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1
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरुर्साक्षात् परर्ब्ह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।।
**************
वक्रतुण्ड महाकाय र्सूयरकोटि र्समप्रभ।
ननर्विघ्नं क
ु रु मे र्देव र्सवरकायेषु र्सवरर्दा॥
शुक्लां ब्रह्मविचलरसलरपरमलमलद्लां जगद्व्यलवपनीं
िीणल-पुस्तक-धलररणीमभयद्लां जलडवयलन्धकलरलपहलमव।
हस्ते स्फलविकमलव्कलां विद्धतीं पद्मलसने सांवस्ितलमव
िन्द्े तलां परमेश्वरीं भगितीं बुविप्रद्लां शलरद्लमव ॥
2
्ेखन ि शोध
इांवज. महेन पि्े
विक्रम सांित २०७८
अांग्रेजी िर्ष २०२१
भलरत
3
अनुक्रममका
१) नाम व् इततहार्स
२) प्राचीन अस्तित्व
३) प्रख्यात राजपुरुष व् शार्सन
४) पोवारो का स्थानांतरण
५) मध्य भारतीय ३६ क
ु ल
६) भाि लोगो की पोनिया
७) इततहार्स में उल्लेख क
े अन्य र्संर्दभर
८) पुिक र्समापन
4
प्रिावना
इततहार्स र्सागर क
े र्समान है, मजर्समे अध्ययन स्वरुप गोते लगाने र्से
हमे तथ्य / जानकारी स्वरूप अनमोल र्सम्पर्दा प्राप्त होती है !
अनेको ग्रंि, र्दिावेज, लेख, काव्य, कहावते , ख्यात , रेकॉर्््र्स ,
कहाननया , र्समाज र्संस्क
ृ तत आटर्दक
े अध्ययन व् र्संर्दभो क
े आधार पर
यह ककताब ललखकर ऐतहालर्सक जानकाररया प्रिुत करने का यह
एक प्रयत्न है !
यह एक लोक र्समूह की प्राचीन काल र्से लेकर आजतक की र्समय
यात्रा का वणरन है तिा एक अध्ययन या अवलोकन मात्र है ! इततहार्स
क
े अध्ययन क
े दृष्टिकोण र्से, इततहार्स र्सबंनधत अनेको तथ्यों क
े र्संर्दभो
को जैर्से क
े वैर्से मूल रूप में , एक जगह र्संकलन कर, एकतत्रत रूप में
इर्स पुिक में प्रर्दर्शित ककया गया है ! इर्स ककताब में पोवार इततहार्स क
े
र्सन्दभर में इततहार्सकारों क
े टवचारो को भी यहा प्रिुत ककया गया है !
आशा है की इततहार्स में रूनच रखने वाले लोगो क
े ललए एक रुनचपूणर व
ज्ञान मय प्रिुती र्साबबत होगी ......
महेन पटले
5
अध्याय१- नाम व् इततहार्स
वतरमान क
े ज्यार्दातर नामो , र्संज्ञाओ क
े पीछे भूतकाल की घिना ,
व्यटि , विु , क्षेत्र , आचार टवचार र्से र्सम्बन्धित कोई न कोई तथ्य
अवश्य छ
ु पा होता है , बहुतर्से शब्दों में , नामो में इततहार्सभी र्समारहत
होता है! जब कोई नाम इततहार्स में प्रख्यात व्यटित्वों र्से जुर्ा पाया
जाता हो, तो इन नामो क
े बारे में जाननेकी मनमे उत्सुकता होती है !
र्समुर्दाय क
े ललए उपयोग में लाये गये शब्द यानन नाम भलेही आज
अपभ्रंलशत रूपोंमें टवद्यमान हो , परन्तु उनका अस्तित्व प्राचीन होता है!
काफी नामोकी , शब्दोंकी जड़े अतीतक
े पन्नोमें जुर्ी होती है !
इन शब्दों की अपनीही यात्रा होती है और उर्स यात्रा की र्दूरी का माप
होता है र्समयकाल । ननमित तौर पर, शब्द क
े यात्रा की शुरुवात कही
र्से तो हुयी होती है । शब्द की यात्रा ककतनी लंबी है, इर्सका उत्तर तो
इततहार्स में ही नछपा होता है । इतना पक्का है कक शब्द व इततहार्स में
र्सम्बंध जरुर है । इर्सी कारण शब्दों र्से इततहार्स उजागर होने में मर्दर्द
ममलती है । क
ु छ शब्द वतरमान में र्समझनेक
े ललए स्पि होते है और
क
ु छ शब्द भूतकाल की तुलना में अस्पि , अपभ्रंबषत लगते है । हम
शब्दोंक
े अपभ्रंशों को कई बार जान भी नही पाते । जो वतरमान में है वही
र्सही लगते है । कई शब्द प्राचीन शब्दो क
े नए रूप होते है । इततहार्स को
जानने क
े ललए प्रचललत व अतीत क
े शब्द इन र्दोनों की मर्दर्द ममलती
है !
र्साम्राज्यों क
े उर्दय व उनक
े पतन की कहानी की तरह ही, र्समुर्दायों क
े
उत्थान व पतन की कहानी भी अवश्य होती है ! भूतकाल क
े अनुभवों र्से
ही हम वतरमान को र्सँवार कर भटवष्य को उज्ज्वल बना र्सकते है ! ऐर्से
6
में हमे अपने अतीत क
े उन पन्नो को खंगालना आवश्यक है जो हमे र्सर्दा
र्सीख , आत्मटवश्वार्स , अनुभव स्वरुप र्सम्पतत व् ज्ञान प्रर्दान करते
रहेंगे!
भारत भूमम क
े महान व्यटित्व जैर्से योगी भृतहरी , र्सम्राि टवक्रमाटर्दत्य,
राजा मुंज , राजा भोज , राजा जगर्देव पँवार आटर्द जन श्रुततयो में
प्रख्यात है ! वे लोकोटियों ,कहावतो में जनमानर्स क
े बीच प्रलर्सध्र्द है !
उनक
े वंशको पोवार , पंवार या परमार आटर्द नामो र्से पहचाना जाता है !
इर्स वंश को अनिजननत यानी अनिवंश क
े चार र्समूहों में र्से एक कहा
गया है ! अनिवंश की अनि र्से उत्पतत्त की कहानी बतायी जाती है ! क
ु छ
इततहार्सकारोंने अनि वंशक
े अनिर्से अद्भुत प्रगिीकरन क
े रहस्य क
े
मभन्न मभन्न कारण बताये है , तो क
ु छ इततहार्सकारों ने पंवारो को टवर्देशी
कहकर कहानी क
े रहस्य को र्सुलझानेकी कोलशश की ! परन्तु इर्स
मामले में पुनर्विचार की आवश्यकता है ! वंश को प्रमार परमार क
े र्साि
र्साि पंवार या पोवार कहा गया है इर्सीमे रहस्य की क
ुं जी है !
मानव इततहार्स में अनेको राजवंश , र्सत्ताधारी आये व गये ! क
ु छ क
े
नाम इततहार्स में अंककत हुए और क
ु छ र्समयकी यात्रामें टवलीन हो
गये! मजनक
े नाम अंककत हुये उनको हर युग में वतरमान र्सर्दा जानने
की कोलशश करता रहा है ! जो काव्यो में , कहावतो में , लेखो में अंककत
हुए, उनका अस्तित्व शब्द रूपोंमें मानो अमर ही हो गया ! वे क्यों
अमर हुए , क्या कारण िा जो र्सहस्त्राब्दब्दयो तक लोगो में उन्हें तप्रय या
अतप्रय बना गया , यह जानने योग्य तथ्य है ! इन तथ्यों क
े द्वारा मनुष्य
र्समुर्दाय र्सर्दा मागरर्दर्शित होता रहेगा ! कोई श्रेष्ठ , उत्तम , प्रततष्टष्ठत क्यों
कहलाया व कोई र्दुि , अधम क्यों कहलाया इर्सक
े पीछे क
ु छ तो
7
कारण है जो, जानने योग्य है ! हम वतरमान में भूतकाल र्से प्रेरणा
लेकर आगे बढ़े तो अवश्य ही क
ु छ अच्छे भटवष्य का ननमाण होगा !
जम्बुद्वीप में हमे मजतना मानव इततहार्स पता है वह ग्रंिो क
े द्वारा पता
चलता है ! जो हुआ िा उर्सका वणरन काव्यो क
े रूप में हुआ ! काव्यो को
क
ं ठस्थ करना आर्सान होता है इर्सीललए जो ललखा गया वह काव्य रूप
में रचा गया ! श्लोक , ऋचाये , मन्त्र , काव्य आटर्द र्सबका गायन ककया
जा र्सकता है ! इन काव्यो क
े गायन व लेखन क
े द्वारा पीढ़ी र्दर पीढ़ी
ग्रन्थ प्रवारहत होते रहे है ! उर्स र्समय की पररस्थस्थतत , र्सोच , मनुष्य की
जीवन शैली भी इन्ही र्से जानी जा र्सकती है !
भारत क
े आयर भारत क
े उत्तर पमिमी क्षेत्र में पायी गयी र्सभ्यता क
े ही
लोग है ! आवागमन , स्थानान्तरण जरुर हुआ है ! भारतीय र्सभ्यता
काफी र्दुरतक फ
ै ली हुयी िी यह भी पक्का है ! क्योंकक भारतीय र्सभ्यता
र्से पूवर यूरोप या पमिम एलशया की र्सभ्यताओ में क
ु छ र्साम्यता, भाषाओ
में शब्दों का लेन र्देन , श्रीराम श्रीक
ृ ष्ण की कहाननयो का अलग रूपों में
र्सुर्दूर अस्तित्व, राजा भोज की मंगोललयन कहाननया , पंचतन्त्र की
ताज्किस्थान में कहाननया होना र्दशाता है की र्सभ्यताओ का आर्दान
प्रर्दान हुआ तो है , भलेही कफर वह आर्दानप्रर्दान व्यापाररक कारणों र्से
हुआ हो या स्थानान्तरण क
े द्वारा हुआ हो ! एक प्रकार र्से र्देखा जाये तो
र्समूचा मानव र्समुर्दाय ककर्सी न ककर्सी रूप र्से जुर्ा हुआ है परन्तु र्समय
क
े र्साि अलग अलग र्सभ्यताए बनी और बबघर्ी ! र्संस्क
ृ तत बनी व
मममश्रत हुयी ! क
ु छ र्सभ्यताओ ने काफी लम्बे र्समय तक अपने अस्तित्व
को टिकाये रखा ! जो अच्छा है वह बना रहना चारहए और टवकलर्सत ,
र्संवर्धित , र्संरलक्षत भी होना चारहए ! इर्सललए हमे इन र्समुर्दायों की
र्सभ्यता क
े अस्तित्व को जानने की आवश्यकता है !
8
अध्याय२- प्राचीन अस्तित्व
भारत का ज्ञात इततहार्स जो ककर्सी न ककर्सी रूपमें हमे प्राप्त होता है वह
प्राचीन वैटर्दक काल तक हमे ले जाता है ! प्रारम्भिक वैटर्दक काल हमे
प्रक
ृ तत क
े प्रतत , र्सृष्टि क
े ननमाण क
े प्रतत, मनुष्य क
े नचिंतनको र्दशाता
है! प्रक
ृ तत में व्याप्त शटिया मनुष्य को प्राचीन र्समय र्से आकषिषित व
आियरचककत करते आयी है !
भारत में वैटर्दक कालमें मजन वेर्दों की रचना हुयी उनमे ऋग्वेर्द र्सबर्से
प्राचीन माना जाता है ! ऋग्वेर्द में अनि को टवशेष स्थान टर्दया गया है !
अनि िुतत र्से ही ऋग्वेर्द की शुरुवात होती है !
ऋग्वेर्द का पहला श्लोक -
ॐ अनिमीळे पुरोरहतं यज्ञस्य र्देवमृब्दत्वजम्। होतारं रत्नधातमम् ॥1॥
अिात - यज्ञ क
े पुरोरहत, र्दीप्तप्तमान्, र्देवों को बुलानेवाले ऋब्दत्वक
् और
रत्नधारी अनि की मैं िुतत करता हूँ ।
ऋग्वेर्द में अनि की िुतत में अनेक श्लोक टवमभन्न र्सूिो में है ! प्रक
ृ तत में
अनिक
े टवशेषता को र्दशाते अनेक मन्त्र ऋग्वेर्द में रचे गये है !
अनििुतत में मन्त्र दृिा ऋबषयों द्वारा ऋग्वेर्द की ऋचाये रची गयी !
ऋग्वेर्द की अनि िुतत करने वाली ऋचाओ क
े रनचयता ऋबषयों ने
ऋग्वेर्द में अनि का आवाहन ककया है ! र्सप्तषिषि व ऋग्वेर्द की ऋचाओ
की रचना करनेवाले अन्य ऋबषयों को प्रवर ऋबष कहा गया है !
वैटर्दक काल क
े बार्द टवमभन्न वंश , र्समुर्दाय अपना र्सम्बि या अपने
वंश की पहचान प्रवर ऋबषयों क
े नाम उनक
े नामो क
े र्साि जोड़कर
र्दशाते हुए प्राचीन ग्रंिो में टर्दखाई पड़ते है ! ऋग्वेर्द को रचने वाले र्ब्म्ह
9
वेत्ता ऋबषयों को भारत की प्राचीन र्सभ्यता में बहुत महत्वपूणर स्थान
प्राप्त है ! उन्हें श्रेष्ठतम माना गया है ! “प्रवर” यह शब्द र्समय क
े र्साि
उत्तमता , श्रेष्ठता , ज्ञानवानो की व्याख्या बन गया !
र्संस्क
ृ त र्सारहत्य में प्रवर शब्द का उपयोग श्रेष्ठ , उत्तम , प्रततष्टष्ठत ,
उच्च, मुख्य, प्रधान , गुणवान,टवद्वान्, प्रख्यात उल्लेखखत करने क
े ललए
हुआ है!
इर्स प्रवर शब्द का उल्लेख अनेक प्राचीन ग्रंिो में पाया जाता है ! प्राचीन
ग्रंिो में महान राजाओ को , ऋबषयों को ,श्रेष्ठ योध्र्दाओ , टवद्वानों को
प्रवर इर्स टवशेषण र्से उल्लेखखत ककया गया है ! भारत क
े मुख्य ग्रन्थ
जैर्से रामायण , महाभारत , पुराण , उपननषर्द व अनेक अन्य ग्रंिो में
प्रवर शब्द का उपयोग हुआ ममलता है !
पहले प्रवर ऋबषयों क
े वंशज अपने पूवरजो का नाम यानी प्राचीन प्रवर
ऋबषयों का नाम अपने नामो क
े र्साि जोड़ते िे ! प्रवर वंशीय व्यटि क
े
नाम क
े र्साि वंश में नामांककत प्रवर पूवरज का नाम ललखना व्यटि क
े
पररचय का एक भाग िा !
र्समय क
े र्साि र्साि जन भाषाओ में मूल नाम प्रवर जरुर िोर्ा िोर्ा
पररवर्तित होते रहा !
वेर्दकालीन प्रवर ऋबषयों क
े वंशजो ने प्राचीन र्समय में धमर व ननतत की
रक्षा क
े ललए क्षतत्रयत्व धारण ककया! प्रवर ऋबषयों क
े वंशज प्रवर क्षतत्रय
बन गए ! अनेक राजवंश प्रख्यात हुए मजन्हें प्रवर कहा गया है !
ग्रीक इततहार्स क
े अनुर्सार अलेक्ज़ांर्र क
े र्समय में उत्तर पमिम भारत
यानन आजक
े पाककस्थान , अफगाननस्थान , भारत क
े पंजाब,
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राजपुताना , कश्मीर उत्तर पमिम भारत में क
े अनेको प्रान्तों में प्रवर
क्षतत्रय राजाओिं का र्साम्राज्य फ
ै ला हुआ िा ! करीब ६०० छोिे बड़े
राजाओ का उल्लेख पमिमी इततहार्स र्से ममलता है ! अलेक्जेंर्र का
र्सामना र्दो प्रवर राजाओ र्से होता है ऐर्सा उल्लेख ममलता है , मजन्हें
पमिम क
े इततहार्स की ककताबो में पौवार राजा ललखा ममलता है !
िोलेमी द्वारा ललखखत ग्रीक भाषा क
े ग्रंिो में इन राजाओ को Poruaroi
/ Porvarai पोरुआराय / पोवाराय कहा गया है ! यह पोरुआराय यानन
र्संस्क
ृ त शब्द प्रवराय का ही ग्रीक भाषीयो द्वारा ककया र्सम्बोधन है ! उर्स
र्समय की प्रचललत जन भाषाओ में पौवार या पौवाराय यह शब्द
प्रचललत रहा हो र्सकता है ! तभी प्राचीन इततहार्स में पौवारा र्साम्राज्य
का उल्लेख ममलता है ! यह प्रवर राजाओिं का र्साम्राज्य ही िा मजर्से
पौवारा र्साम्राज्य कहा गया है ! इर्स र्साम्राज्य की राजधानी प्राचीन
अवन्तीका या उज्जयनी / उज्जैन िी मजर्से ग्रीको ने ओजेन ललखा है!
टवर्देलशयों द्वारा अनेक र्संस्क
ृ त शब्दों का अपभ्रंश हो गया जो शब्द बार्द
में जन मानर्स में प्रचललत भी हुऐ , जैर्से अंग्रेजो द्वारा उपयोग में लाये
अनेक शब्द आज हमारे ललए अपने हो चुक
े है ! भारत में भाषाओ का
ममश्रण हुआ है ! और र्संस्क
ृ ततयों का भी ममश्रण हुआ है !
