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अध्याय-1
प्रस्तावना
पृथ्वी क
े गर्भ से धातुओ ं, अयस्कों, औद्योगगक तथा अन्य उपयोगी खननजों को बाहर ननकालना खननकर्भ या खनन
(उपदपदह) हैं। आधुननक युग र्ें खननजों तथा धातुओ ं की खपत इतनी अगधक हो गई है कक प्रनत वर्भ उनकी आवश्यकता
करोड़ों टन की होती है। इस खपत की पूनत भ क
े ललए बड़ी-बड़ी खानों की आवश्यकता का उत्तरोत्तर अनुर्व हुआ। फलस्वरूप
खननकर्भ ने ववस्तृत इंजीननयरों का रूप धारण कर ललया है। इसको खनन इंजीननयरी कहते हैं।
संसार क
े अनेक देशों र्ें, जजनर्ें र्ारत र्ी एक है, खननकर्भ बहुत प्राचीन सर्य से ही प्रचललत है। वास्तव र्ें प्राचीन युग र्ें
धातुओ ं तथा अन्य खननजों की खपत बहुत कर् थी, इसललए छोटी-छोटी खान ही पयाभप्त थी। उस सर्य ये खानें 100 फ
ु ट की
गहराई से अगधक नहीं जाती थीं। जहााँ पानी ननकल आया करता था वहााँ नीचे खनन करना असंर्व हो जाता थाय उस सर्य
आधुननक ढंग क
े पंप आदद यंत्र नहीं थे। खननजो से जुडे संदबभ-जजन कच्ची धातुओ र्े खननज लर्लते है उन्हे अयस्क कहा जाता
है। खुदाई करक
े अयस्क ननकलने वाले स्थान को खादान या खान(उपदर्) कहा जाता है।यदद धरातल पर ऊपर-ऊपर से खुदाई
की जाए तो उसे उत्खनन (ुुनंततलपदह) कहते है और यदद र्ू-गर्भ से खननज प्राप्त ककए जाएं तो उस कायभ को खनन
(उपदपदह )कहते है।
पररचय
ककसी र्ी प्रकार क
े खननववकास क
े ललये खनन क
े पूवभ की दो अवस्थाएाँ -- पूवेक्षण (च्तवेचर्बजपदह) तथा गवेर्णा
(र् ्Ûचसवतंजपवद) बहुत र्हत्वपूणभ हैं। पूवेक्षण क
े अंतगभत खननजों तथा अयस्कों की खोज, ननक्षेपों का सार्ान्य अध्ययन
तथा खनन की संर्ावनाओ ं को सजमर्ललत ककया जाता है। इन तथ्यों की जानकारी क
े ललए ककन साधनों की सहायता ली जाय,
यह उस क्षेत्र की आवश्यकाताओ ं पर ननर्भर करता है। गवेर्णात्र्क कायभ क
े अंतगभत संर्ाव्य ननक्षेपों का ववस्तार और क्षेत्र,
उनकी औसत र्ोटाई, खननज की संर्ाव्य र्ात्रा तथा र्ूल्य, ननक्षेपों क
े अंतगभत खनन योग्य क्षेत्रों का ववतरण, खान को खोलने,
ववकलसत करने तथा खनन को प्रर्ाववत करनेवाली अवस्थाएाँ एवं खान क
े ववकास क
े ललये उपयुक्त ववगध का ननश्चय आदद
र्हत्वपूणभ तथ्य सजमर्ललत हैं। गवेर्णा क
े तीन र्ुख्य अंग हैं प्रनतशत तलीय गवेर्णा, वेधन (क्तपससपदह) तथा र्ूलर्गत
गवेर्णा।
खननकर्भ क
े र्ुख्य ववर्ाग
खननकर्भ को र्ुख्य रूप से तीन र्ागों र्ें ववर्ाजजत ककया गया हैं प्रनतशत
तलीय खनन (ुैननतंबर् उपदपदह),
जलोढ़ खनन (ुंससनअपंस उपदपदह) तथा
र्ूलर्गत खनन (न्दकर्तहतवनदक उपदपदह)।
तलीय खनन
तााँबे की खुली खान प्रनतशत गचली की यह खान ववश्व की सवाभगधक पररगध वाली एवं दूसरी सबसे गहरी खान है।
इस प्रकार क
े खनन र्ें धरातल क
े ऊपर जो पहाड़ आदद हैं उनको तोड़कर खननज प्राप्त ककए जात हैं, जैसे चूने का पत्थर, बालू
का पत्थर, ग्रैनाइट, लौह अयस्क आदद। इस ववगध र्ें र्ुख्य कायभ पत्थर को तोड़ना ही हैं। लशलाएाँ कठोरता, र्जबूती तथा दृढ़ता
र्ें लर्न्न होती हैं। जो लशलाएाँ कोर्ल होती हैं, उनको तोड़ने र्ें कोई कदठनाई नहीं होती। ऐसी लशलाओ ं क
े उदाहरण जजप्सर्,
चीनी लर्ट्टी, सेलखड़ी आदद हैं। जजन लशलाओ ं र्ें धातुएाँ लर्लती हैं वे अत्यंत कठोर होती हैं, जैसे ग्रैनाइट, डायोराइट आदद। इन
लशलाओ ं को ववस्फोटक पदाथों द्वारा तोड़ा जाता हैं। प्राचीन तथा र्ध्यकालीन युगों र्ें खनन की ववगधयां ननतांत अनुपयुक्त
थीं। धीरे धीरे खनन ववगधयों का ववकास हुआ और उनर्ें बारूद आदद का उपयोग होने लगा। ववगत एक शताब्दी र्ें
डायनेर्ाइट, जेललग्नाइट, नाइट्रोजग्लसरीन आदद अनेक प्रकार क
े अन्याय ववस्फोटक पदाथों का ववकास हुआ। खनन र्ें
ववस्फोटक पदाथों का उपयोग करने क
े ललये पहले लशलाओ ं र्ें नछद्र बनाया जाता है तथा उसर्ें ये ववस्फोटक जो कारतूस क
े
रूप र्ें लर्लते हैं, रख ददए जाते हैं और ववद्युतद्धारा या फ्यूज लगाकर उनर्ें आग लगा दी जाती हैं। ववस्फोट क
े साथ ही
पत्थर क
े टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं। कफर इनको धन आदद से तोड़कर और छोटा कर ललया जाता है, जजससे उन्हें हटाने र्ें सुववधा
हो। पत्थरों र्ें नछद्र बनाने क
े ललय जैक हैर्र आदद अनेक प्रकार क
े वेधनयंत्रों का उपयोग ककया जाता है। ये यंत्र संपीड़ड़त वायु
अथवा ककसी द्रव ईंधन द्वारा संचाललत होते हैं। नछद्रों की गहराई 3-4 फ
ु ट तक तथा व्यास 1-1ध्2 इंच से लेकर 2 1ध्2 इंच
तक होता है। कर्ी कर्ी लशलातल पर ऐसे बहुत से नछद्र कर ददए जाते है और सब र्ें ववस्फोटक कारतूस र्र ददए जाते हैं तथा
ववद्युत ् द्वारा सर्ी को एक साथ ही जला ददया जाता है, इससे पूरे का पूरा पहाड़ टूट जाता है। र्ारत र्ें इस प्रकार क
े तलीय
खनन क
े उदाहरण चूना पत्थर तथा लौह अयस्क आदद हैं। पत्थरों क
े हटाने क
े ललये बड़ी खानों र्ें रेल की पटररयााँ बबछाकर
ठेलों का उपयोग ककया जाता है। इस कार् र्ें यांबत्रक खुरपे र्ी बड़े उपयोगी लसद्ध हुए हैं। ये खुरपे उन पत्थरों को उठाकर बड़े
ट्रकों र्ें र्र देते हैं। र्ारत र्ें इस प्रकार क
े खनन की लागत 5 रु0 से लेकर 9-10 रु0 प्रनत टन तक पड़ती है। तलीय खनन र्ें
40-50 फ
ु ट तक गहराई क
े पत्थर ननकाले जाते हैं। खुले हुए गड्ढों से खनन करक
े अयस्क तथा
खननज ननकालने की ववगध तााँबा, लोहा, कोयला, चूना पत्थर तथा अन्य औद्योगगक खननजों क
े उत्खनन र्ें प्रयुक्त होती है।
क
ु छ अंशों तक यह ववगध सोने, चााँदी, जस्ते तथा सीसे क
े खनन र्ें र्ी सहायक लसद्ध हुई हैं। इस प्रकार क
े खनन र्ें खुदाई
करनेवाले ववशाल यंत्र तथा अयस्क या खननज को लादकर खान से बाहर ले जानेवाले यंत्र प्रर्ुख है। खुदाई क
े ललये शजक्तशाली
यांबत्रक खुरपों का प्रयोग होता है। ये खुरपे ववस्फोट द्वारा उड़ाए हुए पत्थरों क
े टुकड़ों को ट्रक अथवा र्ालगाड़ी क
े ड़डब्बों र्ें र्र
देते हैं। कर् दूरी क
े ललये खनन गाड़ड़यों (बंते), ड़डब्बों तथा ट्रकों से कार् चल जाता है और अगधक दूरी क
े ललये र्ारी ट्रकों का
उपयोग ककया जाता है जो लदे हुए पत्थरों को स्वचाललत ढंग से ककसी एक स्थान पर इकट्ठा कर देते हैं। खुली हुई
खननजों क
े रूप र्ें खनन करने से पूवभ उस क्षेत्र की स्थालाकृ नत क
े र्ानगचत्र बनाए जाते हैं और कफर खाइयााँ, परीक्षाणात्र्क
गड्ढे तथा वेधन द्वारा ननक्षेप की र्ोटाई तथा खननज की उपलब्ध र्ात्रा का ननश्चय ककया जाता है। पानी क
े ननकास की
दशाओ ं पर र्ी सावधानी से ववचार ककया जाता है। खनन कायभ प्रारंर् होने पर सबसे पहले ननक्षेपों पर जस्थत लर्ट्टी हटाने का
कार् होता हैं। कर्ी कर्ी बड़ी खानों को खोलने क
े ललये लर्ट्टी हटाने र्ें 2-3 वर्भ तक लग जाते हैं। खनन कायभ चोटी से प्रारंर्
होता है तथा एक क
े बाद एक सपाट बेंचें तब तक काटी जाती हैं जब तक तलहटी नहीं आ जाती। आजकल आधुननक बोररंग
यंत्रों क
े आववष्कार क
े फलस्वरूप 25-30 फ
ु ट तक र्ोटाई की बेंचें काटना सरल हो गया हैं। इन बेंचों क
े ऊपर हल्क
े ट्रक तथा
लोहे की पटररयों पर चलने वाले ठेलों क
े आने जाने का प्रबंध ककया जाता है। साधारणतया बेंच बनाने क
े ललये लशलाओ ं र्ें कई
नछद्र ककए जाते है तथा ववस्फोट करने क
े ललये लचकीली ववस्फोटक टोवपकाओ ं का प्रयोग ककया जाता है। एक पौंड ववस्फोटक
पदाथभ से 4 से 15 टन तक लशलाएाँ टूट सकती हैं। यह र्ात्रा लशलाओ ं की दृढ़ता पर ननर्भर करती है।
र्ारत र्ें खुली हुई खानों क
े रूप र्ें खनन की प्रणाली र्ुख्यत प्रनतशत चूना पत्थर आदद क
े ललये बड़े स्तर पर प्रयुक्त
होती है। जजन खानों से सीर्ेंट उत्पादन क
े ललये चूना पत्थर ननकाला जाता है, वहााँ 2000 टन तक का दैननक उत्पादन
असार्ान्य नहीं सर्झा जाता। बबहार, र्ध्य प्रदेश तथा उड़ीसा आदद र्ें लौह अयस्क क
े उत्खनन र्ें र्ी इसी ववगध का उपयोग
होता है। अन्य अयस्कों तथा खननजों क
े अनतररक्त इस प्रकार की खनन प्रणाली कोयले क
े ललये र्ी वहााँ प्रयुक्त की जा सकती
है जहााँ कोयले क
े स्तरों की गहराई अगधक न हो। इस प्रकार कोयले क
े स्तर की र्ोटाई से यदद उस पर जस्थत लर्ट्टी की र्ोटाई
दस गुनी तक अगधक होती है तो र्ी इस प्रकार का खनन आगथभक दृजष्ट से उपयुक्त ही सर्झा जाता है।
जलोढ़ खनन
क
ु छ प्राचीन नददयों र्ें जो अवसाद एकबत्रत हुए हैं उनर्ें कर्ी कर्ी बहुर्ूल्य धातुएाँ र्ी ननक्षक्षप्त हो जाती है। इन अवसादों को
तोड़कर धातुओ ं की प्राजप्त करना इस प्रकार क
े खनन क
े अंतगभत आता है। कर्ी र्ी ये धातुएाँ नदी की तलहटी र्ें लर्लती हैं और
कई बार इनर्ें सोने जैसी बहुर्ूल्य धातुएाँ पयाभप्त र्ात्रा र्ें लर्ल जाती हैं। क
ु छ अवस्थाओ ं र्ें ये अवसाद दूसरे नए अवसादों से
ढक र्ी जाते हैं। तब उन्हें हटाकर धातुओ ं की प्राजप्त की जाती है। ववशेर् पररजस्थनतयों र्ें ये धातुएाँ संपीड़डत शैलों
(बवदहसवउर्तंजर्े) र्ें र्ी एकबत्रत हुई देखी गई हैं। प्रक्षालन ननक्षपों (च्संबर्त कर्चवेपजे) क
े खनन र्ें ववशेर् रूप से इसे
प्रयुक्त ककया जाता है। ये लशलाएाँ र्लवा ननलर्भत (कर्जतपजंस) होती हैं तथा इनक
े कणों का आकार र्ी लर्न्न होता है।
प्रक्षालन ननक्षपों क
े प्रर्ुख उपयोगी खननज सोना, दटन, प्लैदटनर् तथा ववरल लर्ट्दटयााँ हैं। लशलाओ ं र्ें इन धातुओ ं की प्रनतशत
र्ात्रा बहुत कर् होती है। इस ववगध र्ें ऊ
ाँ चे दबाव पर पानी बड़े वेग क
े साथ नाजल से ननकलता है और लशला पर टकराता है।
पानी क
े टक्कर क
े फलस्वरूप लशला टूट जाती है तथा सूक्ष्र् कणों र्ें ववजच्छन्न हो जाती है। पानी की धारा क
े साथ ये कण
आगे चल देते हैं, जहााँ पानी स्लूस बक्सों जजनर्ें बाधक (जइंलसर्) प्लेटें लगी रहती हैं, प्रवादहत ककया जाता है। बाधक प्लेटों क
े
सर्ीप र्ारी धातुएाँ एकबत्रत हो जाती है तथा धातुकणों से ववदहन पानी ववजच्छन्न लशला को ललए आगे बह जाता है।
जलोढ खनन ववगध र्ें प्रर्ुख आवश्यकता ववशाल र्ात्रा र्ें जल की होती है। पानी का दबाव 50 से 600 फ
ु ट तक हो सकता है।
खनन का र्ूल्य र्ी कर् होता है, क्योंकक इसर्ें पानी से उत्पन्न शजक्त क
े अनतररक्त अन्य ककसी शजक्त की आवश्यकता नहीं
होती। इस प्रकार खननत पदाथों की र्ाप घन गजों र्ें की जाती है। बड़े ननक्षेपों क
े खनन र्ें यांबत्रक साधनों का र्ी उपयोग
ककया जाता है तथा कर्ी कर्ी इस ववगध से 30 फ
ु ट र्ोटाई क
े ननक्षेपों तक का खनन होता है। र्ारत र्ें जलोढ खनन व्यवहार
र्ें नहीं हैय क
ु छ क्षेत्रों र्ें रेत छानकर तथा धोकर सोना आदद प्राप्त ककया जाता है। बबहार र्ें स्वणभरेखा नदी क
े तट पर
रहनेवाले ननवासी इसी प्रकार सोने की प्राजप्त ककया करते है।
जलोढ खनन की एक अन्य ववगध र्ें एक ववशेर् प्रकार की यांबत्रक नौकाओ ं का र्ी उपयोग होता है। इन
नौकाओ ं र्ें घूर्नेवाली बाजल्टयों की व्यवस्था रहती है, जो तलहटी से बालू को खरोंचकर नाव पर ला देती हैं। इस बालू क
े साथ
ही अनेक अपघर्ी खननज र्ी आ जाते हैं जजनको उपयुभक्त ववगध द्वारा पृथक् कर ललया जाता है। बर्ाभ और र्लाया क
े दटन
क्षेत्रों क
े प्रक्षापालन ननक्षेपों क
े खनन र्ें यही ववगध प्रयुक्त की गई है। इस खनन र्ें शजक्त की आवश्यकता तथा धन की लागत
र्ी यथेष्ट पड़ती है। ये नौकाएाँ 20 फ
ु ट की गहराई तक की बालू खरोंच सकती हैं। इनर्ें प्रयुक्त बाजल्टयों का सर्ावेशन 1 1ध्2
से 14 घनफ
ु ट तक का होता है।
र्ूलर्गत खनन
उन अनेक प्रकार क
े खननजों तथा अयस्कों क
े उत्खनन र्ें र्ूलर्गत खनन का सहारा लेना पड़ता है जजनका खुली हुई खानों क
े
रूप र्ें खनन, गहराई पर जस्थत होने क
े कारण, आगथभक दृजष्ट से अनुपयुक्त अथवा असंर्व होता है। यद्यवप र्ूलर्गत खनन
र्ें र्ी बड़ी पूंजी की आवश्यकता होती है, तथावप इन ननक्षेपों क
े खनन क
े ललये कोई अन्य ववकल्प नहीं है। र्ूलर्गत ननक्षेप दो
प्रकार क
े हो सकते हैं प्रनतशत
1. जो स्तर रूप र्ें लर्लते हैं, जैसे कोयला तथा
2. धाजत्वक पट्दटकाएाँ
इन दोनों प्रकार क
े ननक्षेपों की प्रकृ नत ननतांत लर्न्न होती है, इसललये इनक
