक िर िाल में बुराई त्याग
करने योग्य िै । उसका प्रततपालन या प्रचार-प्रसार
निीं िोना चाहिए । नकारात्मक पत्रकाररता की
भूममका समाज में ववर्ष की तरि िै ।
सूत्र ४६ में-
!! कस्तरनत कस्तरनत मायाम ् ? युः सड्ांस्त्यजानत यो महानुभावं
सेवते, ननमषमो भवनत !!
नारद ने किा कक बुराई लिर के रूप में आती िै परन्तु र्ीघ्र िी वि
समुद्र का रूप ले लेती िै । आज समाचार वाहितनयों में अपराध
समाचार की यिी किानी बनती हदखती िै ।
सूत्र ५१ में नारद अमभव्यक्क्त की अपूणशता का वणशन करते िैं- !!
अननवषवनीयं प्रेमस्वरूपम ् !!
अथाशत वास्तववकता या संपूणश सत्य अवणशनीय िै इसमलए पत्रकाररता
में अधूरापन तो रिेगा िी । पािक, दर्शक व श्रोता को पत्रकाररता की
इस कमी की यहद अनुभूतत िो जाती िै तो समाज में मीडडया की
भूममका यथाथश को छू एगी ।
नारद भक्क्त के सूत्र ६३ से मीडडया की ववर्षय-वस्तु के बारे
में मागशदर्शन प्राप्त िोता िै-
!! स्रीधननास्स्तकवैररचरररं न श्रवणीयम् !!
नारद ने संवाद में कु छ ववर्षयों को तनर्षेध ककया िै। वि िैं
१) क्स्त्रयों व पुरुर्षों के र्रीर व मोि का वणशन
२) धन, धतनयों व धनोपाजशन का वणशन
३) नाक्स्तकता का वणशन
४) र्त्रु की चचाश ।
आज तो ऐसा लगता िै कक मीडडया के मलए ववर्षय-वस्तु
इन चारों के अततररक्त िै िी निीं ।
सूत्र ७२ एकात्मकता को पोवर्षत करने वाला अत्यंत सुंदर
वाक्य िै क्जसमें नारद समाज में भेद उत्पन्न करने वाले
कारकों को बताकर उनको तनर्षेध करते िैं।
!! नास्स्त तेर्ु जानतववद्यारूपकु लधनक्रियाददभेदुः !!
अथाशत जातत, ववद्या, रूप, कु ल, धन, कायश आहद के कारण
भेद निीं िोना चाहिए । पत्रकाररता ककसके मलए िो व
ककन के ववर्षय में िो यि आज एक मित्वपूणश ववर्षय िै ।
क्जसका समाधान इस सूत्र में ममलता िै । आज की
पत्रकाररता व मीडडया में चचाशओं का भी एक बड़ा दौर िै।
लगातार अथशिीन व अंतिीन चचाशएं मीडडया पर हदखती िैं
।
सूत्र ७८ में नारद ने कु छ गुणों का वणशन ककया िै
जो व्यक्क्तत्व में िोने िी चाहिए। पत्रकारों में भी
इन गुणों का समावेर् अवश्य लगता िै।
!! अदहंसासत्यशौचदयास्स्तक्याददचाररन्न्याणण पररपालनीयानन !!
यि गुण िै अहिंसा, सत्य, र्ुद्धता,
संवेदनर्ीलता व ववश्वास ।
अन्त में नारद के भक्क्त सूत्र ६० में सृजनात्मक प्रवृवत्तयों की चचाश
पर भी दृक्ष्टपात कर लें , सृजनात्मकता की प्रकक्रया का उल्लेख
इस तरि िै-
!! शास्न्तरूपात्परमानन्दरूपाच्च !!
