पोवारी बोली, मध्य भारत के बालाघाट, भंडारा, गोंदिया और सिवनी जिलों में निवासरत पंवार(पोवार) समाज के द्वारा बोली जाती है और यही उनकी मूल मातृभाषा भी हैं।
e Magazine in Powari Langugae.
Powari language is spoken by Powar community in Vainganga Valley Central India. Powar are group of 36 clan which migrated from western India in the era of Aurngjeb and settled intially at Nagardhan near Nagpur and finally settled in Vainganga valley. Presntly these known as 36 clan Panwar or Powar community.
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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
Collection of Powari Article/Poem. Powari is mother tounge of Powar(36 clan Panwar) of Vainganga valley in Central India who migrated from Malwa in beginning of Eighteenth century.
तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन्द्रियग्राह्य है,
पोवारी बोली, मध्य भारत के बालाघाट, भंडारा, गोंदिया और सिवनी जिलों में निवासरत पंवार(पोवार) समाज के द्वारा बोली जाती है और यही उनकी मूल मातृभाषा भी हैं।
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Powari language is spoken by Powar community in Vainganga Valley Central India. Powar are group of 36 clan which migrated from western India in the era of Aurngjeb and settled intially at Nagardhan near Nagpur and finally settled in Vainganga valley. Presntly these known as 36 clan Panwar or Powar community.
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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
Collection of Powari Article/Poem. Powari is mother tounge of Powar(36 clan Panwar) of Vainganga valley in Central India who migrated from Malwa in beginning of Eighteenth century.
तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन्द्रियग्राह्य है,
March-2020 Free Monthly Hindi Astrology Magazines, You can read in Monthly GURUTVA JYOTISH Magazines Astrology, Numerology, Vastu, Gems Stone, Mantra, Yantra, Tantra, Kawach & ETC Related Article absolutely free of cost.
GURUTVA JYOTISH MONTHLY E-MAGAZINE MARCH-2020
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका मार्च-2020 में प्रकशित लेख
चैत्र नवरात्र विशेष विशेष
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रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
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रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
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वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
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रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
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वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
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रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
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वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
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रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
Mayari, is a peotry book written in Powari langugae by Engineer Gowardhan ji Bisen. Powari is language spoken by Powar(Panwar) community of Vainganga Valley of Central India.
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रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
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(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
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रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
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(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
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रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
