Dr. chitrangad upadhyay
Maharaja college UJjain
प्रकृ तिवाद (दर्शन)
प्रकृ तिवाद (Naturalism) पाश्चात्य दार्शतनक चचन्िन की वह
ववचारधारा है जो प्रकृ ति को मूल ित्त्व मानिी है, इसी को
इस बरह्माण्ड का किाश एवं उपादान (कारण) मानिी है।
यह वह 'ववचार' या 'मान्यिा' है कक ववश्व में क
े वल
प्राकृ तिक तनयम (या बल) ही कायश करिे हैं न कक कोई
अतिप्राकृ तिक या आध्यातिम तनयम। अर्ाशि् प्राकितिक
संसार क
े परे क
ु छ भी नहीं है।
प्रकृ तिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन आदद की
सत्ता में ववश्वास नहीं करिे।
प्रकृ तिवाद क
े रूप
• 'प्रकृ ति' क
े अर्श क
े सम्बन्ध में दार्शतनकों में
मिभेद रहा है। एडम्स का कहना है कक यह
र्ब्द अत्यन्ि जदटल है जजसकी अस्पष्टिा क
े
कारण अनेक भूलें होिी हैं।
• प्रकृ ति को ३ प्रकार से स्पष्ट ककया जा सकिा
है-
• (१) पदार्श ववज्ञान का प्रकृ तिवाद
• (२) यन्रवादी प्रकृ तिवाद
• (३) जीववैज्ञातनक िमववकासवादी प्रकृ तिवाद
पदार्थ विज्ञान का प्रकृ तििाद
• यह विचारधारा पदार्थ विज्ञान पर आधाररि है। इसक
े अनुसार समस्ि
प्रकृ ति में अणु विद्यमान है। जगि की रचना इनहहीं अणुित्िों से हुई है।
जीि और मन सभी का तनमाथण भौतिक ित्िों क
े सींयोग से हुआ है। पदार्थ
विज्ञान क
े िल बाह्य प्रकृ ति क
े तनयमों का अध्ययन करिा है और इनहहीं
तनयमों क
े आधार पर अनुभि क
े प्रत्येक िथ्यों की व्याख्या करिा है। अिः
प्रकृ ति क
े तनयम सिोपरर हैं। यह मनुष्य को भी पदार्थ विज्ञान क
े तनयमों
क
े अनुसार समझने का प्रयास करिा है। इसका मनुष्य की आनिररक
प्रकृ ति से कोई प्रयोजन नहहीं है ककनिु शिक्षा एक मानिीय प्रकिया है
जजसका सींबींध मानि की आनिररक प्रकृ ति से है।
• अिः शिक्षा क
े क्षेत्र में पदार्थ विज्ञान क
े प्रकृ तििाद का कोई वििेष
योगदान नहहीं है।
यनत्रिादह प्रकृ तििाद
• इस सम्प्प्रदाय क
े अनुसार सृजष्ि यनत्रिि है जो पदार्थ और गति से
तनशमथि है। इस प्राणहहन यनत्र में कोई ध्येय, प्रयोजन या
आध्याजत्मक िजति नहहीं है। मानि यद्यवप इस जगि का सिथश्रेष्ठ
प्राणी है िर्ावप उसमें स्िचेिना नहहीं होिा, उसका व्यिहार िाह्य
प्रभािोेेेीं क
े कारण तनयींत्रत्रि होिा है। ज्यों-ज्यों मानि िाह्य
िािािरण क
े सम्प्पक
थ में आिा है, मानि यनत्र सुचारू रूप से किया
करिा रहिा है।
• मनुष्य की प्रयोजनिीलिा, कियात्मकिा उसक
े आजत्मक गुणों की
वििेचना इस विचारधारा में सींभि नहहीं है। पिु की जस्र्ति, यनत्र की
जस्र्ति िर्ा मनुष्य की जस्र्ति िीनों में अनिर है।
• अिः मनुष्य की शिक्षा शभनन प्रकार से होनी चाहहए। इसशलए शिक्षा
क
े क्षेत्र में यनत्रिादह प्रकृ तििाद का कोई वििेष योगदान नहहीं है।
जीि विज्ञान का प्रकृ तििाद
• यह ववचारधारा ‘ववकास क
े ससद्धान्ि’ में ववश्वास रखिी है। इससलए
इस ववचारधारा का उदगम डाववशन क
े िमववकास ससद्धान्ि से हुआ
है।
• इस मि क
े अनुसार जीवों क
े िम ववकास में मनुष्य सबसे अजन्िम
अवस्र्ा में है। मजस्िष्क ववकास क
े कारण ही मनुष्य ने भाषा का
ववकास ककया जजसक
े फलस्वरूप वह ज्ञान को संचचि रख सकिा है।
नये ववचार उत्पन्न कर सकिा है िर्ा सामाजजक एवं सांस्कृ तिक
जीवन का ववकास कर पाया है । अन्य सभी दृजष्टयों से मनुष्य
अन्य प्राणणयों से सभन्न नहीं है। उसकी तनयति िर्ा ववकास की
संभावनायें वंर्िम िर्ा पररवेर् पर तनभशर करिी हैं। उसमें ककसी
प्रकार की इच्छा र्जति जैसी कोई चीज नहीं होिी। वास्िव में इस
प्रकृ तिवाद से मनुष्य की पूवश जस्र्ति का ज्ञान ककया जा सकिा है।
ककन्िु उसक
े भववष्य क
े आदर्ों की कल्पना भी नहीं कर सकिे हैं।
यह कमी होिे हुए भी इस प्रकृ तिवाद का सर्क्षा में योगदान माना
जा सकिा है
प्रकृ तिवाद िर्ा सर्क्षा क
े उद्देश्य-1
• यन्रवादी प्रकृ तिवाद ने व्यवहारवादी मनोववज्ञान को जन्म ददया जजसक
े अनुसार
प्रत्येक मनुष्य क
ु छ सहज कियाएं लेकर पैदा होिा है। जब ये सहज कियाएं
बाह्य पयाशवरण क
े सम्पक
श में आिी हैं िो सम्बद्ध सहज कियाओं का तनमाशण
होिा है ये सम्बद्ध सहज किया मनुष्य को ववसभन्न कायश में सहायिा प्रदान