‘सत्’ अथाशत अनुभव ‘चचत्’ अथाशत चेतना और ‘आनन्द’ अथाशत
अनुभूतत । अथाशत पत्रकाररता की प्रकक्रया भी ऐसी िी िै। वि
तथ्यों को समेटती िै। उनका ववश्लेर्षण करती िै व उसके बाद
उसकी अनुभूतत करके दूसरों के मलए अमभव्यक्त िोती िै परन्तु
इसका पररणाम दुख, ददश, ईष्या, प्रततद्वंद्चधता, द्वेर्ष व असत्य को
बांटना िो सकता िै या किर सुख, र्ांतत, प्रेम, सिनर्ीलता व मैत्री
का प्रसाद िो सकता िै। कौन सा ववकल्प चुनना िै यि समाज को
तय करना िैं। नारद के भक्क्त सूत्रों का संक्षिप्त ववश्लेर्षण
पत्रकाररता की दृक्ष्ट से यिां ककया गया िै।

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The thought of communication in ancient bharat

  • 1. प्राचीन भारत में सम्वाद- संचार ववचार CONCEPT OF COMMUNICATION IN ANCIENT INDIA
  • 2. उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम ् । वर्षं तदभारतं नाम भारती यत्र सन्तततिः ।।
  • 4. ववदेशी ववचारकों ने ननष्कर्ष-पूवषक क्या कहा इस भारत के ववर्य में ? आइये देखें
  • 5. ये िैं- WILL DURANT प्रख्यात अमरीकी लेखक- इततिासकार व दार्शतनक
  • 6. क्या किा इन्िोंने ? "India was the motherland of our race, and Sanskrit the mother of Europe's languages: she was the mother of our philosophy; mother, through theArabs, of much of our mathematics; mother, through the Buddha, of the ideals embodied in Christianity; mother, through the village community, of self- government and democracy. Mother India is in many ways the mother of us all".
  • 7. "India will teach us the tolerance and gentleness of mature mind, understanding spirit and a unifying, pacifying love for all human beings." •"It is true that even across the Himalayan barrier India has sent to the west, such gifts as grammar and logic, philosophy and fables, hypnotism and chess, and above all numerals "It is true that even across the Himalayan barrier India has sent to the west, such gifts as grammar and logic, philosophy and fables, hypnotism and chess, and above all numerals and the decimal system."
  • 8. ये िैं- MARK TWAIN (1835-1910) ववश्वववख्यात अमरीकी लेखक और उपन्यासकार
  • 9. इन्िोंने भारत के ववर्षय में किा- "India is, the cradle of the human race, the birthplace of human speech, the mother of history, the grandmother of legend, and the great grand mother of tradition. our most valuable and most instructive materials in the history of man are treasured up in India only."
  • 10. "So far as I am able to judge, nothing has been left undone, either by man or nature, to make India the most extraordinary country that the sun visits on his rounds. Nothing seems to have been forgotten, nothing overlooked." "India has two million gods, and worships them all. In religion all other countries are paupers; India is the only millionaire."
  • 11. ये िैं- WILLIAM JAMES (1842-1910) अमरीकी चचककत्सक, मनोवैज्ञातनक और दार्शतनक "From theVedas we learn a practical art of surgery, medicine, music, house building under which mechanized art is included.They are encyclopedia of every aspect of life, culture, religion, science, ethics, law, cosmology and meteorology."
  • 12. प्रख्यात अंग्रेज भार्षाववद SIR WILLIAM JONES (1746-1794) "The Sanskrit language, whatever be its antiquity is of wonderful structure, more perfect than the Greek, more copious than the Latin and more exquisitely refined than either."
  • 13. जमशन ववद्वान MAX MULLER (1823-1900) “If I were asked under what sky the human mind has most fully developed some of its choicest gifts, has most deeply pondered on the greatest problems of life, and has found solutions, I should point to India.”
  • 14. जमशन वैज्ञातनक ALBERT EINSTEIN (1879-1955) "We owe a lot to the Indians, who taught us how to count, without which no worthwhile scientific discovery could have been made."
  • 15. जमशन वैज्ञातनक W. HEISENBERG (1901-1976) "After the conversations about Indian philosophy, some of the ideas of Quantum Physics that had seemed so crazy suddenly made much more sense."
  • 16. अमरीकी कवव, कथाकार T. S. ELIOT (1888-1965) “Indian Philosopher’s subtleties make most of the great European Philosophers look like Schoolboys.”
