SlideShare a Scribd company logo
Prachi Virag Sontakke
BA V Sem Paper: 506
BHU
Legal Institutions in Ancient India
By
Prachi Virag Sontakke
BOOKS
• अच्छेलाल यादव : प्राचीन ह िंदू ववधि
• पी वी काणे : िर्म शास्त्र का इति ास (खिंड II)
• रदत्त वेदलिंकार : ह िंदू पररवार र्ीर्ािंसा
• न त्ररपाठी: प्राचीन भारि र्ें राज्य और
न्यायपाललका
• जे जॉली : ह िंदू लॉ एिंड कस्त्टम्ज़
प्राचीन ह िंदू ववधि : स्त्वरूप (Nature)
• िालर्मक एविं नैतिक
• दैवीय आिार
• व्यापक, ववववि आयार्
• सूक्ष्र् ववश्लेषण
• पररविमनशील: देश काल
अनुसार
• व्याव ाररक
• उद्देश्य: र्ानव कल्याण +
सार्ाजजक घटकों र्ें सिंिुलन
स्त्थावपि करना
• Religious & Moralistic
• Divine
• Exhaustive, multifaceted
• Subtle analysis
• Changes as per space & time
• Practical
• Aim: Welfare of human
beings + maintaining
balance between social
formations
प्राचीन ह िंदू ववधि की अविारणा : Concept
• आचार सिंह िा Code of conduct
• सवमस्त्वीकृ ि Universal
• ऋि,िर्म ,नैतिकिा पर आिाररि Based on Rta
• पाप-पुण्य िथा अपराि-दण्ड की अविारणा से द्ववववि
तनयिंरण Double control mechanism
उदय एविं ववकास : Origin & Development
• प्रथर् चरण : सर्ू की र्ान्यिाएँ ी ववधि रूप
• Stage I: Group norms as law
• द्वविीय चरण : िर्म ववधि- वैहदक सिंह िा, ब्राह्र्ण एविं उपतनषद
• Stage II: Dharma as Law
• िृिीय चरण : राजा ववधि का तनयिंिा- िर्म शास्त्र, िर्मसूर, अथम शास्त्र
• Stage III: King as Law maker
• चिुथम चरण : टीकाएँ – लर्िक्षरा , दायभाग
• Stage IV: Commentaries to aid and explain
Ancient Hindu Law
• Four legs of Law : Sacred law (िर्म), evidence (व्यव ार), history (चररि), and
edicts of kings (राज्यशासन).
• Dharma = eternal truth holding its sway over the world.
• Vyavahára = evidence, is in witnesses
• Charitra = history, is to be found in the tradition of the people
• Rajashasan = the order of king (legislations).
Sources of
Hindu Law
Shruti texts
Vedas Dharamsutras
Smriti texts
Dharamshashtras
Commentaries
प्रर्ुख स्त्रोि : Sources
• र्नुस्त्र्ृति : वेद वचन , स्त्र्ृति , परिंपरा से चला आ र ा लशष्टाचार, स्त्वयिं को वप्रय कायम
•
• सूर साह त्य यथा गौिर्, आपस्त्ििंभ , बौध्यायन िर्मसूर
• स्त्र्ृति ग्रिंथ यथा याज्ञवल््य , बृ स्त्पति, नारद स्त्र्ृति
• अथमशास्त्र
• लर्िाक्षरा (1050-1126 CE): ववज्ञानेश्वर – बनारस,लर्धथला, ओड़िसा, पिंजाब,र्द्रास र्ें र्ान्य
• दायभाग ( 1090-1130 CE): जीर्ूिवा न- बिंगाल एविं असर् र्ें र्ान्य
• अच्छेलाल यादव : सर्ाज ववधि का र्ुख्य स्त्रोि
Types of laws
Achaar
Vyavahaar
Prayashchit
Succession and Inheritance Law
अच्छेलाल यादव : उत्तराधिकार एविं रर्थ रण ववधि से िात्पयम सिंयु्ि पररवार
की पैिृक सम्जपवत्त का उसक
े सदस्त्यों र्ें ववभाजन क
े तनयर्ों से ै
A.L.Yadav: Law of succession & inheritance denotes the rules for division of
ancestral combined property among the members of the family.
• ववभाग = ज ाँ सिंयु्ि स्त्वालर्त्व ो व सम्जपूणम सिंपवत्त क
े भागों की तनजश्चि
व्यवस्त्था ी ववभाग ै
• Vibhaag: system of division of property in case of joint property
उत्तराधिकार एविं रर्थ रण ववधि: अथम/Meaning
• उत्तराधिकार = क्रिया जजसक
े द्वारा सम्जपवत्त ववभाजन का तनष्पादन =
क
ै से ?
• Succession governs how the inheritance would take place
• Uttaradhikar: Process by which property is divided
• रर्थ रण = सिंयु्ि सम्जपवत्त क
े ववभाजन क
े तनयर् = क्रकसको
• Rikthaharan: Rules as to who will receive the property
• Inheritance is the process of the heir inheriting his ancestors' Property.
• Literature : रर्थ = सिंयु्ि सम्जपवत्त (Combined/Joint property)
• Jolly: Riktha = Legacy of father
उत्तराधिकार
Succession
सिंपवत्त क
े प्रकार : Types of property
• बृ स्त्पति व कात्यायन : स्त्थावर (भूलर्, घर) एविं जिंगर्
• याज्ञवल्क : भू, तनबिंि+ द्रव्य (चल सिंपवत्त), अन्य
• बृ स्त्पति : द्रव्य = चल + अचल सिंपवत्त
• प्राचीन ववधि : सिंयु्ि क
ु ल सिंपवत्त (अप्रतिबिंि दाय) एविं पृथक सिंपवत्त
• शौयम िन : कात्यायन-जो राजा/स्त्वार्ी द्वारा क्रकसी सैतनक/नौकर को प्राणों की
बाजी लगा कर शूरिा हदखाने पर पुरस्त्कार रूप र्े प्राप्ि
• ध्वजाहृि : जो प्राणों की बाजी लगाकर युद्ि र्े/शरु को भगा कर प्राप्ि
• भायाम िन : वववा क
े सर्य बिंिुओ द्वारा दी गई सिंपवत्त
• ववद्या िन : ववद्या या ज्ञान से स्त्व अजजमि सिंपवत्त
• याज्य : र्िंहदरों/पुरोह िी से प्राप्ि दान सिंपवत्त
• योगक्षेर् : यज्ञ कर्म से प्राप्ि सिंपवत्त/जीववका
सिंपवत्त क
े प्रकार
• पृथक सिंपवत्त:
1. जो भाई/चाचा से प्राप्ि
2. जो पैिृक चल सिंपवत्त से वपिा द्वारा स्त्ने वश दान रूप र्ें प्राप्ि
3. पृथक सिंपवत्त से वपिा द्वारा हदया दान
4. वववा क
े सर्य बिंिुओ द्वारा दी गई सिंपवत्त (भायाम िन, वैवाह क)
5. क
ु ल से चली गई सिंपवत्त जो व्यज्ि क
े अपने प्रयास से दूसरे से
पुनः प्राप्ि
6. ववद्या या ज्ञान से स्त्व अजजमि सिंपवत्त (ववद्या िन)
अववभाज्य सिंपवत्त
• व सिंपवत्त जजसका ववभाजन न ीिं
• गौिर् : जल (क
ू प), यज्ञ क
े ललए तनिामररि सिंपवत्त, पका ुआ भोजन
• उशना : याज्य, सवाररयाँ, जल, जस्त्रयाँ, भोजन
• कात्यायन : िालर्मक उपयोग ेिु रखा िन, जल, जस्त्रयाँ, वस्त्र, अलिंकार
• बृ स्त्पति : चारागा , र्ागम, वस्त्र, उिार हदया िन, िालर्मक कायों ेिु तनहदमष्ट
िन
• र्नु : वस्त्र, यान, अलिंकार, पका भोजन, जल, र्ागम, जस्त्रयाँ
दाय : पररभाषा
• ऋग्वेद : दाय से अथम भाग या पुरस्त्कार से ै (Part or reward)
• िैत्तररय सिंह िा व ब्राह्र्ण साह य : सिंपवत्त, िन क
े अथम र्े प्रयु्ि (used in context of money, property)
• लर्िाक्षरा: व सम्जपवत्त जजस पर उसक
े स्त्वार्ी से सिंबिंि र्ार से ी सम्जबिंधिि व्यज्ि का स्त्वालर्त्व स्त्थावपि ो जाए – जैसे
पुर का अधिकार वपिा से उसक
े सम्जबन्ि क
े आिार पर (Property where ownership is established by mere
virtue of association)
• दायभाग: दाय दा िािु से उत्पन्न –जो हदया जाए वो दाय (दान)
दाय क
े दो आवश्यक आिार : 2 prerequisites
१. दािा क