पमिमी इततहार्स में र्दूर्सरी र्सर्दी में िोलेमी द्वारा ललखखत प्रवराय का
अपभ्रंश पोरुआराय या पोवाराय यह शब्द पोवार इर्स प्रचललत नाम
का र्सबर्से प्राचीन र्सन्दभर है ! इर्सक
े बार्द ११ र्सर्दी क
े बार्द क
े र्संर्दभो में
इर्स नाम का उल्लेख ममलता है जो प्रवांर , पांवार , पंवार , पावार जैर्से
स्वरुप में है ! बपछले ८०० र्साल क
े र्दरम्यान ममले अनेक इततहार्स क
े
ग्रंिो , ककताबो , ख्यातो , काव्यो , लेखो , र्दिावेजो में पोवार / पंवार /
पँवार इन शब्दों का उल्लेख ममलता है ! आज भी पोवार या पंवार यह
नाम एक र्समुर्दाय की पहचान है ! र्समय क
े र्साि प्रवर र्से पोवार तक
11
का र्सफर भी अपने आप में इततहार्स र्समेिे हुए है ! प्राचीन प्रवर वंलशयो
की पहचान आज पोवार शब्द र्से होती है !
र्संस्क
ृ त शब्द प्रवर को र्समय क
े र्साि प्रवर , प्रवार , प्रावार: , प्रोवार ,
पौवार , पोवार ऐर्सा स्वरुप प्राप्त हुआ ऐर्सा र्समझ पड़ता है ! यह
पररवर्तित शब्द र्संस्क
ृ त र्से प्रभाटवत है! वही र्दूर्सरी ओर प्राक
ृ त व पाली
भाषाओ में प्रवर को पवर कहा गया है ! पवर र्से पवार जैर्से अपभ्रंश
प्राक
ृ त , मराठी भाषा र्सारहत्य में पाए जाते है !
र्संस्क
ृ त क
े लशला लेखो, ताम्र लेखो , काव्यो में प्रवर , प्रवरो , प्रवराय
आटर्द शब्दों का उपयोग अनेको जगह टवशेषतः हुआ है !
इन प्रवर वंशीय यानन मजन्होंने अपने प्रवर यार्द रखे व जो स्वयम उत्तम,
गुणवान है उन को र्ब्म्ह क्षत्र भी कहा गया है क्योंकक वे शास्त्र क
े र्साि
शस्त्रको धारण ककये हुए िे ! यह वे लोग िे जो ततलक , जनेऊ , लशखा
धारण करक
े हािो में शस्त्र ललए रण भूमम में अपने रण कौशल र्से धमर
व जन मानर्स की रक्षा का कतरव्य ननभाते िे !
क्षतत्रयो क
े एक र्समुर्दाय ने प्राचीन प्रवर होने की पहचान को एक
“प्रकार” क
े रूप में अपनाया और अपने र्ब्म्ह क्षतत्रय र्समुर्दाय क
े प्रकार
को ‘प्रवर क्षतत्रय’ कहा ! प्रवर शब्द कालांतर में पोवार बना,जो एक प्रकार
िा! इर्स प्रकार ने बपछले क
ु छ र्सटर्दयों में एक टवलशि जातीका रूप ले
ललया है !
इर्स प्रकार वतरमान में पोवार एक र्समुर्दाय है मजर्सकी जड़े प्राचीन
र्समय में ममलती है ! पोवार का र्संस्क
ृ त अिर मुलत: प्रवर होता है !
12
प्राचीन प्रवर यानन आज क
े पोवारो क
े पररवर्तित नाम भी मौजूर्द टर्दखाई
पड़ते है जो र्समय क
े र्साि जुड़े ! पररवर्तित शब्द क
ै र्से जुड़े यह भी हमे
जानना होगा ! इन जुड़े हुए नामो की जानकारी हमे जनश्रुततयो ,
लोकोटियों , लशलालेखो र्से , काव्यो र्से , पोनियो र्से प्राप्त होती है !
इततहार्स क
े र्दिावेजो में , भािो की पोनियो में पोवारो को परमार /
प्रमार भी कहा गया है और इर्सक
े पीछे अनेक कहाननया भी प्रचललत है !
यह कहाननया बपछले १२०० र्सालो क
े र्दरम्यान प्रख्यात हुयी व
लशलालेखो में , ताम्र लेखो में , काव्यो में ललखी गयी ! हांलाकक अत्यंत
प्राचीन ग्रंिो में इन कहाननयों का उल्लेख नही ममला ! इन कहाननयों क
े
पीछे एक इततहार्स र्समझ आता है वह क
ु छ इर्स प्रकार है --
भारत क
े रामायण , महाभारत व् अन्य अनेक ग्रंिो की माने तो प्राचीन
काल में बहुतर्से आततायी क्षतत्रयो का टवनाश जमर्दनि पुत्र ऋबष
परशुराम ने ककया ! हालाकक प्रवर यानन उत्तम व् धमर क
े मागर पर चलने
वाले र्सूयरवंशी राजाओ र्से उन्होंने युध्र्द नही ककया ! यह बात त्रेतायुग में
राजा जनक की र्सभा में श्रीराम क
े र्सामने उनकी उपस्थस्थती व् उनको
आशीष र्देने र्से र्समझ आती है ! इर्सका स्पि अिर है की ऋबष परशुराम
व् उनकी र्सेना ने प्रवर क्षतत्रयो का टवनाश नही ककया िा ! ऋबष
परशुराम ऋबष जमर्दनि क
े पुत्र िे ! जमर्दनि र्सप्तषिषियो में र्से एक है!
प्रमारो या पोवारो की वंशावली क
े शुरुवात में र्सप्तषिषि है ! यह र्सिव है
ऋबष परशुराम की र्सेना र्दरअर्सल प्रवर क्षतत्रयो की र्सेना रही हो !
र्सुयरवंश की शाखाए भारत में र्सर्दा र्से टवद्यमान रही ! उनका प्रभुत्व कम
ज्यार्दा होता रहा ! र्सूयर वंशीय मजन्हें इक्ष्वार्सु वंशीय या रघु वंशीय कहा
गया है उन राजाओ को भी वाल्मीकक रामायण में प्रवर राजा कहा गया
है ! इक्ष्वार्सु वंश को प्रवर कहा गया है क्योंकक वे उत्तम तो िे ही र्साि ही
उनक
े पूवरज भी प्रवर ऋबष िे !
13
र्सुयरवंशीयो को पँवार भी कहा गया है ! राजस्थान की पुरानी नािको में
राजा हररिंद्र एक र्संवार्द में स्वयं को पँवार कहते है ! इततहार्सकार जेम्स
िॉर् राजा मािाता को पँवार या प्रमार कहते है ! राजा मािाता श्रीराम
क
े पूवरज िे ! रोहतक शहर को प्राचीन र्समय में राजा हररिंद्र क
े पुत्र
रोरहताश्व द्वारा बर्साया गया ऐर्सा र्दिावेजो ललखा ममलता है ! पुराने
गज़ेटियरो में रोरहताश्व पौवार राजा होने की बात ललखी ममलती है !
र्सूयरवंलशयो को पँवार क्यों र्सम्बोनधत ककया गया क्योंकक वे प्रवर क्षतत्रय
िे ! र्सन १५८५ क
े र्दरम्यान अबू फज़ल द्वारा ललखखत आईने अकबरी में
र्संकललत इततहार्स में वे मेवाड़ घराने क
े र्संस्थापक राजा कनकर्सेन को
पंवार जाती का ललखते है ! अन्य र्संर्दभो में राजा कनकर्सेन अयोध्या क
े
श्रीराम पुत्र लव क
े वंशज होने की बात ललखी ममलती है ! यानन र्सूयरवंशी
राजा कनकर्सेन पंवार िे! राजा कनकर्सेन क
े वंश में राजा लशलाटर्दत्य
हुए मजनको पंवार राणी पुष्पावती र्से गुहाटर्दत्य नामक पुत्र हुए ! उनक
े
नाम र्से गुरहलोत वंश प्रलर्सध्र्द हुआ ! इर्सी वंश में राणा प्रतापलर्सिंह हुए !
पँवार वंशीय र्सम्राि टवक्रमाटर्दत्य मजन्होंने टवक्रम र्संवत शुरू ककया , वे
भी श्रीराम को अपना पूवरज मानते िे ! र्सम्राि टवक्रमाटर्दत्य क
े द्वारा
प्राचीन अयोध्या की खोज करने की बात कही जाती है ! उर्स खोज में
उन्हें प्राचीन काल का प्रयाग शहर ममल गया ऐर्सा कहा जाता है ! राजा
भोज र्सम्राि टवक्रमाटर्दत्य को अपना पूवरज मानते िे ! राजा भोज क
े
चाचा राजा मुंज को उनक
े र्समय क
े कवी हाल अपनी काव्य क
ृ तत
“बपिंगला र्सूत्र वृतत्त” में र्ब्म्ह क्षतत्रय होने की बात करते है ! लशलालेखो में
भी उन्हें र्ब्म्ह क्षत्र कहा गया ! यानी जो शस्त्र व शास्त्र को धारण ककये
हो ! इततहार्सकार र्सी व्ही वैद्य , र्दशरि शमा व अन्य अनेको
इततहार्सकारों क
े अनुर्सार र्ब्म्ह क्षत्र यानन वे जो पहले र्ब्ाम्हण िे व
बार्दमे क्षतत्रय बन गये! र्दरअर्सल वे प्रवर ऋबषयों क
े वंशज िे मजन्होंने
14
शस्त्र उठा ललए िे ! वे कालान्तर में पंवार या पोवार कहलाये ! राजा भोज
पोवार होने की बात पोवार र्समुर्दाय क
े बड़े बुजुगर तिा इततहार्सकार
कहते है !
आज र्से करीब २५०० र्साल पहले धमर की ध्वजा फहराने उर्सर्समय
टवद्यमान प्राचीन क्षतत्रय अबुरर्दामगरी पर एकतत्रत हुए ! अनेको र्संर्दभो
क
े अनुर्सार बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन हुआ िा ! इर्स यज्ञ में धमर
स्थापना व रक्षा का प्रण ललया गया! अनेको योध्र्दाओ ने इर्स कायरकी
जबाबर्दारी ली ! इर्स मोरहममें र्सभी प्रवर क्षतत्रय शाममल िे !
इर्स यज्ञ में चार र्समूह बने िे ! प्रचललत काव्यो , लेखो क
े अनुर्सार चार
र्समूहों क
े नाम चहुआन या चौहान , प्रततहार या पररहार , पँवार या
प्रमार/परमार व चालुक्य या र्सोलंकी ऐर्से िे ! इन योध्र्दो र्समूहों ने पुनः
भारत में काफी हर्दतक प्राचीन र्सनातन धमर स्थाबपत ककया !
र्सन १५८५ क
े र्दरम्यान अबू फज़ल द्वारा ललखखत आईने अकबरी में
भारत र्से ही र्संकललत इततहार्स व् अन्य र्संर्दभो का अवलोकन करे तो
ननष्कषर ननकल आता है की धनजी या ध्रुमराज वह मुख्य नेता िा
मजर्सने आबू क
े यज्ञ में धमर रक्षा का प्रण ललया िा और वह प्रमार इर्स
उपानध नाम र्से प्रलर्सध्र्द हुआ िा ! उर्सक
े वंश में पुत्रराज या पुतराज हुआ
जो ननपुतत्रक अवस्था में मृत्यु को प्राप्त हुआ ! तब प्रवर क्षतत्रय र्सभार्सर्दों
ने आटर्दत्य पोवार को उनका नेता माना जो मालवा का प्रवर क्षतत्रय
योध्र्दा िा ! आटर्दत्य पोवार ध्रुमराज प्रमार क
े लर्सिंहार्सन पर बैठा और
उर्सीक
े वंश ने आगे धारानगर , उज्जैन व् अन्य स्थानों पर शार्सन ककया !
इर्सी कारण आटर्दत्य पोवार क
े वंश को पोवार क
े र्साि प्रमार भी कहा
गया !
15
करीब २३५० र्साल पहले भारत पर अलेक्जेंर्र का आक्रमण हुआ िा !
भारत की शटि क
े र्सामने हतोत्सारहत लर्सक
ं र्दर अपनी र्सेना क
े र्साि
लौि गया िा परन्तु उर्सक
े क
ु छ र्सैन्य व अनधकारी इधर रुक चुक
े िे जो
बार्दमे भारत में ही बर्स गये ! र्सीमा वती क्षेत्रो र्से जनमानर्स का
स्थलांतरण हुआ ! बड़े र्साम्राज्यों का पतन हुआ ! इर्सी बीच शको और
हूणों क
े आक्रमण भी हुए ! भारतीय जनमानर्स क
े ललए बड़ी त्रार्सर्दी का
र्दौर िा ! चाणक्य र्से प्रेररत चन्द्रगुप्त मौयर ने मगध पर अपना शार्सन
स्थाबपत ककया ! उनक
े वंश में र्सम्राि अशोक हुए जो बार्द मे बौध्र्द
धमावलम्बी हो गये िे! युध्र्द लड़ने की अननच्छा व अरहिंर्सा क
े प्रचार क
े
कारण आक्रांताओ क
े ललए भारत में प्रस्थाबपत होने क
े ललए नये मागर
खुल गये िे ! शक, यवन व हूणों ने बड़े भूभागो पर कब्जा कर ललया िा !
भारत एक प्रकार र्से परतंत्र में िा ! शक और हूणों की जड़े काफी क्षेत्रो
में फ
ै ल चुकी िी ! तब उज्जयनी क
े प्रमार लर्सिंहार्सनानधश आटर्दत्य
पोवार क
े वंशज परम प्रतापी र्सम्राि टवक्रमाटर्दत्य ने र्सबको पुनः एक
बार र्संघटित कर भारत र्से शको को हिाकर टवक्रम र्संवत की शुरुवात
आज र्से करीब २०७८ र्साल पहले की !
र्संस्क
ृ त श्लोको में प्रवर क्षतत्रय र्समुर्दाय क
े ललए प्रवर क
े बजाये प्रमार ,
प्रमर या परमार ललखा ममलता है ! परमार यानन पर + मार – र्दुि
परकीयो को मारनेवाले !
र्समय क
े र्साि र्संस्क
ृ त नाम प्रमर या परमार + प्रवर का ममला जुला
स्वरुप जनमानर्स में प्रचललत हुआ और वह है पँवार या पंवार !
११ वी १२ वी र्सर्दी क
े पंरर्तो द्वारा र्संस्क
ृ त लशलालेखो में परमार या
प्रमार क
ु ल क
े प्रवर ललखे ममलते है ! इर्स र्समुर्दाय क
े लोगो क
े ललए
कही एक प्रवराय, कही तत्र प्रवराय तो कही ककर्सीको पंच प्रवराय भी
16
कहा गया है! यानन ककर्सी क
े वंशावली में मात्र एक ही पूवरज प्रवर ऋबष
िे तो ककर्सी क
े वंशावली में तीन पूवरज प्रवर ऋबष िे तो ककर्सी क
े पांच
पूवरज प्रवर ऋबष िे ! १३ वी र्सर्दी तक इन्हें अपने प्रवर पूवरज अच्छे र्से
यार्द िे , बार्द में इस्लाममक आक्रमणों क
े र्दौरान उिलापुिल, बारम्बार
हो रहे टवस्थापन क
े कारण वे मात्र इतना यार्द रख पाए की वे प्रवर है
और वे प्रवर पूवरजो क
े वंशज है ! र्संस्क
ृ त जन भाषा न होने र्से प्रवर की
बजाये तत्कालीन भाषाओ में वे अपने र्समुर्दाय को प्रवार र्से पांवार,
पोवार, पँवार, पंवार क्षतत्रय आटर्द कहते िे ! काव्यो में , लोकोटियो में,
ख्यातो में , लेखो में उनका पृथ्वी बड़ा पँवार इर्स कहावतो क
े जररये
गुणगान होता रहा है !
प्रचललत कहाननयों क
े अनुर्सार पंवार क्षतत्रय जाती क
े एक नामांककत
राजवंश क
े प्रवर वलशष्ठ िे मजर्से उनका गोत्र भी कहा गया है ! अलग
अलग प्रवर या पंवार क्षतत्रयो क
े अलग अलग प्रवर है ! ज्यार्दातर र्सभी
र्सप्तषिषि व् अन्य मुख्य ऋबष है ! मजनको यार्द नही रहा वे कश्यप गोत्र
बताते है ! हालाकक गोत्र क
े र्साि र्साि र्सबक
े अपने प्रवर पूवरज भी है !
वतरमान में प्रवराय र्समुर्दाय क
े लोग प्राचीन प्रवर पूवरजो को भले ही
भूल गये हो परन्तु उन्होंने स्वयम का प्रकार “प्रवर” यानन हाल क
े
र्सर्दीयो में “पोवार या पंवार”जाती या प्रकार को बनाये रखा !
प्राचीन वेर्दकालीन प्रवर लोग अनिपूजक िे ! र्सिवत: पंवारो को अनि
वंशीय कहने का यही कारण है ! मध्य भारत में बालाघाि ,गोंटर्दया ,
लर्सवनी , भंर्ारा मजला क्षेत्र में धारानगर र्से र्सन १७०० क
े बार्द आये
पंवारो क
े ३६ क
ु लो में र्से करीब ३० क
ु ल या पररवार बर्से हुए है ! आज
भी उनक
े यहाँ प्रत्येक पूजा में अनि का टवशेष महत्व है ! पोवार बहुल
ग्रामीण क्षेत्रो में जहा आज भी र्संस्क
ृ तत जीटवत है वहा वे पारम्पररक रूप
17
र्से प्रततटर्दन नहाकर चूल्हे क
े पूजन क
े बार्द ही स्वच्छ ककये चूल्हे में अनि
प्रज्वललत करते है ! अन्न पकाने क
े बार्द चूल्हे की अनि में अन्न का
िोर्ार्सा भाग र्समषिपित करते है ! अन्न ग्रहण करने क
े पहले अनि पर
नैवेद्य र्देते है ! वे हर पूजा में अनि को नैवेद्य क
े रूप में अन्न र्समषिपित करते
है ! यह परम्परा र्दशाती है उनक
े जीवन में अनिपूजनका महत्व है ! यह
वतरमान की प्रिाए प्राचीन र्सभ्यता , ररती क
े अंश है !
