1. अध्याय-1प्रस्तावना- मनुष्य को अपने ववकास क
े लिए समाज की आवश्यकता हुयी,
इसी आवश्यकता की पूती क
े लिए समाज की प्रथम इकाई क
े रूप में परिवाि का उदय
हुआ। क्योंकक बिना परिवाि क
े समाज की िचना क
े िािे में सोच पाना असंभव
था।समुचचत ववकास क
े लिविण का होना ननतांत आवश्यक है। परिवाि में िहते हुए
परिजनों क
े कायों का ववतिण आसान हो जाता है। साथ ही भावी पीढ़ी को सुिक्षित
वाताविण एवं स्वास््य पािन पोषण द्वािा मानव भावी पीढ़ी को उचचत मार्ग ननदेशन
देकि जीवन स्ना ग्राम क
े लिए तैयाि कक या जा सकता है। आज भी को
एक मजिूिी क
े रूप में ही देखा जाता है।हमािे देश में आज भी एकि परिवाि को
मान्यता प्राप्त नहीं है औद् योचर् क ववकास क
े चिते क
े बिखिने क
े का िणों , एवं
उसक
े अस्स्तत्व पि मंडिाते खतिे पि प्रकाश डािने का प्रयास किते हैं।
िोजर्ाि पाने की आकांिा। िढ़तीसे शहि की ओि या छोटे शहि से िड़े शहिों को
जाना पड़ता है औि इसी कड़ी में ववदेश जाने की आवश्यकता पड़ती है।पिंपिार्त
कािोिाि या खेती िाड़ी की अपनीसीमायें लिए सभी आवश्यकतायें जुटा पाने में समथग
नहीं होता।अतः परिवाि को नए आचथगक स्रोतों की तिाश किनी पड़ती है।जि अपने
र्ााँव या शहि में नयी सम्भावनाये कम होने िर्ती हैं तो परिवाि की नयी पीढ़ी को
िाजर्ाि की तिाश में अन्यत्र जाना पड़ता है।अि उन्हें जहााँ िोजर्ाि उपिब्ध होता है
वहीीँ अपना परिवाि िसाना हो लिए यह संभव नहीं होता की वह ननत्य रूप से अपने
2. परिवाि क
े मूि स्थान पि जा पाए।कभी कभी तो सैंकड़ो ककिोमीटि दूि जाकि
िोजर्ाि किना पड़ता है।
दूसिा महत्वपूणग कािण ननत्य िढ़ता उपभोक्तावाद है।स्जसने व्यस्क्त को
अचधक महत्वकांिी िना ददया है।अचधक सुववधाएाँ पाने की िािसा क
े कािण
पारिवारिक सहनशस्क्त समाप्त होती जा िही है ,औि स्वाथग पिता िढती जा िही
है।अि वह अपनीखुलशया परिवाि या परिजनों में नहीं िस्कक अचधक सुख साधन जुटा
कि अपनी खुलशया ढूंढता है ,औि भावनात्मक रूप से ववकिांर् होता जा िहा
है।स्जम्मेदारियों का िोझ ,औि िेपनाह तनाव सहन किना पड़ता है।पिन्तु दूसिी तिफ
उसक
े सुववधा संपन्न औि आत्म ववश्वास िढ़ जाने क
े कािण उसक
े भावी ववकास का
िास्ता खुिता है। अनेक मजिूरियों क
े चिते हो महत्त्व कम नहीं हुआ है। िस्कक उसका
महत्व आज भी िना हुआ है।उसक
े महत्त्व को एकि परिवाि में िह िहे िोर् अचधक
अच्छे से समझ महत्त्व उसक
े अभाव को झेिने वािे अचधक समझ सकते हैं
अध्ययन पद्धनत आधुननक युर् ववज्ञान का युर् है, वतगमान मानव अचधक ताकक
ग क
तथा िौद्चधक है। वह ननत्य नये खोजों क
े िािे में सोचता िहता है। इन्हीं सोचों क
े
कािण ननत्य में अववष्काि हो िहे परिवतगन तथा कोई मूतग रूप नही होता है। कफि भी यों
का प्रयोर् ककया जाता है। जो ननम्नलिखखत है- 1. परियोजनाकायग का स्वरूप-
परियोजनाथी ने अपने परियोजनाकायग को दो भार्ों या स्वरूपों में िांटकि
3. परियोजनाकायग ककया है- अ) वणागत्मकः- प्रस्तुत परियोजना प्रिंन् सामास्जक स्स्थत,
धमग, लशिा, आवास, परिवाि, आदद साधनों क
े िािे में अध्ययन तथा इन घटनाओं की
प्रकृ नत परिवतगनशीि होती है। स्जसमें एक समय में प्राप्त प्रश्नों का उत्ति दूसिे
समयवरूप अचधकति वणागत्मक िखा है। ि) ववश्िेषणात्मकः- परियोजनाथी ने
परियोजना प्रिन्ध को वस्तुननष्ठ िनाने क
े लिये ववश्िेषणात्मक अध्ययन पद्धनत
को अपना अनेक प्रश्नों का ननमागण से सूचनाएॅ एकत्र किक
े उत्तिदाताओं द्वाकिक
े
ननष्कषग ननकािे र्ये है। 2. परियोजना की ववचधया :- यह अनुसंधान कायग वणागत्मक
है। अतः वणागत्मक कायग होने क
े कािण सवेिण का सहािा लिया र्या है। जनजातीय
समज में मदहिा सशस्क्तकिण एक समाज शास्त्रीय अध्ययन क
े लिये परियोजनाथी
सिसे पहिे दैव ननदशगन ववचध से समग्र में से 100 ग्रामीण एवं असहभार्ी अविोकन
पद्धनतत परिवाि क
े सामास्जक जीवन िहन-सहन से संिंचधत तथा ववलभन्न पिों से
आंकड़ों को एकबत्रत ककया र्या है। अ) दैव ननदशगन :- दैव ननदशगन में इकाइयों क
े
सम्मलित ककये जाने या छोड़ ददये जाने क
े अवसि क
े र्ुण से स्वतन्त्र हो एक पद्धनत
है, स्जसमें समग्र में से क
ु छ इकाईयों का चुनाव, उनकों समान अवसि प्रदान कि एवं
समान महत्व देकि इस प्रकाि ककया जाता है, कक प्रत्येक इकाई का चुनाव संयोर्वश
या दैव वंश हुआ है। ये हमनें ग्राम पंचायत वपपिाही क
े समस्त ग्रामीण परिवािों की
र्णना की स्जसकी वतगमान संख्या 300 है। इसमें से दैव ननदशगन क
े माध्यम से 100
4. प्रमुखों से जानकािी प्राप्त की र्यी है। ि) अविोकन पद्धनत :- िोर्ों क
े िहन-सहन,
आवास, वस्त्र, अन्ध ववश्वास काम की दशाएॅ एवं सामास्जक िुिाइयों का अविोकन
असहभार्ी अविोकन पद्धनत क
े रूप में ककया र्या, कफि भी इस कायग में पयागप्त
सतक
ग ता एवं वास्तववकता िाने का प्रयास परियोजनाथी ने मदहिा जनजानत क
