5. जप का आध्याक्त्मक महत्व
सत्वशुद्धिकरं नाम नाम ज्ञानप्रदं स्मृतम्।
मुमुक्षाणां मुक्ततप्रदं काममनां सवथकामदम ्।।
सचमुच, नाम जप मन की शुद्चध किने वाला, ज्ञान प्रिान किने
वाला, मुमुक्षुओं को मुक्ति िेने वाला औि इच्छु कों की सवथ मनोकामना
पूर्थ किने वाला है।
कृ ते यद् ध्यायतो ववषणुं त्रेतायां यजतो मखैः।
द्वापरे पररचयाथयां कलौ तद्िररकीतथनात्।।
'सत्ययुग में भगवान ववष्र्ु के ध्यान से, त्रेिा में यज्ञ से औि द्वापि में भगवान की पूजा
से जो फल समलिा र्ा, वह सब कसलयुग में भगवान के नाम-कीिथन मात्र से ही प्राप्ि हो जािा
है।'
रामनाम की औषधि खरी ननयत से खाय।
अंगरोग व्यापे नहीं महारोग ममट जाय।।
6. जप का आध्याक्त्मक महत्व
वाग् गद् गदा द्रवते यस्य धचत्तं।
रुदत्यभीक्ष्णं हसनत तवधचच्च।
ववलज्ज उद् गायनत नृत्यते च।
मद् भक्ततयुततो भुवनं पुनानत।।
'क्जसके वार्ी गिगि हो जािी है, क्जसका चचत्त द्रववि हो जािा है, जो बाि-बाि
िोने लगिा है, कभी हँसने लगिा है, कभी लज्जा छोड़कि उच्च स्वि से गाने लगिा
है, कभी नाचने लगिा है ऐसा मेिा भति समग्र संसाि को पववत्र कििा है।'
देवािीनं जगत्सवं मंत्रािीनाश्च देवताैः।
'सािा जगि भगवान के अधीन है औि भगवान मंत्र के अधीन हैं।"
संि चिनिासजी महािाज ने बहुि ऊँ ची बाि कही हैैः
श्वास श्वास सुममरन करो यह उपाय अनत नेक।
जपात् मसद्धिैः जपात् मसद्धिैः जपात् मसद्धिनथ
संशयैः।
7. जप का आध्याक्त्मक महत्व
न नामसदृशं ज्ञानं न नामसदृशं व्रतम्।
न नामसदृशं ध्यानं न नामसदृशं फलम्।।
न नामसदृशस्त्यागो न नामसदृशैः शमैः।
न नामसदृशं पुण्यं न नामसदृशी गनतैः।।
नामव परमा मुक्ततनाथमव परमा गनतैः।
नामव परमा शाक्न्तनाथमव परमा क्स्र्नतैः।।
नामव परमा भक्ततनाथमव परमा मनतैः।
नामव परमा प्रीनतनाथमव परमा स्मृनतैः।।
'नाम के समान न ज्ञान है, न व्रि है, न ध्यान है, न फल है, न िान है, न
शम है, न पुण्य है औि न कोई आश्रय है। नाम ही पिम मुक्ति है, नाम ही पिम
गति है, नाम ही पिम शांति है, नाम ही पिम तनष्ठा है, नाम ही पिम भक्ति है,
नाम ही पिम बुद्चध है, नाम ही पिम प्रीति है, नाम ही पिम स्मृति है।'
(आदद पुराण)
10. संगीि औि जप की समक्न्वि साधना
प्रहलादस्तालिारी तरलगनततया चोद्िवैः कांस्यिारी।
वीणािारी सुरवषथैः स्वरकु शलतया रागकताथजुथनोऽभूत्।।
इन्द्रोवादीन्मृदंगैः जयजयसुकराैः कीतथने ते कु मारा।
यत्राग्रे भाववतता, सरसरचनया व्यासपुत्रो बभूव।।
'िाल िेने वाले प्रह्लाि र्े, उद्धव झाँझ-मँजीिा बजािे र्े, नाििजी वीर्ा सलये
हुए र्े, अच्छा स्वि होने के कािर् अजुथन गािे र्े, इन्द्र मृिंग बजािे र्े, सनक-
सनन्िन आदि कु माि जय-जय ध्वतन कििे र्े औि शुकिेवजी अपनी िसीली िचना
से िस औि भावों की व्याख्या कििे र्े।'
11. जप साधना के तनयम
• जप प्रािंभ में यंत्रवि होिा है| धीिे धीिे उसमे
भाव भििे जािे है|
• जप की संख्या प्रतिदिन एक समान होनी
चादहए|
• जप में भावो का प्रमुख प्रभाव पड़िा है| ससफथ
जप संख्या के टागेट को पूिा किने की
उिावली नहीं किनी चादहए|