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AIHC & Arch-C-601: Ancient Indian Polity and Administration
Unit IV : Administration and Administrative Units
11. Administrative System under the Chola
Sachin Kr. Tiwary
Dr. Virag Sontakke
प्रस्तावना
चोल साम्राज्य दक्षिण भारत का सर्ााधिक शक्ततशाली साम्राज्य था।
चोलों ने दक्षिण भारत में लगभग ३५० सालों तक शासन ककया।
नौसेननक शक्तत क
े बल पर चोलों ने दक्षिण पूर्ा एशशया क
े द्र्ीपों पर र्चास्र् प्रस्थापपत
ककया।
चोल शासकों द्र्ारा ननशमात मंददर उनक
े राज्य क
े उत्कृ ष्ट उदाहरण है।
चोल काल में सादहत्य, काल और स्थापत्य में अभूतपूर्ा प्रगनत हुई।
चोलों का राजतंत्र और उनकी प्रशासन व्यर्स्था सम्पूणा भारत में अद्पर्तीय थी।
Dr. Virag Sontakke
साम्राज्य
पूणा प्रदेश
कोट्टम
नाडु
कोराम (ग्राम)
१०,१२, २० गााँर्
मंडल (प्रान्त)
चोल साम्राज्य की प्रशासननक इकाइयााँ
Dr. Virag Sontakke
चोल प्रशासन
चोल प्रशासन राजतंत्रात्मक था।
राजा शासन का सर्ोच्च अधिकारी था।
राजा राज्य का प्रिान होता था।
उसका पद आनुर्ंशशक होता था।
जेष्ठ पुत्र राजगद्दी का उत्तराधिकारी होता था।
राजा जीपर्त रहते ही अपना उत्तराधिकारी चुनते थे।
राजक
ु मारों को महत्र्पूणा प्रांतो का शासक ननयुतत ककया जाता था।
शक्ततशाली राजा पर्पर्ि पदर्ीयााँ/उपाधियााँ लगाते थे तथा राजा और राननयों की
प्रनतमाए मंददरों में प्रनतक्ष्ठत करते थे।
Statue of Rajaraja Chola,
Brihadiswara Temple, Thanjavur, Tamil Nadu
Dr. Virag Sontakke
राजा
राजा, शासन का प्रमुख होने क
े नाते सम्पूणा साम्राज्य
की प्रशासकीय व्यर्स्था की देखरेख करता था।
राजा साम्राज्य की कायापाशलका, न्यायपाशलका
और सैन्य व्यर्स्था का प्रिान सूत्रिार होता था।
राजा युद्ि में सेना का संचालन करता था,
अनेक सेनापनत की ननयुक्तत राजा स्र्यं करता
था।
चोल साम्राज्य में नर्ननशमात मंददरो क
े नाम भी
प्रायः शासकों क
े नाम पर रखते थे।
राज्य क
े नीनतगत फ
ै सले राजा स्र्यं लेता था।
Dr. Virag Sontakke
राज प्रशासन
चोल राजर्ंश में, राजा क
े ककसी मंत्रत्रमंडल
या अमात्य पररषद क
े उल्लेख उनक
े
अशभलेखों में प्राप्त नही होते।
यद्यपप राजा को प्रशासन को चलाने
क
े शलए तथा पर्शभन्न पर्भागों में
सहायता हेतु अमात्य एर्ं अधिकाररयों
की ननयुक्तत की जाती होगी।
िाशमाक व्यर्स्थाओं क
े पर्षयों पर
राजा राजगुरु से ही परामशा लेता था।
चोल अशभलेखों में िमाासन (न्याय क
े
शलए राजा का दरबार) शब्द का प्रयोग
हुआ है।
चोल अशभलेखों में क
ु छ अधिकाररयों क
े
उल्लेख प्राप्त होते है।
Dr. Virag Sontakke
चोल अधिकारी
ओलै : यह पर्शशष्ट अधिकारी होते थे जो सम्राट क
े आदेशों का पालन करता था। ओल
राजा क
े आदेशों का कच्चा मसौदा तैयार करते थे।
ओलैनायग़म: यह अधिकारी ओलै द्र्ारा तैय्यार राजा क
े आदेश की जााँच करते थे।
उच्च सरकारी अधिकरीयों को “पेरुंदरम” तथा उनसे नीचे क
े अधिकाररयों को
