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विविध परीक्षा
Presented by
Ajay Yadav
BAMS II year
Batch 2017-18
विविध परीक्षा
१. त्रिविध परीक्षा
(१) प्रमाणों द्िारा रोगी परीक्षा-(i) प्रत्यक्ष, (ii) अनुमान, (iii)
आप्तोपदेश।
(२) (i) दशशन परीक्षा, (ii) स्पशशन परीक्षा, (iii) प्रश्न परीक्षा।
२. चतुविशध परीक्षा
(३) आप्तोपदेश
(१) प्रत्यक्ष
(२) अनुमान
(४) युक्तत
३. षड्विध परीक्षा
(३) दशशनेक्रिय परीक्षा
(१) श्रोिेक्रिय परीक्षा
(४) रसनेक्रिय परीक्षा
(२) त्िगेक्रिय परीक्षा
(५) घ्राणेक्रिय परीक्षा
(६) प्रश्न परीक्षा
४. अष्टविध परीक्षा
(३) मल
(२) मूि
(६) स्पशश
(१) नाडी
(४) क्िल्िा
(७) दृक्
(८) आकृ तत
(५) शब्द
५. दशविध परीक्षा
(१) प्रकृ तत
(२) विकृ तत
(३) सार
(४) संहनन
(५) प्रमाण
(६) सात््य
(७) सत्त्ि
(८) आहार शक्तत
() व्यायाम शक्तत
(१०) िय
त्रिविध परीक्षा
१. त्रिविधं खलु रोगविशेषविज्ञानं भितत, तद्यथा- आप्तोपदेश: प्रत्यक्षं अनुमानं चेवििः
(च.वि. ४/३
१. आप्तोपदेश*
आप्त जनों द्िारा कहे गये िचनों को आप्तोपदेश कहते हैं। आप्त पुरुषो का
ज्ञान:
असन्ददग्ध और ननन्चचत रहता है।
आप्तोपदेश द्िारा ज्ञेय विषय - आप्तोपदेश द्िारा ननम्न विषयों को
चाहहए-
१. रोग का प्रकोप
२. कारण
३. लक्षण
४. प्रत्यात्म लक्षण
५. स्थान
६. िेदनाएँ
७. रूप
८. शब्द-स्पशश-रूप-रस-गदध का ज्ञान
प्रत्यक्षं तु खलु तद्यत्स्ियममन्दियेमशनसा चोपलभ्यते। (च.वि.
४/४)
अनुमानं खलु तकों युक्तत्यपेक्षः।। (च.वि. ४/४)
४. तद्यथा-अन्ग्न जरणशक्ततया परीक्षेन् त्, बलं
व्यायामशक्तत्या,
अमलं सत्त्िमविकारेण,
ग्रहण्यास्तु मृदुदारुणत्िं स्िप्नदशशनममिप्रायं द्विष्षटसुख
दुःखानन चातुरपररप्रचनेनैि विद्याहदनत।।
२. प्रत्यक्ष
परीिाषा-स्ियं की इन्दियों और मन क
े द्िारा जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसे
प्रत्यक्ष कहते हैं।
३. अनुमान
पररिाषा-युन्क्तत की अपेक्षा रखने िाले तक
श को अनुमान कहते हैं।
दशशनादद त्रिविध परीक्षा
आचायश चरक एिं आचायश िाग्िट्ट (अष्टाङ्ग हृदयकार) ने
त्रिविध रोगी परीक्षा का
उल्लेख ककया है, न्जसक
े अदतगशत ननम्न परीक्षाएँ की जाती है-
(१) दशशन परीक्षा, (२) स्पशशन परीक्षा, (३) प्रचन पर
१. दशशन परीक्षा
चक्षररन्दिय द्िारा ज्ञेय विषयों को दशशन द्िारा जानना चाहहए।
देखकर जानने योग्य
विषय ननम्न हैं-
१. शरीर या शरीराियिों की िृद्धध या ह्रास
२. आयु क
े लक्षण
३. बल
४. रोगी का िणश-कृ ष्ण, पीत, गौर, आहद
५. विकृ नत का होना-शोथ, आहद
६. आकृ नत-शरीर की बनािट, अंगा का व्यास, आहद
७. সमाण
८. शरीर की छाया या कांनत
९. रोगी की िय
१०. इन्दियों क
े अधधष्ठानों की परीक्षा।
आधुननक धचककत्सा विज्ञान क
े मतानुसार Inspection परीक्षा को दशशन परीक्ष
अदतगशत समाहहत कर सकते हैं।
२. स्पशशन परीक्षा
दशशन परीक्षा में ज्ञात विषयों का जान पुन: स्पशशन परीक्षा द्िारा करना चाहहए तथा
अज्ञात विषया का िी ज्ञान स्पशशन परीक्षा द्िारा होता है। प्रकृ नत ि विकृ नत से युक्तत
स्पशशन
परीक्षा हाथ की सहायता से करनी चाहहए। स्पशशन परीक्षा द्िारा ज्ञेय विषय इस
प्रकार हैं-
१. अंगों की मृदुता या कठोरता
. अंगों में शीतता या उष्णता का होना
३. नाडी परीक्षा
४. शोथ, ज्िर, आहद का ज्ञान स्पशश द्िारा ककया जाता है ।
आधुननक धचककत्सा विज्ञान क
े मतानुसार Palpation एिं Percussion विधधयाँ
स्पशश परीक्षा क
े अदतगशत आती हैं।
2. प्रश्न परीक्षा (Interrogation of the patient)
प्रचन परीक्षा क
े द्िारा रोगी से सोग का इनतिृत्त जानना चाहहए। साथ ही रोग क
े
उपशय- अनुपशय, िेगािस्था आहद का ज्ञान िी करना चाहहए। प्रचन परीक्षा द्िारा रोगी क
ै
बारे में सामादय ज्ञान तथा व्याधध क
े बारे में विशेष ज्ञान उपलब्ध होता है रोगी से ननम्न
तथ्यों को प्रचन परीक्षा द्िारा जानें-
१. सामादय परीक्षा
२. मुख्य व्यथा
३. काल प्रकषश
४. ितशमान रोग का इनतिृत्त
५. अतीतकामलक रोग का इनतहास
६. पाररिाररक इनतिृत्त
७. िैयन्क्ततक इनतिृत्त
