Sant Kabir And Mental Health- Part 1 By Mr. Nilesh Mandlecha
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5. संत कबीर - Need v/s Want & Demandingness
• जो तु चाहे मुक्त को, छोडे दे सब आस।
मुक्त ही जैसा हो रहे, बस कु छ तेरे पास॥
• चाह ममटी,चचंता ममटी मनवा बेपरवाह।
जजसको कु छ नहीं चाहीए वह शहनशाह॥
• गो धन, गज धन, बाज धन और रतन धन खान।
जब आवे संतोष धन, सब धन धूरी समान॥
• चींटी चावल ले चली, बीच में ममल गई दाल।
कहत कबीरा दो ना ममले, इक ले दूजी डाल॥
• कहे कबीर मन भया संतोष। ममले भगवंत गया दुख दोष॥
7. संत कबीर - छल कपट के बारे मे दोहे
• कपटी ममत्र ना ककजीये, जो मन कक बात उजले
आगे राह ददखाय के , पपछे से धक्का देत॥
• कबीर वहां न जाईये, जहां कपट का हेत।
नौं मन बीज तु बोईके , खाली रहेगा खेत॥
• कबीर तहां न जाईये, जहां ना चोखा चचत्त।
वहां अवगुण घना, मुंहडे उपर पित॥
8. संत कबीर - छल कपट के बारे मे दोहे
• िेम पिती से जो ममले, ताको ममलीये धाय।
अंतर राखे - कपट राखे जो ममले, ताको ममले बलाय॥
(ममलीये धाय का अर्थ भागकर ममलना, बला का अर्थ संकट)
• चचत्त कपटी सबसे ममले, अंदर कु टील कठोर।
एक दुजथन एक दपथन, आगे एक - पपछे कोई और॥
(दपथन का अर्थ आईना जो आगे चमकता ही लेककन पपछे से काला होता है)
• आगे दपथन उजला, पपछे पवषय पवकार।
आगे भला पपछे बुरा, ताको न ककजीये संग॥
10. संत कबीर - भूतकाल के बारे मे दोहे
• करता रहा सो क्यों रहा, अब करी क्यों पछताय।
बोये पेड बबूल का, तो आम कहां से पाय॥
• पाछे ददन पाछे गए, हरी से ककया न हेत।
अब पछताए होत क्या, जब चचडडया चुग गई खेत॥
• रात गंवाई सोय के , ददवस गंवाया खाय।
हीरा जन्म अनमोल सा, कौडी बदले जाय॥
• चले गये सो ना ममले, ककसको पुछु बात।
अब पछतावा क्या करे, ननज करनी कर याद॥
• पवषय वासना मे उलझकर, जनम गँवाय जाय।
अब पछतावा क्या करे, ननज करनी कर याद॥
(हरी का मतलब है जीवन मे सदकमथ, सदज्ञान, सदमशक्षा से नाता जोडना। हरी का
मतलब कमथकांड, जप, तप, व्रत, उपवास, तीरर्, मूरत, मंददर में जाना, मजजजद में
जाना नही है।)
13. संत कबीर के दुुःख के बारे मे दोहे
• दुुःख में सुममरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुममरन करे, दुुःख काहे को होय॥
• सुख मे सुममरन ना ककया, दु:ख में करते याद।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फररयाद॥
• पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय।
एक पहर भी ज्ञान बीन, मुजक्त कै से होय॥
(सुममरन का मतलब है जीवन मे सदकमथ, सदज्ञान, सदमशक्षा से नाता
जोडना। सुममरन का मतलब कमथकांड, जप, तप, व्रत, उपवास, तीरर्, मूरत,
मंददर में जाना, मजजजद में जाना नही है।)
15. संत कबीर - िेम के बारे मे कु छ दोहे
• जजस घर िेम न िीत रस, नही जाने ग्यान।
ते नर इस संसार में, उपजी भये बबनकाम॥
• िेमभाव एक चाहीए, चाहे भेष अनेक बनाये।
चाहे घर में वास कर, चाहे बन को जाय॥
• पोर्ी पढ़-पढ़ जग मे, पंडीत बना न कोय।
ढ़ाई अक्षर िेम का, पढे सो पंडीत होय॥
• जो ददल िेम न संचारे, तो ददल जान सामान।
जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बबन िाण॥
• िेम ना खेत ऊपजे, िेम ना बाजार बबकाय।
राजा-िजा जोही रुचें, शीश देई ले जाय॥
• कबीर िेम न चाखा, चखा न उसका जवाद।
सूने घर का पाहुंणां(महेमान), जैसे आया वैसे जात॥
37. • कबीर गवथ न ककजीये, चाम(चमडी) लपेटी हाड।
एक ददन तेरा छत्र मसर, देगा काल उखाड॥
• राज पाट धन पायके , क्यों करता अमभमान।
पडोसी की जो दशा, भई सो अपनी जान॥
• अहं(अहंकार) जाके हृदय में, ज्ञान ममले सबूरी में॥
कहाँ कफरत मग़रूरी में।आखखर तन ममलेगा खाक में।
• कबीर गवथ न ककजीये, ऊँ चा देखख आवास(घर)।
काल पडे भुंइ(धरती) लेटना, ऊपर जमसी घास॥
संत कबीर के गवथ, अहंकार के बारे मे दोहे
38. संत कबीर के श्रम, धीर और कोशीश के बारे मे दोहे
(Efforts, Patience, Delaying Gratification)
• श्रम ही से सब होत है, जो मन राखे धीर।
श्रम से खोदत कू प(कुँ आ), र्ल मे िकटे नीर(पानी)॥
• धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कु छ होय।
माली सींचे सौ घडा, ॠतु आए फल होय॥
• श्रम ही से सब कु छ बने, बबन श्रम ममले ना काही।
सीधी उंगली घी जमो, कबसु ननकसे नही॥
• कबीरा धीर को धरे, हार्ी मन भर खाये।
बबन काम बेकार में, जवान(कु त्ता) घर घर जाये॥
(Elephant has patience, it eats till its mind is satisfied.
