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पंच तत्व या पंच महाभूत-
• इस सृष्टि का ष्टिर्ााण पंच तत्वं से हुआ। इि पंच तत्वं कव पंच र्हाभूत भी
कहा जाता है। पृथ्वी, जल, अष्टि, वायु और आकाश ये पांच तत् ष्टर्लकर
सम्पूणा सृष्टि की रचिा करते हैं। साथ ही साथ र्ािव शरीर की रचिा भी इि
पंच तत्व क
े द्वारा ही हवती है। शरीर र्ें ये पांच तत् एक ष्टिष्टित यवग (र्ात्रा) से
उपस्थथत हवते हैं ष्टजसे सर्यवग कहा जाता है।
• शरीर र्ें पंच तत्वं का सर्यवग स्वास्थ्य है जबष्टक इि तत्वं का यवग ष्टवषर्
हविे पर शरीर र्ें ष्टभन्न प्रकार क
े शारीररक एवं र्ािष्टसक रवग उत्पन्न हवते हैं।
प्राक
ृ ष्टतक ष्टचष्टकत्सा इि पंच तत्वं कव ही शरीर का आधार र्ािते हुए इसक
े
र्हत् कव ष्टवशेष रुप से थथाि देती है। पंच तत्वं र्ें पृथ्वी तत् सबसे थथूल
तत् है एवं आकाश तत् सबसे सूक्ष्म तत् है।
• शरीर र्ें जव क
ु छ भी हर्ें थथूल और भारी ष्टदखाई दे रहा है जैसे- त्चा, र्ांस,
अस्थथ आष्टद प्रक
ृ ष्टत क
े पृथ्वी तत् से बिे हैं।
• शरीर क
े अन्दर द ंड़ते रक्त क
े तरल बिाए रखिे क
े ष्टलए प्रक
ृ ष्टत िे जल तत्
की व्यवथथा की है।
• भवजि कव पचािे क
े ष्टलए ष्टवष्टभि्ि प्रकार की अष्टियवं की व्यवथथा शरीर र्ें की
गयी है।
• वायु द्वारा पवषण और गष्टत क
े ष्टलए फ
े फड़े आष्टद द्वारा वायु की व्यवथथा की है
और कवष्टशकाओं से लेकर ऊतक तंत्रव तथा अंगवं क
े अन्दर ररक्त थथाि
बिाकर आकाश तत् की भरपूर व्यवथथा की है।
• आकाश, वायु, अष्टि, जल और पृथ्वी प्रक
ृ ष्टत से लेकर शरीर तक सर्ाि रूप
से अपिा क शल ष्टदखाते हैं और र्िुष्य कव प्रक
ृ ष्टत क
े साथ ष्टिरन्तर जवड़े रहते
हैं। इि तत्वं का सर्यवग ही स्वास्थ्य कहलाता है।
• पंच तत्ववं (पंच महाभूतवं) का सामान्य परिचय-
• आकाश तत्व- यष्टद आकाश तत् का सृजि िा हुआ हवता तव ि तव श्ांस ले
सकते और ि हर्ारी स्थथष्टत और अस्ित् हवता। शेष चार तत्वं का आधार
भी यही है आकाश तत् ब्रह्माण्ड का भी आधार है
• उपवास इस तत् की प्रास्ि का एक साधि है। वैसे भी प्रष्टतष्टदि भूख से कर्
खािा स्वास्थ्य क
े ष्टलए ष्टहतकर हवता है बीर्ार पड़िे पर उपवास द्वारा शरीर
की जीवि शस्क्त कव अन्य शारीररक कायो से हटाकर हर् अपिे शरीर र्ें
आकाश तत् की कर्ी कव पूरा करते हैं। ष्टजसक
े पररणार् स्वरूप हर् स्वथथ
हव जाते हैं।
• र्वह, शवक, क्रवध, कार्, भय ये सभी आकाश तत् क
े काया है। शरीर र्ें
आकाश तत् क
े ष्टवशेष थथाि ष्टसर, कण्ठ, हृदय, उदर और कष्टट प्रदेश है।
• र्स्िष्क र्ें स्थथत आकाश, वायु का भाग है जव प्राण का र्ुख्य थथाि है इससे
अन्न का पाचि हवता है।
• उदर प्रदेश गत आकाश जल का भाग है इससे सब प्रकार क
े र्ल ष्टवसजाि
की ष्टक्रया सम्भव हवती है।
• कष्टट प्रदेश, आकाश, और पृथ्वी का भाग है। यह अष्टधक थथूल हवता है तथा