े
सामास्जक जीवन में सशस्क्तकिण एवं ववलभन्न पिों से संिंचधत व्यवस्स्थत एवं
क्रमिद्ध सूचना एकबत्रत किने इस अनुसूची में र्ोंड़ जनजानत से संिंचधत पारिवारिक
संिचना, सामास्जक एवं अध्ययन, आवास, भोजन वस्त वस्तुननष्ठ प्रश्न िखे र्ये है।
औि इन्हीं क
े आधाि पि आकड़ों का संग्रहण ककया र्या है। 4. सािणीयन एवं
ववश्िेषण :- परियोजनाथी द्वािा आंकड़ों एवं सूचनाओं को तालिकाओं में व्यवस्स्थत
एवं क्रमवद्धरूप से लिवपिद्ध ककया र्या है। तथा सािणीयन में आंकड़ों को क्रमिद्ध
किक
े उनका प्रनतशत ननकािा र्या है। इसक
े िाद सािणी में लिवपिद्ध आंकड़ों का
ववश्िेषण किक
े ननष्कषग ननकािा र्या है। अध्ययन का उद्देश्य एवं महत्व :- प्रस्तुत
परियोजना आिेखक
े प्रनत नछपे त्यो, सामास्जक मापदण्डो एवं कािको को ववश्िेवषत
किने क
े उद्देश्य को िेकि प्रस्तुत ककया र्या है। क्या की क्या भूलमका होनी चादहए।
क
ु ि आिादी का िर्भर् 50 प्रनतशत क्या स्स्थनत है। यह भी मूकयांकन का एक पैमाना
है यद्यवप वपछिे क
ु छ वषो में होती है। मदहिा सशस्क्तकिण की ददशा क
े लिए प्रयासों
क
े िाद भी इस िात से नकािा नहीं जा सकता कक प्रकृ नत ने की अपेिा कम शस्क्तयों
5. प्रदान की है। प्रस्तुत अध्ययन का उद्ॅेस्ष्कसी भी कायग की िचना िेत की दीवाि
िनाने क
े समान है अथागत्‘‘प्रयोजन बिना मन्दों प्रवतगते’’ अतः बिना उद्देश्य क
े कोई
भी कायग सफि नही हो सकता। ठीक इसी प्रकाि लशिा क
े िेत्र में ककसी शोध अध्ययन
क
े लिए उद्देश्
अतः इस शोध अध्ययन क
े
ननम्न उदेश्य नन
धागरित
ककए र्ए
समाज मे संयुक्त परि
त्रवाि क
े
का
िको का अध्ययन किना। अध्ययन की सीमाए एवं कदठनाइयॉ :- प्रस्तुत परियोजना
डडदहया में नन
वासित
पिम्पिाओं लशिा, िोजर्ाि, आचथगक एवं सामास्जक दृस्ष्टकोण आदद क
े िािे अध्ययन
ककया र्या है। अध्ययन कायग क
े दौिान परियोजनाथी ने पाया है ननदहत प्रणािी द्वािा
पूछे र्ये अचधकांश संयुक्त परिवाि ने उत्साह पूवगक जिाि देती है। कदठनाईयॉ :-
6. प्रस्तुत परियोजना का अध्ययन किते समय ननम्नलिखखत कदठनाईयों सामने आयी
स्जसका ववविण इस प्रकाि है। 1. इस परियोजना अध्ययन क
े िािे में समझने में उनक
े
अलशित होने क
े कािण ठीक से उत्ति न देने में। 2. िोजर्ाि संिंधी जानकािी न होने क
े
कािण। 3. संचाि क
े साधनों की कमी क
े कािण 4. स्वच्छ जि आपूनतग की कमी है। 5.
बिजिी की समस्या है क
ु छ ही घिो में बिजिी की व्यवस्था है। उपककपना :- वैज्ञाननक
पद्धनत क
े ववलभन्न चिण में उपककपना का प्रथम स्थान आता है। यह वैज्ञाननक
मान्यता है कक उपककपना से ही अध्ययन कायग प्रािंभ होता है औि इसक
े साथ ही
समाप्
त
में
उपककपना का अत्यचधक महत्व है। उपककपना का शास्ब्दक अथग है ‘‘पूवग चचन्तन’’
अथागत्पहिे से सोचा र्या कोई ववचाि या चचन्तन। उपककपना एक प्राथलमक ववचाि
है जो सामास्जक त्यों या घटनाओं की खोज किने तथा उसक
े ववषय में ज्ञान प्रास्प्त
हेतु प्रेिणा प्रदान किता है। उपककपना समस्या संबिंधत ऐसा ववचाि है स्जसे क
े न्र
बिन्दु मानकिअध्ययनकताग िाि-िाि उसी क
े ओि मुड़कि अध्ययनकताग िाि-िाि उसी
की ओि मुड़कि त्य संकिन हेतु प्रेिणा प्राप्त किता है। इसकी सहायता से व्यस्क्त
सही उद्देश्य की ओि अग्रसि
8. अध्याय-2
पूवग मे
कक
ये र्ये षोध सादहत्य की समीिा-
िर्गि ई.ई .एवं चथयोडोिसन एवं चथयोडोिसन ने (1955)1― न्तइंद ॅैविपवसवहि
पुस्तक में अपनेसमाज में तीव्र परिवगतन होने क
े लिए नर्िीय मूकय उत्तिदायी िहे हैं,
साथ ही उन्होंने यह भी देखा कक परिवगतन
का प्रभाव समा
ज
क
े
जीवन क
े वव
ववध पिो पि पड़ा है। िुई वथग ने (1938)2― न्तइंदपेउ ।ॅे ॅं ॅूॅंि वव सपलमश्
पुस्तक में अपने अनुभावात्मक अध्ययन क
े दौिान यह देखा कक ग्रामीण जन, नर्िीय
मूकयों को एक जीवन ववचध क
े रूप में स्वीकाि कि िहे हैं, साथ ही उन्होनें िोर्ों को
व्यवहािों तथा दृस्ष्टकोणें में उत्पन्न हुए परिवतगनो को िताया है। ्ंतपे तवइमतज
म्ण्स्ण् (1948)3 नें ‘‘ॅैविपंस क्पेवतहंदप्रंजपवदष् में अपने अनुभवात्मक अध्ययन
9. में सामास्जक परिवतगन में उत्पन्न हो िही िाधाओ को इंचर्त ककया है। तेजी से हो िहे
परिवतगनों क
े कािण समाज में एक असंतुिन की स्स्थनत जन्म
आई.पी. देसाई (1956)4― श्रवपदज थ्ंउपसि पद प्दकपंरू ।द ।दंसिेपेश् पुस्तक में
र्ुजिात क
े महुअपनेप्रमुख ननष्कषग ददये। उनमें िताया कक- 1. एकाकीकता िढ़ िही है
एवं परिवाि की संयुक्ता कम हो िही है एवं आवासीय एवं सर्ंठनात्मक प्रकाि क
े
परिवािों मे पनत-पस्त्न व िच्चों को प्रमुखता दी र्ई है। 2. व्यस्क्तवाद की भावना में
कमी हो िही है औि इस कािण परिवाि का आवासीय एवं संर्ठनात्मक रूप से एकाकी
होना है। 3. संयुक्ता वािे नातेदािी सिंधो की परिचध सक
ुं चचत होती जा िही है। क
े .एम.
