निम्नलिखित उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए. ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केन्द्रों में विभिन्न प्रकार के उपकरणों की खरीद के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है.
1. दूध में वसा की जाँच की क्षमता व जॉच की विशुध्दता को बढाना दूध के अन्य घटकों जैसे-सॉलिड नॉट फैट (एन एन एफ) का प्रतिशत, पानी का प्रतिशत आदि अन्य घटकों की जांच करना.
2. ऑटोमेशन के द्वारा समिति/दूध एकत्रीकरण केन्द्र के स्टाफ को घटना और मैन्युअल रजिस्टर न रखकर, परिचालनों को किफायती बनाना.
3. पारदर्शी प्रणाली के माध्यम से दूध उत्पादकों का विश्वास जीतना और इस तरह दूध की अधिप्राप्ति बढाना.
इ) संभावित क्षेत्र सहकारी और निजी क्षेत्र में ज्यादातर दूध प्रसंस्करण संयंत्रों ने अपने अधिप्राप्ति नेटवर्क में ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केन्द्रों को प्रारंभ कर दिया है. उन समितियों /दुग्ध एकत्रीकरण केन्द्रों में. इन स्टेशनों के लिए वित्तपोषण किया जा सकता है, जहाँ प्रतिदिन दूध की अधिप्राप्ति 350 लीटर से अधिक है.
(ई) लाभार्थी / ये इकाइयाँ को ऑपरेटिव मिल्क युनियन की मिल्क को ऑपरेटिव समितियों अथवा निजी डेयरी के दुग्ध एकत्रीकरण केन्द्रों द्वारा स्थापित की जा सकती हैं. विकल्पत: व्यक्तियों को संगठित क्षेत्र के साथ गठबंधन करके इन स्टेशनों को स्थापित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा सकता हैं.
दुग्ध-उत्पादन के लिए केंद्र सरकार की ओर से भी कई योजनाओं को संचालित किया जाता है। इसके लिए दुग्ध उत्पादकों को कई तरह के अनुदान दिये जाते हैं। डेयरी इंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट स्कीम के तहत दुग्ध-उत्पादन करने वालों को वित्तीय सहयोग किया जाता है। यह वित्तीय सहयोग छोटे किसानों तथा भूमिहीन मजदूरों को प्रमुख रूप से दिया जाता है। डेयरी इंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट स्कीम भारत सरकार की योजना है, जिसके तहत डेयरी और इससे जुड़े दूसरे व्यवसाय को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके तहत छोटे डेयरी फार्म खोलने, उन्नत नस्ल की गाय अथवा भैंस की खरीद के लिए पांच लाख रुपये की सहायता की जाती है। यह राशि दस दुधारू मवेशी की खरीद के लिए दिया जाता है।
नाबार्ड लेयर पोल्ट्री फार्मिंग प्रोजेक्ट हिंदी में विशेष जानकारी के लिए हमारे वेबसाइट पर जायें www.growelagrovet.com
कुक्कुट पालन किसानों की आर्थिक अवस्था सुधारने का महत्वपूर्ण उद्योग है। कुक्कुट पालन से कम समय व कम व्यय में अधिक आय प्राप्त की जा सकती है। देश में अभी प्रति व्यक्ति अंडा सेवन व मांस सेवन अन्य विकासशील पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत ही कम है। मुर्गी पालन से रोजगार की विपुल संभावना है। कुक्कुट पालन से देश के करीब 6-7 लाख व्यक्तियों को रोजगार मिल रहा हैं। मुर्गी पालन से बहुत लाभ है, इससे परिवार को अतिरिक्त आय, कम विनियोग पर ज्यादा लाभ प्राप्त होता है।
अंडे उत्पादन के लिए व्हाइट लेग हार्न सबसे अच्छी नस्ल है। इस नस्ल का शरीर हल्का होता है। जल्दी अंडा देना प्रारंभ कर देती है। मांस उत्पादन हेतु कार्निश व व्हाइट रॉक नस्ल उपयुक्त हैं। ये कम उम्र में अधिक वजन प्राप्त कर लेती हैं। तथा इस नस्ल में आहार को मांस में परिवर्तन करने की क्षमता होती है।
कुक्कुट पालन के लिये और बहुत सी जरूरी बातें हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर व्यवसाय प्रारंभ करना चाहिए जैसे कुक्कुट पालन के स्थान से निकट बाजार की स्थिति व मुर्गी उत्पादन की मांग प्रमुख है। कुक्कुट पालन के स्थान मांस व अंडे की खपत वाले स्थान के पास हो तो ठीक रहता है। मुर्गीशाला ऊंचाई पर व शुष्क जगह पर बनानी चाहिए। मुर्गीशाला में आवागमन की सुविधा का भी ध्यान रखना होगा। कुक्कुट शाला में स्वच्छ व शुद्ध जल के साथ बिजली का प्रबंध होना चाहिए। मुर्गी शाला के स्थान में अधिक नमी नहीं होनी चाहिये तापमान लगभग 27 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास ठीक रहता है। कुक्कुट शाला पूर्व पश्चिम दिशा में मुख करते हुए बनाना चाहिए। मुर्गी आवास में दो प्रकार की विधियाँ प्रचलित हैं। पहली- पिंजरा पद्धति तथा दूसरी डीपलिटर पद्धति।
मुर्गीपालन ब्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जो आपकी आय का अतिरिक्त साधन बन सकता है। बहुत कम लागत से शुरू होने वाला यह व्यवसाय लाखों-करोड़ों का मुनाफा दे सकता है। इसमें शैक्षणिक योग्यता और पूंजी से अधिक अनुभव और मेहनत की दरकार होती है. आज के समय में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में युवा मुर्गीपालन को रोजगार का माध्यम बना सकते हैं।
Honors Biology 1st Semester Exam Study GuideJohn Salazar
It was too large to email so i posted it here.