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वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
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रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
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श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
Mayari, is a peotry book written in Powari langugae by Engineer Gowardhan ji Bisen. Powari is language spoken by Powar(Panwar) community of Vainganga Valley of Central India.
The peotry book written in Powari langugae by Sau. Fulwanta Bai Jiyalal Chaudhary. Powari is language spoken by Powar(Panwar) community of Vainganga Valley of Central India.
पोवारी भाषा बालाघाट, गोंदिया, भंडारा अना सिवनी जिला मा बस्या छत्तीस कुर का पंवार / पोवार समाज क़ी भाषा आय। पोवारी भाशा मा पोवारी साहित्यिक कार्यक्रम क़ी रचना इनका संग्रहण पोवारी साहित्य सरिता मा होसे।
पोवार/पंवार समाज मध्यभारत में मुख्यतया बालाघाट, गोंदिया, भंडारा और सिवनी जिलों में निवासरत हैं। छत्तीस कुल का पंवार समाज के विवाह के नेंग दस्तूर और रीतिरिवाजों का उल्लेख इस लेख में किया गया हैं।
*"झुंझुरका", पोवारी बाल ई मासिक पत्रिका*
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क्षत्रिय पोवार(पंवार) समाज की मातृभाषा(मायबोली), पोवारी(पंवारी) में बच्चों की पत्रिका, *"झुंझुरका"* निश्चित ही नई पीढ़ी को अपनी पुरातन संस्कृति और भाषा से परिचित कराती है। छत्तीस कुल का पंवार(पोवार) समाज बालाघाट, गोंदिया, भंडारा और सिवनी जिलों में बसा है और पोवारी बोली ही समाज की मुख्य मातृभाषा है। इस भाषा के अस्तित्व को बचाये रखने और इसका नई पीढ़ी तक प्रचार-प्रसार के लिए इस मासिक e-पत्रिका, का योगदान सराहनीय है।
अठारवीं सदी में पोवार(पंवार) समाज मालवा-राजपुताना से नगरधन-नागपुर होते हुए विशाल वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा है। इतने विशाल क्षेत्र में बसने के कारण पोवारी बोली में कुछ क्षेत्रवार विभिन्नता भी देखने में आती है पर मूल पोवारी बोली और संस्कृति का स्वरूप सब तरफ समान है। आज जरूरत है कि अपने पूरखों की इस विरासत को सहेजकर रखें और इसे मूल स्वरूप में आने वाली पीढियों को सौंपे।
छत्तीस कुल से सजा पोवार(पंवार) समाज ने माँ वैनगंगा की पावन धरती पर खूब तरक्की की है और इस घने जंगल के क्षेत्र को कृषि प्रधान बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। साथ में अपने राजपुताना क्षत्रिय वैभव को बचाकर भी रखा है। विकास के साथ समाज ने आधुनिकता की दौड़ में अपनी विरासत, पोवारी बोली को कुछ खोना शुरू कर दिया, लेकिन साहित्यकारों ने अपनी कलम से इसे संजोना शुरू कर दिया है और समाज को जागृत करने हेतु काफी प्रयास किये जा रहे हैं।
भाषा और संस्कृति, किसी भी समाज की महान विरासत होती है और इसके पतन से समाज की पहचान खो जाति है और समाज का भी पतन भी संभव है। ऐसे ही छत्तीस कुर के पोवार/पंवार समाज की महान ऐतिहासिक विरासत, "पोवारी संस्कृति" है, जिसे समाज को हर हाल में बचाना ही होगा। अपनी संस्कृति और पहचान का रक्षण, हर किसी का धर्म हैं। भारत का संविधान भी इसकी पूरी स्वतंत्रता देता है और इसी दायरे में रहकर सभी पोवार भाई-बहनों को आगे आकर अपनी महान विरासत, भाषा, पुरातन सनातनी परंपराओं और रीति-रिवाज का संरक्षण और संवर्धन करना है।
यह e-पत्रिका, "झुंझुरका", समाज के युवाओं की अपनी मातृभाषा/मायबोली को बचाने की शानदार पहल है। इसी प्रकार और भी निरन्तर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रियों का इतिहास
मालवा से नगरधन होकर वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवारों का गौरवशाली लेकिन संघर्षों से भरा इतिहास रहा है। ग्यारहवी से तेरहवीं सदी तक मध्य भारत पर मालवा के पंवार राजाओं का शासन था लेकिन मालवा पर इनकी सत्ता खोने के बाद मध्यभारत में पंवारों का कोई और विशेष इतिहास नही मिलता। यह समय पंवारों का संघर्ष भरा समय था और वे समय समय पर भारतीय राजाओं का सहयोग करते रहे। मराठा काल और ब्रिटिश काल में लिखी किताबें, जनगणना दस्तावेज, जिला गैज़ेट और शासकीय रिपोर्ट्स में वर्तमान में वैनगंगा क्षेत्र में बसे पोवारों का व्यापक इतिहास मिलता है और इसमें कहा गया है कि इनका आगमन स्थानीय राजाओं के मुगलों के विरुद्ध संघर्ष हेतु सहयोग मांगने पर आगमन हुआ। इन शासकों ने पंवारों की वीरता को देखते हुए इन क्षेत्रों में स्थायी रूप से बसने के लिए प्रेरित किया।