हालाकक अनिवंशी कहने का कारण यज्ञ की अनि क
े द्वारा प्रागट्य भी
कहा जाता है ! अनि र्से प्रगि होने वाली बात आजक
े वैज्ञाननक युग में
िोड़ी अस्वीकायर लगती है ! काफी इततहार्सकारों क
े अनुर्सार अनि यज्ञ
में धमर स्थापना की प्रततज्ञा ली गयी िी! पंवारो क
े उत्पतत्त की अनेक
कहाननया प्रचललत है ! एक कहानी क
े अनुर्सार प्राचीन र्समय में र्ब्ह्मषिषि
वलशष्ठ ने टवश्वाममत्र र्से युध्र्द क
े ललए कामधेनु र्से प्रािरना कर मजन वीरो
का आव्हान ककया िा वे यज्ञ अनि र्से प्रगि वीर योध्र्दा अनिवंशी िे !
एक कहानी में र्दुजरनों क
े नि करने हेतु अबुरर्दामगरी पर हुए यज्ञ में
र्देवताओ द्वारा चार वीर प्रगि ककये गए ! कोई आटर्द शटि द्वारा, तो कोई
र्ब्म्हा द्वारा , कोई भगवान लशव द्वारा , कोई इं द्र द्वारा चार अनि वंशीय
वीरो की उत्पतत्त की कहानी बताते है ! अगर भाि लोगो द्वारा
परम्परागत रूप र्से ललखीत पोवारो की पोनियो की बात करे तो उन्होंने
अनिवंलशयो की उत्पतत्त भगवान टवष्णु र्से बताई है ! भािोने अनिवंलशयो
को आटर्दशटि की क
ृ पा र्से प्राप्त र्सप्तषिषियो क
े वंशज बताया है !
अनिवंश क
े चारो र्समूहों में प्रवर क्षत्रीय शाममल है ! चौहान , पररहार ,
बघेले , चालुक्य , राणा आटर्द क
ु ल पँवारो में होना यही र्दशाता है की
चारो र्समूहों में प्रवर क्षतत्रय शाममल िे ! बपछले १२०० र्साल में र्संस्क
ृ त
भाषी पंरर्त , भाि आटर्द लोग पंवारो या पोवारो को प्रमार या परमार
ललखते आये है ! हालांकक प्राचीन वैटर्दक व् पौराखणक र्सारहत्य में प्रवर
18
शब्द ममला परन्तु प्रमर शब्द का कही भी उल्लेख नही ममला ! अगर
परमार यह र्समुर्दाय का नाम १२०० र्साल पहले मौजूर्द िा तो प्राचीन
ग्रंिो में होना चारहए िा , परन्तु ऐर्सा नहीं है !
पंवार ज्यार्दातर लर्सिंध , मध्य भारत , मालवा, राजपुताना आटर्द क्षेत्रो में
बर्से िे ! वही र्से अन्य जगहों पर र्समय क
े र्साि फ
ै ले ! पोवारो की कहानी
वैटर्दक काल र्से वतरमान तक ज्ञात होती है ! अचानक प्रगि होने र्से
उनका अस्तित्व मात्र २५०० र्साल पुराना होना यह बात अवैज्ञाननक
लगती है ! वे २५०० र्साल पहले भी इधर मौजूर्द िे ! पोवारो या परमारों
क
े अस्तित्व की यात्रा उर्सी र्समय र्से है जब र्संर्सार में जीवन की शुरुवात
हुयी ! वह एक र्समूह है जो उन्नत हुआ, मजर्सने ज्ञान, टवज्ञानं , ऐश्वयर ,
धमर , ननतत , शौयर क
े र्साि जीवन व्यतीत ककया, आर्दशो की रचना की !
इतना तो पक्का है की कमर्से कम बपछले ५००० र्सालो र्से पोवारो का
शटिशाली अस्तित्व भारत भूमम में ननमित रूप र्से है और वह भी
प्रभावशाली अतीत क
े र्साि ! और ५००० र्साल पहले क
े ककर्सी क
े भी
इततहार्स की पुख्ता जानकारी हालर्सल नही !
पंवार क्षतत्रयो को पंवार राजपूत भी कहा गया है ! क
ु छ इततहार्सकार
पंवार या प्रमार राजपूतो को ५ वी या ६वी र्सर्दी में आये टवर्देशी
आक्रमणकारी र्समझते है तो क
ु छ इततहार्सकार उनको ग्रीक या हुण
कहते है जो भारत में बर्स गये ! र्सिवत: वे इनक
े गौर वणर क
े कारण
कहते हो ! परन्तु यह र्सत्य नही ! काफी जगह उल्लेख आता है की आयर
गौर वणीय िे , इर्स कारण पंवारो का गौर वणीय होना उन्हें टवर्देशी
होना र्साबबत नही करता ! र्दुर्सरी र्सर्दी क
े र्दौरान ग्रीक इततहार्स में
पोरुआराय ललखा ममलना बताता है की उर्स र्समय प्रवराय राजाओ का
शार्सन िा ! पौवारा र्साम्राज्य की बात भी यह बताती है की यह पोवार
19
वंशीय ईर्सा पूवर र्से मौजूर्द िे ! इर्स कारण ५ वी या ६ वी र्सर्दी में आने की
बात गलत हो जाती है !
र्दूर्सरी बात पंवारो में प्राचीन ऋबषयों क
े क
ु ल नाम होना यह र्दशाता है
की वे प्राचीन र्समय र्से मौजूर्द लोग है ! पंवारो क
े क
ु ल र्संस्क
ृ त शब्द क
े
मूल नाम है, तो क
ु छ र्संस्क
ृ त शब्द क
े अपभ्रंश , इर्स बात र्से यह पता
चलता है की पोवार या पंवार प्राचीन र्समुर्दाय क
े वंशज है !
इर्स वंश या जाती क
े लोग करीब चार र्देशो में मुख्यतः पाए जाते है ! वे
र्देश है भारत , पाककिान , अफगाननस्थान व् नेपाल ! अनेक उपर्समूह
या उपजाततया भी है जो अन्य नामो र्से जानी जाती है, परन्तु वे अपने
को पंवार , परमार बताते है ! क
ु छ लोग अन्य जाततयों में , र्समुर्दायों
में , अलग अलग धमो में घुलममल गये परन्तु कफर भी पंवार, परमार
वंश र्से अपना र्सबंध बताते है ! र्दुर्सरे र्समुर्दायों जाततयों में ममल जाने र्से
उनकी मुख्य जाती क
ु छ और होती है परन्तु उपजाती या शाखा पंवार या
परमार होती है ! इर्सक
े अलावा भी कही हो तो वे अपभ्रंलशत नामो क
े
कारण अब पहचाने नही जा पाते !
प्रवर र्समुर्दाय वैटर्दक है ! और वह र्समुर्दाय प्राचीन र्समय र्से ककर्सी न
ककर्सी कारणवश र्संर्सार क
े मभन्न स्थानों पर स्थानांतररत हुआ ही होगा !
श्री स्टेफ
े न क्नाप अपनी ककताब Proof of Vedic Culture’s Global
existence me ललखते है –“ Friar यानी प्रवर ऋबष होता है ! र्संस्क
ृ त
शब्द “प्र” को ही यूरोप में “फ्र” उच्चाररत ककया जाता है ! वैटर्दक ऋबषयों
को र्संस्क
ृ त में प्रवर: कहा जाता है ! यानन श्रेष्ठता की और अग्रेलर्सत
व्यटि ! यह वैटर्दक शब्द आज भी यूरोप में friar क
े रूप में टवद्यमान है !
श्री स्टेफ
े न वैटर्दक लोगो का वैश्वश्वक अस्तित्व अनेक उर्दाहरण प्रिुत
20
कर अपनी ककताब में बताते है ! प्रवर अनि पूजक िे यह भी एक तथ्य है
मजर्सर्से टवश्व भर यह र्समुर्दाय कहा कहा होगा यह जाना जा र्सकता है !
र्संस्क
ृ त में प्रवर का अिर उत्तम होने र्से अनेक राजाओ को प्राचीन र्समय
में प्रवर कहा गया है ! और यह भी एक र्सत्य है की र्सभीको प्रवर नही
कहा गया बश्वि ऋग्वेर्दीय अनिपूजक ऋबषयों को, उनक
े वंशजो को ,
र्देवताओ क
े वंशजो को ही प्रवर ललखा ममलता है !
अध्याय में ललखखत तथ्यों क
े र्संर्दभर ---
प्रवर यानन श्रेष्ठ , उत्तम , उच्च , टवद्वान , गुणवान इर्स अिर को र्दशाते
र्सन्दभर ----
१) श्रीर्दत्तात्रेयर्सहस्रनामिोत्रम् २ -श्लोक (१६)
परमिनुटवज्ञेयः परमात्मनन र्संस्थस्थतः ।
प्रबोधकलनाधारः प्रभाव प्रवरोत्तमः ॥ १६॥
२) लशव र्सहस्त्र नाम िोत्रम का पहला श्लोक –
स्थस्थरः स्थाणुः प्रभुभानुः प्रवरो वरर्दो वरः .
र्सवात्मा र्सवरटवख्यातः र्सवरः र्सवरकरो भवः || 1 ||
_____________________________________________________________
३)महषिषि वेर्द व्यार्सटवरनचत र्ब्ह्मवैवतरपुराणका एक श्लोक --
त्वटद्वधं लक्षकोटििं च हन्तुं शिो गणेश्वरः।
मजतेप्तन्द्रयाणां प्रवरो नरह हश्वन्त च मलक्षकाम्।।
(र्ब्ह्मवैवतरपुराणगणपततखंर् 44/26-27)
र्ब्ह्मवैवतरपुराणगणपततखंर्त्रयोर्दशोध्याय
! टवष्णुरुवाच।
ईश्त्त्वां िोतुममच्छाममर्ब्म्हज्योततःर्सनातनम्।
21
ननरूबपतुमयिोऽहमनुरूपमनीहकम्।४१॥
प्रवरंर्सवरर्देवानांलर्सध्र्दानांयोमगनांगुरुम्।
र्सवरस्वरूपंर्सवेशंज्ञानरालशस्वरूबपणम्॥४२॥
चन्द्राटर्दत्यमनूनाच्च प्रवराः क्षतत्रया: स्मृता:॥ `
र्ब्ह्मणो बाहुर्देशाचैवान्याः क्षत्रीयजातयः ॥ १५II
(र्ब्ह्मवैवतरपुराणर्ब्म्हखंर्म र्दश्मोअध्याय: )
_____________________________________________________________
४) परशुराम िोत्रम श्लोक ८७ –
उध्वररेता ऊध्वरललङ्गः प्रवरो वरर्दो वरः ।
उन्मत्तवेशः प्रच्छन्नः र्सप्तद्वीपमरहप्रर्दः !!
_____________________________________________________________
५) वेर्दव्यार्स रनचत महाभारत ग्रन्थ ,
स्थस्थरः स्थाणुः प्रभुभानुः प्रवरो वरर्दो वरः ।
र्सवात्मा र्सवरटवख्यातः र्सवरः र्सवरकमर करो भव: !!
______________________________________________________________
६) हररवंशपुराण पवर ०३ - अध्याय ०५३
नमुनचिार्सुरश्रेष्ठो धरेण र्सह युध्यत ।
प्रवरौ टवश्वकमाणौ ख्यातौ र्देवार्सुरेश्वरौ ।। ८ ।।
_______________________________________________________________
७) पद्मपुराण पवर ९५ श्लोक ०७
काश्वन्तमश्वत्सतर्सइंिरौ प्रवरौ शरभोत्तमौ ।
प्रटविौ मे मुखं मन्ये टवलर्सश्वत्सतक
े र्सरौ ॥७ !!...
______________________________________________________________
८) वाल्मीकक रामायण आटर्दकाण्ड ४४ र्सगर श्लोक १८
इयं च र्संतततर्देव नावर्सार्द् कििन |
इक्ष्वार्सुनांक
ु ले गच्छर्देष मे प्रवरो वर्: ॥ १८॥
____________________________________________________________
22
९) वाल्मीकक रामायण आटर्दकाण्ड ५९ र्सगर श्लोक १९
इक्ष्वार्सुणां ही र्सवेषां वलशिः प्रवरो गुरुः ।
तस्मार्दनन्तरं र्सवे भवन्तो गुरवो मम ॥ १९॥
____________________________________________________________
१०) नारर्द पंचरात्र अध्याय ६ श्लोक ५८
टवधातां जगतां र्ब्म्ह , र्ब्म्हेिान मनर्सः !
तत पुत्रो र्सी महा ख्यातो र्देवषिषि प्रवरौमहं !!
_____________________________________________________________
११) वेर्द् व्यार्स रनचत महाभारतम आटर्दपवर श्लोक ६
पूमजतः प्रवरो वंशो भृगुणाम भृगु नन्दन ।!६!!
इमं वंशमहं टर्दव्यं भागरवं ते महामुने ।....
______________________________________________________________
१२)र्सन १९२९ में नागरी प्रचाररणी र्सभा द्वारा प्रकालशत Hastalikhita
Hindī Granthoṃ Kī Khoja Kā Vivaraṇa , Volume 6 इर्स ककताब में
टर्दए काव्य का र्संर्दभर –
लर्सत राम राजषिषि प्रवर तनु कोटि काम छटव ।।
ताही क
े र्सम लर्सया जनक नृप ..
_____________________________________________________________
१३) एबपग्रबपका इंरर्का वॉल्यूम २६ पृष्ठ १०५ में टर्दए बबजोली लशलालेख
में ननम्न ललखखत उल्लेख आता है की
...अंभोनधमिनाद्देवव ( बोललमभवर ( ब ) लशाललमभः ॥ 29 ॥
ननगरतः प्रवरो वंशो र्दै ( र्दे)ववृंर्दैः र्समामश्रतः । ।
श्रीमालपत्तने स्थाने स्थाबपतः शतमन्युना ॥
_____________________________________________________________
१४) ओररएण्टल इंश्वस्टट्यूि द्वारा प्रकालशत Journal of Oriental
Institute Volume 55-57 Page 31 में कहा गया है की
Vashistha is called Maharshi – Bramharshi- Pravarah
__________________________________________________________
23
१५) र्सन १९५९ में प्रकालशत ककताब Source Readings on Indian
Civilization, 1959 - Page 8 में ललखा है की ---
Each gotra claimed to have certain famous ancestors called the
pravaras , " excellent ones . The pravaras were , in a majority of
cases , more than one and a man could name two , three or five
pravaras
__________________________________________________________
१६) राजश्री द्वारा ललखखत “र्संस्क
ृ तत की खोज “ इर्स ककताब क
े अनुर्सार--
मरीनच क
े वंश में कश्यप, वत्सर, महातपस्वी ननधुव प्रमुख प्रवर हैं।
____________________________________________________________
१७)संस्कृ त विद्िान् समितत द्िारा अंग्रेजी िें अनुिादित स्कन्ि पुराण
यातन The SkandaPurana Part VIII Ancient Indian Tradition And
Mythologyनािकककताबिेंउल्लेखहैकी – श्लोक 49-56a.
“O Arvavasu, you are a Pravara (excellent man), on account of
your penance
____________________________________________________________
१८) टवश्व भर में प्रलर्सध्र्दपंचतंत्र की कहाननयों में पहली ही कहानी क
े
शुरुवात में राजा को प्रवर कहा गया है !
अस्ति र्दालक्षणात्ये जनपर्दे मरहलारोप्यं नाम नगरम् ।
तत्र र्सकलार्ििर्सािर-कल्पद्रुमः प्रवर-नृप-मुक
ु ि-मखण-मरीनच-चय-
चर्चित-चरण-युगलः
_______________________________________________________________
१९) मत्स्य पुराण में वणरन ममलता है की“वलशष्ठ क
े वंशजो का एक ही
प्रवर है”–
वलशष्ठ वंशजाज्किप्राबन्नबोध वर्दतो मम , एकाषेयिु प्रवरो वालशष्ठानां
प्रकीर्तित: !!
______________________________________________________________
24
इर्स प्रकार प्रवर शब्द र्से र्सबंनधत अनेको अनमगनत श्लोक प्राचीन ग्रंिो
में ममलते है जो बताते है की प्रवर यानन उत्तम , श्रेष्ठ , गुणवान , टवद्वान् ,
मुख्य , प्रधान व्यटि होता है !
_______________________________________________________________
२०) प्राक
ृ त काव्यो में प्रवर को पवर जो कालांतर में प्राक
ृ त जननत
भाषाओ में पवार कहा गया है ! नागाजुरन कोंर्ा में ममले लशलालेख
का उल्लेख जो इबपग्रबपका इंरर्का २० पृष्ठ क्रमांक २२ पर ललखा ममलता
है ! इर्समें प्रवर राजा इक्ष्वार्सु ( श्रीराम क
े पूवरज ) का उल्लेख है ! वह
प्राक
ृ त श्लोक क
ु छ इर्स प्रकार है –
लर्सधम नमो भगवतो इखाक
ू राजा पवर ऋबष र्सत पभाव वंर्स
र्संभावार्स र्देव मनुर्स र्सव र्सत रहत र्सुख मग र्देलर्सकार्स ....
______________________________________________________________
२१) स्कन्द पुराण में टर्दए टवष्णु र्सहस्त्र नाम का एक िोत्र -
वलशष्ठो वामर्देवि र्सप्तषिषि प्रवरो भृगुः |
जमर्दग्न्यो महावीरः क्षतत्रयंतकारो ऋबषः || २७ ||
_______________________________________________________________
२२) महषिषि व्यार्स द्वारा रनचत पुराण क
े र्दारखंर् में ननम्नललखखत श्लोक
ममलता है –
जातो रह प्रवरे वंशे इक्ष्वाकोवे महात्मन: !
पराक्रम च वंशं च र्सवर जानाम्यहं तव !! ५७ll
जातोऽलर्स प्रवरे वंशे र्सूयरस्य परमात्मनः ।
बपतृभटिरतो टवष्णौ लशवे च र्समतां गतः ॥ ६८ ll
__________________________________________________________
23) गया स्थस्थत प्रबपतामहेश्वर मप्तन्दर का र्सन १२४० का लशलालेख में
क
ु छ श्लोक इर्स प्रकार है –
25
क्षतत्रय प्रवरक
ु ल र्सोपिािये नामजरहल गोतत्रना जगत्पाल प्रबपतामहेन
उत्तर बपतामहेन अजयपाल बपतृक
े न ....
