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Paper: 506
Laws of ownership
(स्वामित्व ववधि )
By
Prachi Virag Sontakke
स्वामित्व एवं स्वत्व की अवधारणा
• स्वामित्व : व्यक्ति िें निहिि
• स्वत्व : वस्िु िें निहिि
• स्वामित्व एवं स्वत्व का अन्योिाश्रिि संबंध : कायय कारण का संबंध
• उदािरण : पििृत्व से िुत्र का बोध , िुत्र से पििृत्व का
स्वत्व का अर्य
• िीकृ ष्ण िकायलंकार: स्वत्व वि िै क्िसिे यर्ेच्छ पवनियोग की स्विंत्रिा िै। स्वत्व
िभी िूणय िब वि स्वािी द्वारा यर्ेच्छ वनियोग क
े उियुति िो
• वीरमित्रोंदय : क्िस प्रकार ककसी बीि िे उसक
े िेड़ या फल क
े गुण पवद्यिाि िोिे
िै वैसे िी स्वत्व िे उसक
े यर्ेच्छ पवनियोग का अश्रधकार निहिि िोिा िै
• यहद शस्त्रावचिों एवं राज्य िीनियों का उल्लंघि कर पवनियोग, िब भी स्वत्व वैध
िी रिेगा
• अविेलिा िोिे िर स्वत्व का पवनियोग अिुश्रचि िािा िा सकिा िै िा की स्वयं
स्वत्व
• स्वािी इस उल्लंघि क
े फल का भागी िरंिु इससे उसक
े स्वत्व अश्रधकार िाकोइ
प्रभाव ििीं िड़िा
• पववेचिा: ऐसा स्वत्व क्िसक
े यर्ेच्छ पवनििय का अश्रधकार उसक
े स्वािी को ििीं
=प्रनिबंश्रधि दाय । उदािरण: पवधवा क
े िास भोगोियोगी स्वत्व= क
ु छ निक्चचि दशाओ
यर्ा िृि िी क
े आध्याक्त्िक लाध या िाररवाररक हिि िेिु िी स्विंत्र पवनियोग की
अिुिनि
स्वत्व का स्वरूि
• िीकृ ष्ण िकायलंकार: स्वत्व वि िै िो शास्त्र अिुिोहदि िो
• मििाक्षरा : स्वत्व का शास्त्र अिुिोहदि िोिा आवचयक ििीं
➢लोक िान्यिाओं िर आधाररि = लौककक स्वत्ववाद
➢शास्त्र स्वत्व प्रणेिा ििीं अपििु अंशिः दृष््ांि दशयक और
अंशिः नियािक िै
➢शास्त्र सम्िि िा िोिे िर स्वत्व अवैध ििीं
➢िात्ियय ये िै कक प्रयास रिे की शस्त्रों का उल्लंघि िा िो
• दायभाग : स्वत्व का शास्त्र अिुिोहदि िोिा आवचयक
• पववेचिा : ऐसा स्वत्व भी िो शास्त्र सम्िि भी और लोक सम्िि भी
ऐसा स्वत्व भी िो संयुति िो
संयुति स्वत्व
• िीकृ ष्ण िकायलंकार: एक िी वस्िु िर कई लोगों का स्वामित्व संभव
• एक व्यक्ति वास्िपवक स्वािी, दूसरा औिचाररक स्वािी
• उदािरण : भू-स्वामित्व = राज्य की सभी भूमि िर रािा का
अश्रधकार भले वि भूमि व्यक्तिगि रूि से ककसी ककसाि क
े आश्रधित्य
िें तयूूँ िा िो। िरंिु रािा का अश्रधकार क
े वल उससे रािकीय कर
प्राप्ि करिे िक िी सीमिि। इस व्यवस्र्ा से रािा और ककसाि क