े स्त्वित्व की तनवृवत्त : Discontinuance of all the rights over property by the giver
2. गृ णकिाम क
े स्त्वित्व की उत्पवत्त : Origin of acceptor’s right over property
एक क
े अभाव र्ें दूसरे का सृजन न ी : One not possible in absence of other
वपिा क
े र्रने पर ी तनवृवत्त सम्जभव : Discontinuance of right to ownership possible only after death
दाय क
े प्रकार : लर्िाक्षरा क
े अनुसार
अप्रतिबंधिि दाय /समांशी ददाय द द सप्रतिबंधिि दाय
पररवार र्ें जन्र् लेने र्ार से ी सम्जपवत्त क
े
उत्तराधिकारी = जन्र्स्त्त्ववाद
विंशपरिंपरा क
े वैि उत्तराधिकाररयों क
े
अभाव र्ें ी प्राप्ि = उपरर्स्त्त्ववाद
पुर, प्रपुर, प्रपौर चाचा, भाई, भिीजा, र्ार्ा, नाना, की
सम्जपवत्त प्राप्ि
दाय ग्र ण र्ें क्रकसी प्रकार का प्रतिबिंि न ी
– विंशपरिंपरा अनुसार ग्र ण
ये प्राप्ि सम्जपवत्त प्राप्िकिाम की पूणमिः
पृथक सम्जपवत्त
दाय क
े प्रकार: दायभाग क
े अनुसार
• सभी प्रकार का दाय सप्रतिबिंधिि दाय ै ्यूँक्रक व
पूवम स्त्वार्ी क
े ना र ने पर ी अन्य को प्राप्ि ोिा ै
लर्िक्षरा ववभाग ववधि: ववलशष्ट लक्षण
1. स्त्वालर्त्व की एकिा : सभी स भागी एक साथ स्त्वार्ी
2. भोग व प्राजप्ि की एकिा :सभी को सिंयु्ि सिंपवत्त पर अधिकार
3. स भागी की र्ृत्यु पर उसका भाग सर्ाप्ि ो जािा ै और अन्य को
प्राप्ि
4. प्रत्येक स भागी ववभाजन की र्ािंग कर सकिा ै
5. वपिा को व्यवस्त्थापक क
े ववलशष्ट अधिकार प्राप्ि जो क्रकसी स भागी को
न ीिं
6. त्रबना अन्य स भाधगयों की स र्ति क
े अववभाजजि भाग का दान, त्रबिी
न ीिं कर सकिा
7. जस्त्रयों को स भाधगिा न ीिं
8. दत्तक पुर स भाधगिा का सदस्त्य
दायभाग ववभाग ववधि: ववलशष्ट लक्षण
1. स भाधगयों को वपिा क
े जीवन काल र्े ववभाजन की र्ािंग का अधिकार न ीिं
2. वपिा को सिंपवत्त क
े व्यय, त्रबिी, दान का पूणम अधिकार
3. जस्त्रयों को भी स भाधगिा
4. स भागी की र्ृत्यु पर अन्य स भाधगयों को उसका भाग प्राप्ि न ीिं वरन
र्ृिक की वविवा या पुरी को स भाधगिा की सदस्त्यिा प्राप्ि
ववभाजन ववधि एविं भाग तनणमय
• ववभाजन से पूवम भाई अपनी ब नों क
े वववा क
े ललए व्यय क
े ललए व्यवस्त्था अवश्य
करे
• कौहटल्य, ववष्णु, बृ स्त्पति : भाई अपनी ब नों क
े वववा क
े ललए व्यय क
े ललए
व्यवस्त्था करे
• र्नु, कात्यायन, याज्ञवल््य : भाई अपनी ब नों क
े वववा क
े ललए व्यय क
े ललए
1/4 भाग देना चाह ए
• लर्िक्षरा : अवववाह ि कन्या को वववा क
े ललए उिना ी लर्लना चाह ए जजिना उसे
पुरुष ोने पर लर्ला ोिा
• दाय भाग : भाई को अपनी ब नों क
े वववा क
े ललए यहद सिंपवत्त कर् ै िो क
े वल
आवश्यक व्यय और अगर पयामप्ि ै िो 1/4 भाग देना चाह ए
ववभाजन एविं भाग तनणमय से पूवम व्यवस्त्थाएँ
वैवाह क व्ययों की व्यवस्त्था
क
ु ल ऋणों/ वपिा द्वारा ललए ऋणों का भुगिान
आधिि नाररयों की व्यवस्त्था
दोषी स भाधगयों की व्यवस्त्था
वपिा द्वारा हदए स्त्ने दानों की व्यवस्त्था
ववभाग/उत्तराधिकार क
े तनयर्
• लर्िाक्षरा : 1. क
े वल पुरुष ी सर्ािंशी (दायान्श ग्र ण र्ें प्रतिबिंि
न ी)
2. प्रत्येक प्रकार की सम्जपवत्त पर अधिकार जन्र् से
3. िीसरी पीढी िक ी सर्ािंशी : आिार = वपण्ड दान
उदा रण-
च को पैिृक सम्जपवत्त र्ें ह स्त्सा न ी।
ख, ग, घ क
े र्रने पर भी न ी।
क
े वल क क
े र्रने पे ख से उत्तराधिकार
• दायभाग : 1. जस्त्रयों को भी सर्ािंशी र्ाना ै।
2. र्रणोपरािंि ी स्त्वत्व उत्पन
क द
पििा
ख द
िुत्र
ग द
िौत्र
घ द
प्रिौत्र
च द
प्रिौत्र
उत्तराधिकार/ववभाग क
े तनयर्
लर्िाक्षरा: 1. सर्ािंशी जब चा े िब अपना अधिकार प्राप्ि कर सकिा ै
2.पैिृक सम्जपवत्त का ववशेष पररजस्त्थतियों र्ें ी अप ार
3.पृथक सम्जपवत्त पर वपिा का पूणम स्त्वालर्त्व
4.उस पर इच्छानुसार ववतनयोग (वविय/दान)की छ
ू ट
5.वप्रयनाथ सेन: वपिा की पैिृक व पृथक सम्जपवत्त र्ें क
े वल चल
सम्जपवत्त क
े अप ार का अधिकार
• दायभाग: 1.पैिृक सम्जपवत्त पर पुर का कोई अधिकार न ी
2.क
े वल वपिा क
े र्रणोपरािंि ी सम्जपवत्त र्ें अधिकार र्ाँग
सकिा ै
उत्तराधिकार क
े तनयर्
➢र्नु : ववभाजन एक बार ोिा ै
• अपवाद :
1. ववभाजन क
े उपरािंि पुरोत्पवत्त पर पुनः ववभाजन
2. देश छो़ि कर गए व्यज्ि क
े उत्तराधिकारी क
े लौट आने पर
3. छल से तछपी सम्जपवत्त क
े उजागर ोने पर
➢पुरुष शाखा से सिंबिंधिि गोरज सदैव स्त्री शाखा से सिंबिंधिि बिंिुओ से
रर्थ रण क
े ललए िेष्ठ
• अपवाद :
दायाद िर् र्े दौह र को पुरुष शाखा से सिंबिंधिि ोने वाले गोरज से
ब ुि प ले स्त्थान हदया गया ै
उत्तराधिकार क
े तनयर्
➢गोरज एविं सर्ानोदक, बिंिुओ से प ले क
े दायाद
• अपवाद :
दायाद िर् र्े दौह र को अन्य गोरज बिंिुओ से ब ुि प ले स्त्थान हदया
गया ै
➢सवपिंडिा साि पीढी िक
• अपवाद: बिंिुओ की सवपिंडिा क
े वल 5 पीढी िक
➢ लर्िाक्षरा : सिंयु्ि सिंपवत्त ववभाजन वपिृि ोिा ै, र्ुिंडश: न ीिं
(अपवाद : दौह रों र्े परस्त्पर ववभाग र्ुिंडश: ोिा ै वपिृि न ीिं)
क द
(मृि)
90 रुिये
ख द
(30 रुिये)
ग द
(मृि)
ग द1
(15 रुिये)
ग द2
(15 रुिये)
घ द
(मृि)
छ द
(मृि)
छ द1
10 (रुिये)
छ द2
10(रुिये)
छ द3
10
(रुिये)
च द
(मृि)
ज द
(मृि)
झ द
(मृि)
ि
उत्तराधिकार क
े ललए अयोग्य व्यज्ि = अनिंश / दायान म
• शारीररक एविं र्ानलसक रूप से अयोग्य व्यज्ि
• असाध्य रोगों से ग्रस्त्ि व्यज्ि
• चाररत्ररक दोषों से यु्ि व्यज्ि : दुराचारी, पतिि
• जाति से बह ष्कृ ि व्यज्ि
• पुर उत्पन्न करने र्े असर्थम व्यज्ि
• सन्यास ग्र ण करने वाले व्यज्ि
• वपिृ द्वेषी (वपिृ िंिा/ वपिा को वपिंड ना देने वाला)
• क
ु छ दशाओिं र्े जस्त्रयाँ
• अनैतिक ढिंग से क
ु लसिंपवत्त का व्यय करने पर ब़िे पुर को वपिा द्वारा दायािंश से विंधचि
क्रकया जा सकिा ै
पी. वी. काणे : ऐसा इसललए क्रकया गया ्यूँक्रक ये लोग िालर्मक कायम न ीिं कर सकिे और
सिंपवत्त और उसक
े साथ िालर्मक उपयोग का सिंबिंि अटूट र्ाना जािा ै
उत्तराधिकार क
े ललए अयोग्य व्यज्ि क
े अधिकार
1. स्त्र्ृति ग्रिंथ : जजन् े दोषों क
े कारण दायािंश न ीिं लर्लिा उन् े क
ु ल सिंपवत्त से
जीवन भर जीववका क
े सािन प्राप्ि ोिे ै
2. याज्ञवल््य: अयोग्य व्यज्ि क
े वववा पर उसकी पत्नी को जो सदाचाररणी ै,
जीववका लर्लिी ै
3. क
ु छ स्त्र्ृतियों ने पतिि एविं उसक
े पुर को भी जीववका से विंधचि कर हदया ै
4. यहद ववभाजन क
े सर्य व्यज्ि दोष र्ु्ि ो और दायािंश प्राप्ि ोने क
े बाद वो
दोषी ो जाए िो उसे जो लर्ला ै व छीन न ीिं जा सकिा