े खनन की ववगधयााँ र्ी सुववधानुसार अलग अलग
होती है। खानों र्ें कायभ आरंर् होने से पहले पूवेक्षण तथा गवेर्णात्र्क कायों को सावधानी से सर्ाप्त कर ललया जाता है।
इसक
े पश्चात ् खान का ववकास कायभ प्रारंर् होता है। सवभप्रथर् क
ू प (ुेुंजज) बनाए जाते हैं। इनका व्यास 10-12 फ
ु ट तक हो
सकता है। यदद ननक्षेपों की गइराई कर् होती है तो प्रवणकों का ही ननर्ाभण कर ललया जाता है। यदद आवश्यकता हुई तो
र्ूलर्गत र्ागभ तथा गैलररयााँ र्ी बना ली जाती हैं जजन लशलाओ ं से होता हुआ क
ू प जाता है, यदद वे सुदृढ नहीं होती तो इस्पात,
सीर्ेंट आदद क
े अस्तर की र्ी आवश्यकता पड़ती है। र्ूलर्गत खनन र्ें क
ू पों का बड़ा र्हत्व है, क्योंकक कर्भचाररयों का खान र्ें
आना जाना, खननत पदाथों का बाहर आना, वायु का संचालन तथा खान से पानी बाहर फ
ें कने क
े ललये पंपों का स्थापन इन्हीं से
संचाललत होता है। ककसी र्ी खान र्ें कर् से कर् दो क
ू प अवश्य होते हैं।
खननजों तथा अयस्कों को तोड़ने र्ें फावड़े, क
ु दाली तथा सब्बल अथवा यंत्रों या ववस्फोटक पदाथों की सहायता ली
जाती है। प्रयत्न इस बात का ककया जाता है कक खननज की अगधकागधक र्ात्रा ननकाल ली जाय। ककं तु इससे खान र्ें लशलाओ ं
का संतुलन बबगड़ने लगता है। यह बहुत क
ु छ अंशों तक लशलाओ ं क
े लचीलेपन तथा उनकी शजक्त पर ननर्भर करता है। खान र्ें
लशलाओ ं का संतुलन बबगड़ने से बचाने क
े ललये खान की दीवारों तथा छत को सहारे की आवश्यकता होती है। इसक
े ललए जजस
स्तर पर कायभ चल रहा है उसर्ें स्तंर् छोड़ ददए जाते है और आसपास से खननज ननकाल ललया जाता है। ककं तु इसर्ें खननज
की काफी र्ात्रा का ह्ु्रास होता है। इसललये आजकल प्रयत्न यह ककया जाता है कक खाली स्थानों र्ें बालू अथवा वैसा ही कोई
अन्य पदाथभ र्र ददया जाय तथा उन स्तंर्ों का खननज र्ी ननकाल ललया जाय। यह ववगध अगधकांश र्ारतीय कोयला खानों र्ें
प्रयुक्त होती है। इसक
े अनतररक्त, लकड़ी, लोहा, क
ं क्रीट, पत्थर, ईंट आदद र्ी प्रयुक्त होते है। खननज पदाथभ को खान से ऊपर
लाने क
े ललये वपंजड़े क
े आकार का झूला, इस्पात क
े रस्से तथा वाइंड़डंग इंजन की आवश्यकता होती है। खानों क
े अंदर खननज
को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने क
े ललये ट्राललयााँ प्रयुक्त होती हैं, जो अगधकतर लोहे की पटररयों पर चलती हैं। क
ू प से
होकर खान क
े कर्भचारी र्ी खान र्ें इन्हीं झूलों से उतरते हैं। क
ु छ खानों र्ें सीदढ़यााँ र्ी कार् र्ें आती हैं, जैसे कोडर्ाभ (बबहार)
की अभ्रक खानों र्ें।
र्ूलर्गत खानों र्ें उपयुक्त प्रकाश तथा शुद्ध वायु क
े आवागर्न का प्रबंध अत्यंत आवश्यक है। अगधकांश खानों र्ें अब
ववद्युत ् प्रकाश उपलब्ध है। अभ्रक आदद की खानों र्ें र्ोर्बवत्तयााँ र्ी प्रयुक्त होती है। वायु क
े आवागर्न क
े ललये वायुर्ागभ बड़े
होने चादहए तथा वायु का प्राकृ नतक प्रवाह नहीं रुकना चादहए। क
ु छ जस्थनतयों र्ें इसक
े ललये क
ु छ यांबत्रक साधनों की र्ी
आवश्यकता होती है। ये यंत्र खान र्ें शुद्ध वायु का संचालन करते हैं।
खान र्ें क
ू प खोदते सर्य,अथवा जलपटल आ जाने पर, पानी का प्राकृ नतक प्रवाह प्रारंर् हो जाता है। यह पानी नाली बनाकर
एक जगह ले जाया जाता है तथा वहााँ से पंप द्वारा खान से बाहर ननकाल ददया जाता है।
र्ूलर्गत खानों र्ें दुघभटनाएाँ
र्ूलर्गत खानों र्ें दुघभटनाएाँ र्ी बड़ी र्यावनी होती हैं। इनर्ें आग लगना एक बड़ी सर्स्या है। आग की दुघभटनाएाँ ववर्ाक्त
गैसों क
े अचानक ववस्फोट से, ववस्फोटक पदाथों क
े र्ाध्यर् से या ककसी अन्य कारणवश हो सकती हैं। कोयले की खानों र्ें
आग बुझाना बहुत जदटल होता है। झररया क्षेत्र की क
ु छ खानों र्ें वर्ों से आग लगी हुई हैं, ककं तु अर्ी तक उनको बुझाया नहीं
जा सका है। क
ु छ दुघभटनाएाँ खान क
े बैठने से या उसर्ें अचानक पानी र्र जाने से हो जाया करती है। अर्ी गत 27 ददसमबर
1975 को धनबाद से 27 ककलोर्ीटर दूर जस्थत चासनाला कोयला खान क
े 80 फ
ु ट ऊपर जस्थत पानी क
े एक ववशाल हौज र्ें
अकस्र्ात ् 8.35 र्ीटर छेद हो गया और पानी बड़ी तेजी क
े साथ र्रने लगा। फलत प्रनतशत उस सर्य खान क
े र्ीतर जो 372
र्जदूर कार् कर रहे थे वे सब खान क
े र्ीतर ही प्रवाह र्ें फ
ाँ स गए और ककसी प्रकार ननकाले न जा सक
े । इस दुघभटनाएाँ से पहले
1973 र्ें जजतपुर र्ें 40 र्जदूर र्र गए थे। हजारीबाग क
े प्योरी खान र्ें हुई दुघभटना 238 र्जदूर र्रे थे। 1958 र्ें चनाक
ु टी
र्ें एक दुघभटना हुई थी जजसर्ें 176 लोग र्रे थे।
खनन इंजीननयरी क
े आधुननक ववकास क
े फलस्वरूप इन दुघभटनाओ ं तथा अन्य सर्ी सर्स्याओ ं को कर् करने क
े यथासाध्य
सर्ी प्रकार क
े प्रयास ककए जाते हैं। दुघभटना की जस्थनत र्ें आपत्कालीन खनन सैन्य दल, जो पूणभ रूप से सुसजजजत रहता है,
धन और जन की रक्षा र्ें अपूवभ सहयोग देता है। प्रत्येक खनन क्षेत्र र्े इस सेवा क
े ललये क
ें द्रों की व्यवस्था रहती है। चासनाला
की दुघभटना र्ें पानी क
े ननकास क
े ललये अनेक देशों ने पंपादद यंत्र र्ेजकर सहायता की।
खानों का कार् सुचारु रूप से संचाललत होता रहे इसक
े ललये देशों की सरकारें कानून बनाती है। इन कानूनों र्ें कर्भचाररयों की
सुरक्षा उनक
े स्वास्थ्य, खनन र्ें उपयुक्त ववगधयों का उपयोग तथा अन्य संबंगधत ववर्य रहते हैं। श्रलर्कों क
े कल्याण क
े ललये
र्ी प्रत्येक देश र्ें और लंबे सर्य से र्ारत र्ें र्ी, योजनाएाँ कायाभजन्वत की जा रही हैं, जजससे उनक
े सुख,सुववधा और सुरक्षा क
े
साधनों र्ें वृद्गध हो।
प्रस्तुत अध्ययन का उद्ुेष्य ननमनललखखत है-
प्रत्येक कक्रया ककसी न ककसी उदेश्य की पूनत भक
े ललए ही होती है, क्योंकक बबना उदेश्य ननधाभररत ककये व्यजक्त कायभ को पूणभ र्ले
ही कर ले ककन्तु सही ननष्कर्भ तक नहीं पहुंचा जा सकता है। अनुसंधान कक्रया र्ी उसका अनुवाद नहीं है, ककसी अनुसंधान कायभ
क
े पहले अनुसंधान करता उस ववर्य व क्षेत्र से संबंगधत ववगधवत उदेश्य की रचना कर शोध कायभ की शुरूआत करता है।
इसललए शोधाथी ने अपने शोध का ननमन उदेश्य बताया है प्रनतशत-
1. सतना जस्थत खदानों का र्ैगोललक अध्ययन करना।
2. खदानों का पयाभवरण पर प्रर्ाव क
े संबन्ध र्े अध्ययन करना।
3. सतना जस्थत खदानों क
े प्रर्ाववत ग्रार्ों का अध्ययन करना।
4. सतना जस्थत खदानों क
े उत्पन्न पयाभवरणीय सर्स्या क
े रूप र्ें जल, वायु, एवं र्ू-अवनयन की सर्स्या क
े सन्दर्भ र्े
अध्ययन करना।
5. सतना जस्थत खदानों का सर्ाज पर प्रर्ाव का अध्ययन करना।
6. सतना जस्थत खदानों से लोगों का हो रही सर्स्या का अध्ययन करना।
शोध की उपकल्पना प्रनतशत-
एक उपकल्पना दो या दो से अगधक चरो क
े बीच पाये जाने वाले संबंधों का अनुर्वात्र्क रूप से परीक्षण करने योग्य कथन है।
सार्ाजजक घटनाओ ं क
े अध्ययनों को वैज्ञाननक रूप प्रदान करने उपकल्पना का ननर्ाभण ककया जाता है।
सर्ाजजक अनुसंधान र्ें उपकल्पना की उपयोगगता को दशाभते हुए ‘कोहेन’ तथा ‘नागेल’ ललखते है।
ककसी र्ी गवेर्णा र्ें हर् एक पद र्ी आगे नही बढ़ सकते। जब तक कक हर् उसको जन्र् देने वाली कदठनाईयों क
े सुझवात्र्क
स्पष्टीकरण अथवा सर्ाधान से प्रारंर् न करें जब वे प्रस्तावों क
े रूप र्ें सूत्र बद्ध कर ललये जाते है तो उन्हें उपकल्पना कहा
जाता है।
‘‘गुडे एवं हाट क
े अनुसार’’ उपकल्पना एक ऐसी र्ान्यता होती है जजसकी सत्यता लसद्ध करने क
े ललए उसका
परीक्षण ककया जा सकता है।
‘‘पी.वी. यंग क
े अनुसार’’ एक कायभवाहक जो उपयोगी खोज का आधार बनता है कायभवाहक उपकल्पना र्ाना जाता
है।
उपकल्पना एक ऐसा पूवभ ववचार, ननष्कर्भ, कथन सार्ान्यीकरण, अर्ूतीकरण, अनुर्ान या प्रस्तावना है। जजसे अनुसंधानकताभ
अपनी शोध की सर्स्या हेतु ननलर्भत करता है। और इसकी सत्यता की जाच करने क
े ललए आवश्यक सूचनाओ ं का संकलन
करता है।
1. सतना जजले र्ें खनन को रोकने क
े ललये सरकार द्वारा ककये जा रहे प्रयासों को सर्झना।
2. सतना जजले र्े अवैध खनन से पयाभवरण क
े बचाव क
े ललये हो रहे प्रयासों को सर्झना।
3. सतना जजले र्े अवैध खदानों से जन जीवन पर पड़ने वाले प्रर्ाव को रोकने क
े ललये उठाये जा रहे कदर् क
े बारे र्े
जानना।
शोध का र्हत्व -
पयाभवरण र्नुष्य को नवीकरणीय तथा गैर-नवीकरणीय दोनों संसाधन प्रदान करता है। नवीकरणीय संसाधन वे
संसाधन हैं जजनकी सर्य क
े साथ पूनत भ हो जाती है तथा इसललये बबना इस संर्ावना क
े उनका उपयोग ककया जा सकता है कक
इन संसाधनों का क्षय हो जायेगा अथवा ये सर्ाप्त हो जायेंगे। नवीकरणीय संसाधनों क
े उदाहरणों र्ें वनों र्ें वृक्षों, र्हासागर
र्ें र्छललयों आदद को सजमर्ललत ककया जाता है। दूसरी ओर, गैर-नवीकरणीय संसाधन वे संसाधन हैं जो खचभ हो जाने क
े
कारण सर्य क
े साथ सर्ाप्त हो जाते हैं अथवा उनका क्षय हो जाता है। गैर-नवीकरणीय संसाधनों क
े उदाहरणों र्ें जीवाश्र्
ईंधन तथा खननज, जैसे पैट्रोललयर्, प्राकृ नतक गैस, कोयला आदद को सजमर्ललत ककया जाता है। इसललये र्ावी पीदढ़यों की
आवश्यकतओ ं को ध्यान र्ें रखते हुए इन संसाधनों का प्रयोग सावधानीपूवभक करना चादहये।
पयाभवरण हाननकारक अपशेर्ों तथा उप-उत्पादों को आत्र्सात र्ी करता है अथाभत यह अपशेर्ों को पचाता है। गचर्ननयों तथा
र्ोटर गाड़ड़यों क
े ननकास-पाइपों से ननकलने वाला धुआं, शहरों तथा नगरों क
े र्ल पदाथभ, औद्योगगक स्राव सर्ी को पयाभवरण
आत्र्सात कर लेता है। इन सर्ी अपशेर्ों तथा उप-उत्पादों का ववलर्न्न प्राकृ नतक प्रकक्रयाओ ं द्वारा आत्र्सात तथा
पुनचभक्रीकरण ककया जाता है।
पयाभवरण जैव-ववववधता द्वारा जीवन को र्ी धाररत करता हैं। जीवन क
े ववलर्न्न रूपों पर पयाभवरण क
े दबाव द्वारा उत्पन्न
आनुवंलशक ववलर्न्नताएं जीवन क
े उन रूपों का अनुक
ू लन करने, ववकलसत होने तथा आनुवंलशक ववलर्न्नताएं उत्पन्न करने
की अनुर्नत देती हैं जो कठोर पयाभवरण र्ें जीववत रह सक
ें । अत प्रनतशत पयाभवरण जीवन क
े ववलर्न्न रूपों तथा अजैव घटकों
र्ें समबन्ध उत्पन्न करता है, उसको बनाये रखता है तथा जीवन को धाररत करता है। इसललये पयाभवरण को सुरक्षक्षत रखकर
जीवन क
े इन ववलर्न्न रूपों को सुरक्षक्षत रखना अत्यंत र्हत्वपूणभ है।
ववगध तंत्र -
प्रस्तुत लद्युशोध सीधी नगर क
े अंतगभत ‘‘सतना जजले र्े खनन का पयाभवरण का प्रर्ाव’’ से संबंगधत है। इस
अध्ययन र्ें वांनछत ववगध का प्रयोग ककया गया है। जो ननमनानुसार है -
(1) ववर्य प्रनतशत- प्रस्तुत अध्ययन ‘‘ खनन का पयाभवरण पर प्रर्ाव’’ शीर्भक पर है।
(2) साक्षात्कार अनुसूची प्रनतशत- ववर्य की स्वीकृ नत लर्ल जाने क
े उपरांत साक्षात्कार अनुसूची का ननर्ाभण ककया गया है।
यह साक्षात्कार क्रर्ांक 1 र्ें संलग्न है। साक्षात्कार अनुसूची र्ें संजय राष्ट्रीय उद्यान र्ें आने वाले पयभअकों को ववश्वास
ददलाने क
े ललये घोर्णा पत्र ददया गया है, तथा उन्हें यह बतलाया गया है प्रस्तुत अध्ययन एवं शैक्षखणक उद्देश्य से ककया जा
रहा है तथा उसक
े द्वारा प्राप्त जानकारी को पूरी तरह से गोपनीय रखा जायेगा साथ ही उनसे यह आशा व्यक्त की गई है कक
साक्षात्कार अनुसूची र्ें ददये गये तथ्यों की सही-सही जानकारी प्रदान करें।
(3) साक्षात्कार प्रनतशत- साक्षात्कार अनुसूची तैयार हो जाने क
े बाद अनुसंधानकताभ स्वयं खदानो क
े आस-पास रहने वाले
सदस्यों क
े पास गया और वहााँ व्यजक्तगत साक्षात्कार ककया और साक्षात्कार अनुसूची र्ें तथ्यों को उपयुक्त स्थान पर ललख
ददया।
शोध की सीर्ाऐं -
यद्यवप र्ेरे अध्ययन का ववर्य एक सीर्ा तक ननधाभररत है। हर अध्ययन की क
ु छ ववलशष्ट सीर्ाएं होती है। र्ेरा
प्रस्तुत अध्ययन र्ी सीर्ाओ ं से परे नहीं है। र्ेरे अध्ययन की पहली सीर्ा यह है कक प्रस्तुत शोध कायभ र्ात्र ‘‘खनन का
प्याभवरण पर प्रर्ाव’’ से संबंगधत है। र्ेरे अध्ययन की दूसरी सीर्ा यह है कक र्ैने लसफभ 50 सर्ूहों का साक्षात्कार ककया है। जहााँ
तक संर्व हो सका है उपयुक्त दोनो सीर्ाओ ं क
