http://spiritualworld.co.in श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - जीवन परिचय:
पंज पिआले पंज पीर छठम पीर बैठा गुर भारी||
अर्जन काइआ पलटिकै मूरति हरि गोबिंद सवारी||
(वार १|| ४८ भाई गुरदास जी)
बाबा बुड्डा जी के वचनों के कारण जब माता गंगा जी गर्भवती हो गए, तो घर में बाबा पृथीचंद के नित्य विरोध के कारण समय को विचार करके श्री गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर से पश्चिम दिशा वडाली गाँव जाकर निवास किया| तब वहाँ श्री हरिगोबिंद जी का जन्म 21 आषाढ़ संवत 1652 को रविवार श्री गुरु अर्जन देव जी के घर माता गंगा जी की पवित्र कोख से वडाली गाँव में हुआ|
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Shri Guru Hargobind Sahib Ji An Introduction - 058a
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2. पंज िपआले पंज पीर छठम पीर बैठा गुर भारी||
अर्जर्जन काइआ पलिटिकै मूरित हरिर गोबिबद सवारी||
(वार १|| ४८ भाई गुरदास जी)
बाबा बुड्डा जी के वचनो के कारण जब माता गंगा
जी गभर्जवती हरोब गए, तोब घर मे बाबा पृथीचंद के
िनत्य िवरोबध के कारण समय कोब िवचार करके श्री
गुर अर्जर्जन देव जी ने अर्मृतसर से पिश्चिम िदशा
वडाली गाँव जाकर िनवास िकया| तब वहराँ श्री
हरिरगोबिबद जी का जन्म 21 आषाढ संवत 1652
कोब रिववार श्री गुर अर्जर्जन देव जी के घर माता
गंगा जी की पिवत कोबख से वडाली गाँव मे हुआ|
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3. तब दाई ने बालक के िवषय मे कहरा िक बधाई हरोब आप के
घर मे पुत ने जन्म िलया हरै| श्री गुर अर्जर्जन देव जी ने
बालक के जन्म के समय इस शब्द का उच्चारण िकया|
सोबरिठ महरला ५ ||
परमेसिर िदता बंना ||
दुख रोबग का डेरा भंना ||
अर्नद करिहर नर नारी ||
हरिर हरिर प्रभिभ िकरपा धारी || १ ||
संतहु सुखु हरोबआ सभ थाई ||
पारब्रहरमु पूरन परमेसर रिव रिहरआ सभनी जाई ||
रहराउ ||
धुर की बाणी आई ||
ितिन सगली िचत िमटिाई ||
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4. दइििआल पुरख िमिहरवाना ||
हिर नानक साचु वखाना || २ || १३ || ७७ ||
(श्री गुर ग्रंथ सािहब, पन्ना ६२८)
श्री गुर अर्जनर्जन देव जनी ने बधाई की खबर
अर्कालपुरख का धन्यवाद इस शब्द से िकया-
आसा मिहला ५||
सितिगुर साचै दीआ भेिजन ||
िचर जनीवनु उपिजनआ संजनोगिग ||
उदरै मिािह आइिि कीआ िनवासु ||
मिातिा कै मििन बहुतिु िबगासु || १ ||
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5. जनंिमिआ पूतिु भगतिु गोगिवद का ||
प्रगिटिआ सभ मििह िलिखआ धुर का || रहाउ ||
दसी मिासी हुकमिी बालक जनन्मिु लीआ िमििटिआ सोगगु मिहा
अर्नंदु थीआ ||
गुरबाणी सखी अर्नंदु गावै ||
साचे सािहब कै मििन भावै || १ ||
वधी वेिल बहु पीड़ी चाली ||
धरमि कला हिर बंिध बहाली ||
मिन िचिदआ सितिगुर िदवाइििआ ||