ववभाजन ववधि का उल्लिंघन
• ऐिरेय ब्राह्र्ण : ववभाजन ववधि क
े उल्लिंघन पर दिंड अवश्य
• र्नु : यहद ब़िा भाई, छोटे भाइयों को भाग से विंधचि करिा ै िो उसे
उसका ववलशष्ट भाग न ीिं लर्लिा और व राजा द्वारा दिंडडि ोिा ै
• दाय भाग : सिंयु्ि सिंपवत्त को तछपाना चोरी न ीिं ै
• लर्िाक्षरा : ऐसा कर्म चोरी क
े सर्ान ी
रर्थाधिकार
Inheritance
दायाद : पररभाषा
• वैहदक साह य : स अिंशग्रा ी अथामि अपने साथ िन का भाग पाने
वाला
• तनरु्ि व पाणणनी : दायाद शब्द का प्रयोग सर्ान अथम र्े
• J.Jolly: Dayad = Heir and is same as Sapinda (One who takes part in
funeral obligation).
रर्थ रण क
े तनयर्: दायाद िर्
• सवमर्ान्य स्त्वीकृ ि र्ि: पैिृक सम्जपवत्त सवमप्रथर् पुर को प्राप्ि ोगी।
• Universal acceptance: Son inherits first.
• र्िभेद का ववषय : पुर क
े अभाव र्ें सम्जपवत्त क्रकसे प्राप्ि ??
• Pot of controversay: Who inherits in absence of son
• गौिर्, आपस्त्ििंभ, बौध्यायन : सवपिंड, गुरु, लशष्य, राजा
• याज्ञवल््य : वविवा, पुरी, दौह र, र्ािा, वपिा, भाई, भिीजा, गोरज,
बिंिु, लशष्य
• बृ स्त्पति: याज्ञवल््य क
े सर्ान ी िर्
• नारद: कन्या, सक
ु ल्य, बािंिव, सजाति , राजा
• र्नु: पुरी, दौह र, वपिा, भाई, र्ािा, दादी, सवपिंड, सक
ु ल्य, गुरु, लशष्य,
ब्राह्र्ण, राजा
लर्िाक्षरा का दायाद िर्
1. पुर, पौर, प्रपौर
2. वविवा
3. पुरी
4. दौह र
5. वपिरौ
6. भाई
7. भिीजा
8. भिीजे का पुर
9. गोरज
10. सर्ानोदक
11. बिंिु
12. गुरु
13. लशष्य
14. स पाठी
15. राजा
एक दक
े  दअभाव दमें ददूसरा ददायाद दबनिा दहै द
बद्ि द
क्रम द
अबद्ि द द
क्रम द
लर्िाक्षरा का दायाद िर् : पुर
• पुर से िीन पीढी अथामि प्रपौर िक का बोि
• एक वपिा क
े सभी पुर सभी सिंपवत्त र्े बराबर का भाग पािे ै
• ववभाजन र्ुिंडश: (जजिने जीववि) ना ो कर वपिृि: ोिा ै
लर्िाक्षरा का दायाद िर् एविं ववभाजन : उदा रण
क द
(मृि)
90 रुिये
ख द
(30 रुिये)
ग द
(मृि)
ग द1
(15 रुिये)
ग द2
(15 रुिये)
घ द
(मृि)
छ द
(मृि)
छ द1
10 (रुिये)
छ द2
10(रुिये)
छ द3
10 (रुिये)
च द
(मृि)
ज द
(मृि)
झ द
(मृि)
ि
लर्िाक्षरा का दायाद िर् : वविवा
• वविवा क
े अधिकार सीलर्ि एविं र्िभेद यु्ि
• याज्ञवल््य, बृ स्त्पति, कात्यायन : वविवा को दायाद घोवषि क्रकया
• नारद : ववरोि
• लर्िाक्षरा : वविवा को पुर क
े बाद दायाद र्े प्रथर् स्त्थान पर अधिकार
अत्यिंि सीलर्ि। क
े वल सिंपवत्त का उपभोग। दान, वविय न ीिं
लर्िाक्षरा का दायाद िर् : पुरी
• पुत्ररयों क
े अधिकार सीलर्ि
• याज्ञवल््य, नारद, बृ स्त्पति, कात्यायन, कौहटल्य : वविवा क
े बाद पुरी का
अधिकार
• र्नु: य व्यवस्त्था सभी पुत्ररयों क
े ललए न ीिं क
े वल पुरीका (पुर क
े रूप र्े
तनयु्ि पुरी) क
े ललए ी
• लर्िाक्षरा: सभी पुत्ररयों क
े ललए र्ान्य
• कात्यायन: उत्तराधिकार र्े अवववाह ि कन्या को वववाह ि की अपेक्षा
वरीयिा
• दायभाग : पुरविी/ सिंभाववि पुरा को प्राथलर्किा
लर्िाक्षरा का दायाद िर्: दौह र
• यद्यवप लभन्न गोर का क्रकन्िु दायाद िर् र्े दौह र को अन्य गोरज
बिंिुओ से ब ुि प ले स्त्थान हदया गया ै
• शास्त्रकार : पुर क
े अभाव र्ें दौह र नाना का वपिंड दािा ोिा ै
• बृ स्त्पति : दौह र कन्या क
े बाद दायाद
• दौह र अपने नाना की सिंपवत्त पर पूणम अधिकार पािा ै परिंिु उसक
े
र्रने पर उस सिंपवत्त क
े दायाद उसक
े अपने उत्तराधिकारी ोिे ै नाना
क
े उत्तराधिकारी न ीिं
• दौह रों र्े परस्त्पर ववभाग र्ुिंडश: ोिा ै वपिृि न ीिं
लर्िाक्षरा का दायाद िर्: वपिरौ
• वपिरौ = र्ािा-वपिा
• र्ािा र्ें ववर्ािा की गणना न ीिं
• दौह र क
े अभाव र्ें ‘र्ािा वपिा’ पैिृक सिंपवत्त क
े रर्थ र
• कौन प्रथर्?
• र्नु, दायभाग : वपिा प्रथर्
• बृ स्त्पति, लर्िाक्षरा : र्ािा प्रथर्
लर्िाक्षरा का दायाद िर्: भाई-भिीजे
• लर्िाक्षरा : र्ािा वपिा क
े बाद क
े दायाद
• लर्िाक्षरा – दायभाग : भाइयों र्ें सोदर भाइयों को लभन्नोदर भाइयों
की िुलना र्े वरीयिा
लर्िाक्षरा का दायाद िर्: गोरज
• गोरज = एक गोर र्ें उत्पन्न लोग
• यथा : वपिा,भाई, भिीजे, वपिा क
े र्ािा वपिा, ब न , चाचा, चाचा
का पौर, प्रवपिर् , वपिार् का भाई, वपिार् क
े भाई का पुर,
वपिार् क
े भाई का पौर
•
• लर्िक्षरा : गोरज, र्ृि व्यज्ि क
े 6 पीढी ऊपर, 6 पीढी नीचे क
े
सिंबिंिी
• अबद्ि िर् :उत्तराधिकार का िर् तनजश्चि न ीिं
लर्िाक्षरा का दायाद िर्: सर्ानोदक
• लर्िाक्षरा : र्ृि व्यज्ि की 7 वी से 14वी पीढी िक क
े व्यज्ि =
सर्ानोदक = दायाद
• काणे : सर्ानोदक व व्यज्ि जो क्रकसी एक व्यज्ि को जल देिे ै/ग्र ण
करिे ै
• लर्िाक्षरा : सर्ानोदक की सिंख्या = 147
•
• र्नु : सर्ानोदक की सीर्ा िब िक जब िक की क
ु ल र्े जन्र् एविं नार्
ज्ञाि
• अबद्ि िर् :उत्तराधिकार का िर् तनजश्चि न ीिं
लर्िाक्षरा का दायाद िर्: बिंिु
• गोरज और सर्ानोदक एक ी गोर क
े
• बिंिु : लभन्न गोर क
े सवपिंड
• पी.वी. काणे : गोरज और सर्ानोदक र्ृि पुरुष क
े पुरुष सिंबिंधियों से
सम्जबद्ि, बिंिु उसक
े स्त्री सिंबिंधियों से सम्जबद्ि
• गोरज और सर्ानोदककी सवपिंडिा साि पीढी िक, बिंिुओ की सवपिंडिा
क
े वल 5 पीढी िक
बौिायन, लर्िाक्षरा : िीन प्रकार क
े बिंिु –
1. आत्र् बिंिु : वपिा की ब न , र्ािा की ब न ,र्ािा क
े भाई क
े पुर
2. वपिृ बिंिु : वपिा की बुआ, वपिा की र्ौसी, वपिा क
े र्ार्ा क
े पुर
3. र्ािृ बिंिु : र्ािा की बुआ, र्ािा की र्ौसी, र्ािा क
े र्ार्ा क
े पुर
दायभाग का दायाद िर्:
• लर्िाक्षरा क
े सर्ान ी परिंिु क
ु छ अिंिर
• दायाद क
े बद्ि िर् र्ें : वपिा का स्त्थान र्ािा से प ले
वववाह ि पुत्ररयों र्ें पुरविी को वरीयिा
रर्थ रण क
े सर्य कन्या का साध्वी ोना आवश्यक
• दायाद क
े अबद्ि िर् र्ें: गोरज से प ले सवपिंड का उल्लेख
सवपिंड: अपने गोर की क
े वल िीन पीढी िक
सक
ु ल्य : चौथी से छठी पीढी िक क
े पूवमज/विंशज
सक
ु ल्य, सर्ानोदक से पूवम, द्वविीय स्त्थान पर
उपसिं ार
• रर्थ एविं उत्तराधिकार की परिंपरा अत्यिंि प्राचीन Ancient tradition
• रर्थ एविं उत्तराधिकार क
े ववववि पक्षों पर ग न धचिंिन अन्वेषण
Subtle meditation-investigation on varied aspects of succession-inheritance law
• व्याव ाररक तनयर् व्यवस्त्था : Practical-Pragmatic
• ववस्त्िृि एविं ववषाद व्याख्या : Descriptive - Detailed
• काल एविं पररजस्त्थति अनुसार पररविमन दृजष्टगि :
Open to amendment as per space & time