वैनगंगा क्षेत्र में पोवारों की बसाहट : Central Provinces' Census, १८७२, के अनुसार वैनगंगा क्षेत्र के पोवार(पंवार) मुलत: मालवा के प्रमार(Pramars) है जो सर्वप्रथम नगरधन, जो की जिला नागपुर के रामटेक के पास है, आकर बसे थे। सन १८७२ की इस रिपोर्ट में कहा गया है की इन क्षेत्रों में पोवारों का मालवा से आगमन इस जनगणना के लगभग सौ वर्ष पूर्व हुआ है। इसका अर्थ यह है की १७७० के आसपास वैनगंगा क्षेत्र में पोवार बस चुके थे। भाटों की पोथियों में मालवा राजपुताना से परमार क्षत्रियों के नगरधन आकर, वैनगंगा क्षेत्र में विस्तारित होने का उल्लेख मिलता है। नगरधन, विदर्भ का सबसे पुराना ऐतिहासिक नगर है और ग्यारहवीं शदी के अंत में भी इन क्षेत्रों पर मालवा के प्रमार वंश का शासन था। ११०४ में मालवा नरेश उदियादित्य के पुत्र लक्ष्मण देव ने नगरधन आकर विदर्भ का शासन संभाला था। नागपुर प्रशस्ति और सेंट्रल प्रोविएन्सेस गैज़ेट १८७० में इसका उल्लेख मिलता है। १८७२ की जनगणना रिपोर्ट में लिखा है की पोवारों के द्वारा नगरधन में किले का निर्माण किया। चूँकि यह पहले से ही विदर्भ के विभिन्न राजवंशो की राजधानी रही है इसलिए उसी जगह पर पोवारों के द्वारा नगरधन में किले का निर्माण किया गया।
मराठा काल में भी नगरधन, महत्वपूर्ण सैनिक केंद्र था और सेना में पोवारों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। नगरधन और आसपास के क्षेत्रों में पोवारों ने अनेक बस्तियां बसाई थी। भाटो की पोथियों में भी नगरधन और नागपुर में तीन पीढ़ियों के बसने की जानकारी मिलती हैं। उज्जैन से आये श्री दिगपालसिंह बिसेन सर्वप्रथम नगरधन आये थे। पोथी में ७१३ शब्द लिखा हैं और सम्भवतया यह १७१३ होगा जब उनका परिवार नगरधन आया होगा। उनके पुत्र श्री सिरीराज और लक्ष्मणदेव बिसेन के नागपुर में बसने का उल्लेख पोथी में दिया हैं। इसी प्रकार पोवारों के अन्य कुलों का मालवा राजपुताना के विभिन्न क्षेत्रों से नगरधन आकर वैनगंगा क्षेत्र की ओर विस्तार का विवरण हमारे भाट स्व. श्री बाबूलाल जी की पोथी में उल्लेख हैं। १८७२ की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार नगरधन से समय के साथ पंवार, वैनगंगा के पूर्व में आम्बागढ़ और चांदपुर की ओर विस्तारित हुए। कुछ पोवारों ने कटक पर मराठों के विजय अभियान में श्री चिमाजी भोसले का साथ दिया था। कटक अभियान में पोवारों के सौर्य और पराक्रम के कारण पुरस्कार स्वरूप उन्हें लांजी और बालाघाट जिलें में वैनगंगा के पश्चिम में बहुत सी भूमि उन्हें प्रदान की गयी।
*पंवार(पोवार) समाज की प्रतिष्ठा और वैभव*🚩🚩🚩
*समाज का सर्वविकास*🤝🤝
*पोवारी सांस्कृतिक चेतना केंद्र*🚩
नगरधन-वैनगंगा क्षेत्र में पंवारों को आकर बसने में लगभग 325 वर्ष हो चुके हैं और इन तीन शतकों में इस समाज ने इस क्षेत्र में विशेष पहचान बनाई हैं। मालवा राजपुताना से आये इन क्षत्रियों के पंवार(पोवार) संघ ने इस नवीन क्षेत्र के अनुरूप खुद को ढाल लिया लेकिन साथ में अपनी मूल राजपुताना पहचान को भी बनाये रखा है।
पोवार अपनी पोवारी संस्कृति और गरिमा के साथ जीवन व्यापन करते हैं और निरंतर विकास पथ पर अग्रसर हैं। शाह बुलन्द बख्त से लेकर ब्रिटिश काल तक इन क्षत्रियों की स्थानीय प्रशासन और सैन्य भागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वैनगंगा क्षेत्र में बसने के बाद पंवारों ने खेती को अपना मूल व्यवसाय चुना और इन क्षेत्रों में उन्नत कृषि विकसित की।
देश की आजादी के बाद से समाज में खेती के अतिरिक्त नौकरी और अन्य व्यवसाय की तरफ झुकाव बढ़ता गया और आज सभी क्षेत्रों में पोवार भाई निरंतर तरक्की कर रहे है। जनसंख्या में बढ़ोतरी के साथ कृषि जोत का आकार छोटा होता गया और छोटी जोत तथा श्रमिक न मिलने के कारण अब कृषि के साथ नौकरी और अन्य आय के साधनों को अपनाना समय की आवश्यकता है इसीलिए अब समाज जन दुसरो शहरों की ओर रोजगार हेतु विस्थापित भी हो रहे हैं। वैनगंगा क्षेत्र से बड़ा विस्थापन नागपुर, रायपुर सहित कई अन्य शहरों में हुआ है, हालांकि कोरोना जनित परिस्थितियों के कारण कई परिवार वापस अपने मूल गांव भी आये हैं। बालाघाट, गोंदिया, सिवनी और भंडारा जिलों के मूल निवासी, छत्तीश कुल के पोवार अब देश-विदेश में अपने कार्यों से समाज के वैभव को आगे बढ़ा रहे हैं।
