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निर्वचि क
े मूल निद्धांत
प्रस्तुतकतता :-
डॉ प्रबोध क
ु मतर गगा
असिस्टेंट प्रोफ
े िर
सिसध सिभतग
सियत पीजी कॉलेज लखनऊ
न्यतयतलय द्वतरत सकिी सिितद क
े सनपटतरे क
े दौरतन
िंबंसधत कतनून की भतषत क
े िंदभा में सिधतसयकत क
े
आिय को स्पष्ट करने पर जो सिद्तंत प्रसतपतसदत
सकये जतते हैं सनिाचन क
े सिद्तंत अथित सनयम कहलतते
हैं, दू िरे िब्ों में सिधतनों क
े ितमतसजक, आसथाक ि
रतजनीसतक उद्देश्ों को प्रतप्त करने हेतु न्यतयतलयों द्वतरत
प्रसतपतसदत सिद्तंतों क
े अस्पष्ट आकतर को सनिाचन कत
सिद्तंत कहत जततत हैI
निर्वचि कध अर्व
सनिाचन एिं अथतान्वयन िब्ों को ितमतन्यतः एक ही
अथा में प्रयुक्त सकयत जततत है, जबसक सिसधितस्त्रीय
स्वरुप रूप में िे एक दू िरे िे सभन्न है I
असधसनयसमसत की भतषत क
े अंतगात प्रयुक्त हुए िब्ों
क
े प्रतक
ृ सतक अथों िे ही उिक
े ितस्तसिक ि ित्य
स्वरूप कत सनधतारण करनत सनिाचन है, जबसक
असधसनयसमसत में प्रयुक्त हुए िब्ों क
े बतहर जतकर
उनकी आत्मत क
े आधतर पर उिक
े िच्चे स्वरूप को
जतनने की प्रसियत अथतान्वयन कहलतती है I
परंतु सनिाचन एिं अथतान्वयन िब्ों को सिसध क
े
अंतगातिमतन अथों में प्रयोग सकयत जततत है Iसनिाचन
न्यतयतलय कत प्रतथसमक कताव्य है, क्ोंसक जब कोई
सिितद न्यतयतलय क
े िमक्ष आतत है तो न्यतयतलय
सिधतसयकत द्वतरत सनसमात सकए गए कतनून क
े अनुितर
उि सिितद को सनस्ततररत करतत है I
इिक
े सलए न्यतयतलय क
े सलए यह आिश्क है सक िह
सिधतसयकत क
े आिय को ध्यतन में रखें I चूंसक सिधतयकत
कतनून बनतकर अपनत मंतव्य पहले ही प्रकट कर चुकी
होती है अतः न्यतयतलय कत यह कताव्य बन जततत है सक
िह कतनून में दी गई भतषत क
े दतयरे में रहकर ही
सिधतसयकत क
े आिय को स्पष्ट करें I
न्यतयतलय द्वतरत सकिी सिितद क
े सनपटतरे क
े
दौरतन िंबंसधत कतनून की भतषत क
े िन्दभा में
सिधतसयकत क
े आिय को स्पष्ट करने पर जो
सिद्तंत प्रसतपतसदत सकए जतते हैं, सनिाचन क
े
सिद्तंत अथित सनयम कहलतते हैं I
दू िरे िब्ों में सिधतनों क
े ितमतसजक, आसथाक ि
रतजनीसतक उद्देश्ों को प्रतप्त करने हेतु न्यतयतलयों द्वतरत
प्रसतपतसदत सिद्तंतों क
े अस्पष्ट आकतर को सनिाचन कत
सिद्तंत कहत जततत है I
सनिाचन एक ऐित ढंग है सजिक
े द्वतरत सकिी िब् यत
उपबंध क
े िही भति यत अथा को िमझत जततत
हैI सनिाचन िदत सकिी जसटल तथ्य कत अथा
असभसनसित करतत है I जैिे -सकिी रूसि कत सकिी
न्यतसयक सिसनिय कत, सकिी कतनून कत, सकिी
सिसनयम कत, सकिी िंसिदत कत, सकिी ििीयत कत
आसद I
सजि पद्दसत िे सनिाचन प्रतप्त सकयत जततत है िह
अथतान्वयन है I अतः अथतान्वयन सनिाचन कत ितधन है
और सनिाचन ितध्य I क
ु ल समलतकर यही कहत जत
िकतत है सक न्यतयतलयों द्वतरत िंसिसधयों की भतषत,
िब्ों एिं असभव्यक्तक्तयों क
े अथा सनधतारण की प्रसियत
ही िंसिसधयों कत सनिाचन है I
निर्वचि एर्ां अर्धवन्वयि में अांतर
1- सनिाचन कत ततत्पया अथा सनरूपण भतषतंतर आसद I
सनिाचन सकिी तथ्य कत अथा होतत है, जबसक अथतान्वयन
