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नाम - शिव िंकर साहू
शिव संदर साहू
 वाच्य की परिभाषा
 वाच्य के प्रकाि
 वाच्य के उदाहिण
 िस की परिभाषा
 िस के भेद
 िस के प्रकाि
 िस के उदाहिण
 क्रिया के उस पररवर्तन को वाच्य कहर्े हैं, जिसके
द्वारा इस बार् का बोध होर्ा है क्रक वाक्य के
अन्र्र्तर् कर्ात, कमत या भाव में से क्रकसकी
प्रधानर्ा है।
 दूसरे िब्दों में क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञार् हो
क्रक उसके प्रयोर् का आधार कर्ात, कमत या भाव है,
उसे वाच्य कहर्े हैं।
 हहंदी में वाच्य के र्ीन भेद माने िार्े हैं –
 कर्तवाच्य -> जिस वाक्य में कर्ात की प्रमखर्ा
होर्ी है अर्ातर् क्रिया का प्रयोर् कर्ात के श ंर्,
वचन, कारक के अनसार होर्ा है और इसका सीधा
संबंध कर्ात से होर्ा है र्ब कर्ततवाच्य होर्ा है।
कर्ततवाच्य में अकमतक और सकमतक दोनों प्रकार की
क्रिया का प्रयोर् क्रकया िार्ा है ।
 उदाहिण -> मोहन फ खार्ा है।
-> हदनेि पस्र्क नहीं पढर्ा है।
 कर्तवाच्य -> जिस वाक्य में कमत की प्रधानर्ा होर्ी
है र्र्ा क्रिया का प्रयोर् कमत के श ंर्, वचन और
परुष के अनसार होर्ा है और कर्ात की जस्र्तर् में
स्वयं कमत होर्ा है, वहााँ कमतवाच्य होर्ा है।
 उदाहिण -> कववयों द्वारा कववर्ायेँ श खी र्।।
रोर्ी को दवा दी र्।।
उससे पस्र्के पढ़ी र्।।
 कमतवाच्य-कछ महत्त्वपूर्त र्थ्य
 कायात यी या कानूनी प्रयोर् में –
हे मेट न पहनने वा ों को दंडिर् क्रकया िाएर्ा।
 अिक्र्र्ा दिातने के श ए; िैसे –
अब दवा भी नहीं पी िार्ी।
 िब सरकार या सभा स्वयं कर्ात हो; िैसे –
प्रत्येक घाय को पचास हिार रुपये हदए िाएाँर्े।
 िब कर्ात ज्ञार् न हो; िैसे –
भ्रष्टाचार को बढ़ावा हदया िा रहा है।
 अधधकार या घमंि का भाव दिातने के श ए; िैसे
ऐसा खाना हमसे नहीं खाया िार्ा।
 भाववाच्य ->इस वाच्य में कर्ात अर्वा कमत की
नहीं बजकक भाव अर्ातर् ् क्रिया के अर्त की
प्रधानर्ा होर्ी है ।
 उदाहिण -> मरीि से उठा नहीं िार्ा।
पह वान से दौिा नहीं िार्ा।
 भाववाच्य – कु छ र्हत्त्वपूणत र्थ्य
 इस वाच्य में प्रायः नकारात्मक वाक्य होर्े हैं।
 भाववाच्य में अकमतक क्रिया का प्रयोर् होर्ा है।
प्रश्न 1.तनम्नश खखर् वाक्यों के वाच्य का नाम
श खखए।
1. वह खाना खाकर च ा र्या।
2. मोहन से च ा नहीं िार्ा।
3. आि तनजश्चर् होकर सोया िाएर्ा।
4. ड्रा।वर बस च ार्ा िा रहा र्ा।
5. उससे पत्र नहीं पढ़ा िार्ा।
6. रुजक्मर्ी से यह सामान नहीं उठाया िार्ा।
7. छात्राएाँ रार्-रार् भर पढ़ा। करर्ी रही।
8. वह राम ी ा देख रहा है।
9. र्न्वी रार् भर सो न सकी।
10. अक्षर से एक भी र्ेंद नहीं फें की र्।।
1. कर्ततवाच्य
2. भाववाच्य
3. भाववाच्य
4. कर्ततवाच्य
5. कमतवाच्य
6. कमतवाच्य
7. कर्ततवाच्य
8. कर्ततवाच्य
9. भाववाच्य
10. कमतवाच्य
 कववर्ा-कहानी को पढने, सनने और नाटक को
देखने से पाठक, श्रोर्ा और दितक को िो आनंद
प्राप्र् होर्ा है, उसे रस कहर्े हैं।
 रस का िाजब्दक अर्त है 'आनंद '।
 काव्य को पढ़ने से या सनने से जिस आनंद की
अनभूतर् होर्ी है , उसे रस कहा िार्ा है।
 रस को काव्य की आत्मा माना िार्ा है।
 हहंदी व्याकरर् में रस के चार अंर् होर्े है , इस
प्रकार है।
I. स्र्ा।भाव
II. ववभाव
III. अनभाव
IV. संचारीभाव
 स्र्ा। भाव रस का पह ा एवं सवतप्रमख अंर् है। भाव िब्द की
उत्पवि ‘ भ ् ‘ धार् से ह। है। जिसका अर्त है संपन्न होना या
ववद्यमान होना।