विकास के आर्थिक पहलुओं के साथ सामाजिक पहलुओं पर भी चिंतन किया जाना आवश्यक है। समाज की तरक्की के साथ सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण भी जरूरी हैं तभी इसे समग्र विकास माना जायेगा। यह बहुत ही गौरव का विषय है कि समाज की बोली अपनी बोली है, जिसे पोवारी कहते है। आज समाज की जनसंख्या लगभग तेरह से पंद्रह लाख के मध्य है और लगभग आधी जनसंख्या ही पोवारी बोली बोलती है या जानती हैं, जिसका प्रतिशत धीरे धीरे और भी कम हो रहा है। समाज के सभी लोग इस दिशा में मिलकर काम करे तो नई पीढ़ी को अनिवार्य रूप से पोवारी सिखा सकते है। पोवारी ही समाज की मातृभाषा है, लेकिन हिंदी और मराठी, क्षेत्रवार यह स्थान ले रही है। पोवारी सिर्फ हमारे समाज की बोली है इसीलिए यह उतनी व्यापक तो नही हो सकती पर अपने परिवार और समाज के मध्य इसका बहुतायत में प्रयोग करें तो पूरा समाज इसे बोल पायेगा।
आर्थिक समस्याओं के साथ अंतरजातीय विवाह, धर्मपरिवर्तन, पोवारी सांस्कृतिक मूल्यों का पतन, देवघर की चौरी का त्याग, ऐतिहासिक नाम पंवार और पोवार के साथ छेड़छाड़ कर दूसरे समाजों के नामों को ग्रहण करवाना, बुजुर्गों के अच्छे पालन-पोषण में कमी, दहेज की मांग आदि अनेक समस्याएं समाज के सामने खड़ी हैं जिसको सभी को मिलकर सुलझाना है। सामाजिक संस्थाओं को भी पोवारी बोली और उन्नत पंवारी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आना होगा।
"पोवार"
श्री महेन जी पटले के द्वारा लिखित इस किताब में पोवार समाज की उत्पत्ति, विकास और विस्तार के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। पोवार समाज धारानगर से विस्तारित होकर वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा था और यह समाज आज "छत्तीस कुलीन पंवार समाज" के नाम से जाना जाता है। ये सभी कुल पुरातन क्षत्रिय हैं जिन्हे सम्मिलित रूप से पोवार या पंवार कहा जाता हैं।
भाटो ने इस समाज को मालवा के परमार बताया हैं जो मालवा से सबसे पहले नगरधन आये फिर नागपुर और अंत में वैनगंगा क्षेत्र में जाकर स्थायी रूप से बस गये।
"पोवार" नामक इस ग्रन्थ में इस समाज के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती हैं। श्री महेन जी पटले को इस भागीरथ प्रयास हेतु बहुत बहुत बधाइयाँ और अनंत शुभकामनायें।
वैनगंगा क्षेत्र में बसे क्षत्रिय पंवार(पोवार) की गौरवगाथा Kshtriya Panwar
The Panwar(Powar) community basically migrated from malwa. Initially they arrived at Nagardhan and via Nagpur finally the society settled in Bhandara(include Gondia), Balaghat and Seoni district in Vainganga valley of Central India. Society is divided in thirty six kul. The mothertounge of society is Powari.
मालवा से पंवार(पोवार), सबसे पहले नगरधन आये थे. इसके पहले भी पंवार राजा भोज के भतीजे, लक्ष्मण देव पंवार ने बारहवी सदी की शुरुवात में नगरधन से मध्य भारत पर शासन किया था. अठारहवी सदी की शुरुवात में स्थानीय राजाओं के आह्वान पर मुगलों से लड़ने के लिए बड़ी संख्या में पंवार राजपूत मध्यभारत में आये थे. कुछ समय नगरधन नागपुर में रहने के बाद ये लोग वैनगंगा क्षेत्र में स्थायी रूप से बस गये. पंवार या पोवार समाज के छत्तीस कुल हैं और ये अपने विवाह इन्ही छत्तीस कुलों में होते हैं. आज पोवार समाज मुख्यतया बालाघाट, गोंदिया, सिवनी, भंडारा और नागपुर जिलों में निवासरत है.
पोवारी(पंवारी) भाषा : पोवारी(पंवारी) मध्यभारत को वैनगंगा क्षेत्र मा निवासरत पंवार(पोवार) समाज की मायबोली(मातृभाषा) आय। डॉ. भोलानाथ जी तिवारी को द्वारा रचित किताब, "भाषा विज्ञान कोष" मा ऐव तथ्य उल्लेखित से की पोवारी बोली बालाघाट अना सिवनी जिला मा बोली जासे। 1891 की जनगणना मा 70,000 मानुष पोवारी बोलने वाला होता । अज छत्तीस कुर का पंवार (पोवार) की देश मा जनसंख्या 14 लाख को आसपास से। लगभग अरधी पोवार जनसंख्या पोवारी मा बोलसेती अना दुई तिहाई समाजला पोवारी उमजसे। ऐन बात की लगित जरुरत से की समाज को बीच मा आपरी मायबोली को अधिकाधिक प्रचार होनो पायजे, तब आपरी मातृभाषा को अस्तित्व बरकरार रहे, नही त् आपरो पुरखाइन की या विरासत मुराय जाहे।
2. 2
संपादकीय.......