िह तरीकत है सजिक
े द्वतरत सनिाचन प्रतप्त सकयत जततत हैI
2- सनिताचन ितध्य है जबसक अथतान्वयन सनिाचन कत
ितधन है I
3- असधसनयम की भतषत क
े अंतगात प्रयुक्त हुए िब्ों
क
े प्रतक
ृ सतक अथों िे ही उिक
े िही पहलू ि ित्य
स्वरूप कत सनधतारण सनिाचन कहलततत है जबसक
असधसनयम में प्रयुक्त हुए िब्ों क
े बतहर जतकर उिकी
आत्मत क
े आधतर पर उिक
े िही पहलू ि ित्य स्वरूप
को जतनने की प्रसियत अथतान्वयन कहलतती है I
4- न्यतयतधीि को सनिताचन करने में दो तथ्यों को ध्यतन में
रखनत होतत है: -
 उिकत ितस्तसिक अथा क्त होनत चतसहए
 पररसनयम को बनतते िमय सिधतसयकत कत उद्देश्
जबसक अथतान्वयन की प्रसियत में िब् कत अथा
खोजनत पड़तत है ततसक क्तथथसत कत सनपटतरत हो िक
े ,
यह क्तथथसत सिधतन बनतते िमय उत्पन्न नहींहोती है I
5- सनिताचन में ितक्तब्क तथत ितधतरण अथा सलयत जततत है
जबसक अथतान्वयन में कभी-कभी ितक्तब्क अथतान्वयन में
अिंगत ि अन्यतयपूणा पररणतम दृसष्टगोचर होते हैं I
6- सनिाचन में सिधतसयकत कत आिय प्रमुख होतत है जबसक
अथतान्वयन में पररसनयम क
े पररभतसषत िब् कत ितस्तसिक
अथा देखनत पड़तत है I
निर्वचि क
े उद्देश्य
व्यतख्यत िह प्रसियत है सजिमें न्यतयतलय सकिी सिसिष्ट सिधतन
क
े अथों कत सनधतारण करते हैं I सिसधयों क
े सनमताण में
सिधतसयकत कत मुख्य उद्देि ितमतसजक सहत पररलसक्षत करनत
होतत है अतः न्यतयतलयों कत यह कताव्य है सक िह
िंसिसधयों कत सनिताचन इि प्रकतर करें सक ितमतसजक सहत को
बितित समले I
सिसधयों क
े सनमताण में सिधतसयकत कत मुख्य उद्देि
लोकसहत है और यह भी न्यतयतलयों द्वतरत इनकत सनिाचन
भी इिी ध्येय क
े अनुरूप सकयत जतनत चतसहए I इि प्रकतर
व्यतख्यत िह प्रसियत है सजिमें न्यतयतलय सकिी सिसिष्ट
सिधतन क
े अथों कत सनधतारण करते हैं I
ितंसिसधक सिसध पर प्रितिन करते हुए न्यतयतधीि दो
प्रकतर कत कतम करतत है-
 ितद क
े तथ्यों कत पतत लगतनत
 इि बतत कत पतत लगतनत सक उन पररक्तथथसतयों में
सिधतन ने उि न्यतयतधीि द्वतरत सकि कतया सिसध को
आिसयत सकयत है I
Source/credit: -
Books:-
 The Interpretation of Statutes by Prof. T. Bhattacharya
 Principles Of Statutory Interpretation by G.P. Singh
 Interpretation of Statutes by D.N. Mathur
 Lectures on Interpretation of Statutes by Dr. Rega Surya
Rao
 Introduction to The Interpretation Of Statutes by Dr. Avatar
Singh
 Interpretation of Statues by Dr. S. R. Myneni
 Interpretation of Statues by Dr. Radha Gupta
Websites: -
 www.legalbites.in
 http://persmin.gov.in
 www.docsity.com
 www.academia.edu
 www.ajol.info
 https://guides.libraries.uc.edu
 http://studymaterial.unipune.ac.in
 https://blog.ipleaders.in
 https://www.lawethiopia.com
 https://www.lexisnexis.com
 https://www.lawfinderlive.com
 https://biotech.law.lsu.edu
 www.Legalserviceindia.com
