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अध्याय-1
प्रस्तावना-
नक्सलवाद साम्यवादी क्रान्ततकारियों क
े उस आतदोलन का अनौपचारिक नाम है जो भाितीय कम्युननस्ट आतदोलन
क
े फलस्वरूप उत्पतन हुआ। नक्सल शब्द की उत्पत्ति पन्चचम बंगाल क
े छोटे से गााँव नक्सलबाड़ी से हुई है जहााँ
भाितीय कम्यूननस्ट पाटी क
े नेता चारू मजूमदाि औि कानू सातयाल ने 1967 मे सिा क
े त्तवरुद्ध एक सशस्र
आतदोलन का आिम्भ ककया। मजूमदाि चीन क
े कम्यूननस्ट नेता माओत्से तुंग क
े बहुत बड़े प्रशंसकों में से थे औि
उनका मानना था कक भाितीय श्रममकों एवं ककसानों की दुददशा क
े मलये सिकािी नीनतयााँ उििदायी हैं न्जसक
े कािण
उच्च वगों का शासन ततर औि फलस्वरुप कृ त्तिततर पि वचदस्व स्थात्तपत हो गया है। इस तयायहीन दमनकािी
वचदस्व को क
े वल सशस्र क्रान्तत से ही समाप्त ककया जा सकता है। 1967 में नक्सलवाददयों ने कम्युननस्ट
क्रान्ततकारियों की एक अखिल भाितीय समतवय सममनत बनाई। इन त्तवद्रोदहयों ने औपचारिक रूप से स्वयं को
भाितीय कम्युननस्ट पाटी से अलग कि मलया औि सिकाि क
े त्तवरुद्ध भूममगत होकि सशस्र लड़ाई छेड़ दी। 1971
क
े आंतरिक त्तवद्रोह (न्जसक
े अगुआ सत्यनािायण मसंह थे) औि मजूमदाि की मृत्यु क
े बाद यह आंदोलन एकाधधक
शािाओ ं में त्तवभक्त होकि कदाधचत अपने लक्ष्य औि त्तवचािधािा से त्तवचमलत हो गया। फिविी 2019 तक, 11
िाज्यों क
े 90 न्जले वामपंथी उग्रवाद से प्रभात्तवत हैं।
आज कई नक्सली संगठन वैधाननक रूप से स्वीकृ त िाजनीनतक पाटी बन गये हैं औि संसदीय चुनावों में भाग भी
लेते है। पिततु बहुत से संगठन अब भी छद्म लड़ाई में लगे हुए हैं। नक्सलवाद क
े त्तवचािधािात्मक त्तवचलन की
सबसे बड़ी माि आतर प्रदेश, छिीसगढ, उड़ीसा, झाििंड औि बबहाि को झेलनी पड़ िही है।
नक्सलवाद नाम का इनतहास
उििी पन्चचम बंगाल में एक छोटा सा गांव है नक्सलबाड़ी यह स्थान भाित क
े पन्चचम बंगाल में है, लेककन इस
स्थान से नेपाल व बांग्लादेश भी ज्यादा दूि नहीं है। इसी छोटे से गांव नक्सलवाड़ी से 1907 में नक्सलवादी
आदोलन शुरू हुआ था। इस आंदोलन में स्थानीय ककसान व मजदूि ने इकट्ठा होकि त्तवद्रोह कि ददया था। चारू
मजूमजदाि, कानू सातयाल व जंगल साधाल जैसे व्यन्क्त इस आंदोलन का नेतृत्व कि िहे थे। इसी गांव से इस
आंदोलन की शुरुआत होने क
े कािण इस आदोलन का नाम नक्सलवादी आंदोलन पड़ा।
नक्सलवाद क
े उदय की पृष्ठभूमम
पन्चचम बंगाल समेत पूवी भाित क
े िाज्यों में ऐसा प्रचलन में है कक अनेक ककसान अपने िेतों को ऐसे लोगों को
िेती किने क
े मलए देते हैं, न्जनक
े पास अपनी जमीन नहीं होती है। पन्चचम बंगाल क
े इस इलाक
े में भी न्स्थनत
ऐसी ही थी। इस इलाक
े में भी िेती किने वाले सामातय ककसानों क
े पास जमीन नहीं थी। जमीन का मामलकाना
हक ककसी ओि क
े पास था। जमीन न्जनक
े पास थी वे िेती नहीं किते थे औि सामातय ककसानों को ये िोती किने
क
े मलए देते थे। जमीन में िेती किने क
े बाद जो उपज प्राप्त होती थी, उससे ननन्चचत दहस्सा जमीन मामलकों को
देना होता था। ककसी औि की जमीन पि िेती किने वाले ककसानों को स्थानीय भािा में भाग ककसान यानी शेयि
क्रोपि कहा जाता है।
3 माचद, 1967 को तीन भाग ककसान लोपा ककसान, सांगु ककसान व िनतया ककसान क
े अलावा माक्र्सवादी कम्युननस्ट
पाटी (माकपा) क
े 150 से अधधक समथदक हाथों में लाठी व धनुि-तीि व पाटी का झंडा मलए िेतों में पहुंचे। ये लोग
इन तीन ककसानों द्वािा िेती ककये गये िेतों से फसल काट कि ले गये। जमीन मामलक को ननधादरित दहस्सा नहीं
ददया गया। नक्सलवाड़ी की इस छोटी सी घटना ने भाित में कम्युननस्ट पाटी क
े इनतहास को नया मोड़ ददया।
इसक
े बाद पन्चचम बंगाल क
े इन ग्रामीण इलाकों में तीन थाने स्थात्तपत ककये गये। इस नक्सलवादी आंदोलन का
नेतृत्व कि िहे कानू सातयाल का मानना था कक यह सशस्र आदोलन जमीन क
े मलए नहीं, बन्कक सिा क
े मलए है?
पन्चचम बंगाल क
े नक्सलवाड़ी से शुरू हुआ आदोलन धीिे-धीिे िाष्रीय व अंतििाष्रीय सुखिदयां बटोिने लगा। पीककं ग
ने इस आंदोलन की सिाहना की औि इसे माओ से तुंग क
े मागददशदन में भाित क
े लोगों द्वािा शुरू ककया गया
क्रांनतकािी संघिद बताया। पीककं ग ने आशा व्यक्त की कक यह आंदोलन पूिे भाित में आग की तिह फ
ै लेगा। पीककं ग
की सिाहना क
े बाद इस आंदोलन को अंतििाष्रीय महत्व ममलने लगा।
नक्सलवाद पि गनीि शोध किने वाले भाितीय पुमलस सेवा क
े वरिष्ठ अधधकािी प्रकाश मसंह का मानना है कक
आंदोलन को शुरू किने क
े मलए नक्सलवाडी का चयन काफी योजनापूवदक ककया गया था। नक्सलवाड़ी से चीन भी
बहुत दूि नहीं है तथा नेपाल व पूवी पाककस्तान ( आज का बांग्लादेश) भी पास में ही हैं। ऐसे में पुमलस को चकमा
देकि उनसे बचने क
े मलए नेपाल व पूवी पाककस्तान का इस्तेमाल ककया जा सकता है।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ्
नक्सलवाड़ी में सिकाि व व्यवस्था क
े खिलाफ जो यह आंदोलन शुरू हुआ. वह छोटे पैमाने पि हुआ था। पहला
आंदोलन लगभग 52 ददनों तक चला, लेककन इस आंदोलन का देश क
े ककसान आंदोलन पि गहिा व दूिगामी
परिणाम हुआ
न्जस समय यह आंदोलन हुआ, तब नक्सलवाड़ी की क
ु ल जनसंख्या 126,719 थी। इस जनसंख्या में जनजातीय लोग
भी थे। इसमें संथाल, मुंडा, ओिाव, िाजवशी जनजानत क
े लोग शाममल थे। इनमें से काफी अधधक लोग बबहाि व
वतदमान क
े झाििंड क
े संथाल पिगना न्जले से जाकि वहां बस गये थे।
नक्सलवाड़ी त्तवद्रोह की शुरुआत व इसक
े बाद की न्स्थनत को ठीक ढंग से समझने क
े मलए वहां क
े लोगों की
सामान्जक व आधथदक न्स्थनत को समझना जरूिी है। 1961 की जनगणना रिपोटद क
े अनुसाि नक्सलवाडी, िाइिबाडी
एवं फानमसंदेवा क
े जनसंख्या में से 64.5 प्रनतशत यानी 5.77.727 लोग अनुसूधचत जानत व जनजानत वगद क
े थे।
इन वगों क
े लोग वहां क
े कृ त्ति क्षेर क
े मजदूि व चाय बगानों क
े मजदूि क
े रूप में कायद किते थे।
सािणी नं.- 1
नक्सलवादी इलाक
े में काम कि िहे लोगों क
े जीत्तवकोपाजदन का पैटनद
िेती (प्रनतशत में)कृ त्ति क्षेर में मजदूिी (प्रनतशम में) िादान व अतय कायद (प्रनतशत में)
नक्सलवाड़ी 37.5 4.6 40.0
िाइिबाड़ी 54.4 6.1 30.8
फानमसदेवा 67.7 5.4 15.2
इस सािणी से स्पष्ट होता है कक इस इलाक
े में कृ त्ति क्षेर क
े कायद किने वाले मजदूिों की संख्या काफी कम थी।
लेककन सेंसस-1961 की इस जानकािी में स्पष्ट होता है कक कृ त्ति क्षेर में कायद किने वाले काफी मजदूिों ने मजदूिी
क
े बजाय िेती किने को अपनी दूसिी प्रमुि आजीत्तवका क
े साधन क
े रूप में घोत्तित ककया था।
सािणी 1.2 (ककसान व कृ त्ति क्षेर में मजदूि)
ककसान व दूसिी आजीत्तवका क
े मलए कृ त्ति क्षेर क
े मजदूिों का अनुपात (प्रनतशत में) कृ त्ति क्षेर का
मजदूि व दूसिी आजीत्तवका क
े मलए िेती किने वालों का अनुपात (प्रनतशत में)
नक्सलवाड़ी 96.4 96.4 96.6
िाइिबाडी 76.5 96.2
फानमसदेवा 92.6 58.2
इस इलाक
े क
े लोगों क
े संबंध में उपिोक्त सािखणयों से स्पष्ट होता है कक सभी ककसानों क
े पास जमीन नहीं थी।
इस कािण इनमें से अधधकांश ककसान भाग चािी थे। भाग चािी’ का मतलब यह है कक जमीन ककसी औि क
े नाम
थी। ये लोग िेती किते थे। िेती किने क
े बाद कृ त्ति उत्पादों का एक ननन्चचत दहस्सा जमीन क
े मामलक को देना
पड़ता था। यह इस इलाक
े की मूल समस्या थी।
यहां यह कहने की आवचयकता नहीं है कक ककसी औि से जमीन लेकि िेती किने वाले भाग चािी लोगों
का जमीन मामलकों द्वािा शोिण ककया जा िहा था। यह समस्या इस इलाक
े में काफी ददनों से थी। नक्सलवादी
आंदोलन की शुरुआत की पृष्ठभूमम को इससे समझा जा सकता है।
नक्सलवाडी इलाक
े में कम्युननस्ट पाटी द्वािा इस संबंध में जनजागिण कायदक्रम चलाया जा िहा था औि भाग चािी
लोगों को संगदठत किने का प्रयास ककया जा िहा था। इस संबंध में पचे व मलफलेट तैयाि कि बांटे जा िहे थे।
चारू मजूमदाि, कानू सातयाल व जंगल संथाल जैसे लोगों ने ककसानों क
े मलए इस आंदोलन को हाथ में मलया। इस
आंदोलन क
े सूरधाि चारू मजूमदाि थे। कानू सातयाल ने संगठन को तैयाि ककया, बकक जंगल संथाल ने संथाली
लोगों को एकबरत ककया। इन लोगों ने यह प्रचारित ककया कक जमीन मामलकों की जमीन उनसे छीन ली जाएगी।
लेककन यदद वे उनकी पाटी की ककसान सभा में शाममल होते है, तो जमीन उतहें ममलेगी। ककसान सभा क
े सदस्य क
े
रूप में 20 पैसे का सदस्यता शुकक ििा गया। इस दौिान जो लोग उसमें शाममल नहीं हो िहे थे उतहें भी जोि-
जबिदस्ती शाममल किवाया गया। इस कािण ककसान सभा की सदस्यता में जबिदस्त बढ़ोतिी देिी गई। कानू
सातयाल ने इन लोगों को त्तवचवास ददलाया कक पन्चचम बंगाल की यूनाइटेड फ्र
ं ट की सिकाि उनक
े इस आंदोलन में
उनक
े खिलाफ ककसी प्रकाि की कािदवाई नहीं किेगी।
इस आंदोलन को चीन का भी समथदन ममला। चीन का सिकािी अिबाि पीपुकस डेली ने इस मामले को
लेकि 5 जुलाई, 1967 को एक संपादकीय मलिा। इस संपादकीय में अिबाि ने मलिा कक पन्चचम बंगाल क
े
दान्जदमलंग इलाक
े में क्रांनतकािी ककसान क्रांनत क
े मलए अग्रसि है। भाितीय कम्युननस्ट पाटी क
े एक क्रांनतकािी समूह
द्वािा यह आंदोलन शुरू हो चुका है। भाित क
े क्रांनतकािी आंदोलन में इस आंदोलन की भूममका काफी अहम होगी।
इस आंदोलन क
े दौिान संथाल लोगों ने अपने पािंपरिक हधथयाि तीि धनुि क
े साथ जमीन मामलकों से जमीनों पि
बलपूवदक कब्जा किना प्रािंभ कि ददया। साथ ही इसमें स्वयं िेती किने लगे। इन लोगों ने धान ििाने वाले लोगों
क
े खिलाफ प्रदशदन किना प्रािंभ कि ददया। क
ु छ स्थानों पि तो इन लोगों ने जबिदस्ती धान को लूट मलया औि
आपस में बांट मलया औि कम मूकय पि बेचना शुरू ककया। इस दौिान दहंसक झड़पें भी हुई।
माचद से मई 1967 तक क
ु ल 100 से अधधक दहंसक झड़पे हुई। इसक
े अलावा अनेक मामले ऐसे भी थे,
न्जतहें रिपोटद नहीं ककया गया। न्जला प्रशासन एक तिह से लाचाि ददि िहा था। न्जला प्रशासन ने िाज्य सिकाि को
बता ििा था कक जनजातीय लोग संगदठत होकि पािंपरिक हधथयािों से लेस होकि यह आंदोलन चला िहे हैं। यदद
इसमें ककसी की धगिफ्तािी की जाती है या उनक
े दठकानों पि छापा मािा जाता है, तो इसकी व्यापक प्रनतकक्रया हो
सकती है।
न्स्थनत ििाब होती देि पन्चचम बंगाल क
े तत्कालीन िाजस्व मंरी हिेकृ ष्ण कोणाि मसमलगुडी पहुंचे औि उतहोंने
ककसी भी तिह से कानू सातयाल को बातचीत क
े मलए िाजी किाया। सुिना फॉिेस्ट बंगला में दोनों की बैठक हुई।
बैठक में तय हुआ कक कानू सातयाल की धगिफ्तािी नहीं होगी। सभी प्रकाि क
े गैि कानूनी कायों पि िोक लगायी
जाएगी। स्थानीय एजेंमसयां जमीन का त्तवतिण किेगी तथा लोगों क
े कमेटी क
े सूचना क
े आधाि पि अधधक मारा में
धान ििाने वाले लोगों क
े खिलाफ कािदवाई होगी। इस बैठक में यह भी तय हुआ कक एक ननन्चचत नतधथ को कानू
सातयाल व जंगल संथाल आत्मसमपदण किेंगे। इलाक
े क
े आिक्षी अधीक्षक को पन्चचम बंगाल सिकाि ने ननदेश ददया
कक वह क
ु छ ननन्चचत मामलों में आिोत्तपयों की सूची तैयाि कि कानू सातयाल को सौंपे लेककन कानू सातयाल को
जहां पहुंचना था, वह नहीं आये। आंदोलनकािी अपनी बात से पलट गये औि आंदोलन को जािी ििने की घोिणा
की।
उधि पन्चचम बंगाल सिकाि ने पुमलस को कािदवाई किने का ननदेश दे ददया। 23 मई, 1967 को स्थानीय थाने क
े
इंस्पेक्टि सोनम वांगडी क
े नेतृत्व में पुमलस की टीम क
ु छ लोगों को धगिफ्ताि किने क
े मलए एक गांव में पहुंची।
इसे देिकि धगिफ्ताि होने वाले लोग नछप गये उतहोंने धनुि व तीि क
े साथ पॉन्जशन ले ली। वांगड़ी ने वहां जाकि
मदहलाओ ं से बात की तथा उतहें आत्म समपदण किने क
