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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
Peritoneal dialysis is a treatment for kidney failure that uses the lining of your abdomen, or belly, to filter your blood inside your body. Health care providers call this lining the peritoneum. A more convenient method of dialysis in home itself.
A Brief description of Tracheotomy.. Good enough for Undergraduate MBBS Students. . You can staright away download this and present in your class seminars.. ;)
Peritoneal dialysis is a way to remove waste products from your blood when your kidneys can no longer do the job adequately.
A cleansing fluid flows through a tube (catheter) into part of your abdomen and filters waste products from your blood. After a prescribed period of time, the fluid with filtered waste products flows out of your abdomen and is discarded.
Peritoneal dialysis differs from hemodialysis, a more commonly used blood-filtering procedure. With peritoneal dialysis, you can give yourself treatments at home, at work or while traveling.
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Peritoneal dialysis is a way to remove waste products from your blood when your kidneys can no longer do the job adequately.
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Peritoneal dialysis differs from hemodialysis, a more commonly used blood-filtering procedure. With peritoneal dialysis, you can give yourself treatments at home, at work or while traveling.
Peritoneal Dialysis (PD): type of dialysis that uses peritoneal semipermeable membrane to remove excessive wastes and fluids from the blood in peritoneal vessels to a dialysate solution that implant into peritoneal cavity than drain it outside the body.
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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
Peritoneal Dialysis (PD): type of dialysis that uses peritoneal semipermeable membrane to remove excessive wastes and fluids from the blood in peritoneal vessels to a dialysate solution that implant into peritoneal cavity than drain it outside the body.
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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन्द्रियग्राह्य है,
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रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
सुंदरकांड पाठ संस्कृत मे लिखित संपूर्ण रामायण के 7 पुस्तक (कांड) मे से 5 वा पुस्तक है जिसके एकमात्र बार पाठ कर लेणे से यह माना जाता है की पाठ करणे वले को संपूर्ण रामायण का फल मिल जाता है।
sundar kand pdf download in hindi, Sundarkand PDF DownloadLucent GK Today
In our SundarKand PDF you will find the special importance of Sundar Kand in various events described in Ramayana. The Ramayana, one of the most revered and ancient of the Indian epics, describes the life and adventures of Lord Rama, an incarnation of the Hindu god Vishnu, his wife Sita and his faithful companion Hanuman.
What is Sundarkand (Sundarkand PDF)?
Sundar Kand is the fifth book of Ramayana written by the ancient sage Valmiki. It is considered the heart of the epic, focusing primarily on the heroic deeds of the powerful monkey god Hanuman.
Ram Lakshman Parshuram Samvad PPT Poem Class 10 CBSEOne Time Forever
This is a PPT Based on the Poem of Class 10 CBSE Ram-Lakshman-Parshuram Samvad Including It's Summary, Word Meaning, Question-Answers, Each Paragraph Explanation Along With Some Pictures. Hopefully It Helps You. Thank You.
Lord Hanuman is a famous god of the earth and he is one of the most powerful Gods in Hinduism. Hanuman Chalisa App come with very large collection of hanuman bhajan & Hanuman chalisa.
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March-2020 Free Monthly Hindi Astrology Magazines, You can read in Monthly GURUTVA JYOTISH Magazines Astrology, Numerology, Vastu, Gems Stone, Mantra, Yantra, Tantra, Kawach & ETC Related Article absolutely free of cost.
GURUTVA JYOTISH MONTHLY E-MAGAZINE MARCH-2020
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका मार्च-2020 में प्रकशित लेख
चैत्र नवरात्र विशेष विशेष
April-2020 Vol: 1 Free Monthly Hindi Astrology Magazines, You can read in Monthly GURUTVA JYOTISH Magazines Astrology, Numerology, Vastu, Gems Stone, Mantra, Yantra, Tantra, Kawach & ETC Related Article absolutely free of cost.
GURUTVA JYOTISH MONTHLY E-MAGAZINE
APRIL-2020 VOL: 1
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अप्रैल-2020 | अंक 1
में प्रकशित लेख राम नवमी विशेष
1. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
उ तर का ड
ी गणेशाय नमः
ीजानक व लभो वजयते
ीरामच रतमानस
स तम सोपान
(उ तरका ड)
लोक
कक क ठाभनीलं सु रवर वलस व पादा ज च नं
े
शोभा यं पीतव
ं सर सजनयनं सवदा सु स नम ्।
पाणौ नाराचचापं क प नकरयु तं ब धु ना से यमानं
नौमी यं जानक शं रघु वरम नशं पु पका ढरामम ्।।1।।
कोसले
पदक जम जु लौ कोमलावजमहे शवि दतौ।
जानक करसरोजला लतौ च तक य मनभृ गस गनौ।।2।।
क दइ दुदरगौरसु दरं अि बकाप तमभी ट स दम ्।
ु
का णीककलक जलोचनं नौ म शंकरमनंगमोचनम ्।।3।।
दो0-रहा एक दन अव ध कर अ त आरत पु र लोग।
जहँ तहँ सोच हं ना र नर कृ स तन राम बयोग।।
–*–*–
सगु न हो हं सु ंदर सकल मन स न सब कर।
े
भु आगवन जनाव जनु नगर र य चहु ँ फर।।
े
कौस या द मातु सब मन अनंद अस होइ।
आयउ भु ी अनु ज जु त कहन चहत अब कोइ।।
भरत नयन भु ज दि छन फरकत बार हं बार।
जा न सगु न मन हरष अ त लागे करन बचार।।
रहे उ एक दन अव ध अधारा। समु झत मन दुख भयउ अपारा।।
कारन कवन नाथ न हं आयउ। जा न क टल कध मो ह बसरायउ।।
ु
2. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
अहह ध य ल छमन बड़भागी। राम पदार बंद ु अनु रागी।।
कपट क टल मो ह भु ची हा। ताते नाथ संग न हं ल हा।।
ु
ज करनी समु झै भु मोर । न हं न तार कलप सत कोर ।।
जन अवगु न भु मान न काऊ। द न बंधु अ त मृदुल सु भाऊ।।
मो र िजयँ भरोस ढ़ सोई। म लह हं राम सगु न सु भ होई।।
बीत अव ध रह ह ज
ाना। अधम कवन जग मो ह समाना।।
दो0-राम बरह सागर महँ भरत मगन मन होत।
ब