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  • 1. निर्वचि क े मूल निद्धांत प्रस्तुतकतता :- डॉ प्रबोध क ु मतर गगा असिस्टेंट प्रोफ े िर सिसध सिभतग सियत पीजी कॉलेज लखनऊ
  • 2. न्यतयतलय द्वतरत सकिी सिितद क े सनपटतरे क े दौरतन िंबंसधत कतनून की भतषत क े िंदभा में सिधतसयकत क े आिय को स्पष्ट करने पर जो सिद्तंत प्रसतपतसदत सकये जतते हैं सनिाचन क े सिद्तंत अथित सनयम कहलतते हैं, दू िरे िब्ों में सिधतनों क े ितमतसजक, आसथाक ि रतजनीसतक उद्देश्ों को प्रतप्त करने हेतु न्यतयतलयों द्वतरत प्रसतपतसदत सिद्तंतों क े अस्पष्ट आकतर को सनिाचन कत सिद्तंत कहत जततत हैI
  • 4. सनिाचन एिं अथतान्वयन िब्ों को ितमतन्यतः एक ही अथा में प्रयुक्त सकयत जततत है, जबसक सिसधितस्त्रीय स्वरुप रूप में िे एक दू िरे िे सभन्न है I
  • 5. असधसनयसमसत की भतषत क े अंतगात प्रयुक्त हुए िब्ों क े प्रतक ृ सतक अथों िे ही उिक े ितस्तसिक ि ित्य स्वरूप कत सनधतारण करनत सनिाचन है, जबसक असधसनयसमसत में प्रयुक्त हुए िब्ों क े बतहर जतकर उनकी आत्मत क े आधतर पर उिक े िच्चे स्वरूप को जतनने की प्रसियत अथतान्वयन कहलतती है I
  • 6. परंतु सनिाचन एिं अथतान्वयन िब्ों को सिसध क े अंतगातिमतन अथों में प्रयोग सकयत जततत है Iसनिाचन न्यतयतलय कत प्रतथसमक कताव्य है, क्ोंसक जब कोई सिितद न्यतयतलय क े िमक्ष आतत है तो न्यतयतलय सिधतसयकत द्वतरत सनसमात सकए गए कतनून क े अनुितर उि सिितद को सनस्ततररत करतत है I
  • 7. इिक े सलए न्यतयतलय क े सलए यह आिश्क है सक िह सिधतसयकत क े आिय को ध्यतन में रखें I चूंसक सिधतयकत कतनून बनतकर अपनत मंतव्य पहले ही प्रकट कर चुकी होती है अतः न्यतयतलय कत यह कताव्य बन जततत है सक िह कतनून में दी गई भतषत क े दतयरे में रहकर ही सिधतसयकत क े आिय को स्पष्ट करें I
  • 8. न्यतयतलय द्वतरत सकिी सिितद क े सनपटतरे क े दौरतन िंबंसधत कतनून की भतषत क े िन्दभा में सिधतसयकत क े आिय को स्पष्ट करने पर जो सिद्तंत प्रसतपतसदत सकए जतते हैं, सनिाचन क े सिद्तंत अथित सनयम कहलतते हैं I
  • 9. दू िरे िब्ों में सिधतनों क े ितमतसजक, आसथाक ि रतजनीसतक उद्देश्ों को प्रतप्त करने हेतु न्यतयतलयों द्वतरत प्रसतपतसदत सिद्तंतों क े अस्पष्ट आकतर को सनिाचन कत सिद्तंत कहत जततत है I
  • 10. सनिाचन एक ऐित ढंग है सजिक े द्वतरत सकिी िब् यत उपबंध क े िही भति यत अथा को िमझत जततत हैI सनिाचन िदत सकिी जसटल तथ्य कत अथा असभसनसित करतत है I जैिे -सकिी रूसि कत सकिी न्यतसयक सिसनिय कत, सकिी कतनून कत, सकिी सिसनयम कत, सकिी िंसिदत कत, सकिी ििीयत कत आसद I
  • 11. सजि पद्दसत िे सनिाचन प्रतप्त सकयत जततत है िह अथतान्वयन है I अतः अथतान्वयन सनिाचन कत ितधन है और सनिाचन ितध्य I क ु ल समलतकर यही कहत जत िकतत है सक न्यतयतलयों द्वतरत िंसिसधयों की भतषत, िब्ों एिं असभव्यक्तक्तयों क े अथा सनधतारण की प्रसियत ही िंसिसधयों कत सनिाचन है I