i copied most of the slides from a website:
http://www.biologyjunction.com/powerpoints_dragonfly_book_prent.htm
if you want to look at it but i added stuff that wasnt on the slides that lawrence told us to know
WorkKeys<sup>®</sup> Foundational and Personal Skills assessments provide reliable, relevant information about workplace skill levels. For more information, contact John H. Barr
दुग्ध-उत्पादन के लिए केंद्र सरकार की ओर से भी कई योजनाओं को संचालित किया जाता है। इसके लिए दुग्ध उत्पादकों को कई तरह के अनुदान दिये जाते हैं। डेयरी इंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट स्कीम के तहत दुग्ध-उत्पादन करने वालों को वित्तीय सहयोग किया जाता है। यह वित्तीय सहयोग छोटे किसानों तथा भूमिहीन मजदूरों को प्रमुख रूप से दिया जाता है। डेयरी इंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट स्कीम भारत सरकार की योजना है, जिसके तहत डेयरी और इससे जुड़े दूसरे व्यवसाय को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके तहत छोटे डेयरी फार्म खोलने, उन्नत नस्ल की गाय अथवा भैंस की खरीद के लिए पांच लाख रुपये की सहायता की जाती है। यह राशि दस दुधारू मवेशी की खरीद के लिए दिया जाता है।
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कुक्कुट पालन किसानों की आर्थिक अवस्था सुधारने का महत्वपूर्ण उद्योग है। कुक्कुट पालन से कम समय व कम व्यय में अधिक आय प्राप्त की जा सकती है। देश में अभी प्रति व्यक्ति अंडा सेवन व मांस सेवन अन्य विकासशील पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत ही कम है। मुर्गी पालन से रोजगार की विपुल संभावना है। कुक्कुट पालन से देश के करीब 6-7 लाख व्यक्तियों को रोजगार मिल रहा हैं। मुर्गी पालन से बहुत लाभ है, इससे परिवार को अतिरिक्त आय, कम विनियोग पर ज्यादा लाभ प्राप्त होता है।
अंडे उत्पादन के लिए व्हाइट लेग हार्न सबसे अच्छी नस्ल है। इस नस्ल का शरीर हल्का होता है। जल्दी अंडा देना प्रारंभ कर देती है। मांस उत्पादन हेतु कार्निश व व्हाइट रॉक नस्ल उपयुक्त हैं। ये कम उम्र में अधिक वजन प्राप्त कर लेती हैं। तथा इस नस्ल में आहार को मांस में परिवर्तन करने की क्षमता होती है।
कुक्कुट पालन के लिये और बहुत सी जरूरी बातें हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर व्यवसाय प्रारंभ करना चाहिए जैसे कुक्कुट पालन के स्थान से निकट बाजार की स्थिति व मुर्गी उत्पादन की मांग प्रमुख है। कुक्कुट पालन के स्थान मांस व अंडे की खपत वाले स्थान के पास हो तो ठीक रहता है। मुर्गीशाला ऊंचाई पर व शुष्क जगह पर बनानी चाहिए। मुर्गीशाला में आवागमन की सुविधा का भी ध्यान रखना होगा। कुक्कुट शाला में स्वच्छ व शुद्ध जल के साथ बिजली का प्रबंध होना चाहिए। मुर्गी शाला के स्थान में अधिक नमी नहीं होनी चाहिये तापमान लगभग 27 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास ठीक रहता है। कुक्कुट शाला पूर्व पश्चिम दिशा में मुख करते हुए बनाना चाहिए। मुर्गी आवास में दो प्रकार की विधियाँ प्रचलित हैं। पहली- पिंजरा पद्धति तथा दूसरी डीपलिटर पद्धति।
मुर्गीपालन ब्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जो आपकी आय का अतिरिक्त साधन बन सकता है। बहुत कम लागत से शुरू होने वाला यह व्यवसाय लाखों-करोड़ों का मुनाफा दे सकता है। इसमें शैक्षणिक योग्यता और पूंजी से अधिक अनुभव और मेहनत की दरकार होती है. आज के समय में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में युवा मुर्गीपालन को रोजगार का माध्यम बना सकते हैं।
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छोटे शहरों और गांवों के वे युवा, जो कम शिक्षित हैं, वे भी मछली पालन उद्योग लगा कर अच्छी आजीविका अर्जित कर सकते हैं। इसके लिए क्या योग्यता व संसाधन जरूरी हैं, इस बारे में बता रहे हैं
कभी मत्स्य पालन मछुआरों तक ही सीमित था, किन्तु आज यह सफल और प्रतिष्ठित लघु उद्योग के रूप में स्थापित हो रहा है। नई-नई टेक्नोलॉजी ने इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है। मत्स्य पालन रोजगार के अवसर तो पैदा करता ही है, खाद्य पूर्ति में वृद्धि के साथ-साथ विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आज भारत मत्स्य उत्पादक देश के रूप में उभर रहा है। एक समय था, जब मछलियों को तालाब, नदी या सागर के भरोसे रखा जाता था, परंतु बदलते वैज्ञानिक परिवेश में इसके लिए कृत्रिम जलाशय बनाए जा रहे हैं, जहां वे सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं, जो प्राकृतिक रूप में नदी, तालाब और सागर में होती हैं।
Pollination services and pollinator diversity are essential in preserving food security and conservation of biodiversity. Bees are one of the very important pollinators. Besides the very well-known honeybees there are many other bee species that play significant roles.
नाबार्ड ब्रायलर पोल्ट्री फार्मिंग प्रोजेक्ट हिंदी में विशेष जानकारी के लिए हमारे वेबसाइट पर जायें www.growelagrovet.com
मुर्गीपालन ब्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जो आपकी आय का अतिरिक्त साधन बन सकता है। बहुत कम लागत से शुरू होने वाला यह व्यवसाय लाखों-करोड़ों का मुनाफा दे सकता है। इसमें शैक्षणिक योग्यता और पूंजी से अधिक अनुभव और मेहनत की दरकार होती है. आज के समय में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में युवा मुर्गीपालन को रोजगार का माध्यम बना सकते हैं।
अगर आपके पास औरों से अलग सोचने की क्षमता है, तो आप मुर्गीपालन ब्यवसाय से भी करोड़ों का मुनाफा कमा सकते हैं। मुर्गीपालन ब्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जिसे बहुत कम लागत से शुरू करके लाखों- करोड़ों रुपए का लाभ कमा सकते हैं। सुगुना पोल्ट्री के बी सौदारराजन और जीबी सुंदरराजन का उदाहरण सबके सामने है। इन्होंने मुर्गीपालन ब्यवसाय के बहुत छोटे से अपनी शुरुआत की और देखते ही देखते उनका यह मुर्गीपालन ब्यवसाय 4200 करोड़ की कंपनी में बदल गया। और तो और इस कंपनी ने 18 हजार किसानों को भी आय का बेहतर अवसर प्रदान किया। भारत में पोल्ट्री की शुरुआत मुख्यतया 1960 से हुई। पिछले तीन दशकों में मुर्गीपालन ब्यवसाय ने उद्योग का रूप ले लिया है।
दूध देने वाले पशुओं का पालन हजारों वर्षों से होता आ रहा है। प्रारंभ में, इनका उपयोग निर्वाह खेती के लिए खानाबदोश द्वारा किया जाता था। जब भी पूरा समुदाय दूसरे देश में स्थानान्तरण करता था ये उनके साथ होते थे। जानवरों की रक्षा करना और खिलाना यह जानवरों और चरवाहों के बीच सहजीवी सम्बन्ध का एक बड़ा हिस्सा था।
हाल के अतीत में, कृषि करने वाले समाज के लोग दुधारू जानवरों को कुटीर उद्योग के रूप में घरेलू और स्थानीय (गांव) में दूध की खपत के लिए पालते थे। जानवर कई प्रकार से इनके लिए उपयोगी हैं, उदाहरण के लिए जवानी के समय इनके लिए हल खींचते हैं और मरणोपरान्त इसका मांस उनलोगों के लिए उपयोगी होता है। इस मामले में आम तौर पर जानवरों को हाथ से दुहा जाता थ और इनके झुंड का आकार काफी छोटा होता था, इसलिए सारे पशुओं के एक घंटे में दुह लिया जाता था - करीब दस प्रति दूध दुहने वाले. इन कार्यों को दूध दुहने वाली (दूध दुहने वाली औरतें) या दूध दुहने वाला पूरा करते थे। डेयरी शब्द की उत्पत्ति मध्य अंग्रेजी के शब्द डेयेरी से हुई है, डेये अर्थात् (नौकरानी या दूध दुहने वाली महिला) और पुरानी अंग्रेजी का शब्द डेगे (रोटी गूंथने वाला).
औद्योगीकरण और शहरीकरण के साथ, दूध की आपूर्ति ने वाणिज्यिक उद्योग का रूप ले लिया है, गोमांस और डिब्बाबंद से बिल्कुल भिन्न विशिष्ट नस्लों वाले मवेशियों को
छोटे शहरों और गांवों के वे युवा, जो कम शिक्षित हैं, वे भी मछली पालन उद्योग लगा कर अच्छी आजीविका अर्जित कर सकते हैं। इसके लिए क्या योग्यता व संसाधन जरूरी हैं, इस बारे में बता रहे हैं
कभी मत्स्य पालन मछुआरों तक ही सीमित था, किन्तु आज यह सफल और प्रतिष्ठित लघु उद्योग के रूप में स्थापित हो रहा है। नई-नई टेक्नोलॉजी ने इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है। मत्स्य पालन रोजगार के अवसर तो पैदा करता ही है, खाद्य पूर्ति में वृद्धि के साथ-साथ विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आज भारत मत्स्य उत्पादक देश के रूप में उभर रहा है। एक समय था, जब मछलियों को तालाब, नदी या सागर के भरोसे रखा जाता था, परंतु बदलते वैज्ञानिक परिवेश में इसके लिए कृत्रिम जलाशय बनाए जा रहे हैं, जहां वे सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं, जो प्राकृतिक रूप में नदी, तालाब और सागर में होती हैं।
Pollination services and pollinator diversity are essential in preserving food security and conservation of biodiversity. Bees are one of the very important pollinators. Besides the very well-known honeybees there are many other bee species that play significant roles.
