3. भृगु संहिता के नामसे भारत मे जो सेकडो
ग्रंथ उपर्ब्ध िै िि सब ज्योततष्य विषयसे
संबंधधत िै. दक्षिण भारतमे उपर्ब्ध तार्
परपर शर्खे ग्रंथ नाडी ग्रंथ के नामसे जाने
जाते िै.
परंतु भृगु शिल्प संहिता एक अप्राप्य ग्रंथ िै.
स्त्ि. िझेजी को उज्जैन मे उसकी एक अपूणल
और फटी पोथी प्राप्त िुिी.”
4. “खंडिर बताते कक इमारत ककतनी बुर्ंद थी”
इसी तरि श्री.िझेजी जान गये कक भारतीय
शिल्पिास्त्र का यि अजददततय ग्रंथ था.
उसी अपूणल ग्रंथ के कु र् धगने चूने १२५
श्र्ोकोंका गिरा अध्ययन करके िझेजीने अपने
शिल्प िांग्मय की नीि रखी िोगी ऐसा मेरा
अनुमान िै.
5. भृगु शिल्प संहिता की िास्त्तविकता
मत्सस्त्य पुराण (ख्रि.पू १५०० सार्) मे जो १८
शिल्पिास्त्रोपदेिक बताये िै उनमे सबसे
पिर्ा नाम मिषी भृगुका िै.
िास्त्तुिार विषय पर कररब १००० ग्रंथ
उपर्ब्ध थे. िझेजी और जोिीजी ने उनके
नांम अपने ककताबोंमे हदये िै. उनमेसे १००
ग्रंथ मेरे संग्रि मै िै.
6. सबसे पिर्ा ग्रंथ मानसार (ख्रि.पू ५०० सार्)
और िायद आखरी मनुष्यार्य चंहिका
(ख्रि.पश्चात १५०० सार्) का िोगा. पर
ककसी भी िास्त्तुग्रंथ मे भृगु शिल्प संहिता
नामतक निी यि कटु सत्सय िै.
भृगु शिल्प संहिता का रचनाकार् , कु र्
अध्याय, उसके श्र्ोक तनजश्चत करना यि
एक आदिान िै.
7. मेरे गुरु नागपूर के श्री. गो.ग.जोिी यि काम
करना चािते थे परंतु साधनोंके अभािसे िि
अपूरा रि गया. आज संगणक, स्त्कॅ नर, वप्रंटर
आहद उपर्ब्ध िोनेसे यि संभि र्गता िै.
भृगुशिल्पसंहिताके उपर्ब्ध श्र्ोकोंसे मुर्
ग्रंथके अध्याय कै से िोंगे इसका अनुमान करके
मैंने एक अनुक्रमख्रणका तयार कक िै. श्र्ोकोंका
क्रम र्गाना अिक्य था क्यो की संदभल ग्रंथमे
श्र्ोक क्रमांक उपर्ब्ध निी िै .
8. संिोधधत भृगुसंहिता
अध्याय विषय श्र्ोक
० शिल्पिास्त्र और दयाख्या १५
१ कृ षीिास्त्र ०८
२ जर्िास्त्र ०२
३ खतनिास्त्र १२
४ नौकािास्त्र ०२
५ रथिास्त्र ११
9. अध्याय विषय श्र्ोक
६ विमानिास्त्र **
७ िास्त्तुिास्त्र ३८
८ प्राकारिास्त्र **
९ नगर रचनािास्त्र १६
१० यंरिास्त्र **
११ पररशिष्ट २२
कु र् श्र्ोक संख्या १२५
** इस िास्त्रपर आधाररत एकभी श्र्ोक उपर्ब्ध निी.
10. मिवषल भृगुने संपूणल शिल्पिास्त्रका तीन खंड दस
उपिास्त्र,बविस विद्या और चौसष्ट कर्ामे िधगलकरण
ककया, यि उनका कायल अर्ौककक िै. उनमेसे अनेक
विद्या ि कर्ा आज भी प्रचशर्त िै.
