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अध्याय-1
प्रस्तावना
अखिल ब्रह्माण्ड में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा अनोिा ग्रह है जिस पर
िीवन व्याप्त है। जिस पर सूक्ष्म पौधों से लेकर ववशाल वृक्ष एवं सूक्ष्म
अमीबा से लेकर ववशालकाय प्राणी हवेल तक ववद्यमान हैं। ऐसा यहााँ
की ववशेष पयाावरणीय दशाओं क
े तहत संभव हुआ है िो िीवन
प्रक्रियाओं को संचाललत करने क
े ललए उपयुक्त होती है। इस ववशेषता क
े
ललए पृथ्वी से सूया की दूरी की महत्वपूणा भूलमका है। पृथ्वी पर प्रचुर
मात्रा में िल उपलब्ध है िो यहााँ क
े तापमान को नम बनाये रिता है।
इनहीं कारणों से यहााँ पर िीव, िनतु व पेड़-पौधे िीववत हैं। पयाावरण
िीवन को स्थाययत्व देने वाली प्रणाली है, जिसमें िड़ और चेतन दोनों
तरह क
े तत्व हवा. पानी लमट्टी, िीव समूह मौिूद हैं। जिनमें से अनेक
एक-दूसरे को प्रभाववत करते हैं। पयाावरण उन सभी दशाओं का योग है
जिससे प्राणीमात्र का िीवन प्रभाववत होता है। मानव िीवन में
भौगोललक कारकों क
े प्रभाव की अवहेलना करना एक गम्भीर
समािशास्त्रीय त्रुटट करना है। लेक्रकन क्रकसी भी जस्थयत की वववेचना में
भौगोललक कारकों को सबसे अधधक प्रभावपूणा मान लेना भी उतनी ही
बड़ी त्रुटट है। मानव िीवन को प्रभाववत करने वाली सभी दशाओं को
मुख्य रूप से दो भागों में बााँटा िा सकता है
1. भौगोललक
2. सामाजिक
इन दोनों दशाओं क
े सजम्मललत रूप को ही पयाावरण कहा िाता है। यह
कहा िाता है क्रक मनुष्य अपने पयाावरण की उपि है इसका तात्पया यह
है क्रक प्रत्येक मनुष्य अपने चारों ओर की अनेक सामाजिक, सांस्कृयतक,
भौगोललक, आधथाक िैववकीय और िनसंख्यात्मक पररजस्थयतयों से
प्रभाववत होता रहता है। क
ु छ व्यजक्त अपनी इन पररजस्थयतयों से
अनुक
ू लन कर लेते हैं, िबक्रक बहुत से व्यजक्त इनसे अनुक
ू लन नहीं कर
पाते। मानव क
े चारों ओर की इन सभी दशाओं व उनक
े प्रभाव की
सम्पूणाता को हम मानव का पयाावरण कहते हैं।
सम्भवतः आि से करीब डेढ़ करोड़ वषा पूवा पृथ्वी पर मानव िायत का
उद्भय हुआ था हरे-भरे िंगल झर-झर बहते झरनें, कल-कल करती
नटदयााँ, कलरव करते पक्षी तथा ववशुद्ध प्राणवायु देने वाले यातावरण क
े
बीच मनुष्य ने अपनी आाँिें िोली होगी। सचमुच बड़ी ही मनोरम रहा
होगा उन टदनों का पयाावरण, परनतु देिते-देिते सब क
ु छ बदल गया।
आि बदहाली क
े लशकार पयाावरण की धचनता सभी को िाए िा रही है।
ववकास की अंधाधुनध दौड़ क
े साथ-साथ तेिी से ववनाश की तरफ बढ़ता
िा रहा है पयाावरण दरअसल, ववकास की शुरूआत सन् 1750 ई० क
े आस-
पास इंग्लैण्ड में कपड़ा लमलों क
े िुलने से हुई, िब वहााँ औद्योधगक
िाजनत का िनम हुआ । मानव द्वारा क्रकए िाने वाले कई कायों का
उत्तरदाययत्व वहााँ स्थावपत मशीनों ने सम्भाल ललया औद्योगीकरण ने
देिते-देिते मानव िीवन को सुगम बना टदया उद्योग क्रकसी भी राष्र
की प्रगयत एवं समृद्धध का प्रतीक बन गए। िीवन क
े हर क्षेत्र में प्रत्यक्ष
या अप्रत्यक्ष रूप से उद्योगों का प्रभाव छा गया और िीवन का एक
आवश्यक अंग बन गये उद्योग औद्योगीकरण क
े चलते शहरीकरण की
प्रक्रिया भी तेि हुई चाहे आधथाक हो, सामाजिक या रािनैयतक या क्रफर
सांस्कृयतक सभी दृजष्टयों से ही सम्पूणा ववश्व का गानों स्वरूप ही बदल
गया।
आि पयाावरण प्रदूषण एक गम्भीर वैजश्वक समस्या है। इसक
े भयंकर
प्रकोप से ववश्व का कोई कोना अछ
ू ता नहीं है। एक तरफ स्वाथापरक
आधथाक ववकास की नीयतयााँ इसक
े ललए उत्तरदायी है,तो दूसरी तरफ
सामाजिक सांस्कृयतक कारक भी जिम्मेदार हैं। उल्लेिनीय है क्रक
पयाावरण क
े प्रयत िन-िीवन िागरूकता का यनतानत अभाव है।
फलस्वरूप टदन-प्रयतटदन पयाावरण प्रदूषण की समस्या भयावह होती िा
रही है जिससे पृथ्वी पर िीवन क
े अजस्तत्व क
े समा गम्भीर संकट
उत्पनन होता िा रहा है।
कल्पना करें अनतररक्ष क
े टटाटोप अंधेरे और अंतहीन ववस्तार की।
अनतररक्ष क
े इस टटाटोप अनधेरे और अनतहीन ववस्तार क
े भीतर
अजस्तत्वमान है हिारो, लािों आकाशगंगाएाँ। इनहीं आकाश गंगाओं में से
क्रकसी एक का बहुत छोटा टहस्सा है हमारा सौरमंडल, जिसमें सूया सटहत
कई छोड़े-बड़े ग्रह,उपग्रह, ग्रटहकाएाँ और उल्का वपण्ड अपने पररिमा पथ
पर अनवरत गयतमान हैं। हमारी धरती भी सौरमण्डल क
े अनय ग्रहों की
भांयत ही एक सामानय ग्रह है। यटद हम एक िगोल वपण्ड को तटस्थ
यनगाहों से देि तो समूचे सौर मण्डल क
े अनतगात पृथ्वी में ऐसी कोई
िास बात निर नही आयेगी िो उसे अनय ग्रहों से अलग कोई ववशेष
महत्व प्रदान करती हो, लेक्रकन यटद हम मानवीय सनदभों में देिें तो बात
क
ु छ उल्टी ही निर आती है। पृथ्वी पर मानव ही वह प्राणी है जिसने
िगोल वपण्डों की तमाम स्थापनाओं को दरक्रकनार कर इसे न क
े वल सौर
मण्डल का बजल्क समूचे ब्रह्माण्ड का सवााधधक मह्वपूणा क
े नद्र  बना
टदया है।
पृथ्वी ग्रह को मटहमा मजण्डत करने क
े मनुष्य क
े प्रयासों की झलक हमें
तोलेभी क
े पृथ्वी क
े जनद्र त लसद्धानत में लमलती है जिसने यह बात सामने
रिी है क्रक पृथ्वी सौर मण्डल का क
े नद्र  है और सूया सटहत तमाम ग्रह
पृथ्वी की पररिमा करते हैं। यह लसद्धानत यटद सटदयों तक िन-
आस्थाओं में रि-बसा रहा तो मुख्य कारण यही था क्रक इस लसद्धानत
से मनुष्य क
े अह की तुजष्ट होती थी और िब कई शताजब्दयों क
े पश्चात्
कोपर यनकस िैसे साहसी व्यजक्त ने सूया क
े जनद्र त लसद्धानत की पुजष्ट
की तो उसे प्रबल ववरोध का सामना करना पड़ा ववरोध क
े बाविूद कोपर
यनकस की अनततः वविय हुई,परनतु मनुष्य का अहं सनतुष्ट नहीं हुआ
उसने लगातार अपनी शारीररक व मानलसक ताकत का प्रयास िारी रिा
सटदयों क
े अथक संटषा क
े पश्चात् उसने आि समूची पृथ्वी की शक्ल
को बदल डाला है। ववज्ञान, तकनीकी उपकरण और इन सबसे बढ़कर
अपनी समुननत मेधा क
े बल पर न क
े वल उसने अपनी प्रकृयत पर अपने
पौरुष की वविय अंक्रकत क्रकया बजल्क पृथ्वी ग्रह की सीमाओं से बाहर
अंतररक्ष की बड़ी दूररयों को लांटते हुए दूसरे ग्रहों तक भी पहुाँच गया।
मासा ग्लोबर सवेयर, अपालो, वायक्रकंग, स्पूतयनक, पाथ, फाइण्डर िैसे अनेको
अलभयान मनुष्य क
े इसी पौरुष क
े प्रतीक है।
प्रकृयत और मनुष्य क
े पौरुष क
े बीच संटषा की गाथा लम्बी है और
संटषा की यह अयनवायाता मनुष्य क
े अजस्तत्व की एक आवश्यक शता है।
दरअसल मनुष्य को अपनी िैववकीय और मनःियनत आवश्यकताओं को
पूरा करने क
े ललए प्रकृयत क
े ववरुद्ध अनवरत संटषा करना पड़ता है।
यटद वह ऐसा न करे तो उसक
े अजस्तत्व क
े समक्ष प्रश्न धचह्न लग
िायेगा, क्योंक्रक महान िीवशास्त्री डाववान क
े शब्दों में, “प्रकृयत में नही
प्राणी िीववत रहता है िो योग्य रहता है और िो अयोग्य होता है प्रकृयत
उसे समाप्त कर डालती है।“
पृथ्वी पर समस्त िीवधाररयों वनस्पयतयों एवं अनय प्राकृयतक शजक्तयों
क
े बीच अनतःयनभारता पायी िाती है जिसे िाद्य श्ृंिला क
े रूप में
समझा िा सकता है। इस िाद्य श्ृंिला क
े अनतगात िीववत रहने क
े
ललए अपनी िैववकीय बनावट क
े अनुसार प्रत्येक िीव अपना आहार
बनाता है और इसी प्रकार वनस्पयतयों भी या तो िीवों और वनस्पयतयों
को या अनय प्राकृयतक तत्वों को अपने आहार क
े रूप में इस्तेमाल करती
है। प्रकृयत क
े भीतर सब क
ु छ इस प्रकार टटटत होता है रहता है क्रक यटद
कोई ववशेष बात न हो तो आहार क
े रूप में इस्तेमाल होने क
े बाविूद
भी पृथ्वी पर िीवधाररयों, वनस्पयतयों या अनय प्राकृयतक तत्वों की कमी
या वृद्धध नहीं होती। अब यटद हम उपरोक्त िाद्य श्ृंिला क
े भीतर
प्राणी की जस्थयत देिें तो यह दात सामने आती है क्रक समस्त
िीवधाररयों में मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है िो अपनी
आवश्यकताओं की पूयता क
े ललए अनय प्राखणयों की तरह प्रकृयत क
े साथ
अनुक
ू लन (सादात्म्य) नहीं स्थावपत करता बजल्क उसका ही रूप
पररवयतात करता है। अथा यह है क्रक अपनी आवश्यकताओं की पूयता क
े
दौरान मनुष्य प्रकृयत में िो हस्तक्षेप करता है उससे पंकृयत का
रूपानतरण होता है। एक नूतन प्रकृयत, संस्कृयत का आववभााय होता है।
आटदकाल में ही मनुष्य प्रकृयत को बदलता हुआ स्वयं भी रूपानतररत
होता रहा है। इसक
े साथ ही प्रकृयत क
े ववरूद्ध मनुष्य का संटषा प्रारम्भ
हो गया। मनुष्य ने हरे-भरे बन प्रानत को तहस-नहस कर कृवष काया
आरम्भ क्रकया। औद्योधगक िाजनत क
े पूवा तक मनुष्य की प्रकृयत क
े
ववरूद्ध संटषा का पररणाम उतना टातक नहीं रहा, जितना क्रक उसक
े बाद
हुआ है। इंग्लैण्ड में सम्पनन औद्योधगक िाजनत ने प्रकृयत में मनुष्य क
े
हस्तक्षेप को तीव्र से तीव्रतर बना टदया। भारी-भरकम यनत्रों क
े
आववष्कार और कम समय में अध्यधधक उत्पादन की महत्वाकांक्षाओं क
े
चलते न क
े वल यूरोप, बजल्क सारी दुयनया में व्यापक पैमाने पर प्रकृयत
का गहन शोषण और दोहन आरम्भ हुआ। यह एक बड़ी सीमा में
वववेकहीन प्रक्रिया थी, जिसक
े कारण वतामान शताब्दी तक आते-आते
पयाावरण का सनतुलन इतना बबगड़ गया क्रक पृथ्वी ने अपना स्वाभाववक
रूप ही िो टदया है।
नीले-पीले फ
ू लों से आच्छाटदत दूर-दूर तक ववस्ताररत हरे-भरे िंगल,
आकाश और सागर का नीला क्षक्षयति सब क
ु छ धुएाँ, रसायनों, परमाणु-
कचरों से मनुष्य की हदस क
े कारण ववकृयत या बबााद हो गया। यहााँ
तक क्रक द्ववतीय ववश्व युद्ध क
े पश्चात् पयाावरण से उत्पनन समस्यायें
इतनी प्रबलतम रूप में उभरी क्रक आि यह सारी दुयनया में धचनता का
मुख्य क
े नद्र  बन गया है। पररणाम स्वरूप अनेक सामाजिक ववचारकों एवं
मानवतावादी मनीवषयों ने पयाावरण प्रदूषण से उत्पनन ितरों क
े ववरुद्ध
आवाि उठाई और प्रकृयत क
े संरक्षण क
े प्रश्न को गंभीरता से देिा। यही
कारण था क्रक ववललयम माररस, राबटा आवेन, चाल्सा फ
ू ररये लमिाइल
बाक
ु नी तथा िोपोटक्रकन आटद ने प्रौद्योधगकी पर आधाररत सामाजिक
व्यवस्था (पूाँिीवाद) की कटु आलोचना की। उनहीं टदनों कालामाक्सा,
फ्र
े डररक ऐंगल्स ने मनुष्यों और पशुओं में अंतर की वववेचना करते हुए
ललिा है क्रक पशु िहााँ एक और प्राकृयतक सम्पदा का मात्र उपभोग करते
हैं वहीं मनुष्य प्रकृयत पर स्वालमत्व तथा आधधपत्य कायम करता है।
साथ ही उनहोंने चेतावनी देते हुए कहा है क्रक हमें प्रकृयत पर अपने
वविय का बहुत अहंकार नहीं करना चाटहए क्योंक्रक प्रकृयत पर की गई
इस प्रकार की प्रत्येक वविय का बदला प्रकृयत ले लेती है।“
उननीसवीं शताब्दी क
े अनत तक मनुष्य द्वारा प्रकृयत क
े हस्तक्षेप को
प्रकृयत पर ववध्वंशक प्रक्रिया क
े रूप में नहीं देिा गया परनतु 20वीं
शताब्दी में मनुष्य और पृथ्वी क
े अनतःसम्बनधों को समाि ववचारकों
एवं वैज्ञायनकों ने अपने अध्ययन का क
े नद्र ीय ववषय बनाया और
पयाावरणवाद का व्यवजस्थत शास्त्र क
े रूप में ववकास हुआ, जिसक
े
अनतगात सामाजिक ववकास और प्रकृयत क
े अनतःसम्बनधों को वववेकपूणा
ढंग से संयोजित करने की आवश्कता पर बल टदया िाने लगा। 20वीं
शताब्दी क
े 9वें दशक में ररयोनडी िनेररयो (ब्रािील) सम्पनन पृथ्वी
सम्मेलन को पयाावरण सुरक्षा की ववश्वव्यापी धचनता को मील का पत्थर
माना िाता है।
पाररजस्थयतकी तंत्र (ठवव.ैैलेिमउ) को लेकर ववश्व भर में उभर रही
धचनता का यह पररणाम भी रहा क्रक सन् 1972 में संयुक्त राष्र संट
द्वारा संयुक्त राष्र पयाावरण कायािम (नछम्च्) की स्थापना हुई और
क्रफर सन् 1975 में मानव बजस्तयों क
े ललए संरक्षक्षत कोष बनाया गया।
संयुक्त राष्र और ववश्व की नई महत्वपूणा एिेजनसयों क
े प्रयासों तथा
पयाावरण क
े सुरक्षा क
े सवाल ने अनततः ववश्व क
े रािनैयतक पटल पर
पयाावरण को मुख्य प्रश्न टदया तथा इसने ववकलसत देशों की लामबनदी
को भी िनम टदया। ववकासशील देशों की सोच यह रही है क्रक पयाावरण
को ितरा मुख्य रूप से ववकलसत देशों से है,िबक्रक ववकलसत देश इस
आरोप से लगातार इंकार करते आ रहे हैं।
उक्त संदभा में एक महत्वपूणा तथ्य यह भी है क्रक पयाावरण ने सम्पूणा
ववश्व में एलशया और एक उप महाद्वीप क
े बतौर भारत को भी
सवााधधक प्रभाववत क्रकया है। आि भारत में स्वस्थ पयाावरण क
