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लोक और जनजातीय कला
महाराष्ट्र की वार्ली
Prof. Nameeta S. Sahare
નમિતા સહાર ે
ततलक तिक्षण महातिद्यालय पुणे
भारतातीर्ल र्लोक व आदिवासी कर्ला अदतशय पारंपाररक आदि साधी असूनही इतकी सजीव
आदि प्रभावशार्ली आहेत की ते आपोआपच िेशाच्या समृद्ध वारशाचे आकर्लन करतात.
Warli painting is a style of tribal art mostly created by the tribal people from the North Sahyadri Range
( Palghar District) in India.
Warli painting
•Warli tribal art is created by the tribal people
from the North Sahyadri Range which
encompasses cities such
as Dahanu, Talasari, Jawhar, Palghar, Mo
khada, and Vikramgadh of Palghar
district.
This tribal art was originated in Maharashtra, where it is
still practiced today.
िारली तित्रकला प्रामुख्याने मतहला
करतात. या तित्राांमध्ये पौरातणक पात्र
तक
ां िा देिताांिे स्वरुप दिशतिले जात
नाही तर सामातजक जीिनािे तित्रण
क
े ले आहे. दैनांतदन जीिनाच्या
घटनाांबरोबरि, मानिािे आतण
प्राण्ाांिे तित्र बनिले जातात
जे कोणत्याही योजनेतििाय,
सरळ िैलीत रांगिले जातात.
लोककला
• हमेिा से ही भारत की कलाएां और हस्ततिल्प इसकी साांस्क
ृ ततक और परम्परागत
प्रभाििीलता को अतभि्यक
् त करने का माध्यम बने रहे हैं। देि भर में फ
ै ले इसक
े
35 राज्योां और सांघ राज्य क्षेत्रोां की अपनी तििेष साांस्क
ृ ततक और पारम्पररक
पहिान है, जो िहाां प्रितलत कला क
े तभन्न-तभन्न रूपोां में तदखाई देती है। भारत क
े
हर प्रदेि में कला की अपनी एक तििेष िैली और पद्धतत है तजसे लोक कला क
े नाम
से जाना जाता है। लोककला क
े अलािा भी परम्परागत कला का एक अन्य रूप है
जो अलग-अलग जनजाततयोां और देहात क
े लोगोां में प्रितलत है। इसे जनजातीय कला
क
े रूप में िगीक
ृ त तकया गया है। भारत की लोक और जनजातीय कलाएां बहुत ही
पारम्पररक और साधारण होने पर भी इतनी सजीि और प्रभाििाली हैं तक उनसे
देि की समृद्ध तिरासत का अनुमान स्ित: हो जाता है।
• अपने परम्परागत सौांदयश भाि और प्रामातणकता क
े कारण भारतीय लोक कला की
अांतरराष्टरीय बाजार में सांभािना बहुत प्रबल है। भारत की ग्रामीण लोक तित्रकारी क
े
तिजाइन बहुत ही सुन्दर हैं तजसमें धातमशक और आध्यात्मिक तित्रोां को उभारा गया है।
भारत की सिाशतधक प्रतसद्ध लोक तित्रकलाएां है तबहार की मधुबनी तित्रकारी, ओतििा
राज्य की पतातित्र तित्रकारी, आन्ध्र प्रदेि की तनमशल तित्रकारी और इसी तरह लोक
क
े अन्य रूप हैं। तथातप, लोक कला क
े िल तित्रकारी तक ही सीतमत नहीां है। इसक
े
अन्य रूप भी हैं जैसे तक तमट्टी क