  • 17. Dr. APJ Abdul Kalam (Former President of India) says- “Vedas are the oldest classics and the most precious treasures of India.The soul of Bharatiya Sanskriti dwells in theVedas. The entire world admits the importance ofVedas.”
  • 18. Dr. Kalam asks- Tell me, why is the media here so negative?Why are we in India so embarrassed to recognise our own strengths, our achievements?We are such a great nation.We have so many amazing success stories but we refuse to acknowledge them.Why?
  • 19. नारायण नारायण देववर्षश नारद – यत्र तत्र सवशत्र ववचरण करने वाले पौराणणक सन्देर्-वािक
  • 20. हिन्दू पौराणणक वांग्मय का एक मित्वपूणश पात्र िै नारद- देव- ऋवर्ष नारद, एक ऐसा व्यक्क्तत्व क्जसके िाथ में वीणा िै, खडताल िै..जो यत्र-तत्र-सवशत्र उपलब्ध िैं, सूचनाओं के भण्डार िैं, देवताओं व रािसों दोनों के ववश्वसनीय पात्र िैं, संगीत-प्रेमी िैं, सभी सांसाररक दृश्यों को सरस बनाते िुए भी स्वयं तन:स्पृि िैं, कभी दो पिों में र्त्रुता का भाव उत्पन्न करते िैं कभी ममत्रता का, कभी मेल कराते िैं कभी युद्ध, ककन्तु नारद के सभी कृ त्यों का एक िी िेतु िै और वि िै लोक-मंगल | इसी िेतु को मसद्ध करने के मलए नारद आकार्-पाताल एक करते िैं | देव- दानव- यि- गन्धवश- ककन्नर ककसी को कोई सूचना- समाचार प्राप्त करना िै तो करना िोगा नारद का आवािन, नारद की ववश्वसनीयता CREDIBILITY अकल्पनीय िै, वाणी सरस व ववश्लेर्षण सटीक | नारद कोरी कल्पना और मनघडंत चचाशओं को कभी ववस्तार निीं देते, स्वयं आश्वस्त िुए बबना ककसी समाचार का प्रसारण निीं करते और ककसी घटना के वणशन के समय लोकहित उनके मलए सवोपरर िै |
  • 21. द्वापर में कृ ष्ण द्वारा नरकासुर वध के पश्चात् जिााँ कृ ष्ण की प्रर्ंसा जन-जन में व्याप्त थी, विीीँ नरकासुर के कारगार से मुक्त १६ सिस्त्र राजकन्याओं को कृ ष्ण द्वारा अपनी पटरातनयां बनाने की (काल्पतनक) बात जब नारद जी ने जनसमुदाय में व्याप्त देखी और जब इस ववर्षय में जनसमुदाय ने नारद से प्रश्न ककये तो नारद कु छ उत्तर हदए बबन चल पड़े द्वाररका (स्वयं सत्य का सािात्कार करने) | मागश में जनश्रुतत के आधार पर कृ ष्ण के प्रतत नारद के मन में जो रोर्ष व्याप्त था, विााँ पिुाँचने पर सब समाप्त, देखा कृ ष्ण ने नारद का यथोचचत अमभवादन- पाद्पूजन ककया, रुक्क्मणी ने भी देववर्षश का आदर सत्कार ककया ककन्तु.....नारद तो उन राजकन्याओं को देखने को लालातयत थे | सब प्रकार से खोजबीन के उपरान्त पाया कक कृ ष्ण ने उन राजकन्याओं के पुनवाशस तक उन्िें राज्याश्रय प्रदान ककया िै, न कक अपनी पटरानी बनाया िै | ततनक कल्पना करें वतशमान में ऐसी पररक्स्थततयों में MEDIA का BREKING NEWS क्या रिा िोता ? क्या आश्चयश कक मिाभारत में भीष्म ने युचधक्ष्िर से किा कक नारद आदर्श व्यक्क्तत्व िैं । श्री कृ ष्ण ने उग्रसेन से किा कक नारद की ववर्ेर्षताएं अनुकरणीय िैं ।