कापडडया (1956)5―त्नतंस थ्ंउपसि च्ंजजमतदेश्पुस्तक में र्ुजिात क
े सूित स्जिे
क
े नर्ि नवसािी व इसक
े आसपास क
े 15 ग्रामों का अध्ययन ककया। यह एक
तुिनात्मक अध्ययन था, स्जसमें 18 प्रनतशत नवसािी नर्ि एवं 82 प्रनतशत समीप
र्ााँवो क
े थे, स्जसमें कापडडया ने पाया ककएवं जातीय आधाि पि प्रधानता
परििक्षिननष्क
ग तः नर्िीय समुदाय में भी
एका
की
10. है एवं िडे नर्िो में एकाकी व छोटे शहिोननवास किते है। एडववन ड्राईवि (1962)6―
थ्ंउपसि ॅेजतनिजनतमॅंदक
े वपिव.म्िवदवउपि ॅैजंजने पद ब्मदजतंस प्दकपंष्
में िंिई िाज्य क
े नार्पुि स्जिे का अध्ययन ककया स्जसमें यह पाया कक
नर्िी
य िेत्र में
एकाकी परिवाि की अचधकता
व
अचधकता है। सी.एच. क
ू
िे (1962)7― ज्ॅीम ज्ॅीमवति वव ज्ंदेचवतंजंजपवदष्श् क
े अनुसाि, नर्िीय
ववकास क
े अध्ययन से यह परििक्षित होता है कक
म्यग आदद नर्ि ननमागण व जनसंख्या की र्नतशीिता क
े अनुक
ू ि कािक िहे है।
एण्डजगन (1964)8― व्अमतप्दकनेजतपंस न्तइंद ब्पअपसप्रंजपवद‖काअध्ययनभी
इसी दृस्ष्टकोण की पुस्ष्ट किता है, कक
औद्
योचर्क ववकास क
े कािण भी नर्िीय मूकय र् ्
11. सी संस्थाओं में परिवनतगत आया है, साथ ही इसक
े प्रसाि हेतु उन्होंने संचाि साधनों,
ववशेषकि िेडड़यो टेिीववजन आदद को उत्तिदायी माना है। ििसािा (1965)9―
च्तवइसमउे वव तंचपक नतइंदप्रंजपवद पद प्दकपं ने िंिई
क
े संयुक्त व क
े
अनुपात िढ़ िहा है। िासरू (1967)10― ज्ॅीम भ्पदकन थ्ंउपसि पद प्जे न्तइंद
ॅेमजजपदह‖ क
े समीिात्मक अध्ययन में िास ने भाित में परिवाि पि अध्ययन
ककया ओि नमूने क
े तौि पि दहन्दू मध्यम व उच्च वर्ीय शहिी स्
वंय क
े िचनात्
मक तत्व को त्यार् कि क
े न्रीय पारिवारिक ईकाई का औि अग्रसि है। खान
(1968)11― ि्ॅीॅंदहपदह नतइंद स्ॅॅंउपसि चंजजमतदेष्क
ें अध्ययन
को नर्िीय परिवािों में परि
अध्ययन मे उन्होने पाया कक नर्िीय िेत्रों में परिवाि सस्ंथा परिवतगन क
े दौि में है।
अपने शोध में उन्होने पाककस्तान का आस्जमपुि शहि को अध्ययन िेत्र िनाया ओि
पाया कक 1947 क
े िाद से इस िेत्र मे तीव्र र्नत से परिवतगन ददखाई दे िहे है। खान ने
1968 उघोर्ो क
े ववकास औद्योचर्क ईकोईयों, लमि आदद को पा
या एवं शोध ननष्कषग यह िताते हैं कक परिवाि की संिचना मे भी यह परिवगतन
परििक्षित होते हैं। ए. एम. शाह (1973)12― ज्ॅीम भ्वनेमीवसक क्पउमदेपवद वव
12. जीम स्ॅॅंउपसि वव प्दकपंष्श् क
े भाित में ककए र्ए अध्ययनों मे पािस्परिक संिंधों
को
प्रवृनत ददखायी देती हैं। इस आधाि पि तीन पिस्पि आधािभूत मान्यताएं परििक्षित
होती हैं। 1. भाित का पिम्पिार्त समाज ग्रामीण समाज था ओि संयुक्त र्ृहस्थ
जीवन, भाितीय समाज की एकमात्र ववषेषता थी। 2. शहिी समाज नवननलमगत समाज
है ओि एकाकीर्ृहस्थ जीवन का ववघटन
होता है 4. प्राथलमक र्ृहस्थ जीवन का आववगभाव होता है। सुब्राता िादहिी (1972)13
ष्च्तमलमतमदिम ववत ॅेवदे पकमंस स्ॅॅंउपसि ॅेप्रमरूजीम प्दकपंद नतइंद
ॅेपजनंजपवदष्क
े अनुभावात्मक अध्ययन में नर्िीय जनंसख्या क
े िढ़ते कदम औि
उसक
े प्रभावों की ववस्ताि से चचाग की है। उन्होनें अपने अध्ययन में परिवाि ननयोजन
क
े परिणामों पि महत्वपूणग प्रकाश डािा है औि उसे ग्रामीण जीवन मे हो िहे
संर्ठनात्मक परिवगतन का एक आवश्यक साधन माना है। क्ॅीपतमदकतं छंतंपद
1975 श्म्र्चसवतंजपवदे पद जीम स्ॅॅंउपसि ॅंदक वजीमत मेंिे‖ में प. िंर्ाि क
े
4210 परिवािों का अध्ययन ककया एवं यह ननष्कषग पा
या
ने
िे
13. लिया
है।
जेदी (1976)14 ― क्मिपेपवद उांपदह पद स्ॅॅंउपसि सपलमष् में परिवाि क
े एक
अध्ययन में सामास्जक वर्ग में परिवाि क
े मुखखया को प्राथलमकता दी है। मध्यम व
ननम्न वर्ग मे माता-वपता अपने िच्चो पि पूणग ननयंत्रण िखते हैं, जिकक उच्च वर्ग में
माता-वपता का अपने िच्चों पि पूणग ननयत्रंण नही पाया जाता है। अपने अध्ययन में
जेदी नें, उच्च व मध्यम वर्ीय परिवाि क
े उत्तिदाताओ में, पिम्पिा एवं वृद्धो क
े
सम्मान व वृद्धों क
े प्रनत सम्मान की भावना कम परििक्षित होती है। अध्ययन क
े
ननष्कषग यह भी िताते हैं कक, किांची क
े परिवाि जो प्रवजन क
े दौिान भाित आए, वह
अपनी पिम्पिा एवं मूि ववचािों का परित्यार् किक
े यहााँ आए, यह स्स्थ
नत उनक
े
प्रनत एक अपवाद है। नानयक ने (1979)15― ॅैवउम ॅेजतनिजनतम ॅेॅंचमिजे वव
नतइंद स्ॅॅंउपसि‖ में संिचनात्मकका अध्ययन ककया। इसक
े अन्तर्गत
नर्िीकिण एवं औद्योर्ीकिण क
े फिस्वरूप परिवतगन क
े दौि में है, इन्होने परिवाि
क
े अन्य संिचनात्मक पहिुओं स्जनक
े अन्तर्गत परिवाि का आकाि, परिवाि की
सिंचना , आचरतता प्रनतमान, व्यवासानयक आदशग एवं पारिवारिक आय से सि ॅंचधत
ववलभन्न पहिुओं का भी अध्ययन ककया इनक
े अविोकन क
े अनुसाि नर्िीकिण
14. एवंआनुपानतक रूप से पतन होना नही है, जो भाितीय समाज क
े क
े न्रीय तत्व हैं। इसी
रूप में लशिा, जानत औि धमग
परिवाि क
े प्रकाि को प्रभाववत किता है, यद्यवप क
ु छ सामूदहक व्यापारिक एवं उद्यम
15. अध्याय-3
मौलिक आधाि है। यह समुदाय क
े उस कायग का सम्पादन किता है स्जसकी
आवश्यकता समुदाय को आवश्यक रूप से होती है, जैसे ननिन्तिता औि आदशों का