द्विविधमेि खलु सिं सच्चासच्च। तस्य चतुविशधा परीक्षा- आप्तोपदेश: प्रत्यक्षं अनुमानं
युन्क्ततचचेनत। (च.सू. ११/१७)
चतुविशध परीक्षा
(१) आप्तोपदेश,
(२) प्रत्यक्ष,
(३) अनुमान,
(४) युन्क्तत।
युन्क्तत-अनेक कारणों क
े संयोग से उत्पदन हुए अविज्ञात िािों को विज्ञात विषयों
क
े कायश-कारण िाि क
े अनुसार जो बुद्धध देखती है या ज्ञान कराती है, उसे 'युन्क्तत' कहते है।
षड्विध परीक्षा
आचायश सुश्रुत ने रोग को जानने क
े छ: उपायों का उल्लेख ककया है? --
(१) श्रोिेन्दिय परीक्षा, (२) स्पशशनेन्दिय परीक्षा, (३) चक्षुररन्दिय परीक्षा, (४) रसनेन्दिय ।
परीक्षा, (५) प्राणेन्दिय परीक्षा, (६) प्रचन परीक्षा।
उपरोक्तत छः प्रकार की पराक्षाओं द्िारा धचककत्सक राग का ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
१. श्रोिेक्रिय द्िारा परीक्ष्य/ज्ञेय विषय'
आचायश चरक ने श्रोिेन्दिय द्िारा परं ीक्षा का अदतिाशि प्रत्यक्ष परीक्षा क
े अदतगशत ही
ककया है। श्रोिेन्दिय द्िारा जानने योग्य विषय ननम्न हैं-
१. फ
े नयुक्तत रक्तत में गनत पैदा करने िाले िायु क
े ननकलते समय शब्द की उत्पवत्त।
२. आँतों की गुडगुडाहट।
३. सन्दधयों तथा अंगुमलयों क
े पिो में
स्फ
ु टन।
४. स्िर विशेष।
५. शरीर क
े अदय अंगों ि अियिों में उत्पदन होने िाले शब्द।
आधुननक धचककत्सा विज्ञान में िर्णशत Percussion एिं Auscultation
परीक्षण विधधयाँ श्रोिेन्दिय द्िारा ज्ञेय विषयों क
े अदतगशत ही सम्पाहदत की जाती हैं।
२. स्पशशनेक्रिय द्िारा ज्ञेय परीक्षा
स्पशश परीक्षा िी प्रत्यक्ष परीक्षा का ही एक अंग है । स्पशशनेन्दिय से शीत, उष्ण,
चलक्ष्ण, कक
श श, मृदु, कहठन, आहद स्पशश की विमशष्टताएँ रोधगयों में देखी जाती है।
स्पशशनेन्दिय द्िारा शरीर क
े स्िािाविक ि अस्िािाविक स्पशों का ननधाशरण करना चाहहए।
३. चक्षुररक्रिय द्िारा ज्ञेय विषय
इसका समािेश प्रत्यक्ष परीक्षा क
े अदतगशत ही हो जाता है, चक्षुररन्दिय द्िारा परीक्ष्य
विषय ननम्न हैं-
१. शरीर का िणश
२. आकृ नत
३. िृद्धध एिं हास-प्रमाण
४. शरीर कान्दत या छाया
५. आयु क
े लक्षणो का ज्ञान
६. बल
७. िगश
८. शरीर की िष्टव्य प्रकृ नत (आरोग्य) और विकृ नत (रोग), आहद।
४. रसनेक्रिय द्िारा ज्ञेय विषय
रसनेन्दिय द्िारा ज्ञेय विषयों का ज्ञान अनुमान द्िारा तथा प्रचन परीक्षा द्िारा करना
चाहहए, यथा--
१. रोगी से पूछकर उसक
े मुख से रस का ज्ञान करना चाहहए।
२. रोगी क
े शरीर से यूका ि लीखों क
े हट जाने पर रोगी क
े शरीर क
े रस को
विकृ त जानें।
३. यहद रोगी क
े शरीर पर मन्क्तखयाँ अधधक बैठे तो उसक
े शरीर में मधुर रस की
िृद्धध जाने।
४. मूि पर चीहटयों क
े अधधक लगने से रोगी को मधुमेह रोग से पीडडत जाने।
५. शुद्ध रक्तत ि रक्ततवपत्त में अदतर करने क
े मलए अदनाहद में ममलाकर कत्ते या कौिे
को रक्तत र्खलायें। यहद िे खा लें तो शुद्ध रक्तत अदयथा रक्ततवपत्त से दूवषत रक्तत जानें।
इस प्रकार से अनुमान क
े द्िारा रोगी क
े शरीर क
े विमिदन रसों का ज्ञान करना चाहहए।
५. प्राणेक्रिय द्िारा ज्ञेय विषय
रोगी क
े शरीर में व्याप्त प्राकृ त ि िैकाररक गदधों की परीक्षा प्राणेन्दिय द्िारा करनी
चाहहए। गदध सम्बदधी अररष्टों का ज्ञान िी व्रणों ि शरीर से आने िाली विमिदन गधों क
े द्िारा होता है।
६. प्रश्न द्िारा ज्ञेय विषय'
रोगी परीक्षा का एक महत्त्िपूणश अंग प्रचन परीक्षा है। प्रचन द्िारा रोगी से ननम्न बातों
को जानना चाहहए-
१. रोगी का देश, जानत, व्यिसाय, िय, आहद।
२. रोगारम्िक काल ि िेग आने का काल।
३. उपशय-अनुपशय।
४. रोगोत्पादक कारण, रोगिधशक कारण।
५. बल
६. जठरान्ग्न की न्स्थनत
७. कोष्ठ का ज्ञान, िात-मूि-पुरीष की सम्यक् प्रिृवत्त, आहद।
८. रोग कब से उत्पदन हुआ, आहद।
अष्टविध परीक्षा"
योगरत्नाकर में रोगी की अष्टविध परीक्षा का उल्लेख ककया है, जो इस प्रकार है।
१. नाडी
२. मूि
३. मल
४. न्जह्िा
५. शब्द
६. स्पशश
७. दृक्
८. आकृ नत
१. नाडी परीक्षा
हाथ क
े अंगूठे क
े मूल में जो धमनी है, िह जीिसाक्षक्षणी है तथा इसकी चेष्टा मे