े
सि स्वामित्व का बोध िोिा िै
स्वत्व क
े स्त्रोि : ििु क
े अिुसार
• दाय : उत्तराश्रधकार िे प्राप्ि संिपत्त
• लाभ : व्यािार क
े िाध्यि से
• क्रय : खरीदिे से प्राप्ि
• िय : युद्ध िे प्राप्ि
• प्रयोग : संिपत्त क
े उियोग से प्राप्ि
• किय योग : अििी िेििि से प्राप्ि
• सिप्रनिग्रि : भें् एवं उििार िे प्राप्ि
•
स्वत्व क
े स्त्रोि : गौिि क
े अिुसार
• उत्तराश्रधकार
• क्रय
• पवभािि
• आश्रधित्य : अिश्रधकृ ि संिपत्त िर
• प्राक्प्ि : गुप्ि धि
• स्वत्व: चिुरवणों को दाि, पविय, कृ पि व्यािार से प्राप्ि संिपत्त
स्वत्व क
े स्त्रोि : िारद क
े अिुसार
• 12 प्रकार : 3 सािान्य , 9 पवमशष््
• सािान्य : क्ििक
े नियि सब वणों क
े मलए सिाि यर्ा उत्तराश्रधकार, भें्,
वैवाहिक उििार
• पवमशष्् : प्रत्येक वणय क
े निधायररि किय िर आधाररि साधि
• ब्राह्िण: िौरोहित्य किय से प्राप्ि
• क्षत्रत्रय : युद्ध , िुिायिे, कर से प्राप्ि
• वैचय : कृ पि, िशुिालि, व्यािार से प्राप्ि
• शूद्र : िीिों वणों की सेवा से प्राप्ि संिपत्त
इसका यि अर्य ििीं की वणोंत्तर
कायों से अक्ियि संिपत्त अवैध
स्वत्व क
े पवमशष्् साधि
िररग्रि
आश्रधगि
पवक्िि
स्वत्व का प्रयोग
स्वत्व क
े पवमशष्् साधि: िररग्रि
• वीरमित्रोदय : िररग्रि से िात्ियय ऐसी संिपत्त को ग्रिण करिा क्िस िर
िूवय िे ककसी का स्वामित्व िा िो। िैसे िल, काष्ठ आहद का िंगल
से ग्रिण करिा.
• अच्छे लाल यादव :स्वामित्व पविीि संिपत्त िर अश्रधकार िी िररग्रि िै
• ििु: भूमि उसकी िोिी िै िो सवयप्रर्ि उस िर खेिी करे
• खेि का स्वािी कोई और और बीि ककसी और िे डाल िो फसल िर
स्वत्व खेि क
े स्वािी का िोगा िब िक की दोिों िे ििले िी ये
संपवदा िा िो गई िो की फसल िर दोिों का अश्रधकार रिेगा
स्वत्व क
े पवमशष्् साधि : अश्रधगि
वीरमित्रोदय : अश्रधगि से िात्ियय ऐसे गुप्ि धि की प्राक्प्ि से िै क्िसक
े
स्वािी की िािकारी ििीं िो
याज्ञवल्तय : आश्रधगि को निखाि-निश्रध किा िै
निखाि-निश्रध एवं खोई संिपत्त िे अंिर:
1. निखाि-निश्रध का वास्िपवक स्वािी अज्ञाि
2. खोई िुई संिपत्त िर स्वािी का स्वामित्व, अश्रधकार प्रिाणणि करिे िर
रििा िै
3. खोई संिपत्त क
े संदभय िें रािा को दावे की प्रिीक्षा करिी चाहिये (1 से
3 विय िक)
4. प्रिाणणि िोिे िर रािा को क
ु छ भाग लेकर शेि को वास्िपवक स्वािी