े ललए
क
ु ल जितना वन क्षेत्रफल होना चाटहए उसमें यनरनतर कमी आती िा
रही है। एक अनुमान क
े मुताबबक देश क
े क
ु ल क्षेत्रफल क
े 200 प्रयतशत
भाग पर बन होने चाटहए परनतु भारत में अभी तक यह लक्ष्य पूरा न
होने से मृदा की उवारा शजक्त लगातार कमिोर पड़ती िा रही है क्योंक्रक
फसलों पर िहरीले रसायनों का प्रयोग अभी तक कम नहीं हुआ है।
भारत में पयाावरण की लगातार बबगड़ती जस्थयत का पररणाम यह है क्रक
आि भारत क
े अनेक महानगर उसक
े आगोश में बुरी तरह िकड़ चुक
े
हैं।
ब्रह्माण्ड में सभी िीवधाररयों का अजस्तत्व, बुद्धध ववकास एवं
सुव्यवजस्थत िीवन, सनतुललत पयाावरण पर यनभार करता है। इस प्रकार
सभी िीव अपने चारों ओर फ
ै ले पयाावरण से अपने िीवन से िुड़ी मूल
आवश्यकताओं, भोिन, वस्त्र, आवास, वायु, िल तथा अनय भौयतक सुि-
सुववधाओं क
े ललए प्रकृयत का अधधक वववेकहीन दोहन और शोषण करता
है, तो पयाावरण में असनतुलन उत्पनन होता है। इस प्रक्रिया में
पयाावरणीय टटकों में कमी या वृद्धध होती िाती है जिससे पयाावरण
प्रदूषण की समस्या उत्पनन होती है। आि पृथ्वी पर िीवन क
े अजस्तत्व
क
े समक्ष प्रश्न धचह्न लग गया है। वस्तुतः िीवन और पयाावरण में
टयनष्ठ सम्बनध पाया िाता है। वे अनतः सम्बजनधत और अनतः
आधाररत होते हैं।
पयाावरण दो शब्दों क
े संयोग से बना है,परर आवरण अथाात् परर चारो
और, आवरण टेरा अथाात् चारो ओर ववद्यमान टेरा पयाावरण का अथा उन
सभी भौयतक दशाओं एवं तथ्यों से ललया गया है, िो हमें चारो ओर से
टेरे है। हमारा पयाावरण चार टटकों का सजम्मलन है- भूलम िल, वायु
तथा िैववक प्राणी पौधे, पशु पक्षी एवं मानव िैववक पयाावरण पर यनभार
है तथा िैववक पयाावरण भूतल पर प्राणी मात्र को िीवन प्रदान करने क
े
ललए िाद्यानन एवं अनय आवश्यक सुववधाएं प्रदान करता है। मानव
वनस्पयत तथा पशु पक्षक्षयों क
े बबना िीववत नहीं रह सकता। मानव
शरीर की रचना भी इनहीं तत्वों से लमलकर हुई है तथा िीवन की
समाजप्त पर शरीर भी इनहीं तत्वों में ववलीन हो िाता है। सनतुललत
पयाावरण क
े कारण ही सौर मण्डल में पृथ्वी एकमात्र िीववत ग्रह हैं। इन
टटकों क
े अभाव क
े कारण ही अनय ग्रहों पर िीवन सम्भव नहीं है।
इस प्रकार पयाावरण यह पररवृयत है िो मानव को चारों ओर से टेरे हुए
तथा उसक
े िीवन और क्रियाओं पर प्रकाश डालती है। इस पररवृवत्त
अथवा पररजस्थयत में मनुष्य से बाहर क
े समस्त तथ्य वस्तुएं लसथयतयााँ
तथा दशायें सजम्मललत होती हैं, जिनकी क्रियारों मनुष्य क
े िीवन ववकास
को प्रभाववत करती हैं। पयाावरण को अनेक ववचारकों में पररभावषत करने
का प्रयत्न क्रकया है।
इनमें कयतपय पररभाषाएाँ यनम्नांक्रकत है -
क्रफटटंग (थ्पििपदह) क
े अनुसार, “िीवों क
े पाररजस्थयतकी कारकों का
योग पयाावरण है। अथाात् िीवन की पाररजस्थयतकी क
े समस्त तथ्य
लमलकर वातावरण कहलाते हैं।
टााँसले (ज्ंदेसमल) क
े अनुसार “प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूणा योग
जिनमें िीव रहते हैं, वातावरण कहलाता है।
इसकोक्ट्लस क
े अनुसार वातावरण उन सभी बाहरी दशाओं और प्रभावों
का योग है िो प्राणी क
े िीवन और ववकास पर प्रभाव डालते हैं।
मैकाइवर क
े अनुसार, “पृथ्वी का धरातल और उसकी सारी प्राकृयतक
दशायें प्राकृयतक संसाधन, भूलम, िल, पवात, मैदान, ियनि पदाथा, पौधे, पशु
तथा सम्पूणा प्राकृयतक शजक्तय िो पृथ्वी पर ववद्यमान होकर मानव
िीवन को प्रभाववत करती हैं, भौगोललक पयाावरण क
े अनतगात आती है।
सोरोक्रकन क
े अनुसार पयाावरण का तात्पया ऐसी दशाओं और टटनाओं से
जिनका अजस्तत्व मनुष्य क
े कायों से स्वतंत्र है िो मानव रधचत नहीं है
और बबना मनुष्य क
े अजस्तत्व और कायों से प्रभाववत हुए स्वतः
पररवयतात होती है
टी० एन० िुशु क
े अनुसार “उन सब दशाओं का योग िो क्रक िीवधाररयों
क
े िीवन और ववकास को प्रभाववत करता है, पयाावरण है ““
ई० िे० रास क
े अनुसार, “पयाावरण कोई भी वह बाहरी शजक्त है िो हमें
प्रभाववत करती है।
पी० जिसबटा क
े अनुसार, “ पयाावरण वह सब क
ु छ है िो क्रकसी वस्तु को
तात्काललक रूप से चारों ओर से टेरे हुए है और उसे प्रत्यक्ष रूप से
प्रभाववत करता है।“
ई० पी० ओडम क
े अनुसार, पयाावरण प्रकृयत क
े क्रिया व्यवस्था और
संरचना का अध्ययन है तथा यह पयाावरण और मनुष्य की सम्पूणाता
का ववज्ञान है।
इस प्रकार पयाावरण प्रकृयत प्रदत्त ये सभी पदाथा हैं, िो यनःशुल्क रूप से
मानव एवं िैव सम्प्रदाय को चारों ओर से टेरे हुए हैं तथा उनक
े बीच
स्वतंत्र रूप से क्रिया प्रयतक्रिया संचाललत करते हैं साथ ही उनका िीवन
भी प्रभाववत करते हैंः पयाावरण कहलाता है।
षोध का उद्देश्य एवं महत्व
उद्देष्य-
आि क
े ववकृत हो रहे पयाावरण को सुधारने तथा उसे और ववकृत न
होने देने क
े ललए पयाावरण लशक्षा ही एक मात्र ऐसी प्रक्रिया है जिसे
अनयनत ववश्वास से उपयोग में लाया िा सकता है। वास्तव में सौर-
मण्डल में पृथ्वी ही मात्र एक सेसा ग्रह है जिस पर िीवन संभव है। इसे
नष्ट होने से बचाना है तथा एस पर बसने वाले प्राणी मात्र को सुिद
िीवन उपलब्ध कराना है। पृथ्वी पर िीवन क
े ललए आवश्यक तत्व
प्रकृयत द्वारा प्रदत्त है तथा उनका एक सीलमत भण्डार है इसक
े
अयतररक्त प्रकृयत का अपना एक िैववक चि है िो एक उत्पाद को
दूसरे उत्पाद मे स्वतः ही पररवयतात करने की स्वाभाववक प्रवृवत्त रिता
है। यह प्रकृयत प्रदत्त िैववकी चि की अनोिी ववशेषता है िो मानवीय
योग्यताओं एवं क्षमताओं से परे की बात है। इस व्यवस्था क
े सापेक्ष
िनसंख्या मे जिस गयत से वृद्धध हो रही है उससे सारा प्रकृयत िैववकीय
चि गडबड़ा गया है। प्रकृयत को संतुलन में करने तथा भावी पीटढ़यों को
ववरासत में सुनदर और व्यवजस्थत भववष्य छोडने हेतु िनसंख्या
यनयंबत्रत करने हेतु लोंगो में संचेतना उत्पनन करना उद्देश्य है।
उपयुक्त अध्ययन उद्देश्यों क
े अयतररक्त अनय ववलभनन उद्देश्य
यनम्नललखित हैं-
1. मानव पयाावरण संबंध को व्यापक दृजष्टकोण में समझाना।
2. पयाावरण क
े अवयवों की िानकारी िन-साधारण को प्रदान करना।
3. पयाावरण असुरक्षा क
े दुष्पररणामों से लोगों को अवगत कराना।
4. प्रदूषण को कम करने क
े उपायों का पता लगाया।
5. प्रदूषण फ
ै लाने वाले तत्वों का पता लगाना।
6. िाद्य पदाथो को प्रदूवषत करने वाले कारकों की िानकारी प्रदान
करना।
7. प्रदूषण में वृद्धध करने वाले कारकों क
े प्रयत शासन को सूचनायें
भेिने का मागा प्रशस्त करना।
8. प्रदूषण रटहत वातावरण मे िीवनयापन क
े हल िोिना।
9. प्रदूषण मुक्त वातावरण बनाये रिने क
े नवीन उपागम िोिना।
10. पयाावरण लशक्षा को प्रसाररत करने क
े सुझाव प्रस्तुत करना।
षोध का महत्व
इस शोध अध्ययन में पयाावरण की गुणवत्ता का भी अध्ययन क्रकया गया
है। वतामान समय में मनुष्य नवीन तकनीकी का प्रयोग करते हुए
संसाधनों का अत्यधधक दोहन कर रहा है जिसक
े कारण पयाावरण
अवनयन की दशा उत्पनन हो रही है, इसी कारण इसका अध्ययन
अत्यधधक महत्वपूणा है। मानव िीवन की गुणवत्ता से अलभप्राय व्यजक्त
को प्राप्त होने वाली सुववधाओं से है जिससे उसका िीवन समृद्ध बना
रहता है। इन संसाधनों में लशक्षा, धचक्रकत्सा, पेयिल, आवास, िीवन आकांक्षा,
आधथाक सुववधा, आवास, भोिन, मनोरंिन आटद अनय कारकों को
सजम्मललत क्रकया गया है। वतामान समय में महती हुई अधधक आधथाक
समृद्धध की लालसा एवं उपभोग की प्रवृवत्त क
े फलस्वरूप प्रकृयत क
े एक
ओर मह्वपूणा तत्व पयाावरण में ववकार उत्पनन होने लगे हैं जिसक
े
कारण िीवन की गुणवत्ता में नकारात्मक प्रभाव देिे िाने लगे हैं।
वतामान समय में यह अध्ययन ववषय मह्वपूणा एवं ज्वनंत ववषय क
े
रूप में सामने आ रहा है।
पयाावरण की गुणवत्ता का अध्ययन यनम्न कारकों से महत्वपूणा है
1. िीवन की गुणको उससर का बनाने क
े ललए।
2. व्यजक्त क
े संसाधनों क
े प्रयोग को वववेकपूणा ववमोहन क
े ललए।
3. बढ़ती िनसंख्या क
े संकट से व्यजक्तयों को िागरूक करने क
े
ललए।
4. शहरों में बढ़ रही ववलभनन प्रकार की पयाावरणीय समस्याओं से
यनिात पाने क
े ललए।
5. स्वास्थ्य िीवन आकांक्षा, आवास, भोिन, लशक्षा आटद की गुणवत
बनाये रिने क
े ललए।
6. प्रदूषण क
े ववलभनन कारकों क
े दुष्प्रभाव से लोगों को लशक्षक्षत और
सही टदशा में प्रेररत करने क
े ललए।
7. सामाजिक वायनकी को ववकलसत करने क
े ललए।
8. भववष्य में आने वाले ववलभनन पयाावरणीय संकटों से सतक
ा होने क
े
ललए।
9. पाररजस्थयतक तंत्र को संतुललत बनाये रिने क
े ललए।
10. ऊिाा संकट को कम करने क
े ललए।
11. पयाावरण प्रदूषण क
े ववलभनन कारकों क
े दुष्प्रभावों से बचने क
े
ललए।
उपरोक्त कारकों क
े अयतररक्त अध्ययन ववषय में कई ऐसे तथ्य
महत्वपूणा हैं जिसक
े द्वारा पयाावरणीय संकट को समाप्त क्रकया िा
सकता है एवं व्यजक्तयों में िागरूकता िाकर पयाावरण क
े प्रयत लोगों को
प्रेररत क्रकया िा सकता है जिससे क्रक भववष्य में होने वाले ववलभनन
संकटों को कम क्रकया िा सकता है।
प्रस्ताववत शोध प्रववधधः
प्रस्ताववत शोध में जिस ववधध का प्रयोग क्रकया गया है वह प्रश्नावली
अनुसूची है तथा यह शोध प्राथलमक एवं द्ववतीयक आाँकड़ों पर आधाररत
है। और िो सवेक्षण क
े माध्यम से क्रकया गया यह प्राथलमक है तथा यह
शोध व्यवहाररक है जिसमें सवेक्षण प्रणाली का प्रयोग क्रकया गया है और
उसी क
े आधार पर यह शोध का वववरण है। जिसमें प्रश्नावली अनुसूची
माध्यम द्वारा सवेक्षण कर क
े क्रकया गया है। इस शोध में सवेक्षण क
े
द्वारा उन आंकड़ों को समेंटा गया है, िो रीवा नगर यनगम क
े अंदर से
आता है। इस शोध में बनद, द्वनद, वैकजल्पक प्रश्नावली का प्रयोग क्रकया
गया है। इसमें रीवा नगर यनगम क
े अंदर आने वाले 100 व्यजक्तयों का
अध्ययन क्रकया गया है िो संरधचत अनुसूची में द्वनद बनद प्रश्नावली
का प्रयोग क्रकया गया है और इसी माध्यम का प्रयोग कर प्रश्न बनाकर
लोगों को देकर उनक
े िुद क
े ववचारों का उत्तर िानने का प्रयास क्रकया
गया है। जिससे यह शोध प्राथलमक आंकड़ों पर आधाररत है। इसमें जिन
समकों का प्रयोग क्रकया गया है वह शोध प्रश्नावली अनुसूची माध्यम है।
इसमें यहु- वैकजल्पक प्रश्नावली का प्रयोग कर प्रश्नों का प्रयोग क्रकया
गया है।
समंक चयन की ववधध -
समंक चयन ववधध में अनुसूची का यनमााण क्रकया गया और
प्रश्नावली माध्यम से उत्तरदाताओं से उत्तर िानने का प्रयास क्रकया गया
है। इस अनुसूची में प्रयतबंधधत प्रश्नावललयों का प्रयोग क्रकया गया है तथा
उसमें बहु-वैकजल्पक प्रश्नों का भी प्रयोग क्रकया गया है। और द्वंदात्मक
प्रश्नों का भी प्रयोग क्रकया गया है। इसमें संरधचत या बनद प्रश्न का
प्रयोग क्रकया गया है। बनाई गयी प्रश्नावली में 15 प्रश्नों का समावेश है
जिसका प्रारूप अंयतम में रिा गया है।
शोध चयन में जिन समकों का प्रयोग क्रकया गया है, यह है शोध
प्रश्नावली। इस ववधध में 100 व्यजक्तयों का अध्ययन क्रकया गया है िो
रीवा नगर यनगम क
े अंदर आते हैं। और िो इन 45 वाडों क
े अंदर आते
हैं। इस प्रश्नावली का प्रयोग ऐसे क्रकया गया है जिससे क्रक व्यजक्त को
क्रकसी प्रकार का भय न महसूस हो और हर प्रश्नों का िवाब आसानी से
दे सक
े । इस प्रश्नावली में 15 सवाल बनाये गये हैं और यह 15 सवाल
ऐसे है जिससे पूरे रीवा नगर यनगम क
े स्वच्छता संबंधी आंकड़ों का
ववश्लेषण करते हैं।
चययनत समंक का आकार-
चययनत समकों में 100 व्यजक्तयों का आकार चुना गया।
इसमें 100 व्यजक्तयों का प्रश्नावली क
े माध्यम से सवेक्षण क्रकया गया है।
उन व्यजक्तयों का नाम क
े साथ उम्र, लशक्षा, आय, व्यवसाय आटद को
िानते हुए िानकारी प्राप्त की गयी है। तथा इसमें 15 वषा क
े ऊपर उम्र
वालों का चयन करक
े क्रकया गया है।
और इन व्यजक्तयों से िो िानकारी प्राप्त की गयी है वह प्रश्नावली क
े
माध्यम से है। इसमें हर वगा क
े व्यजक्त से प्रश्नावली क
े माध्यम से
उत्तर िानने की कोलशश की गयी है इसमें मटहला/पुरूष दोनों क
े द्वारा
उत्तर िाना गया है। जिसमें 18 मटहलाएं और 82 पुरुष शालमल है तथा हर
