#Yoga practices to improve health and wellbeing pdf
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1. 12 Steps Of Surya Namaskar And Benefits (सूर्य नमस्कार की 12
स्स्ितीर्ाां और फार्दे)
दैननक जीवन मे ककर्े जाने वाले
सूर्य नमस्कार की 12 स्स्ितीर्ाां
Introduction:-
धरती पार उर्ाय के स्रोत- हवा, पानी, सूर्य आदि में से सूर्य प्रमुख है| इससे प्राणी र्गत ववशेषतः उस्र्यत
होता है| र्ाह वैज्ञाननक तथ्र् है की प्रातः काल के उिीर्मान सूर्य की ककरणो का हमारे शरीर पर ववशशष्ट
चिकीत्सकीर् प्रभाव पडता है|
हमारे पूवयर् मनीषिर्ो ने ववशेष शोध व अनुसांधान के द्वारा पार्ा की प्रातः कालीन बेला मे इनके अलग-
अलग प्रकार के ववशेष क्रम का अभ्र्ास करने से हमे िौबीस घांटे उर्ाय का स्तर बनार्े रखने मे ववशेष सहार्ता
शमलती है| मनीवषर्ो ने इन्ही बारह स्स्िनतर्ो के समुच्िर् को “सूर्य नमस्कार” नाम दिर्ा है, र्ो अपने आप मे एक
स्वतांर व सांपूणय व्र्ार्ाम है|
प्रस्तुत है सूर्य नमस्कार की षवधी-
सूर्य नमस्कार हेतू सामान्र् ननर्म:
सूर्य नमस्कार की 12 स्स्िनतर्ो को एक बार पुरा करना एक आवृत्ती (चक्र) कहलाती है| इस प्रकार सूर्य
नमस्कार से अचधक से अचधक लाभ प्राप्त करने के शलए प्रत्र्ेक दिन कम से कम 10 से 15 आवृत्तीर्ो का
अभ्र्ास करना िादहए|
ववशेषज्ञ मानते है कक इन 12 स्स्िनतर्ो को करते वक़्त पूरक, कुां भक व रेिक को ध्र्ान मे रखकर करने
से ववशेष लाभ शमलता है|
बीमार अवस्िा मे सूर्य नमस्कार नही करना चाहहर्े अिवा र्ोग-शिक्षक से परामिय लेकर ही इसे धीरे-धीरे
करना चाहहए|
प्रत्र्ेक स्स्िती का अभ्र्ास मानशसक मांरोच्िारणपुवयक परमात्मा/अल्लाह/गौड/वाहे गुरु आिी के प्रती मन ही
मन नमस्कार/स्मरण तिा कृ तज्ञता/धन्र्वाि का भाव र्गाते हुए, ननदियष्ट शारीरस्ि िक्र मे ध्र्ान कें दित
करते हुए करना िादहए|
सूर्य नमस्कार मे ककर्े र्ाने वाले 12 स्स्ितीर्ा ननम्नशलखखत है-
स्स्िती-1
2. स्स्िती का नाम: प्रणामासन र्ा नमस्कार मुद्रा
श्वास: सामान्र्
एकाग्रता कें द्र: अनाहतचक्र
मन्र : ओ३म शमरार् नमः अिायत हे ववश्व के शमर! आपको नमस्कार है|
षवधी:
सूर्ोदर् के समर् सुर्ायशभमुख सावधान की स्स्िती मे खडे होकर (एडी, पांर्े तिा घुटने परस्पर शमले हुए
हो) नमस्कार की स्स्िती मे हािो को छाती के सामने रखे| श्वास की गती सामान्र् रहेगी|
इस प्रकार हािो और पैरो को र्ोडकर खडे होने से उर्ाय के पररपि का ननमायण होता है| पररणामस्वरूप
शरीर शीघ्र ही उजायस्न्वत हो र्ाता है|
स्स्िती-2
3. स्स्िती का नाम: उर्धवयहस्तासन/हस्तोतानासन
श्वास: श्वास लेते हुए
एकाग्रता कें द्र: ववशुद्धीिक्र
मांर : ओ३म रवर्े नमः अिायत हे सांसार मे िहल-पहल लाने वाले! आपको नमस्कार है|
षवधी:
स्स्िती झुकने के बाि श्वास अांिर भरकर सामने से हािो को खोलते हुए बबना कोहननर्ा मोडे पीछे की ओर
ले र्ार्े|
शसर हािो के बीि मे स्स्ित रहेगा| श्वास रोककर दृष्टी आकाि की ओर रहे, कमर को भी र्िाशक्ती पीछे
की ओर झुकार्े|
स्स्िती-3
4. स्स्िती का नाम: पादहस्तासन
श्वास: श्वास छोडते हुए
एकाग्रता कें द्र: स्वाधीष्ठानचक्र