े तहत र्ैने अपने अध्ययन को अगधक वैज्ञाननक और ववश्लेर्णात्र्क प्रयास
ककया है।
अध्याय-2
अध्ययन से संबजन्धत र्ोध सादहत्य की सर्ीक्षा-
1. ललववंग र्होदय (1950)-ने अपने शोध द्वारा यह स्पष्ट ककया है कक पादप वृद्गध उसको प्राप्त खननजों र्ें सबसे
कर् र्ात्रा र्ें उपजस्थत खननज पर र्ी ननर्भर करती है। इसे बाद र्ें ललववंग का न्यूनतर् का ननयर् कहा गया है। इसक
े अनुसार
यदद ककसी पौधे क
े वृद्गध क
े ललए एक तत्व छोडकर शेर् सर्ी आवश्यक तत्व छोडकर शेर् सर्ी आवश्यक तत्व प्याभप्त र्ात्रा
र्ें उपजस्थत हो तब र्ी पौधे की वृद्गध उस एसक न्यूनतर् र्ात्रा वाले तत्व द्वारा ननयंबत्रत होती है।
2. ब्लैकर्ेन (1957) ने र्ी संश्लेर्ण की कक्रया को प्रर्ाववत करने वाले कारको पर कायभ करते हुए ‘‘सीर्ा कारको का
लसद्धान्त’’ प्रनतपाददत ककया। इसक
े अनुसार ककसी र्ी जीवन कक्रया की गनत सीर्ाकारी र्ात्रा र्ें लर्ल रहे कारको पर ननर्भर
करती है।
3. शैलफोडभ (1913) ने न्यूनतर् सीर्ा क
े साथ-साथ अगधकतर् सीर्ा का ननयर् बताया। शैलफोडभ क
े अनुसार ‘‘यदद
कोई कारक अत्यगधक र्ात्रा र्ें उपजस्थत हो जैसे लर्टटी क
े ककसी एक तत्व की र्ात्रा आवश्यकता से अगधक हो अथवा
न्यूनतर् र्ात्रा र्े हो। जैसे ताप का र्ी जीवों की वृद्गध तथा जनन कक्रया पर जयादा प्रर्ाव पडता है। शैलफोडभ ने न्यूनतर्
सीर्ा क
े ननयर्ों को बदलकर सहनशीलता की सीर्ा क
े ननर्य का प्रनतपादन ककया है।
4. लसंह रावेन्द्र (2015) ने अपने अध्ययन र्ें बताया कक पायाभवरण क
े सर्ी घटक और कारण अन्योन्यागश्रत है और एक
दूसरे को प्रर्ाववत करते है। उदाहरणाथभ सूयभ उजाभ से जब वायु गर्भ होती है। जजससे वाष्प ् बनती है और वायु ऊपर उठती है।
वायु क
े बहने क
े साथ वाष्प ् बादलों क
े रूप ् र्ें एक स्थान से दूसरे स्थान से दूसरे स्थान तक जाते है। बादलों द्वारा सूयभ की ऊजाभ
को पृथ्वी तक पहुुचने र्ें बाधा उत्पन्न होती है। जब बादलों र्ें उपजस्थत जल बरसता है। तो लर्टटी र्ें उपजस्थत बीज जर्ने
लगते हैं। कफर पौधे बनते है। पौधे लर्टटी जल व खननजों का तथा वातावरण्सा से काबभन उाई आक्साइड का शोर्ण करते है।
पौधों को र्ोजन क
े रूप ् र्ें पाकर अथवा खाने क
े ललए ववलर्न्न प्राणी एकबत्रत है। और प्याभवरण को पुन प्रनतशत पररवनत भत
करते है।
5. नतवारी आर.सी. (2006) ने अपने अध्ययन र्ें बताया कक पयाभवरण्या क
े ककसी र्ी कारक र्ें बबना अन्य कारकों को
प्रर्ाववत ककये पररवतभन नही ककया जा सकता है। वस्तुत प्रनतशत प्यावरण क
े कारक आपस र्ें इस तरह गुंथे हुए होते है जैसे
की जाल र्ें ताने-बाने । जजस प्रकार जाल क
े ककसी एक ताने-बाने क
े कट जाने से सारा जाल खुलता जाता है।
6. डेननस र्ीडोज (1971) क
े अनुसार पयाभवरण प्रबन्धन की संकल्पना सार्ान्यतया प्याभवारण र्ॉडल से समबजन्धत
होती है जो यह सुननजष्चत करता है कक पूंजी, वावर्भक कृ वर्-ननवेर् तथा र्ूलर् ववकास र्ें वृद्गध क
े साथ खाद्य पदाथों की आपूनत भ
र्ें र्ी वृद्गध होगी। परन्तु प्याभवरण प्रबन्धन का र्ॉडल इन कारकों की सीलर्तताओ ं र्ें आने वाले चुनौनतयों तथा सर्स्याओ ं से
ननपटने क
े ललए नीनतयों को र्ी सर्ादहत करता है।
7. श्री सूरा पान्चे रार्ू ने सन ् 1984 र्ें श्री कल्याण लसंह क
े पयभवेक्षकत्व र्ें चन्द्रशेखर आजाद कृ वर् एवं प्रौद्योगगक
ववश्वववद्यालय, कानपुर से कानपुर की पररगध र्ें कृ वर् क
े समबन्ध र्ें गंगा क
े प्रदूवर्त जल का अध्ययन शीर्भक पर शोध कायभ
ककया और बताया कक गंगा क
े प्रदूवर्त जल का कृ वर् र्ें उपयोग करने पर ववपरीत प्रर्ाव पड़ रहा है। उन्होंने ननष्कर्भ र्ें कहा क
कानपुर शहर अन्यागधक प्रदूवर्त है जबकक गुलाब और क
ु छ अन्य शोधगथभयों का अलर्र्त था कक प्रदूवर्त जल का कृ वर् र्ें
प्रयोग करने पर अच्छा प्रर्ाव पड़ रहा है।
8. श्री फरहत नागर जुबेरी ने 1985 र्ें वायु र्ें उपजस्थत जहरीले लसलककन कणों जैववक अकाबभननक रसायनों द्वारा बढ़
रहे प्रदूर्ण शीर्भक पर शोध कायभ करक
े बताया कक लसललकन क
े कारण वायु प्रदूर्ण र्ें वृद्गध हो रही है।
9. श्री शरद क
ु र्ार एर्0एड0छात्र ने 1996 र्ें दयानन्द र्दहला प्रलशक्षण संस्थान कानपुर र्ें डा0 रर्ा लर्श्रा क
े
पयभवेक्षत्व र्ें बच्चों क
े स्वास्थ व लशक्षा पर ध्वनन प्रदूर्ण क
े प्रर्ाव का अध्ययन शार्भक पर लघु शोध प्रबन्ध प्रस्तुत ककया और
प्राप्त पररणार् से यह ननष्कर्भ ननकाला कक ध्वनन प्रदूर्ण से व्यजक्त क
े जीवन व व्यवहार तथा कायभ करने की क्षर्ता पर
ववपररत प्रर्ाव पड़ता हैं।
10. 19ु98 र्ें शोधाथी जे0एल0नेहरू रोड जाजभ टाउन इलाहाबाद ननवासी श्री खरे ने र्ारतीय उद्योग र्ें गृह पृथ्वी पर
प्रदूर्ण शीर्भक पर शोध कायभ क
े पररणार् ननष्कर्भ र्ें कहा कक जल प्रदूर्ण की बढ़ती र्ात्रा लोंगों क
े जीवन की अवगध कर् कर
रही है।
11. 2001 र्ें यू0 ननगर् एवं लसद्दीकी एर्0क
े 0जे0 ने इण्डजस्ट्रयल टेक्नोलोजी ररसचभ सेन्टर लखनऊ से ककये गये शोध
कायभ शीर्भक डेरी दुग्ध र्े कीटाणुनाशक पदाथो की र्ात्रा पर कायभ करक
े अपने ननष्कर्भ र्ें कहा कक दुग्ध क
े अवशेर् पदाथो का
बच्चों क
े स्वारथ्य पर सीधा क
ु प्रर्ाव छोड़ता है।
12. लसंह, आर0पी0, र्ूगवभ ववज्ञान, बनारस दहन्दू ववश्वववद्यालय, वाराणसी ने जून 2007 र्ें उत्तर प्रदेश क
े कानपुर
शहर क
े औद्योगगक प्रदूर्ण क
े गंदे जल का स्तर शीर्भक पर शोध कायभ ककया और कहा कक वृह्द पैर्ाने पर औद्योगगक
कारखानों क
े कारण कानपुर क
े सार्ाजजक व आगथभक स्तर र्ें वृद्गध क
े साथ पयाभवरण प्रदूर्ण र्ें र्ी वृद्गध की । जजससे धूल,
धुआाँ, प्रदूवर्त गैसें और इंडस्ट्रीज क
े गंदे जल कक बहाव से जल प्रदूर्ण की सर्स्यायें उत्पन्न हो रही हैं जल र्ें ।ुेए ब्तए
ब्कएब्नएथ्र्एभ्हए च्इएदभ आदद अथाभत ् आसेननक क्रोलर्यर्, क
ै डलर्यर्, तॉबा, लोहा, पारा, शीशा,और जस्ता इनसे लोंगों र्ें
र्ानलसक प्रदूर्ण की वृद्गध हो रही है।
पररणार् प्रनतशत र्ग्नाशा क
े कारण आतंकवादी हर्ले हो रहे है। अपरागधक प्रवृवत्त बढ़ रही है अस्तु कानपुर क
े चर्ड़े क
े
उद्योग वाले कारखाने बन्द होने चादहये।
उन्होंने कहा कक सर्य रहतें हुए यदद जल प्रदूर्ण पर अंक
ु श नही लगाया गया तो जानलेवा ड्रग्स और शराबखोरी क
े प्रयोग र्ें
पृद्गध पर रोक नही लगेगी क्योंकक र्ानलसक प्रदूवर्त लोग गल्ती करना र्हसूस नही करते। प्राचीन काल र्ें इन गनतववगधयों
को बुराई कहा जाता था।
13. 3 जून 2009 क
े समर्ेलन र्ें र्हार्ारी और र्ानलसक प्रदूर्ण पर संकललत ववचारों से ननष्कर्भ र्ें यह कहा गया कक
संक्रलर्त ववकृ त व र्ानलसक प्रदूवर्त लोग उच्च पदों पर रहते हुए हगथयारों क
े प्रयोग पर अंक
ु श नही लगा पा रहें हैं जजससे
संघर्भ व आतंकवाद आदद की वृद्गध थर् नही सकती । ननदोस लोग र्ौत क
े लशकार होने से वंगचत नही रह पाते हैं।
रसायाननक प्रदूर्ण दूवर्त एवं जहरीले जल क
े ठहर जाने पर दुतगनत से वृद्गध करता हैं। गृहोपयोगी कायो क
े बाद ननकला
जल, कारखानों का गंदा जल, जजनर्ें डी0डी0टी0 एवं अन्य घुललत औद्योगगक रसायन र्छली से लेकर र्नुष्य तक र्ोजन क
े
साथ पहुाँचकर ववलर्न्न शारीररक व र्ानलसक ववकार उत्पन्न करते है।
अध्याय-3
र्ारत र्ें पयाभवरण की सर्स्या
र्ारत र्ें पयाभवरण की कई सर्स्या है। वायु प्रदूर्ण, जल प्रदूर्ण, कचरा, और प्राकृ नतक पयाभवरण क
े प्रदूर्ण र्ारत क
े ललए
चुनौनतयााँ हैं। पयाभवरण की सर्स्या की पररजस्थनत 1947 से 1995 तक बहुत ही खराब थी। 1995 से २०१० क
े बीच ववश्व बैंक
क
े ववशेर्ज्ञों क
े अध्ययन क
े अनुसार, अपने पयाभवरण क
े र्ुद्दों को संबोगधत करने और अपने पयाभवरण की गुणवत्ता र्ें सुधार
लाने र्ें र्ारत दुननया र्ें सबसे तेजी से प्रगनत कर रहा है। कफर र्ी, र्ारत ववकलसत अथभव्यवस्थाओ ं वाले देशों क
े स्तर तक
आने र्ें इसी तरह क
े पयाभवरण की गुणवत्ता तक पहुाँचने क
े ललए एक लंबा रास्ता तय करना है।ख ्1,ख ्2, र्ारत क
े ललए एक बड़ी
चुनौती और अवसर है। पयाभवरण की सर्स्या का, बीर्ारी, स्वास्थ्य क
े र्ुद्दों और र्ारत क
े ललए लंबे सर्य तक आजीववका
पर प्रर्ाव का र्ुख्य कारण हैं।
कारण
क
ु छ पयाभवरण क
े र्ुद्दों क
े बारे र्ें कारण क
े रूप र्ें आगथभक ववकास को उद्धृत ककया है।दूसरे, आगथभक ववकास र्ें र्ारत क
े
पयाभवरण प्रबंधन र्ें सुधार लाने और देश क
े प्रदूर्ण को रोकने क
े ललए र्हत्वपूणभ है ववश्वास करते हैं।बढ़ती जनसंख्या र्ारत
क
े पयाभवरण क्षरण का प्राथलर्क कारण र्ी है ऐसा सुझाव ददया गया है।व्यवजस्थत अध्ययन र्ें इस लसद्धांत को चुनौती दी
गई है।
तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या व आगथभक ववकास और शहरीकरण व औद्योगीकरण र्ें अननयंबत्रत वृद्गध, बड़े पैर्ाने पर
औद्योगीक ववस्तार तथा तीव्रीकरण, तथा जंगलों का नष्ट होना इत्यादद र्ारत र्ें पयाभवरण संबंधी सर्स्याओ ं क
े प्रर्ुख
कारण हैं।
प्रर्ुख पयाभवरणीय र्ुद्दों र्ें वन और कृ वर्-र्ूलर्क्षरण, संसाधन ररक्तीकरण (पानी, खननज, वन, रेत, पत्थर आदद), पयाभवरण
क्षरण, सावभजननक स्वास्थ्य, जैव ववववधता र्ें कर्ी, पाररजस्थनतकी प्रणाललयों र्ें लचीलेपन की कर्ी, गरीबों क
े ललए
आजीववका सुरक्षा शालर्ल हैं।
यह अनुर्ान है कक देश की जनसंख्या वर्भ 2018 तक 1.26 अरब तक बढ़ जाएगी. अनुर्ाननत जनसंख्या का संक
े त है कक
2050 तक र्ारत दुननया र्ें सबसे अगधक आबादी वाला देश होगा और चीन का स्थान दूसरा होगा। दुननया क
े क
ु ल क्षेत्रफल का
2.4 प्रनतशत परन्तु ववश्व की जनसंख्या का 17.5 प्रनतशत धारण कर र्ारत का अपने प्राकृ नतक संसाधनों पर दबाव काफी बढ़
गया है। कई क्षेत्रों पर पानी की कर्ी, लर्ट्टी का कटाव और कर्ी, वनों की कटाई, वायु और जल प्रदूर्ण क
े कारण बुरा असर
पड़ता है।
प्रर्ुख सर्स्यायें
र्ारत की पयाभवरणीय सर्स्याओ ं र्ें ववलर्न्न प्राकृ नतक खतरे, ववशेर् रूप से चक्रवात और वावर्भक र्ानसून बाढ़,
जनसंख्या वृद्गध, बढ़ती हुई व्यजक्तगत खपत, औद्योगीकरण, ढांचागत ववकास, घदटया कृ वर् पद्धनतयां और संसाधनों का
असर्ान ववतरण हैं और इनक
े कारण र्ारत क
े प्राकृ नतक वातावरण र्ें अत्यगधक र्ानवीय पररवतभन हो रहा है। एक अनुर्ान
क
े अनुसार खेती योग्य र्ूलर् का 60 प्रनतशत र्ूलर् कटाव, जलर्राव और लवणता से ग्रस्त है। यह र्ी अनुर्ान है कक लर्ट्टी
की ऊपरी परत र्ें से प्रनतवर्भ 4.7 से 12 अरब टन लर्ट्टी कटाव क
े कारण खो रही है। 1947 से 2002 क
े बीच, पानी की औसत
वावर्भक उपलब्धता प्रनत व्यजक्त 70 प्रनतशत कर् होकर 1822 घन र्ीटर रह गयी है तथा र्ूगर्भ जल का अत्यगधक दोहन
हररयाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश र्ें एक सर्स्या का रूप ले चुका है। र्ारत र्ें वन क्षेत्र इसक
े र्ौगोललक क्षेत्र का 18.34 प्रनतशत
(637,000 वगभ ककर्ी) है। देश र्र क
े वनों क
े लगर्ग आधे र्ध्य प्रदेश (20.7 प्रनतशत) और पूवोत्तर क
े सात प्रदेशों (25.7
प्रनतशत) र्ें पाए जाते हैंय इनर्ें से पूवोत्तर राजयों क
े वन तेजी से नष्ट हो रहे हैं। वनों की कटाई ईंधन क
े ललए लकड़ी और कृ वर्
र्ूलर् क
े ववस्तार क
े ललए हो रही है। यह प्रचलन औद्योगगक और र्ोटर वाहन प्रदूर्ण क
े साथ लर्ल कर वातावरण का तापर्ान
बढ़ा देता है जजसकी वजह से वर्भण का स्वरुप बदल जाता है और अकाल की आवृवत्त बढ़ जाती है।
पावभती जस्थत र्ारतीय कृ वर् अनुसंधान संस्थान का अनुर्ान है कक तापर्ान र्ें 3 ड़डग्री सेजल्सयस की वृद्गध सालाना
गेहूं की पैदावार र्ें 15-20 प्रनतशत की कर्ी कर देगी. एक ऐसे राष्ट्र क
े ललए, जजसकी आबादी का बहुत बड़ा र्ाग र्ूलर्ूत स्रोतों
की उत्पादकता पर ननर्भर रहता हो और जजसका आगथभक ववकास बड़े पैर्ाने पर औद्योगगक ववकास पर ननर्भर हो, ये बहुत बड़ी
सर्स्याएं हैं। पूवी और पूवोत्तर राजयों र्ें हो रहे नागररक संघर्भ र्ें प्राकृ नतक संसाधनों क
े र्ुद्दे शालर्ल हैं - सबसे ववशेर् रूप से
वन और कृ वर् योग्य र्ूलर्.