More Related Content

What's hot

Inter-state Relationship & Diplomacy : Upāya, Shadgunya and Mandala theories
Inter-state Relationship & Diplomacy :  Upāya, Shadgunya and Mandala theoriesInter-state Relationship & Diplomacy :  Upāya, Shadgunya and Mandala theories
Inter-state Relationship & Diplomacy : Upāya, Shadgunya and Mandala theories
Banaras Hindu University
 
Maritime Trade and Trade Routes .pdf
Maritime Trade and Trade Routes   .pdfMaritime Trade and Trade Routes   .pdf
Maritime Trade and Trade Routes .pdf
PrachiSontakke5
 
Harappa economy pdf
Harappa economy pdfHarappa economy pdf
Harappa economy pdf
Prachi Sontakke
 
Salient Features of Taxation.pptx
Salient Features of Taxation.pptxSalient Features of Taxation.pptx
Salient Features of Taxation.pptx
Virag Sontakke
 
Primitive religion
Primitive religion Primitive religion
Primitive religion
Prachi Sontakke
 
IVC religion .pdf
IVC religion .pdfIVC religion .pdf
IVC religion .pdf
PrachiSontakke5
 
Economic Conditions During 600 BCE
Economic Conditions During 600 BCEEconomic Conditions During 600 BCE
Economic Conditions During 600 BCE
Virag Sontakke
 
Panchdevopasana new.pdf
Panchdevopasana new.pdfPanchdevopasana new.pdf
Panchdevopasana new.pdf
PrachiSontakke5
 
Gita
GitaGita
Saur sampradaya
Saur sampradayaSaur sampradaya
Saur sampradaya
Prachi Sontakke
 
Apodption law
Apodption law Apodption law
Apodption law
Prachi Sontakke
 
Economic Progress in the Gupta Period .pdf
Economic Progress in the Gupta Period .pdfEconomic Progress in the Gupta Period .pdf
Economic Progress in the Gupta Period .pdf
PrachiSontakke5
 
shaiva pdf.pdf
shaiva pdf.pdfshaiva pdf.pdf
shaiva pdf.pdf
PrachiSontakke5
 
Lumbini inscription.pptx
Lumbini inscription.pptxLumbini inscription.pptx
Lumbini inscription.pptx
Priyanka Singh
 
Ancient indian military administration and ethics of war
Ancient indian military administration and ethics of warAncient indian military administration and ethics of war
Ancient indian military administration and ethics of war
Virag Sontakke
 
Life sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina Tirthankara
Life sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina TirthankaraLife sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina Tirthankara
Life sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina Tirthankara
Banaras Hindu University
 
Vrat.pdf
Vrat.pdfVrat.pdf
Vrat.pdf
PrachiSontakke5
 
Spread of Jaininsm, Why, Result of Spread, Why less Spread, why not out of In...
Spread of Jaininsm, Why, Result of Spread, Why less Spread, why not out of In...Spread of Jaininsm, Why, Result of Spread, Why less Spread, why not out of In...
Spread of Jaininsm, Why, Result of Spread, Why less Spread, why not out of In...
Banaras Hindu University
 
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptxDifference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
Banaras Hindu University
 
Ganpatya
GanpatyaGanpatya
Ganpatya
Prachi Sontakke
 

What's hot (20)

Inter-state Relationship & Diplomacy : Upāya, Shadgunya and Mandala theories
Inter-state Relationship & Diplomacy :  Upāya, Shadgunya and Mandala theoriesInter-state Relationship & Diplomacy :  Upāya, Shadgunya and Mandala theories
Inter-state Relationship & Diplomacy : Upāya, Shadgunya and Mandala theories
 
Maritime Trade and Trade Routes .pdf
Maritime Trade and Trade Routes   .pdfMaritime Trade and Trade Routes   .pdf
Maritime Trade and Trade Routes .pdf
 
Harappa economy pdf
Harappa economy pdfHarappa economy pdf
Harappa economy pdf
 
Salient Features of Taxation.pptx
Salient Features of Taxation.pptxSalient Features of Taxation.pptx
Salient Features of Taxation.pptx
 
Primitive religion
Primitive religion Primitive religion
Primitive religion
 
IVC religion .pdf
IVC religion .pdfIVC religion .pdf
IVC religion .pdf
 
Economic Conditions During 600 BCE
Economic Conditions During 600 BCEEconomic Conditions During 600 BCE
Economic Conditions During 600 BCE
 
Panchdevopasana new.pdf
Panchdevopasana new.pdfPanchdevopasana new.pdf
Panchdevopasana new.pdf
 
Gita
GitaGita
Gita
 
Saur sampradaya
Saur sampradayaSaur sampradaya
Saur sampradaya
 
Apodption law
Apodption law Apodption law
Apodption law
 
Economic Progress in the Gupta Period .pdf
Economic Progress in the Gupta Period .pdfEconomic Progress in the Gupta Period .pdf
Economic Progress in the Gupta Period .pdf
 
shaiva pdf.pdf
shaiva pdf.pdfshaiva pdf.pdf
shaiva pdf.pdf
 
Lumbini inscription.pptx
Lumbini inscription.pptxLumbini inscription.pptx
Lumbini inscription.pptx
 
Ancient indian military administration and ethics of war
Ancient indian military administration and ethics of warAncient indian military administration and ethics of war
Ancient indian military administration and ethics of war
 
Life sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina Tirthankara
Life sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina TirthankaraLife sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina Tirthankara
Life sketch of Parshwanath and Mahaveer Jaina Tirthankara
 
Vrat.pdf
Vrat.pdfVrat.pdf
Vrat.pdf
 
Spread of Jaininsm, Why, Result of Spread, Why less Spread, why not out of In...
Spread of Jaininsm, Why, Result of Spread, Why less Spread, why not out of In...Spread of Jaininsm, Why, Result of Spread, Why less Spread, why not out of In...
Spread of Jaininsm, Why, Result of Spread, Why less Spread, why not out of In...
 
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptxDifference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
 
Ganpatya
GanpatyaGanpatya
Ganpatya
 

Similar to legal institutions.pdf

Legal institutions pdf
Legal institutions pdfLegal institutions pdf
Legal institutions pdf
Prachi Sontakke
 
Legal institutions pdf
Legal institutions pdfLegal institutions pdf
Legal institutions pdf
Prachi Sontakke
 
शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय
Virag Sontakke
 
वार्ता
वार्तावार्ता
वार्ता
Virag Sontakke
 
शाक्त धर्म
शाक्त धर्म शाक्त धर्म
शाक्त धर्म
Virag Sontakke
 
व्रत एवं दान
व्रत एवं दान व्रत एवं दान
व्रत एवं दान
Virag Sontakke
 
वार्ता.pptx
वार्ता.pptxवार्ता.pptx
वार्ता.pptx
Virag Sontakke
 
Shaiva Cult
Shaiva CultShaiva Cult
Shaiva Cult
Virag Sontakke
 
Guna first year
Guna first year Guna first year
Guna first year
DR SHITAL SHAMARAV PATIL
 
श्रेणी.pptx
श्रेणी.pptxश्रेणी.pptx
श्रेणी.pptx
Virag Sontakke
 
Early and later vaidik religion
Early and later vaidik religionEarly and later vaidik religion
Early and later vaidik religion
Virag Sontakke
 
छठी शताब्दी ईसा पूर्व की आर्थिक दशाएँ .pptx
छठी शताब्दी ईसा पूर्व की आर्थिक दशाएँ .pptxछठी शताब्दी ईसा पूर्व की आर्थिक दशाएँ .pptx
छठी शताब्दी ईसा पूर्व की आर्थिक दशाएँ .pptx
Virag Sontakke
 
क्रेडिट एंड बैंकिंग सिस्टम .pptx
क्रेडिट एंड बैंकिंग सिस्टम .pptxक्रेडिट एंड बैंकिंग सिस्टम .pptx
क्रेडिट एंड बैंकिंग सिस्टम .pptx
Virag Sontakke
 
