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Dr. Virag Sontakke
Paper c-402
प्राचीन भारतीय आर्थिक जीवन एवं ंं्थाए
Ancient Indian Economic Life
and Institutions
B.A. Sem. IV
प्राचीन भारतीय इततहां,ंं्कृ तत एवं पुरातत्व ववभाग,
बनारं हहंदू ववश्वववद्यालय
1
डॉ. ववराग ंोनटक्के
ंहायक प्राध्यापक
प्राचीन भारतीय इततहां,ंं्कृ तत एवं पुरातत्व ववभाग,
बनारं हहंदू ववश्वववद्यालय
2
प्राचीन भारत में भू-राज्व
यूतनट ५
Sr. No. 15
Dr. Virag Sontakke
3
Dr. Virag Sontakke
प्र्तावना
• आर्थिक ंमृद्र्ि ककंी भी राज्य की अभभवृद्र्ि का प्रमुख
आिार होता है।
• ंम्पूर्ि भारतीय इततहां में राज्य की आय का मुख्य
्रोत भू-राज्व था।
• भारत हमेशा से कृषिप्रधान राष्ट्र रहा है, इसीलए भू-राज्व हर युग में
महत्वपूर्ि था।
• भू-राज्व की वृद्र्ि के भलए राज्य/ कें द्रीय व्यव्थाए
ववववि योजनाये कायािन्ववत करते थे।
• प्राचीन काल में भूभम ंे ंंबंर्ित अनेक कर प्रचभलत थे.
4
Dr. Virag Sontakke
प्राचीन भारत में भू-राज्व के ्रोत
• ऋग्वेद
• अथविवेद
• ्मृततग्रवथ
• महाभारत
• बौद्ि एवं जैन ग्रवथ
• जातक कथाये
• िमिंूर
• कौहटल्य का अथिशा्र
• मनु्मृतत
• शुक्रनीतत
• अभभलेख
• ताम्रपर
• ववदेशी वववरर्
• इतर ग्रवथ, हटकायें इत्याहद 5
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भू-राज्व का उगम
• प्रारंभ में जब समाज में अराजकता थी तब लोगों ने प्रजा की रक्षा करनेवाले वीर पुरुि को
राजा चुना, और उंके बदले कर देने का आरम्भ ककया।
• राजा जो कर वसूल करता था वह प्रजा की रक्षा करने का पाररश्रषमक था।
• िमिंूर में गौतम भलखते है की प्रजा राजा को इंभलए
कर देती है क्योंकक राजा प्रजा की रक्षा करता है।
• नारद भी कहते है की प्रजा जो कर देती है वह राजा का
पाररश्रषमक है।
6
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प्राचीन भारत में
भू-राज्व का
एततहाभंक
ववश्लेषर्
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ऋगवैहदक काल
• कर-व्यव्था का प्रथम ंाहहन्त्यक प्रमार् ऋगवैहदक काल में दृन्टटगत होता है।
• ऋगवैहदक काल में प्रजा अपनी इच्छा के अनुरूप राजा को कर देती थी।
• राजा द्वारा वंूल ककए गए कर के अततररक्त देवताओं को देय पूजन
ंामग्रीपशुबली/ ववववि राजाओं ंे प्राप्त उपहार भेंट बभल कहलाती थी।
• राजा की उपार्ि के रूप में बभलहृत शब्द का प्रयोग भमलता है।
• इं काल में ब्राह्मर् एवं क्षरीय कर-मुक्त थे।
• ऋगवैहदक काल में कृ वष-पशुपालन जीवनयापन का प्रमुख ंािन था। इं कारर्
बभल, नगद िनराभश में ना होकर, अनाज और पशु के रूप में भलया जाता था।
8
Dr. Virag Sontakke
उत्तर-वैहदक काल
• ऋग्वेहदक काल में ्वेच्छा ंे हदया जाने वाला कर (बभल)
उत्तर-वैहदक काल में अतनवायि हो गया।
• अथविवेद में घोडों और गाव के भूभम पर राजा को “भाग” का
उल्लेख है।
• उत्तर-वैहदक काल में ककंानो ंे “भाग” नाम का कर तथा
व्यापाररयों ंे “शुल्क” नाम का कर भलये जाते थे।
• इंंे पता चलता है की, कृ वष पर आिाररत अथिव्यव्था की
शुरूवात हो चुकी थी।
• उत्तर वैहदक ंाहहत्य में भागदूि और ंमाहताि के उल्लेख है।
इनकी पहचान ववद्वानो द्वारा कर-ंंग्राहक ववभाग ंे की
गयी है।
• उत्तर-वैहदक काल में ंंभवतः कर अनाज, पशु आहद के रूप में
होता था।
9
Dr. Virag Sontakke
महाजनपद काल
• महाजनपदो का युग आते–आते प्रजा को तनयभमत कर देना
अतनवायि हो गया था।
• पाणर्तन कहते है की इं काल में भू-राज्व, फंल की
उपज १/६ ंे १/१२ भाग तक भलया जाता था।
• गौतम ने भू-राज्व की तीन दरे अथाित ् १/६ भाग, १/८ भाग
तथा १/१० भाग का उल्लेख ककया है।