को लौ्िा िोिा िै
अश्रधगि का ब्वारा
• यहद निखाि-निश्रध की प्राक्प्ि सवयप्रर्ि रािा को िो िो वि उस धि
का आधा भाग स्वयं ले और आधा ब्राह्िणों को दे
• यहद निखाि-निश्रध ककसी ब्राह्िण को प्राप्ि िो िो वि उसका िूणय
स्वािी
• ब्राह्िणेत्तर व्यक्ति को मिलिे िर वि मसफ
य आधे भाग का िी स्वािी,
आधा रािा को प्राप्ि। यहद उसिे रािा को सूश्रचि ििीं ककया िो
सम्िूणय धि रािा का और व्यक्ति दंड का अश्रधकारी
• मििक्षरा : निखाि-निश्रध प्राक्प्ि क
े बाद यहद उसका वास्िपवक स्वािी
उस िर अििा स्वत्व मसद्ध कर दे िो सम्िूणय धि का 1/6 या 1/12
रािा लेकर शेि धि लौ्ायें
•
स्वत्व क
े पवमशष्् साधि: पवक्िि
• पवक्िि : रािा द्वारा युद्ध िें पवक्िि संिपत्त
• हिन्दू पवश्रध: पविेिा द्वारा पवक्िि रािकीय एवं व्यक्तिगि संिपत्त िें
अंिर
• रािकीय संिपत्त िर रािा का िूणय स्वामित्व
• प्रिा िर िात्र कर प्राप्ि करिे का अश्रधकार
• स्वत्व क
े संबंध िे पविेिा की पविय से िूवयविी रािा क
े अश्रधकारों का
क
े वल िस्िािान्िरण
स्वत्व क
े पवमशष्् साधि : स्वत्व का प्रयोग
• क्िस संिपत्त िर स्वत्व िै उससे प्राप्ि संिपत्त का साधि स्वत्व का
प्रयोग किलािा िै
• िात्ियय खेि से प्राप्ि उत्िादि
• िालिू िशुओं की संिािें
स्वामित्व का िस्िािान्िरण: अर्य एवं स्वरूि
अर्य : स्वयं अििी इच्छा से अििे स्वत्व को ककसी अन्य को सौििा
पवशेििाएूँ : िस्िािान्िरण सदैव अििी इच्छा से िोिा िै िर्ा दािा का
स्वत्व पवक्रय या दाि दी गई वस्िु से ि् िािा िै
प्रकक्रया : पवक्रय (भौनिक लाभ) एवं दाि (आध्याक्त्िक लाभ) द्वारा.
दाि : अर्य एवं स्वरूि
• देवल : शास्त्रअिुिोहदि व्यक्ति को शास्त्रअिुिोहदि पवश्रध से प्रदत्त दाि को
दाि किा िािा िै
• िेघानिश्रर् : ग्रिण िात्र िी प्रनिग्रि ििीं िै। प्रनिग्रि वि िै िो पवमशष््
स्वीकृ नि का िररचायक िो िर्ा क्िसे देिे सिय वैहदक िंत्रों का उच्चारण
िो
• दाि क
े िड अंग: दािा, प्रनिग्रिीिा, देय, िद्धा, देश, काल.
• मििाक्षरा : दाि की स्वीकृ नि क
े िीि प्रकार-िािमसक, वाश्रचक, कानयक
दाि : दायभाग
• स्वत्व की उत्िपत्त क
े मलए प्रनिग्रिीिा की स्वीकृ िी से ििीं अपििु दािा
क
े दाि से
• दािा द्वारा दाि की घोिणा क
े सार् िी प्रनिग्रिीिा क
े स्वत्व का
सृिि
• यहद दाि और प्रनिग्रिण क
े िध्य सिय का अंिर िब देय िर
ककसका अश्रधकार ?