जीि क
े सुख-दुःख का ज्ञान ककया जा सकता है।
नाडी परीक्षा का सिोत्तम काल प्रातः काल है जब रोगी शौचाहद कायों से ननिृत्त हो चुका हा तथा उसने
िोजन ग्रहण नहीं ककया हो।
आिचयकता पडने पर अदय समय में िी नाडी परीक्षा की जा सकती है जब रोगी ि
धचककत्सक दोनों सुखपूिशक बैठे हो तथा शादतधचत्त होकर नाडी परीक्षा में ध्यान
लगाये हो'।
सामादयतः पुरुष क
े दक्षक्षण हाथ की नाडी, न्स्ियों क
े बायें हाथ की नाडी तथा
नपंसक की दोनों हाथ की नाडी की परीक्षा धचककत्सक को करनी चाहहए रे।
नाडी परीक्षा करते समय धचककत्सक को चाहहए कक िह रोगी क
े हाथ को कोहनी
मे मोडकर अपने बाये हाथ का सहारा देकर पकडे रहे तथा अपने दाये हाथ की तजशनी,
मध्यमा ि अनाममका अंगुली से अंगुष्ठमूल क
े एक अंगुल नीचे स्पशश करक
े रोगी की नाडी
की परीक्षा करे।
नाडी परीक्षा िज्यश- ननम्न अिस्थाओं में नाडी परीक्षा िण्श है-
२. िोजन क
े तुरदत बाद
१. स्नान क
े तुरदत बाद
३. क्षुधधत या तृवषत मनुष्य
५. क्रोधातुर
७. उष्णात्तश आहद।
दोषानुसार नाडी- अंगुष्ठमूल से एक अंगुली छोडकर तजशनी क
े नीचे िात ।
नाडी, मध्यमा क
े नीचे वपत्त नाडी ि अनाममका क
े नीचे कफ नाडी का ज्ञान होता है।
धचककत्सक को चाहहए कक िह अंगुमलयों से बार-बार नाडी को दबािे और छोड दे। तीन
बार छोडकर पुन: दबाकर देखने से नाडी क
े िास्तविक स्िरूप का ज्ञान होता है।
१. िाताधधक्तय में नाडी-िाताधधक्तय में नाडी की गनत विषम ि चंचल होती है।
तथा िह जलौकाित्एिं सपशित्चलती है।
२. वपत्ताधधक्तय में नाडी-नाडी गनत तीक्ष्ण होती है। िह क
ु लंग, काक तथा
मेढक की िाँनत उछलकर चलती है।
३. कफाधधक्तय में नाडी-नाडी की गनत मदद होती है। िह हंस या पाराित पक्षी
क
े समान चलती है।
४. सन्क्तनपानतक नाडी-किी लािा पक्षी क
े समान नतरछी गनत से, किी तीतर
की िाँनत शीघ्र गनत िाली तथा किी िती (बत्तख) की समान धीर गनत िाली नाडी
होती है।
५. द्विदोषज नाडी-द्विदोष क
े प्रिाि से नाडी किी मदद गनत से तथा किी तीव्र
गनत से चलने लगती है और किी अपने स्थान से च्युत्हो जाती है अथाशत्उसका स्पददन
प्रतीत नहीं होता। यह असाध्य होती हैं।
२. मूि
आयुिेद में व्याधधयों
का ज्ञान मूि परीक्षा क
े आधार पर ही करने का ननदेश
ककया गया है यथा प्रमेह रोग क
े सिी िेदों का िणशन मूि परीक्षा क
े आधार पर ही ककया।
है।
परीक्षा द्िारा व्याधधयों की साध्यासाध्यता का ज्ञान िी होता है।
परीक्षा हेतु सूि संग्रहण-रात्रि क
े अन्दतम समय में अथाशत्प्रात: काल से एक
पहर पूिश क
े मूि का रोगी को परीक्षा हेतु संग्रह करिायें । मूि संग्रहण करने क
े मलए काँच
ननदेश हदया गया है। आजकल प्लान्स्टक क
े पाि का प्रयोग िी ककया जाता है।
की प्रथम धारा को छोडकर बीच की मूिधारा का संग्रह परीक्षा हेतु करें ।
मूि का िणश (Appearance)- मूि का िणश विमिदन दोषों क
े प्रमाि से प्रमवित ।
होता है-
१. िात दोष से दूवषत मूि िणश में पाण्डुर होता है।
२. वपत्त से दूवषत मूि पीला, नीला या रक्तत िणश का होता है।
३. कफ दोष से दूवषत मूि चिेत िणश का, फ
े ननल तथा मान में अधधक होता है:
मूि क
े गुण
१. िात से दूवषत मूि लघु होता है।
२. वपत्त से दूवषत मूि उष्ण, तीक्ष्ण होता है।
३. कफ दोष से दूवषत मूि गुरु और सादि होता है।
तैल-त्रबददु परीक्षा-रोगों की साध्यासाध्यता का विचार मूि की तैल-त्रबददु परीक्षण
द्िारा ककया जाता है। पूिोक्तत विधध से संग्रहहत मूि को ककसी चौडे मुख िाले काँच पाि
में ले मलया जाता है तथा ककसी तृण की सहायता से उसमें तैल-त्रबददु डालकर उसका
अध्ययन ककया जाता है। विचारणीय त्रबददु इस प्रकार है-
१. गनत ि हदशा-यहद तैल-त्रबददु मूि क
े ऊपरी स्तर पर फ
ै ल जाती है तो रोग
साध्य होता है; यहद िह िही का िही न्स्थत रहे तथा फ
ै ले नहीं तो रोग कृ्छ
ू साध्य होता
है; और यहद तैल-त्रबददु मूि में डूब जाये तो रोग असाध्य होता है।
तैल-त्रबददु यहद पूिश हदशा की ओर फ
ै ले तो रोगी शीघ्र रोगमुक्तत होता है; यहद दक्षक्षण
हदशा की ओर फ
