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वैदिक व ांग्मय मे नगर रचन के सांिर्भ
सांकलन एवां प्रस्तुतत
सह-प्र ध्य पक, सांस्कृ त ववर् ग, न शिक
लीन हुन्नगीकर
leenavh@gmail.com
वैदिक व ांग्मय क ववस्त र
(ख्रिस्तपूवभ ५००० से ख्रिस्तपश्च्य त १०० वर्भ)
वेि, उपतनर्ि, पुर ण,
ब्र म्हण ग्रांथ, अरण्यक, स्मृती ग्रांथ
िुल्ब सुत्र , आगम ,गृह्यसुत्र,
नीतत ि स्त्र ग्रांथ , र म यण और मह र् रत
• ऋग्वेि मे (१.३३.१५) क्षेत्र स , क्षेत्रवेि, क्षेत्रांजय और क्षेत्र
स्थपती ऐसे िब्ि आते है।
• उपज ऊ जशमन के शलए उवभर य क्षेत्र ऐसे िब्ि शमलते है.
ऋग्वेि (१.१२५, ४.४१.६, ५.३३.४,
७.४९.२,१०.३०.३,१०.१४२.३) ।
• इससे ज्ञ त होत है कक खेती स मुि तयक न होकर हर
पररव र की अलग अलग होती थी ।
१-ऋग्वेि
अथववेि (१८.२.२७) मे शलख है ‘ इस प्रेत को जो मक न के
ब हर रख है उसे ग ांव के ब हर ले ज न । िक्षक्षण दिि यम
की दिि म नी ज ती थी (अथववेि १२.३.५६), इस शलए
स्मि न उस दिि मे होग । ितपथ ब्र म्हण(१३८.१.५-१२ मे
स्मि न क वणभन दिय है, स्मि न समतल हो, प नी क
तनक स व यव्य दिि मे होकर ककसी और जलप्रव ह मे हो ।
जह ां से स्मि न न दिख ई पडत हो, इतनी िूरी पर ग ांव
बस ए ।
२-अथवभवेि
अथवभवेि मे अयोध्य नगरी क वणभन
आठ आक र के रस्ते और प्र क र के नव द्व र होते होंगे ।
ग ांव सुरक्ष के दृष्टी से मजबुत (लोहेसम न) बन ते थे.
नगर रचन की कल्पन इसी से शसध्ि होती है ।
अष्टचक्र नवद्व र िेव न ां पुज्य अयोध्य ।
अथवभवेि १०.२.३१
पुर: आयसी अधृष्ट कृ णुप्य। अथवभवेि १९-५८-४
अयोध्य -मनु तनशमभत नगरी
अथवभवेि मे अयोध्य नगरी क वणभन आत है.
ऋग्वेि (१०-२३) मे नगर बस ने के शलए जांगल क टने
क उल्लेख है । ग्र मों के न ांम उजभयांतत (ऋग्वेि
2.13.8), न शमभणीपूर ((ऋग्वेि 1,149.3)1,149.3)
४-ऋग्वेि
• ितपथ ब्र म्हण (१२४.१.२) के अनुस र प्रज पतत की िो
सांत ने िेव और असुर अपने महत्व के शलए लढ पडे. उन्होने
बैलके चमडे से पश्श्चचम से पूवभ तक ब ांट ।
• ितपथ ब्र म्हण(३१.१.१.२) मे यज्ञ क्षेत्र क वणभन इस प्रक र
दिय है “वे यज्ञ क स्थ न तल ि करते है, जो सबसे उांच हो,
वह स्थ न चौरस और श्स्थर और पूवभ की ओर ढल न हो ।
५- ब्र म्हण ग्रांथ
ितपथ ब्र म्हण (१-४-१-१५ )मे ब्र म्हण निी के पूवभ
दिि मे बसते थे ऐस वणभन है । आयभ ककचड व ली
जशमन पर वृक्ष लग ते थे ।
५-ितपथ ब्र म्हण
र स्ते बनने व लोंको पथथकृ त कहते थे । पांचववि ब्र म्हण
(१.१.४) और क त्य यन धोत्तसूत्र मे बिबन और सेतु ऐसे िब्ि
आये है । र स्ते की लांब ई के शलए क्रोि, गवपूती, योजन आदि
न ांम थे ।
त्रत्रपूर (तै.सां.तै.सां.6. क ठक सां 24.10)24.10), क म्पशल
(तै.सां7.4.19,1 ) उल्लेख शमलत है. ग ांव और र जध नी बस न
र ज क क म होत है । (आपस्तांर् गृह्यसूत्र 2-10-24).