पिाड के अंदर सुरंग (भृगुदर) बनाने की कल्पना
उन्िीकी िै. पिलतीय रास्त्ते (घंटापथ ) कै से िो इसका
िणलन संहिता मे आता िै. काश्यपमूनीने जैसा कश्मीर
(कश्यपमीर) प्रांत बसाया िैसा िी भृगुजीने गुजरात
का भडोच प्रांत बसाया .
11. समय के अभािसे उपर तनहिलष्ट १२५ श्र्ोकपर
चचाल करना अिक्य िै पर कु छ मित्सिपूणल
श्र्ोंकोंकी चचाल मे करने की चेष्टा कर रिा िूं.
प्रास्त्तविक भागमे शिल्प की दयाख्या तथा
विद्या और कर्ा का भेद भृगुजीने बताया िै.
नानविधानां िस्त्तूना यंराणां कल्पसंपदाम्।
धातूनां साधनानां च िास्त्तूनां शिल्पसंक्षितम् ॥
भृगुसंहिता अ. १
12. उसके बाद तीन खंड और िर खंडकी
दयाप्ती बतायी िे.उसके बाद िर एक िास्त्र
की विद्याओंका अतत संक्षिप्त िणलन आता
िै जैसे;
िृिाहदप्रसिारोपपार्नाहदकक्रया कृ वष: ॥
भृगुसंहिता अ.१
13. १-कृ वषिास्त्र
कृ वषिास्त्र मे गोपार्न के ६ श्र्ोक आते िै .
उनमेसे एकमे, दुग्धदोिन हदनमे एकिी बार
करना चाहिये ऐसा बताया िै.
प्रातरे िहिद्ग्ध दया सायंगातोि ब्राम्िणै: ।
दोग्धुहिलपण सोनैि िधंततता: कदाचन ॥
भृगुसंहिता ?
14. २-जर्िास्त्र
जर्िास्त्र मे एक आश्चयलजनक श्र्ोक िै,
िि बांध मे स्त्ियंचशर्त ददार के बारे िै.
पंक्िार्नशसद्ध्यथं प्रिािाकषणालय च ।
यथाशभर्वषतान ददारान् वपधानोध्दाटनिमान् ॥
भृगुसंहिता अ. १२
भृगुऋषीने स्त्थीर जर्के १० गुणधमल बताये िै .
जो आधुतनक जर्िास्त्रसे िति: शमर्ते जुर्ते
िै.
15. ३-खतन
धातुओंकी पररिा आठ प्रकार से िोती
िै , जैसे, अंग, रूप, जाती, नेर, अररष्ठ
, भूशमका , ध्ितन ि मान.
अशभन्ने दृश्यते कीदृग ्विशभन्न घटते कथं ।
शभन्ने प्रदश्यते धचन्िं तदंग संप्र्िते॥
16. ४ –नौकािास्त्र-
इसमे जर् सेतु का िणलन हदया िै. बडी नौका
या जिाज ककनारे से दूर समंदर मे खडे ककये
जाते िै. समान चढाने या उतारने जर् सेतु
(जेटी) काममे आते िै.
समुिाज्जनपदं प्रविष्टुं तनष्काशभतु िा सेतुबंधं नौका आश्रयाथल: ।
सच सरख्रणिद् दयसनोदयेष्िवप नािाश्रयोपयुक्त: स्त्यात् ॥
भृगुसंहिता अ. ११
17. ५ – रथिास्त्र-
इसमे घंटापथ, उसकी रचना, उसका पृष्ठभाग
आहद का मनोरंजक िणलन आता िै .
धगरेरारोिणं कु यालद िृिारोिीर्तासमम्।
आयामषोडिोभागाद् िीनंस्त्याद उ््यं सदा ॥
भृगुसंहिता अ. १०
18. सुरंग का अविष्कार भृगुजीने ककया.