ननवागह एवं ववचध परिवतगन होता िहा है।
परिवाि का एक स्वरुप आधुननकीकिण औि औद्योचर्किण से सम्िस्न्धत िहा है
स्जसे क
े न्रीय परिवाि या नालभकीय परिवाि कहते हैं औि दूसिा पूवग औद्योचर्क या
पिम्पिार्त कृ षक समाज पि ननभगि िहा है, स्जसे
ववस्तृत अथवा
समा
ज क
े वव
लभन्न
स्तिों से जुड़े हुए प्रतीत होते में भूलमका संिचना अचधक महत्वपूणग एवं प्रनतमानिद्ध
है। पिम्पिार्त कृ षक समाजों में प्रायः िृहत परिवािों का ही प्रभावी स्थान िहा है।
अचधकांश
ये
परिवाि का
प ्
16. ित्येक
सदस्य
मु
खखया द्वािा
ननयंबत्रत िहा है तथा सभी िोर् पािस्परिक अन्तः सम्िन्धों एवं अचधकािों औि
कतगव्यों संर्दठ
त
का
ि्
यों की इकाई
थी। ऐसे परिवािों का
स्वरूप सत्तावादी िह औि व्यस्क्तर्त स्वतंत्रता का अभाव था। मूितः पिम्पिात्मक
िोकर्ीतों, िोकोस्क्तयों औि कहाननयों का महत्व था। इस प्रकाि कृ षक समाज औि
ववस्तृत परिवाि क
े िीच सांक
े नतक सम्िन्धों का ववकास हुआ। इंग्िैण्ड में ऐसे परिवािों
में औद्योचर्क क्रांनत क
े प्रािम्भ तक कोई परिवतगन नहीं हुआ। ककन्तु धीिे-धीिे क्रांनत
ने र्ांवों की कृ वष अथगव्यवस्था में परिवतगन िाया औि र्ााँव क
े िोर्ों में नये-नये
17. औद्योचर्क औि प्राववचधक ववचािों का उदय हुआ औद्योचर्क प्रर्नत क
े परिणाम
स्वरूप इंग्िैण्ड की परिवाि
का संिचना में िदिाव आने िर्ा औि नवीन आदशग प्रनतमान पनपने िर्े भाितवषग में
भी नर्िीकिण औि आधुननकीकिण प्रभाव परिवािों में पिम्पिार्त भूलमका प्रनतमानों
में परिवतगन क
े रूप ददखायी पड़ता है। वतगमान समय में ववस्तृत
परिवाि संिचना
आि परिवािों का आकाि छोटा होने िर्ा है। परिवाि में िच्चों का एक नये प्रकाि से
समाजीकिण होने िर्ा है। अि िच्चे तुिनात्मक रूप से एक छोटे वाताविण में
ववकलसत होन िर्े, उन्हें प्याि देने क
े लिए औि देखभाि किने क
े लिए अचधक संिंधी
नहीं है। अि िच्चे को खेिने क
े लिए एक नये वाताविण की आवश्यकता हुई, जहााँ वह
वाह्य िोर्ों से सम्पक
ग कितािच्चों का स्वतंत्र ववकास होता है औि उनकी
आत्मननभगिता िढ़ती है िचना
त्मक
व्यस्क्त
त्
व
िही है।
18. ये
नये परिवाि अचधकांशतः समाज क
े नये र्ुणों को धािण किने में आर्े िहे स्जससे नये
समाज की स्थापना में सहायता लमिी जो कृ षक समाज क
े िोर्ों को भी प्रभाववत किने
में सहायक हुआ। यह भी स्पष्ट है कक पिम्पिार्त भाितीय कृ षक समाज में एकाकी
परिवा
ऐसे परिवाि का एक प्रमुख तत्व पारिवारिक सम्पवत्त का ननम्न जानतयों में अभाव,
इसका एक महत्वपूणग कािण था। मजदूिी ही मात्र पेशा होने क
े कािण उनमें
र्नतशीिता अचधक िही। ऐसे परिवाि पिम्पिा में ववस्ततृ परिवािों क
े ही समान थे,
इनमें आत्मननभगिता अचधक थी, िाििता तथा आन्तरिक व्यस्क्तर्त अचधकाि था।
ककसी सीमा तक इनमें व्यस्क्तर्त स्वतंत्रता अचधक थी, जै
से
तथा स्स्त्रयों में ववशेष पदाग न होना िेककन इन र्ुणों को हम आदशग र्ुण नहीं कह
सकते। आई०पी० देसाई ने कहा है कक आवासीयऔि दूसिे असामास्जक वाताविण
प्रत्येक समाज में एक समान नहीं है। पस्श्चम क
े देशों में भी आवासीय क
े न्रीय परिवाि
प्रथा महत्वपूणग है या यह कह सकते हैं कक भाितवषग में पहिे क
े न्रीय परिवाि थे ककन्तु
क
े न्रीयता प्रधान रूप में नहीं थी। छोटी जानतयों में भी जो एकाकी िहते थे उएनका
आदय ववस्तृत था, जैसा कक जमीदाि या ब्राह्मण परिवाि क
े िोर्ों में था। दूसिे शब्दों
19. में क
े न्रीय परिवाि का ववचाि संस्थार्त नहीं था औि न ही इसक
े कोई स्थानीय चचह थे
औि न ही आचथगक परिवतगनों औि प्राववचधक परिवतगनों में महत्व ही िखता था।
ववस्तृत परिवािी जो भाितवषग में सामास्जक ढााँचे का मूि तत्व िहे है. यहााँसाथ चिते
िहे। इस समय इन दोनों परिवािों में आधुननकीकिण हो िहा है।संयुक्तता अि भी एक
सामास्जक यथाथग है जो ननिन्ति चि
िहा है। भाितवषग में
स्था अस्स्तत्व में आयी तभी
से
द्यमान िही है। इस संस्था की प्राचीनता का प्रमाण प्राचीनतम दहन्दू ग्रन्थ ऋग्वेद में
लमिता है। ऋग्वेद में एक स्थान पि पुिोदहत वववाह क
े समय वि-वधू को आशीवाद
देते हुए कहता है, “तुम यही घि में िहा, ववयुक्त मत होओ, अपने घि में पुत्रों औि पौत्रों
क
े साथ खेिते औि आनन्द मनाते हुए समस्त आयु का उपभोर् किो।“ यह भी कहा
र्या है कक, “तू सास, ससूि, ननद औि देवि पि शासन किने वािी िानी िन।“ इन
संसंयु
क्त परिवाि
इस प्रकाििक्त सम्िन्ध क
े सदस्य सम्पवत्त में समान अचधकाि िखते हो, धमग पूजा
कित थे औि उनका एक साथ भोजन िनता था। यही नहीं, संयुक्त में कई पीदढ़या
20. िहती थी जो पािस्परिक अचधकािों औि दानयत्व क
े माध्यम से अपने सदस्यों को एक
दूसिे से वपिाये हुए थीं। इसी प्रकाि उत्ति वैददक काि, र्ृहसूत्रों, िौद्ध युर् आदद
में भी
वैसे तो उत्ति वैददक काि में कई ऐसे उद्धिण लमिते हैं स्जसमेंसुदृढ़ थी। मनु संदहता
क
े समय से िेकि छठी सातवीं शताब्दी तक दहन्दू सम्पवत्त कानून का इनतहास वह
स्पष्ट ितिाता है कक इस समय व्यस्क्तर्त सम्पवत्त तथा स्त्री धन का ववकास हो िहा
था तथा स्मृनत िेखकों
द्
िहा था र्ौतम क