र जध नीमे र जप्र स ि और र जसर् ग ांवके मध्यमे होनी
च दहए ।
यजुवेि मे र स्तों के प्रक र दिए है ।
नम: स्तृत्य य च पथ्य य च नम: क त्य य च नीप्य य च ।
यजुवेि (१६. ३७)
स्त्रुतत य ने सुलर् म गभ , क तत य ने िुगभम म गभ ।
र स्तों के अथभपुणभ न म
प्रपथ (यजुवेि १६.४३ और १६. ६० )
सुपथ (यजुवेि ५.३५ तथ ८.२३)
र स्तों के प्रक र
६-मत्स्यपुराण
२५२ वे अध्य य मे प्र चीन र् रत के अठरह ‘व स्तु ि स्त्र
उपिेिक (इांश्जतनअर) के न म दिये है ।
र्ृगुरत्रत्रवभशिष्ठच ववश्चवकम भ मयस्तथ ।
न रिौ नश्ग्न्जत्चैव ववि ल क्षः पुरांिर ः ॥२॥
ब्रम्ह कु म रौ नांदििः िौनको गगभ एवांच ।
व सुिेवो तनरुध्िष्च तथ िुकबृहस्पती ॥३॥
अष्ट ििैते ववख्य त वस्तुि स्तोपिेश्चक ः
मत्स्यपुर ण अ २५२
“ सबसे उत्तम गृह वह होत है श्जसके च रो दिि मे िरव जे
और ि लन हो । ऐसे सवभतोर्द्र व स्तु को मांदिर य र ज के
तनव स योग्य म न है।
तीन दिि मे द्व रव ली व स्तु
•स्वश्स्तक (पूवभ वज्यभ)
•नांद्य वतभ (पश्श्चचम वज्यभ)
•वधभम न (िक्षक्षण वज्यभ)
•रुचक (उत्तर वज्यभ)
•सबसे उत्तम लांब ई १०८ ह थ और कतनष्ठ गृहकी लांब ई ७६
ह थ
• युव र ज के महल की लांव ई ८० से ५४ ह थ
•सेन पती, मांत्री, सरि र आदि लोगों के घरो की लांब ई ६४ से
२८ ह थ
•चौड ई लांब ई के एक ततह ई/एक चतुथ ांि य एक अष्ठम ांि
र ज के तनव स गृह (लांब ई के अनुस र) प ांच प्रक र
ववशर्न्न गृह तनम भण क यभ (र्ूमी पुजन से व स्तु प्रवेि तक) के शलए
िुर् मुहुतभ
नगर मे सैतनकों के अनेक शित्रबर ।(१-५-११).
नगर की सुरक्ष के शलए प नी से र्रे खांिक ।(१-५-१३).
िहर मे बहुमांख्रिले सुांिर सुिूशर्त मक न है जैसे इांद्र की
नगरी अमर वती ।(१-५-१५).
नगर की बस्तीय घनी है और ववस्त र के शलये कोई
खुली जगह नही है ।(१-५-१७).
नगर हज रो धनुष्य –ब ण ध री सैतनक , द्रुतगती से
चलने व ले रथोंपर सव र ।(१-५-२२).
७-अश्ग्नपुर ण
नगर तनम भणके शलए एक य आधी योजन र्ुमी ग्रहण करे ।
 नगरके च रो दिि मे प्र कर हो। उसमे च रो दिि मे प्रवेि व्ि र हो ।
नगरमे चौडे चौडे र स्ते बन ने च दहए ।
नगर द्व र (ह थी के प्रवेि के शलए) छ ह त चौड हो - श्चलोक १ से ५
अध्याय १०६ – नगर आदि के वा्तुका वणणन
८-व श्ल्मकी र म यण -
सांक्षेप मे अयोध्य की नगर रचन
•अयोध्य नगरी की मह नत और वैर्व क वणभन
•नगरी क तनयोजन स्वयांम मनु ने ककय ।(१-४-६)
•इस नगरी क ववस्त र ब र योजन लांब ई और चौड ई तीन योजन
।(१-५-७)
•नगरी के र जम गभ स्व्छ और प नीसे घुले हुए । (१-५-८)
•नगरी के च रो दिि मे तट रक्षक दिव रे है , ििरथ र ज क तनव स
यही है, नगरी मे धमभि ल , आयुध ग र है ।(१-५-१०).
ववभिन्न कोण/ दिशा मे ब्ती
कोण बस्ती दिि बस्ती
आग्नेय स्वणभक र पूवभ सेन ध्यक्ष , क्षत्रत्रय
नैऋत्य कु म्र् र य के वट,
धनुधभर
पश्श्चचम रथक र, आयुधक र , िुद्र
व यव्य मद्य ववक्रे त उत्तर र्द्र लोग, न्य य थधि,
ब्र म्हण
ईि न्य फल ववक्रे त िक्षक्षण स्त्रीयोंके शिक्षक नृत्यकमी,
वैश्चय
अध्य य २२२ - र ज के िुगभ
धन्व िुगभ, मही िुगभ, नर िुगभ, वृक्ष िुगभ, जल िुगभ, पवभत िुगभ
ऐसे छ प्रक रके िुगभ होते है।
उनमेसे पवभत िुगभ सवोत्तम होत है ।
िुगभ ही र ज क नगर होत है ।
उसमे मांदिर ,हट –ब ज र आवश्चयक होते है ।
िुगभ पर पय भत्त प नी हो, च रो ओर प नी से र्रे खांिक हो, च रो