 अर्ः िो भाव मन में सदा अशभज्ञान ज्ञार् रूप में ववद्यमान रहर्ा
है उसे स्र्ा। या जस्र्र भाव कहर्े हैं। िब स्र्ा। भाव का संयोर्
ववभाव , अनभाव और संचारी भावों से होर्ा है र्ो वह रस रूप में
व्यक्र् हो िार्े हैं।
 सामान्यर्ः स्र्ा। भावों की संख्या अधधक हो सकर्ी है
क्रकं र्आचायत भरर्मतन ने स्थाई भाव आठ ही र्ाने हैं –
ितर् , हास्य , शोक , क्रोध , उत्साह , भय , जुगुप्सा औि
ववस्र्य।
 आर्े च कर इनकी संख्या १० हो र्। जिनमे एक तनवेद और
दूसरा वात्सकय रस र्ा।
 रस का दूसरा अतनवायत एवं महत्वपूर्त अंर् है।
भावों का ववभाव करने वा े अर्वा उन्हें आस्वाद
योग्य बनाने वा े कारर् ववभाव कह ार्े हैं।
ववभाव कारर् हेर् तनशमतर् आहद से सभी
पयातयवाची िब्द हैं।
 ववभाव का मू कायत सामाजिक हृदय में ववद्यमान
भावों की महत्वपूर्त भूशमका मानी र्। है।
 ववभाव के अंग – १ आलंबन ववभाव औि २
उद्दीपन ववभाव
 आलंबन का अथत है आधार या आश्रय अर्ातर्
जिसका अव ंब का आधार ेकर स्र्ा। भावों की
िार्ततर् होर्ी है उन्हें आ ंबन कहर्े हैं। सिल
शब्दों र्ें कहा िा सकर्ा है क्रक िो सोए हए
मनोभावों को िार्तर् करर्े हैं वह आ ंबन ववभाव
कह ार्े हैं।
 उद्दीपन का अथत है उद्दीप्र् करना भड़काना या
बढ़ावा देना िो िार्तर् भाव को उद्दीप्र् करें वह
उद्दीपन ववभाव कह ार्े हैं।
 रस योिना का र्ीसरा महत्वपूर्त अंर् है। आ ंबन और
उद्दीपन के कारर् िो कायत होर्ा है उसे अनभव कहर्े
हैं। िास्त्र के अनसार आश्रय के मनोर्र् भावों को
व्यक्र् करने वा ी िारीररक चेष्टाएं अनभव कह ार्ी
है।भावों के पश्चार् उत्पन्न होने के कारर् इन्हें अनभव
कहा िार्ा है।
 अनुभवों की संख्या 4 कही र्। है – सात्त्वक ,
कातयक, र्ानससक औि आहायत।
 कवव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से इन सभी अनभव का
यर्ास्र्ान प्रयोर् करर्ा च र्ा है।
 साजत्वक वह अनभव है िो जस्र्तर् के अनरूप स्वयं ही
उत्पन्न हो िार्े हैं
 इनकी संख्या 8 मानी र्। है – स्र्ंभ , स्वेद , िोर्ांच
, स्विभंग , कं पन , ववविण , अश्रु , प्रलय
 रस की और वस्र् या ववचार का नेर्तत्व करर्े हे
उसे संचारी भाव कहर्े हे।
 संचारीभाव क्रकसी न क्रकसी स्र्ायी भाव के सार्
प्रकट होर्े है।
 संचािी भावों की संख्या 33 र्ानी गई है
 तनवेद, स्र्ब्ध, धर् ानी, िंका या भ्रम, आ स्य,
दैन्य, धचंर्ा, स्वप्न, उन्माद, बीड़ा, सफ र्ा, हषत,
आवेद, िड़र्ा, र्वत, ववषाद, तनद्रा, स्वप्न , उन्माद,
त्रास, धततर्, समर्त, उग्रर्ा, व्याधध, मरर्, ववर्कत
आहद।
 इस ेख में आपको िस के ग्यािह भेद और उनके उदाहरर्
पढ़ने को शम ेंर्े। र्ुख्यर्ः िस १० प्रकाि के होर्े हैं परंर्
हमारे आचायों द्वारा एक और रस भी स्वीकत र् क्रकया र्या
है जिसे हम भजक्र् रस कहर्े हैं।
I. श्रतंर्ार रस
II. हास्य रस
III. रौद्र रस
IV. करुर्ा रस
V. वीर रस
VI. अद्भर् रस
VII. बीभत्स रस
VIII. भयानक रस
IX. िांर् रस
X. वात्सकय रस
 श्रतंर्ार रस ‘ रसों का रािा ‘ एवं महत्वपूर्त प्रर्म
रस माना र्या है। ववद्वानों के मर्ानसार श्रतंर्ार
रस की उत्पवि ‘ श्रतंर् + आर ‘ से ह। है। इसमें
‘श्रतंर्’ का अर्त है – काम की वतद्धध र्र्ा ‘आर’ का
अर्त है प्राजप्र्।
 अर्ातर् कामवासना की वतद्धध एवं प्राजप्र् ही श्रतंर्ार
है इसका स्र्ा। भाव ‘रतर्’ है।
 सहृदय के हृदय में संस्कार रुप में या िन्मिार्
रूप में ववद्यमान रतर् नामक स्र्ा। भाव अपने
प्रतर्कू ववभाव , अनभाव और संचारी भाव के