प ध र पवन सु त आइ गयउ जनु पोत।।1(क)।।
बै ठ दे ख कसासन जटा मु कट कृ स गात।
ु
ु
राम राम रघु प त जपत
वत नयन जलजात।।1(ख)।।
–*–*–
दे खत हनू मान अ त हरषेउ। पु लक गात लोचन जल बरषेउ।।
मन महँ बहु त भाँ त सु ख मानी। बोलेउ वन सु धा सम बानी।।
जासु बरहँ सोचहु दन राती। रटहु नरं तर गु न गन पाँती।।
रघु क ल तलक सु जन सु खदाता। आयउ क सल दे व मु न ाता।।
ु
ु
रपु रन जी त सु जस सु र गावत। सीता स हत अनु ज भु आवत।।
सु नत बचन बसरे सब दूखा। तृषावंत िज म पाइ पयू षा।।
को तु ह तात कहाँ ते आए। मो ह परम
य बचन सु नाए।।
मा त सु त म क प हनु माना। नामु मोर सु नु कृ पा नधाना।।
द नबंधु रघु प त कर कं कर। सु नत भरत भटे उ उ ठ सादर।।
मलत ेम न हं दयँ समाता। नयन
वत जल पु ल कत गाता।।
क प तव दरस सकल दुख बीते। मले आजु मो ह राम पर ते।।
बार बार बू झी क सलाता। तो कहु ँ दे उँ काह सु नु ाता।।
ु
ए ह संदेस स रस जग माह ं। क र बचार दे खेउँ कछ नाह ं।।
ु
ना हन तात उ रन म तोह । अब भु च रत सु नावहु मोह ।।
तब हनु मंत नाइ पद माथा। कहे सकल रघु प त गु न गाथा।।
कहु क प कबहु ँ कृ पाल गोसा । सु मर हं मो ह दास क ना ।।
3. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
छं 0- नज दास य रघु बंसभू षन कबहु ँ मम सु मरन कर् यो।
सु न भरत बचन बनीत अ त क प पु ल कत तन चरनि ह पर् यो।।
रघु बीर नज मु ख जासु गु न गन कहत अग जग नाथ जो।
काहे न होइ बनीत परम पु नीत सदगु न संधु सो।।
दो0-राम ान
य नाथ तु ह स य बचन मम तात।
पु न पु न मलत भरत सु न हरष न दयँ समात।।2(क)।।
सो0-भरत चरन स नाइ तु रत गयउ क प राम प हं।
कह कसल सब जाइ हर ष चलेउ भु जान च ढ़।।2(ख)।।
ु
–*–*–
हर ष भरत कोसलपु र आए। समाचार सब गु र ह सु नाए।।
पु न मं दर महँ बात जनाई। आवत नगर कसल रघु राई।।
ु
सु नत सकल जननीं उ ठ धा । क ह भु कसल भरत समु झाई।।
ु
समाचार पु रबा स ह पाए। नर अ ना र हर ष सब धाए।।
द ध दुबा रोचन फल फला। नव तु लसी दल मंगल मू ला।।
ू
भ र भ र हे म थार भा मनी। गावत च लं संधु संधु रगा मनी।।
जे जैसे हं तैसे हं उ ट धाव हं। बाल बृ कहँ संग न लाव हं।।
एक एक ह कहँ बू झ हं भाई। तु ह दे खे दयाल रघु राई।।
अवधपु र
बहइ सु हावन
भु आवत जानी। भई सकल सोभा क खानी।।
ै
बध समीरा। भइ सरजू अ त नमल नीरा।।
दो0-हर षत गु र प रजन अनु ज भू सु र बृंद समेत।
चले भरत मन ेम अ त स मु ख कृ पा नकत।।3(क)।।
े
बहु तक चढ़ अटा र ह नरख हं गगन बमान।
दे ख मधु र सु र हर षत कर हं सु मंगल गान।।3(ख)।।
राका स स रघु प त पु र संधु दे ख हरषान।
बढ़यो कोलाहल करत जनु ना र तरं ग समान।।3(ग)।।
–*–*–
इहाँ भानु कल कमल दवाकर। क प ह दे खावत नगर मनोहर।।
ु
सु नु कपीस अंगद लंकसा। पावन पु र
े
चर यह दे सा।।
4. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
ज य प सब बैकंु ठ बखाना। बेद पु रान ब दत जगु जाना।।
अवधपु र सम
य न हं सोऊ। यह संग जानइ कोउ कोऊ।।
ज मभू म मम पु र सु हाव न। उ तर द स बह सरजू पाव न।।
जा म जन ते बन हं यासा। मम समीप नर पाव हं बासा।।
अत
य मो ह इहाँ क बासी। मम धामदा पु र सु ख रासी।।
े
हरषे सब क प सु न भु बानी। ध य अवध जो राम बखानी।।
दो0-आवत दे ख लोग सब कृ पा संधु भगवान।
नगर नकट भु ेरेउ उतरे उ भू म बमान।।4(क)।।
उत र कहे उ भु पु पक ह तु ह कबेर प हं जाहु ।
ु
े रत राम चलेउ सो हरषु बरहु अ त ताहु ।।4(ख)।।
–*–*–
आए भरत संग सब लोगा। कृ स तन ीरघु बीर बयोगा।।
बामदे व ब स ठ मु ननायक। दे खे भु म ह ध र धनु सायक।।
धाइ धरे गु र चरन सरो ह। अनु ज स हत अ त पु लक तनो ह।।
भ ट कसल बू झी मु नराया। हमर कसल तु हा र हं दाया।।
ु
ु
सकल
वज ह म ल नायउ माथा। धम धु रंधर रघु क लनाथा।।
ु
गहे भरत पु न भु पद पंकज। नमत िज ह ह सु र मु न संकर अज।।
परे भू म न हं उठत उठाए। बर क र कृ पा संधु उर लाए।।
यामल गात रोम भए ठाढ़े । नव राजीव नयन जल बाढ़े ।।
छं 0-राजीव लोचन
वत जल तन ल लत पु लकाव ल बनी।
अ त ेम दयँ लगाइ अनु ज ह मले भु
भु अन धनी।।
भु मलत अनु ज ह सोह मो प हं जा त न हं उपमा कह ।
जनु ेम अ
संगार तनु ध र मले बर सु षमा लह ।।1।।
बू झत कृ पा न ध क सल भरत ह बचन बे ग न आवई।
ु
सु नु सवा सो सु ख बचन मन ते भ न जान जो पावई।।
अब कसल कौसलनाथ आरत जा न जन दरसन दयो।
ु
बू ड़त बरह बार स कृ पा नधान मो ह कर ग ह लयो।।2।।
5. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दो0-पु न भु हर ष स ु हन भटे दयँ लगाइ।
ल छमन भरत मले तब परम ेम दोउ भाइ।।5।।
–*–*–
भरतानु ज ल छमन पु न भटे । दुसह बरह संभव दुख मेटे।।
सीता चरन भरत स नावा। अनु ज समेत परम सु ख पावा।।
भु बलो क हरषे पु रबासी। ज नत बयोग बप त सब नासी।।
ेमातु र सब लोग नहार । कौतु क क ह कृ पाल खरार ।।
अ मत प गटे ते ह काला। जथाजोग मले सब ह कृ पाला।।
कृ पा ि ट रघु बीर बलोक । कए सकल नर ना र बसोक ।।
छन म हं सब ह मले भगवाना। उमा मरम यह काहु ँ न जाना।।
ए ह ब ध सब ह सु खी क र रामा। आग चले सील गु न धामा।।
कौस या द मातु सब धाई। नर ख ब छ जनु धेनु लवाई।।
छं 0-जनु धेनु बालक ब छ तिज गृहँ चरन बन परबस ग ।
दन अंत पु र ख
वत थन हु ं कार क र धावत भई।।
अ त ेम सब मातु भेट ं बचन मृदु बहु ब ध कहे ।
गइ बषम बयोग भव त ह हरष सु ख अग नत लहे ।।
दो0-भेटेउ तनय सु म ाँ राम चरन र त जा न।
राम ह मलत ककई दयँ बहु त सकचा न।।6(क)।।
ै े
ु
ल छमन सब मात ह म ल हरषे आ सष पाइ।
ककइ कहँ पु न पु न मले मन कर छोभु न जाइ।।6।।
ै े
–*–*–
सासु ह सब न मल बैदेह । चरनि ह ला ग हरषु अ त तेह ।।
दे हं असीस बू झ कसलाता। होइ अचल तु हार अ हवाता।।
ु
सब रघु प त मु ख कमल बलोक हं। मंगल जा न नयन जल रोक हं।।
कनक थार आर त उतार हं। बार बार भु गात नहार हं।।
नाना भाँ त नछाव र करह ं। परमानंद हरष उर भरह ं।।
कौस या पु न पु न रघु बीर ह। चतव त कृ पा संधु रनधीर ह।।
दयँ बचार त बार हं बारा। कवन भाँ त लंकाप त मारा।।
6. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
अ त सु क मार जु गल मेरे बारे । न सचर सु भट महाबल भारे ।।
ु
दो0-ल छमन अ सीता स हत भु ह बलोक त मातु ।
परमानंद मगन मन पु न पु न पु ल कत गातु ।।7।।
–*–*–
लंकाप त कपीस नल नीला। जामवंत अंगद सु भसीला।।
हनु मदा द सब बानर बीरा। धरे मनोहर मनु ज सर रा।।
भरत सनेह सील त नेमा। सादर सब बरन हं अ त ेमा।।
दे ख नगरबा स ह क र ती। सकल सराह ह भु पद ीती।।
ै
पु न रघु प त सब सखा बोलाए। मु न पद लागहु सकल सखाए।।
गु र ब स ट क लपू य हमारे । इ ह क कृ पाँ दनु ज रन मारे ।।
ु
ए सब सखा सु नहु मु न मेरे। भए समर सागर कहँ बेरे।।
मम हत ला ग ज म इ ह हारे । भरतहु ते मो ह अ धक पआरे ।।
सु न भु बचन मगन सब भए। न मष न मष उपजत सु ख नए।।
दो0-कौस या क चरनि ह पु न त ह नायउ माथ।।
े
आ सष द हे हर ष तु ह
य मम िज म रघु नाथ।।8(क)।।
सु मन बृि ट नभ संक ल भवन चले सु खकद।
ु
ं
चढ़ अटा र ह दे ख हं नगर ना र नर बृंद।।8(ख)।।
–*–*–
कचन कलस ब च सँवारे । सब हं धरे सिज नज नज वारे ।।
ं
बंदनवार पताका कतू । सबि ह बनाए मंगल हे तू ।।