े समय से िेकि आर्े तक व्यस्क्तर्त सम्पवत्त क
े लसद्धान्त ने
आध्यास्त्मक र्ुण अथवा योग्यता की वृद्चध में भार् लिया, ककन्तु यह सि होते हुए भी
दहन्दूनहीं हुआ। डा० कपाडड़या का मानना है ककको समझने क
े लिये दह
न्दुओं क
े
अध्ययन ककसे ववलभन्न सम्िस्न्धयों की भूलमका को हम समझ सकते हैं। दाह संस्काि
क
े अवसि पि क
ु छ सम्िस्न्धयों को तपगण अथवा उदकापगण की कक्रया किनी पड़ती थी।
ति क
ु छ ददनों लिये जो एक से िेकि दस ददन तक होते थे, क
ु छ सम्िन्धी अपववत्र हो
जाते थे। इस समय वेदाध्ययन अवरूद्ध हो जाता था. होम नहीं होता था, दान नहीं
ददया जाता था। ति मृतक सम्मान में दसवें ददन उसक
े िाद क
ु छ कृ त्य सम्पाददत
21. ककये जाते थे। इसी सम्िन्ध में पिासि ने र्ृकी दाह कक्रया किने क
े िाद सातवीं औि
दसवीं पीढ़ी तक क
े सभी सम्िन्धी जि में उतिते हैं, औि यदद एक ही र्ांव क
े होते हैं
तो वे सि िोर् स्जनका क
ु छ भी सम्िन्ध ननकिता है इसमें भार् िेते हैं। जि से िाहि
ननकि कि वे र्ांव को िौटते हैं। तीन िाबत्र की अवचध तक वे पववत्र िहते, भूलम पि
सोते. क
ु छ भी कायग नहीं किते औि ही अपना कायग ककसी दूसिे व्यस्क्त से किाते।
इसक
े िाद सूत्रों, मनुसंदहता तथा महाकाव्यों में ऐसे वणगन लमिता है स्जसमें पुत्री का
पुत्र न क
े वि सामास्जकमें भी िहुत ही ननकट तथा महत्वपूणग सम्िन्धी चर्ना जाता
था। इस समय सामान्यतः पुत्री का पुत्र अपने मातृवंशीय पूवगजों का राद्ध कमग नहीं
किता था। कफि जि उसे ये कृ त्य (संस्काि) किने पड़ते थे। वह मनुष्य (वपता) स्जसक
े
पास पुत्र नहीं होते थे, वह अपनी कन्या का वववाह इस शतग पि किता था कक उससे
उत्पन्न हुआ पुत्र अपनी माता क
े वपता का दाह संस्काि किेर्ा। डा० कपाडडया का
माननाहै कक जि मनुसंदहतालिखी र्यी, उससे यह स्पष्ट होता है कक स्जस समय यह
लिखी र्यी, पुत्र क
े अपने स्वभाववक परिवाि से अपनी माता क
े परिवाि में हस्तान्तिण
क
े लिये ककसी शतग की आवश्यकता नहीं थी। दूसिे शब्दों में भाई ववदहन पुत्री का पुत्र
माता क
े लिये कृ त्य (संस्काि) अपनाकतगव्य समझकि किता था। इस समय ऐसे पुत्री
को अन्य साधािण पुबत्रयों से ववलशष्ट धन प्राप्त होता था औि वह पुबत्रका कहिाती थी,
22. स्जसका अथग यही होता था कक वह पुत्र िन जाती थी।घि से सम्िन्ध पूणग रूप से टूट
नहीं जाता था। परिवाि कीथी। डा० कपाडड़या ने सामास्जक प्रर्नत क
े िािे में
अध्ययन
औि पुत्री क
े पुत्र को नन
कट सम्िन्धी माना र्या है औि मनुसंदहता में इन सम्िस्न्धयों क
े सम्िन्ध पि िहुत
िि ददया र्या है। ज्यों-ज्यों हम समय की र्नत क
े साथ आर्े िढ़ते हैं, सास्म्पत्तक
अचधकाि पुत्री को ददया जाना आिम्भ हो जाता है औि साथ ही साथ अनेक अपौचारिक
उत्तिदानयत्व पुत्री क
े पुत्
एक सुन्दि चचत्र प्रस्तुत कितीिी, जानत, धमग, िाजनैनतक औि आचथगक समूह, तथा वर्ग
शालमि है। जि हमिात किते है तो हमािे मस्स्तष्क मे समुदासमूह जैसे, नातेदािी
समूह, वंश, र्ोत्र, बििादिी, जानत उपजानत तथा वर्ग भी होते है।िचना हम समाज क
े
व्यवस्स्थत स्वरूप को कहते है। स्जस प्रकाि एक माकन ईट, सीमेंट औि चूने का क
े वि
ढेि नही होता िस्कक ईट, सीमेंट औि चूने का व्यवस्स्थतप्रनतमानों, सलमनतयों,
संस्थाओं, सामास्जक मूकयों आददअचधकांशतः अवयश्कताओं की पूनतग कृ वष या
पशुपािन से
हो जाती है उसे ग्रामीण समाज समुदाय
23. की अपेिा र्ााँव में जनसंख्याका धनत्व िहुत ही कम होता है। र्ााँव में घनी जनसंख्या
न होने क
े कािण कृ षकपरिभाषा हेिेकड एफ. ई पीक
े औि समति भूलम को आपस में
िााँट कि िंजि भूलम को चिाने में प्रयोर् किते है। ए.आि देसाई क
े अनुसाि- ग्रामीण
समाज की इकाई र्ााँव हैं, यह एक िंर्मंच है, जहााँ ग्रामीण जीवन का प्रमुख भार् स्वयं
प्रटक होता है औिस की प्रथम स्थापना है औि कृ वष अथगव्यवस्था की उत्पवत्त है। िूनि
क
े अनुसाि- ‘‘ एक
क
े
िोर्ों की सामास्जक अन्तकक्रया तथा उसकी संस्थायें सस्म्मलित है स्जनमें वह
सामान्य कक्रयाओं क
े क्र
े न्र खेतों क
े चािों औि बिखिी झोपडड़यों या ग्रामों में िहता
जनसंख्या का
कम घनत्व 5. प्रकृ नत क
े समीप 6. भाग्यवादीता 7. सिि व सादा जीवन 8. सामास्जक
समरूपता 9. जनमत का अचधक महत्व 10. आत्म ननभगिता 11. जजमानी प्रथा 12.
समुदाय का छोटा आकाि 13. सामास्जक अस्स्थिता
मीण समा
ज
प्रकृ नत क
े समीप होता है। 6. भाग्यवादीता- भाितीय र्ााँवों क
े ननवालसयों मे लशिा का
अभाव होता है। अतः वे अन्ध-ववश्वासी औि भाग्यवादी होता है। 7. सिि व सादा
24. जीवन- भाित क
े ग्रामवासी सादा जीवन व्यतीत किते है। उनक
े जीवन मे कृ बत्रमता
औि आडम्िि नही है। उनमें ठर्ी, चतुिता औि धोखेिाजी क
े स्थान पि सच्चाई,
ईमानदािी औि अपनत्व की भावना अचधक होती है। 8. सामास्जक समरूपता- जहां
नर्िों की ववशेषता
सामास्जक ववषमता है वही
सामास्जक समरूपता का होना है। ग्रामीणों क
े जीवन स्ति में नर्िों की भांनत जमीन-
आसमान का अन्ति नही पाया जाता। सभी िोर् एक जैसी भाषा, त्यौहाि-उत्सव
प्रथाओं औि जीवन-ववचध का प्रयोर्
किते है।
उनक
े
जीवन में अनेक अंति नही पाये जाते है। 9.
