2. रवीन्द्रनाथ ठाकु र (बंगाली: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর रोबबन्द्रोनाथ
ठाकु र) (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) को गुरुदेव के
नाम से भी जाना जाता है। वे ववश्वववख्यात कवव,
साहहत्यकार, दार्शननक और भारतीय साहहत्य के एकमात्र
नोबल पुरस्कार ववजेता हैं। बांग्ला साहहत्य के माध्यमसे
भारतीय सांस्कृ नतक चेतना में नयी जान फूँ कने वाले
युगदृष्टा थे। वे एशर्या के प्रथम नोबेल पुरस्कार
सम्माननत व्यक्तत हैं। वे एकमात्र कवव हैं क्जसकी दो
रचनाएूँ दो देर्ों का राष्रगान बनीं - भारत का राष्र-गान
जन गण मन और बाूँग्लादेर् का राष्रीय गान आमार
सोनार बाूँग्ला गुरुदेव की ही रचनाएूँ हैं।
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4. ववप्दाओ से मुझे बचाओ , यह मेरी प्राथशना नही
के वल इतना हो
कभी न ववपदा मे पाउूँ भय ।
दुख-ताप से व्यथथत थचत को न दो सांत्वना नही सही
पर इतना होवे
दुख को मै
ै़
कर सकूँ सदा जय ।
कोई नही सहायक न शमले
तो अपना बल पौरुष न हहले
हानन उठानी पडे जगत मे लाभ अगर वंचना ै़रही
तो भी मन मे न मानूँ क्षय़ । ।
5. मेरा त्राण करो अनुहदन तुम यह मेरी प्राथशना नही
बस इतना होवे
तरने की हो र्क्तत अनामय ।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नही सही ।
के वल इतना रखना अनुनय
वहन कर सकूँ इसको ननभशय ।
नत शर्र होकर सुख के हदन मे
तव मुख पह्चानूँ निन-निन मे ।
दुख राबत्र मे करे वंचना मेरी क्जस हदन ननखखल मही
उस हदन ऎसा हो करुणामय ,
तुम पर करुूँ नही संर्य । ।
6. आत्म्त्राण रबबन्द्रनाथ टैगोर द्वारा शलखखत
कववता है। आत्मत्राण कववता मे कवव मनुष्य
को भगवान के प्रनत ववश्वास बनाए रखने की
प्रेरणा देता है| वह प्रभु से प्राथशना करता है कक
चाहे ककतना कहठन समय हो, ववप्दाएूँ
जीवन मे हो । परन्द्तु हमारी आस्था तुम पर
बनी रहे । उनके अनुसार जीवन मे थोङा दुख
आते ही मनुष्य का भगवान पर ववश्वास ही हट
जाता है।
7. कवव भगवान से प्राथशना करता है कक ऐसे समय मे
आप मेरे मन मे अपने प्रनत ववश्वास को बनाए
रखना । उनके अनुसार भगवान पर ववश्वास ही
उन्द्हे सारी ववपदाओ व कहठनाईयो से उभरने की
र्क्तत देता है। वह मनुष्य को ववषम पररक्स्थनतओ
मे ननडर होकर लङने के शलए प्रेररत करते है।
उनके अनुसार भगवान मे वे र्क्ततआूँ
है कक वह असंभव को संभव बना सकते है।
परन्द्तु कवव भगवान से प्राथशना करते है कक
पररक्स्थनतआूँ कै सी भी हो ,वह स्वयं आमना-
समाना करे।
8. प्रभु, आप के शलए मेरी प्राथशना खतरे से मुझे बचाने के शलए
नहीं है ।
मैं खतरे का डर नहीं कर रहा हूँ लेककन मेरे मन को मजबत
करने के शलए प्राथशना कर रहा हुूँ।
ददश या पीडा में तुमसे मुझे सांत्वना देने की उम्मीद नहीं है,
मुझे उदासी को जीतने के शलए साहस की जरूरत है।
यहद मुझे एक साथी नहीं शमल पा रहा है तो मुझे अपनी
पीडा स्वयं सेहने के शलए सक्षम बनाना ।
9. मैं खुद को बचाने के शलए प्राथशना नहीं कर रहा हूँ,
मैं हार न मानु इसशलए मैं आपकी मदद चाहता हूँ।
मेरा बोझ हल्का करने से मुझे हदलासा नहीं चाहहए,
लेककन इनायत से बोझ उठाने के शलए मुझे प्रेररत करते
रहे।
खुर्ी के हदनों में ववनम्रतापवशक मैं आपको पहचान लूँगा ।
मेरे प्रभु , उदासी की मेरी रातों में यहद दुननया मुझे धोखा दे
तब मुझे आप पर र्क करने से मुझे बचाए रखना!
10. प्राथशना एक धाशमशक किया है जो ब्रह्माण्ड के ककसी 'महान
र्क्तत' से सम्बन्द्ध जोडने की कोशर्र् करती है। हमें अपने
अनुभवों को बांटने का मौका देती हैं प्राथशना। प्राथशना हमारे
आंतररक पररवतशनों में महत्वपणश भशमका ननभाती है,
तयोंकक प्राथशना हमारे महत्वपणश वैयक्ततक बदलाव का
बुननयादी कें र होती है। जब हम प्राथशना करते हैं तो
स्वीकार करते हैं कक कोई तो है, जो हम सबको रोर्न
ककए हुए है। कोई तो है क्जसके पास इस समचे ब्रह्माण्ड
का बटन है। प्राथशना उस र्क्तत को हाशसल करने का
उपिम है, जो र्क्तत हमें अपने परािम से हाशसल होती
है।