ओर अस्त्र युक्त यांत्र हो ऐसे िुगभ श्रेष्ठ म ने ज ते है १ से ६ ।
अध्य य ३६३ –र्ूशम, वनौर्थध आदि
म गभ व चक ११ िब्ि : अयन,वत्मभ,म गभ, अध्व, पथथन, पिवी,
सूतत, सरख्रण, पध्िती, पद्म , वतभनी ।
नगर व चक ७ िब्ि –पू:, पुरी, नगरी, पत्तन,
पुटर्ेिन,स्थ तनय, तनगम ।
 र जध नी से िूर जो नगर होत है उसे ि ख नगर कहते है ।
आपण िब्ि ब ज र, ह ट य िूक न के सांिर्भ मे आत है ।
ववपख्रण व पण्यववथथक ब ज र की गलीओां के न म है ।
रथ्य , प्रतोसी और ववशिख ये िब्ि नगर के मुख्य म गभ
से सांबांधीत है ।
प्र क र , वरण, ि ल और प्र चीर ये नगर के रक्षण के शलए
बनी दिव र सांबांधी है।
९-िुक्रतनती
र ज , मांत्री, शमत्र, कोि, िेि, िुगभ, ककल , सेन ये र ज्य के स त अांग है । १-
१८-६१
वह स्थ न श्जसमे कु प, व पी,त ल ब हो और च रो दिि मे च र द्व र हो,
म गभ, गलीय और ब थगचे हो , र जध नी के शलए अनुकु ल होती है १-१९-१५
उस नगरी मे घर बन ए जह नगर की सुरक्ष के शलए तोपे सज्ज हो ।१-२०-
३८
प्र क र श्जसके प स प नीसे र्र खांिक न हो य कु िल योध्ि न हो ऐस िुगभ
श्रेष्ठ नही । १-२०-४०
र जग्रुह के च रोदिि मे तीस ह थ क र जम गभ उत्तम है । १-२२-५९
बीस ह थक र जम गभ मध्यम और पांधर ह थक अधम होत है । १-२२-६०
९-िुक्रतनती
तीन ह थ की पद्म और प ांच ह थ के ववथी ग्र म के शलए तथ िस
ह थ क म गभ नगरोंके शलए होत है । १-२२-६१
म गभ क प्रुष्ठर् ग कछु ए के पीठ सम न हो ,जलके तनक स के िोनो
तरफ ख ई हो । १-२२-६५
िोनो पक्तीयोमे ववद्यम न गृहों के म गभ प्रततवर्भ चून और कां करसे
कु टकर बन ए । १-२२-६७
अशर्युक्त कै िीओां से ग्र मीण म गभ और प ठि ल बनव ए । १-२२-
६८
ग्र म के अथधपतीओां से प ांथि ल प्रततदिन स्व्छ रक्खे । १-२२-६९
हयशिर्भ पांचर त्र (५-२५..२७) मे कह है कक जमीन क
आक र गोमुख, िुल य ह थी की पीठ जैस हो तो वह
जमीन नगर बस ने के शलए त्य ज्य समिे ।
हयशिर्भ पांचर त्र
ववकण भ कणभहीन च वक्र सुचीमुख तथ ।
द्ववकण भ सूपभसदृिी गोमुखी च त्रत्रकोख्रणक ॥२५॥
एअवां प्रक र य र्ूशमवभज यत्नेन िेशिकै : ॥२७॥
मह र् रत
मह र् रत के ि ांतीपवभ अध्य य (१२-६२) मे प्र क र
(सुरक्ष िीव र) क वणभन शमलत है ।
 प्र कर के छ प्रक र क वणभन उसमे दिय है जो स्मृती
और पुर णो मे दिये वणभन जैस ही है (१२-८६) ।
मह र् रत मे ऐसे एक नगर (र्ट पद्म) क वणभन है एक
के ब हर एक ऐसे छ दिव रों से तघर थ (१५-५. और १६). ।
मह रथ्य , मह पथ और र जम गभ इन न मों क उल्लेख
शमलत है । र स्तो के िोनो ओर पेयजल के प्रबांध (प्रप )और
िुक ने रहती थी (३-२०६-८).
नगरकी िोर् बढ ने के शलए बन ये गये
प्र स ि,तोरणद्व र, गोपूर ,युप चैत्य और ब थगचे क र्ी
वणभन शमलत है ।
नगरोंके अन्य प्रक र,ग्र म, घोर्, ि ख नगर , ज नपि
आदि क उल्लेख आत है ।
बौध्ि व ांग्मय मे नगर रचन
नगर रचन क वणभन ज तक कथ और प ली ग्रांथो मे प य
ज सकत है ।
एक ज तक कथ (५१८) मे नगर के च रो ओर प्र क र और
द्वव-खांिक क , सुरक्ष शमन रो क वणभन दिय है ।
ज तको मे र स्तोंक , मक नों क य िूक नों क जो वणभन
दिय है वह र म यण य म ह र् रत मे दिये वणभन जैस ही है
।
बौद्ध क मह न स्थपती क न म ‘मह गोववांि’ थ
श्जस ने ५वी ित ब्िीमे उत्तर र् रमे अनेक व स्तुओां क
तनम भण ककय ।
थगरीवज्र न मक िुगभ की सुरक्ष िीव र ७ कक.शम लांबी
थी ।