नृप प्रवर क
ु लस्य धनािाया नामजरहला गोतत्रने श्री जगतपाल
प्रबपतामहेन...
_______________________________________________________
24)महारिी कणर चररत्रम -
दृिवैव तं स्वीयतपोबलेन ।
शापास्त्र टवक्लान्त र्समि लोकम् ।।
अभ्युज्जगाम प्रवरो नृपाणाम् ।
राज्ञया र्समेतः ककल क
ु श्वन्तभोजः ।। १७ II
____________________________________________________
25) पंरर्त श्रीराम शमा द्वारा पुनर्लिखखत मत्स्य पुराण इर्स ककताब क
े
भाग ७७ में पृष्ठ क्रमांक १९० पर श्लोक –
द्वयख्येयोः मारुतिषां त्रयाषेयः प्रवरो नृप !
अंमगराः प्रिमिेषां टद्वतीयि बृहस्पततः ।।१९II
ततीयि भरर्दवाजः प्रवराः पररकीर्तिताः ।
परस्परमवैवाह्या इत्येते पररकीर्तिताः ॥२०II
___________________________________________________
26) र्सोमर्देव क
ृ त “किा र्सररत र्सागर” क
े तरंग १०९ महामभषेक क
े १५२
वे श्लोक में प्रवर राजा का उल्लेख आता है –
तप्रयर्सनचवर्समगतः प्रवरराजा वृन्दंटवतः
प्रतापमइववैररनाम, मधुबपबन्नअनेशीर्दटर्दनं !
__________________________________________
26
प्रवांर , प्रवराय , पोवाराय र्से र्सबंनधत र्संर्दभर :
27)Epigraphica Indica volume 19 में र्दजर ताम्रलेख जो नालशक क
े
पार्स कालवन में ममला व जो यशोवमरन राजा क
े द्वारा ललखवाया गया है!
ताम्रलेख क
े पहले पट्टल में यशोवमरन ललखते है की उर्से ममला वह राज्य
धारा ( धारा नगर ) क
े प्रवांर राजाओिं द्वारा ममला है !
एबपग्राकफका इंरर्का पृष्ठ क्रमांक ७० व ७१ --
स्वस्ति श्री मन धारां मेरु महा मगरी तुंग श्रीगोपमे प्रवांर अिये अनेक
र्समर र्संगत: !
इर्स ताम्र लेख उल्लेखखत श्लोको क
े अनुवार्द में श्री आर र्ी बनजी कहते
है --
The inscription is not dated but refers itself to the reign of a
subordinate chief named Yashovarmman .Even the genealogy of
this prince, in whose territory the land was granted, is omitted. He
is simply introduced as having obtained one-half of the town of
Selluka from the illustrious Bhojadeva (I) and as being in the
enjoyment of 1,500 villages. This Bhojadeva is said to have
defeated the Kings of the Karnnata, Lata and Gurjara countries as
well as the lords of Chedi and Komkana and to have mediated on
the feet of the illustrious Sindhurajadeva , who cleansed the earth
from the mountains to the sea by his wide fame and mediated on
the feet of the illustrious Vakpatirajadeva (II) who mediated on the
feet of the illustrious Siyakadeva (II) of the Pramvara family of
Dhara.
२८) प्रवराय यह शब्द राजवंशो क
े प्रवर ककतने िे यानन उनक
े ककतने
पूवरज प्रवर िे यह र्दशाता है ! एक प्रवराय , त्री प्रवराय, पंच प्रवराय इन
शब्दों का उल्लेख अनमगनत बार लशलालेखो में पाया जाता है !
एबपग्राबपका इंरर्का क
े उल्लेखखत लशलालेखो में ज्यार्दातर र्सभी भागो
में यह शब्द पाया जाता है !
_______________________________________________________________
27
२९ ) अलेझांर्र र्से लड़ने वाले पोरर्स को पमिमी जगत पोवार या पौवार
राजा कहता है मजर्से भारत में पुरु या पोरर्स कहते है ! भारत में क
ु छ
ककताबो में एक ककताब है , मजर्समे पोरर्स को पंवार कहा गया है, वह
ककताब है -Gaṛhavāla aura Gaṛhavāla : itihāsa, purātatva, bhāshā-
sāhitya, evaṃsaṃskr
̥ ti para kendrita , - Volume 1 - Page 21 क
े
अनुर्सार –
प्रख्यात ग्रीक इततहार्सकार ने पुरवा को पुरुवाराई या पोरवाराई कहा है ।
र्समय क
े र्साि - र्साि वे पंवार क
े नाम र्से पहचाने जाने लगे ।
______________________________________________________________
ग्यारहवी र्सर्दी क
े बार्द क
े क
ु छ र्सन्दभर
३०) पृथ्वीराज रार्सो में आबू की पँवार राजक
ु मारी इच्छीनी क
े टववाह का
वणरन करता हुआ अध्याय इच्छीनी ब्याह किा में र्दोहा ११०
पांवारी प्रनिराज वर ! पुनन जनवांर्से जाइ !
एक र्सहर्स हय ह््िीवर ! टर्दने तुरत लुिाई !!
रार्सो क
े आटर्द पवर में र्दोहा १२४ में चंर्द बरर्दाई उर्स र्समय की एक प्रचललत
पंवारो क
े उत्पतत्त की कहानी ललखता है !
तब र्सु ररष बानचष्ठ , क
ुं र् रोचन रनचता महीं !
धररया ध्यान जमज होम मध्य बर्दी र्सरर्सा मरह
तब प्रगट्यो प्रततहार , राज ततन ठौर र्सुधाररय
फ
ु नन प्रगट्यो चालुक्क, र्ब्म्हा ततन चाल र्सुर्साररय
पांवार प्रगट्यो बीर वर , कह्यो ररष पंमार धनु
चय पुरुष जुड़ ककनौ अतुल नाह रषषर्स षुद्द्न्त तनु !!
श्री ऐ एफ रुर्ोल्फ द्वारा अनुवाटर्दत चंर्द बरर्दाई क
े काव्य पृथ्वीराज रार्सो
में र्दोहा २१ इंद्रवती ब्याह किा में ललखा है मजर्समे उल्लेख आता है की
28
कफरी जानी पांवार
राम रघुवंश बबचारी
जीवन जो उब्बरै
तौ मरण क
े वल र्संचारी !!
महंकाल बर ततत्थ
ततत्थ धारा उध्र्दारी !
________________________________________________________________
३१) र्सी व्ही वैद्य द्वारा ललखखत ककताब –History of Medieval Hindu India
Volume II Early History of Rajput ( 750 to 1000 AD ) page 62 में
उनक
े टवचार ललखे है जो बताते है की परमारों को र्ब्म्ह क्षत्र कहा गया
क्योंकक उन्होंने अपने प्रवर यार्द रखे !
Kshatriyas who had kept up the memory of their Pravara Rishis
were called in later times Bramha-kshatra
The Paramaras are of the Vasishtha gotra and are supposed
to be even born of Vasishtha and hence they are
ब्रम्होपेतक्षत्रेणक
ु लीनााः .The explanation is often given that
brahmakshatra may be explained – आिौब्राह्िण: पश्चात्क्क्षत्रत्रय: !
(र्ब्म्हक्षत्र का अिर हुआ की पहले र्ब्ाम्हण िे बार्दमे क्षतत्रय बने और राजा
मुंज तिा राजा भोज को र्ब्म्हक्षत्र कहा गया है! )
__________________________________________________________
32) पौवारा शब्द का अिर र्सन १८३५ में प्रकालशत Asiatic Researches:
Or, Transactions of the Society ... Index Page no 155
Pauvara ,a tribe or country in the north - west of Bharatas
empire
______________________________________________________________
33) श्री राजवी अमर लर्सिंह द्वारा ललखखत Mediaeval History of
Rajasthan- Western Rajasthan page no 13 क
े अनुसार
29
Parmaras (Pravaras ) are of the Vashishtha Gotra with 3
pravaras.
___________________________________________________________
34) The Cyclopedia of India and of Eastern & Southern Asia ,
Third Edition Volume IV, second edition year 1873 . Author –
General Edward Balfour
Page 669
POWAR or Puar or Pouar , a section of Rajpoots .
____________________________________________________
35)Corpus Inscriptionum Indicarum Vol.VII part 2 ,
Introduction to Inscriptions of The Paramaras , chandellas ,
Kachchhapaghatas and other two Dynasties etc by Harihar
Vitthal Trivedi , Hony Fellow of the epigraphical Society of
India , Published by The Director General of Archaelogical
Survey of India ,
Page no 58 –kalvan plate Inscription of the time of Bhojadeva
Remarks Regarding above plate Page 55 –
After the introductory blessing , svasti , the inscription furnishes the
genealogy of the Pravamra ( Paramara) rulers ( of Malwa ) ,
naming Siyakadeva , his successor Vakpatirajdeva , his successor
30
Sindhurajdeva and His Successor Bhojdeva , all in general terms
and supplying the only historical information that Vakpatirajdeva
was a poet of high rank and also that Bhojdeva had vanquished
the ruler of Karnataka , lata , Gurjjara , Chedi & Konkana . Bhoja’s
Success over the Karnaatakas obviously refers to the Long drawn
war which began from the time of Vakpati Munja and Tailapa .
_____________________________________________________
36) Book – Inscriptions of the Paramaras , Chandellas,
Kachchapaghatas and two minor Dynasties , Part 1 , Author
Mr H V Trivedi , published by Archaeological Survey of India ,
1978 ,
Page no 30 –
D C Ganguly suggested that Udyaditya was a distant relation of
Bhoja . Relying on the evidence supplied by an inscription dated in
the sixteenth Century and found at Udaipur in the Vidisha District ,
the same scholar held that Udayaditya was the son of Gyata
( Jnata ) , grandson of Gondala and Great Grandson of Suravira of
Pravara ( Paramara) family. But the Controversy is set at nought
by the statement of the Jainad Stone inscription , which describes
Jagaddeva , the son of the Udayaditya as a Nephew of Bhoja . On
the evidence of this inscription , H C Ray and V V Mirashi
concluded that Udayaditya was a brother of Bhoja .
____________________________________________________
37 ) Maharashtra State Gazetteers: Maharashtra – land and its
people, Directorate of Government Printing , Stationary &
Publication 1953 ,
Powar – Also called Panwar,Puar, Ponwar and Parmara Rajput.
____________________________________________________
38) Book “Hindu World Vol. 2 An Encyclopedic Survey Of Wisdom”
Benjamin Walker - ByBenjamin Walker, year 1995,
31
इर्स ककताब में लेखक पृष्ठ क्रमांक १८६पर वे ललखते है की
The Paramaras are also known as the Pramara , Pavar , Powar ,
Pawar , Panwar , Ponwar and other variations of the name .
_____________________________________________________
39) श्री नामवीर लर्सिंह अपनी ककताब में ‘पृथ्वीराज रार्सो भाषा व्
र्सारहत्य” में उर्स र्समय की भाषा का टवश्लेषण करते है जो बबि
ु ल र्सही
मालूम पड़ता है –
पृष्ठ क्रमांक 58
मध्यग म की स्थस्थतत – अपभ्रंश की तरह रार्सो में भी मध्यग म को
टवकल्प र्से ‘वँ’ कर र्देने की प्रवृतत टर्दखाई पर्ती है –
क
ु मारी - कवाँरी
तोमर - तोवँर
पांमार - पावाँर
40) श्री राजमखण र्सरमा द्वारा ललखखत “रहिंर्दी भाषा इततहार्स व् स्वरुप”
इर्स ककताब में पृष्ठ क्रमांक ३३ में
“पा” धातु का अिर रक्षा करना होता है !
_____________________________________________________________
41)श्री पंरर्त रघुनन्दन शमा द्वारा ललखखत ककताब ‘वैटर्दक र्सम्पतत”क
े
पृष्ठ क्रमांक २९२ पर ललखा ममलता है की
“पा” धातु का अिर रक्षा करना होता है तो “बप” धातु का अिर रक्षा करने
वाला होता है !
_______________________________________________________________
42)Mr R. L. Turner द्वारा ललखखत “A Comparative Dictionary of
the Indo-Aryan Languages”इर्स ककताब क
े पृष्ठ ४९४ में
32
र्संस्क
ृ त शब्द प्रवर का अिर best यानन र्सवरश्रेष्ठ बताया गया है ! पाली व्
प्राक
ृ त में इर्से पवर कहा गया है मजर्सका अिर उत्तम होता है !
___________________________________________________________
43) Raja Yudhisthira: Kingship in Epic Mahabharata , year By
Kevin McGrath इर्स अंग्रेजी ककताब में उल्लेख आता है –
Arjuna and Krishna advance against the pravara ‘champion’ of
the Magadhas.
___________________________________________________________
44) कश्मीर क
े कटव कल्हण द्वारा रनचत राजतरंमगनी नामक काव्य क
े
चतुिर तरंग में एक श्लोक आता है मजर्समे मनु मािाता श्रीराम इनको
प्रवर राजा कहा गया है !
मनु मािाता रामार्दया बभूवु: प्रवरा नृपा !
अिभाटव तर्दिेsबप र्ब्ाम्हानैनर टवमानना !!
स्किेऽनधरोप्य ननिेष्टिक
ृ त प्रावार भूषणः ।
नन्दतद्भः र्सोपहार्संतै: र्सुज्जेरयं व्यनीयत ।
प्रच्छाद्य र्सत्ववान् वनं र्सोशक
े नैव नोऽर्चितः ।
वृहद्राजवेत्युक्त्वा तस्मै स्वान्यंशुकान्यर्दात् ।१८९५
45) र्सन १९७७ में Rajasthani Hindi sabdaKosh Volume 2 – इर्स
ककताब में बद्रीप्रर्सार्द र्सकाररया ललखते है की –
परमार – राजपूतो की एक जाती पँवार / शत्रुओ का नाश करनेवाला
____________________________________________________________
33
46)A Dictionary of Urdū, Classical Hindī, and English By John
Thompson Platts (written year 1884 ) , में पृष्ठ क्रमांक २७५ पर
पंवार शब्द का अिर एक राजपूत जाती का नाम बताया गया है !
४७ ) “शेखावत और उनका र्समय” इर्स ककताब में श्री रघुनािलर्सिंह
शेखावत र्सन १९९८ में पृष्ठ क्रमांक ८ पर ललखते है –
“ टवमभन्न र्सूत्रों क
े प्रवराध्यायो का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है की
ककर्सी क
ु ल क
े प्रवर ऋबष वे पूवरज है मजन्होंने ऋग्वेर्द क
े र्सूि रचे और
उनक
े द्वारा अनि की िुतत की ! यज्ञ करने वाला यजमान अनि र्से
प्रािरना करता है की – हे अिे ! ऋग्वेर्द क
े र्सूिो र्से मजन्होंने आपकी
िुतत की उनका मै वंशज हु !”
४८) जय नारायण अर्सोपा द्वारा र्सन १९७६ में ललखखत ORIGIN of
RAJPOOTS में वे ललखते है –
They led the defence by taking up Shastra ( arms ) in place of
shastra (scriptures) and thus achieved Paramarata ( efficiency of
killing enemies ) It may be mentioned here that Powar is a
geographical name which is borne by a number of
communities who lived in this territory .
४९) श्री फ्रांलर्सर्स मेर्सन र्ी . र्ी द्वारा र्सन १८६८ में ललखखत ककताब PALI
GRAMMER क
े पृष्ठ क्रमांक १७१ / १७२में pavara surasura इर्स पाली
शब्द का उल्लेख आता है ! पवर र्सुरार्सुर यानन उतम श्रेष्ठ र्सुर व् अर्सुर
ऐर्सा ललखा ममलता है !
34
५०) र्सन १८७२ में श्री Monier Williams द्वारा ललखखत A Sanskrit –
English Dictionary क
े अनुर्सार
पृष्ठ क्रमांक ६४४ –
Pravara – Most excellent , chief , principal , best , prominent ,
distinguished , exalted , eminent , better , greater , eldest
__________________________________________________________
५१) Transactions of the American Philosophical Society ,
Volume 40 Part 4 (Year 1950)
THE NALARAYADAVADANTICARITA (ADVENTURES OF KING
NALA AND DAVADANTI) A WorK IN OLD GUJARATI, Edited and
translated with a grammatical analysis and glossary इर्स ककताब
क
े पृष्ठ क्रमांक ३५६ में श्री Mr. ERNEST BENDER (South Asia
Regional Studies Department and Oriental Studies Department,
University of Pennsylvania) शब्दों का अिर क
ु छ इर्स प्रकार बताते है -
pavara= ‘Excellent’ adj., obl. sg.; [Prakrut - pavara, Sanskrit.
pravara]
पृष्ठ क्रम ांक २७४ पर वे पांव रक अर्थ बत ते हुए लिखते है –
H. Pamvara , cf.BP pavara (43) ‘excellent’
___________________________________________________________
५२) BUDDHIST HYBRID SANSKRITGRAMMAR AND
DICTIONARY इर्स ककताब क
े पृष्ठ क्रमांक ३३८ में श्री FRANKLIN
EDGERTON, (Sterling Professor ofSanskrit and Comparative
Philology, Yale University) पवर का ननम्नललखखत अिर बताते है –
pavara ( = Pali id., MIndic for Skt. pravara), excellent
35
53) संिर्भ - THE JOURNAL OF THE ASIATIC SOCIETY, BENGAL
EDITED BY THE SECRETARY. VOL. IX. PART I.—JANUARY TO
JUNE, year 1840.
पेज ५४८
मध्य प्रर्देश स्थस्थत उर्दयपुर (मजला टवटर्दशा) नीलक
ं ठेश्वर मप्तन्दर
लशलालेख का २ रा श्लोक –
श्रीमान पावार वंस्यो नृपततिंच टववुध मालवंराज्य क्रीत्वा टवर्दाता र्सुरवीर
भवततषलमभर्दैत पाबपनां भुषरहा !