े
बीथीं सकल सु गंध संचाई। गजम न र च बहु चौक पु राई।।
नाना भाँ त सु मंगल साजे। हर ष नगर नसान बहु बाजे।।
जहँ तहँ ना र नछावर करह ं। दे हं असीस हरष उर भरह ं।।
कचन थार आरती नाना। जु बती सज कर हं सु भ गाना।।
ं
कर हं आरती आर तहर क। रघु क ल कमल ब पन दनकर क।।
ु
पु र सोभा संप त क याना। नगम सेष सारदा बखाना।।
तेउ यह च रत दे ख ठ ग रहह ं। उमा तासु गु न नर क म कहह ं।।
दो0-ना र कमु दनीं अवध सर रघु प त बरह दनेस।
ु
7. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
अ त भएँ बगसत भ
नर ख राम राकस।।9(क)।।
े
हो हं सगु न सु भ ब बध ब ध बाज हं गगन नसान।
पु र नर ना र सनाथ क र भवन चले भगवान।।9(ख)।।
–*–*–
भु जानी ककई लजानी। थम तासु गृह गए भवानी।।
ै े
ता ह बो ध बहु त सु ख द हा। पु न नज भवन गवन ह र क हा।।
कृ पा संधु जब मं दर गए। पु र नर ना र सु खी सब भए।।
गु र ब स ट
सब
वज लए बु लाई। आजु सुघर सु दन समु दाई।।
वज दे हु हर ष अनु सासन। रामचं बैठ हं संघासन।।
मु न ब स ट क बचन सु हाए। सु नत सकल ब
े
ह अ त भाए।।
कह हं बचन मृदु ब अनेका। जग अ भराम राम अ भषेका।।
अब मु नबर बलंब न हं क जे। महाराज कहँ तलक कर जै।।
दो0-तब मु न कहे उ सु मं सन सु नत चलेउ हरषाइ।
रथ अनेक बहु बािज गज तु रत सँवारे जाइ।।10(क)।।
जहँ तहँ धावन पठइ पु न मंगल
य मगाइ।
हरष समेत ब स ट पद पु न स नायउ आइ।।10(ख)।।
नवा हपारायण, आठवाँ व ाम
–*–*–
अवधपु र अ त चर बनाई। दे व ह सु मन बृि ट झ र लाई।।
राम कहा सेवक ह बुलाई। थम सख ह अ हवावहु जाई।।
सु नत बचन जहँ तहँ जन धाए। सु ीवा द तु रत अ हवाए।।
पु न क ना न ध भरतु हँ कारे । नज कर राम जटा न आरे ।।
अ हवाए भु ती नउ भाई। भगत बछल कृ पाल रघु राई।।
भरत भा य भु कोमलताई। सेष को ट सत सक हं न गाई।।
पु न नज जटा राम बबराए। गु र अनु सासन मा ग नहाए।।
क र म जन भु भू षन साजे। अंग अनंग दे ख सत लाजे।।
दो0-सासु ह सादर जान क ह म जन तु रत कराइ।
द य बसन बर भू षन अँग अँग सजे बनाइ।।11(क)।।
8. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
राम बाम द स सोभ त रमा प गु न खा न।
दे ख मातु सब हरषीं ज म सु फल नज जा न।।11(ख)।।
सु नु खगेस ते ह अवसर
मा सव मु न बृंद।
च ढ़ बमान आए सब सु र दे खन सु खकद।।11(ग)।।
ं
–*–*–
भु बलो क मु न मन अनु रागा। तु रत द य संघासन मागा।।
र ब सम तेज सो बर न न जाई। बैठे राम
वज ह स नाई।।
जनकसु ता समेत रघु राई। पे ख हरषे मु न समु दाई।।
बेद मं तब
वज ह उचारे । नभ सु र मु न जय जय त पु कारे ।।
थम तलक ब स ट मु न क हा। पु न सब ब
ह आयसु द हा।।
सु त बलो क हरषीं महतार । बार बार आरती उतार ।।
ब
ह दान ब बध ब ध द हे । जाचक सकल अजाचक क हे ।।
संघासन पर
भु अन साई। दे ख सु र ह दुं दभीं बजा ।।
ु
छं 0-नभ दुं दभीं बाज हं बपु ल गंधब कं नर गावह ं।
ु
नाच हं अपछरा बृंद परमानंद सु र मु न पावह ं।।
भरता द अनु ज बभीषनांगद हनु मदा द समेत ते।
गह छ चामर यजन धनु अ स चम सि त बराजते।।1।।
ी स हत दनकर बंस बू षन काम बहु छ ब सोहई।
नव अंबु धर बर गात अंबर पीत सु र मन मोहई।।
मु क टांगदा द ब च भू षन अंग अंगि ह
ु
त सजे।
अंभोज नयन बसाल उर भु ज ध य नर नरखं त जे।।2।।
दो0-वह सोभा समाज सु ख कहत न बनइ खगेस।
बरन हं सारद सेष ु त सो रस जान महे स।।12(क)।।
भ न भ न अ तु त क र गए सु र नज नज धाम।
बंद बेष बेद तब आए जहँ ीराम।। 12(ख)।।
भु सब य क ह अ त आदर कृ पा नधान।
लखेउ न काहू ँ मरम कछ लगे करन गु न गान।।12(ग)।।
ु
–*–*–
9. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
छं 0-जय सगु न नगु न प अनू प भू प सरोमने।
दसकधरा द चंड न सचर बल खल भु ज बल हने।।
ं
अवतार नर संसार भार बभंिज दा न दुख दहे ।
जय नतपाल दयाल भु संजु त सि त नमामहे ।।1।।
तव बषम माया बस सु रासु र नाग नर अग जग हरे ।
भव पंथ मत अ मत दवस न स काल कम गु न न भरे ।।
जे नाथ क र क ना बलोक
े
ब ध दुख ते नबहे ।
भव खेद छे दन द छ हम कहु ँ र छ राम नमामहे ।।2।।
जे यान मान बम त तव भव हर न भि त न आदर ।
ते पाइ सु र दुलभ पदाद प परत हम दे खत हर ।।
ब वास क र सब आस प रह र दास तव जे होइ रहे ।
ज प नाम तव बनु म तर हं भव नाथ सो समरामहे ।।3।।
जे चरन सव अज पू य रज सु भ पर स मु नप तनी तर ।
नख नगता मु न बं दता लोक पाव न सु रसर ।।
े
वज क लस अंक स कज जु त बन फरत कटक कन लहे ।
ु
ु
ं
ं
पद कज वंद मु कंु द राम रमेस न य भजामहे ।।4।।
ं
अ य तमू लमना द त
वच चा र नगमागम भने।
षट कध साखा पंच बीस अनेक पन सु मन घने।।
ं
फल जु गल ब ध कटु मधु र बे ल अक ल जे ह आ
े
त रहे ।
प लवत फ लत नवल नत संसार बटप नमामहे ।।5।।
ू
जे
म अजम वैतमनु भवग य मनपर यावह ं।
ते कहहु ँ जानहु ँ नाथ हम तव सगु न जस नत गावह ं।।
क नायतन भु सदगु नाकर दे व यह बर मागह ं।
मन बचन कम बकार तिज तव चरन हम अनु रागह ं।।6।।
दो0-सब क दे खत बेद ह बनती क ि ह उदार।
े
अंतधान भए पु न गए
म आगार।।13(क)।।
बैनतेय सु नु संभु तब आए जहँ रघु बीर।
10. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
बनय करत गदगद गरा पू रत पु लक सर र।।13(ख)।।
–*–*–
छं 0- जय राम रमारमनं समनं। भव ताप भयाक ल पा ह जनं।।
ु
अवधेस सु रेस रमेस बभो। सरनागत मागत पा ह भो।।1।।
दससीस बनासन बीस भु जा। कृ त दू र महा म ह भू र जा।।
रजनीचर बृंद पतंग रहे । सर पावक तेज चंड दहे ।।2।।
म ह मंडल मंडन चा तरं । धृत सायक चाप नषंग बरं ।।
मद मोह महा ममता रजनी। तम पु ंज दवाकर तेज अनी।।3।।
मनजात करात नपात कए। मृग लोग कभोग सरे न हए।।
ु
ह त नाथ अनाथ न पा ह हरे । बषया बन पावँर भू ल परे ।।4।।
बहु रोग बयोगि ह लोग हए। भवदं
नरादर क फल ए।।
े
भव संधु अगाध परे नर ते। पद पंकज ेम न जे करते।।5।।
अ त द न मल न दुखी नतह ं। िज ह क पद पंकज ी त नह ं।।
े
अवलंब भवंत कथा िज ह क।।
े
य संत अनंत सदा त ह क।।6।।
न हं राग न लोभ न मान मदा।। त ह क सम बैभव वा बपदा।।
ए ह ते तव सेवक होत मु दा। मु न यागत जोग भरोस सदा।।7।।
क र ेम नरं तर नेम लएँ । पद पंकज सेवत सु
हएँ।।
सम मा न नरादर आदरह । सब संत सु खी बचरं त मह ।।8।।
मु न मानस पंकज भृंग भजे। रघु बीर महा रनधीर अजे।।
तव नाम जपा म नमा म हर । भव रोग महागद मान अर ।।9।।
गु न सील कृ पा परमायतनं। नमा म नरं तर ीरमनं।।
रघु नंद नकदय वं वघनं। म हपाल बलोकय द न जनं।।10।।
ं
दो0-बार बार बर मागउँ हर ष दे हु ीरं ग।
पद सरोज अनपायनी भग त सदा सतसंग।।14(क)।।
बर न उमाप त राम गु न हर ष गए कलास।
ै
तब भु क प ह दवाए सब ब ध सु ख द बास।।14(ख)।।
–*–*–
सु नु खगप त यह कथा पावनी। बध ताप भव भय दावनी।।
11. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
महाराज कर सु भ अ भषेका। सु नत लह हं नर बर त बबेका।।
जे सकाम नर सु न हं जे गाव हं। सु ख संप त नाना ब ध पाव हं।।
सु र दुलभ सु ख क र जग माह ं। अंतकाल रघु प त पु र जाह ं।।
सु न हं बमु त बरत अ
बषई। लह हं भग त ग त संप त नई।।
खगप त राम कथा म बरनी। वम त बलास ास दुख हरनी।।