मांर : ओ३म सूर्ायर् नमः अिायत हे सांसार के र्ीवनिाता| आपको नमस्कार है|
षवधी:
स्स्िती-2 के बाि श्वास बाहर ननकालकर हािो को पीछे से सामने झुकाते हुए पैरो के पास र्मीन पर टीका
िे|
र्दि हो सके तो हिेलीर्ो को भी पांर्ो के िार्े-बार्े भूमी से स्पशय करे तिा शसर को घुटनो से लगाने का
प्रर्ास करे|
र्धर्ान रहे कक ककसी भी स्स्िती मे घुटने न मुडे|
स्स्िती-4
5. स्स्िती का नाम: दक्षक्षण अश्वसांचालनासन
श्वास: श्वास लेते हुए
एकाग्रता कें द्र: षविुद्धीचक्र
मांर : ओ३म भानवे नमः अिायत हे प्रकाश पुांर्! आपको नमस्कार है|
षवधी:
स्स्िती-3 के उपराांत अब नीिे झुकते हुए हिेलीर्ो को छाती के िोनो ओर टीकाकार रखे|
बार्ा पैर उठाकर पीछे से पुरा पांर्ा र्मीन पर सटाते हुए ताने, िार्ा पैर िोनो हािो के बीि मे रहेगा (इस
पैर को सुषवधा की दृष्टी से िोडा पीछे भी रख सकते है; परांतु एडी हर हाल मे जमीन को स्पिय करती हुई
हो)|
घुटना छाती के सामने रहे, दृष्टी आकाश की ओर हो, श्वास को अांिर भरकर रखना है|
स्स्िती-5
6. स्स्िती का नाम: पवयतासन
श्वास: श्वास छोडते हुए
एकाग्रता कें द्र: षविुद्धीचक्र
मांर : ओ३म खगार् नमः अिायत हे आकाश मे गनतशील िेव! आपको नमस्कार है|
षवधी:
श्वास बाहर ननकालकर िार्े पैर को भी पीछे ले र्ार्े| गियन और शसर िोनो हािो के बीि मे रहे|
ननतम्ब और कमर उपर उठाकर तिा शसर को झुकाकर नाभी को िेखने का प्रर्ास करे|
स्स्िती-6
7. स्स्िती का नाम: आष्टान्गनामनासन/साष्टन्गासन/अधोमुखिवासन
श्वास: श्वास-प्रश्वास सामान्र्
एकाग्रता कें द्र: मणणपुरचक्र
मांर : ओ३म पूष्णे नमः अिायत हे सांसार के पोषक! आपको नमस्कार है|
षवधी:
हािो एवां पैरो के पांर्ो को स्स्िर रखते हुए, छाती एवां घुटनो को भूमी पर स्पशय करे|
इस प्रकार िो हाि, िो पैर, िो घुटने, छाती एवां शसर अिवा िोडी; इन आठो अांगो के भूमी पर दटकने से
र्ह साष्टान्गासन बनता है|
श्वास-प्रश्वास सामान्र् रहेगा|
स्स्िती-7
8. स्स्िती का नाम: भुजांगासन
श्वास: श्वास लेते हुए
एकाग्रता कें द्र: स्वाधीष्ठानचक्र
मांर : ओ३म हहरण्र्गभायर् नमः अिायत हे ज्र्ोनतमयर्! आनांिमर्! आपको नमस्कार है|
षवधी:
श्वास अांिर भरकर (भुजांगासन की आकृ ती) छाती को उपर उठाते हुए हािो को धीरे-धीरे सीधा कर िे, पीछे
से िोनो पैर शमले व तने हुए हो|
नाभी तक का भाग भूमी पर टीका हुआ एवां दृष्टी आकाश की ओर हो|
स्स्िती-8
9. स्स्िती का नाम: पवयतासन
श्वास: श्वास छोडते हुए
एकाग्रता कें द्र: स्वाधधष्ठानचक्र
मांर : ओ३म मरीचर्े नमः अिायत हे सांसार के प्रकाशक स्वामी! आपको नमस्कार है|
षवधी:
श्वास बाहर ननकालकर कु ल्हो को उपर उठार्े, गियन और शसर िोनो हािो के बीि मे रहे|
ननतम्ब और कमर उपर उठाकर तिा सीर को झुकाकर नाभी को िेखने का प्रर्ास करे|
स्स्िती-9
10. स्स्िती का नाम: वाम अश्वसांचालनासन
श्वास: श्वास लेते हुए
एकाग्रता कें द्र: आज्ञाचक्र
मांर : ओ३म आहदत्र्ार् नमः अिायत हे सांसार के रक्षक! आपको नमस्कार है|
षवधी:
स्स्िती-8 के उपराांत अब नीिे झुकते हुए हिेलीर्ो को छाती के िोनो ओर टीका कर रखे|
चिरनुसार िार्ा पैर उठाकर पीछे से पुरा पांर्ा र्मीन पार सटाते हुए ताने, बार्ा पैर िोनो हािो के बीि मे