गन्ध का आश्रय है।
• आकाश जैसे हर्ारे आस पास और ऊपर िीचे है वैसे ही हर्ारे भीतर भी है।
त्चा क
े एक ष्टछद्र से दू सरे ष्टछद्रवं क
े बीच जहााँ जगह है वहीं आकाश है। इस
आकाश की खाली जगह कव हर्ें भरिे की कवष्टशश िहीं करिी चाष्टहए।
• वायु तत्व-
• वायु तत् पंचतत्वं र्ें दू सरा तत् है, जल जीवि है और वायु प्राष्टणयवं का प्राण
है।
• एक सार्ान्य व्यस्क्त 1 ष्टर्िट र्ें 18-20 बार श्ांस लेता है।
• एक बार श्ांस लेिे से 25-30 घि इंच या एक ष्टदि र्ें 32-37 प ंड तक वायु
की आवश्यकता हवती है, श्ांस लेिे की प्रत्येक ष्टक्रया का संबंध शरीर की 100
र्ांसपेष्टशयवं से है। प्रष्टतष्टदि हर् ष्टजतिा भवजि करते हैं और जल पीते हैं उससे
दुगुिा श्ांस लेते हैं। ष्टजस प्रकार प्रष्टतक्षण हर् िाक से श्ांस लेते हैं उसी प्रकार
हर्ारी अपिी त्चा क
े असंख्य ष्टछद्रवं द्वारा श्ांस लेिा भी अष्टिवाया है।
• प्रष्टतष्टदि हर् ष्टजतिा भवजि करते हैं और जल पीते हैं उससे दुगुिा श्ांस लेते
हैं। ष्टजस प्रकार प्रष्टतक्षण हर् िाक से श्ांस लेते हैं उसी प्रकार हर्ारी अपिी
त्चा क
े असंख्य ष्टछद्रवं द्वारा श्ांस लेिा भी अष्टिवाया है।
• उदाहरण क
े त र पर ष्टजस प्रकार हर् घर कव शुद्ध और स्वच्छ रखिे क
े ष्टलए
घर की स्खड़ष्टकयां और झरवखे खवलकर अन्दर ताजी हवा का प्रवेश हविा
आवश्यक है उसी प्रकार इस शरीर रूपी घर र्ें त्चा ष्टछद्रव से भी वायु का
प्रवेश अष्टिवाया है।
• कपड़वं कव सदैव शरीर से लपेटे रहिे से शरीर पीला पड़ जाता है और रवर्
क
ू प ष्टशष्टथल पड़ जाते हैं ष्टजसक
े पररणार्स्वरूप कस्ियत, हृदय रवग,
र्धुर्ेह आष्टद भयािक रवग उत्पन्न हवते हैं।
• वायु स्नाि से शरीर की त्चा स्वथथ, लचीली एवं कवर्ल हव जाती है। यह शरीर
की बाहरी सफाई है इससे भीतरी सफाई भी हवती है जैसे 1 व्यस्क्त 1 ष्टर्िट
र्ें 18-20 बार श्ांस लेता है इसर्ें शरीर की 100 र्ांसपेष्टशयां काया करती हैं।
एक श्ांस र्ें 25-30 घि इंच वायु भीतर जाती है ष्टदि भर र्ें 16-20 ष्टकलव
वायु हर् भीतर खींचते हैं। यह वायु फ
े फड़वं क
े 15 वगाफीट थथाि र्ें चक्कर
लगाती है।
• इस वायु से आक्सीजि (जलवायु) फ
े फड़वं द्वारा स्खंचकर रक्त र्ें चला जाता है
और काबाि डाई आक्साइड का अंश बाहर ष्टिकल जाता है। इस तरह शरीर
का रक्त लगातार शुद्ध हवता रहता है। फ
े फड़वं र्ें सदैव 60 क्यूष्टवक इंच वायु
भरा रहता है ष्टजसकव बाहरी ष्टवशुद्ध वायु से सदा बदलते रहिा आवश्यक है
जव वायु स्नाि क
े ष्टबिा संभव िहीं है।
• हर्ारे शरीर र्ें पााँच प्रकार क
े प्राण तथा पााँच प्रकार क
े उपप्राण हैं जव शरीर
क
े िैसष्टगाक काया कव सुचारू रूप से चलाते हैं, शरीर का ऐसा कवई थथाि
िहीं जहााँ वायु ि हव और कवई ऐसा कर्ा िहीं है जव ष्टबिा वायु की सहायता से
सुसम्पन्न हव।
• कफ, ष्टपत्त, रक्त, र्ल तथा धातु आष्टद की गष्टत वायु की गष्टत पर ष्टिभार करती