यौधेयों के सिक्के ppt.pdf
यौधेयों के सिक्के ppt.pdfयौधेयों के सिक्के ppt.pdf
यौधेयों के सिक्के ppt.pdf
ShivmaniSahu
 
Sutra 26-33
Sutra 26-33Sutra 26-33
Sutra 26-33
Jainkosh
 
तीर्थ (काशी एवं गया)
तीर्थ (काशी एवं गया)तीर्थ (काशी एवं गया)
तीर्थ (काशी एवं गया)
Virag Sontakke
 
पुत्र के अधिकार
पुत्र के अधिकारपुत्र के अधिकार
पुत्र के अधिकार
Prachi Sontakke
 
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptxवैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
Virag Sontakke
 
Rajasthan protection from lynching bill
Rajasthan protection from lynching billRajasthan protection from lynching bill
Rajasthan protection from lynching bill
sabrangsabrang
 
Chhand 4-9
Chhand 4-9Chhand 4-9
Chhand 4-9
Jainkosh
 

Similar to legal institutions.pdf (20)

Legal institutions pdf
Legal institutions pdfLegal institutions pdf
Legal institutions pdf
 
Legal institutions pdf
Legal institutions pdfLegal institutions pdf
Legal institutions pdf
 
शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय
 
वार्ता
वार्तावार्ता
वार्ता
 
शाक्त धर्म
शाक्त धर्म शाक्त धर्म
शाक्त धर्म
 
व्रत एवं दान
व्रत एवं दान व्रत एवं दान
व्रत एवं दान
 
वार्ता.pptx
वार्ता.pptxवार्ता.pptx
वार्ता.pptx
 
Shaiva Cult
Shaiva CultShaiva Cult
Shaiva Cult
 
Guna first year
Guna first year Guna first year
Guna first year
 
श्रेणी.pptx
श्रेणी.pptxश्रेणी.pptx
श्रेणी.pptx
 
Early and later vaidik religion
Early and later vaidik religionEarly and later vaidik religion
Early and later vaidik religion
 
छठी शताब्दी ईसा पूर्व की आर्थिक दशाएँ .pptx
छठी शताब्दी ईसा पूर्व की आर्थिक दशाएँ .pptxछठी शताब्दी ईसा पूर्व की आर्थिक दशाएँ .pptx
छठी शताब्दी ईसा पूर्व की आर्थिक दशाएँ .pptx
 
क्रेडिट एंड बैंकिंग सिस्टम .pptx
क्रेडिट एंड बैंकिंग सिस्टम .pptxक्रेडिट एंड बैंकिंग सिस्टम .pptx
क्रेडिट एंड बैंकिंग सिस्टम .pptx
 
यौधेयों के सिक्के ppt.pdf
यौधेयों के सिक्के ppt.pdfयौधेयों के सिक्के ppt.pdf
यौधेयों के सिक्के ppt.pdf
 
Sutra 26-33
Sutra 26-33Sutra 26-33
Sutra 26-33
 
तीर्थ (काशी एवं गया)
तीर्थ (काशी एवं गया)तीर्थ (काशी एवं गया)
तीर्थ (काशी एवं गया)
 
पुत्र के अधिकार
पुत्र के अधिकारपुत्र के अधिकार
पुत्र के अधिकार
 
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptxवैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
 
Rajasthan protection from lynching bill
Rajasthan protection from lynching billRajasthan protection from lynching bill
Rajasthan protection from lynching bill
 
Chhand 4-9
Chhand 4-9Chhand 4-9
Chhand 4-9
 

More from PrachiSontakke5

aihole inscription pdf.pdf
aihole inscription pdf.pdfaihole inscription pdf.pdf
aihole inscription pdf.pdf
PrachiSontakke5
 
Kahaum stone pillar Inscription of Skandagupta.pdf
Kahaum stone pillar Inscription of Skandagupta.pdfKahaum stone pillar Inscription of Skandagupta.pdf
Kahaum stone pillar Inscription of Skandagupta.pdf
PrachiSontakke5
 
Heliodorus pdf.pdf
Heliodorus pdf.pdfHeliodorus pdf.pdf
Heliodorus pdf.pdf
PrachiSontakke5
 
mehrauli pillar inscription.pdf
mehrauli pillar inscription.pdfmehrauli pillar inscription.pdf
mehrauli pillar inscription.pdf
PrachiSontakke5
 
sarnath inscription pdf.pdf
sarnath inscription pdf.pdfsarnath inscription pdf.pdf
sarnath inscription pdf.pdf
PrachiSontakke5
 
rummendei pdf.pdf
rummendei pdf.pdfrummendei pdf.pdf
rummendei pdf.pdf
PrachiSontakke5
 
vaishnavism.pdf
vaishnavism.pdfvaishnavism.pdf
vaishnavism.pdf
PrachiSontakke5
 
yashovarman of kannauj.pdf
yashovarman of kannauj.pdfyashovarman of kannauj.pdf
yashovarman of kannauj.pdf
PrachiSontakke5
 
kashmir.pdf
kashmir.pdfkashmir.pdf
kashmir.pdf
PrachiSontakke5
 
sindh.pdf
sindh.pdfsindh.pdf
sindh.pdf
PrachiSontakke5
 
Pushyabhuti.pdf
Pushyabhuti.pdfPushyabhuti.pdf
Pushyabhuti.pdf
PrachiSontakke5
 
shakta.pdf
shakta.pdfshakta.pdf
shakta.pdf
PrachiSontakke5
 
saur sampradaya.pdf
saur sampradaya.pdfsaur sampradaya.pdf
saur sampradaya.pdf
PrachiSontakke5
 
ganpatya.pdf
ganpatya.pdfganpatya.pdf
ganpatya.pdf
PrachiSontakke5
 
guru shishya sambandh.pdf
guru shishya sambandh.pdfguru shishya sambandh.pdf
guru shishya sambandh.pdf
PrachiSontakke5
 
education.pdf
education.pdfeducation.pdf
education.pdf
PrachiSontakke5
 
tirth new.pdf
tirth new.pdftirth new.pdf
tirth new.pdf
PrachiSontakke5
 
daan.pdf
daan.pdfdaan.pdf
daan.pdf
PrachiSontakke5
 
Avatarvaada.pdf
Avatarvaada.pdfAvatarvaada.pdf
Avatarvaada.pdf
PrachiSontakke5
 
vakatakas slideshare.pdf
vakatakas slideshare.pdfvakatakas slideshare.pdf
vakatakas slideshare.pdf
PrachiSontakke5
 

More from PrachiSontakke5 (20)

aihole inscription pdf.pdf
aihole inscription pdf.pdfaihole inscription pdf.pdf
aihole inscription pdf.pdf
 
Kahaum stone pillar Inscription of Skandagupta.pdf
Kahaum stone pillar Inscription of Skandagupta.pdfKahaum stone pillar Inscription of Skandagupta.pdf
Kahaum stone pillar Inscription of Skandagupta.pdf
 
Heliodorus pdf.pdf
Heliodorus pdf.pdfHeliodorus pdf.pdf
Heliodorus pdf.pdf
 
mehrauli pillar inscription.pdf
mehrauli pillar inscription.pdfmehrauli pillar inscription.pdf
mehrauli pillar inscription.pdf
 
sarnath inscription pdf.pdf
sarnath inscription pdf.pdfsarnath inscription pdf.pdf
sarnath inscription pdf.pdf
 
rummendei pdf.pdf
rummendei pdf.pdfrummendei pdf.pdf
rummendei pdf.pdf
 
vaishnavism.pdf
vaishnavism.pdfvaishnavism.pdf
vaishnavism.pdf
 
yashovarman of kannauj.pdf
yashovarman of kannauj.pdfyashovarman of kannauj.pdf
yashovarman of kannauj.pdf
 
kashmir.pdf
kashmir.pdfkashmir.pdf
kashmir.pdf
 
sindh.pdf
sindh.pdfsindh.pdf
sindh.pdf
 
Pushyabhuti.pdf
Pushyabhuti.pdfPushyabhuti.pdf
Pushyabhuti.pdf
 
shakta.pdf
shakta.pdfshakta.pdf
shakta.pdf
 
saur sampradaya.pdf
saur sampradaya.pdfsaur sampradaya.pdf
saur sampradaya.pdf
 
ganpatya.pdf
ganpatya.pdfganpatya.pdf
ganpatya.pdf
 
guru shishya sambandh.pdf
guru shishya sambandh.pdfguru shishya sambandh.pdf
guru shishya sambandh.pdf
 
education.pdf
education.pdfeducation.pdf
education.pdf
 
tirth new.pdf
tirth new.pdftirth new.pdf
tirth new.pdf
 
daan.pdf
daan.pdfdaan.pdf
daan.pdf
 
Avatarvaada.pdf
Avatarvaada.pdfAvatarvaada.pdf
Avatarvaada.pdf
 
vakatakas slideshare.pdf
vakatakas slideshare.pdfvakatakas slideshare.pdf
vakatakas slideshare.pdf
 