ै ले और रोगी ज्िरपीडडत हो तो िह धीरे-धीरे ठीक होता है; यहद उत्तर
हदशा में फ
ै ले या पन्चचम हदशा में फ
ै ले तो रोगी शीघ्र आरोग्य लाि प्राप्त करता है। ईशान ।
कोण में तैल-त्रबददु फ
ै लने से रोगी की मृत्यु एक मास क
े अददर हो सकती है तथा अह
कोण, िायव्य, नैऋत्य कोण में तैल-त्रबददु फ
ै लने से रोगी की मृत्यु ननन्चचत है।
२. आकार-मूि में तैल-त्रबददु डालने पर िह विमिदन आकृ नतयों का स्िरापे
लेती है। यहद यह आकृ नतयाँ ियानक, विकराल, धडहीन मनुष्य आहद की हो तो गोग को
असाध्य जानना चाहहए। शुि आकृ नतयाँ बनने पर रोग साध्य होता है।
इस प्रकार से रोगी क
े मूि की परीक्षा की जाती है।
३. मल परीक्षा आयुिेद में मल परीक्षा का विस्तृत िणशन ककया गया है। मल परीक्षा करते समय
मल की प्रिृवत्त (frequency), मािा (armount), संहनत (consistency), िणश
(colour/appearance), आहद िािों पर तथा अदय उपन्स्थत लक्षणों (associated
symptoms) का विचार करना चाहहए।
१. िात दोष से दूवषत मल शुष्क तथा दृढ़ होता है और मािा में अल्प होता है।
२. वपत्त दोष से दूवषत मल पीत िणश का, िि अथिा मृदु होता है।
३. कफ दोष से दूवषत मल शुक्तल िणश का तथा आमयुक्तत होता है।
४. सन्दनपात से दूवषत मल सिी लक्षणों से युक्तत, चयाम िणश, िुहटत, पीताम, बद्ध अथिा चिेत
होता है।
िात चलेष्म विकार में मल कवपश िणश का होता है।
वपताननल विकार में मलबद्ध, िुहटत तथा पीत चयाि िणश का होता है।
६. शलेष्मवपत्त विकार में पुरीष पीतचिेत िणश का, सादि तथा वपन्च्छल होता है।
४. क्िह्िा परीक्षा
स्िस्थ मनुष्य की न्जह्िा रक्तताि िणश की, गीली और स्िच्छ होती है। रोगािस्था में
न्जव्हा िणश, स्पशश ि Appearance में पररितशन होने लगते हैं, न्जनका धचककत्सक
को
सूक्ष्मता से ननरीक्षण करना चाहहए।
१. िात दोष से दृवषत न्जह्िा स्पशश में शीत, रुक्ष ि खुरदरी और ममि (फटी)।
होती है।
१. वपत्त से दूवषत न्जह्िा रक्ततचयाि िणश की तथा उष्ण होती है।
३. कफ दोष से दूवषत न्जह्िा वपन्च्छल ि शुभ्र िणश की होती है।
४. सत्रिपातज रोगों में न्जह्िा कृ ष्ण िणश की तथा क
ं टकयुक्तत होती है ५. साम रोगों में न्जह्िा
वपन्च्छल तथा आिररत (coatcd) होती है।
६. ननराम सेगों में न्जह्िा स्िच्छ होती है।
७. पाण्डु रोग में न्जह्ला पाण्डुर िणश की तथा कामला में पीत िणश की हो जाती है।
८. कृ मम रोग में न्जह्िा क
े ककनारों पर काले धब्बे बन जाते है।
इस प्रकार से रोगी की न्जह्िा की परीक्षा करनी चाहहए।
५. शब्द परीक्षा
शब्द से तात्पयश रोगी क
े शरीर क
े बाह्य ि अभ्यदतर अियिों में होने िाले शब्दों
से है न्जसका ननरीक्षण श्रोिेन्दिय द्िारा करना चाहहए। साथ ही रोगी की िाणी अथाशत्
शब्दोच्चारण की िी परीक्षा करनी चाहहए। इसका विस्तृत िणशन आगे श्रोिेन्दिय परीक्षा क
े
अदतगशत ककया जायेगा।
६. स्पशश परीक्षा
स्पशशनेन्दिय की सहायता से की जाने िाली रोगी क
े अंगाियिों की परीक्षा 'स्पशश
परीक्षा' कहलाती है। स्पशश परीक्षा से अंगों की मृदुता, कहठनता, चलक्ष्णता, उष्णता,
शैत्य, रुक्षता आहद की परीक्षा की जाती है। इसका विस्तृत िणशन स्पशशनेन्दिय परीक्षा क
े
अदतगशत ककया जायेगा ।
७, दूक् (नेि) परीक्षा*
रोगी क
े नेिों की परीक्षा िी रोगी परीक्षा का अत्यदत महत्त्िपूणश अंग है।
१. िात से दूवषत नेि रुक्ष, धूम्र िणश की दृन्ष्ट युक्तत, चंचल तथा अदतः ज्िलनयुक्तत
होते है।
२. वपत्त से दूवषत नेि दीपक क
े प्रकाश से द्विष करते हैं तथा देखने में पीत िणश
क
े होते हैं।
३. कफ से दूवषत नेि सदैि आिश, जल से िरे हुए, मदद दृन्ष्ट तथा न्स्नग्धतायुक्तत
रहते हैं।
४. पाण्डु रोगी में नेि शुक्तल िणश क
े होते हैं।
५. कामला में नेि पीत िणश क
े हो जाते हैं।
८. आकृ तत परीक्षा
आकृ नत परीक्षा में रोगी क
े शरीर क
े स्थूल िािों की आकाररक परीक्षा की जाती है।
आकृ नत परीक्षा क
े अदतगशत रोगी क
े िणश, छाया, सार, संहनन, प्रमाण, आहद की परीक्षा
दशशन द्िारा की जाती है।
