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3. प्रस्तावना
•भू-स्वामित्व िानव की ववकास क
े प्रक्रिया क
े चरण प्रदमशित
करता है।
•आरम्भभक काल िें सभपूणि भूमि अधिकार क
े ववहीन होगी
•नव-पाषाण काल से कृ वष की प्रक्रिया का अहि योगदान
•कृ वष क
े ववकास से िानव को एक जगह पर ननम्चचत सिय क
े
मलए उपयोग एवं उपभोग करने को बाध्य बनाया
•यही से भू-स्वामित्व की प्रचलन की शुरूवात
•म्स्िनत काल क
े अनुरूप भू-स्वामित्व िें बदलाव ददखाई देने
लगे
•भूमि पर स्वामित्व क्रकसका रहा होगा यह वववाद का ववषय है।
7. व्यम्ततगत भू-स्वामित्व
ववद्वान म्जन्होंने ने इस दृम्टटकोण का सिििन क्रकया:
1. Mcdonel
2. Baden-Powell
3. K. P. Jayaswal
4. P. N. Banerjee
5. U.N. Ghoshal
6. Lallan Gopal
8. ऋग्वेददक काल
• व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क
े संदभि:
a. कृ वषयोग्य ज़िीन की जुताई
b. कृ वषयोग्य ज़िीन को नापना
c. खेती को ववभाम्जत करना (खखल्य)
d. भू-स्वािी
e. ज़िीन को म्जतने क
े मलए युद्ि
f. उपजाऊ खेत पाररवाररक सदस्य को देने की चचाि
g. कृ वषयोग्य ज़िीन: उविरा एवं क्षेत्र
h. ज़िीन क
े िामलक: उविपती, उविरस, उविरजीत, क्षेत्रपनत, क्षेत्रस
9. उत्तर-वेददक काल
• ज़िीन क
े प्रकार
1. चारागाह
2. क्षेत्रीय (Homestead)
3. कृ वष योग्य
4. जंगल
• तै॰संदहता: ज़िीन वववाद होने पर इंद्र एवं वरुण देवताओं का स्िरण करे
• ऐतरेय ब्रा॰: नाभ्नेददस्ि का पुत्र िनु, वंशानुगत ज़िीन क
े ववभाजन िें हक़
िााँगते हुए॰॰
• बृह॰ उप॰: याज्ञवल्क ने सन्यास लेने पूवि ज़िीन को दोनो पम्त्नयो िें ववभाम्जत
क्रकया
• छान॰ उप॰: कृ वष योग्य ज़िीन एवं घर व्यम्ततगत संपती होने क
े कारण उनका
10. ६०० इसा पूवि
• पररवतिन का काल
• शहरों की संख्या िें वृद्धि
• कृ वष का ववकास
• कृ वष क
े स्वािी: क्षेत्रपनत, खेत्तसमिका अिवा वाट्ठु पनत
• पाखणनन: ज़िीन नापी जाती िी
• दीघननकाय: दो खेतों क
े िध्य बाड़
• दीघननकाय: खेती की सीिा ननम्चचत की जाती
• दीघननकाय: अन्य क
े खेतों िें अनतििण क
े उल्लेख
• ववनय वपटक एवं जातक: ज़िीन की ख़रीद-बबिी, दान क
े वणिन
• िहावग्ग जातक: ज़िीन सभपवत्त िानी जाती िी
• अनािवपंडक, जीवक: भूमि दान
• चुलवग्ग जातक: जेतवंन िें ज़िीन वववाद का उल्लेख
• रज्जुवाहक: कृ वष अधिकारी
11. िौयि काल
• राज्य का ननयंत्रण
• राजा: भू-स्वािी
• राजा: सीता खेतों का स्वािी
• व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क
े उदाहरण:
• अििशास्त्र: यदद कोई स्वािी अपनी ज़िीन का १० वषों तक उपयोग ना करे, तो
वह ज़िीन राज्य की होगी
• अििशास्त्र: ज़िीन वववाद क
े प्रसंग िें स्वािी को स्वयि कहा गया है
• दो खेतों क
े िध्य ववभाजन की चचाि
• दो खेतों क
े िध्य वववाद का उल्लेख
• ज़िीन वविय क
े संदभि
• अ-संवैिाननक तरीक़
े से ज़िीन हड़पने का उल्लेख
12. िौयोंतर काल
• व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क
े प्रचुर उल्लेख
1. िनुस्िृनत: राजा क
े वल अधिपनत, ज़िीन का स्वािी नही