े मलए कहा। बातचीत चल ही िही थी, तभी आंदोलनकारियों
ने श्री वांगडी को तीि से छलनी कि ददया। वांगडी घटना स्थल पि ही मािे गये।
इसी तिह 24 मई को स्थानीय एसडीपीओ पुमलस पाटी क
े साथ जा िहे थे, तभी हजािों की संख्या में लोगों ने उतहें
घेि मलया। भीड़ से बचने क
े मलए एसडीपीओ ने पुमलसकममदयों को फायरिंग क
े ननदेश ददये, न्जससे दस लोगों की
मौत हो गई। इसमें छह मदहलाएं भी शाममल थीं।
इसक
े साथ ही नक्सलवाड़ी इलाक
े में न्स्थनत ददन-प्रनतददन ििाब होती जा की थी। डक
ै ती, हत्या व लूट क
े मामले
सामने आ िहे थे। 10 जून 1907 को हजािों की संख्या में लोग िाईिबाडी पुमलस थाने क
े अधीन एक जमीन
मामलक नगेन रूप चैधिी को घि पि हमला कि ददया। उतहोंने वहां से धान, जेविात व अतय बीजों को लूट मलया
तथा नगेन िाय चैधिी का अपहिण कि मलया। बाद में श्री चैधिी की उतहोंने हत्या कि दी। कानू सातयाल ने श्री
चैधिी की हत्या किने का ननदेश ददया था। श्री चैधिी ने ककसानों क
े आंदोलन क
े खिलाफ एक समूह तैयाि किने का
प्रयास ककया था औि इसी कािण उनकी हत्या की गई।
उसी ददन हधथयािबंद लोगों ने नक्सलवाड़ी पुमलस थाना क
े अंतगदत बहमान्जनोट गांव क
े जयनंदन मसंह क
े घि पि
भी हमला ककया औि वहां से बंदुक व अतय चीजों को लूट मलया।
उधि पन्चचम बंगाल सिकाि ने भी इस आंदोलन को गंभीिता से लेना शुरू ककया। िाज्य क
ै बबनेट ने पुमलस कािदवाई
का ननदेश दे ददया। 12 जुलाई बाद पुमलस कािदवाई शुरू हुई। पंद्रह सौ से अधधक पुमलसकममदयों ने इसमें भाग मलया।
इस कािण पुमलस ने सात सौ से अधधक लोगों को धगिफ्ताि किने में सफलता प्राप्त की। इसक
े बाद इस आंदोलन
को एक तिह से क
ु चल ददया गया।
नक्सलवाड़ी क
े इस आंदोलन से क्या हामसल हुआ ? कानू सातयाल की इस संबंध में जो रिपोटद है, उसमें बड़े-बड़े दावे
ककये गये हैं।
इसमें उतहोंने दावा ककया कक नक्सलवाडी आंदोलन ने दस बड़े कायद ककये हैं। ये इस प्रकाि है। (1) भाित में जो
सामतवादी व्यवस्था सददयों से चली आ िही थी, उसे इस आंदोलन ने चुनौती दी। (५) गलत तिीक
े से बनाये गये
दस्तावेजों जला ददया गया। (3) ककसान व जमीन मामलकों क
े बीच जो गैि बिाबिी क
े समझौते हुए उतहें िह कि
ददया गया। (4) जहां-जहां भािी मारा में चावल ििे गये थे, उतहें जब्त कि मलया गया। (5) जमीन मामलकों क
े साथ
जो गुंडा तत्व थे, उनक
े साथ कड़ाई से ननपटा गया। (6) ककसानों क
े सशस्र समूह पांिपारिक हधथयािों से लेस थे
तथा अत्याधुननक हधथयािों को छीना गया (0) आतंककािी जमीन मामलकों क
े खिलाफ िुले में सुनवाई हुई। 6)
कानून व्यवस्था को ठीक ििने क
े मलए िात को नाइट पाच की व्यवस्था की गई। (७) ककसानों की िाजनीनतक
शन्क्त क
े मलए क्रांनतकािी कमेदटयों का गठन ककया गया। (10) देश बुजुदआ कानूनों को ननष्प्रभावी कि ददया
गया।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ्
नक्सलवाद की वैचारिक परिभािा
नक्सलवाडी से शुरू हुए नक्सलवादी आंदोलन व वतदमान में भाित में चल िहे माओवाद मूल रूप से माक्र्स व माओ
से प्रेरित है। भाित में माक्र्स व अतय त्तवचािकों से प्रेरित होकि वामपक्षी पादटदयां बनीं। वे कालांति में लोकतंर का
दहस्सा होकि चुनावी िाजनीनत में शाममल हुईं। इन पादटदयों का मानना था कक लोकतंर का दहस्सा होकि जनमत
हामसल कि चुनाव में जीतकि सिा पि काबबज होना समय है। उनका यह भी मानना था कक लोकतांबरक प्रकक्रया में
चुनाव जीत कि माक्र्स क
े त्तवचािों को फलीभूत ककया जा सकता है तथा व्यवस्था परिवतदन ककया जा सकता है।
इसी क्रम में भाितीय कम्युननस्ट पाटी बनी। 1962 में चीन द्वािा भाित पि हमला ककये जाने क
े पचचात भाितीय
कम्युननस्ट पाटी में टूट होने क
े कािण माक्र्सवादी कम्युननस्ट पाटी का गठन हुआ। इन पादटदयों ने न क
े वल चुनाव
में भाग मलया, बन्कक पन्चचम बंगाल जैसे िाज्यों में तो वामपंथी पादटदयां सिा में भागीदाि बनीं।
लेककन माक्र्सवाद में त्तवचवास ििने वाले उनक
े क
ु छ साथी लोकतंर का दहस्सा बनकि लक्ष्य को प्राप्त किना असंभव
मानते हैं। वगद संघिद माक्र्सवाद का तयून्क्लयस है। माक्र्सवाद में वगद संघिद क
े बबना क्रांनतकािी प्रकक्रया पूिी नहीं हो
सकती। अतः बबना वगद संघिद क
े व्यवस्था परिवतदन संभव नहीं है।
इस तिह क
े त्तवचाि याले गुट लोकतांबरक तिीक
े से चुनाव में शाममल होने वाले गुट को संशोधनवादी बताते हैं।
उनका कहना है कक बबना वगद संघिद क
े व्यवस्था परिवतदन संभव नहीं है। इस कािण लोकतांबरक तिीक
े से चुनकि
सिा में काबबज होने क
े बाद भी व्यवस्था परिवतदन संभव नहीं है। इस गुट का मानना था कक व्यवस्था में बदलाव
क
े मलए वगद संघिद अननवायद शतद है। इस कािण लोकतांबरक तिीक
े से सवदहािा की तानाशाही का लक्ष्य हामसल होना
संभव नहीं है।
माओ का मानना था कक संशोधनवाददता एक बुजुदआ रुझान का त्तवचाि है। यह मतांघता से भी अधधक िातिनाक है।
संशोधनवादी क
े वल माक्र्सवाद क
े प्रनत ददिावटी प्रेम किते हैं। वे भौनतकवाद व द्वंदात्मकवाद का त्तविोध किते हैं, वे
लोगों का लोकतांबरक तानाशाही व कम्युननस्ट पाटी की अग्रणी भूममका का त्तविोध किते हैं। संशोधनवादी सामान्जक
रूपांतिण की प्रकक्रया को कमजोि किते हैं।
नक्सलवाद में माओ व कालद माक्र्स की वैचारिक आधािभूमम
नक्सलवादी मूल रूप से माक्र्सवाद व चीन में माओ क
े क्रान्तत मसद्धांत से प्रेिणा लेते हैं। माओ क
े क्रान्तत
मसद्धातत का आधाि माक्र्सवाद-लेनननवाद है।
माओ का मानना है कक माक्र्सवाद-लेनननवाद की थ्त्ष्योिी व त्तवचािधािा को लेकि कम्युननस्ट पाटी को त्तवशेि तिह क
े
तिीक
े से कायद किना होगा। मूल रूप से थ्त्ष्योिी व व्यवहाि में सांमजस्य बबठाते हुए आम जनता क
े साथ अच्छे
संबंध बनाने होंगे। माओ ने सशस्र क्रान्तत को उतना ही महत्व ददया है, जो माक्र्स या लेननन क
े समय में था।
उसने क्रान्तत क
े मसद्धातत को नया व व्यावहारिक रूप ददया। माओ ने क्रान्तत क
े दो पक्षों को ममलाकि एक ककया।
उसने शन्क्तयों क
े त्तवरुद्ध िाष्रवादी क्रान्तत तथा सामंतवादी जमीदािों क
े त्तवरुद्ध लोकतान्तरक क्रान्तत को ममलाकि
एक ककया है। माओ का मानना था ये दोनों क्रान्ततयां एक-दूसिे पि ननभदि हैं।
माओ का मानना था कक सशस्र क्रांनत क
े बबना न तो सवदहािा न लोग औि न ही कम्युननस्ट पाटी की कोई न्स्थनत
है। इसक
े बबना क्रांनत में त्तवजय समय नहीं है। पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् माओ का मानना था कक साााज्यवाद को जब तक
उिाड़कि फ
ें क नहीं ददया जाता, सामततवादी जमीदािों क
े अत्याचािों का अतत भी संभव नहीं है। इसी तिह
साााज्यवादी शासन का अतत किने क
े मलए शन्क्तशाली सैननक टुकड़ड़यों का गठन तब तक नहीं ककया जा सकता,
जब तक ककसानों को सामततवादी-जमीदाि वगद से संघिद क
े मलए तैयाि नहीं कि मलया जाता।
इस तिह माओ ने दोनों क्रान्ततयों को ममलाकि अपना जनवादी क्रान्तत का मसद्धातत प्रस्तुत ककया।
माओवादी त्तवचाि जनयुद्ध की भूममका काफी अधधक है। इसक
े मूल में जनवाददता है। माओ का मानना था कक पाटी
क
े क
ै डि व बुद्धधजीवी पहले जन क
े छार बने व बाद में मशक्षक बनें। जनवादी क्रांनत की िणनीनत में इसकी भूममका
प्रमुि है।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ्
माओ ने जनशन्क्त को क्रान्तत का आधाि माना औि कहा कक युद्ध में हधथयािों का अपना महत्व है, पि ये
ननणादयक नहीं है। ननणदय मनुष्यों द्वािा ककया जाता है. जड वस्तुओ ं द्वािा नहीं।
माओ का मानना था कक देहात ही क्रान्ततकािी संघिद में महत्वपूणद भूममका ननभा सकते हैं। उसका त्तवचवास था कक
शहिों को देहात द्वािा ही घेिा जा सकता है, जहां पि साम्यवाद त्तविोधी ताकतों का कब्जा है। माओ की दृन्ष्ट में
कृ िक क्रान्ततकारियों को छापामाि युद्ध का प्रमशक्षण देने की आवचयकता है। ग्रामीण क्षेरों को सामततवाद से मुक्त
किाकि साम्यवाद की स्थापना क
े मलए शहिों, की तिफ बढ़ना माओ की क्रान्तत की त्तवमशष्ट तकनीक
थी।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ्
माओ ने चीनी परिन्स्थनतयों क
े अनुसाि क्रान्तत को एक शाचवत प्रकक्रया बनाया औि सवदहािा वगद की क्रान्तत तक ही
इसे सीममत न किक
े अतय वगों का सहयोग प्राप्त ककया। उसने क्रान्तत क
े मलए चाि गो-कृ िका श्रममका, छोटे बुजुदआ
वगद तथा िाष्रीय पूंजीपनतयों को चुना िाष्रीय पूंजीपनतयों से उसका अमभप्राय ऐसे पूजीपनत वगद से था, जो
समाजवादी क्रान्तत क
े प्रनत सहानुभूनत ििते थे। इन वगों में माओ ने सवादधधक महत्व ककसान वगद को ही ददया।
उसका कहना था कक ननधदन कृ िकों का नेतृत्व अत्यधधक आवचयक है। बबना ननधदन ककसानों क
े कोई क्रान्तत नहीं हो
सकती है। उनका अपमान क्लान्तत का अपमान है। उन पि प्रहाि क्रान्तत पि प्रहाि है।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् माओ की दृन्ष्ट
में सवदहािा वगद में ककसान वगद भी शाममल है। यह सवदहािा वगद ही क्रान्तत की संचालक शन्क्त है।
माक्र्स द्वािा प्रनतपाददत त्तवचािों को आगे लेते हुए पाटी की महिा पि जोि ददया। मार ने स्पष्ट रूप में कहा है कक
साम्यवादी दल क
े बबना क्रांनत संभव नहीं है। माओ ने मलिा जब तक एक ऐसा क्रांनतकािी दल संगदठत न हो जाये,
एक ऐसा दल न्जसका आधाि माक्र्स, लेननन औि स्टामलन क
े क्रांनतकािी मसद्धांत औि शैली पि ििा गया हो,
साााज्यवाद औि उसक
े अनुयानयओ ं को पिान्जत किने क
े मलए मजदूि वगद औि जनता क
े अतय वगों को सही
नेतृत्व देना असंभवपूणद होगा।
इस मसद्धांत को माओ ने चीन में एक व्यावहारिक रूप ददया। उसक
े अनुसाि चीन क
े साम्यवादी दल क
े प्रयत्नों क
े
बबना औि चीन क
े साम्यवाददयों का चीन की जनता का मुख्य सहािा बने बबना चीन कभी भी स्वतंर औि मुन्क्त
अथवा औद्योधगकीकिण औि कृ त्ति क
े आधुननकीकिण की न्स्थनत तक नहीं पहुंच सकता। जनता औि उसक
े शरुओ ं
की माओ क
े द्वािा दी गई परिभािा जनता क
े उन वगों की ओि संक
े त किती है, जो उनका त्तविोध किते हैं। माओो
मसद्धांत रूप से यह भी स्वीकाि किता है कक िाष्र की सेना को साम्यवादी दल क
े ननदेशन में औि एक ऐसे सशस्र
संगठन क
े रूप में न्जसका लक्ष्य क्रांनत क
े िाजनीनतक कायों का पूिा किना है, काम किना किना चादहए। माओ पुस
की गुरिकला प्रणाली या छापामाि युद्ध का समथदक था।
उसने कहा है - जब शरु आगे बढ़ता है, हम पीछे हटते हैं। जब शरु इधि-उधि नघिता है, हम लड़ते हैं। जब शरु थक
जाता है, हम लड़ते हैं औि जब शरु पीछे हटता है, हम पीछा किते हैं। माओ द्वािा बतायी गई इस छापामाि युद्ध
की प्रणाली को नक्सलवाददयों ने प्रयोग ककया।
नक्सलवाद क
े वैचारिक आधाि क
े प्रमुि बबंदु
द्वंद्वात्मक भौनतकवाद
द्वंद्वात्मक भौनतकवाद का मसद्धांत माक्र्स क
े संपूणद धचंतन का क
ें द्र बबंदु है। माक्र्स ने हीगल क
े द्वंद्ववाद को
अपने इस मसद्धांत का आधाि बनाया है। माक्र्स का मानना है कक संसाि में हि प्रगनत द्वंद्वात्मक रूप में हो िही
है। हीगल क
े त्तवचाि तत्व क
े स्थान पि द्वतद्वात्मक रूप में हो िही है। हीगल क
े त्तवचाि तत्व क
े स्थान पि माक्र्स
ने पदाथद तत्व को महत्वपूणद बताया है। माक्र्स क
े अनुसाि जड़ प्रकृ नत या पदाथद ही इस सृन्ष्ट का एकमार मूल
तत्व है जो मसद्धातत जड़ प्रकृ नत या पदाथद में त्तवचवास ििता है, भौनतकवाद कहलाता है। माक्र्स क
े अनुसाि आत्मा
तत्व का कोई अन्स्तत्व नहीं है। इसक
े त्तवपिीत पेड़-पौधे, जीव-जततु मकान आदद वस्तुएं प्रत्यक्ष रूप से देिी जा
सकती है, इसमलए ये सत्य है। ये भौनतक वस्तुएं ही त्तवचािों का आधाि होती हैं। माक्र्स का मानना है कक इस जगत
का त्तवकास ककसी अप्राकृ नतक शन्क्त क