े बतशन, गृह सज्जा, जेिर, कपडा तिजाइन आतद।
िास्ति में भारत क
े क
ु छ प्रदेिोां में बने तमट्टी क
े बतशन तो अपने तितिष्ट और
परम्परागत सौांदयश क
े कारण तिदेिी पयशटकोां क
े बीि बहुत ही लोकतप्रय हैं।
पांजाब का भाांगिा, गुजरात का िाांतिया, असम को तबहु नृत्य
• इसक
े अलािा, भारत क
े आांितलक नृत्य जैसे तक पांजाब का भाांगिा, गुजरात का िाांतिया, असम
को तबहु नृत्य आतद भी, जो तक उन प्रदेिोां की साांस्क
ृ ततक तिरासत को अतभि्यक
् त करने हैं,
भारतीय लोक कला क
े क्षेत्र क
े प्रमुख दािेदार हैं। इन लोक नृत्योां क
े माध्यम से लोग हर मौक
े
जैसे तक नई ऋतु का स्िागत, बि्िे का जन्म, िादी, त्योहार आतद पर अपना उल्लास ि्यक
् त
करते हैं। भारत सरकार और सांस्थाओां ने कला क
े उन रूपोां को बढािा देने का हर प्रयास तकया
है, जो भारत की साांस्क
ृ ततक पहिान का एक महत्िपूणश तहस्सा हैं।
• कला क
े उत्थान क
े तलए तकए गए भारत सरकार और अन्य सांगठनोां क
े सतत प्रयासोां की िजह से
ही लोक कला की भाांतत जनजातीय कला में पयाशप्त रूप से प्रगतत हुई है। जनजातीय कला
सामान्यत: ग्रामीण इलाकोां में देखी गई उस सृजनात्मक ऊजाश को प्रतततबत्मित करती है जो
जनजातीय लोगोां को तिल्पकाररता क
े तलए प्रेररत करती है। जनजातीय कला कई रूपोां में मौजूद
है जैसे तक तभति तित्र, कबीला नृत्य, कबीला सांगीत आतद
िैली की दृति से देखें तो उनकी पहिान यही है तक ये
साधारण सी तमट्टी क
े बेस पर मात्र सफ
े द रांग से की
गई तित्रकारी है तजसमें यदा-कदा लाल और पीले
तबन्दु बना तदए जाते हैं।
यह सफ
े ि रंग चावर्ल को बारीक पीस कर
बनाया गया सफ
े ि चूिण होता है। रंग की
इस सािगी की कमी इसक
े दवषय की
प्रबर्लता से ढक जाती है। इसक
े दवषय
बहुत ही आवृदि और प्रतीकात्मक होते
हैं। वार्ली क
े पार्लघाट्, शािी-दववाह क
े
भगवान को िशाणने वार्ले बहुत से दचत्ों में
प्राय: घोडे को भी दिखाया जाता है दजस
पर िू र्ल्हा-िुर्ल्हन सवार होते हैं। यह दचत्
बहुत पदवत् माना जाता है और इसक
े बाि
दववाह सम्पन्न नहीं हो सकता है। ये दचत्
स्थानीय र्लोगों की सामादजक और
धादमणक अदभर्लाषाओं को भी पूरा करते हैं।
ऐसा माना जाता है दक ये दचत् भगवान की
शक्तियों का आह्वान करते हैं।
Warli Paintings
िाली लोक तित्रकला
• महाराष्टर अपनी िाली लोक तित्रकला क
े
तलए प्रतसद्ध है। िाली एक बहुत बडी
जनजातत है जो पि्तिमी भारत क
े मुम्बई
िहर क
े उिरी बाह्मांिल में बसी है। भारत
क
े इतने बडे महानगर क
े इतने तनकट बसे
होने क
े बािजूद िाली क
े आतदिातसयोां पर
आधुतनक िहरीकरण कोई प्रभाि नहीां पडा
है। 1970 क
े प्रारम्भ में पहली बार िाली
कला क
े बारे में पता िला। हालाांतक इसका