• जातको में कर ंंग्राहक अर्िकारी के उल्लेख प्राप्त होते है
उवहें १) बभलप्रततग्राहक २) राजकन्म्मक कहते थे, जो बभल
अथवा राजकरो की वंूली करते थे।
10
Dr. Virag Sontakke
मौयि काल
• मौयि काल में भू-राज्व के भलए भाग, बभल, कर तथा हहरण्य
शब्द का वववरर् प्राप्त होता है।
• अथिशा्र में भाग शब्द के ंाथ-ंाथ बभल और कर शब्द का
उल्लेख भमलता है।
• डायोडोरं ने मेग्थनीज़ के आिार पर भलखा है की, ककंान
उपज का चौथाई भाग भू-राज्व के रूप में देते थे।
• कु छ जगह में भाग का ंवदभि भूभम की उपज ंे वंूल ककए
जाने वाले १/६ के ंाथ आया है।
• रुद्रदामन के जूनागढ़ अभभलेख में भाग (भूभमकर) का उल्लेख
भमलता है।
• ववटर्ुपुरार् में राजा को षडभार्गन अथवा षंडशवृवत्त कहा गया है।
• गोप नामक अवय अर्िकारी ५-१० गााँवों की खेती, ंीमा, ख़रीद-
बबक्री का वववरर् भलखता था। वह गाव के मकानो की ंूची
तैयार करता था और यह भी भलखता था कक ककंंे ककतना कर
वंूल करना है।
11
Dr. Virag Sontakke
गुप्त काल
• इस काल में भू-राज्व ंे प्राप्त करों की दरे पूविवती काल ंे कम थी।
• काभलदां और कामवदक कहते है की राजा को प्रजा की भलाई के
भलए कर वंूलना चाहहए।
• गुप्त कालीन अभभलेखों ंे पता चलता है की राजा प्रजा ंे उपज का
छटा भाग भू-राज्व के रूप में लेता था।
• इस काल में राज्व के ंवदभि में भाग, भोग, और कर का उल्लेख
भमलते है।
• भाग: भू-राज्व जो उपज का १/६ था।
• भोग: फल, फु ल, दूि, ईंिन के रूप में कर, जो प्रजा ंमय-ंमय पर
राजा को देती थी।
• कर: इंके ववषय में मतभेद है, यह शायद तनन्श्चत ंमय पर वंूल
ककए जाने वाला टैक्ं था। रुद्रदामन “कर” को प्रजा के भलए
कटटकारक बताता है।
12
Dr. Virag Sontakke
• इं काल के राजवंश जैंे, मौखरी,गाहडवाल, पाल, गुजिर- प्रततहार,
परमार, चालुक्य, कलचुरी, चंदेल के अभभलेखों में भाग, भोग,
हहरण्य और कर शब्दों का उल्लेख भमलता है।
• भाग तनन्श्चत तौर पर भू-राज्व था न्जंका अनुपात १/६ था।
• हहरण्य कर का प्रचलन भी इं काल में हदखाई देता है।
• इं काल में राजनीततक ंत्ता का कई ंाम्राज्य में ववकें द्रीकरर् हो
गया था।
• कर एवं व्यावंातयक गततववर्ियों ंे ंम्बंर्ित रचनाओं का अभाव
हदखाई देता है।
• भू-राज्व की जानकारी हेतु अभभलेखों पर तनभिर होना पडता है।
• गुप्तोत्तर काल में कें द्रीय ंत्ता के ्थान पर करों का अर्िग्रहन का
अर्िकार ंामंतों को प्राप्त हो चुका था।
• अत्यर्िक करों के भार एवं दबाव में वृद्र्ि के कारर् कृ षक वगि
की दयनीय न््थतत हो गयी थी।
गुप्तोत्तर काल (६०० ंे १२००)
13
Dr. Virag Sontakke
भू-राजस्व के प्रकार
1. भाग
2. बभल
3. कर
4. हहरण्य
5. िावय
14
Dr. Virag Sontakke
भाग
• भूभम की उपज पर लगाए जाने वाला प्रमुख कर भाग कहलाता था।
• महाभारत के अनुंार राजा प्रजा ंे १/१० ंे लेकर १/६ भाग तक कृ वष कर लेता था।
• कौहटल्य कहते है कक राजा को उपज का छटा भाग “कर” के रूप में लेना चाहहए।
• मेग्थनीज़ कहते है राजा भूभम की उपज का चौथा भाग कृ षक ंे प्राप्त करता
था।
• अशोक अपने रुम्मीनदेई लेख में कहता है कक उंने लुन्म्बनी ग्राम बभल ंे पूर्ितः मुक्त
कर हदया और भाग को षंडभाग (१/६) ंे कम करके अटटभाग (१/८)कर हदया।
• रुद्रदामन का जूनागढ अभभलेख कर, ववन्टट, प्रर्य और शुल्क के अततररक़्त भाग
का उल्लेख करता है।
• ंोमेश्वर के अनुंार भूभम की उविरता के आिार पर १/६, १/८ या १/१२ भाग राजा
को प्राप्त होता था।
• अत: यह ्पटट होता है कक भाग, प्रायः १/६ षंडंश:वृवत्त थी।
• भाग का ंािारर् अनुपात १/६ था इंीभलए राजा को षडभाऱ्िन अथवा षंडशवृवत्त
कहा जाता था।
• भाग कर के उल्लेख प्राचीन काल ंे मध्ययुगीन काल तक प्राप्त होते है।