-------------------------------------------------------------------------
54) The Asiatic Journal and Monthly Register for British India
and its Dependencies – Vol 15 January to June 1823
published from London –
Page no 9 - Sir John Melcom Report on central India –
The Rajpoots or Military class of Hindus , form a great Part
of the population of Malwa . Some of these families trace
there origin to a very early period . In the oldest record of
Malwa , the rulers were the Chaur ( must be Tuar) and
Powar Rajpoots. And so late as the eleventh Century . , it
appears that great part of the Mewar and western Malwa
were in possession of the Rajpoot Race .
__________________________________________________________
55) Book – Travels in Western India , a Visit to The sacred
mounts of the Jains and the most Celebrated Shrines of Hindu
Temples between Rajpootana and the Indus , with an account
of the ancient city of Nehrwalla , published after death of Colonel
James Todd in year 1839 –
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
Powar
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  • 2.
  • 3. 1 गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुर्साक्षात् परर्ब्ह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।। ************** वक्रतुण्ड महाकाय र्सूयरकोटि र्समप्रभ। ननर्विघ्नं क ु रु मे र्देव र्सवरकायेषु र्सवरर्दा॥ शुक्लां ब्रह्मविचलरसलरपरमलमलद्लां जगद्व्यलवपनीं िीणल-पुस्तक-धलररणीमभयद्लां जलडवयलन्धकलरलपहलमव। हस्ते स्फलविकमलव्कलां विद्धतीं पद्मलसने सांवस्ितलमव िन्द्े तलां परमेश्वरीं भगितीं बुविप्रद्लां शलरद्लमव ॥
  • 4. 2 ्ेखन ि शोध इांवज. महेन पि्े विक्रम सांित २०७८ अांग्रेजी िर्ष २०२१ भलरत
  • 5. 3 अनुक्रममका १) नाम व् इततहार्स २) प्राचीन अस्तित्व ३) प्रख्यात राजपुरुष व् शार्सन ४) पोवारो का स्थानांतरण ५) मध्य भारतीय ३६ क ु ल ६) भाि लोगो की पोनिया ७) इततहार्स में उल्लेख क े अन्य र्संर्दभर ८) पुिक र्समापन
  • 6. 4 प्रिावना इततहार्स र्सागर क े र्समान है, मजर्समे अध्ययन स्वरुप गोते लगाने र्से हमे तथ्य / जानकारी स्वरूप अनमोल र्सम्पर्दा प्राप्त होती है ! अनेको ग्रंि, र्दिावेज, लेख, काव्य, कहावते , ख्यात , रेकॉर्््र्स , कहाननया , र्समाज र्संस्क ृ तत आटर्दक े अध्ययन व् र्संर्दभो क े आधार पर यह ककताब ललखकर ऐतहालर्सक जानकाररया प्रिुत करने का यह एक प्रयत्न है ! यह एक लोक र्समूह की प्राचीन काल र्से लेकर आजतक की र्समय यात्रा का वणरन है तिा एक अध्ययन या अवलोकन मात्र है ! इततहार्स क े अध्ययन क े दृष्टिकोण र्से, इततहार्स र्सबंनधत अनेको तथ्यों क े र्संर्दभो को जैर्से क े वैर्से मूल रूप में , एक जगह र्संकलन कर, एकतत्रत रूप में इर्स पुिक में प्रर्दर्शित ककया गया है ! इर्स ककताब में पोवार इततहार्स क े र्सन्दभर में इततहार्सकारों क े टवचारो को भी यहा प्रिुत ककया गया है ! आशा है की इततहार्स में रूनच रखने वाले लोगो क े ललए एक रुनचपूणर व ज्ञान मय प्रिुती र्साबबत होगी ...... महेन पटले
  • 7. 5 अध्याय१- नाम व् इततहार्स वतरमान क े ज्यार्दातर नामो , र्संज्ञाओ क े पीछे भूतकाल की घिना , व्यटि , विु , क्षेत्र , आचार टवचार र्से र्सम्बन्धित कोई न कोई तथ्य अवश्य छ ु पा होता है , बहुतर्से शब्दों में , नामो में इततहार्सभी र्समारहत होता है! जब कोई नाम इततहार्स में प्रख्यात व्यटित्वों र्से जुर्ा पाया जाता हो, तो इन नामो क े बारे में जाननेकी मनमे उत्सुकता होती है ! र्समुर्दाय क े ललए उपयोग में लाये गये शब्द यानन नाम भलेही आज अपभ्रंलशत रूपोंमें टवद्यमान हो , परन्तु उनका अस्तित्व प्राचीन होता है! काफी नामोकी , शब्दोंकी जड़े अतीतक े पन्नोमें जुर्ी होती है ! इन शब्दों की अपनीही यात्रा होती है और उर्स यात्रा की र्दूरी का माप होता है र्समयकाल । ननमित तौर पर, शब्द क े यात्रा की शुरुवात कही र्से तो हुयी होती है । शब्द की यात्रा ककतनी लंबी है, इर्सका उत्तर तो इततहार्स में ही नछपा होता है । इतना पक्का है कक शब्द व इततहार्स में र्सम्बंध जरुर है । इर्सी कारण शब्दों र्से इततहार्स उजागर होने में मर्दर्द ममलती है । क ु छ शब्द वतरमान में र्समझनेक े ललए स्पि होते है और क ु छ शब्द भूतकाल की तुलना में अस्पि , अपभ्रंबषत लगते है । हम शब्दोंक े अपभ्रंशों को कई बार जान भी नही पाते । जो वतरमान में है वही र्सही लगते है । कई शब्द प्राचीन शब्दो क े नए रूप होते है । इततहार्स को जानने क े ललए प्रचललत व अतीत क े शब्द इन र्दोनों की मर्दर्द ममलती है ! र्साम्राज्यों क े उर्दय व उनक े पतन की कहानी की तरह ही, र्समुर्दायों क े उत्थान व पतन की कहानी भी अवश्य होती है ! भूतकाल क े अनुभवों र्से ही हम वतरमान को र्सँवार कर भटवष्य को उज्ज्वल बना र्सकते है ! ऐर्से
  • 8. 6 में हमे अपने अतीत क े उन पन्नो को खंगालना आवश्यक है जो हमे र्सर्दा र्सीख , आत्मटवश्वार्स , अनुभव स्वरुप र्सम्पतत व् ज्ञान प्रर्दान करते रहेंगे! भारत भूमम क े महान व्यटित्व जैर्से योगी भृतहरी , र्सम्राि टवक्रमाटर्दत्य, राजा मुंज , राजा भोज , राजा जगर्देव पँवार आटर्द जन श्रुततयो में प्रख्यात है ! वे लोकोटियों ,कहावतो में जनमानर्स क े बीच प्रलर्सध्र्द है ! उनक े वंशको पोवार , पंवार या परमार आटर्द नामो र्से पहचाना जाता है ! इर्स वंश को अनिजननत यानी अनिवंश क े चार र्समूहों में र्से एक कहा गया है ! अनिवंश की अनि र्से उत्पतत्त की कहानी बतायी जाती है ! क ु छ इततहार्सकारोंने अनि वंशक े अनिर्से अद्भुत प्रगिीकरन क े रहस्य क े मभन्न मभन्न कारण बताये है , तो क ु छ इततहार्सकारों ने पंवारो को टवर्देशी कहकर कहानी क े रहस्य को र्सुलझानेकी कोलशश की ! परन्तु इर्स मामले में पुनर्विचार की आवश्यकता है ! वंश को प्रमार परमार क े र्साि र्साि पंवार या पोवार कहा गया है इर्सीमे रहस्य की क ुं जी है ! मानव इततहार्स में अनेको राजवंश , र्सत्ताधारी आये व गये ! क ु छ क े नाम इततहार्स में अंककत हुए और क ु छ र्समयकी यात्रामें टवलीन हो गये! मजनक े नाम अंककत हुये उनको हर युग में वतरमान र्सर्दा जानने की कोलशश करता रहा है ! जो काव्यो में , कहावतो में , लेखो में अंककत हुए, उनका अस्तित्व शब्द रूपोंमें मानो अमर ही हो गया ! वे क्यों अमर हुए , क्या कारण िा जो र्सहस्त्राब्दब्दयो तक लोगो में उन्हें तप्रय या अतप्रय बना गया , यह जानने योग्य तथ्य है ! इन तथ्यों क े द्वारा मनुष्य र्समुर्दाय र्सर्दा मागरर्दर्शित होता रहेगा ! कोई श्रेष्ठ , उत्तम , प्रततष्टष्ठत क्यों कहलाया व कोई र्दुि , अधम क्यों कहलाया इर्सक े पीछे क ु छ तो
  • 9. 7 कारण है जो, जानने योग्य है ! हम वतरमान में भूतकाल र्से प्रेरणा लेकर आगे बढ़े तो अवश्य ही क ु छ अच्छे भटवष्य का ननमाण होगा ! जम्बुद्वीप में हमे मजतना मानव इततहार्स पता है वह ग्रंिो क े द्वारा पता चलता है ! जो हुआ िा उर्सका वणरन काव्यो क े रूप में हुआ ! काव्यो को क ं ठस्थ करना आर्सान होता है इर्सीललए जो ललखा गया वह काव्य रूप में रचा गया ! श्लोक , ऋचाये , मन्त्र , काव्य आटर्द र्सबका गायन ककया जा र्सकता है ! इन काव्यो क े गायन व लेखन क े द्वारा पीढ़ी र्दर पीढ़ी ग्रन्थ प्रवारहत होते रहे है ! उर्स र्समय की पररस्थस्थतत , र्सोच , मनुष्य की जीवन शैली भी इन्ही र्से जानी जा र्सकती है ! भारत क े आयर भारत क े उत्तर पमिमी क्षेत्र में पायी गयी र्सभ्यता क े ही लोग है ! आवागमन , स्थानान्तरण जरुर हुआ है ! भारतीय र्सभ्यता काफी र्दुरतक फ ै ली हुयी िी यह भी पक्का है ! क्योंकक भारतीय र्सभ्यता र्से पूवर यूरोप या पमिम एलशया की र्सभ्यताओ में क ु छ र्साम्यता, भाषाओ में शब्दों का लेन र्देन , श्रीराम श्रीक ृ ष्ण की कहाननयो का अलग रूपों में र्सुर्दूर अस्तित्व, राजा भोज की मंगोललयन कहाननया , पंचतन्त्र की ताज्किस्थान में कहाननया होना र्दशाता है की र्सभ्यताओ का आर्दान प्रर्दान हुआ तो है , भलेही कफर वह आर्दानप्रर्दान व्यापाररक कारणों र्से हुआ हो या स्थानान्तरण क े द्वारा हुआ हो ! एक प्रकार र्से र्देखा जाये तो र्समूचा मानव र्समुर्दाय ककर्सी न ककर्सी रूप र्से जुर्ा हुआ है परन्तु र्समय क े र्साि अलग अलग र्सभ्यताए बनी और बबघर्ी ! र्संस्क ृ तत बनी व मममश्रत हुयी ! क ु छ र्सभ्यताओ ने काफी लम्बे र्समय तक अपने अस्तित्व को टिकाये रखा ! जो अच्छा है वह बना रहना चारहए और टवकलर्सत , र्संवर्धित , र्संरलक्षत भी होना चारहए ! इर्सललए हमे इन र्समुर्दायों की र्सभ्यता क े अस्तित्व को जानने की आवश्यकता है !
  • 10. 8 अध्याय२- प्राचीन अस्तित्व भारत का ज्ञात इततहार्स जो ककर्सी न ककर्सी रूपमें हमे प्राप्त होता है वह प्राचीन वैटर्दक काल तक हमे ले जाता है ! प्रारम्भिक वैटर्दक काल हमे प्रक ृ तत क े प्रतत , र्सृष्टि क े ननमाण क े प्रतत, मनुष्य क े नचिंतनको र्दशाता है! प्रक ृ तत में व्याप्त शटिया मनुष्य को प्राचीन र्समय र्से आकषिषित व आियरचककत करते आयी है ! भारत में वैटर्दक कालमें मजन वेर्दों की रचना हुयी उनमे ऋग्वेर्द र्सबर्से प्राचीन माना जाता है ! ऋग्वेर्द में अनि को टवशेष स्थान टर्दया गया है ! अनि िुतत र्से ही ऋग्वेर्द की शुरुवात होती है ! ऋग्वेर्द का पहला श्लोक - ॐ अनिमीळे पुरोरहतं यज्ञस्य र्देवमृब्दत्वजम्। होतारं रत्नधातमम् ॥1॥ अिात - यज्ञ क े पुरोरहत, र्दीप्तप्तमान्, र्देवों को बुलानेवाले ऋब्दत्वक ् और रत्नधारी अनि की मैं िुतत करता हूँ । ऋग्वेर्द में अनि की िुतत में अनेक श्लोक टवमभन्न र्सूिो में है ! प्रक ृ तत में अनिक े टवशेषता को र्दशाते अनेक मन्त्र ऋग्वेर्द में रचे गये है ! अनििुतत में मन्त्र दृिा ऋबषयों द्वारा ऋग्वेर्द की ऋचाये रची गयी ! ऋग्वेर्द की अनि िुतत करने वाली ऋचाओ क े रनचयता ऋबषयों ने ऋग्वेर्द में अनि का आवाहन ककया है ! र्सप्तषिषि व ऋग्वेर्द की ऋचाओ की रचना करनेवाले अन्य ऋबषयों को प्रवर ऋबष कहा गया है ! वैटर्दक काल क े बार्द टवमभन्न वंश , र्समुर्दाय अपना र्सम्बि या अपने वंश की पहचान प्रवर ऋबषयों क े नाम उनक े नामो क े र्साि जोड़कर र्दशाते हुए प्राचीन ग्रंिो में टर्दखाई पड़ते है ! ऋग्वेर्द को रचने वाले र्ब्म्ह
  • 11. 9 वेत्ता ऋबषयों को भारत की प्राचीन र्सभ्यता में बहुत महत्वपूणर स्थान प्राप्त है ! उन्हें श्रेष्ठतम माना गया है ! “प्रवर” यह शब्द र्समय क े र्साि उत्तमता , श्रेष्ठता , ज्ञानवानो की व्याख्या बन गया ! र्संस्क ृ त र्सारहत्य में प्रवर शब्द का उपयोग श्रेष्ठ , उत्तम , प्रततष्टष्ठत , उच्च, मुख्य, प्रधान , गुणवान,टवद्वान्, प्रख्यात उल्लेखखत करने क े ललए हुआ है! इर्स प्रवर शब्द का उल्लेख अनेक प्राचीन ग्रंिो में पाया जाता है ! प्राचीन ग्रंिो में महान राजाओ को , ऋबषयों को ,श्रेष्ठ योध्र्दाओ , टवद्वानों को प्रवर इर्स टवशेषण र्से उल्लेखखत ककया गया है ! भारत क े मुख्य ग्रन्थ जैर्से रामायण , महाभारत , पुराण , उपननषर्द व अनेक अन्य ग्रंिो में प्रवर शब्द का उपयोग हुआ ममलता है ! पहले प्रवर ऋबषयों क े वंशज अपने पूवरजो का नाम यानी प्राचीन प्रवर ऋबषयों का नाम अपने नामो क े र्साि जोड़ते िे ! प्रवर वंशीय व्यटि क े नाम क े र्साि वंश में नामांककत प्रवर पूवरज का नाम ललखना व्यटि क े पररचय का एक भाग िा ! र्समय क े र्साि र्साि जन भाषाओ में मूल नाम प्रवर जरुर िोर्ा िोर्ा पररवर्तित होते रहा ! वेर्दकालीन प्रवर ऋबषयों क े वंशजो ने प्राचीन र्समय में धमर व ननतत की रक्षा क े ललए क्षतत्रयत्व धारण ककया! प्रवर ऋबषयों क े वंशज प्रवर क्षतत्रय बन गए ! अनेक राजवंश प्रख्यात हुए मजन्हें प्रवर कहा गया है ! ग्रीक इततहार्स क े अनुर्सार अलेक्ज़ांर्र क े र्समय में उत्तर पमिम भारत यानन आजक े पाककस्थान , अफगाननस्थान , भारत क े पंजाब,
  • 12. 10 राजपुताना , कश्मीर उत्तर पमिम भारत में क े अनेको प्रान्तों में प्रवर क्षतत्रय राजाओिं का र्साम्राज्य फ ै ला हुआ िा ! करीब ६०० छोिे बड़े राजाओ का उल्लेख पमिमी इततहार्स र्से ममलता है ! अलेक्जेंर्र का र्सामना र्दो प्रवर राजाओ र्से होता है ऐर्सा उल्लेख ममलता है , मजन्हें पमिम क े इततहार्स की ककताबो में पौवार राजा ललखा ममलता है ! िोलेमी द्वारा ललखखत ग्रीक भाषा क े ग्रंिो में इन राजाओ को Poruaroi / Porvarai पोरुआराय / पोवाराय कहा गया है ! यह पोरुआराय यानन र्संस्क ृ त शब्द प्रवराय का ही ग्रीक भाषीयो द्वारा ककया र्सम्बोधन है ! उर्स र्समय की प्रचललत जन भाषाओ में पौवार या पौवाराय यह शब्द प्रचललत रहा हो र्सकता है ! तभी प्राचीन इततहार्स में पौवारा र्साम्राज्य का उल्लेख ममलता है ! यह प्रवर राजाओिं का र्साम्राज्य ही िा मजर्से पौवारा र्साम्राज्य कहा गया है ! इर्स र्साम्राज्य की राजधानी प्राचीन अवन्तीका या उज्जयनी / उज्जैन िी मजर्से ग्रीको ने ओजेन ललखा है! टवर्देलशयों द्वारा अनेक र्संस्क ृ त शब्दों का अपभ्रंश हो गया जो शब्द बार्द में जन मानर्स में प्रचललत भी हुऐ , जैर्से अंग्रेजो द्वारा उपयोग में लाये अनेक शब्द आज हमारे ललए अपने हो चुक े है ! भारत में भाषाओ का ममश्रण हुआ है ! और र्संस्क ृ ततयों का भी ममश्रण हुआ है ! पमिमी इततहार्स में र्दूर्सरी र्सर्दी में िोलेमी द्वारा ललखखत प्रवराय का अपभ्रंश पोरुआराय या पोवाराय यह शब्द पोवार इर्स प्रचललत नाम का र्सबर्से प्राचीन र्सन्दभर है ! इर्सक े बार्द ११ र्सर्दी क े बार्द क े र्संर्दभो में इर्स नाम का उल्लेख ममलता है जो प्रवांर , पांवार , पंवार , पावार जैर्से स्वरुप में है ! बपछले ८०० र्साल क े र्दरम्यान ममले अनेक इततहार्स क े ग्रंिो , ककताबो , ख्यातो , काव्यो , लेखो , र्दिावेजो में पोवार / पंवार / पँवार इन शब्दों का उल्लेख ममलता है ! आज भी पोवार या पंवार यह नाम एक र्समुर्दाय की पहचान है ! र्समय क े र्साि प्रवर र्से पोवार तक
  • 13. 11 का र्सफर भी अपने आप में इततहार्स र्समेिे हुए है ! प्राचीन प्रवर वंलशयो की पहचान आज पोवार शब्द र्से होती है ! र्संस्क ृ त शब्द प्रवर को र्समय क े र्साि प्रवर , प्रवार , प्रावार: , प्रोवार , पौवार , पोवार ऐर्सा स्वरुप प्राप्त हुआ ऐर्सा र्समझ पड़ता है ! यह पररवर्तित शब्द र्संस्क ृ त र्से प्रभाटवत है! वही र्दूर्सरी ओर प्राक ृ त व पाली भाषाओ में प्रवर को पवर कहा गया है ! पवर र्से पवार जैर्से अपभ्रंश प्राक ृ त , मराठी भाषा र्सारहत्य में पाए जाते है ! र्संस्क ृ त क े लशला लेखो, ताम्र लेखो , काव्यो में प्रवर , प्रवरो , प्रवराय आटर्द शब्दों का उपयोग अनेको जगह टवशेषतः हुआ है ! इन प्रवर वंशीय यानन मजन्होंने अपने प्रवर यार्द रखे व जो स्वयम उत्तम, गुणवान है उन को र्ब्म्ह क्षत्र भी कहा गया है क्योंकक वे शास्त्र क े र्साि शस्त्रको धारण ककये हुए िे ! यह वे लोग िे जो ततलक , जनेऊ , लशखा धारण करक े हािो में शस्त्र ललए रण भूमम में अपने रण कौशल र्से धमर व जन मानर्स की रक्षा का कतरव्य ननभाते िे ! क्षतत्रयो क े एक र्समुर्दाय ने प्राचीन प्रवर होने की पहचान को एक “प्रकार” क े रूप में अपनाया और अपने र्ब्म्ह क्षतत्रय र्समुर्दाय क े प्रकार को ‘प्रवर क्षतत्रय’ कहा ! प्रवर शब्द कालांतर में पोवार बना,जो एक प्रकार िा! इर्स प्रकार ने बपछले क ु छ र्सटर्दयों में एक टवलशि जातीका रूप ले ललया है ! इर्स प्रकार वतरमान में पोवार एक र्समुर्दाय है मजर्सकी जड़े प्राचीन र्समय में ममलती है ! पोवार का र्संस्क ृ त अिर मुलत: प्रवर होता है !
