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3. Dr. Virag Sontakke
प्रस्तावना
• चालुक्यों के पतन के पश्चात् ८ वी सदी ईसवी में दक्षिण भारत में
राष्ट्रकू टों का उदय हुआ।
• राष्ट्रकू टों ने मान्यखेड से राज्य ककया
• कालाांतर में राष्ट्रकू ट एक प्रबल राजवांश के रूप में राजनीततक
पटल पे स्थापपत हुए।
• दकन, दक्षिण एवां उत्तर भारत में अनेक पवजयी आक्रमण के
फलस्वरूप राष्ट्रकू टों ने एक बृहद साम्राज्य की ।
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राष्ट्रकू टों का प्रशासतनक
पवभाजन
1. साम्राज्य
2. प्राांत
3. मांडल
4. पवषय
5. भुक्क्त
6. पुर/नगर
7. ग्राम
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साम्राज्य
पूणण प्रदेश
मांडल
वतणमान कमीशनरी जैसे ५-६ पवषय
(क़्िले)
पवषय
वतणमान क़्िले समान (२०००
गााँव )
भुक्क्त
१०,१२, २० गााँव
पुर/नगर
स्वतांत्र नगर
ग्राम
प्राांत/राष्ट्र
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कें द्रीय प्रशासन
• राष्ट्रकू टों का प्रशासन राजतांत्रत्रक था
• राजा कें द्रीय प्रशासन का प्रमुख था
• राजा राज्य का प्रधान होता था
• उसका पद आनुवांशशक होता था
• प्रायः जेष्ट्ठ पुत्र राजगद्दी का उत्तराधधकारी होता था
• तथापप महत्वकाांशाओ के करण उत्तराधधकार के शलये युद्ध होते थे।
• राजा जीपवत रहते अपना उत्तराधधकारी चुनते थे
• चुने हुए उत्तराधधकारी को युवराज का पद देके राजधानी में रखते थे
• शक्क्तशाली राजा पवपवध पदवी लगते थे
• महाराजाधधराज,राजाधधराज,परमभट्टरक,परमेश्वर इत्यादद
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• राष्ट्रकू टों के प्रशासन में मांत्रत्रमांडल की जानकारी नहीां है।
• मांत्रत्रमांडल के मांत्री का उल्लेख अशभलेखों में कम प्राप्त हुआ है
• राष्ट्रकू टों के सामांत शशलाहार राजाओां के अशभलेखों में ५ मांत्री की
सांख्या का पववरण शमलता है
• चूाँकक शशलाहार राष्ट्रकू टों के सामांत थे, तो शायद राष्ट्रकू टों के प्रशासन में
भी मांत्री रहे होंगे
• इन मांत्रत्रयो के नाम
1. महाप्रधान
2. सवाणधधकाररन
3. सवणदशशणप्रधान
4. प्रधान
5. पुराणमात्य/महामात्य
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राष्ट्रकू टों के कें द्रीय अधधकारी
• महासांधधपवग्रदहक
↓ के अधीन
सांधधपवग्रदहक
1. इन्हें पांचमहाशब्द की उपाधध प्राप्त थी
2. ये साम्राज्य के प्राांतो, सामांती राज्यों के शलए उत्तरदायी/
क़्िम्मेदार होते थे
3. प्राांतो की आांतराणज्य तनततयो और तनणणय को देखते थे
4. राजा और महासांधधपवग्रदहक के बीच पारस्पररक
पवस्वास होता था
5. महासांधधपवग्रदहक को राजा का दादहना हाथ कहा गया है
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धमाणधधकाररन
• प्रधान न्यायाधीश
• महासांधधपवग्रदहक का समकि
• नीचे की अदालतों की अपील सुनता
• तनणणय सुनाना
• राजा के ताम्रपत्रों के लेखों को तयार करता था
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महाप्रचण्डदांडनायक़
• सेनापतत
• राष्ट्रकू टों का साम्राज्य पवस्तार देखते हुए
लगता है कक सेनापतत कक सांख्या कई होगी
• सेनापततयों को दांडनायक़ तथा महादांडनायक़
की उपाधधयााँ प्राप्त थी।
• सेनापतत युद्ध में सेना का सांचालन करता था
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पुरोदहत
• पुरोदहत को धमाांकु श कहा गया है
• यह राज्य के तथा राजपररवार के धाशमणक कायण
करता था
• यह राजा को धाशमणक उपदेश भी देता था
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अमात्य
• यह राजस्व मांत्री था
• यह राज्य का राजस्व, भूस्वामीत्व, कृ पष का
काम देखता था
