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 परमात्मा िशव
यानी रचियता
 देवता शंकर यानी
िशव की रचना
 िशविनराकारज्योित
स्वरूपपरमात्माहैं
 शंकर आकारी
देवता हैं
 िशवकल्याणकारीहैं  शंकर िवनाशकारी हैं
रचियता और
रचना में भेद
समझना सबसे
िनणार्यक होगा.
िशव और शंकर
में जो महान अंतर
है, उसे जनमानस
आत्मसात करे,
तभी सतयुग का
अनावरण होगा और खोया हुआ राज-भाग्य पुन: �ाप्त
होगा. िशव िनराकार भगवान हैं, िजन्हें सवर् धमर् ज्योित
स्वरूप में मानते हैं. शंकर परमात्मा िशव की रचना हैं.
अनु दीदी
िनराकार परमिपता
परमात्मा िशव
का िनरंतर ध्यान
करनेवाले शंकर
बहुत बड़� िशक्षक
हैं. वैसे िशक्षक,
जो स्वयं �ै�क्टकल
करक� िदखाते हैं.
शंकर की िशक्षा
और मु�ा िसफ� पावर्ती हीं नहीं ब�ल्क हम सबको को
अमर बनाने वाली है. िशव का िनरंतर ध्यान ही तो
अमर बनाने वाली कथा है. शंकर �ेष्ठ मागर्दशर्क हैं.
कमला दीदी
िवचारणीयबातें : पढ़�जरूरकालच� घूम जाता है, क�वल स्मृित रह जाती है. उसी स्मृित को पुन: ताजा
करने क� िलए यादगारें बनाई जाती हैं, कथाएं िलखी जाती हैं, जन्म िदवस मनाए
जाते हैं, िजनमें ��ा, �ेम, �ेह, स�ावना का पुट होता है. परंतु एक वह िदन
भी आता है, जबिक ��ा और �ेह का लोप हो जाता है और रह जाती है क�वल
परम्परा. यह कहना अनुिचत नहीं होगा िक आज पवर् भी उसी परम्परा को िनभाने
मा� क� िलए मनाये जा रहे हैं. िशव कौन है? उसने क्या िकया और कब िकया?
यिद यह जानते होते तो महािशवराि� िसफ� पूजा-पाठ तक सीिमत नहीं रह जाती.
एक ओर वष� से महािशवराि� मनाई जा रही है, तो दूसरी ओर प�रवार व समाज
में उच्चछ��खलता, अराजकता, अनुशासनहीनता, कलह-क्लेश, वगर्-संघषर्, दुख-
अशांित बढ़ती गयी है. िपछले 82 वष� से िनराकार परमिपता परमात्मा िशव इस
धरती पर आकर हमें ज्ञान दे रहे हैं, िजसे नहीं ले पाने क� कारण प�रवार व समाज
में िवक�ितयां बढ़ती गयी हैं. इितहास का िसंहावलोकन करने से हम इसी िनष्कषर्
पर पहुंचते हैं िक परमिपता
परमात्मा िशव ही िवश्व क�
इितहास की धुरी अथवा क��
िबंदू हैं. यिद हम भारत क�
�ाचीन कथा सािहत्य जैसे
िक पुराण उठाकर देखें तो
उसका �ारंभ ही इसी कथन
से होता है िक “जब संसार का
महािवनाश हुआ और िवश्व का
एक बहुत बड़ा भाग जलम�
था, तब एक अंडाकार �काश
(भगवान िशव) �कट हुआ,
िजसका पार पाने क� िलए
�ह्माजी की होड़ लग गयी.
अंत में उस ज्योित स्वरूप िशव
ने अपना प�रचय स्वयं ही
िदया और �ह्माजी को कहा
िक वे सृ�ष्ट क� नविनमार्ण क�
कायर् क� िनिमत बनें.” कथाकारों ने इस वृतांत को कौतुहल का िवषय बनाने क�
िलए रोचकता, कल्पना, िक�वदन्ती, अितश्यो�क्त, अितरंजना इत्यािद का पुट देकर
कहा. परन्तु इसका यह भाव तो है िक जब पुरानी सृ�ष्ट का िवनाश हो रहा था और
नयी सृ�ष्ट का अभ्युदय होने जा रहा था तब परमिपता परमात्मा िशव ने जनमानस
को अपने रूप का िदव्य साक्षात्कार कराया था. गोया इितहास का �ारम्भ िशव
परमात्मा क� ही आदेश-िनद�श-उपदेश से हुआ है.