है । जव वायु सारे शरीर र्ें ष्टवचरण करती है उसे व्याि कहते हैं। शीतल र्न्द
वायु रवर् क
ू पवं द्वारा शरीर र्ें प्रवेश करती है तथा व्याि वायु कव शुद्ध करती है
जव ष्टक शरीर र्ें शुद्ध रक्त का संचार करता है। र्ल र्ूत्र कव ष्टिकालिे हेतु
अपाि वायु है।
• पवि स्नाि से सर्ाि वायु कव इि कायो क
े ष्टलए असाधारण शस्क्त ष्टर्लती है।
इसक
े अभाव र्ें वायु (अपाि) ष्टवक
ृ त हवकर पेट र्ें रवग उत्पन्न करती है।
शरीर र्ें जीविी शस्क्त कव बिाये रखिे क
े ष्टलए प्राण वायु आवश्यक है।
• उदाि वायु का काया शरीर कव ष्टगरिे से रवकिा एवं र्स्िष्क क
े संपूणा छवटे
बड़े अवयववं कव रक्त पहुंचािे र्ें सहायता प्रदाि करिा है।
• र्ािष्टसक रवग, अष्टिन्द्रा, स्नायु द बाल्य, स्वप्न दवष, सदी, खांसी, कि,
दुबलापि, कर्जवरी आष्टद रवगवं र्ें टहलिा एक उत्तर् औषष्टध है।व्यायार् तथा
प्राणायार् का ष्टिरन्तर अभ्यास वायु तत् की र्ात्रा कव शरीर र्ें बढाता है।
• अग्नि तत्व-
• अष्टि जव ष्टक पंच तत्वं र्ें तीसरा र्हत्पूणा तत् है इसकी उत्पष्टत्त सूया से हवती
है। अष्टि तत् की पूष्टता हर्ें सूया क
े प्रकाश क
े द्वारा हवती है। यह जल और
पृथ्वी की भांष्टत दृश्यर्ाि तत् है। अष्टि तत् से ही बाकी क
े चार तत् भी तृि
हव पाते हैं। अष्टि क
े द्वारा ही संसार क
े प्राष्टणयवं कव उजाा प्राि हवती है।
• पुराण र्ें सिरस्ियवं कव सि र्ुखी घवड़े की संज्ञा दी गई है। जब सूया की
ष्टकरण से ष्टिकलिे वाले सातवं रंग एकत्र हवते हैं तव वह श्ेत रंग का ष्टिर्ााण
करते हैं ष्टजससे हर् सभी विुओं कव देखिे क
े यवग्य हवते हैं।
• सूया से प्रकाश और उजाा ही प्राि िहीं हवती बस्ि वह पृथ्वी पर सभी रवगवं
का िाश करिे वाला तथा हर्ें आरवग्य देकर बुस्द्धर्ाि व दीघाायुष्य भी प्रदाि
करता है। सूया क
े प्रकाश र्ें इतिी शस्क्त हवती है ष्टक वह रवग कव जन्म देिे
वाले रवगाणुओं का िाश करता है।
• संसार की सभी विुओं व पदाथों की उत्पष्टत्त क
े वल सूया क
े द्वारा ही ष्टिष्टित हव
पायी है। इसक
े कारण से ही जगत र्ें तरह- तरह क
े पदाथों कव उत्पन्न ष्टकया
जा सकता है। अष्टि तत् से ही बाकी क
े चारवं तत् तृि हवते हैं।
• संसार क
े पेड़ प धे, जड़ी बूष्टटयााँ, औषष्टधयां, फ
ू ल, फल, अिाज, सर्ुद्र का
जल, सविा, चांदी जिा, लवहा, हीरा आष्टद इसी क
े कारण उत्पन्न हवते हैं। इसी
से संसार र्ें स ंदया है। जीवि है।
• प्राणधाररयवं एवं विस्पष्टतयवं क
े जीवि का आधार भी सूया से प्राि हविे वाला
प्रकाश है। इसी क
े कारण ही हर्ारा भवजि पचता है और आगे की ष्टक्रयाएं
सम्भव हव पाती हैं। अष्टि तत् की कर्ी क
े कारण शरीर का ष्टिर्ााण असम्भव
है। इसकी कर्ी क
े कारण शरीर र्ें सुिी, ष्टसक
ु डि, सदी की सूजि, वायु
जष्टित पीड़ाएं आष्टद अिेकवं बीर्ाररयां घर कर जाती हैं।