करिी हैं। इससलए यन्रवादी प्रकृ तिवादी मानव में उचचि िर्ा उपयोगी सम्बद्ध
सहज कियाएं उत्पन्न करना ही सर्क्षा का उद्देश्य मानिे हैं।
• जीव ववज्ञान क
े ससद्धान्िों में ववश्वास रखने वाले प्रकृ तिवाददयों क
े अनुसार
सर्क्षा का चरम लक्ष्य सुख एवं आनन्द की प्राजति कराना है ककन्िु मैतडूगल
महोदय ने यह ससद्ध ककया र्ा कक हम मूल प्रवृवत्तयों क
े कारण कायश करिे हैं,
सुख दुुःख िो प्रतिफल हैं। इससलए सर्क्षा का उद्देश्य मूल प्रवृवत्तयों का रूपान्िर
िर्ा र्ोधन करना है, िाकक छार की प्रवृवत्तयों में पुनतनदेर् िर्ा एकीकरण
द्वारा नवीन सामंजस्य उत्पन्न हो जाए जजससे वह सामाजजक एवं नैतिक
मूल्यो क
े अनुक
ू ल आचरण कर सक
े ।
• यन्रवादी प्रकृ तिवाद ने व्यवहारवादी मनोववज्ञान को जन्म ददया
जजसक
े अनुसार प्रत्येक मनुष्य क
ु छ सहज कियाएं लेकर पैदा होिा
है। जब ये सहज कियाएं बाह्य पयाशवरण क
े सम्पक
श में आिी हैं िो
सम्बद्ध सहज कियाओं का तनमाशण होिा है ये सम्बद्ध सहज किया
मनुष्य को ववसभन्न कायश में सहायिा प्रदान करिी हैं। इससलए
यन्रवादी प्रकृ तिवादी मानव में उचचि िर्ा उपयोगी सम्बद्ध सहज
कियाएं उत्पन्न करना ही सर्क्षा का उद्देश्य मानिे हैं। जीव ववज्ञान
क
े ससद्धान्िों में ववश्वास रखने वाले प्रकृ तिवाददयों क
े अनुसार सर्क्षा
का चरम लक्ष्य सुख एवं आनन्द की प्राजति कराना है ककन्िु
मैतडूगल महोदय ने यह ससद्ध ककया र्ा कक हम मूल प्रवृवत्तयों क
े
कारण कायश करिे हैं, सुख दुुःख िो प्रतिफल हैं। इससलए सर्क्षा का
उद्देश्य मूल प्रवृवत्तयों का रूपान्िर िर्ा र्ोधन करना है, िाकक छार
की प्रवृवत्तयों में पुनतनदेर् िर्ा एकीकरण द्वारा नवीन सामंजस्य
उत्पन्न हो जाए जजससे वह सामाजजक एवं नैतिक मूल्यो क
े अनुक
ू ल
आचरण कर सक
े ।
• सुख एंव दुख क
े ससद्धान्ि क
े अनुसार मनुष्य सुख प्राजति वाले
कायश करिा है और दुख देने वाले कायोंंं से बचने का प्रयास करिा
है। यह बाि सही नहीं है तयोंकक मनुष्य कभी कभी किशव्य क
े सलए
प्राण भी दे देिा है। इस संबंध में टी.पी. नन महोदय का ववचार
ज्यादा समीचीन प्रिीि होिा है। यद्यवप नन महोदय आदर्शवादी
ववचारधारा क
े अचधक समर्शक हैं ककन्िु सर्क्षा क
े उद्देश्य क
े
सम्बन्ध में उन्होंने जीव वैज्ञातनक एवं प्रकृ तिवादी दृजष्टकोण से
ववचार ककया है। उनक
े अनुसार मानव क
े व्यजतित्व का स्विंर रूप
से ववकास करना ही सर्क्षा का मुख्य उद्देश्य है। नन क
े अनुसार
वैयजतिकिा से िात्पयश आत्मानुभूति और आत्म प्रकार्न है। इस
प्रकार सर्क्षा का उद्देश्य व्यजति में तनदहि जन्मजाि र्जतियों क
े
स्विंर िर्ा अवरोधहीन ववकास में सहायिा प्रदान करना है।
प्रकृ तिवाद िर्ा छार
• प्रकृ तििादह पाठ्यिम का आख्यान स्पेनसर की पुस्िक से प्राप्ि होिा है। उनक
े
पाठ्यिम की वििेषिा यह है कक सम्प्पूणथ पाठ्यिम का आधार विज्ञान माना
गया है। स्पेनसर क
े अनुसार विज्ञान द्िारा हह समग्र जीिन जीना सींभि है।
समग्र जीिन क
े उद्देश्य की पूतिथ क
े शलए स्पेनसर ने तनम्प्नशलखिि पाठ्यिम
प्रस्िुि ककया है।
• १. आत्म रक्षा क
े शलए स्पेनसर िरहर विज्ञान का ज्ञान आिश्यक मानिे हैं।
उनक
े अनुसार िरहर विज्ञान क
े पररचय द्िारा व्यजति को स्िस्र् जीिन त्रबिाने
में सहायिा शमलिी है।
• २. जीिन की मौशलक आिश्यकिाओीं की पूतिथ ककसी धनधे, रोजगार में लगकर
की जा सकिी है और इसक
े शलए गखणि, याींत्रत्रकी, भौतिकी, रसायनिास्त्र िर्ा
जैविकी का अध्ययन आिश्यक है।
• ३. सामाजजक एिीं राजनैतिक सींबींधों का सुचारू रूप से तनिथहन की योग्यिा
प्राप्ि करने क
े शलए सामाजजक विज्ञानों का अध्ययन आिश्यक है।
• ४. अिकाि क
े समय क
े सदुपयोग क
े शलए जो साहहत्य, सींगीि िर्ा लशलि
कलाओीं की आिश्यकिा है। उनकी उचचि श्लाघा क
े शलए भी िरहर विज्ञान,
मनोविज्ञान, भौतिकी इत्याहद विज्ञानों की आिश्यकिा होिी है। अिः अिकाि
कालहन शिक्षा को सार्थक बनाने क
े शलए भी विज्ञान की पूिाथपेक्षा रहिी है।
प्रकृ तिवाद िर्ा सर्क्षण-ववचध
• प्राचीन कालीन सर्क्षण पद्धति में अध्यापक कियार्ील रहिे र्े। बालकों का
