3. इस लेख में हम समास औि समास क
े भेद ों क उदाहिण
सवहत जानेंगे।
समास वकसे कहते हैं?
सामावसक शब्द वकसे कहते हैं?
पूिवपद औि उत्तिपद वकसे कहते हैं?
समास विग्रह क
ै से ह ता है?
समास औि सोंवि में क्या अोंति है?
समास क
े वकतने भेद हैं?
समास
4.
5. समास की पररभाषा
समास का तात्पयव ह ता है- संधिप्तीकरण। इसका शाब्दब्दक अर्व ह ता है-
छोटा रूप। अर्ावत् जब द या द से अविक शब्द ों से वमलकि ज नया औि
छ टा शब्द बनता है उस शब्द क समास कहते हैं।
दू सरे शब्ों में- द या द से अविक शब्द ों से वमलकि बने हुए एक निीन
एिों सार्वक शब्द (वजसका क ई अर्व ह ) क समास कहते हैं।
जैसे –
‘िस ई क
े वलए घि’ इसे हम ‘िस ईघि’ भी कह सकते हैं।
6. समास क
े वनयम ों से वनवमवत शब्द सामावसक शब्द कहलाता है।
इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास ह ने क
े बाद विभब्दिय ों
क
े विह्न गायब ह जाते हैं।
जैसे -
िस ई क
े वलए घि = िस ईघि
हार् क
े वलए कडी = हर्कडी
नील औि कमल = नीलकमल
िाजा का पुत्र = िाजपुत्र
सामाधसक शब्
7. पूववपद और उत्तरपद
समास ििना में द पद ह ते हैं, पहले पद क ‘पूिवपद’कहा जाता
है औि दू सिे पद क ‘उत्तिपद’कहा जाता है। इन द न ों से ज
नया शब्द बनता है ि समस्त पद कहलाता है।
जैसे-
पूजाघर (समस्तपद) – पूजा (पूिवपद) + घि (उत्तिपद) - पूजा
क
े वलए घि (समास-विग्रह)
राजपुत्र (समस्तपद) – िाजा (पूिवपद) + पुत्र (उत्तिपद) - िाजा
का पुत्र (समास-विग्रह)
8. समास धवग्र
सामावसक शब्द ों क
े बीि क
े सम्बन्ध क स्पष्ट किने क समास-
विग्रह कहते हैं। विग्रह क
े बाद सामावसक शब्द गायब ह जाते हैं
अर्ातव जब समस्त पद क
े सभी पद अलग-अलग वकय जाते हैं,
उसे समास-विग्रह कहते हैं।
जैसे -
माता-वपता = माता औि वपता।
िाजपुत्र = िाजा का पुत्र।
9. समास और संधि में अंतर
संधि का शाब्दब्क अर्व ोता ै- मेल। सोंवि में उच्चािण क
े वनयम ों का विशेष महत्व ह ता है।
इसमें द िणव ह ते हैं, इसमें कहीों पि एक त कहीों पि द न ों िणों में विया विच्छे द कहलाती है।
सोंवि में वजन शब्द ों का य ग ह ता है, उनका मूल अर्व नहीों बदलता।परिितवन ह जाता है औि
कहीों पि तीसिा िणव भी आ जाता है। सोंवि वकये हुए शब्द ों क त डने की
जैसे - पुस्तक+आलय = पुस्तकालय।
समास का शाब्दब्क अर्व ोता ै- सोंक्षेप। समास में िणों क
े स्र्ान पि पद का महत्व ह ता है।
इसमें द या द से अविक पद वमलकि एक समस्त पद बनाते हैं औि इनक
े बीि से विभब्दिय ों
का ल प ह जाता है। समस्त पद ों क त डने की प्रविया क विग्रह कहा जाता है। समास में बने
हुए शब्द ों क
े मूल अर्व क परििवतवत वकया भी जा सकता है औि परििवतवत नहीों भी वकया जा
सकता है।
जैसे - विषिि = विष क िािण किने िाला अर्ातव वशि।
13. अव्ययीभाव समास
वजस समास का पूिव पद प्रिान ह , औि िह अव्यय ह उसे
अव्ययीभाि समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप वलोंग,
ििन, कािक, में नहीों बदलता है, ि हमेशा एक जैसा िहता है।
दू सिे शब्द ों में यवद एक शब्द की पुनिािृवत्त ह औि द न ों शब्द
वमलकि अव्यय की तिह प्रय ग ह ों, िहााँ पि अव्ययीभाि समास
ह ता है। सोंस्क
ृ त में उपसगव युि पद भी अव्ययीभाि समास ही
मने जाते हैं।
इसमें पहला पद उपसगव ह ता है जैसे अ, आ, अनु, प्रवत, हि, भि,
वन, वनि, यर्ा, याित आवद उपसगव शब्द का ब ि ह ता है।
14. 1. यर्ाशब्दि = शब्दि क
े अनुसाि
2. प्रवतवदन = प्रत्येक वदन