15
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बभल
• बभल यह राज्व के भलए उल्लेणखत प्राचीनतम शब्द है।
• ऋग्वेद में राजा द्वारा वंूल ककए गए कर के अततररक्त देवताओं को देय पूजन ंामग्री पशुबली/
ववववि राजाओं ंे प्राप्त उपहार भेंट को बभल कहा गया है।
• मनु्मृतत, वभंटठ्मृतत, महाभारत में बभल का उल्लेख भूभमकर के रूप में हुआ है।
• प्रारम्भ में बभल प्रजा की ्वेच्छा पर तनभिर थी, जो बाद में अतनवायि हो गयी।
• अथिशा्र के अनुंार भाग के अततररक्त भूभम ंे प्राप्त कर बभल कहलाता था और मे ंमाहताि बभल
का ंंग्रहन करता था।
• जातकों में भूभम के उपज के ंवदभि में राजा को प्रततवषि हदया जाने वाले कर को बभल कहा गया है।
• अशोक के रुन्म्मनदेई ्तंभलेख में वणर्ित बभल का उल्लेख़ एक प्रकार के कर के रूप में ककया गया है।
• भमभलंदपवहो में बभल को आपातकालीन कर कहा गया है।
• वैहदक और बौद्ि युग में वणर्ित बभल नामक कर गुप्तयुर्गन अभभलेखों में और िमिशा्रों में भी उन्ल्लणखत है,
न्जंंे उंके दीघिकालीन व्यान्प्त का प्रमार् भमलता है।
• गुप्त कालीन बृह्पतत्मृतत और अमरकोश में भी बभल का उल्लेख भूभमकर के रूप में हुआ है।
• कालांतर में बभल िाभमिक कर माना गया और इंका उल्लेख के वल िाभमिक अनुटटानो ंे ंम्बंर्ित रह
गया। 16
Dr. Virag Sontakke
कर
• गौतम िमिंूर में “कर” शब्द का प्रयोग है।
• पाणर्तन की अटटाध्यायी में कर शब्द का उल्लेख आता है।
• वांुदेव शरर् अग्रवाल कहते है की कर का उल्लेख खेतों को
नापकर कृ वषयोग्य करने वाले भूभममापक अर्िकारी के
ंवदभि में आया है।
• कततपय ववद्वान कर को ंंपती पर वावषिक कर भी मानते
है।
• कर तनश्चयही उत्पीडक होता होगा इंीभलए, रुद्रदामन
जूनागढ अभभलेख में कहता है, उंने प्रजा ंे कभीभी कर,
ववन्टट या प्रर्य जैंा कोई कर वंूल नहीं ककया।
• ंमुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशन््त में भी “कर” का उल्लेख है।
• “कर” के उल्लेख प्राचीन काल ंे मध्ययुगीन काल तक
ववववि ्वरूपों में प्राप्त होते है।
17
Dr. Virag Sontakke
हहरण्य
• ऐंा प्रतीत होता है कक प्रारम्भ में हहरण्य भूभम ंे ंंबंर्ित कोई तनयभमत कर न होकर
एक अतनयभमत देय था, जो शायद कभी-कभी लगाया जाता रहा होगा।
• महाभारत के शांततपवि और अथिशा्र में इंका अनुपात १/१० बताया गया है।
• ्मृततया इंे १/५० का अनुपात बताती है।
• अथिशा्र में कहा गया है की ंमाहताि नामक अर्िकारी अलग-अलग करों के ंाथ हहरण्य
कर का वववरर् भलखे।
• गुप्तकाल में यह तनयभमत कर हो गया।
• षहरण्य का अथि ्वर्ि है इंभलए उपेवद्रनाथ घोषाल के अनुंार “षहरण्य ऐंा कर था जो ंभी
फंलो पर ना लेते हुए के वल ववशेष (बहुमूल्य) प्रकार की फंलो पर भलया जाता था”।
• ऐंा प्रतीत होता है कक यह कर नगद िन के रूप में वंूल ककया जाता था।
• हहरण्य कर के उल्लेख प्राचीन काल ंे मध्ययुग तक प्राप्त होते है।
18
Dr. Virag Sontakke
िावय
• कर की उपज में िावय को कृ वष की उपज का राजा
• गुप्तकाल के कु छ अभभलेखों में िावय शब्द प्रयुक्त हुआ है।
• िरंेन द्ववतीय के गुजरात के माभलया ताम्रपट्ट (छटी
शती) में िावय कर का उल्लेख है।
• िावय का अथि है अनाज में राजा का हह्ंा।
• भूभम-कर का कु छ अंश िावय के रूप में भलया जाता था।
19
Dr. Virag Sontakke
भू-राज्व की रचना
• अथिशा्र में भू-राज्व उपज के छटे भाग के ंवदभि में लेने को
कहा है।
• अथिशा्र में ग्राम की भूभम को ३ श्रेणर्यो में बााँटा गया था।
1. ऊाँ ची भूभम (्थल)
2. नीची भूभम (के दार)
3. अवय
इंंे पता चलता है की अलग-अलग प्रकार की भूभम के भलए अलग-
अलग प्रकार के कर थे।