स्र्ान गौण र्ा ककन्िु बालक की कियार्ीलिा पर अचधक बल प्रकृ तिवाददयों ने
ददया। ये रटने िर्ा तनजष्िय अभ्यास की ववचध का ववरोध करिे हैं िर्ा ‘करक
े
सीखने’ एवं ‘अनुभव द्वारा सीखने’ क
े ससद्धान्िों पर आधाररि ववचधयों क
े
प्रयोग पर बल देिे हैं। इसक
े अतिररति प्रकृ तिवादी ववचारधारा ने प्रोजेतट
मेर्ड, स्काउट, आन्दोलन, स्क
ू ल यूतनयन, बालक तलब इत्यादद को जन्म
ददया। प्रकृ तिवादी सर्क्षण ववचध क
े तनम्नसलणखि ससद्धान्ि पर ववर्ेष महत्व
देिे हैं-
• (१) बालक की सर्क्षा उसक
े मानससक एवं र्ारीररक ववकास क
े अनुक
ू ल होनी
चादहए।
• (२) सर्क्षा सुखमय होनी चादहए।
• (३) सर्क्षा में बालक को स्वयं कियार्ील होने क
े सलए प्रेररि करना चादहए।
• (४) सर्क्षा प्राकृ तिक ववकास का अनुगमन करें। इसक
े पूवश बालक का नैतिक
अर्वा मानससक ववकास अनावश्यक है।
• (५) सर्क्षा प्रणाली में आगमन प्रववचध का ही प्रयोग होना चादहये।
• (६) छारों को ददया जाने वाला दण्ड प्राकृ तिक होना चादहए।
• (७) र्ब्द ज्ञान पर अचधक महत्व न देकर वस्िुओं अर्वा अनुभवों पर ववर्ेष
बल देना चादहये।
प्रकृ तिवाद िर्ा सर्क्षक
• प्रकृ तििादह शिक्षा में शिक्षक को गौण स्र्ान प्राप्ि है। प्रकृ तििादह विचारक प्रकृ ति
को हह िास्िविक शिक्षक्षका मानिे हैं । उनक
े विचार से बालक को समाज से दूर
रिकर प्राकृ तिक िािािरण में शिक्षा प्राप्ि करने का अिसर देना चाहहए। रूसों क
े
अनुसार शिक्षक पर समाज क
े क
ु सींस्कारों का प्रभाि इिना पड़ गया होिा है कक िह
बालकों को सद्गुणी बनाने का प्रयास भले हह कर लें, िह उनहें सदगुणी बना नहहीं
सकिा तयोंकक िह स्ियीं सद्गुणी नहहीं है। इसशलए रूसों बालक की आरजम्प्भक शिक्षा
में शिक्षक को कोई स्र्ान नहहीं देना चाहिे। अनय प्रकृ तििादह रूसो क
े अतिरेक को
स्िीकार नहहीं करिे । िे बालकों की शिक्षा में शिक्षक की भूशमका मात्र सहायक एिीं
पर् प्रदिथक क
े रूप में मानिे हैं । इसशलए शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञािा होना
चाहहये। बालक की मनोकामनाएीं, आिश्यकिाएीं रूचचयााँ िर्ा उनक
े मानशसक विकास
का उसे पररज्ञान होना चाहहए। शिक्षक क
े शलए बालक की स्ििः आत्मस्फ
ू िथ
कियाओीं का जानना आिश्यक है। तयोंकक छात्र इन स्ििः िजतियों द्िारा अपनी
शिक्षा स्ियीं करिा है, शिक्षक िो क
े िल उचचि पररजस्र्तियों का सींयोजन मात्र करिा
है। यहद सीिने का पररणाम सुिद होिा है िो बालक सीिने में आननद लेिा है।
िर्ा उति िैक्षक्षक अनुभि की बार बार आिृवि करिा है। शिक्षक से यह अपेक्षा की
जािी है कक िह बालक क
े शलए अनुक
ू शलि िािािरण िैयार करे।
प्रकृ तिवादी स्क
ू ल िर्ा समाज
• रूसो क
े अनुसार स्क
ू ल स्ियीं एक वििेष प्रकार का समाज है। इस समाज क
े
द्िारा बालकों को भािी समाज क
े योग्य बनाया जािा है। इसी समाज द्िारा
िह स्िानुिासन की भािना सीििा है। नेिृत्ि करने िर्ा प्रकृ तििादह उद्देश्यों
की पूतिथ करने हेिु अपने को िैयार करिा है। इस प्रकार क
े स्क
ू लह समाज का
बनधन कठोर नहहीं होिा। यद्यवप रूसो ने स्क
ू ल में एक छात्र िर्ा एक
अध्यापक की कल्पना ककया है। सामानयिः प्रकृ तििादह ककसी प्रकार से
औपचाररक शिक्षा का विरोध करिे हैं, इसीशलए इसमें विद्यालय को कोई
महत्िपूणथ स्र्ान न देकर बालकों को दूवषि िािािरण से दूर और प्राकृ तिक
िािािरण क
े बीच रहकर शिक्षा प्राप्ि करने को कहा गया है। इनहहीं विचारों क
े
कारण प्रकृ तििादह विचारक स्क
ू लों को कृ त्रत्रम कठोर एिीं दृढ़ बनधनों िालह
सींस्र्ा नहहीं चाहिे । प्रकृ तििाहदयों क
े अनुसार स्क
ू ल में पाठ्यिम एिीं सहगामी
कियाओीं इत्याहद से सींबींचधि विषयों की व्यिस्र्ा में बालकों का भी प्रतितनचधत्ि
आिश्यक होिा है। इसशलए उनहें भ्रमण, देिािन, िेल क
ू द, स्काउहिींग, समाज
सेिा इत्याहद कायथिमों की स्ियीं हह व्यिस्र्ा करने की स्ििींत्रिा देनी चाहहये।
शिक्षकों को क
े िल पर् प्रदिथक की भूशमका का तनिथहन करना चाहहए।
प्रकृ तिवाद िर्ा अनुर्ासन
प्रकृ तिवादी ववचारक सर्क्षा में अनुर्ासन को महत्व नहीं देिे है। वे ‘कारण एवं पररणाम’
क
े तनयम में ववश्वास करिे हैं। उनक