िशव की बारात का भी िवशेष महत्व है. परमिपता परमात्मा िशव समस्त
आत्मा� को पिव� बनाकर उनक� पथ �दशर्क बनकर परमधाम वापस ले जाते हैं,
इसिलए उन्हें आशुतोष व भोलानाथ भी कहते हैं क्योंिक वह शी� ही वरदान देने वाले
व �स� होने वाले हैं. िजस �त से परमिपता परमात्मा �स� होते हैं वह है �ह्मचयर्
�त. यही सच्चा उपवास है क्योंिक इसक� पालन से मनुष्यात्मा को परमात्मा का
सामीप्य �ाप्त होता है. इसी �कार एक रात जागरण करने से अिवनाशी �ा�प्त नहीं
होती ब�ल्क अब जो किलयुग रूपी महाराि� चल रही है उसमें आत्मा को ज्ञान �ारा
जागृत करना ही जागरण है. इस जागरण �ारा ही मु�क्त जीवनमु�क्त �ाप्त होती है.
�जािपता �ह्मा
संस्थापक बह्माक�मारीज
अमृतवचन
महािशवराि�
महानतम पवर्
किलयुगक�खत्महोनेऔर
सतयुगक�आरंभहोनेक�वतर्मान
संगमपरसुनहराअवसर
बनायेंआनेवालीदैवीय
सतयुगीसृ�ष्टमें
अपनास्थान
वींि�मूितर्
िशवजयंती
महोत्सव
वष�सेइसधरतीपर
अवत�रतहोकरपरमात्मा
कररहेहैंअपनािदव्यकतर्व्य
वींि�मूितर्
828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282 वष�सेइसधरतीपर
828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282सौगात
अभीनहींतोकभीनहीं
शंकरकीतरहिनराकारपरमिपतापरमात्मािशवमेंध्यानम�होनाहीसच्चीमहािशवराि�
गीता का भगवान अपना वादा िनभाने 82 वषर् पूवर् इस
धरा पर पधार चुक� हैं. िपछले 82 वष� से परमात्मा अपना
कतर्व्य िनभा रहे हैं. किलयुग अपने अंितम चरण में पहुंच
चुका है. वतर्मान युग ‘संगम’ का युग है. यानी किलयुग
समाप्त और सतयुग आरंभ होनेवाला है.
सृ�ष्ट च� की अविध मा� 5000 वषर् होती है. यानी
सृ�ष्ट का �थम चरण सतयुग 1250 वष� का, दूसरा
चरण �ेतायुग 1250 वष� का, तीसरा चरण �ापर युग
1250 वष� का और अंत में किलयुग 1250 वष� का.
किलयुग क� अंितम चरण में 100 वष� का ‘संगम युग’
होता है. वतर्मान समय ‘संगम युग’ ही है.
आज तक हमें यही बताया गया है िक मनुष्यात्मा 84
लाख योिनयां धारण करती हैं. यह गलत है. सच तो यह
है िक 5000 वष� क� सृ�ष्ट च� में मनुष्यात्मा� का मा�
84 जन्म होता है. मनुष्यात्मा� का सतयुग में क�ल 8
जन्म, �ेतायुग में क�ल 12 जन्म, �ापर में क�ल 21 जन्म
और िफर किलयुग में 42 जन्म होता है. अंत में एक जन्म
‘संगम युग’ में होता, परमात्मा का प�रचय िमलने क� बाद.
जैसे आम की गुठली से िमचर् पैदा नहीं हो सकता, उसी
तरह मनुष्यात्मा� क� “आत्मा रूपी बीज” से कोई पशु-
पक्षी पैदा नहीं हो सकता. “जैसा बीज वैसा ही वृक्ष होता
है.” इसिलए मनुष्यात्माएं पशु-पक्षी आिद 84 लाख
योिनयों में जन्म नहीं लेतीं. मनुष्यात्माएं सारे कल्प में
मनुष्य-योिन में ही अिधक-से अिधक 84 जन्म और
पुनजर्न्म लेकर अपने-अपने कम� क� अनुरूप सुख-
दुःख भोगती हैं.
परमात्मा धरा पर आकर तीनों देवता� �ह्मा, िबष्णु और
शंकर की रचना करते हैं. िफर इन तीनों देवता� क�
माध्यम से सृ�ष्ट का नवीनीकरण करते हैं. इस िलए िशव
को देवों का देव महादेव भी कहा गया है.