े अधीन न होकि, उसकी अन्र्तमयी त्तवकासशील प्रकृ नत का ही परिणाम है।
द्वंदात्मक भौनतकवाद को समझने क
े मलए दद तयाय को समझना आवचयक है। कोई व्यन्क्त एक बात किता है,
दूसिा उसका त्तविोध किता है। कफि दोनो पिस्पि त्तविोधी बातों से एक तीसिी बात का ननणदय होता है। इस प्रकाि
पिस्पि त्तविोधी बातों से एक तीसिी बात का ननणदय होता है। इस प्रकाि पिस्पि त्तविोधी त्तवचािों से तीसिे त्तवचािों से
तीसिे त्तवचाि या ननणदय पि पहुंचते हैं। उसे ही हृदतयाय या डायलेदटक्स कहते हैं। इस प्रकक्रया का अथद है दो त्तविोधी
त्तवचािों क
े द्वंद से तीसिे स्थान पि पहुंचना।।
प्रकृ नत तंर है, न्जसक
े पिस्पि संबंध हैं। वह परिवतदनशील है, त्तवकासोतमुि है. तथा हि िोज घटने वाली नई घटनाओ ं
का प्रवाह है। त्तवकास क
े क्रम में जो परिवतदन होते हैं, वे यथाथद होते हैं, वे भूतकालीन घटनाओ ं का धचरण मार नहीं
होते। त्तवचव में नवीन घटनाएं, नवीन वस्तुएं हमेशा उत्पतन होती िहती है। इस प्रकाि द्वद तयाय त्तवकास की प्रकक्रया
को बताता है पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् माक्र्स क
े इस मसद्धातत को समझने क
े मलए इतद्र, भौनतक तथा बाद तीनों शब्दों का
अलग-अलग अथद समझना आवचयक है। (क) द्वतद’ से तात्पयद है-दो त्तविोधी पक्षों का संघिद (िा) भौनतक का अथद
है-जड़ तत्व अथवा अवेतन तत्व ’वाद’ से तात्पयद है-मसद्धातत, त्तवचाि या धािणा। इस प्रकाि सिल अथद में
द्वतद्वात्मक भौनतकवाद का अथद है वह भौनतकवाद, जो द्वतद्ववाद की पद्धनत को स्वीकृ त हो अथादत ् जड़ प्रकृ नतया
पदाथद को सृन्ष्ट का मौमलक तत्व मानने वाला मसद्धातत भौनतकवाद है। इसी तिह इतद्रवादी प्रकक्रया क
े अनुसाि जब
जगत में ननितति परिवतदन होता िहता है। पदाथद की त्तविोधमयी प्रकृ नत क
े कािण इस सृन्ष्ट में ननितति होने वाला
परिवतदन या त्तवकास द्वतद्वात्मक भौनतकवाद कहलाता है।
हीगल ने इतद्रवाद की प्रकक्रया क
े तीन अंग वाद, प्रनतवाद व संवाद (संचलेिण) की बात कही है। हीगल का मानना है
कक प्रत्येक वस्तु क
े त्तवचाि में ही त्तविोधी तत्वों का समावेश होता है। कालातति में जब ये त्तविोधी तत्व वाद पि
हावी हो जाते हैं तो ननिेधात्मक ननिेध क
े ननयम क
े द्वािा प्रनतवाद का जतम होता है। द्वतदात्मक प्रकक्रया का
प्रमुि आधाि यही है। इसमलए हम कह सकते है कक इतद्वात्मकता, त्तविोधी तत्वों का अध्ययन है। त्तवकास त्तविोधी
तत्वों क
े बीच संघिद का परिणाम है। इसी से एक उच्चति वस्तु का जतम होता है। इसी से सभी ऐनतहामसक व
सामान्जक परिवतदन होते हैं। माक्र्स क
े अनुसाि द्वतदात्मक त्तवकास पदाथद या जय प्रकृ नत की पिस्पि त्तविोधमयी
प्रकृ नत क
े कािण होता है। इसमलए उसका भौनतकवाद द्वतद्वात्मक भौनतकवाद है।
द्वतद्वात्मक भौनतकवाद की आधािभूत
मातयताएं माक्र्स क
े द्वतद्वात्मक भौनतकवाद की दो आधािभूत मातयताएं या धािणाएं है। पहला सृन्ष्ट का मूल
तत्व पदाथद है, दूसिा सृन्ष्ट औि उसमें मौजूद मानव समाज का त्तवकास द्वतद्वात्मक पद्धनत होता है।
माक्र्स का यह मत िहा है कक यह सािा संसाि पदाथद पि ही आधारित है अथादत
इस सृन्ष्ट का स्वभाव पदाथदवादी है। इसमलए त्तवचव क
े त्तवमभतन रूप गनतशील पदाथद क
े त्तवकास क
े त्तवमभतन रूपों क
े
प्रतीक है औि यह त्तवकास द्वतद्वात्मिक पद्धनत द्वािा होता है। इसमलए आन्त्मक त्तवकास से भौनतक त्तवकास
अधधक महत्वपूणद है। इस जगत का त्तवकास ककसी वाह्य शन्क्त क
े अधीन न होकि उसकी भीतिी शन्क्त तथा उसक
े
स्वभाव परिवतदन का ही परिणाम है।
माक्र्स की द्वतद्वात्मक प्रकक्रया
द्वंदात्मक प्रकक्रया को माक्र्स तथा एंन्जकस ने अनेक उदाहिणों से समझाया है। उतहोंने गेहू का उदाहिण ददया है।
उनका कहना है कक कक गेहूं का दाना एक याद है। भूमम में बो देने पि यह गलकि या नष्ट होकि अंक
ु रित होता है
औि एक पौधे का रूप ले लेता है। यह पौधा द्वतद्वात्मक त्तवकास में प्रनतवाद है। इस प्रकक्रया का तीसिा चिण पौधे
में बाली का आना, उसका पकना तथा उसमें दाने बनकि पौधे का सूि जाना है। इस प्रकक्रया को संवाद कहा जा
सकता है। यह वाद औि प्रनतवाद दोनों से श्रेष्ठ है। उतहोंने औि उदाहिण देते हुए स्पष्ट ककया कक पूंजीवाद याद है
सवदहािा वगद क
े अधधनायकवाद को प्रनतवाद तथा साम्यवाद संवाद कहा जा सकता है। यहां पूंजीवाद संघिद क
े बाद
त्तवकमसत रूप में पौधा रूपी अधधनायकवाद की स्थापना होगी, जो अतत में साम्यवादी व्यवस्था क
े रूप में पहुंचकि
आदशद व्यवस्था (संवाद) का रूप ले लेगा।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् माक्र्स का स्पष्ट मानना था कक द्वतद्ववाद की यह प्रकक्रया
ननितति चलती िहती है। कालातति में याद, प्रनतवाद तथा प्रनतवाद संवाद बनकि वात्तपस पूवदवत न्स्थनत (वाद) में आ
जाते हैं। जैसे गेहूं क
े दाने से पौधा बनना, पौधे से कफि दाने बनना, प्रत्येक वस्तु की त्तविोधमयी प्रवृत्ति ही
द्वतद्वात्मक त्तवकास का आधाि होती है। इससे ही नए त्तवचाि (संवाद) का जतम होता है। इस प्रकक्रया में पहले
ककसी वस्तु का ननिेध होता है औि बाद में ननिेध का ननिेध होता है औि एक उच्चति वस्तु अन्स्तत्व में आ जाती
है।
द्वतद्वात्मक भौनतकवाद की त्तवशेिताएं
माक्र्स ने द्वतद्वात्मक भौनतकवाद की क
ु छ त्तवशेिताए स्पष्ट की है। आधगक एकता - माक्र्स का मानना है कक इस
भौनतक जगत में समस्त वस्तुएं व घटनाएं एक-दूसिे से सम्बन्तधत है। इसका कािण इस संसाि का भौनतक होना
है। यहां पदाथद का अन्स्तत्व त्तवचाि से पहले है। संसाि में सभी पदाथों में पािस्परिक ननभदिता का गुण पाया जाता
है। इसमलए अवचय ही सभी पदाथद एक-दूसिे को प्रभात्तवत भी किते है औि उनमें आंधगक एकता भी है। माक्र्स का
मानना है कक एक घटना को समझे बबना दूसिी घटना का यथाथद रूप नहीं समझा जा सकता है।
परिवतदनशीलता माक्र्स यह मानता है कक आधथदक शन्क्तयां संसाि क
े समस्त कक्रया-कलापों का आधाि होती है।
इनका सामान्जक व िाजनीनतक त्तवकास की प्रकक्रया पि भी गहिा प्रभाव िहता है। उनका मानना है कक ये आधथदक
शन्क्तयां स्वयं भी परिवतदनशील होती हैं औि सामान्जक त्तवकास की प्रकक्रया को भी परिवनत दत किती है।
गनतशीलता- कालद माक्र्स का मानना है कक प्रकृ नत में पाया जाने वाला प्रत्येक पदाथद गनतशील है। उनका मानना है
कक जो आज है, कल नहीं था, जो कल था यह आज नहीं है औि जो आज है वह कल नहीं होगा। गनतशीलता का
यह मसद्धातत इस जड़ प्रकृ नत में ननितति कायद किता है औि नई-नई वस्तुओ ं या पदाथों का ननमादण किता है।
परिमाणात्मक एवं गुणात्मक परिवतदन माक्र्स का मानना है कक प्रकृ नत में परिवतदन एवं त्तवकास साधािण िीनत से
क
े वल परिमाणात्मक ही नहीं होते, बन्कक गुणात्मक होते हैं। ये परिवतदन क्रान्ततकािी तिीक
े से होते है। पुिाने पदाथद
नष्ट होकि नए रूप में बदल जाते हैं औि पुिानी वस्तुओ ं में परिमाणात्मक परिवतदन त्तवशेि बबतदु पि आकि
गुणात्मक परिवतदन का रूप ले लेते हैं।
संघिद- माक्र्स का मानना है कक प्रत्येक वस्तु में संघिद या प्रनतिोध का गुण भी पाया जाता है। यह त्तविोध
नकािात्मक व सकािात्मक दोनों होता है। जगत क
े त्तवकास का आधाि यही संघिद है। संघिद क
े माध्यम से ही
त्तविोधी पदाथों में आपसी टकिाव होकि नए पदाथद को जतम देता है।
ऐनतहामसक भौनतकवाद
द्वंद्वात्मक भौनतकवाद को स्पष्ट किने क
े मलए कालद माक्र्स ने इनतहास की भौनतकवादी व्यवस्था प्रस्तुत की। इसी
को माक्र्स का ऐनतहामसक भौनतकवाद कहा जाता है। इनतहास से संबंधधत अपने पूवदवती त्तवचािकों से कालद माक्र्स ने
असहमनत व्यक्त की। उतहोंने असहमत होते हुए बताया कक आज तक जो इनतहास मलिा गया है वह क
े वल िाजा-
महािाजाओ ं तथा क
ु छ त्तवशेि तािीिों का त्तवविण है। त्तवचव क
े जो इनतहासकाि हैं, उतहोंने आम लोगों क
े इनतहास की
चचाद नहीं की है। उतहोंने बताया कक जब तक हम जनसाधािण क
े इनतहास को समझ नहीं लेते, तब तक सामान्जक
त्तवकास की प्रकक्रया को समझा नहीं जा सकता। िाजा-महािाजाओ ं का इनतहास, उनक
े उत्थान-पतन व क
ु छ त्तवशेि
तािीिों क
े त्तवविण से संपूणद समाज क
े परिवतदन की धािा को समझना संभव नहीं है।
कालद माक्र्स ने साम्यवादी घोिणापर नामक अपनी प्रमसद्ध पुस्तक में कालद माक्र्स, ने इनतहास की व्याख्या
भौनतकतावादी आधाि पि प्रस्तुत की। कालद माक्र्स ने इस पुस्तक क
े मुिपृष्ठ पि अपने त्तवचािों का साि प्रस्तुत
किते हुए मलिा कक दुननया का इनतहास, वगद संघिद का इनतहास है
वगद संघिद क
े फलस्वरूप ही समाज में आधथदक परिवतदन बहुत तेजी से होता है, ऐसी न्स्थनत में समाज में िाजनैनतक
परिवतदन तेजी से होने लगते हैं। उतहोंने मलिा कक ककसानों व मजदूिों में अपने अधधकािों क
े प्रनत चेतना व
जागरूकता उत्पतन होने लगती है। यह इसमलए होता है कक उतहें इस बात का पता चलता है कक वस्तुओ ं क
े
उत्पादन में उनका अंशदान सबसे अधधक है। अतः ककसान एवं मजदूि अपने अधधकािों क
े मलए पूंजीपनतयों से संघिद
किने लगते हैं। उनका यह संघिद तब जािी िहता है जब तक ये अपने अधधकािों पि पूणद अधधकाि प्राप्त नहीं कि
लेते।
माक्र्स ने कहा कक मजदूि वगद एवं पूंजीपनतवगद में संघिद अवचयमाथी है। मानव समाज में परिवतदन आवचयक
ननयमानुसाि होता है। मजदूिों की न्जस मारा में शन्क्त में बढ़ोतिी होती है. उसी मारा में पूंजीपनत कमजोि होता
जाता है औि अंत में त्तवनष्ट भी हो सकते हैं। पूंजीपनतयों क
े त्तवनाश होने पि समाज में समाजवादी त्तवचािधािा
आसानी से त्तवकमसत होना प्रािंभ किती है। इससे मजदूि वगद समाज को अपने काबू में लाने में सफल होता है।
माक्र्स इस ननष्किद पि पहुंचे कक मानव इनतहास का त्तवकास समाज में वगद संघिद क
े कािण होता है. अतः मानव
इनतहास शनै-शनै समाजवाद की ओि अग्रसि हो िहा है।
भोजन, पहनने क
े मलए कपड़ा व िहने क
े मलए मकान मानव की मूलभूत आवचयकताएं हैं। इन चीजों की उपयोधगता
प्रािंमभक मानव से आज तक एक सी है। इनका उत्पादन से मनुष्य क
े सामान्जक परिवतदन में हमेशा से ही बड़ा
हाथ िहा है। उत्पादन शन्क्तयां एक ओि बढ़ती गई मशकाि से कृ त्ति, कृ त्ति से मशकप, मशकप से व्यापाि, व्यापाि से
काििाने आदद होते चले गये। इस कािण समाज में परिवतदन आया औि हि सीढ़ी पि समाज में पूवद से चली आयी
व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा होने लगी। उत्पादन शन्क्तयों क
े बढ़ोतिी क
े साथ-साथ व्यन्क्तयों क
े मलए नया संगठन
जरूिी है, क्योंकक पुिानी व्यवस्था लगाताि नहीं चल सकती।
लोगों की नई आवचयकताओ ं की चीजें पहले उत्पादन या आधथदक क्षेर में होती हैं, उसी क
े समाज में सामान्जक-
िाजनीनतक ढांचे परिवतदन आवचयक हैं। इसका मतलब यह है कक कानून, आचाि आदद सभी क
े मानव तथा समाज
क
े मानमसक भावों का यह परिवतदन इसमलए कक इसक
े बबना नई उत्पतन सामान्जक समस्याओ ं का हल नहीं ककया
जा सकता। उक्त बातें समाज की प्रािंमभक अवस्थाओ ं में स्पष्ट ददिाई पड़ती है। माक्र्स ने अपने िाजनीनतक
अथदशास्र की आलोचना में मलिा है अपने त्तवकास की एक िास अवस्था में समाज क
े भीति उत्पादन की मौमलक
शन्क्तयों की उत्पादन की ममन्ककयत क
े उन संबंधों में टकि हो उठती है, न्जनक
े अंदि िह कि उत्पादन शन्क्तयां
अब तक काम कि िही थी। जहां पहले ये संबंध उत्पादन शन्क्तयों क
े त्तवकास का रूप थे, वहीं अब उनक
े मलए
बेड़ड़यां बन जाती है। आधथदक नीव क
े परिवतदन क
े साथ-साथ थोड़ा या ज्यादा सािा ऊपिी ढांचा तेजी क
े साथ बदल
जाता है।
इनतहास की भौनतकतावादी व्याख्या प्रस्तुत किते हुए माक्र्स ने समाज क
े संपूणद इनतहास को त्तवमभतन युगों में