े अनुसार प्रत्येक व्यजति जो कमश करिा है,उसका
पररणाम वह अवश्य भोगिा है । ये पररणाम सुखकर एवं दुखकर दोनों ही होिे हैं । इस
आधार पर अनुर्ासन स्र्ावपि करने क
े दो उपतनयम ददखाई देिे हैं -
(१) रूसो द्वारा प्रतिपाददि प्राकृ तिक पररणामों का ससद्धान्ि
(२) स्पेन्सर द्वारा प्रतिपाददि सुख दुख का ससद्धान्ि।
रूसो क
े ससद्धान्ि क
े अनुसार बालक क
े बुरे कायों का दण्ड प्रकृ ति अवश्य देिी है।
इससलए उसे ककसी प्रकार का दण्ड न देकर प्राकृ तिक दण्ड द्वारा अनुर्ाससि होने ददया
जाना चादहये, जबकक स्पेन्सर क
े ससद्धान्ि क
े अनुसार बालक सुखदायी कायों को बार
बार दुहराना चाहिा है। तयोंकक उससे उसे सुख की अनुभूति होिी है जबकक वह दुखद
कायों को छोड़ देिा है, तयोंकक उससे उसे कष्ट होिा है । इस प्रकार बालक अनुर्ाससि
ढंग से व्यवहार करने लगिा है और उसमें स्वानुर्ासन की भावना ववकससि होने लगिी
है।
क
ु छ प्रकृ तिवादी ववचारक सर्क्षा व्यवस्र्ा में अनुर्ासन की स्र्ापना हेिु ककसी भी प्रकार
क
े ‘दमनात्मक ससद्धान्ि’ का ववरोध करिे हैं। उनका ववचार है कक बालकों पर सर्क्षकों
का प्रभाव ववर्ेष रूप से पड़िा है। इससलए बालकों में अनुर्ासन की भावना ववकससि
करने हेिु ‘प्रभावात्मक ससद्धान्ि का सहारा लेना चादहए, जबकक अनेक प्रकृ तिवादी
ववचारक यह मानिे हैं कक अनुर्ासन की स्र्ापना प्राकृ तिक तनयमों क
े अनुसार हो िो
ज्यादा अच्छा होिा है । इस आधार पर यह कहा जा सकिा है कक प्रकृ तिवादी बालकों में
स्वानुर्ासन की भावना क
े ववकास क
े सलए ‘मुतिात्मक ससद्धान्ि’ पर ववर्ेष बल देिे हैं।
सर्क्षा में प्रकृ तिवाद की देन
• यहद हम शिक्षा क
े सनदभथ में प्रकृ तििाद का मूल्याींकन करें िो हमें उसमें
अनेक गुण नजर आिे हैं -
• (१) बालक का शिक्षा में प्रमुि स्र्ान प्रकृ तििाद की वििेषिा है। एक
समय र्ा जब शिक्षा पूणथिया आदिथिादह र्ी और शिक्षक, पाठ्यिम,
चररत्र इत्याहद का िचथस्ि र्ा िर्ा बालक का स्र्ान गौण र्ा ककनिु
प्रकृ तििाद क
े कारण बालक एिीं उसकी रूचचयों प्रिृवियों एिीं
आिश्यकिाओीं को क
े नरहय स्र्ान हदया जािा है जजसक
े कारण ‘बाल
क
े जनरि शिक्षा’ अजस्ित्ि में आयी।
• (२) ‘बाल मनोविज्ञान’ क
े अध्ययन की प्रेरणा भी इसी विचारधारा ने दह ।
आज शिक्षा क
े क्षेत्र में जो मनोिैज्ञातनक प्रिृवि का प्रचलन है। यह
प्रकृ तििाद क
े प्रभाि का हह पररणाम है। मनोविज्ञान की एक वििेष िािा
‘मजस्िष्क विश्लेषण’ को िो वििेष प्रोत्साहन शमला। शलींग भेद की ओर
इस मनोविज्ञान की वििेष देन है। इसक
े प्रति इसने एक स्िस्र्
विचारधारा को जनम हदया।हह देन है।
• (३) प्रकृ तििादह विचारधारा ने शिक्षण विचध में िब्दों की अपेक्षा अनुभिों पर
अचधक बल हदया। उनका विचार है कक क
े िल िब्द शिक्षा क
े शलए आिश्यक
गुण नहहीं है। अवपिु अनुभि भी आिश्यक है। इसशलए इसने शिक्षण क
े अनेक
निीन शसद्धानिों एिीं विचधयों को जनम हदया। ‘करक
े सीिना’, तनरहक्षण एिीं
अनुभि द्िारा सीिना, िेल द्िारा सीिना, इत्याहद निीन शिक्षण शसद्धानि
िर्ा ‘ह्यूररजस्िक पद्धति’, ‘डाल्िन पद्धति’, मानिेसरह पद्धति इत्याहद निीन
शिक्षण विचधयााँ प्रकृ तििाद की
• (४) प्रकृ तिवाद का एक अन्य योगदान यह है कक इसने सर्क्षा
मनोववज्ञान एवं समाजर्ास्र का प्रकृ तिवादी स्वरूप एवं आधार प्रदान ककया
जजसक
े पररणाम स्वरूप आधुतनक सर्क्षा मनोववज्ञान िर्ा समाजर्ास्र का
अजस्ित्व आया।
• (५) सर्क्षा क
े सन्दभश में प्रकृ तिवाद का सबसे उल्लेखनीय योगदान सर्क्षा
सम्बन्धी ववसभन्न परम्परावादी धारणाओं में िाजन्िकारी पररविशन होना है।
प्रकृ तिवाददयों क
े ‘प्रकृ ति की ओर लौटो’ क
े नारे ने हमारी सभ्यिा एवं संस्कृ ति
की परम्परात्मक धारणा में िाजन्िकारी पररविशन उत्पन्न कर ददया जजसक
े
पररणामस्वरूप समाज एवं राज्य दर्शन क
े रूप में लोकिन्र का जन्म हुआ।
क
ु ल समलाकर यह कहा जा सकिा है कक प्रकृ तिवाद, आदर्शवाद क
े बबल्क
ु ल
ववपरीि ववचारधारा है जो कक इजन्ियों द्वारा प्रत्यक्ष होने वाले भौतिक प्राकृ तिक
पदार्श जगि को सत्य वास्िववकिा मानिी है।

प्रकृतिवाद (दर्शन).ppsx

  • 1.