उस समयके बने नगरों के र स्ते एक िुसरे से क टकोन
मे शमलते थे ।
ज तक कथ ओां मे ग ांवों के अनेक न म शमलते है ।
ग्र मक (छोट िेह त), ग्र म(िेह त), तनगम (ब ज र
क ग ांव) ,पककां त (सीम वती ग ांव) ।
धांधे के अनुस र ग ांव के न म - कम्म र ग्र म
(लोह र), तनर् ि ग्र म( शिक री), वधभकी (बढ ई),
नलक र ग्र म(ब स क मव ले) ।
बुध्िक ल मे र जगृह, थगररवृज, वैि ली. शमथथल श्र वस्ती,
तक्षशिल कौिांबी आदि बडे नगर थे । वैि ली नगर मे तीन
प्र क र थे ।
शमशलांिपनह न म के ग्रांथमे नगर बसने के ब रे मे
ज नक री शमलती है ।
सबसे पहले बढई ग ांव के शलए समतल और सुववध पुणभ
क्षेत्र खोजत है जह िरी, गुफ़ न हो, य ित्रु अच नक
आक्रमण न कर सके ।
प ख्रणतन क ल (700-500 ई.पू)
प ख्रणतन के व्य करण ग्रांथ मे नगर, ग्र म, घोर्, खेट
ऐसे ग ांवों के न म शमलते है ।
जो जशमन सुखी होती थी उसे स्थल कहते थे जैसे
कवपस्थल । जह निी समुद्रमे शमलती है उसे क्छ
कहते थे । प्रस्थ य ने उजड िेि (इांद्रप्रस्थ). यह नगरी
म पसे बन ई थी ( इांद्रप्रस्थ नगरां म पय म सु: -
मह र् रत) ।
नगरों के प्र क रों के द्व रके र्ी न म हुआ करते जो
र स्त श्जस िहर को ज त है उसपर न म तनर्भर होते
थे ।
कनौज से मथुर की और ज नेर स्ते पर बने द्व र को
मथुर द्व र ।
प ख्रणतन के क लमे मह म गभ ग ांव के मध्यसे
तनकलत थ ।
जैन व ांग्मय
उत्तन –मल्लक र -ग ांवमे बीच मे कु आ और वतुभल क र दिि मे
मक न
बलर्ी –ग ांवके च रो दिि मे ववि ल वृक्ष
रुपक ग्र म- उपर नीच ढल न युक्त रस्ते
कश्चयप – ततकोन क र ग ांव
मण्डम्ब – िूरिूर तक च र ग ह न हो ।
ग ांव नजिीक-नजिीक हो तो निी, न ल , ब ांस क जांगल
उसकी सीम हुआ करती थी ।
जैन ग्रांथो मे नगर रचन के सांिर्भ
र यपसेनीय न म के जैन ग्रांथ मे प्र क र और पररख क वणभन दिय है,
पररख प्र क र से ब हर रखते थे ।
उसपर पुल (सांक्रम) य शमट्टी क ब ांध (मृतकू ट)
प्र क र के द्व र कोष्ठक य गोपूर प्रक र के
प्र क र की दिव र घुडसव र िौड सके , इतनी चौडी
अट्ट लक, तीन मांख्रिले उचे और उन पर युध्ि स मुग्री
मह द्व र (अयो-कम्मत द्व र) के ककव डो मे लोहे य वपतल के कीले
प्र चीन र् रत की नगर रचन के
मुक ििभक खांडहर
मोहेंजो –ि रो (मृत व्यक्ती क दटल )
प ककस्त न
शसांधु घ टी सभ्यत
36
मोहेंजो-ि रो (प ककस्त न)
हरप्प (हररय ण )
ऋग्वेि (६-२७ ५से६) मे
एक नगर ‘हररयुवपय ’
क उल्लेख है । हरप्प
ि यि इसीक अपभ्रांि
होग ।
38
प्र य: सर्ी ग ांव नगर य मह नगरोंक उगम और ववक स ककसी न
ककसी निी के ककन रे ही हुआ है । जैसे मोहेंजो-ि रो शसधु के
ककन रे, हरप्प र वी के ककन रे ।
39
40
शििुप लगढ
र्ूवनेश्चवर ,ओडडस
१९४८ मे पुर तत्व ववर् ग के खुि ई से ख्रि.पू . 400 स ल पुर न िहर
शििुप लगढ क पत लग । यह िहर लब ई तथ चौड ई मे १८०० शम.
क थ । उसकी आब िी अथेंस से िुगुनी २५००० थी. . नगर के मक न
ईट और पथ्थर से बने थे ।
च रो ओर प्र क र और पररख थी जो
हमेि प नी से र्री रहती थी । हर
दिि मे िो ऐसे ८ िरव जे थे । जो
मुख़्य र स्ते मे थे. नगर मे वर् भजल
एकठ्ठ करने के शलए पथ्थर से बने
ववि ल कु ण्ड थे ऐस प्रततत होत है
की नगर क नक्ष बन ने के
पश्च्य तही िहर बस य होग . ।
उज्जैन नगरी
ई.पू. छटवी सिी मे क्षक्षप निी के ककन रे बस य गय नगर
लांब ई १.६ कक,शम और चौड ई १.२कक.शम .