भए अर्िचति एक िलव लाइििआ || ३ ||
िजनउ बालकु िपतिा ऊपिर करे बहु मिाणु ||
बुलाइििआ बोगलै गुर कै भािण ||
गुझी छंनी नाही बाति ||
गुर नानकु तिुठा कीनी दािति || ४ || ७ || १०१ ||
(श्री गुर ग्रंथ सािहब: पन्ना ३९६)
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6. सािहबजनादे की जनन्मि की खुशी मिे श्री गुर अर्जनर्जन देव जनी
ने वडाली गाँव के पास उत्तर िदशा मिे एक बड़ा कुआँ
लगवाया, िजनस पर छहरटिा चाल सकतिी थी| गुर जनी ने
छहरटिे कुएँ कोग वरदान िदया िक िजनस स्त्री के घर संतिान
नही होगतिी या िजनसकी संतिान मिर जनातिी होग, वह स्त्री
अर्गर िनयमि से बारह पंचमिी इसके पानी से स्नान करे
और नीचे लीखे दोग शब्दो के 41 पाठ करे तिोग उसकी
संतिान िचरंजनीवी होगगी|
पहला शब्द-
सितिगुर साचै दीआ भेिजन||
दूसरा शब्द-
िबलावलु मिहला ५||
सगल अर्नंदु कीआ परमिेसिर अर्पणा िबरदु सम्हािरआ ||
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7. साध जना होए िपाक्रिपाला िबिगसे सिभ परवािरआ || १ ||
कारजु सितिगुर आिप सवािरआ ||
वडी आरजा हिर गोिबिद की सुख मंगल किलयाण
बिीचािरआ || १ || रहाउ ||
वण ित्रिण ित्रिभवण हिरआ होए सगले जीअ साधािरआ ||
मन इििछे नानक फल पाए पूरन इछ पुजािरआ || २ || ५
|| २३ ||
(श्री गुर ग्रंथ सािहबि: पन्ना ८०६-०७)
कुछ समय के बिाद एक िपादन श्री हिर गोिबिद जी को बिुखार
हो गया| िजससे उनको सीतिला िनकाल आई| सारे शरीर
और चेहरे पर छाले हो गए| इससे मातिा और िसख सेवको
को िचतिा हुई| श्री गुर अजर्जन देव जी ने सबिको कहा िपाक
बिालक का रक्षक गुर नानक आप है| िचतिा ना करो बिालक
स्वस्थ हो जाएगा|
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8. जबि कुछ िपादनो के पश्चाति सीतिला का प्रकोप धीमा पड
गया और बिालक ने आंखे खोल ली| गुर जी ने परमात्मा
का धन्यवाद इस शब्द के उच्चारण के साथ िपाकया-
राग गउड़ी महला ५||
नेत्रि प्रगास कीआ गुरदेव ||
भरम गए पूरन भई सेव || १ || रहाउ ||
सीतिला ने रािखआ िबिहारी ||
पारब्रहम प्रभ िपाकरपा धारी || १ ||
नानक नामु जपै सो जीवै ||
साध संिग हिर अंमृतिु पीवै || २ || १०३ || १७२ ||
(श्री गुर ग्रंथ सािहबि: पन्ना २००)
श्री गुर हिर गोिबिद जी के तिीन िववाह हुए|
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9. पहला िववाह –
12 भाद्रव संवति 1661 मे (डल्ले गाँव मे) नारायण दास
क्षत्रिी की सपुत्रिी श्री दमोदरी जी से हुआ|
संतिान –
बिीबिी वीरो, बिाबिा गुर िपादत्ता जी और अणी राय|
दूसरा िववाह –
8 वैशाख संवति 1670 को बिकाला िनवासी हरीचंद की
सुपुत्रिी नानकी जी से हुआ|
संतिान –
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श्री गुर तेग बहादर जी|
तीसरा िववाह –
11 श्रावण संवत 1672 को मंिडिआला िनिवासी
दया राम जी मरवाह की सुपुत्री महादेवी से हुआ|
संतानि –
बाबा सूरज मल जी और अटल राय जी|