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मुर्गीपालन ब्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जो आपकी आय का अतिरिक्त साधन बन सकता है। बहुत कम लागत से शुरू होने वाला यह व्यवसाय लाखों-करोड़ों का मुनाफा दे सकता है। इसमें शैक्षणिक योग्यता और पूंजी से अधिक अनुभव और मेहनत की दरकार होती है. आज के समय में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में युवा मुर्गीपालन को रोजगार का माध्यम बना सकते हैं।
अगर आपके पास औरों से अलग सोचने की क्षमता है, तो आप मुर्गीपालन ब्यवसाय से भी करोड़ों का मुनाफा कमा सकते हैं। मुर्गीपालन ब्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जिसे बहुत कम लागत से शुरू करके लाखों- करोड़ों रुपए का लाभ कमा सकते हैं। सुगुना पोल्ट्री के बी सौदारराजन और जीबी सुंदरराजन का उदाहरण सबके सामने है। इन्होंने मुर्गीपालन ब्यवसाय के बहुत छोटे से अपनी शुरुआत की और देखते ही देखते उनका यह मुर्गीपालन ब्यवसाय 4200 करोड़ की कंपनी में बदल गया। और तो और इस कंपनी ने 18 हजार किसानों को भी आय का बेहतर अवसर प्रदान किया। भारत में पोल्ट्री की शुरुआत मुख्यतया 1960 से हुई। पिछले तीन दशकों में मुर्गीपालन ब्यवसाय ने उद्योग का रूप ले लिया है।
दूध देने वाले पशुओं का पालन हजारों वर्षों से होता आ रहा है। प्रारंभ में, इनका उपयोग निर्वाह खेती के लिए खानाबदोश द्वारा किया जाता था। जब भी पूरा समुदाय दूसरे देश में स्थानान्तरण करता था ये उनके साथ होते थे। जानवरों की रक्षा करना और खिलाना यह जानवरों और चरवाहों के बीच सहजीवी सम्बन्ध का एक बड़ा हिस्सा था।
हाल के अतीत में, कृषि करने वाले समाज के लोग दुधारू जानवरों को कुटीर उद्योग के रूप में घरेलू और स्थानीय (गांव) में दूध की खपत के लिए पालते थे। जानवर कई प्रकार से इनके लिए उपयोगी हैं, उदाहरण के लिए जवानी के समय इनके लिए हल खींचते हैं और मरणोपरान्त इसका मांस उनलोगों के लिए उपयोगी होता है। इस मामले में आम तौर पर जानवरों को हाथ से दुहा जाता थ और इनके झुंड का आकार काफी छोटा होता था, इसलिए सारे पशुओं के एक घंटे में दुह लिया जाता था - करीब दस प्रति दूध दुहने वाले. इन कार्यों को दूध दुहने वाली (दूध दुहने वाली औरतें) या दूध दुहने वाला पूरा करते थे। डेयरी शब्द की उत्पत्ति मध्य अंग्रेजी के शब्द डेयेरी से हुई है, डेये अर्थात् (नौकरानी या दूध दुहने वाली महिला) और पुरानी अंग्रेजी का शब्द डेगे (रोटी गूंथने वाला).
औद्योगीकरण और शहरीकरण के साथ, दूध की आपूर्ति ने वाणिज्यिक उद्योग का रूप ले लिया है, गोमांस और डिब्बाबंद से बिल्कुल भिन्न विशिष्ट नस्लों वाले मवेशियों को
Dairying is an important source of subsidiary income to small/marginal farmers and agricultural labourers. In addition to milk, the manure from animals provides a good source of organic matter for improving soil fertility and crop yields. The gobar gas from the dung is used as fuel for domestic purposes as also for running engines for drawing water from well. The surplus fodder and agricultural by-products are gainfully utilised for feeding the animals. Almost all draught power for farm operations and transportation is supplied by bullocks. Since agriculture is mostly seasonal, there is a possibility of finding employment throughout the year for many persons through dairy farming. Thus, dairy also provides employment throughout the year. The main beneficiaries of dairy programmes are small/marginal farmers and landless labourers.To know more please visit us www.growelagrovet.com
Dairy farming in India is a profitable business. It provides an excellent opportunity for self employment of unemployed youth. It is also an important source of income generation to small/marginal farmers and agricultural labourers. India is the largest milk producer of the world. The demand of milk & milk product is increasing rapidly. There is immense scope of dairy farming in our country. The increasing cost of feed ingredients and its seasonal variability can be reduced by undertaking fodder cultivation.
ग्रोवेल द्वारा प्रस्तुत ये हिंदी में पशुपालन गाइड में पशुपालन से सम्बंधित विस्तृत जानकारी दी गई है I इस हिंदी पशुपालन गाइड में निम्नांकित बिन्दुओं पर बिस्तृत जानकारी दी गई है I
डेयरी पशुओं का आवास
गाय व भेंसों के लिए सन्तुलित आहार
नवजात बछडियों की देखभाल
बछड़े/बछड़ियों को सींग रहित करने का समय व लाभ
नवजात बछड़े/बछड़ियों की मुख्य बीमारियाँ व उनकी रोकथाम
मादा दुधारू पशुपन के जननांगों की रचना तथा कार्य
गाय व भेंसों में मद चक्र, मद काल, व मद के लक्षण
पशु प्रजनन की क्रिया तथा इसमें न्यासर्गों (हार्मोन्स) की भूमिका
कृत्रिम गर्भाधान
कृत्रिम गर्भाधान के लाभ व सीमायें
बधियाकरण
मादा पशुओं के प्रमुख प्रजनन विकार
दुधारू पशुओं के प्रमुख रोग व उनका उपचार
चारे का भंडारण
हरा चारा पशुओं के लिए पोषक तत्वों का एक किफायती स्त्रोत है। परंतु, देश में इसकी उपलब्धता सीमित है। चारे की खेती के लिए सीमित भूमि के कारण, चारा फसलों एवं आम चरागाह भूमि से चारे की उत्पादकता में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है। साथ ही अतिरिक्त उत्पादित हरे चारे के संरक्षण के तरीकों को प्रदर्शित करना होगा जिससे कि हरे चारे की कमी के समय पर इसकी उपलब्धता बढ़ाई जा सके।संतुलित आहार उस भोजन सामग्री को कहते हैं जो किसी विशेष पशु की 24 घन्टे की निर्धारित पौषाणिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। संतुलित राशन में कार्बन, वसा और प्रोटीन के आपसी विशेष अनुपात के लिए कहा गया है।
दुधारू पशुओं के आहार को सन्तुलित राशन में मिश्रण के विभिन पदाथोर् की मात्रा मौसम और पशु भार तथा उसकी उत्पादन क्षमता के अनुसार रखी जाती है। एक राशन की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है ‘एक भैंस 24 घण्टे में जितना भोजन अन्तगर््रहण करती है, वह राशन कहलाता है।’ डेरी राशन या तो संतुलित होगा या असंतुलित होगा। असंतुलित राशन वह होता है जोकि भैंस को 24 घण्टों में जितने पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है वह देने में असफल रहता है जबकि संतुलित राशन ‘ठीक’ भैंस को ‘ठीक’ समय पर ‘ठीक’ मात्रा में पोषक तत्व प्रदान करता है। दुधारू पशुओं के आहार में प्रोटीन, कार्बोहार्इड्रेट, मिनरल्स तथा विटामिन
Dairy farmers’ production systems worldwide need to be able to combine profitability with the responsibility of protecting human health, animal health, animal welfare and the environment.Dairy farmers, as the primary producers in the supply chain, should also be given the opportunity to add value to their product by adopting methods of production that satisfy the demands of processors and customers.
This Guide gives individual dairy farmers proactive guidance on how these objectives can be achieved on their farm. The Guide to good dairy farming practice has been written in a practical format for dairy farmers engaged in the production of milk from any dairy species. When adopted, it will support the production and marketing of safe, quality-assured milk and dairy products. The Guide focuses on the relationship between consumer safety and economic, social and environmental management at the farm level.
The Guide contains many individual practices that contribute to good dairy farming
practice, covering the key aspects of animal health, milk hygiene, nutrition, welfare, the
environment and socio-economic management.
These practices have been drawn from best practice guidelines and existing assurance
schemes around the world, and so individual practices will vary in their applicability to various dairying regions. They are not intended to be legally binding and readers are encouraged to select and implement those guidelines that are of relevance to their situation. As such, this Guide aims to provide a genuine framework for dairy farm assurance schemes to be developed globally, giving individual countries and dairy farmers the opportunity to develop schemes that are specific to their needs.