दोस्तहो..... गया दुय साल कोरोना बबमारीक् प्रकोपक् कारण आपण आपला सांस्कृ तीक सण
उत्सव साजरा नही कर सक्या. पर यंदा आपला सण उत्सव आपण खुल् माहोलमा साजरा कर रह्या
सेज्. जजवती, पोरा, कानुबा,गणपती, पोरा, मारबद, नवरात्री, दसरा, ददवारी, मंडई इ. सण उत्सवमा
सबउंज्या खुशीको माहोल रव्हंसे.
येनच सण उत्सवमा घर परीवार, संगीभाई, रीस्तेदार सबको ममलन होसे. माणूस येव समाजमशल
प्राणी रहेक् कारण येव सण उत्सवमा सबको एकजाग् आवनो, ममलनो येव उजाादायी अनुभव रव्हसे. एक
मेकसंगमा मेलजोलक् कारण सौहादापूणा सामाजजक वातावरणकी ननममाती होसे. तसोच जजवनमा आयेव
सुख दुखला एकदुसरोसंग् बाटेव जासे. येन् सब कारणलक आपल् समाजमा सण उत्सवला अनन्यसाधारण
महत्व प्राप्त भययी से.
ये सन उत्सव साजरो करनक् बेरा समाजहीत ध्यानमा ठेवो असी झुंझुरका मामसक संपादक
मंडळ करलक तुमला सबला बबनती से. सबला सण उत्सवकी मंगलमय शुभकामना!
- गुलाब बबसेन (मो. नं. 9404235191)
संपादक - झुंझुरका पोवारी बाल ई मामसक
- गुलाब बबसेन
संपादक - झुंझुरका पोवारी बाल ई मामसक
मो. नं. 9404235191
संपादक मंडल
श्री गुलाब बबसेन, संपादक
श्री रणदीप बबसने, उपसंपादक
श्री महेंद्रकु मार पटले, उपसंपादक
श्री महेंद्र रहांगडाले, उपसंपादक
ननममाती
महेंद्र रहांगडाले
3. 3
*कसो ना मुसोच ्*
🌷🌷🌷🌷🌷
अजपासुन रामू की स्कू ल चालू होनकी होती।पर अज ओको पोटमा
सकारपासुनच दुखत होतो। आपलो आईंला घडी घडी
बुलावत होतो *"अााई मोरो पोटमा कसो ना मुसोच लगसे।*
अजी रामू का बाबूजी देखो ना ,मी डॉक्टर ला बुलाई सेव।
रामू की अााई भी मोठ्यानं चचंता मा होती.बाबूजी भी बीचारन बस्या
कसो लगसे ,गुद्गुड लगसे?, का मुडडा मारख्यान आवसे?, त रामू बस , कसो
ना मुसोच लगसे की रट लगावत रहेव.
वोत्तो माच डॉक्टर आया ना बीचारन बस्या .पर उनको काई समझ मा
नहीं आयेव.
तब बाहर लक रामू को मास्तर जी की आवाज आई. रामू को बाबूजी न
ऊनला अंदर बुलाईन. तब मास्तर जी न भी रामू ला बीचाररन,पर ओको एकच
उत्तर….*कसो ना मूसोच लगसे* तब मास्तर जी को ध्यान मा आायेव, उनन
रामू ला बीचारीन, तोरो गृह काया भयेव का स्कू ल को ….. अना रामू घबरानेव,ना
सांगीस,,,,,नहीं, नहीं पुरो नहीं भयेव….