  • 2.
    प्रकृ तिवाद (दर्शन) प्रकृतिवाद (Naturalism) पाश्चात्य दार्शतनक चचन्िन की वह ववचारधारा है जो प्रकृ ति को मूल ित्त्व मानिी है, इसी को इस बरह्माण्ड का किाश एवं उपादान (कारण) मानिी है। यह वह 'ववचार' या 'मान्यिा' है कक ववश्व में क े वल प्राकृ तिक तनयम (या बल) ही कायश करिे हैं न कक कोई अतिप्राकृ तिक या आध्यातिम तनयम। अर्ाशि् प्राकितिक संसार क े परे क ु छ भी नहीं है। प्रकृ तिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन आदद की सत्ता में ववश्वास नहीं करिे।
  • 5.
    प्रकृ तिवाद क ेरूप • 'प्रकृ ति' क े अर्श क े सम्बन्ध में दार्शतनकों में मिभेद रहा है। एडम्स का कहना है कक यह र्ब्द अत्यन्ि जदटल है जजसकी अस्पष्टिा क े कारण अनेक भूलें होिी हैं। • प्रकृ ति को ३ प्रकार से स्पष्ट ककया जा सकिा है- • (१) पदार्श ववज्ञान का प्रकृ तिवाद • (२) यन्रवादी प्रकृ तिवाद • (३) जीववैज्ञातनक िमववकासवादी प्रकृ तिवाद
  • 7.
    पदार्थ विज्ञान काप्रकृ तििाद • यह विचारधारा पदार्थ विज्ञान पर आधाररि है। इसक े अनुसार समस्ि प्रकृ ति में अणु विद्यमान है। जगि की रचना इनहहीं अणुित्िों से हुई है। जीि और मन सभी का तनमाथण भौतिक ित्िों क े सींयोग से हुआ है। पदार्थ विज्ञान क े िल बाह्य प्रकृ ति क े तनयमों का अध्ययन करिा है और इनहहीं तनयमों क े आधार पर अनुभि क े प्रत्येक िथ्यों की व्याख्या करिा है। अिः प्रकृ ति क े तनयम सिोपरर हैं। यह मनुष्य को भी पदार्थ विज्ञान क े तनयमों क े अनुसार समझने का प्रयास करिा है। इसका मनुष्य की आनिररक प्रकृ ति से कोई प्रयोजन नहहीं है ककनिु शिक्षा एक मानिीय प्रकिया है जजसका सींबींध मानि की आनिररक प्रकृ ति से है। • अिः शिक्षा क े क्षेत्र में पदार्थ विज्ञान क े प्रकृ तििाद का कोई वििेष योगदान नहहीं है।
  • 8.
    यनत्रिादह प्रकृ तििाद •इस सम्प्प्रदाय क े अनुसार सृजष्ि यनत्रिि है जो पदार्थ और गति से तनशमथि है। इस प्राणहहन यनत्र में कोई ध्येय, प्रयोजन या आध्याजत्मक िजति नहहीं है। मानि यद्यवप इस जगि का सिथश्रेष्ठ प्राणी है िर्ावप उसमें स्िचेिना नहहीं होिा, उसका व्यिहार िाह्य प्रभािोेेेीं क े कारण तनयींत्रत्रि होिा है। ज्यों-ज्यों मानि िाह्य िािािरण क े सम्प्पक थ में आिा है, मानि यनत्र सुचारू रूप से किया करिा रहिा है। • मनुष्य की प्रयोजनिीलिा, कियात्मकिा उसक े आजत्मक गुणों की वििेचना इस विचारधारा में सींभि नहहीं है। पिु की जस्र्ति, यनत्र की जस्र्ति िर्ा मनुष्य की जस्र्ति िीनों में अनिर है। • अिः मनुष्य की शिक्षा शभनन प्रकार से होनी चाहहए। इसशलए शिक्षा क े क्षेत्र में यनत्रिादह प्रकृ तििाद का कोई वििेष योगदान नहहीं है।
  • 10.
    जीि विज्ञान काप्रकृ तििाद • यह ववचारधारा ‘ववकास क े ससद्धान्ि’ में ववश्वास रखिी है। इससलए इस ववचारधारा का उदगम डाववशन क े िमववकास ससद्धान्ि से हुआ है। • इस मि क े अनुसार जीवों क े िम ववकास में मनुष्य सबसे अजन्िम अवस्र्ा में है। मजस्िष्क ववकास क े कारण ही मनुष्य ने भाषा का ववकास ककया जजसक े फलस्वरूप वह ज्ञान को संचचि रख सकिा है। नये ववचार उत्पन्न कर सकिा है िर्ा सामाजजक एवं सांस्कृ तिक जीवन का ववकास कर पाया है । अन्य सभी दृजष्टयों से मनुष्य अन्य प्राणणयों से सभन्न नहीं है। उसकी तनयति िर्ा ववकास की संभावनायें वंर्िम िर्ा पररवेर् पर तनभशर करिी हैं। उसमें ककसी प्रकार की इच्छा र्जति जैसी कोई चीज नहीं होिी। वास्िव में इस प्रकृ तिवाद से मनुष्य की पूवश जस्र्ति का ज्ञान ककया जा सकिा है। ककन्िु उसक े भववष्य क े आदर्ों की कल्पना भी नहीं कर सकिे हैं। यह कमी होिे हुए भी इस प्रकृ तिवाद का सर्क्षा में योगदान माना जा सकिा है
  • 12.