कृषक उत्पादक संगठनों (एफपीओज), कृषि लॉजिस्टिक्स, प्रसंस्करण सुविधाओं तथा व्यावसायिक प्रबंधन के प्रोत्साहन के लिए केंद्रीय बजट 2018-19 के बजट भाषण में “ऑपरेशन फ्लड” की तर्ज पर 500 करोड़ रुपए के परिव्यय से एक नई स्कीम “ऑपरेशन ग्रीन्स” की घोषणा की गई थी ।
Importance of Vitamins and Minerals for Dairy Cattle. The article written by Mr. Rakesh Kumar, Marketing Director, Growel Agrovet Private Limited, has been published in Dairy Planner magazine, March – 2021 edition.
How To Do Poultry Farming in Summer? The article written by Mr. Rakesh Kumar, Marketing Director, Growel Agrovet Private Limited, has been published in Poultry Square magazine, May – 2021 edition.
What is diarrhea in cattle and what causes it?
• Diarrhea (purging, scours) can have many causes.
• Possible causes include bacterial and viral infections, certain chemicals, intestinal parasites, poor diet, overfeeding on milk or lush grass, poisonous plants and other toxins, food allergies and even stress.
• In diarrhea, the intestine fails to adequately absorb fluids, and/or secretion into the intestine is increased. Loss of fluids through diarrhea produces dehydration and the loss of certain body salts.
• It causes a change in body tissue composition and severe depression in the animal.
• Death from scours is usually the result of dehydration and loss of body salts rather than invasion of an infectious agent.
• The correct determination of the cause of diarrhea is important in order to take effective preventive measures.
Domestication of the European rabbit probably occurred in monasteries during the Middle Ages. By the middle of the 17th century, rabbits were commonly raised in England and continental Europe. Oryctolagus cuniculus, one of the more successful mammals of the world, is both prolific and adaptable.
Most of the fancy breeds were developed within the past 100 years, and only since the early 1900s have rabbits been raised domestically in the United
States. The first commercial colonies were started in southern California. Meat rationing during World War II gave the infant industry a push. Today, approximately 200,000 people are engaged in some phase of the rabbit business
in the United States, and animals are produced in every state. Meat processors serving major cities market more than 10 million pounds of rabbit meat annually.
कुखरा पालन (ब्रोइलर) पूर्ण रोजगारीका साथ मनग्य आम्दानी गर्न सकिने भरपर्दो पेशा हो । यो रोजगारी भएका तर समय बचत गर्न सक्ने व्यक्तिका लागि पनि उपयुक्त हुन्छ । न्यून आय भएका अर्धबेरोजगार व्यक्तिका लागि थप आयआर्जन गर्न यो पेशा सहायक सिद्ध हुन सक्छ । यो पेशा थोरै जग्गा तथा कम लगानीमै सञ्चालन गर्न सकिन्छ । यसको उत्पादन ५–६ हप्तामै भित्र्याउन सकिन्छ र वर्षमा ६–७ पटकसम्म कुखुरा बेच्न सकिन्छ । यो व्यवसाय गर्न धेरै ठूलो तालिमको आवश्यकता समेत पर्दैन ।
नेपालमा यो व्यवसाय सञ्चालनका लागि आवश्यक सामग्री सहज उपलब्ध छन् । साथै, सहज बजार पहुँचले उत्पादनपछिको विक्रीवितरणमा समेत समस्या छैन । यो व्यवसाय सञ्चालन गर्दा प्रारम्भमा सानो आकार अर्थात् १ सयदेखि २ सयबाट शुरू गर्नु उपयुक्त हुन्छ । र, बिस्तारै कुखुरा पालनको अनुभव बटुली व्यावसायिक रूपमा यो पेशा सञ्चालन गर्न सजिलो हुन्छ ।
नेपालमा बाख्रापालनबाट राम्रो फाइदा लिन सकिन्छ । चाहना राख्ने धेरैले बाख्रापालन सम्कन्धि पूर्ण जानकारी पाएका छैनन् । यसले धेरैलाई सहयोग पुग्नेछ । तपाई र तपाईको कर्मका लागि पनि उपयोगी हुन सक्नेछ ।
व्यावसायिक बाख्रापालन गर्दा कुनै पनि सरकारी निकायहरु जस्तैः जिल्ला पशु सेवा कार्यालय, सहकारी कार्यालय वा मान्यताप्राप्त अन्य निकायबाट व्यावसायिक बाख्रापालन दर्ता गरेको अवस्थामा सहुलियत पाउन सकिन्छ ।
बुंगुर पालेको ठाउँमा बथानमा संक्रमक रोगको प्रसार तथा एक ठाउँको बथानबाट अर्को ठाउँको बथानमा रोग प्रसार न्युनगरी बंगुरपालन व्यवसायमा रोग प्रदत जोखीम न्युनीकरण गर्ने गरी गरिने व्यवस्थापकीय व्यवहारीक व्यवस्थापनको अर्को नाम हो बंगुरपालनका जैविक सुरक्षा । आफुले पालेको बंगुरको उपयुक्त जैविक सुरक्षा व्यवस्था गर्नु भनेको व्यवसायको आपेक्षा गरिएको आम्दानी प्राप्त हुनेमा ढुक्क हुनु पनि हो ।
बंगुर पालन गरेको ठाउँमा उचित जैविक सुरक्षाको व्यवस्था गर्नु भनेको बंगुरलाई लाग्न सक्ने स्थानीय स्तरमा स्थापित रोग तथा अन्यत्रबाट भित्रन सक्ने, माहामारी जन्य, सरुवा तथा संक्रमक रोगबाट बचाउन सुरक्षात्मक उपाय पनि मानिन्छ । बंगुरको खोर गोठमा कुनै नौलो अन्यत्रबाट सरी आएको रोग निर्मुल पार्न, रोकथाम गर्न, उपचार गर्न, खर्चिलो मात्र हुदैन बरु त्यस्ता रोगले अझ बंगुरपालन व्यवसायमा गम्भिर असर पार्न सक्छ ।
मुर्गियों में बीमारियां से बचाव और टीकाकरण :
मुर्गियों में कई तरह की बीमारियां पाई जाती हैं। जैसे पुलोराम, रानीखेत, हैजा, मैरेक्स, टाईफाइड और परजीविकृमी आदि रोग होते हैं। जिससे मुर्गीपालकों को हर साल भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बिमारियों से बचाव के लिए समय -समय पर मुर्गियों का टीकाकरण बहुत ही जरुरी है ,कुछ बीमारियां की रोक-थाम केवल टीकाकरण से ही संभव है। मुर्गियों में बिमारियों से बचाव के लिए बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियमों ) का पालन करना बहुत ही जरुरी और महत्वपूर्ण है।
बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) :
ग्रोवेल एग्रोवेट प्राइवेट लिमिटेड के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि योजनाबद्ध तरीके से ब्रायलर मुर्गीपालन किया जाए तो कम खर्च में अधिक आय की जा सकती है। बस तकनीकी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। वजह, कभी-कभी लापरवाही के कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को भारी क्षति उठानी पड़ती है। इसलिए मुर्गीपालन में ब्रायलर फार्म का आकार और बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मुर्गियां तभी मरती हैं जब उनके रखरखाव में लापरवाही बरती जाए।
ब्रायलर मुर्गीपालन में हमें कुछ तकनीकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए। जैविक सुरक्षा के नियम का भी पालन होना चाहिए। एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल आउट पद्धति का पालन करें। शेड तथा बर्तनों की साफ-सफाई पर ध्यान दें। बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित रखना चाहिए। कुत्ता, चूहा, गिलहरी, देशी मुर्गी आदि को शेड में न घुसने दें। मरे हुए चूजे, वैक्सीन के खाली बोतल को जलाकर नष्ट कर दें, समय-समय पर शेड के बाहर विराक्लीन ( Viraclean ) का छिड़काव व टीकाकरण नियमों का पालन करें। समय पर सही दवा का प्रयोग करें। पीने के पानी में एक्वाक्योर (Aquacure) का प्रयोग करें।
मुर्गा मंडी की गाड़ी को फार्म से दूर खड़ा करें। मुर्गी के शेड में प्रतिदिन 23 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है। एक घंटे अंधेरा रखा जाता है। इसके पीछे मंशा यह कि बिजली कटने की स्थिति में मुर्गियां स्ट्रेस की शिकार न हों।
दूध उत्पादन व्यवसाय या डेयरी फार्मिंग छेटे व बड़े स्तर दोनों पर सबसे ज्यादा विस्तार में फैला हुआ व्यवसाय है। दूध उत्पादन व्यवसाय व्यवसायिक या छोटे स्तर पर दूध उत्पादन किसानों की कुल दूध उत्पादन में मदद करता है और उसकी आर्थिक वृद्धि को बढ़ाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि, भारत में कई वर्षों से डेयरी व्यवसाय या दूध उत्पादन ने आर्थिक वृद्धि में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कुल दूध उत्पादन ने हमारे देश की अर्थव्यवस्था में बड़े स्तर पर भागीदारी की है और बहुत से गरीब किसानों को अपना व्यवसाय स्थापित करने में सहयोग किया है। यदि किसी के पास दूध उत्पादन का व्यवसाय स्थापित करने के लिए प्रारंभिक पूँजी है तो, इस (दूध उत्पादन) व्यवसाय को किसी भी क्षेत्रों में आसानी से स्थापित किया जा सकता है।
Pig is the only species of livestock from which major portion of the total investments made for establishing the farm can be earned back within 1½ – 2 years. Thus, the farmer is assured of getting over 60 per cent of profit margin from a marginal piggery unit. As a thumb rule, pigs have to put on more than 10 kg of body weight per month by consuming concentrate feed or agricultural byproducts or processed wastes from food industries. Though the white pigs have the western origin (temperate climate), they are better adapted to the Indian agro-climatic conditions. Nevertheless, the Large White Yorkshire breed is the widely accepted breed for pork (bacon, a cured meat from the back and side portions of the pig) production in the global scenario. Strategies have also been formulated to produce lean meat from synthetic strains of pigs through recent research approach, which would create better export opportunities. Hence, farmers without any doubt, can venture into farming this prolific species for their livelihood as well to contribute more to the GDP (Gross Domestic Product) to which contribution from livestock sector is, now-a-days, on the increase (from 4 to 8%).