रखे (इस पैर को सुववधा की दृष्टी से िोडा वपछे भी रख सकते है; परांतु एडी हर हाल मे र्मीन को स्पशय
करती हुई हो), घुटना छाती के सामने रहे, दृष्टी आकाश की ओर, श्वास को अांिर भरकर रखना है
(स्स्िती-4 की तरह)|
स्स्िती-10
11. स्स्िती का नाम: पादहस्तासन
श्वास: श्वास छोडते हुए
एकाग्रता कें द्र: स्वाधधष्ठानचक्र
मांर : ओ३म सषवरे नमः अिायत सृष्टीकताय! आपको नमस्कार है|
षवधी:
स्स्िती-9 के बाि श्वास बाहर ननकालकर हािो को पीछे से सामने झुकाते हुए पैरो के पास र्मीन पर टीका
िे|
र्िी हो सके तो हिेलीर्ो को भी पांर्ो के िार्े-बार्े भूमी से स्पशय करके रखे तिा शसर को घुटनो से लगाने
का प्रर्ास करे|
ध्र्ान रहे की ककसी भी स्स्िती मे घुटने न मुडे (स्स्िती-2 की तरह)|
स्स्िती-11
12. स्स्िती का नाम: ऊर्धवयहस्तासन / हस्तोत्तानासन
श्वास: श्वास लेते हुए
एकाग्रता कें द्र: षविुद्धीचक्र
मांर : ओ३म अकायर् नमः अिायत हे अपववरता के शोधक! आपको नमस्कार है|
षवधी:
श्वास अांिर भरकर सामने से हािो को खोलते हुए बबना कोस्ननर्ाां मोडे पीछे की ओर ले र्ार्े|
शसर हािो के बीि मे स्स्ित रहेगा| श्वास रोककर दृष्टी आकाश की ओर रखे, कमर को भी र्िाशक्ती पीछे
की ओर झुकार्े (स्स्िती-2 की तरह)|
स्स्िती-12
13. स्स्िती का नाम: प्रणामासन
श्वास: प्रश्वास सामान्र्
एकाग्रता कें द्र: अनाहतचक्र
मांर : ओ३म भास्करार् नमः अिायत हे ज्ञान-िाता! आपको नमस्कार है|
षवधी: सूर्ायशभमुख सावधान की स्स्िती मे लौटते हुए (एडी पांर्े शमले हुए हो) नमस्कार की स्स्िती मे हािो को छाती
के सामने रखे| श्वास की गती सामान्र् रखेंगे (स्स्िती-1 की तरह)|
सूर्य नअमास्कार के फार्दे–
1. सूर्य नमस्कार एक पूणय व्र्ार्ाम है| इससे शरीर के सभी अांग-प्रत्र्ांग बशलष्ठ एवां ननरोगी हो र्ाते है|
2. पेट, आांर, आमाशर्, अग्नन्र्ाशर्, हृिर् एवां फे फडे स्वस्ि रखते है|
3. मेरूिांड एवां कमर को लिीला बनाकर इनमे आर्ी हुई ववकृ नतर्ो को िूर करता है|
4. र्ह सांपूणय शररर मे रक्त सांिरण अच्छी तरह से सांपन्न करता है| इससे रक्त मे आई हुई अशुद्धीर्ा िूर
होकर िमयरोगो का नाश होता है|
5. सांपूणय शरीर को आरोग्नर् प्रिान करता है, अतः प्रातः शीघ्र उठकर सूर्य-नमस्कार का अभ्र्ास अवश्र् करना
िादहए|
6. सूर्य की ककरणे त्विा पर पडने से हमारे शरीर मे ववटाशमन ‘डी’ का ननमायण होता है| र्ह ववटाशमन
कै स्ल्शर्म व फोस्फोरस र्ैसे अनत आवश्र्क खननर् लवणो को शरीर के शलए अतीव उपर्ोगी बनाता है,
स्र्सके कारण शरीर की हद्िीर्ा मर्बूत हो र्ाती है|
14. 7. आशामर्, आांर, कलेर्ा, गुिाय, फे फडा, वपत्ताशर् तिा मेरुिांड ननरोगी बनते है|
8. र्ह अन्तः स्रावी ग्रांिीर्ो मे धीरे-धीरे अच्िा प्रभाव डालता है|
प्रातःकालीन सूर्य की रोशनी का भरपूर उपर्ोग करने से तनाव, िकान व उिासीनता ननमुयल हो र्ाते है|
मन, मस्स्तष्क एवां शरीर तरोतार्ा रहते है| वस्तुतः सूर्य-नमस्कार की ववववध प्रक्रीर्ाओ द्वारा हमारे
मनीवषर्ो का हमे प्राकृ नतक ननर्मो के साि साहिर्य बनाते हुए आरोग्नर्मर् र्ीवन स्र्ने का अद्भुत सांिेश
है|
तो क्र्ो न हम इसे आत्मसात करे और सिा ननरोगी रहे|