जंगल और जर्ीन की कृ वर् गगरावट, संसाधनों की कर्ी (पानी, खननज, वन, रेत, पत्थर आदद),पयाभवरण क्षरण,
सावभजननक स्वास्थ्य, जैव ववववधता क
े नुकसान, पाररजस्थनतकी प्रणाललयों र्ें लचीलेपन की कर्ी है, गरीबों क
े ललए आजीववका
सुरक्षा है। र्ारत र्ें प्रदूर्ण का प्रर्ुख स्रोत ऐसी ऊजाभ का प्राथलर्क स्रोत क
े रूप र्ें पशुओ ं से सूखे कचरे क
े रूप र्ें फ्युलवुड और
बायोर्ास का बड़े पैर्ाने पर जलना, संगदठत कचरा और कचरे को हटाने सेवाओ ं की एसीक
े , र्लजल उपचार क
े संचालन की
कर्ी, बाढ़ ननयंत्रण और र्ानसून पानी की ननकासी प्रणाली, नददयों र्ें उपर्ोक्ता कचरे क
े र्ोड़, प्रर्ुख नददयों क
े पास दाह
संस्कार प्रथाओ ं की कर्ी है, सरकार अत्यगधक पुराना सावभजननक पररवहन प्रदूर्ण की सुरक्षा अननवायभ है, और जारी रखा
1950-1980 क
े बीच बनाया सरकार क
े स्वालर्त्व वाले, उच्च उत्सजभन पौधों की र्ारत सरकार द्वारा आपरेशन है।
वायु प्रदूर्ण, गरीब कचरे का प्रबंधन, बढ़ रही पानी की कर्ी, गगरते र्ूजल टेबल, जल प्रदूर्ण, संरक्षण और वनों की
गुणवत्ता, जैव ववववधता क
े नुकसान, और र्ूलर् ध् लर्ट्टी का क्षरण प्रर्ुख पयाभवरणीय र्ुद्दों र्ें से क
ु छ र्ारत की प्रर्ुख
सर्स्या है। र्ारत की जनसंख्या वृद्गध पयाभवरण क
े र्ुद्दों और अपने संसाधनों क
े ललए दबाव सर्स्या बढ़ाते है।
जल प्रदूर्ण
र्ारत क
े 3,119 शहरों व कस्बों र्ें से 209 र्ें आंलशक रूप से तथा क
े वल 8 र्ें र्लजल को पूणभ रूप से उपचाररत
करने की सुववधा (डब्ल्यू.एच.ओ. 1992) है। 114 शहरों र्ें अनुपचाररत नाली का पानी तथा दाह संस्कार क
े बाद अधजले शरीर
सीधे ही गंगा नदी र्ें बहा ददए जाते हैं। अनुप्रवाह र्ें नीचे की ओर, अनुपचाररत पानी को पीने, नहाने और कपड़े धोने क
े ललए
प्रयोग ककया जाता है। यह जस्थनत र्ारत और साथ ही र्ारत र्ें खुले र्ें शौच काफी आर् है, यहां तक कक शहरी क्षेत्रों र्ें र्ी.
जल संसाधनों को इसीललए घरेलू या अंतराभष्ट्रीय दहंसक संघर्भ से नहीं जोड़ा गया है जैसा कक पहले क
ु छ पयभवेक्षकों
द्वारा अनुर्ाननत था। इसक
े क
ु छ संर्ाववत अपवादों र्ें कावेरी नदी क
े जल ववतरण से समबंगधत जानतगत दहंसा तथा इससे
जुड़ा राजनैनतक तनाव जजसर्ें वास्तववक और संर्ाववत जनसर्ूह जो कक बांध पररयोजनाओ ं क
े कारण ववस्थावपत होते हैं,
ववशेर्कर नर्भदा नदी पर बनने वाली ऐसी पररयोजनाएं शालर्ल हैं। आज पंजाब प्रदूर्ण क
े पनपने का एक संर्ाववत स्थान है,
उदाहरण क
े ललए बुड्ढा नुल्ला नार् की एक छोटी नदी जो पंजाब, र्ारत क
े र्ालवा क्षेत्र से है, यह लुगधयाना जजले जैसी घनी
आबादी वाले क्षेत्र से होकर आती है और कफर सतलज नदी, जो कक लसन्धु नदी की सहायक नदी है, र्ें लर्ल जाती है, हाल की
शोधों क
े अनुसार यह इंगगत ककया गया है कक एक बार और र्ोपाल जैसी पररजस्थनतयां बनने वाली हैं। 2008 र्ें
पीजीआईएर्ईआर और पंजाब प्रदूर्ण ननयंत्रण बोडभ द्वारा ककये गए संयुक्त अध्ययन से पता चला कक नुल्ला क
े आस पास क
े
जजलों र्ें र्ूलर्गत जल तथा नल क
े पानी र्ें स्वीकृ त सीर्ा (एर्पीएल) से कहीं अगधक र्ात्रा र्ें क
ै जल्शयर्, र्ैग्नीलशयर्,
फ्लोराइड, र्रकरी तथा बीटा-एंडोसल्फान व हेप्टाक्लोर जैसे कीटनाशक पाए गए। इसक
े अलावा पानी र्ें सीओडी तथा बीओडी
(रासायननक व जैवरासायननक ऑक्सीजन की र्ांग), अर्ोननया, फॉस्फ
े ट, क्लोराइड, क्रोलर्यर् व आसेननक तथा
क्लोरपायरीफौस जैसे कीटनाशक र्ी अगधक सांद्रता र्ें थे। र्ूलर्गत जल र्ें र्ी ननकल व सेलेननयर् पाए गए और नल क
े पानी
र्ें सीसा, ननकल और क
ै डलर्यर् की उच्च सांद्रता लर्ली।
र्ुंबई नगर से होकर बहने वाली र्ीठी नदी र्ी बहुत प्रदूवर्त है।
गंगा
प्रदूवर्त गंगा नदी पर लाखों ननर्भर करते हैं।
गंगा नदी क
े ककनारे 40 करोड़ से र्ी अगधक लोग रहते हैं। दहन्दुओ ं क
े द्वारा पववत्र र्ानी जाने वाली इस नदी र्ें लगर्ग
2,000,000 लोग ननयलर्त रूप से धालर्भक आस्था क
े कारण स्नान करते हैं। दहन्दू धर्भ र्ें कहा जाता है कक यह नदी र्गवन
ववष्णु क
े कर्ल चरणों से (वैष्णवों की र्ान्यता) अथवा लशव की जटाओ ं से (शैवों की र्ान्यता) बहती है। आध्याजत्र्क और
धालर्भक र्हत्व क
े ललए इस नदी की तुलना प्राचीन लर्स्र वालसयों क
े नील नदी से की जा सकती है। जबकक गंगा को पववत्र र्ाना
जाता है, वहीं इसक
े पाररजस्थनतकी तंत्र से संबंगधत क
ु छ सर्स्याएं र्ी हैं। यह रासायननक कचरे, नाली क
े पानी और र्ानव व
पशुओ ं की लाशों क
े अवशेर्ों से र्री हुई है और इसर्ें सीधे नहाना (उदाहरण क
े ललए बबल्हारजजयालसस संक्रर्ण) अथवा इसका
जल पीना (फ
े कल-र्ौखखक र्ागभ से) प्रत्यक्ष रूप से खतरनाक है।
यर्ुना
पववत्र यर्ुना नदी को न्यूज वीक द्वारा ‘‘काले कीचड़ की बदबूदार पट्टी‘‘ कहा गया जजसर्ें फ
े कल जीवाणु की
संख्या सुरक्षक्षत सीर्ा से 10,000 गुणा अगधक पायी गयी और ऐसा इस सर्स्या क
े सर्ाधान हेतु 15 वर्ीय कायभक्रर् क
े बाद
है। हैजा र्हार्ारी से कोई अपररगचत नहीं है।
वायु प्रदूर्ण
र्ारतीय शहरों र्ें वायु प्रदूर्ण उच्च है।
र्ारतीय शहर वाहनों और उद्योगों क
े उत्सजभन से प्रदूवर्त हैं। सड़क पर वाहनों क
े कारण उड़ने वाली धूल र्ी वायु प्रदूर्ण र्ें
33 प्रनतशत तक का योगदान करती है। बंगलुरु जैसे शहर र्ें लगर्ग 50 प्रनतशत बच्चे अस्थर्ा से पीड़ड़त हैं। र्ारत र्ें 2005
क
े बाद से वाहनों क
े ललए र्ारत स्टेज दो (यूरो प्प ्) क
े उत्सजभन र्ानक लागू हैं।
र्ारत र्ें वायु प्रदूर्ण का सबसे बड़ा कारण पररवहन की व्यवस्था है। लाखों पुराने डीजल इंजन वह डीजल जला रहे हैं जजसर्ें
यूरोपीय डीजल से 150 से 190 गुणा अगधक गंधक उपजस्थत है। बेशक सबसे बड़ी सर्स्या बड़े शहरों र्ें है जहां इन वाहनों का
घनत्व बहुत अगधक है। सकारात्र्क पक्ष पर, सरकार इस बड़ी सर्स्या और लोगों से संबद्ध स्वास्थ्य जोखखर्ों पर प्रनतकक्रया
करते हुए धीरे-धीरे लेककन ननजश्चत रूप से कदर् उठा रही है। पहली बार 2001 र्ें यह ननणभय ललया गया कक समपूणभ
सावभजननक यातायात प्रणाली, ट्रेनों को छोड़ कर, क
ं प्रेस्ड गैस (सीपीजी) पर चलने लायक बनायी जाएगी. ववद्युत ् चाललत
ररक्शा ड़डजाइन ककया जा रहा है और सरकार द्वारा इसपर ररयायत र्ी दी जाएगी परन्तु ददल्ली र्ें साइककल ररक्शा पर
प्रनतबन्ध है और इसक
े कारण वहां यातायात क
े अन्य र्ाध्यर्ों पर ननर्भरता होगी, र्ुख्य रूप से इंजन वाले वाहनों पर।
यह र्ी प्रकट हुआ है कक अत्यगधक प्रदूर्ण से ताजर्हल पर प्रनतक
ू ल प्रर्ाव पड़ रहा था। अदालत द्वारा इस क्षेत्र र्ें सर्ी प्रकार
क
े वाहनों पर रोक लगाये जाने क
े पश्चात इस इलाक
े की सर्ी औद्योगगक इकाइयों को र्ी बंद कर ददया गया। बड़े शहरों र्ें
वायु प्रदूर्ण इस कदर बढ़ रहा है कक अब यह ववश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा ददए गए र्ानक से लगर्ग 2.3
गुना तक हो चुका है।
ध्वनन प्रदूर्ण
र्ारत क
े सवोच्च न्यायलय द्वारा ध्वनन प्रदूर्ण पर एक र्हत्वपूणभ फ
ै सला सुनाया गया। वाहनों क
े हॉनभ की आवाज
शहरों र्ें शोर क
े डेलसबबल स्तर को अनावश्यक रूप से बढ़ा देती है। राजनैनतक कारणों से तथा र्ंददरों व र्जस्जदों र्ें
लाउडस्पीकर का प्रयोग ररहायशी इलाकों र्ें ध्वनन प्रदूर्ण क
े स्तर को बढाता है।
हाल ही र्ें र्ारत सरकार ने शहरी और ग्रार्ीण क्षेत्रों र्ें ध्वनन स्तर क
े र्ानदंडों को स्वीकृ त ककया है। इनकी ननगरानी
व कक्रयान्वन क
ै से होगा यह अर्ी र्ी सुननजश्चत नहीं है।
र्ूलर् प्रदूर्ण
र्ारत र्ें र्ूलर् प्रदूर्ण कीटनाशकों और उवभरकों क
े साथ-साथ क्षरण की वजह से हो रहा है। र्ाचभ 2009 र्ें पंजाब र्ें युरेननयर्
ववर्ाक्तता का र्ार्ला प्रकाश र्ें आया, इसका कारण ताप ववद्युत ् गृहों द्वारा बनाये गए राख क
े तालाब थे, इनसे पंजाब क
े
फरीदकोट तथा र्दटंडा जजलों र्ें बच्चों र्ें गंर्ीर जन्र्जात ववकार पाए गए।
जनसंख्या वृद्गध और पयाभवरण की गुणवत्ता
जनसंख्या वृद्गध और पयाभवरण क
े बीच बातचीत क
े बारे र्ें अध्ययन और बहस का एक लंबा इनतहास है। एक
बिदटश ववचारक र्ाल्थस क
े अनुसार, उदाहरण क
े ललए, एक बढ़ती हुई जनसंख्या पयाभवरण क्षरण क
े कारण, और गरीब
गुणवत्ता क
े रूप र्ें क
े रूप र्ें अच्छी तरह से गरीब की र्ूलर् की खेती क
े ललए र्जबूर कर रहा, कृ वर् र्ूलर् पर दबाव डाल रही
है।यह पयाभवरण क्षरण अंतत प्रनतशत, कृ वर् पैदावार और खाद्य पदाथों की उपलब्धता को कर् कर देता है, जजससे जनसंख्या
वृद्गध की दर को कर् करने, अकाल और रोगों और र्ृत्यु का कारण बनता है । यह पयाभवरण की क्षर्ता पर दबाव डाल सकता
है जनसंख्या वृद्गध ने र्ी हवा, पानी, और ठोस अपलशष्ट प्रदूर्ण का एक प्रर्ुख कारण क
े रूप र्ें देखा जाता है।
पयाभवरण क
े सर्स्या और र्ारतीय कानून
1980 क
े दशक क
े बाद से, र्ारत क
े सवोच्च न्यायालय सर्थभक सकक्रय रूप से र्ारत क
े पयाभवरण क
े र्ुद्दों र्ें लगा हुआ
है।र्ारत क
े उच्चतर् न्यायालय की व्याख्या और सीधे पयाभवरण न्यायशास्त्र र्ें नए पररवतभन शुरू करने र्ें लगा हुआ है।
न्यायालय क
े ननदेशों और ननणभय की एक श्रृंखला क
े र्ाध्यर् से र्ौजूदा वालों पर अनतररक्त शजक्तयां, पयाभवरण कानूनों को
कफर से व्याख्या की है, पयाभवरण की रक्षा क
े ललए नए संस्थानों और संरचनाओ ं नए लसद्धांतों बनाया नीचे रखी है, और नवाजा
गया है। पयाभवरण क
े र्ुद्दों पर जनदहत यागचका और न्यानयक सकक्रयता र्ारत क
े सुप्रीर् कोटभ से परे फ
ै ली हुई है। यह अलग-
अलग राजयों क
े उच्च न्यायालयों र्ें शालर्ल हैं।
संरक्षण
खराब वायु गुणवत्ता, जल प्रदूर्ण और कचरे क
े प्रदूर्ण - सर्ी पाररजस्थनतक तंत्र क
े ललए आवश्यक खाद्य और
पयाभवरण की गुणवत्ता प्रर्ाववत करते हैं। र्ारतीय जंगलों वन वनस्पनत की ववववधता और ववतरण बड़ी है।
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Pushpendra kumar saket