सहयोर् से अशभव्यक्र् होकर िब आिीवातद योग्य
बन िार्ा है र्ब वह श्रतंर्ार में पररर्र् हो िार्ा है।
१ संयोग श्ररंगाि -> संयोर् श्रतंर्ार के अंर्र्तर् नायक –
नातयका के परस्पर शम न प्रेमपूर्त कायतक ाप एवं
सखद अनभूतर्यों का वर्तन होर्ा है। िैसे–
‘‘कहर्, नटर्, िीझर्, खीझर्, सर्लर्, खखलर्, लत्जयार् ।
भिै भौन र्ें किर् है, नैनन ही सों बार्ा। ।’’
२ ववयोग श्ररंगाि -> ववयोर् श्रतंर्ार वहां होर्ा है िहां
नायक-नातयका में परस्पर उत्कट प्रेम होने के बाद भी
उनका शम न नहीं हो पार्ा। ‘‘अतर् र्लीन वरषभानु
कु र्ािी हरि ऋर् जल संर्ि र्नु भीजै ,र्ा लालर् न
घुआवतर् सािी।’’
 हास्य रस मनोरंिक है। आचायों के मर्ानसार
‘हास्य’ नामक स्र्ा। भाव अपने अनकू , ववभाव
, अनभाव और संचारी भाव के सहयोर् से
अशभव्यक्र् होकर िब आस्वाद का रूप धारर् कर
ेर्ा है र्ब उसे हास्य कहा िार्ा है। सामान्य
ववकत र् आकार-प्रकार वेिभूषा वार्ी र्र्ा आंधर्क
चेष्टाओं आहद को देखने से हास्य रस की तनष्पवि
होर्ी है।
 उदाहिण -> बुिे सर्य को देख कि गंजे र्ू क्यों
िोय।
ककसी भी हालर् र्ें र्ेिा बाल न बााँका होय।
 िोध भाव को व्यंजिर् करने वा ा अर् ा रौद्र रस
है। िास्त्र के अनसार सहृदय में वासना में
ववद्यमान िोध रस नामक स्र्ा। भाव अपने
अनरूप ववभाव , अनभाव और संचारी भाव के
सहयोर् से िब अशभव्यक्र् होकर आस्वाद का रूप
धारर् कर ेर्ा है , र्ब उसे रौद्र कहा िार्ा है।
वस्र्र्ः िहां ववरोध , अपमान या उपकार के
कारर् प्रतर्िोध की भावना िोध उपिर्ी है वही
रौद्र रस साकार होर्ा है।
 उदाहिण -> श्रीकर ष्ण के सुन वचन अजुतन क्षोभ से
जलने लगे।
सब शील अपना भूल कि किर्ल युगल र्लने लगे॥
संसाि देखे अब हर्ािे शत्रु िण र्ें र्रर् पडे।
किर्े हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कि खडे॥
 िहां क्रकसी हातन के कारर् िोक भाव उपजस्र्र्
होर्ा है , वहां ‘ करुर् रस ‘ उपजस्र्र् होर्ा है। पर
हातन क्रकसी अतनष्ट क्रकसी के तनधन अर्वा प्रेमपात्र
के धचर ववयोर् के कारर् संभव होर्ा है। िास्त्र के
अनसार ‘िोक’ नामक स्र्ा। भाव अपने अनकू
ववभाव , अनभाव एवं संचारी भावों के सहयोर् से
अशभव्यक्र् होकर िब आस्वाद का रूप धारर् कर
ेर्ा है र्ब उसे करुर् रस कहा िार्ा है।
 उदाहिण -> िही खिकर्ी हाय शूल-सी, पीडा उि र्ें
दशिथ के ।
ग्लातन, त्रास, वेदना - ववर्त्डिर्, शाप कथा वे कह
न सके ।।
 िहां ववषय और वर्तन में उत्साह यक्र् वीरर्ा के
भाव को प्रदशितर् क्रकया िार्ा है वहां वीर रस होर्ा
है ।
 उदाहिण -> बुंदेले हि बोलो के र्ुख हर्ने सुनी
कहानी थी।
खूब लडी र्दातनी वो र्ो झााँसी वाली िानी थी।।
 ववस्मय करने वा ा अद्भर् रस कह ार्ा है । िो
ववस्मय भाव अपने अनकू आ ंबन , उद्दीपन ,
अनभाव और संचारी भाव का संयोर् पाकर
आस्वाद का रूप धारर् कर ेर्ा है , र्ो उसे ‘
अद्भर् रस ‘ कहर्े हैं ।
 उदाहिण -> देख यशोदा सशशु के र्ुख र्ें, सकल
ववश्व की र्ाया।
क्षणभि को वह बनी अचेर्न, हहल न सकी कोर्ल
काया॥
 वीभत्स घतर्ा के भाव को प्रकट करने वा ा रस है।
आचायों के मर्ानसार िब घतर्ा या िर्प्सा का
भाव अपने अनरूप आ ंबन , उद्दीपन एवं संचारी
भाव के सहयोर् से आस्वाद का रूप धारर् कर
ेर्ा है र्ो इसे वीभत्स रस कहा िार्ा है।
 उदाहिण -> आाँखे तनकाल उड जार्े, क्षण भि उड
कि आ जार्े।
शव जीभ खींचकि कौवे, चुभला-चभला कि खार्े।
भोजन र्ें श्वान लगे र्ुिदे थे भू पि लेटे।
खा र्ााँस चाट लेर्े थे, चटनी सैर् बहर्े बहर्े बेटे।