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जािनए,सतयुगमें
आपक�िलएक्याहैखास
 खुिशयों की शहनाई
सदा खुिशयों की शहनाई ऑटोमेिटकली बजती
रहेंगी. बजाने की जरूरत नहीं पड़�गी. रचना
वनस्पित क� पत्तों क� िहलने से िविभ� �कार क�
नैचुरल साज बजायेगी. वृक्ष क� पत्तों का झूलना,
िहलना िभ�-िभ� �कार क� नैचुरल साज होंगे.
आजकल अनेक �कार क� साज आिट�िफिशयल
बनाते हैं वैसे पंिछयों की बोली वैराइटी साज
होगी.
 चैतन्य िखलौने होंगे
पंछी चैतन्य िखलौने क� समान अनेक �कार क�
खेल आपको िदखायेंगे. जैसे आजकल यहां मनुष्य
िभ�-िभ� �कार की बोिलयां सीखते हैं मनोरंजन
क� िलए, वैसे वहां क� पंछी िभ�-िभ� सुन्दर
आवाजों से आपक� इशारों पर मनोरंजन करेंगे.
 फल वैराइटी रसना वाले होंगे
िविभ� तरह क� फल होंगे. सारे फल बेजोड़
स्वाद व िमठास से भरे होंगे. आज जैसे हम
अलग-अलग नमक, मीठा अथवा मसाला आिद
डालकर िजस तरह का स्वाद तैयार करते हैं,
वैसा स्वाद सतयुग की सृ�ष्ट में फलों में नैचुरल
होगा. जैसा स्वाद चािहए, वैसा नैचुरल फल
तैयार कर सकते हैं. पत्तों की स�ब्जयां नहीं
होंगी. फल और फ�ल की स�ब्जयां होंगी.
 आप िपयेंगे क्या?
दूध की तो निदयां होंगी. नैचुरल रस क� फल
अलग होंगे, खाने क� अलग, पीने क� अलग होंगे.
मेहनत करक� रस िनकालना नहीं पड़�गा. हरेक
फल इतना भरपूर होगा जैसे अभी ना�रयल का
पानी पीते हैं. फल उठाया, जरा सा दबाया और
रस पी िलया.
 नहाने की व्यवस्था
नहाने का पानी िबल्क�ल गंगाजल की तरह
होगा. पहाड़ों की जड़ी-बूिटयों क� कारण िवशेष
महत्व होगा. पहाड़ों पर खुशबू की जड़ी-बूिटयों
क� समान बूिटयां होंगी, तो वहां से जल आने
क� कारण नैचुरल खुशबू वाला जल होगा. इ�
डालेंगे नहीं लेिकन नैचुरल पहाड़ों से �ास करते
हुए ऐसी खुशबू की बूिटयां होंगी जो सुन्दर खुशबू
वाला जल होगा.
 काम क्या करेंगे
जागेंगे सुबह ही, लेिकन जैसे सदा जागती ज्योित
हैं. वहां थक� हुए लोग नहीं होंगे. कोई हाड� वक�
है नहीं. न हाड� वक� है, न बुि� का वक� है, न कोई
बोझ है. इसिलए जागना और सोना समान है.
जैसे अभी सोचते हैं न िक सुबह उठना पड़�गा,
सतयुग में यह संकल्प ही नहीं.
 रुपयेकीजगहअशिफ�यांहोंगी
सतयुगी सृ�ष्ट में रुपये की रूप-रेखा प�रवितर्त
होगी. रुपये की जगह अशिफ�यां होंगी. शानदार
िडजाइन और अच्छी-अच्छी होंगी. िनिमत मा�
ही लेन-देन होगा. दुकानदार और �ाहक का
भाव नहीं होगा. मािलकपन का भाव होगा और
िसफ� आपस में एक्सचेंज करेंगे. क�छ देंगे, क�छ
लेंगे, कमी तो िकसी को भी नहीं होगी. इसिलए
मैं �ाहक हूं, यह मािलक है-यह भाव नहीं रहेगा.
 िशक्षा व्यवस्था क्या होगी?
वहां पढ़ाई भी एक खेल है. खेल-खेल में पढ़�गे,
अपनी राजधानी का नॉलेज तो रखेंगे ना. लेिकन
मुख्य सबजेक्ट वहां की �ाइंग होगी. छोटा बड़ा
सब आिट�स्ट होंगे, िच�कार होंगे. साज अथार्त्
गायन िव�ा, संगीत गायेंगे, खेलेंगे, इसी में पढ़ाई
पढ़�गे. वहां की िहस्�ी भी संगीत और किवता�
में होगी, ऐसी सीधी-सीधी बोर करने वाली नहीं
होगी. रास भी एक खेल है ना. नाटक भी करेंगे
बािक िसनेमा नहीं होगा. नाटकशालाएं काफी
होंगी और नाटक हंसी व मनोरंजन क� होंगे.