The objective of commercial fish farming is to produce fish for sale and
earn profits. Therefore, production should be planned from the onset to
target identified markets. This means one should:
1. have the required product (size and form) available when the
market wants it,
2. be able to produce adequate volumes to sustain targeted markets,
3. produce at a competitive price and profit.
When making a production and business plan for table fish, one should
endeavor to answer the following questions beforehand.
1. Where is the market? – its location, what category of people are
likely to buy the fish I produce, etc
2. What does the market want? – type of fish, how much, what size,
how frequently, fresh or processed, etc.
3. What resources do I have? – number of pond(s), size of pond(s),
water for production (quantity, quality, flow rates), feeds, labour,
seed, etc.
4. From where and when should I source my seed and feed?
5. What is the quality of feed I intend to use? This is important
because it limits possible FCRs, water quality and carrying capacity.
6. How much feed and seed shall I require?
7. What technology do I have at my disposal and which would be the
best to adopt?
8. How frequently do I need to harvest for the market? (complete
harvest/partial harvests)
9. How do I get my fish to the market?
10. What returns can I expect from the above?
Few countries in the world have no sheep. They are found in tropical countries and in the arctic, in hot climates and in the cold, on the desert and in humid areas.
There are over 800 breeds of sheep in the world, in a variety of sizes, shapes, types and colours.
Sheep were domesticated long before the dawn of recorded history. Wool fibres have been found in remains of primitive villages of Switzerland that date back an estimated 20000 years. Egyptian sculpture dating 4000-5000 B.C. portrays the importance of this species to people. Much mention is
made in the Bible of flocks, shepherds, sacrificial lambs, and garments made of wool.
The Roman empire pried sheep, anointed them with special oils, and combed their fleece to produce fine quality fibres that were woven into fabric for the togas of the elite.
Perhaps the first ruminants domesticated by man along with goats, sheep are a very valuable and important asset to mankind.
Sheep is a important livestock species . They contribute greatly to the agrarian economy, especially in the arid/semi-arid and mountainous areas where crop and /or dairy farming are not economical. They play an important role in the livelihood of a large percentage of small and marginal
farmers and landless labourers engaged in sheep rearing. A number of rural-based industries use wool and sheep skins as raw material. Sheep manure is an important source of soil fertility, especially in southern states.
The aim of this booklet is to assist you in more effective use of pasture to achieve high sheep production. Essential for this are the ability to assess the amount of pasture in a paddock and knowledge of animal feeding needs.
This chapter discusses how to assess the amount of pasture in a paddock in relation to animal performance and seasonal pasture needs of sheep. The next chapter deals with setting up grazing rotations and feed budgeting.
Feed planning enables you to objectively match pasture supply and animal feed demands on your whole farm during the year. Some of you may feel daunted by this structured approach, but maximising production and achieving livestock target weights, including supply contracts, means more sophisticated pasture feeding.
Proper vaccination is an essential part of a good poultry management program and for the success of any poultry operation. Effective preventive procedures such as immunisation protect hundreds of millions of poultry worldwide from many contagious and deadly diseases and have resulted in improved flock health and production efficiency.
Immunization cannot be a substitute for poor bio-security and sanitation. Thus, vaccination programs may not totally protect birds that are under stress or in unhygienic conditions. The primary objective of immunizing any poultry flock is to reduce the level of clinical disease and to promote optimal performance. Certain vaccines may also have an impact on human health (i.e. Salmonella vaccines).
For breeders – we also want to accomplish some additional goals:
A. Protect the bird (as a pullet and hen) against specific diseases.
B. Protect the progeny of the hen against vertical transmission of disease.
C. Provide passive immunity to progeny.
In this book following points has been defined and described.
Define anatomy
Discuss the different fields of anatomy
Identify and describe the integumentary system
Identify and describe the musculoskeletal system
Identify and describe the cardiovascular system
Identify and describe the lymphatic system
Identify and describe the digestive system
Identify and describe the respiratory system
Identify and describe the endocrine system
Identify and describe the urinary system
Identify and describe the reproductive system
Identify and describe the nervous system and special senses
The term anatomy refers to the science that deals with the form and structure of animals. Physiology deals with the study of functions of the body or any of its parts. A thorough knowledge of the structure of an animal imparts a lot of information about the various functions it is capable of performing.
The course may be used as an introductory course to further studies; to assist you in recognising the normal, in order to determine the abnormal; to help you understand how to diagnose disease or determine if an animal has sustained an injury; to help understand the physical capabilities or limitations of particular species; to understand what happens in the nutrition and growth processes; and to assist you to get better performance from your animals.
Bio-Security plan is a set of practices designed to prevent the entry and spread of infectious diseases into and from a poultry farm.
Biosecurity requires the adoption of a set of attitudes and behaviours by people, to reduce risk in all activities involving poultry production and marketing.
Selection or formulation of appropriate diets for companion
and aviary birds is based on wild feeding ecology, digestive anatomy and physiology, and nutritional requirements of related species. Research indicates that requirements of some key nutrients for psittacines vary from those of poultry. Apart from vitamin E, there is no evidence to suggest that vitamin and trace mineral requirements for psittacines are greater than those recommended for poultry.54 While there are substantial differences between production species and companion
bird species, dietary requirements of poultry remain the
standard for estimating the needs of companion birds.
Individual nutrient classes will be discussed with particular
focus on recent research into the nutritional requirements of companion birds.
The decision to own and care for exotic birds is a decision which cannot be taken lightly. A lot of responsibility has to be accepted because a pet bird is not a low-maintenance pet. All pet birds require at least some specialized care.Very few “beginners” know the answers to the questions that arise concerning the management, breeding, rearing,disease prevention, and proper nutrition of birds. The “survivors” in aviculture have successful aviaries because their teacher has been experience, coupled with trial-anderror. Sometimes this teacher is expensive and can result in thousands of dollars of investment being lost. “Beginners” can increase their general knowledge in aviculture and
come up with answers to their questions by reading articles,
traveling to pet bird shows, attending lectures and talking
with people who have experience with pet birds.