मास्तर जी न सांचगन,रामू न छ
ु ट्टी को ददनमा मस्त खेलीस कु ददस,ना
गृह काया नहीं करीस,,,, अज पासून स्कू ल चालू होनकी से …..मून भेव को माऱ्या
एको पोटमा कसोना ना मुसोचं लगण बसेवं…..सब हासण बस्या……
✍️सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
4. 4
*जूनी पीढ़ी अना नवी पीढ़ी*
श्री ऋषी बबसेन, बालाघाट
जूनी पीढ़ी का अनुभव अना
नवी पीढ़ी का नवो ज्ञान।
दुय पीढ़ीका समन्वय होय जाहे
त समाज बने महान।।१।।
जूनी पीढ़ी का बुजरुग चगनको
सबला राखनों पडे मान।
उनको आशीवााद लक़
जजत जाओ तुम्ही जहान ।।२।।
डोरा मा उनको पपरम ही पपरम से
नही कोनी अमभमान।
सीख लक़ ओनकी बनहे रस्ता
जर जाहे कटीलो रान।।३।।
ओनकी देखाई राह परा चलकन
ममट जाहे मन का अज्ञान।
नवी पीढ़ी लक पपरम येतरो की
देय देहेत आपरी जान ।।४।।
ओनकी देखाई राह परा चलकन
ममट जाहे मन का अज्ञान।
नवी पीढ़ी लक पपरम येतरो की
देय देहेत आपरी जान ।।४।।
बसो उनको संग अना बाटो उनला
आपरो दहरदय का बान।
येतरोच मा वय ददसेती तुमला
सदा गावता ख़ुशी का गान।।५।।
बुजरुग ओढ़ील पुरखा आती
हर घर पररवार की शान।
हम तुम्ही सबको यव धरम की
देनला से उनला सम्मान ।।६।।
ऋपष बबसेन, बालाघाट
5. 5
पोवारी सामान्य ज्ञान मादहती
जंगल अना प्राणी
१) भारत मा चचता कोनसो देश लक् आणीन? नामीबबया
२) भारत मा क
े तरा चचता आणीन?- ८
३)चचता ला कोनसो अभयारण्य मा सोडीन?- क
ु नो अभयारण्य- मध्यप्रदेश
४) महाराष्ट्र को राज्य प्राणी- शेकरू
५)महाराष्ट्र को राज्य पक्षी- हररयाल
६)कान्हा नॅशनल पाक
क कोनसो राज्य मा से? मध्यप्रदेश
७)कऱहाांडला वन्यजीव अभयारण्य कोनसो राज्य मा से?- महाराष्ट्र (नागपूर- भांडारा
जजल्हा)
८) कमलापूर हत्ती क
ॅ म्प महाराष्ट्र को कोनसो जजल्हा मा से?- गडचचरोली
९) सांजय गाांधी राष्ट्रीय उद्यान कोनसो सहर मा से?- मुांबई
१०)भारत मा ससांह कोनसो राज्य मा सेत?- गुजरात
संकलक- महेंद्र रहांगडाले, मच्छेरा
6. 6
चॉकलेट को बंगला
गल्ला मा सांगराई सेव पैसा चचल्लर
चॉकलेट लेयक
े बांगला बाांधून सुांदर
सांगीसाथी खेलबां बांगलामा लपाछ
ु पी
मेजवानी खाबीन ककसमी अना टाफी
मज्जा करबां आम्ही खेल खेलकर
सौ.शारदा चौधरी
भंडारा
बांगला ला कवाड पक
क मांच को
अांदर बहार आवांन जान को
नक्षीकाम रेखीव ददसे कोरकर
दरवाजापर सांत्रा गोलीकी कमान
सुबक मनोहर ददसें शोभस्याांन
चौकटपर लोबांती तोरणकी झालर
खखडकी रहे इकलेअर की चौकोन
मोबाईलकी बजे हमेशा मधुर ररांगटोन
सजावटको काम आयेती चॉकलेट रॅपर
आांगणमा उभा कच्चा मँगोका झाड
पपपरमेन्ट का फलेती फल रसाळ
बगीचा रांगबबरांगी ददसे फ
ु लकर
बांगलापर चमक
े ती चांदेरी ससतारा
पानी सुटे तोंडला कोन देखकरा
उनको पर रहे मोरी हरदम नजर
क
ॅ टबरी को गच्ची पर सुांदर नजारा
देखून मी वहा लक चांद्र अन तारा
डेअरी समल्कका लाईट उठेत पेटकर
आांगणमा उभा कच्चा मँगोका झाड
पपपरमेन्ट का फलेती फल रसाळ
बगीचा रांगबबरांगी ददसे फ
ु लकर
बांगलापर चमक
े ती चांदेरी ससतारा
पानी सुटे तोंडला कोन देखकरा
उनको पर रहे मोरी हरदम नजर
क
ॅ टबरी को गच्ची पर सुांदर नजारा
देखून मी वहा लक चांद्र अन तारा
डेअरी समल्कका लाईट उठेत पेटकर
7. 7
*इल्ली*
डॉ प्रल्हाद हररनखेडे, डोंगरगाव/उलवे मुंबई