 यातायात व्यवस्था
वहां महलों क� अंदर भी िवमानों
की लाइन होगी और िवमान
चलाने में बहुत सहज होंगे.
िवमान शुरू िकया और आवाज
से भी पहले पहुच जायेंगे.
इतना जल्दी िवमान से पहुंच
जायेंगे, इसिलए फोन करने
की जरूरत नहीं पड़�गी.
 िबजली
एटॉिमक एनज� क� आधार पर सब काम
चलेगा. इसिलए िबजली क� इनोवेशन की
जरूरत सतयुग में नहीं होगी. सूयर् की
िकरणों से हीरे और सोना ऐसे चमक�गे
जैसे हजारों लाईट्स जल रही है. इतनी
तार या वायसर् की जरूरत नहीं पड़�गी.
वहां रीयल हीरों क� होने क� कारण एक
दीपक अनेक दीपकों का कायर् करेगा.
 भाषा व वेशभूषा
भाषा तो शु� िहंदी होगी. हर
शब्द वस्तु को िस� करेगा,
ऐसी भाषा होगी. वेशभूषा
बहुत अच्छी होगी. जैसा
कायर् होगा, वैसी वेशभूषा
होगी. �ंगार असली सोना
का होगा. एक हीरे से सात
रंग िदखाई देंगे.
�जािपता�ह्माक�मारीई�रीयिव�िव�ालयक�सेंटरपरसप�रवारआपसभीकासादरआमं�णहै.
भोलेकाबारातीबननेकासुनहराअवसरआपनहींगंवाएं.
मंगलवार 13फरवरी, 2018
संध्या - 5:30बजे
बंगला नंबर 10व 12, डॉक्टसर् कॉलोनी
जगजीवन नगर, धनबाद
रिववार 18 फरवरी, 2018
संध्या - 5:30बजे
बैंक ऑफ इंिडया ऑिफस क� ऊपर
कचहरी रोड, िग�रडीह
॥ िशव और शंकर में अंतर ॥
परमात्मािशव
िशव चेतन ज्योित-िबंदू हैं.
इनका अपना कोई स्थूल या
सू�म शरीर नहीं है. वे परमात्मा
है. वे �ह्मा, िवष्णु तथा शंकर
क� लोक अथार्त सू�म देव
लोक से भी परे ‘�ह्मलोक’
(मुि�धाम) में वास करते हैं. वे
�ह्मा, िवष्णु तथा शंकर क� भी
रचियता अथार्त ‘ि�मूितर्’ हैं. वे
�ह्मा �ारा स्थापना, िवष्णु �ारा
िव� का पालन और तथा शंकर
�ारा महािवनाश कराक� िव� का
कल्याण करते हैं.
देवताशंकर
हम देवता शंकर को भगवान मानते
हैं, जबिक �ह्मा और िवष्णु की तरह
शंकर भी सू�म शरीरधारी हैं. इन्हें
‘देवता’ कहा जाता है, परन्तु इन्हें
‘परमात्मा’ नहीं कहा जा सकता.
ये �ह्मा देवता तथा िवष्णु देवता की
तरह सू�म लोक में, शंकरपुरी में
वास करते हैं. �ह्मा देवता तथा
िवष्णु देवता की तरह यह भी
परमात्मा िशव की रचना हैं. यह
क�वल महािवनाश का कायर् करते
हैं, स्थापना और पालना क� कतर्व्य
इनक� कतर्व्य नहीं हैं.
धनबाद । रांची । पटना । जमशेदपुर । देवघर । कोलकाता । िसलीगुड़ी । मुजफ्फरपुर । भागलपुर । गया से �कािशत
अखबार नहीं आंदोलनझारखंड का सवार्िधक �सा�रत दैिनक
फाल्गुन क�ष्ण 13 संवत 2074
पृष्ठ 16, मूल्य : ~ 4

वषर् : 20, अंक : 43
रिजस्��शन : आर एन 72065/99
धनबाद, मंगलवार
13.02.2018
सिदयों से हम एक भारी भूल करते आये हैं. वह भूल है-िनराकार
परमिपता परमात्मा िशव और देवता शंकर को एक मानने की.