• जब कभी ष्टकसी कारणवश पृथ्वी पर सूया का प्रकाश आिे र्ें अड़चि हवती है
तव संसार र्ें ष्टवष्टभन्न प्रकार की उथल पुथल, बाढ, र्हार्ाररयााँ, भूकम्प आष्टद
उत्पाद हवते हैं। संसार की सभी चेति या जड़ जव भी पदाथा है उजाा क
े ष्टलए
सूया क
े प्रकाश की आवश्यकता हवती है।
• जल तत्व- आकाश, वायु तथा अष्टि क
े बाद च था थथाि जल तत् का आता है
जल भी शेष तत्वं क
े सर्ाि ही हर्ारे जीवि र्ें र्हत्पूणा है। जल कव अिेकवं
िार्वं से जािा जाता है जैसे- वारर, िीर, अर्ृत, रस, पेय तथा जीवि आष्टद जल
प्राष्टणयवं क
े जीवि का आधार है।
• जल जीवि क
े ष्टलए उतिा ही र्हत्पूणा है ष्टजतिा सांस लेिे क
े ष्टलए वायु।
सांसाररक जीवि का आरम्भ जल से ही र्ािा जाता है जल क
े द्वारा ही पालि
पवषण सम्भव हव पाता है। जल र्ें सभी पदाथों कव अपिे र्ें घवलिे क
े गुण क
े
कारण अन्य शेष तत्वं से ष्टभन्न है।
• जल र्ें अन्य भ ष्टतक पदाथों क
े संयवग से कसैला, र्ीठा, तीखा, कडुआ,
खटटा, िर्कीि तथा गंदला आष्टद हविे का गुण है। जल क
े द्वारा अष्टि कव
ष्टियंष्टत्रत ष्टकया जा सकता है ष्टजसक
े द्वारा रवगवं क
े उपचार र्ें बहुत ही
सहायक ष्टसद्ध हवता है। हर्ारे शरीर र्ें 70 प्रष्टतशत भाग क
े वल जल है।
प्राष्टणयवं कव रवग र्ुक्त रखिे की औषष्टध जल ही है।
• जल तीि प्रकार का हवता है।
• मृदुजल, जव ष्टक स्वास्थ्य क
े ष्टलए अष्टहतकर हवता है। तथा बहती दररया या
वषाा क
े जल से प्राि हवता है। प्राक
ृ ष्टतक ष्टचष्टकत्सा क
े द्वारा जल का प्रयवग कर
जल तत् कव ष्टियंष्टत्रत कर रवग का उपचार ष्टकया जाता है।
• कठवि जल, जव स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तर् हवता है। पीिे क
े ष्टलए प्रयवग ष्टकया
जाता है। इसे गहरे क
ुं ओं एवं िल का पािी आष्टद से प्राि ष्टकया जाता है।
• तीसरा है अस्थाई कठवि जल, जव ष्टक स्वास्थ्य क
े ष्टलए कर् ष्टहतकर हवता है
जैसे वषाा का संग्रहीत जल, भूष्टर् पर एकत्र जल या जल कव उबालकर उसकी
कठवरता कव दू र कर तैयार र्ृदु जल आष्टद है।
• पृथ्वी तत्व- प्राक
ृ ष्टतक ष्टचष्टकत्सा र्ें ष्टर्ट्टी का र्हत्पूणा थथाि है। शरीर ष्टजि
पााँच तत्वं से ष्टर्लकर बिा है उिर्ें से ष्टर्ट्टी भी एक है।
• पृथ्वी पंच तत्वं र्ें पााँचवा और अस्न्तर् तत् है। यह अन्य चार तत्वं- आकाश,
वायु, अष्टि तथा जल का रस है तथा यह सभी र्ें प्रधाि तत् है।
• ष्टर्ट्टी र्ें ही सभी प्राष्टणयवं क
े जीवि ष्टिवााह क
े ष्टलए खाद्य पदाथों का उिसे
ष्टभि्ि ष्टभि्ि रसवं की प्रधािता क
े साथ उत्पन्न करिे की शस्क्त हवती है।
• पंच तत्ववं (पंच महाभूतवं) का ग्निमााण क्रम- सूक्ष्म से थथूल- आकाश,वायु,
अष्टि, जल और पृथ्वी । इि पंच र्हाभूतवं क
े सूक्ष्म रूप (तन्मात्रा) क्रर्शः
शब्द, स्पशा, रूप, रस, और गंध है।

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  • 1. पंच तत्व या पंच महाभूत-
