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कबीरदास
•भक्तिकाल क
े निर्गुण भक्ति शाखा क
े
ज्ञािाश्रयी कनि
• रामािंद का नशष्य
•अिपढ़ फकीर
•देशाटि और साधगओं की संर्नि से ज्ञािी
बिे र्गरु को प्रमगख स्थाि
•धमुदास िे उिकी िानणयों का संग्रह " बीजक "
िाम क
े ग्रंथ मे नकया
•बीजक का िीि खंड -साखी,सबद और रमैिी
1.साखी -कबीर की नशक्षाओं और नसद्ांिों का
निरूपण
2.सबद -र्ेय पद है नजसमें पूरी िरह
संर्ीिात्मकिा निद्यमाि है
3.रमैिी -कबीर क
े रहस्यिादी और दाशुनिक
निचार
•कबीरदास की राम - निर्गुण-निराकार ब्रह्म
•कबीर का सारा जीिि सत्य की खोज िथा
असत्य क
े खंडि में व्यिीि हुआ।
•कबीर सन्त , कनि और समाज सगधारक
सधगक्कड़ी या क्तखचड़ी भाषा
• जिभाषा का प्रयोर्
•कबीरदास को िाणी का नडक्टेटर िाम नदया -
हज़ारी प्रसाद नििेदी जी
"सतगुरु की महिमा अनँत, अनँत हकया उपगार।
लोचन अनँत उघाररया, अनँत हिखावनिार ॥"
सद् र्गरु की मनहमा अिन्त है। उसका उपकार भी
अिन्त है। उसिे मेरी अिन्त दृनि खोल दी, नजससे
मगझे उस अिन्त प्रभग का दशुि प्राप्त हो र्या
"चौसढी िीवा जोई करें चौिि चंिा मांहि
हतहि घर हकसको चांिना,हजहि घर गोहवन्द
नािी"
ईश्वर भक्ति क
े नबिा क
े िल कलाओं और
निद्याओं की निपगणिा मात्र से मिगष्य का कल्याण
सम्भि िहीं है। ईश्वर की क
ृ पा िहीं है िो जो
ज्ञाि हमिे पाया है ,उसका उपयोर् कर िहीं
पायेंर्े |
‘पासा पकडा प्रेम का पारी ककया
शरीर सतगुरु दाांव बताइया खेले दास कबीर’
प्रेम और भक्ति क
े बारे में इस दोहा में बिाया
है |प्रेम लौककक है और भक्ति अलौककक |साधक
याने मानव प्रेम क
े पीछे पड जािे है गुरु उसको
साधना क
े क्षेत्र में ददशा ननदेश दे कर परमात्मा
से ममलने का मौका देिा है |
"चकवी हिछुटी रैहि की, आइ हमली परभाहत।
जे जन हिछुटे राम सँ, ते हिन हमले न राहत॥"
चकई (एक पक्षी) राि भर अपिे नप्रय से नबछग ड़िे क
े कारण
रोिे रहिे है |सगबह होिे पर दोिों का नमलि होिा है और िे
खगश हो जािे है |मर्र परमात्मा से नबछग ड़िेिाले जीिात्मा
को नफर कभी परमात्मा से नमल िहीं पायेंर्े |
बबरहनि ऊभी पांथ ससरर, पांथी बूझै धाइ।
एक सबद कहह पीव का, कब रे समलैगे आइ “
परमात्मा से ममलने की रास्िा पूछ कर बबरदहनी
( जीवात्मा) रास्िे पर खड़े है|परमात्मा से बबछ
ु ड़नेवाले
जीवात्मा किर कभी परमात्मा से ममल नह ीं पायेंगे |
वहााँ िक जाने की रास्िा ककसी को भी पिा नह ीं है |
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  • 4. •कबीरदास की राम - निर्गुण-निराकार ब्रह्म •कबीर का सारा जीिि सत्य की खोज िथा असत्य क े खंडि में व्यिीि हुआ। •कबीर सन्त , कनि और समाज सगधारक सधगक्कड़ी या क्तखचड़ी भाषा • जिभाषा का प्रयोर् •कबीरदास को िाणी का नडक्टेटर िाम नदया - हज़ारी प्रसाद नििेदी जी
  • 5. "सतगुरु की महिमा अनँत, अनँत हकया उपगार। लोचन अनँत उघाररया, अनँत हिखावनिार ॥" सद् र्गरु की मनहमा अिन्त है। उसका उपकार भी अिन्त है। उसिे मेरी अिन्त दृनि खोल दी, नजससे मगझे उस अिन्त प्रभग का दशुि प्राप्त हो र्या
  • 6. "चौसढी िीवा जोई करें चौिि चंिा मांहि हतहि घर हकसको चांिना,हजहि घर गोहवन्द नािी" ईश्वर भक्ति क े नबिा क े िल कलाओं और निद्याओं की निपगणिा मात्र से मिगष्य का कल्याण सम्भि िहीं है। ईश्वर की क ृ पा िहीं है िो जो ज्ञाि हमिे पाया है ,उसका उपयोर् कर िहीं पायेंर्े |
  • 7. ‘पासा पकडा प्रेम का पारी ककया शरीर सतगुरु दाांव बताइया खेले दास कबीर’ प्रेम और भक्ति क े बारे में इस दोहा में बिाया है |प्रेम लौककक है और भक्ति अलौककक |साधक याने मानव प्रेम क े पीछे पड जािे है गुरु उसको साधना क े क्षेत्र में ददशा ननदेश दे कर परमात्मा से ममलने का मौका देिा है |
  • 8. "चकवी हिछुटी रैहि की, आइ हमली परभाहत। जे जन हिछुटे राम सँ, ते हिन हमले न राहत॥" चकई (एक पक्षी) राि भर अपिे नप्रय से नबछग ड़िे क े कारण रोिे रहिे है |सगबह होिे पर दोिों का नमलि होिा है और िे खगश हो जािे है |मर्र परमात्मा से नबछग ड़िेिाले जीिात्मा को नफर कभी परमात्मा से नमल िहीं पायेंर्े |
  • 9. बबरहनि ऊभी पांथ ससरर, पांथी बूझै धाइ। एक सबद कहह पीव का, कब रे समलैगे आइ “ परमात्मा से ममलने की रास्िा पूछ कर बबरदहनी ( जीवात्मा) रास्िे पर खड़े है|परमात्मा से बबछ ु ड़नेवाले जीवात्मा किर कभी परमात्मा से ममल नह ीं पायेंगे | वहााँ िक जाने की रास्िा ककसी को भी पिा नह ीं है |