समुदाय क
े लोग भी शालमल है। इसका आकार 100 व्यजक्तयों का है िो
इनही क
े द्वारा और िुद क
े अवलोकन क
े द्वारा िानकारी प्राप्त की
गयी है।
चययनत समंक का वगीकरण-
चययनत समक में लोगों क
े द्वारा स्वच्छता की िानकारी प्राप्त की गयी
है। जिसमें 100 व्यजक्तयों क
े उत्तर शालमल है। इसमें लशक्षा का स्तर देिे
तो 91 प्रयतशत है। जिसमें 18 मटहला और 73 पुरूष हैं। व्यवसाय और
अध्ययन दोनों को लमलाकर देिे तो 50 प्रयतशत है जिसमें मटहला ता 5
हैं पर पुरूष 75 हैं क्योंक्रक इसमें व्यवसाय और अध्ययन दोनों को शालमल
क्रकया गया है। िबक्रक आय वाले 45 हैं जिसमें 5 मटहला और 40 पुरूष हैं।
इसमें उस िानकारी को दशााया गया है। इस शोध का उद्देश्य है। यायन
स्वच्छता से संबंधधत कारकों का उल्लेि है िो लोगों क
े उत्तर से प्राप्त
िानकारी को प्रदलशात क्रकया गया है। यह यह िानकारी है 100 व्यजक्तयों
का प्रश्नावली क
े माध्यम से उत्तर लमला है।
शोध पररकल्पना :
शोध ववषय चयन में काया करने से पहले उस ववषय से
संबंधधत कई ऐसे ववचार मन में आते है िो प्राक्कल्पना कहलाते हैं सीधे
शब्दों में कहे तो क्रकसी काया को करने से पहले उसक
े प्रारूप तैयार
करना या बनाना उपकल्पना है। क्रफर उस काया को करने क
े बाद
पररणाम िो आये। क्रफर आये पररणाम और पहले से ववचार क्रकया गया
प्रश्न का परीक्षण करते है और उसक
े बाद िो पररणाम हो उसे
प्राक्कल्पना परीक्षण कहते है। इसको करना आवश्यक होता है।
इस शोध ववषय चयन में कई प्रकार क
े ववचार आये हैं जिनका उल्लेि
क्रकया िायेगा। इससे यह फायदा होगा क्रक शोधाथी जितना सोचा था
उतना अध्ययन क
े बाद उसका परीक्षण करेगा तो पता चलेगा क्रक
क्रकतना सत्य है क्रकतना नहीं यह शोधाथी क
े मन में सोचने और समाि
में चल रहे टटनाओं और पररदृश्य की तुलना की िाती है और एक तरह
से यह भी कहा िा सकता है शोधाथी क
े टदमाग में सोचने की क्षमता
क्रकतनी है जिसे शोधाथी क
े टदमाग की ताकत का पता लगाना भी कह
सकते है। कभी-कभी शोधाथी की प्रवकल्पना सत्य हो िाती है और
कभी-कभी गलत भी साबबत हो िाती है और कभी पूणा सत्य नहीं होती
है न ही पूणा गलत। मुख्य बात यह क्रक प्रकल्पना शोध सवेक्षण से पहले
बनाया िाता है। प्रवकल्पना का यनमााण क
ु छ ववनदुओं पर क्रकया िाता है
या कहे प्रश्न िैसे यनमााण क्रकया िाता है और प्राक्कल्पना को प्रश्न
कहना गलत भी नहीं है और सही भी नहीं है क्योंक्रक यह एक तरह का
ववचार है और ववचार क
ु छ भी हो सकता है और प्रश्न पूणा सत्य होता
है।
प्राक्कल्पना यनमााण
पररकल्पना क
े बबना अनुसंधान काया एक उद्देश्यहीन क्रिया है अतः
प्रस्तुत शोध काया को सुव्यवजस्थत रूप से सम्पाटदत करने हेतु
यनम्नललखित पररकल्पनाओं का यनधाारण क्रकया गया है-
1. पयाावरण संरक्षण क
े प्रयत ग्रामीण वगा क
े लशक्षक्षत व अलशक्षक्षत
व्यजक्तयों की पयाावरणीय अलभवृवत्त में कोई साथाक अनतर नहीं है।
2. पयाावरण संरक्षण क
े प्रयत शहरी वगा क
े लशक्षक्षत व अलशक्षक्षत
व्यजक्तयों की पयाावरणीय अलभवृवत्त में कोई साथाक अनतर नहीं है।
इस प्रकार इस शोध से संबंधधत प्रवकल्पना का यनमााण क्रकया
गया है और इसका परीक्षण आगे ररपोटा तैयार होने क
े बाद क्रकया
िायेगा तभी पता चल पायेगा क्रक प्राक्कल्पना क्रकतना सही है।
प्राक्कल्पना परीक्षण -
मैंने िो इस शोध में कल्पना क्रकया था वह सवेक्षण से यह साबबत
होता है क्रक िो प्राक्कल्पना प्रश्न बनाये गये हैं उसमें से 80 प्रयतशत
सत्य प्रमाखणत होते हैं। क्योंक्रक िैसे मैंने अनुमान लगाया था क्रक युवा
स्वच्छता में ज्यादा रूधच लेता है िो सत्य प्रमाखणत हुआ हलांक्रक िैसे
यह कल्पना क्रकया था क्रक कमाचारी वगा कम रूधच रिते हैं िो यह
गलत साबबत हुआ है यही एक गलत साबबत हो पाया है पर यह भी
अवलोकन करने पर यह सही नहीं पाया गया बजल्क िैसा सोचा था वैसा
ही हुआ है। और सभी प्रश्न प्राक्कल्पना सही प्रमाखणत हुए हैं। प्रश्नावली
क
े माध्यम से िो िानकारी लमली वह यही प्रमाखणत करते हैं क्रक
प्राक्कल्पना सत्य है, िबक्रक अवलोकन क
े माध्यम से भी िो िानकारी
प्राप्त क्रकया उससे भी यही प्रमाण यनकलता है क्रक प्राक्कल्पना सही है।
हां थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है जिससे यह कह है क्रक 20 प्रयतशत तक
प्रमाण नहीं कर सकते
अध्याय-3
पयाावरण प्रदूशण
आि ववकासशील देश मानव समाि की सुववधाओं को बढ़ाने क
े ललए
भौयतक सम्पदा एवं अपने पररवेश का दोहन कर रहे हैं। ववकासशील देश
औद्योधगक एवं तकनीकी ववकास करक
े ववकलसत हो रहे हैं, लेक्रकन मानव
अपने स्वाथा पूयता हेतु प्रकृयत एवं प्राकृयतक पररवेश क
े साथ यनदायता एवं
अवववेकपूणा आचरण कर रहा है। वह नयी तकनीक द्वारा प्रकृयत क
े
पररवेश में अवांयछत पररवतान कर रहा है, जिसक
े कारण उसका पररवेश
प्रदूवषत होता िा रहा है। ववकलसत एवं ववकासशील देशों क
े औद्योधगक
एवं तकनीकी दृजष्ट से समृद्ध क्षेत्रों में वायु प्रदूषण क
े कारण श्वास
लेना दुलाभ है, िल प्रदूषण क
े कारण उसे पीना हायनकारक है। भूलम
प्रदूवषत होने से बनिर एवं बीहड होती िा रही है। ध्वयन प्रदूषण क
े
कारण सुनना दुलाभ हो गया है।
पयाावरण प्रदूषण से ववश्व की प्राकृयतक संरचना में पररवतान उपजस्थत
हुए हैं। वैज्ञायनक प्रगयत क
े कारण वायुमंडल में जस्थत ‘‘ओिोन‘‘ गैस की
छतरी में छेद हो गये हैं। िो पृथ्वीवालसयों क
े ललए सुरक्षा कवच का
काया करती है क्योंक्रक ओिोन भण्डल की यह ववशेषता होती है क्रक वह
सूया की पराबैगनी क्रकरणों (िो तीक्ष्ण एवं मानव क
े ललए हायनकारक
होती है) को यनसीम से पररवयतात कर देती है तथा इनका भूतल पर
अल्प प्रभाव ही पड़ पाता है। परनतु ओिोन परत में छेद होने क
े कारण
पराबैगनी क्रकरणें भूतलवालसयों को प्रभाववत करेगी. इससे वायुमण्डल क
े
तापमान में वृद्धध हो िायेगी इनका क
ु प्रभाव मौसम पररवतान पर
टदिलायी पड़ता है। भववष्य में इनसे पयाावरण और भी अधधक प्रभाववत
होगा। पयाावरण क
े प्रदूवषतः हो िाने क
े कारण भूतल पर यनवास करना
मानत क
े ललए बड़ा ही दुरुह हो िायेगा, इनका प्रभाव न क
े वल मानव पर
वरन सम्पूणा िीव-िगत एवं वनस्पयत पर पढ़े बबना नहीं रह सक
े गा।
िहााँ पयाावरण प्रदूषण क
े हायनकारक प्रभावों से िैव ववववधता द्वारा.
ओिोन परत का क्षरण, अवषाण एवं अयतवषाण, तापमान वृद्धध,िल तथा
वायु प्रदूषण और देश क
े प्राकृयतक संसाधन समाप्त हो रहे हैं,वहीं बढ़ती
िनसंख्या क
े कारण यहााँ िैववक व आधथाक दबाव भी बढ़ रहा है।
अशुद्ध पेयिल क
े कारण देश में िलियनत बीमाररयों से मरने वाले
रोधगयों का प्रयतशत ज्यादा है।
अतः जिस क्रिया से हवा, िल, लमट्टी एवं वहााँ क
े संसाधनों क
े भौयतक
रासाययनक या िैववक गुणों में क्रकसी अवांछनीय पररवतान से िैव िगत
एवं सम्पूणा पररवेश पर हायनकारक प्रभाव पहुैचे उसे पयाावरण प्रदूषण
क
े नाम से िाना िाता है। आि क
े ववकासशील समाि में पयाावरण
प्रदूषण वतामान मानव की प्रमुि समस्याओं में से एक है, मनुष्य ने
प्रारम्भ से ही ववज्ञान, तकनीक एवं प्रौद्योधगक ज्ञान में अभूतपूवा प्रगयत
की है एवं और अधधक प्रगयत िारी है, उनक
े समक्ष पयाावरण प्रदूषण की
समस्या टदन-प्रयतटदन गम्भीर होती िा रही है। पयाावरण प्रदूषण की
समस्या मनुष्य द्वारा पयाावरण क
े अनुधचत ढंग से उपयोग द्वारा
उत्पनन होती है। अदूरदलशातापूणा प्राकृयतक संसाधनों का शोषण तथा
पररजस्थयतकीय संतुलन को नष्ट करना पयाावरण क
े आधारभूत कारण है।
इस प्रकार पयाावरण प्रदूषण का प्रमुि दोषी एवं उत्तरदायी मनुष्य स्वयं
है। मनुष्य अपनी अनेक प्रकार की आवश्यकताओं की पूयता हेतु बनों को
काटता है, ियनि पदाथों का शोषण करता है,अणु शजक्त का ववस्फोट
करता है, बााँधों का यनमााण करता है। मानव क
े इन सब क्रिया कलापों क
े
कारण पाररजस्थयतकी संतुलन पररवयतात हो िाता है। यद्यवप प्रकृयत सदा
इस संतुलन को बनाये रिने क
े ललए प्रयत्नशील रहती है।
पयाावरण का अथा प्रकृयत क
े समानाथाक समझा िाता है। परनतु
पयाावरण और प्रकृयत में लभननता पाई िाती है। पयाावरण में भौयतक,
िैववक, अिैववक, सांस्कृयतक तत्वों का समायोिन क्रकया िाता हैं जिसमें
सभी तत्व एक दूसरे से अनतसाम्बजनधत होते हैं। ववलभनन ववद्वानों ने
पयाावरण का अथा यनम्न प्रकार से पररभावषत क्रकया है।
पाक
ा (1980) क
े अनुसार ‘‘पयाावरण उन दषाओं का योग है िो मनुष्य को
यनजष्चत समय में यनजष्चत स्थान पर आवृत्त करती है।’’
ए. गाउडी (1984) ने अपनी पुस्तक श्ि्ैीम छंिनतम वव िीम
म्दअपतवदउमदिश् में पृथ्वी क
े भौयतक टटकों को ही पयाावरण का
प्रयतयनधध माना है तथा उनक
े अनुसार पयाावरण को प्रभाववत करने में
मनुष्य एक महत्वपूणा कारक है।
क
े . आर. दीक्षक्षत क
े अनुसार ‘‘पयाावरण ववष्व का समग्र दृजष्टकोण है
क्योंक्रक यह क्रकसी समय संदभा में बहुस्थायनक तत्वीय एवं सामाजिक,
आधथाक, िैववक तंत्रों िो िैववक एवं अिैववक रूपों क
े व्यवहार पद्धयत
तथा स्थान की गुणवत्ता तथा गुणों क
े आधार पर एक दूसरे से अलग
होते हैं तथा साथ में काया करते हैं।’’
इस प्रकार पयाावरण का अथा ववलभनन िैववक, अिैववक टटकों क
े परस्पर
सम्बनध से है जिसमें ववलभनन दषाओं में यह एक दूसरे से
अनतासम्बजनधत होते हैं। पयाावरण क
े अनतगात ववलभनन तत्वों को
सजम्मललत क्रकया िाता है िो यनम्नललखित है -
1. भौयतक तत्व-
(अ) स्थान (ब) स्थलरूप (स) िलीय भाग
(द) िलवायु (य) मृदा (र) ियनि
2. िैववक तत्व-
(अ) पेड़-पौधें (ब) िीव-िनतु (स) सुक्ष्म-िीव (द) मानव
3. सांस्कृयतक तत्व-
(अ) आधथाक (ब) सामाजिक (स) रािनैयतक
पयाावरण की अवधारणा एवं तत्व
समग्र क्षेत्र ववकास यनयोिन अध्ययन क्षेत्र क
े ववकास की पररभाषा
प्रस्तुत करता है जिसमें ववलभनन कायों एवं उनकी क्रियाओं को
िनसंख्या एवं संसाधनों क
े साथ समजनवत क्रकया िाता है। भारत में
समग्र ववकास कायािम सवाप्रथम 1977 में लागू क्रकया गया। समग्र ववकास
कायािम जिला ग्रामीण ववकास एिेंसी तथा ब्लकक स्तर एिेंसी द्वारा
िमीनी स्तर पर प्रारम्भ क्रकया गया। जिला ग्रामीण एिेंसी की स्थापना
1 अप्रैल, 1999 को हुई जिसमें धन क
े ललए प्रावधान क
े नद्र ीय एवं राज्य
सरकार द्वारा 75ैः25 में क्रकया िाता है। स्थानीय आधार पर ववकास हेतु
बनाये गये कायािम को यनयोिन कहा िाता है। यनयोजित ववकास से ही
समग्र ववकास संभव है। अतः स्थानीय व क्षेत्रीय समग्र ववकास देश क
े
यनवालसयों की आधथाक, सामाजिक एवं सांस्कृयतक ववकास से सम्बजनधत
है। समग्र ववकास एक यनयोजित क्षेत्रीय ववषय है,जिसक
े द्वारा क्रकसी भी
प्रदेश की समस्याओं का आंकलन करक
े यनदान हेतु सुझाव टदया िाता
है। अधधकांश देशों में भूलम एवं पूंिी सीलमत है। अतः समग्र ववकास
द्वारा संसाधनों का समुधचत प्रयोग करते हुए सीलमत संसाधन की िोि
करक
े उच्च तकनीकी तथा प्रलशक्षण द्वारा अधधकतम ववकास क्रकया िा
सकता ळें
प्रदूषण की अवधारणा
प्रदूषण क
े अनतगात ऐसे अवांयछत तत्वों को सजम्मललत क्रकया िाता है
िो क्रक पयाावरण प्रदूवषत करने का काया करते हैं। पयाावरण प्रदूषण की
समस्या सम्पूणा ववष्व में व्याप्त है। इसी समस्या से ग्रलसत रीवा शहर
भी है। रीवा शहर में प्रदूषण की अवधारणा को यहााँ की जस्थयत एवं
प्रदूषण क
े ववलभनन कारकों क
े आधार पर पररभावषत क्रकया िा सकता है
जिसमें हमें वहााँ पर जस्थत पयाावरणीय दषा का ज्ञान होता है तथा
मानव िीवन पर पड़ने वाले इसक
े नकारात्मक पररणाम सामने आते हैं।
अध्ययन ववषय में रीवा शहर की पयाावरणीय दषा का अवलोकन एवं
यनरीक्षण तथा परीक्षण क
े द्वारा ववलभनन तथ्यात्मक पररणाम यनकाले
गये हैं जिनक
े आधार पर पयाावरणीय अवधारणा को पररभावषत क्रकया
िा सकता है। मानव द्वारा प्रकृयत क
े सीलमत उपयोग से िैव मण्डल क
े
िैववक-अिैववक अवयवों क
े बीच पाररजस्थयतक संतुलन बबगड़ता िा रहा
है। मनुष्य द्वारा उत्पनन प्रयतक
ू ल पररजस्थयतयों क
े कारण न क
े वल
मानव अवपतु अनय िीवों क
े ललए भी ितरा उत्पनन हो गया है।
प्रदूषण से आषय वायु, िल तथा पृथ्वी क