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  • 2. विविध परीक्षा १. त्रिविध परीक्षा (१) प्रमाणों द्िारा रोगी परीक्षा-(i) प्रत्यक्ष, (ii) अनुमान, (iii) आप्तोपदेश। (२) (i) दशशन परीक्षा, (ii) स्पशशन परीक्षा, (iii) प्रश्न परीक्षा। २. चतुविशध परीक्षा (३) आप्तोपदेश (१) प्रत्यक्ष (२) अनुमान (४) युक्तत ३. षड्विध परीक्षा (३) दशशनेक्रिय परीक्षा (१) श्रोिेक्रिय परीक्षा (४) रसनेक्रिय परीक्षा (२) त्िगेक्रिय परीक्षा (५) घ्राणेक्रिय परीक्षा (६) प्रश्न परीक्षा
  • 3. ४. अष्टविध परीक्षा (३) मल (२) मूि (६) स्पशश (१) नाडी (४) क्िल्िा (७) दृक् (८) आकृ तत (५) शब्द ५. दशविध परीक्षा (१) प्रकृ तत (२) विकृ तत (३) सार (४) संहनन (५) प्रमाण (६) सात््य (७) सत्त्ि (८) आहार शक्तत () व्यायाम शक्तत (१०) िय
  • 4. त्रिविध परीक्षा १. त्रिविधं खलु रोगविशेषविज्ञानं भितत, तद्यथा- आप्तोपदेश: प्रत्यक्षं अनुमानं चेवििः (च.वि. ४/३ १. आप्तोपदेश* आप्त जनों द्िारा कहे गये िचनों को आप्तोपदेश कहते हैं। आप्त पुरुषो का ज्ञान: असन्ददग्ध और ननन्चचत रहता है। आप्तोपदेश द्िारा ज्ञेय विषय - आप्तोपदेश द्िारा ननम्न विषयों को चाहहए- १. रोग का प्रकोप २. कारण ३. लक्षण ४. प्रत्यात्म लक्षण ५. स्थान ६. िेदनाएँ ७. रूप ८. शब्द-स्पशश-रूप-रस-गदध का ज्ञान
  • 5. प्रत्यक्षं तु खलु तद्यत्स्ियममन्दियेमशनसा चोपलभ्यते। (च.वि. ४/४) अनुमानं खलु तकों युक्तत्यपेक्षः।। (च.वि. ४/४) ४. तद्यथा-अन्ग्न जरणशक्ततया परीक्षेन् त्, बलं व्यायामशक्तत्या, अमलं सत्त्िमविकारेण, ग्रहण्यास्तु मृदुदारुणत्िं स्िप्नदशशनममिप्रायं द्विष्षटसुख दुःखानन चातुरपररप्रचनेनैि विद्याहदनत।। २. प्रत्यक्ष परीिाषा-स्ियं की इन्दियों और मन क े द्िारा जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसे प्रत्यक्ष कहते हैं। ३. अनुमान पररिाषा-युन्क्तत की अपेक्षा रखने िाले तक श को अनुमान कहते हैं।
  • 6. दशशनादद त्रिविध परीक्षा आचायश चरक एिं आचायश िाग्िट्ट (अष्टाङ्ग हृदयकार) ने त्रिविध रोगी परीक्षा का उल्लेख ककया है, न्जसक े अदतगशत ननम्न परीक्षाएँ की जाती है- (१) दशशन परीक्षा, (२) स्पशशन परीक्षा, (३) प्रचन पर १. दशशन परीक्षा चक्षररन्दिय द्िारा ज्ञेय विषयों को दशशन द्िारा जानना चाहहए। देखकर जानने योग्य विषय ननम्न हैं- १. शरीर या शरीराियिों की िृद्धध या ह्रास २. आयु क े लक्षण
  • 7. ३. बल ४. रोगी का िणश-कृ ष्ण, पीत, गौर, आहद ५. विकृ नत का होना-शोथ, आहद ६. आकृ नत-शरीर की बनािट, अंगा का व्यास, आहद ७. সमाण ८. शरीर की छाया या कांनत ९. रोगी की िय १०. इन्दियों क े अधधष्ठानों की परीक्षा। आधुननक धचककत्सा विज्ञान क े मतानुसार Inspection परीक्षा को दशशन परीक्ष अदतगशत समाहहत कर सकते हैं। २. स्पशशन परीक्षा दशशन परीक्षा में ज्ञात विषयों का जान पुन: स्पशशन परीक्षा द्िारा करना चाहहए तथा अज्ञात विषया का िी ज्ञान स्पशशन परीक्षा द्िारा होता है। प्रकृ नत ि विकृ नत से युक्तत स्पशशन परीक्षा हाथ की सहायता से करनी चाहहए। स्पशशन परीक्षा द्िारा ज्ञेय विषय इस प्रकार हैं- १. अंगों की मृदुता या कठोरता . अंगों में शीतता या उष्णता का होना ३. नाडी परीक्षा ४. शोथ, ज्िर, आहद का ज्ञान स्पशश द्िारा ककया जाता है । आधुननक धचककत्सा विज्ञान क े मतानुसार Palpation एिं Percussion विधधयाँ स्पशश परीक्षा क े अदतगशत आती हैं।
  • 8. 2. प्रश्न परीक्षा (Interrogation of the patient) प्रचन परीक्षा क े द्िारा रोगी से सोग का इनतिृत्त जानना चाहहए। साथ ही रोग क े उपशय- अनुपशय, िेगािस्था आहद का ज्ञान िी करना चाहहए। प्रचन परीक्षा द्िारा रोगी क ै बारे में सामादय ज्ञान तथा व्याधध क े बारे में विशेष ज्ञान उपलब्ध होता है रोगी से ननम्न तथ्यों को प्रचन परीक्षा द्िारा जानें- १. सामादय परीक्षा २. मुख्य व्यथा ३. काल प्रकषश ४. ितशमान रोग का इनतिृत्त ५. अतीतकामलक रोग का इनतहास ६. पाररिाररक इनतिृत्त ७. िैयन्क्ततक इनतिृत्त