  • 1. अध्याय-1 प्रस्तावना पृथ्वी क े गर्भ से धातुओ ं, अयस्कों, औद्योगगक तथा अन्य उपयोगी खननजों को बाहर ननकालना खननकर्भ या खनन (उपदपदह) हैं। आधुननक युग र्ें खननजों तथा धातुओ ं की खपत इतनी अगधक हो गई है कक प्रनत वर्भ उनकी आवश्यकता करोड़ों टन की होती है। इस खपत की पूनत भ क े ललए बड़ी-बड़ी खानों की आवश्यकता का उत्तरोत्तर अनुर्व हुआ। फलस्वरूप खननकर्भ ने ववस्तृत इंजीननयरों का रूप धारण कर ललया है। इसको खनन इंजीननयरी कहते हैं। संसार क े अनेक देशों र्ें, जजनर्ें र्ारत र्ी एक है, खननकर्भ बहुत प्राचीन सर्य से ही प्रचललत है। वास्तव र्ें प्राचीन युग र्ें धातुओ ं तथा अन्य खननजों की खपत बहुत कर् थी, इसललए छोटी-छोटी खान ही पयाभप्त थी। उस सर्य ये खानें 100 फ ु ट की गहराई से अगधक नहीं जाती थीं। जहााँ पानी ननकल आया करता था वहााँ नीचे खनन करना असंर्व हो जाता थाय उस सर्य आधुननक ढंग क े पंप आदद यंत्र नहीं थे। खननजो से जुडे संदबभ-जजन कच्ची धातुओ र्े खननज लर्लते है उन्हे अयस्क कहा जाता है। खुदाई करक े अयस्क ननकलने वाले स्थान को खादान या खान(उपदर्) कहा जाता है।यदद धरातल पर ऊपर-ऊपर से खुदाई की जाए तो उसे उत्खनन (ुुनंततलपदह) कहते है और यदद र्ू-गर्भ से खननज प्राप्त ककए जाएं तो उस कायभ को खनन (उपदपदह )कहते है। पररचय ककसी र्ी प्रकार क े खननववकास क े ललये खनन क े पूवभ की दो अवस्थाएाँ -- पूवेक्षण (च्तवेचर्बजपदह) तथा गवेर्णा (र् ्Ûचसवतंजपवद) बहुत र्हत्वपूणभ हैं। पूवेक्षण क े अंतगभत खननजों तथा अयस्कों की खोज, ननक्षेपों का सार्ान्य अध्ययन तथा खनन की संर्ावनाओ ं को सजमर्ललत ककया जाता है। इन तथ्यों की जानकारी क े ललए ककन साधनों की सहायता ली जाय, यह उस क्षेत्र की आवश्यकाताओ ं पर ननर्भर करता है। गवेर्णात्र्क कायभ क े अंतगभत संर्ाव्य ननक्षेपों का ववस्तार और क्षेत्र, उनकी औसत र्ोटाई, खननज की संर्ाव्य र्ात्रा तथा र्ूल्य, ननक्षेपों क े अंतगभत खनन योग्य क्षेत्रों का ववतरण, खान को खोलने, ववकलसत करने तथा खनन को प्रर्ाववत करनेवाली अवस्थाएाँ एवं खान क े ववकास क े ललये उपयुक्त ववगध का ननश्चय आदद र्हत्वपूणभ तथ्य सजमर्ललत हैं। गवेर्णा क े तीन र्ुख्य अंग हैं प्रनतशत तलीय गवेर्णा, वेधन (क्तपससपदह) तथा र्ूलर्गत गवेर्णा। खननकर्भ क े र्ुख्य ववर्ाग खननकर्भ को र्ुख्य रूप से तीन र्ागों र्ें ववर्ाजजत ककया गया हैं प्रनतशत तलीय खनन (ुैननतंबर् उपदपदह), जलोढ़ खनन (ुंससनअपंस उपदपदह) तथा र्ूलर्गत खनन (न्दकर्तहतवनदक उपदपदह)।
  • 2. तलीय खनन तााँबे की खुली खान प्रनतशत गचली की यह खान ववश्व की सवाभगधक पररगध वाली एवं दूसरी सबसे गहरी खान है। इस प्रकार क े खनन र्ें धरातल क े ऊपर जो पहाड़ आदद हैं उनको तोड़कर खननज प्राप्त ककए जात हैं, जैसे चूने का पत्थर, बालू का पत्थर, ग्रैनाइट, लौह अयस्क आदद। इस ववगध र्ें र्ुख्य कायभ पत्थर को तोड़ना ही हैं। लशलाएाँ कठोरता, र्जबूती तथा दृढ़ता र्ें लर्न्न होती हैं। जो लशलाएाँ कोर्ल होती हैं, उनको तोड़ने र्ें कोई कदठनाई नहीं होती। ऐसी लशलाओ ं क े उदाहरण जजप्सर्, चीनी लर्ट्टी, सेलखड़ी आदद हैं। जजन लशलाओ ं र्ें धातुएाँ लर्लती हैं वे अत्यंत कठोर होती हैं, जैसे ग्रैनाइट, डायोराइट आदद। इन लशलाओ ं को ववस्फोटक पदाथों द्वारा तोड़ा जाता हैं। प्राचीन तथा र्ध्यकालीन युगों र्ें खनन की ववगधयां ननतांत अनुपयुक्त थीं। धीरे धीरे खनन ववगधयों का ववकास हुआ और उनर्ें बारूद आदद का उपयोग होने लगा। ववगत एक शताब्दी र्ें डायनेर्ाइट, जेललग्नाइट, नाइट्रोजग्लसरीन आदद अनेक प्रकार क े अन्याय ववस्फोटक पदाथों का ववकास हुआ। खनन र्ें ववस्फोटक पदाथों का उपयोग करने क े ललये पहले लशलाओ ं र्ें नछद्र बनाया जाता है तथा उसर्ें ये ववस्फोटक जो कारतूस क े रूप र्ें लर्लते हैं, रख ददए जाते हैं और ववद्युतद्धारा या फ्यूज लगाकर उनर्ें आग लगा दी जाती हैं। ववस्फोट क े साथ ही पत्थर क े टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं। कफर इनको धन आदद से तोड़कर और छोटा कर ललया जाता है, जजससे उन्हें हटाने र्ें सुववधा हो। पत्थरों र्ें नछद्र बनाने क े ललय जैक हैर्र आदद अनेक प्रकार क े वेधनयंत्रों का उपयोग ककया जाता है। ये यंत्र संपीड़ड़त वायु अथवा ककसी द्रव ईंधन द्वारा संचाललत होते हैं। नछद्रों की गहराई 3-4 फ ु ट तक तथा व्यास 1-1ध्2 इंच से लेकर 2 1ध्2 इंच तक होता है। कर्ी कर्ी लशलातल पर ऐसे बहुत से नछद्र कर ददए जाते है और सब र्ें ववस्फोटक कारतूस र्र ददए जाते हैं तथा ववद्युत ् द्वारा सर्ी को एक साथ ही जला ददया जाता है, इससे पूरे का पूरा पहाड़ टूट जाता है। र्ारत र्ें इस प्रकार क े तलीय खनन क े उदाहरण चूना पत्थर तथा लौह अयस्क आदद हैं। पत्थरों क े हटाने क े ललये बड़ी खानों र्ें रेल की पटररयााँ बबछाकर ठेलों का उपयोग ककया जाता है। इस कार् र्ें यांबत्रक खुरपे र्ी बड़े उपयोगी लसद्ध हुए हैं। ये खुरपे उन पत्थरों को उठाकर बड़े ट्रकों र्ें र्र देते हैं। र्ारत र्ें इस प्रकार क े खनन की लागत 5 रु0 से लेकर 9-10 रु0 प्रनत टन तक पड़ती है। तलीय खनन र्ें 40-50 फ ु ट तक गहराई क े पत्थर ननकाले जाते हैं। खुले हुए गड्ढों से खनन करक े अयस्क तथा खननज ननकालने की ववगध तााँबा, लोहा, कोयला, चूना पत्थर तथा अन्य औद्योगगक खननजों क े उत्खनन र्ें प्रयुक्त होती है। क ु छ अंशों तक यह ववगध सोने, चााँदी, जस्ते तथा सीसे क े खनन र्ें र्ी सहायक लसद्ध हुई हैं। इस प्रकार क े खनन र्ें खुदाई करनेवाले ववशाल यंत्र तथा अयस्क या खननज को लादकर खान से बाहर ले जानेवाले यंत्र प्रर्ुख है। खुदाई क े ललये शजक्तशाली यांबत्रक खुरपों का प्रयोग होता है। ये खुरपे ववस्फोट द्वारा उड़ाए हुए पत्थरों क े टुकड़ों को ट्रक अथवा र्ालगाड़ी क े ड़डब्बों र्ें र्र देते हैं। कर् दूरी क े ललये खनन गाड़ड़यों (बंते), ड़डब्बों तथा ट्रकों से कार् चल जाता है और अगधक दूरी क े ललये र्ारी ट्रकों का उपयोग ककया जाता है जो लदे हुए पत्थरों को स्वचाललत ढंग से ककसी एक स्थान पर इकट्ठा कर देते हैं। खुली हुई खननजों क े रूप र्ें खनन करने से पूवभ उस क्षेत्र की स्थालाकृ नत क े र्ानगचत्र बनाए जाते हैं और कफर खाइयााँ, परीक्षाणात्र्क गड्ढे तथा वेधन द्वारा ननक्षेप की र्ोटाई तथा खननज की उपलब्ध र्ात्रा का ननश्चय ककया जाता है। पानी क े ननकास की दशाओ ं पर र्ी सावधानी से ववचार ककया जाता है। खनन कायभ प्रारंर् होने पर सबसे पहले ननक्षेपों पर जस्थत लर्ट्टी हटाने का कार् होता हैं। कर्ी कर्ी बड़ी खानों को खोलने क े ललये लर्ट्टी हटाने र्ें 2-3 वर्भ तक लग जाते हैं। खनन कायभ चोटी से प्रारंर् होता है तथा एक क े बाद एक सपाट बेंचें तब तक काटी जाती हैं जब तक तलहटी नहीं आ जाती। आजकल आधुननक बोररंग
  • 3. यंत्रों क े आववष्कार क े फलस्वरूप 25-30 फ ु ट तक र्ोटाई की बेंचें काटना सरल हो गया हैं। इन बेंचों क े ऊपर हल्क े ट्रक तथा लोहे की पटररयों पर चलने वाले ठेलों क े आने जाने का प्रबंध ककया जाता है। साधारणतया बेंच बनाने क े ललये लशलाओ ं र्ें कई नछद्र ककए जाते है तथा ववस्फोट करने क े ललये लचकीली ववस्फोटक टोवपकाओ ं का प्रयोग ककया जाता है। एक पौंड ववस्फोटक पदाथभ से 4 से 15 टन तक लशलाएाँ टूट सकती हैं। यह र्ात्रा लशलाओ ं की दृढ़ता पर ननर्भर करती है। र्ारत र्ें खुली हुई खानों क े रूप र्ें खनन की प्रणाली र्ुख्यत प्रनतशत चूना पत्थर आदद क े ललये बड़े स्तर पर प्रयुक्त होती है। जजन खानों से सीर्ेंट उत्पादन क े ललये चूना पत्थर ननकाला जाता है, वहााँ 2000 टन तक का दैननक उत्पादन असार्ान्य नहीं सर्झा जाता। बबहार, र्ध्य प्रदेश तथा उड़ीसा आदद र्ें लौह अयस्क क े उत्खनन र्ें र्ी इसी ववगध का उपयोग होता है। अन्य अयस्कों तथा खननजों क े अनतररक्त इस प्रकार की खनन प्रणाली कोयले क े ललये र्ी वहााँ प्रयुक्त की जा सकती है जहााँ कोयले क े स्तरों की गहराई अगधक न हो। इस प्रकार कोयले क े स्तर की र्ोटाई से यदद उस पर जस्थत लर्ट्टी की र्ोटाई दस गुनी तक अगधक होती है तो र्ी इस प्रकार का खनन आगथभक दृजष्ट से उपयुक्त ही सर्झा जाता है। जलोढ़ खनन क ु छ प्राचीन नददयों र्ें जो अवसाद एकबत्रत हुए हैं उनर्ें कर्ी कर्ी बहुर्ूल्य धातुएाँ र्ी ननक्षक्षप्त हो जाती है। इन अवसादों को तोड़कर धातुओ ं की प्राजप्त करना इस प्रकार क े खनन क े अंतगभत आता है। कर्ी र्ी ये धातुएाँ नदी की तलहटी र्ें लर्लती हैं और कई बार इनर्ें सोने जैसी बहुर्ूल्य धातुएाँ पयाभप्त र्ात्रा र्ें लर्ल जाती हैं। क ु छ अवस्थाओ ं र्ें ये अवसाद दूसरे नए अवसादों से ढक र्ी जाते हैं। तब उन्हें हटाकर धातुओ ं की प्राजप्त की जाती है। ववशेर् पररजस्थनतयों र्ें ये धातुएाँ संपीड़डत शैलों (बवदहसवउर्तंजर्े) र्ें र्ी एकबत्रत हुई देखी गई हैं। प्रक्षालन ननक्षपों (च्संबर्त कर्चवेपजे) क े खनन र्ें ववशेर् रूप से इसे प्रयुक्त ककया जाता है। ये लशलाएाँ र्लवा ननलर्भत (कर्जतपजंस) होती हैं तथा इनक े कणों का आकार र्ी लर्न्न होता है। प्रक्षालन ननक्षपों क े प्रर्ुख उपयोगी खननज सोना, दटन, प्लैदटनर् तथा ववरल लर्ट्दटयााँ हैं। लशलाओ ं र्ें इन धातुओ ं की प्रनतशत र्ात्रा बहुत कर् होती है। इस ववगध र्ें ऊ ाँ चे दबाव पर पानी बड़े वेग क े साथ नाजल से ननकलता है और लशला पर टकराता है। पानी क े टक्कर क े फलस्वरूप लशला टूट जाती है तथा सूक्ष्र् कणों र्ें ववजच्छन्न हो जाती है। पानी की धारा क े साथ ये कण आगे चल देते हैं, जहााँ पानी स्लूस बक्सों जजनर्ें बाधक (जइंलसर्) प्लेटें लगी रहती हैं, प्रवादहत ककया जाता है। बाधक प्लेटों क े सर्ीप र्ारी धातुएाँ एकबत्रत हो जाती है तथा धातुकणों से ववदहन पानी ववजच्छन्न लशला को ललए आगे बह जाता है। जलोढ खनन ववगध र्ें प्रर्ुख आवश्यकता ववशाल र्ात्रा र्ें जल की होती है। पानी का दबाव 50 से 600 फ ु ट तक हो सकता है। खनन का र्ूल्य र्ी कर् होता है, क्योंकक इसर्ें पानी से उत्पन्न शजक्त क े अनतररक्त अन्य ककसी शजक्त की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार खननत पदाथों की र्ाप घन गजों र्ें की जाती है। बड़े ननक्षेपों क े खनन र्ें यांबत्रक साधनों का र्ी उपयोग ककया जाता है तथा कर्ी कर्ी इस ववगध से 30 फ ु ट र्ोटाई क े ननक्षेपों तक का खनन होता है। र्ारत र्ें जलोढ खनन व्यवहार र्ें नहीं हैय क ु छ क्षेत्रों र्ें रेत छानकर तथा धोकर सोना आदद प्राप्त ककया जाता है। बबहार र्ें स्वणभरेखा नदी क े तट पर रहनेवाले ननवासी इसी प्रकार सोने की प्राजप्त ककया करते है। जलोढ खनन की एक अन्य ववगध र्ें एक ववशेर् प्रकार की यांबत्रक नौकाओ ं का र्ी उपयोग होता है। इन नौकाओ ं र्ें घूर्नेवाली बाजल्टयों की व्यवस्था रहती है, जो तलहटी से बालू को खरोंचकर नाव पर ला देती हैं। इस बालू क े साथ ही अनेक अपघर्ी खननज र्ी आ जाते हैं जजनको उपयुभक्त ववगध द्वारा पृथक् कर ललया जाता है। बर्ाभ और र्लाया क े दटन क्षेत्रों क े प्रक्षापालन ननक्षेपों क े खनन र्ें यही ववगध प्रयुक्त की गई है। इस खनन र्ें शजक्त की आवश्यकता तथा धन की लागत