े भौयतक रासाययनक एवं िैववक
गुणों में अवांछनीय पररवतान जिससे मनुष्य अनय िीवों या प्राकृयतक
संसाधनों की हायन हो या हायन होने की संभावना हो प्रदूषण कहलाता है।
िबक्रक प्रदूषण अनतगात वे सभी पदाथा एवं ऊिाा िो प्रत्यक्ष या परोक्ष
रूप से मनुष्य क
े स्वास्थ्य तथा उनक
े संसाधनों को हायन पहुाँचाते हैं,
प्रदूषक कहलाते हैं या कोई भी पदाथा िैसे - ठोस, द्र व्य या गैस िो
इतनी अधधक मात्रा में हो क्रक पयाावरण को नुकसान पहुाँचाऐं प्रदूषक
कहलाता है। प्रदूषण का अथा है दूवषत करना अथवा गंदा करना। प्रदूषण
मनुष्य की वांयछत गयतववधधयों क
े अवांयछत प्रभाव हैं, जिसमें भौयतक,
रासाययनक व िैववक प्रक्रियाओं क
े द्वारा िल, वायु व मृदा अपनी
नैसधगाक गुणवत्ता िो बैठते हैं जिसका मानव व सिीव िगत पर
प्रयतक
ू ल प्रभाव पड़ता है। राष्रीय पयाावरण शोध सलमयत क
े अनुसार
‘‘मनुष्य क
े क्रिया-कलापों से उत्पनन अपवषष्ट पदाथों एवं उनक
े
यनस्तारण तथा ऊिाा क
े ववमोचन से होने वाले प्रयतक
ू ल पररवतानों को
प्रदूषण कहते है।’’
पयाावरणीय प्रदूषण क
े प्रकार
प्रदूषण का वगीकरण करना सहि नहीं है क्योंक्रक प्रदूषक एवं वे माध्यम
जिनसे होकर ववलभनन प्रकार का प्रदूषण उत्पनन होता है एवं फ
ै लता है
वह कारक एक दूसरे से इतने सम्बजनधत होते हैं क्रक उनकी पहचान
करना संभव नहीं हो पाता। इसमें ववलभनन कारकों की दषाओं क
े आधार
पर उनकी प्रकृयत क
े आधार पर प्रदूषण को अलग से पहचानना असहि
हो िाता है परनतु वगीकरण का मुख्य आधार प्रदूषण की प्रकृयत एवं
ववलभनन टटकों क
े आधार पर प्रदूषण को यनम्न प्रकार से वगीकृत क्रकया
िा सकता है -
वायु प्रदूषण
हमारा वातावरण गैसों का भंडार है एवं यह हमारे िीववत रहने क
े ललए
िरूरी है, क्योंक्रक इसमें उपलब्ध ऑक्सीिन गैस को हम श्वसन् एवं
उपचय क्रिया हेतु काम में लेते हैं। वायु में उपजस्थत हर दूवषत पदाथा
वायु प्रदूषक नहीं होता। वायु प्रदूषकों को यनम्न प्रकार से पररभावषत
क्रकया िा सकता है।
वायु में उपजस्थत वो पदाथा जिसका पादपों, िीवों एवं पदाथों पर प्रयतक
ू ल
प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण, बाहरी गैसों, धूल एवं वाष्पकणों या
अत्यधधक मात्रा में कई तत्व िैसे सल्फर, नाईरोिन, काबान, हाइड्रोकाबान
रेडडयोधमी तत्व आटद क
े वातावरण में मुक्त होने का पररणाम है। वायु
प्रदूषण का कहर रीवा शहर में इतनी तेि गयत से बढ़ रहा है क्रक आने
वाले क
ु छ वषों में यहााँ का वातावरण टदल्ली िैसा होने में समय नहीं
लगेगा। शहर क
े स्वच्छ पयाावरण में हायनकारक गैसों ने अपने पैर
िमाना शुरू कर टदया है। इन गैसों में मुख्यतः औद्योधगक इकाईयों से
काबान डाई ऑक्साइड, नाइरोिन क
े ऑक्साइड तथा सल्फर डाई
ऑक्साइड की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ती ही िा रही है।
वायु प्रदूषण क
े स्त्रोत
1. वाहनों द्वारा
2. उद्योगों द्वारा
3. थमाल पावर स्टेशन द्वारा
4. फ
ें का हुआ कचरा द्वारा
वाहनों द्वारा पयाावरण प्रदूषण
रीवा शहर में टदनों-टदन वाहनों की संख्या बढ़ती िा रही है जिससे रीवा
शहर में वायु प्रदूषण बढ़ता िा रहा है। रीवा शहर क
े मध्य से गुिरने
वाले राष्रीय रािमागा-7 पर एक टदन में 60,000 वाहन गुिरते हैं। इनसे
यनकलने वाला धुाँआ िो क्रक वायु प्रदूषण करता है। इन वाहनों में पुराने
वाहनों से ज्यादा प्रदूषण होता है। रीवा शहर में स्टेशन एररया से
अननतपुरा तक वायु प्रदूषण संकट एक गंभीर समस्या है (सारणी संख्या
4.1)। यहााँ क
े आस-पास क
े क्षेत्रों में श्वास से सम्बजनधत अनेक प्रकार की
बीमाररयााँ होती हैं।
रीवा शहर में वाहनों की संख्या-2016
ि. सं. वाहन का प्रकार वाहनों की संख्या
1 मोटर साईक्रकल 558021
2 कार 56609
3 टै्रक्टर 26733
4 रक 19664
5 िीप 16816
6 ऑटो ररक्शा 9749
7 रेलर 8618
8 टैक्सी3986
9 बस 3773
10 टेम्पो पेसेनिर 3366
11 टेम्पो लोडडंग 1872
12 अनय 1465
योग 710672
स्त्रोत : पररवहन ववभाग, रीवा
रीवा शहर में वतामान में अधधकांश लोगों द्वारा ववलभनन पररवहन क
े
साधनों का उपयोग होने लगा है। मानव की प्रत्येक आवश्यकता को पूरा
करने क
े ललए पररवहन का साधन अयत आवश्यक हो गया है जिनमें रेल,
रक, बस, रेक्टर, कार, िीप, टेम्पों, ऑटो ररक्शा आटद क
े द्वारा पररवहन
क्रकया िाता है। रीवा शहर में ववलभनन प्रकार की सामग्री को एक स्थान
से दूसरे स्थान पर लाने, ले िाने क
े ललए वाहनों द्वारा पररवहन बहुत
महत्वपूण्र हैं। रीवा शहर में वपछले 10 वषों में यातायात क
े साधनों की
संख्या में तीव्र गयत से वृद्धध हुई है, िैसे-िैसे शहर का ववकास होता
गया वैसे-वैसे पररवहन क
े साधनों की संख्या लगातार बढ़ती गयी क्योंक्रक
आि मशीनी एवं तकनीकी युग में मानव इतना व्यस्त है क्रक पयाावरण
और मानव क
े बीच में िो सम्बनध है उसको बबल्क
ु ल भूल सा गया है।
इसी कारण आि वतामान में वायु प्रदूषण का ितरा बढ़ता िा रहा है।
इन पररवहन क
े साधनों से यनकलने वाला हायनकारक धुंआ रीवा शहर
की वायु को प्रदूवषत कर रहा है।
शहर में 1990 से 1991 में वाहनों की क
ु ल संख्या 10,900 थी िबक्रक आि
वतामान समय में क
ु ल संख्या 71,0672 हो गई है यटद इसी तरह पररवहन
क
े साधनों की संख्या बढ़ती रही तो इन वाहनों द्वारा वायु प्रदूषण का
भी ितरा बढ़ता चला िायेगा। वतामान में रीवा शहर में तीन पटहये
वाला वाहन अधधकतर पुराने हैं जिनसे यनकलने वाला हायनकारक धुाँआ
रीवा शहर की आबो हवा को दूवषत कर रहा है। रीवा शहर में पयाावरण
तथा मानव की िीवन की गुणवत्ता का हा्रास हो रहा है। पयाावरण व
मानव क
े प्राचीन काल से ही एक दूसरे से टयनष्ठ सम्बनध थे, लेक्रकन
मानव सभ्यता का ववकास ववलभनन पयाावरणीय दशाओं में हुआ है।
मानव पयाावरण को अपने ववकास काल से ही प्रभाववत करता चला आ
रहा है। रीवा शहर क
े मध्य से गुिरने वाले राष्रीय रािमागा 12 व 27 पर
भारी वाहनों की संख्या की भरमार है। यहााँ से यनकलने वाला धुाँआ शहर
को प्रदूवषत कर रहा ह।
पयाावरण प्रदूषण क
े स्वरूप
पयाावरण प्रदूषण को सामानयतः यो वगों (स्वरूपों में ववभाजित क्रकया
गया है
1. प्रत्यक्ष प्रदूषण
2. अप्रत्यक्ष प्रदूषण
प्रत्यक्ष प्रदूषण
वह प्रदूषण िो िीव-िनतुओं एवं पेड़ पौधों क
े ललए प्रत्यक्ष रूप से
हायनकारक होते हैं अथाात् जिनका प्रभाव िैव-मण्डल पर सीधे पड़ता है,
प्रत्यक्ष प्रदूषण कहलाता है। इसक
े अनतगात मुख्यरूप से ववलभनन प्रकार
क
े पररवहन साधनों, धचमयनयों, वायुयानों, कल कारिानों तथा ववलभनन
प्रकार क
े वस्तुओं को िलाने से यनकलने वाला धुआाँ, प्रदूवषत िल, नगरों
एवं ग्रामों क
े यनकट एकबत्रत क
ू ड़ा-करकट, िाद, मनुष्य तथा पशु-पक्षक्षयों
क
े मल-मूत्र, उनक
े मृतक शरीर, औद्योधगक अपलशष्ट पदाथा इत्याटद आते
हैं।
अप्रत्यक्ष प्रदूषण
वह प्रदूषण जिनका प्रभाव िैव गण्डल पर प्रत्यक्ष रूप से न पढ़कर
अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है, उसे अप्रत्यक्ष प्रदूषण कहते हैं। इसक
े अनतगात
रेडडयोधमी पदाथा, सभी प्रकार क
े कीटनाशक, िरपतवार नाशक, अनय प्रकार
क
े ववषैले रसायन, ध्वयन प्रदूषण इत्याटद को सजम्मललत क्रकया िाता है।
पयाावरण प्रदूषण क
े प्रकार
पयाावरण प्रदूषण क
े यनम्नललखित भेद हैं
वायु प्रदूषण
वायु प्रायः सभी िीवधाररयों क
े ललए अत्यधधक महत्वपूणा है। वायु में
उपजस्थत अनेक गैसों में से आक्सीिन, काबानडाईआक्साइड, नाइरोिन एवं
ओिोन आटद गैसों का संतुललत मात्रा में होना आवश्यक है। िैसे
आक्सीिन व काबान डाई आवसाइड गैरा की मात्रा सनतुललत अनुपात से
कम अथवा अधधक होने पर वायु श्वसन क
े योग्य नहीं रहती। अतः वायु
में क्रकसी भी गैस की आवश्यक वृद्धध या अनय पदाथों का समावेश वायु
प्रदूषण है। िल प्रदूषण
िल में अनेक प्रकार क
े ियनि, काबायनक तथा अकाबायनक पदाथों तथा
गैसों क
े एक यनजश्चत अनुपात से अधधक अथवा अनय अनावश्यक एवं
हायनकारक पदाथा धुले होने से िल प्रदूषण हो िाता है। िल प्रदूषण
प्रायः ववलभनन रोग उत्पनन करने वाले िीवाणु, वाइरस, औद्योधगक
संस्थानों से यनकले अनावश्यक पदाथा, वटहत मल आटद अनेक पदाथा हो
सकते हैं। मृदा प्रदूषण
पौधों का मूल तनत्र भूलम क
े अनदर मृदा में रहता है. इसी से यह अपने
ललए अधधकतर कच्चे पदाथों का अवशोषण करता है। िड़ों की सक्रियता
बनाये रिने क
े ललए उनहें आवश्यकतानुसार िल तथा वायु की िरूरत
होती है। प्रदूवषत िल तथा वायु क
े कारण मृदा भी प्रदूवषत हो िाती है।
अधधक फसल पैदा करने क
े ललए भूलम की उवाश बढ़ाने या बनाये रिने
क
े ललए उवारकों का उपयोग क्रकया िाता है, ववलभनन प्रकार क
े क्रकटाणु
नाशक पदाथा आटद फसलों पर िो डाला िाता है मृदा क
े साथ लमलकर
हायनकारक प्रभाव उत्पनन कर सकते हैं।
ध्वयन प्रदूषण
ध्वयन ववलभनन प्रकार क
े यनत्रों, वाहनों मशीनों आटद से उत्पनन होती है।
लाउडस्पीकर, साइरन, बािे, मोटरकार, बस, रक, वायुयान आटद इसक
े मुख्य
कारक है। ध्वयन प्रदूषण से सुनने की क्षमता का द्वारा होता है। तंबत्रका
तनत्र संबंधी रोग हो सकते हैं तथा नींद न आने का रंग हो सकता है।
शोर से रूधधर चाप बढ़ िाता है तथा हृदय रोगों में वृद्धध देिने को
लमलती है।
रेडडयोधमी प्रदूषण रेडडयोधमी पदाथा वातावरण में ववलभनन प्रकार क
े कण
और क्रकरणे उत्पनन करते हैं। परमाणु शजक्त उत्पादन क
े नद्र ों और
आणववक परीक्षणों इत्याटद में वातावरण की रेडडयोधलमाता बढ़ती है। िल,
वायु और लमट्टी का इन कणों क
े द्वारा प्रदूषण पेड़ पौधों व अनय िीवों
में ववलभनन प्रकार क
े भयानक रोग उत्पनन कर सकता परमाणु ववस्फोट
क
े समय अत्यधधक ताप उत्पनन होता है जिससे कई क्रकलोमीटर दूर-दूर
तक की लकड़ी िल िाती है तथा धातुएाँ वपटल िाती हैं। ववस्फोट से
उत्पनन रेडडयोधमी पदाथा वातावरण की ववलभनन पतों मंव प्रवेश कर
िाते हैं।
रासाययनक प्रदूषण
ववलभनन प्रकार क
े उद्योगों से यनकलने वाले बेकार द्र वों में अनेक प्रकार
क
े रसायन लमले हुए होते हैं। इन बेकार द्र वों को िहााँ पर भी छोड़ा िाता
है, वहीं यह प्रदूषण उत्पनन करते हैं। यटद इन दयों को नटदयों में छोड़ते
हैं तो िल प्रदूवषत हो िाता है,यटद इसे पृथ्वी पर भी डाल देते हैं तो
भूलम प्रदूवषत हो िाती है।
उल्लेिनीय है क्रक पयाावरण क
े बढ़ते हुए प्रदूषण क
े प्रयत िन सामानय
में िागरूकता का पयााप्त अभाव है, परनतु भारत सरकार और स्वयं सेवी
संस्थाओं द्वारा िो प्रयास इस टदशा में क्रकये िा रहे हैं, वे अपयााप्त हैं।
सरकार ने इस टदशा में गम्भीरता से प्रयास प्रारम्भ कर टदये हैं। प्रदूषण
का यनराकरण तभी हो सकता है िब भारत सरकार तथा िनता का
समवेत प्रयास इस टदशा में यनरनतर होता रहे। वतामान अध्ययन की
अनतवास्तु दीनदयाल नगर (मुगलसराय) क्षेत्र में पयाावरण प्रदूषण की
समस्या क
े ववलभनन आयामों सोतों एवं उसक
े पररणामों का समाि
वैज्ञायनक अध्ययन और ववश्लेषण करना है। इस अध्ययन की आधारभूत
मानयता यह है क्रक दीनदयाल नगर (मुगलसराय) क्षेत्र में पयाावरण
प्रदूषण की वृद्धध एवं पयाावरण संतुलन का यनरनतर हास हो रहा है।
इसक
े सामाजिक आधथाक कारण और पररणाम दोनों है। वस्तुतः पयाावरण
प्रदूषण क
े ललए मुख्य रूप से हमारे सामाजिक, आधथाक कायािम, अयत
उपभोक्तावाद, नवीन प्रौद्योधगकी का व्यापक प्रयोग, वववेकहीन आधथाक
लाभ कमाने की मानलसकता ही उत्तरदायी है। प्रदूषण यनयनत्रण क
े
साधनों की अपयााप्तता और असफल प्रयोग तथा ववकास की गलत
रणनीयत आटद क
े साथ ही साथ हमारी सामाजिक एवं सांस्कृयतक
संरचना भी बड़ी सीमा तक उत्तरदायी हैं जिसक
े अनतगात पयाावरण
िागरूकता का अभाव, गलत परम्पराएाँ, रूटढ़यााँ एवं रीयत-ररवाि,
अनधववश्वास तथा अलशक्षा प्रमुि हैं। यनःसनदेह वतामान काल में प्रदूषण
की समस्या गम्भीर हो गयी है। इससे िहााँ एक ओर प्राकृयतक सनतुलन