कहीं कोल्या भेस
आंगभर क
े स
कहीं पानबबच्छ
ू को
चढ़ जासे टेस
पान फ
ू ल डडरा
लौकी बाल खीरा
करे असो ठुटा जसो
चल गयेव ईरा
रंगनारंग का
अकार अंग का
तालमा उठावं पाय
पुढ़ो ना मंघं का
नवा नवा कोरा
मोठा मोठा डोरा
घीवपर झाक
े व से
काच को कटोरा
झ्याक या सुंदरी
नवा नवा कोरा
मोठा मोठा डोरा
घीवपर झाक
े व से
काच को कटोरा
झ्याक या सुंदरी
मारं से गुंढरी
चाळा येका देखता
लगं से तंदरी
खाय क
ु रामक
ू र
फ
ु गं टुरामटूर
बन क
े फफपोली
उड गयी भुरामभूर
******************
डॉ. प्रल्हाद हररणखेडे 'प्रहरी'
डोंगरगांव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
लोलू पोंजू दढल्ली
पानपर की इल्ली
पानी मा पडी छपाक
भय गयी चगल्ली
8. 8
पवद्यार्थी अना आधुननक उपकरन
नवी पीढ़ी ला नवो उपकरण को प्रनत लगाव लचगत होय गयी से। कोरोना काल मा
पढाई-मलखाई बी ऑनलाइन होय गयी होती जेको कारन नहान-नहान पवधार्थी इनला उपकरण को माध्यम लक
कक्षा लेनो पड्यो। मोबाइल/कम्प्यूटर जसा उपकरण बालमन ला एक खेल को जसो लगसे अन एको परा पढ़ाई
कसी भई यव सबला मालूम से। आता प्रभु की फकरपा लक सब साजरो होय रही से। शाला आता खुल गयी सेती
परा टुरु-पोटु इनको गैज़ेट को प्रनत लगाव अददकच भय गयी से। असो लगसे की वय एको बबगर कसो रहेती।
खेलनला नहीं भेटसे त वय बबव्हार मा चचढ़-चचढ़ होसेती। यव हर घरमा ददस रही से। मोबाइल मा खेल खेलन
को कारन आता बच्चाइन बादहर खेलनला जानला नहीं देखसेत। एको ननराकारन कसो होहे। पुरो गैज़ेट लक दूर
करबीन त कई चीज सूट जाहे। नवी पीढ़ी अन जूनन पीढ़ी मा आता यव टकराव को कारन होय रही से।
प्रनतस्पधाा को यव जमाना आय त एको संग सामंजस्य बी करन को से नहीं त
समाज मा मंघ रव जाबीन। बच्चा इनको मनमा बादहर को खेल का प्रनत लगाव जगावानो जरुरी से। पालक इनला
खुद उनको संग खेलनो पढ़े। र्थोडो समय लाई आपरो डोरा को जवर राखकन कोनी भी उपकरण देनो साजरो से
परा एको बादमा अददक नोको देव। उनला कर्था को द्वारा बी यव सीख देयजाय मसक से की गैज़ेट का क
े तरो
नुकसान से। कई बार आम्हीच आपरो धीरज ला खोयकन बाल-बच्चा इन परा हार्थ उठावो सेजन, परा यव सही
नहाय। सबलक पदहले मोठा इनला एको लक दूर होनको से एको बादच हमारो उनपरा हक बनहे।
जेतरो जजयादा बच्चा इन आपरो बालसखा संग खेलती अखखन घर का बुजरुग इनको संग रहेती, ओतरो
उनको लाइ बेस से। उपकरण कोनी ददखावा करन का जजनुस नहाय, न कोनी खेलन का। जेतरर एनकी जरत से
ओतरोच प्रयोग बेस से अन ओको बाद इनला दूरच ठेवनो साजरो से। सबला ममलकन समाज मा यव नवी समस्या
का ननवारन करनो पढ़ें।
✍🏻ऋपष बबसेन, खामघाट(बालाघाट)
9. 9
*ठाट - बाट*
=======
पहले पोवार घर होतो, बहुत र्थाट-बाट,
मोठांग क् सपरीपर रव्ह शहानो की खाट.
मोठांग सहसा आवत नोहोती बहू बयदी,
आयी बी त् डोईपर सेव रव्हत होतो जरूरी.
आदमी लोक इनकी पंगत बस संगच जेवनला,
बाई लोक एक एक चीज वाढत होती सातरोमा.
आदमी लोक बाहेर गया त् देखनो पड बाट,
उनक जेये बबगुर बाई लोक कभी नोहोती खात.
पाहुणा इनकी होत होती बहुत खानतरदारी,
पाय धोवनको, चुरूको पानी होतो जरूरी.
पर आता पवभक्त क
ु टूंब पद्धतीमा वा बात नही रहीसे,
धीरू - धीरू पुरानो ननयम मा कमी आय रहीसे.