कोई तलत्मखत प्रमाण तो नहीां तमलता तक इस
कला का प्रारम्भ कब हुआ लेतकन दसिीां
सदी ई.पू. क
े आरत्मिक काल में इसक
े होने
क
े सांक
े त तमलते हैं। िाली, महाराष्टर की
िाली जनजातत की रोजमराश की तजांदगी और
सामातजक जीिन का सजीि तित्रण है।
िाली तित्रकला • िाली, महाराष्टर की िाली जनजातत की
रोजमराश की तजांदगी और सामातजक
जीिन का सजीि तित्रण है। यह
तित्रकारी िे तमट्टी से बने अपने कि्िे
घरोां की दीिारोां को सजाने क
े तलए
करते थे। तलतप का ज्ञान नहीां होने क
े
कारण लोक िाताशओां , लोक
सातहत्यक
े l आम लोगोां तक पहुांिाने को
यही एकमात्र साधन था। मधुबनी की
िटकीली तित्रकारी क
े मुकाबले यह
तित्रकला बहुत साधारण है।
फसर्ल की बुवाई, फसर्ल की कट्ाई करते हुए व्यक्ति की आक
ृ दतयां
• तित्रकारी का काम मुख्य रूप से मतहलाएां करती है। इन तित्रोां में पौरातणक
पात्रोां, अथिा देिी-देिताओां क
े रूपोां को नहीां दिाशया जाता बत्मि सामातजक
जीिन क
े तिषयोां का तित्रण तकया जाता है। रोजमराश की तजांदगी से जुडी
घटनाओां क
े साथ-साथ मनुष्योां और पिुओां क
े तित्र भी बनाए जाते हैं जो तबना
तकसी योजना क
े , सीधी-सादी िैली में तितत्रत तकए जाते हैं। महाराष्टर की
जनजातीय (आतदिासी) तित्रकारी का यह कायश परम्परागत रूप से िाली क
े
घरोां में तकया जाता है। तमट्टी की कि्िी दीिारोां पर बने सफ
े द रांग क
े ये तित्र
प्रागैततहातसक गुफा तित्रोां की तरह तदखते हैं और सामान्यत: इनमें तिकार,
नृत्य फसल की बुिाई, फसल की कटाई करते हुए ि्यत्मि की आक
ृ ततयाां
दिाशई जाती हैं।
िाली : एक तििाल सांसार
• िाली क
े तित्रोां में
सीधी लाइन िायद ही देखने को तमलती है। कई तबन्दुओां
और छोटी-छोटी रेखाओां (िेि) को तमलाकर एक बडी
रेखा बनाई जाती है। हाल ही में तिल्पकारोां ने अपने तित्रोां
में सीधी रेखाएां खीांिनी िुरू कर दी है। इन तदनोां तो पुरुषोां
ने भी तित्रकारी िुरू कर दी है और िे यह तित्रकारी प्राय:
कागज पर करते हैं तजनमें िाली की सुन्दर परम्परागत
तस्िीरें और आधुतनक उपकरण जैसे तक साइतकल आतद
बनाए जाते हैं। कागज पर की गई िाली तित्रकार काफी
लोकतप्रय हो गई है और अब पूरे भारत में इसकी तबक्री
होती है। आज, कागज और कपडे पर छोटी-छोटी
तित्रकारी की जाती है पर दीिार पर तित्र अथिा बडे-बडे
तभति तित्र ही देखने में सबसे सुन्दर लगते हैं जो िातलशयोां
क
े एक तििाल और जादुई सांसार की छति को प्रस्तुत
करते हैं। िाली आज भी परम्परा से जुडे हैं लेतकन साथ
ही िे नए तििारोां को भी ग्रहण कर रहे हैं जो बाजार की
नई िुनौततयोां का सामना करने में उनकी मदद करते हैं।
Some Questions ??
Where are Madhubani and Warli art practiced?