  • 9. द्विविधमेि खलु सिं सच्चासच्च। तस्य चतुविशधा परीक्षा- आप्तोपदेश: प्रत्यक्षं अनुमानं युन्क्ततचचेनत। (च.सू. ११/१७) चतुविशध परीक्षा (१) आप्तोपदेश, (२) प्रत्यक्ष, (३) अनुमान, (४) युन्क्तत। युन्क्तत-अनेक कारणों क े संयोग से उत्पदन हुए अविज्ञात िािों को विज्ञात विषयों क े कायश-कारण िाि क े अनुसार जो बुद्धध देखती है या ज्ञान कराती है, उसे 'युन्क्तत' कहते है।
  • 10. षड्विध परीक्षा आचायश सुश्रुत ने रोग को जानने क े छ: उपायों का उल्लेख ककया है? -- (१) श्रोिेन्दिय परीक्षा, (२) स्पशशनेन्दिय परीक्षा, (३) चक्षुररन्दिय परीक्षा, (४) रसनेन्दिय । परीक्षा, (५) प्राणेन्दिय परीक्षा, (६) प्रचन परीक्षा। उपरोक्तत छः प्रकार की पराक्षाओं द्िारा धचककत्सक राग का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। १. श्रोिेक्रिय द्िारा परीक्ष्य/ज्ञेय विषय' आचायश चरक ने श्रोिेन्दिय द्िारा परं ीक्षा का अदतिाशि प्रत्यक्ष परीक्षा क े अदतगशत ही ककया है। श्रोिेन्दिय द्िारा जानने योग्य विषय ननम्न हैं- १. फ े नयुक्तत रक्तत में गनत पैदा करने िाले िायु क े ननकलते समय शब्द की उत्पवत्त। २. आँतों की गुडगुडाहट। ३. सन्दधयों तथा अंगुमलयों क े पिो में स्फ ु टन। ४. स्िर विशेष। ५. शरीर क े अदय अंगों ि अियिों में उत्पदन होने िाले शब्द। आधुननक धचककत्सा विज्ञान में िर्णशत Percussion एिं Auscultation परीक्षण विधधयाँ श्रोिेन्दिय द्िारा ज्ञेय विषयों क े अदतगशत ही सम्पाहदत की जाती हैं। २. स्पशशनेक्रिय द्िारा ज्ञेय परीक्षा स्पशश परीक्षा िी प्रत्यक्ष परीक्षा का ही एक अंग है । स्पशशनेन्दिय से शीत, उष्ण, चलक्ष्ण, कक श श, मृदु, कहठन, आहद स्पशश की विमशष्टताएँ रोधगयों में देखी जाती है। स्पशशनेन्दिय द्िारा शरीर क े स्िािाविक ि अस्िािाविक स्पशों का ननधाशरण करना चाहहए। ३. चक्षुररक्रिय द्िारा ज्ञेय विषय इसका समािेश प्रत्यक्ष परीक्षा क े अदतगशत ही हो जाता है, चक्षुररन्दिय द्िारा परीक्ष्य विषय ननम्न हैं-
  • 11. १. शरीर का िणश २. आकृ नत ३. िृद्धध एिं हास-प्रमाण ४. शरीर कान्दत या छाया ५. आयु क े लक्षणो का ज्ञान ६. बल ७. िगश ८. शरीर की िष्टव्य प्रकृ नत (आरोग्य) और विकृ नत (रोग), आहद। ४. रसनेक्रिय द्िारा ज्ञेय विषय रसनेन्दिय द्िारा ज्ञेय विषयों का ज्ञान अनुमान द्िारा तथा प्रचन परीक्षा द्िारा करना चाहहए, यथा-- १. रोगी से पूछकर उसक े मुख से रस का ज्ञान करना चाहहए। २. रोगी क े शरीर से यूका ि लीखों क े हट जाने पर रोगी क े शरीर क े रस को विकृ त जानें। ३. यहद रोगी क े शरीर पर मन्क्तखयाँ अधधक बैठे तो उसक े शरीर में मधुर रस की िृद्धध जाने। ४. मूि पर चीहटयों क े अधधक लगने से रोगी को मधुमेह रोग से पीडडत जाने। ५. शुद्ध रक्तत ि रक्ततवपत्त में अदतर करने क े मलए अदनाहद में ममलाकर कत्ते या कौिे को रक्तत र्खलायें। यहद िे खा लें तो शुद्ध रक्तत अदयथा रक्ततवपत्त से दूवषत रक्तत जानें। इस प्रकार से अनुमान क े द्िारा रोगी क े शरीर क े विमिदन रसों का ज्ञान करना चाहहए। ५. प्राणेक्रिय द्िारा ज्ञेय विषय रोगी क े शरीर में व्याप्त प्राकृ त ि िैकाररक गदधों की परीक्षा प्राणेन्दिय द्िारा करनी चाहहए। गदध सम्बदधी अररष्टों का ज्ञान िी व्रणों ि शरीर से आने िाली विमिदन गधों क े द्िारा होता है।
  • 12. ६. प्रश्न द्िारा ज्ञेय विषय' रोगी परीक्षा का एक महत्त्िपूणश अंग प्रचन परीक्षा है। प्रचन द्िारा रोगी से ननम्न बातों को जानना चाहहए- १. रोगी का देश, जानत, व्यिसाय, िय, आहद। २. रोगारम्िक काल ि िेग आने का काल। ३. उपशय-अनुपशय। ४. रोगोत्पादक कारण, रोगिधशक कारण। ५. बल ६. जठरान्ग्न की न्स्थनत ७. कोष्ठ का ज्ञान, िात-मूि-पुरीष की सम्यक् प्रिृवत्त, आहद। ८. रोग कब से उत्पदन हुआ, आहद।
  • 13. अष्टविध परीक्षा" योगरत्नाकर में रोगी की अष्टविध परीक्षा का उल्लेख ककया है, जो इस प्रकार है। १. नाडी २. मूि ३. मल ४. न्जह्िा ५. शब्द ६. स्पशश ७. दृक् ८. आकृ नत १. नाडी परीक्षा हाथ क े अंगूठे क े मूल में जो धमनी है, िह जीिसाक्षक्षणी है तथा इसकी चेष्टा मे जीि क े सुख-दुःख का ज्ञान ककया जा सकता है।