 िास्त्र के अनसार क्रकसी ब वान ित्र या भयानक
वस्र् को देखने पर उत्पन्न भय ही भयानक रस
है। भय नामक स्र्ा। भाव िब अपने अनरूप
आ ंबन , उद्दीपन एवं संचारी भावों का सहयोर्
प्राप्र् कर आस्वाद का रूप धारर् कर ेर्ा है र्ो
इसे भयानक कहा िार्ा है।
 उदाहिण -> अखखल यौवन के िंग उभाि, हड्डियों
के हहलार्े कं काल॥
कचो के चचकने काले, व्याल, कें चुली, कााँस, ससबाि॥
 र्त्वज्ञान और वैराग्य से िांर् रस की उत्पवि
मानी र्। है , इसका स्र्ा। भाव ‘ तनवेद ‘ या िम
है। िो अपने अनरूप ववभाव , अनभाव और
संचारी भाव से संयक्र् होकर आस्वाद का रूप
धारर् करके िांर् रस रूप में पररर्र् हो िार्ा है।
 उदाहिण -> जब र्ै था र्ब हरि नाहहं अब हरि है
र्ै नाहहं।
सब अाँचधयािा सर्ट गया जब दीपक देख्या र्ाहहं।।
 मार्ा – वपर्ा एवं संर्ान के प्रेम भाव को प्रकट
करने वा ा रस वात्सकय रस है। ‘वत्स ’ नामक
भाव िब अपने अनरूप ववभाव , अनभाव और
संचारी भाव से यक्र् होकर आस्वाद का रूप धारर्
कर ेर्ा है र्ब वह वत्स रस में पररर्र् हो
िार्ा है।
 उदाहिण -> बाल दसा सुख तनिखख जसोदा, पुतन
पुतन नन्द बुलवातर्।
अंचिा-र्ि लै ढाकी सूि, प्रभु कौ दूध वपयावतर्।।
 भजक्र् रस का स्र्ा। भाव है दास्य। मख्य रूप से
रस 10 प्रकार के ही माने र्ए हैं परंर् हमारे
आचायों द्वारा इस रस को स्वीकार क्रकया र्या
है। इस रस में प्रभ की भजक्र् और उनके र्र्र्ान
को देखा िा सकर्ा है।
 उदाहिण -> अाँसुवन जल ससंची-ससंची प्रेर्-बेसल
बोई।
र्ीिा की लगन लागी, होनी हो सो होई।।
1. हे खर्, हे मतर् मधकर श्रेनी
र्म्ह देखी सीर्ा मतर् नैनी॥
2. कहर्, नटर् रीझर् खखझर् हाँसर् शम र्
जियार्।
भरे भौन में करर् हैं नयनन ही सो बार्॥
3. खद्दर करर्ा भकभकौ, नेर्ा िैसी चा ।
येहह बानक मो मन बसौ, सदा ववहारी ा ॥
4. र्न मन सेजि िरै अधर् दाहू। सब कहाँ चंद भयउ
मोहहराहू॥
चहूाँ खंि ार्े अाँधधयारा। िो घर नाही कं र्
वपयारा॥
5. भाषे खन कहट भ। भौंहें।
रद फट फरकट नैन ररसौंहें ।
6.राम नाम मखर् दीप धरर, िीह देहरी द्वार।
र् सी बाहर भीर्रेह िो चाहर् उजियार ॥
7.‘ यिोदा हरर पा ने झ ावे।
ह रावै द राइ मकहावै, िोइ सोइ कछ र्ावै।
मेरे ा को आउ तनदररया काहे न आतन सोवावै।
र्ू काहे ना बेधर् सो आवै र्ोको कान्ह ब ावै।
8. तनि दरेर सौ पौन पट फारतर् फहरावतर्।
सर-परर्े अतर् सघन घोर घन धशस धवरावतर्॥
च ी धार धधकार धराहदशि काटर् कावा।
सर्र सर्न के पाप र्ाप पर बो तर् धावा।
9.स्वानों को शम र्ा दूध भार् भूखे बा क अक ार्े हैं।
मााँ की हड्िी से धचपक हठठर, िाड़े की रार् बबर्ार्े हैं।
यवर्ी की ज्िा वसन बेच िब ब्याि चकाए िार्े हैं।
माश क र्ब र्े फ े ों पर पानी सा द्रव्य बहार्े हैं।
1. ववयोर् ितंर्ार रस
2. संयोर् ितंर्ार रस
3. हास्य रस
4. ववयोर् ितंर्ार रस
5. रौद्र रस
6. िांर् रस
7. वात्सकय रस
8. वीर रस
9. करुर् रस
1)'रतर् ' क्रकस रस का स्र्ा। भाव है ?
उिर - श्रतंर्ार रस।
2) 'करुर् ' रस का स्र्ा। भाव क्या है ?
उिर - िोक।
3) 'वीर 'रस का स्र्ा। भाव श खखए।
उिर - उत्साह।
4) ‘वात्सकय’ रस का स्र्ा। भाव क्या है ?
उिर - वत्स र्ा
5) इन पंजक्र्यों में प्रयक्र् रस का नाम श खखए -
िब धूमधाम से िार्ी है बारार् क्रकसी की सिधि कर।
मन करर्ा धक्का दे दकहे को,िा बेठं घोड़े पर।।
सपने में ही मझको अपनी िादी होर्ी हदखर्ी है।
उिर - हास्य रस।
 वाच्य एवं रस

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वाच्य एवं रस

  • 1.