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  • 1. अध्याय-1 प्रस्तावना अखिल ब्रह्माण्ड में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा अनोिा ग्रह है जिस पर िीवन व्याप्त है। जिस पर सूक्ष्म पौधों से लेकर ववशाल वृक्ष एवं सूक्ष्म अमीबा से लेकर ववशालकाय प्राणी हवेल तक ववद्यमान हैं। ऐसा यहााँ की ववशेष पयाावरणीय दशाओं क े तहत संभव हुआ है िो िीवन प्रक्रियाओं को संचाललत करने क े ललए उपयुक्त होती है। इस ववशेषता क े ललए पृथ्वी से सूया की दूरी की महत्वपूणा भूलमका है। पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में िल उपलब्ध है िो यहााँ क े तापमान को नम बनाये रिता है। इनहीं कारणों से यहााँ पर िीव, िनतु व पेड़-पौधे िीववत हैं। पयाावरण िीवन को स्थाययत्व देने वाली प्रणाली है, जिसमें िड़ और चेतन दोनों तरह क े तत्व हवा. पानी लमट्टी, िीव समूह मौिूद हैं। जिनमें से अनेक एक-दूसरे को प्रभाववत करते हैं। पयाावरण उन सभी दशाओं का योग है जिससे प्राणीमात्र का िीवन प्रभाववत होता है। मानव िीवन में भौगोललक कारकों क े प्रभाव की अवहेलना करना एक गम्भीर समािशास्त्रीय त्रुटट करना है। लेक्रकन क्रकसी भी जस्थयत की वववेचना में भौगोललक कारकों को सबसे अधधक प्रभावपूणा मान लेना भी उतनी ही बड़ी त्रुटट है। मानव िीवन को प्रभाववत करने वाली सभी दशाओं को मुख्य रूप से दो भागों में बााँटा िा सकता है 1. भौगोललक 2. सामाजिक
  • 2. इन दोनों दशाओं क े सजम्मललत रूप को ही पयाावरण कहा िाता है। यह कहा िाता है क्रक मनुष्य अपने पयाावरण की उपि है इसका तात्पया यह है क्रक प्रत्येक मनुष्य अपने चारों ओर की अनेक सामाजिक, सांस्कृयतक, भौगोललक, आधथाक िैववकीय और िनसंख्यात्मक पररजस्थयतयों से प्रभाववत होता रहता है। क ु छ व्यजक्त अपनी इन पररजस्थयतयों से अनुक ू लन कर लेते हैं, िबक्रक बहुत से व्यजक्त इनसे अनुक ू लन नहीं कर पाते। मानव क े चारों ओर की इन सभी दशाओं व उनक े प्रभाव की सम्पूणाता को हम मानव का पयाावरण कहते हैं। सम्भवतः आि से करीब डेढ़ करोड़ वषा पूवा पृथ्वी पर मानव िायत का उद्भय हुआ था हरे-भरे िंगल झर-झर बहते झरनें, कल-कल करती नटदयााँ, कलरव करते पक्षी तथा ववशुद्ध प्राणवायु देने वाले यातावरण क े बीच मनुष्य ने अपनी आाँिें िोली होगी। सचमुच बड़ी ही मनोरम रहा होगा उन टदनों का पयाावरण, परनतु देिते-देिते सब क ु छ बदल गया। आि बदहाली क े लशकार पयाावरण की धचनता सभी को िाए िा रही है। ववकास की अंधाधुनध दौड़ क े साथ-साथ तेिी से ववनाश की तरफ बढ़ता िा रहा है पयाावरण दरअसल, ववकास की शुरूआत सन् 1750 ई० क े आस- पास इंग्लैण्ड में कपड़ा लमलों क े िुलने से हुई, िब वहााँ औद्योधगक िाजनत का िनम हुआ । मानव द्वारा क्रकए िाने वाले कई कायों का उत्तरदाययत्व वहााँ स्थावपत मशीनों ने सम्भाल ललया औद्योगीकरण ने देिते-देिते मानव िीवन को सुगम बना टदया उद्योग क्रकसी भी राष्र की प्रगयत एवं समृद्धध का प्रतीक बन गए। िीवन क े हर क्षेत्र में प्रत्यक्ष
  • 3. या अप्रत्यक्ष रूप से उद्योगों का प्रभाव छा गया और िीवन का एक आवश्यक अंग बन गये उद्योग औद्योगीकरण क े चलते शहरीकरण की प्रक्रिया भी तेि हुई चाहे आधथाक हो, सामाजिक या रािनैयतक या क्रफर सांस्कृयतक सभी दृजष्टयों से ही सम्पूणा ववश्व का गानों स्वरूप ही बदल गया। आि पयाावरण प्रदूषण एक गम्भीर वैजश्वक समस्या है। इसक े भयंकर प्रकोप से ववश्व का कोई कोना अछ ू ता नहीं है। एक तरफ स्वाथापरक आधथाक ववकास की नीयतयााँ इसक े ललए उत्तरदायी है,तो दूसरी तरफ सामाजिक सांस्कृयतक कारक भी जिम्मेदार हैं। उल्लेिनीय है क्रक पयाावरण क े प्रयत िन-िीवन िागरूकता का यनतानत अभाव है। फलस्वरूप टदन-प्रयतटदन पयाावरण प्रदूषण की समस्या भयावह होती िा रही है जिससे पृथ्वी पर िीवन क े अजस्तत्व क े समा गम्भीर संकट उत्पनन होता िा रहा है। कल्पना करें अनतररक्ष क े टटाटोप अंधेरे और अंतहीन ववस्तार की। अनतररक्ष क े इस टटाटोप अनधेरे और अनतहीन ववस्तार क े भीतर अजस्तत्वमान है हिारो, लािों आकाशगंगाएाँ। इनहीं आकाश गंगाओं में से क्रकसी एक का बहुत छोटा टहस्सा है हमारा सौरमंडल, जिसमें सूया सटहत कई छोड़े-बड़े ग्रह,उपग्रह, ग्रटहकाएाँ और उल्का वपण्ड अपने पररिमा पथ पर अनवरत गयतमान हैं। हमारी धरती भी सौरमण्डल क े अनय ग्रहों की भांयत ही एक सामानय ग्रह है। यटद हम एक िगोल वपण्ड को तटस्थ यनगाहों से देि तो समूचे सौर मण्डल क े अनतगात पृथ्वी में ऐसी कोई
  • 4. िास बात निर नही आयेगी िो उसे अनय ग्रहों से अलग कोई ववशेष महत्व प्रदान करती हो, लेक्रकन यटद हम मानवीय सनदभों में देिें तो बात क ु छ उल्टी ही निर आती है। पृथ्वी पर मानव ही वह प्राणी है जिसने िगोल वपण्डों की तमाम स्थापनाओं को दरक्रकनार कर इसे न क े वल सौर मण्डल का बजल्क समूचे ब्रह्माण्ड का सवााधधक मह्वपूणा क े नद्र बना टदया है। पृथ्वी ग्रह को मटहमा मजण्डत करने क े मनुष्य क े प्रयासों की झलक हमें तोलेभी क े पृथ्वी क े जनद्र त लसद्धानत में लमलती है जिसने यह बात सामने रिी है क्रक पृथ्वी सौर मण्डल का क े नद्र है और सूया सटहत तमाम ग्रह पृथ्वी की पररिमा करते हैं। यह लसद्धानत यटद सटदयों तक िन- आस्थाओं में रि-बसा रहा तो मुख्य कारण यही था क्रक इस लसद्धानत से मनुष्य क े अह की तुजष्ट होती थी और िब कई शताजब्दयों क े पश्चात् कोपर यनकस िैसे साहसी व्यजक्त ने सूया क े जनद्र त लसद्धानत की पुजष्ट की तो उसे प्रबल ववरोध का सामना करना पड़ा ववरोध क े बाविूद कोपर यनकस की अनततः वविय हुई,परनतु मनुष्य का अहं सनतुष्ट नहीं हुआ उसने लगातार अपनी शारीररक व मानलसक ताकत का प्रयास िारी रिा सटदयों क े अथक संटषा क े पश्चात् उसने आि समूची पृथ्वी की शक्ल को बदल डाला है। ववज्ञान, तकनीकी उपकरण और इन सबसे बढ़कर अपनी समुननत मेधा क े बल पर न क े वल उसने अपनी प्रकृयत पर अपने पौरुष की वविय अंक्रकत क्रकया बजल्क पृथ्वी ग्रह की सीमाओं से बाहर अंतररक्ष की बड़ी दूररयों को लांटते हुए दूसरे ग्रहों तक भी पहुाँच गया।
  • 5. मासा ग्लोबर सवेयर, अपालो, वायक्रकंग, स्पूतयनक, पाथ, फाइण्डर िैसे अनेको अलभयान मनुष्य क े इसी पौरुष क े प्रतीक है। प्रकृयत और मनुष्य क े पौरुष क े बीच संटषा की गाथा लम्बी है और संटषा की यह अयनवायाता मनुष्य क े अजस्तत्व की एक आवश्यक शता है। दरअसल मनुष्य को अपनी िैववकीय और मनःियनत आवश्यकताओं को पूरा करने क े ललए प्रकृयत क े ववरुद्ध अनवरत संटषा करना पड़ता है। यटद वह ऐसा न करे तो उसक े अजस्तत्व क े समक्ष प्रश्न धचह्न लग िायेगा, क्योंक्रक महान िीवशास्त्री डाववान क े शब्दों में, “प्रकृयत में नही प्राणी िीववत रहता है िो योग्य रहता है और िो अयोग्य होता है प्रकृयत उसे समाप्त कर डालती है।“ पृथ्वी पर समस्त िीवधाररयों वनस्पयतयों एवं अनय प्राकृयतक शजक्तयों क े बीच अनतःयनभारता पायी िाती है जिसे िाद्य श्ृंिला क े रूप में समझा िा सकता है। इस िाद्य श्ृंिला क े अनतगात िीववत रहने क े ललए अपनी िैववकीय बनावट क े अनुसार प्रत्येक िीव अपना आहार बनाता है और इसी प्रकार वनस्पयतयों भी या तो िीवों और वनस्पयतयों को या अनय प्राकृयतक तत्वों को अपने आहार क े रूप में इस्तेमाल करती है। प्रकृयत क े भीतर सब क ु छ इस प्रकार टटटत होता है रहता है क्रक यटद कोई ववशेष बात न हो तो आहार क े रूप में इस्तेमाल होने क े बाविूद भी पृथ्वी पर िीवधाररयों, वनस्पयतयों या अनय प्राकृयतक तत्वों की कमी या वृद्धध नहीं होती। अब यटद हम उपरोक्त िाद्य श्ृंिला क े भीतर प्राणी की जस्थयत देिें तो यह दात सामने आती है क्रक समस्त
  • 6. िीवधाररयों में मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है िो अपनी आवश्यकताओं की पूयता क े ललए अनय प्राखणयों की तरह प्रकृयत क े साथ अनुक ू लन (सादात्म्य) नहीं स्थावपत करता बजल्क उसका ही रूप पररवयतात करता है। अथा यह है क्रक अपनी आवश्यकताओं की पूयता क े दौरान मनुष्य प्रकृयत में िो हस्तक्षेप करता है उससे पंकृयत का रूपानतरण होता है। एक नूतन प्रकृयत, संस्कृयत का आववभााय होता है। आटदकाल में ही मनुष्य प्रकृयत को बदलता हुआ स्वयं भी रूपानतररत होता रहा है। इसक े साथ ही प्रकृयत क े ववरूद्ध मनुष्य का संटषा प्रारम्भ हो गया। मनुष्य ने हरे-भरे बन प्रानत को तहस-नहस कर कृवष काया आरम्भ क्रकया। औद्योधगक िाजनत क े पूवा तक मनुष्य की प्रकृयत क े ववरूद्ध संटषा का पररणाम उतना टातक नहीं रहा, जितना क्रक उसक े बाद हुआ है। इंग्लैण्ड में सम्पनन औद्योधगक िाजनत ने प्रकृयत में मनुष्य क े हस्तक्षेप को तीव्र से तीव्रतर बना टदया। भारी-भरकम यनत्रों क े आववष्कार और कम समय में अध्यधधक उत्पादन की महत्वाकांक्षाओं क े चलते न क े वल यूरोप, बजल्क सारी दुयनया में व्यापक पैमाने पर प्रकृयत का गहन शोषण और दोहन आरम्भ हुआ। यह एक बड़ी सीमा में वववेकहीन प्रक्रिया थी, जिसक े कारण वतामान शताब्दी तक आते-आते पयाावरण का सनतुलन इतना बबगड़ गया क्रक पृथ्वी ने अपना स्वाभाववक रूप ही िो टदया है। नीले-पीले फ ू लों से आच्छाटदत दूर-दूर तक ववस्ताररत हरे-भरे िंगल, आकाश और सागर का नीला क्षक्षयति सब क ु छ धुएाँ, रसायनों, परमाणु-
  • 7. कचरों से मनुष्य की हदस क े कारण ववकृयत या बबााद हो गया। यहााँ तक क्रक द्ववतीय ववश्व युद्ध क े पश्चात् पयाावरण से उत्पनन समस्यायें इतनी प्रबलतम रूप में उभरी क्रक आि यह सारी दुयनया में धचनता का मुख्य क े नद्र बन गया है। पररणाम स्वरूप अनेक सामाजिक ववचारकों एवं मानवतावादी मनीवषयों ने पयाावरण प्रदूषण से उत्पनन ितरों क े ववरुद्ध आवाि उठाई और प्रकृयत क े संरक्षण क े प्रश्न को गंभीरता से देिा। यही कारण था क्रक ववललयम माररस, राबटा आवेन, चाल्सा फ ू ररये लमिाइल बाक ु नी तथा िोपोटक्रकन आटद ने प्रौद्योधगकी पर आधाररत सामाजिक व्यवस्था (पूाँिीवाद) की कटु आलोचना की। उनहीं टदनों कालामाक्सा, फ्र े डररक ऐंगल्स ने मनुष्यों और पशुओं में अंतर की वववेचना करते हुए ललिा है क्रक पशु िहााँ एक और प्राकृयतक सम्पदा का मात्र उपभोग करते हैं वहीं मनुष्य प्रकृयत पर स्वालमत्व तथा आधधपत्य कायम करता है। साथ ही उनहोंने चेतावनी देते हुए कहा है क्रक हमें प्रकृयत पर अपने वविय का बहुत अहंकार नहीं करना चाटहए क्योंक्रक प्रकृयत पर की गई इस प्रकार की प्रत्येक वविय का बदला प्रकृयत ले लेती है।“ उननीसवीं शताब्दी क े अनत तक मनुष्य द्वारा प्रकृयत क े हस्तक्षेप को प्रकृयत पर ववध्वंशक प्रक्रिया क े रूप में नहीं देिा गया परनतु 20वीं शताब्दी में मनुष्य और पृथ्वी क े अनतःसम्बनधों को समाि ववचारकों एवं वैज्ञायनकों ने अपने अध्ययन का क े नद्र ीय ववषय बनाया और पयाावरणवाद का व्यवजस्थत शास्त्र क े रूप में ववकास हुआ, जिसक े अनतगात सामाजिक ववकास और प्रकृयत क े अनतःसम्बनधों को वववेकपूणा
  • 8. ढंग से संयोजित करने की आवश्कता पर बल टदया िाने लगा। 20वीं शताब्दी क े 9वें दशक में ररयोनडी िनेररयो (ब्रािील) सम्पनन पृथ्वी सम्मेलन को पयाावरण सुरक्षा की ववश्वव्यापी धचनता को मील का पत्थर माना िाता है। पाररजस्थयतकी तंत्र (ठवव.ैैलेिमउ) को लेकर ववश्व भर में उभर रही धचनता का यह पररणाम भी रहा क्रक सन् 1972 में संयुक्त राष्र संट द्वारा संयुक्त राष्र पयाावरण कायािम (नछम्च्) की स्थापना हुई और क्रफर सन् 1975 में मानव बजस्तयों क े ललए संरक्षक्षत कोष बनाया गया। संयुक्त राष्र और ववश्व की नई महत्वपूणा एिेजनसयों क े प्रयासों तथा पयाावरण क े सुरक्षा क े सवाल ने अनततः ववश्व क े रािनैयतक पटल पर पयाावरण को मुख्य प्रश्न टदया तथा इसने ववकलसत देशों की लामबनदी को भी िनम टदया। ववकासशील देशों की सोच यह रही है क्रक पयाावरण को ितरा मुख्य रूप से ववकलसत देशों से है,िबक्रक ववकलसत देश इस आरोप से लगातार इंकार करते आ रहे हैं। उक्त संदभा में एक महत्वपूणा तथ्य यह भी है क्रक पयाावरण ने सम्पूणा ववश्व में एलशया और एक उप महाद्वीप क े बतौर भारत को भी सवााधधक प्रभाववत क्रकया है। आि भारत में स्वस्थ पयाावरण क े ललए क ु ल जितना वन क्षेत्रफल होना चाटहए उसमें यनरनतर कमी आती िा रही है। एक अनुमान क े मुताबबक देश क े क ु ल क्षेत्रफल क े 200 प्रयतशत भाग पर बन होने चाटहए परनतु भारत में अभी तक यह लक्ष्य पूरा न