  • 14. नाडी परीक्षा का सिोत्तम काल प्रातः काल है जब रोगी शौचाहद कायों से ननिृत्त हो चुका हा तथा उसने िोजन ग्रहण नहीं ककया हो। आिचयकता पडने पर अदय समय में िी नाडी परीक्षा की जा सकती है जब रोगी ि धचककत्सक दोनों सुखपूिशक बैठे हो तथा शादतधचत्त होकर नाडी परीक्षा में ध्यान लगाये हो'। सामादयतः पुरुष क े दक्षक्षण हाथ की नाडी, न्स्ियों क े बायें हाथ की नाडी तथा नपंसक की दोनों हाथ की नाडी की परीक्षा धचककत्सक को करनी चाहहए रे। नाडी परीक्षा करते समय धचककत्सक को चाहहए कक िह रोगी क े हाथ को कोहनी मे मोडकर अपने बाये हाथ का सहारा देकर पकडे रहे तथा अपने दाये हाथ की तजशनी, मध्यमा ि अनाममका अंगुली से अंगुष्ठमूल क े एक अंगुल नीचे स्पशश करक े रोगी की नाडी की परीक्षा करे। नाडी परीक्षा िज्यश- ननम्न अिस्थाओं में नाडी परीक्षा िण्श है- २. िोजन क े तुरदत बाद १. स्नान क े तुरदत बाद ३. क्षुधधत या तृवषत मनुष्य ५. क्रोधातुर ७. उष्णात्तश आहद।
  • 15. दोषानुसार नाडी- अंगुष्ठमूल से एक अंगुली छोडकर तजशनी क े नीचे िात । नाडी, मध्यमा क े नीचे वपत्त नाडी ि अनाममका क े नीचे कफ नाडी का ज्ञान होता है। धचककत्सक को चाहहए कक िह अंगुमलयों से बार-बार नाडी को दबािे और छोड दे। तीन बार छोडकर पुन: दबाकर देखने से नाडी क े िास्तविक स्िरूप का ज्ञान होता है। १. िाताधधक्तय में नाडी-िाताधधक्तय में नाडी की गनत विषम ि चंचल होती है। तथा िह जलौकाित्एिं सपशित्चलती है। २. वपत्ताधधक्तय में नाडी-नाडी गनत तीक्ष्ण होती है। िह क ु लंग, काक तथा मेढक की िाँनत उछलकर चलती है। ३. कफाधधक्तय में नाडी-नाडी की गनत मदद होती है। िह हंस या पाराित पक्षी क े समान चलती है। ४. सन्क्तनपानतक नाडी-किी लािा पक्षी क े समान नतरछी गनत से, किी तीतर की िाँनत शीघ्र गनत िाली तथा किी िती (बत्तख) की समान धीर गनत िाली नाडी होती है। ५. द्विदोषज नाडी-द्विदोष क े प्रिाि से नाडी किी मदद गनत से तथा किी तीव्र गनत से चलने लगती है और किी अपने स्थान से च्युत्हो जाती है अथाशत्उसका स्पददन प्रतीत नहीं होता। यह असाध्य होती हैं।
  • 16. २. मूि आयुिेद में व्याधधयों का ज्ञान मूि परीक्षा क े आधार पर ही करने का ननदेश ककया गया है यथा प्रमेह रोग क े सिी िेदों का िणशन मूि परीक्षा क े आधार पर ही ककया। है। परीक्षा द्िारा व्याधधयों की साध्यासाध्यता का ज्ञान िी होता है। परीक्षा हेतु सूि संग्रहण-रात्रि क े अन्दतम समय में अथाशत्प्रात: काल से एक पहर पूिश क े मूि का रोगी को परीक्षा हेतु संग्रह करिायें । मूि संग्रहण करने क े मलए काँच ननदेश हदया गया है। आजकल प्लान्स्टक क े पाि का प्रयोग िी ककया जाता है। की प्रथम धारा को छोडकर बीच की मूिधारा का संग्रह परीक्षा हेतु करें । मूि का िणश (Appearance)- मूि का िणश विमिदन दोषों क े प्रमाि से प्रमवित । होता है- १. िात दोष से दूवषत मूि िणश में पाण्डुर होता है। २. वपत्त से दूवषत मूि पीला, नीला या रक्तत िणश का होता है। ३. कफ दोष से दूवषत मूि चिेत िणश का, फ े ननल तथा मान में अधधक होता है: मूि क े गुण १. िात से दूवषत मूि लघु होता है। २. वपत्त से दूवषत मूि उष्ण, तीक्ष्ण होता है। ३. कफ दोष से दूवषत मूि गुरु और सादि होता है।
  • 17. तैल-त्रबददु परीक्षा-रोगों की साध्यासाध्यता का विचार मूि की तैल-त्रबददु परीक्षण द्िारा ककया जाता है। पूिोक्तत विधध से संग्रहहत मूि को ककसी चौडे मुख िाले काँच पाि में ले मलया जाता है तथा ककसी तृण की सहायता से उसमें तैल-त्रबददु डालकर उसका अध्ययन ककया जाता है। विचारणीय त्रबददु इस प्रकार है- १. गनत ि हदशा-यहद तैल-त्रबददु मूि क े ऊपरी स्तर पर फ ै ल जाती है तो रोग साध्य होता है; यहद िह िही का िही न्स्थत रहे तथा फ ै ले नहीं तो रोग कृ्छ ू साध्य होता है; और यहद तैल-त्रबददु मूि में डूब जाये तो रोग असाध्य होता है। तैल-त्रबददु यहद पूिश हदशा की ओर फ ै ले तो रोगी शीघ्र रोगमुक्तत होता है; यहद दक्षक्षण हदशा की ओर फ ै ले और रोगी ज्िरपीडडत हो