  • 2. नाम - शिव िंकर साहू शिव संदर साहू
  • 3.  वाच्य की परिभाषा  वाच्य के प्रकाि  वाच्य के उदाहिण  िस की परिभाषा  िस के भेद  िस के प्रकाि  िस के उदाहिण
  • 4.  क्रिया के उस पररवर्तन को वाच्य कहर्े हैं, जिसके द्वारा इस बार् का बोध होर्ा है क्रक वाक्य के अन्र्र्तर् कर्ात, कमत या भाव में से क्रकसकी प्रधानर्ा है।  दूसरे िब्दों में क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञार् हो क्रक उसके प्रयोर् का आधार कर्ात, कमत या भाव है, उसे वाच्य कहर्े हैं।
  • 5.  हहंदी में वाच्य के र्ीन भेद माने िार्े हैं –  कर्तवाच्य -> जिस वाक्य में कर्ात की प्रमखर्ा होर्ी है अर्ातर् क्रिया का प्रयोर् कर्ात के श ंर्, वचन, कारक के अनसार होर्ा है और इसका सीधा संबंध कर्ात से होर्ा है र्ब कर्ततवाच्य होर्ा है। कर्ततवाच्य में अकमतक और सकमतक दोनों प्रकार की क्रिया का प्रयोर् क्रकया िार्ा है ।  उदाहिण -> मोहन फ खार्ा है। -> हदनेि पस्र्क नहीं पढर्ा है।
  • 6.  कर्तवाच्य -> जिस वाक्य में कमत की प्रधानर्ा होर्ी है र्र्ा क्रिया का प्रयोर् कमत के श ंर्, वचन और परुष के अनसार होर्ा है और कर्ात की जस्र्तर् में स्वयं कमत होर्ा है, वहााँ कमतवाच्य होर्ा है।  उदाहिण -> कववयों द्वारा कववर्ायेँ श खी र्।। रोर्ी को दवा दी र्।। उससे पस्र्के पढ़ी र्।।
  • 7.  कमतवाच्य-कछ महत्त्वपूर्त र्थ्य  कायात यी या कानूनी प्रयोर् में – हे मेट न पहनने वा ों को दंडिर् क्रकया िाएर्ा।  अिक्र्र्ा दिातने के श ए; िैसे – अब दवा भी नहीं पी िार्ी।  िब सरकार या सभा स्वयं कर्ात हो; िैसे – प्रत्येक घाय को पचास हिार रुपये हदए िाएाँर्े।  िब कर्ात ज्ञार् न हो; िैसे – भ्रष्टाचार को बढ़ावा हदया िा रहा है।  अधधकार या घमंि का भाव दिातने के श ए; िैसे ऐसा खाना हमसे नहीं खाया िार्ा।
  • 8.  भाववाच्य ->इस वाच्य में कर्ात अर्वा कमत की नहीं बजकक भाव अर्ातर् ् क्रिया के अर्त की प्रधानर्ा होर्ी है ।  उदाहिण -> मरीि से उठा नहीं िार्ा। पह वान से दौिा नहीं िार्ा।  भाववाच्य – कु छ र्हत्त्वपूणत र्थ्य  इस वाच्य में प्रायः नकारात्मक वाक्य होर्े हैं।  भाववाच्य में अकमतक क्रिया का प्रयोर् होर्ा है।
  • 9. प्रश्न 1.तनम्नश खखर् वाक्यों के वाच्य का नाम श खखए। 1. वह खाना खाकर च ा र्या। 2. मोहन से च ा नहीं िार्ा। 3. आि तनजश्चर् होकर सोया िाएर्ा। 4. ड्रा।वर बस च ार्ा िा रहा र्ा। 5. उससे पत्र नहीं पढ़ा िार्ा। 6. रुजक्मर्ी से यह सामान नहीं उठाया िार्ा। 7. छात्राएाँ रार्-रार् भर पढ़ा। करर्ी रही। 8. वह राम ी ा देख रहा है। 9. र्न्वी रार् भर सो न सकी। 10. अक्षर से एक भी र्ेंद नहीं फें की र्।।
  • 10. 1. कर्ततवाच्य 2. भाववाच्य 3. भाववाच्य 4. कर्ततवाच्य 5. कमतवाच्य 6. कमतवाच्य 7. कर्ततवाच्य 8. कर्ततवाच्य 9. भाववाच्य 10. कमतवाच्य
  • 11.  कववर्ा-कहानी को पढने, सनने और नाटक को देखने से पाठक, श्रोर्ा और दितक को िो आनंद प्राप्र् होर्ा है, उसे रस कहर्े हैं।  रस का िाजब्दक अर्त है 'आनंद '।  काव्य को पढ़ने से या सनने से जिस आनंद की अनभूतर् होर्ी है , उसे रस कहा िार्ा है।  रस को काव्य की आत्मा माना िार्ा है।
  • 12.  हहंदी व्याकरर् में रस के चार अंर् होर्े है , इस प्रकार है। I. स्र्ा।भाव II. ववभाव III. अनभाव IV. संचारीभाव
