2. प्रासृत बस्ति :
चरक संहिता क
े हसस्ति स्थान में अध्याय 8 मे आचायय ने हनरुि और स्नेि बस्ति देने से
िोने वाले उपद्रवों की शास्ति क
े हलये प्रासृत बस्तियों का वर्यन हकया िै ।
अधेमान सुक
ु मारार्ां हनरुिान् स्नेिनान् मृदू न् ।
कमयर्ा हवप्लुतानां च वक्ष्याहम प्रसृतैैः पृथक
् ।। [च.हस.8/3]
सुक
ु मार व्यस्तियों क
े हलए अथवा हनत्य कायय से क्लाि व्यस्तियों क
े हलए मृदु और
स्नेिन करने वाली हनरुि बस्तियों को अलग-अलग प्रसृत प्रमार् बस्ति का वर्यन िै ।
हनरुि बस्ति की उत्तम मात्रा 12 प्रसृत िोती िै एवं प्रक
ृ त का तात्पयय 2 पल िोता िै
बस्ति हनमायर् हवहध:-
माहिक लवर्ं स्नेिं कल्क
ं कवाथहमहत क्रमात् ।
आवपेत हनरुिार्ां ह्योष संयोजने हवहध || [अ.ि.स. 11/45]
सवयप्रथम मधु और सैन्धव लवर् को लेकर अच्छी तरि घोटे । जब यि एक हमश्रर् क
े
रूप िो जाए तो इसमें स्नेि हमलाते िै और पुन: घोटते िै जब भी यि हमहश्रत िो जाता िै
तो कल्क हमलाकर पुनैः घोटते िै।
3. चतुैः प्रासृहतक बस्ति :-
सैन्धवाधयि एक
ै क: िौद्रतैलपयोघृतात् ।
प्रसृतो िपुषाकषो हनरुि: शुक्रक
ृ त परम् ॥ (च.हस. 8/7)
1) सेंधा नमक - 1/2 कषय
2) मधु - 1 प्रसृत
3) तेल - 1 प्रसृत
4) दू ध - 1 प्रसृत
5) घृत - 1 प्रसृत
6) िाउबेर कल्क - 1/2 कषय हमलाकर हनरुि बस्ति दें ।
यि हनरुि बस्ति शुक्र की उत्तम रूप से वृस्ति करती िै।
चत्वारिैलगोमूत्रदहधमण्डाम्लकाहिकात् ।
प्रसृता: सषयपैैः कल्क
ै हवट्सङ् अनािभेदन: ।। [च.हस. 8/12]
1) तेल - 1 प्रसृत
2) गोमूत्र - 1 प्रसृत
3) दिी का पानी - 1 प्रसृत
4) खट्टी कााँजी - 1 प्रसृत
सरसो का कल्क हमलाकर हनरुि बस्ति दें।यि बस्ति मल की रुकावट और आनाि
का भेदन करती िै।
4. पंचप्रासृहतक बस्ति :
श्रदंष्ट्र ाश्महचदेरण्डरसात्तैलात् सुरासवात् ।
प्रसृता: पञ्च यष्ट्याह्वकौिीमागहधकाहसता: ।।
कल्क: स्यान्मूत्रक
ृ च्छे तु सानािे बस्तिरुत्तमैः । (च.हस.8/13)
1) गोिुर क्वाथ - 1 प्रसृत
2) पाषार्भेद क्वाथ - 1 प्रसृत
3) एरण्डमूल क्वाथ - 1 प्रसृत
4) तेल - 1 प्रसृत
5) सुरा या आसव - 1 प्रसृत
कल्क द्रव्य - मुलेठी, रेर्ुका, हपप्पली व हमश्री ।
यि बस्ति आनाि व मूत्रक
ृ च्छ रोग का नाश करती िै।
िीराद द्वौ प्रसृतौ कायौ मधुतैलघृतात् त्रयैः
खजेन महथतो वस्तिवायतघ्नो बलवर्यक
ृ त ।। (च.हस.8/4)
1) दू ध 2 प्रसृत
2) मधु 1 प्रसृत
3) तैल 1 प्रसृत