legal institutions.pdf

  • 1. Prachi Virag Sontakke BA V Sem Paper: 506 BHU Legal Institutions in Ancient India By Prachi Virag Sontakke
  • 2.
  • 3. BOOKS • अच्छेलाल यादव : प्राचीन ह िंदू ववधि • पी वी काणे : िर्म शास्त्र का इति ास (खिंड II) • रदत्त वेदलिंकार : ह िंदू पररवार र्ीर्ािंसा • न त्ररपाठी: प्राचीन भारि र्ें राज्य और न्यायपाललका • जे जॉली : ह िंदू लॉ एिंड कस्त्टम्ज़
  • 4. प्राचीन ह िंदू ववधि : स्त्वरूप (Nature) • िालर्मक एविं नैतिक • दैवीय आिार • व्यापक, ववववि आयार् • सूक्ष्र् ववश्लेषण • पररविमनशील: देश काल अनुसार • व्याव ाररक • उद्देश्य: र्ानव कल्याण + सार्ाजजक घटकों र्ें सिंिुलन स्त्थावपि करना • Religious & Moralistic • Divine • Exhaustive, multifaceted • Subtle analysis • Changes as per space & time • Practical • Aim: Welfare of human beings + maintaining balance between social formations
  • 5. प्राचीन ह िंदू ववधि की अविारणा : Concept • आचार सिंह िा Code of conduct • सवमस्त्वीकृ ि Universal • ऋि,िर्म ,नैतिकिा पर आिाररि Based on Rta • पाप-पुण्य िथा अपराि-दण्ड की अविारणा से द्ववववि तनयिंरण Double control mechanism
  • 6. उदय एविं ववकास : Origin & Development • प्रथर् चरण : सर्ू की र्ान्यिाएँ ी ववधि रूप • Stage I: Group norms as law • द्वविीय चरण : िर्म ववधि- वैहदक सिंह िा, ब्राह्र्ण एविं उपतनषद • Stage II: Dharma as Law • िृिीय चरण : राजा ववधि का तनयिंिा- िर्म शास्त्र, िर्मसूर, अथम शास्त्र • Stage III: King as Law maker • चिुथम चरण : टीकाएँ – लर्िक्षरा , दायभाग • Stage IV: Commentaries to aid and explain
  • 7. Ancient Hindu Law • Four legs of Law : Sacred law (िर्म), evidence (व्यव ार), history (चररि), and edicts of kings (राज्यशासन). • Dharma = eternal truth holding its sway over the world. • Vyavahára = evidence, is in witnesses • Charitra = history, is to be found in the tradition of the people • Rajashasan = the order of king (legislations).
  • 8. Sources of Hindu Law Shruti texts Vedas Dharamsutras Smriti texts Dharamshashtras Commentaries
  • 9. प्रर्ुख स्त्रोि : Sources • र्नुस्त्र्ृति : वेद वचन , स्त्र्ृति , परिंपरा से चला आ र ा लशष्टाचार, स्त्वयिं को वप्रय कायम • • सूर साह त्य यथा गौिर्, आपस्त्ििंभ , बौध्यायन िर्मसूर • स्त्र्ृति ग्रिंथ यथा याज्ञवल््य , बृ स्त्पति, नारद स्त्र्ृति • अथमशास्त्र • लर्िाक्षरा (1050-1126 CE): ववज्ञानेश्वर – बनारस,लर्धथला, ओड़िसा, पिंजाब,र्द्रास र्ें र्ान्य • दायभाग ( 1090-1130 CE): जीर्ूिवा न- बिंगाल एविं असर् र्ें र्ान्य • अच्छेलाल यादव : सर्ाज ववधि का र्ुख्य स्त्रोि
  • 11. Succession and Inheritance Law अच्छेलाल यादव : उत्तराधिकार एविं रर्थ रण ववधि से िात्पयम सिंयु्ि पररवार की पैिृक सम्जपवत्त का उसक े सदस्त्यों र्ें ववभाजन क े तनयर्ों से ै A.L.Yadav: Law of succession & inheritance denotes the rules for division of ancestral combined property among the members of the family. • ववभाग = ज ाँ सिंयु्ि स्त्वालर्त्व ो व सम्जपूणम सिंपवत्त क े भागों की तनजश्चि व्यवस्त्था ी ववभाग ै • Vibhaag: system of division of property in case of joint property
  • 12. उत्तराधिकार एविं रर्थ रण ववधि: अथम/Meaning • उत्तराधिकार = क्रिया जजसक े द्वारा सम्जपवत्त ववभाजन का तनष्पादन = क ै से ? • Succession governs how the inheritance would take place • Uttaradhikar: Process by which property is divided • रर्थ रण = सिंयु्ि सम्जपवत्त क े ववभाजन क े तनयर् = क्रकसको • Rikthaharan: Rules as to who will receive the property • Inheritance is the process of the heir inheriting his ancestors' Property. • Literature : रर्थ = सिंयु्ि सम्जपवत्त (Combined/Joint property) • Jolly: Riktha = Legacy of father
  • 14. सिंपवत्त क े प्रकार : Types of property • बृ स्त्पति व कात्यायन : स्त्थावर (भूलर्, घर) एविं जिंगर् • याज्ञवल्क : भू, तनबिंि+ द्रव्य (चल सिंपवत्त), अन्य • बृ स्त्पति : द्रव्य = चल + अचल सिंपवत्त • प्राचीन ववधि : सिंयु्ि क ु ल सिंपवत्त (अप्रतिबिंि दाय) एविं पृथक सिंपवत्त • शौयम िन : कात्यायन-जो राजा/स्त्वार्ी द्वारा क्रकसी सैतनक/नौकर को प्राणों की बाजी लगा कर शूरिा हदखाने पर पुरस्त्कार रूप र्े प्राप्ि • ध्वजाहृि : जो प्राणों की बाजी लगाकर युद्ि र्े/शरु को भगा कर प्राप्ि • भायाम िन : वववा क े सर्य बिंिुओ द्वारा दी गई सिंपवत्त • ववद्या िन : ववद्या या ज्ञान से स्त्व अजजमि सिंपवत्त • याज्य : र्िंहदरों/पुरोह िी से प्राप्ि दान सिंपवत्त • योगक्षेर् : यज्ञ कर्म से प्राप्ि सिंपवत्त/जीववका
  • 15. सिंपवत्त क े प्रकार • पृथक सिंपवत्त: 1. जो भाई/चाचा से प्राप्ि 2. जो पैिृक चल सिंपवत्त से वपिा द्वारा स्त्ने वश दान रूप र्ें प्राप्ि 3. पृथक सिंपवत्त से वपिा द्वारा हदया दान 4. वववा क े सर्य बिंिुओ द्वारा दी गई सिंपवत्त (भायाम िन, वैवाह क) 5. क ु ल से चली गई सिंपवत्त जो व्यज्ि क े अपने प्रयास से दूसरे से पुनः प्राप्ि 6. ववद्या या ज्ञान से स्त्व अजजमि सिंपवत्त (ववद्या िन)
  • 16. अववभाज्य सिंपवत्त • व सिंपवत्त जजसका ववभाजन न ीिं • गौिर् : जल (क ू प), यज्ञ क े ललए तनिामररि सिंपवत्त, पका ुआ भोजन • उशना : याज्य, सवाररयाँ, जल, जस्त्रयाँ, भोजन • कात्यायन : िालर्मक उपयोग ेिु रखा िन, जल, जस्त्रयाँ, वस्त्र, अलिंकार • बृ स्त्पति : चारागा , र्ागम, वस्त्र, उिार हदया िन, िालर्मक कायों ेिु तनहदमष्ट िन • र्नु : वस्त्र, यान, अलिंकार, पका भोजन, जल, र्ागम, जस्त्रयाँ
  • 17. दाय : पररभाषा • ऋग्वेद : दाय से अथम भाग या पुरस्त्कार से ै (Part or reward) • िैत्तररय सिंह िा व ब्राह्र्ण साह य : सिंपवत्त, िन क े अथम र्े प्रयु्ि (used in context of money, property) • लर्िाक्षरा: व सम्जपवत्त जजस पर उसक े स्त्वार्ी से सिंबिंि र्ार से ी सम्जबिंधिि व्यज्ि का स्त्वालर्त्व स्त्थावपि ो जाए – जैसे पुर का अधिकार वपिा से उसक े सम्जबन्ि क े आिार पर (Property where ownership is established by mere virtue of association) • दायभाग: दाय दा िािु से उत्पन्न –जो हदया जाए वो दाय (दान) दाय क े दो आवश्यक आिार : 2 prerequisites १. दािा क े स्त्वित्व की तनवृवत्त : Discontinuance of all the rights over property by the giver 2. गृ णकिाम क े स्त्वित्व की उत्पवत्त : Origin of acceptor’s right over property एक क े अभाव र्ें दूसरे का सृजन न ी : One not possible in absence of other वपिा क े र्रने पर ी तनवृवत्त सम्जभव : Discontinuance of right to ownership possible only after death