2. मॉडल ऑटोमेटटक दूध संग्रहण के न्दर योजना
(अ) परिचय:
भारत के पास विश्ि में सिााधिक पशुिन है. हमारे देश में पूरे विश्ि की लगभग 57.3 प्रततशत
भैंस और 14.7 प्रततशत पशु हैं. भारतीय डेयरी उद्योग का देश की अर्ाव्यिस्र्ा में प्रमुख
योगदान है और राशश की दृष्टि से यह योगदान चािल से ज्यादा है.िर्ा 2011-12 में दुग्ि
उत्पादों का मूल्य `3,05,484 करोड़ रहा.ग्यारहिीीं पींचिर्ीय योजना (2011-12)की समाष्तत पर
देश में कु ल दुग्ि उत्पादन 127.9 शमशलयन िन प्रतत िर्ा रहा और इसकी मााँग िर्ा 2020 तक
180 शमशलयन िन हो जाने की सींभािना है.राटरीय डेयरी विकास बोडा के तत्िाििान में िर्ा
1970 में डेयरी क्षेत्र के आिुतनकीकरण तर्ा डेयरी सहकाररताओीं की मदद से 4 मेरो शहरों में
दूि की आपूतता बढाने के शलए ''आपरेशन फ्लड'' कायाक्रम प्रारींभ ककया गया र्ा. िर्ा 1996-97
के अींत तक 264 ष्जलों में 74383 ग्राम दुग्ि उत्पादक सहकाररताओीं का गठन ककया गया र्ा
और इनके माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों से प्रततददन औसतन 12.26 शमशलयन लीिर दूि की
अधिप्राष्तत की जा रही र्ी. इसके बाद, ग्रामीण आय को बढाने के शलए ''िेक्नोलॉजी शमशन ऑन
डेयरी डेिलपमेन्ि'' को प्रारींभ ककया गया र्ा,ष्जसका उद्देश्य उत्पादकता बढाने एिीं पररचालन
लागत घिाने के शलए आिुतनक प्रौद्योधगकी को अपनाना र्ा और इस प्रकार दुग्ि और दुग्ि
उत्पादों की ज्यादा से ज्यादा उपलब्िता सुतनष्श्चत करना र्ा.
िर्ा 1991 में भारतीय अर्ाव्यिस्र्ा के उदारीकरण के सार् ही, डेयरी क्षेत्र को भी लाइसेंस मुक्त
कर ददया गया र्ा. भारत सरकार ने 09 जून 1992 को दूि एिीं दुग्ि उत्पाद आदेश
(एमएमपीओ) जारी ककया र्ा, ष्जसे िर्ा 2002 में सींशोधित ककया गया र्ा.इसके अनुसार,डेयरी
इकाइयों को के िल स्िच्छता तर्ा स्िास््यकर पहलुओीं के बारे में अनुमतत प्रातत करनी है.खाद्य
सुरक्षा और मानक(लाइसेष्न्सींग एिीं रष्जस्रेशन ऑफ फू ड बबजनेस), वितनयम 2011 लागू होने के
बाद,05 अगस्त 2011 से डेयरी प्रसींस्करण इकाइयों सदहत सभी खाद्य प्रसींस्करण इकाइयााँ इस
अधितनयम के दायरे में आ गई हैं. हालाींकक, भारत सिााधिक दूि उत्पाददत करने िाला देश
है,लेककन प्रतत पशु दूि उत्पादन बहुत कम है.ितामान में,सींगदठत डेयरी क्षेत्र(सहकारी एिीं
तनजी)देश में कु ल दूि उत्पादन का 24 से 28 प्रततशत भाग ही उत्पाददत कर पा रहे हैं. इस
प्रकार,घरेलू खपत और तनयाात के शलए दूि अधिप्राष्तत,प्रसींस्करण और दूि के उत्पादों के
3. वितनमााण में िृष्ध्द की काफी गुींजाइश बनती है.एकत्र ककये जाने िाले दूि की गुणित्ता भी
अच्छी नहीीं है और यह विशभन्न प्रकार के मूल्य-सींिधिात उत्पादों के तनमााण/ विपणन में रुकािि
डालने िाला कारक है. आज भी देश का काफी दहस्सा सींगदठत दूि अधिप्राष्तत के दायरे में नहीीं
है.
उत्पादन और प्रसींस्करण के क्षेत्र में सार्ाक कदम उठाने के बाद, अब अधिप्राष्तत-क्षमता में िृष्ध्द
और गुणित्ता हेतु दूि की जााँच करके दूि की गुणित्ता बढाने का समय आ गया है. भारत में
दूि का मूल्य िसा के प्रततशत और कु छ सीमा तक सॉशलड नॉि फै ि(एस एन एफ) पर तनभार
है.िसा का तनिाारण बुिीरोमीिर विधि पर आिाररत है,जो कक दूि एकत्र करने िाले कें द्रों /दुग्ि
सहकाररताओीं में अपनाई जाने िाली सबसे ज्यादा पुरानी प्रौद्योधगकी है. िर्ा 1980 से, अनेक
सशमततयााँ दूि में िसा के प्रततशत की जााँच के शलए शमल्को िेस्िसा को इस्तेमाल में ला रही हैं,
क्योंकक इस तरीके से ऊपर बताये गये तरीके की तुलना में ज्यादा तेजी से काम ककया जा
सकता है.हाल ही में,दुग्ि एकत्रीकरण के न्द्रों/ सहकारी सशमततयों ने ऑिोमेदिक शमल्क कलेक्शन
स्िेशन (पीसी आिाररत शमल्क कलेक्शन स्िेशन), स्मािा ऑिोमेदिक शमल्क कलेक्शन स्िेशन
और ऑिोमेदिक दूि सींग्रहण के न्द्र का सींस्र्ापन प्रारींभ कर ददया है,जो कक दूि का िजन,िसा
की मात्रा माप करके कृ र्कों को(हर बार) मुदद्रत भुगतान पची दे देती हैं.इन प्रणाशलयों में 10
ददन/माशसक/िावर्ाक आिार पर आींकड़े (डेिा) रखने की सुवििा है और जरूरत पड़ने पर,इनसे
प्रत्येक बारी का समेककत साराींश मुदद्रत करके ददया जा सकता है. ये मशीनें एक घींिे में 120 से
150 बार तक दूि एकत्र करने का काम कर सकती हैं. शमल्को िेस्िसा की जगह अब दूि
विश्लेर्क(शमल्क एनालाइजर) को काम में लाया जा रहा है.
(आ) उद्देश्य: तनम्नशलखखत उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, ऑिोमेदिक दूि सींग्रहण के न्द्रों में
विशभन्न प्रकार के उपकरणों की खरीद के शलए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है.
1.दूि में िसा की जााँच की क्षमता ि जााँच की विशुध्दता को बढाना दूि के अन्य घिकों जैसे-
सॉशलड नॉि फै ि(एस एन एफ) का प्रततशत, पानी का प्रततशत आदद अन्य घिकों की जाींच
करना.
2. ऑिोमेशन के द्िारा सशमतत/दूि एकत्रीकरण के न्द्र के स्िाफ को घिाना और मैन्युअल
रष्जस्िर न रखकर,पररचालनों को ककफायती बनाना.
4. 3.पारदशी प्रणाली के माध्यम से दूि उत्पादकों का विश्िास जीतना और इस तरह दूि की
अधिप्राष्तत बढाना.
(इ)सींभावित क्षेत्र:सहकािी और तनजी क्षेत्र में ज्यादातर दूि प्रसींस्करण सींयत्रों ने अपने अधिप्राष्तत
नेििका में ऑिोमेदिक दूि सींग्रहण के न्द्रों को प्रारींभ कर ददया है. उन सशमततयों/ दुग्ि
एकत्रीकरण के न्द्रों में इन स्िेशनों के शलए वित्तपोर्ण ककया जा सकता है,जहााँ प्रततददन दूि की
अधिप्राष्तत 350 लीिर से अधिक है.
(ई)लाभार्ी:ये इकाइयााँ कोऑपरेदिि शमल्क यूतनयन की शमल्क कोऑपरेदिि सशमततयों अर्िा
तनजी डेयरी के दुग्ि एकत्रीकरण के न्द्रों द्िारा स्र्ावपत की जा सकती हैं. विकल्पत: ,व्यष्क्तयों
को सींगदठत क्षेत्र के सार् गठबींिन करके इन स्िेशनों को स्र्ावपत करने के शलए भी प्रोत्सादहत
ककया जा सकता है.