  • 13. 1- सनिाचन कत ततत्पया अथा सनरूपण भतषतंतर आसद I सनिाचन सकिी तथ्य कत अथा होतत है, जबसक अथतान्वयन िह तरीकत है सजिक े द्वतरत सनिाचन प्रतप्त सकयत जततत हैI 2- सनिताचन ितध्य है जबसक अथतान्वयन सनिाचन कत ितधन है I
  • 14. 3- असधसनयम की भतषत क े अंतगात प्रयुक्त हुए िब्ों क े प्रतक ृ सतक अथों िे ही उिक े िही पहलू ि ित्य स्वरूप कत सनधतारण सनिाचन कहलततत है जबसक असधसनयम में प्रयुक्त हुए िब्ों क े बतहर जतकर उिकी आत्मत क े आधतर पर उिक े िही पहलू ि ित्य स्वरूप को जतनने की प्रसियत अथतान्वयन कहलतती है I
  • 15. 4- न्यतयतधीि को सनिताचन करने में दो तथ्यों को ध्यतन में रखनत होतत है: -  उिकत ितस्तसिक अथा क्त होनत चतसहए  पररसनयम को बनतते िमय सिधतसयकत कत उद्देश् जबसक अथतान्वयन की प्रसियत में िब् कत अथा खोजनत पड़तत है ततसक क्तथथसत कत सनपटतरत हो िक े , यह क्तथथसत सिधतन बनतते िमय उत्पन्न नहींहोती है I
  • 16. 5- सनिताचन में ितक्तब्क तथत ितधतरण अथा सलयत जततत है जबसक अथतान्वयन में कभी-कभी ितक्तब्क अथतान्वयन में अिंगत ि अन्यतयपूणा पररणतम दृसष्टगोचर होते हैं I 6- सनिाचन में सिधतसयकत कत आिय प्रमुख होतत है जबसक अथतान्वयन में पररसनयम क े पररभतसषत िब् कत ितस्तसिक अथा देखनत पड़तत है I
  • 18. व्यतख्यत िह प्रसियत है सजिमें न्यतयतलय सकिी सिसिष्ट सिधतन क े अथों कत सनधतारण करते हैं I सिसधयों क े सनमताण में सिधतसयकत कत मुख्य उद्देि ितमतसजक सहत पररलसक्षत करनत होतत है अतः न्यतयतलयों कत यह कताव्य है सक िह िंसिसधयों कत सनिताचन इि प्रकतर करें सक ितमतसजक सहत को बितित समले I
  • 19. सिसधयों क े सनमताण में सिधतसयकत कत मुख्य उद्देि लोकसहत है और यह भी न्यतयतलयों द्वतरत इनकत सनिाचन भी इिी ध्येय क े अनुरूप सकयत जतनत चतसहए I इि प्रकतर व्यतख्यत िह प्रसियत है सजिमें न्यतयतलय सकिी सिसिष्ट सिधतन क े अथों कत सनधतारण करते हैं I
  • 20. ितंसिसधक सिसध पर प्रितिन करते हुए न्यतयतधीि दो प्रकतर कत कतम करतत है-  ितद क े तथ्यों कत पतत लगतनत  इि बतत कत पतत लगतनत सक उन पररक्तथथसतयों में सिधतन ने उि न्यतयतधीि द्वतरत सकि कतया सिसध को आिसयत सकयत है I
  • 21. Source/credit: - Books:-  The Interpretation of Statutes by Prof. T. Bhattacharya  Principles Of Statutory Interpretation by G.P. Singh  Interpretation of Statutes by D.N. Mathur  Lectures on Interpretation of Statutes by Dr. Rega Surya Rao  Introduction to The Interpretation Of Statutes by Dr. Avatar Singh  Interpretation of Statues by Dr. S. R. Myneni  Interpretation of Statues by Dr. Radha Gupta
  • 22. Websites: -  www.legalbites.in  http://persmin.gov.in  www.docsity.com  www.academia.edu  www.ajol.info  https://guides.libraries.uc.edu  http://studymaterial.unipune.ac.in  https://blog.ipleaders.in  https://www.lawethiopia.com  https://www.lexisnexis.com  https://www.lawfinderlive.com  https://biotech.law.lsu.edu  www.Legalserviceindia.com