त्तवभान्जत ककया। इन सभी में उत्पादन क
े साधनों तथा उत्पादन क
े संबंधों में पाये जाने वाले अततत्तवदिोधों क
े साथ-
साथ माक्र्स ने त्तवमभतन युगों क
े बीच पाये जाने वाले इंद की दशा को भी स्पष्ट रूप से िेिांककत ककया।
सामान्जक त्तवकास से संबंधधत त्तवमभतन युग उसमें भौनतक दशाओ ं क
े बीच होने वाले इंद ( अथादत बाद, प्रनतवाद तथा
संचलेिण ) का ही परिणाम िहे हैं। माक्र्स द्वािा बताये गये त्तवमभतन युगों की भौनतक त्तवशेिताओ ं तथा उससे
संबंधधत हद की प्रकक्रया को ननम्नोक्त प्रकाि क
े भागों में बांट कि समझा जा सकता है।
आददम साम्यवादी युग
माक्र्स क
े अनुसाि आददम साम्यवाद मानव समाज की प्रािंमभक अवस्था है। इस प्रािंमभक युग में मनुष्य जंगलों में
िहता था तथा पूिी तिह से जंगलों पि ही आधश्रत िहता था। उसकी सुिक्षा क
े मलए उसक
े पास ककसी प्रकाि क
े
हधथयाि या उपकिण नहीं थे। माक्र्स क
े अनुसाि आददम साम्यवाद क
े इस युग में व्यन्क्तगत संपत्ति नहीं होती थी।
यह समाज वगद त्तवहीन समाज होता था। इस समाज में न कोई व्यन्क्त अमीि था औि न ही कोई व्यन्क्त गिीब
था। इसी गुग में आवचयकता क
े अनुसाि हधथयािों का ननमादण ककया गया तथा जंगली जानविों क
े मशकाि ककया
जाने लगा। इसक
े बाद धीिे-धीिे हधथयािों द्वािा शन्क्तशाली लोगों ने कमजोि लोगों का शोिण किना शुरू कि
ददया। इस आधाि पि कालद माक्र्स ने मलिा शोिण क
े क्षेर में हधथयाि मानव की पहली पूंजी हैं। इस प्रकाि माक्र्स
ने स्पष्ट किने का प्रयास ककया कक आददम साम्यवादी युग क
े अंनतम चिण में जब मनुष्य उत्पादन को साधनों की
शन्क्त का क
े तद्रीयकिण हो गया, तब इसका प्रनतवाद उत्पतन होने लगा। आददम साम्यवाद क
े इस प्रनतवाद को
माक्र्स ने दास युग कहा।
दास युग
कालद माक्र्स क
े अनुसाि आददम साम्यवादी युग में जह व्यन्क्त ने पशुओ ं को मािने क
े स्थान पि उतहें पाल कि
ििाना शुरू ककया, तभी से व्यन्क्त संपत्ति का प्रादुभादव हुआ। पशुपालन व िेती क
े मलए मानव जब घुमंतू जीवन को
त्याग कि एक क्षेर में स्थायी रूप से िहने लगा, तब उत्पादन क
े साधनों पि होने वाले परिवतदनों क
े आधाि पि
शन्क्तशाली लोगों ने अतय लोगों को दास बनाना शुरू कि ददया। इसका उद्देचय पशुपालन तथा िेती क
े मलए
अधधक से अधधक लोगों को काम पि लगाना था। दास युग की इस न्स्थनत में क
ु छ व्यन्क्तयों क
े पास ही उत्पादन
क
े साधनों का स्वाममत्व क
ें दद्रत होने लगा। दास युग की त्तवशेिताओ ं क
े अनुरूप ही उस समय की सामान्जक संिचना
में परिवतदन होना शुरू हुआ। धीिे-धीिे संपूणद समाज में दास प्रथा का प्रचलन बढ़ना प्रािंभ हुआ। उस समय सम्पूणद
समाज दो वगों में यानी मामलकों व उनक
े दासों में त्तवभान्जत हो गया। मामलको द्वािा दासों का भिपूि शोिण ककये
जाने लगा। दासों का इतना शोिण होने लगा कक दासों को वस्तुओ ं की तिह ििीदा व बेचा जाने लगा। न्जस
व्यन्क्त क
े पास न्जतने अधधक दास होते थे. समाज में उसकी उतनी प्रनतष्ठा होती थी तथा उसे समाज में उतना
धनी समझा जाता था। माक्र्स का कथन है कक दास युग का
आदुभादव त्तवचव क
े अनेक समाजों में एक साथ हुआ एवं दासों को पशुओ ं क
े समान ििीदे व बेचे जाने की दशा भी
त्तवमभतन समाजों में लगभग एक ही प्रकाि की थी। न्जस समय दास युग चिम पि था, उस समय क
ु छ स्वाममयों क
े
पास दास-दामसयों की संख्या हजािों तक पहुंच गई। माक्र्स क
े अनुसाि दास युग की अंनतम अवस्था में ही कृ त्ति का
त्तवस्ताि होने लगा। इसक
े बाद धीिे-धीिे समाज में उत्पादनों क
े साधनों में बाद धीिे-धीिे समाज में उत्पादनों क
े
साधनों में परिवतदन की प्रकक्रया प्रािंभ होने लगी औि यह ददिने लगी। इसक
े बाद कृ त्ति का त्तवस्ताि हुआ। कृ त्ति का
त्तवस्ताि होने क
े साथ-साथ सामंतवाद का प्रादुभादव हुआ।
सामंतवादी युग
कालद माक्र्स का कहना है कक आददम साम्यवाद तथा दास युग क
े बीच उत्पतन होने वाले अततत्तवदिोधों क
े संचलेिण
अथवा परिणाम क
े रूप में सामंतवाद का जतम हुआ। पहला वगद जमींदािों का था, जबकक दूसिा वगद अद्दधदास
ककसानों का था। सामंतवादी युग क
े ककसानों को माक्र्स ने अधद-दास इसमलए कहा, क्योंकक उनका जीवन पूणद रूप से
स्वतंर नहीं था। यह सच है कक सामतवादी युग में ककसानों को दासों की तिह ििीदा या बेचा नहीं जाता था, लेककन
यह ककसान जमीदािों की शन्क्त व इच्छाओ ं क
े पूणद रूप से अधीन थे। उत्पादन क
े साधनों में होने वाले इस
परिवतदन क
े कािण संपूणद समाज का ढांचा बदलने लगा। कृ त्ति पि आधारित अथदव्यवस्था में धमद परिवाि, नैनतकता,
आदशद ननयमों तथा अतय सांस्कृ नतक संस्थाओ ं क
े रूप में बदलने लगा। दास युग में मामलक द्वािा अपने दासों से
काम लेने पि उतहें जीत्तवत िहने लायक भोजन ददया जाता था। लेककन सामंतवादी व्यवस्था में ककसानों को जमीन
पि िेती किने क
े एवज में जमीदािों को लगान देना आवचयक होता था। सूिा, बाढ़ आदद होने पि भी ककसानों को
जमींदािों को लगान प्रदान किना अननवायद होता था। इसी मलहाज से सामतवादी युग में ककसानों की न्स्थनत दासो से
काफी अच्छी नहीं थी।
सामंतवाद क
े प्रािंभ क
े बाद समाज में धीिे-धीिे आददम साम्यवाद की न्स्थनत समाप्त होने लगी औि कफि समाज में
पूंजीवाद का उदभव हुआ। दूसिे शब्दों में यह कहा जा सकता है कक सामतवाद क
े युग में दास युग तथा सामंतवाद
ने क्रमशः वाद औि प्रनतवाद का रूप ले मलया, जबकक इसका संचलेिण पूंजीवाद क
े रूप में हमािे सामने आया। स्पष्ट
है कक दास युग व सामंतवाद क
े बीच चलने वाले द्वंद्व क
े परिणामस्वरूप भौनतक साधनों में जो परिवतदन आया,
उसी क
े आधाि पि पूंजीवादी युग का प्रािंभ हुआ।
पूंजीवादी युग
उत्पादन क
े साधनों क
े रूप में जब बड़ी-बड़ी मशीनों का उपयोग ककया जाने लगा, तभी से पूंजीवादी युग का प्रािंभ
होने लगा। कालद माक्र्स क
े अनुसाि इस युग में उत्पादन क
े साधनों का स्वाममत्य समाज क
े पूंजीपनत वगद क
े हाथ
में आ गया। इसक
े फलस्वरूप समाज पुनः दो वगों में त्तवभान्जत हो गया। पहला वगद न्जसका पूंजी पि अधधकाि था
तथा दूसिा यह वगद जो पूंजीपनतयों क
े हाथों अपना श्रम बेचने क
े मलए बाध्य था। माक्र्स ने पहले वगद को बुजुदआ व
दूसिे वगद क
े सवदहािा वगद क
े नाम से संबोधधत ककया। उद्योगों की स्थापना क
े कािण सामंतवादी युग क
े जमींदािों
में से न्जन लोगों ने औद्योधगक उत्पादन पि एकाधधकाि कि मलया. उनसे बुजुदआ वगद की उत्पत्ति हुई। वैसे ही दास
जीवन से मुक्त होकि या कृ त्ति को छोड़कि जो लोग उद्योगों में श्रममकों क
े रूप में काम किने लगे, ये सवदहािा वगद
का दहस्सा बन गये कालद माक्र्स क
े अनुसाि सवदहािा वगद वह वगद है न्जसक
े पास क
ु छ भी नहीं है औि वह सब क
ु छ
हाि चुका है। माक्र्स का कहना था कक दास अथवा ककसान क
े रूप में अपनी शािीरिक शन्क्त या जमीन पि की
जाने वाली िेती क
े कािण उन लोगों क
े जीवन का क
ु छ महत्व आवचयक था। दास औि ककसान एक ऐसी
अथदव्यवस्था से जुड़े हुए थे, जहां उनका जीवन क
ु छ सीमा तक सुिक्षक्षत भी था लेककन वे श्रममक जो दासता या
ककसानी से मुक्त हो कि उद्योगों में अपना श्रम बेचने लगे, वे अपना सब क
ु छ हाि गये। इसमलए माक्र्स ने इस
श्रममक वगद को सवदहािा वगद का नाम ददया।
पूंजीवादी युग में पूजीपनत वगद ने अपने हाथों में पूजी का अधधक से अधधक क
े तद्रीयकिण किना प्रािंभ कि ददया।
इसक
े परिणामस्वरूप समाज में जो प्रमुि दशाएं उत्पतन हुई, उतहें माक्र्स ने दरिद्रीकिण, रुवीकिण तथा अलगाव का
नाम ददया। दरिद्रीकिण आम लोगों में पायी जाने वाली यह व्यापक ननधदनता है, जो सब क
ु छ जाने क
े फलस्वरूप
पैदा हुई। कालद माक्र्स ने स्पष्ट रूप से कहा कक जब समाज में बुजुदआ व सवदहािा जैसे दो वगद ही शेि िह गये, तो
स्वयं पूजीपनतयों की आपसी प्रनतयोधगता क
े कािण बुजुदआ लोगों की संख्या भी ननिंति कम होती चली गई। दूसिी
ओि सवदहािा वगद लोगों संख्या में ददन-प्रनतददन वृद्धध होने लगी।
वगद संघिद
वगद संघिद की धािणा माक्र्स की धचंतन की एक महत्वपूणद धािणा है। माक्र्स ने कहा कक इनतहास की प्रेिक
शन्क्त भौनतक है। उनका मानना है कक उत्पादन प्रकक्रया क
े मानव सम्बतध इनतहास का ननमादण किते हैं।
उनका मानना है कक उत्पादन प्रकक्रया धनी औि ननधदन, हेकस औि हैव नोट्स दो वगों को जतम देती है।
प्रत्येक वगद एक-दूसिे से संघिद किता िहता है। यही समाज की प्रगनत का आधाि है। इस तिह माक्र्स का वगद-संघिद
का मसद्धातत जतम लेता है। उसकी यह धािणा इनतहास की भौनतकवादी व्याख्या तथा अनतरिक्त मूकय क
े
मसद्धातत पि आधारित है। उसने ऐनतहामसक भौनतकवाद की सैद्धान्ततक प्रस्थापनाओ ं क
े आधाि पि साम्यवादी
घोिणापर में कहा है कक आज तक का सामान्जक जीवन का इनतहास वगद संघिद का इनतहास है
माक्र्स ने अपने प्रमसद्ध ग्रतथ साम्यवादी घोिणापर में वगद शब्द का प्रयोग त्तवमशष्ट अथों में ककया है। माक्र्स क
े
अनुसाि, पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत्व्यन्क्तयों का वह समूह वगद है, जो अपने साधािण दहतों की पूनत द हेतु उत्पादन की प्रकक्रया से
जुड़ा हुआ है। अथादत ् न्जस समूह क
े आधथदक दहत एक से होते हैं. उसको वगद कहा जाता है।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ्
माक्र्स का कहना है कक समाज में सदैव ही दो वगद िहे है जैसे स्वामी दास, ककसान- जमीदाि पूंजीपनत श्रममक संघिद
को परिभात्तित किते हुए माक्र्स ने कहा है कक संघिद का अथद क
े वल लड़ाई नहीं है, बन्कक इसका व्यापक अथद है-िोि,
असंतोि तथा आंमशक असहयोग। जब यह कहा जाता है कक वगों में अनाददकाल से सदैव संघिद होता िहा है तो
इसका अमभप्राय यह होता है कक सामातय रूप से असततोि औि िोि की भावना धीिे-धीिे शान्ततपूणद िीनत से
सुलगती िहती है औि क
ु छ ही अवसिों पि यह भीिण ज्वाला का रूप ग्रहण कि लेती है।
माक्र्स का मानना था कक त्तवचव इनतहास आधथदक औि िाजनीनतक शन्क्त क
े मलए त्तविोधी वगों में संघिों की श्रृंिला
है। प्रत्येक काल औि प्रत्येक देश में आधथदक औि िाजनीनतक सिा की प्रान्प्त क
े मलए ककए गए संघिद इनतहास का
अंग बन गए हैं। समाज में युगों से दो वगों का अन्स्तत्व िहा है औि उनमें संघिद भी ननितति होता िहा है। प्रत्येक
वगद अपने दहतों की पूनत द क
े मलए संघिद क
े उपाय पि ही आधश्रत िहा है।
माक्र्स ने वगद-संघिद क
े मसद्धातत को ऐनतहामसक आधाि पि प्रमाखणत किने क
े मलए, आदम युग से आज तक मानव
सभ्यता क
े त्तवकास पि नजि डाली है। माक्र्स ने आददम युग, दास युग, सामंतवादी युग पूंजीवादी युग की चचाद की
है। उतहोंने कहा है कक हि समय त्तवमभतन वगों में संघिद हुआ है।
अनतरिक्त मूकय पि पूंजीपनतयों क
े आधधक्य क
े मामले में माक्र्स का कहना है कक पूंजीवादी व्यवस्था में उत्पादन
का उद्देचय व्यन्क्तगत लाभ कमाना होता है। इसमलए अनतरिक्त मूकय को पूंजीपनत श्रममकों को न देकि अपने पास
िि लेते हैं। जबकक तयाय मसद्धातत की दृन्ष्ट से इस पि श्रममक का हक़ बनता है। यह अनतरिक्त मूकय वह मूकय
है, जो श्रममक द्वािा उत्पाददत माल की वास्तत्तवक कीमत औि उस वस्तु की बाजाि कीमत क
े मूकय का अतति होता
है। पूंजीपनत इस अनतरिक्त मूकय को अपनी जेब में िि लेता है। इससे श्रममकों का शोिण होता है। माक्र्स ने
उपिोक्त कािणों का उकलेि कि वगद संघिद क
े दौिान पूंजीवाद का िात्मा होने की भत्तवष्यवाणी की है।
सवदहािा की क्रांनत
माक्र्सवादी शब्दावली में पूंजीवाद क
े अंतगदत वह वगद जो सामान्जक उत्पादन क
े प्रमुि साधनों पि अपना स्वाममत्व
औि ननयंरण स्थात्तपत कि लेता है, उसे बुजुदआ वगद कहते हैं। यह वगद पून्जपनत वगद का पयादय है।