धगरेरंतभेदीय: पंथास्त्तजददिरं स्त्मृतम्।
अंतिलिानसारेण तस्त्य बंधनशमष्यते ॥ भृगुसंहिता अ. १०
सेतु या पुर्की आिश्यकता:
धगरेयलथािजददिरं नद्यां सेतुस्त्तथो्यते ।
समो-िस्त्दतम: पंथा दययकारी सुखाधधक:
भ्रुगुसंहिता अ. ११
रथके संदभलमेभी कु छ श्र्ोक उपर्ब्ध िै.
19. ७- िास्त्तुिास्त्र – इस ग्रंथका यि सबसे सविस्त्तर
अध्याय िै. इस िास्त्रपर कु र् ३८ िोक उपर्ब्ध िुिे.
इससे भृगुसंहिता िास्त्तुिास्त्र का ग्रंथ िै यि शसध्द
िोता िै.
बांधकाम का साहित्सय : शमट्टी ,विटा,चूना, पथ्थर ि
र्ाकडी , धातुकी चादर और रत्सने इन िस्त्तुओंको
उपयोग उपभोक्ताके आधथलक सामथ्यलनूसार करना
चहिये .मृहदष्टका सुधािैर्ा फर्काहदकशभविकं ।
िेमरत्सनाहदसहितं गृिंकायल यथाबर्ं ॥ भृगुसंहिता अ.२
20. अन्य विषयके संदभल: बांधकामके साहित्सय,
संस्त्कार, घरका छत, घर के अंदर चौक -
ब्रम्िस्त्थान इत्सयाहद .
आंगन: घरके िेरके तीन भाग करके उनमेसे
एक भाग एक भाग खुर्ा आंगण िो.
21. 13 De.2020 21
पासपडोस - पासपडोस मे अपने बराबरीके र्ोग
रिते िो. इस विषय मे भृगु मूनी का कथन िै कक,
जजनके िररर (िणल, जातत) समान िै, जजनके आचार,
ररती समान िै और विचार, भाषा समान िै ऐसे
पडोसी एक दुसरे की सुखदुख मे सिायता करते िै
पासपडोस
समातनि: िरीराख्रण समातन ऋदयातन ि:।
समानस्त्तु िो मने यथा न: सुसिासतत ॥
भृगुसंहिता
22. 13 De.2020 22
िास्त्तु उपयुक्त जमीन का चयन
भूतानामाहदभूत्त्िादधारत्सिाज्जगजत्सस्त्थते: ।
पूिं भूशमं पररिेत साधनं तदनंतरच ॥
भृगुसंहिता अ.४
पेिर्े भूशम की परीिा करे उसके बाद
िास्त्तुका विचार करे
23. िास्त्तु तनशमलती का सामानका चयन करते समय उसका िगल
,िय, शर्ंग, अिस्त्था, सामथ्यल इन पांच बातोका विचार करना
चाहिये.
भृगु के अनुसार सिल िस्त्तु, पथ्थर, िृि, इटे, चूना आहदके ३
शर्ंग (जेंडर) िोते िै, जैसे पुरुष, स्त्री, और नपंसक. यि
संकल्पना ककसी भी िास्त्तुिास्त्र मे बतायी निी गयी िै.
िणलशर्ंगियोिस्त्था: परीि च बर्ाबर्ं ।
यथायोग्यं यथािजक्त संस्त्कारांकारयेत्ससुधी ॥
भृगुसंहिता अ.४
24. िस्त्तूकी पररिा: िणल (रंग) , गंध , रस ,
आकार (आकृ ती), हदक् (ढर्ान) ,िब्द
(आिाज) ि स्त्पिल इनके ददारा करनी चाहिये.
िणलगंधरसाकारहदक्िब्दस्त्पिलनैरवप ।
पररक्ष्यैि यथायोग्यं गृिीयाद्िदयमुिमम्॥
भृगुसंहिता अ.४
25. िास्त्तु की नीि ककस सति रखे इसके शर्ये
संहिता मे शर्खा िै- जर्स्त्थरपर ,पथ्थरपर या
मजबुत भूमीपर.