पांजाब का -----------, गुजरात का ----------, असम का ---------- नृत्य
References:
• file:///C:/Users/c_nam/Downloads/warli%20bird%20and%20tree.html
• https://in.pinterest.com/pin/645211084104924170/visual-search/?cropSource=6&h=562&w=544&x=10&y=10
• https://www.shutterstock.com/image-vector/indian-tribal-painting-warli-house-143534134
• medium.com › the-history-and-origin-of-warli-painting

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  • 1. लोक और जनजातीय कला महाराष्ट्र की वार्ली Prof. Nameeta S. Sahare નમિતા સહાર ે ततलक तिक्षण महातिद्यालय पुणे
  • 2. भारतातीर्ल र्लोक व आदिवासी कर्ला अदतशय पारंपाररक आदि साधी असूनही इतकी सजीव आदि प्रभावशार्ली आहेत की ते आपोआपच िेशाच्या समृद्ध वारशाचे आकर्लन करतात. Warli painting is a style of tribal art mostly created by the tribal people from the North Sahyadri Range ( Palghar District) in India.
  • 3. Warli painting •Warli tribal art is created by the tribal people from the North Sahyadri Range which encompasses cities such as Dahanu, Talasari, Jawhar, Palghar, Mo khada, and Vikramgadh of Palghar district.
  • 4. This tribal art was originated in Maharashtra, where it is still practiced today. िारली तित्रकला प्रामुख्याने मतहला करतात. या तित्राांमध्ये पौरातणक पात्र तक ां िा देिताांिे स्वरुप दिशतिले जात नाही तर सामातजक जीिनािे तित्रण क े ले आहे. दैनांतदन जीिनाच्या घटनाांबरोबरि, मानिािे आतण प्राण्ाांिे तित्र बनिले जातात जे कोणत्याही योजनेतििाय, सरळ िैलीत रांगिले जातात.
  • 5. लोककला • हमेिा से ही भारत की कलाएां और हस्ततिल्प इसकी साांस्क ृ ततक और परम्परागत प्रभाििीलता को अतभि्यक ् त करने का माध्यम बने रहे हैं। देि भर में फ ै ले इसक े 35 राज्योां और सांघ राज्य क्षेत्रोां की अपनी तििेष साांस्क ृ ततक और पारम्पररक पहिान है, जो िहाां प्रितलत कला क े तभन्न-तभन्न रूपोां में तदखाई देती है। भारत क े हर प्रदेि में कला की अपनी एक तििेष िैली और पद्धतत है तजसे लोक कला क े नाम से जाना जाता है। लोककला क े अलािा भी परम्परागत कला का एक अन्य रूप है जो अलग-अलग जनजाततयोां और देहात क े लोगोां में प्रितलत है। इसे जनजातीय कला क े रूप में िगीक ृ त तकया गया है। भारत की लोक और जनजातीय कलाएां बहुत ही पारम्पररक और साधारण होने पर भी इतनी सजीि और प्रभाििाली हैं तक उनसे देि की समृद्ध तिरासत का अनुमान स्ित: हो जाता है।
  • 6. • अपने परम्परागत सौांदयश भाि और प्रामातणकता क े कारण भारतीय लोक कला की अांतरराष्टरीय बाजार में सांभािना बहुत प्रबल है। भारत की ग्रामीण लोक तित्रकारी क े तिजाइन बहुत ही सुन्दर हैं तजसमें धातमशक और आध्यात्मिक तित्रोां को उभारा गया है। भारत की सिाशतधक प्रतसद्ध लोक तित्रकलाएां है तबहार की मधुबनी तित्रकारी, ओतििा राज्य की पतातित्र तित्रकारी, आन्ध्र प्रदेि की तनमशल तित्रकारी और इसी तरह लोक क े अन्य रूप हैं। तथातप, लोक कला क े िल तित्रकारी तक ही सीतमत नहीां है। इसक े अन्य रूप भी हैं जैसे तक तमट्टी क े बतशन, गृह सज्जा, जेिर, कपडा तिजाइन आतद। िास्ति में भारत क े क ु छ प्रदेिोां में बने तमट्टी क े बतशन तो अपने तितिष्ट और परम्परागत सौांदयश क े कारण तिदेिी पयशटकोां क े बीि बहुत ही लोकतप्रय हैं।