“शेरुतरतम” कहा जाता था।
Dr. Virag Sontakke
स्थानीय प्रशासन
चोल शासनकाल में स्थानीय प्रशासन को सर्ााधिक महत्र् ददया गया।
चोल सम्राटों ने ग्राम-प्रशासन को प्रोत्साहन ददया।
चोल साम्राज्य का प्रशासन, ग्राम-प्रशासन, नगर-सभा, और मंडल-सभाओं क
े द्र्ारा
संचाशलत होता था।
ग्रामों और नगरों की सभाएाँ प्रजा द्र्ारा संचाशलत र्ास्तपर्क संस्थाये थी जबकक
नाडुओं की सभाएाँ प्रनतननधिक थी।
चोल साम्राज्य में तीन प्रकार की ग्राम संस्थाये का उल्लेख प्राप्त होता है,
1. ऊर
2. सभा
3. नगरम
Dr. Virag Sontakke
ऊर
ग्राम-सभाओं में ऊर सबसे सरल सभा थी।
ऊर का अथा “पुर” होता है।
ऊर शब्द ग्राम और नगर दोनो क
े शलए प्रयुतत होता था।
ऊर क
े संगठन तथा कायाप्रणाली क
े पर्षयपर ज़्यादा जानकारी प्राप्त नही होती।
ऊर की कायासशमनत को “आलुंगणम” कहते थे।
सभा क
े जैसे ऊर भी अपने प्रनतननधियों से दस्तार्ेजों क
े मसौदे तैयार कराकर उन्हें
लेखबद्ि करती थी।
ऊर क
े सदस्यों को नगद िन शमलता था, क्जसे र्े ककसी भी व्यर्साय में लगाने को
स्र्तंत्र थे।
कभी-कभी ऊर तथा सभा संयुतत काम करने क
े साि शमलते है।
ककसी –ककसी गार् में दो ऊर भी होते थे।
१२२७ ईसर्ी में शात्तमंगलम गााँर् में दो ऊर थे।
१२४५ ईसर्ी में क
ु मारमंगलम और अमंनक
ुं डड नामक गााँर्ों में भी दो ऊर का उल्लेख
प्राप्त होता है।
Dr. Virag Sontakke
सभा या महासभा
सभा या महासभा यह ब्राम्हंण (अग्रहारों) की संस्था थी।
चोल अशभलेखों में सभा या महासभा क
े बारे में अनेक पर्र्रण शमलते
है, लेककन इनक
े कायों क
े पर्स्तृत पर्र्रण तोडमंडलम (चोलमंडलम) से
प्राप्त हुए है।
कााँची क
े आसपास क
े प्रदेश में इनकी संख्या ज़्यादा थी।
सभा या महासभा को पेरुगुरर कहते थे।
सभा या महासभा क
े सदस्यों को पेरुमतकल कहते थे।
सभा या महासभा क
े काया अनेक सशमनतयों क
े द्र्ारा ककए जाते थे।
इन सशमनतयों को “र्ाररयम” कहा जाता था।
पर्शभन्न सभा क
े र्ाररयम की संख्या कायाानुसार शभन्न-शभन्न होती
थी।
र्ाररयम की कायाकारी सशमनत क
े सदस्यों को “र्ाररयप्पेरुमतकल”
कहते थे।
Dr. Virag Sontakke
सभा या महासभा
चोल राजा परांन्तक प्रथम क
े ईसर्ी सन ९१९ और ९२१ क
े
उत्तरमेरूर से प्राप्त अशभलेखों से स्थानीय महासभा क
े
र्ाररयमों क
े बारे में पर्र्रण शमलता है।
ईसर्ी सन ९१९ क
े अशभलेख में सभा द्र्ारा पााँच
सशमनतयों क
े गठन संबंिी एक प्रस्तार् राजा क
े अधिकाररयों
क
े समि पाररत करने का उल्लेख है।
ग्राम 30 (र्ाडों) भागों में पर्भाक्जत था, क्जनमें से प्रत्येक भाग का
प्रनतननधि लाटरी द्र्ारा चुनी गई र्ापषाक पररषद में उपक्स्थत होता
था।
पररषद पााँच उपसशमनतयों में पर्भाक्जत थी क्जनमें से तीन
क्रमश: उद्यानों तथा र्ादटकाओं, तालाबों तथा शसंचाई और झगडों
क
े ननबटारे क
े शलए उत्तरदायी थीं, जबकक अंनतम दो क
े काया
अननक्चचत हैं।
Dr. Virag Sontakke
उत्तरमेरूर क
े अनुसार सभा क
े सदस्यों ननयम
वो सदस्य मनोनीत हो सकते है जो…….