बर त बबेक भग त ढ़ करनी। मोह नद कहँ सु ंदर तरनी।।
नत नव मंगल कौसलपु र । हर षत रह हं लोग सब कर ।।
ु
नत नइ ी त राम पद पंकज। सबक िज ह ह नमत सव मु न अज।।
मंगन बहु कार प हराए।
दो0-
वज ह दान नाना ब ध पाए।।
मानंद मगन क प सब क भु पद ी त।
जात न जाने दवस त ह गए मास षट बी त।।15।।
–*–*–
बसरे गृह सपनेहु ँ सु ध नाह ं। िज म पर ोह संत मन माह ।।
तब रघु प त सब सखा बोलाए। आइ सबि ह सादर स नाए।।
परम ी त समीप बैठारे । भगत सु खद मृदु बचन उचारे ।।
तु ह अ त क ह मो र सेवकाई। मु ख पर क ह ब ध कर बड़ाई।।
े
ताते मो ह तु ह अ त
य लागे। मम हत ला ग भवन सु ख यागे।।
अनु ज राज संप त बैदेह । दे ह गेह प रवार सनेह ।।
सब मम
सब क
े
य न हं तु ह ह समाना। मृषा न कहउँ मोर यह बाना।।
य सेवक यह नीती। मोर अ धक दास पर ीती।।
दो0-अब गृह जाहु सखा सब भजेहु मो ह ढ़ नेम।
सदा सबगत सब हत जा न करे हु अ त ेम।।16।।
–*–*–
सु न भु बचन मगन सब भए। को हम कहाँ बस र तन गए।।
एकटक रहे जो र कर आगे। सक हं न कछ क ह अ त अनु रागे।।
ु
परम ेम त ह कर भु दे खा। कहा ब बध ब ध यान बसेषा।।
भु स मु ख कछ कहन न पार हं। पु न पु न चरन सरोज नहार हं।।
ु
तब भु भू षन बसन मगाए। नाना रं ग अनू प सु हाए।।
12. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
सु ीव ह थम हं प हराए। बसन भरत नज हाथ बनाए।।
भु े रत ल छमन प हराए। लंकाप त रघु प त मन भाए।।
अंगद बैठ रहा न हं डोला। ी त दे ख भु ता ह न बोला।।
दो0-जामवंत नीला द सब प हराए रघु नाथ।
हयँ ध र राम प सब चले नाइ पद माथ।।17(क)।।
तब अंगद उ ठ नाइ स सजल नयन कर जो र।
अ त बनीत बोलेउ बचन मनहु ँ ेम रस बो र।।17(ख)।।
–*–*–
सु नु सब य कृ पा सु ख संधो। द न दयाकर आरत बंधो।।
मरती बेर नाथ मो ह बाल । गयउ तु हारे ह क छ घाल ।।
असरन सरन बरदु संभार । मो ह ज न तजहु भगत हतकार ।।
मोर तु ह भु गु र पतु माता। जाउँ कहाँ तिज पद जलजाता।।
तु ह ह बचा र कहहु नरनाहा। भु तिज भवन काज मम काहा।।
बालक यान बु
बल ह ना। राखहु सरन नाथ जन द ना।।
नी च टहल गृह क सब क रहउँ । पद पंकज बलो क भव त रहउँ ।।
ै
अस क ह चरन परे उ भु पाह । अब ज न नाथ कहहु गृह जाह ।।
दो0-अंगद बचन बनीत सु न रघु प त क ना सींव।
भु उठाइ उर लायउ सजल नयन राजीव।।18(क)।।
नज उर माल बसन म न बा लतनय प हराइ।
बदा क ि ह भगवान तब बहु कार समु झाइ।।18(ख)।।
–*–*–
भरत अनु ज सौ म समेता। पठवन चले भगत कृ त चेता।।
अंगद दयँ ेम न हं थोरा। फ र फ र चतव राम क ं ओरा।।
बार बार कर दं ड नामा। मन अस रहन कह हं मो ह रामा।।
राम बलोक न बोल न चलनी। सु म र सु म र सोचत हँ स मलनी।।
भु ख दे ख बनय बहु भाषी। चलेउ दयँ पद पंकज राखी।।
अ त आदर सब क प पहु ँ चाए। भाइ ह स हत भरत पु न आए।।
तब सु ीव चरन ग ह नाना। भाँ त बनय क हे हनु माना।।
13. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दन दस क र रघु प त पद सेवा। पु न तव चरन दे खहउँ दे वा।।
पु य पु ंज तु ह पवनकमारा। सेवहु जाइ कृ पा आगारा।।
ु
अस क ह क प सब चले तु रंता। अंगद कहइ सु नहु हनु मंता।।
दो0-कहे हु दं डवत भु स तु ह ह कहउँ कर जो र।
बार बार रघु नायक ह सु र त कराएहु मो र।।19(क)।।
अस क ह चलेउ बा लसु त फ र आयउ हनु मंत।
तासु ी त भु सन क ह मगन भए भगवंत।।!9(ख)।।
क लसहु चा ह कठोर अ त कोमल कसु महु चा ह।
ु
ु
च त खगेस राम कर समु झ परइ कहु का ह।।19(ग)।।
–*–*–
पु न कृ पाल लयो बो ल नषादा। द हे भू षन बसन सादा।।
जाहु भवन मम सु मरन करे हू । मन
म बचन धम अनु सरे हू ।।
तु ह मम सखा भरत सम ाता। सदा रहे हु पु र आवत जाता।।
बचन सु नत उपजा सु ख भार । परे उ चरन भ र लोचन बार ।।
चरन न लन उर ध र गृह आवा। भु सु भाउ प रजनि ह सु नावा।।
रघु प त च रत दे ख पु रबासी। पु न पु न कह हं ध य सु खरासी।।
राम राज बठ लोका। हर षत भए गए सब सोका।।
े
बय न कर काहू सन कोई। राम ताप बषमता खोई।।
दो0-बरना म नज नज धरम ब नरत बेद पथ लोग।
चल हं सदा पाव हं सु ख ह न हं भय सोक न रोग।।20।।
–*–*–
दै हक दै वक भौ तक तापा। राम राज न हं काहु ह यापा।।
सब नर कर हं पर पर ीती। चल हं वधम नरत ु त नीती।।
चा रउ चरन धम जग माह ं। पू र रहा सपनेहु ँ अघ नाह ं।।
राम भग त रत नर अ नार । सकल परम ग त क अ धकार ।।
े
अ पमृ यु न हं कव नउ पीरा। सब सु ंदर सब ब ज सर रा।।
न हं द र कोउ दुखी न द ना। न हं कोउ अबु ध न ल छन ह ना।।
सब नदभ धमरत पु नी। नर अ ना र चतु र सब गु नी।।
14. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
सब गुन य पं डत सब यानी। सब कृ त य न हं कपट सयानी।।
दो0-राम राज नभगेस सु नु सचराचर जग मा हं।।
काल कम सु भाव गु न कृ त दुख काहु ह ना हं।।21।।
–*–*–
भू म स त सागर मेखला। एक भू प रघु प त कोसला।।
भु अन अनेक रोम
त जासू । यह भु ता कछ बहु त न तासू ।।
ु
सो म हमा समु झत भु कर । यह बरनत ह नता घनेर ।।
े
सोउ म हमा खगेस िज ह जानी। फर ए हं च रत त हहु ँ र त मानी।।
सोउ जाने कर फल यह ल ला। कह हं महा मु नबर दमसीला।।
राम राज कर सु ख संपदा। बर न न सकइ फनीस सारदा।।
सब उदार सब पर उपकार । ब चरन सेवक नर नार ।।
एकना र त रत सब झार । ते मन बच
म प त हतकार ।।
दो0-दं ड ज त ह कर भेद जहँ नतक नृ य समाज।
जीतहु मन ह सु नअ अस रामचं क राज।।22।।
–*–*–
फल हं फर हं सदा त कानन। रह ह एक सँग गज पंचानन।।
ू
खग मृग सहज बय
बसराई। सबि ह पर पर ी त बढ़ाई।।
कज हं खग मृग नाना बृंदा। अभय चर हं बन कर हं अनंदा।।
ू
सीतल सु र भ पवन बह मंदा। गू ंजत अ ल लै च ल मकरं दा।।
लता बटप माग मधु चवह ं। मनभावतो धेनु पय
वह ं।।
स स संप न सदा रह धरनी। ताँ भइ कृ तजु ग क करनी।।
े
ै
गट ं ग र ह ब बध म न खानी। जगदातमा भू प जग जानी।।
स रता सकल बह हं बर बार । सीतल अमल वाद सु खकार ।।
सागर नज मरजादाँ रहह ं। डार हं र न तटि ह नर लहह ं।।
सर सज संक ल सकल तड़ागा। अ त स न दस दसा बभागा।।
ु
दो0- बधु म ह पू र मयू खि ह र ब तप जेतने ह काज।
माग बा रद दे हं जल रामचं क राज।।23।।
े
–*–*–
15. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
को ट ह बािजमेध भु क हे । दान अनेक
वज ह कहँ द हे ।।
ु त पथ पालक धम धु रंधर। गु नातीत अ भोग पु रंदर।।
प त अनु क ल सदा रह सीता। सोभा खा न सु सील बनीता।।
ू
जान त कृ पा संधु भु ताई। सेव त चरन कमल मन लाई।।
ज य प गृहँ सेवक सेव कनी। बपु ल सदा सेवा ब ध गु नी।।
नज कर गृह प रचरजा करई। रामचं आयसु अनु सरई।।
जे ह ब ध कृ पा संधु सु ख मानइ। सोइ कर ी सेवा ब ध जानइ।।
कौस या द सासु गृह माह ं। सेवइ सबि ह मान मद नाह ं।।
उमा रमा
मा द बं दता। जगदं बा संततम नं दता।।
दो0-जासु कृ पा कटा छ सु र चाहत चतव न सोइ।
ु
राम पदार बंद र त कर त सु भाव ह खोइ।।24।।
–*–*–
सेव हं सानक ल सब भाई। राम चरन र त अ त अ धकाई।।
ू
भु मु ख कमल बलोकत रहह ं। कबहु ँ कृ पाल हम ह कछ कहह ं।।
ु
राम कर हं ात ह पर ीती। नाना भाँ त सखाव हं नीती।।
हर षत रह हं नगर क लोगा। कर हं सकल सु र दुलभ भोगा।।
े
अह न स ब ध ह मनावत रहह ं। ीरघु बीर चरन र त चहह ं।।