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  • 1. अध्याय-1 प्रस्तावना- नक्सलवाद साम्यवादी क्रान्ततकारियों क े उस आतदोलन का अनौपचारिक नाम है जो भाितीय कम्युननस्ट आतदोलन क े फलस्वरूप उत्पतन हुआ। नक्सल शब्द की उत्पत्ति पन्चचम बंगाल क े छोटे से गााँव नक्सलबाड़ी से हुई है जहााँ भाितीय कम्यूननस्ट पाटी क े नेता चारू मजूमदाि औि कानू सातयाल ने 1967 मे सिा क े त्तवरुद्ध एक सशस्र आतदोलन का आिम्भ ककया। मजूमदाि चीन क े कम्यूननस्ट नेता माओत्से तुंग क े बहुत बड़े प्रशंसकों में से थे औि उनका मानना था कक भाितीय श्रममकों एवं ककसानों की दुददशा क े मलये सिकािी नीनतयााँ उििदायी हैं न्जसक े कािण उच्च वगों का शासन ततर औि फलस्वरुप कृ त्तिततर पि वचदस्व स्थात्तपत हो गया है। इस तयायहीन दमनकािी वचदस्व को क े वल सशस्र क्रान्तत से ही समाप्त ककया जा सकता है। 1967 में नक्सलवाददयों ने कम्युननस्ट क्रान्ततकारियों की एक अखिल भाितीय समतवय सममनत बनाई। इन त्तवद्रोदहयों ने औपचारिक रूप से स्वयं को भाितीय कम्युननस्ट पाटी से अलग कि मलया औि सिकाि क े त्तवरुद्ध भूममगत होकि सशस्र लड़ाई छेड़ दी। 1971 क े आंतरिक त्तवद्रोह (न्जसक े अगुआ सत्यनािायण मसंह थे) औि मजूमदाि की मृत्यु क े बाद यह आंदोलन एकाधधक शािाओ ं में त्तवभक्त होकि कदाधचत अपने लक्ष्य औि त्तवचािधािा से त्तवचमलत हो गया। फिविी 2019 तक, 11 िाज्यों क े 90 न्जले वामपंथी उग्रवाद से प्रभात्तवत हैं। आज कई नक्सली संगठन वैधाननक रूप से स्वीकृ त िाजनीनतक पाटी बन गये हैं औि संसदीय चुनावों में भाग भी लेते है। पिततु बहुत से संगठन अब भी छद्म लड़ाई में लगे हुए हैं। नक्सलवाद क े त्तवचािधािात्मक त्तवचलन की सबसे बड़ी माि आतर प्रदेश, छिीसगढ, उड़ीसा, झाििंड औि बबहाि को झेलनी पड़ िही है। नक्सलवाद नाम का इनतहास उििी पन्चचम बंगाल में एक छोटा सा गांव है नक्सलबाड़ी यह स्थान भाित क े पन्चचम बंगाल में है, लेककन इस स्थान से नेपाल व बांग्लादेश भी ज्यादा दूि नहीं है। इसी छोटे से गांव नक्सलवाड़ी से 1907 में नक्सलवादी आदोलन शुरू हुआ था। इस आंदोलन में स्थानीय ककसान व मजदूि ने इकट्ठा होकि त्तवद्रोह कि ददया था। चारू मजूमजदाि, कानू सातयाल व जंगल साधाल जैसे व्यन्क्त इस आंदोलन का नेतृत्व कि िहे थे। इसी गांव से इस आंदोलन की शुरुआत होने क े कािण इस आदोलन का नाम नक्सलवादी आंदोलन पड़ा। नक्सलवाद क े उदय की पृष्ठभूमम पन्चचम बंगाल समेत पूवी भाित क े िाज्यों में ऐसा प्रचलन में है कक अनेक ककसान अपने िेतों को ऐसे लोगों को िेती किने क े मलए देते हैं, न्जनक े पास अपनी जमीन नहीं होती है। पन्चचम बंगाल क े इस इलाक े में भी न्स्थनत ऐसी ही थी। इस इलाक े में भी िेती किने वाले सामातय ककसानों क े पास जमीन नहीं थी। जमीन का मामलकाना हक ककसी ओि क े पास था। जमीन न्जनक े पास थी वे िेती नहीं किते थे औि सामातय ककसानों को ये िोती किने क े मलए देते थे। जमीन में िेती किने क े बाद जो उपज प्राप्त होती थी, उससे ननन्चचत दहस्सा जमीन मामलकों को देना होता था। ककसी औि की जमीन पि िेती किने वाले ककसानों को स्थानीय भािा में भाग ककसान यानी शेयि क्रोपि कहा जाता है। 3 माचद, 1967 को तीन भाग ककसान लोपा ककसान, सांगु ककसान व िनतया ककसान क े अलावा माक्र्सवादी कम्युननस्ट पाटी (माकपा) क े 150 से अधधक समथदक हाथों में लाठी व धनुि-तीि व पाटी का झंडा मलए िेतों में पहुंचे। ये लोग
  • 2. इन तीन ककसानों द्वािा िेती ककये गये िेतों से फसल काट कि ले गये। जमीन मामलक को ननधादरित दहस्सा नहीं ददया गया। नक्सलवाड़ी की इस छोटी सी घटना ने भाित में कम्युननस्ट पाटी क े इनतहास को नया मोड़ ददया। इसक े बाद पन्चचम बंगाल क े इन ग्रामीण इलाकों में तीन थाने स्थात्तपत ककये गये। इस नक्सलवादी आंदोलन का नेतृत्व कि िहे कानू सातयाल का मानना था कक यह सशस्र आदोलन जमीन क े मलए नहीं, बन्कक सिा क े मलए है? पन्चचम बंगाल क े नक्सलवाड़ी से शुरू हुआ आदोलन धीिे-धीिे िाष्रीय व अंतििाष्रीय सुखिदयां बटोिने लगा। पीककं ग ने इस आंदोलन की सिाहना की औि इसे माओ से तुंग क े मागददशदन में भाित क े लोगों द्वािा शुरू ककया गया क्रांनतकािी संघिद बताया। पीककं ग ने आशा व्यक्त की कक यह आंदोलन पूिे भाित में आग की तिह फ ै लेगा। पीककं ग की सिाहना क े बाद इस आंदोलन को अंतििाष्रीय महत्व ममलने लगा। नक्सलवाद पि गनीि शोध किने वाले भाितीय पुमलस सेवा क े वरिष्ठ अधधकािी प्रकाश मसंह का मानना है कक आंदोलन को शुरू किने क े मलए नक्सलवाडी का चयन काफी योजनापूवदक ककया गया था। नक्सलवाड़ी से चीन भी बहुत दूि नहीं है तथा नेपाल व पूवी पाककस्तान ( आज का बांग्लादेश) भी पास में ही हैं। ऐसे में पुमलस को चकमा देकि उनसे बचने क े मलए नेपाल व पूवी पाककस्तान का इस्तेमाल ककया जा सकता है।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् नक्सलवाड़ी में सिकाि व व्यवस्था क े खिलाफ जो यह आंदोलन शुरू हुआ. वह छोटे पैमाने पि हुआ था। पहला आंदोलन लगभग 52 ददनों तक चला, लेककन इस आंदोलन का देश क े ककसान आंदोलन पि गहिा व दूिगामी परिणाम हुआ न्जस समय यह आंदोलन हुआ, तब नक्सलवाड़ी की क ु ल जनसंख्या 126,719 थी। इस जनसंख्या में जनजातीय लोग भी थे। इसमें संथाल, मुंडा, ओिाव, िाजवशी जनजानत क े लोग शाममल थे। इनमें से काफी अधधक लोग बबहाि व वतदमान क े झाििंड क े संथाल पिगना न्जले से जाकि वहां बस गये थे। नक्सलवाड़ी त्तवद्रोह की शुरुआत व इसक े बाद की न्स्थनत को ठीक ढंग से समझने क े मलए वहां क े लोगों की सामान्जक व आधथदक न्स्थनत को समझना जरूिी है। 1961 की जनगणना रिपोटद क े अनुसाि नक्सलवाडी, िाइिबाडी एवं फानमसंदेवा क े जनसंख्या में से 64.5 प्रनतशत यानी 5.77.727 लोग अनुसूधचत जानत व जनजानत वगद क े थे। इन वगों क े लोग वहां क े कृ त्ति क्षेर क े मजदूि व चाय बगानों क े मजदूि क े रूप में कायद किते थे। सािणी नं.- 1 नक्सलवादी इलाक े में काम कि िहे लोगों क े जीत्तवकोपाजदन का पैटनद िेती (प्रनतशत में)कृ त्ति क्षेर में मजदूिी (प्रनतशम में) िादान व अतय कायद (प्रनतशत में) नक्सलवाड़ी 37.5 4.6 40.0 िाइिबाड़ी 54.4 6.1 30.8 फानमसदेवा 67.7 5.4 15.2 इस सािणी से स्पष्ट होता है कक इस इलाक े में कृ त्ति क्षेर क े कायद किने वाले मजदूिों की संख्या काफी कम थी। लेककन सेंसस-1961 की इस जानकािी में स्पष्ट होता है कक कृ त्ति क्षेर में कायद किने वाले काफी मजदूिों ने मजदूिी क े बजाय िेती किने को अपनी दूसिी प्रमुि आजीत्तवका क े साधन क े रूप में घोत्तित ककया था। सािणी 1.2 (ककसान व कृ त्ति क्षेर में मजदूि)
  • 3. ककसान व दूसिी आजीत्तवका क े मलए कृ त्ति क्षेर क े मजदूिों का अनुपात (प्रनतशत में) कृ त्ति क्षेर का मजदूि व दूसिी आजीत्तवका क े मलए िेती किने वालों का अनुपात (प्रनतशत में) नक्सलवाड़ी 96.4 96.4 96.6 िाइिबाडी 76.5 96.2 फानमसदेवा 92.6 58.2 इस इलाक े क े लोगों क े संबंध में उपिोक्त सािखणयों से स्पष्ट होता है कक सभी ककसानों क े पास जमीन नहीं थी। इस कािण इनमें से अधधकांश ककसान भाग चािी थे। भाग चािी’ का मतलब यह है कक जमीन ककसी औि क े नाम थी। ये लोग िेती किते थे। िेती किने क े बाद कृ त्ति उत्पादों का एक ननन्चचत दहस्सा जमीन क े मामलक को देना पड़ता था। यह इस इलाक े की मूल समस्या थी। यहां यह कहने की आवचयकता नहीं है कक ककसी औि से जमीन लेकि िेती किने वाले भाग चािी लोगों का जमीन मामलकों द्वािा शोिण ककया जा िहा था। यह समस्या इस इलाक े में काफी ददनों से थी। नक्सलवादी आंदोलन की शुरुआत की पृष्ठभूमम को इससे समझा जा सकता है। नक्सलवाडी इलाक े में कम्युननस्ट पाटी द्वािा इस संबंध में जनजागिण कायदक्रम चलाया जा िहा था औि भाग चािी लोगों को संगदठत किने का प्रयास ककया जा िहा था। इस संबंध में पचे व मलफलेट तैयाि कि बांटे जा िहे थे। चारू मजूमदाि, कानू सातयाल व जंगल संथाल जैसे लोगों ने ककसानों क े मलए इस आंदोलन को हाथ में मलया। इस आंदोलन क े सूरधाि चारू मजूमदाि थे। कानू सातयाल ने संगठन को तैयाि ककया, बकक जंगल संथाल ने संथाली लोगों को एकबरत ककया। इन लोगों ने यह प्रचारित ककया कक जमीन मामलकों की जमीन उनसे छीन ली जाएगी। लेककन यदद वे उनकी पाटी की ककसान सभा में शाममल होते है, तो जमीन उतहें ममलेगी। ककसान सभा क े सदस्य क े रूप में 20 पैसे का सदस्यता शुकक ििा गया। इस दौिान जो लोग उसमें शाममल नहीं हो िहे थे उतहें भी जोि- जबिदस्ती शाममल किवाया गया। इस कािण ककसान सभा की सदस्यता में जबिदस्त बढ़ोतिी देिी गई। कानू सातयाल ने इन लोगों को त्तवचवास ददलाया कक पन्चचम बंगाल की यूनाइटेड फ्र ं ट की सिकाि उनक े इस आंदोलन में उनक े खिलाफ ककसी प्रकाि की कािदवाई नहीं किेगी। इस आंदोलन को चीन का भी समथदन ममला। चीन का सिकािी अिबाि पीपुकस डेली ने इस मामले को लेकि 5 जुलाई, 1967 को एक संपादकीय मलिा। इस संपादकीय में अिबाि ने मलिा कक पन्चचम बंगाल क े दान्जदमलंग इलाक े में क्रांनतकािी ककसान क्रांनत क े मलए अग्रसि है। भाितीय कम्युननस्ट पाटी क े एक क्रांनतकािी समूह द्वािा यह आंदोलन शुरू हो चुका है। भाित क े क्रांनतकािी आंदोलन में इस आंदोलन की भूममका काफी अहम होगी। इस आंदोलन क े दौिान संथाल लोगों ने अपने पािंपरिक हधथयाि तीि धनुि क े साथ जमीन मामलकों से जमीनों पि बलपूवदक कब्जा किना प्रािंभ कि ददया। साथ ही इसमें स्वयं िेती किने लगे। इन लोगों ने धान ििाने वाले लोगों क े खिलाफ प्रदशदन किना प्रािंभ कि ददया। क ु छ स्थानों पि तो इन लोगों ने जबिदस्ती धान को लूट मलया औि आपस में बांट मलया औि कम मूकय पि बेचना शुरू ककया। इस दौिान दहंसक झड़पें भी हुई। माचद से मई 1967 तक क ु ल 100 से अधधक दहंसक झड़पे हुई। इसक े अलावा अनेक मामले ऐसे भी थे, न्जतहें रिपोटद नहीं ककया गया। न्जला प्रशासन एक तिह से लाचाि ददि िहा था। न्जला प्रशासन ने िाज्य सिकाि को