जनमतका अचधक महत्व- ग्रामवासी जनमतका सम्मान किते औि उससे डिते है। वे
जनमतकी शस्क्त को चुनौती नही देते विन्उसक
े सम्मुख झुक जाते है। पंच िोर् जो
क
ु छ कह देते है उसे वे लशिोधायग मानते है। पंच क
े मुंह से ननकिा वाक्य ईश्वि क
े मुंह
से ननकिा वाक्य होता है। जनमत की अवहेिना किने वािे की ननन्दा की जाती है।
10. आत्म ननभगिता- ग्रामीण समाज मे हि िेत्र में आत्म ननभगिता पाई जाती है। चा
हें वह
25. िाजनैनतक
हो। र्ांव मे जनमानी प्रथा द्वािा जानतयां पिस्पि
एक-दूसिे क
े आचथगक दहतों की पूनतग किती है। 11. जजमानी प्रथा- जजमानी
औि जानतर्त ढ़ाचें की एक प्रमुख ववशेषता है। इसका स्वरूप पिम्पिार्त है, इस
व्यवस्था क
े अनुसािइस प्रकाि जानत प्रथा ग्रामीण समाज में रम-ववभाजन का एक
अच्छा उदाहिण पेश किती है।से
वा किती है। 12.
समुदाय का छोटा आका
संज्ञा दी हैं। 13. सामास्जक अस्स्थिता- अचधकति ग्रामीण समाज इतना ज्यादा
अस्स्थि नही है स्जतना नार्रिक समाज है। ग्रामीण मनुष्य कदठनता से ही एक
सामास्जक स्स्थनत से दूसिी सामास्जक स्स्थनत को ग्रहण किते है। इसका कािण यह है
कक सामास्जक स्स्थनत औि उनक
े धन्धे मयागददपरिवतगन भी उनमें कम पाना
ज्यादा पसंद नही किते। सोिोककन औि स्जम्मिमेन क
े मतानुसाि ग्रामीण समुदाय
जिाशय क
े जि की भााँनत ननश्चि िहता है। दोस्तो इस िेख मे हमने जाना भाितीय
ओं क
े िािें मे। अर्ि इस िेख क
े सम्िन्ध मे आपका ककसी प्रकाि का कोई ववचाि है तो
नीचे िवउउमदज कि जरूि िता
ए।
26. सा
वगजननक जीवन में
आज अनेक ऐसी दशाएं उत्पन्न हुई है स्जनक
े
प्रभा
व से
संक्रमण क
े िीच इसकी संिचना सम्िन्धी आस्था में मतभेद उत्पन्न होने िर्ा है।
दूसिी ओि यहपरिवनतगत आवश्यकताओं की पूनतग न कि सकने क
े कािण भी अपनी
उपयोचर्ता को िनाये िखने में सिम नहीं ददखाई देता चास्तववकता तो यह
हैसम्िन्धों, कताग की अचधकाि व्यवस्था, पिम्पिार्त कायो तथा सम्पवत्त सम्िन्धी
अचधकािों आदद सभी िेत्रों में परिवतगन स्पष्ट रूप से ददखाई देने िर्ा है। इस
स्स्थ
नत में
में
सं
िचनात्
मक परिवतगन
27. क
े अन्तर्गत हम प्रमुख रूप से इसक
े आकाि, सदस्यों क
े पािस्परिक सम्िन्धों. कताग
की स्स्थनत, सदस्यों क
े अन्तवैयस्क्तक सम्िन्ध, स्स्त्रयों की परिस्स्थनत तथा सम्पवत्त
अचधकािों से सम्िस्न्धत परिवतगनों को सस्म्मलित किते हैं। इन सभी िेत्रों में
क
े
आकाि
में
इस सीमा तक हास हो र्या है कक र्ांवों में भी व्यस्क्त आज अपनी पत्नी औि िच्चों क
े
साथ पृथक रूप से िहकि अपने परिरम का स्वयं ही पूणग उपभोर् किने क
े पि में होता
जा िहा है। इस प्रकाि
िीच द्वैनतयक सम्िन्धों का ववकास देखने को लमि िहा है। आज वववाह सम्िन्धों में
भी व्यस्क्तवाददता दशगन होने िर्े है। पिम्
पिार्त
रू
प
से सयुं
क्
त परिवाि
28. धाि्
लमक
की
सं
िचना
िहुत िड़ी सी
मा
तक कताग क
े एकाचधकाि
समाप्त हो र्या. है। आज न
तो
ककसी सदस्
य
कताग क
े
आदेशों का शब्दशः पािन किना अननवायग ददखाई दे िहा है औि न
ही
ककसी
सदस्
29. य
ने से िोका
जा सकता है। इस प्रकाि पारिवारिक ननणगयों में कताग क
े िाध्यतामूिक ननणगय क
े
स्थान पि अि जनतांबत्रक ननणगय को अचधक महत्व ददया जाने िर्ा है। इसक
े साथ ही
ग्रामीण संयक्त परिवाि की संिचना में एक महत्वपूणग परिवतगन यह देखने को लमि
िहा है कक युवा सदस्यों क
े अचधकािों में अभूतपूवग वृद्चध
होती जा िही है। अचधकांश
कायग भाि युवा सदस्यों क
े हाथों में आ र्या है। इसक
े फिस्वरूप वववाह सम्पवत्त िढ़ता
जा िहा है। िच्चों क
े सामाजीकिण, लशिा एवं वववाह से सम्िस्न्धत ननणगयों में अि
परिवाि क
े िड़े-िूढ़े सदस्यों का दिाव कम नजि आ िहा है इसक
े स्थान पि युवा
सदस्यों क
े अचधकािों में वृद्चध हुई है। यही स्स्थनत अक्सि नयी एवंजन्म देती है।
नवीन सामास्जक अचधननयमों सेचाहे वे सदस्य वववादह
त हो या अवववादहत, वृद्ध हो या युवा, स्त्री हो अथवा पुरूष िोजर्ाि क
े नये अवसिों क
े
कािण िोर्ों का पिायन नर्िों की ओि िढ़ िहा है, स्जसक
े
फिस्
30. ने भाितीय ग्रामीण जीवन क
े लिये इतने महत्वपूणग कायग ककये थे, स्जनक
े कािण इन्हें
ग्रामीण जीवन का भौलिक प्रनतननचध कहा जाता था ककन्तु आज पस्श्चमीकिण एवं
नर्िीयकिण
की
ई दे िहा है। इसक
े साथ ही प्रथाएं, पिम्पिाएं, िोकाचाि एवं धालमगक ववश्वास क
े िंधन
ढीिे पड़ते जा िहे हैं। नवीन लशिा प्रणािीव्यवसाय का चुनाव औि आचथगक िाभ-हानन
का ननधागिण व्यस्क्तर्त आधाि पि ही होने िर्ा है। इन उपिोक्त परिवतगनों को आधाि
मानकि यह नहीं समझ िेना चा
दहए
कक
चथनत
से
र्ुजि िही है। क्योंकक इस समय भी क
ु छ
परिस्स्थनतयां
ऐसी
है
जो सं
31. भाितवषग
में ऐसे युर् में हुयी थी, जि ग्रामीण में समुदाय में ही यहााँ क
े िोर् पिते थे। उस समय
समाज एक िन्द वर्ग की तिह िन्द था। सामास्जक में परिवतगन एवं र्नतशीिता का
पूणगतः अभाव था। पिन्तु ति की परिस्स्थनतयों की तुिना में आज की परिस्स्थनतयााँ
बिकक
ु ि ववपिीत नजि आ िही हैं। पाश्चात्य लशिा सभ्यता औि साथ
ही औद्योचर्किण एवं नर्िीकिण क
े फिस्वरूप भाितवि्
लिए
अपने पिम्पिात्मक स्वरूप को िनाये िखना कदठन हो र्या औि उनका ववघटन होना
स्वाभाववक हो र्या है। इसी रूप डा० क
े ०एम० कपाडड़या ने अपनी पुस्तक भाित वषग
वव
घदटत
किने वािी सवगप्रमुख का
िक है। दूसिी ओि टी०वी० िाटोमोि
क
े लिए कोई एक या दो कािक ही उत्तिदायी नहीं िस्कक इनक
े लिए अनेक कािक या
दशाएाँ संयुक्तरूप से उत्तिदायी है, जो मुख्य रूप से ननम्न है 1. नर्िीकिण नर्िीकिण
वह सिसे महत्वपूणग प्रकक्रयासदस्य
जि िोजर्ाि क
े लिए
32. नर्िों में अस्थायी रूप से जाकि िसते हैं तो ये नर्िों क
