WASH( Water Sanitation and Hygiene) by Dr Sushma Singh
Rashtriyta xi
1. 1
अध्याय 16 - राष्ट्रवाद
By
Dr. Sushma Singh
(Core Academic Unit DOE GNCT of Delhi)
पाठ के अंत में हम जान पाएंगे:
1. राष्ट्रवाद
• राष्ट्रवाद क्या हैं ? समान्तया यदद जनता की राय ले तो इस ववषय में राष्ट्रीय ध्वज, देश भक्क्त
देश के ललए बललदान जैसी बाते सुनेगे । ददल्ली में गणतन्र ददवस की परेड भारतीय राष्ट्रवाद
का ववचिर प्रतीक हैं ।
• राष्ट्रवाद वपछली दो शताक्ददयों के दौरान एक ऐसे संमोहक राजनीततक लसधान्त के रूप में उभर
कर सामने आया हैं कक क्जसने इततहास रिने में महत्वपूणण भूलमका अदा की हैं । इसने
अत्यािारी शासन से आजादी ददलाने में सहायता की हैं तो इसके साथ ही यह ववरोध , कटुता
और युद्धों की वजह भी रहा हैं ।
• राष्ट्रवाद बड़े –बड़े साम्राज्यों के पतन में भागीदार रहा हैं । बीसवीं शताददी की शुरुवात में यूरोप
में आस्ट्रेयाई – ह्ंगेररयई और रूसी साम्राज़्य तथा एसके साथ एलशया और अफ्रीका में फ्रान्सीस,
ब्रिदटश, ड्ि और पुतणगाली साम्राज्य के बटवारे के मूल मैं राष्ट्रवाद ही था ।
• इसी के साथ राष्ट्रवाद ने उनीसवीं शताददी के यूरोप में कई छोटी- छोटी ररयासतों के एकीकरण
से वृहदतर राष्ट्र राज्यों की स्ट्थापना का मागण ददखाया हैं ।
2. राष्ट्र तथा राष्ट्रवाद :-
• राष्ट्र: राष्ट्र के सदस्ट्य के रूप में हम राष्ट्र के अचधकतर सदस्ट्यों को प्रत्यक्ष तौर पर न कभी
जान पते हैं और न ही उनके साथ वंशानुगत संबंध जोडने की जरूरत पड़ती हैं । किर भी
राष्ट्रों का वजूद हैं , लोग उनमें रहते हैं और उनका सम्मान करते हैं ।
1.
राष्ट्रवाद
क्या हैं ?
2.
राष्ट्र तथा
राष्ट्रवाद
3.
राष्ट्र के
ववषय में
मान्यताए
4.
राष्ट्रीय
आत्म ननर्णय
5.
आत्मननर्णय
के
आन्दोलनों से
कै से ननपटें
6.
राष्ट्रवाद तथा
बहुलवाद
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• राष्ट्रवाद: राष्ट्र कािी हद तक एक काल्पतनक समुदाय हैं जो अपने सदस्ट्यों के सामूदहक
यकीन , इच्छाओं, कल्पनाओं ववश्वास आदद के एक धागे में गदित होता हैं । यह कु छ ववशेष
मान्यताओं पर आधाररत होता हैं क्जन्हे लोग उस पूणण समुदाय के ललए बनाते हैं । क्जससे वह
अपनी पहिान बनाए रखते हैं ।
3. राष्ट्र के ववषय में मान्यताए :-
1. सांझा ववश्वास : एक राष्ट्र का आक्स्ट्तत्व तभी बना रहता हैं जब उसके सदस्ट्यों को यह
ववश्वास हो कक वे एक –दूसरे के साथ हैं ।
2. इततहास: व्यक्क्त अपने आपको एक राष्ट्र मानते हैं उनके अंदर अचधकतर स्ट्थायी
पहिान का ढांिा पेश करने हेतु वे ककवदंततयों, स्ट्मृततयों तथा एततहालसक इमारतों तथा
अलभलेखों की रिना के जररये स्ट्वंय राष्ट्र के इततहास के बोध की रिना करते हैं ।
3. भू –क्षेर: ककसी भू क्षेर पर कािी हद तक साथ –साथ रहना एवं उससे संबंचधत सांझे
अतीत की स्ट्मृततयोंजान साधारण को एक सामूदहक पहिान का अनुभव करती हैं । जैसे
कोई इसे मातृभूलम या वपतृभूलम कहता हैं तो कोई पववर भूलम ।
4. सांझे राजनीततक ववश्वास: जब राष्ट्र के सदस्ट्यों की इस ववषय पर एक सांझा दृक्ष्ट्ट होती
हैं कक वे धमण तनरपेक्षता, लोकतन्र और उदारवाद जैसे मूल्यों और लसद्धांतों को स्ट्वीकार