दाि : मििक्षरा
• दाि क
े सिय यि निक्चचि ििीं िोिा िै की प्रनिग्रिीिा उसे स्वीकार
करेगा या ििीं
• अिः उसका स्वामित्व अनिक्चचििा की क्स्र्नि िे रििा िै
• दािा क
े स्वत्व का िस्िािान्िरण िब िक ििीं िोिा िब िक
प्रनिग्रिीि दाि स्वीकार िा कर ले
• दाि और प्रनिग्रिण क
े बीच सिय का अंिर िोिे की क्स्र्नि िें दािा
का देय िर यर्ेच्छ पवनियोग का अश्रधकार िी सिाप्ि िोिा िै ककन्िु
उसकी सुरक्षा का अश्रधकार पवद्यिाि रििा िै
ररतर् दाि संबंधी नियि
• मििाक्षरा : ररतर्िारों की स्वीकृ नि आवचयक
• दायभाग : दािा/स्वािी को दाि संबंधी स्वत्व िस्िािान्िरण िेिु ककसी
भी ररतर्िार की सििनि आवचयक ििीं
दाि की वैधानिकिा
• औिचाररतिाओं की िूनिय (शुभ स्र्ाि, शुभ सिय, शुभ िात्र, िंत्रों का उच्चारण)
• दािा द्वारा स्वत्व का त्याग
• प्रनिग्रिीिा की स्वीकृ नि
• प्रनिग्रिीिा का चेिि अक्स्ित्व अनिवायय : दाि उसी को क्िसका दाि क
े सिय
अक्स्ित्व िो
• क
ु िात्र को दाि ििीं देिा चाहिए
• अदेय/ अदत्त दाि : वे िदार्य क्िि िर दािा का वैध स्वामित्व ििीं िै िर्ा िो
शास्त्र द्वारा वक्ियि िै (िािा-पििा, राज्य व अन्य)
• भावावेश िे, रुग्णावस्र्ा िे, अत्यश्रधक बुढ़ािे िे, िूखयिावश, ित्तावस्र्ा िें,
कि् िें, िागलिि िे हदया दाि अिान्य
• दाि का वचि/दाि दे कर वािस ििीं मलया िा सकिा िै.
पवक्रय
• पवक्रय क
े बिुि से नियि दाि क
े सिाि िी
• क्रय करिा एवं पवक्रय किाय दोिों क
े हििों का ध्याि
• दोिों क
े मलए उदार नियिावली
• क्रय करिा क
े अश्रधकार िभी सुरक्षक्षि िब वि वस्िु क
े अश्रधकृ ि स्वािी से
िी क्रय करे
• यहद क्रय वास्िपवक स्वािी से ििीं िै िो न्यानयक पववाद का पविय
• मििाक्षरा : वास्िपवक स्वािी को अििा स्वामित्व मसद्ध करिा िड़िा िै +
ये बिािा िड़िा िै की उसक
े स्वामित्व का ििि क
ै से िुआ
• क्रय किाय को पवशेि िाररक्स्र्नि िे क्रय वस्िु को लौ्ािे का भी अश्रधकार
(गाय, घोड़ा,रत्ि इत्याहद)
पवक्रय : भुगिाि संबंधी नियि
क्रय किाय भुगिाि क
े बाद वस्िु को िुरंि ििीं लेिा और बाद िे लेिा िै
िब िूल्य निधायरण
1. यहद देय वस्िु का िूल्य ििले की िुलिा िे घ् गया िो िो पवक्रय किाय
को शेि धि लौ्ािा िोगा
2. यहद देय का िूल्य बढ़ गया िै िो क्रय किाय को बढ़ िूल्य देिा िोगा
3. यहद बढ़े िूल्य िर पवक्रय किाय िे रखे देय को ककसी अन्य को दे हदया
िै िो पवक्रय किाय को िुआविा देिा िोगा
4. यहद देय का िूल्य िा घ्ा िै िा बढ़ा िै और पवक्रय किाय िे देय ककसी
अन्य को बेच हदया िै िब पवक्रय किाय को कक्रय किाय को उस धि को ब्याि
सहिि लौ्ािा िोगा