दुइ सु त सु दर सीताँ जाए। लव कस बेद पु रान ह गाए।।
ु
दोउ बजई बनई गु न मं दर। ह र
त बंब मनहु ँ अ त सु ंदर।।
दुइ दुइ सु त सब ात ह करे । भए प गु न सील घनेरे।।
े
दो0- यान गरा गोतीत अज माया मन गु न पार।
सोइ सि चदानंद घन कर नर च रत उदार।।25।।
–*–*–
ातकाल सरऊ क र म जन। बैठ हं सभाँ संग वज स जन।।
बेद पु रान ब स ट बखान हं। सु न हं राम ज य प सब जान हं।।
अनु ज ह संजु त भोजन करह ं। दे ख सकल जननीं सु ख भरह ं।।
भरत स ु हन दोनउ भाई। स हत पवनसु त उपबन जाई।।
बू झ हं बै ठ राम गुन गाहा। कह हनु मान सु म त अवगाहा।।
16. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
सु नत बमल गु न अ त सु ख पाव हं। बहु र बहु र क र बनय कहाव हं।।
सब क गृह गृह हो हं पु राना। रामच रत पावन ब ध नाना।।
नर अ ना र राम गु न गान हं। कर हं दवस न स जात न जान हं।।
दो0-अवधपु र बा स ह कर सु ख संपदा समाज।
सहस सेष न हं क ह सक हं जहँ नृप राम बराज।।26।।
–*–*–
नारदा द सनका द मु नीसा। दरसन ला ग कोसलाधीसा।।
दन
त सकल अजो या आव हं। दे ख नग
जात प म न र चत अटार ं। नाना रं ग
बरागु बसराव हं।।
चर गच ढार ं।।
पु र चहु ँ पास कोट अ त सु ंदर। रचे कगू रा रं ग रं ग बर।।
ँ
नव ह नकर अनीक बनाई। जनु घेर अमराव त आई।।
म ह बहु रं ग र चत गच काँचा। जो बलो क मु नबर मन नाचा।।
धवल धाम ऊपर नभ चु ंबत। कलस मनहु ँ र ब स स दु त नंदत।।
बहु म न र चत झरोखा ाज हं। गृह गृह
त म न द प बराज हं।।
छं 0-म न द प राज हं भवन ाज हं दे हर ं ब म रची।
ु
म न खंभ भी त बरं च बरची कनक म न मरकत खची।।
सु ंदर मनोहर मं दरायत अिजर
चर फ टक रचे।
त वार वार कपाट पु रट बनाइ बहु ब ि ह खचे।।
दो0-चा
च साला गृह गृह
त लखे बनाइ।
राम च रत जे नरख मु न ते मन ले हं चोराइ।।27।।
–*–*–
सु मन बा टका सब हं लगाई। ब बध भाँ त क र जतन बनाई।।
लता ल लत बहु जा त सु हाई। फल हं सदा बंसत क नाई।।
ू
गु ंजत मधु कर मु खर मनोहर। मा त
बध सदा बह सु ंदर।।
नाना खग बालकि ह िजआए। बोलत मधु र उड़ात सु हाए।।
मोर हं स सारस पारावत। भवन न पर सोभा अ त पावत।।
जहँ तहँ दे ख हं नज प रछाह ं। बहु ब ध क ज हं नृ य कराह ं।।
ू
सु क सा रका पढ़ाव हं बालक। कहहु राम रघु प त जनपालक।।
17. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
राज दुआर सकल ब ध चा । बीथीं चौहट
छं 0-बाजार
चर बजा ।।
चर न बनइ बरनत ब तु बनु गथ पाइए।
जहँ भू प रमा नवास तहँ क संपदा क म गाइए।।
बैठे बजाज सराफ ब नक अनेक मनहु ँ कबेर ते।
ु
सब सु खी सब स च रत सु ंदर ना र नर ससु जरठ जे।।
दो0-उ तर द स सरजू बह नमल जल गंभीर।
बाँधे घाट मनोहर व प पंक न हं तीर।।28।।
–*–*–
दू र फराक चर सो घाटा। जहँ जल पअ हं बािज गज ठाटा।।
प नघट परम मनोहर नाना। तहाँ न पु ष कर हं अ नाना।।
राजघाट सब ब ध सु ंदर बर। म ज हं तहाँ बरन चा रउ नर।।
तीर तीर दे व ह क मं दर। चहु ँ द स त ह क उपबन सु ंदर।।
े
े
कहु ँ कहु ँ स रता तीर उदासी। बस हं यान रत मु न सं यासी।।
तीर तीर तु ल सका सु हाई। बृंद बृंद बहु मु न ह लगाई।।
पु र सोभा कछ बर न न जाई। बाहे र नगर परम
ु
चराई।।
दे खत पु र अ खल अघ भागा। बन उपबन बा पका तड़ागा।।
छं 0-बापीं तड़ाग अनू प कप मनोहरायत सोहह ं।
ू
सोपान सु ंदर नीर नमल दे ख सु र मु न मोहह ं।।
बहु रं ग कज अनेक खग कज हं मधु प गु ंजारह ं।
ं
ू
आराम र य पका द खग रव जनु प थक हं कारह ं।।
दो0-रमानाथ जहँ राजा सो पु र बर न क जाइ।
अ नमा दक सु ख संपदा रह ं अवध सब छाइ।।29।।
–*–*–
जहँ तहँ नर रघु प त गु न गाव हं। बै ठ परसपर इहइ सखाव हं।।
भजहु नत
तपालक राम ह। सोभा सील प गु न धाम ह।।
जलज बलोचन यामल गात ह। पलक नयन इव सेवक ात ह।।
धृत सर
चर चाप तू नीर ह। संत कज बन र ब रनधीर ह।।
ं
काल कराल याल खगराज ह। नमत राम अकाम ममता ज ह।।
18. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
लोभ मोह मृगजू थ करात ह। मन सज क र ह र जन सु खदात ह।।
संसय सोक न बड़ तम भानु ह। दनु ज गहन घन दहन कृ सानु ह।।
जनकसु ता समेत रघु बीर ह। कस न भजहु भंजन भव भीर ह।।
बहु बासना मसक हम रा स ह। सदा एकरस अज अ बना स ह।।
मु न रं जन भंजन म ह भार ह। तु ल सदास क भु ह उदार ह।।
े
दो0-ए ह ब ध नगर ना र नर कर हं राम गु न गान।
सानु क ल सब पर रह हं संतत कृ पा नधान।।30।।
ू
–*–*–
जब ते राम ताप खगेसा। उ दत भयउ अ त बल दनेसा।।
पू र कास रहे उ तहु ँ लोका। बहु ते ह सु ख बहु तन मन सोका।।
िज ह ह सोक ते कहउँ बखानी। थम अ ब या नसा नसानी।।
अघ उलू क जहँ तहाँ लु काने। काम
ोध करव सकचाने।।
ै
ु
ब बध कम गु न काल सु भाऊ। ए चकोर सु ख लह हं न काऊ।।
म सर मान मोह मद चोरा। इ ह कर हु नर न कव नहु ँ ओरा।।
धरम तड़ाग यान ब याना। ए पंकज बकसे ब ध नाना।।
सु ख संतोष बराग बबेका। बगत सोक ए कोक अनेका।।
दो0-यह ताप र ब जाक उर जब करइ कास।
प छले बाढ़ हं थम जे कहे ते पाव हं नास।।31।।
–*–*–
ात ह स हत रामु एक बारा। संग परम य पवनक मारा।।
ु
सु ंदर उपबन दे खन गए। सब त क सु मत प लव नए।।
ु
जा न समय सनका दक आए। तेज पु ंज गु न सील सु हाए।।
मानंद सदा लयल ना। दे खत बालक बहु काल ना।।
प धर जनु चा रउ बेदा। समदरसी मु न बगत बभेदा।।
आसा बसन यसन यह त हह ं। रघु प त च रत होइ तहँ सु नह ं।।
तहाँ रहे सनका द भवानी। जहँ घटसंभव मु नबर यानी।।
राम कथा मु नबर बहु बरनी। यान जो न पावक िज म अरनी।।
दो0-दे ख राम मु न आवत हर ष दं डवत क ह।
19. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
वागत पूँ छ पीत पट भु बैठन कहँ द ह।।32।।
–*–*–
क ह दं डवत ती नउँ भाई। स हत पवनसु त सु ख अ धकाई।।
मु न रघु प त छ ब अतु ल बलोक । भए मगन मन सक न रोक ।।
े
यामल गात सरो ह लोचन। सुदरता मं दर भव मोचन।।
ं
एकटक रहे नमेष न लाव हं। भु कर जोर सीस नवाव हं।।
त ह क दसा दे ख रघु बीरा।
ै
वत नयन जल पु लक सर रा।।
कर ग ह भु मु नबर बैठारे । परम मनोहर बचन उचारे ।।
आजु ध य म सु नहु मु नीसा। तु हर दरस जा हं अघ खीसा।।
बड़े भाग पाइब सतसंगा। बन हं यास हो हं भव भंगा।।
दो0-संत संग अपबग कर कामी भव कर पंथ।
कह ह संत क ब को बद ु त पु रान सद ंथ।।33।।
–*–*–
सु न भु बचन हर ष मु न चार । पु ल कत तन अ तु त अनु सार ।।
जय भगवंत अनंत अनामय। अनघ अनेक एक क नामय।।
जय नगु न जय जय गु न सागर। सु ख मं दर सु ंदर अ त नागर।।
जय इं दरा रमन जय भू धर। अनु पम अज अना द सोभाकर।।
यान नधान अमान मान द। पावन सु जस पु रान बेद बद।।
त य कृ त य अ यता भंजन। नाम अनेक अनाम नरं जन।।
सब सबगत सब उरालय। बस स सदा हम कहु ँ प रपालय।।
वंद बप त भव फद बभंजय।
ं
द ब स राम काम मद गंजय।।
दो0-परमानंद कृ पायतन मन प रपू रन काम।
ेम भग त अनपायनी दे हु हम ह ीराम।।34।।
–*–*–
दे हु भग त रघु प त अ त पाव न। बध ताप भव दाप नसाव न।।
नत काम सु रधेनु कलपत । होइ स न द जै भु यह ब ।।
भव बा र ध कंु भज रघु नायक। सेवत सु लभ सकल सु ख दायक।।
मन संभव दा न दुख दारय। द नबंधु समता ब तारय।।
20. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