क्जनक
े पास खुद की १/४ र्ेशल (डेढ़ एकर) भूशम हो।
अपनी जमीन पर बना खुद का मकान हो
क्जनकी आयु ३५ से ७० र्षा क
े बीच हो
जो र्ैददक मंत्रो का ज्ञाता हो।
Dr. Virag Sontakke
ऐसे व्यक्तत ग्राम सभा क
े सदस्य नहीं बन सकते
क्जसने अपनी आय का ब्योरा ना ददया हो।
यदद कोई भ्रष्ट आचरण का दोषी पाया गया हो
क्जसने अपने कर ना चुकाए हों।
गृहस्थ रह कर पर स्त्री गमन का दोषी।
हत्यारा, शमथ्या भाषी और नशाखोर हो ।
क्जस ककसी ने दूसरे क
े िन का हनन ककया हो
जो ऐसे भोज्य पदाथा का सेर्न करता हो जो मनुष्यों क
े खाने योग्य ना हो।
Dr. Virag Sontakke
सदस्य ननवााचन ववधि
उत्तरमेरूर अभभलेख क
े अनुसार उस ग्राम में
ननयमानुसार मनोनीत व्यक्ततयों में से ३० सदस्य क
ु डुम्बुओं (र्ाडा) क
े शलए चुने जाते
थे।
अहताा प्राप्त व्यक्ततयों क
े नाम ताडपत्रों पे शलखकर उन्हें एक बतान में डाल
ददया जाता था।
बतान को अच्छी तरह से दहलाया जाता था ताकक सब ताडपत्र शमधतत हो जाए।
इसक
े बाद ककसी अल्पायु बालक द्र्ारा क
े र्ल उतने ही ताडपत्र ननकले जाते
क्जतने सदस्य मनोनीत ककए जाते थे।
Dr. Virag Sontakke
ननवााधचत सदस्य
उत्तरमेरूर क
े अभभलेख से पता चलता है की -
उस ग्राम में ३० सदस्य मनोनीत ककए जाते थे।
३० सदस्यों में से १२ जो पर्द्र्ान, र्योर्ृद्ि होते थे उन्हें र्ापषाक सशमनत
(सम्र्त्सरर्ाररयम) क
े शलए चुना जाता था।
१२ सदस्यों को उद्यान-सशमनत (तोट्टर्ाररयम) क
े शलए चुना जाता था।
६ सदस्यों को तडाग सशमनत (येरीर्ाररयम) क
े शलए चुना जाता था।
सदस्य संख्या गार्ों क
े आर्शयता और जरूरत क
े अनुसार शभन्न-शभन्न होती थी।
सदस्यों को उनकी सेर्ा क
े शलए कोई ननयशमत र्ेतन नही शमलता था।
Dr. Virag Sontakke
ग्राम सभा का कायाक्षेत्र
गार् की चाल-अचल सम्पनत तथा अियननधिया ग्राम सभा क
े अिीन रहती थी।
ग्राम सभा गााँर् क
े मंददरो से संबंधित कायों को देखती थी।
ग्राम सभा गार् क
े िमाशालाओं और धचककत्सालयों आदद की व्यर्स्था देखती थी।
ग्राम सभायें भूशम संबंिी पर्र्ादों का ननणाय करती थी
साथ ही कृ पष उत्पादन और शसंचाई क
े कायों को संचाशलत करती थी।
र्ृिारोपण और उद्यानों का रख-रखार् भी ग्राम सभा देखती थी।
ग्राम भूशम पर करारोपन या करमुक्तत कक अधिकार भी ग्राम सभा क
े पास था।
ग्राम क
े भूशम का र्गीकरण ग्राम सभा क
े अनुमनत त्रबना सम्भर् नही था।
ग्राम सभा ही भूशम कर संग्रहण करती थी तथा संग्रदहत राशश को राजकोष में जमा करती थी।
नए मंददरो का ननमााण, पुराने मंददरों का पुनरुद्िार तथा उनकी आय का प्रबंिन भी ग्राम सभा का
काया था।
ग्राम क
े पर्र्ादों का ननपटारा भी ग्राम सभा द्र्ारा होता था।
गार् क
े बाजारों का ननयमन, क्रय-पर्क्रय की व्यर्स्था, अकाल, बाढ़, सूखा आदद क
े समय का प्रबंिन
और व्यर्स्था ग्राम सभा करती थी।
गार् में शशिा की व्यर्स्था, सडक ननमााण तथा अन्य लोकोपयोगी काया ग्राम सभा क
े माध्यम से हाई
ककए जाते थे।
सभा क
े महत्र्पूणा पर्षयों पर कभी-कभी राजा भी ध्यान देता था।
Dr. Virag Sontakke
सभा-बैठक
ग्राम सभा की बैठक
े प्रायः ग्राम क
े मंददर में, तालाब क
े ककनारे अथर्ा पेड क
े नीचे होती
थी।
बैठक की नतधथ, समय एर्ं स्थान सूचना ग्रामर्ासीयों को ढोल पीटकर दी जाती थी।
 बैठक में सभी सदस्य उपक्स्थत होने पर ही कायार्ाही शुरू की जाती थी।