2. िनुस्िृनत: ज़िीन उसकी होगी जो प्रिि जंगल को साफ़ करेगा
3. पतंजमल: स्वािी को ज़िीन बेचने, ख़रीद एवं दान का अधिकार
4. िहावस्तु: िान की खेती का ववभाजन करक
े बौद्ि मभक्षु को दान देने
का प्रसंग
5. िनुस्िृनत: राजा का उत्तरदानयत्व है की वह लोगों क
े ज़िीन, बच्चों की
रक्षा करे
6. याज्ञवल्क: खेतों िें चोरी दंडनीय अपराि
7. ददव्यावदान: क्रकसान अपनी खेतों िें कृ वष करने क
े प्रसंग
13. गुप्त काल
• व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क
े स्पटट प्रिाण
1. बृहस्पनत स्िृनत : ज़िीन बबिी क
े सिय दस्तावेज तैयार क्रकए जाते िे
2. खेतों को बंिक या करार पर देने क
े संदभि
3. बृहस्पनत स्िृनत:यदद क्षबत्रय, वैचय, शूद्र या पत्नी या भाई क
े बबना िर जाते
हैं, तो उनकी संपवत्त राजा द्वारा ली जानी चादहए।
4. िािव कहते हैं क्रक भूमि राजा की संपवत्त नहीं है, बम्ल्क सािान्य संपवत्त
(सािरण) है।
5. कात्यायन: कृ वष भूमि को घर, आभूषण जैसी व्यम्ततगत संपवत्तयों क
े रूप
िें शामिल क्रकया गया िा।
14. प्रारंमभक िध्ययुगीन काल
• सािंती राज्यों का उदय
• बड़े भूमि स्वािीयों का ववकास
• राजतरंधगणी: बड़े भू-स्वािी को फसलों से भारी लाभ हो रहा है और वह डािर या सािंत
बन गया है।
• राजतरंधगणी: बड़े आकार क
े खेतों क
े िामलक छोटे क्रकसानों को डराते िे ।
• कृ त्य कल्पतरु और अम्ग्नपुराण: भूमि की बबिी और खरीद क
े अधिकार क
े रूप िें
व्यम्ततगत स्वामित्व क
े प्रिाण
• िेिनतधि: भूमि क
े व्यम्ततगत स्वामित्व क
े पक्ष िें िा
• शुभामशत रत्नकोष (1175 CE): ननजवंश भूररनत- पैतृक भूमि।
• राजतरंधगणी: करकोट राजवंश क
े राजा चंद्रवपड क
े अधिकाररयों ने िोची से िंददर ननिािण
क
े मलए अपनी भूमि बेचने का अनुरोि क्रकया।
• जैमिनी मििासा: स्पटट रूप से कहती है क्रक राजा राज्य क्षेत्र (िहाभूमि) नहीं दे सकता है
तयोंक्रक, यह उसका स्वािी नहीं है।
16. राजा का स्वामित्व
इस मसद्िांत का सिििन करने वाले ववद्वान
1. V. A. Smith
2. J. N. Samaddar
3. B. Breloer
4. Shamasastry
5. Hopkins
6. Bihler
7. Maine
17. ऋग्वैददक और उत्तर-वैददक काल
• ऋग्वेद: राजा को भूमि का स्वािी या राज्य का स्वािी िानने क
े कोई उदाहरण नही
• ऋग्वैददक ऋचाओं से यह पता चलता है क्रक “बमल” राजा को लोगों क
े संरक्षक क
े रूप िें
प्राप्त हुआ िा, न क्रक राज्य क
े प्रिुख होने क
े रूप िें।
बाद की अवधि िें, भूमि को चार वगों िें ववभाम्जत क्रकया गया िा,
a) चरागाह भूमि,
b) बंजर भूमि,
c) कृ वष योग्य भूमि और
d) जंगल
18. छठी शताब्दी ईसा पूवि
• आपस्तभब िििसूत्र: यदद कोई व्यम्तत पट्टे पर राज्य द्वारा दी गई भूमि पर
खेती नहीं करता है, तो उसे राज्य को हुए पूणि नुकसान की भरपाई करनी
चादहए।
• वमसटठ िििसूत्र: िामलक द्वारा पूरी तरह त्यागी गई संपवत्त/ भूमि को राजा क
े
पास जानी चादहए.
• गौति िििसूत्र: खजाने या पृथ्वी क
े नीचे नछपे मसतक
े राजा को ददया जाना
चादहए।
• गौति: राजा ब्राह्िणों को छोड़कर हर चीज का िामलक है.