  • 2. • इस सृष्टि का ष्टिर्ााण पंच तत्वं से हुआ। इि पंच तत्वं कव पंच र्हाभूत भी कहा जाता है। पृथ्वी, जल, अष्टि, वायु और आकाश ये पांच तत् ष्टर्लकर सम्पूणा सृष्टि की रचिा करते हैं। साथ ही साथ र्ािव शरीर की रचिा भी इि पंच तत्व क े द्वारा ही हवती है। शरीर र्ें ये पांच तत् एक ष्टिष्टित यवग (र्ात्रा) से उपस्थथत हवते हैं ष्टजसे सर्यवग कहा जाता है। • शरीर र्ें पंच तत्वं का सर्यवग स्वास्थ्य है जबष्टक इि तत्वं का यवग ष्टवषर् हविे पर शरीर र्ें ष्टभन्न प्रकार क े शारीररक एवं र्ािष्टसक रवग उत्पन्न हवते हैं। प्राक ृ ष्टतक ष्टचष्टकत्सा इि पंच तत्वं कव ही शरीर का आधार र्ािते हुए इसक े र्हत् कव ष्टवशेष रुप से थथाि देती है। पंच तत्वं र्ें पृथ्वी तत् सबसे थथूल तत् है एवं आकाश तत् सबसे सूक्ष्म तत् है।
  • 3. • शरीर र्ें जव क ु छ भी हर्ें थथूल और भारी ष्टदखाई दे रहा है जैसे- त्चा, र्ांस, अस्थथ आष्टद प्रक ृ ष्टत क े पृथ्वी तत् से बिे हैं। • शरीर क े अन्दर द ंड़ते रक्त क े तरल बिाए रखिे क े ष्टलए प्रक ृ ष्टत िे जल तत् की व्यवथथा की है। • भवजि कव पचािे क े ष्टलए ष्टवष्टभि्ि प्रकार की अष्टियवं की व्यवथथा शरीर र्ें की गयी है। • वायु द्वारा पवषण और गष्टत क े ष्टलए फ े फड़े आष्टद द्वारा वायु की व्यवथथा की है और कवष्टशकाओं से लेकर ऊतक तंत्रव तथा अंगवं क े अन्दर ररक्त थथाि बिाकर आकाश तत् की भरपूर व्यवथथा की है।
  • 4. • आकाश, वायु, अष्टि, जल और पृथ्वी प्रक ृ ष्टत से लेकर शरीर तक सर्ाि रूप से अपिा क शल ष्टदखाते हैं और र्िुष्य कव प्रक ृ ष्टत क े साथ ष्टिरन्तर जवड़े रहते हैं। इि तत्वं का सर्यवग ही स्वास्थ्य कहलाता है। • पंच तत्ववं (पंच महाभूतवं) का सामान्य परिचय- • आकाश तत्व- यष्टद आकाश तत् का सृजि िा हुआ हवता तव ि तव श्ांस ले सकते और ि हर्ारी स्थथष्टत और अस्ित् हवता। शेष चार तत्वं का आधार भी यही है आकाश तत् ब्रह्माण्ड का भी आधार है
  • 5. • उपवास इस तत् की प्रास्ि का एक साधि है। वैसे भी प्रष्टतष्टदि भूख से कर् खािा स्वास्थ्य क े ष्टलए ष्टहतकर हवता है बीर्ार पड़िे पर उपवास द्वारा शरीर की जीवि शस्क्त कव अन्य शारीररक कायो से हटाकर हर् अपिे शरीर र्ें आकाश तत् की कर्ी कव पूरा करते हैं। ष्टजसक े पररणार् स्वरूप हर् स्वथथ हव जाते हैं। • र्वह, शवक, क्रवध, कार्, भय ये सभी आकाश तत् क े काया है। शरीर र्ें आकाश तत् क े ष्टवशेष थथाि ष्टसर, कण्ठ, हृदय, उदर और कष्टट प्रदेश है। • र्स्िष्क र्ें स्थथत आकाश, वायु का भाग है जव प्राण का र्ुख्य थथाि है इससे अन्न का पाचि हवता है।
  • 6. • उदर प्रदेश गत आकाश जल का भाग है इससे सब प्रकार क े र्ल ष्टवसजाि की ष्टक्रया सम्भव हवती है। • कष्टट प्रदेश, आकाश, और पृथ्वी का भाग है। यह अष्टधक थथूल हवता है तथा गन्ध का आश्रय है। • आकाश जैसे हर्ारे आस पास और ऊपर िीचे है वैसे ही हर्ारे भीतर भी है। त्चा क े एक ष्टछद्र से दू सरे ष्टछद्रवं क े बीच जहााँ जगह है वहीं आकाश है। इस आकाश की खाली जगह कव हर्ें भरिे की कवष्टशश िहीं करिी चाष्टहए।