सभा में चधचात पर्षयों पर प्रस्तार् पास ककए जाते थे।
सभा द्र्ारा अनुमोददत प्रस्तार्ों को कायार्ाही समाप्त होने पर लेखबद्ि कर ददया
जाता था।
Dr. Virag Sontakke
सभा की सभमनतयााँ
ग्राम प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने क
े शलए सभा अन्य सशमनतयों का
गठन करती थी।
इन सशमनतयों की सदस्य संख्या पर्शभन्न ग्रामों क
े कायाानुसार
ननक्चचत होती थी।
सशमनतयों क
े सदस्य स्थानीय प्रशासन से सम्बंधित कायों का
पर्र्रण रखते थे।
सशमनतयों क
े सदस्यों को कोई र्ेतन नही ददया जाता था।
काया सशमनतयों को सहायता देने क
े शलए ग्रामों में क
ु छ र्ैतननक
कमाचारी (मध्यस्थ) रखे जाते थे। जो सभा क
े व्यर् का पर्र्रण
शलखते थे।
सभा इन (र्ेतनिारी) कमाचाररयों को हटा भी सकती थी।
Dr. Virag Sontakke
नगरम
चोल अशभलेखों में नगरम का उल्लेख प्रायः नगरों
अथर्ा व्यापाररक क
ें द्रो की व्यर्स्था क
े सन्दभा में
शमलता है।
र्स्तुतः यह व्यापाररक समुदाय की संस्था थी क्जसमें
व्यापारी रहते थे।
नगरम को व्यापाररक दृक्ष्ट से कई उपपर्भागों में
पर्भतत ककया गया था।
माम्मलपुरम क
े एक अशभलेख में नगरम क
े चार
भागों का उल्लेख है, क्जसमें प्रत्येक भाग में १०० मन
अथर्ा व्यापाररक भर्न थे।
राजराज प्रथम क
े राजराजेचर्र मंददर क
े एक
अशभलेख में चार नगरम का उल्लेख है।
Dr. Virag Sontakke
नगरम की प्रशासन व्यवस्था
नगरम की प्रशासन व्यर्स्था में क
े र्ल व्यापाररयों को ही सक्म्मशलत
ककया जाता था।
नगरम का महत्र्पूणा काया पर्शभन्न प्रकार की व्यापाररक र्स्तुओं पर
करों की दरों का ननिाारण तथा ननिााररत करों का को एकत्र करना था।
उत्तरी अकााट क
े ततकोलम क
े एक अशभलेख में नगरम क
े प्रशासन
संबंिी सदस्यों क
े दो र्गा र्र्णात है उन्हें
1. नगरत्तर
2. व्यापाररनगरोत्तम कहा गया है।
नगरम की प्रशासन व्यर्स्था में काया करने क
े शलए शलपपक और
लेखधिकारी होते थे उन्हें क्रमशः नगरकरणतार और नगरतकणतक
ु कहा
जाता था।
Dr. Virag Sontakke
नगरम का कायाक्षेत्र
व्यापार से प्राप्त होने र्ाले लाभ में राजकीय अंश का ननिाारण करना।
कर क
े रूप में प्राप्त हुई र्स्तुओं को राजकीय कोष में जमा करना।
हथकरघो, स्र्णाकारों, और अन्य उद्योगों से प्राप्त त्रबकक्रकर को राजकीय कोष में जमा
करना।
नगरम यह संस्था पर्शभन्न स्त्रोतों से संग्रदहत िन का क
ु छ भाग बाजार व्यर्स्था,
यातायात व्यर्स्था तथा ओदयोधगक पर्कास में खचा करती थी तथा शेष भाग राजकोष
में जमा करती थी।
राजराजेचर्र मंददर क
े एक चोल अशभलेख क
े अनुसार फल,क
े शरी,गन्ना,मसाले, पान,
सुपारी तथा खाद्य सामग्री पे लगने र्ाला त्रबकक्रकर नगरम क
े कोष में जमा ककया जाता
था।
Dr. Virag Sontakke
नाडु
नाडु, जनपद को कहा जाता था, उनकी भी अपनी
सभाए होती थी।
नाडु सभा राजस्र् संबंिी काया करती थी।
नाडु अिय ननधि ग्रहण करते थे तथा अपने नाम
से दान भी दे सकते थे।
नाडु की सभा अथर्ा सशमनतयों क
े बारे में स्पष्ट
पर्र्रण प्राप्त नही होते।
सम्भर् है कक नाडु में प्रत्येक ग्राम क
े प्रनतननधि
शाशमल रहते हो।
Dr. Virag Sontakke
ननष्कर्ा
चोलर्ंशी शासकों ने एक क
ु शल और
उदार शासनतंत्र की स्थापना की।
चोल प्रशासन में क
ें द्रीय व्यर्स्था
क
े साथ स्थानीय संस्था को पयााप्त
अधिकार देकर प्रशासन में साझेदारी
की गयी थी।
ग्राम स्तर पर स्र्ायत्तता इतनी थी कक