नगर प्र क र, पररख , म गभ,र जप्र स ि , ि ल आदि से
पररपूणभ
निी के प नी से रक्ष के शलए ६० शम चौड ई व ली नीव क
ब ांध
िहर के र स्ते पथ्थर और शमट्टी के शमश्रण को ठोककर बने
हुए
कई नगर, जैसे र्डोच, सुरत, द्व रक , प्र चीन
क लके बांिरग ह के िहर हुआ करते , परतु रेत
और ककचड जम होने से से समुद्री व्य प र बांि
हो गय ।
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  • 1. वैदिक व ांग्मय मे नगर रचन के सांिर्भ सांकलन एवां प्रस्तुतत सह-प्र ध्य पक, सांस्कृ त ववर् ग, न शिक लीन हुन्नगीकर leenavh@gmail.com
  • 2. वैदिक व ांग्मय क ववस्त र (ख्रिस्तपूवभ ५००० से ख्रिस्तपश्च्य त १०० वर्भ) वेि, उपतनर्ि, पुर ण, ब्र म्हण ग्रांथ, अरण्यक, स्मृती ग्रांथ िुल्ब सुत्र , आगम ,गृह्यसुत्र, नीतत ि स्त्र ग्रांथ , र म यण और मह र् रत
  • 3. • ऋग्वेि मे (१.३३.१५) क्षेत्र स , क्षेत्रवेि, क्षेत्रांजय और क्षेत्र स्थपती ऐसे िब्ि आते है। • उपज ऊ जशमन के शलए उवभर य क्षेत्र ऐसे िब्ि शमलते है. ऋग्वेि (१.१२५, ४.४१.६, ५.३३.४, ७.४९.२,१०.३०.३,१०.१४२.३) । • इससे ज्ञ त होत है कक खेती स मुि तयक न होकर हर पररव र की अलग अलग होती थी । १-ऋग्वेि
  • 4. अथववेि (१८.२.२७) मे शलख है ‘ इस प्रेत को जो मक न के ब हर रख है उसे ग ांव के ब हर ले ज न । िक्षक्षण दिि यम की दिि म नी ज ती थी (अथववेि १२.३.५६), इस शलए स्मि न उस दिि मे होग । ितपथ ब्र म्हण(१३८.१.५-१२ मे स्मि न क वणभन दिय है, स्मि न समतल हो, प नी क तनक स व यव्य दिि मे होकर ककसी और जलप्रव ह मे हो । जह ां से स्मि न न दिख ई पडत हो, इतनी िूरी पर ग ांव बस ए । २-अथवभवेि
  • 5. अथवभवेि मे अयोध्य नगरी क वणभन आठ आक र के रस्ते और प्र क र के नव द्व र होते होंगे । ग ांव सुरक्ष के दृष्टी से मजबुत (लोहेसम न) बन ते थे. नगर रचन की कल्पन इसी से शसध्ि होती है । अष्टचक्र नवद्व र िेव न ां पुज्य अयोध्य । अथवभवेि १०.२.३१ पुर: आयसी अधृष्ट कृ णुप्य। अथवभवेि १९-५८-४
  • 6. अयोध्य -मनु तनशमभत नगरी अथवभवेि मे अयोध्य नगरी क वणभन आत है.
  • 7. ऋग्वेि (१०-२३) मे नगर बस ने के शलए जांगल क टने क उल्लेख है । ग्र मों के न ांम उजभयांतत (ऋग्वेि 2.13.8), न शमभणीपूर ((ऋग्वेि 1,149.3)1,149.3) ४-ऋग्वेि
  • 8. • ितपथ ब्र म्हण (१२४.१.२) के अनुस र प्रज पतत की िो सांत ने िेव और असुर अपने महत्व के शलए लढ पडे. उन्होने बैलके चमडे से पश्श्चचम से पूवभ तक ब ांट । • ितपथ ब्र म्हण(३१.१.१.२) मे यज्ञ क्षेत्र क वणभन इस प्रक र दिय है “वे यज्ञ क स्थ न तल ि करते है, जो सबसे उांच हो, वह स्थ न चौरस और श्स्थर और पूवभ की ओर ढल न हो । ५- ब्र म्हण ग्रांथ
  • 9. ितपथ ब्र म्हण (१-४-१-१५ )मे ब्र म्हण निी के पूवभ दिि मे बसते थे ऐस वणभन है । आयभ ककचड व ली जशमन पर वृक्ष लग ते थे । ५-ितपथ ब्र म्हण
  • 10. र स्ते बनने व लोंको पथथकृ त कहते थे । पांचववि ब्र म्हण (१.१.४) और क त्य यन धोत्तसूत्र मे बिबन और सेतु ऐसे िब्ि आये है । र स्ते की लांब ई के शलए क्रोि, गवपूती, योजन आदि न ांम थे । त्रत्रपूर (तै.सां.तै.सां.6. क ठक सां 24.10)24.10), क म्पशल (तै.सां7.4.19,1 ) उल्लेख शमलत है. ग ांव और र जध नी बस न र ज क क म होत है । (आपस्तांर् गृह्यसूत्र 2-10-24). र जध नीमे र जप्र स ि और र जसर् ग ांवके मध्यमे होनी च दहए ।