िमिंूर के अनुंार उपजाऊ भमट्टी वाले खेतों पर अर्िक तथा काम
उपजाऊ वाले खेतों पर कम कर भलया जाए।
बृह्पतत के अनुंार राजा को भूभम के अनुंार कर लेना चाइए, जैंे
परतत भूभम ंे १/१० भाग, वषाि के जल ंे भंंची जाने वाली ज़मीन
ंे १/८ तथा जो फंल वंंत ऋतु में काटी गयी है उंंे १/६ भाग
लेना चाहहए।
20
Dr. Virag Sontakke
भू-राज्व की वृद्र्ि में राजकीय प्रबंि
• भू-राज्व राज्य की आय का मुख्य ्रोत होने के कारर्
उंकी वृद्र्ि के भलए राजकीय प्रबंि ककए जाते थे।
• कृ वष की उवनतत के भलए ववशेष प्रबंि ककए गए थे।
• मोयि काल में बंजर ज़मीन में खेती करने वाले लोगों/ककंानो
को कई प्रकार की छू ट दी जाती थी।
• नया तालाब अथवा ंेतुबंद बनाकर जो कही करे उंे ५ वषों
तक करमुक्ती थी।
• पुराने तालाबों का पुनरुद्िार करनेवाले को ४ वषों तक
करमुक्ती थी।
• राज प्रंाशन भंंचाई व्यव्था का प्रबंि करती थी।
• चाँद्रगुप्त के राज्यपाल पुटयगुप्त वैश्य की ंुदशिन झील
इंका उत्तम उदाहरर् है।
21
Dr. Virag Sontakke
कर तनिािरर् पद्ितत
• करो के दरों का तनिािरर् नीततंंगत हो ऐंा शा्रो में कहा
गया है।
• महाभारत के अनुंार कर का तनिािरर् आय और खचि का हहंाब
लगाकर करना चाहहए।
• कु रु िम्म जातक के अनुंार,खडी फंल का अनूमान लगाकर
भू-राज्व तनन्श्चत ककया जाए।
• मनुमृतत के टीकाकार कु ल्लूक के अनुंार फंल पर ककंान
को जो लाभ हुआ है, उंपर कर लगाया जाए।
• भू-राज्व को “भाग” कहा जाता था, भाग का अथि ककंान के
उपज में राजा का हह्ंा। वह ंािारर्त: उपज का छटा भाग
होता होगा।
• भूभम कर के तनिािरर् में ककंान की उपज का १/६ भाग
ंविमावय हदखाई देता है।
22
Dr. Virag Sontakke
भू-राज्व में छू ट एवं वृद्र्ि
• जब फंल ख़राब हो
• नैंर्गिक आपदा आने पर
• जब ककंान बंजर ज़मीन जोत रहा हों तब ववभशटट काल के भलए
भू-राज्व में छू ट दी जाती थी।
• अशोक ने लुन्म्बनी ग्राम को बभल ंे पूर्ितः मुक्त कर हदया था।
• ब्राम्हर् को भू-राज्व ंे छू ट थी।
• मनु कहते है की राजा को आपातकाल में १/४ तथा ंामावय
न््थतत में १/८ के अनुपात में कर लेना चाहहए।
• कौहटल्य ने अथिशा्र में भलखा है की, आपातकालीन न््थतत में
राज्य १/६ भाग के ्थान पर १/४ ंे १/३ भाग तक कर ले
ंकता है।
• न्जं खेत की उपज वषाि पर तनभिर ना हो वहााँ पर १/४ ंे १/३
भाग तक कर ले ंकते है।
23
Dr. Virag Sontakke
तनटकषि
• राज्य की आय का मुख्य ्रोत भू-राज्व था।
• भूभम की गुर्वत्ता, उपज क्षमता के आिार पर भू-राज्व का
तनिािरर् ककया जाता था।
• राजकीय अर्िकारी ंमय-ंमय पर खेतों की फंलों का ंवेक्षर्
करते थे।
• करों के बदले कें हदय व्यव्था ंुरक्षा, शांतत और प्रजा को
ंुवविाए प्रदान करती थी।
• रुद्रदामन और गौतमीपुर ंातकर्ी जैंे राजा प्रजा का हहत
ध्यान में रखकर वैि कर ही वंूल करते थे।
• ंातवी शती तक करों की प्रवृवत्त वयायंंगत हदखाई देती है,
इं काल के पश्चात कर उत्पीडक हो गए।
24
Dr. Virag Sontakke
ंवदभि ग्रवथ
• िमिशा्र का इततहां (द्ववतीय खंड)
• लेखक : भारतरत्न डॉ पाण्डुरंग वामन कार्े
• प्राचीन भारत की आर्थिक ंं्कृ तत
लेखक : डॉ ववशुद्िानंद पाठक
• प्राचीन भारत का आर्थिक इततहां
लेखक : डॉ ववशुद्िानंद पाठक
• प्राचीन भारत का ंमान्जक एवं आर्थिक इततहां
लेखक : ओम प्रकाश
• प्राचीन भारत की अथिव्यव्था
लेखक : डॉ काल ककशोर भमश्र
• भारत में कर ंुिार
लेखक : डॉ डी के नेमा
• Perspectives in Social and Economic History of Early India
Author: Dr. R. S. Sharma
• The Economic Life of Northern India C.AD 700-1200
Author: Prof. Lallanji Gopal 25