4) घृत 1 प्रसृत
यि बस्ति वात को नष्ट् करती िै और बल वर्य को बढ़ाने वाली िोती िै।
5. पञ्चहति पञ्चप्रासृहतक बस्ति :
पटोलहनम्बभूहनम्बरास्नासप्तच्छदाम्भसैःचत्वार:
प्रसृता एको घृतात् सषयपकस्तल्कतैः ।।
हनरुिैः पञ्चहतिोऽयं मेिाहभष्यन्दक
ु ष्ठनुत् । (च.हस 8/8)
1) परवल की पत्ती - 1 प्रसृत
2) नीम की छाल - 1 प्रसृत
3) हचरायता - 1 प्रसृत
4) रास्नासप्तपर्य की छाल - 1 प्रसृत
5) घृत - 1 प्रसृत
सरसों का कल्क हमलाकर दी गई बस्ति प्रमेि, अहभष्यन्द और क
ु ष्ठ रोग को दू र करती िै।
षट् प्रासृहतक बस्ति :-
हवडङ्गहत्रफलाहशग्रुफलमुिाखुपहर्यजात्
कषायात् प्रसृताैः पञ्च तैलादेको हवमथ्य तान ।
हवडङ्गहपप्पलीकल्को हनरुि: हक्रहमनाशन: ।। (च.हस. 8/9-10)
1) वायहवडंग - 5/8 प्रसृत
2) िरड़ - 5/8 प्रसृत
3) बिेड़ा - 5/8 प्रसृत
6. 4) आाँवला - 5/8 प्रसृत
5) सहिजन की छाल - 5/8 प्रसृत
6) मैनफल - 5/8 प्रसृत
7) मूषाकर्ी - 5/8 प्रसृत
क
ु ल 5 प्रसृत क्वाथ +
8) तैल- 1 प्रसृत में
कल्क - वायहवडंग व पीपर में हमलाकर दी गई यि हनरुि बस्ति क
ृ हम रोग का नाश करती िै।
सप्त प्रासृहतक बस्ति :-
पयस्येिुस्तस्थरारास्नाहवदारीिौद्रसहपयषाम् ।
एक
ै क: प्रसृतो वस्ति: क
ृ ष्णाकल्को वृषत्वक
ृ त् ॥ (च.हस.8/11)
1) िीर हवदारी का क्वाथ - 1 प्रसृत
2) ईख का रस - 1 प्रसृत
3) सररवन का क्वाथ - 1 प्रसृत
4) रास्ना का क्वाथ - 1 प्रसृत
5) हवदारीकन्द का स्वरस या क्वाथ - 1 प्रसृत
6) मधु - 1 प्रसृत
7) घृत - 1 प्रसृत
8) पीपर का कल्क - 1 प्रसृत हमलाकर मथनी से मथकर बस्ति देने से व्यस्ति वृष्य िोता िै ।
7. अष्ट्प्रासृहतक बस्ति :-
एक
ै क: प्रसृतिैलप्रसन्नािौद्रसहपयषाम्
हबल्वाहदमूलक्वाथाद् द्वौ कोलत्थाद् द्वौ स वातनुत् ॥ (च.हस. 8/15)
1) हतल तेल - 1 प्रसृत
2) प्रसन्ना (महदरा का स्वच्छ भाग] - 1 प्रसृत
3) मधु - 1 प्रसृत
4) घृत - 1 प्रसृत
5) हबल्वाहद दशमूल क्वाथ - 2 प्रसृत
6) क
ु लथी का क्वाथ - 2 प्रसृत
यि बस्ति का हवनाश वात को दू र करती िै करती िै व वातहवकार का
हवनाश करती िै ।
नवप्रासृहतक बस्तिैः
पञ्चमूलरसात् पञ्च द्वौ तैलात् िौद्रसहपयषो: ।
एक
ै क : प्रसृतो वस्ति: स्नेिनीयोऽहनलापिैः ।। (च.हस. 8/6)
1) बृित् पञ्चमूल क्वाथ - 5 प्रसृत
2) तेल – 2 प्रसृत
3) मधु - 1 प्रसृत
4) घृत - 1 प्रसृत
इन सबको एक साथ हमलाकर बस्ति देने से स्नेिन िोता िै व वायु का नाश िोता िै।