• बंजर भूमि, खाली भूमि, देहाती भूमि, वन भूमि आदद राजा क
े स्वामित्व िें
िी।
• ववनय वपटक: िगि राजा बबम्भबसार 80,000 गांवों क
े स्वािी िे
• उनकी पत्नी कोसलदेवी को अपने भाई प्रसेनजीत (कोसल) से एक गांव दहेज
19. िौयि काल
• भूमि पर राजा क
े स्वामित्व का प्रिाण।
• डायोडोरस और स्रैबो (िेगास्िनीज क
े वणिन पर): राजा भारत िें सभी संपवत्त क
े िामलक
हैं, व्यम्ततगत स्वामित्व िौजूद नहीं
• यदद भूमि का स्वािी लंबे सिय तक अनुपम्स्ित रहता है तो वह भूमि क
े अपने
स्वामित्व को खो सकता है।
• वन राज्य की संपवत्त क
े रूप िें िाना जाता।
• कौदटल्य: वन, वन उत्पाद राजस्व क
े स्रोतों िें शामिल।
• वन से आधििक उपज एकत्र करने क
े मलए क
ु प्याध्यक्ष अधिकारी की ननयुम्तत की गई िी।
• अििशास्त्र: राज्य को जंगल क
े क
ु छ दहस्सों को साफ करना चादहए और उन्हें कृ वष योग्य
भूमि िें ववकमसत करना चादहए।
• कौदटल्य: राज्य को बंजर भूमि िें खेती क
े मलए ववशेष उपाय अपनाना चादहए।
20. भूमि प्रकार
• राजा क
े ववशेषाधिकार क
े तहत सात प्रकार की भूमि।
a) परती भूमि,
b) नवसंस्िावपत जनपद,
c) खजानेयुतत भूमि ,
d) खानों और खनन उत्पादों,
e) चरागाह भूमि
f) मसंचाई पररयोम्जत भूमि और
g) वन भूमि।
21. कृ वष (राज्य कृ वष)
•सीताध्यक्ष्य: राज्य क
े कृ वष उत्पादन क
े पूरे कायि की देखरेख का
अधिकारी
• सीता का अिि राज्य की भूमि.
•सीताध्यक्ष्य को वृक्षायुवेद की जानकारी होना बंिनकारक
•सीताध्यक्ष्य फलों, लताओं, अनाजों और कपास जैसी नकदी उगाते
बोते िे।
•वह िवेमशयों, हल आदद की आपूनति करते िे
•खेती क
े कायों को सुवविाजनक बनाने क
े मलए खेनतहर िजदूर को भी
ननयुतत करते िा।
•इस प्रकार कृ वष पर राज्य का ननयंत्रण ददखता है।
22. िौयोत्तर काल
• िनुस्िृनत: राजा सभी का स्वािी है।
• िनुस्िृनत: राजा सवोच्च अधिकारी है, इसमलए, उसे भूमि का स्वािी िाना
जाना चादहए।
• िनुस्िृनत: राजा द्वारा भूमि और लोगों पर ननयंत्रण रखने क
े मलए चतुर
अिीक्षकों की ननयुम्तत करनी चादहए।
• क़ोष: राजा क
े स्वामित्व िें
• भूमि अनुदान का सबसे पहला अमभलेखखय प्रिाण प्रिि शताब्दी ईसा पूवि से
संबंधित है।
• िहाराटर िें सातवाहनों द्वारा एक गांव प्रदान क्रकया गया िा।
• इस तरह क
े दान करों से िुतत िे।
23. गुप्त काल
• बृहस्पनत स्िृती : राजा सभी का स्वािी है।
• बृहस्पनत स्िृती : यदद क्षबत्रय, वैचय, शूद्र पुरुष पत्नी या भाई क
े बबना िर जाते
हैं, तो उनकी संपवत्त राजा द्वारा ली जानी चादहए, तयोंक्रक राजा सभी का
स्वािी है।
• फदहयान: राजा क
े पास राज्य की पूरी भूमि है
• कात्यायन: यदद िामलक भूमि करों का भुगतान क्रकए बबना राज्य छोड़ देता है,
तो राजा को उसकी भूमि क
े बबिी या जब्त करने का अधिकार है।
• स्वामित्व क
े बबना भूमि (संपवत्त) अंततः राज्य / राजा को जाती है।
• ग्राििाहत्तर और व्यवहरीन: भूमि की बबिी और धगरवी रखने या पट्टे क
े
मलए ननयुतत अधिकारी
• नारदस्िृनत: राजा का ननखात-ननधि पर एकाधिकार है और यह राज्य क
े
राजस्व क
े िहत्वपूणि 'स्रोतों िें से एक है।
24. प्रारंमभक िध्ययुगीन काल
• राजा राज्य की सभी संपवत्त का िामलक है।
• भट्ट-स्वािीन: राजा जल और भूमि का िामलक है.
