2. कविता का सार
‘हम पंछी उन्मुक्त गगन क
े ’ नामक कविता प्रवसद्ध कवि वििमंगल वसंह ‘सुमन’
द्वारा रवित है। विस में आिादी की महत्ता को प्रस्तुत वकया गया है।कवि ने
गुलामी की अपेक्षा आिादी को श्रेष्ठ मानते हुए पवक्षयों की िाणी क
े माध्यम से इसे
अपने भािों का आधार बनाया है।
खुले आसमान में उड़ते हुए आज़ाद पक्षी ही िहिाते कह हैं।यवद उन्हें वपंिरे में
बंद कर वदया,दाना –पानी क
े ई वलए कटोरी रख दी िाए तो िे अपने स्वभाविक
रूप को खो देते हैं िे बंदी अिस्था में नहीं गाते।सोने क
े वपंिरे में भी यवद उन्हें बंद
वकया िाए तो भी िे मुक्त होने क
े वलए उसकी तीवलयों से टकरा-टकरा कर अपने
पंख तोड़ लेते हैं। उन्हें तो बहता हुआ िल और नीम का फल अच्छा लगता
है।वपंिरे में रहकर उनक
े वलए खुला आसमान,बहता पानी, पेड़ की डाल सब
क
ु छ सपना हो िाता है।उन्हें वकसी से क
ु छ नहीं िावहए।यवद भगिान ने उन्हें
उड़ने क
े वलए पंख वदए हैं तो उसे बांधकर नहीं रखना िावहए।उन्हें वििरण करने
क
े वलए खुले आसमान में छोड़ देना िावहए।
3. 1. हम पंछी उन्मुक्त गगन क
े
वपंिरबद्ध न गा पाएँ गे,
कनक-तीवलयों से टकराकर
पुलवकत पंख टू ट िाएँ गे।
4. प्रसंग
ये पंक्तक्तयाँ िसंत भाग -2 में संकवलत कविता
हम पंछी उन्मुक्त गगन क
े से ली गई हैं। इस कविता
क
े रिवयता प्रवसद्ध कवि श्री वििमंगल वसंह ‘सुमन’हैं।
इस कविता में कवि ने पवक्षयों क
े िीिन क
े माध्यम से
स्वतंत्रता का महत्त्व दिााया है। पक्षी स्वतंत्र उड़ान
भरने की इच्छा रखतेहैं।
5. व्याख्या
पक्षी कहते हैं वक हम तो खुले आकाि में उड़ने िाले पक्षी हैं। हम
वपंिरे में बंद रहकर नहीं गा सकते। हमें तो स्वतंत्र िीिन पसंद है।हमें
वपंिरे में रहना अच्छा नहीं लगता।यह वपंिरा िाहेसोने का ही क्ों न
हो।सोने क
े वपंिरे की तीवलयों से हमारे कोमल पंख टकरा कर टू ट
िाएँ गे।हमें वपंिरा कोई सुख नहीं दे सकता। हमारे वलए स्वतंत्रता सबसे
महत्वपूणा है।
6. 2. हम बहता िल पीने िाले
मर िाएँ गे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक वनबौरी
कनक-कटोरी की मैदा से।
7. प्रसंग
ये पंक्तक्तयाँ पाठ्यपुस्तक िसंत भाग-2 में संकवलत कविता ‘हम
पंछी उन्मुक्त गगन क
े ’ से अितररत है इन क
े लेखक श्री
वििमंगल वसंह सुमन हैं इन पंक्तक्तयों में पवक्षयों की स्वतंत्रता की
इच्छा प्रकट की गई है।
8. व्याख्या
इन पंक्तक्तयों में कवि पवक्षयों की ओर से कह रहा है वक
हमें बहता हुआ िल पीना पसंद है।वपंिरे में बंद होकर तो हम
भूखे-प्यासे मर िाएँ गे।वपंिरे में रहकर सोने की कटोरी में वमलने
िाले दाने सेअच्छी उन्हें कड़िी नीम का फल लगता है।
9. 3.स्वणा- श्ररंखला क
े बंधन में
अपनी गवत, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरुण की फ
ु नगी पर क
े झूले।
10. प्रसंग
प्रस्तुत पंक्तक्तयाँ वहंदी की पाठ्यपुस्तक िसंत भाग 2 में संकवलत
कविता ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन क