वास्तव में इन दोनों में िभ�ता है. आप देखते है िक दोनों की
�ितमाएं भी अलग-अलग आकार वाली होती है. िशव की �ितमा
अण्डाकार अथवा अंगुष्ठाकार होती है, जबिक देवता शंकर की
�ितमा शारी�रक आकार वाली होती है. यहां उन दोनों का अलग-
अलग प�रचय, जो िक परमिपता परमात्मा िशव ने अब स्वयं हमें
समझाया है तथा अनुभव कराया है स्पष्ट िकया जा रह है :-

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Maha Shivratri Prabhat Khabar Full Page Sewa 12 Feb 2018

  • 1.  परमात्मा िशव यानी रचियता  देवता शंकर यानी िशव की रचना  िशविनराकारज्योित स्वरूपपरमात्माहैं  शंकर आकारी देवता हैं  िशवकल्याणकारीहैं  शंकर िवनाशकारी हैं रचियता और रचना में भेद समझना सबसे िनणार्यक होगा. िशव और शंकर में जो महान अंतर है, उसे जनमानस आत्मसात करे, तभी सतयुग का अनावरण होगा और खोया हुआ राज-भाग्य पुन: �ाप्त होगा. िशव िनराकार भगवान हैं, िजन्हें सवर् धमर् ज्योित स्वरूप में मानते हैं. शंकर परमात्मा िशव की रचना हैं. अनु दीदी िनराकार परमिपता परमात्मा िशव का िनरंतर ध्यान करनेवाले शंकर बहुत बड़� िशक्षक हैं. वैसे िशक्षक, जो स्वयं �ै�क्टकल करक� िदखाते हैं. शंकर की िशक्षा और मु�ा िसफ� पावर्ती हीं नहीं ब�ल्क हम सबको को अमर बनाने वाली है. िशव का िनरंतर ध्यान ही तो अमर बनाने वाली कथा है. शंकर �ेष्ठ मागर्दशर्क हैं. कमला दीदी िवचारणीयबातें : पढ़�जरूरकालच� घूम जाता है, क�वल स्मृित रह जाती है. उसी स्मृित को पुन: ताजा करने क� िलए यादगारें बनाई जाती हैं, कथाएं िलखी जाती हैं, जन्म िदवस मनाए जाते हैं, िजनमें ��ा, �ेम, �ेह, स�ावना का पुट होता है. परंतु एक वह िदन भी आता है, जबिक ��ा और �ेह का लोप हो जाता है और रह जाती है क�वल परम्परा. यह कहना अनुिचत नहीं होगा िक आज पवर् भी उसी परम्परा को िनभाने मा� क� िलए मनाये जा रहे हैं. िशव कौन है? उसने क्या िकया और कब िकया? यिद यह जानते होते तो महािशवराि� िसफ� पूजा-पाठ तक सीिमत नहीं रह जाती. एक ओर वष� से महािशवराि� मनाई जा रही है, तो दूसरी ओर प�रवार व समाज में उच्चछ��खलता, अराजकता, अनुशासनहीनता, कलह-क्लेश, वगर्-संघषर्, दुख- अशांित बढ़ती गयी है. िपछले 82 वष� से िनराकार परमिपता परमात्मा िशव इस धरती पर आकर हमें ज्ञान दे रहे हैं, िजसे नहीं ले पाने क� कारण प�रवार व समाज में िवक�ितयां बढ़ती गयी हैं. इितहास का िसंहावलोकन करने से हम इसी िनष्कषर् पर पहुंचते हैं िक परमिपता परमात्मा िशव ही िवश्व क� इितहास की धुरी अथवा क�� िबंदू हैं. यिद हम भारत क� �ाचीन कथा सािहत्य जैसे िक पुराण उठाकर देखें तो उसका �ारंभ ही इसी कथन से होता है िक “जब संसार का महािवनाश हुआ और िवश्व का एक बहुत बड़ा भाग जलम� था, तब एक अंडाकार �काश (भगवान िशव) �कट हुआ, िजसका पार पाने क� िलए �ह्माजी की होड़ लग गयी. अंत में उस ज्योित स्वरूप िशव ने अपना प�रचय स्वयं ही िदया और �ह्माजी को कहा िक वे सृ�ष्ट क� नविनमार्ण क� कायर् क� िनिमत बनें.” कथाकारों ने इस वृतांत को कौतुहल का िवषय बनाने क� िलए रोचकता, कल्पना, िक�वदन्ती, अितश्यो�क्त, अितरंजना