  • 22. पुराणों में नारद को भागवत संवाददाता के रूप में प्रस्तुत ककया गया। यि भी सवशमान्य िै कक नारद की िी प्रेरणा से वाल्मीकक ने रामायण जैसे मिाकाव्य और व्यास ने श्रीमद्भगवद्गीता जैसे संपूणश भक्क्त काव्य की रचना की । ऐसे नारद को कु छ मूढ़ लोग कलि वप्रय के रूप में भी प्रस्तुत करते िैं, परन्तु नारद जब-जब कलि कराने की भूममका में आते िैं तो उन पररक्स्थतयों का गिरा अध्ययन करने से मसद्ध िोता िै कक नारद ने वववाद और संघर्षश को भी लोकमंगल के मलए प्रयोग ककया िै । नारद कई रूपों में श्रेष्ि व्यक्क्तत्व प्रदमर्शत करते िैं । संगीत में अपनी अपूणशता ध्यान में आते िी उन्िोंने किोर तपस्या और अभ्यास से एक उच्च कोहट के संगीतज्ञ बनने को भी मसद्ध ककया । उन्िोंने संगीत गन्धवों से सीखा और ‘नारद संहिता’ ग्रंथ की रचना की । घोर तप करके ववष्णु से संगीत का वरदान प्राप्त ककया ।
  • 23. नारद के भक्क्त सूत्रों में उनके परमात्मा व भक्त के संबंधों की व्याख्या से वे एक दार्शतनक के रूप में सामने आते िैं । परन्तु नारद अन्य ऋवर्षयों, मुतनयों से इस प्रकार से मभन्न िैं कक उनका कोई अपना आश्रम निीं िै। वे तनरंतर प्रवास पर रिते िैं, परन्तु यि प्रवास व्यक्क्तगत निीं िै; इस प्रवास में भी वे समकालीन मित्वपूणश देवताओं, मानवों व असुरों से संपकश करते िैं और उनके प्रश्न, उनके वक्तव्य व उनके कटाि सभी को हदर्ा देते िैं । उनके िर परामर्श में और प्रत्येक वक्तव्य में किीं-न-किीं लोकहित झलकता िै । उन्िोंने दैत्य अंधक को भगवान मर्व द्वारा ममले वरदान को अपने ऊपर िी प्रयोग करने की सलाि दी । वि कृ ष्ण के दूत बनकर इन्द्र के पास गए और उन्िें कृ ष्ण को पाररजात से वंचचत रखने का अिंकार त्यागने की सलाि दी । यि और इस तरि के अनेक परामर्श नारद के ववरोधाभासी व्यक्क्तत्व को उजागर करते हदखते िैं । परन्तु समझने की बात यि िै कक किीं भी नारद का कोई तनजी स्वाथश निीं हदखता िै । वे सदैव सामूहिक कल्याण की भावना रखते िैं।
  • 24. उन्िोंने आसुरी र्क्क्तयों को भी अपने वववेक का लाभ पिुंचाया । जब हिरण्य तपस्या करने के मलए मंदाक पवशत पर चले गए तो देवताओं ने दानवों की पक्त्नयों व महिलाओं का दमन प्रारंभ कर हदया, परन्तु दूरदर्ी नारद ने हिरण्य की पत्नी की सुरिा की क्जससे प्रहृलाद का जन्म िो सका । परन्तु उसी प्रहृलाद को अपनी आध्याक्त्मक चेतना से प्रभाववत करके हिरण्य कमर्पु के अंत का साधन बनाया ।