  • 4. बता ििा था कक जनजातीय लोग संगदठत होकि पािंपरिक हधथयािों से लेस होकि यह आंदोलन चला िहे हैं। यदद इसमें ककसी की धगिफ्तािी की जाती है या उनक े दठकानों पि छापा मािा जाता है, तो इसकी व्यापक प्रनतकक्रया हो सकती है। न्स्थनत ििाब होती देि पन्चचम बंगाल क े तत्कालीन िाजस्व मंरी हिेकृ ष्ण कोणाि मसमलगुडी पहुंचे औि उतहोंने ककसी भी तिह से कानू सातयाल को बातचीत क े मलए िाजी किाया। सुिना फॉिेस्ट बंगला में दोनों की बैठक हुई। बैठक में तय हुआ कक कानू सातयाल की धगिफ्तािी नहीं होगी। सभी प्रकाि क े गैि कानूनी कायों पि िोक लगायी जाएगी। स्थानीय एजेंमसयां जमीन का त्तवतिण किेगी तथा लोगों क े कमेटी क े सूचना क े आधाि पि अधधक मारा में धान ििाने वाले लोगों क े खिलाफ कािदवाई होगी। इस बैठक में यह भी तय हुआ कक एक ननन्चचत नतधथ को कानू सातयाल व जंगल संथाल आत्मसमपदण किेंगे। इलाक े क े आिक्षी अधीक्षक को पन्चचम बंगाल सिकाि ने ननदेश ददया कक वह क ु छ ननन्चचत मामलों में आिोत्तपयों की सूची तैयाि कि कानू सातयाल को सौंपे लेककन कानू सातयाल को जहां पहुंचना था, वह नहीं आये। आंदोलनकािी अपनी बात से पलट गये औि आंदोलन को जािी ििने की घोिणा की। उधि पन्चचम बंगाल सिकाि ने पुमलस को कािदवाई किने का ननदेश दे ददया। 23 मई, 1967 को स्थानीय थाने क े इंस्पेक्टि सोनम वांगडी क े नेतृत्व में पुमलस की टीम क ु छ लोगों को धगिफ्ताि किने क े मलए एक गांव में पहुंची। इसे देिकि धगिफ्ताि होने वाले लोग नछप गये उतहोंने धनुि व तीि क े साथ पॉन्जशन ले ली। वांगड़ी ने वहां जाकि मदहलाओ ं से बात की तथा उतहें आत्म समपदण किने क े मलए कहा। बातचीत चल ही िही थी, तभी आंदोलनकारियों ने श्री वांगडी को तीि से छलनी कि ददया। वांगडी घटना स्थल पि ही मािे गये। इसी तिह 24 मई को स्थानीय एसडीपीओ पुमलस पाटी क े साथ जा िहे थे, तभी हजािों की संख्या में लोगों ने उतहें घेि मलया। भीड़ से बचने क े मलए एसडीपीओ ने पुमलसकममदयों को फायरिंग क े ननदेश ददये, न्जससे दस लोगों की मौत हो गई। इसमें छह मदहलाएं भी शाममल थीं। इसक े साथ ही नक्सलवाड़ी इलाक े में न्स्थनत ददन-प्रनतददन ििाब होती जा की थी। डक ै ती, हत्या व लूट क े मामले सामने आ िहे थे। 10 जून 1907 को हजािों की संख्या में लोग िाईिबाडी पुमलस थाने क े अधीन एक जमीन मामलक नगेन रूप चैधिी को घि पि हमला कि ददया। उतहोंने वहां से धान, जेविात व अतय बीजों को लूट मलया तथा नगेन िाय चैधिी का अपहिण कि मलया। बाद में श्री चैधिी की उतहोंने हत्या कि दी। कानू सातयाल ने श्री चैधिी की हत्या किने का ननदेश ददया था। श्री चैधिी ने ककसानों क े आंदोलन क े खिलाफ एक समूह तैयाि किने का प्रयास ककया था औि इसी कािण उनकी हत्या की गई। उसी ददन हधथयािबंद लोगों ने नक्सलवाड़ी पुमलस थाना क े अंतगदत बहमान्जनोट गांव क े जयनंदन मसंह क े घि पि भी हमला ककया औि वहां से बंदुक व अतय चीजों को लूट मलया। उधि पन्चचम बंगाल सिकाि ने भी इस आंदोलन को गंभीिता से लेना शुरू ककया। िाज्य क ै बबनेट ने पुमलस कािदवाई का ननदेश दे ददया। 12 जुलाई बाद पुमलस कािदवाई शुरू हुई। पंद्रह सौ से अधधक पुमलसकममदयों ने इसमें भाग मलया। इस कािण पुमलस ने सात सौ से अधधक लोगों को धगिफ्ताि किने में सफलता प्राप्त की। इसक े बाद इस आंदोलन को एक तिह से क ु चल ददया गया।
  • 5. नक्सलवाड़ी क े इस आंदोलन से क्या हामसल हुआ ? कानू सातयाल की इस संबंध में जो रिपोटद है, उसमें बड़े-बड़े दावे ककये गये हैं। इसमें उतहोंने दावा ककया कक नक्सलवाडी आंदोलन ने दस बड़े कायद ककये हैं। ये इस प्रकाि है। (1) भाित में जो सामतवादी व्यवस्था सददयों से चली आ िही थी, उसे इस आंदोलन ने चुनौती दी। (५) गलत तिीक े से बनाये गये दस्तावेजों जला ददया गया। (3) ककसान व जमीन मामलकों क े बीच जो गैि बिाबिी क े समझौते हुए उतहें िह कि ददया गया। (4) जहां-जहां भािी मारा में चावल ििे गये थे, उतहें जब्त कि मलया गया। (5) जमीन मामलकों क े साथ जो गुंडा तत्व थे, उनक े साथ कड़ाई से ननपटा गया। (6) ककसानों क े सशस्र समूह पांिपारिक हधथयािों से लेस थे तथा अत्याधुननक हधथयािों को छीना गया (0) आतंककािी जमीन मामलकों क े खिलाफ िुले में सुनवाई हुई। 6) कानून व्यवस्था को ठीक ििने क े मलए िात को नाइट पाच की व्यवस्था की गई। (७) ककसानों की िाजनीनतक शन्क्त क े मलए क्रांनतकािी कमेदटयों का गठन ककया गया। (10) देश बुजुदआ कानूनों को ननष्प्रभावी कि ददया गया।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् नक्सलवाद की वैचारिक परिभािा नक्सलवाडी से शुरू हुए नक्सलवादी आंदोलन व वतदमान में भाित में चल िहे माओवाद मूल रूप से माक्र्स व माओ से प्रेरित है। भाित में माक्र्स व अतय त्तवचािकों से प्रेरित होकि वामपक्षी पादटदयां बनीं। वे कालांति में लोकतंर का दहस्सा होकि चुनावी िाजनीनत में शाममल हुईं। इन पादटदयों का मानना था कक लोकतंर का दहस्सा होकि जनमत हामसल कि चुनाव में जीतकि सिा पि काबबज होना समय है। उनका यह भी मानना था कक लोकतांबरक प्रकक्रया में चुनाव जीत कि माक्र्स क े त्तवचािों को फलीभूत ककया जा सकता है तथा व्यवस्था परिवतदन ककया जा सकता है। इसी क्रम में भाितीय कम्युननस्ट पाटी बनी। 1962 में चीन द्वािा भाित पि हमला ककये जाने क े पचचात भाितीय कम्युननस्ट पाटी में टूट होने क े कािण माक्र्सवादी कम्युननस्ट पाटी का गठन हुआ। इन पादटदयों ने न क े वल चुनाव में भाग मलया, बन्कक पन्चचम बंगाल जैसे िाज्यों में तो वामपंथी पादटदयां सिा में भागीदाि बनीं। लेककन माक्र्सवाद में त्तवचवास ििने वाले उनक े क ु छ साथी लोकतंर का दहस्सा बनकि लक्ष्य को प्राप्त किना असंभव मानते हैं। वगद संघिद माक्र्सवाद का तयून्क्लयस है। माक्र्सवाद में वगद संघिद क े बबना क्रांनतकािी प्रकक्रया पूिी नहीं हो सकती। अतः बबना वगद संघिद क े व्यवस्था परिवतदन संभव नहीं है। इस तिह क े त्तवचाि याले गुट लोकतांबरक तिीक े से चुनाव में शाममल होने वाले गुट को संशोधनवादी बताते हैं। उनका कहना है कक बबना वगद संघिद क े व्यवस्था परिवतदन संभव नहीं है। इस कािण लोकतांबरक तिीक े से चुनकि सिा में काबबज होने क े बाद भी व्यवस्था परिवतदन संभव नहीं है। इस गुट का मानना था कक व्यवस्था में बदलाव क े मलए वगद संघिद अननवायद शतद है। इस कािण लोकतांबरक तिीक े से सवदहािा की तानाशाही का लक्ष्य हामसल होना संभव नहीं है। माओ का मानना था कक संशोधनवाददता एक बुजुदआ रुझान का त्तवचाि है। यह मतांघता से भी अधधक िातिनाक है। संशोधनवादी क े वल माक्र्सवाद क े प्रनत ददिावटी प्रेम किते हैं। वे भौनतकवाद व द्वंदात्मकवाद का त्तविोध किते हैं, वे लोगों का लोकतांबरक तानाशाही व कम्युननस्ट पाटी की अग्रणी भूममका का त्तविोध किते हैं। संशोधनवादी सामान्जक रूपांतिण की प्रकक्रया को कमजोि किते हैं। नक्सलवाद में माओ व कालद माक्र्स की वैचारिक आधािभूमम
  • 6. नक्सलवादी मूल रूप से माक्र्सवाद व चीन में माओ क े क्रान्तत मसद्धांत से प्रेिणा लेते हैं। माओ क े क्रान्तत मसद्धातत का आधाि माक्र्सवाद-लेनननवाद है। माओ का मानना है कक माक्र्सवाद-लेनननवाद की थ्त्ष्योिी व त्तवचािधािा को लेकि कम्युननस्ट पाटी को त्तवशेि तिह क े तिीक े से कायद किना होगा। मूल रूप से थ्त्ष्योिी व व्यवहाि में सांमजस्य बबठाते हुए आम जनता क े साथ अच्छे संबंध बनाने होंगे। माओ ने सशस्र क्रान्तत को उतना ही महत्व ददया है, जो माक्र्स या लेननन क े समय में था। उसने क्रान्तत क े मसद्धातत को नया व व्यावहारिक रूप ददया। माओ ने क्रान्तत क े दो पक्षों को ममलाकि एक ककया। उसने शन्क्तयों क े त्तवरुद्ध िाष्रवादी क्रान्तत तथा सामंतवादी जमीदािों क े त्तवरुद्ध लोकतान्तरक क्रान्तत को ममलाकि एक ककया है। माओ का मानना था ये दोनों क्रान्ततयां एक-दूसिे पि ननभदि हैं। माओ का मानना था कक सशस्र क्रांनत क े बबना न तो सवदहािा न लोग औि न ही कम्युननस्ट पाटी की कोई न्स्थनत है। इसक े बबना क्रांनत में त्तवजय समय नहीं है। पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् माओ का मानना था कक साााज्यवाद को जब तक उिाड़कि फ ें क नहीं ददया जाता, सामततवादी जमीदािों क े अत्याचािों का अतत भी संभव नहीं है। इसी तिह साााज्यवादी शासन का अतत किने क े मलए शन्क्तशाली सैननक टुकड़ड़यों का गठन तब तक नहीं ककया जा सकता, जब तक ककसानों को सामततवादी-जमीदाि वगद से संघिद क े मलए तैयाि नहीं कि मलया जाता। इस तिह माओ ने दोनों क्रान्ततयों को ममलाकि अपना जनवादी क्रान्तत का मसद्धातत प्रस्तुत ककया। माओवादी त्तवचाि जनयुद्ध की भूममका काफी अधधक है। इसक े मूल में जनवाददता है। माओ का मानना था कक पाटी क े क ै डि व बुद्धधजीवी पहले जन क े छार बने व बाद में मशक्षक बनें। जनवादी क्रांनत की िणनीनत में इसकी भूममका प्रमुि है।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् माओ ने जनशन्क्त को क्रान्तत का आधाि माना औि कहा कक युद्ध में हधथयािों का अपना महत्व है, पि ये ननणादयक नहीं है। ननणदय मनुष्यों द्वािा ककया जाता है. जड वस्तुओ ं द्वािा नहीं। माओ का मानना था कक देहात ही क्रान्ततकािी संघिद में महत्वपूणद भूममका ननभा सकते हैं। उसका त्तवचवास था कक शहिों को देहात द्वािा ही घेिा जा सकता है, जहां पि साम्यवाद त्तविोधी ताकतों का कब्जा है। माओ की दृन्ष्ट में कृ िक क्रान्ततकारियों को छापामाि युद्ध का प्रमशक्षण देने की आवचयकता है। ग्रामीण क्षेरों को सामततवाद से मुक्त किाकि साम्यवाद की स्थापना क े मलए शहिों, की तिफ बढ़ना माओ की क्रान्तत की त्तवमशष्ट तकनीक थी।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् माओ ने चीनी परिन्स्थनतयों क े अनुसाि क्रान्तत को एक शाचवत प्रकक्रया बनाया औि सवदहािा वगद की क्रान्तत तक ही इसे सीममत न किक े अतय वगों का सहयोग प्राप्त ककया। उसने क्रान्तत क े मलए चाि गो-कृ िका श्रममका, छोटे बुजुदआ वगद तथा िाष्रीय पूंजीपनतयों को चुना िाष्रीय पूंजीपनतयों से उसका अमभप्राय ऐसे पूजीपनत वगद से था, जो समाजवादी क्रान्तत क े प्रनत सहानुभूनत ििते थे। इन वगों में माओ ने सवादधधक महत्व ककसान वगद को ही ददया। उसका कहना था कक ननधदन कृ िकों का नेतृत्व अत्यधधक आवचयक है। बबना ननधदन ककसानों क े कोई क्रान्तत नहीं हो सकती है। उनका अपमान क्लान्तत का अपमान है। उन पि प्रहाि क्रान्तत पि प्रहाि है।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् माओ की दृन्ष्ट में सवदहािा वगद में ककसान वगद भी शाममल है। यह सवदहािा वगद ही क्रान्तत की संचालक शन्क्त है। माक्र्स द्वािा प्रनतपाददत त्तवचािों को आगे लेते हुए पाटी की महिा पि जोि ददया। मार ने स्पष्ट रूप में कहा है कक साम्यवादी दल क े बबना क्रांनत संभव नहीं है। माओ ने मलिा जब तक एक ऐसा क्रांनतकािी दल संगदठत न हो जाये,
  • 7. एक ऐसा दल न्जसका आधाि माक्र्स, लेननन औि स्टामलन क े क्रांनतकािी मसद्धांत औि शैली पि ििा गया हो, साााज्यवाद औि उसक े अनुयानयओ ं को पिान्जत किने क े मलए मजदूि वगद औि जनता क े अतय वगों को सही नेतृत्व देना असंभवपूणद होगा। इस मसद्धांत को माओ ने चीन में एक व्यावहारिक रूप ददया। उसक े अनुसाि चीन क े साम्यवादी दल क े प्रयत्नों क े बबना औि चीन क े साम्यवाददयों का चीन की जनता का मुख्य सहािा बने बबना चीन कभी भी स्वतंर औि मुन्क्त अथवा औद्योधगकीकिण औि कृ त्ति क े आधुननकीकिण की न्स्थनत तक नहीं पहुंच सकता। जनता औि उसक े शरुओ ं की माओ क े द्वािा दी गई परिभािा जनता क े उन वगों की ओि संक े त किती है, जो उनका त्तविोध किते हैं। माओो मसद्धांत रूप से यह भी स्वीकाि किता है कक िाष्र की सेना को साम्यवादी दल क े ननदेशन में औि एक ऐसे सशस्र संगठन क े रूप में न्जसका लक्ष्य क्रांनत क े िाजनीनतक कायों का पूिा किना है, काम किना किना चादहए। माओ पुस की गुरिकला प्रणाली या छापामाि युद्ध का समथदक था। उसने कहा है - जब शरु आगे बढ़ता है, हम पीछे हटते हैं। जब शरु इधि-उधि नघिता है, हम लड़ते हैं। जब शरु थक जाता है, हम लड़ते हैं औि जब शरु पीछे हटता है, हम पीछा किते हैं। माओ द्वािा बतायी गई इस छापामाि युद्ध की प्रणाली को नक्सलवाददयों ने प्रयोग ककया। नक्सलवाद क े वैचारिक आधाि क े प्रमुि बबंदु द्वंद्वात्मक भौनतकवाद द्वंद्वात्मक भौनतकवाद का मसद्धांत माक्र्स क े संपूणद धचंतन का क ें द्र बबंदु है। माक्र्स ने हीगल क े द्वंद्ववाद को अपने इस मसद्धांत का आधाि बनाया है। माक्र्स का मानना है कक संसाि में हि प्रगनत द्वंद्वात्मक रूप में हो िही है। हीगल क े त्तवचाि तत्व क े स्थान पि द्वतद्वात्मक रूप में हो िही है। हीगल क े त्तवचाि तत्व क े स्थान पि माक्र्स ने पदाथद तत्व को महत्वपूणद बताया है। माक्र्स क े अनुसाि जड़ प्रकृ नत या पदाथद ही इस सृन्ष्ट का एकमार मूल तत्व है जो मसद्धातत जड़ प्रकृ नत या पदाथद में त्तवचवास ििता है, भौनतकवाद कहलाता है। माक्र्स क े अनुसाि आत्मा तत्व का कोई अन्स्तत्व नहीं है। इसक े त्तवपिीत पेड़-पौधे, जीव-जततु मकान आदद वस्तुएं प्रत्यक्ष रूप से देिी जा सकती है, इसमलए ये सत्य है। ये भौनतक वस्तुएं ही त्तवचािों का आधाि होती हैं। माक्र्स का मानना है कक इस जगत का त्तवकास ककसी अप्राकृ नतक शन्क्त क े अधीन न होकि, उसकी अन्र्तमयी त्तवकासशील प्रकृ नत का ही परिणाम है। द्वंदात्मक भौनतकवाद को समझने क े मलए दद तयाय को समझना आवचयक है। कोई व्यन्क्त एक बात किता है, दूसिा उसका त्तविोध किता है। कफि दोनो पिस्पि त्तविोधी बातों से एक तीसिी बात का ननणदय होता है। इस प्रकाि पिस्पि त्तविोधी बातों से एक तीसिी बात का ननणदय होता है। इस प्रकाि पिस्पि त्तविोधी त्तवचािों से तीसिे त्तवचािों से तीसिे त्तवचाि या ननणदय पि पहुंचते हैं। उसे ही हृदतयाय या डायलेदटक्स कहते हैं। इस प्रकक्रया का अथद है दो त्तविोधी त्तवचािों क े द्वंद से तीसिे स्थान पि पहुंचना।। प्रकृ नत तंर है, न्जसक े पिस्पि संबंध हैं। वह परिवतदनशील है, त्तवकासोतमुि है. तथा हि िोज घटने वाली नई घटनाओ ं का प्रवाह है। त्तवकास क े क्रम में जो परिवतदन होते हैं, वे यथाथद होते हैं, वे भूतकालीन घटनाओ ं का धचरण मार नहीं होते। त्तवचव में नवीन घटनाएं, नवीन वस्तुएं हमेशा उत्पतन होती िहती है। इस प्रकाि द्वद तयाय त्तवकास की प्रकक्रया को बताता है पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् माक्र्स क े इस मसद्धातत को समझने क े मलए इतद्र, भौनतक तथा बाद तीनों शब्दों का अलग-अलग अथद समझना आवचयक है। (क) द्वतद’ से तात्पयद है-दो त्तविोधी पक्षों का संघिद (िा) भौनतक का अथद