प्रशासन क
े उच्च स्तरों और राजनीनतक
ढााँचे में होने र्ाले पररर्तानों से गााँर् का
दैनक्न्दन जीर्न अप्रभापर्त रहता था।
चोल काल में दक्षिण भारत क
े गााँर्
पयााप्त रूप से आत्मननभार थे।

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Administration System Under Chola Dynasty

  • 1. AIHC & Arch-C-601: Ancient Indian Polity and Administration Unit IV : Administration and Administrative Units 11. Administrative System under the Chola Sachin Kr. Tiwary
  • 2. Dr. Virag Sontakke प्रस्तावना चोल साम्राज्य दक्षिण भारत का सर्ााधिक शक्ततशाली साम्राज्य था। चोलों ने दक्षिण भारत में लगभग ३५० सालों तक शासन ककया। नौसेननक शक्तत क े बल पर चोलों ने दक्षिण पूर्ा एशशया क े द्र्ीपों पर र्चास्र् प्रस्थापपत ककया। चोल शासकों द्र्ारा ननशमात मंददर उनक े राज्य क े उत्कृ ष्ट उदाहरण है। चोल काल में सादहत्य, काल और स्थापत्य में अभूतपूर्ा प्रगनत हुई। चोलों का राजतंत्र और उनकी प्रशासन व्यर्स्था सम्पूणा भारत में अद्पर्तीय थी।
  • 3. Dr. Virag Sontakke साम्राज्य पूणा प्रदेश कोट्टम नाडु कोराम (ग्राम) १०,१२, २० गााँर् मंडल (प्रान्त) चोल साम्राज्य की प्रशासननक इकाइयााँ
  • 4. Dr. Virag Sontakke चोल प्रशासन चोल प्रशासन राजतंत्रात्मक था। राजा शासन का सर्ोच्च अधिकारी था। राजा राज्य का प्रिान होता था। उसका पद आनुर्ंशशक होता था। जेष्ठ पुत्र राजगद्दी का उत्तराधिकारी होता था। राजा जीपर्त रहते ही अपना उत्तराधिकारी चुनते थे। राजक ु मारों को महत्र्पूणा प्रांतो का शासक ननयुतत ककया जाता था। शक्ततशाली राजा पर्पर्ि पदर्ीयााँ/उपाधियााँ लगाते थे तथा राजा और राननयों की प्रनतमाए मंददरों में प्रनतक्ष्ठत करते थे। Statue of Rajaraja Chola, Brihadiswara Temple, Thanjavur, Tamil Nadu
  • 5. Dr. Virag Sontakke राजा राजा, शासन का प्रमुख होने क े नाते सम्पूणा साम्राज्य की प्रशासकीय व्यर्स्था की देखरेख करता था। राजा साम्राज्य की कायापाशलका, न्यायपाशलका और सैन्य व्यर्स्था का प्रिान सूत्रिार होता था। राजा युद्ि में सेना का संचालन करता था, अनेक सेनापनत की ननयुक्तत राजा स्र्यं करता था। चोल साम्राज्य में नर्ननशमात मंददरो क े नाम भी प्रायः शासकों क े नाम पर रखते थे। राज्य क े नीनतगत फ ै सले राजा स्र्यं लेता था।
  • 6. Dr. Virag Sontakke राज प्रशासन चोल राजर्ंश में, राजा क े ककसी मंत्रत्रमंडल या अमात्य पररषद क े उल्लेख उनक े अशभलेखों में प्राप्त नही होते। यद्यपप राजा को प्रशासन को चलाने क े शलए तथा पर्शभन्न पर्भागों में सहायता हेतु अमात्य एर्ं अधिकाररयों की ननयुक्तत की जाती होगी। िाशमाक व्यर्स्थाओं क े पर्षयों पर राजा राजगुरु से ही परामशा लेता था। चोल अशभलेखों में िमाासन (न्याय क े शलए राजा का दरबार) शब्द का प्रयोग हुआ है। चोल अशभलेखों में क ु छ अधिकाररयों क े उल्लेख प्राप्त होते है।
  • 7. Dr. Virag Sontakke चोल अधिकारी ओलै : यह पर्शशष्ट अधिकारी होते थे जो सम्राट क े आदेशों का पालन करता था। ओल राजा क े आदेशों का कच्चा मसौदा तैयार करते थे। ओलैनायग़म: यह अधिकारी ओलै द्र्ारा तैय्यार राजा क े आदेश की जााँच करते थे। उच्च सरकारी अधिकरीयों को “पेरुंदरम” तथा उनसे नीचे क े अधिकाररयों को “शेरुतरतम” कहा जाता था।