तो िह धीरे-धीरे ठीक होता है; यहद उत्तर हदशा में फ ै ले या पन्चचम हदशा में फ ै ले तो रोगी शीघ्र आरोग्य लाि प्राप्त करता है। ईशान । कोण में तैल-त्रबददु फ ै लने से रोगी की मृत्यु एक मास क े अददर हो सकती है तथा अह कोण, िायव्य, नैऋत्य कोण में तैल-त्रबददु फ ै लने से रोगी की मृत्यु ननन्चचत है। २. आकार-मूि में तैल-त्रबददु डालने पर िह विमिदन आकृ नतयों का स्िरापे लेती है। यहद यह आकृ नतयाँ ियानक, विकराल, धडहीन मनुष्य आहद की हो तो गोग को असाध्य जानना चाहहए। शुि आकृ नतयाँ बनने पर रोग साध्य होता है। इस प्रकार से रोगी क े मूि की परीक्षा की जाती है।
  • 18. ३. मल परीक्षा आयुिेद में मल परीक्षा का विस्तृत िणशन ककया गया है। मल परीक्षा करते समय मल की प्रिृवत्त (frequency), मािा (armount), संहनत (consistency), िणश (colour/appearance), आहद िािों पर तथा अदय उपन्स्थत लक्षणों (associated symptoms) का विचार करना चाहहए। १. िात दोष से दूवषत मल शुष्क तथा दृढ़ होता है और मािा में अल्प होता है। २. वपत्त दोष से दूवषत मल पीत िणश का, िि अथिा मृदु होता है। ३. कफ दोष से दूवषत मल शुक्तल िणश का तथा आमयुक्तत होता है। ४. सन्दनपात से दूवषत मल सिी लक्षणों से युक्तत, चयाम िणश, िुहटत, पीताम, बद्ध अथिा चिेत होता है। िात चलेष्म विकार में मल कवपश िणश का होता है। वपताननल विकार में मलबद्ध, िुहटत तथा पीत चयाि िणश का होता है। ६. शलेष्मवपत्त विकार में पुरीष पीतचिेत िणश का, सादि तथा वपन्च्छल होता है।
  • 19. ४. क्िह्िा परीक्षा स्िस्थ मनुष्य की न्जह्िा रक्तताि िणश की, गीली और स्िच्छ होती है। रोगािस्था में न्जव्हा िणश, स्पशश ि Appearance में पररितशन होने लगते हैं, न्जनका धचककत्सक को सूक्ष्मता से ननरीक्षण करना चाहहए। १. िात दोष से दृवषत न्जह्िा स्पशश में शीत, रुक्ष ि खुरदरी और ममि (फटी)। होती है। १. वपत्त से दूवषत न्जह्िा रक्ततचयाि िणश की तथा उष्ण होती है। ३. कफ दोष से दूवषत न्जह्िा वपन्च्छल ि शुभ्र िणश की होती है। ४. सत्रिपातज रोगों में न्जह्िा कृ ष्ण िणश की तथा क ं टकयुक्तत होती है ५. साम रोगों में न्जह्िा वपन्च्छल तथा आिररत (coatcd) होती है। ६. ननराम सेगों में न्जह्िा स्िच्छ होती है। ७. पाण्डु रोग में न्जह्ला पाण्डुर िणश की तथा कामला में पीत िणश की हो जाती है। ८. कृ मम रोग में न्जह्िा क े ककनारों पर काले धब्बे बन जाते है। इस प्रकार से रोगी की न्जह्िा की परीक्षा करनी चाहहए। ५. शब्द परीक्षा शब्द से तात्पयश रोगी क े शरीर क े बाह्य ि अभ्यदतर अियिों में होने िाले शब्दों से है न्जसका ननरीक्षण श्रोिेन्दिय द्िारा करना चाहहए। साथ ही रोगी की िाणी अथाशत् शब्दोच्चारण की िी परीक्षा करनी चाहहए। इसका विस्तृत िणशन आगे श्रोिेन्दिय परीक्षा क े अदतगशत ककया जायेगा।
  • 20. ६. स्पशश परीक्षा स्पशशनेन्दिय की सहायता से की जाने िाली रोगी क े अंगाियिों की परीक्षा 'स्पशश परीक्षा' कहलाती है। स्पशश परीक्षा से अंगों की मृदुता, कहठनता, चलक्ष्णता, उष्णता, शैत्य, रुक्षता आहद की परीक्षा की जाती है। इसका विस्तृत िणशन स्पशशनेन्दिय परीक्षा क े अदतगशत ककया जायेगा । ७, दूक् (नेि) परीक्षा* रोगी क े नेिों की परीक्षा िी रोगी परीक्षा का अत्यदत महत्त्िपूणश अंग है। १. िात से दूवषत नेि रुक्ष, धूम्र िणश की दृन्ष्ट युक्तत, चंचल तथा अदतः ज्िलनयुक्तत होते है। २. वपत्त से दूवषत नेि दीपक क े प्रकाश से द्विष करते हैं तथा देखने में पीत िणश क े होते हैं। ३. कफ से दूवषत नेि सदैि आिश, जल से िरे हुए, मदद दृन्ष्ट तथा न्स्नग्धतायुक्तत रहते हैं। ४. पाण्डु रोगी में नेि शुक्तल िणश क े होते हैं। ५. कामला में नेि पीत िणश क े हो जाते हैं। ८. आकृ तत परीक्षा आकृ नत परीक्षा में रोगी क े शरीर क े स्थूल िािों की आकाररक परीक्षा की जाती है। आकृ नत परीक्षा क े अदतगशत रोगी क े िणश, छाया, सार, संहनन, प्रमाण, आहद की परीक्षा दशशन द्िारा की जाती है।
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