But the impatient dog runs here and there in the hope
of food)
39. संत कबीर - आलस के बारे मे दोहे
• काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में िलय होएगी, बहुरर करेगा कब॥
• आज कहै मैं कल भजूँ, काल कफर काल।
आज काल के करत ही, औसर जासी चाल॥
• काल करे से आज कर, सबदह सात तुव सार्।
काल काल तू क्या करे, काल काल के हार्॥
• जागो लोगों मत सुवो, ना करूँ नींद से प्यार ।
जैसा सपना रैन का, ऐसा यह संसार ॥
40. • साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाही।
धन का भूखा जो कफरे, सो तो साधु नाही॥
• साधु हुवा तो क्या हुवा, माला पहनी चार।
बाहर भेष बनाइया, भीतर भरी भंगार॥
• फु टी आंखे पववेक की, समझे ना संत असंत।
जाके संग दस-बीस, ताका नाम महंत॥
संत कबीर - साधु के बारे मे दोहे
41. • अकलमंद कोइ एक ममले, जाके पववेक पवचार।
जाके पववेक पवचार नही, सो नर ढोर गवांर॥
• आचारी सब जग ममला, पवचारी ममला न कोय।
कोटी आचारी खोजीये, एक पवचारी होय।
(आचारी का मतलब ऐसा मशष्य/भक्त/Follower, जो खुद
अपना पवचार नही करता है , जो दुसरो पर unhealthily
dependent होता है)
• कबीर इस संसार को, समझाऊँ कई बार।
पुंछ जो पकडे भेड की, होवे ना बेडा पार॥
(ककतनी बार समझाऊँ मैं इस बावली दुननया को! भेड
की पूँछ
पकडकर बेडापार होना चाहते हैं)
संत कबीर - पववेक पवचार के बारे मे दोहे
42. संत कबीर - ननंदा के बारे मे दोहे
(When Others Blame you)
• ननंदक ननयरे राखखये, आंगन कु टी छबाय।
बबन पानी बबन साबुन, ननमथल करे सुभाय॥
• कबीर ज्ञान पाईये, ननंदक की कृ पा भयी।
ननंदक मेरा ना मरो, ननंदक जजयो अनंत काल॥
• ननंदक ननयरे आवे जब, कर आदर सन्मान॥
• ननंदक दुर न कीजीये, दीजे आदर मान।
ननमथल तन मन सब करे, बकी बकक आनही आन॥
(ननंदा करनेवाले अवसर देते है हमें, अपने आपको देखने-परखने का)
43. संत कबीर - भगवान तुम्हारे अंदर है… बाहर नही।
(God is Inside not outside – Sant Kabir)
• ज्यों नैनो में पुतली, त्यों मामलक घर माही।
मूरख लोग न जाननए, बाहर ढूँढत जाय॥
• तेरा साई तुझमे जो, बचपन मे है वास।
कजतुरी का दहरण जो, कफर कफर ढूँढे घास॥
• सुमीरण सूरत लगा के , मुख से कु छ न बोल।
बाहर का पट बंद कर, अन्दर का पट खोल॥
• ननबुथद्ध को सुझे नही, उठी उठी देवल जाय।
ददल देहरा(शरीर) की खबर नही, पार्र के पीछे जाय॥
44. संत कबीर - पत्र्र का ही देव और पत्र्र का ही देवरा
• पाहन(पत्र्र) की मुरत, पूज रहा संसार।
यही भरोसे मत रहो, मत बुडो काली धार॥
• पाहन(पत्र्र) को क्या पुजीये, जो नही दे जवाब।
अंधा नर आशा मलये, युं ही खोये आप॥
• पाहन(पत्र्र) ले देवल रचा, पूजे पाहन(पत्र्र) को।
कबीर पाहन(पत्र्र) पूजी कें , मन की भ्ांती न जाय॥
• मूती बेच धंदा रचा, पाहन(पत्र्र) का हरी।
मोल ककया बोले नदह, झूठ काही पवश्वास॥