े
इतने प्रभाववत हो जाते है कक साधािणतया पुनः र्ााँवों में िौटना पसन्द नहीं किते।
नर्िों में िहने क
े लिए अचधक साधनों की आवश्यकता होने क
े कािण वे एक तिफ
ग्रा
साथ िखने की स्स्थनत में नहीं होते। नर्ि में नौकिी या व्उसका उपभोर् भी वे स्वयं ही
कि िेते हैं। इस परिस्स्थनत से िाध्य होकि परिवाि का मुखखया उन्हें उनक
े परिवाि
सदहत अिर् किने को िाध्य कि देता है, अथागत् परिवाि से अिर् कि देता है। इस
सन्दभग मेंनर्ि में िसने वािे सदस्य की यह मांर् है कक वृद्धजन अपने ववचािों को
उन पि न थोपें औि अपने दृस्ष्टकोण में वे अचधक उदाि िने। वे चाहते हैं कक पूवग को से
पिामशग लिया जाना चादहए. उनक
े ववचािों औि सम्पवत्तयों का आदि ककया जाना
चादहए तथा दोनो पीदढ़यों क
े िीच रूचच औि आदतों क
े अन्ति क
े प्रनत वे सहनशीि है।
युवा सदस्य यह भी चाहते हैं कक परिवाि क
े मुखखया तथा दूसिे िड़े-िूढों औि युवा
सदस्यों क
े िीच सम्िन्धों का इस प्रकाि नवीनीकिण होना चादहए स्जससे युवा
सदस्
यों
को
ष अपने परिवाि
33. से
अिर् होकि नर्ि में जाता है जि वह नर्ि में आजीववका कमाने िर्ता है तो यह
अपने पत्नी तथा िच्चों को अपने पास िुिा िेता है। उसकी यह प्रिि इच्छा होती है
कक अपने र्ाढ़े पसीने से पैदा की र्यी कमाई पि उसका पूिा अचधकाि है, उसका
उपभोर् उसक
े ही िीिी तथा िच्चे कि सकते हैं। यदद वह उदाितावश अपनी आय र्ााँव
में िसे अपने
तक नहीं चिती। क्योंकक उनकी पत्नी उससे यह कहती है कक आप का सावधानी से
उपयोर् किें। जि वह देखतीतो पनत को पृथक होने क
े लिए िाध्य किती
है। इस
प्रकाि नर्िीकिण
भी अहम् भूलम
का िही है। पिम्पिार्त ग्रमीण समाज की आचथगक व्यवस्था पूणगतया कृ वष पि ननभगि
थी। खाद्यान्न की कम अथवा अचधक उपज क
े पश्चात भी
अनेक नये व्यवसायों क
े द्वािा आजीववका उपास्जगत किने का अवसि
प्राप्त होने िर्ा। इसने ही
सदस्यों क
े अन्दिवा
दद
34. आचथगक संिचना ननभगि थी र्ााँवों क
े उद्योर् में (जो औद्योर्ीकिण की देन है) क
े वि
ग्रामीण पुरूषों को ही िोजर्ाि नहीं लमिा िस्कक यहााँ स्स्त्रयों िड़ी संख्या में िोजर्ाि
पिक रम कि िही है। इस प्रकाि स्स्त्रयों में आत्मननभगिता तथा स्वतंत्रता सिढ़ने से
भीसंिचना
टूटती जा िही है। इसक
े सा
थ ही औद्योर्ीकिण क
े प्रभाव से जातीय िन्धन भी क
ु छ ढीिे पढ़ते
जा
िहे
महत्वपूणग भूलम
का ननभा
यी है।
मनुष्य जन्म होते ही तीन ऋणों का ऋण होता है, उसे अपने जीवन में माता-वपता, र्ुरु
औि समाज क
े इन ऋणों को अवश्य चुकाना है, जैसी भावना पहिे प्रत्येक भाितीय
परिवािों में देखने को लमिती थी ककन्
तु
आदशों ने भाितीय िोर्ों को त्यार् औि कतगव्य क
े पथ से हटाकि व्यस्क्तर्त
अचधकाि, सुख औि समानता का पाठ पढ़ाया
35. जो
कक स्वतः
ही संयुक्त
प्रनत स्थावपत व्यस्क्तर्त अचधकाि स्वतंत्रता औि समानता क
े लसद्धान्त को अपनाते
जा िहे है। इसक
े अपनाने क
े फिस्वरूप प्राचीन भाितीय िन्धन समाप्त (टूटता) नजि
आ िहा है। इसमें माता-वपता प्राचीन पिम्पिाओं को अत्यचधक महत्व देते हैं, जिकक
नवयुवकथोपी र्यी आदशग संस्कृ नत को स्थावपत किना
चाहते हैं। ऐसी अवस्था में वपता औि पुत्र क
े ववसचािों एवं कायों में कोई सामंजस्य
स्थावपत नहीं हो पाता, िस्कक इसमें संघषग ही अचधक देखने
को
लमिता
है। स्जससे
या यों कहें इसी क
े समकि कािकपद्धनत
की संज्ञा दी
जा
ती
है ने
36. को
दह
िा
देने
में सहायक लसद्ध हुई है। आज इस लशिा पद्धनत से परिवाि िच्चों क
े व्यवहाि में
परिवि्
तन सा ददख िहा है क्योंकक िच्चे पहिे जहााँ परिवाि में माता-वपता एवं दादा-दादी का
आदि एवं सम्मान किते थे, अि वह आदि एवं सम्मान की भावना उन िच्चों क
े
अन्दि से िीण होती चिी जा िही है। इसी लशिा ने व्यस्क्त को व्यस्क्तवादी िनाया जो
कक
से
नहीं िस्कक पनत से अपना सम्िन्ध तो
ड़ सकती है। जहां सास, ननद पनत का अचधक अत्याचाि होता था, वहां क
ु छ स्स्त्रयों ने
उनसे अपना पीछा दुड़ा लिया। इतना
ही नहीं,
की संख्या में कमी का कािण िनी है। इसक
े फिस्वरूप िड़क
े औि िड़ककयों को पढ़ने
का अच्छा सुअवसि प्राप्त हुआ है। ये नवीन िच्चे पढ़-लिख होने क
े पश्चात नौकिी
37. क
े टता है। प्रायः इसी संदभग में डा० िाधा कमि मुकजी ने अपनी पुस्तक (वप्रस्न्सवपकस
आफ कम्पिेदटव इकोनालमक्स पृ० 23-24) में लिखा है कक संयुक्त परिवाि वतगमान
समय में न्यायाियों द्वािा प्रोत्सादहत की जाने वािी व्यस्क्तवादी प्रवृवत्तयों का लशकाि
हो िहा है।“ जिकक िी० आि० अग्रवाि
का मानना
है
एकता को नष्ट कि दे िहे हैं।
अग्रवाि का यह भी दावा है कक आयकि कानून औि नये सम्पवत्त सम्िन्
धी
कानून भी
किता है। उपिोक्त ववलभन्न कािणों क
े साथ ही डा० नयनतािा सहर्ि का मानना है
कक भाित को आजादी की िड़ाई ने भी ननःसन्देह पुिाने व्यवहाि क
े तिीकों को समाप्त
किने का प्रधान कािण थी। इससे पुरूषों एवं स्स्त्रयों दोनों को संसाि में भ्रमण क
े लिये
िाध्य ककया औि यह पिम्पिार्त प्रथाओं एवं मान्यताओं को तोड़ने में सहायक लसद्ध
हुआ है। वास्तववकता में यह कहना अनतशयोस्क्त न होर्ा कक दहन्दू स्स्त्रयों को
सामान्तया इस आंदोिन ने आधुननकता में िा ददया। जिकक आि० लिन्टन जैसे
38. ववचािक का मानना है कक “व्यस्क्तर्त आमदनी स्जतनी ही ववकलसत होती जायेर्ी,
पारिवारिक िंधन उसी मात्रा में टूटते जायेंर्े इन सि कािकों क
े अनत
रि
तोड़ने
में
सहायक लसद्ध होते हैं।
कािणों का ववश्िेषण
39. अध्याय-4
त्य संकिन एवं सािणीयन प्र.1 आपक
े
व्यवसाय क्या है? क्र. व्यवसाय संख्या प्रनतशत 1. कृ वष 25 50ॅः 2. नौकिी 05 10ॅः 3.