  • 4. र्ी यथेष्ट पड़ती है। ये नौकाएाँ 20 फ ु ट की गहराई तक की बालू खरोंच सकती हैं। इनर्ें प्रयुक्त बाजल्टयों का सर्ावेशन 1 1ध्2 से 14 घनफ ु ट तक का होता है। र्ूलर्गत खनन उन अनेक प्रकार क े खननजों तथा अयस्कों क े उत्खनन र्ें र्ूलर्गत खनन का सहारा लेना पड़ता है जजनका खुली हुई खानों क े रूप र्ें खनन, गहराई पर जस्थत होने क े कारण, आगथभक दृजष्ट से अनुपयुक्त अथवा असंर्व होता है। यद्यवप र्ूलर्गत खनन र्ें र्ी बड़ी पूंजी की आवश्यकता होती है, तथावप इन ननक्षेपों क े खनन क े ललये कोई अन्य ववकल्प नहीं है। र्ूलर्गत ननक्षेप दो प्रकार क े हो सकते हैं प्रनतशत 1. जो स्तर रूप र्ें लर्लते हैं, जैसे कोयला तथा 2. धाजत्वक पट्दटकाएाँ इन दोनों प्रकार क े ननक्षेपों की प्रकृ नत ननतांत लर्न्न होती है, इसललये इनक े खनन की ववगधयााँ र्ी सुववधानुसार अलग अलग होती है। खानों र्ें कायभ आरंर् होने से पहले पूवेक्षण तथा गवेर्णात्र्क कायों को सावधानी से सर्ाप्त कर ललया जाता है। इसक े पश्चात ् खान का ववकास कायभ प्रारंर् होता है। सवभप्रथर् क ू प (ुेुंजज) बनाए जाते हैं। इनका व्यास 10-12 फ ु ट तक हो सकता है। यदद ननक्षेपों की गइराई कर् होती है तो प्रवणकों का ही ननर्ाभण कर ललया जाता है। यदद आवश्यकता हुई तो र्ूलर्गत र्ागभ तथा गैलररयााँ र्ी बना ली जाती हैं जजन लशलाओ ं से होता हुआ क ू प जाता है, यदद वे सुदृढ नहीं होती तो इस्पात, सीर्ेंट आदद क े अस्तर की र्ी आवश्यकता पड़ती है। र्ूलर्गत खनन र्ें क ू पों का बड़ा र्हत्व है, क्योंकक कर्भचाररयों का खान र्ें आना जाना, खननत पदाथों का बाहर आना, वायु का संचालन तथा खान से पानी बाहर फ ें कने क े ललये पंपों का स्थापन इन्हीं से संचाललत होता है। ककसी र्ी खान र्ें कर् से कर् दो क ू प अवश्य होते हैं। खननजों तथा अयस्कों को तोड़ने र्ें फावड़े, क ु दाली तथा सब्बल अथवा यंत्रों या ववस्फोटक पदाथों की सहायता ली जाती है। प्रयत्न इस बात का ककया जाता है कक खननज की अगधकागधक र्ात्रा ननकाल ली जाय। ककं तु इससे खान र्ें लशलाओ ं का संतुलन बबगड़ने लगता है। यह बहुत क ु छ अंशों तक लशलाओ ं क े लचीलेपन तथा उनकी शजक्त पर ननर्भर करता है। खान र्ें लशलाओ ं का संतुलन बबगड़ने से बचाने क े ललये खान की दीवारों तथा छत को सहारे की आवश्यकता होती है। इसक े ललए जजस स्तर पर कायभ चल रहा है उसर्ें स्तंर् छोड़ ददए जाते है और आसपास से खननज ननकाल ललया जाता है। ककं तु इसर्ें खननज की काफी र्ात्रा का ह्ु्रास होता है। इसललये आजकल प्रयत्न यह ककया जाता है कक खाली स्थानों र्ें बालू अथवा वैसा ही कोई अन्य पदाथभ र्र ददया जाय तथा उन स्तंर्ों का खननज र्ी ननकाल ललया जाय। यह ववगध अगधकांश र्ारतीय कोयला खानों र्ें प्रयुक्त होती है। इसक े अनतररक्त, लकड़ी, लोहा, क ं क्रीट, पत्थर, ईंट आदद र्ी प्रयुक्त होते है। खननज पदाथभ को खान से ऊपर लाने क े ललये वपंजड़े क े आकार का झूला, इस्पात क े रस्से तथा वाइंड़डंग इंजन की आवश्यकता होती है। खानों क े अंदर खननज को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने क े ललये ट्राललयााँ प्रयुक्त होती हैं, जो अगधकतर लोहे की पटररयों पर चलती हैं। क ू प से होकर खान क े कर्भचारी र्ी खान र्ें इन्हीं झूलों से उतरते हैं। क ु छ खानों र्ें सीदढ़यााँ र्ी कार् र्ें आती हैं, जैसे कोडर्ाभ (बबहार) की अभ्रक खानों र्ें।
  • 5. र्ूलर्गत खानों र्ें उपयुक्त प्रकाश तथा शुद्ध वायु क े आवागर्न का प्रबंध अत्यंत आवश्यक है। अगधकांश खानों र्ें अब ववद्युत ् प्रकाश उपलब्ध है। अभ्रक आदद की खानों र्ें र्ोर्बवत्तयााँ र्ी प्रयुक्त होती है। वायु क े आवागर्न क े ललये वायुर्ागभ बड़े होने चादहए तथा वायु का प्राकृ नतक प्रवाह नहीं रुकना चादहए। क ु छ जस्थनतयों र्ें इसक े ललये क ु छ यांबत्रक साधनों की र्ी आवश्यकता होती है। ये यंत्र खान र्ें शुद्ध वायु का संचालन करते हैं। खान र्ें क ू प खोदते सर्य,अथवा जलपटल आ जाने पर, पानी का प्राकृ नतक प्रवाह प्रारंर् हो जाता है। यह पानी नाली बनाकर एक जगह ले जाया जाता है तथा वहााँ से पंप द्वारा खान से बाहर ननकाल ददया जाता है। र्ूलर्गत खानों र्ें दुघभटनाएाँ र्ूलर्गत खानों र्ें दुघभटनाएाँ र्ी बड़ी र्यावनी होती हैं। इनर्ें आग लगना एक बड़ी सर्स्या है। आग की दुघभटनाएाँ ववर्ाक्त गैसों क े अचानक ववस्फोट से, ववस्फोटक पदाथों क े र्ाध्यर् से या ककसी अन्य कारणवश हो सकती हैं। कोयले की खानों र्ें आग बुझाना बहुत जदटल होता है। झररया क्षेत्र की क ु छ खानों र्ें वर्ों से आग लगी हुई हैं, ककं तु अर्ी तक उनको बुझाया नहीं जा सका है। क ु छ दुघभटनाएाँ खान क े बैठने से या उसर्ें अचानक पानी र्र जाने से हो जाया करती है। अर्ी गत 27 ददसमबर 1975 को धनबाद से 27 ककलोर्ीटर दूर जस्थत चासनाला कोयला खान क े 80 फ ु ट ऊपर जस्थत पानी क े एक ववशाल हौज र्ें अकस्र्ात ् 8.35 र्ीटर छेद हो गया और पानी बड़ी तेजी क े साथ र्रने लगा। फलत प्रनतशत उस सर्य खान क े र्ीतर जो 372 र्जदूर कार् कर रहे थे वे सब खान क े र्ीतर ही प्रवाह र्ें फ ाँ स गए और ककसी प्रकार ननकाले न जा सक े । इस दुघभटनाएाँ से पहले 1973 र्ें जजतपुर र्ें 40 र्जदूर र्र गए थे। हजारीबाग क े प्योरी खान र्ें हुई दुघभटना 238 र्जदूर र्रे थे। 1958 र्ें चनाक ु टी र्ें एक दुघभटना हुई थी जजसर्ें 176 लोग र्रे थे। खनन इंजीननयरी क े आधुननक ववकास क े फलस्वरूप इन दुघभटनाओ ं तथा अन्य सर्ी सर्स्याओ ं को कर् करने क े यथासाध्य सर्ी प्रकार क े प्रयास ककए जाते हैं। दुघभटना की जस्थनत र्ें आपत्कालीन खनन सैन्य दल, जो पूणभ रूप से सुसजजजत रहता है, धन और जन की रक्षा र्ें अपूवभ सहयोग देता है। प्रत्येक खनन क्षेत्र र्े इस सेवा क े ललये क ें द्रों की व्यवस्था रहती है। चासनाला की दुघभटना र्ें पानी क े ननकास क े ललये अनेक देशों ने पंपादद यंत्र र्ेजकर सहायता की। खानों का कार् सुचारु रूप से संचाललत होता रहे इसक े ललये देशों की सरकारें कानून बनाती है। इन कानूनों र्ें कर्भचाररयों की सुरक्षा उनक े स्वास्थ्य, खनन र्ें उपयुक्त ववगधयों का उपयोग तथा अन्य संबंगधत ववर्य रहते हैं। श्रलर्कों क े कल्याण क े ललये र्ी प्रत्येक देश र्ें और लंबे सर्य से र्ारत र्ें र्ी, योजनाएाँ कायाभजन्वत की जा रही हैं, जजससे उनक े सुख,सुववधा और सुरक्षा क े साधनों र्ें वृद्गध हो। प्रस्तुत अध्ययन का उद्ुेष्य ननमनललखखत है- प्रत्येक कक्रया ककसी न ककसी उदेश्य की पूनत भक े ललए ही होती है, क्योंकक बबना उदेश्य ननधाभररत ककये व्यजक्त कायभ को पूणभ र्ले ही कर ले ककन्तु सही ननष्कर्भ तक नहीं पहुंचा जा सकता है। अनुसंधान कक्रया र्ी उसका अनुवाद नहीं है, ककसी अनुसंधान कायभ क े पहले अनुसंधान करता उस ववर्य व क्षेत्र से संबंगधत ववगधवत उदेश्य की रचना कर शोध कायभ की शुरूआत करता है। इसललए शोधाथी ने अपने शोध का ननमन उदेश्य बताया है प्रनतशत-
  • 6. 1. सतना जस्थत खदानों का र्ैगोललक अध्ययन करना। 2. खदानों का पयाभवरण पर प्रर्ाव क े संबन्ध र्े अध्ययन करना। 3. सतना जस्थत खदानों क े प्रर्ाववत ग्रार्ों का अध्ययन करना। 4. सतना जस्थत खदानों क े उत्पन्न पयाभवरणीय सर्स्या क े रूप र्ें जल, वायु, एवं र्ू-अवनयन की सर्स्या क े सन्दर्भ र्े अध्ययन करना। 5. सतना जस्थत खदानों का सर्ाज पर प्रर्ाव का अध्ययन करना। 6. सतना जस्थत खदानों से लोगों का हो रही सर्स्या का अध्ययन करना। शोध की उपकल्पना प्रनतशत- एक उपकल्पना दो या दो से अगधक चरो क े बीच पाये जाने वाले संबंधों का अनुर्वात्र्क रूप से परीक्षण करने योग्य कथन है। सार्ाजजक घटनाओ ं क े अध्ययनों को वैज्ञाननक रूप प्रदान करने उपकल्पना का ननर्ाभण ककया जाता है। सर्ाजजक अनुसंधान र्ें उपकल्पना की उपयोगगता को दशाभते हुए ‘कोहेन’ तथा ‘नागेल’ ललखते है। ककसी र्ी गवेर्णा र्ें हर् एक पद र्ी आगे नही बढ़ सकते। जब तक कक हर् उसको जन्र् देने वाली कदठनाईयों क े सुझवात्र्क स्पष्टीकरण अथवा सर्ाधान से प्रारंर् न करें जब वे प्रस्तावों क े रूप र्ें सूत्र बद्ध कर ललये जाते है तो उन्हें उपकल्पना कहा जाता है। ‘‘गुडे एवं हाट क े अनुसार’’ उपकल्पना एक ऐसी र्ान्यता होती है जजसकी सत्यता लसद्ध करने क े ललए उसका परीक्षण ककया जा सकता है। ‘‘पी.वी. यंग क े अनुसार’’ एक कायभवाहक जो उपयोगी खोज का आधार बनता है कायभवाहक उपकल्पना र्ाना जाता है। उपकल्पना एक ऐसा पूवभ ववचार, ननष्कर्भ, कथन सार्ान्यीकरण, अर्ूतीकरण, अनुर्ान या प्रस्तावना है। जजसे अनुसंधानकताभ अपनी शोध की सर्स्या हेतु ननलर्भत करता है। और इसकी सत्यता की जाच करने क े ललए आवश्यक सूचनाओ ं का संकलन करता है। 1. सतना जजले र्ें खनन को रोकने क े ललये सरकार द्वारा ककये जा रहे प्रयासों को सर्झना। 2. सतना जजले र्े अवैध खनन से पयाभवरण क े बचाव क े ललये हो रहे प्रयासों को सर्झना। 3. सतना जजले र्े अवैध खदानों से जन जीवन पर पड़ने वाले प्रर्ाव को रोकने क े ललये उठाये जा रहे कदर् क े बारे र्े जानना।
  • 7. शोध का र्हत्व - पयाभवरण र्नुष्य को नवीकरणीय तथा गैर-नवीकरणीय दोनों संसाधन प्रदान करता है। नवीकरणीय संसाधन वे संसाधन हैं जजनकी सर्य क े साथ पूनत भ हो जाती है तथा इसललये बबना इस संर्ावना क े उनका उपयोग ककया जा सकता है कक इन संसाधनों का क्षय हो जायेगा अथवा ये सर्ाप्त हो जायेंगे। नवीकरणीय संसाधनों क े उदाहरणों र्ें वनों र्ें वृक्षों, र्हासागर र्ें र्छललयों आदद को सजमर्ललत ककया जाता है। दूसरी ओर, गैर-नवीकरणीय संसाधन वे संसाधन हैं जो खचभ हो जाने क े कारण सर्य क े साथ सर्ाप्त हो जाते हैं अथवा उनका क्षय हो जाता है। गैर-नवीकरणीय संसाधनों क े उदाहरणों र्ें जीवाश्र् ईंधन तथा खननज, जैसे पैट्रोललयर्, प्राकृ नतक गैस, कोयला आदद को सजमर्ललत ककया जाता है। इसललये र्ावी पीदढ़यों की आवश्यकतओ ं को ध्यान र्ें रखते हुए इन संसाधनों का प्रयोग सावधानीपूवभक करना चादहये। पयाभवरण हाननकारक अपशेर्ों तथा उप-उत्पादों को आत्र्सात र्ी करता है अथाभत यह अपशेर्ों को पचाता है। गचर्ननयों तथा र्ोटर गाड़ड़यों क े ननकास-पाइपों से ननकलने वाला धुआं, शहरों तथा नगरों क े र्ल पदाथभ, औद्योगगक स्राव सर्ी को पयाभवरण आत्र्सात कर लेता है। इन सर्ी अपशेर्ों तथा उप-उत्पादों का ववलर्न्न प्राकृ नतक प्रकक्रयाओ ं द्वारा आत्र्सात तथा पुनचभक्रीकरण ककया जाता है। पयाभवरण जैव-ववववधता द्वारा जीवन को र्ी धाररत करता हैं। जीवन क े ववलर्न्न रूपों पर पयाभवरण क े दबाव द्वारा उत्पन्न आनुवंलशक ववलर्न्नताएं जीवन क े उन रूपों का अनुक ू लन करने, ववकलसत होने तथा आनुवंलशक ववलर्न्नताएं उत्पन्न करने की अनुर्नत देती हैं जो कठोर पयाभवरण र्ें जीववत रह सक ें । अत प्रनतशत पयाभवरण जीवन क े ववलर्न्न रूपों तथा अजैव घटकों र्ें समबन्ध उत्पन्न करता है, उसको बनाये रखता है तथा जीवन को धाररत करता है। इसललये पयाभवरण को सुरक्षक्षत रखकर जीवन क े इन ववलर्न्न रूपों को सुरक्षक्षत रखना अत्यंत र्हत्वपूणभ है। ववगध तंत्र - प्रस्तुत लद्युशोध सीधी नगर क े अंतगभत ‘‘सतना जजले र्े खनन का पयाभवरण का प्रर्ाव’’ से संबंगधत है। इस अध्ययन र्ें वांनछत ववगध का प्रयोग ककया गया है। जो ननमनानुसार है - (1) ववर्य प्रनतशत- प्रस्तुत अध्ययन ‘‘ खनन का पयाभवरण पर प्रर्ाव’’ शीर्भक पर है। (2) साक्षात्कार अनुसूची प्रनतशत- ववर्य की स्वीकृ नत लर्ल जाने क े उपरांत साक्षात्कार अनुसूची का ननर्ाभण ककया गया है। यह साक्षात्कार क्रर्ांक 1 र्ें संलग्न है। साक्षात्कार अनुसूची र्ें संजय राष्ट्रीय उद्यान र्ें आने वाले पयभअकों को ववश्वास ददलाने क े ललये घोर्णा पत्र ददया गया है, तथा उन्हें यह बतलाया गया है प्रस्तुत अध्ययन एवं शैक्षखणक उद्देश्य से ककया जा रहा है तथा उसक े द्वारा प्राप्त जानकारी को पूरी तरह से गोपनीय रखा जायेगा साथ ही उनसे यह आशा व्यक्त की गई है कक साक्षात्कार अनुसूची र्ें ददये गये तथ्यों की सही-सही जानकारी प्रदान करें। (3) साक्षात्कार प्रनतशत- साक्षात्कार अनुसूची तैयार हो जाने क े बाद अनुसंधानकताभ स्वयं खदानो क े आस-पास रहने वाले सदस्यों क े पास गया और वहााँ व्यजक्तगत साक्षात्कार ककया और साक्षात्कार अनुसूची र्ें तथ्यों को उपयुक्त स्थान पर ललख ददया।