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Land Revenue Pattern in Ancient India

  • 1. Dr. Virag Sontakke Paper c-402 प्राचीन भारतीय आर्थिक जीवन एवं ंं्थाए Ancient Indian Economic Life and Institutions B.A. Sem. IV प्राचीन भारतीय इततहां,ंं्कृ तत एवं पुरातत्व ववभाग, बनारं हहंदू ववश्वववद्यालय 1
  • 2. डॉ. ववराग ंोनटक्के ंहायक प्राध्यापक प्राचीन भारतीय इततहां,ंं्कृ तत एवं पुरातत्व ववभाग, बनारं हहंदू ववश्वववद्यालय 2 प्राचीन भारत में भू-राज्व यूतनट ५ Sr. No. 15
  • 4. Dr. Virag Sontakke प्र्तावना • आर्थिक ंमृद्र्ि ककंी भी राज्य की अभभवृद्र्ि का प्रमुख आिार होता है। • ंम्पूर्ि भारतीय इततहां में राज्य की आय का मुख्य ्रोत भू-राज्व था। • भारत हमेशा से कृषिप्रधान राष्ट्र रहा है, इसीलए भू-राज्व हर युग में महत्वपूर्ि था। • भू-राज्व की वृद्र्ि के भलए राज्य/ कें द्रीय व्यव्थाए ववववि योजनाये कायािन्ववत करते थे। • प्राचीन काल में भूभम ंे ंंबंर्ित अनेक कर प्रचभलत थे. 4
  • 5. Dr. Virag Sontakke प्राचीन भारत में भू-राज्व के ्रोत • ऋग्वेद • अथविवेद • ्मृततग्रवथ • महाभारत • बौद्ि एवं जैन ग्रवथ • जातक कथाये • िमिंूर • कौहटल्य का अथिशा्र • मनु्मृतत • शुक्रनीतत • अभभलेख • ताम्रपर • ववदेशी वववरर् • इतर ग्रवथ, हटकायें इत्याहद 5
  • 6. Dr. Virag Sontakke भू-राज्व का उगम • प्रारंभ में जब समाज में अराजकता थी तब लोगों ने प्रजा की रक्षा करनेवाले वीर पुरुि को राजा चुना, और उंके बदले कर देने का आरम्भ ककया। • राजा जो कर वसूल करता था वह प्रजा की रक्षा करने का पाररश्रषमक था। • िमिंूर में गौतम भलखते है की प्रजा राजा को इंभलए कर देती है क्योंकक राजा प्रजा की रक्षा करता है। • नारद भी कहते है की प्रजा जो कर देती है वह राजा का पाररश्रषमक है। 6
  • 7. Dr. Virag Sontakke प्राचीन भारत में भू-राज्व का एततहाभंक ववश्लेषर् 7
  • 8. Dr. Virag Sontakke ऋगवैहदक काल • कर-व्यव्था का प्रथम ंाहहन्त्यक प्रमार् ऋगवैहदक काल में दृन्टटगत होता है। • ऋगवैहदक काल में प्रजा अपनी इच्छा के अनुरूप राजा को कर देती थी। • राजा द्वारा वंूल ककए गए कर के अततररक्त देवताओं को देय पूजन ंामग्रीपशुबली/ ववववि राजाओं ंे प्राप्त उपहार भेंट बभल कहलाती थी। • राजा की उपार्ि के रूप में बभलहृत शब्द का प्रयोग भमलता है। • इं काल में ब्राह्मर् एवं क्षरीय कर-मुक्त थे। • ऋगवैहदक काल में कृ वष-पशुपालन जीवनयापन का प्रमुख ंािन था। इं कारर् बभल, नगद िनराभश में ना होकर, अनाज और पशु के रूप में भलया जाता था। 8
  • 9. Dr. Virag Sontakke उत्तर-वैहदक काल • ऋग्वेहदक काल में ्वेच्छा ंे हदया जाने वाला कर (बभल) उत्तर-वैहदक काल में अतनवायि हो गया। • अथविवेद में घोडों और गाव के भूभम पर राजा को “भाग” का उल्लेख है। • उत्तर-वैहदक काल में ककंानो ंे “भाग” नाम का कर तथा व्यापाररयों ंे “शुल्क” नाम का कर भलये जाते थे। • इंंे पता चलता है की, कृ वष पर आिाररत अथिव्यव्था की शुरूवात हो चुकी थी। • उत्तर वैहदक ंाहहत्य में भागदूि और ंमाहताि के उल्लेख है। इनकी पहचान ववद्वानो द्वारा कर-ंंग्राहक ववभाग ंे की गयी है। • उत्तर-वैहदक काल में ंंभवतः कर अनाज, पशु आहद के रूप में होता था। 9
  • 10. Dr. Virag Sontakke महाजनपद काल • महाजनपदो का युग आते–आते प्रजा को तनयभमत कर देना अतनवायि हो गया था। • पाणर्तन कहते है की इं काल में भू-राज्व, फंल की उपज १/६ ंे १/१२ भाग तक भलया जाता था। • गौतम ने भू-राज्व की तीन दरे अथाित ् १/६ भाग, १/८ भाग तथा १/१० भाग का उल्लेख ककया है। • जातको में कर ंंग्राहक अर्िकारी के उल्लेख प्राप्त होते है उवहें १) बभलप्रततग्राहक २) राजकन्म्मक कहते थे, जो बभल अथवा राजकरो की वंूली करते थे। 10