  • 7. • वायु तत्व- • वायु तत् पंचतत्वं र्ें दू सरा तत् है, जल जीवि है और वायु प्राष्टणयवं का प्राण है। • एक सार्ान्य व्यस्क्त 1 ष्टर्िट र्ें 18-20 बार श्ांस लेता है। • एक बार श्ांस लेिे से 25-30 घि इंच या एक ष्टदि र्ें 32-37 प ंड तक वायु की आवश्यकता हवती है, श्ांस लेिे की प्रत्येक ष्टक्रया का संबंध शरीर की 100 र्ांसपेष्टशयवं से है। प्रष्टतष्टदि हर् ष्टजतिा भवजि करते हैं और जल पीते हैं उससे दुगुिा श्ांस लेते हैं। ष्टजस प्रकार प्रष्टतक्षण हर् िाक से श्ांस लेते हैं उसी प्रकार हर्ारी अपिी त्चा क े असंख्य ष्टछद्रवं द्वारा श्ांस लेिा भी अष्टिवाया है।
  • 8. • प्रष्टतष्टदि हर् ष्टजतिा भवजि करते हैं और जल पीते हैं उससे दुगुिा श्ांस लेते हैं। ष्टजस प्रकार प्रष्टतक्षण हर् िाक से श्ांस लेते हैं उसी प्रकार हर्ारी अपिी त्चा क े असंख्य ष्टछद्रवं द्वारा श्ांस लेिा भी अष्टिवाया है। • उदाहरण क े त र पर ष्टजस प्रकार हर् घर कव शुद्ध और स्वच्छ रखिे क े ष्टलए घर की स्खड़ष्टकयां और झरवखे खवलकर अन्दर ताजी हवा का प्रवेश हविा आवश्यक है उसी प्रकार इस शरीर रूपी घर र्ें त्चा ष्टछद्रव से भी वायु का प्रवेश अष्टिवाया है। • कपड़वं कव सदैव शरीर से लपेटे रहिे से शरीर पीला पड़ जाता है और रवर् क ू प ष्टशष्टथल पड़ जाते हैं ष्टजसक े पररणार्स्वरूप कस्ियत, हृदय रवग, र्धुर्ेह आष्टद भयािक रवग उत्पन्न हवते हैं।
  • 9. • वायु स्नाि से शरीर की त्चा स्वथथ, लचीली एवं कवर्ल हव जाती है। यह शरीर की बाहरी सफाई है इससे भीतरी सफाई भी हवती है जैसे 1 व्यस्क्त 1 ष्टर्िट र्ें 18-20 बार श्ांस लेता है इसर्ें शरीर की 100 र्ांसपेष्टशयां काया करती हैं। एक श्ांस र्ें 25-30 घि इंच वायु भीतर जाती है ष्टदि भर र्ें 16-20 ष्टकलव वायु हर् भीतर खींचते हैं। यह वायु फ े फड़वं क े 15 वगाफीट थथाि र्ें चक्कर लगाती है। • इस वायु से आक्सीजि (जलवायु) फ े फड़वं द्वारा स्खंचकर रक्त र्ें चला जाता है और काबाि डाई आक्साइड का अंश बाहर ष्टिकल जाता है। इस तरह शरीर का रक्त लगातार शुद्ध हवता रहता है। फ े फड़वं र्ें सदैव 60 क्यूष्टवक इंच वायु भरा रहता है ष्टजसकव बाहरी ष्टवशुद्ध वायु से सदा बदलते रहिा आवश्यक है जव वायु स्नाि क े ष्टबिा संभव िहीं है।
  • 10. • हर्ारे शरीर र्ें पााँच प्रकार क े प्राण तथा पााँच प्रकार क े उपप्राण हैं जव शरीर क े िैसष्टगाक काया कव सुचारू रूप से चलाते हैं, शरीर का ऐसा कवई थथाि िहीं जहााँ वायु ि हव और कवई ऐसा कर्ा िहीं है जव ष्टबिा वायु की सहायता से सुसम्पन्न हव। • कफ, ष्टपत्त, रक्त, र्ल तथा धातु आष्टद की गष्टत वायु की गष्टत पर ष्टिभार करती है । जव वायु सारे शरीर र्ें ष्टवचरण करती है उसे व्याि कहते हैं। शीतल र्न्द वायु रवर् क ू पवं द्वारा शरीर र्ें प्रवेश करती है तथा व्याि वायु कव शुद्ध करती है जव ष्टक शरीर र्ें शुद्ध रक्त का संचार करता है। र्ल र्ूत्र कव ष्टिकालिे हेतु अपाि वायु है।