करते हैं तब यह वविार राष्ट्र के रूप में उनकी राजनीततक पहिान को स्ट्पष्ट्ट करता हैं ।
5. सांझी राजनीततक पहिान : व्यक्क्तयों को एक राष्ट्र में बांधने के ललए एक समान भाषा,
जातीय वंश परंपरा जैसी सांस्ट्कृ ततक पहिान भी आवश्यकता हैं । ऐसे हमारे वविार ,
धालमणक ववश्वास, सामाक्जक परम्पराएँ सांझे हो जाते हैं । वास्ट्तव में लोकतन्र में ककसी
खास नस्ट्ल, धमण या भाषा से संबंधता की जगह एक मुली समूह के प्रतत तनष्ट्िा की
आवश्यकता होती हैं ।
4. राष्ट्रीय आत्म ननर्णय;-
• सामाक्जक समूहों से राष्ट्र अपना शासन स्ट्वयं करने और अपने भववष्ट्य को तय
करने का अचधकार िाहते हैं दूसरे शददों में वे आत्म तनणणय का अधकर िाहते हैं ।
• इस अचधकार के तहत राष्ट्र अंतराष्ट्रीय समुदीय से मांग करता हैं कक लभन्न
राजनीततक इकाई या राज्य के दजे को मान्यता एवं स्ट्वीकृ तत दी जाए ।
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• उन्नीसवीं सदी में यूरोप में एक संस्ट्कृ तत एक राज्य की मान्यता ने ज़ोर पकड़ा ।
िलस्ट्वरूप वसाणय की संचध के बाद ववलभन्न छोटे एवं नव स्ट्वतंर राज्यों का गिन
हुआ । इस के कारण राज्यों की सीमाओं में भी पररवतणन हुए बड़ी जनसंख्या का
ववस्ट्थापन हुआ, कई लोग सांप्रदातयक दहंसा के भी लशकार हुए ।
• इसललए यह तनक्श्ित करना मुमककन नहीं हो पाया कक नव तनलमणत राज्यों में मार
एक ही जातत के लोग रहे क्योकक वहांएक से ज्यादा नस्ट्ल और संस्ट्कृ तत के लोग रहते
हैं ।
• आश्ियण की बात यह हैं कक वे उन राष्ट्र राज्यों ने क्जनहोने संघषो के बाद स्ट्वचधनता
प्राप्त की , ककन्तु अब वे अपने भू –क्षेर में राष्ट्रीय आत्म तनणणय के अचधकार की
मांग करने वाले अल्पसंख्यक समूहों का खंडन करते हैं ।
5. आत्मननर्णय के आन्दोलनों से कै से ननपटें:-
• समाधान नए राज्यों के गिन में नहीं बललक वतणमान राज्यों को ज्यादा लोकताक्न्रक और
समतामूलक बनाने में हैं । समाधान हैं कक लभन्न –लभन्न सांस्ट्कृ ततक और नस्ट्लीय पहिानो के
लोग देश में समान नागररक तथा लमरों की तरह सहअक्स्ट्तत्व पूवणक रह सकें ।
6. राष्ट्रवाद तथा बहुलवाद :-
• “एक संस्ट्कृ तत –एक राज्य” के वविार को त्यागने के बाद लोकताक्न्रक देशों ने सांस्ट्कृ ततक रूप
से अल्पसंख्यक समुदायों की पहिान को स्ट्वीकृ त करने तथा सुरक्षक्षत करने के तरीके की
शुरूआत की हैं । भारतीय सववंधान, में भाषीय, धालमणक एवं सांस्ट्कृ ततक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा
के ललए व्यापक प्रावधान हैं ।
• यद्यवप अल्पसंख्यक समूहों को मान्यता एवं सरक्षण प्रदान करने के बावजूद कु छ समूह पृथक
राज्य की मांग पर अड़े रहे , ऐसा हो सकता हैं । यह ववरोधाभासी तथ्य होगा कक मांग पर अड़े रहे,
ऐसा हो सकता हैं । यह ववरोधाभासी तथ्य होगा कक जहां वैशववक ग्राम की बातें िल रही हैं वहां
अभी भी राष्ट्रीय आंकांक्षाएं ववलभन्न वगों और सामुदायों को उद्वेललत कार रही हैं । इसके
समाधान के ललए संबक्न्धत देश को ववलभन्न वगों के साथ उदारता एवं दक्षता का पररिय देना
होगा साथ ही असदहष्ट्णु एक जातीय स्ट्वरूपों के साथ किोरता से पेश आना होगा ।