    प्रकृ तिवाद िर्ासर्क्षा क े उद्देश्य-1 • यन्रवादी प्रकृ तिवाद ने व्यवहारवादी मनोववज्ञान को जन्म ददया जजसक े अनुसार प्रत्येक मनुष्य क ु छ सहज कियाएं लेकर पैदा होिा है। जब ये सहज कियाएं बाह्य पयाशवरण क े सम्पक श में आिी हैं िो सम्बद्ध सहज कियाओं का तनमाशण होिा है ये सम्बद्ध सहज किया मनुष्य को ववसभन्न कायश में सहायिा प्रदान करिी हैं। इससलए यन्रवादी प्रकृ तिवादी मानव में उचचि िर्ा उपयोगी सम्बद्ध सहज कियाएं उत्पन्न करना ही सर्क्षा का उद्देश्य मानिे हैं। • जीव ववज्ञान क े ससद्धान्िों में ववश्वास रखने वाले प्रकृ तिवाददयों क े अनुसार सर्क्षा का चरम लक्ष्य सुख एवं आनन्द की प्राजति कराना है ककन्िु मैतडूगल महोदय ने यह ससद्ध ककया र्ा कक हम मूल प्रवृवत्तयों क े कारण कायश करिे हैं, सुख दुुःख िो प्रतिफल हैं। इससलए सर्क्षा का उद्देश्य मूल प्रवृवत्तयों का रूपान्िर िर्ा र्ोधन करना है, िाकक छार की प्रवृवत्तयों में पुनतनदेर् िर्ा एकीकरण द्वारा नवीन सामंजस्य उत्पन्न हो जाए जजससे वह सामाजजक एवं नैतिक मूल्यो क े अनुक ू ल आचरण कर सक े ।
  • 13.
    • यन्रवादी प्रकृतिवाद ने व्यवहारवादी मनोववज्ञान को जन्म ददया जजसक े अनुसार प्रत्येक मनुष्य क ु छ सहज कियाएं लेकर पैदा होिा है। जब ये सहज कियाएं बाह्य पयाशवरण क े सम्पक श में आिी हैं िो सम्बद्ध सहज कियाओं का तनमाशण होिा है ये सम्बद्ध सहज किया मनुष्य को ववसभन्न कायश में सहायिा प्रदान करिी हैं। इससलए यन्रवादी प्रकृ तिवादी मानव में उचचि िर्ा उपयोगी सम्बद्ध सहज कियाएं उत्पन्न करना ही सर्क्षा का उद्देश्य मानिे हैं। जीव ववज्ञान क े ससद्धान्िों में ववश्वास रखने वाले प्रकृ तिवाददयों क े अनुसार सर्क्षा का चरम लक्ष्य सुख एवं आनन्द की प्राजति कराना है ककन्िु मैतडूगल महोदय ने यह ससद्ध ककया र्ा कक हम मूल प्रवृवत्तयों क े कारण कायश करिे हैं, सुख दुुःख िो प्रतिफल हैं। इससलए सर्क्षा का उद्देश्य मूल प्रवृवत्तयों का रूपान्िर िर्ा र्ोधन करना है, िाकक छार की प्रवृवत्तयों में पुनतनदेर् िर्ा एकीकरण द्वारा नवीन सामंजस्य उत्पन्न हो जाए जजससे वह सामाजजक एवं नैतिक मूल्यो क े अनुक ू ल आचरण कर सक े ।
  • 14.
    • सुख एंवदुख क े ससद्धान्ि क े अनुसार मनुष्य सुख प्राजति वाले कायश करिा है और दुख देने वाले कायोंंं से बचने का प्रयास करिा है। यह बाि सही नहीं है तयोंकक मनुष्य कभी कभी किशव्य क े सलए प्राण भी दे देिा है। इस संबंध में टी.पी. नन महोदय का ववचार ज्यादा समीचीन प्रिीि होिा है। यद्यवप नन महोदय आदर्शवादी ववचारधारा क े अचधक समर्शक हैं ककन्िु सर्क्षा क े उद्देश्य क े सम्बन्ध में उन्होंने जीव वैज्ञातनक एवं प्रकृ तिवादी दृजष्टकोण से ववचार ककया है। उनक े अनुसार मानव क े व्यजतित्व का स्विंर रूप से ववकास करना ही सर्क्षा का मुख्य उद्देश्य है। नन क े अनुसार वैयजतिकिा से िात्पयश आत्मानुभूति और आत्म प्रकार्न है। इस प्रकार सर्क्षा का उद्देश्य व्यजति में तनदहि जन्मजाि र्जतियों क े स्विंर िर्ा अवरोधहीन ववकास में सहायिा प्रदान करना है।
  • 15.
    प्रकृ तिवाद िर्ाछार • प्रकृ तििादह पाठ्यिम का आख्यान स्पेनसर की पुस्िक से प्राप्ि होिा है। उनक े पाठ्यिम की वििेषिा यह है कक सम्प्पूणथ पाठ्यिम का आधार विज्ञान माना गया है। स्पेनसर क े अनुसार विज्ञान द्िारा हह समग्र जीिन जीना सींभि है। समग्र जीिन क े उद्देश्य की पूतिथ क े शलए स्पेनसर ने तनम्प्नशलखिि पाठ्यिम प्रस्िुि ककया है। • १. आत्म रक्षा क े शलए स्पेनसर िरहर विज्ञान का ज्ञान आिश्यक मानिे हैं। उनक े अनुसार िरहर विज्ञान क े पररचय द्िारा व्यजति को स्िस्र् जीिन त्रबिाने में सहायिा शमलिी है। • २. जीिन की मौशलक आिश्यकिाओीं की पूतिथ ककसी धनधे, रोजगार में लगकर की जा सकिी है और इसक े शलए गखणि, याींत्रत्रकी, भौतिकी, रसायनिास्त्र िर्ा जैविकी का अध्ययन आिश्यक है। • ३. सामाजजक एिीं राजनैतिक सींबींधों का सुचारू रूप से तनिथहन की योग्यिा प्राप्ि करने क े शलए सामाजजक विज्ञानों का अध्ययन आिश्यक है। • ४. अिकाि क े समय क े सदुपयोग क े शलए जो साहहत्य, सींगीि िर्ा लशलि कलाओीं की आिश्यकिा है। उनकी उचचि श्लाघा क े शलए भी िरहर विज्ञान, मनोविज्ञान, भौतिकी इत्याहद विज्ञानों की आिश्यकिा होिी है। अिः अिकाि कालहन शिक्षा को सार्थक बनाने क े शलए भी विज्ञान की पूिाथपेक्षा रहिी है।
  • 16.