  • 11. • पवि स्नाि से सर्ाि वायु कव इि कायो क े ष्टलए असाधारण शस्क्त ष्टर्लती है। इसक े अभाव र्ें वायु (अपाि) ष्टवक ृ त हवकर पेट र्ें रवग उत्पन्न करती है। शरीर र्ें जीविी शस्क्त कव बिाये रखिे क े ष्टलए प्राण वायु आवश्यक है। • उदाि वायु का काया शरीर कव ष्टगरिे से रवकिा एवं र्स्िष्क क े संपूणा छवटे बड़े अवयववं कव रक्त पहुंचािे र्ें सहायता प्रदाि करिा है। • र्ािष्टसक रवग, अष्टिन्द्रा, स्नायु द बाल्य, स्वप्न दवष, सदी, खांसी, कि, दुबलापि, कर्जवरी आष्टद रवगवं र्ें टहलिा एक उत्तर् औषष्टध है।व्यायार् तथा प्राणायार् का ष्टिरन्तर अभ्यास वायु तत् की र्ात्रा कव शरीर र्ें बढाता है।
  • 12. • अग्नि तत्व- • अष्टि जव ष्टक पंच तत्वं र्ें तीसरा र्हत्पूणा तत् है इसकी उत्पष्टत्त सूया से हवती है। अष्टि तत् की पूष्टता हर्ें सूया क े प्रकाश क े द्वारा हवती है। यह जल और पृथ्वी की भांष्टत दृश्यर्ाि तत् है। अष्टि तत् से ही बाकी क े चार तत् भी तृि हव पाते हैं। अष्टि क े द्वारा ही संसार क े प्राष्टणयवं कव उजाा प्राि हवती है। • पुराण र्ें सिरस्ियवं कव सि र्ुखी घवड़े की संज्ञा दी गई है। जब सूया की ष्टकरण से ष्टिकलिे वाले सातवं रंग एकत्र हवते हैं तव वह श्ेत रंग का ष्टिर्ााण करते हैं ष्टजससे हर् सभी विुओं कव देखिे क े यवग्य हवते हैं।
  • 13. • सूया से प्रकाश और उजाा ही प्राि िहीं हवती बस्ि वह पृथ्वी पर सभी रवगवं का िाश करिे वाला तथा हर्ें आरवग्य देकर बुस्द्धर्ाि व दीघाायुष्य भी प्रदाि करता है। सूया क े प्रकाश र्ें इतिी शस्क्त हवती है ष्टक वह रवग कव जन्म देिे वाले रवगाणुओं का िाश करता है। • संसार की सभी विुओं व पदाथों की उत्पष्टत्त क े वल सूया क े द्वारा ही ष्टिष्टित हव पायी है। इसक े कारण से ही जगत र्ें तरह- तरह क े पदाथों कव उत्पन्न ष्टकया जा सकता है। अष्टि तत् से ही बाकी क े चारवं तत् तृि हवते हैं। • संसार क े पेड़ प धे, जड़ी बूष्टटयााँ, औषष्टधयां, फ ू ल, फल, अिाज, सर्ुद्र का जल, सविा, चांदी जिा, लवहा, हीरा आष्टद इसी क े कारण उत्पन्न हवते हैं। इसी से संसार र्ें स ंदया है। जीवि है।
  • 14. • प्राणधाररयवं एवं विस्पष्टतयवं क े जीवि का आधार भी सूया से प्राि हविे वाला प्रकाश है। इसी क े कारण ही हर्ारा भवजि पचता है और आगे की ष्टक्रयाएं सम्भव हव पाती हैं। अष्टि तत् की कर्ी क े कारण शरीर का ष्टिर्ााण असम्भव है। इसकी कर्ी क े कारण शरीर र्ें सुिी, ष्टसक ु डि, सदी की सूजि, वायु जष्टित पीड़ाएं आष्टद अिेकवं बीर्ाररयां घर कर जाती हैं। • जब कभी ष्टकसी कारणवश पृथ्वी पर सूया का प्रकाश आिे र्ें अड़चि हवती है तव संसार र्ें ष्टवष्टभन्न प्रकार की उथल पुथल, बाढ, र्हार्ाररयााँ, भूकम्प आष्टद उत्पाद हवते हैं। संसार की सभी चेति या जड़ जव भी पदाथा है उजाा क े ष्टलए सूया क े प्रकाश की आवश्यकता हवती है।