कृ वष/नौकिी 18 36ॅः 4. व्यवसाय 02 04ॅः योर् 50 100ॅः
उपयुगक्त तालिका क
े ववश्िेषण से पता चिता है कक ग्रा
ग्रामीण जन मे सिसे कम िोर् व्यवसाय क
े है जो 02 है स्जनका प्रनतशत 4 है। अतः
यह स्पष्ट है कक आज भी र्ााँव में क
ु वष जुड़े व्यस्क्तयों की संख्या ज्यादा है।
प्र.3 आपक
े परिवाि की क
ु ि मालसक आय ककतनी है? क्र. मलसक आय संख्या प्रनतशत
1. 1-5 हजाि 16 32ॅः 2. 6-10 हजाि 17 34ॅः 3. 11-15 हजाि 12 24ॅः 4. 10-20
हजाि 03 06ॅः 5. 20 से अचधक 02 04ॅः योर् 50 100ॅः
प्र.5 आपक
े
परिवाि
संख्या प्रनतशत 1.
ननम्न 13 26ॅः 2. मध्यम 27 54ॅः 3. उच्च 10 20ॅः योर् 50 100ॅः
प्र.5 आपका वर्ग कौन सा है? क्र. परिवाि का वर्ग संख्याप्रनतशत 1. सामान्य वर्ग 20
40ॅः 2. वपछड़ा वि्
संख्या प्रनतशत 1. हााँ 35 70ॅः 2. नही 5 10ॅः 3. पता नही 10 20ॅः योर् 50 100ॅः
40. प ्
ि.11
ति क
ै सा होता है? क्र. मदहिाओं का
स्
ति संख्या प्रनतशत 1. पदे मे िहना पड़ता है 30 60ॅः 2. काई समस्या नही है 10 20ॅः
3. क
ु छ समस्या
होती है 10 20ॅः योर् 50 100ॅः
प्रनतशत 1. हााँ होती है 32 64ॅः 2. नही होती है 10 20ॅः 3. पता नही 8 16ॅः योर् 50
100ॅः
41. अध्याय-5 ननष्कषग एवं सुझाव
जरूिी है। स्जस तिह मनुष्य का पहिा लशिक उसक
े माता-वपता है, उसी तिह मनुष्य
की पहिी पाठशािा उसका परिवाि है। एक परिवाि ना लसफ
ग मनुष्य को अंदि से
मजिूत किता है, िस्कक िाहिी िुिाईयों औि खतिों से भी उसको िचाता है। इसलिए
जि परिवाि क
े ककसी व्यस्क्त पि कोई पिेशानी आए तो, वह उसे आसानी से पाि कि
सकता है। परिवाि हमें अपनी स्िम्मेदािीयों का एहसास किा क
े समाज का स्िम्मेदाि
नार्रिक िनाता है। एक मनुष्यस उसक
े परिवाि में ही हो सकता है। क्योकक मनुष्य को
स्जस तिह परिवाि में खुशहािी, स्नेह औि सुिक्षित वाताविण लमिता है, वो कही औि
लमिना मुस्श्कि है।परिवाि क
े साथ िहने वािे िोर्ों पि औि अक
े िे िहने वािे िोर्ों
पि क
ु छ सािो पहिे एक पिीिण ककया र्या था। स्जससे पता चिा की, अक
े िे िहने
वािे िोर्ों की तुिना में परिवाि क
े साथ िहने वािे िोर् अचधक खुश होते है। परिवाि
क
े साथ िहने वािेइसलिए हमें परिवाि की आवश्यकता है। जि सभी िोर् आप पि
शंका किेंर्े ति लसफ
ग आपका परिवाि ही आप पि ववश्वास किेर्ा औि आपको ककसी
भी दुववधा से िाहि िाने की कोलशश किेर्ा। इसी वजह से हमें
परिवाि की आवश्यकता है।
सं
ख्या
42. उतनी ही ते
जी से िढ़ िही है।
वतगमान में युवा िहुत व्यस्त, तनावपूणग जीवन व्यतीत कि िहे हैं ऐसे में उन्हें अपनों
क
े प्याि, स्नेह एवं अपनेपन की आवश्यकता है जोकक उन्हें इस उनक
े व्यस्त,
चुनौतीपूणग एवं तनाव से परिपूणग जीवन का सामना किने में सहयोर् कि सकते हैं।
ऐसा माहौि लसफ
ग एक
िोर्ों की उपस्स्थनत से सहयोर् प्राप्त हो
ने क
े साथ-साथ अक
े िापन भी नहीं िर्ता। युवा पीढ़ी को रिश्तों का ज्ञान-
लमि जुि कि िहने की भावना- अनेक मजिू
रियों क
े चिते वतगमान
दौ
ि
ए सु
िक्षित औि उचचत शािीरिक एवं चारिबत्रक ववकास का अवसि होता है। माता वपता क
े
साथ साथ अन्य परिजन ववशेष तौि पि दादा-दादी का प्याि भी उन्हें लमिता है, जबिक
एकि परिवाि में अकसिमाता दोनों दोनों क
े कायगित होने की स्स्थनत में िच्चे दोनों क
े
प्याि से वंचचत हो जाते हैं औि अक
े िापन महसूस
43. किने िर्ते हैं। एक
से प्याि क
े साथ ज्ञान तथा भिपूि अनुभव लमिता है। िच्चों को संस्कािवान,
चरित्रवान एवं हृष्ट-पुष्ट िनाने तथा अपनी संस्कृ नत औि पिम्पिाओं को यथावत्
िनाए िखने
में
प्रत्येक सदस्य
चरित्रवान िना िहता है
ककसी समस्या क
े समय सभी परिजन उसका साथ देते हैं औि कोई भी सदस्य िड़े
िुजुर्ों क
े भय से असामास्जक र्नतववचधयों में लिप्त होने से डिता है औि अकसि इस
प्रकाि क
े र्ित कायों में भार् नहीं िेताद्य साथ ही वह िुजुर्ों क
े भय क
े कािण शिाि,
जुआ या अन्य कोई नशा जैसी िुिाइयों से भी िचा िहता
अपनी एक अिर् र्रिमा औि महत्व है जो युवा पीढ़ी को अच्छे संस्काि व चरित्रवान
िनाने में पूिा-पूिा सहयोर् प्रदान कि सकता है, उनको लमिजुि कि िहना लसखा
सकता