  • 14. 12 प्राचीन प्रवर यानन आज क े पोवारो क े पररवर्तित नाम भी मौजूर्द टर्दखाई पड़ते है जो र्समय क े र्साि जुड़े ! पररवर्तित शब्द क ै र्से जुड़े यह भी हमे जानना होगा ! इन जुड़े हुए नामो की जानकारी हमे जनश्रुततयो , लोकोटियों , लशलालेखो र्से , काव्यो र्से , पोनियो र्से प्राप्त होती है ! इततहार्स क े र्दिावेजो में , भािो की पोनियो में पोवारो को परमार / प्रमार भी कहा गया है और इर्सक े पीछे अनेक कहाननया भी प्रचललत है ! यह कहाननया बपछले १२०० र्सालो क े र्दरम्यान प्रख्यात हुयी व लशलालेखो में , ताम्र लेखो में , काव्यो में ललखी गयी ! हांलाकक अत्यंत प्राचीन ग्रंिो में इन कहाननयों का उल्लेख नही ममला ! इन कहाननयों क े पीछे एक इततहार्स र्समझ आता है वह क ु छ इर्स प्रकार है -- भारत क े रामायण , महाभारत व् अन्य अनेक ग्रंिो की माने तो प्राचीन काल में बहुतर्से आततायी क्षतत्रयो का टवनाश जमर्दनि पुत्र ऋबष परशुराम ने ककया ! हालाकक प्रवर यानन उत्तम व् धमर क े मागर पर चलने वाले र्सूयरवंशी राजाओ र्से उन्होंने युध्र्द नही ककया ! यह बात त्रेतायुग में राजा जनक की र्सभा में श्रीराम क े र्सामने उनकी उपस्थस्थती व् उनको आशीष र्देने र्से र्समझ आती है ! इर्सका स्पि अिर है की ऋबष परशुराम व् उनकी र्सेना ने प्रवर क्षतत्रयो का टवनाश नही ककया िा ! ऋबष परशुराम ऋबष जमर्दनि क े पुत्र िे ! जमर्दनि र्सप्तषिषियो में र्से एक है! प्रमारो या पोवारो की वंशावली क े शुरुवात में र्सप्तषिषि है ! यह र्सिव है ऋबष परशुराम की र्सेना र्दरअर्सल प्रवर क्षतत्रयो की र्सेना रही हो ! र्सुयरवंश की शाखाए भारत में र्सर्दा र्से टवद्यमान रही ! उनका प्रभुत्व कम ज्यार्दा होता रहा ! र्सूयर वंशीय मजन्हें इक्ष्वार्सु वंशीय या रघु वंशीय कहा गया है उन राजाओ को भी वाल्मीकक रामायण में प्रवर राजा कहा गया है ! इक्ष्वार्सु वंश को प्रवर कहा गया है क्योंकक वे उत्तम तो िे ही र्साि ही उनक े पूवरज भी प्रवर ऋबष िे !
  • 15. 13 र्सुयरवंशीयो को पँवार भी कहा गया है ! राजस्थान की पुरानी नािको में राजा हररिंद्र एक र्संवार्द में स्वयं को पँवार कहते है ! इततहार्सकार जेम्स िॉर् राजा मािाता को पँवार या प्रमार कहते है ! राजा मािाता श्रीराम क े पूवरज िे ! रोहतक शहर को प्राचीन र्समय में राजा हररिंद्र क े पुत्र रोरहताश्व द्वारा बर्साया गया ऐर्सा र्दिावेजो ललखा ममलता है ! पुराने गज़ेटियरो में रोरहताश्व पौवार राजा होने की बात ललखी ममलती है ! र्सूयरवंलशयो को पँवार क्यों र्सम्बोनधत ककया गया क्योंकक वे प्रवर क्षतत्रय िे ! र्सन १५८५ क े र्दरम्यान अबू फज़ल द्वारा ललखखत आईने अकबरी में र्संकललत इततहार्स में वे मेवाड़ घराने क े र्संस्थापक राजा कनकर्सेन को पंवार जाती का ललखते है ! अन्य र्संर्दभो में राजा कनकर्सेन अयोध्या क े श्रीराम पुत्र लव क े वंशज होने की बात ललखी ममलती है ! यानन र्सूयरवंशी राजा कनकर्सेन पंवार िे! राजा कनकर्सेन क े वंश में राजा लशलाटर्दत्य हुए मजनको पंवार राणी पुष्पावती र्से गुहाटर्दत्य नामक पुत्र हुए ! उनक े नाम र्से गुरहलोत वंश प्रलर्सध्र्द हुआ ! इर्सी वंश में राणा प्रतापलर्सिंह हुए ! पँवार वंशीय र्सम्राि टवक्रमाटर्दत्य मजन्होंने टवक्रम र्संवत शुरू ककया , वे भी श्रीराम को अपना पूवरज मानते िे ! र्सम्राि टवक्रमाटर्दत्य क े द्वारा प्राचीन अयोध्या की खोज करने की बात कही जाती है ! उर्स खोज में उन्हें प्राचीन काल का प्रयाग शहर ममल गया ऐर्सा कहा जाता है ! राजा भोज र्सम्राि टवक्रमाटर्दत्य को अपना पूवरज मानते िे ! राजा भोज क े चाचा राजा मुंज को उनक े र्समय क े कवी हाल अपनी काव्य क ृ तत “बपिंगला र्सूत्र वृतत्त” में र्ब्म्ह क्षतत्रय होने की बात करते है ! लशलालेखो में भी उन्हें र्ब्म्ह क्षत्र कहा गया ! यानी जो शस्त्र व शास्त्र को धारण ककये हो ! इततहार्सकार र्सी व्ही वैद्य , र्दशरि शमा व अन्य अनेको इततहार्सकारों क े अनुर्सार र्ब्म्ह क्षत्र यानन वे जो पहले र्ब्ाम्हण िे व बार्दमे क्षतत्रय बन गये! र्दरअर्सल वे प्रवर ऋबषयों क े वंशज िे मजन्होंने
  • 16. 14 शस्त्र उठा ललए िे ! वे कालान्तर में पंवार या पोवार कहलाये ! राजा भोज पोवार होने की बात पोवार र्समुर्दाय क े बड़े बुजुगर तिा इततहार्सकार कहते है ! आज र्से करीब २५०० र्साल पहले धमर की ध्वजा फहराने उर्सर्समय टवद्यमान प्राचीन क्षतत्रय अबुरर्दामगरी पर एकतत्रत हुए ! अनेको र्संर्दभो क े अनुर्सार बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन हुआ िा ! इर्स यज्ञ में धमर स्थापना व रक्षा का प्रण ललया गया! अनेको योध्र्दाओ ने इर्स कायरकी जबाबर्दारी ली ! इर्स मोरहममें र्सभी प्रवर क्षतत्रय शाममल िे ! इर्स यज्ञ में चार र्समूह बने िे ! प्रचललत काव्यो , लेखो क े अनुर्सार चार र्समूहों क े नाम चहुआन या चौहान , प्रततहार या पररहार , पँवार या प्रमार/परमार व चालुक्य या र्सोलंकी ऐर्से िे ! इन योध्र्दो र्समूहों ने पुनः भारत में काफी हर्दतक प्राचीन र्सनातन धमर स्थाबपत ककया ! र्सन १५८५ क े र्दरम्यान अबू फज़ल द्वारा ललखखत आईने अकबरी में भारत र्से ही र्संकललत इततहार्स व् अन्य र्संर्दभो का अवलोकन करे तो ननष्कषर ननकल आता है की धनजी या ध्रुमराज वह मुख्य नेता िा मजर्सने आबू क े यज्ञ में धमर रक्षा का प्रण ललया िा और वह प्रमार इर्स उपानध नाम र्से प्रलर्सध्र्द हुआ िा ! उर्सक े वंश में पुत्रराज या पुतराज हुआ जो ननपुतत्रक अवस्था में मृत्यु को प्राप्त हुआ ! तब प्रवर क्षतत्रय र्सभार्सर्दों ने आटर्दत्य पोवार को उनका नेता माना जो मालवा का प्रवर क्षतत्रय योध्र्दा िा ! आटर्दत्य पोवार ध्रुमराज प्रमार क े लर्सिंहार्सन पर बैठा और उर्सीक े वंश ने आगे धारानगर , उज्जैन व् अन्य स्थानों पर शार्सन ककया ! इर्सी कारण आटर्दत्य पोवार क े वंश को पोवार क े र्साि प्रमार भी कहा गया !
  • 17. 15 करीब २३५० र्साल पहले भारत पर अलेक्जेंर्र का आक्रमण हुआ िा ! भारत की शटि क े र्सामने हतोत्सारहत लर्सक ं र्दर अपनी र्सेना क े र्साि लौि गया िा परन्तु उर्सक े क ु छ र्सैन्य व अनधकारी इधर रुक चुक े िे जो बार्दमे भारत में ही बर्स गये ! र्सीमा वती क्षेत्रो र्से जनमानर्स का स्थलांतरण हुआ ! बड़े र्साम्राज्यों का पतन हुआ ! इर्सी बीच शको और हूणों क े आक्रमण भी हुए ! भारतीय जनमानर्स क े ललए बड़ी त्रार्सर्दी का र्दौर िा ! चाणक्य र्से प्रेररत चन्द्रगुप्त मौयर ने मगध पर अपना शार्सन स्थाबपत ककया ! उनक े वंश में र्सम्राि अशोक हुए जो बार्द मे बौध्र्द धमावलम्बी हो गये िे! युध्र्द लड़ने की अननच्छा व अरहिंर्सा क े प्रचार क े कारण आक्रांताओ क े ललए भारत में प्रस्थाबपत होने क े ललए नये मागर खुल गये िे ! शक, यवन व हूणों ने बड़े भूभागो पर कब्जा कर ललया िा ! भारत एक प्रकार र्से परतंत्र में िा ! शक और हूणों की जड़े काफी क्षेत्रो में फ ै ल चुकी िी ! तब उज्जयनी क े प्रमार लर्सिंहार्सनानधश आटर्दत्य पोवार क े वंशज परम प्रतापी र्सम्राि टवक्रमाटर्दत्य ने र्सबको पुनः एक बार र्संघटित कर भारत र्से शको को हिाकर टवक्रम र्संवत की शुरुवात आज र्से करीब २०७८ र्साल पहले की ! र्संस्क ृ त श्लोको में प्रवर क्षतत्रय र्समुर्दाय क े ललए प्रवर क े बजाये प्रमार , प्रमर या परमार ललखा ममलता है ! परमार यानन पर + मार – र्दुि परकीयो को मारनेवाले ! र्समय क े र्साि र्संस्क ृ त नाम प्रमर या परमार + प्रवर का ममला जुला स्वरुप जनमानर्स में प्रचललत हुआ और वह है पँवार या पंवार ! ११ वी १२ वी र्सर्दी क े पंरर्तो द्वारा र्संस्क ृ त लशलालेखो में परमार या प्रमार क ु ल क े प्रवर ललखे ममलते है ! इर्स र्समुर्दाय क े लोगो क े ललए कही एक प्रवराय, कही तत्र प्रवराय तो कही ककर्सीको पंच प्रवराय भी
  • 18. 16 कहा गया है! यानन ककर्सी क े वंशावली में मात्र एक ही पूवरज प्रवर ऋबष िे तो ककर्सी क े वंशावली में तीन पूवरज प्रवर ऋबष िे तो ककर्सी क े पांच पूवरज प्रवर ऋबष िे ! १३ वी र्सर्दी तक इन्हें अपने प्रवर पूवरज अच्छे र्से यार्द िे , बार्द में इस्लाममक आक्रमणों क े र्दौरान उिलापुिल, बारम्बार हो रहे टवस्थापन क े कारण वे मात्र इतना यार्द रख पाए की वे प्रवर है और वे प्रवर पूवरजो क े वंशज है ! र्संस्क ृ त जन भाषा न होने र्से प्रवर की बजाये तत्कालीन भाषाओ में वे अपने र्समुर्दाय को प्रवार र्से पांवार, पोवार, पँवार, पंवार क्षतत्रय आटर्द कहते िे ! काव्यो में , लोकोटियो में, ख्यातो में , लेखो में उनका पृथ्वी बड़ा पँवार इर्स कहावतो क े जररये गुणगान होता रहा है ! प्रचललत कहाननयों क े अनुर्सार पंवार क्षतत्रय जाती क े एक नामांककत राजवंश क े प्रवर वलशष्ठ िे मजर्से उनका गोत्र भी कहा गया है ! अलग अलग प्रवर या पंवार क्षतत्रयो क े अलग अलग प्रवर है ! ज्यार्दातर र्सभी र्सप्तषिषि व् अन्य मुख्य ऋबष है ! मजनको यार्द नही रहा वे कश्यप गोत्र बताते है ! हालाकक गोत्र क े र्साि र्साि र्सबक े अपने प्रवर पूवरज भी है ! वतरमान में प्रवराय र्समुर्दाय क े लोग प्राचीन प्रवर पूवरजो को भले ही भूल गये हो परन्तु उन्होंने स्वयम का प्रकार “प्रवर” यानन हाल क े र्सर्दीयो में “पोवार या पंवार”जाती या प्रकार को बनाये रखा ! प्राचीन वेर्दकालीन प्रवर लोग अनिपूजक िे ! र्सिवत: पंवारो को अनि वंशीय कहने का यही कारण है ! मध्य भारत में बालाघाि ,गोंटर्दया , लर्सवनी , भंर्ारा मजला क्षेत्र में धारानगर र्से र्सन १७०० क े बार्द आये पंवारो क े ३६ क ु लो में र्से करीब ३० क ु ल या पररवार बर्से हुए है ! आज भी उनक े यहाँ प्रत्येक पूजा में अनि का टवशेष महत्व है ! पोवार बहुल ग्रामीण क्षेत्रो में जहा आज भी र्संस्क ृ तत जीटवत है वहा वे पारम्पररक रूप
  • 19. 17 र्से प्रततटर्दन नहाकर चूल्हे क े पूजन क े बार्द ही स्वच्छ ककये चूल्हे में अनि प्रज्वललत करते है ! अन्न पकाने क े बार्द चूल्हे की अनि में अन्न का िोर्ार्सा भाग र्समषिपित करते है ! अन्न ग्रहण करने क े पहले अनि पर नैवेद्य र्देते है ! वे हर पूजा में अनि को नैवेद्य क े रूप में अन्न र्समषिपित करते है ! यह परम्परा र्दशाती है उनक े जीवन में अनिपूजनका महत्व है ! यह वतरमान की प्रिाए प्राचीन र्सभ्यता , ररती क े अंश है ! हालाकक अनिवंशी कहने का कारण यज्ञ की अनि क े द्वारा प्रागट्य भी कहा जाता है ! अनि र्से प्रगि होने वाली बात आजक े वैज्ञाननक युग में िोड़ी अस्वीकायर लगती है ! काफी इततहार्सकारों क े अनुर्सार अनि यज्ञ में धमर स्थापना की प्रततज्ञा ली गयी िी! पंवारो क े उत्पतत्त की अनेक कहाननया प्रचललत है ! एक कहानी क े अनुर्सार प्राचीन र्समय में र्ब्ह्मषिषि वलशष्ठ ने टवश्वाममत्र र्से युध्र्द क े ललए कामधेनु र्से प्रािरना कर मजन वीरो का आव्हान ककया िा वे यज्ञ अनि र्से प्रगि वीर योध्र्दा अनिवंशी िे ! एक कहानी में र्दुजरनों क े नि करने हेतु अबुरर्दामगरी पर हुए यज्ञ में र्देवताओ द्वारा चार वीर प्रगि ककये गए ! कोई आटर्द शटि द्वारा, तो कोई र्ब्म्हा द्वारा , कोई भगवान लशव द्वारा , कोई इं द्र द्वारा चार अनि वंशीय वीरो की उत्पतत्त की कहानी बताते है ! अगर भाि लोगो द्वारा परम्परागत रूप र्से ललखीत पोवारो की पोनियो की बात करे तो उन्होंने अनिवंलशयो की उत्पतत्त भगवान टवष्णु र्से बताई है ! भािोने अनिवंलशयो को आटर्दशटि की क ृ पा र्से प्राप्त र्सप्तषिषियो क े वंशज बताया है ! अनिवंश क े चारो र्समूहों में प्रवर क्षत्रीय शाममल है ! चौहान , पररहार , बघेले , चालुक्य , राणा आटर्द क ु ल पँवारो में होना यही र्दशाता है की चारो र्समूहों में प्रवर क्षतत्रय शाममल िे ! बपछले १२०० र्साल में र्संस्क ृ त भाषी पंरर्त , भाि आटर्द लोग पंवारो या पोवारो को प्रमार या परमार ललखते आये है ! हालांकक प्राचीन वैटर्दक व् पौराखणक र्सारहत्य में प्रवर
  • 20. 18 शब्द ममला परन्तु प्रमर शब्द का कही भी उल्लेख नही ममला ! अगर परमार यह र्समुर्दाय का नाम १२०० र्साल पहले मौजूर्द िा तो प्राचीन ग्रंिो में होना चारहए िा , परन्तु ऐर्सा नहीं है ! पंवार ज्यार्दातर लर्सिंध , मध्य भारत , मालवा, राजपुताना आटर्द क्षेत्रो में बर्से िे ! वही र्से अन्य जगहों पर र्समय क े र्साि फ ै ले ! पोवारो की कहानी वैटर्दक काल र्से वतरमान तक ज्ञात होती है ! अचानक प्रगि होने र्से उनका अस्तित्व मात्र २५०० र्साल पुराना होना यह बात अवैज्ञाननक लगती है ! वे २५०० र्साल पहले भी इधर मौजूर्द िे ! पोवारो या परमारों क े अस्तित्व की यात्रा उर्सी र्समय र्से है जब र्संर्सार में जीवन की शुरुवात हुयी ! वह एक र्समूह है जो उन्नत हुआ, मजर्सने ज्ञान, टवज्ञानं , ऐश्वयर , धमर , ननतत , शौयर क े र्साि जीवन व्यतीत ककया, आर्दशो की रचना की ! इतना तो पक्का है की कमर्से कम बपछले ५००० र्सालो र्से पोवारो का शटिशाली अस्तित्व भारत भूमम में ननमित रूप र्से है और वह भी प्रभावशाली अतीत क े र्साि ! और ५००० र्साल पहले क े ककर्सी क े भी इततहार्स की पुख्ता जानकारी हालर्सल नही ! पंवार क्षतत्रयो को पंवार राजपूत भी कहा गया है ! क ु छ इततहार्सकार पंवार या प्रमार राजपूतो को ५ वी या ६वी र्सर्दी में आये टवर्देशी आक्रमणकारी र्समझते है तो क ु छ इततहार्सकार उनको ग्रीक या हुण कहते है जो भारत में बर्स गये ! र्सिवत: वे इनक े गौर वणर क े कारण कहते हो ! परन्तु यह र्सत्य नही ! काफी जगह उल्लेख आता है की आयर गौर वणीय िे , इर्स कारण पंवारो का गौर वणीय होना उन्हें टवर्देशी होना र्साबबत नही करता ! र्दुर्सरी र्सर्दी क े र्दौरान ग्रीक इततहार्स में पोरुआराय ललखा ममलना बताता है की उर्स र्समय प्रवराय राजाओ का शार्सन िा ! पौवारा र्साम्राज्य की बात भी यह बताती है की यह पोवार