इत्यािद का पुट देकर कहा. परन्तु इसका यह भाव तो है िक जब पुरानी सृ�ष्ट का िवनाश हो रहा था और नयी सृ�ष्ट का अभ्युदय होने जा रहा था तब परमिपता परमात्मा िशव ने जनमानस को अपने रूप का िदव्य साक्षात्कार कराया था. गोया इितहास का �ारम्भ िशव परमात्मा क� ही आदेश-िनद�श-उपदेश से हुआ है. िशव की बारात का भी िवशेष महत्व है. परमिपता परमात्मा िशव समस्त आत्मा� को पिव� बनाकर उनक� पथ �दशर्क बनकर परमधाम वापस ले जाते हैं, इसिलए उन्हें आशुतोष व भोलानाथ भी कहते हैं क्योंिक वह शी� ही वरदान देने वाले व �स� होने वाले हैं. िजस �त से परमिपता परमात्मा �स� होते हैं वह है �ह्मचयर् �त. यही सच्चा उपवास है क्योंिक इसक� पालन से मनुष्यात्मा को परमात्मा का सामीप्य �ाप्त होता है. इसी �कार एक रात जागरण करने से अिवनाशी �ा�प्त नहीं होती ब�ल्क अब जो किलयुग रूपी महाराि� चल रही है उसमें आत्मा को ज्ञान �ारा जागृत करना ही जागरण है. इस जागरण �ारा ही मु�क्त जीवनमु�क्त �ाप्त होती है. �जािपता �ह्मा संस्थापक बह्माक�मारीज अमृतवचन महािशवराि� महानतम पवर् किलयुगक�खत्महोनेऔर सतयुगक�आरंभहोनेक�वतर्मान संगमपरसुनहराअवसर बनायेंआनेवालीदैवीय सतयुगीसृ�ष्टमें अपनास्थान वींि�मूितर् िशवजयंती महोत्सव वष�सेइसधरतीपर अवत�रतहोकरपरमात्मा कररहेहैंअपनािदव्यकतर्व्य वींि�मूितर् 828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282 वष�सेइसधरतीपर 828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282828282सौगात अभीनहींतोकभीनहीं शंकरकीतरहिनराकारपरमिपतापरमात्मािशवमेंध्यानम�होनाहीसच्चीमहािशवराि� गीता का भगवान अपना वादा िनभाने 82 वषर् पूवर् इस धरा पर पधार चुक� हैं. िपछले 82 वष� से परमात्मा अपना कतर्व्य िनभा रहे हैं. किलयुग अपने अंितम चरण में पहुंच चुका है. वतर्मान युग ‘संगम’ का युग है. यानी किलयुग समाप्त और सतयुग आरंभ होनेवाला है. सृ�ष्ट च� की अविध मा� 5000 वषर् होती है. यानी सृ�ष्ट का �थम चरण सतयुग 1250 वष� का, दूसरा चरण �ेतायुग 1250 वष� का, तीसरा चरण �ापर युग 1250 वष� का और अंत में किलयुग 1250 वष� का. किलयुग क� अंितम चरण में 100 वष� का ‘संगम युग’ होता है. वतर्मान समय ‘संगम युग’ ही है. आज तक हमें यही बताया गया है िक मनुष्यात्मा 84 लाख योिनयां धारण करती हैं. यह गलत है. सच तो यह है िक 5000 वष� क� सृ�ष्ट च� में मनुष्यात्मा� का मा� 84 जन्म होता है. मनुष्यात्मा� का सतयुग में क�ल 8 जन्म, �ेतायुग में क�ल 12 जन्म, �ापर में क�ल 21 जन्म और िफर किलयुग में 42 जन्म होता है. अंत में एक जन्म ‘संगम युग’ में होता, परमात्मा का प�रचय िमलने क� बाद. जैसे आम की गुठली से िमचर् पैदा नहीं हो सकता, उसी तरह मनुष्यात्मा� क� “आत्मा रूपी बीज” से कोई पशु- पक्षी पैदा नहीं हो सकता. “जैसा बीज वैसा ही वृक्ष होता है.” इसिलए मनुष्यात्माएं पशु-पक्षी आिद 84 लाख योिनयों में जन्म नहीं लेतीं. मनुष्यात्माएं सारे कल्प में मनुष्य-योिन में ही अिधक-से अिधक 84 जन्म और पुनजर्न्म लेकर अपने-अपने कम� क� अनुरूप सुख- दुःख भोगती हैं. परमात्मा धरा पर आकर तीनों देवता� �ह्मा, िबष्णु और शंकर की रचना करते हैं. िफर इन तीनों देवता� क� माध्यम से सृ�ष्ट का नवीनीकरण करते हैं. इस िलए िशव को देवों का देव महादेव भी कहा गया है. 