  • 11. Dr. Virag Sontakke मौयि काल • मौयि काल में भू-राज्व के भलए भाग, बभल, कर तथा हहरण्य शब्द का वववरर् प्राप्त होता है। • अथिशा्र में भाग शब्द के ंाथ-ंाथ बभल और कर शब्द का उल्लेख भमलता है। • डायोडोरं ने मेग्थनीज़ के आिार पर भलखा है की, ककंान उपज का चौथाई भाग भू-राज्व के रूप में देते थे। • कु छ जगह में भाग का ंवदभि भूभम की उपज ंे वंूल ककए जाने वाले १/६ के ंाथ आया है। • रुद्रदामन के जूनागढ़ अभभलेख में भाग (भूभमकर) का उल्लेख भमलता है। • ववटर्ुपुरार् में राजा को षडभार्गन अथवा षंडशवृवत्त कहा गया है। • गोप नामक अवय अर्िकारी ५-१० गााँवों की खेती, ंीमा, ख़रीद- बबक्री का वववरर् भलखता था। वह गाव के मकानो की ंूची तैयार करता था और यह भी भलखता था कक ककंंे ककतना कर वंूल करना है। 11
  • 12. Dr. Virag Sontakke गुप्त काल • इस काल में भू-राज्व ंे प्राप्त करों की दरे पूविवती काल ंे कम थी। • काभलदां और कामवदक कहते है की राजा को प्रजा की भलाई के भलए कर वंूलना चाहहए। • गुप्त कालीन अभभलेखों ंे पता चलता है की राजा प्रजा ंे उपज का छटा भाग भू-राज्व के रूप में लेता था। • इस काल में राज्व के ंवदभि में भाग, भोग, और कर का उल्लेख भमलते है। • भाग: भू-राज्व जो उपज का १/६ था। • भोग: फल, फु ल, दूि, ईंिन के रूप में कर, जो प्रजा ंमय-ंमय पर राजा को देती थी। • कर: इंके ववषय में मतभेद है, यह शायद तनन्श्चत ंमय पर वंूल ककए जाने वाला टैक्ं था। रुद्रदामन “कर” को प्रजा के भलए कटटकारक बताता है। 12
  • 13. Dr. Virag Sontakke • इं काल के राजवंश जैंे, मौखरी,गाहडवाल, पाल, गुजिर- प्रततहार, परमार, चालुक्य, कलचुरी, चंदेल के अभभलेखों में भाग, भोग, हहरण्य और कर शब्दों का उल्लेख भमलता है। • भाग तनन्श्चत तौर पर भू-राज्व था न्जंका अनुपात १/६ था। • हहरण्य कर का प्रचलन भी इं काल में हदखाई देता है। • इं काल में राजनीततक ंत्ता का कई ंाम्राज्य में ववकें द्रीकरर् हो गया था। • कर एवं व्यावंातयक गततववर्ियों ंे ंम्बंर्ित रचनाओं का अभाव हदखाई देता है। • भू-राज्व की जानकारी हेतु अभभलेखों पर तनभिर होना पडता है। • गुप्तोत्तर काल में कें द्रीय ंत्ता के ्थान पर करों का अर्िग्रहन का अर्िकार ंामंतों को प्राप्त हो चुका था। • अत्यर्िक करों के भार एवं दबाव में वृद्र्ि के कारर् कृ षक वगि की दयनीय न््थतत हो गयी थी। गुप्तोत्तर काल (६०० ंे १२००) 13
  • 14. Dr. Virag Sontakke भू-राजस्व के प्रकार 1. भाग 2. बभल 3. कर 4. हहरण्य 5. िावय 14
  • 15. Dr. Virag Sontakke भाग • भूभम की उपज पर लगाए जाने वाला प्रमुख कर भाग कहलाता था। • महाभारत के अनुंार राजा प्रजा ंे १/१० ंे लेकर १/६ भाग तक कृ वष कर लेता था। • कौहटल्य कहते है कक राजा को उपज का छटा भाग “कर” के रूप में लेना चाहहए। • मेग्थनीज़ कहते है राजा भूभम की उपज का चौथा भाग कृ षक ंे प्राप्त करता था। • अशोक अपने रुम्मीनदेई लेख में कहता है कक उंने लुन्म्बनी ग्राम बभल ंे पूर्ितः मुक्त कर हदया और भाग को षंडभाग (१/६) ंे कम करके अटटभाग (१/८)कर हदया। • रुद्रदामन का जूनागढ अभभलेख कर, ववन्टट, प्रर्य और शुल्क के अततररक़्त भाग का उल्लेख करता है। • ंोमेश्वर के अनुंार भूभम की उविरता के आिार पर १/६, १/८ या १/१२ भाग राजा को प्राप्त होता था। • अत: यह ्पटट होता है कक भाग, प्रायः १/६ षंडंश:वृवत्त थी। • भाग का ंािारर् अनुपात १/६ था इंीभलए राजा को षडभाऱ्िन अथवा षंडशवृवत्त कहा जाता था। • भाग कर के उल्लेख प्राचीन काल ंे मध्ययुगीन काल तक प्राप्त होते है। 15