  • 21. 19 वंशीय ईर्सा पूवर र्से मौजूर्द िे ! इर्स कारण ५ वी या ६ वी र्सर्दी में आने की बात गलत हो जाती है ! र्दूर्सरी बात पंवारो में प्राचीन ऋबषयों क े क ु ल नाम होना यह र्दशाता है की वे प्राचीन र्समय र्से मौजूर्द लोग है ! पंवारो क े क ु ल र्संस्क ृ त शब्द क े मूल नाम है, तो क ु छ र्संस्क ृ त शब्द क े अपभ्रंश , इर्स बात र्से यह पता चलता है की पोवार या पंवार प्राचीन र्समुर्दाय क े वंशज है ! इर्स वंश या जाती क े लोग करीब चार र्देशो में मुख्यतः पाए जाते है ! वे र्देश है भारत , पाककिान , अफगाननस्थान व् नेपाल ! अनेक उपर्समूह या उपजाततया भी है जो अन्य नामो र्से जानी जाती है, परन्तु वे अपने को पंवार , परमार बताते है ! क ु छ लोग अन्य जाततयों में , र्समुर्दायों में , अलग अलग धमो में घुलममल गये परन्तु कफर भी पंवार, परमार वंश र्से अपना र्सबंध बताते है ! र्दुर्सरे र्समुर्दायों जाततयों में ममल जाने र्से उनकी मुख्य जाती क ु छ और होती है परन्तु उपजाती या शाखा पंवार या परमार होती है ! इर्सक े अलावा भी कही हो तो वे अपभ्रंलशत नामो क े कारण अब पहचाने नही जा पाते ! प्रवर र्समुर्दाय वैटर्दक है ! और वह र्समुर्दाय प्राचीन र्समय र्से ककर्सी न ककर्सी कारणवश र्संर्सार क े मभन्न स्थानों पर स्थानांतररत हुआ ही होगा ! श्री स्टेफ े न क्नाप अपनी ककताब Proof of Vedic Culture’s Global existence me ललखते है –“ Friar यानी प्रवर ऋबष होता है ! र्संस्क ृ त शब्द “प्र” को ही यूरोप में “फ्र” उच्चाररत ककया जाता है ! वैटर्दक ऋबषयों को र्संस्क ृ त में प्रवर: कहा जाता है ! यानन श्रेष्ठता की और अग्रेलर्सत व्यटि ! यह वैटर्दक शब्द आज भी यूरोप में friar क े रूप में टवद्यमान है ! श्री स्टेफ े न वैटर्दक लोगो का वैश्वश्वक अस्तित्व अनेक उर्दाहरण प्रिुत
  • 22. 20 कर अपनी ककताब में बताते है ! प्रवर अनि पूजक िे यह भी एक तथ्य है मजर्सर्से टवश्व भर यह र्समुर्दाय कहा कहा होगा यह जाना जा र्सकता है ! र्संस्क ृ त में प्रवर का अिर उत्तम होने र्से अनेक राजाओ को प्राचीन र्समय में प्रवर कहा गया है ! और यह भी एक र्सत्य है की र्सभीको प्रवर नही कहा गया बश्वि ऋग्वेर्दीय अनिपूजक ऋबषयों को, उनक े वंशजो को , र्देवताओ क े वंशजो को ही प्रवर ललखा ममलता है ! अध्याय में ललखखत तथ्यों क े र्संर्दभर --- प्रवर यानन श्रेष्ठ , उत्तम , उच्च , टवद्वान , गुणवान इर्स अिर को र्दशाते र्सन्दभर ---- १) श्रीर्दत्तात्रेयर्सहस्रनामिोत्रम् २ -श्लोक (१६) परमिनुटवज्ञेयः परमात्मनन र्संस्थस्थतः । प्रबोधकलनाधारः प्रभाव प्रवरोत्तमः ॥ १६॥ २) लशव र्सहस्त्र नाम िोत्रम का पहला श्लोक – स्थस्थरः स्थाणुः प्रभुभानुः प्रवरो वरर्दो वरः . र्सवात्मा र्सवरटवख्यातः र्सवरः र्सवरकरो भवः || 1 || _____________________________________________________________ ३)महषिषि वेर्द व्यार्सटवरनचत र्ब्ह्मवैवतरपुराणका एक श्लोक -- त्वटद्वधं लक्षकोटििं च हन्तुं शिो गणेश्वरः। मजतेप्तन्द्रयाणां प्रवरो नरह हश्वन्त च मलक्षकाम्।। (र्ब्ह्मवैवतरपुराणगणपततखंर् 44/26-27) र्ब्ह्मवैवतरपुराणगणपततखंर्त्रयोर्दशोध्याय ! टवष्णुरुवाच। ईश्त्त्वां िोतुममच्छाममर्ब्म्हज्योततःर्सनातनम्।
  • 23. 21 ननरूबपतुमयिोऽहमनुरूपमनीहकम्।४१॥ प्रवरंर्सवरर्देवानांलर्सध्र्दानांयोमगनांगुरुम्। र्सवरस्वरूपंर्सवेशंज्ञानरालशस्वरूबपणम्॥४२॥ चन्द्राटर्दत्यमनूनाच्च प्रवराः क्षतत्रया: स्मृता:॥ ` र्ब्ह्मणो बाहुर्देशाचैवान्याः क्षत्रीयजातयः ॥ १५II (र्ब्ह्मवैवतरपुराणर्ब्म्हखंर्म र्दश्मोअध्याय: ) _____________________________________________________________ ४) परशुराम िोत्रम श्लोक ८७ – उध्वररेता ऊध्वरललङ्गः प्रवरो वरर्दो वरः । उन्मत्तवेशः प्रच्छन्नः र्सप्तद्वीपमरहप्रर्दः !! _____________________________________________________________ ५) वेर्दव्यार्स रनचत महाभारत ग्रन्थ , स्थस्थरः स्थाणुः प्रभुभानुः प्रवरो वरर्दो वरः । र्सवात्मा र्सवरटवख्यातः र्सवरः र्सवरकमर करो भव: !! ______________________________________________________________ ६) हररवंशपुराण पवर ०३ - अध्याय ०५३ नमुनचिार्सुरश्रेष्ठो धरेण र्सह युध्यत । प्रवरौ टवश्वकमाणौ ख्यातौ र्देवार्सुरेश्वरौ ।। ८ ।। _______________________________________________________________ ७) पद्मपुराण पवर ९५ श्लोक ०७ काश्वन्तमश्वत्सतर्सइंिरौ प्रवरौ शरभोत्तमौ । प्रटविौ मे मुखं मन्ये टवलर्सश्वत्सतक े र्सरौ ॥७ !!... ______________________________________________________________ ८) वाल्मीकक रामायण आटर्दकाण्ड ४४ र्सगर श्लोक १८ इयं च र्संतततर्देव नावर्सार्द् कििन | इक्ष्वार्सुनांक ु ले गच्छर्देष मे प्रवरो वर्: ॥ १८॥ ____________________________________________________________
  • 24. 22 ९) वाल्मीकक रामायण आटर्दकाण्ड ५९ र्सगर श्लोक १९ इक्ष्वार्सुणां ही र्सवेषां वलशिः प्रवरो गुरुः । तस्मार्दनन्तरं र्सवे भवन्तो गुरवो मम ॥ १९॥ ____________________________________________________________ १०) नारर्द पंचरात्र अध्याय ६ श्लोक ५८ टवधातां जगतां र्ब्म्ह , र्ब्म्हेिान मनर्सः ! तत पुत्रो र्सी महा ख्यातो र्देवषिषि प्रवरौमहं !! _____________________________________________________________ ११) वेर्द् व्यार्स रनचत महाभारतम आटर्दपवर श्लोक ६ पूमजतः प्रवरो वंशो भृगुणाम भृगु नन्दन ।!६!! इमं वंशमहं टर्दव्यं भागरवं ते महामुने ।.... ______________________________________________________________ १२)र्सन १९२९ में नागरी प्रचाररणी र्सभा द्वारा प्रकालशत Hastalikhita Hindī Granthoṃ Kī Khoja Kā Vivaraṇa , Volume 6 इर्स ककताब में टर्दए काव्य का र्संर्दभर – लर्सत राम राजषिषि प्रवर तनु कोटि काम छटव ।। ताही क े र्सम लर्सया जनक नृप .. _____________________________________________________________ १३) एबपग्रबपका इंरर्का वॉल्यूम २६ पृष्ठ १०५ में टर्दए बबजोली लशलालेख में ननम्न ललखखत उल्लेख आता है की ...अंभोनधमिनाद्देवव ( बोललमभवर ( ब ) लशाललमभः ॥ 29 ॥ ननगरतः प्रवरो वंशो र्दै ( र्दे)ववृंर्दैः र्समामश्रतः । । श्रीमालपत्तने स्थाने स्थाबपतः शतमन्युना ॥ _____________________________________________________________ १४) ओररएण्टल इंश्वस्टट्यूि द्वारा प्रकालशत Journal of Oriental Institute Volume 55-57 Page 31 में कहा गया है की Vashistha is called Maharshi – Bramharshi- Pravarah __________________________________________________________
  • 25. 23 १५) र्सन १९५९ में प्रकालशत ककताब Source Readings on Indian Civilization, 1959 - Page 8 में ललखा है की --- Each gotra claimed to have certain famous ancestors called the pravaras , " excellent ones . The pravaras were , in a majority of cases , more than one and a man could name two , three or five pravaras __________________________________________________________ १६) राजश्री द्वारा ललखखत “र्संस्क ृ तत की खोज “ इर्स ककताब क े अनुर्सार-- मरीनच क े वंश में कश्यप, वत्सर, महातपस्वी ननधुव प्रमुख प्रवर हैं। ____________________________________________________________ १७)संस्कृ त विद्िान् समितत द्िारा अंग्रेजी िें अनुिादित स्कन्ि पुराण यातन The SkandaPurana Part VIII Ancient Indian Tradition And Mythologyनािकककताबिेंउल्लेखहैकी – श्लोक 49-56a. “O Arvavasu, you are a Pravara (excellent man), on account of your penance ____________________________________________________________ १८) टवश्व भर में प्रलर्सध्र्दपंचतंत्र की कहाननयों में पहली ही कहानी क े शुरुवात में राजा को प्रवर कहा गया है ! अस्ति र्दालक्षणात्ये जनपर्दे मरहलारोप्यं नाम नगरम् । तत्र र्सकलार्ििर्सािर-कल्पद्रुमः प्रवर-नृप-मुक ु ि-मखण-मरीनच-चय- चर्चित-चरण-युगलः _______________________________________________________________ १९) मत्स्य पुराण में वणरन ममलता है की“वलशष्ठ क े वंशजो का एक ही प्रवर है”– वलशष्ठ वंशजाज्किप्राबन्नबोध वर्दतो मम , एकाषेयिु प्रवरो वालशष्ठानां प्रकीर्तित: !! ______________________________________________________________
  • 26. 24 इर्स प्रकार प्रवर शब्द र्से र्सबंनधत अनेको अनमगनत श्लोक प्राचीन ग्रंिो में ममलते है जो बताते है की प्रवर यानन उत्तम , श्रेष्ठ , गुणवान , टवद्वान् , मुख्य , प्रधान व्यटि होता है ! _______________________________________________________________ २०) प्राक ृ त काव्यो में प्रवर को पवर जो कालांतर में प्राक ृ त जननत भाषाओ में पवार कहा गया है ! नागाजुरन कोंर्ा में ममले लशलालेख का उल्लेख जो इबपग्रबपका इंरर्का २० पृष्ठ क्रमांक २२ पर ललखा ममलता है ! इर्समें प्रवर राजा इक्ष्वार्सु ( श्रीराम क े पूवरज ) का उल्लेख है ! वह प्राक ृ त श्लोक क ु छ इर्स प्रकार है – लर्सधम नमो भगवतो इखाक ू राजा पवर ऋबष र्सत पभाव वंर्स र्संभावार्स र्देव मनुर्स र्सव र्सत रहत र्सुख मग र्देलर्सकार्स .... ______________________________________________________________ २१) स्कन्द पुराण में टर्दए टवष्णु र्सहस्त्र नाम का एक िोत्र - वलशष्ठो वामर्देवि र्सप्तषिषि प्रवरो भृगुः | जमर्दग्न्यो महावीरः क्षतत्रयंतकारो ऋबषः || २७ || _______________________________________________________________ २२) महषिषि व्यार्स द्वारा रनचत पुराण क े र्दारखंर् में ननम्नललखखत श्लोक ममलता है – जातो रह प्रवरे वंशे इक्ष्वाकोवे महात्मन: ! पराक्रम च वंशं च र्सवर जानाम्यहं तव !! ५७ll जातोऽलर्स प्रवरे वंशे र्सूयरस्य परमात्मनः । बपतृभटिरतो टवष्णौ लशवे च र्समतां गतः ॥ ६८ ll __________________________________________________________ 23) गया स्थस्थत प्रबपतामहेश्वर मप्तन्दर का र्सन १२४० का लशलालेख में क ु छ श्लोक इर्स प्रकार है –
  • 27. 25 क्षतत्रय प्रवरक ु ल र्सोपिािये नामजरहल गोतत्रना जगत्पाल प्रबपतामहेन उत्तर बपतामहेन अजयपाल बपतृक े न .... नृप प्रवर क ु लस्य धनािाया नामजरहला गोतत्रने श्री जगतपाल प्रबपतामहेन... _______________________________________________________ 24)महारिी कणर चररत्रम - दृिवैव तं स्वीयतपोबलेन । शापास्त्र टवक्लान्त र्समि लोकम् ।। अभ्युज्जगाम प्रवरो नृपाणाम् । राज्ञया र्समेतः ककल क ु श्वन्तभोजः ।। १७ II ____________________________________________________ 25) पंरर्त श्रीराम शमा द्वारा पुनर्लिखखत मत्स्य पुराण इर्स ककताब क े भाग ७७ में पृष्ठ क्रमांक १९० पर श्लोक – द्वयख्येयोः मारुतिषां त्रयाषेयः प्रवरो नृप ! अंमगराः प्रिमिेषां टद्वतीयि बृहस्पततः ।।१९II ततीयि भरर्दवाजः प्रवराः पररकीर्तिताः । परस्परमवैवाह्या इत्येते पररकीर्तिताः ॥२०II ___________________________________________________ 26) र्सोमर्देव क ृ त “किा र्सररत र्सागर” क े तरंग १०९ महामभषेक क े १५२ वे श्लोक में प्रवर राजा का उल्लेख आता है – तप्रयर्सनचवर्समगतः प्रवरराजा वृन्दंटवतः प्रतापमइववैररनाम, मधुबपबन्नअनेशीर्दटर्दनं ! __________________________________________
  • 28. 26 प्रवांर , प्रवराय , पोवाराय र्से र्सबंनधत र्संर्दभर : 27)Epigraphica Indica volume 19 में र्दजर ताम्रलेख जो नालशक क े पार्स कालवन में ममला व जो यशोवमरन राजा क े द्वारा ललखवाया गया है! ताम्रलेख क े पहले पट्टल में यशोवमरन ललखते है की उर्से ममला वह राज्य धारा ( धारा नगर ) क े प्रवांर राजाओिं द्वारा ममला है ! एबपग्राकफका इंरर्का पृष्ठ क्रमांक ७० व ७१ -- स्वस्ति श्री मन धारां मेरु महा मगरी तुंग श्रीगोपमे प्रवांर अिये अनेक र्समर र्संगत: ! इर्स ताम्र लेख उल्लेखखत श्लोको क े अनुवार्द में श्री आर र्ी बनजी कहते है -- The inscription is not dated but refers itself to the reign of a subordinate chief named Yashovarmman .Even the genealogy of this prince, in whose territory the land was granted, is omitted. He is simply introduced as having obtained one-half of the town of Selluka from the illustrious Bhojadeva (I) and as being in the enjoyment of 1,500 villages. This Bhojadeva is said to have defeated the Kings of the Karnnata, Lata and Gurjara countries as well as the lords of Chedi and Komkana and to have mediated on the feet of the illustrious Sindhurajadeva , who cleansed the earth from the mountains to the sea by his wide fame and mediated on the feet of the illustrious Vakpatirajadeva (II) who mediated on the feet of the illustrious Siyakadeva (II) of the Pramvara family of Dhara. २८) प्रवराय यह शब्द राजवंशो क े प्रवर ककतने िे यानन उनक े ककतने पूवरज प्रवर िे यह र्दशाता है ! एक प्रवराय , त्री प्रवराय, पंच प्रवराय इन शब्दों का उल्लेख अनमगनत बार लशलालेखो में पाया जाता है ! एबपग्राबपका इंरर्का क े उल्लेखखत लशलालेखो में ज्यार्दातर र्सभी भागो में यह शब्द पाया जाता है ! _______________________________________________________________