  • 8. Dr. Virag Sontakke स्थानीय प्रशासन चोल शासनकाल में स्थानीय प्रशासन को सर्ााधिक महत्र् ददया गया। चोल सम्राटों ने ग्राम-प्रशासन को प्रोत्साहन ददया। चोल साम्राज्य का प्रशासन, ग्राम-प्रशासन, नगर-सभा, और मंडल-सभाओं क े द्र्ारा संचाशलत होता था। ग्रामों और नगरों की सभाएाँ प्रजा द्र्ारा संचाशलत र्ास्तपर्क संस्थाये थी जबकक नाडुओं की सभाएाँ प्रनतननधिक थी। चोल साम्राज्य में तीन प्रकार की ग्राम संस्थाये का उल्लेख प्राप्त होता है, 1. ऊर 2. सभा 3. नगरम
  • 9. Dr. Virag Sontakke ऊर ग्राम-सभाओं में ऊर सबसे सरल सभा थी। ऊर का अथा “पुर” होता है। ऊर शब्द ग्राम और नगर दोनो क े शलए प्रयुतत होता था। ऊर क े संगठन तथा कायाप्रणाली क े पर्षयपर ज़्यादा जानकारी प्राप्त नही होती। ऊर की कायासशमनत को “आलुंगणम” कहते थे। सभा क े जैसे ऊर भी अपने प्रनतननधियों से दस्तार्ेजों क े मसौदे तैयार कराकर उन्हें लेखबद्ि करती थी। ऊर क े सदस्यों को नगद िन शमलता था, क्जसे र्े ककसी भी व्यर्साय में लगाने को स्र्तंत्र थे। कभी-कभी ऊर तथा सभा संयुतत काम करने क े साि शमलते है। ककसी –ककसी गार् में दो ऊर भी होते थे। १२२७ ईसर्ी में शात्तमंगलम गााँर् में दो ऊर थे। १२४५ ईसर्ी में क ु मारमंगलम और अमंनक ुं डड नामक गााँर्ों में भी दो ऊर का उल्लेख प्राप्त होता है।
  • 10. Dr. Virag Sontakke सभा या महासभा सभा या महासभा यह ब्राम्हंण (अग्रहारों) की संस्था थी। चोल अशभलेखों में सभा या महासभा क े बारे में अनेक पर्र्रण शमलते है, लेककन इनक े कायों क े पर्स्तृत पर्र्रण तोडमंडलम (चोलमंडलम) से प्राप्त हुए है। कााँची क े आसपास क े प्रदेश में इनकी संख्या ज़्यादा थी। सभा या महासभा को पेरुगुरर कहते थे। सभा या महासभा क े सदस्यों को पेरुमतकल कहते थे। सभा या महासभा क े काया अनेक सशमनतयों क े द्र्ारा ककए जाते थे। इन सशमनतयों को “र्ाररयम” कहा जाता था। पर्शभन्न सभा क े र्ाररयम की संख्या कायाानुसार शभन्न-शभन्न होती थी। र्ाररयम की कायाकारी सशमनत क े सदस्यों को “र्ाररयप्पेरुमतकल” कहते थे।
  • 11. Dr. Virag Sontakke सभा या महासभा चोल राजा परांन्तक प्रथम क े ईसर्ी सन ९१९ और ९२१ क े उत्तरमेरूर से प्राप्त अशभलेखों से स्थानीय महासभा क े र्ाररयमों क े बारे में पर्र्रण शमलता है। ईसर्ी सन ९१९ क े अशभलेख में सभा द्र्ारा पााँच सशमनतयों क े गठन संबंिी एक प्रस्तार् राजा क े अधिकाररयों क े समि पाररत करने का उल्लेख है। ग्राम 30 (र्ाडों) भागों में पर्भाक्जत था, क्जनमें से प्रत्येक भाग का प्रनतननधि लाटरी द्र्ारा चुनी गई र्ापषाक पररषद में उपक्स्थत होता था। पररषद पााँच उपसशमनतयों में पर्भाक्जत थी क्जनमें से तीन क्रमश: उद्यानों तथा र्ादटकाओं, तालाबों तथा शसंचाई और झगडों क े ननबटारे क े शलए उत्तरदायी थीं, जबकक अंनतम दो क े काया अननक्चचत हैं।
  • 12. Dr. Virag Sontakke उत्तरमेरूर क े अनुसार सभा क े सदस्यों ननयम वो सदस्य मनोनीत हो सकते है जो……. क्जनक े पास खुद की १/४ र्ेशल (डेढ़ एकर) भूशम हो। अपनी जमीन पर बना खुद का मकान हो क्जनकी आयु ३५ से ७० र्षा क े बीच हो जो र्ैददक मंत्रो का ज्ञाता हो।