• राजस्व, भूस्वामीत्व, कृ पष के काग़़िात इसके
पास रहते थे
• इसके अधीन बहुत से करतनक (क्लकण ) रहते
थे।
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प्राांतीय प्रशासन
• राष्ट्रकू ट साम्राज्य पवशभन्न प्राांतो में पवभक्त था
• प्राांतो को राष्ट्र कहते थे
• यह राष्ट्र का िेत्र ५-६ क़्िले के बराबर रहता होगा
• राष्ट्रकूट साम्राज्य में सांभवतः १८-२० राष्ट्र रहे होंगे
• राष्ट्र के प्रधान को राष्ट्रपतत कहते थे
• इन्हें दांडनायक़ तथा महादांडनायक़ की उपाधधयााँ प्राप्त थी।
• राष्ट्रपतत का पद राजकु मार, राजा के ररश्तेदारों, राजपररवार के सदस्यों को
ददया जाता था
• अमोघवषण प्रथम की पुत्री चांद्रवेलब्बा रायचूर दोआब की शासनधधकाररनी थी।
• या युद्ध में हारे हुए सामांत भी राष्ट्रपतत पद पर रहते थे क्जन्हें आांतररक
स्वतांत्रता थी
• अमोघवषण प्रथम ने सेनापतत बाांके य को वनवासी का राष्ट्रपतत तनयुक्त
ककया था क्जसमें १२००० ग्राम थे।
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राष्ट्रपतत
• यह पद बहुताांश आनवांशशक होता था
• राष्ट्रपतत उपाधधयााँ लगाते थे उदा. राजपरमेश्वर
• इनके पास अपनी सेनायें होती थी, यदद कोई सामांत पवद्रोह करता
तो यह युद्ध करते
• राष्ट्रपतत प्राांतीय प्रशासन के प्रमुख होने के नाते राजस्व प्रमुख भी होते
थे
• कर सांग्रह करना इनका महत्वपूणण कायण था
• राष्ट्रपतत को प्राांतीय प्रशासन में सलाह देने के शलया राष्ट्रमहत्तर
लोगों की सशमतत होती थी
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मांडल प्रशासन
• ये आधुतनक कमशनररस के जैसे काम करते थे
• ५-६ क़्िले का प्रमुख मांडल होता था
• इसके बारे में कोई जानकारी नहीां है
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पवषय प्रशासन
• पवषय आजकल के क़्िले के आकार के थे जो अनेक भुक्क्त से
शमलकर बनते थे।
• पवषय के प्रधान को पवषयपती कहते थे
• बहुत से सामांत भी पवषयपती होते थे
• ये राजस्व प्रमुख होते थे
• पवषयपती को प्राांतीय प्रशासन में सलाह देने के शलया राष्ट्रमहत्तर
लोगों की सशमतत होती थी
• पुनक (पूना) पवषय में १००० और कहणतक पवषय में ४००० ग्राम थे।
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भुक्क्त प्रशासन
• अनेक ग्रामों से बनकर भुक्क्त बनती थी
• हर भुक्क्त में १०० से लेके ५०० ग्राम होते थे
• भुक्क्त के प्रमुख को भोधगक या भोगपतत कहते थे
• भोगपतत को प्राांतीय प्रशासन में सलाह देने के शलया राष्ट्रमहत्तर
लोगों की सशमतत होती थी
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ग्राम प्रशासन
• ग्राम प्रमुख को ग्रामकू ट, ग्रामपती कहते थे
• यह पद प्रायः अनुवांशशक होता था
• गाव में शाांतत बनाए रखना,
• राजस्व व्यवस्था करना,
• न्यातयक अधधकार इत्यादद काम ग्रामपती के होते थे
• अशभलेखों में ग्रामपती को सहायता करनेवाले युक्त, आयुक्त,
तनयुक्त, और ग्राममह्हतर के उल्लेख प्राप्त होते है।
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तनष्ट्कषण
• इस प्रकार हम देखते है कक राष्ट्रकू टो का शासन के २२५ वषण तक
चलने में उनकी शासन व्यवस्था और प्रणाली का महत्वपूणण
योगदान था।
• राष्ट्रकू टों के बडे साम्राज्य के अांतगणत आने वाले पवशभन्न िेत्रों की
समुधचत देखरेख और प्रशासन हेतु एक तनक्श्चत व्यवस्था पवद्यमान
थी।
• बृहद साम्राज्य के सुशासन हेतु अनेक भागों में पवभक्त करना एक
बद्धधमत्तापूणण तनणणय था।
• सम्भवतः इसी समुधचत शासन व्यवस्था ने राष्ट्रकू ट शासको को
एक लम्बे समय तक राज्य करने में मदद की होगी।
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