पवक्रय : भुगिाि संबंधी नियि
क्रय किाय भुगिाि क
े बाद वस्िु को िुरंि ििीं लेिा और बाद िे लेिा
िै िब क्षनि निधायरण
1. देय की ककसी भी प्रकार की क्षनि का दानयत्व पवक्रय किाय िर
2. िरंिु बार बार किे िािे िर भी देय िा ले िािे िर क्षनि िोिे िर
िूणय क्िम्िेदारी क्रय किाय की चािे क्षनि पवक्रय करि की गलिी से
िो या रािकीय/ दैवीय प्रकोि से
3. भुगिाि िा की गई वस्िु की क्षनि का उत्तरदानयत्व भी उसी का
िोिा िै िो भुगिाि िा करिे अर्वा भुगिाि िा लेिे क
े मलए
उत्तरदायी िै

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  • 1. BA V Sem Paper: 506 Laws of ownership (स्वामित्व ववधि ) By Prachi Virag Sontakke
  • 2. स्वामित्व एवं स्वत्व की अवधारणा • स्वामित्व : व्यक्ति िें निहिि • स्वत्व : वस्िु िें निहिि • स्वामित्व एवं स्वत्व का अन्योिाश्रिि संबंध : कायय कारण का संबंध • उदािरण : पििृत्व से िुत्र का बोध , िुत्र से पििृत्व का
  • 3. स्वत्व का अर्य • िीकृ ष्ण िकायलंकार: स्वत्व वि िै क्िसिे यर्ेच्छ पवनियोग की स्विंत्रिा िै। स्वत्व िभी िूणय िब वि स्वािी द्वारा यर्ेच्छ वनियोग क े उियुति िो • वीरमित्रोंदय : क्िस प्रकार ककसी बीि िे उसक े िेड़ या फल क े गुण पवद्यिाि िोिे िै वैसे िी स्वत्व िे उसक े यर्ेच्छ पवनियोग का अश्रधकार निहिि िोिा िै • यहद शस्त्रावचिों एवं राज्य िीनियों का उल्लंघि कर पवनियोग, िब भी स्वत्व वैध िी रिेगा • अविेलिा िोिे िर स्वत्व का पवनियोग अिुश्रचि िािा िा सकिा िै िा की स्वयं स्वत्व • स्वािी इस उल्लंघि क े फल का भागी िरंिु इससे उसक े स्वत्व अश्रधकार िाकोइ प्रभाव ििीं िड़िा • पववेचिा: ऐसा स्वत्व क्िसक े यर्ेच्छ पवनििय का अश्रधकार उसक े स्वािी को ििीं =प्रनिबंश्रधि दाय । उदािरण: पवधवा क े िास भोगोियोगी स्वत्व= क ु छ निक्चचि दशाओ यर्ा िृि िी क े आध्याक्त्िक लाध या िाररवाररक हिि िेिु िी स्विंत्र पवनियोग की अिुिनि
  • 4. स्वत्व का स्वरूि • िीकृ ष्ण िकायलंकार: स्वत्व वि िै िो शास्त्र अिुिोहदि िो • मििाक्षरा : स्वत्व का शास्त्र अिुिोहदि िोिा आवचयक ििीं ➢लोक िान्यिाओं िर आधाररि = लौककक स्वत्ववाद ➢शास्त्र स्वत्व प्रणेिा ििीं अपििु अंशिः दृष््ांि दशयक और अंशिः नियािक िै ➢शास्त्र सम्िि िा िोिे िर स्वत्व अवैध ििीं ➢िात्ियय ये िै कक प्रयास रिे की शस्त्रों का उल्लंघि िा िो • दायभाग : स्वत्व का शास्त्र अिुिोहदि िोिा आवचयक • पववेचिा : ऐसा स्वत्व भी िो शास्त्र सम्िि भी और लोक सम्िि भी ऐसा स्वत्व भी िो संयुति िो