  • 13.  स्र्ा। भाव रस का पह ा एवं सवतप्रमख अंर् है। भाव िब्द की उत्पवि ‘ भ ् ‘ धार् से ह। है। जिसका अर्त है संपन्न होना या ववद्यमान होना।  अर्ः िो भाव मन में सदा अशभज्ञान ज्ञार् रूप में ववद्यमान रहर्ा है उसे स्र्ा। या जस्र्र भाव कहर्े हैं। िब स्र्ा। भाव का संयोर् ववभाव , अनभाव और संचारी भावों से होर्ा है र्ो वह रस रूप में व्यक्र् हो िार्े हैं।  सामान्यर्ः स्र्ा। भावों की संख्या अधधक हो सकर्ी है क्रकं र्आचायत भरर्मतन ने स्थाई भाव आठ ही र्ाने हैं – ितर् , हास्य , शोक , क्रोध , उत्साह , भय , जुगुप्सा औि ववस्र्य।  आर्े च कर इनकी संख्या १० हो र्। जिनमे एक तनवेद और दूसरा वात्सकय रस र्ा।
  • 14.  रस का दूसरा अतनवायत एवं महत्वपूर्त अंर् है। भावों का ववभाव करने वा े अर्वा उन्हें आस्वाद योग्य बनाने वा े कारर् ववभाव कह ार्े हैं। ववभाव कारर् हेर् तनशमतर् आहद से सभी पयातयवाची िब्द हैं।  ववभाव का मू कायत सामाजिक हृदय में ववद्यमान भावों की महत्वपूर्त भूशमका मानी र्। है।  ववभाव के अंग – १ आलंबन ववभाव औि २ उद्दीपन ववभाव
  • 15.  आलंबन का अथत है आधार या आश्रय अर्ातर् जिसका अव ंब का आधार ेकर स्र्ा। भावों की िार्ततर् होर्ी है उन्हें आ ंबन कहर्े हैं। सिल शब्दों र्ें कहा िा सकर्ा है क्रक िो सोए हए मनोभावों को िार्तर् करर्े हैं वह आ ंबन ववभाव कह ार्े हैं।  उद्दीपन का अथत है उद्दीप्र् करना भड़काना या बढ़ावा देना िो िार्तर् भाव को उद्दीप्र् करें वह उद्दीपन ववभाव कह ार्े हैं।
  • 16.  रस योिना का र्ीसरा महत्वपूर्त अंर् है। आ ंबन और उद्दीपन के कारर् िो कायत होर्ा है उसे अनभव कहर्े हैं। िास्त्र के अनसार आश्रय के मनोर्र् भावों को व्यक्र् करने वा ी िारीररक चेष्टाएं अनभव कह ार्ी है।भावों के पश्चार् उत्पन्न होने के कारर् इन्हें अनभव कहा िार्ा है।  अनुभवों की संख्या 4 कही र्। है – सात्त्वक , कातयक, र्ानससक औि आहायत।  कवव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से इन सभी अनभव का यर्ास्र्ान प्रयोर् करर्ा च र्ा है।  साजत्वक वह अनभव है िो जस्र्तर् के अनरूप स्वयं ही उत्पन्न हो िार्े हैं  इनकी संख्या 8 मानी र्। है – स्र्ंभ , स्वेद , िोर्ांच , स्विभंग , कं पन , ववविण , अश्रु , प्रलय
  • 17.  रस की और वस्र् या ववचार का नेर्तत्व करर्े हे उसे संचारी भाव कहर्े हे।  संचारीभाव क्रकसी न क्रकसी स्र्ायी भाव के सार् प्रकट होर्े है।  संचािी भावों की संख्या 33 र्ानी गई है  तनवेद, स्र्ब्ध, धर् ानी, िंका या भ्रम, आ स्य, दैन्य, धचंर्ा, स्वप्न, उन्माद, बीड़ा, सफ र्ा, हषत, आवेद, िड़र्ा, र्वत, ववषाद, तनद्रा, स्वप्न , उन्माद, त्रास, धततर्, समर्त, उग्रर्ा, व्याधध, मरर्, ववर्कत आहद।
  • 18.  इस ेख में आपको िस के ग्यािह भेद और उनके उदाहरर् पढ़ने को शम ेंर्े। र्ुख्यर्ः िस १० प्रकाि के होर्े हैं परंर् हमारे आचायों द्वारा एक और रस भी स्वीकत र् क्रकया र्या है जिसे हम भजक्र् रस कहर्े हैं। I. श्रतंर्ार रस II. हास्य रस III. रौद्र रस IV. करुर्ा रस V. वीर रस VI. अद्भर् रस VII. बीभत्स रस VIII. भयानक रस IX. िांर् रस X. वात्सकय रस
  • 19.  श्रतंर्ार रस ‘ रसों का रािा ‘ एवं महत्वपूर्त प्रर्म रस माना र्या है। ववद्वानों के मर्ानसार श्रतंर्ार रस की उत्पवि ‘ श्रतंर् + आर ‘ से ह। है। इसमें ‘श्रतंर्’ का अर्त है – काम की वतद्धध र्र्ा ‘आर’ का अर्त है प्राजप्र्।  अर्ातर् कामवासना की वतद्धध एवं प्राजप्र् ही श्रतंर्ार है इसका स्र्ा। भाव ‘रतर्’ है।  सहृदय के हृदय में संस्कार रुप में या िन्मिार् रूप में ववद्यमान रतर् नामक स्र्ा। भाव अपने प्रतर्कू ववभाव , अनभाव और संचारी भाव के सहयोर् से अशभव्यक्र् होकर िब आिीवातद योग्य बन िार्ा है र्ब वह श्रतंर्ार में पररर्र् हो िार्ा है।