  • 29. 27 २९ ) अलेझांर्र र्से लड़ने वाले पोरर्स को पमिमी जगत पोवार या पौवार राजा कहता है मजर्से भारत में पुरु या पोरर्स कहते है ! भारत में क ु छ ककताबो में एक ककताब है , मजर्समे पोरर्स को पंवार कहा गया है, वह ककताब है -Gaṛhavāla aura Gaṛhavāla : itihāsa, purātatva, bhāshā- sāhitya, evaṃsaṃskr ̥ ti para kendrita , - Volume 1 - Page 21 क े अनुर्सार – प्रख्यात ग्रीक इततहार्सकार ने पुरवा को पुरुवाराई या पोरवाराई कहा है । र्समय क े र्साि - र्साि वे पंवार क े नाम र्से पहचाने जाने लगे । ______________________________________________________________ ग्यारहवी र्सर्दी क े बार्द क े क ु छ र्सन्दभर ३०) पृथ्वीराज रार्सो में आबू की पँवार राजक ु मारी इच्छीनी क े टववाह का वणरन करता हुआ अध्याय इच्छीनी ब्याह किा में र्दोहा ११० पांवारी प्रनिराज वर ! पुनन जनवांर्से जाइ ! एक र्सहर्स हय ह््िीवर ! टर्दने तुरत लुिाई !! रार्सो क े आटर्द पवर में र्दोहा १२४ में चंर्द बरर्दाई उर्स र्समय की एक प्रचललत पंवारो क े उत्पतत्त की कहानी ललखता है ! तब र्सु ररष बानचष्ठ , क ुं र् रोचन रनचता महीं ! धररया ध्यान जमज होम मध्य बर्दी र्सरर्सा मरह तब प्रगट्यो प्रततहार , राज ततन ठौर र्सुधाररय फ ु नन प्रगट्यो चालुक्क, र्ब्म्हा ततन चाल र्सुर्साररय पांवार प्रगट्यो बीर वर , कह्यो ररष पंमार धनु चय पुरुष जुड़ ककनौ अतुल नाह रषषर्स षुद्द्न्त तनु !! श्री ऐ एफ रुर्ोल्फ द्वारा अनुवाटर्दत चंर्द बरर्दाई क े काव्य पृथ्वीराज रार्सो में र्दोहा २१ इंद्रवती ब्याह किा में ललखा है मजर्समे उल्लेख आता है की
  • 30. 28 कफरी जानी पांवार राम रघुवंश बबचारी जीवन जो उब्बरै तौ मरण क े वल र्संचारी !! महंकाल बर ततत्थ ततत्थ धारा उध्र्दारी ! ________________________________________________________________ ३१) र्सी व्ही वैद्य द्वारा ललखखत ककताब –History of Medieval Hindu India Volume II Early History of Rajput ( 750 to 1000 AD ) page 62 में उनक े टवचार ललखे है जो बताते है की परमारों को र्ब्म्ह क्षत्र कहा गया क्योंकक उन्होंने अपने प्रवर यार्द रखे ! Kshatriyas who had kept up the memory of their Pravara Rishis were called in later times Bramha-kshatra The Paramaras are of the Vasishtha gotra and are supposed to be even born of Vasishtha and hence they are ब्रम्होपेतक्षत्रेणक ु लीनााः .The explanation is often given that brahmakshatra may be explained – आिौब्राह्िण: पश्चात्क्क्षत्रत्रय: ! (र्ब्म्हक्षत्र का अिर हुआ की पहले र्ब्ाम्हण िे बार्दमे क्षतत्रय बने और राजा मुंज तिा राजा भोज को र्ब्म्हक्षत्र कहा गया है! ) __________________________________________________________ 32) पौवारा शब्द का अिर र्सन १८३५ में प्रकालशत Asiatic Researches: Or, Transactions of the Society ... Index Page no 155 Pauvara ,a tribe or country in the north - west of Bharatas empire ______________________________________________________________ 33) श्री राजवी अमर लर्सिंह द्वारा ललखखत Mediaeval History of Rajasthan- Western Rajasthan page no 13 क े अनुसार
  • 31. 29 Parmaras (Pravaras ) are of the Vashishtha Gotra with 3 pravaras. ___________________________________________________________ 34) The Cyclopedia of India and of Eastern & Southern Asia , Third Edition Volume IV, second edition year 1873 . Author – General Edward Balfour Page 669 POWAR or Puar or Pouar , a section of Rajpoots . ____________________________________________________ 35)Corpus Inscriptionum Indicarum Vol.VII part 2 , Introduction to Inscriptions of The Paramaras , chandellas , Kachchhapaghatas and other two Dynasties etc by Harihar Vitthal Trivedi , Hony Fellow of the epigraphical Society of India , Published by The Director General of Archaelogical Survey of India , Page no 58 –kalvan plate Inscription of the time of Bhojadeva Remarks Regarding above plate Page 55 – After the introductory blessing , svasti , the inscription furnishes the genealogy of the Pravamra ( Paramara) rulers ( of Malwa ) , naming Siyakadeva , his successor Vakpatirajdeva , his successor
  • 32. 30 Sindhurajdeva and His Successor Bhojdeva , all in general terms and supplying the only historical information that Vakpatirajdeva was a poet of high rank and also that Bhojdeva had vanquished the ruler of Karnataka , lata , Gurjjara , Chedi & Konkana . Bhoja’s Success over the Karnaatakas obviously refers to the Long drawn war which began from the time of Vakpati Munja and Tailapa . _____________________________________________________ 36) Book – Inscriptions of the Paramaras , Chandellas, Kachchapaghatas and two minor Dynasties , Part 1 , Author Mr H V Trivedi , published by Archaeological Survey of India , 1978 , Page no 30 – D C Ganguly suggested that Udyaditya was a distant relation of Bhoja . Relying on the evidence supplied by an inscription dated in the sixteenth Century and found at Udaipur in the Vidisha District , the same scholar held that Udayaditya was the son of Gyata ( Jnata ) , grandson of Gondala and Great Grandson of Suravira of Pravara ( Paramara) family. But the Controversy is set at nought by the statement of the Jainad Stone inscription , which describes Jagaddeva , the son of the Udayaditya as a Nephew of Bhoja . On the evidence of this inscription , H C Ray and V V Mirashi concluded that Udayaditya was a brother of Bhoja . ____________________________________________________ 37 ) Maharashtra State Gazetteers: Maharashtra – land and its people, Directorate of Government Printing , Stationary & Publication 1953 , Powar – Also called Panwar,Puar, Ponwar and Parmara Rajput. ____________________________________________________ 38) Book “Hindu World Vol. 2 An Encyclopedic Survey Of Wisdom” Benjamin Walker - ByBenjamin Walker, year 1995,
  • 33. 31 इर्स ककताब में लेखक पृष्ठ क्रमांक १८६पर वे ललखते है की The Paramaras are also known as the Pramara , Pavar , Powar , Pawar , Panwar , Ponwar and other variations of the name . _____________________________________________________ 39) श्री नामवीर लर्सिंह अपनी ककताब में ‘पृथ्वीराज रार्सो भाषा व् र्सारहत्य” में उर्स र्समय की भाषा का टवश्लेषण करते है जो बबि ु ल र्सही मालूम पड़ता है – पृष्ठ क्रमांक 58 मध्यग म की स्थस्थतत – अपभ्रंश की तरह रार्सो में भी मध्यग म को टवकल्प र्से ‘वँ’ कर र्देने की प्रवृतत टर्दखाई पर्ती है – क ु मारी - कवाँरी तोमर - तोवँर पांमार - पावाँर 40) श्री राजमखण र्सरमा द्वारा ललखखत “रहिंर्दी भाषा इततहार्स व् स्वरुप” इर्स ककताब में पृष्ठ क्रमांक ३३ में “पा” धातु का अिर रक्षा करना होता है ! _____________________________________________________________ 41)श्री पंरर्त रघुनन्दन शमा द्वारा ललखखत ककताब ‘वैटर्दक र्सम्पतत”क े पृष्ठ क्रमांक २९२ पर ललखा ममलता है की “पा” धातु का अिर रक्षा करना होता है तो “बप” धातु का अिर रक्षा करने वाला होता है ! _______________________________________________________________ 42)Mr R. L. Turner द्वारा ललखखत “A Comparative Dictionary of the Indo-Aryan Languages”इर्स ककताब क े पृष्ठ ४९४ में
  • 34. 32 र्संस्क ृ त शब्द प्रवर का अिर best यानन र्सवरश्रेष्ठ बताया गया है ! पाली व् प्राक ृ त में इर्से पवर कहा गया है मजर्सका अिर उत्तम होता है ! ___________________________________________________________ 43) Raja Yudhisthira: Kingship in Epic Mahabharata , year By Kevin McGrath इर्स अंग्रेजी ककताब में उल्लेख आता है – Arjuna and Krishna advance against the pravara ‘champion’ of the Magadhas. ___________________________________________________________ 44) कश्मीर क े कटव कल्हण द्वारा रनचत राजतरंमगनी नामक काव्य क े चतुिर तरंग में एक श्लोक आता है मजर्समे मनु मािाता श्रीराम इनको प्रवर राजा कहा गया है ! मनु मािाता रामार्दया बभूवु: प्रवरा नृपा ! अिभाटव तर्दिेsबप र्ब्ाम्हानैनर टवमानना !! स्किेऽनधरोप्य ननिेष्टिक ृ त प्रावार भूषणः । नन्दतद्भः र्सोपहार्संतै: र्सुज्जेरयं व्यनीयत । प्रच्छाद्य र्सत्ववान् वनं र्सोशक े नैव नोऽर्चितः । वृहद्राजवेत्युक्त्वा तस्मै स्वान्यंशुकान्यर्दात् ।१८९५ 45) र्सन १९७७ में Rajasthani Hindi sabdaKosh Volume 2 – इर्स ककताब में बद्रीप्रर्सार्द र्सकाररया ललखते है की – परमार – राजपूतो की एक जाती पँवार / शत्रुओ का नाश करनेवाला ____________________________________________________________
  • 35. 33 46)A Dictionary of Urdū, Classical Hindī, and English By John Thompson Platts (written year 1884 ) , में पृष्ठ क्रमांक २७५ पर पंवार शब्द का अिर एक राजपूत जाती का नाम बताया गया है ! ४७ ) “शेखावत और उनका र्समय” इर्स ककताब में श्री रघुनािलर्सिंह शेखावत र्सन १९९८ में पृष्ठ क्रमांक ८ पर ललखते है – “ टवमभन्न र्सूत्रों क े प्रवराध्यायो का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है की ककर्सी क ु ल क े प्रवर ऋबष वे पूवरज है मजन्होंने ऋग्वेर्द क े र्सूि रचे और उनक े द्वारा अनि की िुतत की ! यज्ञ करने वाला यजमान अनि र्से प्रािरना करता है की – हे अिे ! ऋग्वेर्द क े र्सूिो र्से मजन्होंने आपकी िुतत की उनका मै वंशज हु !” ४८) जय नारायण अर्सोपा द्वारा र्सन १९७६ में ललखखत ORIGIN of RAJPOOTS में वे ललखते है – They led the defence by taking up Shastra ( arms ) in place of shastra (scriptures) and thus achieved Paramarata ( efficiency of killing enemies ) It may be mentioned here that Powar is a geographical name which is borne by a number of communities who lived in this territory . ४९) श्री फ्रांलर्सर्स मेर्सन र्ी . र्ी द्वारा र्सन १८६८ में ललखखत ककताब PALI GRAMMER क े पृष्ठ क्रमांक १७१ / १७२में pavara surasura इर्स पाली शब्द का उल्लेख आता है ! पवर र्सुरार्सुर यानन उतम श्रेष्ठ र्सुर व् अर्सुर ऐर्सा ललखा ममलता है !
  • 36. 34 ५०) र्सन १८७२ में श्री Monier Williams द्वारा ललखखत A Sanskrit – English Dictionary क े अनुर्सार पृष्ठ क्रमांक ६४४ – Pravara – Most excellent , chief , principal , best , prominent , distinguished , exalted , eminent , better , greater , eldest __________________________________________________________ ५१) Transactions of the American Philosophical Society , Volume 40 Part 4 (Year 1950) THE NALARAYADAVADANTICARITA (ADVENTURES OF KING NALA AND DAVADANTI) A WorK IN OLD GUJARATI, Edited and translated with a grammatical analysis and glossary इर्स ककताब क े पृष्ठ क्रमांक ३५६ में श्री Mr. ERNEST BENDER (South Asia Regional Studies Department and Oriental Studies Department, University of Pennsylvania) शब्दों का अिर क ु छ इर्स प्रकार बताते है - pavara= ‘Excellent’ adj., obl. sg.; [Prakrut - pavara, Sanskrit. pravara] पृष्ठ क्रम ांक २७४ पर वे पांव रक अर्थ बत ते हुए लिखते है – H. Pamvara , cf.BP pavara (43) ‘excellent’ ___________________________________________________________ ५२) BUDDHIST HYBRID SANSKRITGRAMMAR AND DICTIONARY इर्स ककताब क े पृष्ठ क्रमांक ३३८ में श्री FRANKLIN EDGERTON, (Sterling Professor ofSanskrit and Comparative Philology, Yale University) पवर का ननम्नललखखत अिर बताते है – pavara ( = Pali id., MIndic for Skt. pravara), excellent
  • 37. 35 53) संिर्भ - THE JOURNAL OF THE ASIATIC SOCIETY, BENGAL EDITED BY THE SECRETARY. VOL. IX. PART I.—JANUARY TO JUNE, year 1840. पेज ५४८ मध्य प्रर्देश स्थस्थत उर्दयपुर (मजला टवटर्दशा) नीलक ं ठेश्वर मप्तन्दर लशलालेख का २ रा श्लोक – श्रीमान पावार वंस्यो नृपततिंच टववुध मालवंराज्य क्रीत्वा टवर्दाता र्सुरवीर भवततषलमभर्दैत पाबपनां भुषरहा ! ------------------------------------------------------------------------- 54) The Asiatic Journal and Monthly Register for British India and its Dependencies – Vol 15 January to June 1823 published from London – Page no 9 - Sir John Melcom Report on central India – The Rajpoots or Military class of Hindus , form a great Part of the population of Malwa . Some of these families trace there origin to a very early period . In the oldest record of Malwa , the rulers were the Chaur ( must be Tuar) and Powar Rajpoots. And so late as the eleventh Century . , it appears that great part of the Mewar and western Malwa were in possession of the Rajpoot Race . __________________________________________________________ 55) Book – Travels in Western India , a Visit to The sacred mounts of the Jains and the most Celebrated Shrines of Hindu Temples between Rajpootana and the Indus , with an account of the ancient city of Nehrwalla , published after death of Colonel James Todd in year 1839 –