  • 5. संयुति स्वत्व • िीकृ ष्ण िकायलंकार: एक िी वस्िु िर कई लोगों का स्वामित्व संभव • एक व्यक्ति वास्िपवक स्वािी, दूसरा औिचाररक स्वािी • उदािरण : भू-स्वामित्व = राज्य की सभी भूमि िर रािा का अश्रधकार भले वि भूमि व्यक्तिगि रूि से ककसी ककसाि क े आश्रधित्य िें तयूूँ िा िो। िरंिु रािा का अश्रधकार क े वल उससे रािकीय कर प्राप्ि करिे िक िी सीमिि। इस व्यवस्र्ा से रािा और ककसाि क े सि स्वामित्व का बोध िोिा िै
  • 6. स्वत्व क े स्त्रोि : ििु क े अिुसार • दाय : उत्तराश्रधकार िे प्राप्ि संिपत्त • लाभ : व्यािार क े िाध्यि से • क्रय : खरीदिे से प्राप्ि • िय : युद्ध िे प्राप्ि • प्रयोग : संिपत्त क े उियोग से प्राप्ि • किय योग : अििी िेििि से प्राप्ि • सिप्रनिग्रि : भें् एवं उििार िे प्राप्ि •
  • 7. स्वत्व क े स्त्रोि : गौिि क े अिुसार • उत्तराश्रधकार • क्रय • पवभािि • आश्रधित्य : अिश्रधकृ ि संिपत्त िर • प्राक्प्ि : गुप्ि धि • स्वत्व: चिुरवणों को दाि, पविय, कृ पि व्यािार से प्राप्ि संिपत्त
  • 8. स्वत्व क े स्त्रोि : िारद क े अिुसार • 12 प्रकार : 3 सािान्य , 9 पवमशष्् • सािान्य : क्ििक े नियि सब वणों क े मलए सिाि यर्ा उत्तराश्रधकार, भें्, वैवाहिक उििार • पवमशष्् : प्रत्येक वणय क े निधायररि किय िर आधाररि साधि • ब्राह्िण: िौरोहित्य किय से प्राप्ि • क्षत्रत्रय : युद्ध , िुिायिे, कर से प्राप्ि • वैचय : कृ पि, िशुिालि, व्यािार से प्राप्ि • शूद्र : िीिों वणों की सेवा से प्राप्ि संिपत्त इसका यि अर्य ििीं की वणोंत्तर कायों से अक्ियि संिपत्त अवैध
  • 9. स्वत्व क े पवमशष्् साधि िररग्रि आश्रधगि पवक्िि स्वत्व का प्रयोग
  • 10. स्वत्व क े पवमशष्् साधि: िररग्रि • वीरमित्रोदय : िररग्रि से िात्ियय ऐसी संिपत्त को ग्रिण करिा क्िस िर िूवय िे ककसी का स्वामित्व िा िो। िैसे िल, काष्ठ आहद का िंगल से ग्रिण करिा. • अच्छे लाल यादव :स्वामित्व पविीि संिपत्त िर अश्रधकार िी िररग्रि िै • ििु: भूमि उसकी िोिी िै िो सवयप्रर्ि उस िर खेिी करे • खेि का स्वािी कोई और और बीि ककसी और िे डाल िो फसल िर स्वत्व खेि क े स्वािी का िोगा िब िक की दोिों िे ििले िी ये संपवदा िा िो गई िो की फसल िर दोिों का अश्रधकार रिेगा
  • 11. स्वत्व क े पवमशष्् साधि : अश्रधगि वीरमित्रोदय : अश्रधगि से िात्ियय ऐसे गुप्ि धि की प्राक्प्ि से िै क्िसक े स्वािी की िािकारी ििीं िो याज्ञवल्तय : आश्रधगि को निखाि-निश्रध किा िै निखाि-निश्रध एवं खोई संिपत्त िे अंिर: 1. निखाि-निश्रध का वास्िपवक स्वािी अज्ञाि 2. खोई िुई संिपत्त िर स्वािी का स्वामित्व, अश्रधकार प्रिाणणि करिे िर रििा िै 3. खोई संिपत्त क े संदभय िें रािा को दावे की प्रिीक्षा करिी चाहिये (1 से 3 विय िक) 4. प्रिाणणि िोिे िर रािा को क ु छ भाग लेकर शेि को वास्िपवक स्वािी को लौ्िा िोिा िै