आस ास इ रषा द नवारक। बनय बबेक बर त ब तारक।।
भू प मौ ल मन मंडन धरनी। दे ह भग त संस ृ त स र तरनी।।
मु न मन मानस हं स नरं तर। चरन कमल बं दत अज संकर।।
रघु क ल कतु सेतु ु त र छक। काल करम सु भाउ गु न भ छक।।
ु
े
तारन तरन हरन सब दूषन। तु ल सदास भु
भु वन भू षन।।
दो0-बार बार अ तु त क र ेम स हत स नाइ।
म भवन सनका द गे अ त अभी ट बर पाइ।।35।।
–*–*–
सनका दक ब ध लोक सधाए। ात ह राम चरन स नाए।।
पू छत भु ह सकल सकचाह ं। चतव हं सब मा तसु त पाह ं।।
ु
सु न चह हं भु मु ख क बानी। जो सु न होइ सकल म हानी।।
ै
अंतरजामी भु सभ जाना। बू झत कहहु काह हनु माना।।
जो र पा न कह तब हनु मंता। सु नहु द नदयाल भगवंता।।
नाथ भरत कछ पूँछन चहह ं।
ु
न करत मन सकचत अहह ं।।
ु
तु ह जानहु क प मोर सु भाऊ। भरत ह मो ह कछ अंतर काऊ।।
ु
सु न भु बचन भरत गहे चरना। सु नहु नाथ नतार त हरना।।
दो0-नाथ न मो ह संदेह कछ सपनेहु ँ सोक न मोह।
ु
कवल कृ पा तु हा र ह कृ पानंद संदोह।।36।।
े
–*–*–
करउँ कृ पा न ध एक ढठाई। म सेवक तु ह जन सु खदाई।।
संत ह क म हमा रघु राई। बहु ब ध बेद पु रान ह गाई।।
ै
ीमु ख तु ह पु न क ि ह बड़ाई। त ह पर भु ह ी त अ धकाई।।
सु ना चहउँ भु त ह कर ल छन। कृ पा संधु गु न यान बच छन।।
संत असंत भेद बलगाई। नतपाल मो ह कहहु बु झाई।।
संत ह क ल छन सु नु ाता। अग नत ु त पु रान ब याता।।
े
संत असंति ह क अ स करनी। िज म कठार चंदन आचरनी।।
ै
ु
काटइ परसु मलय सु नु भाई। नज गु न दे इ सु गंध बसाई।।
दो0-ताते सु र सीस ह चढ़त जग ब लभ ीखंड।
21. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
अनल दा ह पीटत घन हं परसु बदन यह दं ड।।37।।
–*–*–
बषय अलंपट सील गु नाकर। पर दुख दुख सु ख सु ख दे खे पर।।
सम अभू त रपु बमद बरागी। लोभामरष हरष भय यागी।।
कोमल चत द न ह पर दाया। मन बच
म मम भग त अमाया।।
सब ह मान द आपु अमानी। भरत ान सम मम ते ानी।।
बगत काम मम नाम परायन। सां त बर त बनती मु दतायन।।
सीतलता सरलता मय ी।
वज पद ी त धम जनय ी।।
ए सब ल छन बस हं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फर।।
ु
सम दम नयम नी त न हं डोल हं। प ष बचन कबहू ँ न हं बोल हं।।
दो0- नंदा अ तु त उभय सम ममता मम पद कज।
ं
ते स जन मम ान य गु न मं दर सु ख पु ंज।।38।।
–*–*–
सनहु असंत ह कर सु भाऊ। भू लेहु ँ संग त क रअ न काऊ।।
े
त ह कर संग सदा दुखदाई। िज म कलप ह घालइ हरहाई।।
खल ह दयँ अ त ताप बसेषी। जर हं सदा पर संप त दे खी।।
जहँ कहु ँ नंदा सु न हं पराई। हरष हं मनहु ँ पर न ध पाई।।
काम
ोध मद लोभ परायन। नदय कपट क टल मलायन।।
ु
बय अकारन सब काहू स । जो कर हत अन हत ताहू स ।।
झू ठइ लेना झू ठइ दे ना। झूठइ भोजन झू ठ चबेना।।
बोल हं मधु र बचन िज म मोरा। खाइ महा अ त दय कठोरा।।
दो0-पर ोह पर दार रत पर धन पर अपबाद।
ते नर पाँवर पापमय दे ह धर मनु जाद।।39।।
–*–*–
लोभइ ओढ़न लोभइ डासन। स ोदर पर जमपु र ास न।।
काहू क ज सु न हं बड़ाई। वास ले हं जनु जू ड़ी आई।।
जब काहू क दे ख हं बपती। सु खी भए मानहु ँ जग नृपती।।
ै
वारथ रत प रवार बरोधी। लंपट काम लोभ अ त
ोधी।।
22. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
मातु पता गु र ब न मान हं। आपु गए अ घाल हं आन हं।।
कर हं मोह बस ोह परावा। संत संग ह र कथा न भावा।।
अवगु न संधु मंदम त कामी। बेद बदूषक परधन वामी।।
ब
ोह पर ोह बसेषा। दं भ कपट िजयँ धर सु बेषा।।
दो0-ऐसे अधम मनु ज खल कृ तजु ग ता ना हं।
े
वापर कछक बृंद बहु होइह हं क लजु ग मा हं।।40।।
ु
–*–*–
पर हत स रस धम न हं भाई। पर पीड़ा सम न हं अधमाई।।
ननय सकल पु रान बेद कर। कहे उँ तात जान हं को बद नर।।
नर सर र ध र जे पर पीरा। कर हं ते सह हं महा भव भीरा।।
कर हं मोह बस नर अघ नाना। वारथ रत परलोक नसाना।।
काल प त ह कहँ म ाता। सु भ अ असु भ कम फल दाता।।
अस बचा र जे परम सयाने। भज हं मो ह संस ृत दुख जाने।।
याग हं कम सु भासु भ दायक। भज हं मो ह सु र नर मु न नायक।।
संत असंत ह क गु न भाषे। ते न पर हं भव िज ह ल ख राखे।।
े
दो0-सु नहु तात माया कृ त गु न अ दोष अनेक।
गु न यह उभय न दे खअ हं दे खअ सो अ बबेक।।41।।
–*–*–
ीमु ख बचन सु नत सब भाई। हरषे ेम न दयँ समाई।।
कर हं बनय अ त बार हं बारा। हनू मान हयँ हरष अपारा।।
पु न रघु प त नज मं दर गए। ए ह ब ध च रत करत नत नए।।
बार बार नारद मु न आव हं। च रत पु नीत राम क गाव हं।।
े
नत नव चरन दे ख मु न जाह ं।
मलोक सब कथा कहाह ं।।
सु न बरं च अ तसय सु ख मान हं। पु न पु न तात करहु गु न गान हं।।
सनका दक नारद ह सराह हं। ज य प
म नरत मु न आह हं।।
सु न गु न गान समा ध बसार ।। सादर सु न हं परम अ धकार ।।
दो0-जीवनमु त
मपर च रत सु न हं तिज यान।
जे ह र कथाँ न कर हं र त त ह क हय पाषान।।42।।
े
23. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
–*–*–
एक बार रघु नाथ बोलाए। गु र वज पु रबासी सब आए।।
बैठे गु र मु न अ
वज स जन। बोले बचन भगत भव भंजन।।
सनहु सकल पु रजन मम बानी। कहउँ न कछ ममता उर आनी।।
ु
न हं अनी त न हं कछ भु ताई। सु नहु करहु जो तु ह ह सोहाई।।
ु
सोइ सेवक
यतम मम सोई। मम अनु सासन मानै जोई।।
ज अनी त कछ भाष भाई। त मो ह बरजहु भय बसराई।।
ु
बड़ भाग मानु ष तनु पावा। सु र दुलभ सब ं थ ह गावा।।
साधन धाम मो छ कर वारा। पाइ न जे हं परलोक सँवारा।।
दो0-सो पर दुख पावइ सर धु न धु न प छताइ।
काल ह कम ह ई वर ह म या दोष लगाइ।।43।।
–*–*–
ए ह तन कर फल बषय न भाई। वगउ व प अंत दुखदाई।।
नर तनु पाइ बषयँ मन दे ह ं। पल ट सु धा ते सठ बष लेह ं।।
ता ह कबहु ँ भल कहइ न कोई। गु ंजा हइ परस म न खोई।।
आकर चा र ल छ चौरासी। जो न मत यह िजव अ बनासी।।
फरत सदा माया कर ेरा। काल कम सु भाव गु न घेरा।।
कबहु ँ क क र क ना नर दे ह । दे त ईस बनु हे तु सनेह ।।
नर तनु भव बा र ध कहु ँ बेरो। स मु ख म त अनु ह मेरो।।
करनधार सदगु र ढ़ नावा। दुलभ साज सु लभ क र पावा।।
दो0-जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ।
सो कृ त नंदक मंदम त आ माहन ग त जाइ।।44।।
–*–*–
ज परलोक इहाँ सु ख चहहू । सु न मम बचन ृ दयँ ढ़ गहहू ।।
सु लभ सु खद मारग यह भाई। भग त मो र पु रान ु त गाई।।
यान अगम
यू ह अनेका। साधन क ठन न मन कहु ँ टे का।।
करत क ट बहु पावइ कोऊ। भि त ह न मो ह
य न हं सोऊ।।
भि त सु तं सकल सु ख खानी। बनु सतसंग न पाव हं ानी।।
24. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
पु य पु ंज बनु मल हं न संता। सतसंग त संस ृ त कर अंता।।
पु य एक जग महु ँ न हं दूजा। मन
म बचन ब पद पू जा।।
सानु क ल ते ह पर मु न दे वा। जो तिज कपटु करइ
ू
वज सेवा।।
दो0-औरउ एक गु पु त मत सब ह कहउँ कर जो र।
संकर भजन बना नर भग त न पावइ मो र।।45।।
–*–*–
कहहु भग त पथ कवन यासा। जोग न मख जप तप उपवासा।।
सरल सु भाव न मन क टलाई। जथा लाभ संतोष सदाई।।
ु
मोर दास कहाइ नर आसा। करइ तौ कहहु कहा ब वासा।।
बहु त कहउँ का कथा बढ़ाई। ए ह आचरन ब य म भाई।।