  • 7. पांजाब का भाांगिा, गुजरात का िाांतिया, असम को तबहु नृत्य • इसक े अलािा, भारत क े आांितलक नृत्य जैसे तक पांजाब का भाांगिा, गुजरात का िाांतिया, असम को तबहु नृत्य आतद भी, जो तक उन प्रदेिोां की साांस्क ृ ततक तिरासत को अतभि्यक ् त करने हैं, भारतीय लोक कला क े क्षेत्र क े प्रमुख दािेदार हैं। इन लोक नृत्योां क े माध्यम से लोग हर मौक े जैसे तक नई ऋतु का स्िागत, बि्िे का जन्म, िादी, त्योहार आतद पर अपना उल्लास ि्यक ् त करते हैं। भारत सरकार और सांस्थाओां ने कला क े उन रूपोां को बढािा देने का हर प्रयास तकया है, जो भारत की साांस्क ृ ततक पहिान का एक महत्िपूणश तहस्सा हैं। • कला क े उत्थान क े तलए तकए गए भारत सरकार और अन्य सांगठनोां क े सतत प्रयासोां की िजह से ही लोक कला की भाांतत जनजातीय कला में पयाशप्त रूप से प्रगतत हुई है। जनजातीय कला सामान्यत: ग्रामीण इलाकोां में देखी गई उस सृजनात्मक ऊजाश को प्रतततबत्मित करती है जो जनजातीय लोगोां को तिल्पकाररता क े तलए प्रेररत करती है। जनजातीय कला कई रूपोां में मौजूद है जैसे तक तभति तित्र, कबीला नृत्य, कबीला सांगीत आतद
  • 8. िैली की दृति से देखें तो उनकी पहिान यही है तक ये साधारण सी तमट्टी क े बेस पर मात्र सफ े द रांग से की गई तित्रकारी है तजसमें यदा-कदा लाल और पीले तबन्दु बना तदए जाते हैं। यह सफ े ि रंग चावर्ल को बारीक पीस कर बनाया गया सफ े ि चूिण होता है। रंग की इस सािगी की कमी इसक े दवषय की प्रबर्लता से ढक जाती है। इसक े दवषय बहुत ही आवृदि और प्रतीकात्मक होते हैं। वार्ली क े पार्लघाट्, शािी-दववाह क े भगवान को िशाणने वार्ले बहुत से दचत्ों में प्राय: घोडे को भी दिखाया जाता है दजस पर िू र्ल्हा-िुर्ल्हन सवार होते हैं। यह दचत् बहुत पदवत् माना जाता है और इसक े बाि दववाह सम्पन्न नहीं हो सकता है। ये दचत् स्थानीय र्लोगों की सामादजक और धादमणक अदभर्लाषाओं को भी पूरा करते हैं। ऐसा माना जाता है दक ये दचत् भगवान की शक्तियों का आह्वान करते हैं।
  • 10. िाली लोक तित्रकला • महाराष्टर अपनी िाली लोक तित्रकला क े तलए प्रतसद्ध है। िाली एक बहुत बडी जनजातत है जो पि्तिमी भारत क े मुम्बई िहर क े उिरी बाह्मांिल में बसी है। भारत क े इतने बडे महानगर क े इतने तनकट बसे होने क े बािजूद िाली क े आतदिातसयोां पर आधुतनक िहरीकरण कोई प्रभाि नहीां पडा है। 1970 क े प्रारम्भ में पहली बार िाली कला क े बारे में पता िला। हालाांतक इसका कोई तलत्मखत प्रमाण तो नहीां तमलता तक इस कला का प्रारम्भ कब हुआ लेतकन दसिीां सदी ई.पू. क े आरत्मिक काल में इसक े होने क े सांक े त तमलते हैं। िाली, महाराष्टर की िाली जनजातत की रोजमराश की तजांदगी और सामातजक जीिन का सजीि तित्रण है।