शभिेमूलर्ं स्त्थापनीयं जर्ांते।
पाषाणे िा सुजस्त्थरायां धररत्रयां ॥
आधुतनक िास्त्रभी यि बात बताते िै,
26. शिल्पकामके ५ कारीगर : सूरधार,
गख्रणति, पुराणि, कमलि ि कारू.
सूरधार के गुणधमल-
सूरधार- सुिीर्श्चतुरो दि: शिल्पिास्त्रस्त्य तत्सिविद्।
सूराणां धारणे िाता सूरधार: स उ्चते ॥ भृगुसंहिता अ. २
शिल्पकमल कमलचारी िगल का मेिताना १६: ८: ४:
२: १ इस अनुपात मे देना चहिये.
27. ९ – नगर रचना िास्त्र-
बाजार मे विशभन्न दुकाने ककस हदिामे िो इसके
तनदेि हदये िै, जैसे तेर्की, र्कडीकी धोबीओंकी
दुकाने अनुक्रमसे उिर, िायदय और पजश्चम
हदिामे िो. विशभन्न देिताओंके मंहदर ककस
हदिा मे िो इसके भी तनदेि हदये िै.
28. जर्प्रदुषण से बचने के शर्ये, चमडे के
कारखाने , स्त्मिान आहद पाणीके जर्ाियसे
बिोत दूर पूिल हदिामे िो.
चांडार्चमलकारस्त्म्िानं तोयाियापयानस्त्याद्।
एतेषामवपतिद्दूरेदेिे स्त्मिानंस्त्याद्॥
भ्रुगुसंहिता ?
29. 13 De.2020 29
गांि की दयाख्या- िृि जैसे पासपास बढते िै,
िैसे अतत िषाल, धुप और थंड का बचाि िो,
इसशर्ये जिा र्ोग दीधल कार्के शर्ए खुिीसे
रिते ऐसा स्त्थान.
स्त्मृत्सिा पूिलिुमाकारांस्त्तिूपाख्रण गृिाख्रण च ।
खेटग्रामपूरिेरनगराहद च चकक्रए ॥
भृगुसंहिता ?
30. 13 De.2020 30
नगरोंके दस प्रकार
१-स्त्थानीय -राजा या र्ष्कर कचेरी का नगर, जो पिलत या
नदीके ककनारे िो.
२- दुगल- ऐसा स्त्थान जिा पुिचना आसान न िो. सिल
प्रकार के ककर्े.
३ – दयापार का कें ि, जिा सरकारी कचेररया िो.
४- पिन – समंदर ककनारे जिा जिाजोंका आिागमन िोता
िै.
५- कोल्मकोर् – जंगर् मे या सुनसान जगि जिा रिक
र्ोगोंकी चौककया िोती िै.
६ िोणीमुख -सेना की बडी छिनी िार्ा नगर.
31. 13 De.2020 31
७ तनगम – राजधानी का संपन्न नगर
८- खेट -खेडा - नदी या पिलतके तनकटका ककसानोंका
नगर
९- ग्राम- एक चौरस योजन का कम आबादी िार्ा गांि.
१०- खिलट – जिा सिल जाती धमलके र्ोग तनिास करते िै.
स्त्थानीयदुगलपूरपिनकोल्मकोर्।
िोणीमुकातन तनगमं च तथैि खेटं॥
ब्रामं च खिलटशमतीि दिैि युक्त्सया ।
धधष्ठानकातन कधथतातन पुरातनायै: ॥ भृगुसंहिता ?
32. 13 De.2020 32
दैनंहदन पूजा अचलना करने की सुविधा सिल
र्ोगोंको िो, इस शर्ए देिार्य की आिश्यकता
िोती िै. देिता की मूततल देखनेसे अिानी
र्ोंगोंको भगिान की प्रत्सयि या अप्रत्सयि
कल्पना िोती िै.