बैर न ब ह आस न ासा। सु खमय ता ह सदा सब आसा।।
अनारं भ अ नकत अमानी। अनघ अरोष द छ ब यानी।।
े
ी त सदा स जन संसगा। तृन सम बषय वग अपबगा।।
भग त प छ हठ न हं सठताई। दु ट तक सब दू र बहाई।।
दो0-मम गु न ाम नाम रत गत ममता मद मोह।
ता कर सु ख सोइ जानइ परानंद संदोह।।46।।
–*–*–
सु नत सु धासम बचन राम क। गहे सब न पद कृ पाधाम क।।
े
े
जन न जनक गु र बंधु हमारे । कृ पा नधान ान ते यारे ।।
तनु धनु धाम राम हतकार । सब ब ध तु ह नतार त हार ।।
अ स सख तु ह बनु दे इ न कोऊ। मातु पता वारथ रत ओऊ।।
हे तु र हत जग जु ग उपकार । तु ह तु हार सेवक असु रार ।।
वारथ मीत सकल जग माह ं। सपनेहु ँ भु परमारथ नाह ं।।
सबक बचन ेम रस साने। सु न रघु नाथ दयँ हरषाने।।
े
नज नज गृह गए आयसु पाई। बरनत भु बतकह सु हाई।।
दो0–उमा अवधबासी नर ना र कृ तारथ प।
म सि चदानंद घन रघु नायक जहँ भू प।।47।।
25. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
–*–*–
एक बार ब स ट मु न आए। जहाँ राम सु खधाम सु हाए।।
अ त आदर रघु नायक क हा। पद पखा र पादोदक ल हा।।
राम सु नहु मु न कह कर जोर । कृ पा संधु बनती कछ मोर ।।
ु
दे ख दे ख आचरन तु हारा। होत मोह मम दयँ अपारा।।
म हमा अ मत बेद न हं जाना। म क ह भाँ त कहउँ भगवाना।।
े
उपरो ह य कम अ त मंदा। बेद पु रान सु म ृ त कर नंदा।।
जब न लेउँ म तब ब ध मोह । कहा लाभ आग सु त तोह ।।
परमातमा
म नर पा। होइ ह रघु क ल भू षन भू पा।।
ु
दो0–तब म दयँ बचारा जोग ज य त दान।
जा कहु ँ क रअ सो पैहउँ धम न ए ह सम आन।।48।।
–*–*–
जप तप नयम जोग नज धमा। ु त संभव नाना सु भ कमा।।
यान दया दम तीरथ म जन। जहँ ल ग धम कहत ु त स जन।।
आगम नगम पु रान अनेका। पढ़े सु ने कर फल भु एका।।
तब पद पंकज ी त नरं तर। सब साधन कर यह फल सु ंदर।।
छटइ मल क मल ह क धोएँ। घृत क पाव कोइ बा र बलोएँ ।।
ू
े
ेम भग त जल बनु रघु राई। अ भअंतर मल कबहु ँ न जाई।।
सोइ सब य त य सोइ पं डत। सोइ गु न गृह ब यान अखं डत।।
द छ सकल ल छन जु त सोई। जाक पद सरोज र त होई।।
दो0-नाथ एक बर मागउँ राम कृ पा क र दे हु ।
ज म ज म भु पद कमल कबहु ँ घटै ज न नेहु ।।49।।
–*–*–
अस क ह मु न ब स ट गृह आए। कृ पा संधु क मन अ त भाए।।
े
हनू मान भरता दक ाता। संग लए सेवक सु खदाता।।
पु न कृ पाल पु र बाहे र गए। गज रथ तु रग मगावत भए।।
दे ख कृ पा क र सकल सराहे । दए उ चत िज ह िज ह तेइ चाहे ।।
हरन सकल म भु म पाई। गए जहाँ सीतल अवँराई।।
26. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
भरत द ह नज बसन डसाई। बैठे भु सेव हं सब भाई।।
मा तसु त तब मा त करई। पु लक बपु ष लोचन जल भरई।।
हनू मान सम न हं बड़भागी। न हं कोउ राम चरन अनु रागी।।
ग रजा जासु ी त सेवकाई। बार बार भु नज मु ख गाई।।
दो0-ते हं अवसर मु न नारद आए करतल बीन।
गावन लगे राम कल क र त सदा नबीन।।50।।
–*–*–
मामवलोकय पंकज लोचन। कृ पा बलोक न सोच बमोचन।।
नील तामरस याम काम अ र। दय कज मकरं द मधु प ह र।।
ं
जातु धान ब थ बल भंजन। मु न स जन रं जन अघ गंजन।।
भू सु र स स नव बृंद बलाहक। असरन सरन द न जन गाहक।।
भु ज बल बपु ल भार म ह खं डत। खर दूषन बराध बध पं डत।।
रावना र सु ख प भू पबर। जय दसरथ कल कमु द सु धाकर।।
ु
ु
सु जस पु रान ब दत नगमागम। गावत सु र मु न संत समागम।।
का नीक यल क मद खंडन। सब ब ध कसल कोसला मंडन।।
ु
क ल मल मथन नाम ममताहन। तु लसीदास भु पा ह नत जन।।
दो0- ेम स हत मु न नारद बर न राम गु न ाम।
सोभा संधु दयँ ध र गए जहाँ ब ध धाम।।51।।
–*–*–
ग रजा सु नहु बसद यह कथा। म सब कह मो र म त जथा।।
राम च रत सत को ट अपारा। ु त सारदा न बरनै पारा।।
राम अनंत अनंत गु नानी। ज म कम अनंत नामानी।।
जल सीकर म ह रज ग न जाह ं। रघु प त च रत न बर न सराह ं।।
बमल कथा ह र पद दायनी। भग त होइ सु न अनपायनी।।
उमा क हउँ सब कथा सु हाई। जो भु सु ं ड खगप त ह सु नाई।।
कछ क राम गु न कहे उँ बखानी। अब का कह सो कहहु भवानी।।
ु
सु न सु भ कथा उमा हरषानी। बोल अ त बनीत मृदु बानी।।
ध य ध य म ध य पु रार । सु नेउँ राम गु न भव भय हार ।।
27. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दो0-तु हर कृ पाँ कृ पायतन अब कृ तकृ य न मोह।
जानेउँ राम ताप भु चदानंद संदोह।।52(क)।।
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नाथ तवानन स स वत कथा सु धा रघु बीर।
वन पु टि ह मन पान क र न हं अघात म तधीर।।52(ख)।।
राम च रत जे सु नत अघाह ं। रस बसेष जाना त ह नाह ं।।
जीवनमु त महामु न जेऊ। ह र गु न सु नह ं नरं तर तेऊ।।
भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ ढ़ नावा।।
बषइ ह कहँ पु न ह र गु न ामा। वन सु खद अ मन अ भरामा।।
वनवंत अस को जग माह ं। जा ह न रघु प त च रत सोहाह ं।।
ते जड़ जीव नजा मक घाती। िज ह ह न रघु प त कथा सोहाती।।
ह रच र मानस तु ह गावा। सु न म नाथ अ म त सु ख पावा।।
तु ह जो कह यह कथा सु हाई। कागभसु ं ड ग ड़
त गाई।।
दो0- बर त यान ब यान ढ़ राम चरन अ त नेह।
बायस तन रघु प त भग त मो ह परम संदेह।।53।।
–*–*–
नर सह महँ सु नहु पु रार । कोउ एक होइ धम तधार ।।
धमसील को टक महँ कोई। बषय बमु ख बराग रत होई।।
को ट बर त म य ु त कहई। स यक यान सकृ त कोउ लहई।।
यानवंत को टक महँ कोऊ। जीवनमु त सकृ त जग सोऊ।।
त ह सह
महु ँ सब सु ख खानी। दुलभ
धमसील बर त अ
मल न ब यानी।।
यानी। जीवनमु त
मपर ानी।।
सब ते सो दुलभ सु रराया। राम भग त रत गत मद माया।।
सो ह रभग त काग क म पाई। ब वनाथ मो ह कहहु बु झाई।।
दो0-राम परायन यान रत गु नागार म त धीर।
नाथ कहहु क ह कारन पायउ काक सर र।।54।।
े
–*–*–
यह भु च रत प व सु हावा। कहहु कृ पाल काग कहँ पावा।।
28. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
तु ह क ह भाँ त सु ना मदनार । कहहु मो ह अ त कौतु क भार ।।
े
ग ड़ महा यानी गु न रासी। ह र सेवक अ त नकट नवासी।।
ते हं क ह हे तु काग सन जाई। सु नी कथा मु न नकर बहाई।।
े
कहहु कवन ब ध भा संबादा। दोउ ह रभगत काग उरगादा।।
गौ र गरा सु न सरल सु हाई। बोले सव सादर सु ख पाई।।
ध य सती पावन म त तोर । रघु प त चरन ी त न हं थोर ।।
सु नहु परम पु नीत इ तहासा। जो सु न सकल लोक म नासा।।
उपजइ राम चरन ब वासा। भव न ध तर नर बन हं यासा।।
दो0-ऐ सअ
न बहं गप त क ह काग सन जाइ।
सो सब सादर क हहउँ सु नहु उमा मन लाइ।।55।।
–*–*–
म िज म कथा सु नी भव मोच न। सो संग सु नु सु मु ख सु लोच न।।
थम द छ गृह तव अवतारा। सती नाम तब रहा तु हारा।।
द छ ज य तब भा अपमाना। तु ह अ त
ोध तजे तब ाना।।
मम अनु चर ह क ह मख भंगा। जानहु तु ह सो सकल संगा।।
तब अ त सोच भयउ मन मोर। दुखी भयउँ बयोग
य तोर।।
सु ंदर बन ग र स रत तड़ागा। कौतु क दे खत फरउँ बेरागा।।
ग र सु मेर उ तर द स दूर । नील सैल एक सु दर भू र ।।
तासु कनकमय सखर सु हाए। चा र चा मोरे मन भाए।।
त ह पर एक एक बटप बसाला। बट पीपर पाकर रसाला।।
सैलोप र सर सु ंदर सोहा। म न सोपान दे ख मन मोहा।।
दो0–सीतल अमल मधु र जल जलज बपु ल बहु रं ग।
कजत कल रव हं स गन गु ंजत मजु ंल भृंग।।56।।