  • 18. दाय क े प्रकार : लर्िाक्षरा क े अनुसार अप्रतिबंधिि दाय /समांशी ददाय द द सप्रतिबंधिि दाय पररवार र्ें जन्र् लेने र्ार से ी सम्जपवत्त क े उत्तराधिकारी = जन्र्स्त्त्ववाद विंशपरिंपरा क े वैि उत्तराधिकाररयों क े अभाव र्ें ी प्राप्ि = उपरर्स्त्त्ववाद पुर, प्रपुर, प्रपौर चाचा, भाई, भिीजा, र्ार्ा, नाना, की सम्जपवत्त प्राप्ि दाय ग्र ण र्ें क्रकसी प्रकार का प्रतिबिंि न ी – विंशपरिंपरा अनुसार ग्र ण ये प्राप्ि सम्जपवत्त प्राप्िकिाम की पूणमिः पृथक सम्जपवत्त
  • 19. दाय क े प्रकार: दायभाग क े अनुसार • सभी प्रकार का दाय सप्रतिबिंधिि दाय ै ्यूँक्रक व पूवम स्त्वार्ी क े ना र ने पर ी अन्य को प्राप्ि ोिा ै
  • 20. लर्िक्षरा ववभाग ववधि: ववलशष्ट लक्षण 1. स्त्वालर्त्व की एकिा : सभी स भागी एक साथ स्त्वार्ी 2. भोग व प्राजप्ि की एकिा :सभी को सिंयु्ि सिंपवत्त पर अधिकार 3. स भागी की र्ृत्यु पर उसका भाग सर्ाप्ि ो जािा ै और अन्य को प्राप्ि 4. प्रत्येक स भागी ववभाजन की र्ािंग कर सकिा ै 5. वपिा को व्यवस्त्थापक क े ववलशष्ट अधिकार प्राप्ि जो क्रकसी स भागी को न ीिं 6. त्रबना अन्य स भाधगयों की स र्ति क े अववभाजजि भाग का दान, त्रबिी न ीिं कर सकिा 7. जस्त्रयों को स भाधगिा न ीिं 8. दत्तक पुर स भाधगिा का सदस्त्य
  • 21. दायभाग ववभाग ववधि: ववलशष्ट लक्षण 1. स भाधगयों को वपिा क े जीवन काल र्े ववभाजन की र्ािंग का अधिकार न ीिं 2. वपिा को सिंपवत्त क े व्यय, त्रबिी, दान का पूणम अधिकार 3. जस्त्रयों को भी स भाधगिा 4. स भागी की र्ृत्यु पर अन्य स भाधगयों को उसका भाग प्राप्ि न ीिं वरन र्ृिक की वविवा या पुरी को स भाधगिा की सदस्त्यिा प्राप्ि
  • 22. ववभाजन ववधि एविं भाग तनणमय • ववभाजन से पूवम भाई अपनी ब नों क े वववा क े ललए व्यय क े ललए व्यवस्त्था अवश्य करे • कौहटल्य, ववष्णु, बृ स्त्पति : भाई अपनी ब नों क े वववा क े ललए व्यय क े ललए व्यवस्त्था करे • र्नु, कात्यायन, याज्ञवल््य : भाई अपनी ब नों क े वववा क े ललए व्यय क े ललए 1/4 भाग देना चाह ए • लर्िक्षरा : अवववाह ि कन्या को वववा क े ललए उिना ी लर्लना चाह ए जजिना उसे पुरुष ोने पर लर्ला ोिा • दाय भाग : भाई को अपनी ब नों क े वववा क े ललए यहद सिंपवत्त कर् ै िो क े वल आवश्यक व्यय और अगर पयामप्ि ै िो 1/4 भाग देना चाह ए
  • 23. ववभाजन एविं भाग तनणमय से पूवम व्यवस्त्थाएँ वैवाह क व्ययों की व्यवस्त्था क ु ल ऋणों/ वपिा द्वारा ललए ऋणों का भुगिान आधिि नाररयों की व्यवस्त्था दोषी स भाधगयों की व्यवस्त्था वपिा द्वारा हदए स्त्ने दानों की व्यवस्त्था
  • 24. ववभाग/उत्तराधिकार क े तनयर् • लर्िाक्षरा : 1. क े वल पुरुष ी सर्ािंशी (दायान्श ग्र ण र्ें प्रतिबिंि न ी) 2. प्रत्येक प्रकार की सम्जपवत्त पर अधिकार जन्र् से 3. िीसरी पीढी िक ी सर्ािंशी : आिार = वपण्ड दान उदा रण- च को पैिृक सम्जपवत्त र्ें ह स्त्सा न ी। ख, ग, घ क े र्रने पर भी न ी। क े वल क क े र्रने पे ख से उत्तराधिकार • दायभाग : 1. जस्त्रयों को भी सर्ािंशी र्ाना ै। 2. र्रणोपरािंि ी स्त्वत्व उत्पन क द पििा ख द िुत्र ग द िौत्र घ द प्रिौत्र च द प्रिौत्र
  • 25. उत्तराधिकार/ववभाग क े तनयर् लर्िाक्षरा: 1. सर्ािंशी जब चा े िब अपना अधिकार प्राप्ि कर सकिा ै 2.पैिृक सम्जपवत्त का ववशेष पररजस्त्थतियों र्ें ी अप ार 3.पृथक सम्जपवत्त पर वपिा का पूणम स्त्वालर्त्व 4.उस पर इच्छानुसार ववतनयोग (वविय/दान)की छ ू ट 5.वप्रयनाथ सेन: वपिा की पैिृक व पृथक सम्जपवत्त र्ें क े वल चल सम्जपवत्त क े अप ार का अधिकार • दायभाग: 1.पैिृक सम्जपवत्त पर पुर का कोई अधिकार न ी 2.क े वल वपिा क े र्रणोपरािंि ी सम्जपवत्त र्ें अधिकार र्ाँग सकिा ै
  • 26. उत्तराधिकार क े तनयर् ➢र्नु : ववभाजन एक बार ोिा ै • अपवाद : 1. ववभाजन क े उपरािंि पुरोत्पवत्त पर पुनः ववभाजन 2. देश छो़ि कर गए व्यज्ि क े उत्तराधिकारी क े लौट आने पर 3. छल से तछपी सम्जपवत्त क े उजागर ोने पर ➢पुरुष शाखा से सिंबिंधिि गोरज सदैव स्त्री शाखा से सिंबिंधिि बिंिुओ से रर्थ रण क े ललए िेष्ठ • अपवाद : दायाद िर् र्े दौह र को पुरुष शाखा से सिंबिंधिि ोने वाले गोरज से ब ुि प ले स्त्थान हदया गया ै
  • 27. उत्तराधिकार क े तनयर् ➢गोरज एविं सर्ानोदक, बिंिुओ से प ले क े दायाद • अपवाद : दायाद िर् र्े दौह र को अन्य गोरज बिंिुओ से ब ुि प ले स्त्थान हदया गया ै ➢सवपिंडिा साि पीढी िक • अपवाद: बिंिुओ की सवपिंडिा क े वल 5 पीढी िक
  • 28. ➢ लर्िाक्षरा : सिंयु्ि सिंपवत्त ववभाजन वपिृि ोिा ै, र्ुिंडश: न ीिं (अपवाद : दौह रों र्े परस्त्पर ववभाग र्ुिंडश: ोिा ै वपिृि न ीिं) क द (मृि) 90 रुिये ख द (30 रुिये) ग द (मृि) ग द1 (15 रुिये) ग द2 (15 रुिये) घ द (मृि) छ द (मृि) छ द1 10 (रुिये) छ द2 10(रुिये) छ द3 10 (रुिये) च द (मृि) ज द (मृि) झ द (मृि) ि
  • 29. उत्तराधिकार क े ललए अयोग्य व्यज्ि = अनिंश / दायान म • शारीररक एविं र्ानलसक रूप से अयोग्य व्यज्ि • असाध्य रोगों से ग्रस्त्ि व्यज्ि • चाररत्ररक दोषों से यु्ि व्यज्ि : दुराचारी, पतिि • जाति से बह ष्कृ ि व्यज्ि • पुर उत्पन्न करने र्े असर्थम व्यज्ि • सन्यास ग्र ण करने वाले व्यज्ि • वपिृ द्वेषी (वपिृ िंिा/ वपिा को वपिंड ना देने वाला) • क ु छ दशाओिं र्े जस्त्रयाँ • अनैतिक ढिंग से क ु लसिंपवत्त का व्यय करने पर ब़िे पुर को वपिा द्वारा दायािंश से विंधचि क्रकया जा सकिा ै पी. वी. काणे : ऐसा इसललए क्रकया गया ्यूँक्रक ये लोग िालर्मक कायम न ीिं कर सकिे और सिंपवत्त और उसक े साथ िालर्मक उपयोग का सिंबिंि अटूट र्ाना जािा ै
  • 30. उत्तराधिकार क े ललए अयोग्य व्यज्ि क े अधिकार 1. स्त्र्ृति ग्रिंथ : जजन् े दोषों क े कारण दायािंश न ीिं लर्लिा उन् े क ु ल सिंपवत्त से जीवन भर जीववका क े सािन प्राप्ि ोिे ै 2. याज्ञवल््य: अयोग्य व्यज्ि क े वववा पर उसकी पत्नी को जो सदाचाररणी ै, जीववका लर्लिी ै 3. क ु छ स्त्र्ृतियों ने पतिि एविं उसक े पुर को भी जीववका से विंधचि कर हदया ै 4. यहद ववभाजन क े सर्य व्यज्ि दोष र्ु्ि ो और दायािंश प्राप्ि ोने क े बाद वो दोषी ो जाए िो उसे जो लर्ला ै व छीन न ीिं जा सकिा