  • 8. शोध की सीर्ाऐं - यद्यवप र्ेरे अध्ययन का ववर्य एक सीर्ा तक ननधाभररत है। हर अध्ययन की क ु छ ववलशष्ट सीर्ाएं होती है। र्ेरा प्रस्तुत अध्ययन र्ी सीर्ाओ ं से परे नहीं है। र्ेरे अध्ययन की पहली सीर्ा यह है कक प्रस्तुत शोध कायभ र्ात्र ‘‘खनन का प्याभवरण पर प्रर्ाव’’ से संबंगधत है। र्ेरे अध्ययन की दूसरी सीर्ा यह है कक र्ैने लसफभ 50 सर्ूहों का साक्षात्कार ककया है। जहााँ तक संर्व हो सका है उपयुक्त दोनो सीर्ाओ ं क े तहत र्ैने अपने अध्ययन को अगधक वैज्ञाननक और ववश्लेर्णात्र्क प्रयास ककया है। अध्याय-2 अध्ययन से संबजन्धत र्ोध सादहत्य की सर्ीक्षा- 1. ललववंग र्होदय (1950)-ने अपने शोध द्वारा यह स्पष्ट ककया है कक पादप वृद्गध उसको प्राप्त खननजों र्ें सबसे कर् र्ात्रा र्ें उपजस्थत खननज पर र्ी ननर्भर करती है। इसे बाद र्ें ललववंग का न्यूनतर् का ननयर् कहा गया है। इसक े अनुसार यदद ककसी पौधे क े वृद्गध क े ललए एक तत्व छोडकर शेर् सर्ी आवश्यक तत्व छोडकर शेर् सर्ी आवश्यक तत्व प्याभप्त र्ात्रा र्ें उपजस्थत हो तब र्ी पौधे की वृद्गध उस एसक न्यूनतर् र्ात्रा वाले तत्व द्वारा ननयंबत्रत होती है। 2. ब्लैकर्ेन (1957) ने र्ी संश्लेर्ण की कक्रया को प्रर्ाववत करने वाले कारको पर कायभ करते हुए ‘‘सीर्ा कारको का लसद्धान्त’’ प्रनतपाददत ककया। इसक े अनुसार ककसी र्ी जीवन कक्रया की गनत सीर्ाकारी र्ात्रा र्ें लर्ल रहे कारको पर ननर्भर करती है। 3. शैलफोडभ (1913) ने न्यूनतर् सीर्ा क े साथ-साथ अगधकतर् सीर्ा का ननयर् बताया। शैलफोडभ क े अनुसार ‘‘यदद कोई कारक अत्यगधक र्ात्रा र्ें उपजस्थत हो जैसे लर्टटी क े ककसी एक तत्व की र्ात्रा आवश्यकता से अगधक हो अथवा न्यूनतर् र्ात्रा र्े हो। जैसे ताप का र्ी जीवों की वृद्गध तथा जनन कक्रया पर जयादा प्रर्ाव पडता है। शैलफोडभ ने न्यूनतर् सीर्ा क े ननयर्ों को बदलकर सहनशीलता की सीर्ा क े ननर्य का प्रनतपादन ककया है। 4. लसंह रावेन्द्र (2015) ने अपने अध्ययन र्ें बताया कक पायाभवरण क े सर्ी घटक और कारण अन्योन्यागश्रत है और एक दूसरे को प्रर्ाववत करते है। उदाहरणाथभ सूयभ उजाभ से जब वायु गर्भ होती है। जजससे वाष्प ् बनती है और वायु ऊपर उठती है। वायु क े बहने क े साथ वाष्प ् बादलों क े रूप ् र्ें एक स्थान से दूसरे स्थान से दूसरे स्थान तक जाते है। बादलों द्वारा सूयभ की ऊजाभ को पृथ्वी तक पहुुचने र्ें बाधा उत्पन्न होती है। जब बादलों र्ें उपजस्थत जल बरसता है। तो लर्टटी र्ें उपजस्थत बीज जर्ने लगते हैं। कफर पौधे बनते है। पौधे लर्टटी जल व खननजों का तथा वातावरण्सा से काबभन उाई आक्साइड का शोर्ण करते है। पौधों को र्ोजन क े रूप ् र्ें पाकर अथवा खाने क े ललए ववलर्न्न प्राणी एकबत्रत है। और प्याभवरण को पुन प्रनतशत पररवनत भत करते है।
  • 9. 5. नतवारी आर.सी. (2006) ने अपने अध्ययन र्ें बताया कक पयाभवरण्या क े ककसी र्ी कारक र्ें बबना अन्य कारकों को प्रर्ाववत ककये पररवतभन नही ककया जा सकता है। वस्तुत प्रनतशत प्यावरण क े कारक आपस र्ें इस तरह गुंथे हुए होते है जैसे की जाल र्ें ताने-बाने । जजस प्रकार जाल क े ककसी एक ताने-बाने क े कट जाने से सारा जाल खुलता जाता है। 6. डेननस र्ीडोज (1971) क े अनुसार पयाभवरण प्रबन्धन की संकल्पना सार्ान्यतया प्याभवारण र्ॉडल से समबजन्धत होती है जो यह सुननजष्चत करता है कक पूंजी, वावर्भक कृ वर्-ननवेर् तथा र्ूलर् ववकास र्ें वृद्गध क े साथ खाद्य पदाथों की आपूनत भ र्ें र्ी वृद्गध होगी। परन्तु प्याभवरण प्रबन्धन का र्ॉडल इन कारकों की सीलर्तताओ ं र्ें आने वाले चुनौनतयों तथा सर्स्याओ ं से ननपटने क े ललए नीनतयों को र्ी सर्ादहत करता है। 7. श्री सूरा पान्चे रार्ू ने सन ् 1984 र्ें श्री कल्याण लसंह क े पयभवेक्षकत्व र्ें चन्द्रशेखर आजाद कृ वर् एवं प्रौद्योगगक ववश्वववद्यालय, कानपुर से कानपुर की पररगध र्ें कृ वर् क े समबन्ध र्ें गंगा क े प्रदूवर्त जल का अध्ययन शीर्भक पर शोध कायभ ककया और बताया कक गंगा क े प्रदूवर्त जल का कृ वर् र्ें उपयोग करने पर ववपरीत प्रर्ाव पड़ रहा है। उन्होंने ननष्कर्भ र्ें कहा क कानपुर शहर अन्यागधक प्रदूवर्त है जबकक गुलाब और क ु छ अन्य शोधगथभयों का अलर्र्त था कक प्रदूवर्त जल का कृ वर् र्ें प्रयोग करने पर अच्छा प्रर्ाव पड़ रहा है। 8. श्री फरहत नागर जुबेरी ने 1985 र्ें वायु र्ें उपजस्थत जहरीले लसलककन कणों जैववक अकाबभननक रसायनों द्वारा बढ़ रहे प्रदूर्ण शीर्भक पर शोध कायभ करक े बताया कक लसललकन क े कारण वायु प्रदूर्ण र्ें वृद्गध हो रही है। 9. श्री शरद क ु र्ार एर्0एड0छात्र ने 1996 र्ें दयानन्द र्दहला प्रलशक्षण संस्थान कानपुर र्ें डा0 रर्ा लर्श्रा क े पयभवेक्षत्व र्ें बच्चों क े स्वास्थ व लशक्षा पर ध्वनन प्रदूर्ण क े प्रर्ाव का अध्ययन शार्भक पर लघु शोध प्रबन्ध प्रस्तुत ककया और प्राप्त पररणार् से यह ननष्कर्भ ननकाला कक ध्वनन प्रदूर्ण से व्यजक्त क े जीवन व व्यवहार तथा कायभ करने की क्षर्ता पर ववपररत प्रर्ाव पड़ता हैं। 10. 19ु98 र्ें शोधाथी जे0एल0नेहरू रोड जाजभ टाउन इलाहाबाद ननवासी श्री खरे ने र्ारतीय उद्योग र्ें गृह पृथ्वी पर प्रदूर्ण शीर्भक पर शोध कायभ क े पररणार् ननष्कर्भ र्ें कहा कक जल प्रदूर्ण की बढ़ती र्ात्रा लोंगों क े जीवन की अवगध कर् कर रही है। 11. 2001 र्ें यू0 ननगर् एवं लसद्दीकी एर्0क े 0जे0 ने इण्डजस्ट्रयल टेक्नोलोजी ररसचभ सेन्टर लखनऊ से ककये गये शोध कायभ शीर्भक डेरी दुग्ध र्े कीटाणुनाशक पदाथो की र्ात्रा पर कायभ करक े अपने ननष्कर्भ र्ें कहा कक दुग्ध क े अवशेर् पदाथो का बच्चों क े स्वारथ्य पर सीधा क ु प्रर्ाव छोड़ता है। 12. लसंह, आर0पी0, र्ूगवभ ववज्ञान, बनारस दहन्दू ववश्वववद्यालय, वाराणसी ने जून 2007 र्ें उत्तर प्रदेश क े कानपुर शहर क े औद्योगगक प्रदूर्ण क े गंदे जल का स्तर शीर्भक पर शोध कायभ ककया और कहा कक वृह्द पैर्ाने पर औद्योगगक कारखानों क े कारण कानपुर क े सार्ाजजक व आगथभक स्तर र्ें वृद्गध क े साथ पयाभवरण प्रदूर्ण र्ें र्ी वृद्गध की । जजससे धूल, धुआाँ, प्रदूवर्त गैसें और इंडस्ट्रीज क े गंदे जल कक बहाव से जल प्रदूर्ण की सर्स्यायें उत्पन्न हो रही हैं जल र्ें ।ुेए ब्तए ब्कएब्नएथ्र्एभ्हए च्इएदभ आदद अथाभत ् आसेननक क्रोलर्यर्, क ै डलर्यर्, तॉबा, लोहा, पारा, शीशा,और जस्ता इनसे लोंगों र्ें र्ानलसक प्रदूर्ण की वृद्गध हो रही है।
  • 10. पररणार् प्रनतशत र्ग्नाशा क े कारण आतंकवादी हर्ले हो रहे है। अपरागधक प्रवृवत्त बढ़ रही है अस्तु कानपुर क े चर्ड़े क े उद्योग वाले कारखाने बन्द होने चादहये। उन्होंने कहा कक सर्य रहतें हुए यदद जल प्रदूर्ण पर अंक ु श नही लगाया गया तो जानलेवा ड्रग्स और शराबखोरी क े प्रयोग र्ें पृद्गध पर रोक नही लगेगी क्योंकक र्ानलसक प्रदूवर्त लोग गल्ती करना र्हसूस नही करते। प्राचीन काल र्ें इन गनतववगधयों को बुराई कहा जाता था। 13. 3 जून 2009 क े समर्ेलन र्ें र्हार्ारी और र्ानलसक प्रदूर्ण पर संकललत ववचारों से ननष्कर्भ र्ें यह कहा गया कक संक्रलर्त ववकृ त व र्ानलसक प्रदूवर्त लोग उच्च पदों पर रहते हुए हगथयारों क े प्रयोग पर अंक ु श नही लगा पा रहें हैं जजससे संघर्भ व आतंकवाद आदद की वृद्गध थर् नही सकती । ननदोस लोग र्ौत क े लशकार होने से वंगचत नही रह पाते हैं। रसायाननक प्रदूर्ण दूवर्त एवं जहरीले जल क े ठहर जाने पर दुतगनत से वृद्गध करता हैं। गृहोपयोगी कायो क े बाद ननकला जल, कारखानों का गंदा जल, जजनर्ें डी0डी0टी0 एवं अन्य घुललत औद्योगगक रसायन र्छली से लेकर र्नुष्य तक र्ोजन क े साथ पहुाँचकर ववलर्न्न शारीररक व र्ानलसक ववकार उत्पन्न करते है। अध्याय-3 र्ारत र्ें पयाभवरण की सर्स्या र्ारत र्ें पयाभवरण की कई सर्स्या है। वायु प्रदूर्ण, जल प्रदूर्ण, कचरा, और प्राकृ नतक पयाभवरण क े प्रदूर्ण र्ारत क े ललए चुनौनतयााँ हैं। पयाभवरण की सर्स्या की पररजस्थनत 1947 से 1995 तक बहुत ही खराब थी। 1995 से २०१० क े बीच ववश्व बैंक क े ववशेर्ज्ञों क े अध्ययन क े अनुसार, अपने पयाभवरण क े र्ुद्दों को संबोगधत करने और अपने पयाभवरण की गुणवत्ता र्ें सुधार लाने र्ें र्ारत दुननया र्ें सबसे तेजी से प्रगनत कर रहा है। कफर र्ी, र्ारत ववकलसत अथभव्यवस्थाओ ं वाले देशों क े स्तर तक आने र्ें इसी तरह क े पयाभवरण की गुणवत्ता तक पहुाँचने क े ललए एक लंबा रास्ता तय करना है।ख ्1,ख ्2, र्ारत क े ललए एक बड़ी चुनौती और अवसर है। पयाभवरण की सर्स्या का, बीर्ारी, स्वास्थ्य क े र्ुद्दों और र्ारत क े ललए लंबे सर्य तक आजीववका पर प्रर्ाव का र्ुख्य कारण हैं। कारण क ु छ पयाभवरण क े र्ुद्दों क े बारे र्ें कारण क े रूप र्ें आगथभक ववकास को उद्धृत ककया है।दूसरे, आगथभक ववकास र्ें र्ारत क े पयाभवरण प्रबंधन र्ें सुधार लाने और देश क े प्रदूर्ण को रोकने क े ललए र्हत्वपूणभ है ववश्वास करते हैं।बढ़ती जनसंख्या र्ारत क े पयाभवरण क्षरण का प्राथलर्क कारण र्ी है ऐसा सुझाव ददया गया है।व्यवजस्थत अध्ययन र्ें इस लसद्धांत को चुनौती दी गई है।
  • 11. तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या व आगथभक ववकास और शहरीकरण व औद्योगीकरण र्ें अननयंबत्रत वृद्गध, बड़े पैर्ाने पर औद्योगीक ववस्तार तथा तीव्रीकरण, तथा जंगलों का नष्ट होना इत्यादद र्ारत र्ें पयाभवरण संबंधी सर्स्याओ ं क े प्रर्ुख कारण हैं। प्रर्ुख पयाभवरणीय र्ुद्दों र्ें वन और कृ वर्-र्ूलर्क्षरण, संसाधन ररक्तीकरण (पानी, खननज, वन, रेत, पत्थर आदद), पयाभवरण क्षरण, सावभजननक स्वास्थ्य, जैव ववववधता र्ें कर्ी, पाररजस्थनतकी प्रणाललयों र्ें लचीलेपन की कर्ी, गरीबों क े ललए आजीववका सुरक्षा शालर्ल हैं। यह अनुर्ान है कक देश की जनसंख्या वर्भ 2018 तक 1.26 अरब तक बढ़ जाएगी. अनुर्ाननत जनसंख्या का संक े त है कक 2050 तक र्ारत दुननया र्ें सबसे अगधक आबादी वाला देश होगा और चीन का स्थान दूसरा होगा। दुननया क े क ु ल क्षेत्रफल का 2.4 प्रनतशत परन्तु ववश्व की जनसंख्या का 17.5 प्रनतशत धारण कर र्ारत का अपने प्राकृ नतक संसाधनों पर दबाव काफी बढ़ गया है। कई क्षेत्रों पर पानी की कर्ी, लर्ट्टी का कटाव और कर्ी, वनों की कटाई, वायु और जल प्रदूर्ण क े कारण बुरा असर पड़ता है। प्रर्ुख सर्स्यायें र्ारत की पयाभवरणीय सर्स्याओ ं र्ें ववलर्न्न प्राकृ नतक खतरे, ववशेर् रूप से चक्रवात और वावर्भक र्ानसून बाढ़, जनसंख्या वृद्गध, बढ़ती हुई व्यजक्तगत खपत, औद्योगीकरण, ढांचागत ववकास, घदटया कृ वर् पद्धनतयां और संसाधनों का असर्ान ववतरण हैं और इनक े कारण र्ारत क े प्राकृ नतक वातावरण र्ें अत्यगधक र्ानवीय पररवतभन हो रहा है। एक अनुर्ान क े अनुसार खेती योग्य र्ूलर् का 60 प्रनतशत र्ूलर् कटाव, जलर्राव और लवणता से ग्रस्त है। यह र्ी अनुर्ान है कक लर्ट्टी की ऊपरी परत र्ें से प्रनतवर्भ 4.7 से 12 अरब टन लर्ट्टी कटाव क े कारण खो रही है। 1947 से 2002 क े बीच, पानी की औसत वावर्भक उपलब्धता प्रनत व्यजक्त 70 प्रनतशत कर् होकर 1822 घन र्ीटर रह गयी है तथा र्ूगर्भ जल का अत्यगधक दोहन हररयाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश र्ें एक सर्स्या का रूप ले चुका है। र्ारत र्ें वन क्षेत्र इसक े र्ौगोललक क्षेत्र का 18.34 प्रनतशत (637,000 वगभ ककर्ी) है। देश र्र क े वनों क े लगर्ग आधे र्ध्य प्रदेश (20.7 प्रनतशत) और पूवोत्तर क े सात प्रदेशों (25.7 प्रनतशत) र्ें पाए जाते हैंय इनर्ें से पूवोत्तर राजयों क े वन तेजी से नष्ट हो रहे हैं। वनों की कटाई ईंधन क े ललए लकड़ी और कृ वर् र्ूलर् क े ववस्तार क े ललए हो रही है। यह प्रचलन औद्योगगक और र्ोटर वाहन प्रदूर्ण क े साथ लर्ल कर वातावरण का तापर्ान बढ़ा देता है जजसकी वजह से वर्भण का स्वरुप बदल जाता है और अकाल की आवृवत्त बढ़ जाती है। पावभती जस्थत र्ारतीय कृ वर् अनुसंधान संस्थान का अनुर्ान है कक तापर्ान र्ें 3 ड़डग्री सेजल्सयस की वृद्गध सालाना गेहूं की पैदावार र्ें 15-20 प्रनतशत की कर्ी कर देगी. एक ऐसे राष्ट्र क े ललए, जजसकी आबादी का बहुत बड़ा र्ाग र्ूलर्ूत स्रोतों की उत्पादकता पर ननर्भर रहता हो और जजसका आगथभक ववकास बड़े पैर्ाने पर औद्योगगक ववकास पर ननर्भर हो, ये बहुत बड़ी सर्स्याएं हैं। पूवी और पूवोत्तर राजयों र्ें हो रहे नागररक संघर्भ र्ें प्राकृ नतक संसाधनों क े र्ुद्दे शालर्ल हैं - सबसे ववशेर् रूप से वन और कृ वर् योग्य र्ूलर्. जंगल और जर्ीन की कृ वर् गगरावट, संसाधनों की कर्ी (पानी, खननज, वन, रेत, पत्थर आदद),पयाभवरण क्षरण, सावभजननक स्वास्थ्य, जैव ववववधता क े नुकसान, पाररजस्थनतकी प्रणाललयों र्ें लचीलेपन की कर्ी है, गरीबों क े ललए आजीववका