1 2 3 4 5 जािनए,सतयुगमें आपक�िलएक्याहैखास  खुिशयों की शहनाई सदा खुिशयों की शहनाई ऑटोमेिटकली बजती रहेंगी. बजाने की जरूरत नहीं पड़�गी. रचना वनस्पित क� पत्तों क� िहलने से िविभ� �कार क� नैचुरल साज बजायेगी. वृक्ष क� पत्तों का झूलना, िहलना िभ�-िभ� �कार क� नैचुरल साज होंगे. आजकल अनेक �कार क� साज आिट�िफिशयल बनाते हैं वैसे पंिछयों की बोली वैराइटी साज होगी.  चैतन्य िखलौने होंगे पंछी चैतन्य िखलौने क� समान अनेक �कार क� खेल आपको िदखायेंगे. जैसे आजकल यहां मनुष्य िभ�-िभ� �कार की बोिलयां सीखते हैं मनोरंजन क� िलए, वैसे वहां क� पंछी िभ�-िभ� सुन्दर आवाजों से आपक� इशारों पर मनोरंजन करेंगे.  फल वैराइटी रसना वाले होंगे िविभ� तरह क� फल होंगे. सारे फल बेजोड़ स्वाद व िमठास से भरे होंगे. आज जैसे हम अलग-अलग नमक, मीठा अथवा मसाला आिद डालकर िजस तरह का स्वाद तैयार करते हैं, वैसा स्वाद सतयुग की सृ�ष्ट में फलों में नैचुरल होगा. जैसा स्वाद चािहए, वैसा नैचुरल फल तैयार कर सकते हैं. पत्तों की स�ब्जयां नहीं होंगी. फल और फ�ल की स�ब्जयां होंगी.  आप िपयेंगे क्या? दूध की तो निदयां होंगी. नैचुरल रस क� फल अलग होंगे, खाने क� अलग, पीने क� अलग होंगे. मेहनत करक� रस िनकालना नहीं पड़�गा. हरेक फल इतना भरपूर होगा जैसे अभी ना�रयल का पानी पीते हैं. फल उठाया, जरा सा दबाया और रस पी िलया.  नहाने की व्यवस्था नहाने का पानी िबल्क�ल गंगाजल की तरह होगा. पहाड़ों की जड़ी-बूिटयों क� कारण िवशेष महत्व होगा. पहाड़ों पर खुशबू की जड़ी-बूिटयों क� समान बूिटयां होंगी, तो वहां से जल आने क� कारण नैचुरल खुशबू वाला जल होगा. इ� डालेंगे नहीं लेिकन नैचुरल पहाड़ों से �ास करते हुए ऐसी खुशबू की बूिटयां होंगी जो सुन्दर खुशबू वाला जल होगा.  काम क्या करेंगे जागेंगे सुबह ही, लेिकन जैसे सदा जागती ज्योित हैं. वहां थक� हुए लोग नहीं होंगे. कोई हाड� वक� है नहीं. न हाड� वक� है, न बुि� का वक� है, न कोई बोझ है. इसिलए जागना और सोना समान है. जैसे अभी सोचते हैं न िक सुबह उठना पड़�गा, सतयुग में यह संकल्प ही नहीं.  रुपयेकीजगहअशिफ�यांहोंगी सतयुगी सृ�ष्ट में रुपये की रूप-रेखा प�रवितर्त होगी. रुपये की जगह अशिफ�यां होंगी. शानदार िडजाइन और अच्छी-अच्छी होंगी. िनिमत मा� ही लेन-देन होगा. दुकानदार और �ाहक का भाव नहीं होगा. मािलकपन का भाव होगा और िसफ� आपस में एक्सचेंज करेंगे. क�छ देंगे, क�छ लेंगे, कमी तो िकसी को भी नहीं होगी. इसिलए मैं �ाहक हूं, यह मािलक है-यह भाव नहीं रहेगा.  िशक्षा व्यवस्था क्या होगी? वहां पढ़ाई भी एक खेल है. खेल-खेल में पढ़�गे, अपनी राजधानी का नॉलेज तो रखेंगे ना. लेिकन मुख्य सबजेक्ट वहां की �ाइंग होगी. छोटा बड़ा सब आिट�स्ट होंगे, िच�कार होंगे. साज अथार्त् गायन िव�ा, संगीत गायेंगे, खेलेंगे, इसी में पढ़ाई पढ़�गे. वहां की िहस्�ी भी संगीत और किवता� में होगी, ऐसी सीधी-सीधी बोर करने वाली नहीं होगी. रास भी एक खेल है ना. नाटक भी करेंगे बािक िसनेमा नहीं होगा. नाटकशालाएं काफी होंगी और नाटक हंसी व मनोरंजन क� होंगे.  