  • 25. इन सभी गुणों के अततररक्त नारद की क्जन ववर्ेर्षताओं की ओर कम ध्यान गया िै वि िै उनकी ‘संचार’ योग्यता व िमता । नारद ने ‘वाणी’ का प्रयोग इस प्रकार ककया। क्जससे घटनाओं का सृजन िुआ । नारद द्वारा प्रेररत िर घटना का पररणाम लोकहित में तनकला । इसमलए वतशमान संदभश में यहद नारद को आज तक के ववश्व का सवशश्रेष्ि ‘लोक संचारक’ किा जाये तो कु छ भी अततश्योक्क्त निीं िोगी । नारद के िर वाक्य, िर वाताश और िर घटनाक्रम का ववश्लेर्षण करने से यि बार-बार मसद्ध िोता िै कक वे एक अतत तनपुण व प्रभावी ‘संचारक’ िैं । दूसरा उनका संवाद र्त-प्रततर्त लोकहित में रिता था। वे अपना हित तो कभी निीं देखते, उन्िोंने समूिों पर जाततयों आहद का भी अहित निीं साधा । उनके संवाद में सदैव लोक कल्याण की भावना रिती थी । तीसरे, नारद द्वारा रचचत भक्क्त सूत्र में ८४ सूत्र िैं। प्रत्यि रूप से ऐसा लगता िै कक इन सूत्रों में भक्क्त मागश का दर्शन हदया गया िै और भक्त ईश्वर को कै से प्राप्त करे ? यि साधन बताए गए िैं। परन्तु इन्िीं सूत्रों का यहद सूक्ष्म अध्ययन करें तो के वल पत्रकाररता िी निीं पूरे मीडडया के मलए र्ाश्वत मसद्धांतों का प्रततपालन दृक्ष्टगत िोता िै ।
  • 26. नारद भक्क्त सूत्र का १५वां सूत्र इस प्रकार से िै- !! तल्लक्षणानन वच्यन्ते नानामतभेदात !! अथाशत मतों में ववमभन्नता व अनेकता िै, यिी पत्रकाररता का मूल मसद्धांत िै । इसी सूत्र की व्याख्या नारद ने भक्क्त सूत्र १६ से १९ तक मलखी िै और बताया िै कक व्यास, गगश, र्ांडडल्य आहद ऋवर्षमुतनयों ने भक्क्त के ववर्षय में ववमभन्न मत प्रकट ककए िैं । अंत में नारद ने अपना मत भी प्रकट ककया िै, परन्तु उसी के साथ यि भी कि हदया कक ककसी भी मत को मानने से पिले स्वयं उसकी अनुभूतत करना आवश्यक िै और तभी वववेकानुसार तनष्कर्षश पर पिुंचना चाहिए । वतशमान में भी एक िी ववर्षय पर अनेक दृक्ष्टयां िोती िैं, परन्तु पत्रकार या मीडडया कमी को सभी दृक्ष्टयों का अध्ययन करके तनष्पि दृक्ष्ट लोकहित में प्रस्तुत करनी चाहिए । यि ‘आदर्श पत्रकाररता’ का मूल मसद्धांत िो सकता िै ।
  • 27. भक्क्त सूत्र २० में नारद ने किा िै – !! अस्त्येवमेवम् !! अथाशत यिी िै, परन्तु इसे र्ब्दों में व्यक्त निीं ककया जा सकता िै। यि पत्रकाररता की सीमा का द्योतक िै। इसी प्रकार सूत्र २६ में किा गया- !! फलरूपत्वात् !! अथाशत पत्रकाररता संचार का प्रारंभ निीं िै यि तो सामाक्जक संवाद का पररणाम िै । यहद पत्रकाररता को इस दृक्ष्ट से देखा जाए तो पत्रकार का दातयत्व किीं अचधक िो जाता िै ।
  • 28. सूत्र ४३ भी पत्रकाररता के मलए मागशदर्शक िो सकता िै- !! दुुःसंङ्गुः सवषथैव त्याज्युः !! नकारात्मक पत्रकाररता को अनेक ववद्वानों और श्रेष्िजनों ने नकारा । जबकक पक्श्चम दर्शन पर आधाररत आज की पत्रकाररता के वल नकारात्मकता को िी अपना आधार मानती िै और ‘कु त्ते को काटने’ को समाचार मानती िै । परन्तु नारद ने इस श्लोक में किा कक िर िाल में बुराई त्याग करने योग्य िै । उसका प्रततपालन या प्रचार-प्रसार निीं िोना चाहिए । नकारात्मक पत्रकाररता की भूममका समाज में ववर्ष की तरि िै ।