  • 12. सुरक्षा है। र्ारत र्ें प्रदूर्ण का प्रर्ुख स्रोत ऐसी ऊजाभ का प्राथलर्क स्रोत क े रूप र्ें पशुओ ं से सूखे कचरे क े रूप र्ें फ्युलवुड और बायोर्ास का बड़े पैर्ाने पर जलना, संगदठत कचरा और कचरे को हटाने सेवाओ ं की एसीक े , र्लजल उपचार क े संचालन की कर्ी, बाढ़ ननयंत्रण और र्ानसून पानी की ननकासी प्रणाली, नददयों र्ें उपर्ोक्ता कचरे क े र्ोड़, प्रर्ुख नददयों क े पास दाह संस्कार प्रथाओ ं की कर्ी है, सरकार अत्यगधक पुराना सावभजननक पररवहन प्रदूर्ण की सुरक्षा अननवायभ है, और जारी रखा 1950-1980 क े बीच बनाया सरकार क े स्वालर्त्व वाले, उच्च उत्सजभन पौधों की र्ारत सरकार द्वारा आपरेशन है। वायु प्रदूर्ण, गरीब कचरे का प्रबंधन, बढ़ रही पानी की कर्ी, गगरते र्ूजल टेबल, जल प्रदूर्ण, संरक्षण और वनों की गुणवत्ता, जैव ववववधता क े नुकसान, और र्ूलर् ध् लर्ट्टी का क्षरण प्रर्ुख पयाभवरणीय र्ुद्दों र्ें से क ु छ र्ारत की प्रर्ुख सर्स्या है। र्ारत की जनसंख्या वृद्गध पयाभवरण क े र्ुद्दों और अपने संसाधनों क े ललए दबाव सर्स्या बढ़ाते है। जल प्रदूर्ण र्ारत क े 3,119 शहरों व कस्बों र्ें से 209 र्ें आंलशक रूप से तथा क े वल 8 र्ें र्लजल को पूणभ रूप से उपचाररत करने की सुववधा (डब्ल्यू.एच.ओ. 1992) है। 114 शहरों र्ें अनुपचाररत नाली का पानी तथा दाह संस्कार क े बाद अधजले शरीर सीधे ही गंगा नदी र्ें बहा ददए जाते हैं। अनुप्रवाह र्ें नीचे की ओर, अनुपचाररत पानी को पीने, नहाने और कपड़े धोने क े ललए प्रयोग ककया जाता है। यह जस्थनत र्ारत और साथ ही र्ारत र्ें खुले र्ें शौच काफी आर् है, यहां तक कक शहरी क्षेत्रों र्ें र्ी. जल संसाधनों को इसीललए घरेलू या अंतराभष्ट्रीय दहंसक संघर्भ से नहीं जोड़ा गया है जैसा कक पहले क ु छ पयभवेक्षकों द्वारा अनुर्ाननत था। इसक े क ु छ संर्ाववत अपवादों र्ें कावेरी नदी क े जल ववतरण से समबंगधत जानतगत दहंसा तथा इससे जुड़ा राजनैनतक तनाव जजसर्ें वास्तववक और संर्ाववत जनसर्ूह जो कक बांध पररयोजनाओ ं क े कारण ववस्थावपत होते हैं, ववशेर्कर नर्भदा नदी पर बनने वाली ऐसी पररयोजनाएं शालर्ल हैं। आज पंजाब प्रदूर्ण क े पनपने का एक संर्ाववत स्थान है, उदाहरण क े ललए बुड्ढा नुल्ला नार् की एक छोटी नदी जो पंजाब, र्ारत क े र्ालवा क्षेत्र से है, यह लुगधयाना जजले जैसी घनी आबादी वाले क्षेत्र से होकर आती है और कफर सतलज नदी, जो कक लसन्धु नदी की सहायक नदी है, र्ें लर्ल जाती है, हाल की शोधों क े अनुसार यह इंगगत ककया गया है कक एक बार और र्ोपाल जैसी पररजस्थनतयां बनने वाली हैं। 2008 र्ें पीजीआईएर्ईआर और पंजाब प्रदूर्ण ननयंत्रण बोडभ द्वारा ककये गए संयुक्त अध्ययन से पता चला कक नुल्ला क े आस पास क े जजलों र्ें र्ूलर्गत जल तथा नल क े पानी र्ें स्वीकृ त सीर्ा (एर्पीएल) से कहीं अगधक र्ात्रा र्ें क ै जल्शयर्, र्ैग्नीलशयर्, फ्लोराइड, र्रकरी तथा बीटा-एंडोसल्फान व हेप्टाक्लोर जैसे कीटनाशक पाए गए। इसक े अलावा पानी र्ें सीओडी तथा बीओडी (रासायननक व जैवरासायननक ऑक्सीजन की र्ांग), अर्ोननया, फॉस्फ े ट, क्लोराइड, क्रोलर्यर् व आसेननक तथा क्लोरपायरीफौस जैसे कीटनाशक र्ी अगधक सांद्रता र्ें थे। र्ूलर्गत जल र्ें र्ी ननकल व सेलेननयर् पाए गए और नल क े पानी र्ें सीसा, ननकल और क ै डलर्यर् की उच्च सांद्रता लर्ली। र्ुंबई नगर से होकर बहने वाली र्ीठी नदी र्ी बहुत प्रदूवर्त है। गंगा
  • 13. प्रदूवर्त गंगा नदी पर लाखों ननर्भर करते हैं। गंगा नदी क े ककनारे 40 करोड़ से र्ी अगधक लोग रहते हैं। दहन्दुओ ं क े द्वारा पववत्र र्ानी जाने वाली इस नदी र्ें लगर्ग 2,000,000 लोग ननयलर्त रूप से धालर्भक आस्था क े कारण स्नान करते हैं। दहन्दू धर्भ र्ें कहा जाता है कक यह नदी र्गवन ववष्णु क े कर्ल चरणों से (वैष्णवों की र्ान्यता) अथवा लशव की जटाओ ं से (शैवों की र्ान्यता) बहती है। आध्याजत्र्क और धालर्भक र्हत्व क े ललए इस नदी की तुलना प्राचीन लर्स्र वालसयों क े नील नदी से की जा सकती है। जबकक गंगा को पववत्र र्ाना जाता है, वहीं इसक े पाररजस्थनतकी तंत्र से संबंगधत क ु छ सर्स्याएं र्ी हैं। यह रासायननक कचरे, नाली क े पानी और र्ानव व पशुओ ं की लाशों क े अवशेर्ों से र्री हुई है और इसर्ें सीधे नहाना (उदाहरण क े ललए बबल्हारजजयालसस संक्रर्ण) अथवा इसका जल पीना (फ े कल-र्ौखखक र्ागभ से) प्रत्यक्ष रूप से खतरनाक है। यर्ुना पववत्र यर्ुना नदी को न्यूज वीक द्वारा ‘‘काले कीचड़ की बदबूदार पट्टी‘‘ कहा गया जजसर्ें फ े कल जीवाणु की संख्या सुरक्षक्षत सीर्ा से 10,000 गुणा अगधक पायी गयी और ऐसा इस सर्स्या क े सर्ाधान हेतु 15 वर्ीय कायभक्रर् क े बाद है। हैजा र्हार्ारी से कोई अपररगचत नहीं है। वायु प्रदूर्ण र्ारतीय शहरों र्ें वायु प्रदूर्ण उच्च है। र्ारतीय शहर वाहनों और उद्योगों क े उत्सजभन से प्रदूवर्त हैं। सड़क पर वाहनों क े कारण उड़ने वाली धूल र्ी वायु प्रदूर्ण र्ें 33 प्रनतशत तक का योगदान करती है। बंगलुरु जैसे शहर र्ें लगर्ग 50 प्रनतशत बच्चे अस्थर्ा से पीड़ड़त हैं। र्ारत र्ें 2005 क े बाद से वाहनों क े ललए र्ारत स्टेज दो (यूरो प्प ्) क े उत्सजभन र्ानक लागू हैं। र्ारत र्ें वायु प्रदूर्ण का सबसे बड़ा कारण पररवहन की व्यवस्था है। लाखों पुराने डीजल इंजन वह डीजल जला रहे हैं जजसर्ें यूरोपीय डीजल से 150 से 190 गुणा अगधक गंधक उपजस्थत है। बेशक सबसे बड़ी सर्स्या बड़े शहरों र्ें है जहां इन वाहनों का घनत्व बहुत अगधक है। सकारात्र्क पक्ष पर, सरकार इस बड़ी सर्स्या और लोगों से संबद्ध स्वास्थ्य जोखखर्ों पर प्रनतकक्रया करते हुए धीरे-धीरे लेककन ननजश्चत रूप से कदर् उठा रही है। पहली बार 2001 र्ें यह ननणभय ललया गया कक समपूणभ सावभजननक यातायात प्रणाली, ट्रेनों को छोड़ कर, क ं प्रेस्ड गैस (सीपीजी) पर चलने लायक बनायी जाएगी. ववद्युत ् चाललत ररक्शा ड़डजाइन ककया जा रहा है और सरकार द्वारा इसपर ररयायत र्ी दी जाएगी परन्तु ददल्ली र्ें साइककल ररक्शा पर प्रनतबन्ध है और इसक े कारण वहां यातायात क े अन्य र्ाध्यर्ों पर ननर्भरता होगी, र्ुख्य रूप से इंजन वाले वाहनों पर। यह र्ी प्रकट हुआ है कक अत्यगधक प्रदूर्ण से ताजर्हल पर प्रनतक ू ल प्रर्ाव पड़ रहा था। अदालत द्वारा इस क्षेत्र र्ें सर्ी प्रकार क े वाहनों पर रोक लगाये जाने क े पश्चात इस इलाक े की सर्ी औद्योगगक इकाइयों को र्ी बंद कर ददया गया। बड़े शहरों र्ें वायु प्रदूर्ण इस कदर बढ़ रहा है कक अब यह ववश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा ददए गए र्ानक से लगर्ग 2.3 गुना तक हो चुका है।
  • 14. ध्वनन प्रदूर्ण र्ारत क े सवोच्च न्यायलय द्वारा ध्वनन प्रदूर्ण पर एक र्हत्वपूणभ फ ै सला सुनाया गया। वाहनों क े हॉनभ की आवाज शहरों र्ें शोर क े डेलसबबल स्तर को अनावश्यक रूप से बढ़ा देती है। राजनैनतक कारणों से तथा र्ंददरों व र्जस्जदों र्ें लाउडस्पीकर का प्रयोग ररहायशी इलाकों र्ें ध्वनन प्रदूर्ण क े स्तर को बढाता है। हाल ही र्ें र्ारत सरकार ने शहरी और ग्रार्ीण क्षेत्रों र्ें ध्वनन स्तर क े र्ानदंडों को स्वीकृ त ककया है। इनकी ननगरानी व कक्रयान्वन क ै से होगा यह अर्ी र्ी सुननजश्चत नहीं है। र्ूलर् प्रदूर्ण र्ारत र्ें र्ूलर् प्रदूर्ण कीटनाशकों और उवभरकों क े साथ-साथ क्षरण की वजह से हो रहा है। र्ाचभ 2009 र्ें पंजाब र्ें युरेननयर् ववर्ाक्तता का र्ार्ला प्रकाश र्ें आया, इसका कारण ताप ववद्युत ् गृहों द्वारा बनाये गए राख क े तालाब थे, इनसे पंजाब क े फरीदकोट तथा र्दटंडा जजलों र्ें बच्चों र्ें गंर्ीर जन्र्जात ववकार पाए गए। जनसंख्या वृद्गध और पयाभवरण की गुणवत्ता जनसंख्या वृद्गध और पयाभवरण क े बीच बातचीत क े बारे र्ें अध्ययन और बहस का एक लंबा इनतहास है। एक बिदटश ववचारक र्ाल्थस क े अनुसार, उदाहरण क े ललए, एक बढ़ती हुई जनसंख्या पयाभवरण क्षरण क े कारण, और गरीब गुणवत्ता क े रूप र्ें क े रूप र्ें अच्छी तरह से गरीब की र्ूलर् की खेती क े ललए र्जबूर कर रहा, कृ वर् र्ूलर् पर दबाव डाल रही है।यह पयाभवरण क्षरण अंतत प्रनतशत, कृ वर् पैदावार और खाद्य पदाथों की उपलब्धता को कर् कर देता है, जजससे जनसंख्या वृद्गध की दर को कर् करने, अकाल और रोगों और र्ृत्यु का कारण बनता है । यह पयाभवरण की क्षर्ता पर दबाव डाल सकता है जनसंख्या वृद्गध ने र्ी हवा, पानी, और ठोस अपलशष्ट प्रदूर्ण का एक प्रर्ुख कारण क े रूप र्ें देखा जाता है। पयाभवरण क े सर्स्या और र्ारतीय कानून 1980 क े दशक क े बाद से, र्ारत क े सवोच्च न्यायालय सर्थभक सकक्रय रूप से र्ारत क े पयाभवरण क े र्ुद्दों र्ें लगा हुआ है।र्ारत क े उच्चतर् न्यायालय की व्याख्या और सीधे पयाभवरण न्यायशास्त्र र्ें नए पररवतभन शुरू करने र्ें लगा हुआ है। न्यायालय क े ननदेशों और ननणभय की एक श्रृंखला क े र्ाध्यर् से र्ौजूदा वालों पर अनतररक्त शजक्तयां, पयाभवरण कानूनों को कफर से व्याख्या की है, पयाभवरण की रक्षा क े ललए नए संस्थानों और संरचनाओ ं नए लसद्धांतों बनाया नीचे रखी है, और नवाजा गया है। पयाभवरण क े र्ुद्दों पर जनदहत यागचका और न्यानयक सकक्रयता र्ारत क े सुप्रीर् कोटभ से परे फ ै ली हुई है। यह अलग- अलग राजयों क े उच्च न्यायालयों र्ें शालर्ल हैं। संरक्षण खराब वायु गुणवत्ता, जल प्रदूर्ण और कचरे क े प्रदूर्ण - सर्ी पाररजस्थनतक तंत्र क े ललए आवश्यक खाद्य और पयाभवरण की गुणवत्ता प्रर्ाववत करते हैं। र्ारतीय जंगलों वन वनस्पनत की ववववधता और ववतरण बड़ी है।