  • 9. होने से मृदा की उवारा शजक्त लगातार कमिोर पड़ती िा रही है क्योंक्रक फसलों पर िहरीले रसायनों का प्रयोग अभी तक कम नहीं हुआ है। भारत में पयाावरण की लगातार बबगड़ती जस्थयत का पररणाम यह है क्रक आि भारत क े अनेक महानगर उसक े आगोश में बुरी तरह िकड़ चुक े हैं। ब्रह्माण्ड में सभी िीवधाररयों का अजस्तत्व, बुद्धध ववकास एवं सुव्यवजस्थत िीवन, सनतुललत पयाावरण पर यनभार करता है। इस प्रकार सभी िीव अपने चारों ओर फ ै ले पयाावरण से अपने िीवन से िुड़ी मूल आवश्यकताओं, भोिन, वस्त्र, आवास, वायु, िल तथा अनय भौयतक सुि- सुववधाओं क े ललए प्रकृयत का अधधक वववेकहीन दोहन और शोषण करता है, तो पयाावरण में असनतुलन उत्पनन होता है। इस प्रक्रिया में पयाावरणीय टटकों में कमी या वृद्धध होती िाती है जिससे पयाावरण प्रदूषण की समस्या उत्पनन होती है। आि पृथ्वी पर िीवन क े अजस्तत्व क े समक्ष प्रश्न धचह्न लग गया है। वस्तुतः िीवन और पयाावरण में टयनष्ठ सम्बनध पाया िाता है। वे अनतः सम्बजनधत और अनतः आधाररत होते हैं। पयाावरण दो शब्दों क े संयोग से बना है,परर आवरण अथाात् परर चारो और, आवरण टेरा अथाात् चारो ओर ववद्यमान टेरा पयाावरण का अथा उन सभी भौयतक दशाओं एवं तथ्यों से ललया गया है, िो हमें चारो ओर से टेरे है। हमारा पयाावरण चार टटकों का सजम्मलन है- भूलम िल, वायु तथा िैववक प्राणी पौधे, पशु पक्षी एवं मानव िैववक पयाावरण पर यनभार
  • 10. है तथा िैववक पयाावरण भूतल पर प्राणी मात्र को िीवन प्रदान करने क े ललए िाद्यानन एवं अनय आवश्यक सुववधाएं प्रदान करता है। मानव वनस्पयत तथा पशु पक्षक्षयों क े बबना िीववत नहीं रह सकता। मानव शरीर की रचना भी इनहीं तत्वों से लमलकर हुई है तथा िीवन की समाजप्त पर शरीर भी इनहीं तत्वों में ववलीन हो िाता है। सनतुललत पयाावरण क े कारण ही सौर मण्डल में पृथ्वी एकमात्र िीववत ग्रह हैं। इन टटकों क े अभाव क े कारण ही अनय ग्रहों पर िीवन सम्भव नहीं है। इस प्रकार पयाावरण यह पररवृयत है िो मानव को चारों ओर से टेरे हुए तथा उसक े िीवन और क्रियाओं पर प्रकाश डालती है। इस पररवृवत्त अथवा पररजस्थयत में मनुष्य से बाहर क े समस्त तथ्य वस्तुएं लसथयतयााँ तथा दशायें सजम्मललत होती हैं, जिनकी क्रियारों मनुष्य क े िीवन ववकास को प्रभाववत करती हैं। पयाावरण को अनेक ववचारकों में पररभावषत करने का प्रयत्न क्रकया है। इनमें कयतपय पररभाषाएाँ यनम्नांक्रकत है - क्रफटटंग (थ्पििपदह) क े अनुसार, “िीवों क े पाररजस्थयतकी कारकों का योग पयाावरण है। अथाात् िीवन की पाररजस्थयतकी क े समस्त तथ्य लमलकर वातावरण कहलाते हैं। टााँसले (ज्ंदेसमल) क े अनुसार “प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूणा योग जिनमें िीव रहते हैं, वातावरण कहलाता है। इसकोक्ट्लस क े अनुसार वातावरण उन सभी बाहरी दशाओं और प्रभावों का योग है िो प्राणी क े िीवन और ववकास पर प्रभाव डालते हैं।
  • 11. मैकाइवर क े अनुसार, “पृथ्वी का धरातल और उसकी सारी प्राकृयतक दशायें प्राकृयतक संसाधन, भूलम, िल, पवात, मैदान, ियनि पदाथा, पौधे, पशु तथा सम्पूणा प्राकृयतक शजक्तय िो पृथ्वी पर ववद्यमान होकर मानव िीवन को प्रभाववत करती हैं, भौगोललक पयाावरण क े अनतगात आती है। सोरोक्रकन क े अनुसार पयाावरण का तात्पया ऐसी दशाओं और टटनाओं से जिनका अजस्तत्व मनुष्य क े कायों से स्वतंत्र है िो मानव रधचत नहीं है और बबना मनुष्य क े अजस्तत्व और कायों से प्रभाववत हुए स्वतः पररवयतात होती है टी० एन० िुशु क े अनुसार “उन सब दशाओं का योग िो क्रक िीवधाररयों क े िीवन और ववकास को प्रभाववत करता है, पयाावरण है ““ ई० िे० रास क े अनुसार, “पयाावरण कोई भी वह बाहरी शजक्त है िो हमें प्रभाववत करती है। पी० जिसबटा क े अनुसार, “ पयाावरण वह सब क ु छ है िो क्रकसी वस्तु को तात्काललक रूप से चारों ओर से टेरे हुए है और उसे प्रत्यक्ष रूप से प्रभाववत करता है।“ ई० पी० ओडम क े अनुसार, पयाावरण प्रकृयत क े क्रिया व्यवस्था और संरचना का अध्ययन है तथा यह पयाावरण और मनुष्य की सम्पूणाता का ववज्ञान है। इस प्रकार पयाावरण प्रकृयत प्रदत्त ये सभी पदाथा हैं, िो यनःशुल्क रूप से मानव एवं िैव सम्प्रदाय को चारों ओर से टेरे हुए हैं तथा उनक े बीच
  • 12. स्वतंत्र रूप से क्रिया प्रयतक्रिया संचाललत करते हैं साथ ही उनका िीवन भी प्रभाववत करते हैंः पयाावरण कहलाता है। षोध का उद्देश्य एवं महत्व उद्देष्य- आि क े ववकृत हो रहे पयाावरण को सुधारने तथा उसे और ववकृत न होने देने क े ललए पयाावरण लशक्षा ही एक मात्र ऐसी प्रक्रिया है जिसे अनयनत ववश्वास से उपयोग में लाया िा सकता है। वास्तव में सौर- मण्डल में पृथ्वी ही मात्र एक सेसा ग्रह है जिस पर िीवन संभव है। इसे नष्ट होने से बचाना है तथा एस पर बसने वाले प्राणी मात्र को सुिद िीवन उपलब्ध कराना है। पृथ्वी पर िीवन क े ललए आवश्यक तत्व प्रकृयत द्वारा प्रदत्त है तथा उनका एक सीलमत भण्डार है इसक े अयतररक्त प्रकृयत का अपना एक िैववक चि है िो एक उत्पाद को दूसरे उत्पाद मे स्वतः ही पररवयतात करने की स्वाभाववक प्रवृवत्त रिता है। यह प्रकृयत प्रदत्त िैववकी चि की अनोिी ववशेषता है िो मानवीय योग्यताओं एवं क्षमताओं से परे की बात है। इस व्यवस्था क े सापेक्ष िनसंख्या मे जिस गयत से वृद्धध हो रही है उससे सारा प्रकृयत िैववकीय चि गडबड़ा गया है। प्रकृयत को संतुलन में करने तथा भावी पीटढ़यों को ववरासत में सुनदर और व्यवजस्थत भववष्य छोडने हेतु िनसंख्या यनयंबत्रत करने हेतु लोंगो में संचेतना उत्पनन करना उद्देश्य है। उपयुक्त अध्ययन उद्देश्यों क े अयतररक्त अनय ववलभनन उद्देश्य यनम्नललखित हैं-
  • 13. 1. मानव पयाावरण संबंध को व्यापक दृजष्टकोण में समझाना। 2. पयाावरण क े अवयवों की िानकारी िन-साधारण को प्रदान करना। 3. पयाावरण असुरक्षा क े दुष्पररणामों से लोगों को अवगत कराना। 4. प्रदूषण को कम करने क े उपायों का पता लगाया। 5. प्रदूषण फ ै लाने वाले तत्वों का पता लगाना। 6. िाद्य पदाथो को प्रदूवषत करने वाले कारकों की िानकारी प्रदान करना। 7. प्रदूषण में वृद्धध करने वाले कारकों क े प्रयत शासन को सूचनायें भेिने का मागा प्रशस्त करना। 8. प्रदूषण रटहत वातावरण मे िीवनयापन क े हल िोिना। 9. प्रदूषण मुक्त वातावरण बनाये रिने क े नवीन उपागम िोिना। 10. पयाावरण लशक्षा को प्रसाररत करने क े सुझाव प्रस्तुत करना। षोध का महत्व इस शोध अध्ययन में पयाावरण की गुणवत्ता का भी अध्ययन क्रकया गया है। वतामान समय में मनुष्य नवीन तकनीकी का प्रयोग करते हुए संसाधनों का अत्यधधक दोहन कर रहा है जिसक े कारण पयाावरण अवनयन की दशा उत्पनन हो रही है, इसी कारण इसका अध्ययन अत्यधधक महत्वपूणा है। मानव िीवन की गुणवत्ता से अलभप्राय व्यजक्त को प्राप्त होने वाली सुववधाओं से है जिससे उसका िीवन समृद्ध बना रहता है। इन संसाधनों में लशक्षा, धचक्रकत्सा, पेयिल, आवास, िीवन आकांक्षा, आधथाक सुववधा, आवास, भोिन, मनोरंिन आटद अनय कारकों को
  • 14. सजम्मललत क्रकया गया है। वतामान समय में महती हुई अधधक आधथाक समृद्धध की लालसा एवं उपभोग की प्रवृवत्त क े फलस्वरूप प्रकृयत क े एक ओर मह्वपूणा तत्व पयाावरण में ववकार उत्पनन होने लगे हैं जिसक े कारण िीवन की गुणवत्ता में नकारात्मक प्रभाव देिे िाने लगे हैं। वतामान समय में यह अध्ययन ववषय मह्वपूणा एवं ज्वनंत ववषय क े रूप में सामने आ रहा है। पयाावरण की गुणवत्ता का अध्ययन यनम्न कारकों से महत्वपूणा है 1. िीवन की गुणको उससर का बनाने क े ललए। 2. व्यजक्त क े संसाधनों क े प्रयोग को वववेकपूणा ववमोहन क े ललए। 3. बढ़ती िनसंख्या क े संकट से व्यजक्तयों को िागरूक करने क े ललए। 4. शहरों में बढ़ रही ववलभनन प्रकार की पयाावरणीय समस्याओं से यनिात पाने क े ललए। 5. स्वास्थ्य िीवन आकांक्षा, आवास, भोिन, लशक्षा आटद की गुणवत बनाये रिने क े ललए। 6. प्रदूषण क े ववलभनन कारकों क े दुष्प्रभाव से लोगों को लशक्षक्षत और सही टदशा में प्रेररत करने क े ललए। 7. सामाजिक वायनकी को ववकलसत करने क े ललए। 8. भववष्य में आने वाले ववलभनन पयाावरणीय संकटों से सतक ा होने क े ललए। 9. पाररजस्थयतक तंत्र को संतुललत बनाये रिने क े ललए।
  • 15. 10. ऊिाा संकट को कम करने क े ललए। 11. पयाावरण प्रदूषण क े ववलभनन कारकों क े दुष्प्रभावों से बचने क े ललए। उपरोक्त कारकों क े अयतररक्त अध्ययन ववषय में कई ऐसे तथ्य महत्वपूणा हैं जिसक े द्वारा पयाावरणीय संकट को समाप्त क्रकया िा सकता है एवं व्यजक्तयों में िागरूकता िाकर पयाावरण क े प्रयत लोगों को प्रेररत क्रकया िा सकता है जिससे क्रक भववष्य में होने वाले ववलभनन संकटों को कम क्रकया िा सकता है। प्रस्ताववत शोध प्रववधधः प्रस्ताववत शोध में जिस ववधध का प्रयोग क्रकया गया है वह प्रश्नावली अनुसूची है तथा यह शोध प्राथलमक एवं द्ववतीयक आाँकड़ों पर आधाररत है। और िो सवेक्षण क े माध्यम से क्रकया गया यह प्राथलमक है तथा यह शोध व्यवहाररक है जिसमें सवेक्षण प्रणाली का प्रयोग क्रकया गया है और उसी क े आधार पर यह शोध का वववरण है। जिसमें प्रश्नावली अनुसूची माध्यम द्वारा सवेक्षण कर क े क्रकया गया है। इस शोध में सवेक्षण क े द्वारा उन आंकड़ों को समेंटा गया है, िो रीवा नगर यनगम क े अंदर से आता है। इस शोध में बनद, द्वनद, वैकजल्पक प्रश्नावली का प्रयोग क्रकया गया है। इसमें रीवा नगर यनगम क े अंदर आने वाले 100 व्यजक्तयों का अध्ययन क्रकया गया है िो संरधचत अनुसूची में द्वनद बनद प्रश्नावली का प्रयोग क्रकया गया है और इसी माध्यम का प्रयोग कर प्रश्न बनाकर लोगों को देकर उनक े िुद क े ववचारों का उत्तर िानने का प्रयास क्रकया
  • 16. गया है। जिससे यह शोध प्राथलमक आंकड़ों पर आधाररत है। इसमें जिन समकों का प्रयोग क्रकया गया है वह शोध प्रश्नावली अनुसूची माध्यम है। इसमें यहु- वैकजल्पक प्रश्नावली का प्रयोग कर प्रश्नों का प्रयोग क्रकया गया है। समंक चयन की ववधध - समंक चयन ववधध में अनुसूची का यनमााण क्रकया गया और प्रश्नावली माध्यम से उत्तरदाताओं से उत्तर िानने का प्रयास क्रकया गया है। इस अनुसूची में प्रयतबंधधत प्रश्नावललयों का प्रयोग क्रकया गया है तथा उसमें बहु-वैकजल्पक प्रश्नों का भी प्रयोग क्रकया गया है। और द्वंदात्मक प्रश्नों का भी प्रयोग क्रकया गया है। इसमें संरधचत या बनद प्रश्न का प्रयोग क्रकया गया है। बनाई गयी प्रश्नावली में 15 प्रश्नों का समावेश है जिसका प्रारूप अंयतम में रिा गया है। शोध चयन में जिन समकों का प्रयोग क्रकया गया है, यह है शोध प्रश्नावली। इस ववधध में 100 व्यजक्तयों का अध्ययन क्रकया गया है िो रीवा नगर यनगम क े अंदर आते हैं। और िो इन 45 वाडों क े अंदर आते हैं। इस प्रश्नावली का प्रयोग ऐसे क्रकया गया है जिससे क्रक व्यजक्त को क्रकसी प्रकार का भय न महसूस हो और हर प्रश्नों का िवाब आसानी से दे सक े । इस प्रश्नावली में 15 सवाल बनाये गये हैं और यह 15 सवाल ऐसे है जिससे पूरे रीवा नगर यनगम क े स्वच्छता संबंधी आंकड़ों का ववश्लेषण करते हैं।
  • 17. चययनत समंक का आकार- चययनत समकों में 100 व्यजक्तयों का आकार चुना गया। इसमें 100 व्यजक्तयों का प्रश्नावली क े माध्यम से सवेक्षण क्रकया गया है। उन व्यजक्तयों का नाम क े साथ उम्र, लशक्षा, आय, व्यवसाय आटद को िानते हुए िानकारी प्राप्त की गयी है। तथा इसमें 15 वषा क े ऊपर उम्र वालों का चयन करक े क्रकया गया है। और इन व्यजक्तयों से िो िानकारी प्राप्त की गयी है वह प्रश्नावली क े माध्यम से है। इसमें हर वगा क े व्यजक्त से प्रश्नावली क े माध्यम से उत्तर िानने की कोलशश की गयी है इसमें मटहला/पुरूष दोनों क े द्वारा उत्तर िाना गया है। जिसमें 18 मटहलाएं और 82 पुरुष शालमल है तथा हर समुदाय क े लोग भी शालमल है। इसका आकार 100 व्यजक्तयों का है िो इनही क े द्वारा और िुद क े अवलोकन क े द्वारा िानकारी प्राप्त की गयी है। चययनत समंक का वगीकरण- चययनत समक में लोगों क े द्वारा स्वच्छता की िानकारी प्राप्त की गयी है। जिसमें 100 व्यजक्तयों क े उत्तर शालमल है। इसमें लशक्षा का स्तर देिे तो 91 प्रयतशत है। जिसमें 18 मटहला और 73 पुरूष हैं। व्यवसाय और अध्ययन दोनों को लमलाकर देिे तो 50 प्रयतशत है जिसमें मटहला ता 5 हैं पर पुरूष 75 हैं क्योंक्रक इसमें व्यवसाय और अध्ययन दोनों को शालमल क्रकया गया है। िबक्रक आय वाले 45 हैं जिसमें 5 मटहला और 40 पुरूष हैं। इसमें उस िानकारी को दशााया गया है। इस शोध का उद्देश्य है। यायन