े ’ से अितररत है। बंधनों में पड़कर
पक्षी अपने स्वतंत्र उड़ान तक भूल बैठते हैं।
11. व्याख्या
पक्षी कहते हैं वक सोने की िंिीरों में बंधकर हम अपनी िाल
और खुले आकाि में उड़ने की सारी बातें ही भूल गए हैं।अब
तो क
े िल स्वपन में ही पेड़ की डावलयों पर बैठना और उन पर
झूला झूलना वदखाई देता है अथाात बंदी िीिन में व्यक्तक्त
अपनी स्वाभाविक क्रीड़एँ भूल िाता है।स्वतंत्र िीिन की बातें
मात्र स्वपन बनकर रह िाती हैं।
12. 4. ऐसे थे अरमान वक उड़ते
नीले नभ की सीमा पाने ,
लाल वकरण-सी िोंि खोल
िुगते तारक-अनार क
े दाने।
13. प्रसंग
प्रस्तुत पद्ांि वहंदी क
े पाठ्यपुस्तक बसंत भाग 2 की
कविता ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन क
े ’ अितररत हैं इनक
े
कवि श्री वििमंगल वसंह ‘सुमन’ है इन पंक्तक्तयों में
पवक्षयों द्वारा इच्छा प्रकट की गई है।
14. व्याख्या
पक्षी कहते हैं वक हमारी यह बड़ी इच्छा थी वक हम
नीले आकाि की सीमाओं तब िाकर उन्हें छु एँ ।हम
िाहते थे वक हम सूया की लाल वकरण क
े समान अपनी
िोंि खोल कर तारों रूपी अनार क
े लाल-लाल दानों
को िुगें। हमारी यह इच्छा तभी पूरी हो सकती है िब
हमें उड़ान बनने की पूरी आज़ादी वमले।
15. 5 .होती सीमाहीन वक्षवति से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो वक्षवति वमलन बन िाता
या तनती साँसों की डोरी।
16. प्रसंग
इन पंक्तक्तयों में कवि कह रहा है वक पक्षी अपना
अक्तस्तत्व खुले गगन में उड़कर ही बनाए रख सकते
हैं।वपंिरे में बंद होकर िह अपना स्वाभाविक रूप खो
देंगे।
17. व्याख्या
आसमान में उड़ते हुए पवक्षयों क
े पंखों में एक होड़-सी लग िाती
है।िे आसमान की उस सीमा को छ
ू लेना िाहते हैं विसका कोई अंत
नहीं है।कई बार भी आसमान की सीमा को प्राप्त कर लेते हैं उन्हें
लगता है वक सीमा को छ
ू लेने से उनका आसमान से वमलन पूरा हो
गया या वफर कई बार आसमान में उड़ते हुए िे अपनी मंविल को
प्राप्त नहीं कर पाते विससे उन्हें वनरािा होती है। िे आसमान में
उड़ते हैं,मंविल पाने की िाह में उनकी साँसें उखड़ िाती है, कई
बार तो अधूरी वमलन की इच्छा वलए मर िाते हैं।
18. 6.नीड न दो, िाहे टहनी का
आश्रय वछन्न-वभन्न कर डालो,
लेवकन पंख वदए हैं तो
आक
ु ल उड़ान में विघ्न न डालो।
19. प्रसंग
प्रस्तुत पंक्तक्तयाँ हमारे पाठ्यपुस्तक िसंत भाग -2 की कविता ‘हम
पंछी उन्मुक्त गगन क
े ’ से अितररत हैं इनक
े कवि श्री वििमंगल
वसंह ‘सुमन’ है। पक्षी स्वतंत्र रहकर अपने अक्तस्तत्व को बनाए रख
सकते हैं। वपंिरे में बंद होकर िे अपना स्वाभाविक रूप को देंगे।
20. व्याख्या
हे मनुष्यो! हमें भले ही नीड़(घोंसला)मत दो और बेिक पेड़ की डाली का
सहारा तो डालो ; परंतु िब ईश्वर ने हमें उड़ने को पर(पंख) वदए हैं तो हमें
वपंिरे का क
ै दी बनाकर हमारी स्वतंत्र उड़ानों में बाधा मत डालो।हमें वपंिरे
में रहना पसंद नहीं, स्वतंत्र उड़ानें भरना ही वप्रय है।