यातायात व्यवस्था वहां महलों क� अंदर भी िवमानों की लाइन होगी और िवमान चलाने में बहुत सहज होंगे. िवमान शुरू िकया और आवाज से भी पहले पहुच जायेंगे. इतना जल्दी िवमान से पहुंच जायेंगे, इसिलए फोन करने की जरूरत नहीं पड़�गी.  िबजली एटॉिमक एनज� क� आधार पर सब काम चलेगा. इसिलए िबजली क� इनोवेशन की जरूरत सतयुग में नहीं होगी. सूयर् की िकरणों से हीरे और सोना ऐसे चमक�गे जैसे हजारों लाईट्स जल रही है. इतनी तार या वायसर् की जरूरत नहीं पड़�गी. वहां रीयल हीरों क� होने क� कारण एक दीपक अनेक दीपकों का कायर् करेगा.  भाषा व वेशभूषा भाषा तो शु� िहंदी होगी. हर शब्द वस्तु को िस� करेगा, ऐसी भाषा होगी. वेशभूषा बहुत अच्छी होगी. जैसा कायर् होगा, वैसी वेशभूषा होगी. �ंगार असली सोना का होगा. एक हीरे से सात रंग िदखाई देंगे. �जािपता�ह्माक�मारीई�रीयिव�िव�ालयक�सेंटरपरसप�रवारआपसभीकासादरआमं�णहै. भोलेकाबारातीबननेकासुनहराअवसरआपनहींगंवाएं. मंगलवार 13फरवरी, 2018 संध्या - 5:30बजे बंगला नंबर 10व 12, डॉक्टसर् कॉलोनी जगजीवन नगर, धनबाद रिववार 18 फरवरी, 2018 संध्या - 5:30बजे बैंक ऑफ इंिडया ऑिफस क� ऊपर कचहरी रोड, िग�रडीह ॥ िशव और शंकर में अंतर ॥ परमात्मािशव िशव चेतन ज्योित-िबंदू हैं. इनका अपना कोई स्थूल या सू�म शरीर नहीं है. वे परमात्मा है. वे �ह्मा, िवष्णु तथा शंकर क� लोक अथार्त सू�म देव लोक से भी परे ‘�ह्मलोक’ (मुि�धाम) में वास करते हैं. वे �ह्मा, िवष्णु तथा शंकर क� भी रचियता अथार्त ‘ि�मूितर्’ हैं. वे �ह्मा �ारा स्थापना, िवष्णु �ारा िव� का पालन और तथा शंकर �ारा महािवनाश कराक� िव� का कल्याण करते हैं. देवताशंकर हम देवता शंकर को भगवान मानते हैं, जबिक �ह्मा और िवष्णु की तरह शंकर भी सू�म शरीरधारी हैं. इन्हें ‘देवता’ कहा जाता है, परन्तु इन्हें ‘परमात्मा’ नहीं कहा जा सकता. ये �ह्मा देवता तथा िवष्णु देवता की तरह सू�म लोक में, शंकरपुरी में वास करते हैं. �ह्मा देवता तथा िवष्णु देवता की तरह यह भी परमात्मा िशव की रचना हैं. यह क�वल महािवनाश का कायर् करते हैं, स्थापना और पालना क� कतर्व्य इनक� कतर्व्य नहीं हैं. धनबाद । रांची । पटना । जमशेदपुर । देवघर । कोलकाता । िसलीगुड़ी । मुजफ्फरपुर । भागलपुर । गया से �कािशत अखबार नहीं आंदोलनझारखंड का सवार्िधक �सा�रत दैिनक फाल्गुन क�ष्ण 13 संवत 2074 पृष्ठ 16, मूल्य : ~ 4  वषर् : 20, अंक : 43 रिजस्��शन : आर एन 72065/99 धनबाद, मंगलवार 13.02.2018 सिदयों से हम एक भारी भूल करते आये हैं. वह भूल है-िनराकार परमिपता परमात्मा िशव और देवता शंकर को एक मानने की. वास्तव में इन दोनों में िभ�ता है. आप देखते है िक दोनों की �ितमाएं भी अलग-अलग आकार वाली होती है. िशव की �ितमा अण्डाकार अथवा अंगुष्ठाकार होती है, जबिक देवता शंकर की �ितमा शारी�रक आकार वाली होती है. यहां उन दोनों का अलग- अलग प�रचय, जो िक परमिपता परमात्मा िशव ने अब स्वयं हमें समझाया है तथा अनुभव कराया है स्पष्ट िकया जा रह है :-