श्री चचरंजीव बबसेन
गोंददया
10. 10
प्रेरणास्र्थान
श्री शेषराव येळेकर
हे बजरांग बली
असो बल करु धारण
रामचरीत्र जाणकन
करु समाज पालन
दुगाक सरस्वती लक्ष्मी
तुमरी करु पूजा
पवद्या धन शक्ती लका
फ
ै लावू आपली ध्वजा
ब्रम्हा पवष्ट्णू महेश
मोरो "मी" मा समाया
धमक सांस्कृती सांस्कार की
ननत्य बरससे छाया
सांत सारखी भक्ती
कृष्ट्ण सारखो प्रेम
धमक अथक काम मोक्ष मा
समायोव से राम
सांत सारखी भक्ती
कृष्ट्ण सारखो प्रेम
धमक अथक काम मोक्ष मा
समायोव से राम
वीर सशवाजी सावरकर की
धमक ध्वजा लहरायोव
फ
ु ले आांबेडकर शाहू का
क्ाांती पवचार मा समायोव
ननसगक मुती अना आस्था
ननत्य बनी प्रेरणास्थान
पूवकजोंका पदपग पर चलकन
सदमागक मा से उत्थान
11. 11
🌷🌷गल्ला🌷🌷
सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
गल्ला आव मी गल्ला
मोठो पोट से भल्ला
गोल गोल हांडी सररखो
चचल्लर पैसापर मारुसू डल्ला
टुरू पोटू को लाडको
लुकायेव रहुसू फ
ु लमा
पैसा लका पोट भरुसू
मज्या आवसे हर घासमा
क
ुं भार मोरा मायबाप
घडसे कच्चो मातीलक
पकावसे मंग भट्टीमा
रंग भरसे मेहानतलक
टूरूपोटू को बैंक आव
बचत को पाठ पढाउसू
प्यार लक ठेवसेत मोला
आडो वक्तमा काम आउसू
कभी कभी खाजो साती
टूरू हुशार बनजासेत
काडी डाक डाक पैसा
अंदर लक कहाडसेत
कभी कभी खाजो साती
टूरू हुशार बनजासेत
काडी डाक डाक पैसा
अंदर लक कहाडसेत
असो मी गल्ला न्यारो
अलग अलग आकार मोरो
प्लाजस्टक रव या माती
मी रहूं लाल या कारो
असो गल्ला फोडन की
देखसेत सब जन बाट
मोजन साती रुपया पैसा
चचल्लर लक भरसेत हार्थ
बचतको मी मागा खरो
अाायको सब मोरी बात
बूंद बूंद लक सागर भरसे
गल्ला को धरो हार्थ
सौ छाया सुरेंद्र पारधी
12. 12
पक्षी की कमाल
एक गन जंगलमा
पक्षी न ् करीन कमाल
इत उत उडाइन
धमालच धमाल ||धृ||
सौ वंदना कटरे “राम-कमल”
कारो कारो कावरा
कवन बसेव गानो
कोकीराको तानला
भुल गयेव सायनो ||१||
पाणीपरा चलनबसी
पाणकोंबडीकी चाल
वारासंग उडावत
होती आपला बाल ||२||
आया मसमना मसमनी
तरा को पानी पपवन
पाणीला उडायक
े
आंग धोव दुही जन ||३||
दहरवो दहरवो ममठ्ठू
कवन लगेव मंत्र
मोर मोरनीला मसकाव
नाचनको तंत्र ||४||
दहरवो दहरवो ममठ्ठू
कवन लगेव मंत्र
मोर मोरनीला मसकाव
नाचनको तंत्र ||४||
ढोंग रच् ध्यानको
पांढरो पांढरो बगुला
फट् ददसं पकडं
मसरीको मानगुटीला ||५||
सब पक्षी मगन
आपलोच तालमा
शेर को डरकारीन ्
आया सप्पा भानमा ||६||
वंदना कटरे "राम-कमल "
गोंददया.
13. 13
मु
एक होती मुंगी
वोन वापररस लुंगी
लुंगी भयी मोठी
मुंगी ददसं छोटी
लुंगी मा अटक
े व पाय
रोवन लगी करत हाय हाय
मुंगीन ् आननस साखर
ओला लगाईस खाकर
उतन लका आयोव हत्ती
खाकर पर देईस बत्ती
मुंगी ला आयोव राग
कान ला डमसस बनकन नाग
हत्ती की संपी मलला
मुंगी गरोमा जीत की माला
मुंगी जरी से लहान
पर काम ओको से महान
मुंगी
श्री शेषराव येळेकर