  • 12. अश्रधगि का ब्वारा • यहद निखाि-निश्रध की प्राक्प्ि सवयप्रर्ि रािा को िो िो वि उस धि का आधा भाग स्वयं ले और आधा ब्राह्िणों को दे • यहद निखाि-निश्रध ककसी ब्राह्िण को प्राप्ि िो िो वि उसका िूणय स्वािी • ब्राह्िणेत्तर व्यक्ति को मिलिे िर वि मसफ य आधे भाग का िी स्वािी, आधा रािा को प्राप्ि। यहद उसिे रािा को सूश्रचि ििीं ककया िो सम्िूणय धि रािा का और व्यक्ति दंड का अश्रधकारी • मििक्षरा : निखाि-निश्रध प्राक्प्ि क े बाद यहद उसका वास्िपवक स्वािी उस िर अििा स्वत्व मसद्ध कर दे िो सम्िूणय धि का 1/6 या 1/12 रािा लेकर शेि धि लौ्ायें •
  • 13. स्वत्व क े पवमशष्् साधि: पवक्िि • पवक्िि : रािा द्वारा युद्ध िें पवक्िि संिपत्त • हिन्दू पवश्रध: पविेिा द्वारा पवक्िि रािकीय एवं व्यक्तिगि संिपत्त िें अंिर • रािकीय संिपत्त िर रािा का िूणय स्वामित्व • प्रिा िर िात्र कर प्राप्ि करिे का अश्रधकार • स्वत्व क े संबंध िे पविेिा की पविय से िूवयविी रािा क े अश्रधकारों का क े वल िस्िािान्िरण
  • 14. स्वत्व क े पवमशष्् साधि : स्वत्व का प्रयोग • क्िस संिपत्त िर स्वत्व िै उससे प्राप्ि संिपत्त का साधि स्वत्व का प्रयोग किलािा िै • िात्ियय खेि से प्राप्ि उत्िादि • िालिू िशुओं की संिािें
  • 15. स्वामित्व का िस्िािान्िरण: अर्य एवं स्वरूि अर्य : स्वयं अििी इच्छा से अििे स्वत्व को ककसी अन्य को सौििा पवशेििाएूँ : िस्िािान्िरण सदैव अििी इच्छा से िोिा िै िर्ा दािा का स्वत्व पवक्रय या दाि दी गई वस्िु से ि् िािा िै प्रकक्रया : पवक्रय (भौनिक लाभ) एवं दाि (आध्याक्त्िक लाभ) द्वारा.
  • 16. दाि : अर्य एवं स्वरूि • देवल : शास्त्रअिुिोहदि व्यक्ति को शास्त्रअिुिोहदि पवश्रध से प्रदत्त दाि को दाि किा िािा िै • िेघानिश्रर् : ग्रिण िात्र िी प्रनिग्रि ििीं िै। प्रनिग्रि वि िै िो पवमशष्् स्वीकृ नि का िररचायक िो िर्ा क्िसे देिे सिय वैहदक िंत्रों का उच्चारण िो • दाि क े िड अंग: दािा, प्रनिग्रिीिा, देय, िद्धा, देश, काल. • मििाक्षरा : दाि की स्वीकृ नि क े िीि प्रकार-िािमसक, वाश्रचक, कानयक
  • 17. दाि : दायभाग • स्वत्व की उत्िपत्त क े मलए प्रनिग्रिीिा की स्वीकृ िी से ििीं अपििु दािा क े दाि से • दािा द्वारा दाि की घोिणा क े सार् िी प्रनिग्रिीिा क े स्वत्व का सृिि • यहद दाि और प्रनिग्रिण क े िध्य सिय का अंिर िब देय िर ककसका अश्रधकार ?