  • 11. यजुवेि मे र स्तों के प्रक र दिए है । नम: स्तृत्य य च पथ्य य च नम: क त्य य च नीप्य य च । यजुवेि (१६. ३७) स्त्रुतत य ने सुलर् म गभ , क तत य ने िुगभम म गभ । र स्तों के अथभपुणभ न म प्रपथ (यजुवेि १६.४३ और १६. ६० ) सुपथ (यजुवेि ५.३५ तथ ८.२३) र स्तों के प्रक र
  • 12. ६-मत्स्यपुराण २५२ वे अध्य य मे प्र चीन र् रत के अठरह ‘व स्तु ि स्त्र उपिेिक (इांश्जतनअर) के न म दिये है । र्ृगुरत्रत्रवभशिष्ठच ववश्चवकम भ मयस्तथ । न रिौ नश्ग्न्जत्चैव ववि ल क्षः पुरांिर ः ॥२॥ ब्रम्ह कु म रौ नांदििः िौनको गगभ एवांच । व सुिेवो तनरुध्िष्च तथ िुकबृहस्पती ॥३॥ अष्ट ििैते ववख्य त वस्तुि स्तोपिेश्चक ः मत्स्यपुर ण अ २५२
  • 13. “ सबसे उत्तम गृह वह होत है श्जसके च रो दिि मे िरव जे और ि लन हो । ऐसे सवभतोर्द्र व स्तु को मांदिर य र ज के तनव स योग्य म न है। तीन दिि मे द्व रव ली व स्तु •स्वश्स्तक (पूवभ वज्यभ) •नांद्य वतभ (पश्श्चचम वज्यभ) •वधभम न (िक्षक्षण वज्यभ) •रुचक (उत्तर वज्यभ)
  • 14. •सबसे उत्तम लांब ई १०८ ह थ और कतनष्ठ गृहकी लांब ई ७६ ह थ • युव र ज के महल की लांव ई ८० से ५४ ह थ •सेन पती, मांत्री, सरि र आदि लोगों के घरो की लांब ई ६४ से २८ ह थ •चौड ई लांब ई के एक ततह ई/एक चतुथ ांि य एक अष्ठम ांि र ज के तनव स गृह (लांब ई के अनुस र) प ांच प्रक र ववशर्न्न गृह तनम भण क यभ (र्ूमी पुजन से व स्तु प्रवेि तक) के शलए िुर् मुहुतभ
  • 15. नगर मे सैतनकों के अनेक शित्रबर ।(१-५-११). नगर की सुरक्ष के शलए प नी से र्रे खांिक ।(१-५-१३). िहर मे बहुमांख्रिले सुांिर सुिूशर्त मक न है जैसे इांद्र की नगरी अमर वती ।(१-५-१५). नगर की बस्तीय घनी है और ववस्त र के शलये कोई खुली जगह नही है ।(१-५-१७). नगर हज रो धनुष्य –ब ण ध री सैतनक , द्रुतगती से चलने व ले रथोंपर सव र ।(१-५-२२).
  • 16. ७-अश्ग्नपुर ण नगर तनम भणके शलए एक य आधी योजन र्ुमी ग्रहण करे ।  नगरके च रो दिि मे प्र कर हो। उसमे च रो दिि मे प्रवेि व्ि र हो । नगरमे चौडे चौडे र स्ते बन ने च दहए । नगर द्व र (ह थी के प्रवेि के शलए) छ ह त चौड हो - श्चलोक १ से ५ अध्याय १०६ – नगर आदि के वा्तुका वणणन
  • 17. ८-व श्ल्मकी र म यण - सांक्षेप मे अयोध्य की नगर रचन •अयोध्य नगरी की मह नत और वैर्व क वणभन •नगरी क तनयोजन स्वयांम मनु ने ककय ।(१-४-६) •इस नगरी क ववस्त र ब र योजन लांब ई और चौड ई तीन योजन ।(१-५-७) •नगरी के र जम गभ स्व्छ और प नीसे घुले हुए । (१-५-८) •नगरी के च रो दिि मे तट रक्षक दिव रे है , ििरथ र ज क तनव स यही है, नगरी मे धमभि ल , आयुध ग र है ।(१-५-१०).
  • 18. ववभिन्न कोण/ दिशा मे ब्ती कोण बस्ती दिि बस्ती आग्नेय स्वणभक र पूवभ सेन ध्यक्ष , क्षत्रत्रय नैऋत्य कु म्र् र य के वट, धनुधभर पश्श्चचम रथक र, आयुधक र , िुद्र व यव्य मद्य ववक्रे त उत्तर र्द्र लोग, न्य य थधि, ब्र म्हण ईि न्य फल ववक्रे त िक्षक्षण स्त्रीयोंके शिक्षक नृत्यकमी, वैश्चय
  • 19. अध्य य २२२ - र ज के िुगभ धन्व िुगभ, मही िुगभ, नर िुगभ, वृक्ष िुगभ, जल िुगभ, पवभत िुगभ ऐसे छ प्रक रके िुगभ होते है। उनमेसे पवभत िुगभ सवोत्तम होत है । िुगभ ही र ज क नगर होत है । उसमे मांदिर ,हट –ब ज र आवश्चयक होते है । िुगभ पर पय भत्त प नी हो, च रो ओर प नी से र्रे खांिक हो, च रो ओर अस्त्र युक्त यांत्र हो ऐसे िुगभ श्रेष्ठ म ने ज ते है १ से ६ ।