• िानसोल्लास: राजा राज्य की सभी संपवत्त का अधिकारी है
• ि
ु त्य-कल्पतरू: राजा भूमि का स्वािी ।
• राजतरंधगणी: राजा सभी कृ वष भूमि का िामलक है
• इस अवधि क
े मशलालेखों से संक
े त मिलता है क्रक राजा को कृ वष भूमि
पर ववशेष अधिकार है जो ज़िीन दानो क
े मशलालेखों िें उल्लेख
क्रकया गया है।
• िेिानतिी: राजा ननखात-ननधि का एक सही िामलक है
27. वैददक एवं उत्तर-वैददक काल
िीिांसा सूत्र: भूमि दान अपने सािुदानयक स्वामित्व क
े कारण
प्रनतबंधित है।
ववद्वान: चारागाह की भूमि, तालाब, िागि और वन भूमि पूरे गांव क
े
कब्जे िें िी।
िहाभारत: उत्तर क
ु रु जनजानत िें सािुदानयक स्वामित्व की प्रिा है।
28. छठी शताब्दी ईसा पूवि
• ददघननकाय: उत्तर क
ु रु की जनजानत ने सािुदानयक स्वामित्व की प्रिा का
पालन क्रकया।
• ददघननकाय: जानवरों, फसलों और यहां तक क्रक िदहलाओं को भी
सािुदानयक संपवत्त क
े रूप िें िाना जाता िा.
• जातक: गांवों की आस-पास की भूमि म्जसिें देहाती क्षेत्र, बंजर भूमि, जंगल
शामिल हैं, पूरे ग्रािीणों द्वारा उपयोग क्रकए गए िे।
• मसंहकाभि जातक: सभी ग्रािीण जौ क
े खेतों की सुरक्षा कर रहे िे।
• नतंदक जातक : एक फलदार पेड़ म्जसे सािुदानयक संपवत्त क
े रूप िें िाना
जाता है।
• मलच्छवव, शातय, िल्ल, कोमलय, आयुिजीवी आदद िें सािुदानयक
स्वामित्व की प्रिा िी
29. िौयि काल
•िौयि काल क
े दौरान राजा सवोच्च शम्तत बन जाते हैं
•भूमि क
े सािुदानयक स्वामित्व की स्पटट जानकारी नही।
•अििशास्त्र: सिुदाय क
े स्वामित्व का स्पटट उल्लेख नहीं करता है
(ए.एन. बोस)
•हालांक्रक क
ु छ संदभि भूमि क
े सािुदानयक स्वामित्व क
े बारे िें
ववचार देता है।
•कौदटल्य: गांवों से 800 अंगुल की दूरी पर म्स्ित भूमि ग्रािीणों क
े
स्वामित्व िें िी.
•ग्रीक इनतहासकार नीआरकस / स्रबो : उत्तर-पम्चचिी भारत
(पंजाब) क
े राज्य सािुदानयक कृ वष कर रहे िे।
30. गुप्त काल
•िनु: गांव से ६०० क्रफट की दूरी की भूमि, गांव की संपवत्त क
े रूप
िें िाना जाता.
•ववटणु: चारागाह भूमि = गांव की संपवत्त
•याज्ञवल्क: गांवों की आसपास की भूमि का उपयोग
सािुदानयक संपवत्त क
े रूप िें क्रकया जाता िा।
•जैमिननसुत्र : यहां तक क्रक प्रभावी राजा भी पूरी पृथ्वी का दान
नहीं दे सकता है, म्जसका वह शासक हो सकता है, तयोंक्रक पृथ्वी
सभी क
े मलए सािान्य है।
32. उपसंहार
• वववाददत प्रचन
• राजा राज्य का स्वािी, लेक्रकन भू-स्वािी नही
• राजा राज्य क
े प्रिुख क
े रूप िें भू-स्वािी
• राजा राज्य क
े स्वािी िा जो एक रक्षक क
े रूप िें कायि करता िा
• संभवतः वह क
े वल राज्य भूमि (सीता) का िामलक िा
• शेष भूमि एक राजा क
े रूप िें उसक
े पास है, लेक्रकन िूल अधिकार
िामलक द्वारा ननदहत हैं।
• क्रकसान अपने कृ वष खेतों क
े स्वािी लगते हैं।
• व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क
े सवािधिक स्पटट उल्लेख
• गणतंत्र (संघ/गणराज्य) राज्यों िें सािुदानयक स्वामित्व का प्रचलन िा .