(उ) परियोजना विििण:
1.घिक: ऑिोमेदिक दूि सींग्रहण के न्द्र विशेर् रूप से डडजाइन की गई समष्न्ित इकाई हैं. यह
कई यूतनिों अर्ाात ् यह ऑिोमेदिक शमल्क तौल प्रणाली, इलेक्रातनक शमल्क िेष्स्िींग,डेिा
प्रोसेशसींग और आउिपुि देने हेतु पसानल कम्तयूिर (वप्रन्िर और बैिरी सदहत) का सींयोजन
है.ज्यादा मात्रा में दूि की अधिप्राष्तत करने िाले के न्द्र आिुतनक प्रणाली खरीद सकते हैं,ष्जसमें
शमल्क िेष्स्िींग उपकरण की जगह ऑिोमेदिक शमल्क विश्लेर्क (जो कक िसा का %, सॉशलड
नॉि फै ि(एस एन एफ) का %,पानी का %, इत्यादद दशाा सकता है) का उपयोग ककया जा सकता
है.ये बड़ी अधिप्राष्तत एजेंशसयााँ िेब आिाररत डेिा प्रबींिन भी अपना सकती हैं,ष्जसमें एएमसीयू से
कृ र्क-िार डेिा सिार को भेजा जायेगा और भुगतान सींबींिी वििरण शमल्क प्रोसेशसींग यूतनि से
सीिे बैंक को भेजे जायेंगे. ऑिोमेदिक दूि सींग्रहण यूतनिों को (एएमसीयू) को डेयरी िू बैंक की
अििारणा को उपयोग करने योग्य बनाया जा सकता है,ष्जसमें कृ र्क की बबल राशश सीिे उसके
खाते में जमा कर दी जाती है और बैंक में जाये बबना,िह दूि सींग्रहण के न्द्र से अपनी जरूरत के
मुताबबक राशश सीिे ही आहररत कर सकता/सकती है. कु छ ऑिोमेदिक शमल्क कलेक्शन यूतनिों
को (एएमसीयू) को नीचे ददये गये धचत्र में दशााया गया है:-
6. 2. क्षमता: ऑिोमेदिक शमल्क कलेक्शन स्िेशन प्रतत घींिा दूि के 120 से 150 नमूनों की जााँच
कर सकता है. उपयोग ककये जाने िाले उपकरणों के आिार पर पैरामीिसा में अन्तर हो सकता
है.
3. स्पेसीकफके शन: उपयोग की जाने िाली मशीनरी बीआईएस स्पेसीकफके शन के अनुसार होनी
चादहए. और इससे मापे जाने िाले विस्तृत पैरामीिर इस प्रकार हैं:-
(क)िसा की माप:0-13%; (ख)मापन क्षमता:120 से 150 पररचालन प्रतत घींिा
(ग)पािर सतलाई;एसी 220 से 240 िाि 50HZ
शमल्क विश्लेर्क के मामले में, िसा की मात्रा, सॉशलड नॉि फै ि(एस एन एफ)की मात्रा 3 से 15
प्रततशत तर्ा पानी की मात्रा और दूसरे अन्य पैरामीिरों की भी माप की जायेगी.
4.उपकरण आपूनतिकताि: उपकिणों की आपूतता कई एजेंशसयों द्िारा की जाती है.इनके नाम
तनम्नित ् हैं-
आईडीएमसी, आनींद (गुजरात) डीएसके शमल्कोरातनक्स, पुणे (महाराटर), कामिेनु, अहमदाबाद
(गुजरात), डोडडया, दहम्मतनगर (गुजरात), प्राम्पि (PROMPT), बड़ौदा (गुजरात), आपिेल,
आनींद (गुजरात), कै वपिल इलेक्रातनक्स, आनींद (गुजरात), आरईआईएल, जयपुर (राजस्र्ान). यह
सूची के िल तनदशी है. उपयुक्त प्रणाली (शसस्िम) ककसी भी प्रततष्टठत एजेंसी से खरीदी जा
सकती है.
5.कायि प्रणाली:
प्रत्येक दूि आपूता करनेिाले ककसान को सींग्रह कें द्र द्िारा दुग्ि प्रसींस्करण इकाई के परामशा
से एक विशशटि सींख्या/ काडा ददया जाएगा। ककसान जब दूि आपूता करने के शलए आता है
तो पहचान के शलए उसका नींबर या काडा इस्तेमाल ककया जाएगा। नींबर फीड करने के बाद,
नमूना विश्लेर्ण के शलए एकत्र ककया जाएगा। इसके सार् ही उसका दूि जब कीं िेनर में डाला
जाएगा िह स्िचाशलत रूप से तौला जाएगा और िसा की मात्रा और दूि की मात्रा पर आिाररत
दर का दहसाब करके भुगतान पची मुदद्रत की जाएगी. एक दूि विश्लेर्क की सेिा उपयोग हो
पाने की ष्स्र्तत में विश्लेर्ण के अन्य मापदींडों का इस्तेमाल ककया जाएगा और इन मानकों के
7. आिार पर दूि की मात्रा और दर का दहसाब करते हुए इसे प्रदशशात ककया जाएगा। कु छ
तनमााताओीं के पास मोबाइल दूि सींग्रह इकाइयाीं हैं, इन उपकरणों को िाहन पर लगाया जा
सकता है और दूि को विशभन्न स्र्ानों से अधिप्रातत ककया जा सकता है.
ऊ.ऑटोमेटटक दूध संग्रहण यूननट (AMCUs) के लाभ:
1.नमूना दूि की मात्रा में बचत
2.रसायन और डडिजेंि में बचत
3. काींच के बने पदार्ा पर होने िाले खचा में बचत
4.स्िेशनरी और समय में बचत
5. कमाचाररयों पर होने िाले खचा में बचत
6. पारदशी प्रणाली के माध्यम से दुग्ि उत्पादकों का आत्मविश्िास प्रातत करना और दूि की
अधिप्राष्तत बढाना.
ए. तकनीकी सहयोग:
चूींकक यह यूतनि एक समष्न्ित यूतनि है, पररयोजना के शलए कोई तकनीकी सहयोग की
पररकल्पना नहीीं की गई है, हालाींकक दुग्ि सींघों / तनजी डेयरी सींयींत्र सींग्रहण के न्द्रों की स्र्ापना
और दुि की खरीद में सोसाइदियों और दूि सींग्रहण के न्द्रों का मागादशान करेंगे तर्ा सींचालन
और अनुरक्षण में कशमायों को प्रशशक्षण प्रदान करेंगे. व्यष्क्तगत आिोमेदिक दूि सींग्रहण यूतनि
के मामले में बबक्री के बाद की सेिा के शलए आपूतताकतााओीं के सार् आिश्यक व्यिस्र्ा की जानी
चादहए.
ऐ . पूींजी लागत:
पूींजी लागत भी वितनदेशों और तनमााताओीं के सार् बदलती रहती है। हालाींकक, तनमााताओीं द्िारा
दी गई जानकारी और क्षेत्रों से प्रातत सूचना के आिार बैिरी की लागत सदहत एक औसत इकाई
लागत 1.25 लाख मानी गई है :
8. ओ. पररयोजना की आधर्ाकी
यह माना गया है कक आिोमेदिक दूि सींग्रहण यूतनि मौजूदा सींग्रह कें द्र की इमारत में ही काया
कर सके गा इसशलए आिोमेदिक दूि सींग्रहण यूतनि की शसविल लागत पर विचार नहीीं ककया गया
। अनुबींि-1 में प्रस्तुत विशभन्न तकनीकी आधर्ाक मापदींडों के आिार पर इस पररयोजना की
आधर्ाकी तैयार की गई है और इसे अनुबींि II में प्रस्तुत ककया है. व्यय की मदों में
कमाचाररयों पर होने िाले खचा में बचत, स्िेशनरी, रसायनों और डडिजेंि और नमूना दूि की
बचत, काींच के बने पदार्ा पर होने िाले खचा में बचत तर्ा उपयोग्य िस्तुएीं, मरम्मत और
अनुरक्षण आदद व्यय शाशमल हैं।
औ. वित्तीय विश्लेषण:
मॉड्ल के शलए नकदी प्रिाह विश्लेर्ण, लाभ लागत अनुपात (बीसीआर), तनिल ितामान मूल्य
(एनपीडब्ल्यू) और आींतररक प्रततफल दर (आईआरआर) आदद को शाशमल करते हुए अनुबींि III
में प्रस्तुत ककया गया है। विचारािीन मॉडल के शलए, बीसीआर 1.41 :1 एनपीडब्ल्यू 76,800
रुपये और आईआरआर 49% है। पूरे बैंक ऋण ककसी भी छू ि अिधि के बबना सात साल में
चुकौती योग्य हो सकता है। इसशलए मॉडल पररयोजना के शलए चुकौती की अिधि सात साल
तनिााररत की गई है (अनुबींि IV).