  • 18. दाि : मििक्षरा • दाि क े सिय यि निक्चचि ििीं िोिा िै की प्रनिग्रिीिा उसे स्वीकार करेगा या ििीं • अिः उसका स्वामित्व अनिक्चचििा की क्स्र्नि िे रििा िै • दािा क े स्वत्व का िस्िािान्िरण िब िक ििीं िोिा िब िक प्रनिग्रिीि दाि स्वीकार िा कर ले • दाि और प्रनिग्रिण क े बीच सिय का अंिर िोिे की क्स्र्नि िें दािा का देय िर यर्ेच्छ पवनियोग का अश्रधकार िी सिाप्ि िोिा िै ककन्िु उसकी सुरक्षा का अश्रधकार पवद्यिाि रििा िै
  • 19. ररतर् दाि संबंधी नियि • मििाक्षरा : ररतर्िारों की स्वीकृ नि आवचयक • दायभाग : दािा/स्वािी को दाि संबंधी स्वत्व िस्िािान्िरण िेिु ककसी भी ररतर्िार की सििनि आवचयक ििीं
  • 20. दाि की वैधानिकिा • औिचाररतिाओं की िूनिय (शुभ स्र्ाि, शुभ सिय, शुभ िात्र, िंत्रों का उच्चारण) • दािा द्वारा स्वत्व का त्याग • प्रनिग्रिीिा की स्वीकृ नि • प्रनिग्रिीिा का चेिि अक्स्ित्व अनिवायय : दाि उसी को क्िसका दाि क े सिय अक्स्ित्व िो • क ु िात्र को दाि ििीं देिा चाहिए • अदेय/ अदत्त दाि : वे िदार्य क्िि िर दािा का वैध स्वामित्व ििीं िै िर्ा िो शास्त्र द्वारा वक्ियि िै (िािा-पििा, राज्य व अन्य) • भावावेश िे, रुग्णावस्र्ा िे, अत्यश्रधक बुढ़ािे िे, िूखयिावश, ित्तावस्र्ा िें, कि् िें, िागलिि िे हदया दाि अिान्य • दाि का वचि/दाि दे कर वािस ििीं मलया िा सकिा िै.
  • 21. पवक्रय • पवक्रय क े बिुि से नियि दाि क े सिाि िी • क्रय करिा एवं पवक्रय किाय दोिों क े हििों का ध्याि • दोिों क े मलए उदार नियिावली • क्रय करिा क े अश्रधकार िभी सुरक्षक्षि िब वि वस्िु क े अश्रधकृ ि स्वािी से िी क्रय करे • यहद क्रय वास्िपवक स्वािी से ििीं िै िो न्यानयक पववाद का पविय • मििाक्षरा : वास्िपवक स्वािी को अििा स्वामित्व मसद्ध करिा िड़िा िै + ये बिािा िड़िा िै की उसक े स्वामित्व का ििि क ै से िुआ • क्रय किाय को पवशेि िाररक्स्र्नि िे क्रय वस्िु को लौ्ािे का भी अश्रधकार (गाय, घोड़ा,रत्ि इत्याहद)
  • 22. पवक्रय : भुगिाि संबंधी नियि क्रय किाय भुगिाि क े बाद वस्िु को िुरंि ििीं लेिा और बाद िे लेिा िै िब िूल्य निधायरण 1. यहद देय वस्िु का िूल्य ििले की िुलिा िे घ् गया िो िो पवक्रय किाय को शेि धि लौ्ािा िोगा 2. यहद देय का िूल्य बढ़ गया िै िो क्रय किाय को बढ़ िूल्य देिा िोगा 3. यहद बढ़े िूल्य िर पवक्रय किाय िे रखे देय को ककसी अन्य को दे हदया िै िो पवक्रय किाय को िुआविा देिा िोगा 4. यहद देय का िूल्य िा घ्ा िै िा बढ़ा िै और पवक्रय किाय िे देय ककसी अन्य को बेच हदया िै िब पवक्रय किाय को कक्रय किाय को उस धि को ब्याि सहिि लौ्ािा िोगा
  • 23. पवक्रय : भुगिाि संबंधी नियि क्रय किाय भुगिाि क े बाद वस्िु को िुरंि ििीं लेिा और बाद िे लेिा िै िब क्षनि निधायरण 1. देय की ककसी भी प्रकार की क्षनि का दानयत्व पवक्रय किाय िर 2. िरंिु बार बार किे िािे िर भी देय िा ले िािे िर क्षनि िोिे िर िूणय क्िम्िेदारी क्रय किाय की चािे क्षनि पवक्रय करि की गलिी से िो या रािकीय/ दैवीय प्रकोि से 3. भुगिाि िा की गई वस्िु की क्षनि का उत्तरदानयत्व भी उसी का िोिा िै िो भुगिाि िा करिे अर्वा भुगिाि िा लेिे क े मलए उत्तरदायी िै