  • 20. अध्य य ३६३ –र्ूशम, वनौर्थध आदि म गभ व चक ११ िब्ि : अयन,वत्मभ,म गभ, अध्व, पथथन, पिवी, सूतत, सरख्रण, पध्िती, पद्म , वतभनी । नगर व चक ७ िब्ि –पू:, पुरी, नगरी, पत्तन, पुटर्ेिन,स्थ तनय, तनगम ।  र जध नी से िूर जो नगर होत है उसे ि ख नगर कहते है । आपण िब्ि ब ज र, ह ट य िूक न के सांिर्भ मे आत है ।
  • 21. ववपख्रण व पण्यववथथक ब ज र की गलीओां के न म है । रथ्य , प्रतोसी और ववशिख ये िब्ि नगर के मुख्य म गभ से सांबांधीत है । प्र क र , वरण, ि ल और प्र चीर ये नगर के रक्षण के शलए बनी दिव र सांबांधी है।
  • 22. ९-िुक्रतनती र ज , मांत्री, शमत्र, कोि, िेि, िुगभ, ककल , सेन ये र ज्य के स त अांग है । १- १८-६१ वह स्थ न श्जसमे कु प, व पी,त ल ब हो और च रो दिि मे च र द्व र हो, म गभ, गलीय और ब थगचे हो , र जध नी के शलए अनुकु ल होती है १-१९-१५ उस नगरी मे घर बन ए जह नगर की सुरक्ष के शलए तोपे सज्ज हो ।१-२०- ३८ प्र क र श्जसके प स प नीसे र्र खांिक न हो य कु िल योध्ि न हो ऐस िुगभ श्रेष्ठ नही । १-२०-४० र जग्रुह के च रोदिि मे तीस ह थ क र जम गभ उत्तम है । १-२२-५९ बीस ह थक र जम गभ मध्यम और पांधर ह थक अधम होत है । १-२२-६०
  • 23. ९-िुक्रतनती तीन ह थ की पद्म और प ांच ह थ के ववथी ग्र म के शलए तथ िस ह थ क म गभ नगरोंके शलए होत है । १-२२-६१ म गभ क प्रुष्ठर् ग कछु ए के पीठ सम न हो ,जलके तनक स के िोनो तरफ ख ई हो । १-२२-६५ िोनो पक्तीयोमे ववद्यम न गृहों के म गभ प्रततवर्भ चून और कां करसे कु टकर बन ए । १-२२-६७ अशर्युक्त कै िीओां से ग्र मीण म गभ और प ठि ल बनव ए । १-२२- ६८ ग्र म के अथधपतीओां से प ांथि ल प्रततदिन स्व्छ रक्खे । १-२२-६९
  • 24. हयशिर्भ पांचर त्र (५-२५..२७) मे कह है कक जमीन क आक र गोमुख, िुल य ह थी की पीठ जैस हो तो वह जमीन नगर बस ने के शलए त्य ज्य समिे । हयशिर्भ पांचर त्र ववकण भ कणभहीन च वक्र सुचीमुख तथ । द्ववकण भ सूपभसदृिी गोमुखी च त्रत्रकोख्रणक ॥२५॥ एअवां प्रक र य र्ूशमवभज यत्नेन िेशिकै : ॥२७॥
  • 25. मह र् रत मह र् रत के ि ांतीपवभ अध्य य (१२-६२) मे प्र क र (सुरक्ष िीव र) क वणभन शमलत है ।  प्र कर के छ प्रक र क वणभन उसमे दिय है जो स्मृती और पुर णो मे दिये वणभन जैस ही है (१२-८६) । मह र् रत मे ऐसे एक नगर (र्ट पद्म) क वणभन है एक के ब हर एक ऐसे छ दिव रों से तघर थ (१५-५. और १६). ।
  • 26. मह रथ्य , मह पथ और र जम गभ इन न मों क उल्लेख शमलत है । र स्तो के िोनो ओर पेयजल के प्रबांध (प्रप )और िुक ने रहती थी (३-२०६-८). नगरकी िोर् बढ ने के शलए बन ये गये प्र स ि,तोरणद्व र, गोपूर ,युप चैत्य और ब थगचे क र्ी वणभन शमलत है । नगरोंके अन्य प्रक र,ग्र म, घोर्, ि ख नगर , ज नपि आदि क उल्लेख आत है ।
  • 27. बौध्ि व ांग्मय मे नगर रचन नगर रचन क वणभन ज तक कथ और प ली ग्रांथो मे प य ज सकत है । एक ज तक कथ (५१८) मे नगर के च रो ओर प्र क र और द्वव-खांिक क , सुरक्ष शमन रो क वणभन दिय है । ज तको मे र स्तोंक , मक नों क य िूक नों क जो वणभन दिय है वह र म यण य म ह र् रत मे दिये वणभन जैस ही है ।
  • 28. बौद्ध क मह न स्थपती क न म ‘मह गोववांि’ थ श्जस ने ५वी ित ब्िीमे उत्तर र् रमे अनेक व स्तुओां क तनम भण ककय । थगरीवज्र न मक िुगभ की सुरक्ष िीव र ७ कक.शम लांबी थी । उस समयके बने नगरों के र स्ते एक िुसरे से क टकोन मे शमलते थे ।
  • 29. ज तक कथ ओां मे ग ांवों के अनेक न म शमलते है । ग्र मक (छोट िेह त), ग्र म(िेह त), तनगम (ब ज र क ग ांव) ,पककां त (सीम वती ग ांव) । धांधे के अनुस र ग ांव के न म - कम्म र ग्र म (लोह र), तनर् ि ग्र म( शिक री), वधभकी (बढ ई), नलक र ग्र म(ब स क मव ले) ।