3. आजन्म = जन्म से लेकि
4. घि-घि = प्रत्येक घि
5. िात ों िात = िात ही िात में
6. आमिण = मृत्यु तक
अव्ययीभाव समास
7. अभूतपूिव = ज पहले नहीों हुआ
8. वनभवय = वबना भय क
े
9. अनुक
ू ल = मन क
े अनुसाि
10. भिपेट = पेट भिकि
11. बेशक = शक क
े वबना
12. खुबसूित = अच्छी सूित िाली
जैसे -
17. तत्पुरुष समास
वजस समास का उत्तिपद प्रिान ह औि पूिवपद गौण ह उसे तत्पुरुष
समास कहते हैं। यह कािक से जुडा समास ह ता है। इसमें ज्ञातव्य-
विग्रह में ज कािक प्रकट ह ता है उसी कािक िाला ि समास ह ता
है। इसे बनाने में द पद ों क
े बीि कािक विन् ों का ल प ह जाता है,
उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
इस समास में सािािणतः प्रर्म पद विशेषण औि वितीय पद विशेष्य
ह ता है। वितीय पद, अर्ावत बादिाले पद क
े विशेष्य ह ने क
े कािण
इस समास में उसकी प्रिानता िहती है।
18. जैसे -
तत्पुरुष समास
1. िमव का ग्रन्थ = िमवग्रन्थ
2. िाजा का क
ु माि = िाजक
ु माि
3. तुलसीदासक
ृ त = तुलसीदास िािा क
ृ त
इसमें कताव औि सोंब िन कािक क छ डकि शेष छ: कािक विन् ों
का प्रय ग ह ता है। जैसे- कमव कािक, किण कािक, सम्प्रदान
कािक, अपादान कािक, सम्बन्ध कािक, अविकिण कािक इस
समास में दू सिा पद प्रिान ह ता है।
19. कमव तत्पुरुष - इसमें द पद ों क
े बीि में कमवकािक वछपा हुआ ह ता है।
कमवकािक का विह्न ‘क ’ ह ता है। ‘क ’ क कमवकािक की विभब्दि भी कहा
जाता है। उसे कमव तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘क ’ क
े ल प से यह समास बनता
है।
जैसे - ग्रोंर्काि = ग्रन्थ क वलखने िाला।
करण तत्पुरुष- जहााँ पि पहले पद में किण कािक का ब ि ह ता है। इसमें द
पद ों क
े बीि किण कािक वछपा ह ता है। किण कािक का विह्न या विभब्दि ‘क
े
िािा’ औि ‘से’ ह ता है। उसे किण तत्पुरुष कहते हैं। ‘से’ औि ‘क
े िािा’ क
े ल प
से यह समास बनता है।
जैसे -िाब्दिवकिवित = िािीवक क
े िािा िवित।
20. सम्प्रदान तत्पुरुष - इसमें द पद ों क
े बीि सम्प्रदान कािक वछपा ह ता है।
सम्प्रदान कािक का विन् या विभब्दि ‘क
े वलए’ ह ती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष
समास कहते हैं। ‘क
े वलए’ का ल प ह ने से यह समास बनता है।
जैसे - सत्याग्रह = सत्य क
े वलए आग्रह
अपादान तत्पुरुष - इसमें द पद ों क
े बीि में अपादान कािक वछपा ह ता है।
अपादान कािक का विन् या विभब्दि ‘से अलग’ ह ता है। उसे अपादान तत्पुरुष
समास कहते हैं। ‘से’ का ल प ह ने से यह समास बनता है।
जैसे - पर्भ्रष्ट = पर् से भ्रष्ट
21. सम्बन्ध तत्पुरुष- इसमें द पद ों क
े बीि में सम्बन्ध कािक वछपा ह ता है। सम्बन्ध
कािक क
े विन् या विभब्दि ‘का, ‘क
े , ‘की’ ह ती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास
कहते हैं। ‘का, ‘क
े , ‘की’ आवद का ल प ह ने से यह समास बनता है।
जैसे - िाजसभा = िाजा की सभा
अधिकरण तत्पुरुष - इसमें द पद ों क
े बीि अविकिण कािक वछपा
ह ता है। अविकिण कािक का विन् या विभब्दि ‘में, ‘पि’ ह ता है।
उसे अविकिण तत्पुरुष समास कहते हैं। ‘में’ औि ‘पि’ का ल प ह ने
से यह समास बनता है।
जैसे - जलसमावि = जल में समावि
22. तत्पुरुष समास क
े प्रकार
1. नञ् तत्पुरुष समास- इसमें पहला पद वनषेिात्मक ह ता
है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे -
1. असभ्य = न सभ्य।
2. अनावद = न आवद।
3. असोंभि = न सोंभि।
4. अनोंत = न अोंत।
23.