ू
–*–*–
ते हं ग र चर बसइ खग सोई। तासु नास क पांत न होई।।
माया कृ त गु न दोष अनेका। मोह मनोज आ द अ बबेका।।
रहे या प सम त जग माह ं। ते ह ग र नकट कबहु ँ न हं जाह ं।।
तहँ ब स ह र ह भजइ िज म कागा। सो सु नु उमा स हत अनु रागा।।
29. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
पीपर त तर यान सो धरई। जाप ज य पाक र तर करई।।
आँब छाहँ कर मानस पू जा। तिज ह र भजनु काजु न हं दूजा।।
बर तर कह ह र कथा संगा। आव हं सु न हं अनेक बहं गा।।
राम च रत बची
ब ध नाना। ेम स हत कर सादर गाना।।
सु न हं सकल म त बमल मराला। बस हं नरं तर जे ते हं ताला।।
जब म जाइ सो कौतु क दे खा। उर उपजा आनंद बसेषा।।
दो0-तब कछ काल मराल तनु ध र तहँ क ह नवास।
ु
सादर सु न रघु प त गु न पु न आयउँ कलास।।57।।
ै
–*–*–
ग रजा कहे उँ सो सब इ तहासा। म जे ह समय गयउँ खग पासा।।
अब सो कथा सु नहु जेह हे तू । गयउ काग प हं खग कल कतू ।।
ु
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जब रघु नाथ क ि ह रन
ड़ा। समु झत च रत हो त मो ह ीड़ा।।
इं जीत कर आपु बँधायो। तब नारद मु न ग ड़ पठायो।।
बंधन का ट गयो उरगादा। उपजा दयँ चंड बषादा।।
भु बंधन समु झत बहु भाँती। करत बचार उरग आराती।।
यापक
म बरज बागीसा। माया मोह पार परमीसा।।
सो अवतार सु नेउँ जग माह ं। दे खउँ सो भाव कछ नाह ं।।
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ु
दो0–भव बंधन ते छट हं नर ज प जा कर नाम।
ू
खच नसाचर बाँधेउ नागपास सोइ राम।।58।।
–*–*–
नाना भाँ त मन ह समु झावा। गट न यान दयँ म छावा।।
खेद ख न मन तक बढ़ाई। भयउ मोहबस तु ह र हं नाई।।
याक ल गयउ दे व र ष पाह ं। कहे स जो संसय नज मन माह ं।।
ु
सु न नारद ह ला ग अ त दाया। सु नु खग बल राम क माया।।
ै
जो या न ह कर चत अपहरई। ब रआई बमोह मन करई।।
जे हं बहु बार नचावा मोह । सोइ यापी बहं गप त तोह ।।
महामोह उपजा उर तोर। म ट ह न बे ग कह खग मोर।।
चतु रानन प हं जाहु खगेसा। सोइ करे हु जे ह होइ नदे सा।।
30. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दो0-अस क ह चले दे व र ष करत राम गु न गान।
ह र माया बल बरनत पु न पु न परम सु जान।।59।।
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तब खगप त बरं च प हं गयऊ। नज संदेह सु नावत भयऊ।।
सु न बरं च राम ह स नावा। समु झ ताप ेम अ त छावा।।
मन महु ँ करइ बचार बधाता। माया बस क ब को बद याता।।
ह र माया कर अ म त भावा। बपु ल बार जे हं मो ह नचावा।।
अग जगमय जग मम उपराजा। न हं आचरज मोह खगराजा।।
तब बोले ब ध गरा सु हाई। जान महे स राम भु ताई।।
बैनतेय संकर प हं जाहू । तात अनत पू छहु ज न काहू ।।
तहँ होइ ह तव संसय हानी। चलेउ बहं ग सु नत ब ध बानी।।
दो0-परमातु र बहं गप त आयउ तब मो पास।
जात रहे उँ कबेर गृह र हहु उमा कलास।।60।।
ु
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–*–*–
ते हं मम पद सादर स नावा। पु न आपन संदेह सु नावा।।
सु न ता क र बनती मृदु बानी। परे म स हत म कहे उँ भवानी।।
मलेहु ग ड़ मारग महँ मोह । कवन भाँ त समु झाव तोह ।।
तब ह होइ सब संसय भंगा। जब बहु काल क रअ सतसंगा।।
सु नअ तहाँ ह र कथा सु हाई। नाना भाँ त मु न ह जो गाई।।
जे ह महु ँ आ द म य अवसाना। भु
तपा य राम भगवाना।।
नत ह र कथा होत जहँ भाई। पठवउँ तहाँ सु न ह तु ह जाई।।
जाइ ह सु नत सकल संदेहा। राम चरन होइ ह अ त नेहा।।
दो0- बनु सतसंग न ह र कथा ते ह बनु मोह न भाग।
मोह गएँ बनु राम पद होइ न ढ़ अनु राग।।61।।
–*–*–
मल हं न रघु प त बनु अनु रागा। कएँ जोग तप यान बरागा।।
उ तर द स सु ंदर ग र नीला। तहँ रह काकभु सु ं ड सु सीला।।
राम भग त पथ परम बीना। यानी गु न गृह बहु काल ना।।
31. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
राम कथा सो कहइ नरं तर। सादर सु न हं ब बध बहं गबर।।
जाइ सु नहु तहँ ह र गु न भू र । होइ ह मोह ज नत दुख दूर ।।
म जब ते ह सब कहा बु झाई। चलेउ हर ष मम पद स नाई।।
ताते उमा न म समु झावा। रघु प त कृ पाँ मरमु म पावा।।
होइ ह क ह कबहु ँ अ भमाना। सो खौवै चह कृ पा नधाना।।
कछ ते ह ते पु न म न हं राखा। समु झइ खग खगह क भाषा।।
ु
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भु माया बलवंत भवानी। जा ह न मोह कवन अस यानी।।
दो0- या न भगत सरोम न
भु वनप त कर जान।
ता ह मोह माया नर पावँर कर हं गु मान।।62(क)।।
मासपारायण, अ ाईसवाँ व ाम
सव बरं च कहु ँ मोहइ को है बपु रा आन।
अस िजयँ जा न भज हं मु न माया प त भगवान।।62(ख)।।
–*–*–
गयउ ग ड़ जहँ बसइ भु सु ंडा। म त अकंु ठ ह र भग त अखंडा।।
दे ख सैल स न मन भयऊ। माया मोह सोच सब गयऊ।।
क र तड़ाग म जन जलपाना। बट तर गयउ दयँ हरषाना।।
बृ बृ
बहं ग तहँ आए। सु नै राम क च रत सु हाए।।
े
कथा अरं भ करै सोइ चाहा। तेह समय गयउ खगनाहा।।
आवत दे ख सकल खगराजा। हरषेउ बायस स हत समाजा।।
अ त आदर खगप त कर क हा। वागत पू छ सु आसन द हा।।
क र पू जा समेत अनु रागा। मधु र बचन तब बोलेउ कागा।।
दो0-नाथ कृ तारथ भयउँ म तव दरसन खगराज।
आयसु दे हु सो कर अब भु आयहु क ह काज।।63(क)।।
े
सदा कृ तारथ प तु ह कह मृदु बचन खगेस।
जे ह क अ तु त सादर नज मु ख क ि ह महे स।।63(ख)।।
ै
–*–*–
सु नहु तात जे ह कारन आयउँ । सो सब भयउ दरस तव पायउँ ।।
दे ख परम पावन तव आ म। गयउ मोह संसय नाना म।।
32. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
अब ीराम कथा अ त पाव न। सदा सु खद दुख पु ंज नसाव न।।
सादर तात सु नावहु मोह । बार बार बनवउँ भु तोह ।।
सु नत ग ड़ क गरा बनीता। सरल सु ेम सु खद सु पु नीता।।
ै
भयउ तासु मन परम उछाहा। लाग कहै रघु प त गु न गाहा।।
थम हं अ त अनु राग भवानी। रामच रत सर कहे स बखानी।।
पु न नारद कर मोह अपारा। कहे स बहु र रावन अवतारा।।
भु अवतार कथा पु न गाई। तब ससु च रत कहे स मन लाई।।
दो0-बालच रत क हं ब बध ब ध मन महँ परम उछाह।
र ष आगवन कहे स पु न ी रघु बीर बबाह।।64।।
–*–*–
बहु र राम अ भषेक संगा। पु न नृप बचन राज रस भंगा।।
पु रबा स ह कर बरह बषादा। कहे स राम ल छमन संबादा।।
ब पन गवन कवट अनु रागा। सु रस र उत र नवास यागा।।
े
बालमीक भु मलन बखाना। च क ट िज म बसे भगवाना।।
ू
स चवागवन नगर नृप मरना। भरतागवन ेम बहु बरना।।
क र नृप
या संग पु रबासी। भरत गए जहँ भु सु ख रासी।।
पु न रघु प त बहु ब ध समु झाए। लै पादुका अवधपु र आए।।
भरत रह न सु रप त सु त करनी। भु अ अ
भट पु न बरनी।।
दो0-क ह बराध बध जे ह ब ध दे ह तजी सरभंग।।
बर न सु तीछन ी त पु न भु अगि त सतसंग।।65।।
–*–*–
क ह दं डक बन पावनताई। गीध मइ ी पु न ते हं गाई।।
पु न भु पंचवट ं कृ त बासा। भंजी सकल मु न ह क
ासा।।
पु न ल छमन उपदे स अनू पा। सू पनखा िज म क ि ह क पा।।
ु
खर दूषन बध बहु र बखाना। िज म सब मरमु दसानन जाना।।
दसकधर मार च बतकह ं। जे ह ब ध भई सो सब ते हं कह ।।
ं
पु न माया सीता कर हरना। ीरघु बीर बरह कछ बरना।।
ु
पु न भु गीध
या िज म क ह । ब ध कबंध सब र ह ग त द ह ।।