  • 13. Dr. Virag Sontakke ऐसे व्यक्तत ग्राम सभा क े सदस्य नहीं बन सकते क्जसने अपनी आय का ब्योरा ना ददया हो। यदद कोई भ्रष्ट आचरण का दोषी पाया गया हो क्जसने अपने कर ना चुकाए हों। गृहस्थ रह कर पर स्त्री गमन का दोषी। हत्यारा, शमथ्या भाषी और नशाखोर हो । क्जस ककसी ने दूसरे क े िन का हनन ककया हो जो ऐसे भोज्य पदाथा का सेर्न करता हो जो मनुष्यों क े खाने योग्य ना हो।
  • 14. Dr. Virag Sontakke सदस्य ननवााचन ववधि उत्तरमेरूर अभभलेख क े अनुसार उस ग्राम में ननयमानुसार मनोनीत व्यक्ततयों में से ३० सदस्य क ु डुम्बुओं (र्ाडा) क े शलए चुने जाते थे। अहताा प्राप्त व्यक्ततयों क े नाम ताडपत्रों पे शलखकर उन्हें एक बतान में डाल ददया जाता था। बतान को अच्छी तरह से दहलाया जाता था ताकक सब ताडपत्र शमधतत हो जाए। इसक े बाद ककसी अल्पायु बालक द्र्ारा क े र्ल उतने ही ताडपत्र ननकले जाते क्जतने सदस्य मनोनीत ककए जाते थे।
  • 15. Dr. Virag Sontakke ननवााधचत सदस्य उत्तरमेरूर क े अभभलेख से पता चलता है की - उस ग्राम में ३० सदस्य मनोनीत ककए जाते थे। ३० सदस्यों में से १२ जो पर्द्र्ान, र्योर्ृद्ि होते थे उन्हें र्ापषाक सशमनत (सम्र्त्सरर्ाररयम) क े शलए चुना जाता था। १२ सदस्यों को उद्यान-सशमनत (तोट्टर्ाररयम) क े शलए चुना जाता था। ६ सदस्यों को तडाग सशमनत (येरीर्ाररयम) क े शलए चुना जाता था। सदस्य संख्या गार्ों क े आर्शयता और जरूरत क े अनुसार शभन्न-शभन्न होती थी। सदस्यों को उनकी सेर्ा क े शलए कोई ननयशमत र्ेतन नही शमलता था।
  • 16. Dr. Virag Sontakke ग्राम सभा का कायाक्षेत्र गार् की चाल-अचल सम्पनत तथा अियननधिया ग्राम सभा क े अिीन रहती थी। ग्राम सभा गााँर् क े मंददरो से संबंधित कायों को देखती थी। ग्राम सभा गार् क े िमाशालाओं और धचककत्सालयों आदद की व्यर्स्था देखती थी। ग्राम सभायें भूशम संबंिी पर्र्ादों का ननणाय करती थी साथ ही कृ पष उत्पादन और शसंचाई क े कायों को संचाशलत करती थी। र्ृिारोपण और उद्यानों का रख-रखार् भी ग्राम सभा देखती थी। ग्राम भूशम पर करारोपन या करमुक्तत कक अधिकार भी ग्राम सभा क े पास था। ग्राम क े भूशम का र्गीकरण ग्राम सभा क े अनुमनत त्रबना सम्भर् नही था। ग्राम सभा ही भूशम कर संग्रहण करती थी तथा संग्रदहत राशश को राजकोष में जमा करती थी। नए मंददरो का ननमााण, पुराने मंददरों का पुनरुद्िार तथा उनकी आय का प्रबंिन भी ग्राम सभा का काया था। ग्राम क े पर्र्ादों का ननपटारा भी ग्राम सभा द्र्ारा होता था। गार् क े बाजारों का ननयमन, क्रय-पर्क्रय की व्यर्स्था, अकाल, बाढ़, सूखा आदद क े समय का प्रबंिन और व्यर्स्था ग्राम सभा करती थी। गार् में शशिा की व्यर्स्था, सडक ननमााण तथा अन्य लोकोपयोगी काया ग्राम सभा क े माध्यम से हाई ककए जाते थे। सभा क े महत्र्पूणा पर्षयों पर कभी-कभी राजा भी ध्यान देता था।
  • 17. Dr. Virag Sontakke सभा-बैठक ग्राम सभा की बैठक े प्रायः ग्राम क े मंददर में, तालाब क े ककनारे अथर्ा पेड क े नीचे होती थी। बैठक की नतधथ, समय एर्ं स्थान सूचना ग्रामर्ासीयों को ढोल पीटकर दी जाती थी।  बैठक में सभी सदस्य उपक्स्थत होने पर ही कायार्ाही शुरू की जाती थी। सभा में चधचात पर्षयों पर प्रस्तार् पास ककए जाते थे। सभा द्र्ारा अनुमोददत प्रस्तार्ों को कायार्ाही समाप्त होने पर लेखबद्ि कर ददया जाता था।