  • 8. है-जड़ तत्व अथवा अवेतन तत्व ’वाद’ से तात्पयद है-मसद्धातत, त्तवचाि या धािणा। इस प्रकाि सिल अथद में द्वतद्वात्मक भौनतकवाद का अथद है वह भौनतकवाद, जो द्वतद्ववाद की पद्धनत को स्वीकृ त हो अथादत ् जड़ प्रकृ नतया पदाथद को सृन्ष्ट का मौमलक तत्व मानने वाला मसद्धातत भौनतकवाद है। इसी तिह इतद्रवादी प्रकक्रया क े अनुसाि जब जगत में ननितति परिवतदन होता िहता है। पदाथद की त्तविोधमयी प्रकृ नत क े कािण इस सृन्ष्ट में ननितति होने वाला परिवतदन या त्तवकास द्वतद्वात्मक भौनतकवाद कहलाता है। हीगल ने इतद्रवाद की प्रकक्रया क े तीन अंग वाद, प्रनतवाद व संवाद (संचलेिण) की बात कही है। हीगल का मानना है कक प्रत्येक वस्तु क े त्तवचाि में ही त्तविोधी तत्वों का समावेश होता है। कालातति में जब ये त्तविोधी तत्व वाद पि हावी हो जाते हैं तो ननिेधात्मक ननिेध क े ननयम क े द्वािा प्रनतवाद का जतम होता है। द्वतदात्मक प्रकक्रया का प्रमुि आधाि यही है। इसमलए हम कह सकते है कक इतद्वात्मकता, त्तविोधी तत्वों का अध्ययन है। त्तवकास त्तविोधी तत्वों क े बीच संघिद का परिणाम है। इसी से एक उच्चति वस्तु का जतम होता है। इसी से सभी ऐनतहामसक व सामान्जक परिवतदन होते हैं। माक्र्स क े अनुसाि द्वतदात्मक त्तवकास पदाथद या जय प्रकृ नत की पिस्पि त्तविोधमयी प्रकृ नत क े कािण होता है। इसमलए उसका भौनतकवाद द्वतद्वात्मक भौनतकवाद है। द्वतद्वात्मक भौनतकवाद की आधािभूत मातयताएं माक्र्स क े द्वतद्वात्मक भौनतकवाद की दो आधािभूत मातयताएं या धािणाएं है। पहला सृन्ष्ट का मूल तत्व पदाथद है, दूसिा सृन्ष्ट औि उसमें मौजूद मानव समाज का त्तवकास द्वतद्वात्मक पद्धनत होता है। माक्र्स का यह मत िहा है कक यह सािा संसाि पदाथद पि ही आधारित है अथादत इस सृन्ष्ट का स्वभाव पदाथदवादी है। इसमलए त्तवचव क े त्तवमभतन रूप गनतशील पदाथद क े त्तवकास क े त्तवमभतन रूपों क े प्रतीक है औि यह त्तवकास द्वतद्वात्मिक पद्धनत द्वािा होता है। इसमलए आन्त्मक त्तवकास से भौनतक त्तवकास अधधक महत्वपूणद है। इस जगत का त्तवकास ककसी वाह्य शन्क्त क े अधीन न होकि उसकी भीतिी शन्क्त तथा उसक े स्वभाव परिवतदन का ही परिणाम है। माक्र्स की द्वतद्वात्मक प्रकक्रया द्वंदात्मक प्रकक्रया को माक्र्स तथा एंन्जकस ने अनेक उदाहिणों से समझाया है। उतहोंने गेहू का उदाहिण ददया है। उनका कहना है कक कक गेहूं का दाना एक याद है। भूमम में बो देने पि यह गलकि या नष्ट होकि अंक ु रित होता है औि एक पौधे का रूप ले लेता है। यह पौधा द्वतद्वात्मक त्तवकास में प्रनतवाद है। इस प्रकक्रया का तीसिा चिण पौधे में बाली का आना, उसका पकना तथा उसमें दाने बनकि पौधे का सूि जाना है। इस प्रकक्रया को संवाद कहा जा सकता है। यह वाद औि प्रनतवाद दोनों से श्रेष्ठ है। उतहोंने औि उदाहिण देते हुए स्पष्ट ककया कक पूंजीवाद याद है सवदहािा वगद क े अधधनायकवाद को प्रनतवाद तथा साम्यवाद संवाद कहा जा सकता है। यहां पूंजीवाद संघिद क े बाद त्तवकमसत रूप में पौधा रूपी अधधनायकवाद की स्थापना होगी, जो अतत में साम्यवादी व्यवस्था क े रूप में पहुंचकि आदशद व्यवस्था (संवाद) का रूप ले लेगा।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् माक्र्स का स्पष्ट मानना था कक द्वतद्ववाद की यह प्रकक्रया ननितति चलती िहती है। कालातति में याद, प्रनतवाद तथा प्रनतवाद संवाद बनकि वात्तपस पूवदवत न्स्थनत (वाद) में आ जाते हैं। जैसे गेहूं क े दाने से पौधा बनना, पौधे से कफि दाने बनना, प्रत्येक वस्तु की त्तविोधमयी प्रवृत्ति ही द्वतद्वात्मक त्तवकास का आधाि होती है। इससे ही नए त्तवचाि (संवाद) का जतम होता है। इस प्रकक्रया में पहले
  • 9. ककसी वस्तु का ननिेध होता है औि बाद में ननिेध का ननिेध होता है औि एक उच्चति वस्तु अन्स्तत्व में आ जाती है। द्वतद्वात्मक भौनतकवाद की त्तवशेिताएं माक्र्स ने द्वतद्वात्मक भौनतकवाद की क ु छ त्तवशेिताए स्पष्ट की है। आधगक एकता - माक्र्स का मानना है कक इस भौनतक जगत में समस्त वस्तुएं व घटनाएं एक-दूसिे से सम्बन्तधत है। इसका कािण इस संसाि का भौनतक होना है। यहां पदाथद का अन्स्तत्व त्तवचाि से पहले है। संसाि में सभी पदाथों में पािस्परिक ननभदिता का गुण पाया जाता है। इसमलए अवचय ही सभी पदाथद एक-दूसिे को प्रभात्तवत भी किते है औि उनमें आंधगक एकता भी है। माक्र्स का मानना है कक एक घटना को समझे बबना दूसिी घटना का यथाथद रूप नहीं समझा जा सकता है। परिवतदनशीलता माक्र्स यह मानता है कक आधथदक शन्क्तयां संसाि क े समस्त कक्रया-कलापों का आधाि होती है। इनका सामान्जक व िाजनीनतक त्तवकास की प्रकक्रया पि भी गहिा प्रभाव िहता है। उनका मानना है कक ये आधथदक शन्क्तयां स्वयं भी परिवतदनशील होती हैं औि सामान्जक त्तवकास की प्रकक्रया को भी परिवनत दत किती है। गनतशीलता- कालद माक्र्स का मानना है कक प्रकृ नत में पाया जाने वाला प्रत्येक पदाथद गनतशील है। उनका मानना है कक जो आज है, कल नहीं था, जो कल था यह आज नहीं है औि जो आज है वह कल नहीं होगा। गनतशीलता का यह मसद्धातत इस जड़ प्रकृ नत में ननितति कायद किता है औि नई-नई वस्तुओ ं या पदाथों का ननमादण किता है। परिमाणात्मक एवं गुणात्मक परिवतदन माक्र्स का मानना है कक प्रकृ नत में परिवतदन एवं त्तवकास साधािण िीनत से क े वल परिमाणात्मक ही नहीं होते, बन्कक गुणात्मक होते हैं। ये परिवतदन क्रान्ततकािी तिीक े से होते है। पुिाने पदाथद नष्ट होकि नए रूप में बदल जाते हैं औि पुिानी वस्तुओ ं में परिमाणात्मक परिवतदन त्तवशेि बबतदु पि आकि गुणात्मक परिवतदन का रूप ले लेते हैं। संघिद- माक्र्स का मानना है कक प्रत्येक वस्तु में संघिद या प्रनतिोध का गुण भी पाया जाता है। यह त्तविोध नकािात्मक व सकािात्मक दोनों होता है। जगत क े त्तवकास का आधाि यही संघिद है। संघिद क े माध्यम से ही त्तविोधी पदाथों में आपसी टकिाव होकि नए पदाथद को जतम देता है। ऐनतहामसक भौनतकवाद द्वंद्वात्मक भौनतकवाद को स्पष्ट किने क े मलए कालद माक्र्स ने इनतहास की भौनतकवादी व्यवस्था प्रस्तुत की। इसी को माक्र्स का ऐनतहामसक भौनतकवाद कहा जाता है। इनतहास से संबंधधत अपने पूवदवती त्तवचािकों से कालद माक्र्स ने असहमनत व्यक्त की। उतहोंने असहमत होते हुए बताया कक आज तक जो इनतहास मलिा गया है वह क े वल िाजा- महािाजाओ ं तथा क ु छ त्तवशेि तािीिों का त्तवविण है। त्तवचव क े जो इनतहासकाि हैं, उतहोंने आम लोगों क े इनतहास की चचाद नहीं की है। उतहोंने बताया कक जब तक हम जनसाधािण क े इनतहास को समझ नहीं लेते, तब तक सामान्जक त्तवकास की प्रकक्रया को समझा नहीं जा सकता। िाजा-महािाजाओ ं का इनतहास, उनक े उत्थान-पतन व क ु छ त्तवशेि तािीिों क े त्तवविण से संपूणद समाज क े परिवतदन की धािा को समझना संभव नहीं है। कालद माक्र्स ने साम्यवादी घोिणापर नामक अपनी प्रमसद्ध पुस्तक में कालद माक्र्स, ने इनतहास की व्याख्या भौनतकतावादी आधाि पि प्रस्तुत की। कालद माक्र्स ने इस पुस्तक क े मुिपृष्ठ पि अपने त्तवचािों का साि प्रस्तुत किते हुए मलिा कक दुननया का इनतहास, वगद संघिद का इनतहास है
  • 10. वगद संघिद क े फलस्वरूप ही समाज में आधथदक परिवतदन बहुत तेजी से होता है, ऐसी न्स्थनत में समाज में िाजनैनतक परिवतदन तेजी से होने लगते हैं। उतहोंने मलिा कक ककसानों व मजदूिों में अपने अधधकािों क े प्रनत चेतना व जागरूकता उत्पतन होने लगती है। यह इसमलए होता है कक उतहें इस बात का पता चलता है कक वस्तुओ ं क े उत्पादन में उनका अंशदान सबसे अधधक है। अतः ककसान एवं मजदूि अपने अधधकािों क े मलए पूंजीपनतयों से संघिद किने लगते हैं। उनका यह संघिद तब जािी िहता है जब तक ये अपने अधधकािों पि पूणद अधधकाि प्राप्त नहीं कि लेते। माक्र्स ने कहा कक मजदूि वगद एवं पूंजीपनतवगद में संघिद अवचयमाथी है। मानव समाज में परिवतदन आवचयक ननयमानुसाि होता है। मजदूिों की न्जस मारा में शन्क्त में बढ़ोतिी होती है. उसी मारा में पूंजीपनत कमजोि होता जाता है औि अंत में त्तवनष्ट भी हो सकते हैं। पूंजीपनतयों क े त्तवनाश होने पि समाज में समाजवादी त्तवचािधािा आसानी से त्तवकमसत होना प्रािंभ किती है। इससे मजदूि वगद समाज को अपने काबू में लाने में सफल होता है। माक्र्स इस ननष्किद पि पहुंचे कक मानव इनतहास का त्तवकास समाज में वगद संघिद क े कािण होता है. अतः मानव इनतहास शनै-शनै समाजवाद की ओि अग्रसि हो िहा है। भोजन, पहनने क े मलए कपड़ा व िहने क े मलए मकान मानव की मूलभूत आवचयकताएं हैं। इन चीजों की उपयोधगता प्रािंमभक मानव से आज तक एक सी है। इनका उत्पादन से मनुष्य क े सामान्जक परिवतदन में हमेशा से ही बड़ा हाथ िहा है। उत्पादन शन्क्तयां एक ओि बढ़ती गई मशकाि से कृ त्ति, कृ त्ति से मशकप, मशकप से व्यापाि, व्यापाि से काििाने आदद होते चले गये। इस कािण समाज में परिवतदन आया औि हि सीढ़ी पि समाज में पूवद से चली आयी व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा होने लगी। उत्पादन शन्क्तयों क े बढ़ोतिी क े साथ-साथ व्यन्क्तयों क े मलए नया संगठन जरूिी है, क्योंकक पुिानी व्यवस्था लगाताि नहीं चल सकती। लोगों की नई आवचयकताओ ं की चीजें पहले उत्पादन या आधथदक क्षेर में होती हैं, उसी क े समाज में सामान्जक- िाजनीनतक ढांचे परिवतदन आवचयक हैं। इसका मतलब यह है कक कानून, आचाि आदद सभी क े मानव तथा समाज क े मानमसक भावों का यह परिवतदन इसमलए कक इसक े बबना नई उत्पतन सामान्जक समस्याओ ं का हल नहीं ककया जा सकता। उक्त बातें समाज की प्रािंमभक अवस्थाओ ं में स्पष्ट ददिाई पड़ती है। माक्र्स ने अपने िाजनीनतक अथदशास्र की आलोचना में मलिा है अपने त्तवकास की एक िास अवस्था में समाज क े भीति उत्पादन की मौमलक शन्क्तयों की उत्पादन की ममन्ककयत क े उन संबंधों में टकि हो उठती है, न्जनक े अंदि िह कि उत्पादन शन्क्तयां अब तक काम कि िही थी। जहां पहले ये संबंध उत्पादन शन्क्तयों क े त्तवकास का रूप थे, वहीं अब उनक े मलए बेड़ड़यां बन जाती है। आधथदक नीव क े परिवतदन क े साथ-साथ थोड़ा या ज्यादा सािा ऊपिी ढांचा तेजी क े साथ बदल जाता है। इनतहास की भौनतकतावादी व्याख्या प्रस्तुत किते हुए माक्र्स ने समाज क े संपूणद इनतहास को त्तवमभतन युगों में त्तवभान्जत ककया। इन सभी में उत्पादन क े साधनों तथा उत्पादन क े संबंधों में पाये जाने वाले अततत्तवदिोधों क े साथ- साथ माक्र्स ने त्तवमभतन युगों क े बीच पाये जाने वाले इंद की दशा को भी स्पष्ट रूप से िेिांककत ककया। सामान्जक त्तवकास से संबंधधत त्तवमभतन युग उसमें भौनतक दशाओ ं क े बीच होने वाले इंद ( अथादत बाद, प्रनतवाद तथा संचलेिण ) का ही परिणाम िहे हैं। माक्र्स द्वािा बताये गये त्तवमभतन युगों की भौनतक त्तवशेिताओ ं तथा उससे संबंधधत हद की प्रकक्रया को ननम्नोक्त प्रकाि क े भागों में बांट कि समझा जा सकता है।