  • 20. १ संयोग श्ररंगाि -> संयोर् श्रतंर्ार के अंर्र्तर् नायक – नातयका के परस्पर शम न प्रेमपूर्त कायतक ाप एवं सखद अनभूतर्यों का वर्तन होर्ा है। िैसे– ‘‘कहर्, नटर्, िीझर्, खीझर्, सर्लर्, खखलर्, लत्जयार् । भिै भौन र्ें किर् है, नैनन ही सों बार्ा। ।’’ २ ववयोग श्ररंगाि -> ववयोर् श्रतंर्ार वहां होर्ा है िहां नायक-नातयका में परस्पर उत्कट प्रेम होने के बाद भी उनका शम न नहीं हो पार्ा। ‘‘अतर् र्लीन वरषभानु कु र्ािी हरि ऋर् जल संर्ि र्नु भीजै ,र्ा लालर् न घुआवतर् सािी।’’
  • 21.  हास्य रस मनोरंिक है। आचायों के मर्ानसार ‘हास्य’ नामक स्र्ा। भाव अपने अनकू , ववभाव , अनभाव और संचारी भाव के सहयोर् से अशभव्यक्र् होकर िब आस्वाद का रूप धारर् कर ेर्ा है र्ब उसे हास्य कहा िार्ा है। सामान्य ववकत र् आकार-प्रकार वेिभूषा वार्ी र्र्ा आंधर्क चेष्टाओं आहद को देखने से हास्य रस की तनष्पवि होर्ी है।  उदाहिण -> बुिे सर्य को देख कि गंजे र्ू क्यों िोय। ककसी भी हालर् र्ें र्ेिा बाल न बााँका होय।
  • 22.  िोध भाव को व्यंजिर् करने वा ा अर् ा रौद्र रस है। िास्त्र के अनसार सहृदय में वासना में ववद्यमान िोध रस नामक स्र्ा। भाव अपने अनरूप ववभाव , अनभाव और संचारी भाव के सहयोर् से िब अशभव्यक्र् होकर आस्वाद का रूप धारर् कर ेर्ा है , र्ब उसे रौद्र कहा िार्ा है। वस्र्र्ः िहां ववरोध , अपमान या उपकार के कारर् प्रतर्िोध की भावना िोध उपिर्ी है वही रौद्र रस साकार होर्ा है।  उदाहिण -> श्रीकर ष्ण के सुन वचन अजुतन क्षोभ से जलने लगे। सब शील अपना भूल कि किर्ल युगल र्लने लगे॥ संसाि देखे अब हर्ािे शत्रु िण र्ें र्रर् पडे। किर्े हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कि खडे॥
  • 23.  िहां क्रकसी हातन के कारर् िोक भाव उपजस्र्र् होर्ा है , वहां ‘ करुर् रस ‘ उपजस्र्र् होर्ा है। पर हातन क्रकसी अतनष्ट क्रकसी के तनधन अर्वा प्रेमपात्र के धचर ववयोर् के कारर् संभव होर्ा है। िास्त्र के अनसार ‘िोक’ नामक स्र्ा। भाव अपने अनकू ववभाव , अनभाव एवं संचारी भावों के सहयोर् से अशभव्यक्र् होकर िब आस्वाद का रूप धारर् कर ेर्ा है र्ब उसे करुर् रस कहा िार्ा है।  उदाहिण -> िही खिकर्ी हाय शूल-सी, पीडा उि र्ें दशिथ के । ग्लातन, त्रास, वेदना - ववर्त्डिर्, शाप कथा वे कह न सके ।।
  • 24.  िहां ववषय और वर्तन में उत्साह यक्र् वीरर्ा के भाव को प्रदशितर् क्रकया िार्ा है वहां वीर रस होर्ा है ।  उदाहिण -> बुंदेले हि बोलो के र्ुख हर्ने सुनी कहानी थी। खूब लडी र्दातनी वो र्ो झााँसी वाली िानी थी।।
  • 25.  ववस्मय करने वा ा अद्भर् रस कह ार्ा है । िो ववस्मय भाव अपने अनकू आ ंबन , उद्दीपन , अनभाव और संचारी भाव का संयोर् पाकर आस्वाद का रूप धारर् कर ेर्ा है , र्ो उसे ‘ अद्भर् रस ‘ कहर्े हैं ।  उदाहिण -> देख यशोदा सशशु के र्ुख र्ें, सकल ववश्व की र्ाया। क्षणभि को वह बनी अचेर्न, हहल न सकी कोर्ल काया॥
  • 26.  वीभत्स घतर्ा के भाव को प्रकट करने वा ा रस है। आचायों के मर्ानसार िब घतर्ा या िर्प्सा का भाव अपने अनरूप आ ंबन , उद्दीपन एवं संचारी भाव के सहयोर् से आस्वाद का रूप धारर् कर ेर्ा है र्ो इसे वीभत्स रस कहा िार्ा है।  उदाहिण -> आाँखे तनकाल उड जार्े, क्षण भि उड कि आ जार्े। शव जीभ खींचकि कौवे, चुभला-चभला कि खार्े। भोजन र्ें श्वान लगे र्ुिदे थे भू पि लेटे। खा र्ााँस चाट लेर्े थे, चटनी सैर् बहर्े बहर्े बेटे।