  • 18. Dr. Virag Sontakke सभा की सभमनतयााँ ग्राम प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने क े शलए सभा अन्य सशमनतयों का गठन करती थी। इन सशमनतयों की सदस्य संख्या पर्शभन्न ग्रामों क े कायाानुसार ननक्चचत होती थी। सशमनतयों क े सदस्य स्थानीय प्रशासन से सम्बंधित कायों का पर्र्रण रखते थे। सशमनतयों क े सदस्यों को कोई र्ेतन नही ददया जाता था। काया सशमनतयों को सहायता देने क े शलए ग्रामों में क ु छ र्ैतननक कमाचारी (मध्यस्थ) रखे जाते थे। जो सभा क े व्यर् का पर्र्रण शलखते थे। सभा इन (र्ेतनिारी) कमाचाररयों को हटा भी सकती थी।
  • 19. Dr. Virag Sontakke नगरम चोल अशभलेखों में नगरम का उल्लेख प्रायः नगरों अथर्ा व्यापाररक क ें द्रो की व्यर्स्था क े सन्दभा में शमलता है। र्स्तुतः यह व्यापाररक समुदाय की संस्था थी क्जसमें व्यापारी रहते थे। नगरम को व्यापाररक दृक्ष्ट से कई उपपर्भागों में पर्भतत ककया गया था। माम्मलपुरम क े एक अशभलेख में नगरम क े चार भागों का उल्लेख है, क्जसमें प्रत्येक भाग में १०० मन अथर्ा व्यापाररक भर्न थे। राजराज प्रथम क े राजराजेचर्र मंददर क े एक अशभलेख में चार नगरम का उल्लेख है।
  • 20. Dr. Virag Sontakke नगरम की प्रशासन व्यवस्था नगरम की प्रशासन व्यर्स्था में क े र्ल व्यापाररयों को ही सक्म्मशलत ककया जाता था। नगरम का महत्र्पूणा काया पर्शभन्न प्रकार की व्यापाररक र्स्तुओं पर करों की दरों का ननिाारण तथा ननिााररत करों का को एकत्र करना था। उत्तरी अकााट क े ततकोलम क े एक अशभलेख में नगरम क े प्रशासन संबंिी सदस्यों क े दो र्गा र्र्णात है उन्हें 1. नगरत्तर 2. व्यापाररनगरोत्तम कहा गया है। नगरम की प्रशासन व्यर्स्था में काया करने क े शलए शलपपक और लेखधिकारी होते थे उन्हें क्रमशः नगरकरणतार और नगरतकणतक ु कहा जाता था।
  • 21. Dr. Virag Sontakke नगरम का कायाक्षेत्र व्यापार से प्राप्त होने र्ाले लाभ में राजकीय अंश का ननिाारण करना। कर क े रूप में प्राप्त हुई र्स्तुओं को राजकीय कोष में जमा करना। हथकरघो, स्र्णाकारों, और अन्य उद्योगों से प्राप्त त्रबकक्रकर को राजकीय कोष में जमा करना। नगरम यह संस्था पर्शभन्न स्त्रोतों से संग्रदहत िन का क ु छ भाग बाजार व्यर्स्था, यातायात व्यर्स्था तथा ओदयोधगक पर्कास में खचा करती थी तथा शेष भाग राजकोष में जमा करती थी। राजराजेचर्र मंददर क े एक चोल अशभलेख क े अनुसार फल,क े शरी,गन्ना,मसाले, पान, सुपारी तथा खाद्य सामग्री पे लगने र्ाला त्रबकक्रकर नगरम क े कोष में जमा ककया जाता था।
  • 22. Dr. Virag Sontakke नाडु नाडु, जनपद को कहा जाता था, उनकी भी अपनी सभाए होती थी। नाडु सभा राजस्र् संबंिी काया करती थी। नाडु अिय ननधि ग्रहण करते थे तथा अपने नाम से दान भी दे सकते थे। नाडु की सभा अथर्ा सशमनतयों क े बारे में स्पष्ट पर्र्रण प्राप्त नही होते। सम्भर् है कक नाडु में प्रत्येक ग्राम क े प्रनतननधि शाशमल रहते हो।
  • 23. Dr. Virag Sontakke ननष्कर्ा चोलर्ंशी शासकों ने एक क ु शल और उदार शासनतंत्र की स्थापना की। चोल प्रशासन में क ें द्रीय व्यर्स्था क े साथ स्थानीय संस्था को पयााप्त अधिकार देकर प्रशासन में साझेदारी की गयी थी। ग्राम स्तर पर स्र्ायत्तता इतनी थी कक प्रशासन क े उच्च स्तरों और राजनीनतक ढााँचे में होने र्ाले पररर्तानों से गााँर् का दैनक्न्दन जीर्न अप्रभापर्त रहता था। चोल काल में दक्षिण भारत क े गााँर् पयााप्त रूप से आत्मननभार थे।