• पढत मूरख मंददर पार्र पूजन जाय।
घर की चाकी पूजे न कोई, जाके पपसा खाय ॥
• पाहन(पत्र्र) पुजे हरर ममलें, तो मैं पुजू पहाड।
तासे तो चक्की भली, पीस खाये संसार॥
• पार्र का दह देवरा, पार्र का दह देव।
पुजन हारा आंधरा, तो क्या कर माने सेव॥
45. संत कबीर - तीरर् यात्रा के बारे मे कु छ दोहे
• भले जाय बद्री(बद्रीनार्), भले जाय गया।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, सबसे बडी दया॥
• मर्ुरा जाउ भावे द्वारका, भले जाउ जगन्नार्।
सार्-संगनत-भक्ती बबन, कु छ भी न आवे हार्॥
• मन मे ही मक्का, ददल मे ही द्वारका,
काया(शरीर) काशी जान।
दस द्वार का देहरा(शरीर), देह माही ज्योती बसान॥
• तीरर् करर-करर जग मुवा, डुबे पाणी न्हाइ।
• जत्रा में बबठाया फतरा, तीरर् बनाया पानी।
दुननया भयी दीवानी, ये सब है पैसे की धुलधानी॥
• ना तीरर् मे, ना मूरत में।
मोको कहां ढूँढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास मे॥
46. संत कबीर - भेष देखकर मत भुलो कोई
• तन को जोगी सब करे, मन को करे न कोय।
सहज सब मसद्धी पाइये, जो मन जोगी होय॥
• भेष देख मत भूमलये, पुछ लीजजये ज्ञान।
बबना कसोटी होत नहीं, कं चन की पहचान॥
• —उजला कपडा पहन कर, पान सुपारी खाये।
ग्यान के बबन, मन मुक्त न हो जाय॥
• —के स(बाल) बबगडे होय, तो मुँडे सौ बार।
मन को काहे न मुँडे, जीस में पवषय-पवकार॥
• उज्वल देख कर ना भुलीये, बगला जो मांडे ध्यान।
धीरे बैठ कर पकड ले, यूं ले बुडे ग्यान॥
अर्थ - ऊपर-ऊपर की उज्ज्वलता को देखकर न भूल जाओ,
उस पर पवश्वास न करो। उज्ज्वल पंखों वाला बगुला ध्यान
लगाये बैठा हैं, कोई भी जीव-जन्तु पास गया, तो उसकी चपेट
से छू टने का नहीं।
47. संत कबीर - मौत और अहंकर के बारे मे कु छ दोहे
• बाग लगाया बगीचा लगाया, और लगाया के ला।
अरे इस तन से िाण ननकल गये तो, रह गया चमन अके ला रे अपना॥
• तन का क्यो करता गुरुर, एक ददन जाना है जरुर।
कठीण काल ने सब को खाया, सब ममल गये माटी धुल,सब हो गये
चकनाचुर
• मुसाकफर चलना पडेगा, मुसाकफर जाना पडेगा।
तुझे काया कु टी खाली करना पडेगा॥
• एजी एक ददन ऐसा होये गा, और सबसे बबछडा होय।
अरे राजा राना रंक राव, और कोई क्यो न होय॥
• अरे क्या ककया क्या जोडीयो, और र्ोडा जीवन का काज।
अरे छोड छोड सब जात है, देह धन और राज॥
• मै मै बडी बलाई है, हो सके तो ननकलो भाग।
अरे कहे कबीर कब लग रहे, रुई लपेटी आग॥
48. संत कबीर – नशा के बारे मे कु छ दोहे
• मांस खाये, मदीरा पीवे, धन वेश्या सो खाय।
जुआ खेले, चोरी करे, अन्त समुल नष्ट हो जाय॥
• अवगुन कहूँ शराब का, ज्ञानवंत सुन ले।
मानुष से पशुआ भया, द्रव्य(दाम) गाँठ का खोय॥
• भांग तमाखू(तंबाखू) छु तरा, इनसे करे प्यार।
कहे कबीर सो जजयरा, बहुत सहे मसर मार॥
• भांग तमाखू(तंबाखू) छु तरा, पर ननंदा पर नार।
कहे कबीर इनको तजे(त्यागे), तब पावे दीदार॥