  • 27.  िास्त्र के अनसार क्रकसी ब वान ित्र या भयानक वस्र् को देखने पर उत्पन्न भय ही भयानक रस है। भय नामक स्र्ा। भाव िब अपने अनरूप आ ंबन , उद्दीपन एवं संचारी भावों का सहयोर् प्राप्र् कर आस्वाद का रूप धारर् कर ेर्ा है र्ो इसे भयानक कहा िार्ा है।  उदाहिण -> अखखल यौवन के िंग उभाि, हड्डियों के हहलार्े कं काल॥ कचो के चचकने काले, व्याल, कें चुली, कााँस, ससबाि॥
  • 28.  र्त्वज्ञान और वैराग्य से िांर् रस की उत्पवि मानी र्। है , इसका स्र्ा। भाव ‘ तनवेद ‘ या िम है। िो अपने अनरूप ववभाव , अनभाव और संचारी भाव से संयक्र् होकर आस्वाद का रूप धारर् करके िांर् रस रूप में पररर्र् हो िार्ा है।  उदाहिण -> जब र्ै था र्ब हरि नाहहं अब हरि है र्ै नाहहं। सब अाँचधयािा सर्ट गया जब दीपक देख्या र्ाहहं।।
  • 29.  मार्ा – वपर्ा एवं संर्ान के प्रेम भाव को प्रकट करने वा ा रस वात्सकय रस है। ‘वत्स ’ नामक भाव िब अपने अनरूप ववभाव , अनभाव और संचारी भाव से यक्र् होकर आस्वाद का रूप धारर् कर ेर्ा है र्ब वह वत्स रस में पररर्र् हो िार्ा है।  उदाहिण -> बाल दसा सुख तनिखख जसोदा, पुतन पुतन नन्द बुलवातर्। अंचिा-र्ि लै ढाकी सूि, प्रभु कौ दूध वपयावतर्।।
  • 30.  भजक्र् रस का स्र्ा। भाव है दास्य। मख्य रूप से रस 10 प्रकार के ही माने र्ए हैं परंर् हमारे आचायों द्वारा इस रस को स्वीकार क्रकया र्या है। इस रस में प्रभ की भजक्र् और उनके र्र्र्ान को देखा िा सकर्ा है।  उदाहिण -> अाँसुवन जल ससंची-ससंची प्रेर्-बेसल बोई। र्ीिा की लगन लागी, होनी हो सो होई।।
  • 31. 1. हे खर्, हे मतर् मधकर श्रेनी र्म्ह देखी सीर्ा मतर् नैनी॥ 2. कहर्, नटर् रीझर् खखझर् हाँसर् शम र् जियार्। भरे भौन में करर् हैं नयनन ही सो बार्॥ 3. खद्दर करर्ा भकभकौ, नेर्ा िैसी चा । येहह बानक मो मन बसौ, सदा ववहारी ा ॥ 4. र्न मन सेजि िरै अधर् दाहू। सब कहाँ चंद भयउ मोहहराहू॥ चहूाँ खंि ार्े अाँधधयारा। िो घर नाही कं र् वपयारा॥ 5. भाषे खन कहट भ। भौंहें। रद फट फरकट नैन ररसौंहें ।
  • 32. 6.राम नाम मखर् दीप धरर, िीह देहरी द्वार। र् सी बाहर भीर्रेह िो चाहर् उजियार ॥ 7.‘ यिोदा हरर पा ने झ ावे। ह रावै द राइ मकहावै, िोइ सोइ कछ र्ावै। मेरे ा को आउ तनदररया काहे न आतन सोवावै। र्ू काहे ना बेधर् सो आवै र्ोको कान्ह ब ावै। 8. तनि दरेर सौ पौन पट फारतर् फहरावतर्। सर-परर्े अतर् सघन घोर घन धशस धवरावतर्॥ च ी धार धधकार धराहदशि काटर् कावा। सर्र सर्न के पाप र्ाप पर बो तर् धावा। 9.स्वानों को शम र्ा दूध भार् भूखे बा क अक ार्े हैं। मााँ की हड्िी से धचपक हठठर, िाड़े की रार् बबर्ार्े हैं। यवर्ी की ज्िा वसन बेच िब ब्याि चकाए िार्े हैं। माश क र्ब र्े फ े ों पर पानी सा द्रव्य बहार्े हैं।
  • 33. 1. ववयोर् ितंर्ार रस 2. संयोर् ितंर्ार रस 3. हास्य रस 4. ववयोर् ितंर्ार रस 5. रौद्र रस 6. िांर् रस 7. वात्सकय रस 8. वीर रस 9. करुर् रस
  • 34. 1)'रतर् ' क्रकस रस का स्र्ा। भाव है ? उिर - श्रतंर्ार रस। 2) 'करुर् ' रस का स्र्ा। भाव क्या है ? उिर - िोक। 3) 'वीर 'रस का स्र्ा। भाव श खखए। उिर - उत्साह। 4) ‘वात्सकय’ रस का स्र्ा। भाव क्या है ? उिर - वत्स र्ा 5) इन पंजक्र्यों में प्रयक्र् रस का नाम श खखए - िब धूमधाम से िार्ी है बारार् क्रकसी की सिधि कर। मन करर्ा धक्का दे दकहे को,िा बेठं घोड़े पर।। सपने में ही मझको अपनी िादी होर्ी हदखर्ी है। उिर - हास्य रस।