  • 15. • जल तत्व- आकाश, वायु तथा अष्टि क े बाद च था थथाि जल तत् का आता है जल भी शेष तत्वं क े सर्ाि ही हर्ारे जीवि र्ें र्हत्पूणा है। जल कव अिेकवं िार्वं से जािा जाता है जैसे- वारर, िीर, अर्ृत, रस, पेय तथा जीवि आष्टद जल प्राष्टणयवं क े जीवि का आधार है। • जल जीवि क े ष्टलए उतिा ही र्हत्पूणा है ष्टजतिा सांस लेिे क े ष्टलए वायु। सांसाररक जीवि का आरम्भ जल से ही र्ािा जाता है जल क े द्वारा ही पालि पवषण सम्भव हव पाता है। जल र्ें सभी पदाथों कव अपिे र्ें घवलिे क े गुण क े कारण अन्य शेष तत्वं से ष्टभन्न है।
  • 16. • जल र्ें अन्य भ ष्टतक पदाथों क े संयवग से कसैला, र्ीठा, तीखा, कडुआ, खटटा, िर्कीि तथा गंदला आष्टद हविे का गुण है। जल क े द्वारा अष्टि कव ष्टियंष्टत्रत ष्टकया जा सकता है ष्टजसक े द्वारा रवगवं क े उपचार र्ें बहुत ही सहायक ष्टसद्ध हवता है। हर्ारे शरीर र्ें 70 प्रष्टतशत भाग क े वल जल है। प्राष्टणयवं कव रवग र्ुक्त रखिे की औषष्टध जल ही है। • जल तीि प्रकार का हवता है। • मृदुजल, जव ष्टक स्वास्थ्य क े ष्टलए अष्टहतकर हवता है। तथा बहती दररया या वषाा क े जल से प्राि हवता है। प्राक ृ ष्टतक ष्टचष्टकत्सा क े द्वारा जल का प्रयवग कर जल तत् कव ष्टियंष्टत्रत कर रवग का उपचार ष्टकया जाता है।
  • 17. • कठवि जल, जव स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तर् हवता है। पीिे क े ष्टलए प्रयवग ष्टकया जाता है। इसे गहरे क ुं ओं एवं िल का पािी आष्टद से प्राि ष्टकया जाता है। • तीसरा है अस्थाई कठवि जल, जव ष्टक स्वास्थ्य क े ष्टलए कर् ष्टहतकर हवता है जैसे वषाा का संग्रहीत जल, भूष्टर् पर एकत्र जल या जल कव उबालकर उसकी कठवरता कव दू र कर तैयार र्ृदु जल आष्टद है।
  • 18. • पृथ्वी तत्व- प्राक ृ ष्टतक ष्टचष्टकत्सा र्ें ष्टर्ट्टी का र्हत्पूणा थथाि है। शरीर ष्टजि पााँच तत्वं से ष्टर्लकर बिा है उिर्ें से ष्टर्ट्टी भी एक है। • पृथ्वी पंच तत्वं र्ें पााँचवा और अस्न्तर् तत् है। यह अन्य चार तत्वं- आकाश, वायु, अष्टि तथा जल का रस है तथा यह सभी र्ें प्रधाि तत् है। • ष्टर्ट्टी र्ें ही सभी प्राष्टणयवं क े जीवि ष्टिवााह क े ष्टलए खाद्य पदाथों का उिसे ष्टभि्ि ष्टभि्ि रसवं की प्रधािता क े साथ उत्पन्न करिे की शस्क्त हवती है।
  • 19. • पंच तत्ववं (पंच महाभूतवं) का ग्निमााण क्रम- सूक्ष्म से थथूल- आकाश,वायु, अष्टि, जल और पृथ्वी । इि पंच र्हाभूतवं क े सूक्ष्म रूप (तन्मात्रा) क्रर्शः शब्द, स्पशा, रूप, रस, और गंध है।