  • 30. बुध्िक ल मे र जगृह, थगररवृज, वैि ली. शमथथल श्र वस्ती, तक्षशिल कौिांबी आदि बडे नगर थे । वैि ली नगर मे तीन प्र क र थे । शमशलांिपनह न म के ग्रांथमे नगर बसने के ब रे मे ज नक री शमलती है । सबसे पहले बढई ग ांव के शलए समतल और सुववध पुणभ क्षेत्र खोजत है जह िरी, गुफ़ न हो, य ित्रु अच नक आक्रमण न कर सके ।
  • 31. प ख्रणतन क ल (700-500 ई.पू) प ख्रणतन के व्य करण ग्रांथ मे नगर, ग्र म, घोर्, खेट ऐसे ग ांवों के न म शमलते है । जो जशमन सुखी होती थी उसे स्थल कहते थे जैसे कवपस्थल । जह निी समुद्रमे शमलती है उसे क्छ कहते थे । प्रस्थ य ने उजड िेि (इांद्रप्रस्थ). यह नगरी म पसे बन ई थी ( इांद्रप्रस्थ नगरां म पय म सु: - मह र् रत) ।
  • 32. नगरों के प्र क रों के द्व रके र्ी न म हुआ करते जो र स्त श्जस िहर को ज त है उसपर न म तनर्भर होते थे । कनौज से मथुर की और ज नेर स्ते पर बने द्व र को मथुर द्व र । प ख्रणतन के क लमे मह म गभ ग ांव के मध्यसे तनकलत थ ।
  • 33. जैन व ांग्मय उत्तन –मल्लक र -ग ांवमे बीच मे कु आ और वतुभल क र दिि मे मक न बलर्ी –ग ांवके च रो दिि मे ववि ल वृक्ष रुपक ग्र म- उपर नीच ढल न युक्त रस्ते कश्चयप – ततकोन क र ग ांव मण्डम्ब – िूरिूर तक च र ग ह न हो । ग ांव नजिीक-नजिीक हो तो निी, न ल , ब ांस क जांगल उसकी सीम हुआ करती थी ।
  • 34. जैन ग्रांथो मे नगर रचन के सांिर्भ र यपसेनीय न म के जैन ग्रांथ मे प्र क र और पररख क वणभन दिय है, पररख प्र क र से ब हर रखते थे । उसपर पुल (सांक्रम) य शमट्टी क ब ांध (मृतकू ट) प्र क र के द्व र कोष्ठक य गोपूर प्रक र के प्र क र की दिव र घुडसव र िौड सके , इतनी चौडी अट्ट लक, तीन मांख्रिले उचे और उन पर युध्ि स मुग्री मह द्व र (अयो-कम्मत द्व र) के ककव डो मे लोहे य वपतल के कीले
  • 35. प्र चीन र् रत की नगर रचन के मुक ििभक खांडहर
  • 36. मोहेंजो –ि रो (मृत व्यक्ती क दटल ) प ककस्त न शसांधु घ टी सभ्यत 36
  • 38. हरप्प (हररय ण ) ऋग्वेि (६-२७ ५से६) मे एक नगर ‘हररयुवपय ’ क उल्लेख है । हरप्प ि यि इसीक अपभ्रांि होग । 38
  • 39. प्र य: सर्ी ग ांव नगर य मह नगरोंक उगम और ववक स ककसी न ककसी निी के ककन रे ही हुआ है । जैसे मोहेंजो-ि रो शसधु के ककन रे, हरप्प र वी के ककन रे । 39
  • 40. 40 शििुप लगढ र्ूवनेश्चवर ,ओडडस १९४८ मे पुर तत्व ववर् ग के खुि ई से ख्रि.पू . 400 स ल पुर न िहर शििुप लगढ क पत लग । यह िहर लब ई तथ चौड ई मे १८०० शम. क थ । उसकी आब िी अथेंस से िुगुनी २५००० थी. . नगर के मक न ईट और पथ्थर से बने थे ।
  • 41. च रो ओर प्र क र और पररख थी जो हमेि प नी से र्री रहती थी । हर दिि मे िो ऐसे ८ िरव जे थे । जो मुख़्य र स्ते मे थे. नगर मे वर् भजल एकठ्ठ करने के शलए पथ्थर से बने ववि ल कु ण्ड थे ऐस प्रततत होत है की नगर क नक्ष बन ने के पश्च्य तही िहर बस य होग . ।
  • 42. उज्जैन नगरी ई.पू. छटवी सिी मे क्षक्षप निी के ककन रे बस य गय नगर लांब ई १.६ कक,शम और चौड ई १.२कक.शम . नगर प्र क र, पररख , म गभ,र जप्र स ि , ि ल आदि से पररपूणभ निी के प नी से रक्ष के शलए ६० शम चौड ई व ली नीव क ब ांध िहर के र स्ते पथ्थर और शमट्टी के शमश्रण को ठोककर बने हुए
  • 43. कई नगर, जैसे र्डोच, सुरत, द्व रक , प्र चीन क लके बांिरग ह के िहर हुआ करते , परतु रेत और ककचड जम होने से से समुद्री व्य प र बांि हो गय । 43