24. 2. कमविारय समास
वजस समास का उत्तिपद प्रिान ह ता है, वजसक
े वलोंग, ििन भी सामान ह ते हैं। ज समास में
विशेषण-विशेष्य औि उपमेय-उपमान से वमलकि बनते हैं, उसे कमविािय समास कहते हैं।
कमविािय समास में व्यब्दि, िस्तु आवद की विशेषता का ब ि ह ता है। कमविािय समास क
े
विग्रह में ‘है ज , ‘क
े समान है ज ’ तर्ा ‘रूपी’ शब्द ों का प्रय ग ह ता है। जैसे -
1. िन्द्रमुख - िन्द्रमा क
े सामान मुख िाला - (विशेषता)
2. दहीिडा - दही में ड
ू बा बडा - (विशेषता)
3. गुरुदेि - गुरु रूपी देि - (विशेषता)
4. ििण कमल - कमल क
े समान ििण - (विशेषता)
5. नील गगन - नीला है ज असमान - (विशेषता)
25.
26. द्वंद्व समास
इस समास में द न ों पद ही प्रिान ह ते हैं इसमें वकसी भी पद का गौण नहीों ह ता
है। ये द न ों पद एक-दू सिे पद क
े विल म ह ते हैं लेवकन ये हमेशा नहीों ह ता है।
इसका विग्रह किने पि औि, अर्िा, या, एिों का प्रय ग ह ता है उसे िोंि समास
कहते हैं। िोंि समास में य जक विन् (-) औि 'या' का ब ि ह ता है।
जैसे -
1. जलिायु = जल औि िायु। 2. अपना-पिाया = अपना या पिाया।
3. पाप-पुण्य = पाप औि पुण्य। 4. िािा-क
ृ ष्ण = िािा औि क
ृ ष्ण।
5. अन्न-जल = अन्न औि जल। 6. नि-नािी = नि औि नािी।
7. गुण-द ष = गुण औि द ष। 8. देश-विदेश = देश औि विदेश।
29. 3. धद्वगु समास
विगु समास में पूिवपद सोंख्यािािक ह ता है औि कभी-कभी उत्तिपद भी
सोंख्यािािक ह ता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुि सोंख्या वकसी
समूह क दशावती है, वकसी अर्व क नहीों। इससे समूह औि समाहाि का ब ि
ह ता है। उसे विगु समास कहते हैं।
जैसे –
1. निग्रह = नौ ग्रह ों का समूह। 2. द पहि = द पहि ों का समाहाि।
3. वत्रिेणी = तीन िेवणय ों का समूह। 4. पोंितन्त्र = पाोंि तोंत्र ों का समूह।
5. वत्रल क = तीन ल क ों का समाहाि। 6. शताब्दी = सौ अब्द ों का समूह।
7. सप्तऋवष = सात ऋवषय ों का समूह। 8. वत्रक ण = तीन क ण ों का समाहाि।
9. सप्ताह = सात वदन ों का समूह। 10. वतिोंगा = तीन िोंग ों का समूह।
11. ितुिेद = िाि िेद ों का समाहाि।
30.