    प्रकृ तिवाद िर्ासर्क्षण-ववचध • प्राचीन कालीन सर्क्षण पद्धति में अध्यापक कियार्ील रहिे र्े। बालकों का स्र्ान गौण र्ा ककन्िु बालक की कियार्ीलिा पर अचधक बल प्रकृ तिवाददयों ने ददया। ये रटने िर्ा तनजष्िय अभ्यास की ववचध का ववरोध करिे हैं िर्ा ‘करक े सीखने’ एवं ‘अनुभव द्वारा सीखने’ क े ससद्धान्िों पर आधाररि ववचधयों क े प्रयोग पर बल देिे हैं। इसक े अतिररति प्रकृ तिवादी ववचारधारा ने प्रोजेतट मेर्ड, स्काउट, आन्दोलन, स्क ू ल यूतनयन, बालक तलब इत्यादद को जन्म ददया। प्रकृ तिवादी सर्क्षण ववचध क े तनम्नसलणखि ससद्धान्ि पर ववर्ेष महत्व देिे हैं- • (१) बालक की सर्क्षा उसक े मानससक एवं र्ारीररक ववकास क े अनुक ू ल होनी चादहए। • (२) सर्क्षा सुखमय होनी चादहए। • (३) सर्क्षा में बालक को स्वयं कियार्ील होने क े सलए प्रेररि करना चादहए। • (४) सर्क्षा प्राकृ तिक ववकास का अनुगमन करें। इसक े पूवश बालक का नैतिक अर्वा मानससक ववकास अनावश्यक है। • (५) सर्क्षा प्रणाली में आगमन प्रववचध का ही प्रयोग होना चादहये। • (६) छारों को ददया जाने वाला दण्ड प्राकृ तिक होना चादहए। • (७) र्ब्द ज्ञान पर अचधक महत्व न देकर वस्िुओं अर्वा अनुभवों पर ववर्ेष बल देना चादहये।
  • 17.
    प्रकृ तिवाद िर्ासर्क्षक • प्रकृ तििादह शिक्षा में शिक्षक को गौण स्र्ान प्राप्ि है। प्रकृ तििादह विचारक प्रकृ ति को हह िास्िविक शिक्षक्षका मानिे हैं । उनक े विचार से बालक को समाज से दूर रिकर प्राकृ तिक िािािरण में शिक्षा प्राप्ि करने का अिसर देना चाहहए। रूसों क े अनुसार शिक्षक पर समाज क े क ु सींस्कारों का प्रभाि इिना पड़ गया होिा है कक िह बालकों को सद्गुणी बनाने का प्रयास भले हह कर लें, िह उनहें सदगुणी बना नहहीं सकिा तयोंकक िह स्ियीं सद्गुणी नहहीं है। इसशलए रूसों बालक की आरजम्प्भक शिक्षा में शिक्षक को कोई स्र्ान नहहीं देना चाहिे। अनय प्रकृ तििादह रूसो क े अतिरेक को स्िीकार नहहीं करिे । िे बालकों की शिक्षा में शिक्षक की भूशमका मात्र सहायक एिीं पर् प्रदिथक क े रूप में मानिे हैं । इसशलए शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञािा होना चाहहये। बालक की मनोकामनाएीं, आिश्यकिाएीं रूचचयााँ िर्ा उनक े मानशसक विकास का उसे पररज्ञान होना चाहहए। शिक्षक क े शलए बालक की स्ििः आत्मस्फ ू िथ कियाओीं का जानना आिश्यक है। तयोंकक छात्र इन स्ििः िजतियों द्िारा अपनी शिक्षा स्ियीं करिा है, शिक्षक िो क े िल उचचि पररजस्र्तियों का सींयोजन मात्र करिा है। यहद सीिने का पररणाम सुिद होिा है िो बालक सीिने में आननद लेिा है। िर्ा उति िैक्षक्षक अनुभि की बार बार आिृवि करिा है। शिक्षक से यह अपेक्षा की जािी है कक िह बालक क े शलए अनुक ू शलि िािािरण िैयार करे।
  • 18.
    प्रकृ तिवादी स्क ूल िर्ा समाज • रूसो क े अनुसार स्क ू ल स्ियीं एक वििेष प्रकार का समाज है। इस समाज क े द्िारा बालकों को भािी समाज क े योग्य बनाया जािा है। इसी समाज द्िारा िह स्िानुिासन की भािना सीििा है। नेिृत्ि करने िर्ा प्रकृ तििादह उद्देश्यों की पूतिथ करने हेिु अपने को िैयार करिा है। इस प्रकार क े स्क ू लह समाज का बनधन कठोर नहहीं होिा। यद्यवप रूसो ने स्क ू ल में एक छात्र िर्ा एक अध्यापक की कल्पना ककया है। सामानयिः प्रकृ तििादह ककसी प्रकार से औपचाररक शिक्षा का विरोध करिे हैं, इसीशलए इसमें विद्यालय को कोई महत्िपूणथ स्र्ान न देकर बालकों को दूवषि िािािरण से दूर और प्राकृ तिक िािािरण क े बीच रहकर शिक्षा प्राप्ि करने को कहा गया है। इनहहीं विचारों क े कारण प्रकृ तििादह विचारक स्क ू लों को कृ त्रत्रम कठोर एिीं दृढ़ बनधनों िालह सींस्र्ा नहहीं चाहिे । प्रकृ तििाहदयों क े अनुसार स्क ू ल में पाठ्यिम एिीं सहगामी कियाओीं इत्याहद से सींबींचधि विषयों की व्यिस्र्ा में बालकों का भी प्रतितनचधत्ि आिश्यक होिा है। इसशलए उनहें भ्रमण, देिािन, िेल क ू द, स्काउहिींग, समाज सेिा इत्याहद कायथिमों की स्ियीं हह व्यिस्र्ा करने की स्ििींत्रिा देनी चाहहये। शिक्षकों को क े िल पर् प्रदिथक की भूशमका का तनिथहन करना चाहहए।
  • 19.