  • 11. आददम साम्यवादी युग माक्र्स क े अनुसाि आददम साम्यवाद मानव समाज की प्रािंमभक अवस्था है। इस प्रािंमभक युग में मनुष्य जंगलों में िहता था तथा पूिी तिह से जंगलों पि ही आधश्रत िहता था। उसकी सुिक्षा क े मलए उसक े पास ककसी प्रकाि क े हधथयाि या उपकिण नहीं थे। माक्र्स क े अनुसाि आददम साम्यवाद क े इस युग में व्यन्क्तगत संपत्ति नहीं होती थी। यह समाज वगद त्तवहीन समाज होता था। इस समाज में न कोई व्यन्क्त अमीि था औि न ही कोई व्यन्क्त गिीब था। इसी गुग में आवचयकता क े अनुसाि हधथयािों का ननमादण ककया गया तथा जंगली जानविों क े मशकाि ककया जाने लगा। इसक े बाद धीिे-धीिे हधथयािों द्वािा शन्क्तशाली लोगों ने कमजोि लोगों का शोिण किना शुरू कि ददया। इस आधाि पि कालद माक्र्स ने मलिा शोिण क े क्षेर में हधथयाि मानव की पहली पूंजी हैं। इस प्रकाि माक्र्स ने स्पष्ट किने का प्रयास ककया कक आददम साम्यवादी युग क े अंनतम चिण में जब मनुष्य उत्पादन को साधनों की शन्क्त का क े तद्रीयकिण हो गया, तब इसका प्रनतवाद उत्पतन होने लगा। आददम साम्यवाद क े इस प्रनतवाद को माक्र्स ने दास युग कहा। दास युग कालद माक्र्स क े अनुसाि आददम साम्यवादी युग में जह व्यन्क्त ने पशुओ ं को मािने क े स्थान पि उतहें पाल कि ििाना शुरू ककया, तभी से व्यन्क्त संपत्ति का प्रादुभादव हुआ। पशुपालन व िेती क े मलए मानव जब घुमंतू जीवन को त्याग कि एक क्षेर में स्थायी रूप से िहने लगा, तब उत्पादन क े साधनों पि होने वाले परिवतदनों क े आधाि पि शन्क्तशाली लोगों ने अतय लोगों को दास बनाना शुरू कि ददया। इसका उद्देचय पशुपालन तथा िेती क े मलए अधधक से अधधक लोगों को काम पि लगाना था। दास युग की इस न्स्थनत में क ु छ व्यन्क्तयों क े पास ही उत्पादन क े साधनों का स्वाममत्व क ें दद्रत होने लगा। दास युग की त्तवशेिताओ ं क े अनुरूप ही उस समय की सामान्जक संिचना में परिवतदन होना शुरू हुआ। धीिे-धीिे संपूणद समाज में दास प्रथा का प्रचलन बढ़ना प्रािंभ हुआ। उस समय सम्पूणद समाज दो वगों में यानी मामलकों व उनक े दासों में त्तवभान्जत हो गया। मामलको द्वािा दासों का भिपूि शोिण ककये जाने लगा। दासों का इतना शोिण होने लगा कक दासों को वस्तुओ ं की तिह ििीदा व बेचा जाने लगा। न्जस व्यन्क्त क े पास न्जतने अधधक दास होते थे. समाज में उसकी उतनी प्रनतष्ठा होती थी तथा उसे समाज में उतना धनी समझा जाता था। माक्र्स का कथन है कक दास युग का आदुभादव त्तवचव क े अनेक समाजों में एक साथ हुआ एवं दासों को पशुओ ं क े समान ििीदे व बेचे जाने की दशा भी त्तवमभतन समाजों में लगभग एक ही प्रकाि की थी। न्जस समय दास युग चिम पि था, उस समय क ु छ स्वाममयों क े पास दास-दामसयों की संख्या हजािों तक पहुंच गई। माक्र्स क े अनुसाि दास युग की अंनतम अवस्था में ही कृ त्ति का त्तवस्ताि होने लगा। इसक े बाद धीिे-धीिे समाज में उत्पादनों क े साधनों में बाद धीिे-धीिे समाज में उत्पादनों क े साधनों में परिवतदन की प्रकक्रया प्रािंभ होने लगी औि यह ददिने लगी। इसक े बाद कृ त्ति का त्तवस्ताि हुआ। कृ त्ति का त्तवस्ताि होने क े साथ-साथ सामंतवाद का प्रादुभादव हुआ। सामंतवादी युग कालद माक्र्स का कहना है कक आददम साम्यवाद तथा दास युग क े बीच उत्पतन होने वाले अततत्तवदिोधों क े संचलेिण अथवा परिणाम क े रूप में सामंतवाद का जतम हुआ। पहला वगद जमींदािों का था, जबकक दूसिा वगद अद्दधदास ककसानों का था। सामंतवादी युग क े ककसानों को माक्र्स ने अधद-दास इसमलए कहा, क्योंकक उनका जीवन पूणद रूप से
  • 12. स्वतंर नहीं था। यह सच है कक सामतवादी युग में ककसानों को दासों की तिह ििीदा या बेचा नहीं जाता था, लेककन यह ककसान जमीदािों की शन्क्त व इच्छाओ ं क े पूणद रूप से अधीन थे। उत्पादन क े साधनों में होने वाले इस परिवतदन क े कािण संपूणद समाज का ढांचा बदलने लगा। कृ त्ति पि आधारित अथदव्यवस्था में धमद परिवाि, नैनतकता, आदशद ननयमों तथा अतय सांस्कृ नतक संस्थाओ ं क े रूप में बदलने लगा। दास युग में मामलक द्वािा अपने दासों से काम लेने पि उतहें जीत्तवत िहने लायक भोजन ददया जाता था। लेककन सामंतवादी व्यवस्था में ककसानों को जमीन पि िेती किने क े एवज में जमीदािों को लगान देना आवचयक होता था। सूिा, बाढ़ आदद होने पि भी ककसानों को जमींदािों को लगान प्रदान किना अननवायद होता था। इसी मलहाज से सामतवादी युग में ककसानों की न्स्थनत दासो से काफी अच्छी नहीं थी। सामंतवाद क े प्रािंभ क े बाद समाज में धीिे-धीिे आददम साम्यवाद की न्स्थनत समाप्त होने लगी औि कफि समाज में पूंजीवाद का उदभव हुआ। दूसिे शब्दों में यह कहा जा सकता है कक सामतवाद क े युग में दास युग तथा सामंतवाद ने क्रमशः वाद औि प्रनतवाद का रूप ले मलया, जबकक इसका संचलेिण पूंजीवाद क े रूप में हमािे सामने आया। स्पष्ट है कक दास युग व सामंतवाद क े बीच चलने वाले द्वंद्व क े परिणामस्वरूप भौनतक साधनों में जो परिवतदन आया, उसी क े आधाि पि पूंजीवादी युग का प्रािंभ हुआ। पूंजीवादी युग उत्पादन क े साधनों क े रूप में जब बड़ी-बड़ी मशीनों का उपयोग ककया जाने लगा, तभी से पूंजीवादी युग का प्रािंभ होने लगा। कालद माक्र्स क े अनुसाि इस युग में उत्पादन क े साधनों का स्वाममत्य समाज क े पूंजीपनत वगद क े हाथ में आ गया। इसक े फलस्वरूप समाज पुनः दो वगों में त्तवभान्जत हो गया। पहला वगद न्जसका पूंजी पि अधधकाि था तथा दूसिा यह वगद जो पूंजीपनतयों क े हाथों अपना श्रम बेचने क े मलए बाध्य था। माक्र्स ने पहले वगद को बुजुदआ व दूसिे वगद क े सवदहािा वगद क े नाम से संबोधधत ककया। उद्योगों की स्थापना क े कािण सामंतवादी युग क े जमींदािों में से न्जन लोगों ने औद्योधगक उत्पादन पि एकाधधकाि कि मलया. उनसे बुजुदआ वगद की उत्पत्ति हुई। वैसे ही दास जीवन से मुक्त होकि या कृ त्ति को छोड़कि जो लोग उद्योगों में श्रममकों क े रूप में काम किने लगे, ये सवदहािा वगद का दहस्सा बन गये कालद माक्र्स क े अनुसाि सवदहािा वगद वह वगद है न्जसक े पास क ु छ भी नहीं है औि वह सब क ु छ हाि चुका है। माक्र्स का कहना था कक दास अथवा ककसान क े रूप में अपनी शािीरिक शन्क्त या जमीन पि की जाने वाली िेती क े कािण उन लोगों क े जीवन का क ु छ महत्व आवचयक था। दास औि ककसान एक ऐसी अथदव्यवस्था से जुड़े हुए थे, जहां उनका जीवन क ु छ सीमा तक सुिक्षक्षत भी था लेककन वे श्रममक जो दासता या ककसानी से मुक्त हो कि उद्योगों में अपना श्रम बेचने लगे, वे अपना सब क ु छ हाि गये। इसमलए माक्र्स ने इस श्रममक वगद को सवदहािा वगद का नाम ददया। पूंजीवादी युग में पूजीपनत वगद ने अपने हाथों में पूजी का अधधक से अधधक क े तद्रीयकिण किना प्रािंभ कि ददया। इसक े परिणामस्वरूप समाज में जो प्रमुि दशाएं उत्पतन हुई, उतहें माक्र्स ने दरिद्रीकिण, रुवीकिण तथा अलगाव का नाम ददया। दरिद्रीकिण आम लोगों में पायी जाने वाली यह व्यापक ननधदनता है, जो सब क ु छ जाने क े फलस्वरूप पैदा हुई। कालद माक्र्स ने स्पष्ट रूप से कहा कक जब समाज में बुजुदआ व सवदहािा जैसे दो वगद ही शेि िह गये, तो स्वयं पूजीपनतयों की आपसी प्रनतयोधगता क े कािण बुजुदआ लोगों की संख्या भी ननिंति कम होती चली गई। दूसिी ओि सवदहािा वगद लोगों संख्या में ददन-प्रनतददन वृद्धध होने लगी।
  • 13. वगद संघिद वगद संघिद की धािणा माक्र्स की धचंतन की एक महत्वपूणद धािणा है। माक्र्स ने कहा कक इनतहास की प्रेिक शन्क्त भौनतक है। उनका मानना है कक उत्पादन प्रकक्रया क े मानव सम्बतध इनतहास का ननमादण किते हैं। उनका मानना है कक उत्पादन प्रकक्रया धनी औि ननधदन, हेकस औि हैव नोट्स दो वगों को जतम देती है। प्रत्येक वगद एक-दूसिे से संघिद किता िहता है। यही समाज की प्रगनत का आधाि है। इस तिह माक्र्स का वगद-संघिद का मसद्धातत जतम लेता है। उसकी यह धािणा इनतहास की भौनतकवादी व्याख्या तथा अनतरिक्त मूकय क े मसद्धातत पि आधारित है। उसने ऐनतहामसक भौनतकवाद की सैद्धान्ततक प्रस्थापनाओ ं क े आधाि पि साम्यवादी घोिणापर में कहा है कक आज तक का सामान्जक जीवन का इनतहास वगद संघिद का इनतहास है माक्र्स ने अपने प्रमसद्ध ग्रतथ साम्यवादी घोिणापर में वगद शब्द का प्रयोग त्तवमशष्ट अथों में ककया है। माक्र्स क े अनुसाि, पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत्व्यन्क्तयों का वह समूह वगद है, जो अपने साधािण दहतों की पूनत द हेतु उत्पादन की प्रकक्रया से जुड़ा हुआ है। अथादत ् न्जस समूह क े आधथदक दहत एक से होते हैं. उसको वगद कहा जाता है।पि्््थ्त्ष्त्ष्ञत ् माक्र्स का कहना है कक समाज में सदैव ही दो वगद िहे है जैसे स्वामी दास, ककसान- जमीदाि पूंजीपनत श्रममक संघिद को परिभात्तित किते हुए माक्र्स ने कहा है कक संघिद का अथद क े वल लड़ाई नहीं है, बन्कक इसका व्यापक अथद है-िोि, असंतोि तथा आंमशक असहयोग। जब यह कहा जाता है कक वगों में अनाददकाल से सदैव संघिद होता िहा है तो इसका अमभप्राय यह होता है कक सामातय रूप से असततोि औि िोि की भावना धीिे-धीिे शान्ततपूणद िीनत से सुलगती िहती है औि क ु छ ही अवसिों पि यह भीिण ज्वाला का रूप ग्रहण कि लेती है। माक्र्स का मानना था कक त्तवचव इनतहास आधथदक औि िाजनीनतक शन्क्त क े मलए त्तविोधी वगों में संघिों की श्रृंिला है। प्रत्येक काल औि प्रत्येक देश में आधथदक औि िाजनीनतक सिा की प्रान्प्त क े मलए ककए गए संघिद इनतहास का अंग बन गए हैं। समाज में युगों से दो वगों का अन्स्तत्व िहा है औि उनमें संघिद भी ननितति होता िहा है। प्रत्येक वगद अपने दहतों की पूनत द क े मलए संघिद क े उपाय पि ही आधश्रत िहा है। माक्र्स ने वगद-संघिद क े मसद्धातत को ऐनतहामसक आधाि पि प्रमाखणत किने क े मलए, आदम युग से आज तक मानव सभ्यता क े त्तवकास पि नजि डाली है। माक्र्स ने आददम युग, दास युग, सामंतवादी युग पूंजीवादी युग की चचाद की है। उतहोंने कहा है कक हि समय त्तवमभतन वगों में संघिद हुआ है। अनतरिक्त मूकय पि पूंजीपनतयों क े आधधक्य क े मामले में माक्र्स का कहना है कक पूंजीवादी व्यवस्था में उत्पादन का उद्देचय व्यन्क्तगत लाभ कमाना होता है। इसमलए अनतरिक्त मूकय को पूंजीपनत श्रममकों को न देकि अपने पास िि लेते हैं। जबकक तयाय मसद्धातत की दृन्ष्ट से इस पि श्रममक का हक़ बनता है। यह अनतरिक्त मूकय वह मूकय है, जो श्रममक द्वािा उत्पाददत माल की वास्तत्तवक कीमत औि उस वस्तु की बाजाि कीमत क े मूकय का अतति होता है। पूंजीपनत इस अनतरिक्त मूकय को अपनी जेब में िि लेता है। इससे श्रममकों का शोिण होता है। माक्र्स ने उपिोक्त कािणों का उकलेि कि वगद संघिद क े दौिान पूंजीवाद का िात्मा होने की भत्तवष्यवाणी की है। सवदहािा की क्रांनत माक्र्सवादी शब्दावली में पूंजीवाद क े अंतगदत वह वगद जो सामान्जक उत्पादन क े प्रमुि साधनों पि अपना स्वाममत्व औि ननयंरण स्थात्तपत कि लेता है, उसे बुजुदआ वगद कहते हैं। यह वगद पून्जपनत वगद का पयादय है।