  • 11. िाली तित्रकला • िाली, महाराष्टर की िाली जनजातत की रोजमराश की तजांदगी और सामातजक जीिन का सजीि तित्रण है। यह तित्रकारी िे तमट्टी से बने अपने कि्िे घरोां की दीिारोां को सजाने क े तलए करते थे। तलतप का ज्ञान नहीां होने क े कारण लोक िाताशओां , लोक सातहत्यक े l आम लोगोां तक पहुांिाने को यही एकमात्र साधन था। मधुबनी की िटकीली तित्रकारी क े मुकाबले यह तित्रकला बहुत साधारण है।
  • 12. फसर्ल की बुवाई, फसर्ल की कट्ाई करते हुए व्यक्ति की आक ृ दतयां • तित्रकारी का काम मुख्य रूप से मतहलाएां करती है। इन तित्रोां में पौरातणक पात्रोां, अथिा देिी-देिताओां क े रूपोां को नहीां दिाशया जाता बत्मि सामातजक जीिन क े तिषयोां का तित्रण तकया जाता है। रोजमराश की तजांदगी से जुडी घटनाओां क े साथ-साथ मनुष्योां और पिुओां क े तित्र भी बनाए जाते हैं जो तबना तकसी योजना क े , सीधी-सादी िैली में तितत्रत तकए जाते हैं। महाराष्टर की जनजातीय (आतदिासी) तित्रकारी का यह कायश परम्परागत रूप से िाली क े घरोां में तकया जाता है। तमट्टी की कि्िी दीिारोां पर बने सफ े द रांग क े ये तित्र प्रागैततहातसक गुफा तित्रोां की तरह तदखते हैं और सामान्यत: इनमें तिकार, नृत्य फसल की बुिाई, फसल की कटाई करते हुए ि्यत्मि की आक ृ ततयाां दिाशई जाती हैं।
  • 13.
  • 14. िाली : एक तििाल सांसार • िाली क े तित्रोां में सीधी लाइन िायद ही देखने को तमलती है। कई तबन्दुओां और छोटी-छोटी रेखाओां (िेि) को तमलाकर एक बडी रेखा बनाई जाती है। हाल ही में तिल्पकारोां ने अपने तित्रोां में सीधी रेखाएां खीांिनी िुरू कर दी है। इन तदनोां तो पुरुषोां ने भी तित्रकारी िुरू कर दी है और िे यह तित्रकारी प्राय: कागज पर करते हैं तजनमें िाली की सुन्दर परम्परागत तस्िीरें और आधुतनक उपकरण जैसे तक साइतकल आतद बनाए जाते हैं। कागज पर की गई िाली तित्रकार काफी लोकतप्रय हो गई है और अब पूरे भारत में इसकी तबक्री होती है। आज, कागज और कपडे पर छोटी-छोटी तित्रकारी की जाती है पर दीिार पर तित्र अथिा बडे-बडे तभति तित्र ही देखने में सबसे सुन्दर लगते हैं जो िातलशयोां क े एक तििाल और जादुई सांसार की छति को प्रस्तुत करते हैं। िाली आज भी परम्परा से जुडे हैं लेतकन साथ ही िे नए तििारोां को भी ग्रहण कर रहे हैं जो बाजार की नई िुनौततयोां का सामना करने में उनकी मदद करते हैं।
  • 15. Some Questions ?? Where are Madhubani and Warli art practiced? पांजाब का -----------, गुजरात का ----------, असम का ---------- नृत्य References: • file:///C:/Users/c_nam/Downloads/warli%20bird%20and%20tree.html • https://in.pinterest.com/pin/645211084104924170/visual-search/?cropSource=6&h=562&w=544&x=10&y=10 • https://www.shutterstock.com/image-vector/indian-tribal-painting-warli-house-143534134 • medium.com › the-history-and-origin-of-warli-painting