  • 18. स्वच्छता से संबंधधत कारकों का उल्लेि है िो लोगों क े उत्तर से प्राप्त िानकारी को प्रदलशात क्रकया गया है। यह यह िानकारी है 100 व्यजक्तयों का प्रश्नावली क े माध्यम से उत्तर लमला है। शोध पररकल्पना : शोध ववषय चयन में काया करने से पहले उस ववषय से संबंधधत कई ऐसे ववचार मन में आते है िो प्राक्कल्पना कहलाते हैं सीधे शब्दों में कहे तो क्रकसी काया को करने से पहले उसक े प्रारूप तैयार करना या बनाना उपकल्पना है। क्रफर उस काया को करने क े बाद पररणाम िो आये। क्रफर आये पररणाम और पहले से ववचार क्रकया गया प्रश्न का परीक्षण करते है और उसक े बाद िो पररणाम हो उसे प्राक्कल्पना परीक्षण कहते है। इसको करना आवश्यक होता है। इस शोध ववषय चयन में कई प्रकार क े ववचार आये हैं जिनका उल्लेि क्रकया िायेगा। इससे यह फायदा होगा क्रक शोधाथी जितना सोचा था उतना अध्ययन क े बाद उसका परीक्षण करेगा तो पता चलेगा क्रक क्रकतना सत्य है क्रकतना नहीं यह शोधाथी क े मन में सोचने और समाि में चल रहे टटनाओं और पररदृश्य की तुलना की िाती है और एक तरह से यह भी कहा िा सकता है शोधाथी क े टदमाग में सोचने की क्षमता क्रकतनी है जिसे शोधाथी क े टदमाग की ताकत का पता लगाना भी कह सकते है। कभी-कभी शोधाथी की प्रवकल्पना सत्य हो िाती है और कभी-कभी गलत भी साबबत हो िाती है और कभी पूणा सत्य नहीं होती है न ही पूणा गलत। मुख्य बात यह क्रक प्रकल्पना शोध सवेक्षण से पहले
  • 19. बनाया िाता है। प्रवकल्पना का यनमााण क ु छ ववनदुओं पर क्रकया िाता है या कहे प्रश्न िैसे यनमााण क्रकया िाता है और प्राक्कल्पना को प्रश्न कहना गलत भी नहीं है और सही भी नहीं है क्योंक्रक यह एक तरह का ववचार है और ववचार क ु छ भी हो सकता है और प्रश्न पूणा सत्य होता है। प्राक्कल्पना यनमााण पररकल्पना क े बबना अनुसंधान काया एक उद्देश्यहीन क्रिया है अतः प्रस्तुत शोध काया को सुव्यवजस्थत रूप से सम्पाटदत करने हेतु यनम्नललखित पररकल्पनाओं का यनधाारण क्रकया गया है- 1. पयाावरण संरक्षण क े प्रयत ग्रामीण वगा क े लशक्षक्षत व अलशक्षक्षत व्यजक्तयों की पयाावरणीय अलभवृवत्त में कोई साथाक अनतर नहीं है। 2. पयाावरण संरक्षण क े प्रयत शहरी वगा क े लशक्षक्षत व अलशक्षक्षत व्यजक्तयों की पयाावरणीय अलभवृवत्त में कोई साथाक अनतर नहीं है। इस प्रकार इस शोध से संबंधधत प्रवकल्पना का यनमााण क्रकया गया है और इसका परीक्षण आगे ररपोटा तैयार होने क े बाद क्रकया िायेगा तभी पता चल पायेगा क्रक प्राक्कल्पना क्रकतना सही है। प्राक्कल्पना परीक्षण - मैंने िो इस शोध में कल्पना क्रकया था वह सवेक्षण से यह साबबत होता है क्रक िो प्राक्कल्पना प्रश्न बनाये गये हैं उसमें से 80 प्रयतशत सत्य प्रमाखणत होते हैं। क्योंक्रक िैसे मैंने अनुमान लगाया था क्रक युवा
  • 20. स्वच्छता में ज्यादा रूधच लेता है िो सत्य प्रमाखणत हुआ हलांक्रक िैसे यह कल्पना क्रकया था क्रक कमाचारी वगा कम रूधच रिते हैं िो यह गलत साबबत हुआ है यही एक गलत साबबत हो पाया है पर यह भी अवलोकन करने पर यह सही नहीं पाया गया बजल्क िैसा सोचा था वैसा ही हुआ है। और सभी प्रश्न प्राक्कल्पना सही प्रमाखणत हुए हैं। प्रश्नावली क े माध्यम से िो िानकारी लमली वह यही प्रमाखणत करते हैं क्रक प्राक्कल्पना सत्य है, िबक्रक अवलोकन क े माध्यम से भी िो िानकारी प्राप्त क्रकया उससे भी यही प्रमाण यनकलता है क्रक प्राक्कल्पना सही है। हां थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है जिससे यह कह है क्रक 20 प्रयतशत तक प्रमाण नहीं कर सकते
  • 21. अध्याय-3 पयाावरण प्रदूशण आि ववकासशील देश मानव समाि की सुववधाओं को बढ़ाने क े ललए भौयतक सम्पदा एवं अपने पररवेश का दोहन कर रहे हैं। ववकासशील देश औद्योधगक एवं तकनीकी ववकास करक े ववकलसत हो रहे हैं, लेक्रकन मानव अपने स्वाथा पूयता हेतु प्रकृयत एवं प्राकृयतक पररवेश क े साथ यनदायता एवं अवववेकपूणा आचरण कर रहा है। वह नयी तकनीक द्वारा प्रकृयत क े पररवेश में अवांयछत पररवतान कर रहा है, जिसक े कारण उसका पररवेश प्रदूवषत होता िा रहा है। ववकलसत एवं ववकासशील देशों क े औद्योधगक एवं तकनीकी दृजष्ट से समृद्ध क्षेत्रों में वायु प्रदूषण क े कारण श्वास लेना दुलाभ है, िल प्रदूषण क े कारण उसे पीना हायनकारक है। भूलम प्रदूवषत होने से बनिर एवं बीहड होती िा रही है। ध्वयन प्रदूषण क े कारण सुनना दुलाभ हो गया है। पयाावरण प्रदूषण से ववश्व की प्राकृयतक संरचना में पररवतान उपजस्थत हुए हैं। वैज्ञायनक प्रगयत क े कारण वायुमंडल में जस्थत ‘‘ओिोन‘‘ गैस की छतरी में छेद हो गये हैं। िो पृथ्वीवालसयों क े ललए सुरक्षा कवच का काया करती है क्योंक्रक ओिोन भण्डल की यह ववशेषता होती है क्रक वह सूया की पराबैगनी क्रकरणों (िो तीक्ष्ण एवं मानव क े ललए हायनकारक होती है) को यनसीम से पररवयतात कर देती है तथा इनका भूतल पर अल्प प्रभाव ही पड़ पाता है। परनतु ओिोन परत में छेद होने क े कारण पराबैगनी क्रकरणें भूतलवालसयों को प्रभाववत करेगी. इससे वायुमण्डल क े
  • 22. तापमान में वृद्धध हो िायेगी इनका क ु प्रभाव मौसम पररवतान पर टदिलायी पड़ता है। भववष्य में इनसे पयाावरण और भी अधधक प्रभाववत होगा। पयाावरण क े प्रदूवषतः हो िाने क े कारण भूतल पर यनवास करना मानत क े ललए बड़ा ही दुरुह हो िायेगा, इनका प्रभाव न क े वल मानव पर वरन सम्पूणा िीव-िगत एवं वनस्पयत पर पढ़े बबना नहीं रह सक े गा। िहााँ पयाावरण प्रदूषण क े हायनकारक प्रभावों से िैव ववववधता द्वारा. ओिोन परत का क्षरण, अवषाण एवं अयतवषाण, तापमान वृद्धध,िल तथा वायु प्रदूषण और देश क े प्राकृयतक संसाधन समाप्त हो रहे हैं,वहीं बढ़ती िनसंख्या क े कारण यहााँ िैववक व आधथाक दबाव भी बढ़ रहा है। अशुद्ध पेयिल क े कारण देश में िलियनत बीमाररयों से मरने वाले रोधगयों का प्रयतशत ज्यादा है। अतः जिस क्रिया से हवा, िल, लमट्टी एवं वहााँ क े संसाधनों क े भौयतक रासाययनक या िैववक गुणों में क्रकसी अवांछनीय पररवतान से िैव िगत एवं सम्पूणा पररवेश पर हायनकारक प्रभाव पहुैचे उसे पयाावरण प्रदूषण क े नाम से िाना िाता है। आि क े ववकासशील समाि में पयाावरण प्रदूषण वतामान मानव की प्रमुि समस्याओं में से एक है, मनुष्य ने प्रारम्भ से ही ववज्ञान, तकनीक एवं प्रौद्योधगक ज्ञान में अभूतपूवा प्रगयत की है एवं और अधधक प्रगयत िारी है, उनक े समक्ष पयाावरण प्रदूषण की समस्या टदन-प्रयतटदन गम्भीर होती िा रही है। पयाावरण प्रदूषण की समस्या मनुष्य द्वारा पयाावरण क े अनुधचत ढंग से उपयोग द्वारा उत्पनन होती है। अदूरदलशातापूणा प्राकृयतक संसाधनों का शोषण तथा
  • 23. पररजस्थयतकीय संतुलन को नष्ट करना पयाावरण क े आधारभूत कारण है। इस प्रकार पयाावरण प्रदूषण का प्रमुि दोषी एवं उत्तरदायी मनुष्य स्वयं है। मनुष्य अपनी अनेक प्रकार की आवश्यकताओं की पूयता हेतु बनों को काटता है, ियनि पदाथों का शोषण करता है,अणु शजक्त का ववस्फोट करता है, बााँधों का यनमााण करता है। मानव क े इन सब क्रिया कलापों क े कारण पाररजस्थयतकी संतुलन पररवयतात हो िाता है। यद्यवप प्रकृयत सदा इस संतुलन को बनाये रिने क े ललए प्रयत्नशील रहती है। पयाावरण का अथा प्रकृयत क े समानाथाक समझा िाता है। परनतु पयाावरण और प्रकृयत में लभननता पाई िाती है। पयाावरण में भौयतक, िैववक, अिैववक, सांस्कृयतक तत्वों का समायोिन क्रकया िाता हैं जिसमें सभी तत्व एक दूसरे से अनतसाम्बजनधत होते हैं। ववलभनन ववद्वानों ने पयाावरण का अथा यनम्न प्रकार से पररभावषत क्रकया है। पाक ा (1980) क े अनुसार ‘‘पयाावरण उन दषाओं का योग है िो मनुष्य को यनजष्चत समय में यनजष्चत स्थान पर आवृत्त करती है।’’ ए. गाउडी (1984) ने अपनी पुस्तक श्ि्ैीम छंिनतम वव िीम म्दअपतवदउमदिश् में पृथ्वी क े भौयतक टटकों को ही पयाावरण का प्रयतयनधध माना है तथा उनक े अनुसार पयाावरण को प्रभाववत करने में मनुष्य एक महत्वपूणा कारक है। क े . आर. दीक्षक्षत क े अनुसार ‘‘पयाावरण ववष्व का समग्र दृजष्टकोण है क्योंक्रक यह क्रकसी समय संदभा में बहुस्थायनक तत्वीय एवं सामाजिक, आधथाक, िैववक तंत्रों िो िैववक एवं अिैववक रूपों क े व्यवहार पद्धयत
  • 24. तथा स्थान की गुणवत्ता तथा गुणों क े आधार पर एक दूसरे से अलग होते हैं तथा साथ में काया करते हैं।’’ इस प्रकार पयाावरण का अथा ववलभनन िैववक, अिैववक टटकों क े परस्पर सम्बनध से है जिसमें ववलभनन दषाओं में यह एक दूसरे से अनतासम्बजनधत होते हैं। पयाावरण क े अनतगात ववलभनन तत्वों को सजम्मललत क्रकया िाता है िो यनम्नललखित है - 1. भौयतक तत्व- (अ) स्थान (ब) स्थलरूप (स) िलीय भाग (द) िलवायु (य) मृदा (र) ियनि 2. िैववक तत्व- (अ) पेड़-पौधें (ब) िीव-िनतु (स) सुक्ष्म-िीव (द) मानव 3. सांस्कृयतक तत्व- (अ) आधथाक (ब) सामाजिक (स) रािनैयतक पयाावरण की अवधारणा एवं तत्व समग्र क्षेत्र ववकास यनयोिन अध्ययन क्षेत्र क े ववकास की पररभाषा प्रस्तुत करता है जिसमें ववलभनन कायों एवं उनकी क्रियाओं को िनसंख्या एवं संसाधनों क े साथ समजनवत क्रकया िाता है। भारत में समग्र ववकास कायािम सवाप्रथम 1977 में लागू क्रकया गया। समग्र ववकास कायािम जिला ग्रामीण ववकास एिेंसी तथा ब्लकक स्तर एिेंसी द्वारा िमीनी स्तर पर प्रारम्भ क्रकया गया। जिला ग्रामीण एिेंसी की स्थापना 1 अप्रैल, 1999 को हुई जिसमें धन क े ललए प्रावधान क े नद्र ीय एवं राज्य
  • 25. सरकार द्वारा 75ैः25 में क्रकया िाता है। स्थानीय आधार पर ववकास हेतु बनाये गये कायािम को यनयोिन कहा िाता है। यनयोजित ववकास से ही समग्र ववकास संभव है। अतः स्थानीय व क्षेत्रीय समग्र ववकास देश क े यनवालसयों की आधथाक, सामाजिक एवं सांस्कृयतक ववकास से सम्बजनधत है। समग्र ववकास एक यनयोजित क्षेत्रीय ववषय है,जिसक े द्वारा क्रकसी भी प्रदेश की समस्याओं का आंकलन करक े यनदान हेतु सुझाव टदया िाता है। अधधकांश देशों में भूलम एवं पूंिी सीलमत है। अतः समग्र ववकास द्वारा संसाधनों का समुधचत प्रयोग करते हुए सीलमत संसाधन की िोि करक े उच्च तकनीकी तथा प्रलशक्षण द्वारा अधधकतम ववकास क्रकया िा सकता ळें प्रदूषण की अवधारणा प्रदूषण क े अनतगात ऐसे अवांयछत तत्वों को सजम्मललत क्रकया िाता है िो क्रक पयाावरण प्रदूवषत करने का काया करते हैं। पयाावरण प्रदूषण की समस्या सम्पूणा ववष्व में व्याप्त है। इसी समस्या से ग्रलसत रीवा शहर भी है। रीवा शहर में प्रदूषण की अवधारणा को यहााँ की जस्थयत एवं प्रदूषण क े ववलभनन कारकों क े आधार पर पररभावषत क्रकया िा सकता है जिसमें हमें वहााँ पर जस्थत पयाावरणीय दषा का ज्ञान होता है तथा मानव िीवन पर पड़ने वाले इसक े नकारात्मक पररणाम सामने आते हैं। अध्ययन ववषय में रीवा शहर की पयाावरणीय दषा का अवलोकन एवं यनरीक्षण तथा परीक्षण क े द्वारा ववलभनन तथ्यात्मक पररणाम यनकाले गये हैं जिनक े आधार पर पयाावरणीय अवधारणा को पररभावषत क्रकया