  • 16. Dr. Virag Sontakke बभल • बभल यह राज्व के भलए उल्लेणखत प्राचीनतम शब्द है। • ऋग्वेद में राजा द्वारा वंूल ककए गए कर के अततररक्त देवताओं को देय पूजन ंामग्री पशुबली/ ववववि राजाओं ंे प्राप्त उपहार भेंट को बभल कहा गया है। • मनु्मृतत, वभंटठ्मृतत, महाभारत में बभल का उल्लेख भूभमकर के रूप में हुआ है। • प्रारम्भ में बभल प्रजा की ्वेच्छा पर तनभिर थी, जो बाद में अतनवायि हो गयी। • अथिशा्र के अनुंार भाग के अततररक्त भूभम ंे प्राप्त कर बभल कहलाता था और मे ंमाहताि बभल का ंंग्रहन करता था। • जातकों में भूभम के उपज के ंवदभि में राजा को प्रततवषि हदया जाने वाले कर को बभल कहा गया है। • अशोक के रुन्म्मनदेई ्तंभलेख में वणर्ित बभल का उल्लेख़ एक प्रकार के कर के रूप में ककया गया है। • भमभलंदपवहो में बभल को आपातकालीन कर कहा गया है। • वैहदक और बौद्ि युग में वणर्ित बभल नामक कर गुप्तयुर्गन अभभलेखों में और िमिशा्रों में भी उन्ल्लणखत है, न्जंंे उंके दीघिकालीन व्यान्प्त का प्रमार् भमलता है। • गुप्त कालीन बृह्पतत्मृतत और अमरकोश में भी बभल का उल्लेख भूभमकर के रूप में हुआ है। • कालांतर में बभल िाभमिक कर माना गया और इंका उल्लेख के वल िाभमिक अनुटटानो ंे ंम्बंर्ित रह गया। 16
  • 17. Dr. Virag Sontakke कर • गौतम िमिंूर में “कर” शब्द का प्रयोग है। • पाणर्तन की अटटाध्यायी में कर शब्द का उल्लेख आता है। • वांुदेव शरर् अग्रवाल कहते है की कर का उल्लेख खेतों को नापकर कृ वषयोग्य करने वाले भूभममापक अर्िकारी के ंवदभि में आया है। • कततपय ववद्वान कर को ंंपती पर वावषिक कर भी मानते है। • कर तनश्चयही उत्पीडक होता होगा इंीभलए, रुद्रदामन जूनागढ अभभलेख में कहता है, उंने प्रजा ंे कभीभी कर, ववन्टट या प्रर्य जैंा कोई कर वंूल नहीं ककया। • ंमुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशन््त में भी “कर” का उल्लेख है। • “कर” के उल्लेख प्राचीन काल ंे मध्ययुगीन काल तक ववववि ्वरूपों में प्राप्त होते है। 17
  • 18. Dr. Virag Sontakke हहरण्य • ऐंा प्रतीत होता है कक प्रारम्भ में हहरण्य भूभम ंे ंंबंर्ित कोई तनयभमत कर न होकर एक अतनयभमत देय था, जो शायद कभी-कभी लगाया जाता रहा होगा। • महाभारत के शांततपवि और अथिशा्र में इंका अनुपात १/१० बताया गया है। • ्मृततया इंे १/५० का अनुपात बताती है। • अथिशा्र में कहा गया है की ंमाहताि नामक अर्िकारी अलग-अलग करों के ंाथ हहरण्य कर का वववरर् भलखे। • गुप्तकाल में यह तनयभमत कर हो गया। • षहरण्य का अथि ्वर्ि है इंभलए उपेवद्रनाथ घोषाल के अनुंार “षहरण्य ऐंा कर था जो ंभी फंलो पर ना लेते हुए के वल ववशेष (बहुमूल्य) प्रकार की फंलो पर भलया जाता था”। • ऐंा प्रतीत होता है कक यह कर नगद िन के रूप में वंूल ककया जाता था। • हहरण्य कर के उल्लेख प्राचीन काल ंे मध्ययुग तक प्राप्त होते है। 18
  • 19. Dr. Virag Sontakke िावय • कर की उपज में िावय को कृ वष की उपज का राजा • गुप्तकाल के कु छ अभभलेखों में िावय शब्द प्रयुक्त हुआ है। • िरंेन द्ववतीय के गुजरात के माभलया ताम्रपट्ट (छटी शती) में िावय कर का उल्लेख है। • िावय का अथि है अनाज में राजा का हह्ंा। • भूभम-कर का कु छ अंश िावय के रूप में भलया जाता था। 19
  • 20. Dr. Virag Sontakke भू-राज्व की रचना • अथिशा्र में भू-राज्व उपज के छटे भाग के ंवदभि में लेने को कहा है। • अथिशा्र में ग्राम की भूभम को ३ श्रेणर्यो में बााँटा गया था। 1. ऊाँ ची भूभम (्थल) 2. नीची भूभम (के दार) 3. अवय इंंे पता चलता है की अलग-अलग प्रकार की भूभम के भलए अलग- अलग प्रकार के कर थे। िमिंूर के अनुंार उपजाऊ भमट्टी वाले खेतों पर अर्िक तथा काम उपजाऊ वाले खेतों पर कम कर भलया जाए। बृह्पतत के अनुंार राजा को भूभम के अनुंार कर लेना चाइए, जैंे परतत भूभम ंे १/१० भाग, वषाि के जल ंे भंंची जाने वाली ज़मीन ंे १/८ तथा जो फंल वंंत ऋतु में काटी गयी है उंंे १/६ भाग लेना चाहहए। 20