31. बहुब्रीध समास
इस समास में क ई भी पद प्रिान नहीों ह ता। जब द पद वमलकि तीसिा पद
बनाते हैं तब िह तीसिा पद प्रिान ह ता है। इसका विग्रह किने पि “िाला, है,
ज , वजसका, वजसकी, वजसक
े , िह” आवद आते हैं, िह बहुब्रीवह समास कहलाता
है।
दू सरे शब्ों में- वजस समास में पूिवपद तर्ा उत्तिपद द न ों में से क ई भी पद
प्रिान न ह कि क ई अन्य पद ही प्रिान ह , िह बहुव्रीवह समास कहलाता है।
वजस समस्त-पद में क ई पद प्रिान नहीों ह ता, द न ों पद वमल कि वकसी तीसिे
पद की ओि सोंक
े त किते है, उसमें बहुव्रीवह समास ह ता है। 'नीलक
ों ठ', नीला है
क
ों ठ वजसका अर्ावत वशि। यहााँ पि द न ों पद ों ने वमल कि एक तीसिे पद 'वशि'
का सोंक
े त वकया, इसवलए यह बहुव्रीवह समास है।
32. इस समास क
े समासगत पद ों में क ई भी प्रिान नहीों ह ता, बब्दि पूिा समस्तपद
ही वकसी अन्य पद का विशेषण ह ता है।
जैसे -
1. गजानन = गज का आनन है वजसका (गणेश)
2. वत्रनेत्र = तीन नेत्र हैं वजसक
े (वशि)
3. नीलक
ों ठ = नीला है क
ों ठ वजसका (वशि)
4. लम्ब दि = लम्बा है उदि वजसका (गणेश)
5. दशानन = दश हैं आनन वजसक
े (िािण)
6. ितुभुवज = िाि भुजाओों िाला (विष्णु)
7. पीताम्बि = पीले हैं िस्त्र वजसक
े (क
ृ ष्ण)
8. िििि= िि क िािण किने िाला (विष्णु)
33.
34. जैसे –
1. 'िििि' िि क िािण किता है ज अर्ावत 'श्रीक
ृ ष्ण’।
2. नीलक
ों ठ - नीला है ज क
ों ठ - (कमविािय)
3. नीलक
ों ठ - नीला है क
ों ठ वजसका अर्ावत वशि - (बहुव्रीवह)
4. लोंब दि - म टे पेट िाला - (कमविािय)
5. लोंब दि - लोंबा है उदि वजसका अर्ावत गणेश - (बहुव्रीवह)
6. महात्मा - महान है ज आत्मा - (कमविािय)
7. महात्मा - महान आत्मा है वजसकी अर्ावत विशेष व्यब्दि - (बहुव्रीवह)
8. कमलनयन - कमल क
े समान नयन - (कमविािय)
9. कमलनयन - कमल क
े समान नयन हैं वजसक
े अर्ावत विष्णु - (बहुव्रीवह)
10. पीताोंबि - पीले हैं ज अोंबि (िस्त्र) - (कमविािय)
11. पीताोंबि - पीले अोंबि हैं वजसक
े अर्ावत क
ृ ष्ण - (बहुव्रीवह)
35. धद्वगु और बहुव्रीध समास में अंतर
विगु समास का पहला पद सोंख्यािािक विशेषण ह ता है औि दू सिा पद विशेष्य
ह ता है जबवक बहुव्रीवह समास में समस्त पद ही विशेषण का कायव किता है।
जैसे-
1. ितुभुवज - िाि भुजाओों का समूह - विगु समास।
2. ितुभुवज - िाि है भुजाएाँ वजसकी अर्ावत विष्णु - बहुव्रीवह समास।
3. पोंििटी - पााँि िट ों का समाहाि - विगु समास।
4. पोंििटी - पााँि िट ों से वघिा एक वनवित स्र्ल - बहुव्रीवह समास।
5. वत्रल िन - तीन ल िन ों का समूह - विगु समास।
6. वत्रल िन - तीन ल िन हैं वजसक
े अर्ावत वशि - बहुव्रीवह समास।
7. दशानन - दस आनन ों का समूह - विगु समास।
8. दशानन - दस आनन हैं वजसक
े अर्ावत िािण - बहुव्रीवह समास।
36. धद्वगु और कमविारय में अंतर
(i) विगु का पहला पद हमेशा सोंख्यािािक विशेषण ह ता है ज दू सिे पद की
वगनती बताता है जबवक कमविािय का एक पद विशेषण ह ने पि भी
सोंख्यािािक कभी नहीों ह ता है।
(ii) विगु का पहला पद ही विशेषण बन कि प्रय ग में आता है जबवक कमविािय
में क ई भी पद दू सिे पद का विशेषण ह सकता है। जैसे-
1. निित्न - नौ ित्न ों का समूह - विगु समास
2. ितुिवणव - िाि िणो का समूह - विगु समास
3. पुरुष त्तम - पुरुष ों में ज है उत्तम - कमविािय समास
4. िि त्पल - िि है ज उत्पल - कमविािय समास