  • 26. िा सकता है। मानव द्वारा प्रकृयत क े सीलमत उपयोग से िैव मण्डल क े िैववक-अिैववक अवयवों क े बीच पाररजस्थयतक संतुलन बबगड़ता िा रहा है। मनुष्य द्वारा उत्पनन प्रयतक ू ल पररजस्थयतयों क े कारण न क े वल मानव अवपतु अनय िीवों क े ललए भी ितरा उत्पनन हो गया है। प्रदूषण से आषय वायु, िल तथा पृथ्वी क े भौयतक रासाययनक एवं िैववक गुणों में अवांछनीय पररवतान जिससे मनुष्य अनय िीवों या प्राकृयतक संसाधनों की हायन हो या हायन होने की संभावना हो प्रदूषण कहलाता है। िबक्रक प्रदूषण अनतगात वे सभी पदाथा एवं ऊिाा िो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मनुष्य क े स्वास्थ्य तथा उनक े संसाधनों को हायन पहुाँचाते हैं, प्रदूषक कहलाते हैं या कोई भी पदाथा िैसे - ठोस, द्र व्य या गैस िो इतनी अधधक मात्रा में हो क्रक पयाावरण को नुकसान पहुाँचाऐं प्रदूषक कहलाता है। प्रदूषण का अथा है दूवषत करना अथवा गंदा करना। प्रदूषण मनुष्य की वांयछत गयतववधधयों क े अवांयछत प्रभाव हैं, जिसमें भौयतक, रासाययनक व िैववक प्रक्रियाओं क े द्वारा िल, वायु व मृदा अपनी नैसधगाक गुणवत्ता िो बैठते हैं जिसका मानव व सिीव िगत पर प्रयतक ू ल प्रभाव पड़ता है। राष्रीय पयाावरण शोध सलमयत क े अनुसार ‘‘मनुष्य क े क्रिया-कलापों से उत्पनन अपवषष्ट पदाथों एवं उनक े यनस्तारण तथा ऊिाा क े ववमोचन से होने वाले प्रयतक ू ल पररवतानों को प्रदूषण कहते है।’’ पयाावरणीय प्रदूषण क े प्रकार
  • 27. प्रदूषण का वगीकरण करना सहि नहीं है क्योंक्रक प्रदूषक एवं वे माध्यम जिनसे होकर ववलभनन प्रकार का प्रदूषण उत्पनन होता है एवं फ ै लता है वह कारक एक दूसरे से इतने सम्बजनधत होते हैं क्रक उनकी पहचान करना संभव नहीं हो पाता। इसमें ववलभनन कारकों की दषाओं क े आधार पर उनकी प्रकृयत क े आधार पर प्रदूषण को अलग से पहचानना असहि हो िाता है परनतु वगीकरण का मुख्य आधार प्रदूषण की प्रकृयत एवं ववलभनन टटकों क े आधार पर प्रदूषण को यनम्न प्रकार से वगीकृत क्रकया िा सकता है - वायु प्रदूषण हमारा वातावरण गैसों का भंडार है एवं यह हमारे िीववत रहने क े ललए िरूरी है, क्योंक्रक इसमें उपलब्ध ऑक्सीिन गैस को हम श्वसन् एवं उपचय क्रिया हेतु काम में लेते हैं। वायु में उपजस्थत हर दूवषत पदाथा वायु प्रदूषक नहीं होता। वायु प्रदूषकों को यनम्न प्रकार से पररभावषत क्रकया िा सकता है। वायु में उपजस्थत वो पदाथा जिसका पादपों, िीवों एवं पदाथों पर प्रयतक ू ल प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण, बाहरी गैसों, धूल एवं वाष्पकणों या अत्यधधक मात्रा में कई तत्व िैसे सल्फर, नाईरोिन, काबान, हाइड्रोकाबान रेडडयोधमी तत्व आटद क े वातावरण में मुक्त होने का पररणाम है। वायु प्रदूषण का कहर रीवा शहर में इतनी तेि गयत से बढ़ रहा है क्रक आने वाले क ु छ वषों में यहााँ का वातावरण टदल्ली िैसा होने में समय नहीं लगेगा। शहर क े स्वच्छ पयाावरण में हायनकारक गैसों ने अपने पैर
  • 28. िमाना शुरू कर टदया है। इन गैसों में मुख्यतः औद्योधगक इकाईयों से काबान डाई ऑक्साइड, नाइरोिन क े ऑक्साइड तथा सल्फर डाई ऑक्साइड की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ती ही िा रही है। वायु प्रदूषण क े स्त्रोत 1. वाहनों द्वारा 2. उद्योगों द्वारा 3. थमाल पावर स्टेशन द्वारा 4. फ ें का हुआ कचरा द्वारा वाहनों द्वारा पयाावरण प्रदूषण रीवा शहर में टदनों-टदन वाहनों की संख्या बढ़ती िा रही है जिससे रीवा शहर में वायु प्रदूषण बढ़ता िा रहा है। रीवा शहर क े मध्य से गुिरने वाले राष्रीय रािमागा-7 पर एक टदन में 60,000 वाहन गुिरते हैं। इनसे यनकलने वाला धुाँआ िो क्रक वायु प्रदूषण करता है। इन वाहनों में पुराने वाहनों से ज्यादा प्रदूषण होता है। रीवा शहर में स्टेशन एररया से अननतपुरा तक वायु प्रदूषण संकट एक गंभीर समस्या है (सारणी संख्या 4.1)। यहााँ क े आस-पास क े क्षेत्रों में श्वास से सम्बजनधत अनेक प्रकार की बीमाररयााँ होती हैं। रीवा शहर में वाहनों की संख्या-2016 ि. सं. वाहन का प्रकार वाहनों की संख्या 1 मोटर साईक्रकल 558021 2 कार 56609
  • 29. 3 टै्रक्टर 26733 4 रक 19664 5 िीप 16816 6 ऑटो ररक्शा 9749 7 रेलर 8618 8 टैक्सी3986 9 बस 3773 10 टेम्पो पेसेनिर 3366 11 टेम्पो लोडडंग 1872 12 अनय 1465 योग 710672 स्त्रोत : पररवहन ववभाग, रीवा रीवा शहर में वतामान में अधधकांश लोगों द्वारा ववलभनन पररवहन क े साधनों का उपयोग होने लगा है। मानव की प्रत्येक आवश्यकता को पूरा करने क े ललए पररवहन का साधन अयत आवश्यक हो गया है जिनमें रेल, रक, बस, रेक्टर, कार, िीप, टेम्पों, ऑटो ररक्शा आटद क े द्वारा पररवहन क्रकया िाता है। रीवा शहर में ववलभनन प्रकार की सामग्री को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने, ले िाने क े ललए वाहनों द्वारा पररवहन बहुत महत्वपूण्र हैं। रीवा शहर में वपछले 10 वषों में यातायात क े साधनों की संख्या में तीव्र गयत से वृद्धध हुई है, िैसे-िैसे शहर का ववकास होता गया वैसे-वैसे पररवहन क े साधनों की संख्या लगातार बढ़ती गयी क्योंक्रक
  • 30. आि मशीनी एवं तकनीकी युग में मानव इतना व्यस्त है क्रक पयाावरण और मानव क े बीच में िो सम्बनध है उसको बबल्क ु ल भूल सा गया है। इसी कारण आि वतामान में वायु प्रदूषण का ितरा बढ़ता िा रहा है। इन पररवहन क े साधनों से यनकलने वाला हायनकारक धुंआ रीवा शहर की वायु को प्रदूवषत कर रहा है। शहर में 1990 से 1991 में वाहनों की क ु ल संख्या 10,900 थी िबक्रक आि वतामान समय में क ु ल संख्या 71,0672 हो गई है यटद इसी तरह पररवहन क े साधनों की संख्या बढ़ती रही तो इन वाहनों द्वारा वायु प्रदूषण का भी ितरा बढ़ता चला िायेगा। वतामान में रीवा शहर में तीन पटहये वाला वाहन अधधकतर पुराने हैं जिनसे यनकलने वाला हायनकारक धुाँआ रीवा शहर की आबो हवा को दूवषत कर रहा है। रीवा शहर में पयाावरण तथा मानव की िीवन की गुणवत्ता का हा्रास हो रहा है। पयाावरण व मानव क े प्राचीन काल से ही एक दूसरे से टयनष्ठ सम्बनध थे, लेक्रकन मानव सभ्यता का ववकास ववलभनन पयाावरणीय दशाओं में हुआ है। मानव पयाावरण को अपने ववकास काल से ही प्रभाववत करता चला आ रहा है। रीवा शहर क े मध्य से गुिरने वाले राष्रीय रािमागा 12 व 27 पर भारी वाहनों की संख्या की भरमार है। यहााँ से यनकलने वाला धुाँआ शहर को प्रदूवषत कर रहा ह। पयाावरण प्रदूषण क े स्वरूप पयाावरण प्रदूषण को सामानयतः यो वगों (स्वरूपों में ववभाजित क्रकया गया है
  • 31. 1. प्रत्यक्ष प्रदूषण 2. अप्रत्यक्ष प्रदूषण प्रत्यक्ष प्रदूषण वह प्रदूषण िो िीव-िनतुओं एवं पेड़ पौधों क े ललए प्रत्यक्ष रूप से हायनकारक होते हैं अथाात् जिनका प्रभाव िैव-मण्डल पर सीधे पड़ता है, प्रत्यक्ष प्रदूषण कहलाता है। इसक े अनतगात मुख्यरूप से ववलभनन प्रकार क े पररवहन साधनों, धचमयनयों, वायुयानों, कल कारिानों तथा ववलभनन प्रकार क े वस्तुओं को िलाने से यनकलने वाला धुआाँ, प्रदूवषत िल, नगरों एवं ग्रामों क े यनकट एकबत्रत क ू ड़ा-करकट, िाद, मनुष्य तथा पशु-पक्षक्षयों क े मल-मूत्र, उनक े मृतक शरीर, औद्योधगक अपलशष्ट पदाथा इत्याटद आते हैं। अप्रत्यक्ष प्रदूषण वह प्रदूषण जिनका प्रभाव िैव गण्डल पर प्रत्यक्ष रूप से न पढ़कर अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है, उसे अप्रत्यक्ष प्रदूषण कहते हैं। इसक े अनतगात रेडडयोधमी पदाथा, सभी प्रकार क े कीटनाशक, िरपतवार नाशक, अनय प्रकार क े ववषैले रसायन, ध्वयन प्रदूषण इत्याटद को सजम्मललत क्रकया िाता है। पयाावरण प्रदूषण क े प्रकार पयाावरण प्रदूषण क े यनम्नललखित भेद हैं वायु प्रदूषण वायु प्रायः सभी िीवधाररयों क े ललए अत्यधधक महत्वपूणा है। वायु में उपजस्थत अनेक गैसों में से आक्सीिन, काबानडाईआक्साइड, नाइरोिन एवं
  • 32. ओिोन आटद गैसों का संतुललत मात्रा में होना आवश्यक है। िैसे आक्सीिन व काबान डाई आवसाइड गैरा की मात्रा सनतुललत अनुपात से कम अथवा अधधक होने पर वायु श्वसन क े योग्य नहीं रहती। अतः वायु में क्रकसी भी गैस की आवश्यक वृद्धध या अनय पदाथों का समावेश वायु प्रदूषण है। िल प्रदूषण िल में अनेक प्रकार क े ियनि, काबायनक तथा अकाबायनक पदाथों तथा गैसों क े एक यनजश्चत अनुपात से अधधक अथवा अनय अनावश्यक एवं हायनकारक पदाथा धुले होने से िल प्रदूषण हो िाता है। िल प्रदूषण प्रायः ववलभनन रोग उत्पनन करने वाले िीवाणु, वाइरस, औद्योधगक संस्थानों से यनकले अनावश्यक पदाथा, वटहत मल आटद अनेक पदाथा हो सकते हैं। मृदा प्रदूषण पौधों का मूल तनत्र भूलम क े अनदर मृदा में रहता है. इसी से यह अपने ललए अधधकतर कच्चे पदाथों का अवशोषण करता है। िड़ों की सक्रियता बनाये रिने क े ललए उनहें आवश्यकतानुसार िल तथा वायु की िरूरत होती है। प्रदूवषत िल तथा वायु क े कारण मृदा भी प्रदूवषत हो िाती है। अधधक फसल पैदा करने क े ललए भूलम की उवाश बढ़ाने या बनाये रिने क े ललए उवारकों का उपयोग क्रकया िाता है, ववलभनन प्रकार क े क्रकटाणु नाशक पदाथा आटद फसलों पर िो डाला िाता है मृदा क े साथ लमलकर हायनकारक प्रभाव उत्पनन कर सकते हैं। ध्वयन प्रदूषण
  • 33. ध्वयन ववलभनन प्रकार क े यनत्रों, वाहनों मशीनों आटद से उत्पनन होती है। लाउडस्पीकर, साइरन, बािे, मोटरकार, बस, रक, वायुयान आटद इसक े मुख्य कारक है। ध्वयन प्रदूषण से सुनने की क्षमता का द्वारा होता है। तंबत्रका तनत्र संबंधी रोग हो सकते हैं तथा नींद न आने का रंग हो सकता है। शोर से रूधधर चाप बढ़ िाता है तथा हृदय रोगों में वृद्धध देिने को लमलती है। रेडडयोधमी प्रदूषण रेडडयोधमी पदाथा वातावरण में ववलभनन प्रकार क े कण और क्रकरणे उत्पनन करते हैं। परमाणु शजक्त उत्पादन क े नद्र ों और आणववक परीक्षणों इत्याटद में वातावरण की रेडडयोधलमाता बढ़ती है। िल, वायु और लमट्टी का इन कणों क े द्वारा प्रदूषण पेड़ पौधों व अनय िीवों में ववलभनन प्रकार क े भयानक रोग उत्पनन कर सकता परमाणु ववस्फोट क े समय अत्यधधक ताप उत्पनन होता है जिससे कई क्रकलोमीटर दूर-दूर तक की लकड़ी िल िाती है तथा धातुएाँ वपटल िाती हैं। ववस्फोट से उत्पनन रेडडयोधमी पदाथा वातावरण की ववलभनन पतों मंव प्रवेश कर िाते हैं। रासाययनक प्रदूषण ववलभनन प्रकार क े उद्योगों से यनकलने वाले बेकार द्र वों में अनेक प्रकार क े रसायन लमले हुए होते हैं। इन बेकार द्र वों को िहााँ पर भी छोड़ा िाता है, वहीं यह प्रदूषण उत्पनन करते हैं। यटद इन दयों को नटदयों में छोड़ते हैं तो िल प्रदूवषत हो िाता है,यटद इसे पृथ्वी पर भी डाल देते हैं तो भूलम प्रदूवषत हो िाती है।
  • 34. उल्लेिनीय है क्रक पयाावरण क े बढ़ते हुए प्रदूषण क े प्रयत िन सामानय में िागरूकता का पयााप्त अभाव है, परनतु भारत सरकार और स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा िो प्रयास इस टदशा में क्रकये िा रहे हैं, वे अपयााप्त हैं। सरकार ने इस टदशा में गम्भीरता से प्रयास प्रारम्भ कर टदये हैं। प्रदूषण का यनराकरण तभी हो सकता है िब भारत सरकार तथा िनता का समवेत प्रयास इस टदशा में यनरनतर होता रहे। वतामान अध्ययन की अनतवास्तु दीनदयाल नगर (मुगलसराय) क्षेत्र में पयाावरण प्रदूषण की समस्या क े ववलभनन आयामों सोतों एवं उसक े पररणामों का समाि वैज्ञायनक अध्ययन और ववश्लेषण करना है। इस अध्ययन की आधारभूत मानयता यह है क्रक दीनदयाल नगर (मुगलसराय) क्षेत्र में पयाावरण प्रदूषण की वृद्धध एवं पयाावरण संतुलन का यनरनतर हास हो रहा है। इसक े सामाजिक आधथाक कारण और पररणाम दोनों है। वस्तुतः पयाावरण प्रदूषण क े ललए मुख्य रूप से हमारे सामाजिक, आधथाक कायािम, अयत उपभोक्तावाद, नवीन प्रौद्योधगकी का व्यापक प्रयोग, वववेकहीन आधथाक लाभ कमाने की मानलसकता ही उत्तरदायी है। प्रदूषण यनयनत्रण क े साधनों की अपयााप्तता और असफल प्रयोग तथा ववकास की गलत रणनीयत आटद क े साथ ही साथ हमारी सामाजिक एवं सांस्कृयतक संरचना भी बड़ी सीमा तक उत्तरदायी हैं जिसक े अनतगात पयाावरण िागरूकता का अभाव, गलत परम्पराएाँ, रूटढ़यााँ एवं रीयत-ररवाि, अनधववश्वास तथा अलशक्षा प्रमुि हैं। यनःसनदेह वतामान काल में प्रदूषण की समस्या गम्भीर हो गयी है। इससे िहााँ एक ओर प्राकृयतक सनतुलन