  • 31. ववभाजन ववधि का उल्लिंघन • ऐिरेय ब्राह्र्ण : ववभाजन ववधि क े उल्लिंघन पर दिंड अवश्य • र्नु : यहद ब़िा भाई, छोटे भाइयों को भाग से विंधचि करिा ै िो उसे उसका ववलशष्ट भाग न ीिं लर्लिा और व राजा द्वारा दिंडडि ोिा ै • दाय भाग : सिंयु्ि सिंपवत्त को तछपाना चोरी न ीिं ै • लर्िाक्षरा : ऐसा कर्म चोरी क े सर्ान ी
  • 33. दायाद : पररभाषा • वैहदक साह य : स अिंशग्रा ी अथामि अपने साथ िन का भाग पाने वाला • तनरु्ि व पाणणनी : दायाद शब्द का प्रयोग सर्ान अथम र्े • J.Jolly: Dayad = Heir and is same as Sapinda (One who takes part in funeral obligation).
  • 34. रर्थ रण क े तनयर्: दायाद िर् • सवमर्ान्य स्त्वीकृ ि र्ि: पैिृक सम्जपवत्त सवमप्रथर् पुर को प्राप्ि ोगी। • Universal acceptance: Son inherits first. • र्िभेद का ववषय : पुर क े अभाव र्ें सम्जपवत्त क्रकसे प्राप्ि ?? • Pot of controversay: Who inherits in absence of son • गौिर्, आपस्त्ििंभ, बौध्यायन : सवपिंड, गुरु, लशष्य, राजा • याज्ञवल््य : वविवा, पुरी, दौह र, र्ािा, वपिा, भाई, भिीजा, गोरज, बिंिु, लशष्य • बृ स्त्पति: याज्ञवल््य क े सर्ान ी िर् • नारद: कन्या, सक ु ल्य, बािंिव, सजाति , राजा • र्नु: पुरी, दौह र, वपिा, भाई, र्ािा, दादी, सवपिंड, सक ु ल्य, गुरु, लशष्य, ब्राह्र्ण, राजा
  • 35. लर्िाक्षरा का दायाद िर् 1. पुर, पौर, प्रपौर 2. वविवा 3. पुरी 4. दौह र 5. वपिरौ 6. भाई 7. भिीजा 8. भिीजे का पुर 9. गोरज 10. सर्ानोदक 11. बिंिु 12. गुरु 13. लशष्य 14. स पाठी 15. राजा एक दक े दअभाव दमें ददूसरा ददायाद दबनिा दहै द बद्ि द क्रम द अबद्ि द द क्रम द
  • 36. लर्िाक्षरा का दायाद िर् : पुर • पुर से िीन पीढी अथामि प्रपौर िक का बोि • एक वपिा क े सभी पुर सभी सिंपवत्त र्े बराबर का भाग पािे ै • ववभाजन र्ुिंडश: (जजिने जीववि) ना ो कर वपिृि: ोिा ै
  • 37. लर्िाक्षरा का दायाद िर् एविं ववभाजन : उदा रण क द (मृि) 90 रुिये ख द (30 रुिये) ग द (मृि) ग द1 (15 रुिये) ग द2 (15 रुिये) घ द (मृि) छ द (मृि) छ द1 10 (रुिये) छ द2 10(रुिये) छ द3 10 (रुिये) च द (मृि) ज द (मृि) झ द (मृि) ि
  • 38. लर्िाक्षरा का दायाद िर् : वविवा • वविवा क े अधिकार सीलर्ि एविं र्िभेद यु्ि • याज्ञवल््य, बृ स्त्पति, कात्यायन : वविवा को दायाद घोवषि क्रकया • नारद : ववरोि • लर्िाक्षरा : वविवा को पुर क े बाद दायाद र्े प्रथर् स्त्थान पर अधिकार अत्यिंि सीलर्ि। क े वल सिंपवत्त का उपभोग। दान, वविय न ीिं
  • 39. लर्िाक्षरा का दायाद िर् : पुरी • पुत्ररयों क े अधिकार सीलर्ि • याज्ञवल््य, नारद, बृ स्त्पति, कात्यायन, कौहटल्य : वविवा क े बाद पुरी का अधिकार • र्नु: य व्यवस्त्था सभी पुत्ररयों क े ललए न ीिं क े वल पुरीका (पुर क े रूप र्े तनयु्ि पुरी) क े ललए ी • लर्िाक्षरा: सभी पुत्ररयों क े ललए र्ान्य • कात्यायन: उत्तराधिकार र्े अवववाह ि कन्या को वववाह ि की अपेक्षा वरीयिा • दायभाग : पुरविी/ सिंभाववि पुरा को प्राथलर्किा
  • 40. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: दौह र • यद्यवप लभन्न गोर का क्रकन्िु दायाद िर् र्े दौह र को अन्य गोरज बिंिुओ से ब ुि प ले स्त्थान हदया गया ै • शास्त्रकार : पुर क े अभाव र्ें दौह र नाना का वपिंड दािा ोिा ै • बृ स्त्पति : दौह र कन्या क े बाद दायाद • दौह र अपने नाना की सिंपवत्त पर पूणम अधिकार पािा ै परिंिु उसक े र्रने पर उस सिंपवत्त क े दायाद उसक े अपने उत्तराधिकारी ोिे ै नाना क े उत्तराधिकारी न ीिं • दौह रों र्े परस्त्पर ववभाग र्ुिंडश: ोिा ै वपिृि न ीिं
  • 41. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: वपिरौ • वपिरौ = र्ािा-वपिा • र्ािा र्ें ववर्ािा की गणना न ीिं • दौह र क े अभाव र्ें ‘र्ािा वपिा’ पैिृक सिंपवत्त क े रर्थ र • कौन प्रथर्? • र्नु, दायभाग : वपिा प्रथर् • बृ स्त्पति, लर्िाक्षरा : र्ािा प्रथर्
  • 42. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: भाई-भिीजे • लर्िाक्षरा : र्ािा वपिा क े बाद क े दायाद • लर्िाक्षरा – दायभाग : भाइयों र्ें सोदर भाइयों को लभन्नोदर भाइयों की िुलना र्े वरीयिा
  • 43. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: गोरज • गोरज = एक गोर र्ें उत्पन्न लोग • यथा : वपिा,भाई, भिीजे, वपिा क े र्ािा वपिा, ब न , चाचा, चाचा का पौर, प्रवपिर् , वपिार् का भाई, वपिार् क े भाई का पुर, वपिार् क े भाई का पौर • • लर्िक्षरा : गोरज, र्ृि व्यज्ि क े 6 पीढी ऊपर, 6 पीढी नीचे क े सिंबिंिी • अबद्ि िर् :उत्तराधिकार का िर् तनजश्चि न ीिं
  • 44. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: सर्ानोदक • लर्िाक्षरा : र्ृि व्यज्ि की 7 वी से 14वी पीढी िक क े व्यज्ि = सर्ानोदक = दायाद • काणे : सर्ानोदक व व्यज्ि जो क्रकसी एक व्यज्ि को जल देिे ै/ग्र ण करिे ै • लर्िाक्षरा : सर्ानोदक की सिंख्या = 147 • • र्नु : सर्ानोदक की सीर्ा िब िक जब िक की क ु ल र्े जन्र् एविं नार् ज्ञाि • अबद्ि िर् :उत्तराधिकार का िर् तनजश्चि न ीिं
  • 45. लर्िाक्षरा का दायाद िर्: बिंिु • गोरज और सर्ानोदक एक ी गोर क े • बिंिु : लभन्न गोर क े सवपिंड • पी.वी. काणे : गोरज और सर्ानोदक र्ृि पुरुष क े पुरुष सिंबिंधियों से सम्जबद्ि, बिंिु उसक े स्त्री सिंबिंधियों से सम्जबद्ि • गोरज और सर्ानोदककी सवपिंडिा साि पीढी िक, बिंिुओ की सवपिंडिा क े वल 5 पीढी िक बौिायन, लर्िाक्षरा : िीन प्रकार क े बिंिु – 1. आत्र् बिंिु : वपिा की ब न , र्ािा की ब न ,र्ािा क े भाई क े पुर 2. वपिृ बिंिु : वपिा की बुआ, वपिा की र्ौसी, वपिा क े र्ार्ा क े पुर 3. र्ािृ बिंिु : र्ािा की बुआ, र्ािा की र्ौसी, र्ािा क े र्ार्ा क े पुर
  • 46. दायभाग का दायाद िर्: • लर्िाक्षरा क े सर्ान ी परिंिु क ु छ अिंिर • दायाद क े बद्ि िर् र्ें : वपिा का स्त्थान र्ािा से प ले वववाह ि पुत्ररयों र्ें पुरविी को वरीयिा रर्थ रण क े सर्य कन्या का साध्वी ोना आवश्यक • दायाद क े अबद्ि िर् र्ें: गोरज से प ले सवपिंड का उल्लेख सवपिंड: अपने गोर की क े वल िीन पीढी िक सक ु ल्य : चौथी से छठी पीढी िक क े पूवमज/विंशज सक ु ल्य, सर्ानोदक से पूवम, द्वविीय स्त्थान पर
  • 47. उपसिं ार • रर्थ एविं उत्तराधिकार की परिंपरा अत्यिंि प्राचीन Ancient tradition • रर्थ एविं उत्तराधिकार क े ववववि पक्षों पर ग न धचिंिन अन्वेषण Subtle meditation-investigation on varied aspects of succession-inheritance law • व्याव ाररक तनयर् व्यवस्त्था : Practical-Pragmatic • ववस्त्िृि एविं ववषाद व्याख्या : Descriptive - Detailed • काल एविं पररजस्त्थति अनुसार पररविमन दृजष्टगि : Open to amendment as per space & time