क. वित्तीय सहायता:
ऑिोमेदिक दूि सींग्रहण कें द्रों को राटरीय बैंक द्िारा पुनविात्त प्रदान के शलए विचार ककया
जाएगा। इसशलए सभी सहभागी बैंक पररयोजना की तकनीकी व्यिहायाता, वित्तीय व्यिहायाता
और बैंककीं ग व्यिहायाता (bankability) के आिार पर इस गततविधि के वित्तपोर्ण पर विचार
कर सकते हैं।
ख. :ऋण प्रदान किने की शतें
1. मार्जिन िामश: दूि सहकारी सशमतत या दूि सींग्रहण के न्द्र को सामान्य रूप से पररयोजना
लागत का 25% अपने स्ियीं के सींसािनों से पूरा करना चादहए।
9. 2. ब्याज दि: ब्याज दर वित्तपोर्क बैंक द्िारा तनिााररत की जाएगी। हालाींकक आधर्ाकी तैयार
करने के शलए ब्याज दर 13.5% प्रतत िर्ा मानी जाती है.
सुिक्षा:
भारतीय ररजिा बैंक द्िारा यर्ा तनिााररत।
बीमा:
वित्तपोर्क बैंक यह सुतनष्श्चत करें कक दूि सशमतत/ सींग्रहण कें द्र पररसींपष्त्त के शलए पयाातत
बीमा सुरक्षा लेता है.
चुकौती अिचध: सृष्जत समग्र अधिशेर् के आिार पर चुकौती अिधि ककसी भी छू ि अिधि के
बबना 7 साल तक की हो सकती है.
ग. विशेष ननयम औि शतें:
पररयोजना की विशेर् तनयमों और शतों को अनुबींि V में ददया गया है.
10. अनुबंध - I
इकाई लागत औि तकनीकी आचथिकी मापदंड
क्रसं विििण िामश रुपये में
क. इकाई लागत, बैंक ऋण और माष्जान राशश
i) ऑटोमेटटक दूध संग्रहण के न्दर की लागत(रु) 125000
ii) माष्जान राशश (`) 31250
iii) बैंक ऋण (`) 93750
ख. आय मापदंड
i) अधिप्रातत दूि की मात्रा (लीिर/ ददन) 400
ii) दूि के नमूनों की सींख्या/ ददन 200
iii) सींरक्षक्षत नमूना दूि की मात्रा (नमूना प्रतत शमलीलीिर) 10
iv) नमूना दूि की बबक्री@ 10ml /नमूना दूि (लीिर /
माह)
60
v) नमूना दूि का बबक्री मूल्य (` / लीिर) 24
vi) कमाचाररयों पर होने िाले खचा में बचत (` / माह) 2500
vii) स्िेशनरी में बचत (` / माह) 250
viii) काींच के बतानों पर होने िाले खचा में बचत (`/ नमूना /
ददन)
0.05
11. ix) रसायन एिीं डडिजेंि पर बचत . 0.1
ग व्यय मापदींड
i) मरम्मत और अनुरक्षण (`/ माह) 1500
घ. अन्य
i) आिोमेदिक दूि सींग्रहण यूतनि पर मूल्यह्रास (%) 15
ii) ब्याज दर (%) 13.5
iii) चुकौती अिधि (िर्ा) 7
12. अनुबंध - II
आय औि व्यय - ऑटोमेटटक दूध संग्रहण के न्दर
(` लाख में )
क्रसं विििण िषि
I II III IV V VI VII
1 अधिप्रातत दूि
की मात्रा (लीिर /
ददन)
400 400 400 400 400 400 400
2 दूि के नमूनों की
सींख्या प्रतत ददन
200 200 200 200 200 200 200
3 सींरक्षक्षत नमूना
दूि की मात्रा
(लीिर / ददन 2 2 2 2 2 2 2
क आय
i) नमूना दूि की
बबक्री 0.1752 0.1752 0.1752 0.1752 0.1752 0.1752 0.1752
ii) कमाचाररयों पर
होने िाले खचा में
बचत 0.3 0.3 0.3 0.3 0.3 0.3 0.3
iii) स्िेशनरी में 0.03 0.03 0.03 0.03 0.03 0.03 0.03
16. अनुबंध - IV
चुकौती अनुसूची - ऑटोमेटटक दूध संग्रहण के न्दर
(` लाख में )
िषि बैंक
बकाया
ऋण
समग्र
अचधशेष
ब्याज का
िुगतान @
13.5% p.a.
मूलधन की
चुकौती
कु ल व्यय सोसाईटी
संग्रहण कें र
को उपलब्ध
ननिल
प्रनतलल
डीएस
सीआि
िषि के प्रािंि
में
िषि के
अंत में
I 0.9375 0.8175 0.4347 0.126563 0.12 0.246 0.188 1.763
II 0.8175 0.6975 0.4347 0.110363 0.12 0.214 0.141 1.66
III 0.6975 0.5775 0.4347 0.094163 0.12 0.208 0.147 1.708
IV 0.5775 0.4275 0.4347 0.077963 0.15 0.191 0.164 1.86
V 0.4275 0.2775 0.4347 0.057713 0.15 0.205 0.15 1.733
VI 0.2775 0.1275 0.4347 0.037463 0.15 0.184 0.171 1.93
VII 0.1275 0 0.4347 0.017213 0.1275 0.173 0.182 2.053
औसत डीसीआि / DSCR 1.81 है
17. अनुबंध-V
विमशष्ट ननयम एिं शते
बैंक को यह सुतनष्श्चत करना चादहए:-
1. ऑिोमेदिक शमल्क सींग्रहण के न्द्र के वित्त पोर्ण हेतु, दुग्ि सींघ/डेयरी उस दुग्ि
सशमतत/एकत्रीकरण कें द्र की पहचान करेगा,ष्जसका दूि एकत्रीकरण प्रतत ददन 400 लीिर
से ज्यादा है.
2. दुग्ि सींघ/डेयरी सशमतत/एकत्रीकरण कें द्र को ऑिोमेदिक शमल्क कलेक्शन यूतनि की खरीद
हेतु मागादशान प्रदान करेगा.
3. दुग्ि सींघ/डेयरी शमल्क कोऑपरेदिि सोसाइिी /एकत्रीकरण कें द्र के सधचि/कशमायों को
ऑिोमेदिक शमल्क कलेक्शन यूतनि के पररचालन एिीं रखरखाि के बारे में प्रशशक्षण प्रदान
करेगा.
4. दुग्ि सींघ/डेयरी शमल्क कोऑपरेदिि सोसाइिी /एकत्रीकरण कें द्र के शलए अपेक्षक्षत स्िेशनरी
आदद की आपूतता करेगा.
5. शमल्क कोऑपरेदिि सोसाइिी /एकत्रीकरण कें द्र आपूतताकताा फमा के सार् द्वितीय िर्ा एिीं
उससे आगे के शलए िावर्ाक सेिा करार तनटपाददत करेगा.
6. शमल्क कोऑपरेदिि सोसाइिी /एकत्रीकरण कें द्र ऑिोमेदिक शमल्क सींग्रहण के न्द्र को बीमा
कम्पनतयों से बीमाकृ त करायेगा,बशते कक इस प्रकार की बीमा सुरक्षा उपलब्ि हो.
7. दुग्ि सींघ/डेयरी बैंक ऋण की चुकौती हेतु गठबींिन व्यिस्र्ा उपलब्ि करायेगा.