  • 29. सूत्र ४६ में- !! कस्तरनत कस्तरनत मायाम ् ? युः सड्ांस्त्यजानत यो महानुभावं सेवते, ननमषमो भवनत !! नारद ने किा कक बुराई लिर के रूप में आती िै परन्तु र्ीघ्र िी वि समुद्र का रूप ले लेती िै । आज समाचार वाहितनयों में अपराध समाचार की यिी किानी बनती हदखती िै । सूत्र ५१ में नारद अमभव्यक्क्त की अपूणशता का वणशन करते िैं- !! अननवषवनीयं प्रेमस्वरूपम ् !! अथाशत वास्तववकता या संपूणश सत्य अवणशनीय िै इसमलए पत्रकाररता में अधूरापन तो रिेगा िी । पािक, दर्शक व श्रोता को पत्रकाररता की इस कमी की यहद अनुभूतत िो जाती िै तो समाज में मीडडया की भूममका यथाथश को छू एगी ।
  • 30. नारद भक्क्त के सूत्र ६३ से मीडडया की ववर्षय-वस्तु के बारे में मागशदर्शन प्राप्त िोता िै- !! स्रीधननास्स्तकवैररचरररं न श्रवणीयम् !! नारद ने संवाद में कु छ ववर्षयों को तनर्षेध ककया िै। वि िैं १) क्स्त्रयों व पुरुर्षों के र्रीर व मोि का वणशन २) धन, धतनयों व धनोपाजशन का वणशन ३) नाक्स्तकता का वणशन ४) र्त्रु की चचाश । आज तो ऐसा लगता िै कक मीडडया के मलए ववर्षय-वस्तु इन चारों के अततररक्त िै िी निीं ।
  • 31. सूत्र ७२ एकात्मकता को पोवर्षत करने वाला अत्यंत सुंदर वाक्य िै क्जसमें नारद समाज में भेद उत्पन्न करने वाले कारकों को बताकर उनको तनर्षेध करते िैं। !! नास्स्त तेर्ु जानतववद्यारूपकु लधनक्रियाददभेदुः !! अथाशत जातत, ववद्या, रूप, कु ल, धन, कायश आहद के कारण भेद निीं िोना चाहिए । पत्रकाररता ककसके मलए िो व ककन के ववर्षय में िो यि आज एक मित्वपूणश ववर्षय िै । क्जसका समाधान इस सूत्र में ममलता िै । आज की पत्रकाररता व मीडडया में चचाशओं का भी एक बड़ा दौर िै। लगातार अथशिीन व अंतिीन चचाशएं मीडडया पर हदखती िैं ।
  • 32. सूत्र ७८ में नारद ने कु छ गुणों का वणशन ककया िै जो व्यक्क्तत्व में िोने िी चाहिए। पत्रकारों में भी इन गुणों का समावेर् अवश्य लगता िै। !! अदहंसासत्यशौचदयास्स्तक्याददचाररन्न्याणण पररपालनीयानन !! यि गुण िै अहिंसा, सत्य, र्ुद्धता, संवेदनर्ीलता व ववश्वास ।
  • 33. अन्त में नारद के भक्क्त सूत्र ६० में सृजनात्मक प्रवृवत्तयों की चचाश पर भी दृक्ष्टपात कर लें , सृजनात्मकता की प्रकक्रया का उल्लेख इस तरि िै- !! शास्न्तरूपात्परमानन्दरूपाच्च !! ‘सत्’ अथाशत अनुभव ‘चचत्’ अथाशत चेतना और ‘आनन्द’ अथाशत अनुभूतत । अथाशत पत्रकाररता की प्रकक्रया भी ऐसी िी िै। वि तथ्यों को समेटती िै। उनका ववश्लेर्षण करती िै व उसके बाद उसकी अनुभूतत करके दूसरों के मलए अमभव्यक्त िोती िै परन्तु इसका पररणाम दुख, ददश, ईष्या, प्रततद्वंद्चधता, द्वेर्ष व असत्य को बांटना िो सकता िै या किर सुख, र्ांतत, प्रेम, सिनर्ीलता व मैत्री का प्रसाद िो सकता िै। कौन सा ववकल्प चुनना िै यि समाज को तय करना िैं। नारद के भक्क्त सूत्रों का संक्षिप्त ववश्लेर्षण पत्रकाररता की दृक्ष्ट से यिां ककया गया िै।