मंहदर की आिश्यकता
तनत्सयाचलनहदविधये प्रततमा प्रततष्ठा। भृगु संहिता ?
33. शिल्प िास्त्र मे गणना
सभी िस्त्तुकी र्ंबाई, िेर, घन आकार और
समय का मापन आिश्यक िोता िै.
आयगणना (र्ंबाई, चौडाइ और उंचाई
धगनना), सबसे छोटा अंगुर् (१९शमशम) और
सबसे बडा माप योजन (८ कक.शम).
34. इसी तरि आकृ ती का िेर और घन िस्त्तु का
घनफळ तनकार्ने के सशमकरण हदये िै जो एक
िास्त्तुकार के शर्ये आिश्यक िोते िै.
कार् गणना-एक स्त्िर उ्चारण के शर्ये जो
समय र्गता िै िि एक मारा. मारा यि
भृगुका र्घुिम माप. युग यि समयका सबसे
बडा माप.
ितुलर् के दयास और पररतघ का कोष्टक हदया
िै (पाय की ककमत).
35. िास्त्तु तनमीतत के कु छ सूर (टुल्स)
आिश्यक िोते िै, जैसे सृजष्ट (दुर्बलण), िस्त्त
(गज), मौंज (रस्त्सी), काष्टकोन (गुण्या -सेट
स्त्क्िेअर, गोविंद (प्र्म्ब बॉब), अिर्ंब सूर
(र्ेदिर्) इन सबका िणलन भृगु संहिता मे
शमर्ता िै.
36. प्रस्त्तुतीकरण के तनत्सकषल
भृगु शिल्पसंहिता भारतके ककसी भी ग्रंथ
संग्रिार्यमे उपल्ब्ध निी िै.
इंग्र्ंड, अमेररका या जमलन ग्रंथ संग्रिार्यमे
उपल्ब्ध िोने की संभािना िै.
भृगु संहिता नामक ग्रंथ रोमन शर्पी मे शर्खा
संस्त्कृ त ग्रंथ िास्त्ति मे आगम ग्रंथ िै.
37. डॉ. कार्ल टझालगी मृदा अशभयांर्रकी के जनक
माने जाते िै. उनकी ककताब (धथओररहटकर्
सॉइर् मेक्यतनक्स) के अनेक प्रकरण और
अनेक तांर्रक िब्द भृगु शिल्पसंहिता से शमर्ते
जुर्ते िै.
उपर्ब्ध भृगु शिल्पसंहिता मेरे शर्ए एक पिेर्ी
थी और िै. इस ग्रंथ के दक्षिणात्सय भाषामे
भाषांतर के बाद कु छ नयी जानकारी उपल्ब्ध
िोगी ऐसी मुझे आिा िै .
38. मराठी संदभल सूची
१- हिंदी शिल्पशििणाचे मित्सि (१९२४) ,प्रकािक -श्री समथल
प्रसाद छापखाना , नाशिक.
२- प्राचीन हिंदी शिल्पिास्त्रसार (१९२४ ि १९९४), प्रकािक – िरदा
प्रकािन पुणे १६.
३-हिंदी शिल्पिास्त्र भाग पहिर्ा (१९२८), प्रकािक – र्ोिभांडारम
रवििार पेठ पुणे
४.गोपार्न ककं िा गुरांची जोपासना (१९२५), माशसक- मिाराष्र
कृ षीिर्,पूणे , जानेिारी अंक.
39. 13 De.2020 39
५- प्राचीन हिंदी शिल्पिास्त्र भाग -४ नगररचना िास्त्र
,इचर्करंजी ग्रंथमार्ा पुणे – १९३१
६- आयलशिल्प हिंदी िास्त्तुिास्त्र -काशर्काप्रसाद प्रेस पुणे
- १९३१
40. 13 De.2020 40
आिािन
भृगु शिल्प संहिता के
मुर् ग्रंथ खोज अशभयानमे सिाय्यता करे.
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