    प्रकृ तिवाद िर्ाअनुर्ासन प्रकृ तिवादी ववचारक सर्क्षा में अनुर्ासन को महत्व नहीं देिे है। वे ‘कारण एवं पररणाम’ क े तनयम में ववश्वास करिे हैं। उनक े अनुसार प्रत्येक व्यजति जो कमश करिा है,उसका पररणाम वह अवश्य भोगिा है । ये पररणाम सुखकर एवं दुखकर दोनों ही होिे हैं । इस आधार पर अनुर्ासन स्र्ावपि करने क े दो उपतनयम ददखाई देिे हैं - (१) रूसो द्वारा प्रतिपाददि प्राकृ तिक पररणामों का ससद्धान्ि (२) स्पेन्सर द्वारा प्रतिपाददि सुख दुख का ससद्धान्ि। रूसो क े ससद्धान्ि क े अनुसार बालक क े बुरे कायों का दण्ड प्रकृ ति अवश्य देिी है। इससलए उसे ककसी प्रकार का दण्ड न देकर प्राकृ तिक दण्ड द्वारा अनुर्ाससि होने ददया जाना चादहये, जबकक स्पेन्सर क े ससद्धान्ि क े अनुसार बालक सुखदायी कायों को बार बार दुहराना चाहिा है। तयोंकक उससे उसे सुख की अनुभूति होिी है जबकक वह दुखद कायों को छोड़ देिा है, तयोंकक उससे उसे कष्ट होिा है । इस प्रकार बालक अनुर्ाससि ढंग से व्यवहार करने लगिा है और उसमें स्वानुर्ासन की भावना ववकससि होने लगिी है। क ु छ प्रकृ तिवादी ववचारक सर्क्षा व्यवस्र्ा में अनुर्ासन की स्र्ापना हेिु ककसी भी प्रकार क े ‘दमनात्मक ससद्धान्ि’ का ववरोध करिे हैं। उनका ववचार है कक बालकों पर सर्क्षकों का प्रभाव ववर्ेष रूप से पड़िा है। इससलए बालकों में अनुर्ासन की भावना ववकससि करने हेिु ‘प्रभावात्मक ससद्धान्ि का सहारा लेना चादहए, जबकक अनेक प्रकृ तिवादी ववचारक यह मानिे हैं कक अनुर्ासन की स्र्ापना प्राकृ तिक तनयमों क े अनुसार हो िो ज्यादा अच्छा होिा है । इस आधार पर यह कहा जा सकिा है कक प्रकृ तिवादी बालकों में स्वानुर्ासन की भावना क े ववकास क े सलए ‘मुतिात्मक ससद्धान्ि’ पर ववर्ेष बल देिे हैं।
  • 21.
    सर्क्षा में प्रकृतिवाद की देन • यहद हम शिक्षा क े सनदभथ में प्रकृ तििाद का मूल्याींकन करें िो हमें उसमें अनेक गुण नजर आिे हैं - • (१) बालक का शिक्षा में प्रमुि स्र्ान प्रकृ तििाद की वििेषिा है। एक समय र्ा जब शिक्षा पूणथिया आदिथिादह र्ी और शिक्षक, पाठ्यिम, चररत्र इत्याहद का िचथस्ि र्ा िर्ा बालक का स्र्ान गौण र्ा ककनिु प्रकृ तििाद क े कारण बालक एिीं उसकी रूचचयों प्रिृवियों एिीं आिश्यकिाओीं को क े नरहय स्र्ान हदया जािा है जजसक े कारण ‘बाल क े जनरि शिक्षा’ अजस्ित्ि में आयी। • (२) ‘बाल मनोविज्ञान’ क े अध्ययन की प्रेरणा भी इसी विचारधारा ने दह । आज शिक्षा क े क्षेत्र में जो मनोिैज्ञातनक प्रिृवि का प्रचलन है। यह प्रकृ तििाद क े प्रभाि का हह पररणाम है। मनोविज्ञान की एक वििेष िािा ‘मजस्िष्क विश्लेषण’ को िो वििेष प्रोत्साहन शमला। शलींग भेद की ओर इस मनोविज्ञान की वििेष देन है। इसक े प्रति इसने एक स्िस्र् विचारधारा को जनम हदया।हह देन है।
  • 23.
    • (३) प्रकृतििादह विचारधारा ने शिक्षण विचध में िब्दों की अपेक्षा अनुभिों पर अचधक बल हदया। उनका विचार है कक क े िल िब्द शिक्षा क े शलए आिश्यक गुण नहहीं है। अवपिु अनुभि भी आिश्यक है। इसशलए इसने शिक्षण क े अनेक निीन शसद्धानिों एिीं विचधयों को जनम हदया। ‘करक े सीिना’, तनरहक्षण एिीं अनुभि द्िारा सीिना, िेल द्िारा सीिना, इत्याहद निीन शिक्षण शसद्धानि िर्ा ‘ह्यूररजस्िक पद्धति’, ‘डाल्िन पद्धति’, मानिेसरह पद्धति इत्याहद निीन शिक्षण विचधयााँ प्रकृ तििाद की • (४) प्रकृ तिवाद का एक अन्य योगदान यह है कक इसने सर्क्षा मनोववज्ञान एवं समाजर्ास्र का प्रकृ तिवादी स्वरूप एवं आधार प्रदान ककया जजसक े पररणाम स्वरूप आधुतनक सर्क्षा मनोववज्ञान िर्ा समाजर्ास्र का अजस्ित्व आया। • (५) सर्क्षा क े सन्दभश में प्रकृ तिवाद का सबसे उल्लेखनीय योगदान सर्क्षा सम्बन्धी ववसभन्न परम्परावादी धारणाओं में िाजन्िकारी पररविशन होना है। प्रकृ तिवाददयों क े ‘प्रकृ ति की ओर लौटो’ क े नारे ने हमारी सभ्यिा एवं संस्कृ ति की परम्परात्मक धारणा में िाजन्िकारी पररविशन उत्पन्न कर ददया जजसक े पररणामस्वरूप समाज एवं राज्य दर्शन क े रूप में लोकिन्र का जन्म हुआ। क ु ल समलाकर यह कहा जा सकिा है कक प्रकृ तिवाद, आदर्शवाद क े बबल्क ु ल ववपरीि ववचारधारा है जो कक इजन्ियों द्वारा प्रत्यक्ष होने वाले भौतिक प्राकृ तिक पदार्श जगि को सत्य वास्िववकिा मानिी है।