ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
1. अक्षय स्त्रोत
यह स्वयं सिद्ध सिद्धान्त है सि सिििे पाि िो वस्तु है, वही वह दू िरे िो दे
ििता हे। सितनी मात्रा में वह वस्तु उििे पाि है, उतनी ही मात्रा में वह
दू िरे िो दे ििता है। यसद हम पूि िी रात में चांदनी में बैठिर आशा िरें
सि हमें चन्द्रमा गमी पहंचा देगा तो हमें
सनराशा ही हाथ लगेगी। उिी प्रिार यसद
हम िेठ िी दोपहरी में िूयय िे ठण्डि
िी आशा िरें तो भी हमें सनराशा होगी।
चन्द्रमा में गमी और िूयय में ठण्डि है ही
नही तो वे बेचारे हमें िहां िे देंगे। अब
हम मात्रा िी बात लें। यसद सििी िे पाि एि िरोड़ रूपये हैं, तो वह हमें
प्रिन्न होिर दि हिार, बीि हिार और असिि िे असिि एि िरोड़ रूपये
दे ििता है। यसद इििे बाद भी हमें दि रूपया िी आवश्यिता हो तो हमें
नहीं दे ििे गा। इि स्वयं सिद्ध सिद्धान्त िे िंदभय में हम मानव मन िा
सवश्लेषण िरें। उपसनषद् ने घोषणा िी है सि स्वल्प में िुख नहीं। मनुष्य िा
स्वभाव है सि वह प्रत्येि अच्छी वस्तु िी चरम िीमा िो पाना चाहता है, सिर
वह एि वस्तु िे ही िंतुष्ट होने वाला नहीं है। ऐिा िोई भी व्यक्ति नहीं है िो
मात्र सवद्या िे िंतुष्ट हो, अथवा िो मात्र िन चाहता हो। ऐिा िोई व्यक्ति नहीं
समलेगा िो िुन्दर स्वास्थ्य न चाहता हो। िीसतय, असििार, सवद्वता, िौन्दयय िभी
इन वस्तुओं िो चाहते हैं, वह भी प्रचुर मात्रा में। िंिार में दो प्रिार िी वस्तुएं
हैं, एि तो वे सिनमें वह वस्तु सिििी हमें चाह है, है ही नहीं। िे वल उििा
आभाि मात्र है यथा मृग िल, रेत में िल न होिर मात्र उििा प्रतीि है।
दू िरी वे वस्तुएं सिनमें हमारी वांसित वस्तुएं हैं, पर अिीसमत मात्रा में नहीं,
िैिे िू ल में िीसमत मात्रा में ही पराग िंभव है। मनुष्य िा िायय पारि पत्थर
िे नहीं चल ििता क्ोंसि वह लोहे िे िोना बनािर उिे िनवान बना ििता
है, वह उिे सवद्या नहीं दे ििता। मनुष्य िो तो सचन्तामसण चासहए सिििे वह
अपनी िभी इच्छाएं पूरी िर ििे । सचन्तामसण, वह अक्षय स्त्रोत है िहां िभी
वांसित वस्तुओं िा अटू ट भण्डार है, प्रत्येि िे भीतर क्तथथत है। आवश्यिता
Brahmachari Girish Ji
2. है उिे पहचानने िी और उििी िभी क्षमताओं िो िायय क्षेत्र में उतारने िी।
वह अटू ट भण्डार चेतना िी स्वाभासवि क्तथथसत में, िहां अिीम शाक्तन्त है,
िुरसक्षत है। भावातीत ध्यान वह चेि है सिििे द्वारा हम इि चेतना बैंि िे
मनचाही वस्तु प्राप्त िर ििते हैं।
आध्यात्म और विज्ञान
आम िारणा है सि वैज्ञासनि उन्नसत िे मानव िी िमय पर आथथा सिग गयी है।
यह सवचार भ्ांसत मूलि है क्ोंसि िमय और सवज्ञान दोनों िा उद्देष्य एि ही है-
शाश्वत ित्य िी खोि। उनिे मागय और िायय क्षेत्र अवश्य सभन्न हैं। वास्तव में
आध्यात्म और सवज्ञान परस्पर सवरोिी नहीं हैं, वे एि दू िरे िे पूरि हैं। सवज्ञान
भौसति िरातल और पदाथों पर प्रयोग और सवष्लेषण िर ित्य िी खोि
िरता है, िबसि आध्यात्म मानव िा मानसिि सविाि िर उििी भावनाओं
िो शुद्ध, पररष्कृ त िर उििे आवरण िो उच्च स्तर पर ले िाता है। िमय िी
िई पररभाषायें िी गयी हैं परंतु िबिे उपयुि पररभाषा है- वह िीवन पद्धसत
िो मानव िी िहि चेतना िी पूणयता िी ओर िाने वाली गसत िे अनुिू ल हो।
इििा स्वाभासवि पररणाम है उन व्यविानों िो हटाना िो चेतना िे
स्वाभासवि मागय पर उििी गसत िो अवरुद्ध िरते हैं। आिुसनि युग िे
िवयश्रेष्ठ वैज्ञासनि आइंस्टीन िा िथन है सि ‘‘आध्यात्म सबना सवज्ञान अंिा है
और सवज्ञान सवहीन आध्यात्म लंगड़ा है।” तात्पयय यह है सि आध्यात्म सवज्ञान
िा मागयदशयन िरता है सि उिे अपनी शक्ति िा उपयोग सिि प्रिार िरना
चासहए। इि मागयदशयन िे सबना सवज्ञान सवध्वंििारी बन ििता है। सवज्ञान
सबना आध्यात्म िे अपने उच्च उद्देश्यों िो मूतयरूप् नहीं दे ििता। सवज्ञान िी
उन्नसत िे अध्यात्म िा िच्चा रूप सनखरेगा और सबनोवा िी िी भसवष्य वाणी
ब्रह्म सवद्या सवज्ञान द्वारा प्रसतसष्ठत होगी, यह ित्य सिद्ध होने वाली है। महसषय
महेश योगी िी वेद और सवज्ञान िा िमन्वय िरते हैं।
ब्रह्मचारी सगरीश
िु लासिपसत, महसषय महेश योगी वैसदि सवश्वसवद्यालय
एवं महासनदेशि, महसषय सवश्व शांसत िी वैसश्वि राििानी
भारत िा ब्रह्मथथान, िरौंदी, सिला िटनी (पूवय में िबलपुर), मध्य प्रदेश