  • 21. Dr. Virag Sontakke भू-राज्व की वृद्र्ि में राजकीय प्रबंि • भू-राज्व राज्य की आय का मुख्य ्रोत होने के कारर् उंकी वृद्र्ि के भलए राजकीय प्रबंि ककए जाते थे। • कृ वष की उवनतत के भलए ववशेष प्रबंि ककए गए थे। • मोयि काल में बंजर ज़मीन में खेती करने वाले लोगों/ककंानो को कई प्रकार की छू ट दी जाती थी। • नया तालाब अथवा ंेतुबंद बनाकर जो कही करे उंे ५ वषों तक करमुक्ती थी। • पुराने तालाबों का पुनरुद्िार करनेवाले को ४ वषों तक करमुक्ती थी। • राज प्रंाशन भंंचाई व्यव्था का प्रबंि करती थी। • चाँद्रगुप्त के राज्यपाल पुटयगुप्त वैश्य की ंुदशिन झील इंका उत्तम उदाहरर् है। 21
  • 22. Dr. Virag Sontakke कर तनिािरर् पद्ितत • करो के दरों का तनिािरर् नीततंंगत हो ऐंा शा्रो में कहा गया है। • महाभारत के अनुंार कर का तनिािरर् आय और खचि का हहंाब लगाकर करना चाहहए। • कु रु िम्म जातक के अनुंार,खडी फंल का अनूमान लगाकर भू-राज्व तनन्श्चत ककया जाए। • मनुमृतत के टीकाकार कु ल्लूक के अनुंार फंल पर ककंान को जो लाभ हुआ है, उंपर कर लगाया जाए। • भू-राज्व को “भाग” कहा जाता था, भाग का अथि ककंान के उपज में राजा का हह्ंा। वह ंािारर्त: उपज का छटा भाग होता होगा। • भूभम कर के तनिािरर् में ककंान की उपज का १/६ भाग ंविमावय हदखाई देता है। 22
  • 23. Dr. Virag Sontakke भू-राज्व में छू ट एवं वृद्र्ि • जब फंल ख़राब हो • नैंर्गिक आपदा आने पर • जब ककंान बंजर ज़मीन जोत रहा हों तब ववभशटट काल के भलए भू-राज्व में छू ट दी जाती थी। • अशोक ने लुन्म्बनी ग्राम को बभल ंे पूर्ितः मुक्त कर हदया था। • ब्राम्हर् को भू-राज्व ंे छू ट थी। • मनु कहते है की राजा को आपातकाल में १/४ तथा ंामावय न््थतत में १/८ के अनुपात में कर लेना चाहहए। • कौहटल्य ने अथिशा्र में भलखा है की, आपातकालीन न््थतत में राज्य १/६ भाग के ्थान पर १/४ ंे १/३ भाग तक कर ले ंकता है। • न्जं खेत की उपज वषाि पर तनभिर ना हो वहााँ पर १/४ ंे १/३ भाग तक कर ले ंकते है। 23
  • 24. Dr. Virag Sontakke तनटकषि • राज्य की आय का मुख्य ्रोत भू-राज्व था। • भूभम की गुर्वत्ता, उपज क्षमता के आिार पर भू-राज्व का तनिािरर् ककया जाता था। • राजकीय अर्िकारी ंमय-ंमय पर खेतों की फंलों का ंवेक्षर् करते थे। • करों के बदले कें हदय व्यव्था ंुरक्षा, शांतत और प्रजा को ंुवविाए प्रदान करती थी। • रुद्रदामन और गौतमीपुर ंातकर्ी जैंे राजा प्रजा का हहत ध्यान में रखकर वैि कर ही वंूल करते थे। • ंातवी शती तक करों की प्रवृवत्त वयायंंगत हदखाई देती है, इं काल के पश्चात कर उत्पीडक हो गए। 24
  • 25. Dr. Virag Sontakke ंवदभि ग्रवथ • िमिशा्र का इततहां (द्ववतीय खंड) • लेखक : भारतरत्न डॉ पाण्डुरंग वामन कार्े • प्राचीन भारत की आर्थिक ंं्कृ तत लेखक : डॉ ववशुद्िानंद पाठक • प्राचीन भारत का आर्थिक इततहां लेखक : डॉ ववशुद्िानंद पाठक • प्राचीन भारत का ंमान्जक एवं आर्थिक इततहां लेखक : ओम प्रकाश • प्राचीन भारत की अथिव्यव्था लेखक : डॉ काल ककशोर भमश्र • भारत में कर ंुिार लेखक : डॉ डी के नेमा • Perspectives in Social and Economic History of Early India Author: Dr. R. S. Sharma • The Economic Life of Northern India C.AD 700-1200 Author: Prof. Lallanji Gopal 25